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मलेरिया

सूची मलेरिया

मलेरिया या दुर्वात एक वाहक-जनित संक्रामक रोग है जो प्रोटोज़ोआ परजीवी द्वारा फैलता है। यह मुख्य रूप से अमेरिका, एशिया और अफ्रीका महाद्वीपों के उष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधी क्षेत्रों में फैला हुआ है। प्रत्येक वर्ष यह ५१.५ करोड़ लोगों को प्रभावित करता है तथा १० से ३० लाख लोगों की मृत्यु का कारण बनता है जिनमें से अधिकतर उप-सहारा अफ्रीका के युवा बच्चे होते हैं। मलेरिया को आमतौर पर गरीबी से जोड़ कर देखा जाता है किंतु यह खुद अपने आप में गरीबी का कारण है तथा आर्थिक विकास का प्रमुख अवरोधक है। मलेरिया सबसे प्रचलित संक्रामक रोगों में से एक है तथा भंयकर जन स्वास्थ्य समस्या है। यह रोग प्लास्मोडियम गण के प्रोटोज़ोआ परजीवी के माध्यम से फैलता है। केवल चार प्रकार के प्लास्मोडियम (Plasmodium) परजीवी मनुष्य को प्रभावित करते है जिनमें से सर्वाधिक खतरनाक प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम (Plasmodium falciparum) तथा प्लास्मोडियम विवैक्स (Plasmodium vivax) माने जाते हैं, साथ ही प्लास्मोडियम ओवेल (Plasmodium ovale) तथा प्लास्मोडियम मलेरिये (Plasmodium malariae) भी मानव को प्रभावित करते हैं। इस सारे समूह को 'मलेरिया परजीवी' कहते हैं। मलेरिया के परजीवी का वाहक मादा एनोफ़िलेज़ (Anopheles) मच्छर है। इसके काटने पर मलेरिया के परजीवी लाल रक्त कोशिकाओं में प्रवेश कर के बहुगुणित होते हैं जिससे रक्तहीनता (एनीमिया) के लक्षण उभरते हैं (चक्कर आना, साँस फूलना, द्रुतनाड़ी इत्यादि)। इसके अलावा अविशिष्ट लक्षण जैसे कि बुखार, सर्दी, उबकाई और जुखाम जैसी अनुभूति भी देखे जाते हैं। गंभीर मामलों में मरीज मूर्च्छा में जा सकता है और मृत्यु भी हो सकती है। मलेरिया के फैलाव को रोकने के लिए कई उपाय किये जा सकते हैं। मच्छरदानी और कीड़े भगाने वाली दवाएं मच्छर काटने से बचाती हैं, तो कीटनाशक दवा के छिडकाव तथा स्थिर जल (जिस पर मच्छर अण्डे देते हैं) की निकासी से मच्छरों का नियंत्रण किया जा सकता है। मलेरिया की रोकथाम के लिये यद्यपि टीके/वैक्सीन पर शोध जारी है, लेकिन अभी तक कोई उपलब्ध नहीं हो सका है। मलेरिया से बचने के लिए निरोधक दवाएं लम्बे समय तक लेनी पडती हैं और इतनी महंगी होती हैं कि मलेरिया प्रभावित लोगों की पहुँच से अक्सर बाहर होती है। मलेरिया प्रभावी इलाके के ज्यादातर वयस्क लोगों मे बार-बार मलेरिया होने की प्रवृत्ति होती है साथ ही उनमें इस के विरूद्ध आंशिक प्रतिरोधक क्षमता भी आ जाती है, किंतु यह प्रतिरोधक क्षमता उस समय कम हो जाती है जब वे ऐसे क्षेत्र मे चले जाते है जो मलेरिया से प्रभावित नहीं हो। यदि वे प्रभावित क्षेत्र मे वापस लौटते हैं तो उन्हे फिर से पूर्ण सावधानी बरतनी चाहिए। मलेरिया संक्रमण का इलाज कुनैन या आर्टिमीसिनिन जैसी मलेरियारोधी दवाओं से किया जाता है यद्यपि दवा प्रतिरोधकता के मामले तेजी से सामान्य होते जा रहे हैं। .

97 संबंधों: चिकित्सा अनुसंधान, एडीज, एत्तोरे मार्चियाफावा, एनोफ़िलीज़, डब्लू राष्ट्रीय उद्यान, डिप्टेरा, डेविड बेखम, डेंगू बुख़ार, डीडीटी, दक्षिण अमेरिका, नीलगिरी (यूकलिप्टस), परजीविजन्य रोग, परजीवी विज्ञान, पर्यावरण अभियांत्रिकी, पशुजन्यरोग, प्रतिजैविक, प्राचीन मिस्र, प्राणियों का वर्गीकरण, प्राकृतिक आपदा, प्लास्मोडियम, प्लास्मोडियम नाउलेसी, प्लास्मोडियम विवैक्स, प्लास्मोडियम ओवेल, पीपल, बड़ी इलायची, बबेसिओसिस, बालचिकित्सा, भारत की स्वास्थ्य समस्याएँ (2009), भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद, भूमंडलीय ऊष्मीकरण, भूमंडलीय ऊष्मीकरण का प्रभाव, मरुस्थलीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान केन्द्र, मलेरिया का मानव जीनोम पर प्रभाव, मलेरिया का उपचार, मलेरिया की रोकथाम तथा नियंत्रण, मस्तिष्क अर्बुद, माल्टा ज्वर, मृत्यु, याना गुप्ता, यूयू तु, राष्ट्र संघ, रक्तदान, रक्ताधान, रोनाल्ड रॉस, शिवालिक, श्वसन तंत्र, शेरोन स्टोन, समकालीन, सर्वांगशोथ, सिनकोना, ..., सिस्टोसोमियासिस, सिकल-सेल रोग, संसार के देश और निवासी, संक्रामक रोग, संक्रामक रोगों की सूची, स्प्लेनोमेगाली, स्वास्थ्य सेवा, सैमुएल हैनीमेन, सूर्य देवता, सूजाक, हिन्दुस्तान कीटनाशक लिमिटेड, जगत (जीवविज्ञान), जुड़वां, ज्वर, जेफरसन डेविस, जोसेफ बियाँनेमे कैवेंतु, वासरमान परीक्षण, विश्व मलेरिया दिवस, विश्वमारी, व्यावसायिक संरक्षा एवं स्वास्थ्य, वैश्विक स्वास्थ्य, गर्भावस्था, गुजरात, आयुर्विज्ञान पारजैविकी, आर्टिमीसिनिन, आर्सेनिक, आंजेलो चेली, इबोला वायरस रोग, कार्बनिक यौगिक, कालमेह ज्वर, कालमेघ, कालापानी बुखार, काश्यप संहिता, काशीपुर का भूगोल, काशीपुर, उत्तराखण्ड, कुटज, कुनैन, क्यूलेक्स, क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैम्यूल हानेमान, क्लोरोक्वीन, क्लोरीन, क्विनाइन, कीटनाशक प्रतिरोधी मच्छर, अफ़्रीका, अर्नोल्ड श्वार्ज़नेगर, अल्बानिया, उष्णकटिबंधीय वर्षा-वन सूचकांक विस्तार (47 अधिक) »

चिकित्सा अनुसंधान

चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान मुख्यत: दो प्रकार का होता है - मूलभूत (बेसिक) तथा अनुप्रयुक्त (अप्लायड)। .

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एडीज

एडीज मच्छर एडीज, मच्छरो का एक वंश हैं। सभी मच्छरों की तरह ही इसके जीवन चक्र की चार अवस्थाएं हैं: अण्डा, लारवा, प्यूपा एंव व्यस्क.

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एत्तोरे मार्चियाफावा

एत्तोरे मार्चियाफावा एत्तोरे मार्चियाफावा (1847, रोम- 1935, रोम), इटली के एक चिकित्सक तथा प्राणीविद् थे जिन्होंने मलेरिया पर शोध कार्य किया। 1880 से 1891, इन 11 वर्षों में इन्होने मलेरिया पर गहन शोध किया। आंजेलो सेली के साथ फ़्रांसीसी सैन्य चिकित्सक चार्ल्स लुई अल्फोंस लैवेरन के द्वारा मलेरिया पीडीतों के रक्त में खोजे गये नये प्रोटोज़ोआ का अध्ययन किये। इस सुक्ष्म जीव का नाम इन्होंने प्लास्मोडियम रखा। सन् 1925 में इन्होंने प्रथम अंतराष्ट्रीय मलेरिया सम्मेलन का आयोजन किया। श्रेणी:वैज्ञानिक श्रेणी:व्यक्तिगत जीवन श्रेणी:मलेरिया.

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एनोफ़िलीज़

एनोफ़िलीज़, मच्छरों का एक वंश हैं। इसमें लगभग 400 जातियां हैं। जिनमें से 30 से 40 जितियां मलेरिया रोग का वहन करती हैं। सभी मच्छरों की तरह ही इसके जीवन चक्र की चार अवस्थाएं हैं: अण्डा, लारवा,प्यूपा एंव व्यस्क.

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डब्लू राष्ट्रीय उद्यान

डब्लू राष्ट्रीय उद्यान या डब्ल्यू रीजनल पार्क (फ्रेंच: डब्ल्यू डु नाइजर) पश्चिम अफ्रीका की एक प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान है जो कि नाइजर नदी के आस-पास डब्ल्यू आकार में फैला हुआ है। यह उद्यान नाइजर, बेनिन और बुर्किना फासो तीन देशों में में फैला हुआ हैं, और इसे तीनों सरकार द्वारा शासित किया जाता है। .

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डिप्टेरा

सोलह प्रकार की मक्खियों वाला पोस्टर द्विपंखी गण या डिप्टेरा (Diptera) गण के अंतर्गत वे कीट संमिलित हैं जो द्विपक्षीय (दो पंख वाले) हैं। कीट का यह सबसे बृहत् गण है। इसमें लगभग ८० हजार कीट जातियाँ हैं। इसमें मक्खी, पतिंगा, कुटकी (एक छोटा कीड़ा), मच्छर तथा इसी प्रकार के अन्य कीट भी संमिलित हैं। इस समुदाय के अंतर्गत एक ही प्रकार के सूक्ष्म तथा साधारण आकार के कीट होते हैं। ये कीट दिन तथा रात्रि दोनों में उड़ते हैं तथा जल और स्थल दोनों ही स्थान इनके वासस्थान हैं। साधारणत: ये समस्त विश्व में विस्तृत हैं, परंतु गरम देशों में तो इनका ऐसा आधिपत्य है कि प्रति वर्ष सैकड़ों मनुष्यों, तथा अन्य जंतुओं की इनके कारण मृत्यु हो जाती है। .

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डेविड बेखम

डेविड रॉबर्ट जोसफ बेखम, accessdate.

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डेंगू बुख़ार

डेंगू बुख़ार एक संक्रमण है जो डेंगू वायरस के कारण होता है। समय पर करना बहुत जरुरी होता हैं. मच्छर डेंगू वायरस को संचरित करते (या फैलाते) हैं। डेंगू बुख़ार को "हड्डीतोड़ बुख़ार" के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इससे पीड़ित लोगों को इतना अधिक दर्द हो सकता है कि जैसे उनकी हड्डियां टूट गयी हों। डेंगू बुख़ार के कुछ लक्षणों में बुखार; सिरदर्द; त्वचा पर चेचक जैसे लाल चकत्ते तथा मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द शामिल हैं। कुछ लोगों में, डेंगू बुख़ार एक या दो ऐसे रूपों में हो सकता है जो जीवन के लिये खतरा हो सकते हैं। पहला, डेंगू रक्तस्रावी बुख़ार है, जिसके कारण रक्त वाहिकाओं (रक्त ले जाने वाली नलिकाएं), में रक्तस्राव या रिसाव होता है तथा रक्त प्लेटलेट्स  (जिनके कारण रक्त जमता है) का स्तर कम होता है। दूसरा डेंगू शॉक सिंड्रोम है, जिससे खतरनाक रूप से निम्न रक्तचाप होता है। डेंगू वायरस चार भिन्न-भिन्न प्रकारों के होते हैं। यदि किसी व्यक्ति को इनमें से किसी एक प्रकार के वायरस का संक्रमण हो जाये तो आमतौर पर उसके पूरे जीवन में वह उस प्रकार के डेंगू वायरस से सुरक्षित रहता है। हलांकि बाकी के तीन प्रकारों से वह कुछ समय के लिये ही सुरक्षित रहता है। यदि उसको इन तीन में से किसी एक प्रकार के वायरस से संक्रमण हो तो उसे गंभीर समस्याएं होने की संभावना काफी अधिक होती है।  लोगों को डेंगू वायरस से बचाने के लिये कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। डेंगू बुख़ार से लोगों को बचाने के लिये कुछ उपाय हैं, जो किये जाने चाहिये। लोग अपने को मच्छरों से बचा सकते हैं तथा उनसे काटे जाने की संख्या को सीमित कर सकते हैं। वैज्ञानिक मच्छरों के पनपने की जगहों को छोटा तथा कम करने को कहते हैं। यदि किसी को डेंगू बुख़ार हो जाय तो वह आमतौर पर अपनी बीमारी के कम या सीमित होने तक पर्याप्त तरल पीकर ठीक हो सकता है। यदि व्यक्ति की स्थिति अधिक गंभीर है तो, उसे अंतः शिरा द्रव्य (सुई या नलिका का उपयोग करते हुये शिराओं में दिया जाने वाला द्रव्य) या रक्त आधान (किसी अन्य व्यक्ति द्वारा रक्त देना) की जरूरत हो सकती है। 1960 से, काफी लोग डेंगू बुख़ार से पीड़ित हो रहे हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से यह बीमारी एक विश्वव्यापी समस्या हो गयी है। यह 110 देशों में आम है। प्रत्येक वर्ष लगभग 50-100 मिलियन लोग डेंगू बुख़ार से पीड़ित होते हैं। वायरस का प्रत्यक्ष उपचार करने के लिये लोग वैक्सीन तथा दवाओं पर काम कर रहे हैं। मच्छरों से मुक्ति पाने के लिये लोग, कई सारे अलग-अलग उपाय भी करते हैं।  डेंगू बुख़ार का पहला वर्णन 1779 में लिखा गया था। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में वैज्ञानिकों ने यह जाना कि बीमारी डेंगू वायरस के कारण होती है तथा यह मच्छरों के माध्यम से संचरित होती (या फैलती) है। .

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डीडीटी

डीडीटी (Dichloro-Diphenyl-Trichloroethane) पहला आधुनिक कीटनाशक था जो मलेरिया के विरूद्ध प्रयोग किया गया था, किंतु बाद में यानि 1950 के बाद इसे कृषि कीटनाशी रूप में प्रयोग करने लगे थे। खेतों में इसके भारी प्रयोग से अनेक क्षेत्रों में मच्छर इसके प्रति प्रतिरोधी हो गए। इसका मुख्य उपयोग मच्छरों, खटमलों,आदि को नियंत्रित करने में किया जाता है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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दक्षिण अमेरिका

दक्षिण अमेरिका (स्पेनी: América del Sur; पुर्तगाली: América do Sul) उत्तर अमेरिका के दक्षिण पूर्व में स्थित पश्चिमी गोलार्द्ध का एक महाद्वीप है। दक्षिणी अमेरिका उत्तर में १३० उत्तरी अक्षांश (गैलिनस अन्तरीप) से दक्षिण में ५६० दक्षिणी अक्षांश (हार्न अन्तरीप) तक एवं पूर्व में ३५० पश्चिमी देशान्तर (रेशिको अन्तरीप) से पश्चिम में ८१० पश्चिमी देशान्तर (पारिना अन्तरीप) तक विस्तृत है। इसके उत्तर में कैरीबियन सागर तथा पनामा नहर, पूर्व तथा उत्तर-पूर्व में अन्ध महासागर, पश्चिम में प्रशान्त महासागर तथा दक्षिण में अण्टार्कटिक महासागर स्थित हैं। भूमध्य रेखा इस महाद्वीप के उत्तरी भाग से एवं मकर रेखा मध्य से गुजरती है जिसके कारण इसका अधिकांश भाग उष्ण कटिबन्ध में पड़ता है। दक्षिणी अमेरिका की उत्तर से दक्षिण लम्बाई लगभग ७,२०० किलोमीटर तथा पश्चिम से पूर्व चौड़ाई ५,१२० किलोमीटर है। विश्व का यह चौथा बड़ा महाद्वीप है, जो आकार में भारत से लगभग ६ गुना बड़ा है। पनामा नहर इसे पनामा भूडमरुमध्य पर उत्तरी अमरीका महाद्वीप से अलग करती है। किंतु पनामा देश उत्तरी अमरीका में आता है। ३२,००० किलोमीटर लम्बे समुद्रतट वाले इस महाद्वीप का समुद्री किनारा सीधा एवं सपाट है, तट पर द्वीप, प्रायद्वीप तथा खाड़ियाँ कम हैं जिससे अच्छे बन्दरगाहों का अभाव है। खनिज तथा प्राकृतिक सम्पदा में धनी यह महाद्वीप गर्म एवं नम जलवायु, पर्वतों, पठारों घने जंगलों तथा मरुस्थलों की उपस्थिति के कारण विकसित नहीं हो सका है। यहाँ विश्व की सबसे लम्बी पर्वत-श्रेणी एण्डीज पर्वतमाला एवं सबसे ऊँची टीटीकाका झील हैं। भूमध्यरेखा के समीप पेरू देश में चिम्बोरेजो तथा कोटोपैक्सी नामक विश्व के सबसे ऊँचे ज्वालामुखी पर्वत हैं जो लगभग ६,०९६ मीटर ऊँचे हैं। अमेजन, ओरीनिको, रियो डि ला प्लाटा यहाँ की प्रमुख नदियाँ हैं। दक्षिण अमेरिका की अन्य नदियाँ ब्राज़ील की साओ फ्रांसिस्को, कोलम्बिया की मैगडालेना तथा अर्जेण्टाइना की रायो कोलोरेडो हैं। इस महाद्वीप में ब्राज़ील, अर्जेंटीना, चिली, उरुग्वे, पैराग्वे, बोलिविया, पेरू, ईक्वाडोर, कोलोंबिया, वेनेज़ुएला, गुयाना (ब्रिटिश, डच, फ्रेंच) और फ़ाकलैंड द्वीप-समूह आदि देश हैं। .

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नीलगिरी (यूकलिप्टस)

नीलगिरी मर्टल परिवार, मर्टसिया प्रजाति के पुष्पित पेड़ों (और कुछ झाडि़यां) की एक भिन्न प्रजाति है। इस प्रजाति के सदस्य ऑस्ट्रेलिया के फूलदार वृक्षों में प्रमुख हैं। नीलगिरी की 700 से अधिक प्रजातियों में से ज्यादातर ऑस्ट्रेलिया मूल की हैं और इनमें से कुछ बहुत ही अल्प संख्या में न्यू गिनी और इंडोनेशिया के संलग्न हिस्से और सुदूर उत्तर में फिलपिंस द्वीप-समूहों में पाये जाते हैं। इसकी केवल 15 प्रजातियां ऑस्ट्रेलिया के बाहर पायी जाती हैं और केवल 9 प्रजातियां ऑस्ट्रेलिया में नहीं होतीं.

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परजीविजन्य रोग

प्राणिजगत्‌ के अनेक जीवाणु मानव शरीर में प्रविष्ट हो उसमें वास करते हुए उसे हानि पहुँचाते, या रोग उत्पन्न करते हैं। व्यापक अर्थ में विषाणु, जीवाणु, रिकेट्सिया (Rickettsia), स्पाइरोकीट (Spirochaeta), फफूँद और जंतुपरजीवी द्वारा उत्पन्न सभी रोग परजीवीजन्य रोग माने जा सकते हैं, परंतु प्रचलित मान्यता के अनुसार केवल जंतुपरजीवियों द्वारा उत्पन्न विकारों को ही परजीविजन्य रोग (ParasiticDiseases) के अंतर्गत रखते हैं। .

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परजीवी विज्ञान

परजीवीयों के अध्ययन को परजीवी विज्ञान कहते हैं| वयस्क काली मक्खी (सिमुलियम याहेंस) संग ऑनकोसेर्का वॉल्व्युलस (''Onchocerca volvulus'') कृमि के एण्टिना से निकलता हुआ। यह परजीवी अफ्रीका में रिवर ब्लाइंडनैस (नदी अंधता) नामक रोग के लिये उत्तरदायी होता है। यह नमूना रासायनिक विधि से जमाया व क्रिटिकल बिंदु तक सुखाया हुआ है। फिर परंपरागत स्कैनिंग इलैक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखा गया। 100X (सौ गुणा) आवर्धित चित्र परजीवी विज्ञान परजीवों सहित उनके मेजबान (होस्ट), तथा उनके बीच के संबंध का अध्ययन है। जीव विज्ञान के विषय के तौर पर, परजीवी विज्ञान का विस्तार, चर्चित प्राणी या उसके वातावरण पर निर्भर नहीं होता, वरन उनके जीवन के तरीके पर निर्भर होता है। अतएव यह अन्य विषयों के, संयोजन से बना है; व कई उप-विषयों की तकनीकों पर आधारित है, जैसे कोशिका जैविकी, सूचना-जैविकी, जैवरासायनिकी आण्विक जैविकी, इम्युनोलॉजी, अनुवांशिकी, विकासवाद एवं पारिस्थितिकी। जीवन की पद्धति पृथ्वी पर सर्व सामान्य है। जिसमें सभी प्रधान टैक्सा के प्रतिनिधि सम्मिलित हैं, जो साधारणतम एक कोशिकीय जीव से लेकर जटिल कशेरुकियों तक हो सकते हैं। प्रत्येक मुक्त-जीव जाति की अपनी अनुपम परजीवी प्रजातियां होतीं हैं। .

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पर्यावरण अभियांत्रिकी

औद्योगिक वायु प्रदूषण के स्रोत पर्यावरण इंजीनियरिंग पर्यावरण (हवा, पानी और/या भूमि संसाधनों) में सुधार करने, मानव निवास और अन्य जीवों के लिए स्वच्छ जल, वायु और ज़मीन प्रदान करने और प्रदूषित स्थानों को सुधारने के लिए विज्ञान और इंजीनियरिंग के सिद्धांतों का अनुप्रयोग है। पर्यावरण इंजीनियरिंग में शामिल हैं जल और वायु प्रदूषण नियंत्रण, पुनरावर्तन, अपशिष्ट निपटान और सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दे और साथ ही साथ पर्यावरण इंजीनियरिंग कानून से संबंधित ज्ञान.

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पशुजन्यरोग

ज़ूनोसिस या ज़ूनोस कोई भी ऐसा संक्रामक रोग है जो (कुछ उदाहरणों में, एक निश्चित परिमाण द्वारा) गैर मानुषिक जानवरों, घरेलू और जंगली दोनों ही, से मनुष्यों में या मनुष्यों से गैर मानुषिक जानवरों में संक्रमित हो सकता है (मनुष्यों से जानवरों में संक्रमित होने पर इसे रिवर्स ज़ुनिसिस या एन्थ्रोपोनोसिस कहते हैं).

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प्रतिजैविक

किरबी-ब्यूअर डिस्क प्रसार विधि द्वारा स्टेफिलोकुकस एयूरेस एंटीबायोटिक दवाओं की संवेदनशीलता का परीक्षण.एंटीबायोटिक एंटीबायोटिक से बाहर फैलाना-डिस्क युक्त और एस अवरोध के क्षेत्र में जिसके परिणामस्वरूप aureus का विकास बाधित किया जाता है। आम उपयोग में, प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक एक पदार्थ या यौगिक है, जो जीवाणु को मार डालता है या उसके विकास को रोकता है। एंटीबायोटिक रोगाणुरोधी यौगिकों का व्यापक समूह होता है, जिसका उपयोग कवक और प्रोटोजोआ सहित सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखे जाने वाले जीवाणुओं के कारण हुए संक्रमण के इलाज के लिए होता है। "एंटीबायोटिक" शब्द का प्रयोग 1942 में सेलमैन वाक्समैन द्वारा किसी एक सूक्ष्म जीव द्वारा उत्पन्न किये गये ठोस या तरल पदार्थ के लिए किया गया, जो उच्च तनुकरण में अन्य सूक्ष्मजीवों के विकास के विरोधी होते हैं। इस मूल परिभाषा में प्राकृतिक रूप से प्राप्त होने वाले ठोस या तरल पदार्थ नहीं हैं, जो जीवाणुओं को मारने में सक्षम होते हैं, पर सूक्ष्मजीवों (जैसे गैस्ट्रिक रसऔर हाइड्रोजन पैराक्साइड) द्वारा उत्पन्न नहीं किये जाते और इनमें सल्फोनामाइड जैसे सिंथेटिक जीवाणुरोधी यौगिक भी नहीं होते हैं। कई एंटीबायोटिक्स अपेक्षाकृत छोटे अणु होते हैं, जिनका भार 2000 Da से भी कम होता हैं। औषधीय रसायन विज्ञान की प्रगति के साथ-साथ अब अधिकतर एंटीबायोटिक्ससेमी सिंथेटिकही हैं, जिन्हें प्रकृति में पाये जाने वाले मूल यौगिकों से रासायनिक रूप से संशोधित किया जाता है, जैसा कि बीटालैक्टम (जिसमें पेनसिलियम, सीफालॉसपोरिन औरकारबॉपेनम्स के कवक द्वारा उत्पादितपेनसिलिंस भी शामिल हैं) के मामले में होता है। कुछ एंटीबायोटिक दवाओं का उत्पादन अभी भी अमीनोग्लाइकोसाइडजैसे जीवित जीवों के जरिये होता है और उन्हें अलग-थलग रख्ना जाता है और अन्य पूरी तरह कृत्रिम तरीकों- जैसे सल्फोनामाइड्स,क्वीनोलोंसऔरऑक्साजोलाइडिनोंससे बनाये जाते हैं। उत्पत्ति पर आधारित इस वर्गीकरण- प्राकृतिक, सेमीसिंथेटिक और सिंथेटिक के अतिरिक्त सूक्ष्मजीवों पर उनके प्रभाव के अनुसार एंटीबायोटिक्स को मोटे तौर पर दो समूहों में विभाजित किया जा सकता हैं: एक तो वे, जो जीवाणुओं को मारते हैं, उन्हें जीवाणुनाशक एजेंट कहा जाता है और जो बैक्टीरिया के विकास को दुर्बल करते हैं, उन्हें बैक्टीरियोस्टेटिक एजेंट कहा जाता है। .

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प्राचीन मिस्र

गीज़ा के पिरामिड, प्राचीन मिस्र की सभ्यता के सबसे ज़्यादा पहचाने जाने वाले प्रतीकों में से एक हैं। प्राचीन मिस्र का मानचित्र, प्रमुख शहरों और राजवंशीय अवधि के स्थलों को दर्शाता हुआ। (करीब 3150 ईसा पूर्व से 30 ई.पू.) प्राचीन मिस्र, नील नदी के निचले हिस्से के किनारे केन्द्रित पूर्व उत्तरी अफ्रीका की एक प्राचीन सभ्यता थी, जो अब आधुनिक देश मिस्र है। यह सभ्यता 3150 ई.पू.

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प्राणियों का वर्गीकरण

प्राणियों की सख्या बहुत अधिक हो गई है। अब तक इनके दो लाख वंशों और 10 लाख जातियों का पता लगा है। प्राणियों के सुचातु रूप से अध्ययन के लिए प्राणियों का वर्गीकरण बहुत आवश्यक हो गया है। वर्गीकरण कठिन कार्य है। विभिन्न प्राणिविज्ञानी वर्गीकरण में एकमत नहीं हैं। विभिन्न ग्रंथकारों ने विभिन्न प्रकार से जंतुओं का वर्गीकरण किया है। कुछ प्राणी ऐसे हैं जिनको किसी एक वर्ग में रखना भी कठिन होता है, क्योंकि इनके कुछ गुण एक वर्ग के जंतुओं से मिलते हैं तो कुछ गुण दूसरे वर्ग के जंतुओं से। साधारणतया सभी वैज्ञानिक सहमत हैं कि जंतुओं का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से होना चाहिए जिसमें छोटे समूह से प्रारंभ करके क्रमश: बड़े-बड़े समूह दिए हैं: 1.

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प्राकृतिक आपदा

एक प्राकृतिक आपदा एक प्राकृतिक जोखिम (natural hazard) का परिणाम है (जैसे की ज्वालामुखी विस्फोट (volcanic eruption), भूकंप, या भूस्खलन (landslide) जो कि मानव गतिविधियों को प्रभावित करता है। मानव दुर्बलताओं को उचित योजना और आपातकालीन प्रबंधन (emergency management) का आभाव और बढ़ा देता है, जिसकी वजह से आर्थिक, मानवीय और पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है। परिणाम स्वरुप होने वाली हानि निर्भर करती है जनसँख्या की आपदा को बढ़ावा देने या विरोध करने की क्षमता पर, अर्थात उनके लचीलेपन पर। ये समझ केंद्रित है इस विचार में: "जब जोखिम और दुर्बलता (vulnerability) का मिलन होता है तब दुर्घटनाएं घटती हैं". जिन इलाकों में दुर्बलताएं निहित न हों वहां पर एक प्राकृतिक जोखिम कभी भी एक प्राकृतिक आपदा में तब्दील नहीं हो सकता है, उदहारण स्वरुप, निर्जन प्रदेश में एक प्रबल भूकंप का आना.बिना मानव की भागीदारी के घटनाएँ अपने आप जोखिम या आपदा नहीं बनती हैं, इसके फलस्वरूप प्राकृतिक शब्द को विवादित बताया गया है। .

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प्लास्मोडियम

प्लास्मोडियम एक प्रोटोज़ोआ संघ का प्राणी है। प्लास्मोडियम की कुछ जातियों को मलेरिया परजीवी भी कहते हैं क्योंकि ये मनुष्य मे मलेरिया रोग उत्पन्न करती हैं। श्रेणी:प्रोटोज़ोआ श्रेणी:मलेरिया.

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प्लास्मोडियम नाउलेसी

प्लास्मोडियम नाउलेसी एक प्रकार का प्रोटोज़ोआ है। इसके कारण मलेरिया रोग होता है, परंतु मनुष्य में इसके द्वारा रोग होने की संभावना अत्यंत कम होती है। यह कुछ प्रजाती के बन्दरों को सेक्रमित करता है। श्रेणी:प्रोटोज़ोआ श्रेणी:मलेरिया.

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प्लास्मोडियम विवैक्स

प्लास्मोडियम विवैक्स प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम एक प्रकार का प्रोटोज़ोआ है, जो विवैक्स मलेरिया के लिये जिम्मेदार है। मलेरिया के इस परजीवी का वाहक मादा एनोफ़िलेज़ (Anopheles) मच्छर है। श्रेणी:प्रोटोज़ोआ श्रेणी:मलेरिया.

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प्लास्मोडियम ओवेल

प्लास्मोडियम ओवेल एक परजीवी प्रोटोज़ोआ की प्रजाती है। इसके कारण मनुष्य में टरसियन मलेरिया होता है। इसका प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम तथा प्लास्मोडियम विवैक्स से नजदीकी सबंध है जिनके कारण अधिकांश लोंगो को मलेरिया होता है। यह इन दो प्रजातीयों के मुकाबले विरल है तथा प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम से कम खतरनाक है। श्रेणी:प्रोटोज़ोआ श्रेणी:मलेरिया.

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पीपल

''पीपल की कोपलें'' पीपल (अंग्रेज़ी: सैकरेड फिग, संस्कृत:अश्वत्थ) भारत, नेपाल, श्री लंका, चीन और इंडोनेशिया में पाया जाने वाला बरगद, या गूलर की जाति का एक विशालकाय वृक्ष है जिसे भारतीय संस्कृति में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है तथा अनेक पर्वों पर इसकी पूजा की जाती है। बरगद और गूलर वृक्ष की भाँति इसके पुष्प भी गुप्त रहते हैं अतः इसे 'गुह्यपुष्पक' भी कहा जाता है। अन्य क्षीरी (दूध वाले) वृक्षों की तरह पीपल भी दीर्घायु होता है। इसके फल बरगद-गूलर की भांति बीजों से भरे तथा आकार में मूँगफली के छोटे दानों जैसे होते हैं। बीज राई के दाने के आधे आकार में होते हैं। परन्तु इनसे उत्पन्न वृक्ष विशालतम रूप धारण करके सैकड़ों वर्षो तक खड़ा रहता है। पीपल की छाया बरगद से कम होती है, फिर भी इसके पत्ते अधिक सुन्दर, कोमल और चंचल होते हैं। वसंत ऋतु में इस पर धानी रंग की नयी कोंपलें आने लगती है। बाद में, वह हरी और फिर गहरी हरी हो जाती हैं। पीपल के पत्ते जानवरों को चारे के रूप में खिलाये जाते हैं, विशेष रूप से हाथियों के लिए इन्हें उत्तम चारा माना जाता है। पीपल की लकड़ी ईंधन के काम आती है किंतु यह किसी इमारती काम या फर्नीचर के लिए अनुकूल नहीं होती। स्वास्थ्य के लिए पीपल को अति उपयोगी माना गया है। पीलिया, रतौंधी, मलेरिया, खाँसी और दमा तथा सर्दी और सिर दर्द में पीपल की टहनी, लकड़ी, पत्तियों, कोपलों और सीकों का प्रयोग का उल्लेख मिलता है। .

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बड़ी इलायची

बड़ी इलायची के सुखाये हुए फल और बीज भारतीय तथा अन्य देशों के व्यंजनों में मसाले के रूप में इस्तेमाल की जाती है। इसे 'काली इलायची', 'भूरी इलायची', 'लाल इलायची', 'नेपाली इलायची' या 'बंगाल इलायची' भी कहते हैं। इसके बीजों में से कपूर की तरह की खुशबू आती है और थोड़ा धूंये का सा स्वाद आता है जो उसके सुखाने के तरीके से आता है। बड़ी इलायची का नाम संस्कृत में एला, काता इत्यादि, मराठी में वेलदोड़े, गुजराती में मोटी एलची तथा लैटिन में ऐमोमम कार्डामोमम है। इसके वृक्ष से पाँच फुट तक ऊँचे भारत तथा नेपाल के पहाड़ी प्रदेशों में होते हैं। फल तिकोने, गहरे कत्थई रंग के और लगभग आधा इंच लंबे तथा बीज छोटी इलायची से कुछ बड़े होते हैं। आयुर्वेद तथा यूनानी उपचार में इसके बीजों के लगभग वे ही गुण कहे गए हैं जो छोटी इलायची के बीजों के। परंतु बड़ी इलायची छोटी से कम स्वादिष्ट होती है। .

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बबेसिओसिस

बबेसिओसिस (Babesiosis) पशुओं में होने वाला रोग है जो रक्त प्रोटोज़ोआ के कारण होता है जो एककोशिकीय जीव है। यह मलेरिया-जैसा रोग है जो बबेसिया (Babesia) नामक प्रोटोजोवा के संक्रमण के कारण होता है। स्तनपोषी जीवों में ट्राइपैनोसोम (trypanosomes) के बाद बबेसिया दूसरा सबसे अधिक पाया जाने वाला रक्त परजीवी है। मनुष्यों में यह रोग बहुत कम पाया जाता है। बबेसिया प्रजाति के प्रोटोज़ोआ पशुओं के रक्त में चिचडियों (किलनी या कुटकी/ticks) के माध्यम से प्रवेश कर जाते हैं तथा वे रक्त की लाल रक्त कोशिकाओं में जाकर अपनी संख्या बढ़ने लगते हैं जिसके फलस्वरूप लाल रक्त कोशिकायें नष्ट होने लगती हैं। लाल रक्त किशिकाओं में मौजूद हीमोग्लोबिन पेशाब के द्वारा शरीर से बाहर निकलने लगता है जिससे पेशाब का रंग कॉफी के रंग का हो जाता है। कभी-कभी पशु को खून वाले दस्त भी लग जाते हैं। इसमें पशु खून की कमी हो जाने से बहुत कमज़ोर हो जाता है पशु में पीलिया के लक्षण भी दिखायी देने लगते हैं तथा समय इलाज ना कराया जाय तो पशु की मृत्यु हो जाती है। .

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बालचिकित्सा

बाल बहुनिद्रांकन (Pediatric polysomnography) बालचिकित्सा (Pediatrics) या बालरोग विज्ञान चिकित्सा विज्ञान की वह शाखा है जो शिशुओं, बालों एवं किशोरों के रोगों एवं उनकी चिकत्सा से सम्बन्धित है। आयु की दृष्टि से इस श्रेणी में नवजात शिशु से लेकर १२ से २१ वर्ष के किशोर तक आ जाते हैँ। इस श्रेणी के उम्र की उपरी सीमा एक देश से दूसरे देश में अलग-अलग है। .

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भारत की स्वास्थ्य समस्याएँ (2009)

वर्ष 2009 में भारत के लोगों को पोलियो, एचआईवी और मलेरिया जैसी चिरपरिचित बिमारियों के साथ ही स्वाइन फ्लू नामक नई बीमारी का भी सामना करना पडा। इस वर्ष की दस प्रमुख स्वास्थ्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं- .

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भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आई.सी.एम.आर), नई दिल्ली, भारत में जैव-चिकित्सा अनुसंधान हेतु निर्माण, समन्वय और प्रोत्साहन के लिए शीर्ष संस्था है। यह विश्व के सबसे पुराने आयुर्विज्ञान संस्थानों में से एक हैं। इस परिषद को भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त होती है। .

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भूमंडलीय ऊष्मीकरण

वैश्‍विक माध्‍य सतह का ताप 1961-1990 के सापेक्ष से भिन्‍न है 1995 से 2004 के दौरान औसत धरातलीय तापमान 1940 से 1980 तक के औसत तापमान से भिन्‍न है भूमंडलीय ऊष्मीकरण (या ग्‍लोबल वॉर्मिंग) का अर्थ पृथ्वी की निकटस्‍थ-सतह वायु और महासागर के औसत तापमान में 20वीं शताब्‍दी से हो रही वृद्धि और उसकी अनुमानित निरंतरता है। पृथ्‍वी की सतह के निकट विश्व की वायु के औसत तापमान में 2005 तक 100 वर्षों के दौरान 0.74 ± 0.18 °C (1.33 ± 0.32 °F) की वृद्धि हुई है। जलवायु परिवर्तन पर बैठे अंतर-सरकार पैनल ने निष्कर्ष निकाला है कि "२० वीं शताब्दी के मध्य से संसार के औसत तापमान में जो वृद्धि हुई है उसका मुख्य कारण मनुष्य द्वारा निर्मित ग्रीनहाउस गैसें हैं। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, धरती के वातावरण के तापमान में लगातार हो रही विश्वव्यापी बढ़ोतरी को 'ग्लोबल वार्मिंग' कहा जा रहा है। हमारी धरती सूर्य की किरणों से उष्मा प्राप्त करती है। ये किरणें वायुमंडल से गुजरती हुईं धरती की सतह से टकराती हैं और फिर वहीं से परावर्तित होकर पुन: लौट जाती हैं। धरती का वायुमंडल कई गैसों से मिलकर बना है जिनमें कुछ ग्रीनहाउस गैसें भी शामिल हैं। इनमें से अधिकांश धरती के ऊपर एक प्रकार से एक प्राकृतिक आवरण बना लेती हैं जो लौटती किरणों के एक हिस्से को रोक लेता है और इस प्रकार धरती के वातावरण को गर्म बनाए रखता है। गौरतलब है कि मनुष्यों, प्राणियों और पौधों के जीवित रहने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेल्शियस तापमान आवश्यक होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी होने पर यह आवरण और भी सघन या मोटा होता जाता है। ऐसे में यह आवरण सूर्य की अधिक किरणों को रोकने लगता है और फिर यहीं से शुरू हो जाते हैं ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव। आईपीसीसी द्वारा दिये गये जलवायु परिवर्तन के मॉडल इंगित करते हैं कि धरातल का औसत ग्लोबल तापमान 21वीं शताब्दी के दौरान और अधिक बढ़ सकता है। सारे संसार के तापमान में होने वाली इस वृद्धि से समुद्र के स्तर में वृद्धि, चरम मौसम (extreme weather) में वृद्धि तथा वर्षा की मात्रा और रचना में महत्वपूर्ण बदलाव आ सकता है। ग्लोबल वार्मिंग के अन्य प्रभावों में कृषि उपज में परिवर्तन, व्यापार मार्गों में संशोधन, ग्लेशियर का पीछे हटना, प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा आदि शामिल हैं। .

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भूमंडलीय ऊष्मीकरण का प्रभाव

extreme weather). (Third Assessment Report) इस के अंतर पैनल तौर पर जलवायु परिवर्तन (Intergovernmental Panel on Climate Change)। इस भविष्यवाणी की प्रभावों के ग्लोबल वार्मिंग इस पर पर्यावरण (environment) और के लिए मानव जीवन (human life) कई हैं और विविध.यह आम तौर पर लंबे समय तक कारणों के लिए विशिष्ट प्राकृतिक घटनाएं विशेषता है, लेकिन मुश्किल है के कुछ प्रभावों का हाल जलवायु परिवर्तन (climate change) पहले से ही होने जा सकता है।Raising sea levels (Raising sea levels), glacier retreat (glacier retreat), Arctic shrinkage (Arctic shrinkage), and altered patterns of agriculture (agriculture) are cited as direct consequences, but predictions for secondary and regional effects include extreme weather (extreme weather) events, an expansion of tropical diseases (tropical diseases), changes in the timing of seasonal patterns in ecosystems (changes in the timing of seasonal patterns in ecosystems), and drastic economic impact (economic impact)। चिंताओं का नेतृत्व करने के लिए हैं राजनीतिक (political) सक्रियता प्रस्तावों की वकालत करने के लिए कम (mitigate), समाप्त (eliminate), या अनुकूलित (adapt) यह करने के लिए। 2007 चौथी मूल्यांकन रिपोर्ट (Fourth Assessment Report) के द्वारा अंतर पैनल तौर पर जलवायु परिवर्तन (Intergovernmental Panel on Climate Change) (आईपीसीसी) ने उम्मीद प्रभावों का सार भी शामिल है। .

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मरुस्थलीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान केन्द्र

मरुस्‍थलीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केन्‍द्र (डीएमआरसी), भारत सरकार के स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय के अंतर्गत जैव चिकित्‍सकीय अनुसंधान के लिए शीर्ष स्‍वायत संगठन, ‘भारतीय आयु‍र्विज्ञान अनुसंधान परिषद’ (आईसीएमआर) का एक स्‍थायी संस्‍थान है। 27 जून 1984 को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा राजस्‍थान के जोधपुर शहर में इस केन्‍द्र की स्‍थापना की गई, ताकि देश की मरुस्‍थलीय क्षेत्र की स्‍वास्‍थ्‍य अनुसंधानिक आवश्‍यकताओं को पूरा किया जा सके। यह केन्‍द्र इस क्ष्‍ोत्र की मुख्‍य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं के शोध व अनुसंधान कार्यो, जैसे मलेरिया, कुपोषण, सिलीकोसिस, तपेदिक, अफीम मुक्ति, रोगवाहक पारिस्थितिकी अध्‍ययन, कीटनाशकों की प्रतिरोधकता, चिकित्‍सकीय उपयोग के पौधे आदि के अध्‍ययन में जुटा हुआ है। .

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मलेरिया का मानव जीनोम पर प्रभाव

मलेरिया हाल के इतिहास में मानव जीनोम पर सबसे अधिक प्रभाव डालने वाला रोग रहा है। इसी कारण मलेरिया से बड़ी मात्रा में लोगों की मृत्यु होती है| यह मानव जीनोम पर अनेक प्रकार से प्रभाव डालता है। .

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मलेरिया का उपचार

पी.

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मलेरिया की रोकथाम तथा नियंत्रण

मलेरिया का रोगवाहक ''एनोफ़िलीज़ एल्बिमैनस'' मच्छर, एक मानवी बांह पर काटते हुए। मलेरिया की रोकथाम के लिये मच्छरों का नियंत्रण अत्यधिक प्रभावशाली उपाय है। मलेरिया का प्रसार इन कारकों पर निर्भर करता है- मानव जनसंख्या का घनत्व, मच्छरों की जनसंख्या का घनत्व, मच्छरों से मनुष्यों तक प्रसार और मनुष्यों से मच्छरों तक प्रसार। इन कारकों में से किसी एक को भी बहुत कम कर दिया जाए तो उस क्षेत्र से मलेरिया को मिटाया जा सकता है। इसीलिये मलेरिया प्रभावित क्षेत्रों में रोग का प्रसार रोकने हेतु दवाओं के साथ-साथ मच्छरों का उन्मूलन या उनसे काटने से बचने के उपाय किये जाते हैं। अनेक अनुसंधान कर्ता दावा करते हैं कि मलेरिया के उपचार की तुलना में उस से बचाव का व्यय दीर्घ काल में कम रहेगा, हालांकि विश्व के कुछ सर्वाधिक निर्धन देशों में इसका तात्कालिक व्यय उठाने की क्षमता भी नहीं है। आर्थिक सलाहकार जैफ़री सैक्स के अनुसार प्रतिवर्ष 3 अरब अमेरिकी डालर की सहायता देकर मलेरिया का प्रसार रोका जा सकता है। साथ ही यह तर्क दिया जाता है कि सहस्राब्दी विकास लक्ष्य (अंग्रेजी: Millennium Development Goal, मिलेनियम डेवलपमेंट गोल) पूरा करने हेतु धन को एड्स उपचार से हटा कर मलेरिया रोकथाम में लगाया जाए तो अफ्रीकी देशों को अधिक लाभ होगा। मलेरिया से बचने के लिए क्या-क्या करना चाहिए, घर पर कैसे रहना चाहिए, क्या खाना चाहिए आदि जानकारी जानने के लिए आप यह भी जरूर पड़ें - 1956-1960 के दशक में विश्व स्तर पर मलेरिया उन्मूलन के व्यापक प्रयास किये गये (वैसे ही जैसे चेचक उन्मूलन हेतु किये गये थे)। किंतु उनमे सफलता नहीं मिल सकी और मलेरिया आज भी अफ्रीका में उसी स्तर पर मौजूद है। जबकि ब्राजील, इरीट्रिया, भारत और वियतनाम जैसे कुछ विकासशील देश है जिन्होंने इस रोग पर काफी हद तक काबू पा लिया है। इसके पीछे निम्न कारण माने गये हैं- प्रभावी उपकरणों का प्रयोग, सरकार का बेहतर नेतृत्व, सामुदायिक भागीदारी, विकेन्द्रीकृत क्रियान्वयन, कुशल तकनीकी-प्रबंधक कामगार मिलना, भागीदार संस्थाओं द्वारा सही तकनीकी सहयोग देना तथा पर्याप्त कोष मिलना। .

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मस्तिष्क अर्बुद

मस्तिष्क अर्बुद (ब्रेन ट्यूमर) मस्तिष्क में कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि है जो कैंसरयुक्त (असाध्य) या कैंसरविहीन (सुसाध्य) हो सकती है। इसकी परिभाषा असामान्य और अनियंत्रित कोशिका विभाजन से उत्पन्न किसी भी अन्तः कपालिकय अर्बुद के रूप में की जाती है, जो साधारणतः या तो मस्तिष्क के भीतर (तंत्रिका कोशिकाएं, तंत्रिकाबंध कोशिकाएं (तारिका कोशिकाएं, अल्पदन्द्रोन कोशिकाएं, आन्तरीयकला कोशिकाएं, माइलिन-उत्पादक श्वान कोशिकाएं), लसीका ऊतक, रक्तनलिकाएं), कपाल नाड़ियों में, मस्तिष्क के आवरणों में, कपाल, पीयूष और पीनियल ग्रंथियों, या प्राथमिक तौर पर अन्य अवयवों में स्थित कैंसरों से फैल कर (विक्षेपी अर्बुद) उत्पन्न होता है। प्राथमिक (सच्चे) मस्तिष्क अर्बुद सामान्यतः बच्चों में पश्च कपाल खात में और वयस्कों में प्रमस्तिष्क गोलार्धों के अगले दो-तिहाई भाग में होते हैं, यद्यपि वे मस्तिष्क के किसी भी भाग में हो सकते हैं। संयुक्त राज्य में सन् 2005 में, लगाए गए अनुमान के अनुसार मस्तिष्क अर्बुद के 43,800 नए मामले देखे गए (संयुक्त राज्य की केन्द्रीय मस्तिष्क अर्बुद रजिस्ट्री, संयुक्त राज्य में प्राथमिक मस्तिष्क अर्बुद, सांख्यिकीय रिपोर्ट, 2005-2006), जो सभी कैंसरों का 1.4 प्रतिशत, सभी कैंसर से हुई मौतों का 2.4 प्रतिशत, जून 2000 को पुनःप्राप्त.

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माल्टा ज्वर

माल्टा ज्वर (Malta Fever) एक अत्यन्त संक्रामक रोग है, जो ब्रूसेला (Brucella) जाति के जीवाणु द्वारा उत्पन्न होता है। इसे मेडिटरेनियन ज्वर, ब्रूसिलोलिस (Brucellosis), या अंडुलेंट (undulent) ज्वर भी कहते हैं। यह एक पशुजन्यरोग है। मनुष्यों में पालतू जानवरों, जैसे मवेशी कुत्ते या सूअर आदि, द्वारा इसका संचारण होता है। इन संक्रमित पशुओं का दूध पीने, मांस खाने या इनके स्रावों (secretions) के सम्पर्क में आने से इसका संक्रमण हो सकता है। रोग की तीव्रावस्था में ज्वर, पसीना, सुस्ती तथा शरीर में दर्द रहता है और कभी-कभी यह महीनों तक जीर्ण रूप में चलता रहता है। रोग द्वारा मृत्यु की संख्या अधिक नहीं है, किंतु रोग शीघ्र दूर नहीं होता। राइट (Wright) ने सन् १८९७ में ब्रूसलोसिस रोग के समूहन (agglntination) परीक्षण का वर्णन किया। ब्रूसेला की तीन किस्में ज्ञात हैं, जो जानवरों की तीन जातियों में पाई जाती है: बकरी में ब्रूसेला मेलिटेन्सिस (Br.Melitensis), सूअर में ब्रूसेला सूई (Br. Suis) तथा मवेशी में ब्रू० ऐबारटस (Br. Abortus)। संक्रमण जानवरों के दूध पीने से मनुष्य में रोग का संचार होता है। उद्भवन काल ५ से २१ दिन है। कभी कभी रोग के लक्षण प्रत्यक्ष होने में ६ से ९ माह तक लग जाते है। उग्र रूप में ज्वर, ठंड़ के साथ कँपकँपी तथा पसीना होता है। जीर्ण रूप में धीरे-धीरे लक्षण प्रकट होते हैं। इस रोग के तथा इंफ्लुएंजा, मलेरिया, तपेदिक, मोतीझरा आदि रोगों के लक्षण आपस में मिलने के कारण विशेष समूहन परीक्षा तथा त्वचा में टीका परीक्षण से रोग निदान होता है। चिकित्सा में उचित परिचर्या तथा सल्फोनेमाइड, स्ट्रेप्टोमाइसिन आदि का प्रयोग होता है। रोग प्रतिषेध के लिये पास्चूरीकृत दूध को काम में लाना चाहिए। .

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मृत्यु

मानव खोपड़ी मौत के लिए एक सार्वभौमिक प्रतीक है। किसी प्राणी के जीवन के अन्त को मृत्यु कहते हैं। मृत्यु सामान्यतः दुर्घटना, चोट, बीमारी, कुपोषण के परिणामस्वरूप होती है। आँख "अनन्त जीवन के लिए प्राचीन मिस्र के प्रतीक है।" वे और कई अन्य संस्कृतियों के बाद से एक पोर्टल के रूप में एक जीवन के बाद में जैविक मौत देखी है। .

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याना गुप्ता

याना गुप्ता (Yana Gupta), जन्म का नाम याना सिनकोवा (Jana Synková), चेक मॉडल और अभिनेत्री हैं जो मुम्बई में काम करती हैं। याना चेक गणराज्य की नागरिक हैं। अपने विवाह के पश्चात इन्होंने अपना कुलनाम बदल कर गुप्ता कर लिया था तथा तलाक के बाद भी इसी नाम को रखा। .

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यूयू तु

यूयू तु (जन्म 30 दिसम्बर 1930) एक चीनी चिकित्सा वैज्ञानिक, औषधि रसायनज्ञ और शिक्षक हैं। उन्हें मुख्यतः आर्टिमीसिनिन और डाईहाइड्रोआर्टमिसिनीन (जिसे मलेरिया के इलाज के काम में लिया जाता है) की खोज के लिए जाना जाता है। यह चाइना एकेडेमी ऑफ़ ट्रेडिशनल चाइनीज़ मेडिसिन में प्रोफेसर हैं। इन्हें वर्ष २०१५ का चिकित्सा नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ है।,http://timesofindia.indiatimes.com/world/europe/Nobel-Prize-for-medicine-awarded-to-three-scientists-for-discoveries-that-helped-doctors-fight-malaria-and-infections-caused-by-parasites/articleshow/49227973.cms? .

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राष्ट्र संघ

राष्ट्र संघ (लंदन) पेरिस शांति सम्मेलन के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्ववर्ती के रूप में गठित एक अंतर्शासकीय संगठन था। 28 सितम्बर 1934 से 23 फ़रवरी 1935 तक अपने सबसे बड़े प्रसार के समय इसके सदस्यों की संख्या 58 थी। इसके प्रतिज्ञा-पत्र में जैसा कहा गया है, इसके प्राथमिक लक्ष्यों में सामूहिक सुरक्षा द्वारा युद्ध को रोकना, निःशस्त्रीकरण, तथा अंतर्राष्ट्रीय विवादों का बातचीत एवं मध्यस्थता द्वारा समाधान करना शामिल थे। इस तथा अन्य संबंधित संधियों में शामिल अन्य लक्ष्यों में श्रम दशाएं, मूल निवासियों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार, मानव एवं दवाओं का अवैध व्यापार, शस्त्र व्यपार, वैश्विक स्वास्थ्य, युद्धबंदी तथा यूरोप में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा थे। संघ के पीछे कूटनीतिक दर्शन ने पूर्ववर्ती सौ साल के विचारों में एक बुनियादी बदलाव का प्रतिनिधित्व किया। चूंकि संघ के पास अपना कोई बल नहीं था, इसलिए इसे अपने किसी संकल्प का प्रवर्तन करने, संघ द्वारा आदेशित आर्थिक प्रतिबंध लगाने या आवश्यकता पड़ने पर संघ के उपयोग के लिए सेना प्रदान करने के लिए महाशक्तियों पर निर्भर रहना पड़ता था। हालांकि, वे अक्सर ऐसा करने के लिए अनिच्छुक रहते थे। प्रतिबंधों से संघ के सदस्यों को हानि हो सकती थी, अतः वे उनका पालन करने के लिए अनिच्छुक रहते थे। जब द्वित्तीय इटली-अबीसीनिया युद्ध के दौरान संघ ने इटली के सैनिकों पर रेडक्रॉस के मेडिकल तंबू को लक्ष्य बनाने का आरोप लगाया था, तो बेनिटो मुसोलिनी ने पलट कर जवाब दिया था कि “संघ तभी तक अच्छा है जब गोरैया चिल्लाती हैं, लेकिन जब चीलें झगड़ती हैं तो संघ बिलकुल भी अच्छा नहीं है”.

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रक्तदान

रक्तदान का चित्रीय आरेख रक्तदान तब होता है जब एक स्वस्थ व्यक्ति स्वेच्छा से अपना रक्त देता है और रक्त-आधान (ट्रांसफ्यूजन) के लिए उसका उपयोग होता है या फ्रैकशेनेशन नामक प्रक्रिया के जरिये दवा बनायी जाती है। विकसित देशों में, अधिकांश रक्तदाता अवैतनिक स्वयंसेवक होते हैं, जो सामुदायिक आपूर्ति के लिए रक्त दान करते हैं। गरीब देशों में, स्थापित आपूर्ति सीमित हैं और आमतौर पर परिवार या मित्रों के लिए आधान की जरूरत होने पर ही रक्तदाता रक्त दिया करते हैं। अनेक दाता दान के रूप में रक्त देते हैं, लेकिन कुछ लोगों को भुगतान किया जाता है और कुछ मामलों में पैसे के बजाय काम के समय में सवैतनिक छुट्टी के रूप में प्रोत्साहन दिए जाते हैं। कोई दाता अपने भविष्य के उपयोग के लिए रक्त दान कर सकता है। रक्त दान अपेक्षाकृत सुरक्षित है, लेकिन कुछ दाताओं को उस जगह खरोंच आ जाती है जहां सूई डाली जाती है या कुछ लोग मूर्छा महसूस कर सकते है। संभावित दाताओं का मूल्यांकन किया जाता है ताकि उनके खून का उपयोग असुरक्षित न रहे। जांच में एचआईवी और वायरल हैपेटाइटिस जैसी बिमारियों के परीक्षण शामिल हैं जो रक्त-आधान के जरिये संक्रमित हो सकते हैं। दाता से उसके चिकित्सा इतिहास के बारे में भी पूछा जाता है और दाता के स्वास्थ्य पर दान से कोई क्षतिकारक प्रभाव नहीं पड़े, यह सुनिश्चित करने के लिए उसकी एक संक्षिप्त शारीरिक जांच की जाती है। कितनी बार एक दाता दान कर सकता है यह दिनों और महीनों में भिन्न हो सकता है, यह इस बात पर निर्भर है कि वह क्या दान कर रहा या कर रही है और किस देश में दान दिया-लिया जा रहा है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में एक दाता को पूर्ण रक्त दानों के बीच 8 हफ्ते (56 दिन) का इंतजार करना पड़ता है, लेकिन प्लेटलेटफेरेसिस दानों के लिए सिर्फ तीन दिनों का। दिए जाने वाले रक्त की मात्रा और तरीके अलग-अलग हो सकते है, लेकिन एक आदर्श दान पूरे खून का 450 मिलीलीटर (या लगभग एक यूएस पिंट) होता है। इसे मैनुअली या स्वचालित उपकरण से संग्रहित किया जा सकता है जो कि केवल खून के विशिष्ट भाग को लेता है। आधान के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले खून के अधिकांश घटक का छोटा अचल जीवन होता है और लगातार आपूर्ति बनाये रखना एक स्थायी समस्या है। .

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रक्ताधान

रक्ताधान रक्त या रक्त-आधारित उत्पादों को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के परिसंचरण तंत्र में स्थानांतरित करने की प्रक्रिया है। कुछ स्थितियों में, जैसे कि चोट लगने के कारण अत्यधिक रक्तस्राव होने पर, रक्ताधान जीवन-रक्षी हो सकता है, या शल्य-चिकित्सा के दौरान होने वाले रक्त की हानि की आपूर्ति करने के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है। रक्ताधान का उपयोग रक्त संबंधी बीमारी के द्वारा उत्पन्न गंभीर रक्तहीनता या बिम्बाणु-अल्पता (रक्त में प्लेटलेटों की संख्या में कमी) का उपचार करने के लिए भी किया जा सकता है। अधिरक्तस्राव (हीमोफ़ीलिया) या अर्द्धचन्द्राकार लाल रक्तकोशिका संबंधी बीमारी से प्रभावित व्यक्ति के लिए बहुधा रक्ताधान की आवश्यकता हो सकती है। प्रारंभिक रक्ताधानों में संपूर्ण रक्त का उपयोग होता था, लेकिन आधुनिक चिकित्सा प्रणाली आम तौर पर केवल रक्त के अवयवों का उपयोग करती हैं। .

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रोनाल्ड रॉस

रोनाल्ड रॉस (13 मई 1857 - 16 सितंबर 1932) एक ब्रिटिश नोबेल पुरस्कार विजेता थे। उनका जन्म भारत के उत्तराखण्ड राज्य के कुमांऊँ के अल्मोड़ा जिले के एक गॉंव में हुआ था। उन्हें चिकित्सा तथा मलेरिया के परजीवी प्लास्मोडियम के जीवन चक्र के अन्वेषण के लिये सन् 1902 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। .

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शिवालिक

शिवालिक श्रेणी या बाह्य हिमालय भी कहा जाता है) हिमालय पर्वत का सबसे दक्षिणी तथा भौगोलिक रूप से युवा भाग है जो पश्चिम से पूरब तक फैला हुआ है। यह हिमायल पर्वत प्रणाली के दक्षिणतम और भूगर्भ शास्त्रीय दृष्टि से, कनिष्ठतम पर्वतमाला कड़ी है। इसकी औसत ऊंचाई 850-1200 मीटर है और इसकी कई उपश्रेणियां भी हैं। यह 1600 कि॰मी॰ तक पूर्व में तिस्ता नदी, सिक्किम से पश्चिमवर्त नेपाल और उत्तराखंड से कश्मीर होते हुए उत्तरी पाकिस्तान तक जाते हैं। सहारनपुर, उत्तर प्रदेश से देहरादून और मसूरी के पर्वतों में जाने हेतु मोहन दर्रा प्रधान मार्ग है। पूर्व में इस श्रेणी को हिमालय से दक्षिणावर्ती नदियों द्वारा, बड़े और चौड़े भागों में काटा जा चुका है। मुख्यत यह हिमालय पर्वत की बाह्यतम, निम्नतम तथा तरुणतम श्रृंखला हैं। उत्तरी भारत में ये पहाड़ियाँ गंगा से लेकर व्यास तक २०० मील की लंबाई में फैली हुई हैं और इनकी सर्वोच्च ऊंचाई लगभग ३,५०० फुट है। गंगा नदी से पूर्व में शिवालिक सदृश संचरना पाटली, पाटकोट तथा कोटह को कालाघुंगी तक हिमालय को बाह्य श्रृंखला से पृथक्‌ करती है। ये पहाड़ियाँ पंजाब में होशियारपुर एवं अंबाला जिलों तथा हिमाचल प्रदेश में सिरमौर जिले को पार कर जाती है। इस भाग की शिवालिक श्रृंखला अनेक नदियों द्वारा खंडित हो गई है। इन नदियों में पश्चिम में घग्गर सबसे बड़ी नदी है। घग्गर के पश्चिम में ये पहाड़ियाँ दीवार की तरह चली गई हैं और अंबाला को सिरसा नदी की लंबी एवं तंग घाटी से रोपड़ तक, जहाँ पहाड़ियों को सतलुज काटती है, अलग करती हैं। व्यास नदी की घाटी में ये पहाड़ियाँ तरंगित पहड़ियों के रूप में समाप्त हो जाती हैं। इन पहड़ियों की उत्तरी ढलान की चौरस सतहवाली घाटियों को दून कहते हैं। ये दून सघन, आबाद एवं गहन कृष्ट क्षेत्र हैं। सहारनपुर और देहरादून को जोड़नेवाली सड़क मोहन दर्रे से होकर जाती है। भूवैज्ञानिक दृष्टि से शिवालिक पहाड़ियाँ मध्य-अल्प-नूतन से लेकर निम्न-अत्यंत-नूतन युग के बीच में, सुदूर उत्तर में, हिमालय के उत्थान के समय पृथ्वी की हलचल द्वारा दृढ़ीभूत, वलित एवं भ्रंशित हुई हैं। ये मुख्यत: संगुटिकाश्म तथा बलुआ पत्थर से निर्मित है और इनमें स्तनी वर्ग के प्राणियों के प्रचुर जीवाश्म मिले हैं .

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श्वसन तंत्र

श्वसन तंत्र का योजनामूलक चित्र श्वसन तंत्र या 'श्वासोच्छ्वास तंत्र' में सांस संबंधी अंग जैसे नाक, स्वरयंत्र (Larynx), श्वासनलिका (Wind Pipe) और फुफ्फुस (Lungs) आदि शामिल हैं। शरीर के सभी भागों में गैसों का आदान-प्रदान (gas exchange) इस तंत्र का मुक्य कार्य है। .

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शेरोन स्टोन

शेरोन य्वोन स्टोन (जन्म - 10 मार्च 1958) एक अमेरिकी अभिनेत्री, फिल्म निर्माता और पूर्व फैशन मॉडल है। एक कामुक रोमांचक फिल्म, बेसिक इंस्टिंक्ट में अपने प्रदर्शन के लिए उसने पहली बार अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त की.

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समकालीन

समकालीन इतिहास के उस अवधि के बारे में बताता है जो आज के लिए एकदम प्रासंगिक है तथा आधुनिक इतिहास के कुछ निश्चित परिप्रेक्ष्य से संबंधित है। हाल के समकालीन इतिहास की कमजोर परिभाषा विश्व युद्ध-II जैसी घटनाओं को शामिल करती है, लेकिन उन घटनाओं को शामिल नहीं करती जिनके प्रभाव को समाप्त किया जा चुका है। .

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सर्वांगशोथ

सर्वांगशोथ से पीड़ित एक बालक सर्वांगशोथ, या देहशोथ (Anasarca) शरीर की एक विशिष्ट सर्वांगीय शोथयुक्त अवस्था है, जिसके अंतर्गत संपूर्ण अधस्त्वचीय ऊतक में शोथ (oedema) के कारण तरल पदार्थ का संचय हो जाता है। इसके कारण शरीर का आकार बहुत बड़ा हो जाता है तथा उसकी एक विशेष प्रकार की आकृति हो जाती है। .

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सिनकोना

सिनकोना (Cinchona) एक सदाबहार पादप है जो झाड़ी अथवा ऊँचे वृक्ष के रूप में उपजता है। यह रूबियेसी (Rubiaceae) कुल की वनस्पति है। इनकी छाल से कुनैन नामक औषधि प्राप्त की जाती है जो मलेरिया ज्वर की दवा है। यह बहुवर्षीय वृक्ष सपुष्पक एवं द्विबीजपत्री होता है। इसके पत्ते लालिमायुक्त तथा चौड़े होते हैं जिनके अग्र भाग नुकीले होते हैं। शाखा-प्रशाखाओं में असंख्य मंजरी मिलती है। इसकी छाल कड़वी होती है। इस वंश में ६५ जातियाँ हैं। सिनकोना का पौधा नम-गर्म जलवायु में उगता है। उष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधी क्षेत्र जहां तापमान ६५°-७५° फारेनहाइट तथा वर्षा २५०-३२५ से.मी.

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सिस्टोसोमियासिस

सिस्टोसोमियासिस (जिसे बिलहर्ज़िया, स्नेल फीवर और कत्यामा फीवरभी कहते हैं) एक रोग है जो सिस्टोसोमा प्रकार के परजीवी कीड़ों के कारण होता है। --> यह मूत्र मार्ग या आंतोंको संक्रमित कर सकता है। --> लक्षणों में पेट दर्द, डायरिया, खूनी पेचिश या मूत्रमें रक्त जाना शामिल है। --> वे लोग जो लंबे समय से संक्रमित है उनमें लीवर की क्षति, किडनी की विफलता, बांझपन या ब्लैडर का कैंसर हो सकता है। --> बच्चों में इसके कारण वृद्धि व सीखने की क्षमता का हास हो सकता है। .

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सिकल-सेल रोग

सिकल-सेल रोग (SCD) या सिकल-सेल रक्ताल्पता या ड्रीपेनोसाइटोसिस एक आनुवंशिक रक्त विकार है जो ऐसी लाल रक्त कोशिकाओं के द्वारा चरितार्थ होता है जिनका आकार असामान्य, कठोर तथा हंसिया के समान होता है। यह क्रिया कोशिकाओं के लचीलेपन को घटाती है जिससे विभिन्न जटिलताओं का जोखिम उभरता है। यह हंसिया निर्माण, हीमोग्लोबिन जीन में उत्परिवर्तन की वजह से होता है। जीवन प्रत्याशा में कमी आ जाती है, एक सर्वेक्षण के अनुसार महिलाओं की औसत जीवन प्रत्याशा 48 और पुरुषों की 42 हो जाती है। सिकल सेल रोग, आमतौर पर बाल्यावस्था में उत्पन्न होता है और प्रायः ऐसे लोगों (या उनके वंशजों में) में पाया जाता है जो उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय भागों में पाए जाते हैं तथा जहां मलेरिया सामान्यतः पाया जाता है। अफ्रीका के उप सहारा क्षेत्र के एक तिहाई स्वदेशियों में यह पाया जाता है, क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में जहां मलेरिया आम तौर पर पाया जाता है वहां जीवन का अस्तित्व तभी संभव है जब एक सिकल-कोशिका का जीन मौजूद हो.

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संसार के देश और निवासी

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संक्रामक रोग

संक्रामक रोग, रोग जो किसी ना किसी रोगजनित कारको (रोगाणुओं) जैसे प्रोटोज़ोआ, कवक, जीवाणु, वाइरस इत्यादि के कारण होते है। संक्रामक रोगों में एक शरीर से अन्य शरीर में फैलने की क्षमता होती है। मलेरिया, टायफायड, चेचक, इन्फ्लुएन्जा इत्यादि संक्रामक रोगों के उदाहरण हैं। .

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संक्रामक रोगों की सूची

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स्प्लेनोमेगाली

प्लीहा (स्प्लीन) की वृद्धि को स्प्लेनोमेगाली (प्लीहावृद्धि या तिल्ली का बढ़ना) कहते हैं। प्लीहा या तिल्ली आम तौर पर मानव पेट के बाएँ ऊपरी चतुर्भाग (एलयूक्यू) में स्थित होती है। यह हाइपरस्प्लेनिज्म के चार प्रमुख संकेतों में से एक है, अन्य तीन संकेत हैं - साइटोपेनिया, सामान्य या हाइपरप्लास्टिक अस्थि मज्जा और स्प्लेनेक्टोमी की प्रतिक्रिया.

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स्वास्थ्य सेवा

स्वास्थ्य सेवा या हेल्थकेयर का अर्थ बीमारी की रोकथाम और उपचार करना है। स्वास्थ्य सेवा चिकित्सा, दन्त चिकित्सा, नर्सिंग और स्वास्थ्य से सम्बंधित पेशेवरों द्वारा प्रदान की जाती है। स्वास्थय सेवा तक पहुँच देशों, समूहों और व्यक्तियों के अनुसार बदलती रहती है। इसपर उस जगह की स्वास्थय नीतियों, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों का गहरा प्रभाव पडता है। हर देश में जनता को स्वास्थय लाभ पहुँचाने हेतु विभिन्न नीतियों का निर्माण किया जाता है। .

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सैमुएल हैनीमेन

सैम्यूल हानेमानडॉ॰ क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैम्यूल हानेमान (जन्‍म 1755-मृत्‍यु 1843 ईस्‍वी) होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता थे। आप यूरोप के देश जर्मनी के निवासी थे। आपके पिता जी एक पोर्सिलीन पेन्‍टर थे और आपने अपना बचपन अभावों और बहुत गरीबी में बिताया था। एम0डी0 डिग्री प्राप्‍त एलोपैथी चिकित्‍सा विज्ञान के ज्ञाता थे। डॉ॰ हैनिमैन, एलोपैथी के चिकित्‍सक होनें के साथ साथ कई यूरोपियन भाषाओं के ज्ञाता थे। वे केमिस्‍ट्री और रसायन विज्ञान के निष्‍णात थे। जीवकोपार्जन के लिये चिकित्‍सा और रसायन विज्ञान का कार्य करनें के साथ साथ वे अंग्रेजी भाषा के ग्रंथों का अनुवाद जर्मन और अन्‍य भाषाओं में करते थे। एक बार जब अंगरेज डाक्‍टर कलेन की लिखी “कलेन्‍स मेटेरिया मेडिका” में वर्णित कुनैन नाम की जडी के बारे में अंगरेजी भाषा का अनुवाद जर्मन भाषा में कर रहे थे तब डॉ॰ हैनिमेन का ध्‍यान डॉ॰ कलेन के उस वर्णन की ओर गया, जहां कुनैन के बारे में कहा गया कि ‘’ यद्यपि कुनैन मलेरिया रोग को आरोग्‍य करती है, लेकिन यह स्‍वस्‍थ शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा करती है। कलेन की कही गयी यह बात डॉ॰ हैनिमेन के दिमाग में बैठ गयी। उन्‍होंनें तर्कपूर्वक विचार करके क्विनाइन जड़ी की थोड़ी थोड़ी मात्रा रोज खानीं शुरू कर दी। लगभग दो हफ्ते बाद इनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। जड़ी खाना बन्‍द कर देनें के बाद मलेरिया रोग अपनें आप आरोग्‍य हो गया। इस प्रयोग को डॉ॰ हैनिमेन ने कई बार दोहराया और हर बार उनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। क्विनीन जड़ी के इस प्रकार से किये गये प्रयोग का जिक्र डॉ॰ हैनिमेन नें अपनें एक चिकित्‍सक मित्र से की। इस मित्र चिकित्‍सक नें भी डॉ॰ हैनिमेन के बताये अनुसार जड़ी का सेवन किया और उसे भी मलेरिया बुखार जैसे लक्षण पैदा हो गये। कुछ समय बाद उन्‍होंनें शरीर और मन में औषधियों द्वारा उत्‍पन्‍न किये गये लक्षणों, अनुभवो और प्रभावों को लिपिबद्ध करना शुरू किया। हैनिमेन की अति सूच्‍छ्म द्रष्टि और ज्ञानेन्द्रियों नें यह निष्‍कर्ष निकाला कि और अधिक औषधियो को इसी तरह परीक्षण करके परखा जाय। इस प्रकार से किये गये परीक्षणों और अपने अनुभवों को डॉ॰ हैनिमेन नें तत्‍कालीन मेडिकल पत्रिकाओं में ‘’ मेडिसिन आंफ एक्‍सपीरियन्‍सेस ’’ शीर्षक से लेख लिखकर प्रकाशित कराया। इसे होम्‍योपैथी के अवतरण का प्रारम्भिक स्‍वरूप कहा जा सकता है। .

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सूर्य देवता

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सूजाक

सूजाक एक संक्रामक यौन रोग (यौन संचारित बीमारी (एसटीडी)) है। सूजाक नीसेरिया गानोरिआ नामक जीवाणु से होता है जो महिला तथा पुरुषों में प्रजनन मार्ग के गर्म तथा गीले क्षेत्र में आसानी और बड़ी तेजी से बढ़ती है। इसके जीवाणु मुंह, गला, आंख तथा गुदा में भी बढ़ते हैं। उपदंश की तरह यह भी एक संक्रामक रोग है अतः उन्ही स्त्री-पुरुषों को होता है जो इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति से यौन संपर्क करते हैं। सूजाक रोग में चूँकि लिंगेन्द्रिय के अंदर घाव हो जाता है और इससे पस निकलता है अतः इसे हिंदी में 'पूयमेह ', औपसर्गिक पूयमेह और ' परमा ' कहते हैं और अंग्रेजी भाषा में गोनोरिया (gonorrhoea) कहते हैं.

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हिन्दुस्तान कीटनाशक लिमिटेड

हिन्दुस्तान कीटनाशक लिमिटेड का मुम्बई में स्थित 'रसायनी' कार्यालय हिन्दुस्तान कीटनाशक लिमिटेड (Hindustan Insecticides Limited, एच॰आई॰एल॰), भारत सरकार का उद्यम है जो रसायन और उर्वरक मंत्रालय, रसायन एवं पेट्रो-रसायन विभाग, के नियंत्रणाधीन है। इसकी स्थापना मार्च १९५४ में भारत सरकार द्धारा आरम्भ किए गए राष्ट्रीय मलेरिया रोधी कार्यक्रम मे लिए डीडीटी की आपूर्ति के लिए की गई। बाद में कंपनी कृषि क्षेत्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कृषि-कीटनाशक (एग्रो-पैस्टिसाइड्स) में विविधता लाई और वर्ष २००५-०६ में मिलियन रू॰ की बिक्री करके बहुमुखी रूप से विकसित हुई। कम्पनी जन-स्वास्थ्य एवं पादप संरक्षण के लिए सुरक्षित और पर्यावरणीय अनुकूल वनस्पतिक तथा बायो-पैस्टिसाइड्स के क्षेत्र में प्रवेश किया। इसके उत्पादों में कीटनाशी, शाकनाशी, अपतृणनाशी, फंगसनाशी इत्यादि उत्पाद सम्मिलित हैं। एच०आई०एल० विश्व की सबसे बडी डीडीटी उत्पादक है। इसके अतिरिक्त कंपनी का डीडीटी के विनिर्माणन में ५० वर्ष से अधिक अनुभव तथा निपुणता है। कंपनी एक दशक से भी अधिक समय से अपने कृषि उत्पादों का बहुत से देशों जैसे नीदरलैंड, यू.के., जमैका, यू.ए.ई., मनीला, दक्षिण कोरिया, बैल्जियम, ग्वाटेमाला, फ्रांस, जर्मनी, अर्जन्टिना, इथोपिया, मिश्र, स्पेन इत्यादि को निर्यात कर रही है तथा इसके उत्पाद विश्व-बाजार में अच्छी तरह से स्वीकार किए गए है। कम्पनी का पूरे देश में व्यापक विपणन-जाल (नेटवर्क) है, जिसमें छः क्षेत्रीय बिक्री कार्यालय तथा लगभग ८०० डीलर सम्मिलित हैं। कम्पनी की तीन विनिर्माणन इकाईयाँ है, जो 'उद्योगमंडल', कोचिन के पास (दक्षिण भारत), 'रसायनी' मुम्बई के पास (पश्चिम भारत) तथा बठिंडा (उत्तर भारत) में स्थित हैं। कंपनी का हरियाणा, गुडगाँव में प्रायोगिक कृषि-क्षेत्र (एक्सपैरिमेन्टल फार्म) के साथ अपना एक अनुसंधान एवं विकास काम्पलैक्स भी है। .

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जगत (जीवविज्ञान)

संघ शामिल होते हैं जगत (अंग्रेज़ी: kingdom, किंगडम) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में जीवों के वर्गीकरण की एक ऊँची श्रेणी होती है। आधुनिक जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में यह श्रेणी संघों (फ़ायलमों) से ऊपर आती है, यानि एक जगत में बहुत से संघ होते हैं और बहुत से संघों को एक जीववैज्ञानिक जगत में संगठित किया जाता है।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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जुड़वां

एकयुग्मनज जुड़वां एक ही गर्भावस्था के दौरान पैदा होने वाली दो संतानों को जुड़वां कहते हैं। अंतिम सम्पादकीय की समीक्षा: 19/6/2000 जुड़वां या तो एक जैसे हो सकते हैं (वैज्ञानिक भाषा में, "एकयुग्मनज/मोनोज़ाईगोटिक"), जिसका अर्थ है कि वे एक ही युग्मनज से पनपे हैं जो विभाजित होता है और दो भ्रूणों का रूप ले लेता है, या भ्रात्रिक ("द्वियुग्मनज/डाईज़ाईगोटिक") हो सकते हैं क्योंकि वे दो अलग अलग अंडो में दो विभिन्न शुक्राणुओं द्वारा निषेचित होते हैं। इसके विपरीत, एक भ्रूण जो गर्भ में अकेले विकसित होता है उसको सिंगलटन कहा जाता है और एक साथ जन्मी एकाधिक संतानों में से एक को मल्टीपल कहा जाता है। सैद्धांतिक रूप से ऐसा संभव है कि दो सिंगलटन एक समान हों यदि मां और पिता के दोनों गेमेट के सभी 23 गुणसूत्र एक जन्म से अगले जन्म तक सटीक रूप से मिलते हों.

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ज्वर

जब शरीर का ताप सामान्य से अधिक हो जाये तो उस दशा को ज्वर या बुख़ार (फीवर) कहते है। यह रोग नहीं बल्कि एक लक्षण (सिम्टम्) है जो बताता है कि शरीर का ताप नियंत्रित करने वाली प्रणाली ने शरीर का वांछित ताप (सेट-प्वाइंट) १-२ डिग्री सल्सियस बढा दिया है। मनुष्य के शरीर का सामान्‍य तापमान ३७°सेल्सियस या ९८.६° फैरेनहाइट होता है। जब शरीर का तापमान इस सामान्‍य स्‍तर से ऊपर हो जाता है तो यह स्थिति ज्‍वर या बुखार कहलाती है। ज्‍वर कोई रोग नहीं है। यह केवल रोग का एक लक्षण है। किसी भी प्रकार के संक्रमण की यह शरीर द्वारा दी गई प्रतिक्रिया है। बढ़ता हुआ ज्‍वर रोग की गंभीरता के स्‍तर की ओर संकेत करता है। .

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जेफरसन डेविस

जेफरसन डेविस (Jefferson Finis Davis) (3 जून 1808 – 6 दिसम्बर 1889) संयुक्त राज्य अमेरिका के एक राजनेता तथा अमेरिकी गृहयुद्ध के समय परिसंघीय राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति थे। डेविस का जन्म फेयरव्यू, केंटकी में एक मध्यम समृद्ध किसान के यहा हुआ, और मिसिसिपी और लुईज़ियाना में स्थित अपने बड़े भाई जोसेफ के कपास के बागान पर पले-बड़े। स्नातक होने के बाद, जेफरसन डेविस ने संयुक्त राज्य सेना में एक लेफ्टिनेंट के रूप में छह साल की सेवारत रहें। उन्होंने मेक्सिकन-अमेरिकन युद्ध (1846-1848) में, एक स्वयंसेवक रेजिमेंट के कर्नल के रूप में लड़ाई लडी। अमेरिकी गृहयुद्ध से पहले, उन्होंने मिसिसिपी में एक बड़े कपास बागान का संचालन किया और 74 से ज्यादा दासों के स्वामी थे। हालांकि उन्होंने 1858 में संघ से अलगाव के खिलाफ तर्क दिया, उनका मानना था कि संघ को छोड़ने के लिए राज्यों को पास एक निर्विवाद अधिकार हैं। डेविस की पहली पत्नी, सारा नॉक्स टेलर, की शादी के तीन महीने बाद ही मलेरिया से मृत्यु हो गई थी, और वह खुद भी बीमारियों से जूझ रहे थे।Cooper 2000, pp. 70–71. अपने जीवन के अधिकतर काल वे अस्वस्थ रहे। 36 साल की आयु में, डेविस ने, फ़िलाडेल्फ़िया में पली-बढी 18 वर्षीय वरीना हावेल, नर्तज़, मिसिसिपी के एक मूल निवासी, से दोबारा शादी की। उनके छह बच्चे हुए लेकिन केवल दो ही जीवित रहे। कई इतिहासकारों ने कुछ परिसंघीय की कमजोरियों का श्रेय डेविस के निर्बल नेतृत्व को दिया है। जिम्मेदारी सौंपने के लिए अनिच्छा, लोकप्रिय अपील की कमी, शक्तिशाली राज्य के राज्यपालों और जनरलों के साथ झगड़े, पुराने दोस्तों के प्रति पक्षपात, उनसे असहमति वाले लोगों के साथ मिलने की असमर्थता, सैन्य मामलों के पक्ष में नागरिक मामलों की उपेक्षा, और जनता के प्रति प्रतिरोध ने सभी को उनके खिलाफ कर दिया। इतिहासकारों का मानना ​​है कि वे अपने विरोधी समकक्ष अब्राहम लिंकन से बहुत कम प्रभावी युद्ध नेता थे। डेविस को 1865 में बंदी बनाने के बाद, उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया और मोनरो फोर्ट में कैद कर लिया गया। उन पर मुकदमा नहीं चलाया गया और दो साल बाद मुक्त कर दिया गया। डेविस ने एक संस्मरण लिखा जिसका शीर्षक "द राइज़ एंड फॉल ऑफ़ कॉन्फेडरेट गवर्मेंट", जिसे उन्होंने 1881 में पूरा किया। 1880 के अंत तक, उन्होंने सुलह को प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया, और दक्षिणी लोगों को संघ के प्रति वफादार होने के लिए कहा। पूर्व-संघीय युद्ध (गृहयुद्ध) में उनकी भूमिका की सराहना की जाती है, और उन्हें दक्षिणी देशभक्त के रूप में देखा जाता है। .

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जोसेफ बियाँनेमे कैवेंतु

जोसेफ बियाँनेमे कैवेंतु (1795 - 1877), एक फ्रेंच रासायनशास्त्री थे। ये पेरिस के एक फ़ार्मेशी विद्दालय के शिक्षक भी थे। पियेर जोसेफ पेलेतिये के साथ मिलकर उन्होने पौधों ने प्राप्त एल्केल्वाय़ड्स पर महत्वपुर्ण शोध कार्य किया। उन दोनों ने मिलकर कूनैन का आविष्कार किया। कूनैन का उपयोग मलेरिया के दवा के रूप में होता है। श्रेणी:वैज्ञानिक श्रेणी:व्यक्तिगत जीवन श्रेणी:मलेरिया.

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वासरमान परीक्षण

वासरमान प्रतिक्रिया (Wassermann reaction) रुधिर परीक्षण की एक ऐसी प्रतिक्रिया है जिससे पता लगता है कि कोई व्यक्ति उपदंश रोग (सिफलिस) से आक्रांत है या नहीं। उपदंश रोग स्पाइरोकीट नामक दंडाणु से उत्पन्न होता है। इस प्रतिक्रिया का पता लगानेवाले जर्मन प्राध्यापक ऑगस्टवॉन वासरमान (१८६६-१९२५ ई.) थे जिन्होंने इस प्रतिक्रिया का १९०६ ई. में आविष्कार किया। ऑगस्टवॉन वासरमान (फरवरी, सन्‌ १८६६ से मार्च, सन्‌ १९२५) ओषधि के जर्मन प्रोफेसर और अनुसंधानकर्ता थे ये डाक्टरी भी करते थे। ये बार्लिन-डेल्हम के कैसर विलहेल्म इंस्टिट्यूट में निदेशक हो गए थे। इन्होंने मेडिकल विषयों पर अनेक महत्व के लेख लिखे हैं। इन्हीं के नाम पर रुधिर की प्रतिकिया का नाम पड़ा, जो वासरमान प्रतिक्रिया के नाम से ज्ञात है। इस प्रतिक्रिया में रुधिर का परीक्षण किया जाता है जिससे पता लगता है कि रोगी उपदंश रोग से आक्रांत है या नहीं। उपदंश रोग एक दंडाणु स्पाइरोकीट से उत्पन्न होता है। उपदंशग्रस्त रोगी के रुधिर में एक प्रोटीन रहता है जिसे एंटीबॉडी कहते हैं। उपदंशग्रस्त मानव ऊतक के जलीय निष्कर्ष में यह एंटीबॉडी रहता है। इस प्रतिक्रिया का अनेक रोगियों के निदान में प्रयोगशालाओं में परीक्षण हुए हैं। यदि ठीक से यह परीक्षण किया जाए तो ९५ प्रतिशत रोगियों में रोग की पहचान हो जाती है। यदि रोगी उपदंश से ग्रस्त है, तो उसके रुधिर में "एंटीबॉडी' बनता है जो रोगाणु का प्रतिरोध करता है। यदि रोगी उपदंश से आक्रांत है, तो उससे प्रतिक्रिया धनात्मक (+) होती है। यदि उपदंश से आक्रांत नहीं है, तो प्रतिक्रिया नकारात्मक होती है। यह प्रतिक्रिया शत-प्रति-शत निश्चित नहीं है। ९५% आक्रमण में यह धनात्मक प्रतिक्रिया देती है। इस प्रतिक्रिया में पर्याप्त सुधार हुए हैं और अब पता लगता है कि कुछ अन्य रोगों में भी इससे धनात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त होती है। ऐसे रोग हैं कुष्ठ, कैंसर, मलेरिया, पुरातन कालाजार, निद्रारोग इत्यादि। अत: केवल वासरमान प्रतिक्रिया से उपदंश रोग होने की बात निश्चित रूप से नहीं कही जा सकती है। पर इस परीक्षण से यह पता अवश्य लगता है कि उपदंश से आक्रांत रोगी को आराम हो गया है या नहीं। आराम हो जाने पर क्रिया अवश्य ही ऋणात्मक होगी। .

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विश्व मलेरिया दिवस

विश्व मलेरिया दिवस प्रत्येक वर्ष 25 अप्रैल को मनाया जाता है यह दिन इस बात के लिए भी पहचाना जाता है कि मलेरिया के नियंत्रण हेतु किस प्रकार के वैश्विक प्रयास किए जा रहे हैंमच्छरों के कारण फैलने वाली इस बीमारी में हर साल कई लाख लोग जान गवाँ देते हैं। 'प्रोटोजुअन प्लाज्‍मोडियम' नामक कीटाणु मादा एनोफिलीज मच्छर के माध्यम से फैलते है।पूरे विश्व की 3.3 अरब जनसंख्या में लगभग 106 से देश हैं जिनमें मलेरिया का खतरा है वर्ष 2012 में मलेरिया के कारण लगभग 6,27,000 मृत्यु हुई जिनमें से अधिकतर अफ्रीकी, एशियाई, लैटिन अमेरिकी बच्चे शामिल है इसका प्रभाव कुछ हद तक मध्य पूर्व तथा कुछ यूरोप के भागों में भी हुआ। विश्व मलेरिया दिवस उन 8 आधिकारिक वैश्विक सामुदायिक स्वास्थ्य अभियानों में से एक हैं जिसे द्वारा चिन्हित किया गया है इनमें से विश्व स्वास्थ्य दिवस, विश्व रक्तदाता दिवस, विश्व टीकाकरण सप्ताह, विश्व तपेदिक दिवस, विश्व तंबाकू निषेध दिवस, विश्व हेपेटाइटिस दिवस एवं विश्व एड्स दिवस हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का ध्वज .

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विश्वमारी

विश्वमारी (यूनानी (ग्रीक) शब्द πᾶν पैन "सब" + δῆμος डेमोस "लोग" से), संक्रामक रोगों की एक महामारी है जो मानव आबादी के माध्यम से एक विशाल क्षेत्र, उदाहरण के लिए, एक महाद्वीप, या यहां तक कि दुनिया भर में भी फ़ैल रहा है। एक व्यापक स्थानिक रोग जो इस दृष्टि से स्थिर होता है कि इससे कितने लोग बीमार हो रहे हैं, एक विश्वमारी नहीं है। इसके अलावा, फ्लू विश्वमारियों में मौसमी फ्लू को तब तक शामिल नहीं किया जाता है जब तक मौसम का फ्लू एक विश्वमारी न हो। सम्पूर्ण इतिहास में चेचक और तपेदिक जैसी असंख्य विश्वमारियों का विवरण मिलता है। अधिक हाल की विश्वमारियों में एचआईवी (HIV) विश्वमारी और 2009 की फ्लू विश्वमारी शामिल है। .

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व्यावसायिक संरक्षा एवं स्वास्थ्य

द्वितीय विश्वयुद्ध के समय १९४३ में लेथ पर कार्य करती हुई एक ब्रिटेन की लड़की अपने कार्य का निरीक्षण कर रही है, किन्तु उसकी आंखों पर सुरक्षा के लिये कुछ नहीं है। वर्तमान समय में इस तरह कार्य करने की अनुमति नहीं दी जा सकती व्यावसायिक संरक्षा एवं स्वास्थ्य (Occupational safety and health (OSH)) के अन्तर्गत किसी व्यवसाय या रोजगार में लगे हुए लोगों की संरक्षा, स्वास्थ्य एवं कल्याण पर विचार किया जाता है। .

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वैश्विक स्वास्थ्य

वैश्विक स्वास्थ्य वैश्विक संदर्भ में लोगों का स्वास्थ्य से संबंधित मामला है और यह किसी व्यक्ति के राष्ट्र की चिंताओं और दृष्टिकोण से परे मामला है। स्वास्थ्य समस्याएं, जो राष्ट्रीय सीमाओं को पार कर जाती हैं या जिनका वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव पड़ता है, पर हमेशा जोर दिया जाता है। इसे कुछ इस तरह से परिभाषित किया गया है, 'यह अध्ययन, शोध और अभ्यास का वह क्षेत्र है जिसमें दुनिया के लोगों के स्वास्थ्य सुधार और स्वास्थ्य में समानता प्राप्त करने को प्राथमिकता दी जाती है'.

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गर्भावस्था

गर्भवती महिला प्रजनन सम्बन्धी अवस्था, एक मादा के गर्भाशय में भ्रूण के होने को गर्भावस्था (गर्भ + अवस्था) कहते हैं, तदुपरांत महिला शिशु को जन्म देती है। आमतौर पर यह अवस्था मां बनने वाली महिलाओं में ९ माह तक रहती है, जिसे गर्भवधी कहते है। कभी कभी संयोग से एकाधिक गर्भावस्था भी अस्तित्व में आ जति है जिस्से जुडवा एक से अधिक सन्तान कि उपस्थिति होती है। .

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गुजरात

गुजरात (गुजराती:ગુજરાત)() पश्चिमी भारत में स्थित एक राज्य है। इसकी उत्तरी-पश्चिमी सीमा जो अन्तर्राष्ट्रीय सीमा भी है, पाकिस्तान से लगी है। राजस्थान और मध्य प्रदेश इसके क्रमशः उत्तर एवं उत्तर-पूर्व में स्थित राज्य हैं। महाराष्ट्र इसके दक्षिण में है। अरब सागर इसकी पश्चिमी-दक्षिणी सीमा बनाता है। इसकी दक्षिणी सीमा पर दादर एवं नगर-हवेली हैं। इस राज्य की राजधानी गांधीनगर है। गांधीनगर, राज्य के प्रमुख व्यवसायिक केन्द्र अहमदाबाद के समीप स्थित है। गुजरात का क्षेत्रफल १,९६,०७७ किलोमीटर है। गुजरात, भारत का अत्यंत महत्वपूर्ण राज्य है। कच्छ, सौराष्ट्र, काठियावाड, हालार, पांचाल, गोहिलवाड, झालावाड और गुजरात उसके प्रादेशिक सांस्कृतिक अंग हैं। इनकी लोक संस्कृति और साहित्य का अनुबन्ध राजस्थान, सिंध और पंजाब, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के साथ है। विशाल सागर तट वाले इस राज्य में इतिहास युग के आरम्भ होने से पूर्व ही अनेक विदेशी जातियाँ थल और समुद्र मार्ग से आकर स्थायी रूप से बसी हुई हैं। इसके उपरांत गुजरात में अट्ठाइस आदिवासी जातियां हैं। जन-समाज के ऐसे वैविध्य के कारण इस प्रदेश को भाँति-भाँति की लोक संस्कृतियों का लाभ मिला है। .

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आयुर्विज्ञान पारजैविकी

आयुर्विज्ञान पारजैविकी परजीवी विज्ञान की प्राचीनतम श्रेणी है, जो आयुर्विज्ञान या चिकित्सा क्षेत्र से संबंधित है। यह मानव को प्रभावित/संक्रमित करने वाले परजीवियों का अध्ययन होता है। इसमें निम्न क्षेत्र आते हैं:-.

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आर्टिमीसिनिन

आर्टिमीसिनिन, एक दवा है जिसका प्रयोग प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम से पैदा होने वाले उस मलेरिया के इलाज में किया जाता है जो विभिन्न दवाओं से प्रतिरोधकता प्राप्त कर चुका हो। यह आर्टिमीसिया नामक एक पौधे से प्राप्त किया जाता है। इसका प्रयोग चीनी लोग अपनी पारंपरीक चिकित्सा पद्धति में करते हैं। यह प्रयोगशाला में आर्टिमीसिनिक अम्ल से संश्लेषित किया जा सकता है। श्रेणी:मलेरिया pl:Artemeter.

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आर्सेनिक

आर्सेनिक, आवर्त सारणी के पंचम मुख्य समूह का एक रासायनिक तत्व है। इसकी स्थिति फास्फोरस के नीचे तथा एंटीमनी के ऊपर है। आर्सेनिक में अधातु के गुण अधिक और धातु के गुण कम विद्यमान हैं। इस धातु को उपधातु (मेटालॉयड) की श्रेणी में रखा जाता है। आर्सेनिक से नीचे एंटीमनी में धातुगुण अधिक हैं तथा उससे नीचे बिस्मथ पूर्णरूपेण धातु है। पंचम मुख्य समूह में नीचे उतरने पर धातुगुण में वृद्धि होती है। आर्सैनिक की कुछ विशेषताएं निम्नांकित हैं: .

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आंजेलो चेली

आंजेलो चेली आंजेलो चेली (1857 - 1914), इटली के एक चिकित्सक तथा प्राणीविद् थे। इन्होनें मलेरिया का अध्ययन किया। सेली ने सन् 1878 में रोम के Sapienza University से स्नातक स्तर की पढ़ाई पूरी की तथा स्वास्थ्य विज्ञान के अध्यापक बन गये। 1880 में एत्तोरे मार्चियाफावा के साथ इन्होने, चार्ल्स लुई अल्फोंस लैवेरन के द्वारा खोजे गये एक नये प्रोटोज़ोआ का अध्ययन किया। इस नये प्रोटोज़ोआ का नामकरण दोनो ने मिलकर प्लास्मोडियम किया। उन्होंने मलेरिया के इस परजीवी का वर्षों तक अध्ययन किया। .

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इबोला वायरस रोग

इबोला विषाणु रोग (EVD) या इबोला हेमोराहैजिक बुखार (EHF) इबोला विषाणु के कारण लगने वाला अत्यन्त संक्रामक एवं घातक रोग है। --> आम तौर पर इसके लक्षण वायरस के संपर्क में आने के दो दिनों से लेकर तीन सप्ताह के बीच शुरू होता है, जिसमें बुखार, गले में खराश, मांसपेशियों में दर्द और सिरदर्दहोता है। --> आम तौर पर मतली, उल्टी और डायरिया होने के साथ-साथ जिगर और गुर्दाका कामकाज धीमा हो जाता है। --> इस स्थिति में, कुछ लोगों को खून बहने की समस्या शुरू हो जाती है। यह वायरस संक्रमित जानवर (सामान्यतया बंदर या फ्रुट बैट (एक प्रकार का चमगाद्ड़)के खून या के संपर्क में आने से होता है। (ref name.

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कार्बनिक यौगिक

मिथेन सबसे सरल कार्बनिक यौगिक कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। .

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कालमेह ज्वर

कालमेह ज्वर से संक्रमित कोशिका मलेरिया मच्छरों के नियन्त्रण में हवाई जहाज द्वारा किया गया छिडकाव मलेरिया मच्छरों के नियन्त्रण में हवाई जहाज ठोकरें कालमेह ज्वर (Black water fever) अथवा मलेरियल हीमोग्लोबिन्युरिया (malarial hemoglobinuria) घातक तृतीयक मलेरिया के कई आक्रमण के उपरांत उपद्रव के रूप में होता है। इसमें मूत्र का रंग काला या गहरा लाल हो जाने से इसका नाम 'कालमेह ज्वर' रखा गया है। .

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कालमेघ

कालमेघ कालमेघ एक बहुवर्षीय शाक जातीय औषधीय पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम एंडोग्रेफिस पैनिकुलाटा है। कालमेघ की पत्तियों में कालमेघीन नामक उपक्षार पाया जाता है, जिसका औषधीय महत्व है। यह पौधा भारत एवं श्रीलंका का मूल निवासी है तथा दक्षिण एशिया में व्यापक रूप से इसकी खेती की जाती है। इसका तना सीधा होता है जिसमें चार शाखाएँ निकलती हैं और प्रत्येक शाखा फिर चार शाखाओं में फूटती हैं। इस पौधे की पत्तियाँ हरी एवं साधारण होती हैं। इसके फूल का रंग गुलाबी होता है। इसके पौधे को बीज द्वारा तैयार किया जाता है जिसको मई-जून में नर्सरी डालकर या खेत में छिड़ककर तैयार करते हैं। यह पौधा छोटे कद वाला शाकीय छायायुक्त स्थानों पर अधिक होता है। पौधे की छँटाई फूल आने की अवस्था अगस्त-नवम्बर में की जाती है। बीज के लिये फरवरी-मार्च में पौधों की कटाई करते है। पौधों को काटकर तथा सुखाकर बिक्री की जाती है। औसतन ३००-४०० कि शाकीय हरा भाग (६०-८० किग्रा सूखा शाकीय भाग) प्रति हेक्टेयर मिल जाती है। .

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कालापानी बुखार

कालापानी बुखार, मलेरिया के रोगी में उत्पन्न होने वाली एक खतरनाक अवस्था है। इसमे वृक्क नष्ट होने की संभावना अत्यंत बढ़ जाती है क्योंकि मूत्र में हीमोग्लोबिन आना शुरू हो जाता है। इसका कारण प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम नामक एक परजीवी प्रोटोज़ोआ है। जो मानव के लाल रक्त कोशिका में प्रवेश कर जाता है। श्रेणी:मलेरिया.

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काश्यप संहिता

काश्यपसंहिता कौमारभृत्य का आर्ष व आद्य ग्रन्थ है। इसे 'वृद्धजीवकीयतन्त्र' भी कहा जाता है। महर्षि कश्यप ने कौमारभृत्य को आयुर्वेद के आठ अंगों में प्रथम स्थान दिया है। इसकी रचना ईसापूर्व ६ठी शताब्दी में हुई थी। मध्ययुग में इसका चीनी भाषा में अनुवाद हुआ। कश्यप संहिता आयुर्वेद की अत्यन्त प्राचीन संहिता है और सभी आयुर्वेदीय संहिता ग्रन्थों में प्राचीन है। यह संहिता नेपाल में खंडित रूप में मिली है। उनका समय ६०० ईसापूर्व माना गया है। वर्तमान में प्राप्त काश्यप संहिता अपने में पूर्ण है। महर्षि कश्यप द्वारा प्रोक्त इस विशाल आयुर्वेद का कालक्रम से प्रचार-प्रसार जब कम होने लगा तो ऋचिक मुनि के पचंवर्षीय पुत्र जीवक ने इस विशाल काश्यप संहिता को संक्षिप्त करके हरिद्वार के कनखल में समवेत विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत किया। उपस्थित विद्वानों ने उसे बालभाषित समझकर अस्वीकार कर दिया। तब बालक जीवक ने वहीं उनके सामने गंगा की धारा में डुबकी लगायी। कुछ देर के बाद गंगा की धारा से जीवक अतिवृद्ध के रूप में निकले। उन्हें वृद्ध रूप में देख, चकित विद्वानों ने उन्हें 'वृद्धजीवक' नाम से अभिहित किया और उनके द्वारा प्रतिपादित उस आयुर्वेद तन्त्र कों ‘वृद्धजीवकीय तन्त्र’ के रूप में मान्यता दी। .

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काशीपुर का भूगोल

काशीपुर, भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उधम सिंह नगर जनपद का एक महत्वपूर्ण पौराणिक एवं औद्योगिक शहर है। .

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काशीपुर, उत्तराखण्ड

काशीपुर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उधम सिंह नगर जनपद का एक महत्वपूर्ण पौराणिक एवं औद्योगिक शहर है। उधम सिंह नगर जनपद के पश्चिमी भाग में स्थित काशीपुर जनसंख्या के मामले में कुमाऊँ का तीसरा और उत्तराखण्ड का छठा सबसे बड़ा नगर है। भारत की २०११ की जनगणना के अनुसार काशीपुर नगर की जनसंख्या १,२१,६२३, जबकि काशीपुर तहसील की जनसंख्या २,८३,१३६ है। यह नगर भारत की राजधानी, नई दिल्ली से लगभग २४० किलोमीटर, और उत्तराखण्ड की अंतरिम राजधानी, देहरादून से लगभग २०० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। काशीपुर को पुरातन काल से गोविषाण या उज्जयनी नगरी भी कहा जाता रहा है, और हर्ष के शासनकाल से पहले यह नगर कुनिन्दा, कुषाण, यादव, और गुप्त समेत कई राजवंशों के अधीन रहा है। इस जगह का नाम काशीपुर, चन्दवंशीय राजा देवी चन्द के एक पदाधिकारी काशीनाथ अधिकारी के नाम पर पड़ा, जिन्होंने इसे १६-१७ वीं शताब्दी में बसाया था। १८ वीं शताब्दी तक यह नगर कुमाऊँ राज्य में रहा, और फिर यह नन्द राम द्वारा स्थापित काशीपुर राज्य की राजधानी बन गया। १८०१ में यह नगर ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आया, जिसके बाद इसने १८१४ के आंग्ल-गोरखा युद्ध में कुमाऊँ पर अंग्रेजों के कब्जे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। काशीपुर को बाद में कुमाऊँ मण्डल के तराई जिले का मुख्यालय बना दिया गया। ऐतिहासिक रूप से, इस क्षेत्र की अर्थव्यस्था कृषि तथा बहुत छोटे पैमाने पर लघु औद्योगिक गतिविधियों पर आधारित रही है। काशीपुर को कपड़े और धातु के बर्तनों का ऐतिहासिक व्यापार केंद्र भी माना जाता है। आजादी से पहले काशीपुर नगर में जापान से मखमल, चीन से रेशम व इंग्लैंड के मैनचेस्टर से सूती कपड़े आते थे, जिनका तिब्बत व पर्वतीय क्षेत्रों में व्यापार होता था। बाद में प्रशासनिक प्रोत्साहन और समर्थन के साथ काशीपुर शहर के आसपास तेजी से औद्योगिक विकास हुआ। वर्तमान में नगर के एस्कॉर्ट्स फार्म क्षेत्र में छोटी और मझोली औद्योगिक इकाइयों के लिए एक इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रियल एस्टेट निर्माणाधीन है। भौगोलिक रूप से काशीपुर कुमाऊँ के तराई क्षेत्र में स्थित है, जो पश्चिम में जसपुर तक तथा पूर्व में खटीमा तक फैला है। कोशी और रामगंगा नदियों के अपवाह क्षेत्र में स्थित काशीपुर ढेला नदी के तट पर बसा हुआ है। १८७२ में काशीपुर नगरपालिका की स्थापना हुई, और २०११ में इसे उच्चीकृत कर नगर निगम का दर्जा दिया गया। यह नगर अपने वार्षिक चैती मेले के लिए प्रसिद्ध है। महिषासुर मर्दिनी देवी, मोटेश्वर महादेव तथा मां बालासुन्दरी के मन्दिर, उज्जैन किला, द्रोण सागर, गिरिताल, तुमरिया बाँध तथा गुरुद्वारा श्री ननकाना साहिब काशीपुर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हैं। .

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कुटज

कुटज का फूल कुटज (वानस्पतिक नाम: Wrightia antidysenterica) एक पादप है। इसके पौधे चार फुट से १० फुट तक ऊँचे तथा छाल आधे इंच तक मोटी होती है। पत्ते चार इंच से आठ इंच तक लंबे, शाखा पर आमने-सामने लगते हैं। फूल गुच्छेदार, श्वेत रंग के तथा फलियाँ एक से दो फुट तक लंबी और चौथाई इंच मोटी, इंच मोटी, दो-दो एक साथ जुड़ी, लाल रंग की होती हैं। इनके भीतर बीज कच्चे रहने पर हरे और पकने पर जौ के रंग के होते हैं। इनकी आकृति भी बहुत कुछ जौ की सी होती है, परंतु ये जौ से लगभग ड्योढ़े बड़े होते हैं। कुटज की फली के बीज का नाम इंद्रजौ या इंद्रयव है। संस्कृत, बँगला तथा गुजराती में भी बीज का यही नाम है। परंतु इस फली के पौधे को हिंदी में कोरैया या कुड़ची, संस्कृत में कुटज या कलिंग, बँगला और अंग्रेजी में कुड़ची तथा लैटिन में राइटिया एटिडिसेंटेरिका (Wrightia antidysenterica) कहते हैं। .

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कुनैन

कुनैन एक प्राकृतिक श्वेत क्रिस्टलाइन एल्कलॉएड पदार्थ होता है, जिसमें ज्वर-रोधी, मलेरिया-रोधी, दर्दनाशक (एनल्जेसिक), सूजन रोधी गुण होते हैं। ये क्वाइनिडाइन का स्टीरियो समावयव होता है, जो क्विनाइन से अलग एंटिएर्हाइमिक होता है। ये दक्षिण अमेरिकी पेड़ सिनकोना पौधै की छाल से प्राप्त होता है। इससे क्यूनीन नामक मलेरिया बुखार की दवा के निर्माण में किया जाता है। इसके अलावा भी कुछ अन्य दवाओं के निर्माण में इसका प्रयोग होता है। इसे टॉनिक वाटर में भी मिलाया जाता है और अन्य पेय पदार्थों में मिलाया जाता है। यूरोप में सोलहवीं शताब्दी में इसका सबसे पहले प्रयोग किया गया था। ईसाई मिशन से जुड़े कुछ लोग इसे दक्षिण अमेरिका से लेकर आए थे। पहले-पहल उन्होंने पाया कि यह मलेरिया के इलाज में कारगर होता है, किन्तु बाद में यह ज्ञात होने पर कि यह कुछ अन्य रोगों के उपचा में भी काम आ सकती है, उन्होंने इसे बड़े पैमाने पर दक्षिण अमेरिका से लाना शुरू कर दिया। १९३० तक कुनैन मलेरिया की रोकथाम के लिए एकमात्र कारगर औषधि थी, बाद में एंटी मलेरिया टीके का प्रयोग भी इससे निपटने के लिए किया जाने लगा। मूल शुद्ध रूप में कुनैन एक सफेद रंग का क्रिस्टल युक्त पाउडर होता है, जिसका स्वाद कड़वा होता है। ये कड़वा स्वाद ही इसकी पहचान बन चुका है। कुनैन पराबैंगनी प्रकाश संवेदी होती है, व सूर्य के प्रकाश से सीधे संपर्क में फ़्लुओरेज़ हो जाती है। ऐसा इसकी उच्चस्तरीय कॉन्जुगेटेड रेसोनॅन्स संरचना के कारण होता है। .

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क्यूलेक्स

क्यूलेक्स क्यूलेक्स, मच्छरो का एक वंश हैं। सभी मच्छरों की तरह ही इसके जीवन चक्र की चार अवस्थाएं हैं: अण्डा, लारवा, प्यूपा एंव व्यस्क.

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क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैम्यूल हानेमान

सैम्यूल हानेमानडॉ॰ क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैम्यूल हानेमान (जन्‍म 1755-मृत्‍यु 1843 ईस्‍वी) होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता थे। आप यूरोप के देश जर्मनी के निवासी थे। आपके पिता जी एक पोर्सिलीन पेन्‍टर थे और आपने अपना बचपन अभावों और बहुत गरीबी में बिताया था। एम0डी0 डिग्री प्राप्‍त एलोपैथी चिकित्‍सा विज्ञान के ज्ञाता थे। डॉ॰ हैनिमैन, एलोपैथी के चिकित्‍सक होनें के साथ साथ कई यूरोपियन भाषाओं के ज्ञाता थे। वे केमिस्‍ट्री और रसायन विज्ञान के निष्‍णात थे। जीवकोपार्जन के लिये चिकित्‍सा और रसायन विज्ञान का कार्य करनें के साथ साथ वे अंग्रेजी भाषा के ग्रंथों का अनुवाद जर्मन और अन्‍य भाषाओं में करते थे। एक बार जब अंगरेज डाक्‍टर कलेन की लिखी “कलेन्‍स मेटेरिया मेडिका” मे वर्णित कुनैन नाम की जडी के बारे मे अंगरेजी भाषा का अनुवाद जर्मन भाषा में कर रहे थे तब डॉ॰ हैनिमेन का ध्‍यान डॉ॰ कलेन के उस वर्णन की ओर गया, जहां कुनैन के बारे में कहा गया कि ‘’ यद्यपि कुनैन मलेरिया रोग को आरोग्‍य करती है, लेकिन यह स्‍वस्‍थ शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा करती है। कलेन की कही गयी यह बात डॉ॰ हैनिमेन के दिमाग में बैठ गयी। उन्‍होंनें तर्कपूर्वक विचार करके क्विनाइन जड़ी की थोड़ी थोड़ी मात्रा रोज खानीं शुरू कर दी। लगभग दो हफ्ते बाद इनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। जड़ी खाना बन्‍द कर देनें के बाद मलेरिया रोग अपनें आप आरोग्‍य हो गया। इस प्रयोग को डॉ॰ हैनिमेन ने कई बार दोहराया और हर बार उनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। क्विनीन जड़ी के इस प्रकार से किये गये प्रयोग का जिक्र डॉ॰ हैनिमेन नें अपनें एक चिकित्‍सक मित्र से की। इस मित्र चिकित्‍सक नें भी डॉ॰ हैनिमेन के बताये अनुसार जड़ी का सेवन किया और उसे भी मलेरिया बुखार जैसे लक्षण पैदा हो गये। कुछ समय बाद उन्‍होंनें शरीर और मन में औषधियों द्वारा उत्‍पन्‍न किये गये लक्षणों, अनुभवो और प्रभावों को लिपिबद्ध करना शुरू किया। हैनिमेन की अति सूच्‍छ्म द्रष्टि और ज्ञानेन्द्रियों नें यह निष्‍कर्ष निकाला कि और अधिक औषधियो को इसी तरह परीक्षण करके परखा जाय। इस प्रकार से किये गये परीक्षणों और अपने अनुभवों को डॉ॰ हैनिमेन नें तत्‍कालीन मेडिकल पत्रिकाओं में ‘’ मेडिसिन आंफ एक्‍सपीरियन्‍सेस ’’ शीर्षक से लेख लिखकर प्रकाशित कराया। इसे होम्‍योपैथी के अवतरण का प्रारम्भिक स्‍वरूप कहा जा सकता है। .

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क्लोरोक्वीन

एक बहुत प्रसिद्ध तथा लोकप्रिय औषधि मुख्य उपयोग मलेरिया के विरूद्ध .

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क्लोरीन

क्लोरीन (यूनानी: χλωρóς (ख्लोरोस), 'फीका हरा') एक रासायनिक तत्व है, जिसकी परमाणु संख्या १७ तथा संकेत Cl है। ऋणात्मक आयन क्लोराइड के रूप में यह साधारण नमक में उपस्थित होती है और सागर के जल में घुले लवण में प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।। हिन्दुस्तान लाइव। ३१ मई २०१० सामान्य तापमान और दाब पर क्लोरीन (Cl2 या "डाईक्लोरीन") गैस के रूप में पायी जाती है। इसका प्रयोग तरणतालों को कीटाणुरहित बनाने में किया जाता है। यह एक हैलोजन है और आवर्त सारणी में समूह १७ (पूर्व में समूह ७, ७ए या ७बी) में रखी गयी है। यह एक पीले और हरे रंग की हवा से हल्की प्राकृतिक गैस जो एक निश्चित दाब और तापमान पर द्रव में बदल जाती है। यह पृथ्वी के साथ ही समुद्र में भी पाई जाती है। क्लोरीन पौधों और मनुष्यों के लिए आवश्यक है। इसका प्रयोग कागज और कपड़े बनाने में किया जाता है। इसमें यह ब्लीचिंग एजेंट (धुलाई करने वाले/ रंग उड़ाने वाले द्रव्य) के रूप में काम में लाई जाती है। वायु की उपस्थिति में यह जल के साथ क्रिया कर हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का निर्माण करती है। मूलत: गैस होने के कारण यह खाद्य श्रृंखला का भाग नहीं है। यह गैस स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। तरणताल में इसका प्रयोग कीटाणुनाशक की तरह किया जाता है। साधारण धुलाई में इसे ब्लीचिंग एजेंट रूप में प्रयोग करते हैं। ब्लीच और कीटाणुनाशक बनाने के कारखाने में काम करने वाले लोगों में इससे प्रभावित होने की आशंका अधिक रहती है। यदि कोई लंबे समय तक इसके संपर्क में रहता है तो उसके स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इसकी तेज गंध आंखों, त्वचा और श्वसन तंत्र के लिए हानिकारक होती है। इससे गले में घाव, खांसी और आंखों व त्वचा में जलन हो सकती है, इससे सांस लेने में समस्या होती है। .

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क्विनाइन

क्विनाइन कुनैन C20H24O2N2.3H2O तिक्त उत्फुल्ल क्रिस्टलीय ऐल्केनाइड ग.५७° से.

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कीटनाशक प्रतिरोधी मच्छर

कोई विवरण नहीं।

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अफ़्रीका

अफ़्रीका वा कालद्वीप, एशिया के बाद विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है। यह 37°14' उत्तरी अक्षांश से 34°50' दक्षिणी अक्षांश एवं 17°33' पश्चिमी देशान्तर से 51°23' पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। अफ्रीका के उत्तर में भूमध्यसागर एवं यूरोप महाद्वीप, पश्चिम में अंध महासागर, दक्षिण में दक्षिण महासागर तथा पूर्व में अरब सागर एवं हिन्द महासागर हैं। पूर्व में स्वेज भूडमरूमध्य इसे एशिया से जोड़ता है तथा स्वेज नहर इसे एशिया से अलग करती है। जिब्राल्टर जलडमरूमध्य इसे उत्तर में यूरोप महाद्वीप से अलग करता है। इस महाद्वीप में विशाल मरुस्थल, अत्यन्त घने वन, विस्तृत घास के मैदान, बड़ी-बड़ी नदियाँ व झीलें तथा विचित्र जंगली जानवर हैं। मुख्य मध्याह्न रेखा (0°) अफ्रीका महाद्वीप के घाना देश की राजधानी अक्रा शहर से होकर गुजरती है। यहाँ सेरेनगेती और क्रुजर राष्‍ट्रीय उद्यान है तो जलप्रपात और वर्षावन भी हैं। एक ओर सहारा मरुस्‍थल है तो दूसरी ओर किलिमंजारो पर्वत भी है और सुषुप्‍त ज्वालामुखी भी है। युगांडा, तंजानिया और केन्या की सीमा पर स्थित विक्टोरिया झील अफ्रीका की सबसे बड़ी तथा सम्पूर्ण पृथ्वी पर मीठे पानी की दूसरी सबसे बड़ी झीलहै। यह झील दुनिया की सबसे लम्बी नदी नील के पानी का स्रोत भी है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसी महाद्वीप में सबसे पहले मानव का जन्म व विकास हुआ और यहीं से जाकर वे दूसरे महाद्वीपों में बसे, इसलिए इसे मानव सभ्‍यता की जन्‍मभूमि माना जाता है। यहाँ विश्व की दो प्राचीन सभ्यताओं (मिस्र एवं कार्थेज) का भी विकास हुआ था। अफ्रीका के बहुत से देश द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्र हुए हैं एवं सभी अपने आर्थिक विकास में लगे हुए हैं। अफ़्रीका अपनी बहुरंगी संस्कृति और जमीन से जुड़े साहित्य के कारण भी विश्व में जाना जाता है। .

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अर्नोल्ड श्वार्ज़नेगर

अर्नोल्ड अलोइस श्वार्ज़नेगर (जन्म 30 जुलाई 1947) एक ऑस्ट्रियन अमेरिकी बॉडीबिल्डर, अभिनेता, मॉडेल, व्यवसायी और राजनेता, वर्तमान में कैलिफोर्निया राज्य के 38वें गवर्नर के रूप में सेवारत हैं। श्वार्ज़नेगर ने पंद्रह वर्ष की आयु में भारोत्तोलन का प्रशिक्षण लेना शुरू किया। 22 साल की उम्र में उन्हें मि. यूनिवर्स (Mr. Universe) की उपाधि से सम्मानित किया गया और उन्होंने मि. ओलम्पिया (Mr. Olympia) प्रतियोगिता में कुल सात बार जीत हासिल की। अपनी सेवानिवृत्ति के बहुत समय बाद भी श्वार्जनेगर बॉडीबिल्डिंग के खेल में एक प्रमुख चेहरा बने हुए हैं और उन्होंने खेल पर कई पुस्तकें और अनेक लेख लिखे हैं। कॉनन द बर्बरियन (Conan the Barbarian) और द टर्मिनेटर (The Terminator) जैसी फ़िल्मों में अपनी उल्लेखनीय मुख्य भूमिका के कारण श्वार्जनेगर ने हॉलीवुड की एक्शन फि़ल्म के प्रतीक के रूप में दुनिया भर में ख्याति प्राप्त की। अपने बॉडीबिल्डिंग के दिनों में उन्हें "ऑस्ट्रियन ओक" और "स्टायरियन ओक" उपनाम दिया गया था, अपने अभिनय कॅरियर के दौरान "अर्नोल्ड बलिष्ठ" और "फौलादी" हैं और एकदम हाल ही में "गवर्नेटर" - गवर्नर बने हैं (गवर्नर और टर्मिनेटर-उनकी एक फिल्म की भूमिका, दोनों शब्दों को मिलाकर बना नया शब्द).

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अल्बानिया

अल्बानिया गणराज्य (अल्बानियाई: Republika e Shqipërisë) उत्तरपूर्वी यूरोप में स्थित एक देश है। इसकी भूसीमाएं उत्तर में कोसोवो, उत्तरपश्चिम में मोन्टेनेग्रो, पूर्व में भूतपूर्व यूगोस्लाविया और दक्षिण में यूनान से मिलती हैं। तटीय सीमाएं दक्षिण पश्चिम में आड्रियाटिक सागर और आयोनियन सागर से मिलती हैं। अल्बानिया एक संसदीय लोकतंत्र और अवस्थांतर अर्थव्यवस्था है। अल्बानिया की राजधानी, तिराना, लगभग ८,९५,००० निवासियों वाला नगर है जो देश की ३६ लाख की जनसंख्या का चौथाई भाग है और यह नगर अल्बानिया का वित्तीय केन्द्र भी है। मुक्त बाजार सुधारों के कारण विदेशी निवेश के लिए देश की अर्थव्यस्था खोल दी गई है मुख्यतः ऊर्जा के विकास और परिवहन आधारभूत ढांचे में। अल्बानिया संयुक्त राष्ट्र, नाटो, यूरोपीय सुरक्षा और सहयोग संगठन, यूरोपीय परिषद, विश्व व्यापार संगठन, इस्लामिक सम्मेलन संगठन इत्यादि का सदस्य है और भूमध्य क्षेत्र संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक था। अल्बानिया जनवरी २००३ से यूरोपीय संघ में विलय के लिए एक संभावित प्रत्याशी रहा है और इसने औपचारिक रूप से २८ अप्रैल, २००९ को यूरोपीय संघ की सदस्यता के लिए आवेदन किया। .

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उष्णकटिबंधीय वर्षा-वन

ब्राजील में अमेज़न वर्षावन का एक क्षेत्र. दक्षिण अमेरिका के उष्णकटिबंधीय वर्षावन में धरती पर प्रजातियों की सबसे बड़ी विविधता है। उष्णकटिबंधीय वर्षा-वन एक ऐसा क्षेत्र होता है जो भूमध्य रेखा के दक्षिण या उत्तर में लगभग 28 डिग्री के भीतर होता है। वे एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, मध्य अमेरिका, मेक्सिको और प्रशांत द्वीपों पर पाए जाते हैं। विश्व वन्यजीव निधि के बायोम वर्गीकरण के भीतर उष्णकटिबंधीय वर्षावन को उष्णकटिबंधीय आर्द्र वन (या उष्णकटिबंधीय नम चौड़े पत्ते के वन) का एक प्रकार माना जाता है और उन्हें विषुवतीय सदाबहार तराई वन के रूप में भी निर्दिष्ट किया जा सकता है। इस जलवायु क्षेत्र में न्यूनतम सामान्य वार्षिक वर्षा और के बीच होती है। औसत मासिक तापमान वर्ष के सभी महीनों के दौरान से ऊपर होता है। धरती पर रहने वाले सभी पशुओं और पौधों की प्रजातियों की आधी संख्या इन वर्षावनों में रहती है। मिशिगन विश्वविद्यालय के रीजेण्ट.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

मलेरिया ज्वर, शीतज्वर

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