4 संबंधों: दीव किला, मस्जिद ए नबवी, महापाषाण, महास्नानघर (मोहन जोदड़ो)।
दीव किला
दीव किला, जिसे स्थानीय रूप से पुर्तगाली किला भी कहा जाता है, भारत के पश्चिमी सागरतट पर दमन और दीव केन्द्र शासित प्रदेश के दीव क्षेत्र में है। दीव शहर किले के पश्चिमी छोर पर स्थित है। यह किला यहाँ पर पुर्तगाली उपनिवेशी काल के दौरान बनाया गया था। इसका निर्माण सन् १५३५ में आरम्भ हुआ जब उस समय के गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने मुग़ल साम्राज्य के बादशाह हुमायूँ द्वारा इस क्षेत्र को अपने अधीन कर लेने के प्रयासों से बचने के लिये पुर्तगालियों के साथ रक्षा-सन्धि कर ली। सन् १५४६ तक इस किले को अधिक मज़बूत करने का काम लगातार चलता रहा। १५३७ से किले और दीव शहर पर पुर्तगाली नियंत्रण आरम्भ हो गया और यह ४२४ वर्षों तक रहा, जो विश्व में किसी भी स्थान के लिये सबसे लम्बा उपनिवेशी राजकाल था। दिसम्बर १९६१ में भारत सरकार ने "ऑपरेशन विजय" नामक सैन्य कार्यवाई में यहाँ पुर्तगाली राज अन्त कर के इस क्षेत्र का फिर से भारत में विलय कर लिया और उस समय की गोवा, दमन और दीव केन्द्र शासित प्रदेश का भाग बनाया। गोवा को राज्य का दर्जा मिलने के बाद दमन और दीव केन्द्र शासित प्रदेश के रूप में संगठित करे गये। .
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मस्जिद ए नबवी
मस्जिद-ए-नबवी (المسجد النبوي, अल-मस्जिद अल-नबवी, "पैगंबर की मस्जिद"), जिसे अक्सर पैगंबर की मस्जिद कहा जाता है, सऊदी अरब के शहर मदीना में स्थित इस्लाम का दूसरा पवित्र स्थान है। मक्का में मस्जिद-ए-हरम मुसलमानों के लिए पवित्र स्थान है। जबकि बैतुल मुक़द्दस में मस्जिद-ए-अक्सा इस्लाम का तीसरा पवित्र स्थान है। .
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महापाषाण
महापाषाण (अंग्रेज़ी: megalith, मॅगालिथ) ऐसे बड़े पत्थर या शिला को कहते हैं जिसका प्रयोग किसी स्तम्भ, स्मारक या अन्य निर्माण के लिये किया गया हो। कुछ ऐतिहासिक व प्रागैतिहासिक (प्रीहिस्टोरिक) स्थलों में ऐसे महापाषाणों को तराशकर और एक-दूसरे में फँसने वाले हिस्से बनाकर बिना सीमेंट या मसाले के निर्माण किये जाते थे। महापाषाणों का ऐसा प्रयोग अधिकतर पाषाण युग और कुछ हद तक कांस्य युग में होता था। .
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महास्नानघर (मोहन जोदड़ो)
मोहन जोदड़ो का महास्नानघर महास्नानघर सिन्धु घाटी सभ्यता के प्राचीन खंडहर शहर मोहन जोदड़ो में स्थित एक प्रसिद्ध हौज़ है। वर्तमान समय में यह पाकिस्तान के सिंध प्रांत में आता है। यह मोहन जोदड़ो के उत्तरी भाग में स्थित है और एक कृत्रिम टीले के ऊपर बनाया गया था। यह हौज़ ११.८८ मीटर लम्बा और ७ मीटर चौड़ा है और इसका सब से अधिक भाग २.४३ मीटर की गहराई रखता है। इसमें उतरने के लिए एक सीढ़ी उत्तर में और एक दक्षिण की तरफ़ बनाई गई है। इसका निर्माण भट्टी से निकाली गई पतली ईंटों से किया गया है और, पानी को चूने से रोकने के लिए, चिनाई के मसाले और ईंटों के ऊपर डामर (बिटुमन) की परत भी चढ़ाई गई थी। इतिहासकारों को पक्का पता नहीं है कि महास्नानघर का क्या महत्त्व था, लेकिन इसको बनाने में लगी शक्ति और ख़र्चे को देखकर यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यह मोहन जोदड़ो के निवासियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल था। .
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