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महाकाव्य

सूची महाकाव्य

संस्कृत काव्यशास्त्र में महाकाव्य (एपिक) का प्रथम सूत्रबद्ध लक्षण आचार्य भामह ने प्रस्तुत किया है और परवर्ती आचार्यों में दंडी, रुद्रट तथा विश्वनाथ ने अपने अपने ढंग से इस महाकाव्य(एपिक)सूत्रबद्ध के लक्षण का विस्तार किया है। आचार्य विश्वनाथ का लक्षण निरूपण इस परंपरा में अंतिम होने के कारण सभी पूर्ववर्ती मतों के सारसंकलन के रूप में उपलब्ध है।महाकाव्य में भारत को भारतवर्ष अथवा भरत का देश कहा गया है तथा भारत निवासियों को भारती अथवा भरत की संतान कहा गया है .

188 संबंधों: चम्पा, चंद्रभानु सिंह, चेतक, चेरुश्शेरि नंपूतिरि, चेरुशेरी नम्बूतिरी, चोका, एम. एस. अणे, एस. श्रीनिवास शर्मा, ऐन्नियुस क्विंतुस, तारा (रामायण), तुलसी बहादुर क्षेत्री अपतन, तुलसी राम शर्मा कश्यप, तुलू भाषा, तुंचत्तु रामानुजन एषुत्तच्छन, थॉमस हार्डी, द लोर्ड ऑफ द रिंग्स फिल्म ट्रिलॉजी, द वंडर दैट वाज़ इण्डिया, दुःशासन, द्वारका प्रसाद मिश्र, दीपवंस, नर्मद, नल-दमयन्ती, नुक्कड़ नाटक का इतिहास, नैषधीयचरित, पद्मावत, पद्मगुप्त, परमेश्वर अय्यर उल्लूर, पउमचरिउ, प्रियप्रवास, प्रकाश प्रेमी, पृथ्वीराज रासो, पृथ्वीराजविजयमहाकाव्यम्, पैराडाइज लॉस्ट, पी. के. नारायण पिळ्ळै, पी.सी. देवसिया, बर्मी साहित्य, बुद्धचरित, ब्रेवहार्ट, बृहतत्रयी (संस्कृत महाकाव्य), बेद्दन धरती दी, भट्टिकाव्य, भानुभक्त आचार्य, भारतायनम्, भारतीय चित्रकला, भारतीय धातुकर्म का इतिहास, भारतीय नाम, भारतीय महाकाव्य, भारवि, भार्गवीयम्, भीम, ..., भीष्मचरितम्, महात्मा विदुर, महाभारत, महाभारत के विभिन्न संस्करण, महाभारत की संक्षिप्त कथा, महाकाव्य (एपिक), मार्कण्डेय प्रवासी, माघ, माघ (कवि), मिथिला प्रसाद त्रिपाठी, मंखक, मंगत बादल, मुक्तक, मीर चाकर खाँ, मीरां, यशोधरा (काव्य), युगसंध्या, यूनानी भाषा, यूरोप का इतिहास, राधा विरह, रामचन्द्र चन्द्रिका, रामचंद्र गिरि, रामभद्राचार्य, रामायण, रामायण (बहुविकल्पी), राही मासूम रज़ा, राजा रवि वर्मा, राज्य की भारतीय अवधारण, रघुवंशम्, रुसी भाषा का साहित्य, रेवाप्रसाद द्विवेदी, लक्षण, लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा, लोल्लट, श चिंग, शिलप्पदिकारम, शिल्प (साहित्य), शिशुपालवध, शिवलीलार्णव, शंकुक (भरत नाट्यशास्त्र के व्याख्याता), श्याम नारायण पाण्डेय, श्री राधाचरित महाकाव्यम्, श्रीचंद्रशेखरेन्द्रसरस्वतीविजयम्, श्रीधर भास्कर वर्णेकर, श्रीभार्गवराघवीयम्, श्रीरामचरितमानस, श्रीरामायण दर्शनम्, श्रीशिवपराज्योदयम्, श्रीसीतारामकेलिकौमुदी, श्रीहर्ष, शौरसेनी, सत्यव्रत शास्त्री, समाज दर्पण, साहित्य दर्पण, सावित्री (पुस्तक), साकेत, संस्कृत भाषा में रचित बौद्ध ग्रन्थ, संगम साहित्य, सुधाकर द्विवेदी, सुशर्मा, सुजना (एस. नारायण शेट्टी), स्वयंभू (अपभ्रंश के कवि), स्वातंत्र्यसंभवम्, सीतायन, हनुमान, हरिचन्द्र, हरिनारायण दीक्षित, हरेकृष्ण शतपथी, हिन्दू मंदिर स्थापत्य, हिन्दी से सम्बन्धित प्रथम, जयद्रथ, जातक, जानकीहरण (महाकाव्य), जगद्गुरु रामभद्राचार्य ग्रंथसूची, ज्ञान सिंह पगोच, जौहर, जीवक चिन्तामणि, वलैयापति, वाल्मीकि, वाल्मीकि रामायण, वासुदेव वामन शास्त्री खरे, वाग्भट, विद्याधर (साहित्यशास्त्री), विलंका रामायण, विश्व कविता दिवस, विश्वभानु, विष्णु सीताराम सुकथंकर, वैदिक संस्कृत, वैदिक व्याकरण, वैद्यनाथ मल्लिक विधु, वैशम्पायन, खण्डकाव्य, खिस्तुभागवतम्, गंगा नदी, गुर्जर, गुजराती साहित्य, गोदान (प्रेमचंद का उपन्यास), गीतरामायणम्, ओड़िया साहित्य, ओडिसी (बहुविकल्पी), ओदिसी, आमा, इलियाड, कथानक, कम्बन, कर्ण–कुंती, काञ्चीनाथ झा किरण, कामायनी, कालिकाप्रसाद शुक्ल, काशीकांत मिश्र मधुप, काव्य, काव्यशास्त्र, किरातार्जुनीयम्, कवि, कविराज कृष्णदास, कुण्डलकेसि, कुप्पाली वी गौड़ा पुटप्पा, कुमारदास, कुमारसम्भव, कुमारसंभवम्, कुरुक्षेत्र, कुरुक्षेत्र युद्ध, क्रांति कथा, क्षेमेंद्र, कृष्णायन, के. एन. एषुत्तचन, केरलोदय:, केशव, अन्यूरिन, अफ़्रीका, अभिराज राजेन्द्र मिश्र, अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध', अरबुदा पर्वत, अरुन्धती (महाकाव्य), अष्टावक्र (महाकाव्य), अगस्त्यायिनी, उच्च स्वैरकल्पना, उग्रश्रव सौती सूचकांक विस्तार (138 अधिक) »

चम्पा

दक्षिण पूर्व एशिया, 1100 ईसवी, '''चम्पा''' हरे रंग में चम्पा दक्षिण पूर्व एशिया (पूर्वी हिन्दचीन (192-1832) में) स्थित एक प्राचीन हिन्दू राज्य था। यहाँ भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार थाऔर इसके राजाओं के संस्कृत नाम थे। चम्पा के लोग और राजा शैव थे। अन्नम प्रांत के मध्य और दक्षिणी भाग में प्राचीन काल में जिस भारतीय राज्य की स्थापना हुई उसका नाम 'चंपा' था। नृजातीय तथा भाषायी दृष्टि से चम्पा के लोग चाम (मलय पॉलीनेशियन) थे। वर्तमान समय में चाम लोग वियतनाम और कम्बोडिया के सबसे बड़े अल्पसंख्यक हैं। इसके ५ प्रमुख विभाग थेः.

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चंद्रभानु सिंह

चंद्रभानु सिंह मैथिली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य शकुन्तला के लिये उन्हें सन् 2004 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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चेतक

महाराणा प्रताप के सबसे प्रिय और प्रसिद्ध नीलवर्ण irani मूल के घोड़े का नाम चेतक था। चेतक अश्व गुजरातमे चोटीलाके पास भीमोरा गांवका था.

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चेरुश्शेरि नंपूतिरि

चेरुश्शेरि नंपूतिरि मलयालम कवि। ये मलाबार में पैदा हुए थे तथा उदयवर्मन् के दरबार में रहते थे जो 15वीं शताब्दी में एक छोटे से राज्य कोलत्तुनाड पर शासन करते थे। ये कृष्णगाथा के लेखक हैं। कविता में श्रीकृष्ण के विषय की उन कहानियों का वर्णन है जिनका संबंध उनके जन्म से लेकर अंत तक है। महाकाव्य की समस्त 47 कहानियाँ श्रीमद्महाभागवतम् से ली गई है। चेरुश्शेरि ने सभी रसों के विकास में समान रूप से ध्यान दिया है। महाकाव्य अपने माधुर्य एवं प्रसाद गुण के लिए प्रसिद्ध है। श्रीकृष्ण के बाल्यकाल का विस्तृत निरूपण, रासक्रीड़ा एवं ऋतु इत्यादि के वर्णन पूर्णरूपेण लोकप्रिय है। नंपूतिरि होने के कारण विनोद स्वाभाविक था और वह अनेक उद्धरणों में व्यक्त है। कहीं कहीं उनमें मृदु व्यंग भी है। चेरुश्शेरि ने अपने पूर्ववर्ती लेखकों द्वारा प्रयुत्त संस्कृत एवं तमिल छंदों का बहिष्कार किया है। और अपने महाकाव्य को गाथावृक्त में लिखा है जिसे "मंजरि" कहते हैं। कृष्णगाथा प्रथम महाकाव्य है जिसे विशुद्ध एवं सरल मलयालम में लिखा गया है। कवि कविता की भाषा को बोलचाल की भाषा के निकट लाया है। सबसे प्रथम उन्होंने ही यह प्रदर्शित किया कि मलयालम भाषा में मानव भावनाओं की सूक्ष्म से सूक्ष्म बातों को व्यक्त करने की क्षमता है। उनका काव्य अलंकारों से परिपूर्ण है और वह अपने छंदों के लिए विशेष रूप से प्रशंसा के पात्र हैं। .

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चेरुशेरी नम्बूतिरी

चेरुशेरी नम्बूतिरी (१३७५-१४७५) कृष्ण गाधा के लेखक है। इस महाकाव्य को मलयालम महीने के दौरान कृष्ण की पूजा के एक अधिनियम के रूप में भारत में किया जाता है। चेरुशेरी नम्बूतिरी १३७५ और १४७५ ए.डी के बीच रहता करते है। चेरुशेरी उनका पैतृक इल्लम का नाम है।। उनका जन्म कन्नूर जिले उत्तर मलबार के कोलत्तुनाडु के कानत्तूर ग्राम में हुए। अनेक विद्वानों का राय यह है की वो पूनत्तिल नम्बूतिरी के अलावा अन्य कोई नही है। वह एक अदालत कवी और कोलत्तुनाडु की उदयवर्मा राजा के आश्रित थे। .

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चोका

चोका जापानी कविता की एक शैली है। ये लम्बी कविताएँ हैं। जापान के सबसे पहले कविता-संकलन मान्योशू में २६२ चोका कविताएँ संकलित हैं, जिनमें सबसे छोटी कविता ९ पंक्तियों की है। चोका कविताओं में ५ और ७ वर्णों की आवृत्ति मिलती है। अन्तिम पंक्तियों में प्रायः ५, ७, ५, ७, ७ वर्ण होते हैं। चोका पहली से तेरहवीं शताब्दी में जापानी काव्य विधा में महाकाव्य की कथाकथन शैली रही है। मूलत; चोका गाए जाते रहे हैं। इनका वाचन उच्च स्वर में किया जाता रहा है। यह प्राय: वर्णनात्मक रहा है। इसको एक ही कवि रचता है। .

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एम. एस. अणे

एम.

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एस. श्रीनिवास शर्मा

एस.

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ऐन्नियुस क्विंतुस

ऐन्नियुस क्विंतुस (ई.पू. 239–169) को 'रोमन कविता का जनक' कहा जाता है। इनका जन्म इटली के दक्षिणपूर्व में कलाब्रिया प्रदेश के रूपदियाए नामक स्थान में हुआ था। ग्रीक, ऑस्कन और लातीनी, तीनों भाषाओं का अच्छा ज्ञाता होने के कारण ऐन्नियुस कहा करता था कि मुझे तीन हृदय प्राप्त है। युवावस्था में वह सेना में सैंचरियन (शताध्यक्ष) पद पर पहुँच गया था। कातो नामक जननायक इसको रोम ले गया। रोम में निवास आरंभ करने के थोड़े समय पश्चात्‌ ऐन्नियुस ने काव्यरचना आरंभ की। यहाँ उसका रोम के प्रभावशाली नेताओं से परिचय हुआ। यह मार्कुस के साथ ईतोलिया के अभियान में भी गया था जिसका वर्णन उसने अपने नाटकों में किया है। इसकी मृत्यु गठिया रोग से ई. र्पू.

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तारा (रामायण)

लक्ष्मण तारा (सबसे बायें) से मिलते हुये, उसका दूसरा पति सुग्रीव (बायें से दूसरा) तथा हनुमान (सबसे दायें) किष्किन्धा के महल में तारा हिन्दू महाकाव्य रामायण में वानरराज वालि की पत्नी है। तारा की बुद्धिमता, प्रत्युत्पन्नमतित्वता, साहस तथा अपने पति के प्रति कर्तव्यनिष्ठा को सभी पौराणिक ग्रन्थों में सराहा गया है। तारा को हिन्दू धर्म ने पंचकन्याओं में से एक माना है। पौराणिक ग्रन्थों में पंचकन्याओं के विषय में कहा गया है:- अहिल्या द्रौपदी कुन्ती तारा मन्दोदरी तथा। पंचकन्या स्मरणित्यं महापातक नाशक॥ (अर्थात् अहिल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा तथा मन्दोदरी, इन पाँच कन्याओं का प्रतिदिन स्मरण करने से सारे पाप धुल जाते हैं) हालांकि तारा को मुख्य भूमिका में वाल्मीकि रामायण में केवल तीन ही जगह दर्शाया गया है, लेकिन उसके चरित्र ने रामायण कथा को समझनेवालों के मन में एक अमिट छाप छोड़ दी है। जिन तीन जगह तारा का चरित्र मुख्य भूमिका में है, वह इस प्रकार हैं:-.

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तुलसी बहादुर क्षेत्री अपतन

तुलसी बहादुर क्षेत्री अपतन नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य कर्ण–कुंती के लिये उन्हें सन् 1989 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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तुलसी राम शर्मा कश्यप

तुलसी राम शर्मा कश्यप नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य आमा के लिये उन्हें सन् 1990 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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तुलू भाषा

तुलू भारत के कर्नाटक राज्य के पश्चिमी किनारे में स्थित दक्षिण कन्नड़ और उडुपि जिलों में तथा उत्तरी केरल के कुछ भागों में प्रचलित भाषा है। पहले तुलू ब्राह्मण वैदिक और संस्कृत साहित्य लिखने के लिये 'तिगलारि' नामक लिपि को उपयोग करते थे। लेकिन बहुत कम साहित्य तुलू भाषा में मिला है। पर आज इस लिपि को जाननेवाले बहुत कम हैं। पुरानी तिगलारि लिपि मलयालम लिपि से बहुत मिलती है। अब तुलू लिखने के लिये कन्नड़ लिपि का प्रयोग किया जाता है। यह पंच द्राविड भाषाओं में एक है। दक्षिण कन्नड और उडुपी जिलों की अधिकांश लोगों की मातृभाषा तुळु है। इसलिए ये दोनो जिले सम्मिलित रूप से तुलुनाडु नाम से जाने जाते हैं। केरल के कासरगोड जिले में भी बहुत लोग तुलू भाषा बोलते हैं। .

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तुंचत्तु रामानुजन एषुत्तच्छन

तुंचत्तु रामानुजन एषुत्तच्छनजी का चित्र तुंचत्तु रामानुजन एषुत्तच्छन सोलहवीं शताब्दी के मलयालम कवि थे। वे मलयालम काव्य के पितामह कहे जाते हैं। इतिहासकार श्री उल्लूर एस परमेश्वर अय्यर के अनुसार उनका जीवनकाल 1495 ई से 1575ई तक है। तुंचत्तु रामानुजन एषुत्तच्छन की कृतियाँ भक्ति आंदोलन का अंग हैं जो पंद्रहवीं एवं सोलहवीं शताब्दियों में विकसित हुआ। उनका जन्म तिरुर कस्बे के त्रिक्कन्तियुर में हुआ था। उनका मूल नाम 'रामानुजन' है। 'तुंचतु' उनका कुलनाम है तथा 'एषुत्तच्छन' (अध्यापक) एक सम्मानसूचक पदवी है। .

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थॉमस हार्डी

---- थॉमस हार्डी (2 जून 1840 -- 11 जनवरी 1928) प्रकृतिवादी आंदोलन के अंग्रेजी उपन्यासकार और कवि थे।अपने जीवनकाल में वह अपने उपन्यासों के लिए अधिक प्रसिद्ध थे जबकि उन्होंने स्वंय को मुख्य रूप से कवि माना है। हार्डी की अंग्रेजी साहित्य को महत्वपूर्ण देन है। उन्होंने एक छोटे से क्षेत्र का विशेष अध्ययन किया और क्षेत्रीय साहित्य की सृष्टि की। हिन्दी में इस प्रकार के साहित्य को आंचलिक साहित्य कह रहे हैं। उन्होंने मानव जीवन के संबंध में अपने साहित्य में आधारभूत प्रश्न उठाए तथा जो मर्यादा पूर्वकाल में महाकाव्य और दु:खांत नाटक को प्राप्त थी, वह उपन्यास को प्रदान की। वे अनेक पात्रों के स्रष्टा और अद्भुत्‌ कहानीकार थे किंतु इनके पात्रों में सबसे अधिक सशक्त बेसेक्स है। इस पात्र ने काल का प्रवाह उदासीनताभरे नेत्रों से देखा है, जिनमें न्याय और उचित अनुचित की कोई अपेक्षा नहीं। टॉमस हार्डी का जन्म वेसेक्स प्रदेश में हुआ। यह प्रदेश प्राचीन काल में इंग्लैंड के नक्शे पर था, किंतु अब नहीं है। उनका सभी साहित्य वेसेक्स से संबंधित है। उनके उपन्यास 'वेसेक्स के उपन्यास' कहलाते हैं और उनकी कविता 'वेसेक्स की कविता'। .

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द लोर्ड ऑफ द रिंग्स फिल्म ट्रिलॉजी

द लोर्ड ऑफ द रिंग्स फिल्म ट्रियोलॉजी, काल्पनिक महाकाव्य पर आधारित तीन एक्शन फिल्में हैं जिसमें द फेलोशिप ऑफ द रिंग (2001), द टू टावर्स(2002) और द रिटर्न ऑफ द किंग(2003) शामिल हैं। यह ट्रियोलॉजी तीन खंडों में विभाजित है और जे.आर.आर. टोलकिन द्वारा लिखित द लोर्ड ऑफ द रिंग्स किताब पर आधारित है। हालांकि ये फिल्में पुस्तक की सामान्य कहानी का ही अनुसरण करती है लेकिन साथ ही स्रोत सामग्री से कुछ अलग भी इसमें शामिल किया गया है। मध्य धरती के काल्पनिक दुनियां में सेट ये तीन फिल्में होब्बिट फ्रोडो बग्गीन्स के ईर्द-गिर्द ही घूमती हैं जिसमें वह और फेलोशिप एक रिंग को नष्ट करने की तलाश में निकलते हैं और उसके निर्माता डार्क लोर्ड सौरोन के विनाश को सुनिश्चित करते हैं। लेकिन फैलोशिप विभाजित हो जाता है और फ्रोडो अपने वफादार साथी सैम और विश्वासघाती गोल्लुम के साथ खोज जारी रखता है। इसी बीच, देश निकाला झेल रहे जादूगर गैंडाल्फ़ और एरागोर्न, जो गोन्डोर के सिंहासन के असल वारिस होते हैं, वे मध्य धरती के आजाद लोगों को एकजुट करते हैं और वे अंततः रिंग के युद्ध में विजयी होते हैं। पीटर जैक्सन इन तीनों फिल्म के निर्देशक हैं और इनका वितरण न्यू लाइन सिनेमा द्वारा की गई है। इसे आज तक के विशालतम और महत्वाकांक्षी फिल्म परियोजनाओं में से एक माना जाता है, जिसका बजट कुल मिलाकर 285 करोड़ डॉलर था और इस परियोजना को पूरा होने में लगभग आठ वर्ष लगे और सभी तीन फिल्मों को एक साथ प्रदर्शित करने के लिए जैक्शन के जन्मस्थान न्यूजीलैंड में बनाया गया। ट्रियोलॉजी के प्रत्येक फिल्म का विशेष वर्धित संस्करण भी था जिसे सिनेमाघरों में जारी होने के एक साल बाद डीवीडी में जारी किया गया था। सर्वकालीक फिल्मों के बीच इस ट्रियोलॉजी को सबसे ज्यादा वित्तीय सफलता प्राप्त हुई थी। इन फिल्मों की समीक्षकों ने खूब प्रशंसा की और कुल 30 अकादमी पुरस्कार में इनका नामांकन हुआ था जिसमें से कुल 17 पुरस्कार मिले और इसके कलाकारों के चरित्रों और अभिनव के लिए काफी सराहना की गई और साथ ही डिजिटल विशेष प्रभाव के लिए भी व्यापक रूप में प्रशंसा की गई। 2011 और 2012 में रिलीज़ होने वाली द होब्बिट एक फिल्म रुपांतर है जिसे दो भागोंमें बनाया जा रहा है, इसमें गिलर्मो डेल टोरो का जैक्सन सहयोग कर रहे हैं। .

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द वंडर दैट वाज़ इण्डिया

द वंडर दैट वाज़ इण्डिया: अ सर्वे ऑफ़ कल्चर ऑफ़ इण्डियन सब-कांटिनेंट बिफ़ोर द कमिंग ऑफ़ द मुस्लिम्स (The Wonder That Was India: A Survey of the Culture of the Indian Sub-Continent Before the Coming of the Muslims), भारतीय इतिहास से सम्बन्धित एक प्रसिद्ध पुस्तक है जिसकी रचना १९५४ में आर्थर लेवेलिन बाशम ने की थी। यह पुस्तक पशिमी जगत के पाठकों को लक्षित करके लिखी गयी थी। इस पुस्तक में बाशम ने अपने पूर्व के कुछ इतिहासकारों द्वारा खींची गयी भारतीय इतिहास की नकारात्मक छबि को ठीक करने का प्रयास किया है। इसका हिंदी अनुवाद "अद्भुत भारत" नाम से अनुदित और प्रकाशित हुआ। 'द वंडर दैट वाज़ इण्डिया' ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे भारतविद के तौर पर स्थापित किया जिसकी प्रतिष्ठा विलियम जोंस और मैक्समूलर जैसी है। इसी पुस्तक के कारण उनकी छवि आज भी भारतीय बौद्धिक मानस में अंकित है। मुख्यतः पश्चिम के पाठक वर्ग के लिए लिखी गयी इस पुस्तक की गणना आर.सी. मजूमदार द्वारा रचित बहुखण्डीय "हिस्ट्री ऐंड कल्चर ऑफ़ इण्डियन पीपुल" के साथ की जाती है। इससे पहले औपनिवेशिक इतिहासकारों का तर्क यह था कि अपने सम्पूर्ण इतिहास में भारत सबसे अधिक सुखी, समृद्ध और संतुष्ट अंग्रेजों के शासनकाल में ही रहा। बाशम और मजूमदार को श्रेय जाता है कि उन्होंने अपने-अपने तरीके से भारत के प्राचीन इतिहास का वि-औपनिवेशीकरण करते हुए जेम्स मिल, थॉमस मैकाले और विंसेंट स्मिथ द्वारा गढ़ी गयी नकारात्मक रूढ़ छवियों को ध्वस्त किया। समीक्षकों के अनुसार पुस्तक का सर्वाधिक सफल अध्याय राज्य, समाज-व्यवस्था और दैनंदिन जीवन से संबंधित है। बाशम अपनी इस विख्यात पुस्तक की शुरुआत 662 ईस्वी में लिखे गये एक कथन से करते हैं जो सीरियन ज्योतिषी और भिक्षु सेवेरस सेबोकीट का था: वस्तुतः इसी निष्पक्ष दृष्टि द्वारा प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर किये गये उनके कार्यों ने आज भी बाशम को उन लोगों के लिए प्रासंगिक बना रखा है जिनकी थोड़ी सी भी रुचि भारत, भारतीय संस्कृति और सभ्यता में है। प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर किये गये अपने इस कार्य को "द वंडर दैट वाज़ इण्डिया" जैसे अलंकृत शीर्षक के तहत प्रस्तुत करने के पीछे वे एडगर एलन पो का हाथ मानते हैं। पो की कविता ‘टु हेलेन’ की पंक्तियों ‘द ग्लोरी दैट वाज़ ग्रीस, ऐंड द ग्रैंडियर दैट वाज़ रोम’ की तर्ज़ पर प्रकाशकों ने इस पुस्तक का भड़कीला, अलंकृत किंतु आकर्षक नामकरण किया। यह ग्रंथ भारतीय उपमहाद्वीप की उस सभ्यता के आविर्भाव और विकासक्रम का प्रतिबिम्बन है जो प्रागैतिहासिक काल से शुरू हो मुसलमानों के आगमन के पूर्व तक यहाँ फली-फूली। दस अध्यायों में बँटी यह रचना मुख्यतः भारत संबंधी पाँच विषय-वस्तुओं को सम्बोधित है: इतिहास और प्राक्-इतिहास, राज्य-सामाजिक व्यवस्था-दैनंदिन जीवन, धर्म, कला और भाषा व साहित्य। प्राक्-इतिहास, प्राचीन साम्राज्यों का इतिहास, समाज, और ग्राम का दैनिक जीवन, धर्म और उसके सिद्धांत, वास्तुविद्या, मूर्तिकला, चित्रकला, संगीत और नृत्य, भाषा साहित्य, भारतीय विरासत और उसके प्रति विश्व का ऋण जैसे विषयों का संघटन इस पुस्तक को प्राचीन भारतीय सभ्यता का एक शुद्ध विश्वकोश बना देता है। इस पुस्तक ने भारतीय इतिहास और संस्कृति के विद्यार्थियों की एक पूरी पीढ़ी के लिए मूल पाठ का काम किया है। भारतीयों द्वारा विश्व को दिये गये सांस्कृतिक अवदान की चर्चा करते हुए बाशम ने इस कृति में दिखाया है कि कैसे सम्पूर्ण दक्षिण-पूर्व एशिया को अपनी अधिकांश संस्कृति भारत से प्राप्त हुई, जिसका प्रतिबिम्बन जावा के बोरोबुदूर के बौद्ध स्तूप और कम्बोडिया में अंग्कोरवाट के शैव मंदिर में परिलक्षित होता है। बृहत्तर भारत के संदर्भ में चर्चा करते हुए कुछ भारतीय राष्ट्रवादी इतिहासकार इस क्षेत्र में बौद्ध और ब्राह्मण धर्म के लक्षणों का सांस्कृतिक विस्तार पाते हैं। लेकिन बाशम ने दिखाया है कि यद्यपि दक्षिण-पूर्व एशिया की भाँति चीन ने भारतीय विचारों को उनकी संस्कृति के प्रत्येक रूप में आत्मसात नहीं किया, फिर भी सम्पूर्ण सुदूर-पूर्व बौद्ध धर्म के लिए भारत का ऋणी है। इसने चीन, कोरिया, जापान और तिब्बत की विशिष्ट सभ्यताओं के निर्माण में सहायता प्रदान की है। भारत ने बौद्ध धर्म के रूप में एशिया को विशेष उपहार देने के अलावा सारे संसार को जिन व्यवहारात्मक अवदानों द्वारा अभिसिंचित किया हैं, बाशम उन्हें, चावल, कपास, गन्ना, कुछ मसालों, कुक्कुट पालन, शतरंज का खेल और सबसे महत्त्वपूर्ण-संख्या संबंधी अंक-विद्या की दशमलव प्रणाली के रूप में चिह्नित करते हैं। दर्शन के क्षेत्र में प्राचीन बहसों में पड़े बिना बाशम ने पिछली दो शताब्दियों में युरोप और अमेरिका पर भारतीय अध्यात्म, धर्म-दर्शन और अहिंसा की नीति के प्रभाव को स्पष्ट रूप से दर्शाया है। इस पुस्तक के बारे में केनेथ बैलाचेट कहते हैं कि यह रचना भारतीय संस्कृति को सजीव और अनुप्राणित करने वाली बौद्धिक और उदार प्रवृत्ति के संश्लेषण का एक मास्टरपीस है। भारतीय महाद्वीप के बँटवारे के तुरंत बाद आयी यह सहानुभूति, और समभाव मूलभाव से अनुप्राणित औपनिवेशिकोत्तर काल की पांडित्यपूर्ण कृति साबित हुई। ब्रिटेन में अपने प्रकाशन के तुरन्त बाद इसका अमेरिका में ग्रोव प्रकाशन से पुनर्मुद्रण हुआ। इसके पेपरबैक संस्करणों ने इसे अमेरिकी बुकस्टोरों की शान बना दिया। फ्रेंच, पोलिश, तमिल, सिंहली और हिंदी में अनुवाद के साथ भारत और इंग्लैंड में भी इसके पेपरबैक संस्करण आये। मुख्यतः औपनिवेशिक ढंग से लिखे विंसेंट स्मिथ के ग्रंथ "ऑक्सफ़र्ड हिस्ट्री ऑफ़ इण्डिया" का संशोधित रूप में सम्पादन बाशम ने ही किया। इस पुस्तक में बाशम स्मिथ द्वारा भारतीय सभ्यता की प्रस्तुति में सहानुभूतिपरक दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए बताते हैं की कैसे अलग-अलग संस्कृतियों में रुचि संबंधी मानदण्डों का भेद समझ पाने की अपनी असमर्थता के कारण स्मिथ इस निर्णय पर पहुँचते हैं कि राजपूत महाकाव्य रुक्ष और रसात्मक दृष्टि से निकृष्टतम है। इसके विपरीत बाशम ने सिद्ध किया कि वस्तुतः ऐसा नहीं है। .

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दुःशासन

द्युत क्रीड़ा में द्रौपदी का वस्त्र हरता हुआ दु:शासन दुःशासन अथवा दुशासन प्रसिद्ध एवं प्राचीन हिन्दू महाकाव्य महाभारत के अनुसार कुरुवंश में कौरव वंश के अंतर्गत हस्तिनापुर के कार्यकारी राजा धृतराष्ट्र का पुत्र था। इसी ने जुए के उपरांत दुर्योधन के कहने पर द्रौपदी का चीर हरण किया था। यह दुर्योधन के 100 भाइयों में से दुर्योधन से छोटा था। .

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द्वारका प्रसाद मिश्र

---- द्वारका प्रसाद मिश्र द्वारका प्रसाद मिश्र (1901 - 1988) भारत के एक स्वतंत्रतासंग्राम सेनानी, राजनेता, पत्रकार एवं साहित्यकार थे। वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके है। .

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दीपवंस

दीपवंस एक प्राचीन ग्रन्थ है जिसमें श्री लंका का प्राचीनतम इतिहास वर्णित है। 'दीपवंस', 'द्वीपवंश' का अपभ्रंश है जिसका अर्थ 'द्वीप का इतिहास' है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस ग्रन्थ का संकलन अत्थकथा तथा अन्य स्रोतों से तीसरी-चौथी शताब्दी में किया गया था। महावंस तथा दीपवंस से ही श्री लंका तथा भारत के प्राचीन इतिहास के बहुत सी घटनाओं लेखाजोखा मिलता है। यह केवल इतिहास की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि यह बौद्ध तथा पालि साहित्य का महत्वपूर्ण प्राचीन ग्रन्थ भी है। .

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नर्मद

नर्मदाशंकर लालशंकर दवे (गुजराती: નર્મદાશંકર લાલશંકર દવે) (24 अगस्त 1833 – 26 फ़रवरी 1886), गुजराती के कवि विद्वान एवं महान वक्ता थे। वे नर्मद के नाम से प्रसिद्ध हैं। उन्होने ही १८८० के दशक में सबसे पहले हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने का विचार रखा था। गुजराती साहित्य के आधुनिक युग का समारंभ कवि नर्मदाशंकर 'नर्मद' (१८३३-१८८६ ई.) से होता है। वे युगप्रवर्त्तक साहित्यकार थे। जिस प्रकार हिंदी साहित्य में आधुनिक काल के आरंभिक अंश का 'भारतेंदु युग' संज्ञा दी जाती है, उसी प्रकार गुजराती में नवीन चेतना के प्रथम कालखंड को 'नर्मद युग' कहा जाता है। हरिश्चंद्र की तरह ही उनकी प्रतिभा भी सर्वतोमुखी थी। उन्होंने गुजराती साहित्य को गद्य, पद्य सभी दिशाओं में समृद्धि प्रदान की, किंतु काव्य के क्षेत्र में उनका स्थान विशेष है। लगभग सभ प्रचलित विषयों पर उन्होंने काव्यरचना की। महाकाव्य और महाछंदों के स्वप्नदर्शी कवि नर्मद का व्यक्तित्व गुजराती साहित्य में अद्वितीय है। गुजराती के प्रख्यात साहित्यकार मुंशी ने उन्हें 'अर्वाचीनों में आद्य' कहा है। .

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नल-दमयन्ती

'''नल-दमयन्ती''': राजा रवि वर्मा की कृति नल और दमयन्ती की कथा भारत के महाकाव्य, महाभारत में आती है। युधिष्ठिर को जुए में अपना सब-कुछ गँवा कर अपने भाइयों के साथ वनवास करना पड़ा। वहीं एक ऋषि ने उन्हें नल और दमयन्ती की कथा सुनायी। नल निषध देश के राजा थे। वे वीरसेन के पुत्र थे। नल बड़े वीर थे और सुन्दर भी। शस्त्र-विद्या तथा अश्व-संचालन में वे निपुण थे। दमयन्ती विदर्भ (पूर्वी महाराष्ट्र) नरेश की मात्र पुत्री थी। वह भी बहुत सुन्दर और गुणवान थी। नल उसके सौंदर्य की प्रशंसा सुनकर उससे प्रेम करने लगा। उनके प्रेम का सन्देश दमयन्ती के पास बड़ी कुशलता से पहुंचाया एक हंस ने। और दमयन्ती भी अपने उस अनजान प्रेमी की विरह में जलने लगी। इस कथा में प्रेम और पीड़ा का ऐसा प्रभावशाली पुट है कि भारत के ही नहीं देश-विदेश के लेखक व कवि भी इससे आकर्षित हुए बिना न रह सके। बोप लैटिन में तथा डीन मिलमैन ने अंग्रेजी कविता में अनुवाद करके पश्चिम को भी इस कथा से भली भांति परिचित कराया है। विदर्भ देश में भीष्मक नाम के एक राजा राज्य करते थे। उनकी पुत्री का नाम दमयन्ती थी। दमयन्ती लक्ष्मी के समान रूपवती थी। उन्हीं दिनों निषध देश में वीरसेन के पुत्र नल राज्य करते थे। वे बड़े ही गुणवान्, सत्यवादी तथा ब्राह्मण भक्त थे। निषध देश से जो लोग विदर्भ देश में आते थे, वे महाराज नल के गुणों की प्रशंसा करते थे। यह प्रशंसा दमयन्ती के कानों तक भी पहुँची थी। इसी तरह विदर्भ देश से आने वाले लोग राजकुमारी के रूप और गुणों की चर्चा महाराज नल के समक्षकरते। इसका परिणाम यह हुआ कि नल और दमयन्ती एक-दूसरे के प्रति आकृष्ण होते गये। .

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नुक्कड़ नाटक का इतिहास

विदेशों में नुक्कड़-नाटकसृष्टि का पहला नाटक तो कोई नुक्‍कड़vends tu ाक ही रहा होगाक ही रहा होगा। रंगशालाएँ और नाट्यगृह तो सभ्यता चरण पार करने के बाद बने होंगे। आदिम युग में सब लोग दिन भर शिकार करने के बाद शाम को अपने-अपने शिकार के साथ कही खुले में एकtu bordj घेरा बनाकर बैठ जाते थे और उस घेरे के बीचों-बीच ही उनका भोजन पकता रहता, खान-पान होता और वही बाद में नाचना-गाना होता। इस प्रकार शुरू से ही नुक्कड़ नाटकों से जुड़े तीन ज़रूरी तत्वों की उपस्थिति इस प्रक्रिया में भी शामिल थी - प्रदर्शन स्थल के रूप में एक घेरा, दर्शकों और अभिनेताओं का अंतरंग संबंध और सीधे-सीधे दर्शकों की रोज़मर्रा की जिंद़गी से जुड़े कथानकों, घटनाओं और नाटकों का मंचन। इसी का विकसित रूप हमें तब भी देखने को मिलता है जब आज से लगभग ढ़ाई-तीन हज़ार वर्ष पहले यूनान में थेस्पिस नामक अभिनेता घोड़ागाड़ी या भैसागाड़ी में सामान लादकर, शहर-शहर घूमकर सड़कों पर, चौराहों पर अथवा बाज़ारों में अकेला ही नाटकों का मंचन किया करता था। भारत में इससे भी पूर्व से लव और कुश नाम के दो कथावाचकों के माध्यम से रामायण महाकाव्य को जगह-जगह जाकर, गाकर सुनाने की परंपरा का उल्लेख मिलता है। ये लव-कुश राम के पुत्रों के रूप में तो प्रसिद्ध हैं ही, बाद में इन्हीं के समांतर नट या अभिनेता को भी हमारे यहां कुशीलव के नाम से ही जाना जाने लगा। संभवत: यही कारण है कि नाटकों के लगातार खुले में मंचित होते रहने के मद्देनज़र भरत ने भी अपने नाट्यशास्त्र में दशरूपक विवेचन के अंतर्गत 'वीथि' नामक रूपक का भी उल्लेख किया है। आज भी आंध्र प्रदेश में लोकनाट्य परंपरा की एक शैली का नाम की 'वीथि नाटकम' मिलता है और आधुनिक नुक्कड़ नाटक को भी इसी नाम से जाना जाता है। मध्यकाल में सही रूप में नुक्कड़ नाटकों से मिलती-जुलती नाट्य-शैली का जन्म और विकास भारत के विभिन्न प्रांतों, क्षेत्रों और बोलियों-भाषाओं में लोक नाटकों के रूप में हुआ। उसी के समांतर पश्चिम में भी चर्च अथवा धार्मिक नाटकों के रूप में इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी और स्पेन आदि देशों में ऐसे नाटकों का प्रचलन शुरू हुआ जो बाइबिल की घटनाओं पर आधारित होते थे और मूलत: धर्म के प्रचार के लिए ही खेले जाते थे। ये नाटक भी खुले में, मैदानों और चौराहों और बाज़ारों में ही मंचित किए जाते थे और दिन की रोशनी में ही, जबकि हमारे यहां नाटक लगभग अपने आरंभ काल से ही ज़्यादातर रात में ही खेले जाते थे। इसके कारण भारतीय नाटकों में प्रकाश व्यवस्था का बहुत विकास हुआ। आधुनिक युग में जिस रूप में हम नुक्कड़ नाटकों को जानते है, उनका इतिहास भारत के स्वाधीनता संग्राम के दौरान कौमी तरानों, प्रभात फेरियों और विरोध के जुलूसों के रूप में देखा जा सकता है। इसी का एक विधिवत रूप इप्टा जैसी संस्था के जन्म के रूप में सामने आया, जब पूरे भारत में अलग-अलग कला माध्यमों के लोग एक साथ आकर मिले और क्रांतिकारी गीतों, नाटकों व नृत्यों के मंचनों और प्रदर्शनों से विदेशी शासन एवं सत्ता का विरोध आरंभ हुआ। इस प्रकार किसी भी गल़त व्यवस्था का विरोध और उसके समांतर एक आदर्श व्यवस्था क्या हो सकती है - यही वह संरचना है, जिस पर नुक्कड़ नाटक की धुरी टिकी हुई है। कभी वह किस्से-कहानियों का प्रचार था, कभी धर्म और कभी राजनैतिक विचारधारा। किसी भी युग और काल में इस तथ्य को रेखांकित कर सकते हैं। आज तो स्थिति यह हो गई है कि बड़ी-बड़ी व्यावसायिक-व्यापरिक कंपनियां अपने उत्पादनों के प्रचार के लिए नुक्कड़ नाटकों का प्रयोग कर रही हैं, सरकारी तंत्र अपनी नीतियों-निर्देशों के प्रचार के लिए नुक्कड़ नाटक जैसे माध्यम का सहारा लेता है और राजनीतिक दल चुनाव के दिनों में अपने दल के प्रचार-प्रसार के लिए इस विधा की ओर आकर्षित होते हैं। ऐसे में नुक्कड़ नाटकों के बहुविध रूप और रंग दिखाई पड़ते है। .

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नैषधीयचरित

नैषधीयचरित, श्रीहर्ष द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य है। यह वृहत्त्रयी नाम से प्रसिद्ध तीन महाकव्यों में से एक है। महाभारत का नलोपाख्यान इस महाकाव्य का मूल आधार है। .

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पद्मावत

१७५० ई की पद्मावत की एक पाण्डुलिपि पद्मावत हिन्दी साहित्य के अन्तर्गत सूफी परम्परा का प्रसिद्ध महाकाव्य है। इसके रचनाकार मलिक मोहम्मद जायसी हैं। दोहा और चौपाई छन्द में लिखे गए इस महाकाव्य की भाषा अवधी है। यह हिन्दी की अवधी बोली में है और चौपाई, दोहों में लिखी गई है। चौपाई की प्रत्येक सात अर्धालियों के बाद दोहा आता है और इस प्रकार आए हुए दोहों की संख्या 653 है। इसकी रचना सन् 947 हिजरी.

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पद्मगुप्त

पद्मगुप्त 'नवसाहसांकचरित' नामक महाकाव्य के रचयिता। कीथ के अनुसार इनका समय १००५ ई. के लगभग होना चाहिए। नवसाहसांकचरित ऐतिहासिक काव्य है। इसमें काल्पनिक राजकुमारी शशिप्रभा के प्रणय की कथा स्पष्ट रूप से वर्णित है परंतु यह मालवा के राजा सिंधुराज नवसाहसांक के चरित का भी वर्णन श्लेष के द्वारा उपस्थित करता है। जैसा प्राय: संस्कृत इतिहास काव्यों में देखा जाता है- उनमें प्रामाणिक इतिहास कम, चरितनायक के चरित का अतिरंजित वर्णन अधिक होता है- वैसा ही इस काव्य में भी हुआ है। कवि का उपनाम 'परिमल' था। उद्गाता छंद के उपयोग में इनकी विशेष कुशलता प्राप्त थी। श्रेणी:संस्कृत कवि.

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परमेश्वर अय्यर उल्लूर

प्रसिद्ध मलयालम कवि परमेश्वर अय्यर उल्लूर। परमेश्वर अय्यर उल्लूर (1877 - 1949) मलयालम कवि एवं साहित्यिक इतिहासकार। त्रिवेंद्रम में पैदा हुए थे। त्रावणकोर सरकार के उच्च पदाधिकारी के रूप में इन्होंने काम किया। सेवानिवृत्ति के पश्चात् त्रावणकोर विश्वविद्यालय के प्राच्य विभाग के डीन नियुक्त हुए। सर्वतोमुखी प्रतिभा एवं व्यापक क्षेत्रीय विद्वान् परमेश्वर अय्यर ने काव्यरचना का कार्य नवीन शास्त्रीय कवि के रूप में प्रारंभ किया। उन्होंने प्राचीन भारतीय उच्च साहित्यिक ग्रंथों से अधिकांश रूप में विषयों का चुनाव किया। प्रचलित प्रवृत्तियों एवं प्रणालियों से प्रभावित होकर उन्होंने "उमाकेरलम्" नामक महाकाव्य लिख। यह केरल के मध्यकालीन इतिहास के एक अध्याय पर आधारित है। यह निश्चित रूप से प्राचीन शास्त्रीय नियमों के अनुसार लिखा गया है और अलंकारों से परिपूर्ण है। नवीन स्वच्छंद (रोमांटिक) प्रवृत्तियों ने भी उन्हें अप्रभावित नहीं छोड़ा। उन्होंने छोटी-छोटी कविताएँ एवं गीत लिखना आरंभ, किया। वे, "अरुणोदयम्", "ताराहारम्", "किरणावलि", "कल्पशारिव", "अमृतधारा", तथा "चित्रशाला" में संकलित हैं। उनके तीन खंडकाव्य विशेषकर कर्णभूषणम् बहुत प्रसिद्ध हैं। कर्णभूषणम् महाभारत की उस प्रसिद्ध घटना पर आधारित है जिसमें कर्ण ने यह जानते हुए कि वह अपने को मृत्यु के बाणों के साथ प्रकट कर रहा था, इंद्र को कुंडल दे दिया। दूसरे खंडकाव्य "पिंगला" की कहानी भागवत से ली गई है। यह मिथिला की गणिका की शुद्धि के विषय में लिखा गया है। जिसमें उसने अपनी पापवृत्ति के जीवन को छोड़कर भक्ति एवं सदाचार का जीवन अपनाया। "भक्तिदीपिका" में यह बतलाया गया है कि वास्तविक भक्ति के क्षेत्र में जातीय भेद नहीं है। मलयालम में उलूर आधुनिक युग के तीन महान कवियों में से समझे जाते हैं। किंतु उनके काव्यों का अधिकांश भाग कृत्रिम आलंकारिक ढंगों एवं शैली के गुरुत्व से नष्ट हो जाता है। परमेश्वर अय्यर ने भी मलयालम साहित्य का चिरस्थायी इतिहास पाँच भागों में लिखा है। यह वास्तव में अद्भुत सर्वतोमुखी प्रतिभा से परिपूर्ण पैतीस वर्षों के कठोर परिश्रम का फल है। यह कृति केरल साहित्य, संस्कृति एवं इतिहास के ज्ञान का भांडार है। .

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पउमचरिउ

पउमचरिउ, रामकथा पर आधारित अपभ्रंश का एक महाकाव्य है जिसके रचयिता जैन कवि स्वयंभू (सत्यभूदेव) हैं। लगभग छठी से बारहवीं शती तक उत्तर भारत में साहित्य और बोलचाल में व्यवहृत प्राकृति की उत्तराधिकारिणी भाषाएँ अपभ्रंश कहलाईं। अपभ्रंश के प्रबंधात्मक साहित्य के प्रमुख प्रतिनिधि कवि थे- स्वयंभू, जिनका जन्म लगभग साढ़े आठ सौ वर्ष पूर्व बरार प्रांत में हुआ था। स्वयंभू जैन मत के माननेवाले थे। उन्होंने रामकथा पर आधारित पउम चरिउ की रचना की जिसमें बारह हजार पद हैं। जैन मत में राजा राम के लिए 'पद्म' शब्द का प्रयोग होता है, इसलिए स्वयंभू की रामायण को 'पद्म चरित' (पउम चरिउ) कहा गया। इसकी सूचना छह वर्ष तीन मास ग्यारह दिन में पूरी हुई। मूलरूप से इस रामायण में कुल 92 सर्ग थे, जिनमें स्वयंभू के पुत्र त्रिभुवन ने अपनी ओर से 16 सर्ग और जोड़े। गोस्वामी तुलसीदास के 'रामचरित मानस' पर महाकवि स्वयंभू रचित 'पउम चरिउ' का प्रभाव स्पष्ट दिखलाई पड़ता है। .

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प्रियप्रवास

प्रियप्रवास, अयोध्यासिंह "हरिऔध" की हिन्दी काव्य रचना है। हरिऔध जी को काव्यप्रतिष्ठा "प्रियप्रवास" से मिली। इसका रचनाकाल सन् 1909 से सन् 1913 है। .

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प्रकाश प्रेमी

प्रकाश प्रेमी डोगरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य बेद्दन धरती दी के लिये उन्हें सन् 1987 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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पृथ्वीराज रासो

'''पृथ्वीराज रासो''' के प्रथम खंड का द्वितीय संस्करण पृथ्वीराज रासो हिन्दी भाषा में लिखा एक महाकाव्य है जिसमें पृथ्वीराज चौहान के जीवन और चरित्र का वर्णन किया गया है। इसके रचयिता राव चंद बरदाई भट्ट पृथ्वीराज के बचपन के मित्र और उनके राजकवि थे और उनकी युद्ध यात्राओं के समय वीर रस की कविताओं से सेना को प्रोत्साहित भी करते थे। ११६५ से ११९२ के बीच जब पृथ्वीराज चौहान का राज्य अजमेर से दिल्ली तक फैला हुआ था। पृथ्वीराजरासो ढाई हजार पृष्ठों का बहुत बड़ा ग्रंथ है जिसमें ६९ समय (सर्ग या अध्याय) हैं। प्राचीन समय में प्रचलित प्रायः सभी छंदों का इसमें व्यवहार हुआ है। मुख्य छन्द हैं - कवित्त (छप्पय), दूहा(दोहा), तोमर, त्रोटक, गाहा और आर्या। जैसे कादंबरी के संबंध में प्रसिद्ध है कि उसका पिछला भाग बाण भट्ट के पुत्र ने पूरा किया है, वैसे ही रासो के पिछले भाग का भी चंद के पुत्र जल्हण द्वारा पूर्ण किया गया है। रासो के अनुसार जब शहाबुद्दीन गोरी पृथ्वीराज को कैद करके ग़ज़नी ले गया, तब कुछ दिनों पीछे चंद भी वहीं गए। जाते समय कवि ने अपने पुत्र जल्हण के हाथ में रासो की पुस्तक देकर उसे पूर्ण करने का संकेत किया। जल्हण के हाथ में रासो को सौंपे जाने और उसके पूरे किए जाने का उल्लेख रासो में है - रासो में दिए हुए संवतों का ऐतिहासिक तथ्यों के साथ अनेक स्थानों पर मेल न खाने के कारण अनेक विद्वानों ने पृथ्वीराजरासो के समसामयिक किसी कवि की रचना होने में संदेह करते है और उसे १६वीं शताब्दी में लिखा हुआ ग्रंथ ठहराते हैं। इस रचना की सबसे पुरानी प्रति बीकानेर के राजकीय पुस्तकालय मे मिली है कुल ३ प्रतियाँ है। रचना के अन्त मे प्रथवीराज द्वारा शब्द भेदी बाण चला कर गौरी को मारने की बात भी की गयी है। .

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पृथ्वीराजविजयमहाकाव्यम्

पृथ्वीराजविजयमहाकाव्यं संस्कृत महाकाव्य है। इसे हिन्दी में पृथ्वीराज विजय महाकाव्य भी कहा जाता है। इसमें तारावड़ी के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की विजय का वर्णन है। इसमें तरावड़ी के द्वितीय युद्ध का उल्लेख नहीं है। इसकी रचना लगभग ११९१-९२ में जयंक नामक कश्मीरी कवि ने किया था। .

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पैराडाइज लॉस्ट

मिल्टन का प्रसिद्ध महाकाव्य: '''पैराडाइज लॉस्ट''' पैराडाइज लॉस्ट (Paradise Lost), जॉन मिल्टन नामक आंग्ल कवि का लिखा हुआ एक महाकाव्य है। इस महाकाव्य को लिखने की इच्छा उनके मन में 1639 में ही अंकुरित हुई थी, परंतु लिखने का काम पूरी लगन के साथ सन् 1658 से शुरू हो सका। यह सन् 1663 में समाप्त हुआ। चार साल के बाद यह प्रकाशित हुआ। पैराडाइज लॉस्ट, जो अतुकान्त छंद में लिखा गया है, वर्जिल तथा होमर के समय से लिखे गये सभी महाकाव्यों में सर्वोत्कृष्ट है। यह महाकाव्य शक्तिशाली चरित्र-चित्रण, अत्यंत सुंदर कल्पनाशक्ति, विविध प्रभावपूर्ण छंद तथा प्रौढ़ भाषा के आनंद आदि गुणों से पूरिपूर्ण है। यह काव्य पुनर्जागरण काल (रेनेसां) तथा यूरोपीय धर्मसुधार (रिफाॅर्मेशन) काल की प्रवृत्तियों का परिपूर्ण सम्मिश्रण है। इसमें प्राचीन देवतावाद युग और बाइबल के नैतिक उत्साह का सुंदर मिलन है। .

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पी. के. नारायण पिळ्ळै

पी.

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पी.सी. देवसिया

पी.सी.

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बर्मी साहित्य

अन्य देशों की भाँति बर्मा का भी अपना साहित्य है जो अपने में पूर्ण एवं समृद्ध है। बर्मी साहित्य का अभ्युदय प्राय: काव्यकला को प्रोत्साहन देनेवाले राजाओं के दरबार में हुआ है इसलिए बर्मी साहित्य के मानवी कवियों का संबंध वैभवशाली महीपालों के साथ स्थापित है। राजसी वातावरण में अभ्युदय एवं प्रसार पाने के कारण बर्मी साहित्य अत्यंत सुश्लिष्ट तथा प्रभावशाली हो गया है। बर्मी साहित्य के अंतर्गत बुद्धवचन (त्रिपिटक), अट्टकथा तथा टीका ग्रंथों के अनुवाद सम्मिलित हैं। बर्मी भाषा में गद्य और पद्य दोनों प्रकार की साहित्य विधाएँ मौलिक रूप से मिलती हैं। इसमें आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुवाद भी हैं। पालि साहित्य के प्रभाव से इसकी शैली भारतीय है तथा बोली अपनी है। पालि के पारिभाषिक तथा मौलिक शब्द इस भाषा में बर्मीकृत रूप में पाए जाते हैं। रस, छंद और अलंकारों की योजना पालि एवं संस्कृत से प्रभावित है। बर्मी साहित्य के विकास को दृष्टि में रखकर विद्वानों ने इसे नौ कालों में विभाजित किया है, जिसमें प्रत्येक युग के साहित्य की अपनी विशेषता है। .

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बुद्धचरित

बुद्धचरितम्, संस्कृत का महाकाव्य है। इसके रचयिता अश्वघोष हैं। इसमें गौतम बुद्ध का जीवनचरित वर्णित है। इसकी रचनाकाल दूसरी शताब्दी है। सन् ४२० में धर्मरक्षा ने इसका चीनी भाषा में अनुवाद किया तथा ७वीं एवं ८वीं शती में इसका अत्यन्त शुद्ध तिब्बती अनुवाद किया गया। दुर्भाग्यवश यह महाकाव्य मूल रूप में अपूर्ण ही उपलब्ध है। 28 सर्गों में विरचित इस महाकाव्य के द्वितीय से लेकर त्रयोदश सर्ग तक तथा प्रथम एवं चतुर्दश सर्ग के कुछ अंश ही मिलते हैं। इस महाकाव्य के शेष सर्ग संस्कृत में उपलब्ध नहीं है। इस महाकाव्य के पूरे 28 सर्गों का चीनी तथा तिब्बती अनुवाद अवश्य उपलब्ध है। .

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ब्रेवहार्ट

ब्रेवहार्ट (Braveheart) मेल गिब्सन द्वारा निर्देशित 1995 अमेरिकी महाकाव्य स्वांग फिल्म है, जिसमें उन्होंने अभिनय भी किया है। फिल्म स्क्रीन के लिए लिखी गई थी और फिर रान्डेल वालेस द्वारा उपन्यास में परिवर्तित की गई। गिब्सन विलियम वालेस, एक स्कॉटिश योद्धा का अभिनय करते हैं, जिसे उस समय मान्यता प्राप्त हुई जब वह इंग्लैंड के राजा एडवर्ड I, जिन्हें "लॉन्गशैंक्स" (पैट्रिक मैकगूहान) के रूप में भी जाना जाता है, के विरुद्ध जा कर स्कॉटिश स्वतंत्रता के पहले युद्ध में अग्र स्थान पर आए.

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बृहतत्रयी (संस्कृत महाकाव्य)

बृहत्त्रयी के अंतर्गत तीन महाकाव्य आते हैं - "किरातार्जुनीय" "शिशुपालवध" और "नैषधीयचरित"। भामह और दंडी द्वारा परिभाषित महाकाव्य लक्षण की रूढ़ियों के अनुरूप निर्मित होने वाले मध्ययुग के अलंकरण प्रधान संस्कृत महाकाव्यों में ये तीनों कृतियाँ अत्यंत विख्यात और प्रतिष्ठाभाजन बनीं। कालिदास के काव्यों में कथावस्तु की प्रवाहमयी जो गतिमत्ता है, मानवमन के भावपक्ष की जो सहज, पर प्रभावकारी अभिव्यक्ति है, इतिवृत्ति के चित्रफलक (कैन्वैस) की जो व्यापकता है - इन काव्यों में उनकी अवहेलना लक्षित होती है। छोटे छोटे वर्ण्य वृत्तों को लेकर महाकाव्य रूढ़ियों के विस्तृत वर्णनों और कलात्मक, आलंकारिक और शास्त्रीय उक्तियों एवं चमत्कारमयी अभिव्यक्तियों द्वारा काव्य की आकारमूर्ति को इनमें विस्तार मिला है। किरातार्जुनीय, शिशुपालवध और नैषधीयचरित में इन प्रवृत्तियों का क्रमश: अधिकाधिक विकास होता गया है। इसी से कुछ पंडित, इस हर्षवर्धनोत्तर संस्कृत साहित्य को काव्यसर्जन की दृष्टि से "ह्रासोन्मुखयुगीन" मानते हैं। परंतु कलापक्षीय काव्यपरंपरा की रूढ़ रीतियों का पक्ष इन काव्यों में बड़े उत्कर्ष के साथ प्रकट हुआ। इन काव्यों में भाषा की कलात्मकता, शब्दार्थलंकारों के गुंफन द्वारा उक्तिगत चमत्कारसर्जन, चित्र और श्लिष्ट काव्यविधान का सायास कौशल, विविध विहारकेलियों और वर्णनों का संग्रथन आदि काव्य के रूढ़रूप और कलापक्षीय प्रौढ़ता के निदर्शक हैं। इनमें शृंगाररस की वैलासिक परिधि के वर्णनों का रंग असंदिग्ध रूप से पर्याप्त चटकीला है। हृदय के भावप्रेरित, अनुभूतिबोध की सहज की अपेक्षा, वासनामूलक ऐंद्रिय विलासिता का अधिक उद्वेलन है। फिर पांडित्य की प्रौढ़ता, उक्ति की प्रगल्भता और अभिव्यक्तिशिलप की शक्तिमत्ता ने इनकी काव्यप्रतिभा को दीप्तिमय बना दिया है। साहित्यक्षेत्र का पंडित बनने के लिए इनका अध्ययन अनिवार्य माना गया है। .

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बेद्दन धरती दी

बेद्दन धरती दी डोगरी भाषा के विख्यात साहित्यकार प्रकाश प्रेमी द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 1987 में डोगरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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भट्टिकाव्य

भट्टिकाव्य महाकवि भट्टि द्वारा रचित महाकाव्य है। इसका वास्तविक नाम 'रावणवध' है। इसमें भगवान रामचंद्र की कथा जन्म से लगाकर लंकेश्वर रावण के संहार तक उपवर्णित है। यह महाकाव्य संस्कृत साहित्य के दो महान परम्पराओं - रामायण एवं पाणिनीय व्याकरण का मिश्रण होने के नाते कला और विज्ञान का समिश्रण जैसा है। अत: इसे साहित्य में एक नया और साहसपूर्ण प्रयोग माना जाता है। भट्टि ने स्वयं अपनी रचना का गौरव प्रकट करते हुए कहा है कि यह मेरी रचना व्याकरण के ज्ञान से हीन पाठकों के लिए नहीं है। यह काव्य टीका के सहारे ही समझा जा सकता है। यह मेधावी विद्वान के मनोविनोद के लिए रचा गया है, तथा सुबोध छात्र को प्रायोगिक पद्धति से व्याकरण के दुरूह नियमों से अवगत कराने के लिए। भट्टिकाव्य की प्रौढ़ता ने उसे कठिन होते हुए भी जनप्रिय एवं मान्य बनाया है। प्राचीन पठनपाठन की परिपाटी में भट्टिकाव्य को सुप्रसिद्ध पंचमहाकाव्य (रघुवंश, कुमारसंभव, किरातार्जुनीय, शिशुपालवध, नैषधचरित) के समान स्थान दिया गया है। लगभग 14 टीकाएँ जयमंगला, मल्लिनाथ की सर्वपथीन एवं जीवानंद कृत हैं। माधवीयधातुवृत्ति में आदि शंकराचार्य द्वारा भट्टिकाव्य पर प्रणीत टीका का उल्लेख मिलता है। .

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भानुभक्त आचार्य

भानुभक्त आचार्य (1814 – 1868), नेपाल के कवि थे जिन्होने नेपाली में रामायण की रचना की। उन्हें नेपाली भाषा का आदिकवि माना जाता है। नेपाली साहित्य के क्षेत्र में प्रथम महाकाव्य रामायण के रचनाकार भानुभक्त का उदय सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना है। पूर्व से पश्चिम तक नेपाल का कोई ऐसा गाँव अथवा कस्वा नहीं है जहाँ उनकी रामायण की पहुँच नहीं हो। भानुभक्त कृत रामायण वस्तुत: नेपाल का 'रामचरित मानस' है। रम्घा ग्राम में भानुभक्त की प्रतिमा भानुभक्त का जन्म पश्चिमी नेपाल में चुँदी-व्याँसी क्षेत्र के रम्घा ग्राम में २९ आसाढ़ संवत १८७१ तदनुसार १८१४ ई. में हुआ था। संवत् १९१० तदनुसार १८५३ई.

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भारतायनम्

भारतायनम् विख्यात संस्कृत साहित्यकार हरेकृष्ण शतपथी द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 2011 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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भारतीय चित्रकला

'''भीमवेटका''': पुरापाषाण काल की भारतीय गुफा चित्रकला भारत मैं चित्रकला का इतिहास बहुत पुराना रहा हैं। पाषाण काल में ही मानव ने गुफा चित्रण करना शुरु कर दिया था। होशंगाबाद और भीमबेटका क्षेत्रों में कंदराओं और गुफाओं में मानव चित्रण के प्रमाण मिले हैं। इन चित्रों में शिकार, शिकार करते मानव समूहों, स्त्रियों तथा पशु-पक्षियों आदि के चित्र मिले हैं। अजंता की गुफाओं में की गई चित्रकारी कई शताब्दियों में तैय्यार हुई थी, इसकी सबसे प्राचिन चित्रकारी ई.पू.

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भारतीय धातुकर्म का इतिहास

समुद्रगुप्त की स्वर्ण मुद्रा (350—375 ई. जिस पर गरुड़ स्तम्भ चित्रित है (ब्रिटिश संग्रहालय) दिल्ली का लौह स्तम्भ जयसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित पहियों पर चलने वाली विश्व की सबसे बड़ी तोप (१७२०) भारत में धातुकर्म का इतिहास प्रागैतिहासिक काल (दूसरी तीसरी सहस्राब्दी ईसापूर्व) से आरम्भ होकर आधुनिक काल तक जारी है। .

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भारतीय नाम

भारतीय पारिवारिक नाम अनेक प्रकार की प्रणालियों व नामकरण पद्धतियों पर आधारित होते हैं, जो एक से दूसरे क्षेत्र के अनुसार बदलतीं रहती हैं। नामों पर धर्म व जाति का प्रभाव भी होता है और वे धर्म या महाकाव्यों से लिये हुए हो सकते हैं। भारत के लोग विविध प्रकार की भाषाएं बोलते हैं और भारत में विश्व के लगभग प्रत्येक प्रमुख धर्म के अनुयायी मौजूद हैं। यह विविधता नामों व नामकरण की शैलियों में सूक्ष्म, अक्सर भ्रामक, अंतर उत्पन्न करती है। उदाहरण के लिये, पारिवारिक नाम की अवधारणा तमिलनाडु में व्यापक रूप से मौजूद नहीं थी। कई भारतीयों के लिये, उनके जन्म का नाम, उनके औपचारिक नाम से भिन्न होता है; जन्म का नाम किसी ऐसे वर्ण से प्रारंभ होता है, जो उस व्यक्ति की जन्म-कुंडली के आधार पर उसके लिये शुभ हो। कुछ बच्चों को एक नाम दिया जाता है (दिया गया नाम).

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भारतीय महाकाव्य

भारत में संस्कृत तथा अन्य भाषाओं में अनेक महाकाव्यों की रचना हुई है। भारत के महाकाव्यों में वाल्मीकि रामायण, व्यास द्वैपायन रचित महाभारत, तुलसीदासरचित रामचरितमानस, आदि ग्रन्थ परमुख हैं। .

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भारवि

भारवि (छठी शताब्दी) संस्कृत के महान कवि हैं। वे अर्थ की गौरवता के लिये प्रसिद्ध हैं ("भारवेरर्थगौरवं")। किरातार्जुनीयम् महाकाव्य उनकी महान रचना है। इसे एक उत्कृष्ट श्रेणी की काव्यरचना माना जाता है। इनका काल छठी-सातवीं शताब्दि बताया जाता है। यह काव्य किरातरूपधारी शिव एवं पांडुपुत्र अर्जुन के बीच के धनुर्युद्ध तथा वाद-वार्तालाप पर केंद्रित है। महाभारत के एक पर्व पर आधारित इस महाकाव्य में अट्ठारह सर्ग हैं। भारवि सम्भवतः दक्षिण भारत के कहीं जन्मे थे। उनका रचनाकाल पश्चिमी गंग राजवंश के राजा दुर्विनीत तथा पल्लव राजवंश के राजा सिंहविष्णु के शासनकाल के समय का है। कवि ने बड़े से बड़े अर्थ को थोड़े से शब्दों में प्रकट कर अपनी काव्य-कुशलता का परिचय दिया है। कोमल भावों का प्रदर्शन भी कुशलतापूर्वक किया गया है। इसकी भाषा उदात्त एवं हृदय भावों को प्रकट करने वाली है। प्रकृति के दृश्यों का वर्णन भी अत्यन्त मनोहारी है। भारवि ने केवल एक अक्षर ‘न’ वाला श्लोक लिखकर अपनी काव्य चातुरी का परिचय दिया है। .

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भार्गवीयम्

भार्गवीयम् विख्यात संस्कृत साहित्यकार मिथिला प्रसाद त्रिपाठी द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 2010 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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भीम

हिन्दू धर्म के महाकाव्य महाभारत के अनुसार भीम पाण्डवों में दूसरे स्थान पर थे। वे पवनदेव के वरदान स्वरूप कुन्ती से उत्पन्न हुए थे, लेकिन अन्य पाण्डवों के विपरीत भीम की प्रशंसा पाण्डु द्वारा की गई थी। सभी पाण्डवों में वे सर्वाधिक बलशाली और श्रेष्ठ कद-काठी के थे एवं युधिष्ठिर के सबसे प्रिय सहोदर थे। उनके पौराणिक बल का गुणगान पूरे काव्य में किया गया है। जैसे:- "सभी गदाधारियों में भीम के समान कोई नहीं है और ऐसा भी कोई को गज की सवारी करने में इतना योग्य हो और बल में तो वे दस हज़ार हाथियों के समान है। युद्ध कला में पारंगत और सक्रिय, जिन्हे यदि क्रोध दिलाया जाए जो कई धृतराष्ट्रों को वे समाप्त कर सकते हैं। सदैव रोषरत और बलवान, युद्ध में तो स्वयं इन्द्र भी उन्हें परास्त नहीं कर सकते।" वनवास काल में इन्होने अनेक राक्षसों का वध किया जिसमे बकासुर एवं हिडिंब आदि प्रमुख हैं एवं अज्ञातवास में विराट नरेश के साले कीचक का वध करके द्रौपदी की रक्षा की। यह गदा युद़्ध में बहुत ही प्रवीण थे एवं बलराम के शिष़्य थे। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में राजाओं की कमी होने पर उन्होने मगध के शासक जरासंघ को परास्त करके ८६ राजाओं को मुक्त कराया। द्रौपदी के चीरहरण का बदला लेने के लिए उन्होने दुःशासन की क्षाती फाड कर उसका रक्त पान किया। महाभारत के युद्ध में भीम ने ही सारे कौरव भाईयों का वध किया था। इन्ही के द्वारा दुर्योधन के वध के साथ ही महाभारत के युद्ध का अंत हो गया। .

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भीष्मचरितम्

भीष्मचरितम् विख्यात संस्कृत साहित्यकार हरिनारायण दीक्षित द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 1992 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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महात्मा विदुर

महात्मा विदुर डोगरी भाषा के विख्यात साहित्यकार ज्ञान सिंह पगोच द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 2007 में डोगरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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महाभारत

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। .

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महाभारत के विभिन्न संस्करण

महाभारत सर्वप्रथम महामुनि व्यास की रचना के रूप में प्रसिद्ध है। महामुनि व्यास से लेकर अब तक अनेक लेखकों द्वारा अनेक रूपों में महाभारत की रचना होती रही है। यह विभिन्न भाषाओं तथा साहित्य के विभिन्न रूपों काव्य, महाकाव्य, नाटक, चम्पू आदि के रूप में रचित होते रहा है। .

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महाभारत की संक्षिप्त कथा

महाभारत प्राचीन भारत का सबसे बड़ा महाकाव्य है। ये एक धार्मिक ग्रन्थ भी है। इसमें उस समय का इतिहास लगभग १,११,००० श्लोकों में लिखा हुआ है। इस की पूर्ण कथा का संक्षेप इस प्रकार से है। .

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महाकाव्य (एपिक)

वृहद् आकार की तथा किसी महान कार्य का वर्णन करने वाली काव्यरचना को महाकाव्य (epic) कहते हैं। .

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मार्कण्डेय प्रवासी

मार्कण्डेय प्रवासी मैथिली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य अगस्त्यायिनी के लिये उन्हें सन् 1981 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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माघ

माघ से निम्नांकित का बोध होता है-.

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माघ (कवि)

मारवाड़ के प्राचीनतम महाकवि के रूप में 'शिशुपालवध' के रचियता 'माघ' का जन्म भीन-माल के एक प्रतिष्ठित धनी ब्राह्मण-कुल में हुआ था। वे सर्वश्रेष्ठ संस्कृतमहाकवियों की त्रयी (माघ, भारवि, कालिदास) में अन्यतम हैं। उन्होंने शिशुपाल वध नामक केवल एक ही महाकाव्य लिखा। इस महाकाव्य में श्रीकृष्ण के द्वारा युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में चेदिनरेश शिशुपाल के वध का सांगोपांग वर्णन है। उपमा, अर्थगौरव तथा पदलालित्य - इन तीन गुणों का सुभग सह-अस्तित्व माघ के कमनीय काव्य में मिलता है, अतः "माघे सन्ति त्रयो गुणा:" उनके बारे में सुप्रसिद्ध है। माघ केवल सरस कवि ही नहीं थे, प्रत्युत एक प्रकाण्ड सर्वशास्त्रतत्त्वज्ञ विद्वान् थे। दर्शनशास्त्र, संगीतशास्त्र तथा व्याकरणशास्त्र में उनकी विद्वत्ता अप्रतिम थी। उनका पाण्डित्य एकांगी नही, प्रत्युत सर्वगामी था। अतएव उन्हें 'पण्डित-कवि' भी कहा गया है। एक और उल्लेखनीय विशेषता यह है कि महाकवि भारवि द्वारा प्रवर्तित अलंकृत शैली का पूर्ण विकसित स्वरुप माघ के महाकाव्य 'शिशुपालवध' में प्राप्त होता है, जिसका प्रभाव बाद के कवियों पर बहुत ही अधिक पड़ा। महाकवि माघ के 'शिशुपालवध' के प्रत्येक पक्ष की विशेषता का साहित्यिक अध्ययन विद्वानों ने किया है, शायद ही कोई पक्ष अछूता रहा है। पं० बलदेव उपाध्याय ने उचित ही कहा है - "अलंकृत महाकाव्य की यह आदर्श कल्पना महाकवि माघ का संस्कृतसाहित्य को अविस्मरणीय योगदान है, जिसका अनुसरण तथा परिबृहण कर हमारा काव्य साहित्य समृद्ध, सम्पन्न तथा सुसंस्कृत हुआ है।" माघ की प्रशंशा में कहा गया है- .

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मिथिला प्रसाद त्रिपाठी

मिथिला प्रसाद त्रिपाठी संस्कृत भाषा के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य भार्गवीयम् के लिये उन्हें सन् 2010 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मंखक

मंखक, संस्कृत के महाकवि थे। कश्मीर में सिंधु और वितस्ता के संगम पर महाराज प्रवरसेन द्वारा प्रवरपुर नामक नगर बसाया गया था। यह नगर वर्तमान श्रीनगर से 125 मील उत्तर पूर्व की ओर है। यहीं महाकवि मंखक का जनम हुआ था। पितामह मन्मथ बड़े शिवभक्त थे। पिता विश्ववर्त भी उसी प्रकार दानी, यशस्वी एवं शिवभक्त थे। वे कश्मीर नरेश सुस्सल के यहाँ राजवैद्य तथा सभाकवि थे। मंखक से बड़े तीन भाई थे श्रृंगार, भृंग तथा लंक या अलंकार। तीनों महाराज सुस्सल के यहाँ उच्च पद पर प्रतिष्ठित थे। मंखक के व्याकरण, साहित्य, वैद्यक, ज्योतिष तथा अन्य लक्षण ग्रंथों का ज्ञान प्राप्त किया था। आचार्य रुय्यक उनके गुरु थे। गुरु के अलंकारसर्वस्व ग्रंथ पर मंखक ने वृत्ति लिखी थी। .

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मंगत बादल

मंगत बादल राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य मीरां के लिये उन्हें सन् 2010 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मुक्तक

मुक्तक काव्य या कविता का वह प्रकार है जिसमें प्रबन्धकीयता न हो। इसमें एक छन्द में कथित बात का दूसरे छन्द में कही गयी बात से कोई सम्बन्ध या तारतम्य होना आवश्यक नहीं है। कबीर एवं रहीम के दोहे; मीराबाई के पद्य आदि सब मुक्तक रचनाएं हैं। हिन्दी के रीतिकाल में अधिकांश मुक्तक काव्यों की रचना हुई। मुक्तक शब्द का अर्थ है ‘अपने आप में सम्पूर्ण’ अथवा ‘अन्य निरपेक्ष वस्तु’ होना.

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मीर चाकर खाँ

मीर चाकर खाँ रिन्द (बलोच भाषा: میر چاکَر حان رِند; १४६८ - १५६५) एक बलोच सेनापति था। वह बलोच लोगों का लोकनायक था। बलोच भाषा के महाकाव्य हनी तथा शेह मुरीद का वह प्रमुख चरित्र है। श्रेणी:बलोचिस्तान.

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मीरां

मीरां राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार मंगत बादल द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 2010 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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यशोधरा (काव्य)

यह लेख मैथिलीशरण गुप्त की रचना यशोधरा के विषय में है। गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा के लिए राजकुमारी यशोधरा देखें। ---- मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित प्रसिद्ध प्रबंध काव्य है जिसका प्रकाशन सन् 1933 ई. में हुआ। अपने छोटे भाई सियारामशरण गुप्त के अनुरोध करने पर मैथिलीशरण गुप्त ने यह पुस्तक लिखी थी। यशोधरा महाकाव्य में गौतम बुद्ध के गृह त्याग की कहानी को केन्द्र में रखकर यह महाकाव्य लिखा गया है। इसमें गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा की विरहजन्य पीड़ा को विशेष रूप से महत्त्व दिया गया है। यह गद्य-पद्य मिश्रित विधा है जिसे चम्पूकाव्य कहा जाता है। .

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युगसंध्या

युगसंध्या कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार सुजना (एस. नारायण शेट्टी) द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 2002 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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यूनानी भाषा

यूनानी या ग्रीक (Ελληνικά या Ελληνική γλώσσα), हिन्द-यूरोपीय (भारोपीय) भाषा परिवार की स्वतंत्र शाखा है, जो ग्रीक (यूनानी) लोगों द्वारा बोली जाती है। दक्षिण बाल्कन से निकली इस भाषा का अन्य भारोपीय भाषा की तुलना में सबसे लंबा इतिहास है, जो लेखन इतिहास के 34 शताब्दियों में फैला हुआ है। अपने प्राचीन रूप में यह प्राचीन यूनानी साहित्य और ईसाईयों के बाइबल के न्यू टेस्टामेंट की भाषा है। आधुनिक स्वरूप में यह यूनान और साइप्रस की आधिकारिक भाषा है और करीबन 2 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है। लेखन में यूनानी अक्षरों का उपयोग किया जाता है। यूनानी भाषा के दो ख़ास मतलब हो सकते हैं.

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यूरोप का इतिहास

एक '''सामी''' परिवार यूरोप में मानव ईसापूर्व 35,000 के आसपास आया। इसके बाद ७००० इस्वी पूर्व से संगठित बसाव यानि बस्तियों के प्रमाण मिलते हैं। काँस्य युगीन सभ्यता (३००० ईसा पूर्व) के समय यहाँ कुछ अधिक बसाव नहीं हुआ - भ़ासकर मिस्र, इराक, चीन और भारतीय सभ्यता के मुकाबले। लेकिन ५०० ईसापूर्व से रोमन और यूनानी साम्राज्यों का उदय हुआ जिसने यूरोप की संस्कृति को बहुत प्रभावित किया। सैन्य, कला और चिंतन के मामले में यूनानियों ने यूरोप के एक कोने में होते हुए भी पूरे यूरोप और बाद में विश्वभर में अपना प्रभाव जमाया। आज यूरोप के देश यूरोपीय संघ के सदस्य हैं जो एक मुद्रा यूरो चलाता है। मध्यकाल में यूरोप छोटे राज्यों में विभक्त हो गया था। विज्ञान और शोध के मामले में धार्मिक मान्यताओं ने अपना प्रभाव बना रखा था। पंद्रहवीं सदी के बाद यह पुनः विकसित हुआ। सैनिक इतिहास का एक छोटा ब्यौरा नीचे लिखा है, कृपया वहाँ देखें। यूरोप के इतिहास को समझने के लिए दक्षिणी (रोम, यूनान और स्पेन), पूर्वी (यानि स्लाविक) और उत्तरी क्षेत्र जिसनें जर्मन मूल की नौर्ड और वाइकिंग तथा केल्ट और गॉल को समझना आवश्यक है। .

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राधा विरह

राधा विरह मैथिली भाषा के विख्यात साहित्यकार काशीकांत मिश्र ‘मधुप’ द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 1970 में मैथिली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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रामचन्द्र चन्द्रिका

रामचंद्रिका के नाम से विख्यात रामचंद्र चंद्रिका (रचनाकाल सन् १६०१ ई०) हिन्दी साहित्य के रीतिकाल के आरंभ के सुप्रसिद्ध कवि केशवदास रचित महाकाव्य है। उनचालीस प्रकाशों (सर्गों) में विभाजित इस महाकाव्य में कुल १७१७ छंद हैं। इसमें सुविदित भगवान राम की कथा ही वर्णित है, फिर भी यह अन्य रामायणों की तरह भक्तिप्रधान ग्रन्थ न होकर काव्य ग्रन्थ ही है। .

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रामचंद्र गिरि

रामचंद्र गिरि नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य समाज दर्पण के लिये उन्हें सन् 1984 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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रामभद्राचार्य

जगद्गुरु रामभद्राचार्य (जगद्गुरुरामभद्राचार्यः) (१९५०–), पूर्वाश्रम नाम गिरिधर मिश्र चित्रकूट (उत्तर प्रदेश, भारत) में रहने वाले एक प्रख्यात विद्वान्, शिक्षाविद्, बहुभाषाविद्, रचनाकार, प्रवचनकार, दार्शनिक और हिन्दू धर्मगुरु हैं। वे रामानन्द सम्प्रदाय के वर्तमान चार जगद्गुरु रामानन्दाचार्यों में से एक हैं और इस पद पर १९८८ ई से प्रतिष्ठित हैं।अग्रवाल २०१०, पृष्ठ ११०८-१११०।दिनकर २००८, पृष्ठ ३२। वे चित्रकूट में स्थित संत तुलसीदास के नाम पर स्थापित तुलसी पीठ नामक धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्थान के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। वे चित्रकूट स्थित जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक और आजीवन कुलाधिपति हैं। यह विश्वविद्यालय केवल चतुर्विध विकलांग विद्यार्थियों को स्नातक तथा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम और डिग्री प्रदान करता है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य दो मास की आयु में नेत्र की ज्योति से रहित हो गए थे और तभी से प्रज्ञाचक्षु हैं। अध्ययन या रचना के लिए उन्होंने कभी भी ब्रेल लिपि का प्रयोग नहीं किया है। वे बहुभाषाविद् हैं और २२ भाषाएँ बोलते हैं। वे संस्कृत, हिन्दी, अवधी, मैथिली सहित कई भाषाओं में आशुकवि और रचनाकार हैं। उन्होंने ८० से अधिक पुस्तकों और ग्रंथों की रचना की है, जिनमें चार महाकाव्य (दो संस्कृत और दो हिन्दी में), रामचरितमानस पर हिन्दी टीका, अष्टाध्यायी पर काव्यात्मक संस्कृत टीका और प्रस्थानत्रयी (ब्रह्मसूत्र, भगवद्गीता और प्रधान उपनिषदों) पर संस्कृत भाष्य सम्मिलित हैं।दिनकर २००८, पृष्ठ ४०–४३। उन्हें तुलसीदास पर भारत के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों में गिना जाता है, और वे रामचरितमानस की एक प्रामाणिक प्रति के सम्पादक हैं, जिसका प्रकाशन तुलसी पीठ द्वारा किया गया है। स्वामी रामभद्राचार्य रामायण और भागवत के प्रसिद्ध कथाकार हैं – भारत के भिन्न-भिन्न नगरों में और विदेशों में भी नियमित रूप से उनकी कथा आयोजित होती रहती है और कथा के कार्यक्रम संस्कार टीवी, सनातन टीवी इत्यादि चैनलों पर प्रसारित भी होते हैं। २०१५ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया। .

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रामायण

रामायण आदि कवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है। इसके २४,००० श्लोक हैं। यह हिन्दू स्मृति का वह अंग हैं जिसके माध्यम से रघुवंश के राजा राम की गाथा कही गयी। इसे आदिकाव्य तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि' भी कहा जाता है। रामायण के सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं। .

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रामायण (बहुविकल्पी)

रामायण मूलतः वाल्मीकि द्वारा संस्कृत में रचित प्रसिद्ध महाकाव्य है। किन्तु अन्य भाषाओं में रचित अनेकानेक रामकथा काव्य इसी नाम से जाने जाते हैं-.

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राही मासूम रज़ा

राही मासूम रज़ा (१ सितंबर, १९२५-१५ मार्च १९९२) का जन्म गाजीपुर जिले के गंगौली गांव में हुआ था और प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा गंगा किनारे गाजीपुर शहर के एक मुहल्ले में हुई थी। बचपन में पैर में पोलियो हो जाने के कारण उनकी पढ़ाई कुछ सालों के लिए छूट गयी, लेकिन इंटरमीडियट करने के बाद वह अलीगढ़ आ गये और यहीं से एमए करने के बाद उर्दू में `तिलिस्म-ए-होशरुबा' पर पीएच.डी.

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राजा रवि वर्मा

राजा रवि वर्मा की कलाकृति- '''ग्वालिन''' राजा रवि वर्मा (१८४८ - १९०६) भारत के विख्यात चित्रकार थे। उन्होंने भारतीय साहित्य और संस्कृति के पात्रों का चित्रण किया। उनके चित्रों की सबसे बड़ी विशेषता हिंदू महाकाव्यों और धर्मग्रन्थों पर बनाए गए चित्र हैं। हिन्दू मिथकों का बहुत ही प्रभावशाली इस्‍तेमाल उनके चित्रों में दिखता हैं। वडोदरा (गुजरात) स्थित लक्ष्मीविलास महल के संग्रहालय में उनके चित्रों का बहुत बड़ा संग्रह है। .

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राज्य की भारतीय अवधारण

अभी तक यह समझा जाता रहा था कि अफ्रीका की भाँति भारत में भी राज्य की उत्पत्ति तथा विकास से सम्बन्धित सिद्धान्तों का पूर्ण अभाव रहा है। भारत की इस छवि के लिए साम्राज्यवादी इतिहासकार उत्तरदायी रहे हैं। इन्होंने पूर्वी निरंकुशतावाद अथवा अधिनायकवाद के रूप में भारतीय राज्य का वर्णन किया है। इस मत को पुख्ता करने में कुछ हद तक मार्क्सवादी एशियायी उत्पादन की पद्धति (Asiatic Mode of Production) का विचार भी रहा है। हालाँकि भारतीय मार्क्सवादी विचारकों ने इसे अव्यावहारिक बताकर अपनी असहमति जताई है परन्तु उनके विचारों को न सुनकर ब्रिटिश साम्राज्यवादी विचारकों के मत को ही सुदृढ़ करने का प्रयत्न किया गया है। यदि प्राचीन भारतीय ग्रंथों का गहराई से अध्ययन किया जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि जिस प्रकार पाश्चात्य राजनीतिक चिन्तन क्रम में राज्य की उत्पत्ति से सम्बन्धित अनेक मत प्रचलित है इसी प्रकार भारतीय चिन्तन क्रम में भी अनेक मत उपलब्ध है जैसे-.

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रघुवंशम्

रघुवंश कालिदास रचित महाकाव्य है। इस महाकाव्य में उन्नीस सर्गों में रघु के कुल में उत्पन्न बीस राजाओं का इक्कीस प्रकार के छन्दों का प्रयोग करते हुए वर्णन किया गया है। इसमें दिलीप, रघु, दशरथ, राम, कुश और अतिथि का विशेष वर्णन किया गया है। वे सभी समाज में आदर्श स्थापित करने में सफल हुए। राम का इसमें विषद वर्णन किया गया है। उन्नीस में से छः सर्ग उनसे ही संबन्धित हैं। आदिकवि वाल्मीकि ने राम को नायक बनाकर अपनी रामायण रची, जिसका अनुसरण विश्व के कई कवियों और लेखकों ने अपनी-अपनी भाषा में किया और राम की कथा को अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया। कालिदास ने यद्यपि राम की कथा रची परंतु इस कथा में उन्होंने किसी एक पात्र को नायक के रूप में नहीं उभारा। उन्होंने अपनी कृति ‘रघुवंश’ में पूरे वंश की कथा रची, जो दिलीप से आरम्भ होती है और अग्निवर्ण पर समाप्त होती है। अग्निवर्ण के मरणोपरांत उसकी गर्भवती पत्नी के राज्यभिषेक के उपरान्त इस महाकाव्य की इतिश्री होती है। रघुवंश पर सबसे प्राचीन उपलब्ध टीका १०वीं शताब्दी के काश्मीरी कवि वल्लभदेव की है। किन्तु सर्वाधिक प्रसिद्ध टीका मल्लिनाथ (1350 ई - 1450 ई) द्वारा रचित 'संजीवनी' है। .

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रुसी भाषा का साहित्य

सेंट पिट्सबर्ग स्थित '''रूसी साहित्य संस्थान''' रूसी साहित्य से आशय रूस में रचित साहित्य के अलावा रूसी भाषा में रचित उन अनेकों देशों के साहित्य से है जो कभी रूसी साम्राज्य या सोवियत संघ के भाग थे। रूसी साहित्य की रचना मध्यकाल में आरम्भ हुई थी जब पुरानी रूसी में महाकाव्य तथा इतिहास की रचना हुई थी। १८३० के दशक के आरम्भ में रूसी काव्य, गद्य और नाटक का स्वर्णयुग आ चुका था। पुरानी स्लाव भाषा सभी स्लाविक भाषाओं की मूलभाषा है। पुरानी स्लाव भाषा 3 वर्गों में बँटी हुई थी–.

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रेवाप्रसाद द्विवेदी

रेवाप्रसाद द्विवेदी संस्कृत भाषा के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य स्वातंत्र्यसंभवम् के लिये उन्हें सन् 1991 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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लक्षण

लक्षण का अर्थ है - 'पहचान का चिह्न' या गुणधर्म या प्रकृति। किसी पदार्थ की वह विशेषता जिसके द्वारा वह पहचाना जाय। वे गुण आदि जो किसी पदार्थ में विशिष्ट रूप से हों और जिनके द्वारा सहज में उसका ज्ञान हो सके। जैसे,—आकाश के लक्षण से जान पड़ता है कि आज पानी बरसेगा। शरीर में दिखाई पड़नेवाले वे चिह्न आदि जो किसी रोग के सूचक हों, भी 'लक्षण' कहलाते हैं। जैसे,—इस रोगी में क्षय के सभी लक्षण दिखाई देते हैं। सामुद्रिक के अनुसार शरीर के अँगों में मिलने वाले कुछ विशेष चिह्न भी लक्षण कहे जाते हैं जो शुभ या अशुभ माने जाते हैं। जैसे,—चक्रवर्ती और बुद्ध के लक्षण एक से होते हैं। लक्षणों को जाननेवाला या शुभ अशुभ चिह्नों का ज्ञाता लक्षणज्ञ कहलाता है। काव्य या साहित्य के लक्षणों का विवेचन करनेवाला ग्रंथ लक्षण ग्रंथ कहलाता है। दूसरे शब्दों में, लक्षण ग्रन्थ का अर्थ साहित्यिक समीक्षा की पुस्तक या 'समालोचना शास्त्र' है। .

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लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा

लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा (जन्म १२ नवम्बर १९०९, मृत्यु १४ सितम्बर १९५९) नेपाली साहित्य के महाकवि हैं। देवकोटा नेपाली साहित्य के बिभिन्न विधाओं में कलम चलाने वाले बहुमुखी प्रतिभाशाली थे। उनके द्वारा लिखित कविता और निबन्ध उच्च कोटि के माने जाते हैं। उन्होंने मुनामदन, सुलोचना, शाकुन्तल जैसे अमर काव्य लिखे जिसके कारण नेपाली साहित्यको समृद्धि मिली। नेपाली साहित्य में मुनामदन सर्वोत्कृष्ट काव्य माना जाता है। .

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लोल्लट

आचार्य अभिनवगुप्त ने "अभिनवभारती" में लोल्लट का उल्लेख भरतमुनि के नाट्यसूत्र के मान्य टीकाकार आचार्य के रूप में किया है। भरत के रसपरक सिद्धांत की व्याख्या करनेवाले सर्वप्रथम विद्वान् लोल्लट ही हैं। रसनिष्पत्ति के सबंध में इनका स्वतंत्र मत साहित्यजगत् में विख्यात हैं। ये मीमांसक और अभिधावादी थे। इनके मत में शब्द के प्रत्येक अर्थ की प्रतिपत्ति अभिधा से ठीक उसी तरह हो जाती है, जैसे एक ही बाण कवच को भेदते हुए शरीर में घुसकर प्राणों को पी जाता है। इनकी दृष्टि से महाकाव्य के प्रधान रस तथा उसके विभिन्न अंगों में पूरा सामंजस्य होना आवश्यक है। ये रस की स्थिति रामादि अनुकार्य पात्रों में मानते हैं, नटों एवं सहृदयों में नहीं मानते। औचित्यसमर्थक आचार्यों में इनका एक महत्वपूर्ण स्थान है। इनके कथनानुसार अर्थ के समुदाय का अंत नहीं है, किंतु काव्य में रसवाले अर्थ का ही निबंधन उचित एवं युक्त है, नीरस का नहीं। कोई भी वर्णन सरस भले ही हो, किंतु यदि वह प्रकृत रस के साथ सामंजस्य नहीं रखता तो इसका विस्तार नहीं करना चाहिए। महाकाव्यों में यमक तथा चित्रकाव्य का निबंधन कवि के अभिमान का ही परिचायक होता है, वह काव्य के मुख्य रस का अभिव्यंजक नहीं होता। अलंकार संप्रदाय के मान्य अनुयायी आचार्य उद्भट के इस सिद्धांत की कि वृत्तियाँ तीन ही हैं और वे भरत द्वारा निर्दिष्ट चार वृतियों से भिन्न हैं, लोल्लट ने कड़ी आलोचना की है और उद्भट द्वारा निरूपित न्यायवृत्ति, अन्यायवृत्ति और फलवृत्ति को न मानते हुए उसकी कल्पना को अमान्य ठहराते हैं। "शकली गर्भ" नाम से नाट्यशास्त्र के आचार्य का भी इन्होंने खंडन किया है, जिन्होंने उद्भट का खंडन किया है पर "भरत" की वृत्ति चतुष्टयी को मानते हुए "आत्मसंवित्ति" नाम की एक पाँचवीं वृत्ति की उद्भावना की है। भट्ट लोल्लट के तीन पद्यों को राजशेखर, हेमचंद्र तथा नमिसाधु ने उद्धृत किया है जो औचित्यविचार की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। राजशेखर ने इन पद्यों को "काव्यमीमांसा" में "इति आपराजिति: यदाह" कहकर आपराजिति के नाम से उद्धृत किया है और हेमचंद्र ने "काव्यानुशासन" में इनमें से दो पद्यों को भट्ट लोल्लट के नाम से उद्धृत किया है। इससे यह ज्ञात होता है कि इनका एक नाम आपराजिति था। संभवत: ये अपराजित पुत्र थे। ध्वन्यालोक की टीका में इनका मत प्रभाकर के अनुसार कह गया है- "भाट्टं प्राभाकरं वैयाकरणं च पक्षं सूचयति"। इनके समय का तथा ग्रंथ आदि का निश्चित पता नहीं। अभिनयभारती, ध्वन्यालोक आदि में इनके कुछ स्फुट विचार प्राप्त होते हैं, जिनसे इनकी विद्वत्ता और सिद्धांत का परिज्ञान होता है। काव्यप्रकाश की संकेत टीका से और शंकुक आदि आचार्यों द्वारा इनका खंडन करने से ज्ञात होता है कि ये शंकुक के पूववर्ती थे। शंकुक का समय ई. 850 है। अत: इनका समय नवीं सदी के प्रथम चरण के लगभग ठहरता है। ये कश्मीरी थे। श्रेणी:साहित्यशास्त्री श्रेणी:काव्यशास्त्र.

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श चिंग

श चिंग चीन का पहला काव्य ग्रंथ है जो ईसा पूर्व सातवीं सदी में रचा गया। 'श चिंह' का अर्थ ह - 'सर्वश्रेष्ठ प्राचीन कविताओं का संग्रह'। इस ग्रंथ में व्यंग्यात्मक कविता, प्रेम के गीत, वीर गाथा, श्रम के गीत तथा पूजा के गीत इत्यादि शामिल हैं। इस ग्रंथ का जन्म प्राचीन यूनानी होमर के महाकाव्य से भी कई सौ वर्ष से पहले हुआ था। इस कविता ग्रंथ में ईसा पूर्व 11वीं शताब्दी से ले कर सातवीं शताब्दी तक के पांच सौ सालों की 305 कविताएं संगृहित हैं जो ग्रंथ तीन भागों में बंटे हुए हैं। इस के पहले भाग में उस जमाने के 15 राज्यों में प्रचलित 160 लोकगीत हैं, दूसरे भाग में पश्चिमी चो राजवंश के दरबारी अनुष्ठानों और कुलीन वर्ग की रस्म सभाओं में प्रयुक्त 105 गीतिकाव्य हैं, जबकि तीसरे भाग में श्रद्धा व पूजा से जुड़ी 40 कविताएं हैं जो मुख्य तौर पर पूर्वजों व देवताओं की महानता का गुणगान करती हैं। .

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शिलप्पदिकारम

शिलप्पदिकारम (तमिल: சிலப்பதிகாரம்/चिलप्पतिकारम्; अर्थ - 'पायल की कथा') तमिल साहित्य के पाँच श्रेष्ठ महाकाव्यों में से एक है। इसे तमिल राष्ट्रीय काव्य माना गया हैं। कोच्चि निवासी एक जैन धर्म कविराजकुमार इसके रचयिता माने जाते हैं। इनका छद्म नाम 'इलांगो अडिगल' है। वे चेर राजवंश के राजा वेल केलु कुट्टवन के भ्राता थे। इस ग्रंथ में कण्णगी पूजा (पत्नी पूजा) का उल्लेख मिलता है।यहीं से उस समाज का मात़ृसत्तात्मक व्यवस्था से पितृसत्तात्मक व्यवस्था की ओर परिवर्तित होने का संकेत मिलता है। .

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शिल्प (साहित्य)

'शिल्प' का शाब्दिक अर्थ है निर्माण अथवा गढ़न के तत्व। किसी साहित्यिक कृति के संदर्भ में 'शिल्प' की दृष्टि से मूल्यांकन का बड़ा महत्व है। शिल्प के अंतर्गत निम्न छः बिन्दुओं की चर्चा की जाती है: .

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शिशुपालवध

श्रीकृष्ण द्वारा चक्र से शिशुपाल का सिरोच्छेदन शिशुपालवध महाकवि माघ द्वारा रचित संस्कृत काव्य है। २० सर्गों तथा १८०० अलंकारिक छन्दों में रचित यह ग्रन्थ संस्कृत के छः महाकाव्यों में गिना जाता है। इसमें कृष्ण द्वारा शिशुपाल के वध की कथा का वर्णन है। .

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शिवलीलार्णव

शिवलीलार्णव अच्चा दीक्षित के पौत्र तथा नारायण दीक्षित के पुत्र नीलकण्ठ दीक्षित द्वारा विरचित एक महाकाव्य है। इस महाकाव्य में 22 सर्ग हैं। शिवभक्ति में तत्पर रहने वाले मीनाक्षी देवी के साथ सुन्दरेश्वर की उपासना करने वाले पाण्ड्यवंश में उत्पन्न होने वाले 20 से अधिक राजाओं का वर्णन यहाँ किया गया है। इसमें शान्त रस प्रधान रूप में वर्णित है, अन्य सभी रसों का वर्णन अंगभूत उपलब्ध होता है। स्कन्दपुराण की अगस्त्य संहिता से कथानक लिया गया है इसलिए वही इस महाकाव्य का उपजीव्य है। प्रारम्भ में वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण किया गया है- खल निन्दा के प्रसंग में कवि कहता है कि ब्रह्मा ने सृष्टिकाल में दुष्ट बुद्धि वाले खलों के मुख को लहसुन और नीम से भर दिया था। इसी से उनके मुख में दुर्गन्ध और तिक्तता पायी जाती है- एक प्रकार के छन्द वाले नाति स्वल्प और नाति दीर्घ 22 सर्ग इस काव्य में हैं। 20वां और 21वां सर्ग नानावृत्तमय है। इस काव्य में 28 छन्दों का प्रयोग किया गया है। द्रुतविलम्बित की छटा अवलोकनीय है- महाकवि ने युग्मक, कलापक, कुलक तथा चक्क्लक आदि पद्यों का प्रयोग किया है। सन्ध्या, सूर्योदय, चन्द्रोदय, रात्रि, प्रदोष अंधकार, दिन, प्रातः, मध्याह्न, मृगया, पर्वत, ऋतु, उपवन, नदी, सागर आदि का वर्णन यत्र-तत्र काव्य में समुपलब्ध होता है। ताम्रपर्णी नदी का वर्णन करते हुए महाकवि ने कहा है कि ताम्रपर्णी को छोड़कर भगवान शंकर का गंगा के प्रति प्रेम वैसा ही है जैसा केतकी के फूल के विद्यमान रहने पर भी मदार के प्रति प्रेम रखना- बसन्त ऋतु का वर्णन करते हुए कवि कहता है- नगर वर्णन के क्रम में चौथे सर्ग में कवि ने मधुरा (मदुरै) नगरी का वर्णन किया है। वहाँ नाम की सार्थकता बताते हुए कवि ने कहा है-जीमूतवाहन ने दिव्य सुधामय गंधों से इस नवीन नगर को तीन दिनों तक सेचन कराया। ‘मधुरोदक संसिक्त होने के कारण यह महानगरी मधुरा (मदुरै) कही जाएगी’- इस प्रकार की आकाशवाणी हुई- नये-नये शब्दों का प्रयोग करने में महाकवि नीलकण्ठ माघ को भी पीछे छोड़ देते हैं। इनमें शब्द पुनरुक्ति नगण्य है। इसलिए डॉ0 ददन उपाध्याय ने ठीक ही कहा है- एक शब्द का अनेक अर्थों में एकत्र प्रयोग इस महाकाव्य में दिखायी पड़ता है। एक ही पुष्कर शब्द का चार अर्थों (जल, सूड़, कमल और आकाश) में प्रयोग सहृदय हृदयाह्लादक है- अलंकारों के प्रयोग में कवि सर्वत्र सावधान दिखायी पड़ता है। इस काव्य में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, विरोधाभास, व्यतिरेक, अर्थान्तर न्यास आदि अलंकारों की रमणीयता दर्शनीय है। उपमा का एक उदाहरण द्रष्टव्य है- उत्प्रेक्षा की छटा भी प्रेक्षणीय है- भगवान शंकर ने विवाह के समय जब का×चन अम्बर धारण किया, उसका वर्णन कवि ने इस प्रकार किया है- भगवान् शंकर को भक्तजन जो कस्तूरी और कपूर अर्पण करते हैं, उसके प्रति कवि की उत्प्रेक्षा अवलोकनीय है- यह महाकवि किसी भी वस्तु का आलंकारिक चि त्रण करने में सिद्धहस्त प्रतीत होता है। नारी के निर्माण के विषय में उसकी कल्पना विचारणीय है- राजा के प्रताप और कीर्ति का मनोहर वर्णन कवि ने किया है- कान्तासम्मित उपदेश के लिए काव्य होता है। परन्तु राजा कुलशेखर ने अपने पुत्र मलयध्वज को शिक्षित करने के बहाने लोकों को उपदेश दिया है यह उपदेश बाणभट्ट के शुकनासोपदेश का स्मरण कराता है। एक स्थल पर माँ ने अपनी कन्या को उपदेश दिया है। जो शकुन्तला के प्रति कण्व के उपदेश का स्मरण कराता है- शैव दर्शन तत्व को महाकवि ने अपनी प्रतिभा से काव्य में समुपस्थित किया है। शिवभक्तिप्रवण होने के का रण यद्यपि यह काव्य शान्त रस प्रधान है फिर भी अन्य रसों का वर्णन अंग रूप में हुआ है। युद्ध वर्णन प्रसंग में वीर रस की अनुभूति होती है। बीच-बीच में शृंगार रस की मृदुता अविस्मरणीय है। कुचद्वय के वर्णन प्रसंग में कवि कहता है- नायिका के सौन्दर्यवर्णन के प्रसंग में कवि की काव्यपटुता अवलोकनीय है- वैदर्भी रीति प्रधान होते हुए भी यह काव्य प्रसाद गुण से गुम्फित है। काव्य में शास्त्रान्तर का पुटपाक भी सहृदयों को शास्त्र विचारणा के लिए उन्मुख करता है। वेदान्त के एकेश्वरवाद के सिद्धान्त को महान कवि श्री दीक्षित पूरी कुशलता के साथ उपस्थापित करते हैं। काशीपति विश्वेश्वर के तारकमन्त्र दान से कैवल्य प्रदान की महिमा का वर्णन कवि ने इस प्रकार किया है- उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि श्रीकण्ठ दीक्षित विरचित यह शिवलीलार्णव काव्य एक सफल महाकाव्य के लक्षणों की कसौटी पर खरा उतरता है। .

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शंकुक (भरत नाट्यशास्त्र के व्याख्याता)

शंकुक भरत नाट्यशास्त्र के व्याख्याता। इनकी व्याख्या प्राप्त नहीं है पर अभिनवभारती में उसका उल्लेख है। भरत के रससूत्र की इन्होंने जो व्याख्या की है वह "अनुमितिवाद" नाम से प्रसिद्ध है। भट्ट लोल्लट के उत्पत्तिवाद का तथा सहृदयों में रसानुभव न माननेवाले सिद्धांत का इन्होंने सर्वप्रथम खंडन किया है। ये नैयायिक थे। इन्होंने विभाव आदि साधनों और रसरूप साध्य में अनुमाप्यअनुमापक भाव की कल्पना की है और रस का आस्वाद अनुमान द्वारा अनुमेय या अनुमितिगम्य बताया है। इन्होंने रस की स्थिति सहृदयों या सामाजिकों में मानी है। "चित्रतुरगादि न्याय" की इनकी विवेचना के अनुसार नट सच्चे राम नहीं हैं, वे चित्र में लिखे अश्व की तरह हैं। जैसे अश्व के चित्र को देखकर उसका अनुभव होता है, वैसे ही नट के अभिनयात्मक रूप को देखकर सहृदयों को अनुभव होता है। इस प्रकार शंकुक ने रस की स्थिति सहृदयों या सामाजिकों में मानी है। राजतरंगिणी के उल्लेख के अनुसार शंकुक कश्मीरी विद्वान् थे और अजितापीड़ के शासनकाल में विद्यमान थे। इन्होंने "भुवनाभ्युदय" नामक महाकाव्य में मम्म और उत्पल के भयंकर युद्ध का वर्णन किया है जिसें मारे गए वीरों के शव से वितस्ता नदी का प्रवाह रुक गया था। राजतरंगिणीकार ने इन्हें "कवि बुधमन: सिंधुशशांक:" कहा है। शंकुक का समय ई. 850 के लगभग मान्य है। शार्ंगधरपद्धति तथा जल्हण की सूक्तिमुक्तावली में शंकुक को मयूर का पुत्र कहा गया है। विक्रमादित्य की सभा के नवरत्नों में भी एक शंकु या शंकुक नाम आया है। ये दोनों भरत नाट्यशास्त्र के व्याख्याता, रसनिरूपण में अनुमितिवाद के प्रतिष्ठापक एवं भुवनाभ्युदय महाकाव्य के रचयिता शंकुक से संभवत: भिन्न थे। श्रेणी:नाटक श्रेणी:विद्वान.

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श्याम नारायण पाण्डेय

वीर रस के कवि श्याम नारायण पाण्डेय (1907-1991) श्याम नारायण पाण्डेय (1907 - 1991) वीर रस के सुविख्यात हिन्दी कवि थे। वह केवल कवि ही नहीं अपितु अपनी ओजस्वी वाणी में वीर रस काव्य के अनन्यतम प्रस्तोता भी थे। .

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श्री राधाचरित महाकाव्यम्

श्री राधाचरित महाकाव्यम् विख्यात संस्कृत साहित्यकार कालिकाप्रसाद शुक्ल द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 1986 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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श्रीचंद्रशेखरेन्द्रसरस्वतीविजयम्

श्रीचंद्रशेखरेन्द्रसरस्वतीविजयम् विख्यात संस्कृत साहित्यकार एस. श्रीनिवास शर्मा द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 2000 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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श्रीधर भास्कर वर्णेकर

डॉ श्रीधर भास्कर वार्णेकर (३१ जुलाई १९१८ - १० अप्रैल २०००) संस्कृत के विद्वान तथा राष्ट्रवादी कवि थे। उनका जन्म नागपुर में हुआ था। .

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श्रीभार्गवराघवीयम्

श्रीभार्गवराघवीयम् (२००२), शब्दार्थ परशुराम और राम का, जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा २००२ ई में रचित एक संस्कृत महाकाव्य है। इसकी रचना ४० संस्कृत और प्राकृत छन्दों में रचित २१२१ श्लोकों में हुई है और यह २१ सर्गों (प्रत्येक १०१ श्लोक) में विभक्त है।महाकाव्य में परब्रह्म भगवान श्रीराम के दो अवतारों परशुराम और राम की कथाएँ वर्णित हैं, जो रामायण और अन्य हिंदू ग्रंथों में उपलब्ध हैं। भार्गव शब्द परशुराम को संदर्भित करता है, क्योंकि वह भृगु ऋषि के वंश में अवतीर्ण हुए थे, जबकि राघव शब्द राम को संदर्भित करता है क्योंकि वह राजा रघु के राजवंश में अवतीर्ण हुए थे। इस रचना के लिए, कवि को संस्कृत साहित्य अकादमी पुरस्कार (२००५) तथा अनेक अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। महाकाव्य की एक प्रति, कवि की स्वयं की हिन्दी टीका के साथ, जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा ३० अक्टूबर २००२ को किया गया था। .

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श्रीरामचरितमानस

गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीरामचरितमानस का आवरण श्री राम चरित मानस अवधी भाषा में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा १६वीं सदी में रचित एक महाकाव्य है। इस ग्रन्थ को हिंदी साहित्य की एक महान कृति माना जाता है। इसे सामान्यतः 'तुलसी रामायण' या 'तुलसीकृत रामायण' भी कहा जाता है। रामचरितमानस भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। उत्तर भारत में 'रामायण' के रूप में बहुत से लोगों द्वारा प्रतिदिन पढ़ा जाता है। शरद नवरात्रि में इसके सुन्दर काण्ड का पाठ पूरे नौ दिन किया जाता है। रामायण मण्डलों द्वारा शनिवार को इसके सुन्दरकाण्ड का पाठ किया जाता है। श्री रामचरित मानस के नायक राम हैं जिनको एक महाशक्ति के रूप में दर्शाया गया है जबकि महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में श्री राम को एक मानव के रूप में दिखाया गया है। तुलसी के प्रभु राम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। त्रेता युग में हुए ऐतिहासिक राम-रावण युद्ध पर आधारित और हिन्दी की ही एक लोकप्रिय भाषा अवधी में रचित रामचरितमानस को विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में ४६वाँ स्थान दिया गया। .

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श्रीरामायण दर्शनम्

श्रीरामायण दर्शनम् कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार के. वी. पुट्टप्पा (कुवेंपु) द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 1955 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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श्रीशिवपराज्योदयम्

श्रीशिवपराज्योदयम् विख्यात संस्कृत साहित्यकार एस. वी. वर्णेकर द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 1974 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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श्रीसीतारामकेलिकौमुदी

श्रीसीतारामकेलिकौमुदी (२००८), शब्दार्थ: सीता और राम की (बाल) लीलाओं की चन्द्रिका, हिन्दी साहित्य की रीतिकाव्य परम्परा में ब्रजभाषा (कुछ पद मैथिली में भी) में रचित एक मुक्तक काव्य है। इसकी रचना जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा २००७ एवं २००८ में की गई थी।रामभद्राचार्य २००८, पृष्ठ "क"–"ड़"काव्यकृति वाल्मीकि रामायण एवं तुलसीदास की श्रीरामचरितमानस के बालकाण्ड की पृष्ठभूमि पर आधारित है और सीता तथा राम के बाल्यकाल की मधुर केलिओं (लीलाओं) एवं मुख्य प्रसंगों का वर्णन करने वाले मुक्तक पदों से युक्त है। श्रीसीतारामकेलिकौमुदी में ३२४ पद हैं, जो १०८ पदों वाले तीन भागों में विभक्त हैं। पदों की रचना अमात्रिका, कवित्त, गीत, घनाक्षरी, चौपैया, द्रुमिल एवं मत्तगयन्द नामक सात प्राकृत छन्दों में हुई है। ग्रन्थ की एक प्रति हिन्दी टीका के साथ जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन ३० अक्टूबर २००८ को किया गया था। .

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श्रीहर्ष

श्रीहर्ष 12वीं सदी के संस्कृत के प्रसिद्ध कवि। वे बनारस एवं कन्नौज के गहड़वाल शासकों - विजयचन्द्र एवं जयचन्द्र की राजसभा को सुशोभित करते थे। उन्होंने कई ग्रन्थों की रचना की, जिनमें ‘नैषधीयचरित्’ महाकाव्य उनकी कीर्ति का स्थायी स्मारक है। नैषधचरित में निषध देश के शासक नल तथा विदर्भ के शासक भीम की कन्या दमयन्ती के प्रणय सम्बन्धों तथा अन्ततोगत्वा उनके विवाह की कथा का काव्यात्मक वर्णन मिलता है। .

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शौरसेनी

शौरसेनी नामक प्राकृत मध्यकाल में उत्तरी भारत की एक प्रमुख भाषा थी। यह नाटकों में प्रयुक्त होती थी (वस्तुतः संस्कृत नाटकों में, विशिष्ट प्रसंगों में)। बाद में इससे हिंदी-भाषा-समूह व पंजाबी विकसित हुए। दिगंबर जैन परंपरा के सभी जैनाचार्यों ने अपने महाकाव्य शौरसेनी में ही लिखे जो उनके आदृत महाकाव्य हैं। शौरसेनी उस प्राकृत भाषा का नाम है जो प्राचीन काल में मध्यप्रदेश में प्रचलित थी और जिसका केंद्र शूरसेन अर्थात् मथुरा और उसके आसपास का प्रदेश था। सामान्यत: उन समस्त लोकभाषाओं का नाम प्राकृत था जो मध्यकाल (ई. पू. ६०० से ई. सन् १००० तक) में समस्त उत्तर भारत में प्रचलित हुईं। मूलत: प्रदेशभेद से ही वर्णोच्चारण, व्याकरण तथा शैली की दृष्टि से प्राकृत के अनेक भेद थे, जिनमें से प्रधान थे - पूर्व देश की मागधी एवं अर्ध मागधी प्राकृत, पश्चिमोत्तर प्रदेश की पैशाची प्राकृत तथा मध्यप्रदेश की शौरसेनी प्राकृत। मौर्य सम्राट् अशोक से लेकर अलभ्य प्राचीनतम लेखों तथा साहित्य में इन्हीं प्राकृतों और विशेषत: शौरसेनी का ही प्रयोग पाया जाता है। भरत नाट्यशास्त्र में विधान है कि नाटक में शौरसेनी प्राकृत भाषा का प्रयोग किया जाए अथवा प्रयोक्ताओं के इच्छानुसार अन्य देशभाषाओं का भी (शौरसेनं समाश्रत्य भाषा कार्या तु नाटके, अथवा छंदत: कार्या देशभाषाप्रयोक्तृभि - नाट्यशास्त्र १८,३४)। प्राचीनतम नाटक अश्वघोषकृत हैं (प्रथम शताब्दी ई.) उनके जो खंडावशेष उपलब्ध हुए हैं उनमें मुख्यत: शौरसेनी तथा कुछ अंशों में मागधी और अर्धमागधी का प्रयोग पाया जाता है। भास के नाटकों में भी मुख्यत: शौरसेनी का ही प्रयोग पाया जाता है। पश्चात्कालीन नाटकों की प्रवृत्ति गद्य में शौरसेनी और पद्य में महाराष्ट्री की ओर पाई जाती है। आधुनिक विद्वानों का मत है कि शौरसेनी प्राकृत से ही कालांतर में भाषाविकास के क्रमानुसार उन विशेषताओं की उत्पत्ति हुई जो महाराष्ट्री प्राकृत के लक्षण माने जाते हैं। वररुचि, हेमचंद्र आदि वैयाकरणों ने अपने-अपने प्राकृत व्याकरणों में पहले विस्तार से प्राकृत सामान्य के लक्षण बतलाए हैं और तत्पश्चात् शौरसेनी आदि प्रकृतों के विशेष लक्षण निर्दिष्ट किए हैं। इनमें शौरसेनी प्राकृत के मुख्य लक्षण दो स्वरों के बीच में आनेवाले त् के स्थान पर द् तथा थ् के स्थान पर ध्। जैसे अतीत > अदीद, कथं > कधं; इसी प्रकार ही क्रियापदों में भवति > भोदि, होदि; भूत्वा > भोदूण, होदूण। भाषाविज्ञान के अनुसार ईसा की दूसरी शती के लगभग शब्दों के मध्य में आनेवाले त् तथा द् एव क् ग् आदि वर्णों का भी लोप होने लगा और यही महाराष्ट्री प्राकृत की विशेषता मानी गई। प्राकृत का उपलभ्य साहित्य रचना की दृष्टि से इस काल से परवर्ती ही है। अतएव उसमें शौरसेनी का उक्त शुद्ध रूप न मिलकर महाराष्ट्री मिश्रित रूप प्राप्त होता है और इसी कारण पिशल आदि विद्वानों ने उसे उक्त प्रवृत्तियों की बहुलतानुसार जैन शौरसेनी या जैन महाराष्ट्री नाम दिया है। जैन शौरसेनी साहित्य दिंगबर जैन परंपरा का पाया जाता है। प्रमुख रचनाएँ ये हैं - सबसे प्राचीन पुष्पदंत एव भूतवलिकृत षट्खंडागम तथा गुणधरकृत कषाय प्राभृत नामक सूत्रग्रंथ हैं (समय लगभग द्वितीय शती ई.)। वीरसेन तथा जिनसेनकृत इनकी विशाल टीकाएँ भी शौरसेनी प्राकृत में लिखी गई है (९वीं शती ई.)। ये सब रचनाएँ गद्यात्मक हैं। पद्य में सबसे प्राचीन रचनाएँ कुंदकुंदाचार्यकृत हैं (अनुमानत: तीसरी शती ई.)। उनके बारह तेरह ग्रंथ प्रकाश में आ चुके हैं, जिनके नाम हैं - समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियमसार, रयणसार, बारस अणुवेक्खा तथा दर्शन, बोध पाहुडादि अष्ट पाहुड। इन ग्रंथों में मुख्यतया जैन दर्शन, अध्यात्म एवं आचार का प्रतिपादन किया गया है। मुनि आचार संबंधी मुख्य रचनाएँ हैं- शिवार्य कृत भगवती आराधना और वट्टकेर कृत मूलाचार। अनुप्रेक्षा अर्थात् अनित्य, अशरण आदि बारह भावनाएँ भावशुद्धि के लिए जैन मुनियों के विशेष चिंतन और अभ्यास के विषय हैं। इन भावनाओं का संक्षेप में प्रतिपादन तो कुंदकुंदाचार्य ने अपनी 'बारस अणुवेक्खा' नामक रचना में किया है, उन्हीं का विस्तार से भले प्रकार वर्णन कार्त्तिकेयानुप्रेक्षा में पाया जाता है, जिसके कर्ता का नाम स्वामी कार्त्तिकेय है। (लगभग चौथी पाँचवीं शती ई.)। (१) यति वृषभाचार्यकृत तिलोयपण्णत्ति (९वीं शती ई. से पूर्व) में जैन मान्यतानुसार त्रैलाक्य का विस्तार से वर्णन किया गया है, तथा पद्मनंदीकृत जंबूदीवपण्णत्ति में जंबूद्वीप का। (२) स्याद्वाद और नय जैन न्यायशास्त्र का प्राण है। इसका प्रतिपादन शौरसेनी प्राकृत में देवसेनकृत लघु और बृहत् नयचक्र नामक रचनाओं में पाया जाता है (१०वीं शती ई.)। जैन कर्म सिद्धांत का प्रतिपादन करनेवाला शौरसेनी प्राकृत ग्रन्थ है- नेमिचंद्रसिद्धांत चक्रवर्ती कृत गोम्मटसार, जिसकी रचना गंगनरेश मारसिंह के राज्यकाल में उनके उन्हीं महामंत्री चामुंडराय की प्रेरणा से हुई थी, जिन्होंने मैसूर प्रदेश के श्रवणबेलगोला नगर में उस सुप्रसिद्ध विशाल बाहुबलि की मूर्ति का उद्घाटन कराया था (११वीं शती ई.)। उपर्युक्त समस्त रचनाएँ प्राकृत-गाथा-निबद्ध हैं। जैन साहित्य के अतिरक्त शौरसेनी प्राकृत का प्रयोग राजशेखरकृत कर्पूरमंजरी, रद्रदासकृत चंद्रलेखा, घनश्यामकृत आनंदसुंदरी नामक सट्टकों में भी पाया जाता है। यद्यपि कर्पूरमंजरी के प्रथम विद्वान् संपादक डा.

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सत्यव्रत शास्त्री

सत्यव्रत शास्त्री सत्यव्रत शास्त्री (जन्म:१९३०) संस्कृत भाषा के विद्वान एवं महत्वपूर्ण मनीषी रचनाकार हैं। वे तीन महाकाव्यों के रचनाकार हैं, जिनमें से प्रत्येक में लगभग एक हजार श्लोक हैं। वृहत्तमभारतम्, श्री बोधिसत्वचरितम् और वैदिक व्याकरण उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। वर्ष २००७ में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। डॉ॰ सत्यव्रत शास्त्री पंजाब विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से 'भर्तृहरि कृत वाक्यपदीय में दिक्काल मीमांसा' विषय पर पीएच.डी.

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समाज दर्पण

समाज दर्पण नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार रामचंद्र गिरि द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 1984 में नेपाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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साहित्य दर्पण

साहित्य दर्पण संस्कृत भाषा में लिखा गया साहित्य विषयक ग्रन्थ है जिसके लेखक पण्डित विश्वनाथ हैं। विश्वनाथ का समय 14वीं शताब्दी ठहराया जाता है। मम्मट के काव्यप्रकाश के समान ही साहित्यदर्पण भी साहित्यालोचना का एक प्रमुख ग्रन्थ है। काव्य के श्रव्य एवं दृश्य दोनों प्रभेदों के संबंध में इस ग्रन्थ में विचारों की विस्तृत अभिव्यक्ति हुई है। इसक विभाजन 10 परिच्छेदों में है। .

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सावित्री (पुस्तक)

सावित्री (Savitri: A Legend and a Symbol) महर्षि अरविन्द द्वारा रचित अंग्रेजी महाकाव्य है। यह महाभारत की एक कथा पर आधारित है। यह महाकाव्य महर्षि अरविन्द के देहावसान के समय अपूर्ण था जिसमें कुल लगभग 24,000 पंक्तियाँ हैं। इस ग्रन्थ का अनुवाद विश्व की कई भाषाओ में हुआ है। इसको लिखने में श्रीअरविन्द को २४ वर्ष लगे। श्री नीरदवरण के अनुसार सावित्री को श्रीअरविन्द ने १२ बार लिखा था - इसलिए कि योगबल से श्रीअरविन्द चेतना के आकाश मे ज्यों-ज्यों ऊपर उठते गए सावित्री का संशोधन अनिवार्य होता गाया| श्री अरविंद के अनुसार सत्य तक जाने का सही मार्ग दर्शन नहीं, काव्य का मार्ग है| श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' के अनुसार सावित्री मेधा का काव्य नहीं है, कोई भी विलक्षण काव्य केवल मेधा के बल पर नहीं लिखा जाता| वस्तुतः जिस लोक की छोटी सी प्रकाश कणिका महाकवियों के मन को उदभाषित करके उनसे अलौकिक काव्य का निर्माण करती है, सावित्री प्रणयन उसी लोक के सूर्य के साथ बैठ कर किया गया है या क्या पता, श्री अरविंद उस सूर्य के साथ एकाकार हो गए हों| .

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साकेत

साकेत श्री मैथिलीशरण गुप्त रचित महाकाव्य का नाम है। इसके लिए उन्हें १९३२ में मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था। .

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संस्कृत भाषा में रचित बौद्ध ग्रन्थ

बौद्ध धर्म के धर्मग्रन्थ केवल पालि में ही नहीं हैं बल्कि बहुत बड़ी संख्या में संस्कृत में भी हैं। कुछ ग्रन्थ पालि और संस्कृत के मिश्रित भाषा में भी रचे गये हैं। बुद्धवचनों के अलावा बौद्ध विद्वानों ने दर्शन, न्याय (तर्कशास्त्र), आदि के ग्रन्थ संस्कृत में लिखे हैं। बहुत से ग्रन्थ काल के गाल में समा गये किन्तु उसके बावजूद संस्कृत में रचित बौद्ध गर्न्थ विपुल मात्रा में मिलते हैं। .

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संगम साहित्य

संगम संगम के अन्य अर्थों के लिये यहां जाएं - संगम (बहुविकल्पी) ---- ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से लेकर ईसा के पश्चात दूसरी शताब्दी तक (लगभग) लिखे गए तमिल साहित्य को संगम साहित्य कहते हैं। लोककथाओं के अनुसार तमिल शासकों ने कुछ समयान्तरालों की अवधि में सम्मेलनों का आयोजन किया जिसमें लेखक अपने ज्ञान की चर्चा तर्क-वितर्क के रूप में करते थे। ऐसा करने से तमिल साहत्य का उत्तरोत्तर विकास हुआ। संगम साहित्य के अन्तर्गत ४७३ कवियों द्वारा रचित २३८१ पद्य हैं। इन कवियों में से कोई १०२ कवि अनाम हैं। दक्षिण भारत के प्राचीन इतिहास के लिये संगम साहित्य की उपयोगिता अनन्य है। इस साहित्य में उस समय के तीन राजवंशों का उल्लेख मिलता है: चोल, चेर और पाण्ड्य। संगम तमिल कवियों का संघ था जो पाण्ड्य शासको के संरक्षण में हुए थे। कुल तीन संगमों का जिक्र हुआ है।प्रथम संगम मदुरा में अगस्त्य ऋषि के अध्यक्षता में हुआ था। शिलप्पादिकारम, जीवक चिन्तामणि, तोल्क्पियम, मणिमेखले कुछ महत्वपूर्ण संगम महाकाव्य हैं। जैसा कि प्राचीन भारतीय इतिहास ग्रंथो में अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णनों की भरमार मिलती है, संगम साहित्य भी इसका अपवाद नहीं है। इसलिए इन ग्रंथो को आधार मानकर इतिहास लिखना उचित नही माना गया है फिर भी दक्षिण भारत के प्राचीन समय के इतिहास की रुपरेखा जानने में यह बहुत सहायक है। .

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सुधाकर द्विवेदी

पंडित सुधाकर द्विवेदी महामहोपाध्याय पण्डित सुधाकर द्विवेदी (अनुमानतः २६ मार्च १८५५ -- २८ नवंबर, १९१० ई. (मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी सोमवार संवत् १९६७)) भारत के आधुनिक काल के महान गणितज्ञ एवं उद्भट ज्योतिर्विद थे। आप हिन्दी साहित्यकार एवं नागरी के प्रबल पक्षधर भी थे। .

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सुशर्मा

हिन्दू धर्म के महाकाव्य महाभारत के अनुसार सुशर्मा त्रिगर्त देश का राजा था। वह एक महान योद्धा था और अर्जुन के कट्टर प्रतिद्वंदी था। उसने कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन के विरुद्ध संसप्तक शक्ति का प्रयोग किया। तेरहवें दिन के युद्ध में उसने अर्जुन को चक्रव्यूह से दुर रखने का कार्य किया, यद्यपि वह ये जानता था, कि वह अर्जुन को परास्त नहीं कर सकता। उसे ये कार्य इसलिए सौंपा गया था, क्योंकि कौरव सेनापति द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए चक्रव्यूह की रचना की हुई थी और पाण्डव सेना में अर्जुन के अतिरिक्त कोई भी चक्रव्यूह भेदन नहीं जानता था। वीर सुशर्मा अपने भाइयों समेत अर्जुन द्वारा उसी दिन के युद्ध मे मारा गया। .

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सुजना (एस. नारायण शेट्टी)

सुजना (एस. नारायण शेट्टी) कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य युगसंध्या के लिये उन्हें सन् 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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स्वयंभू (अपभ्रंश के कवि)

स्वयंभू, अपभ्रंश भाषा के महाकवि थे। स्वयंभू की उपलब्ध रचनाओं से उनके विषय में इतना ही ज्ञात होता है कि उनके पिता का नाम मारुतदेव और माता का पद्मिनी था। स्वयंभू छंदस् में एक दोहा माउरदेवकृत भी उद्धृत है, जो संभवत: कवि के पिता का ही है। उनके अनेक पुत्रों में से सबसे छोटे त्रिभुवन स्वयंभू थे, जिन्होंने कवि के उक्त दोनों काव्यों को उनकी मृत्यु के बाद अपनी रचना द्वारा पूरा किया था। कवि ने अपने रिट्ठीमिचरिउ के आरंभ में भरत, पिंगल, भामह और दण्डी के अतिरिक्त बाण और हर्ष का भी उल्लेख किया है, जिससे उनका काल ई. की सातवीं शती के मध्य के पश्चात् सिद्ध होता है। स्वयंभू का उल्लेख पुष्पदन्त ने अपने महापुराण में किया है, जो ई. सन् 965 में पूर्ण हुआ था। अतएव स्वयंभू का रचनाकाल इन्ही दो सीमाओं के भीतर सिद्ध होता है। अभी तक इनकी तीन रचनाएँ उपलब्ध हुई हैं - पउमचरिउ (पद्मचरित), रिट्ठणेमिचरिउ (अरिष्ट नेमिचरित या हरिवंश पुराण) और स्वयंभू छंदस्। इनमें की प्रथम दो रचनाएँ काव्यात्मक तथा तीसरी प्राकृत-अपभ्रंश छंदशास्त्रविषयक है। ज्ञात अपभ्रंश प्रबंध काव्यों में स्वयंभू की प्रथम दो रचनाएँ ही सर्वप्राचीन, उत्कृष्ट और विशाल पाई जाती हैं और इसीलिए उन्हें अपभ्रंश का आदि महाकवि भी कहा गया है। स्वयंभू की रचनाओं में महाकाव्य के सभी गुण सुविकसित पाए जाते हैं और उनका पश्चात्कालीन अपभ्रंश कविता पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। पुष्पदंत आदि कवियों ने उनका नाम बड़े आदर से लिया है। स्वयंभू ने स्वयं अपने से पूर्ववर्ती चउमुह (चतुर्मुख) नामक कवि का उल्लेख किया है, जिनके पद्धडिया, छंडनी, दुबई तथा ध्रुवक छंदों को उन्होंने अपनाया है। दुर्भाग्यवश चतुर्मुख की कोई स्वतंत्र रचना अभी तक उपलब्ध नहीं हो सकी है। .

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स्वातंत्र्यसंभवम्

स्वातंत्र्यसंभवम् विख्यात संस्कृत साहित्यकार रेवाप्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 1991 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सीतायन

सीतायन मैथिली भाषा के विख्यात साहित्यकार वैद्यनाथ मल्लिक ‘विधु’ द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 1976 में मैथिली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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हनुमान

हनुमान (संस्कृत: हनुमान्, आंजनेय और मारुति भी) परमेश्वर की भक्ति (हिंदू धर्म में भगवान की भक्ति) की सबसे लोकप्रिय अवधारणाओं और भारतीय महाकाव्य रामायण में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में प्रधान हैं। वह कुछ विचारों के अनुसार भगवान शिवजी के ११वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का मर्दन किया, वह अत्यन्त प्रसिद्ध है। ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले तथा लोकमान्यता के अनुसार त्रेतायुग के अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव के एक गुफ़ा में हुआ था। इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह था। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मारुत (संस्कृत: मरुत्) का अर्थ हवा है। नंदन का अर्थ बेटा है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान "मारुति" अर्थात "मारुत-नंदन" (हवा का बेटा) हैं। हनुमान प्रतिमा .

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हरिचन्द्र

हरिचंद्र (हरिश्चंद्र?) दिगंबर जैन संप्रदाय के कवि थे। इन्होंने माघ की शैली पर धर्मशर्माभ्युदय नामक इक्कीस सर्गों का महाकाव्य रचा, जिसमें पंद्रहवें तीर्थंकर धर्मनाथ का चरित वर्णित है। ये महाकवि बाण द्वारा उद्धृत गद्यकार भट्टार हरिचंद्र से भिन्न थे, क्योंकि कि ये महाकाव्यकार थे, गद्यकाव्यकार थे, गद्यकार नहीं। हरिचंद्र का समय ईसा की ग्यारहवीं शताब्दी माना जाता है। .

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हरिनारायण दीक्षित

हरिनारायण दीक्षित संस्कृत भाषा के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य भीष्मचरितम् के लिये उन्हें सन् 1992 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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हरेकृष्ण शतपथी

हरेकृष्ण शतपथी संस्कृत भाषा के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य भारतायनम् के लिये उन्हें सन् 2011 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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हिन्दू मंदिर स्थापत्य

अंकोरवाट मंदिर (कम्बोडिया) भारतीय स्थापत्य में हिन्दू मन्दिर का विशेष स्थान है। हिन्दू मंदिर में अन्दर एक गर्भगृह होता है जिसमें मुख्य देवता की मूर्ति स्थापित होती है। गर्भगृह के ऊपर टॉवर-नुमा रचना होती है जिसे शिखर (या, विमान) कहते हैं। मन्दिर के गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा के लिये स्थान होता है। इसके अलावा मंदिर में सभा के लिये कक्ष हो सकता है। .

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हिन्दी से सम्बन्धित प्रथम

यहाँ पर हिन्दी से सम्बन्धित सबसे पहले साहित्यकारों, पुस्तकों, स्थानों आदि के नाम दिये गये हैं।.

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जयद्रथ

हिन्दू धर्म के महाकाव्य महाभारत में जयद्रथ सिंधु प्रदेश के राजा थे। इनका विवाह कौरवों की एकमात्र बहन दुःशला से हुई। जयद्रथ सिंधु नरेश वृद्धक्षत्र के पुत्र थे। वृद्धक्षत्र के यहाँ जयद्रथ का जन्म काफी समय बाद हुआ था और उन्हें साथ ही यह वरदान प्राप्त हुआ कि जयद्रथ का वध कोई सामान्य व्यक्ति नहीं कर पायेगा। उसने साथ ही यह वरदान भी प्राप्त किया कि जो भी जयद्रथ को मारकर जयद्रथ का सिर ज़मीन पर गिरायेगा, उसके सिर के हज़ारों टुकड़े हो जायेंगे। जयद्रथ का वध अर्जुन ने किया था। .

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जातक

जातक कथाओं पर आधारित भूटानी चित्रकला (१८वीं-१९वीं शताब्दी) जातक या जातक पालि या जातक कथाएं बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक का सुत्तपिटक अंतर्गत खुद्दकनिकाय का १०वां भाग है। इन कथाओं में महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथायें हैं। जो मान्यता है कि खुद गौतमबुद्ध जी के द्वारा कहे गए है, हालांकि की कुछ विद्वानों का मानना है कि कुछ जातक कथाएँ, गौतमबुद्ध के निर्वाण के बाद उनके शिष्यों द्वारा कही गयी है। विश्व की प्राचीनतम लिखित कहानियाँ जातक कथाएँ हैं जिसमें लगभग 600 कहानियाँ संग्रह की गयी है। यह ईसवी संवत से 300 वर्ष पूर्व की घटना है। इन कथाओं में मनोरंजन के माध्यम से नीति और धर्म को समझाने का प्रयास किया गया है। जातक खुद्दक निकाय का दसवाँ प्रसिद्ध ग्रन्थ है। जातक को वस्तुतः ग्रन्थ न कहकर ग्रन्थ समूह ही कहना अधिक उपयुक्त होगा। उसका कोई-कोई कथानक पूरे ग्रन्थ के रूप में है और कहीं-कहीं उसकी कहानियों का रूप संक्षिप्त महाकाव्य-सा है। जातक शब्द जन धातु से बना है। इसका अर्थ है भूत अथवा भाव। ‘जन्’ धातु में ‘क्त’ प्रत्यय जोड़कर यह शब्द निर्मित होता है। धातु को भूत अर्थ में प्रयुक्त करते हुए जब अर्थ किया जाता है तो जातभूत कथा एवं रूप बनता है। भाव अर्थ में प्रयुक्त करने पर जात-जनि-जनन-जन्म अर्थ बनता है। इस तरह ‘जातक’ शब्द का अ र्थ है, ‘जात’ अर्थात् जन्म-सम्बन्धीं। ‘जातक’ भगवान बुद्ध के पूर्व जन्म सम्बन्धी कथाएँ है। बुद्धत्व प्राप्त कर लेने की अवस्था से पूर्व भगवान् बुद्ध बोधिसत्व कहलाते हैं। वे उस समय बुद्धत्व के लिए उम्मीदवार होते हैं और दान, शील, मैत्री, सत्य आदि दस पारमिताओं अथवा परिपूर्णताओं का अभ्यास करते हैं। भूत-दया के लिए वे अपने प्राणों का अनेक बार बलिदान करते हैं। इस प्रकार वे बुद्धत्व की योग्यता का सम्पादन करते हैं। बोधिसत्व शब्द का अर्थ ही है बोधि के लिए उद्योगशील प्राणी। बोधि के लिए है सत्व (सार) जिसका ऐसा अर्थ भी कुछ विद्वानों ने किया है। पालि सुत्तों में हम अनेक बार पढ़ते हैं, ‘‘सम्बोधि प्राप्त होने से पहले, बुद्ध न होने के समय, जब मैं बोधिसत्व ही था‘‘ आदि। अतः बोधिसत्व से स्पष्ट तात्पर्य ज्ञान, सत्य दया आदि का अभ्यास करने वाले उस साधक से है जिसका आगे चलकर बुद्ध होना निश्चित है। भगवान बुद्ध भी न केवल अपने अन्तिम जन्म में बुद्धत्व-प्राप्ति की अवस्था से पूर्व बोधिसत्व रहे थे, बल्कि अपने अनेक पूर्व जन्मों में भी बोधिसत्व की चर्या का उन्होंने पालन किया था। जातक की कथाएँ भगवान् बुद्ध के इन विभिन्न पूर्वजन्मों से जबकि वे बोधिसत्व रहे थे, सम्बन्धित हैं। अधिकतर कहानियों में वे प्रधान पात्र के रूप में चित्रित है। कहानी के वे स्वयं नायक है। कहीं-कहीं उनका स्थान एक साधारण पात्र के रूप में गौण है और कहीं-कहीं वे एक दर्शक के रूप में भी चित्रित किये गये हैं। प्रायः प्रत्येक कहानी का आरम्भ इस प्रकार होता है-‘‘एक समय राजा ब्रह्मदत्त के वाराणसी में राज्य करते समय (अतीते वाराणसिंय बह्मदत्ते रज्ज कारेन्ते) बोधिसत्व कुरंग मृग की योनि से उत्पन्न हुए अथवा...

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जानकीहरण (महाकाव्य)

जानकीहरण श्रीलंका के महाकवि कुमारदास द्वारा रचित उच्च कोटि का महाकाव्य है। .

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जगद्गुरु रामभद्राचार्य ग्रंथसूची

जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य (जगद्गुरु रामभद्राचार्य अथवा स्वामी रामभद्राचार्य के रूप में अधिक प्रसिद्ध) चित्रकूट धाम, भारत के एक हिंदू धार्मिकनेता, शिक्षाविद्, संस्कृतविद्वान, बहुभाषाविद, कवि, लेखक, टीकाकार, दार्शनिक, संगीतकार, गायक, नाटककार और कथाकलाकार हैं। उनकी रचनाओं में कविताएँ, नाटक, शोध-निबंध, टीकाएँ, प्रवचन और अपने ग्रंथों पर स्वयं सृजित संगीतबद्ध प्रस्तुतियाँ सम्मिलित हैं। वे ९० से अधिक साहित्यिक कृतियों की रचना कर चुके हैं, जिनमें प्रकाशित पुस्तकें और अप्रकाशित पांडुलिपियां, चार महाकाव्य,संस्कृत और हिंदी में दो प्रत्येक। तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस पर एक हिंदी भाष्य,अष्टाध्यायी पर पद्यरूप में संस्कृत भाष्य और प्रस्थानत्रयी शास्त्रों पर संस्कृत टीकाएँ शामिल हैं।दिनकर २००८, प्रप्र.

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ज्ञान सिंह पगोच

ज्ञान सिंह पगोच डोगरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य महात्मा विदुर के लिये उन्हें सन् 2007 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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जौहर

The Burning of the Rajput women, during the siege of Chitor जौहर पुराने समय में भारत में राजपूत स्त्रियों द्वारा की जाने वाली क्रिया थी। जब युद्ध में हार निश्चित हो जाती थी तो पुरुष मृत्युपर्यन्त युद्ध हेतु तैयार होकर वीरगति प्राप्त करने निकल जाते थे तथा स्त्रियाँ जौहर कर लेती थीं अर्थात जौहर कुंड में आग लगाकर खुद भी उसमें कूद जाती थी। जौहर कर लेने का कारण युद्ध में हार होने पर शत्रु राजा द्वारा हरण किये जाने का भय होता था। जौहर क्रिया में राजपूत स्त्रियाँ जौहर कुंड को आग लगाकर उसमें स्वयं का बलिदान कर देती थी। जौहर क्रिया की सबसे अधिक घटनायें भारत पर मुगल आदि बाहरी आक्रमणकारियों के समय हुयी। ये मुस्लिम आक्रमणकारी हमला कर हराने के पश्चात स्त्रियों को लूट कर उनका शीलभंग करते थे। इसलिये स्त्रियाँ हार निश्चित होने पर जौहर ले लेती थी। इतिहास में जौहर के अनेक उदाहरण मिलते हैं। हिन्दी के ओजस्वी कवि श्यामनारायण पाण्डेय ने अपना प्रसिद्ध महाकाव्य जौहर चित्तौड की महारानी पद्मिनी के वीरांगना चरित्र को चित्रित करने के उद्देश्य को लेकर ही लिखा थाDas, Sisir Kumar, "A Chronology of Literary Events / 1911–1956", in Das, Sisir Kumar and various,, 1995, published by Sahitya Akademi, ISBN 978-81-7201-798-9, retrieved via Google Books on December 23, 2008।.राजस्थान की जौहर परम्परा पर आधारित उनका यह महाकाव्य हिन्दी जगत में काफी चर्चित रहा। .

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जीवक चिन्तामणि

जीवक चिन्तामणि (तमिल: சீவக சிந்தாமணி / चीवक चिन्तामणि) एक तमिल महाकाव्य है। यह जैन मुनि तिरुतक्कदेवर द्वारा रचित जैन धर्म ग्रन्थ है। इस ग्रंथ को तमिल साहित्य के 5 प्रसिद्ध ग्रंथों में गिना जाता है। 13 खण्डों में विभाजित इस ग्रंथ में कुल 3,145 पद हैं। इसमें कवि ने 'जीवक' नामक राजकुमार का जीवनवृत्त प्रस्तुत किया है। .

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वलैयापति

वलैयापति तमिल भाषा में लिखित एक महाकाव्य है। इसका लेखक नाम नहीं जानता है। यह पांच तमिल महाकाव्य में एक है। इसकी समय अवधि दसवीं शताब्दी से पहले होने का अनुमान किया गया है। श्रेणी:तमिल साहित्य.

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वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीक (संस्कृत: महर्षि वाल्मीक) प्राचीन भारतीय महर्षि हैं। ये आदिकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होने संस्कृत में रामायण की रचना की। उनके द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाई। रामायण एक महाकाव्य है जो कि श्रीराम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य से, कर्तव्य से, परिचित करवाता है।http://timesofindia.indiatimes.com/india/Maharishi-Valmeki-was-never-a-dacoit-Punjab-Haryana-HC/articleshow/5960417.cms आदिकवि शब्द 'आदि' और 'कवि' के मेल से बना है। 'आदि' का अर्थ होता है 'प्रथम' और 'कवि' का अर्थ होता है 'काव्य का रचयिता'। वाल्मीकि ऋषि ने संस्कृत के प्रथम महाकाव्य की रचना की थी जो रामायण के नाम से प्रसिद्ध है। प्रथम संस्कृत महाकाव्य की रचना करने के कारण वाल्मीकि आदिकवि कहलाये। वाल्मीकि एक आदि कवि थे पर उनकी विशेषता यह थी कि वे कोई ब्राह्मण नहीं थे, बल्कि केवट थे।। .

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वाल्मीकि रामायण

वाल्मीकीय रामायण संस्कृत साहित्य का एक आरम्भिक महाकाव्य है जो संस्कृत भाषा में अनुष्टुप छन्दों में रचित है। इसमें श्रीराम के चरित्र का उत्तम एवं वृहद् विवरण काव्य रूप में उपस्थापित हुआ है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित होने के कारण इसे 'वाल्मीकीय रामायण' कहा जाता है। वर्तमान में राम के चरित्र पर आधारित जितने भी ग्रन्थ उपलब्ध हैं उन सभी का मूल महर्षि वाल्मीकि कृत 'वाल्मीकीय रामायण' ही है। 'वाल्मीकीय रामायण' के प्रणेता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि' माना जाता है और इसीलिए यह महाकाव्य 'आदिकाव्य' माना गया है। यह महाकाव्य भारतीय संस्कृति के महत्त्वपूर्ण आयामों को प्रतिबिम्बित करने वाला होने से साहित्य रूप में अक्षय निधि है। .

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वासुदेव वामन शास्त्री खरे

वासुदेव वामन शास्त्री खरे (जन्म सं. १८५८, मृत्यु सं. १९२४) प्रसिद्ध शिक्षाविद तथा इतिहासकार थे। .

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वाग्भट

वाग्भट नाम से कई महापुरुष हुए हैं। इनका वर्णन इस प्रकार है: .

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विद्याधर (साहित्यशास्त्री)

विद्याधर 'एकावली' नामक ग्रंथ के रचयिता थे। एकावली साहित्यशास्त्र का महत्वपूर्ण एवं विवेचनात्मक ग्रंथ है। एकावली की कारिकाएँ उनपर वृत्ति और प्रयुक्त उदाहरण ग्रंथकार द्वारा निर्मित हैं। एकावली के आठ उन्मेष हैं। प्रथम उन्मेष में काव्यहेतु, काव्यलक्षण और भामह आदि पूर्ववर्ती आचार्यों के मत का विवेचन है। द्वितीय में शब्द, अर्थ और अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजना, तृतीय में ध्वनि एवं उसके भेद, चतुर्थ में गुणीभूत व्यंग्य, पंचम में तीन गुण और रीति, षष्ठ उन्मेष में दोष, सप्तम में शब्दालंकार और अष्टम उन्मेष में अर्थालंकारों का निरूपण किया गया है। विद्याधर ने रुय्यक द्वारा नवाविष्कृत परिणाम, विकल्प और विचित्र नाम के अलंकारों को भी स्वीकार किया है। विद्याधर ने एकावली में प्रयुक्त स्वनिर्मित उदाहरणों में उड़ीसा के नरेश नरसिंह का वर्णन एवं प्रशस्तिगान किया है। इसका राज्यकाल ई. १२८०-१३३४ माना जाता है। विद्याधर ने रुय्यक और नैषधकार का भी उल्लेख किया है जो १२वीं सदी के हैं। सिंहभूपाल (ई. १३३०) ने अपने ग्रंथ 'रसार्णव' में एकावली का उल्लेख किया है। अत: विद्याधर का समय संभवत: १२७५-१३२५ ई. के लगभग स्वीकार्य होता है। विद्याधर की एकावली पर तरला नाम की टीका प्रकाशित है। इसके टीककार कोलाचल मल्लिनाथ सूरि हैं, जिन्होंने, कालिदास, माघ, भारवि, श्रीहर्ष आदि के महाकाव्यों पर टीका की है। मल्लिनाथ का समय ईसा की १४वीं सदी का अंतिम चरण मान्य है। इन्होंने अपनी अन्य टीकाओं में भी एकावली के उद्धरण दिए हैं। .

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विलंका रामायण

विलंका रामायण १५वीं शताब्दी में सारला दास द्वारा विरचित ओड़िया महाकाव्य है। .

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विश्व कविता दिवस

विश्व कविता दिवस (अंग्रेजी: World Poetry Day) प्रतिवर्ष २१ मार्च को मनाया जाता है। यूनेस्को ने इस दिन को विश्व कविता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा वर्ष 1999 में की थी जिसका उद्देश्य को कवियों और कविता की सृजनात्मक महिमा को सम्मान देने के लिए था। .

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विश्वभानु

विश्वभानु विख्यात संस्कृत साहित्यकार पी. के. नारायण पिळ्ळै द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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विष्णु सीताराम सुकथंकर

विष्णु सीताराम सुकथंकर (1887-1943) संस्कृत के विद्वान एवं भाषावैज्ञानिक थे। .

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वैदिक संस्कृत

ऋग्वेद में वैदिक संस्कृत का सब से प्राचीन रूप मिलता है ऋग्वेद १०.९०:२ का श्लोक: यह पुरुष वह सर्वस्व है जो हुआ है (भूतं) या होगा (भव्यं)। अमरता का ईश्वर (ईशानः) अन्न से और भी विस्तृत (अतिऽरोहति) होता है। वैदिक संस्कृत २००० ईसापूर्व (या उस से भी पहले) से लेकर ६०० ईसापूर्व तक बोली जाने वाली एक हिन्द-आर्य भाषा थी। यह संस्कृत की पूर्वज भाषा थी और आदिम हिन्द-ईरानी भाषा की बहुत ही निकट की संतान थी। उस समय फ़ारसी और संस्कृत का विभाजन बहुत नया था, इसलिए वैदिक संस्कृत और अवस्ताई भाषा (प्राचीनतम ज्ञात ईरानी भाषा) एक-दूसरे के बहुत क़रीब हैं। वैदिक संस्कृत हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की हिन्द-ईरानी भाषा शाखा की सब से प्राचीन प्रमाणित भाषा है।, Alain Daniélou, Kenneth Hurry, Inner Traditions / Bear & Co, 2003, ISBN 978-0-89281-923-2,...

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वैदिक व्याकरण

संस्कृत का सबसे प्राचीन (वेदकालीन) व्याकरण 'वैदिक व्याकरण' कहलाता है। यह पाणिनीय व्याकरण से कुछ भिन्न था। .

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वैद्यनाथ मल्लिक विधु

वैद्यनाथ मल्लिक विधु मैथिली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य सीतायन के लिये उन्हें सन् 1976 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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वैशम्पायन

वैशम्पायन वेद व्यास के विद्वान शिष्य थे। हिन्दुओं के दो महाकाव्यों में से एक महाभारत को मानव जाति में प्रचलित करने का श्रेय उन्हीं को जाता है। पाण्डवों के पौत्र महाबलि परीक्षित के पुत्र जनमेजय को वैशम्पायन ने एक यज्ञ के दौरान यह कथा सुनाई थी। कृष्ण यजुर्वेद के प्रवर्तक भी ऋषि वैशम्पायन ही है जिन्हे उनके गुरु कृष्णद्वैपायन ने यह कारया सौपा था। इनके शिष्य याज्यावल्क्य ऋषि थे जिनसे वाद विवाद होने के कारण याज्ञवल्क्य ने शुक्ल यजुर्वेद को प्रसारित किया| श्रेणी:श्रीमद्भागवत श्रेणी:पौराणिक कथाएँ श्रेणी:महाभारत श्रेणी:महाभारत के पात्र.

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खण्डकाव्य

खण्डकाव्य साहित्य में प्रबंध काव्य का एक रूप है। जीवन की किसी घटना विशेष को लेकर लिखा गया काव्य खण्डकाव्य है। "खण्ड काव्य' शब्द से ही स्पष्ट होता है कि इसमें मानव जीवन की किसी एक ही घटना की प्रधानता रहती है। जिसमें चरित नायक का जीवन सम्पूर्ण रूप में कवि को प्रभावित नहीं करता। कवि चरित नायक के जीवन की किसी सर्वोत्कृष्ट घटना से प्रभावित होकर जीवन के उस खण्ड विशेष का अपने काव्य में पूर्णतया उद्घाटन करता है। प्रबन्धात्मकता महाकाव्य एवं खण्ड काव्य दोनों में ही रहती है परंतु खण्ड काव्य के कथासूत्र में जीवन की अनेकरुपता नहीं होती। इसलिए इसका कथानक कहानी की भाँति शीघ्रतापूर्वक अन्त की ओर जाता है। महाकाव्य प्रमुख कथा केसाथ अन्य अनेक प्रासंगिक कथायें भी जुड़ी रहती हैं इसलिए इसका कथानक उपन्यास की भाँति धीरे-धीरे फलागम की ओर अग्रसर होता है। खण्डाकाव्य में केवल एक प्रमुख कथा रहती है, प्रासंगिक कथाओं को इसमें स्थान नहीं मिलने पाता है। संस्कृत साहित्य में इसकी जो एकमात्र परिभाषा साहित्य दर्पण में उपलब्ध है वह इस प्रकार है- इस परिभाषा के अनुसार किसी भाषा या उपभाषा में सर्गबद्ध एवं एक कथा का निरूपक ऐसा पद्यात्मक ग्रंथ जिसमें सभी संधियां न हों वह खंडकाव्य है। वह महाकाव्य के केवल एक अंश का ही अनुसरण करता है। तदनुसार हिंदी के कतिपय आचार्य खंडकाव्य ऐसे काव्य को मानते हैं जिसकी रचना तो महाकाव्य के ढंग पर की गई हो पर उसमें समग्र जीवन न ग्रहण कर केवल उसका खंड विशेष ही ग्रहण किया गया हो। अर्थात् खंडकाव्य में एक खंड जीवन इस प्रकार व्यक्त किया जाता है जिससे वह प्रस्तुत रचना के रूप में स्वत: प्रतीत हो। वस्तुत: खंडकाव्य एक ऐसा पद्यबद्ध काव्य है जिसके कथानक में एकात्मक अन्विति हो; कथा में एकांगिता (साहित्य दर्पण के शब्दों में एकदेशीयता) हो तथा कथाविन्यास क्रम में आरंभ, विकास, चरम सीमा और निश्चित उद्देश्य में परिणति हो और वह आकार में लघु हो। लघुता के मापदंड के रूप में आठ से कम सर्गों के प्रबंधकाव्य को खंडकाव्य माना जाता है। .

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खिस्तुभागवतम्

खिस्तुभागवतम् विख्यात संस्कृत साहित्यकार पी.सी. देवसिया द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 1980 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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गंगा नदी

गंगा (गङ्गा; গঙ্গা) भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है। यह भारत और बांग्लादेश में कुल मिलाकर २,५१० किलोमीटर (कि॰मी॰) की दूरी तय करती हुई उत्तराखण्ड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुन्दरवन तक विशाल भू-भाग को सींचती है। देश की प्राकृतिक सम्पदा ही नहीं, जन-जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। २,०७१ कि॰मी॰ तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। १०० फीट (३१ मी॰) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ तथा देवी के रूप में की जाती है। भारतीय पुराण और साहित्य में अपने सौन्दर्य और महत्त्व के कारण बार-बार आदर के साथ वंदित गंगा नदी के प्रति विदेशी साहित्य में भी प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णन किये गये हैं। इस नदी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियाँ तो पायी ही जाती हैं, मीठे पानी वाले दुर्लभ डॉलफिन भी पाये जाते हैं। यह कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बांध और नदी परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से सम्बन्धित ज़रूरतों को पूरा करती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस अनुपम शुद्धीकरण क्षमता तथा सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसको प्रदूषित होने से रोका नहीं जा सका है। फिर भी इसके प्रयत्न जारी हैं और सफ़ाई की अनेक परियोजनाओं के क्रम में नवम्बर,२००८ में भारत सरकार द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी तथा इलाहाबाद और हल्दिया के बीच (१६०० किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है। .

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गुर्जर

सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति:भारत उपवन, अक्षरधाम मन्दिर, नई दिल्ली गुर्जर समाज, प्राचीन एवं प्रतिष्ठित समाज में से एक है। यह समुदाय गुज्जर, गूजर, गोजर, गुर्जर, गूर्जर और वीर गुर्जर नाम से भी जाना जाता है। गुर्जर मुख्यत: उत्तर भारत, पाकिस्तान और अफ़्ग़ानिस्तान में बसे हैं। इस जाति का नाम अफ़्ग़ानिस्तान के राष्ट्रगान में भी आता है। गुर्जरों के ऐतिहासिक प्रभाव के कारण उत्तर भारत और पाकिस्तान के बहुत से स्थान गुर्जर जाति के नाम पर रखे गए हैं, जैसे कि भारत का गुजरात राज्य, पाकिस्तानी पंजाब का गुजरात ज़िला और गुजराँवाला ज़िला और रावलपिंडी ज़िले का गूजर ख़ान शहर।; आधुनिक स्थिति प्राचीन काल में युद्ध कला में निपुण रहे गुर्जर मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। गुर्जर अच्छे योद्धा माने जाते थे और इसीलिए भारतीय सेना में अभी भी इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है| गुर्जर महाराष्ट्र (जलगाँव जिला), दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में फैले हुए हैं। राजस्थान में सारे गुर्जर हिंदू हैं। सामान्यत: गुर्जर हिन्दू, सिख, मुस्लिम आदि सभी धर्मो में देखे जा सकते हैं। मुस्लिम तथा सिख गुर्जर, हिन्दू गुर्जरो से ही परिवर्तित हुए थे। पाकिस्तान में गुजरावालां, फैसलाबाद और लाहौर के आसपास इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है। .

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गुजराती साहित्य

गुजराती भाषा आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में से एक है और इसका विकास शौरसेनी प्राकृत के परवर्ती रूप 'नागर अपभ्रंश' से हुआ है। गुजराती भाषा का क्षेत्र गुजरात, सौराष्ट्र और कच्छ के अतिरिक्त महाराष्ट्र का सीमावर्ती प्रदेश तथा राजस्थान का दक्षिण पश्चिमी भाग भी है। सौराष्ट्री तथा कच्छी इसकी अन्य प्रमुख बोलियाँ हैं। हेमचंद्र सूरि ने अपने ग्रंथों में जिस अपभ्रंश का संकेत किया है, उसका परवर्ती रूप 'गुर्जर अपभ्रंश' के नाम से प्रसिद्ध है और इसमें अनेक साहित्यिक कृतियाँ मिलती हैं। इस अपभ्रंश का क्षेत्र मूलत: गुजरात और पश्चिमी राजस्थान था और इस दृष्टि से पश्चिमी राजस्थानी अथवा मारवाड़ी, गुजराती भाषा से घनिष्ठतया संबद्ध है। गुजराती साहित्य में दो युग माने जाते हैं-.

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गोदान (प्रेमचंद का उपन्यास)

गोदान, प्रेमचन्द का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण उपन्यास माना जाता है। कुछ लोग इसे उनकी सर्वोत्तम कृति भी मानते हैं। इसका प्रकाशन १९३६ ई० में हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई द्वारा किया गया था। इसमें भारतीय ग्राम समाज एवं परिवेश का सजीव चित्रण है। गोदान ग्राम्य जीवन और कृषि संस्कृति का महाकाव्य है। इसमें प्रगतिवाद, गांधीवाद और मार्क्सवाद (साम्यवाद) का पूर्ण परिप्रेक्ष्य में चित्रण हुआ है। गोदान हिंदी के उपन्यास-साहित्य के विकास का उज्वलतम प्रकाशस्तंभ है। गोदान के नायक और नायिका होरी और धनिया के परिवार के रूप में हम भारत की एक विशेष संस्कृति को सजीव और साकार पाते हैं, ऐसी संस्कृति जो अब समाप्त हो रही है या हो जाने को है, फिर भी जिसमें भारत की मिट्टी की सोंधी सुबास भरी है। प्रेमचंद ने इसे अमर बना दिया है। .

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गीतरामायणम्

गीतरामायणम् (२०११), शब्दार्थ: गीतों में रामायण, जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा २००९ और २०१० ई में रचित गीतकाव्य शैली का एक संस्कृत महाकाव्य है। इसमें संस्कृत के १००८ गीत हैं जो कि सात कांडों में विभाजित हैं - प्रत्येक कांड एक अथवा अधिक सर्गों में पुनः विभाजित है। कुल मिलाकर काव्य में २८ सर्ग हैं और प्रत्येक सर्ग में ३६-३६ गीत हैं। इस महाकाव्य के गीत भारतीय लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत के विभिन्न गीतों की ढाल, लय, धुन अथवा राग पर आधारित हैं। प्रत्येक गीत रामायण के एक या एकाधिक पात्र अथवा कवि द्वारा गाया गया है। गीत एकालाप और संवादों के माध्यम से क्रमानुसार रामायण की कथा सुनाते हैं। गीतों के बीच में कुछ संस्कृत छंद हैं, जो कथा को आगे ले जाते हैं। काव्य की एक प्रतिलिपि कवि की हिन्दी टीका के साथ जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन संस्कृत कवि अभिराज राजेंद्र मिश्र द्वारा जनवरी १४, २०११ को मकर संक्रांति के दिन किया गया था। .

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ओड़िया साहित्य

१५०० इसवी तक उड़िया साहित्य में धर्म, देव-देवी के चित्रण ही मुख्य ध्येय हुआ करता था पर साहित्य तो सम्पूर्ण रूप से काव्य पर ही आधारित था। उड़िया भाषा के प्रथम महान कवि झंकड़ के सारला दास रहे जिन्हें 'उड़िशा के व्यास' के रूप में जाना जाता है। इन्होने देवी की स्तुति में चंडी पुराण व विलंका रामायण की रचना की थी। 'सारला महाभारत' आज भी घर-घर में पढ़ा जाता है। अर्जुन दास द्वारा लिखित 'राम-विभा' को उड़िया भाषा की प्रथम गीतकाव्य या महाकाव्य माना जाता है। उड़िया साहित्य को काल और प्रकृति के अनुसार निम्नलिखित प्रकार से बाँटा जा सकता है.

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ओडिसी (बहुविकल्पी)

ओडिसी शब्द के दो अर्थ हो सकते हैं.

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ओदिसी

ओडेसी का प्राचीन ज़ूनानी निदर्श चित्र ओदिसी (प्राचीन यूनानी भाषा: Ὀδυσσεία Odusseia), होमरकृत दो प्रख्यात यूनानी महाकाव्यों में से एक है। इलियड में होमर ने ट्रोजन युद्ध तथा उसके बाद की घटनाओं का वर्णन किया है जबकि ओदिसी में ट्राय के पतन के बाद ईथाका के राजा ओदिसियस की, जिसे यूलिसीज़ नाम से भी जाना जाता है, उस रोमांचक यात्रा का वर्णन है जिसमें वह अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए, 10 वर्ष बाद अपने घर पहुँचता है। ओडेसी ई.पू.

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आमा

आमा नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार तुलसी राम शर्मा ‘कश्यप’ द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 1990 में नेपाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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इलियाड

इलियड का प्राचीन ज़ूनानी निदर्श चित्र इलियड या ईलियद (ILIAD, प्राच. यून. Ἰλιάς Iliás) — प्राचीन यूनानी शास्त्रीय (क्लासिकल) महाकाव्य है, जो यूरोप के आदिकवि होमर की रचना मानी जाती है। इसका नामकरण ईलियन नगर (ट्राय) के युद्ध के वर्णन के कारण हुआ है। समग्र रचना 24 पुस्तकों में विभक्त है और इसमें 15,693 पंक्तियाँ हैं। इलियड में ट्राय राज्य के साथ ग्रीक लोंगो के युद्ध का वर्णन है। इस महाकाव्य में ट्राय के विजय और ध्वंस की कहानी तथा युनानी वीर एकलिस के वीरत्व की गाथाएं हैं। .

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कथानक

कथांतर्गत "कार्यव्यापार की योजना" को कथानक (Plot) कहते हैं। "कथानक" और "कथा" दोनों ही शब्द संस्कृत "कथ" धातु से उत्पन्न हैं। संस्कृत साहित्यशास्त्र में "कथा' शब्द का प्रयोग एक निश्चित काव्यरूप के अर्थ में किया जाता रहा है किंतु कथा शब्द का सामान्य अर्थ है-"वह जो कहा जाए'। यहाँ कहनेवाले के साथ-साथ सुननेवाले की उपस्थिति भी अंतर्भुक्त है कयोंकि "कहना' शब्द तभी सार्थक होता है जब उसे सुननेवाला भी कोई हो। श्रोता के अभाव में केवल "बोलने' या "बड़बड़ाने' की कल्पना की जा सकती है, "कहने' की नहीं। इसके साथ ही, वह सभी कुछ "जो कहा जाए' कथा की परिसीमाओं में नहीं सिमट पाता। अत: कथा का तात्पर्य किसी ऐसी "कथित घटना' के कहने या वर्णन करने से होता है जिसका एक निश्चित क्रम एवं परिणाम हो। ई.एम.

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कम्बन

एक मध्ययुगीन तमिल कवि और कंब रामायण के लेखक थे कंबन तमिल रामायण के रचयिता थे। .

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कर्ण–कुंती

कर्ण–कुंती नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार तुलसी बहादुर क्षेत्री ‘अपतन’ द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 1989 में नेपाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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काञ्चीनाथ झा किरण

कांचीनाथ झा किरण मैथिली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य पाराशर के लिये उन्हें सन् 1989 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित(मरणोपरांत) किया गया। .

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कामायनी

कामायनी हिंदी भाषा का एक महाकाव्य है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं। यह आधुनिक छायावादी युग का सर्वोत्तम और प्रतिनिधि हिंदी महाकाव्य है। 'प्रसाद' जी की यह अंतिम काव्य रचना 1936 ई. में प्रकाशित हुई, परंतु इसका प्रणयन प्राय: 7-8 वर्ष पूर्व ही प्रारंभ हो गया था। 'चिंता' से प्रारंभ कर 'आनंद' तक 15 सर्गों के इस महाकाव्य में मानव मन की विविध अंतर्वृत्तियों का क्रमिक उन्मीलन इस कौशल से किया गया है कि मानव सृष्टि के आदि से अब तक के जीवन के मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक विकास का इतिहास भी स्पष्ट हो जाता है। कला की दृष्टि से कामायनी छायावादी काव्यकला का सर्वोत्तम प्रतीक माना जा सकता है। चित्तवृत्तियों का कथानक के पात्र के रूप में अवतरण इस काव्य की अन्यतम विशेषता है। और इस दृष्टि से लज्जा, सौंदर्य, श्रद्धा और इड़ा का मानव रूप में अवतरण हिंदी साहित्य की अनुपम निधि है।कामायनी प्रत्यभिज्ञा दर्शन पर आधारित है। साथ ही इस पर अरविन्द दर्शन और गांधी दर्शन का भी प्रभाव यत्र तत्र मिल जाता है। .

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कालिकाप्रसाद शुक्ल

कालिकाप्रसाद शुक्ल संस्कृत भाषा के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य श्री राधाचरित महाकाव्यम् के लिये उन्हें सन् 1986 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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काशीकांत मिश्र मधुप

काशीकांत मिश्र मधुप मैथिली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य राधा विरह के लिये उन्हें सन् 1970 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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काव्य

काव्य, कविता या पद्य, साहित्य की वह विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में कविता का इतिहास और कविता का दर्शन बहुत पुराना है। इसका प्रारंभ भरतमुनि से समझा जा सकता है। कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की शृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है। काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो। अर्थात् वहजिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। रसगंगाधर में 'रमणीय' अर्थ के प्रतिपादक शब्द को 'काव्य' कहा है। 'अर्थ की रमणीयता' के अंतर्गत शब्द की रमणीयता (शब्दलंकार) भी समझकर लोग इस लक्षण को स्वीकार करते हैं। पर 'अर्थ' की 'रमणीयता' कई प्रकार की हो सकती है। इससे यह लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं है। साहित्य दर्पणाकार विश्वनाथ का लक्षण ही सबसे ठीक जँचता है। उसके अनुसार 'रसात्मक वाक्य ही काव्य है'। रस अर्थात् मनोवेगों का सुखद संचार की काव्य की आत्मा है। काव्यप्रकाश में काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और चित्र। ध्वनि वह है जिस, में शब्दों से निकले हुए अर्थ (वाच्य) की अपेक्षा छिपा हुआ अभिप्राय (व्यंग्य) प्रधान हो। गुणीभूत ब्यंग्य वह है जिसमें गौण हो। चित्र या अलंकार वह है जिसमें बिना ब्यंग्य के चमत्कार हो। इन तीनों को क्रमशः उत्तम, मध्यम और अधम भी कहते हैं। काव्यप्रकाशकार का जोर छिपे हुए भाव पर अधिक जान पड़ता है, रस के उद्रेक पर नहीं। काव्य के दो और भेद किए गए हैं, महाकाव्य और खंड काव्य। महाकाव्य सर्गबद्ध और उसका नायक कोई देवता, राजा या धीरोदात्त गुंण संपन्न क्षत्रिय होना चाहिए। उसमें शृंगार, वीर या शांत रसों में से कोई रस प्रधान होना चाहिए। बीच बीच में करुणा; हास्य इत्यादि और रस तथा और और लोगों के प्रसंग भी आने चाहिए। कम से कम आठ सर्ग होने चाहिए। महाकाव्य में संध्या, सूर्य, चंद्र, रात्रि, प्रभात, मृगया, पर्वत, वन, ऋतु, सागर, संयोग, विप्रलम्भ, मुनि, पुर, यज्ञ, रणप्रयाण, विवाह आदि का यथास्थान सन्निवेश होना चाहिए। काव्य दो प्रकार का माना गया है, दृश्य और श्रव्य। दृश्य काव्य वह है जो अभिनय द्वारा दिखलाया जाय, जैसे, नाटक, प्रहसन, आदि जो पढ़ने और सुनेन योग्य हो, वह श्रव्य है। श्रव्य काव्य दो प्रकार का होता है, गद्य और पद्य। पद्य काव्य के महाकाव्य और खंडकाव्य दो भेद कहे जा चुके हैं। गद्य काव्य के भी दो भेद किए गए हैं- कथा और आख्यायिका। चंपू, विरुद और कारंभक तीन प्रकार के काव्य और माने गए है। .

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काव्यशास्त्र

काव्यशास्त्र काव्य और साहित्य का दर्शन तथा विज्ञान है। यह काव्यकृतियों के विश्लेषण के आधार पर समय-समय पर उद्भावित सिद्धांतों की ज्ञानराशि है। युगानुरूप परिस्थितियों के अनुसार काव्य और साहित्य का कथ्य और शिल्प बदलता रहता है; फलत: काव्यशास्त्रीय सिद्धांतों में भी निरंतर परिवर्तन होता रहा है। भारत में भरत के सिद्धांतों से लेकर आज तक और पश्चिम में सुकरात और उसके शिष्य प्लेटो से लेकर अद्यतन "नवआलोचना' (नियो-क्रिटिसिज्म़) तक के सिद्धांतों के ऐतिहासिक अनुशीलन से यह बात साफ हो जाती है। भारत में काव्य नाटकादि कृतियों को 'लक्ष्य ग्रंथ' तथा सैद्धांतिक ग्रंथों को 'लक्षण ग्रंथ' कहा जाता है। ये लक्षण ग्रंथ सदा लक्ष्य ग्रंथ के पश्चाद्भावनी तथा अनुगामी है और महान्‌ कवि इनकी लीक को चुनौती देते देखे जाते हैं। काव्यशास्त्र के लिए पुराने नाम 'साहित्यशास्त्र' तथा 'अलंकारशास्त्र' हैं और साहित्य के व्यापक रचनात्मक वाङमय को समेटने पर इसे 'समीक्षाशास्त्र' भी कहा जाने लगा। मूलत: काव्यशास्त्रीय चिंतन शब्दकाव्य (महाकाव्य एवं मुक्तक) तथा दृश्यकाव्य (नाटक) के ही सम्बंध में सिद्धांत स्थिर करता देखा जाता है। अरस्तू के "पोयटिक्स" में कामेडी, ट्रैजेडी, तथा एपिक की समीक्षात्मक कसौटी का आकलन है और भरत का नाट्यशास्त्र केवल रूपक या दृश्यकाव्य की ही समीक्षा के सिद्धांत प्रस्तुत करता है। भारत और पश्चिम में यह चिंतन ई.पू.

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किरातार्जुनीयम्

अर्जुन शिव को पहचान जाते हैं और नतमस्तक हो जाते हैं। (राजा रवि वर्मा द्वारा१९वीं शती में चित्रित) किरातार्जुनीयम् महाकवि भारवि द्वारा सातवीं शती ई. में रचित महाकाव्य है जिसे संस्कृत साहित्य में महाकाव्यों की 'वृहत्त्रयी' में स्थान प्राप्त है। महाभारत में वर्णित किरातवेशी शिव के साथ अर्जुन के युद्ध की लघु कथा को आधार बनाकर कवि ने राजनीति, धर्मनीति, कूटनीति, समाजनीति, युद्धनीति, जनजीवन आदि का मनोरम वर्णन किया है। यह काव्य विभिन्न रसों से ओतप्रोत है किन्तु यह मुख्यतः वीर रस प्रधान रचना है। संस्कृत के छ: प्रसिद्ध महाकाव्य हैं – बृहत्त्रयी और लघुत्रयी। किरातार्जनुयीयम्‌ (भारवि), शिशुपालवधम्‌ (माघ) और नैषधीयचरितम्‌ (श्रीहर्ष)– बृहत्त्रयी कहलाते हैं। कुमारसम्भवम्‌, रघुवंशम् और मेघदूतम् (तीनों कालिदास द्वारा रचित) - लघुत्रयी कहलाते हैं। किरातार्जुनीयम्‌ भारवि की एकमात्र उपलब्ध कृति है, जिसने एक सांगोपांग महाकाव्य का मार्ग प्रशस्त किया। माघ-जैसे कवियों ने उसी का अनुगमन करते हुए संस्कृत साहित्य भण्डार को इस विधा से समृद्ध किया और इसे नई ऊँचाई प्रदान की। कालिदास की लघुत्रयी और अश्वघोष के बुद्धचरितम्‌ में महाकाव्य की जिस धारा का दर्शन होता है, अपने विशिष्ट गुणों के होते हुए भी उसमें वह विषदता और समग्रता नहीं है, जिसका सूत्रपात भारवि ने किया। संस्कृत में किरातार्जुनीयम्‌ की कम से कम 37 टीकाएँ हुई हैं, जिनमें मल्लिनाथ की टीका घंटापथ सर्वश्रेष्ठ है। सन 1912 में कार्ल कैप्पलर ने हारवर्ड ओरियेंटल सीरीज के अंतर्गत किरातार्जुनीयम् का जर्मन अनुवाद किया। अंग्रेजी में भी इसके भिन्न-भिन्न भागों के छ: से अधिक अनुवाद हो चुके हैं। .

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कवि

कवि वह है जो भावों को रसाभिषिक्त अभिव्यक्ति देता है और सामान्य अथवा स्पष्ट के परे गहन यथार्थ का वर्णन करता है। इसीलिये वैदिक काल में ऋषय: मन्त्रदृष्टार: कवय: क्रान्तदर्शिन: अर्थात् ऋषि को मन्त्रदृष्टा और कवि को क्रान्तदर्शी कहा गया है। "जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि" इस लोकोक्ति को एक दोहे के माध्यम से अभिव्यक्ति दी गयी है: "जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ, कवि पहुँचे तत्काल। दिन में कवि का काम क्या, निशि में करे कमाल।।" ('क्रान्त' कृत मुक्तकी से साभार) .

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कविराज कृष्णदास

कविराज कृष्णदास बंगाल के वैष्णव कवि। बंगाल में उनका वही स्थान है जो उत्तर भारत में तुलसीदास का। इनका जन्म बर्दवान जिले के झामटपुर ग्राम में कायस्थ कुल में हुआ था। इनका समय कुछ लोग 1496 से 1598 ई. और कुछ लोग 1517 से 1615 ई. मानते हैं। इन्हें बचपन में ही वैराग्य हो गया। कहते हैं कि नित्यानन्द ने उन्हें स्वप्न में वृन्दावन जाने का आदेश दिया। तदनुसार इन्होंने वृन्दावन में रहकर संस्कृत का अध्ययन किया और संस्कृत में अनेक ग्रंथों की रचना की जिसमें गोविन्दलीलामृत अधिक प्रसिद्ध है। इसमें राधा-कृष्ण की वृंदावन की लीला का वर्णन है। किंतु इनका महत्व पूर्ण ग्रंथ चैतन्यचरितामृत है। इसमें महाप्रभु चैतन्य की लीला का गान किया है। इसमें उनकी विस्तृत जीवनी, उनके भक्तों एवं भक्तों के शिष्यों के उल्लेख के साथ-साथ गौड़ीय वैष्णवों की दार्शनिक एवं भक्ति संबंधी विचारधारा का निदर्शन है। इस महाकाव्य का बंगाल में अत्यंत आदर है और ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह महत्वपूर्ण है। श्रेणी:बांग्ला साहित्यकार श्रेणी:भक्त कवी.

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कुण्डलकेसि

कुण्डलकेसि (Kundalakesi) तमिल भाषा में लिखित एक महाकाव्य है। नातकुत्तनार् इसके रचयिता थे। यह पांच तमिल महाकाव्य में एक है। इसकी समय अवधि पांचवीं शताब्दी से पहले होने का अनुमान किया गया है। श्रेणी:तमिल साहित्य.

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कुप्पाली वी गौड़ा पुटप्पा

कुपल्ली वेंकटप्पागौड़ा पुटप्पा (ಕುಪ್ಪಳ್ಳಿ ವೆಂಕಟಪ್ಪಗೌಡ ಪುಟ್ಟಪ್ಪ) (२९ दिसम्बर १९०४ - ११ नवम्बर १९९४) एक कन्नड़ लेखक एवं कवि थे, जिन्हें २०वीं शताब्दी के महानतम कन्नड़ कवि की उपाधि दी जाती है। ये कन्नड़ भाषा में ज्ञानपीठ सम्मान पाने वाले सात व्यक्तियों में प्रथम थे। पुटप्पा ने सभी साहित्यिक कार्य उपनाम 'कुवेम्पु' से किये हैं। उनको साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९५८ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य श्रीरामायण दर्शनम् के लिये उन्हें सन् १९५५ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कुमारदास

कुमारदास संस्कृत के महाकाव्य जानकीहरण के रचयिता हैं। वे सिंहल (श्रीलंका) के राजा थे। श्रेणी:संस्कृत साहित्यकार.

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कुमारसम्भव

कुमारसंभवम् महाकवि कालिदास विरचित कार्तिकेय के जन्म से संबंधित महाकाव्य है जिसकी गणना संस्कृत के 'पंच महाकाव्यों' में की जाती है। यह महाकाव्य 17 सर्गों में समाप्त हुआ है, किंतु लोक धारणा है कि केवल प्रथम सर्ग ही कालिदास रचित है। बाद के अन्य नौ सर्ग अन्य कवि की रचना है। कुछ लोगों की धारणा है कि काव्य आठ सर्गों में ही शिवपार्वती समागम के साथ कुमार के जन्म की पूर्वसूचना के साथ ही समाप्त हो जाता है। कुछ लोग कहते हैं कि आठवें सर्ग में शिवपार्वती के संभोग का वर्णन करने के कारण कालिदास को कुष्ठ हो गया और वे लिख न सके। एक मत यह भी है कि उनका संभोगवर्णन जनमानस को रुचि नहीं इसलिए उन्होंने आगे नहीं लिखा। .

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कुमारसंभवम्

कुमारसंभव महाकवि कालिदास विरचित कार्तिकेय के जन्म से संबंधित महाकाव्य जिसकी गणना संस्कृत के पंच महाकाव्यों में की जाती है। इस महाकाव्य में अनेक स्थलों पर स्मरणीय और मनोरम वर्णन हुआ है। हिमालयवर्णन, पार्वती की तपस्या, ब्रह्मचारी की शिवनिंदा, वसंत आगमन, शिवपार्वती विवाह और रतिक्रिया वर्णन अदभुत अनुभूति उत्पन्न करते हैं। कालिदास का बाला पार्वती, तपस्विनी पार्वती, विनयवती पार्वती और प्रगल्भ पार्वती आदि रूपों नारी का चित्रण अद्भुत है। यह महाकाव्य 17 सर्ग्रों में समाप्त हुआ है, किंतु लोक धारणा है कि केवल प्रथम आठ सर्ग ही कालिदास रचित है। बाद के अन्य नौ सर्ग अन्य कवि की रचना है ऐसा माना जाता है। कुछ लोगों की धारणा है कि काव्य आठ सर्गों में ही शिवपार्वती समागम के साथ कुमार के जन्म की पूर्वसूचना के साथ ही समाप्त हो जाता है। कुछ लोग कहते हैं कि आठवें सर्ग मे शिवपार्वती के संभोग का वर्णन करने के कारण कालिदास को कुष्ठ हो गया और वे लिख न सके। एक मत यह भी है कि उनका संभोगवर्णन जनमानस को रुची नहीं इसलिए उन्होंने आगे नहीं लिखा। .

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कुरुक्षेत्र

कुरुक्षेत्र(Kurukshetra) हरियाणा राज्य का एक प्रमुख जिला और उसका मुख्यालय है। यह हरियाणा के उत्तर में स्थित है तथा अम्बाला, यमुना नगर, करनाल और कैथल से घिरा हुआ है तथा दिल्ली और अमृतसर को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग और रेलमार्ग पर स्थित है। इसका शहरी इलाका एक अन्य एटिहासिक स्थल थानेसर से मिला हुआ है। यह एक महत्वपूर्ण हिन्दू तीर्थस्थल है। माना जाता है कि यहीं महाभारत की लड़ाई हुई थी और भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश यहीं ज्योतिसर नामक स्थान पर दिया था। यह क्षेत्र बासमती चावल के उत्पादन के लिए भी प्रसिद्ध है। .

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कुरुक्षेत्र युद्ध

कुरुक्षेत्र युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य कुरु साम्राज्य के सिंहासन की प्राप्ति के लिए लड़ा गया था। महाभारत के अनुसार इस युद्ध में भारत के प्रायः सभी जनपदों ने भाग लिया था। महाभारत व अन्य वैदिक साहित्यों के अनुसार यह प्राचीन भारत में वैदिक काल के इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध था। महाभारत-गीताप्रेस गोरखपुर,सौप्तिकपर्व इस युद्ध में लाखों क्षत्रिय योद्धा मारे गये जिसके परिणामस्वरूप वैदिक संस्कृति तथा सभ्यता का पतन हो गया था। इस युद्ध में सम्पूर्ण भारतवर्ष के राजाओं के अतिरिक्त बहुत से अन्य देशों के क्षत्रिय वीरों ने भी भाग लिया और सब के सब वीर गति को प्राप्त हो गये। महाभारत-गीताप्रेस गोरखपुर,भीष्मपर्व इस युद्ध के परिणामस्वरुप भारत में ज्ञान और विज्ञान दोनों के साथ-साथ वीर क्षत्रियों का अभाव हो गया। एक तरह से वैदिक संस्कृति और सभ्यता जो विकास के चरम पर थी उसका एकाएक विनाश हो गया। प्राचीन भारत की स्वर्णिम वैदिक सभ्यता इस युद्ध की समाप्ति के साथ ही समाप्त हो गयी। इस महान युद्ध का उस समय के महान ऋषि और दार्शनिक भगवान वेदव्यास ने अपने महाकाव्य महाभारत में वर्णन किया, जिसे सहस्राब्दियों तक सम्पूर्ण भारतवर्ष में गाकर एवं सुनकर याद रखा गया। महाभारत में मुख्यतः चंद्रवंशियों के दो परिवार कौरव और पाण्डव के बीच हुए युद्ध का वृत्तांत है। १०० कौरवों और पाँच पाण्डवों के बीच कुरु साम्राज्य की भूमि के लिए जो संघर्ष चला उससे अंतत: महाभारत युद्ध का सृजन हुआ। उक्त युद्ध को हरियाणा में स्थित कुरुक्षेत्र के आसपास हुआ माना जाता है। इस युद्ध में पाण्डव विजयी हुए थे। महाभारत में इस युद्ध को धर्मयुद्ध कहा गया है, क्योंकि यह सत्य और न्याय के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध था। महाभारत काल से जुड़े कई अवशेष दिल्ली में पुराना किला में मिले हैं। पुराना किला को पाण्डवों का किला भी कहा जाता है। कुरुक्षेत्र में भी भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा महाभारत काल के बाण और भाले प्राप्त हुए हैं। गुजरात के पश्चिमी तट पर समुद्र में डूबे ७०००-३५०० वर्ष पुराने शहर खोजे गये हैं, जिनको महाभारत में वर्णित द्वारका के सन्दर्भों से जोड़ा गया, इसके अलावा बरनावा में भी लाक्षागृह के अवशेष मिले हैं, ये सभी प्रमाण महाभारत की वास्तविकता को सिद्ध करते हैं। .

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क्रांति कथा

क्रांति कथा राही मासूम रज़ा द्वारा रचित एक महाकाव्य है।.

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क्षेमेंद्र

क्षेमेन्द्र (जन्म लगभग 1025-1066) संस्कृत के प्रतिभासंपन्न काश्मीरी महाकवि थे। ये विद्वान ब्राह्मणकुल में उत्पन्न हुए थे। ये सिंधु के प्रपौत्र, निम्नाशय के पौत्र और प्रकाशेंद्र के पुत्र थे। इन्होंने प्रसिद्ध आलोचक तथा तंतरशास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान् अभिनवगुप्त से साहित्यशास्त्र का अध्ययन किया था। इनके पुत्र सोमेन्द्र ने पिता की रचना बोधिसत्त्वावदानकल्पलता को एक नया पल्लव (कथा) जोड़कर पूरा किया था। .

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कृष्णायन

*(1) 'कृष्णायन' महाकाव्य: 1942 में जेल में रहते हुए द्वारका प्रसाद मिश्र की रचना। कृष्ण के जन्म से लेकर स्वर्गारोहण तक की कथा इस महाकाव्य में कही गई है।.

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के. एन. एषुत्तचन

के.

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केरलोदय:

केरलोदय: विख्यात संस्कृत साहित्यकार के. एन. एषुत्तचन द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 1979 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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केशव

केशव का स्वचित्रण (१५७० ई) केशव या केशवदास (जन्म (अनुमानत) 1555 विक्रमी और मृत्यु (अनुमानत) 1618 विक्रमी) हिन्दी साहित्य के रीतिकाल की कवि-त्रयी के एक प्रमुख स्तंभ हैं। वे संस्कृत काव्यशास्त्र का सम्यक् परिचय कराने वाले हिंदी के प्राचीन आचार्य और कवि हैं। इनका जन्म सनाढ्य ब्राह्मण कुल में हुआ था। इनके पिता का नाम काशीराम था जो ओड़छानरेश मधुकरशाह के विशेष स्नेहभाजन थे। मधुकरशाह के पुत्र महाराज इन्द्रजीत सिंह इनके मुख्य आश्रयदाता थे। वे केशव को अपना गुरु मानते थे। रसिकप्रिया के अनुसार केशव ओड़छा राज्यातर्गत तुंगारराय के निकट बेतवा नदी के किनारे स्थित ओड़छा नगर में रहते थे। .

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अन्यूरिन

अन्यूरिन (Aneirin) ब्रिटिश चारण जो ७वीं सदी ई. के आरंभ में हुआ। उसने गोडोडिन (Y Gododdin) नाम की एक पुस्तक लिखी। गोडोडिन, वेल्स की एक जाति थी जिसका सरदार अन्यूरिन का पिता था। इस प्रकार गोडोडिन अन्यूरिन की अपनी जाति के संबंध का महाकाव्य है। इसमें सैक्सनों द्वारा ब्रिटनों की पराजय का वर्णन है। स्वयं अन्यूरिन उस युद्ध में कैद हो गया था। श्रेणी:वेल्श कवि श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अफ़्रीका

अफ़्रीका वा कालद्वीप, एशिया के बाद विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है। यह 37°14' उत्तरी अक्षांश से 34°50' दक्षिणी अक्षांश एवं 17°33' पश्चिमी देशान्तर से 51°23' पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। अफ्रीका के उत्तर में भूमध्यसागर एवं यूरोप महाद्वीप, पश्चिम में अंध महासागर, दक्षिण में दक्षिण महासागर तथा पूर्व में अरब सागर एवं हिन्द महासागर हैं। पूर्व में स्वेज भूडमरूमध्य इसे एशिया से जोड़ता है तथा स्वेज नहर इसे एशिया से अलग करती है। जिब्राल्टर जलडमरूमध्य इसे उत्तर में यूरोप महाद्वीप से अलग करता है। इस महाद्वीप में विशाल मरुस्थल, अत्यन्त घने वन, विस्तृत घास के मैदान, बड़ी-बड़ी नदियाँ व झीलें तथा विचित्र जंगली जानवर हैं। मुख्य मध्याह्न रेखा (0°) अफ्रीका महाद्वीप के घाना देश की राजधानी अक्रा शहर से होकर गुजरती है। यहाँ सेरेनगेती और क्रुजर राष्‍ट्रीय उद्यान है तो जलप्रपात और वर्षावन भी हैं। एक ओर सहारा मरुस्‍थल है तो दूसरी ओर किलिमंजारो पर्वत भी है और सुषुप्‍त ज्वालामुखी भी है। युगांडा, तंजानिया और केन्या की सीमा पर स्थित विक्टोरिया झील अफ्रीका की सबसे बड़ी तथा सम्पूर्ण पृथ्वी पर मीठे पानी की दूसरी सबसे बड़ी झीलहै। यह झील दुनिया की सबसे लम्बी नदी नील के पानी का स्रोत भी है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसी महाद्वीप में सबसे पहले मानव का जन्म व विकास हुआ और यहीं से जाकर वे दूसरे महाद्वीपों में बसे, इसलिए इसे मानव सभ्‍यता की जन्‍मभूमि माना जाता है। यहाँ विश्व की दो प्राचीन सभ्यताओं (मिस्र एवं कार्थेज) का भी विकास हुआ था। अफ्रीका के बहुत से देश द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्र हुए हैं एवं सभी अपने आर्थिक विकास में लगे हुए हैं। अफ़्रीका अपनी बहुरंगी संस्कृति और जमीन से जुड़े साहित्य के कारण भी विश्व में जाना जाता है। .

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अभिराज राजेन्द्र मिश्र

अभिराज राजेन्द्र मिश्र (जन्म 1943) संस्कृत कवि, गीतकार, नाटककार हैं। वे सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के उपकुलपति भी रह चुके हैं। उन्हें १९८८ में संस्कृत में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे 'त्रिवेणी-कवि' नाम से जाने जाते हैं। उन्होने संस्कृत, हिन्दी, भोजपुरी और अंग्रेजी में अनेक पुस्तकों की रचना की है। .

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अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' (15 अप्रैल, 1865-16 मार्च, 1947) हिन्दी के एक सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे। वे 2 बार हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति रह चुके हैं और सम्मेलन द्वारा विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किये जा चुके हैं। प्रिय प्रवास हरिऔध जी का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है और इसे मंगला प्रसाद पारितोषित पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। .

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अरबुदा पर्वत

अरबुदा पर्वत महाकाव्य महाभारत में वर्णित एक पर्वत श्रृंखला है। यह पर्वत दक्षिणी राजस्थान, भारत की पहचान है। इस पर्वत पर अर्जुन ने बारह तक तीर्थयात्रा की थी। .

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अरुन्धती (महाकाव्य)

अरुन्धती हिन्दी भाषा का एक महाकाव्य है, जिसकी रचना जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०–) ने १९९४ में की थी। यह महाकाव्य १५ सर्गों और १२७९ पदों में विरचित है। महाकाव्य की कथावस्तु ऋषिदम्पती अरुन्धती और वसिष्ठ का जीवनचरित्र है, जोकि विविध हिन्दू धर्मग्रंथों में वर्णित है। महाकवि के अनुसार महाकाव्य की कथावस्तु का मानव की मनोवैज्ञानिक विकास परम्परा से घनिष्ठ सम्बन्ध है।रामभद्राचार्य १९९४, पृष्ठ iii—vi। महाकाव्य की एक प्रति का प्रकाशन श्री राघव साहित्य प्रकाशन निधि, हरिद्वार, उत्तर प्रदेश द्वारा १९९९४ में किया गया था। पुस्तक का विमोचन तत्कालीन भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा द्वारा जुलाई ७, १९९४ के दिन किया गया था। .

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अष्टावक्र (महाकाव्य)

अष्टावक्र (२०१०) जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०–) द्वारा २००९ में रचित एक हिन्दी महाकाव्य है। इस महाकाव्य में १०८-१०८ पदों के आठ सर्ग हैं और इस प्रकार कुल ८६४ पद हैं। महाकाव्य ऋषि अष्टावक्र की कथा प्रस्तुत करता है, जो कि रामायण और महाभारत आदि हिन्दू ग्रंथों में उपलब्ध है। महाकाव्य की एक प्रति का प्रकाशन जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा किया गया था। पुस्तक का विमोचन जनवरी १४, २०१० को कवि के षष्टिपूर्ति महोत्सव के दिन किया गया। इस काव्य के नायक अष्टावक्र अपने शरीर के आठों अंगों से विकलांग हैं। महाकाव्य अष्टावक्र ऋषि की संपूर्ण जीवन यात्रा को प्रस्तुत करता है जोकि संकट से प्रारम्भ होकर सफलता से होते हुए उनके उद्धार तक जाती है। महाकवि, जो स्वयं दो मास की अल्पायु से प्रज्ञाचक्षु हैं, के अनुसार इस महाकाव्य में विकलांगों की सार्वभौम समस्याओं के समाधानात्मक सूत्र प्रस्तुत किए गए हैं। उनके अनुसार महाकाव्य के आठ सर्ग विकलांगों की आठ मनोवृत्तियों के विश्लेषण मात्र हैं।रामभद्राचार्य २०१०, पृष्ठ क-ग। .

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अगस्त्यायिनी

अगस्त्यायिनी मैथिली भाषा के विख्यात साहित्यकार मार्कण्डेय प्रवासी द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 1981 में मैथिली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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उच्च स्वैरकल्पना

उच्च स्वैरकल्पना या महाकाव्य स्वैरकल्पना स्वैरकल्पना की एक उपविधा है, जो या तो उसके अभिविन्यास की महाकाव्य प्रकृति द्वारा या फिर उसके पात्रों, विषयवस्तुओं, या कथानकों के महाकाव्य कद द्वारा परिभाषित की जाती हैं।.

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उग्रश्रव सौती

उग्रश्रव सौती या उग्रश्रवः पौराणिक काल के भाट थे जिन्होंने महाभारत,भगवत पुराण,हरिवंश, और पद्म पुराण का विमोचन किया था और उनका व्याखान मूलतः नैमिषारण्य में ऋषि-मुनियों के सामने किया था। जब ऋषि वैशम्पायन ने जनमेजय को भरत से लेकर कुरुक्षेत्र युद्ध तक कुरु वंश का सारा वृत्तांत सुनाया, उस समय सौती वहीं मौजूद थे। उन्होंने भी यह महाकाव्य सुना और नैमिषारण्य में जाकर सारे ऋषि समूह, जो शौनक ऋषि के आश्रम में एकत्रित हुये थे, को सुनाया। .

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