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मंदसौर

सूची मंदसौर

सौंधनी स्थित यशोधर्मन का विजय-स्तम्भ मंदसौर भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है। मंद्सौर का प्राचिन नाम दशपुर था ! पुरातात्विक और ऐतिहासिक विरासत को संजोए उत्तरी मध्य प्रदेश का मंदसौर एक ऐतिहासिक जिला है। यह 5530 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। आजादी के पहले यह ग्वालियर रियासत का हिस्सा था। मंदसौर हिन्दू और जैन मंदिरों के लिए खासा लोकप्रिय है। पशुपतिनाथ मंदिर, बाही पारसनाथ जैन मंदिर और गांधी सागर बांध यहां के मुख्य दर्शनीय स्थल हैं। इस जिले में अफीम का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है। मंदसौर राजस्थान के चित्तौड़गढ़, कोटा, भीलवाड़ा, झालावाड़ और मध्य प्रदेश के रतलाम जिलों से घिरा हुआ है। .

21 संबंधों: चौदहवीं लोकसभा, डिडेल, दशपुर, दसपुर, प्रतापगढ़ (राजस्थान) का इतिहास, प्रतापगढ़ (राजस्थान) की संस्कृति, प्रतापगढ़, राजस्थान, बावड़ी, भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची - प्रदेश अनुसार, भारत के राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची - संख्या अनुसार, भारत के शहरों की सूची, मध्य प्रदेश के शहरों की सूची, मन्नू भंडारी, महेंद्र भटनागर, मंदसौर ज़िला, यशोधर्मन, रतलाम, रिजवान ज़हीर उस्मान, वाजिद खान, खाप, गुरुग्राम

चौदहवीं लोकसभा

भारत में चौदहवीं लोकसभा का गठन अप्रैल-मई 2004 में होनेवाले आमचुनावोंके बाद हुआ था। .

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डिडेल

डिडेल एक जाट गोत्र का नाम है, जो भारत के राजस्थान और मध्यप्रदेश प्रांत में पाये जाते हैं। राजस्थान के जयपुर, जोधपुर, नागौर, टोंक जिलों में मिलते हैं एवं मध्यप्रदेश के हरडा, मंदसौर, रतलाम जिलों में मिलते हैं। यह गोत्र ऋषि दधीचि के परिवार पेड़ में भी है। डिडेल गोत्र सबसे ज्यादा नागौर जिले के रोल गांव में हैं। श्रेणी:जाति श्रेणी:हिन्दू धर्म श्रेणी:भारतीय उप जातियाँ श्रेणी:जाट गोत्र श्रेणी:राजस्थान के जाट गोत्र श्रेणी:मध्यप्रदेश के जाट गोत्र श्रेणी:भारतीय जाति आधार sv:Jater#D.

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दशपुर

दशपुर अवंति (पश्चिमी मालवा) का प्राचीन नगर था, जो मध्य प्रदेश के ग्वालियर क्षेत्र में उस नाम के नगर से कुछ दूर उत्तर पश्चिम में स्थित आधुनिक मंदसौर है। भारतीय इतिहास के प्राचीन युग में उत्तर भारत में जब भी साम्राज्य स्थापित हुए, अवंति प्राय: उनका एक प्रांत रहा। दशपुर उसी में पड़ता था और कभी कभी वहाँ भी शासन की एक इकाई होती थी। दशपुर का कोई मूल्यवान ऐतिहासिक उल्लेख गुप्तयुग के पहले का नहीं मिलता। कुमारगुप्त प्रथम तथा द्वितीय और बंधुवर्मा का मंदसोर में ४३६ ई. (वि॰सं॰ ४९३) और ४७२ ई. (वि॰सं॰ ५२९) का वत्सभट्टि विरचित लेख मिला है, जिससे ज्ञात होता है कि जब बंधुवर्मा कुमारगुप्त प्रथम का दशपुर में प्रतिनिधि था (४३६ ई.), वहाँ के तंतुवायों ने एक सूर्यमंदिर का निर्माण कराया तथा उसके व्यय का प्रबंध किया। ३६ वर्षों बाद (४७२ ई.) ही उस मंदिर के पुनरुद्वार की आवश्यकता हुई और वह कुमारगुप्त द्वितीय के समय संपन्न हुआ। बंधुवर्मा संभवत: इस सारी अवधि के बीच गुप्तसम्राटों का दशपुर में क्षेत्रीय शासक रहा। थोड़े दिनों बाद हूणों ने उसके सारे पार्श्ववर्ती प्रदेशों को रौंद डाला और गुप्तों का शासन वहाँ से समाप्त हो गया। ग्वालियर में मिलनेवाले मिहिरकुल के सिक्कों से ये प्रतीत होता है कि दशपुर का प्रदेश हूणों के अधिकार में चला गया। किंतु उनकी सफलता स्थायी न थी और यशोधर्मन् विष्णुवर्धन् नामक औलिकरवंशी एक नवोदित राजा ने मिहिरकुल को परास्त किया। मंदसोर से वि॰सं॰ ५८९ (५३२ ई.) का यशोधर्मा का वासुल रचित एक अभिलेख मिला है, जिसमें उसे जनेंद्र, नराधिपति, सम्राट्, राजाधिराज, परमेश्वर उपाधियाँ दी गई हैं। उसका यह भी दावा है कि जिन प्रदेशों को गुप्त सम्राट् भी नहीं भोग सके, उन सबको उसने जीता और नीच मिहिरकुल को विवश होकर पुष्पमालाओं से युक्त अपने सिर को उसके दोनों पैरों पर रखकर उसकी पूजा करनी पड़ी। यशोधर्मा मध्यभारत से होकर उत्तर प्रदेश पहुँचा और पंजाब में मिहिरकुल की शक्ति को नष्ट करता हुआ सारा गुप्त साम्राज्य रौंद डाला। पूर्व में लौहित्य (उत्तरी पूर्वी भारतीय सीमा की लोहित नदी) से प्रारंभ कर हिमालय की चोटियों को छूते हुए पश्चिम पयोधि तक तथा दक्षिण-पूर्व से महेंद्र पर्वत तक के सारे क्षेत्र को स्वायत्त करने का उसने दावा किया है। दशपुर को यशोधर्मा ने अपनी राजधानी बनाया। वर्धन्नामांत दशपुर के कुछ अन्य राजाओं की सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। मंदसोर से ही अभी हाल में प्राप्त होनेवाले एक अभिलेख से आदित्यवर्धन् तथा वराहमिहिर की बृहत्संहिता (छठी शती) से अवंति के महाराजाधिराज द्रव्यवर्धन की जानकारी होती है। .

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दसपुर

दशपुर अवंति (पश्चिती मालवा) का प्राचीन नगर था जो मध्य प्रदेश के ग्वालियर क्षेत्र में उस नाम के नगर से कुछ दूर उत्तर पश्चिम में स्थित आधुनिक मंदसौर है। .

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प्रतापगढ़ (राजस्थान) का इतिहास

सुविख्यात इतिहासकार महामहोपाध्याय पंडित गौरीशंकर हीराचंद ओझा (1863–1947) के अनुसार "प्रतापगढ़ का सूर्यवंशीय राजपूत राजपरिवार मेवाड़ के गुहिल वंश की सिसोदिया शाखा से सम्बद्ध रहा है".

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प्रतापगढ़ (राजस्थान) की संस्कृति

सीतामाता मंदिर के सामने एक मीणा आदिवासी: छाया: हे. शे. हालाँकि प्रतापगढ़ में सभी धर्मों, मतों, विश्वासों और जातियों के लोग सद्भावनापूर्वक निवास करते हैं, पर यहाँ की जनसँख्या का मुख्य घटक- लगभग ६० प्रतिशत, मीना आदिवासी हैं, जो राज्य में 'अनुसूचित जनजाति' के रूप में वर्गीकृत हैं। पीपल खूंट उपखंड में तो ८० फीसदी से ज्यादा आबादी मीणा जनजाति की ही है। जीवन-यापन के लिए ये मीना-परिवार मूलतः कृषि, मजदूरी, पशुपालन और वन-उपज पर आश्रित हैं, जिनकी अपनी विशिष्ट-संस्कृति, बोली और वेशभूषा रही है। अन्य जातियां गूजर, भील, बलाई, भांटी, ढोली, राजपूत, ब्राह्मण, महाजन, सुनार, लुहार, चमार, नाई, तेली, तम्बोली, लखेरा, रंगरेज, रैबारी, गवारिया, धोबी, कुम्हार, धाकड, कुलमी, आंजना, पाटीदार और डांगी आदि हैं। सिख-सरदार इस तरफ़ ढूँढने से भी नज़र नहीं आते.

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प्रतापगढ़, राजस्थान

प्रतापगढ़, क्षेत्रफल में भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान के ३३वें जिले प्रतापगढ़ जिले का मुख्यालय है। प्राकृतिक संपदा का धनी कभी इसे 'कान्ठल प्रदेश' कहा गया। यह नया जिला अपने कुछ प्राचीन और पौराणिक सन्दर्भों से जुड़े स्थानों के लिए दर्शनीय है, यद्यपि इसके सुविचारित विकास के लिए वन विभाग और पर्यटन विभाग ने कोई बहुत उल्लेखनीय योगदान अब तक नहीं किया है। .

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बावड़ी

बावड़ी श्रेणी:सिंचाई श्रेणी:भारतीय वास्तुशास्त्र श्रेणी:भारत में जल प्रबंधन श्रेणी:भारतीय स्थापत्य कला श्रेणी:बावड़ी.

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भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची - प्रदेश अनुसार

भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों का संजाल भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची भारतीय राजमार्ग के क्षेत्र में एक व्यापक सूची देता है, द्वारा अनुरक्षित सड़कों के एक वर्ग भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण। ये लंबे मुख्य में दूरी roadways हैं भारत और के अत्यधिक उपयोग का मतलब है एक परिवहन भारत में। वे में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा भारतीय अर्थव्यवस्था। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 2 laned (प्रत्येक दिशा में एक), के बारे में 65,000 किमी की एक कुल, जिनमें से 5,840 किमी बदल सकता है गठन में "स्वर्ण Chathuspatha" या स्वर्णिम चतुर्भुज, एक प्रतिष्ठित परियोजना राजग सरकार द्वारा शुरू की श्री अटल बिहारी वाजपेयी.

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भारत के राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची - संख्या अनुसार

भारत के राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची (संख्या के क्रम में) भारत के राजमार्गो की एक सूची है। .

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भारत के शहरों की सूची

कोई विवरण नहीं।

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मध्य प्रदेश के शहरों की सूची

1.

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मन्नू भंडारी

मन्नू भंडारी मन्नू भंडारी (जन्म ३ अप्रैल १९३१) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कहानीकार हैं। मध्य प्रदेश में मंदसौर जिले के भानपुरा गाँव में जन्मी मन्नू का बचपन का नाम महेंद्र कुमारी था। लेखन के लिए उन्होंने मन्नू नाम का चुनाव किया। उन्होंने एम ए तक शिक्षा पाई और वर्षों तक दिल्ली के मीरांडा हाउस में अध्यापिका रहीं। धर्मयुग में धारावाहिक रूप से प्रकाशित उपन्यास आपका बंटी से लोकप्रियता प्राप्त करने वाली मन्नू भंडारी विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्रेमचंद सृजनपीठ की अध्यक्षा भी रहीं। लेखन का संस्कार उन्हें विरासत में मिला। उनके पिता सुख सम्पतराय भी जाने माने लेखक थे। .

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महेंद्र भटनागर

डॉ महेंद्र भटनागर (Mahendra Bhatnagar जन्म 26 जून,1926) भारतीय समाजार्थिक-राष्ट्रीय-राजनीतिक चेतना-सम्पन्न द्वि-भाषिक (हिन्दी एवं अंग्रेजी) कवि एवं लेखक हैं। ये सन् 1946 से प्रगतिवादी काव्यान्दोलन से सक्रिय रूप से सम्बद्ध प्रगतिशील हिन्दी कविता के द्वितीय उत्थान के चर्चित हस्ताक्षरों में से एक हैं। .

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मंदसौर ज़िला

मंदसौर जिला (जिला मुख्यालयः मंदसौर) पुरातात्विक और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। शिवना नदी के किनारे स्थित भगवान पशुपतिनाथ मंदिर के कारण यह देश भर में प्रसिद्ध है। यह प्रदेश का औसत क्षेत्रफल वाला जिला है। जो 142 कि॰मी॰ उत्तर से दक्षिण और 124 कि॰मी॰ पूर्व से पश्चिम की ओर फैला हुआ है। इसका कुल क्षेत्रफल 5521 वर्ग कि॰मी॰ है। सन 2001 की जनगणना के अनुसार जिले की जनसंख्या 1183274 है। जिले में अनुसूचित जाति के 212262 और अनुसूचित जनजाति के 37526 लोग निवास करते हैं। इसे नेपाल के काठमांडु स्थित भगवान पशुपतिनाथ के समान ही माना गया है। यहां मालवी बोली बोली जाती है। जो राजस्थानी और हिन्दी की मिश्रित भाषा है। यहां अफीम का उत्पादन विश्व में सबसे अधिक होता है। इस कारण भी यह जिला पूरे विश्व में जाना जाता है। स्लेट-पैंसिल उद्योग जिले का महत्वपूर्ण उद्योग है। मंदसौर मप्र के उत्तर में स्थित है जो उज्जैन कमिश्नर संभाग के अंतर्गत आता है। यह जिला 230’45’50’’ अक्षांश उत्तर और 250’2’55’’ अक्षांश उत्तर सामानांतर तथा 740 42’30’’ पूर्व और 750’50’20’’ पूर्व के मध्य स्थित है। यह जिला राजस्थान के चार जिलों पश्चिम और उत्तर में चित्तौड़गढ़, उत्तर में भीलवाड़ा, उत्तर-पूर्व में कोटा और पूर्व में झालावाड़ के साथ ही दक्षिण में मध्य प्रदेश के रतलाम जिले की सीमा से लगा हुआ है। यह जिला उपसंभागों और 6 तहसीलों में बंटा हुआ है। उपसंभागीय मुख्यालय मंदसौर, मल्हारगढ़, सीतामऊ और गरोठ तथा तहसील मंदसौर एवं मल्हारगढ़ पश्चिम में स्थित है। जबकि सुवासरा, भागपुरा, गरोठ और सीतामऊ पूर्वीय भाग में स्थित हैं। तापमानः जिले का तापमान फरवरी के बाद से ही बढ़ना शुरू हो जाता है। मई में सामान्यतः सबसे अधिक गर्मी रहती है। दिन का औसत अधिकतम तापमान 39.80 डिग्री सेल्सियस तथा न्यूनतम तापमान 25.40 डिग्री से.

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यशोधर्मन

मंदसौर के सौंधनी में यशोधर्मन का विजय स्तम्भ यशोधर्मन के विजय-स्तम्भ के बारे में शिलालेख यशोधर्मन् छठी शताब्दी के आरम्भिक काल में मालवा के महाराजा थे। छठी शती ई0 के द्वितीय चरण में मालवा प्रांत के स्थानीय शासक के रूप से आगे बढ़कर यशोधर्मन् पूरे उत्तरी भारत पर छा गया। उसका उदय उल्कापात की भाँति तीव्र गति से हुआ था और उसी की भाँति बिना अधिक स्पष्ट प्रभाव छोड़े वह इतिहास से लुप्त हो गया। .

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रतलाम

रतलाम भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त के मालवा क्षेत्र का एक जिला है। रतलाम शहर समुद्र सतह से १५७७ फीट कि ऊन्चाई पर स्थित है। रतलाम के पहले राजा महाराजा रतन सिंह थे। यह नगर सेव, सोना, सट्टा,मावा, साडी तथा समोसा कचौरी के लिये प्रसिद्ध है। महाराजा रतनसिंह और उनके पुत्र रामसिंह के नामों के संयोग से शहर का नाम रतनराम हुआ, जो बाद में अपभ्रंशों के रूप में बदलते हुए क्रमशः रतराम और फिर रतलाम के रूप में जाना जाने लगा। मुग़ल बादशाह शाहजहां ने रतलाम जागीर को रतन सिह को एक हाथी के खेल में, उनकी बहादुरी के उपलक्ष में प्रदान की थी। उसके बाद, जब शहजादा शुजा और औरंगजेब के मध्य उत्तराधिकारी की जों जंग शरू हुई थी, उसमे रतलाम के राजा रतन सिंह ने बादशाह शाहजहां का साथ दिया था। औरंगजेब के सत्ता पर असिन होने के बाद, जब अपने सभी विरोधियो को जागीर और सत्ता से बेदखल किया, उस समय, रतलाम के राजा रतन सिंह को भी हटा दिया था और उन्हें अपना अंतिम समय मंदसौर जिले के सीतामऊ में बिताना पड़ा था और उनकी मृत्यु भी सीतामऊ में भी हुई, जहाँ पर आज भी उनकी समाधी की छतरिया बनी हुई हैं। औरंगजेब द्वारा बाद में, रतलाम के एक सय्यद परिवार, जों की शाहजहां द्वारा रतलाम के क़ाज़ी और सरवनी जागीर के जागीरदार नियुक्त किये गए थे, द्वारा मध्यस्ता करने के बाद, रतन सिंह के बेटे को उत्तराधिकारी बना दिया गया। इसके आलावा रतलाम जिले का ग्राम सिमलावदा अपने ग्रामीण विकास के लिये पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध हे। यहाँ के ग्रामीणों द्वारा जनभागीदारी से गांव में ही कई विकास कार्य किये गए हे। रतलाम से 30 किलोमीटर दूर बदनावर इंदौर रोड पर कवलका माताजी का अति प्राचीन पांडवकालीन पहाड़ी पर स्थित मन्दिर हे। यहाँ पर दूर दूर से लोग अपनी मनोकामना पूरी करने और खासकर सन्तान प्राप्ति के लिए यहाँ पर मान लेते हे| madhya paradesh no.1 श्रेणी:मध्य प्रदेश के नगर.

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रिजवान ज़हीर उस्मान

रिजवान ज़हीर उस्मान (12 अगस्त 1948- 03 नवंबर 2012) राजस्थान के एक भारतीय साहित्यकार और नाट्यकर्मी थे। वे हिंदी के आधुनिक नाटककारों में अपनी मौलिक नाटकीयता के कारण जाने जाते हैं। उन्होने 100 से अधिक कहानियों और 150 नाटकों के लेखन के अलावा कला, साहित्य, कहानी, और नाटक के क्षेत्र में जीवनभर योगदान दिया था। उन्होंने करीब डेढ़ सौ से अधिक नाटकों का मंचन व प्रदर्शन किया और स्वयं अभिनय करते 50 से अधिक नाटकों का निर्देशन भी किया। उन्हें संगीत नाटक अकादमी द्वारा नाट्य लेखन एवं निर्देशन के लिए 'लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित किया जा चुका है। साहित्य अकादमी द्वारा नाटक ’कल्पना पिशाच’ के लिये 'देवीलाल सामर नाट्य लेखन पुरस्कार’ दिया जा चुका है। जयपुर के जवाहर कला केन्द्र द्वारा आयोजित पूर्वांकी नाट्य-लेखन में सर्वश्रेष्ठ नाटक ‘वही हुआ जिसका डर था तितली कों‘ पुरस्कृत किया गया था। किडनी की समस्या के कारण लम्बी बीमारी के बाद उनके पैतृक निवास भूत-महल मोहल्ले में हाथीपोल उदयपुर में उनका निधन हो गया। उस्मान सही अर्थों में एक आधुनिक/ उत्तर-आधुनिक रंगकर्मी थे, जिनकी नाट्य-दृष्टि अगर आधुनिक साहित्य, खास तौर पर कविताओं से प्रेरणा लेती थी तो बहुधा उसका विसर्जन राजनीति के ज्वलंत सवालों से टकराहट में होता था । उस्मान मूलतः राजनैतिक मंतव्यों के नाट्य-शिल्पी थे और उनका पक्ष स्पष्ट – कि नाटक महज़ मनोरंजन की विधा नहीं, उसका एक सन्देश भी है, मानव-संवेदना के परिष्कार के पक्ष में एक साफ़-सुथरा उद्देश्य भी । मनुष्य की नियति और अवस्थिति की वह बड़े गहरी समझ वाले निर्देशक और लेखक थे । विडम्बना, असमानता, हिंसा, हत्या, शोषण, लालच, वासना, ईर्ष्या, पूंजीवाद, संहार, युद्ध उनके लिए सिर्फ शब्द नहीं थे- इन सब के नाट्य-प्रतीक उस्मान ने अपने नाटकों में इतनी भिन्नता से रचे कि देख कर ताज्जुब में पड़ जाना होता है। इतिहास, परंपरा और संस्कृति पर उनकी स्वयं की एक अंतर्दृष्टि थी और एक अल्पसंख्यक होते हुए भी उनका सम्पूर्ण लेखन हर तरह की सीमित साम्प्रदायिकता, ओछे धार्मिक-वैमनस्य और सामजिक-प्रतिहिंसा के कीटाणुओं से पूरी तरह मुक्त था। नाटक बनाने सोचने लिखने और मंच पर लाने की उनकी एक खास 'स्टाइल' थी, और उनकी शैली की नक़ल लगभग असंभव। उनके नाट्य-प्रयोग और उनके नाटकों के अनेकानेक दृश्यबंध ही नहीं, पात्र और उनके नाम तक उस्मान के अपने निहायत मौलिक हस्ताक्षरों की अप्रतिमता का इज़हार करते जान पड़ते हैं। तोता, कोरस, आद, छठी इन्द्रिय, हक्का, पैसे वाली पार्टी, लेबर, ईगो, योद्धा, दिवंगत दादाजान, मामा, बहुत बड़ा सांप........आदि उस्मान के‘पात्रों’ में शुमार हैं। हर पात्र की अपनी अंतर्कथा और चरित्र है- हर पात्र नाटक में ज़रूरी पात्र है और कथानक में उसकी अपनी जगह अप्रतिम। ‘राजस्थान साहित्य अकादमी’ उदयपुर ने इनके कुछ नाटकों- 'आखेट-कथा',,'अनहद नाद' दोनों सही, दोनों गलत', 'बंसी टेलर', 'भीड़', 'चन्द्रसिंह गढ़वाली', 'छलांग' 'दिन में आधी रात', 'एकतरफा यातायात', 'लोमड़ियाँ', ' माँ का बेटा और कटार वाले नर्तक', 'मेरे गुनाहों को बच्चे माफ़ करें', 'पुत्र', 'रहम दिल सौदागर', 'यहाँ एक जंगल था श्रीमान' को ‘मधुमती’ में समय-समय पर प्रकाशित किया है.

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वाजिद खान

वाजिद खान (जन्म: १० मार्च १९८१, मंदसौर,मध्य प्रदेश, भारत) एक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त आयरन नेल आर्टिस्ट (कलाकार), चित्रकार, पेटेंट धारक, व अविष्कारक हैं। .

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खाप

खाप या सर्वखाप एक सामाजिक प्रशासन की पद्धति है जो भारत के उत्तर पश्चिमी प्रदेशों यथा राजस्थान, हरियाणा, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश में अति प्राचीन काल से प्रचलित है। इसके अनुरूप अन्य प्रचलित संस्थाएं हैं पाल, गण, गणसंघ, सभा, समिति, जनपद अथवा गणतंत्र। समाज में सामाजिक व्यवस्थाओं को बनाये रखने के लिए मनमर्जी से काम करने वालों अथवा असामाजिक कार्य करने वालों को नियंत्रित किये जाने की आवश्यकता होती है, यदि ऐसा न किया जावे तो स्थापित मान्यताये, विश्वास, परम्पराए और मर्यादाएं ख़त्म हो जावेंगी और जंगल राज स्थापित हो जायेगा। मनु ने समाज पर नियंत्रण के लिए एक व्यवस्था दी। इस व्यवस्था में परिवार के मुखिया को सर्वोच्च न्यायाधीश के रूप में स्वीकार किया गया है। जिसकी सहायता से प्रबुद्ध व्यक्तियों की एक पंचायत होती थी। जाट समाज में यह न्याय व्यवस्था आज भी प्रचलन में है। इसी अधार पर बाद में ग्राम पंचायत का जन्म हुआ।डॉ ओमपाल सिंह तुगानिया: जाट समुदाय के प्रमुख आधार बिंदु, आगरा, 2004, पृ.

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गुरुग्राम

गुरुग्राम (पूर्व नाम: गुड़गाँव), हरियाणा का एक नगर है जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से सटा हुआ है। यह दिल्ली से ३२ किमी.

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निवर्तमानआने वाली
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