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मन्नार द्वीप

सूची मन्नार द्वीप

मन्नार (மன்னார்) द्वीप, जिसे पहले मनार द्वीप के नाम से जाना जाता था, श्रीलंका के मन्नार जिले का हिस्सा है। यह श्रीलंका की मुख्य भूमि से एक सेतुक के माध्यम से जुड़ा है। १९१४ से १९६४ के बीच, भारत की मुख्यभूमि धनुषकोडी और तलईमन्नार के रास्ते कोलंबो से एक रेलमार्ग और नौकामार्ग के द्वारा जुड़ी थी, पर १९६४ में आये एक भीषण चक्रवात में यह मार्ग नष्ट हो गये और आज तक इन्हें फिर से चालू नहीं किया गया है। यह एक शुष्क और बंजर द्वीप है और मछली पकड़ना यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय है। मन्नार द्वीप और आसन्न रामसेतु .

2 संबंधों: मन्नार की खाड़ी, रामसेतु

मन्नार की खाड़ी

मन्नार की खाड़ी एक उथले पानी की खाड़ी है जो हिन्द महासागर में लक्षद्वीप सागर के एक भाग का निर्माण करती है। यह खाड़ी भारत के दक्षिणपूर्व सिरे और श्रीलंका के पश्चिमी तट के बीच स्थित है। भारत के रामेश्वरम द्वीप से लेकर श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक चूना पत्थर से बने द्वीपों की रामसेतु नामक एक शृंख्ला, इस खाड़ी को पाक खाड़ी से पृथक करती है। दक्षिण भारत की तमिरबरणि नदी और श्रीलंका की अरुवी अरु नदी इसी खाड़ी में गिरती हैं। .

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रामसेतु

आकाश से रामसेतु का दृश्य रामसेतु (तमिल: இராமர் பாலம், मलयालम: രാമസേതു,, अंग्रेजी: Adam's Bridge; आदम का पुल), तमिलनाडु, भारत के दक्षिण पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्वीप तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के मध्य चूना पत्थर से बनी एक शृंखला है। भौगोलिक प्रमाणों से पता चलता है कि किसी समय यह सेतु भारत तथा श्रीलंका को भू मार्ग से आपस में जोड़ता था। हिन्दू पुराणों की मान्यताओं के अनुसार इस सेतु का निर्माण अयोध्या के राजा राम श्रीराम की सेना के दो सैनिक जो की वानर थे, जिनका वर्णन प्रमुखतः नल-निल नाम से रामायण में मिलता है, द्वारा किये गया था, यह पुल ४८ किलोमीटर (३० मील) लम्बा है तथा मन्नार की खाड़ी (दक्षिण पश्चिम) को पाक जलडमरूमध्य (उत्तर पूर्व) से अलग करता है। कुछ रेतीले तट शुष्क हैं तथा इस क्षेत्र में समुद्र बहुत उथला है, कुछ स्थानों पर केवल ३ फुट से ३० फुट (१ मीटर से १० मीटर) जो नौगमन को मुश्किल बनाता है। यह कथित रूप से १५ शताब्दी तक पैदल पार करने योग्य था जब तक कि तूफानों ने इस वाहिक को गहरा नहीं कर दिया। मन्दिर के अभिलेखों के अनुसार रामसेतु पूरी तरह से सागर के जल से ऊपर स्थित था, जब तक कि इसे १४८० ई० में एक चक्रवात ने तोड़ नहीं दिया। .

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