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भ्राजक पित्‍त

सूची भ्राजक पित्‍त

यह चमडे मे रहता है और कान्ति उत्‍पन्‍न करता है। त्‍वचा के समस्‍त रोग और व्‍याधियां इसी पित्‍त की विकृति से होती हैं। शरीर मे किये गये लेप, मालिश, औषधि स्‍नान आदि के पाचन कार्य यही पित्‍त करता है। श्रेणी:आयुर्वेद.

1 संबंध: त्रिदोष

त्रिदोष

वात, पित्‍त, कफ इन तीनों को दोष कहते हैं। इन तीनों को धातु भी कहा जाता है। धातु इसलिये कहा जाता है क्‍योंकि ये शरीर को धारण करते हैं। चूंकि त्रिदोष, धातु और मल को दूषित करते हैं, इसी कारण से इनको ‘दोष’ कहते हैं। आयुर्वेद साहित्य शरीर के निर्माण में दोष, धातु मल को प्रधान माना है और कहा गया है कि 'दोष धातु मल मूलं हि शरीरम्'। आयुर्वेद का प्रयोजन शरीर में स्थित इन दोष, धातु एवं मलों को साम्य अवस्था में रखना जिससे स्वस्थ व्यक्ति का स्वास्थ्य बना रहे एवं दोष धातु मलों की असमान्य अवस्था होने पर उत्पन्न विकृति या रोग की चिकित्सा करना है। .

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