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भैंस

सूची भैंस

भैंस विश्व में भैंस का वितरण की स्थिति भैंस एक दुधारू पशु है। कुछ लोगों द्वारा भैंस का दूध गाय के दूध से अधिक पसंद किया जाता है। यह ग्रामीण भारत में बहुत उपयोगी पशु है। .

61 संबंधों: चमड़ा, चारा, चारा घोटाला, चीज़ (पाश्चात्य पनीर), डिप्टेरा, ढोर, तीर्थंकर, थनैला रोग, दुग्ध-उत्पाद, दुग्धशाला, नवरात्रि, नील जिह्वा रोग, पचमढ़ी, पशु बीमा, पशु महामारी, पशुपालन, पार्श्व न्यूमोनिया, पागुर, पिज़्ज़ा, पुँछकटवा रोग, प्रतिरूपण, प्राचीन भारत, बरसीम, बायसन, बाघ, बिहु त्योहार, भारत के पशुपक्षियों की बहुभाषीय सूची, भारतीय अर्थव्यवस्था, भाषाविज्ञान, भैंस, महिषासुर, मुर्रा भैंस, मुंहपका-खुरपका रोग, यमराज, युगाण्डा, राम प्रसाद 'बिस्मिल', रुब अल-ख़ाली, रोमंथक, लंगड़ा बुखार, शनि (ज्योतिष), सच्चियाय माता मन्दिर, सम-ऊँगली खुरदार, सिन्घवा खास, सिंधु घाटी सभ्यता, सोहावल, जावा (द्वीप), ज्ञानेश्वर, जैन धर्म के तीर्थंकर, घास, घी, ..., वज्रमुष्टि, गलाघोंटू, गंगा नदी, ग्राम पंचायत झोंपड़ा, सवाई माधोपुर, गोबर, गोवंश, कोरिया का इतिहास, अफ़्रीका, अफ़्रीका की प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीव, उपला, २४ तीर्थंकर सूचकांक विस्तार (11 अधिक) »

चमड़ा

चमड़े के आधुनिक औजारचमड़ा जानवरों की खाल को कमा कर प्राप्त की गयी एक सामग्री है। कमाना या चर्मशोधन एक प्रक्रिया है जो पूयकारी खाल को एक टिकाऊ और विभिन्न प्रयोगों मे आने वाली सामग्री में परिवर्तित कर देती है। चमड़ा बनाने में मुख्यतः गाय और भैंस की खाल का प्रयोग किया जाता है। लकड़ी और चमड़ा ही दो ऐसी सामग्री हैं जो अधिसंख्य प्राचीन तकनीकों का आधार हैं। चमड़ा उद्योग और लोम उद्योग अलग अलग उद्योग हैं और उनकी यह भिन्नता उनके द्वारा प्रयुक्त कच्चे माल के महत्व से पता चलती है। जहां चमड़ा उद्योग का कच्चा माल मांस उद्योग का एक उपोत्पाद है वहीं लोम चर्म उद्योग में लोम की मांस से अधिक महत्वता है। चर्मप्रसाधन भी जानवरों की खालों का इस्तेमाल करता है, लेकिन इसमें आमतौर पर सिर और पीठ का हिस्सा ही प्रयोग में आता है। चर्म और खाल से गोंद और सरेस (जिलेटिन) का उत्पादन भी किया जाता है। .

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चारा

घास चर रही गाय सायकिल से हरा चारा घर लाया जा रहा है गाय, बैल, भैंस, बकरी, घोड़ा आदि पालतू पशुओं को खिलाये जाने योग्य सभी चीजें चारा या 'पशुचारा' या 'पशु आहार' कहलातीं हैं। पशु को 24 घंटों में खिलाया जाने वाला आहार (दाना व चारा) जिसमें उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु भोज्य तत्व मौजूद हों, पशु आहार कहते हैं। जिस आहार में पशु के सभी आवश्यक पोषक तत्व उचित अनुपात तथा मात्रा में उपलव्ध हों, उसे संतुलित आहार कहते हैं। .

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चारा घोटाला

पशुओं को खिलाये जाने वाले चारे के नाम से सरकारी खजाने का पैसा निकाल कर तथाकथित नेता खा गये। चारा घोटाला स्वतन्त्र भारत के बिहार प्रान्त का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार घोटाला था जिसमें पशुओं को खिलाये जाने वाले चारे के नाम पर 950 करोड़ रुपये सरकारी खजाने से फर्जीवाड़ा करके निकाल लिये गये।, दि न्यू यॉर्क टाइम्स, 1997-07-02.

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चीज़ (पाश्चात्य पनीर)

चीज़ और सालन से भरा एक थाल एक चीज़ बाजा़र में गौडा चीज़ की भेलियां दूध से निर्मित भोज्य पदार्थों के एक विविधतापूर्ण समूह का नाम चीज़ (Cheese) है। विश्व के लगभग सभी भागों में भिन्न-भिन्न रंग-रूप एवं स्वाद की चीज़ बनायी जाती हैं। चीज़ मूलतः शाकाहार है। इसमें उच्च गुणवत्ता के प्रोटीन व कैल्शियम के अलावा, फास्फोरस, जिंक विटामिन ए, राइबोफ्लेविन व विटामिन बी2 जैसे पोषक तत्त्व भी पाए जाते हैं। यह दांतों के इनैमल की भी रक्षा करता है और दाँतों को सड़न से बचाता है। .

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डिप्टेरा

सोलह प्रकार की मक्खियों वाला पोस्टर द्विपंखी गण या डिप्टेरा (Diptera) गण के अंतर्गत वे कीट संमिलित हैं जो द्विपक्षीय (दो पंख वाले) हैं। कीट का यह सबसे बृहत् गण है। इसमें लगभग ८० हजार कीट जातियाँ हैं। इसमें मक्खी, पतिंगा, कुटकी (एक छोटा कीड़ा), मच्छर तथा इसी प्रकार के अन्य कीट भी संमिलित हैं। इस समुदाय के अंतर्गत एक ही प्रकार के सूक्ष्म तथा साधारण आकार के कीट होते हैं। ये कीट दिन तथा रात्रि दोनों में उड़ते हैं तथा जल और स्थल दोनों ही स्थान इनके वासस्थान हैं। साधारणत: ये समस्त विश्व में विस्तृत हैं, परंतु गरम देशों में तो इनका ऐसा आधिपत्य है कि प्रति वर्ष सैकड़ों मनुष्यों, तथा अन्य जंतुओं की इनके कारण मृत्यु हो जाती है। .

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ढोर

ढोर (cattle) उस पशुवर्ग में आते हैं जिनके खुर होते हैं और प्रत्येक खुर आगे से मध्य भाग में फटा होता है। यह द्विखुरीयगण के अंतर्गत एक कुल है। अधिकांश ढोरों के सींग होते हैं, जो खोपड़ी के किनारों के ही बढ़े हुए हिस्से होते हैं। इनके ऊपरी जबड़े के अंत में दाँत नहीं होते। इस जाति के पालतु पशु जैसे गाय, बैल, भैंस तथा जंगली पशु जैसे बहुसिंगे आदि जुगाली करते हैं। .

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तीर्थंकर

जैन धर्म में तीर्थंकर (अरिहंत, जिनेन्द्र) उन २४ व्यक्तियों के लिए प्रयोग किया जाता है, जो स्वयं तप के माध्यम से आत्मज्ञान (केवल ज्ञान) प्राप्त करते है। जो संसार सागर से पार लगाने वाले तीर्थ की रचना करते है, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। तीर्थंकर वह व्यक्ति हैं जिन्होनें पूरी तरह से क्रोध, अभिमान, छल, इच्छा, आदि पर विजय प्राप्त की हो)। तीर्थंकर को इस नाम से कहा जाता है क्योंकि वे "तीर्थ" (पायाब), एक जैन समुदाय के संस्थापक हैं, जो "पायाब" के रूप में "मानव कष्ट की नदी" को पार कराता है। .

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थनैला रोग

थनेला रोग (Mastitis) दुधारू पशुओं को लगने वाला एक रोग है। थनैला रोग से प्रभावित पशुओं को रोग के प्रारंभ में थन गर्म हो जाता हैं तथा उसमें दर्द एवं सूजन हो जाती है। शारीरिक तापमान भी बढ़ जाता हैं। लक्षण प्रकट होते ही दूध की गुणवत्ता प्रभावित होती है। दूध में छटका, खून एवं पीभ (पस) की अधिकता हो जाती हैं। पशु खाना-पीना छोड़ देता है एवं अरूचि से ग्रसित हो जाता हैं। यह बीमारी समान्यतः गाय, भैंस, बकरी एवं सूअर समेत तकरीबन सभी वैसे पशुओं में पायी जाती है, जो अपने बच्चों को दूध पिलातीं हैं। थनैला बीमारी पशुओं में कई प्रकार के जीवाणु, विषाणु, फफूँद एवं यीस्ट तथा मोल्ड के संक्रमण से होता हैं। इसके अलावा चोट तथा मौसमी प्रतिकूलताओं के कारण भी थनैला हो जाता हैं। प्राचीन काल से यह बीमारी दूध देने वाले पशुओं एवं उनके पशुपालको के लिए चिंता का विषय बना हुआ हैं। पशु धन विकास के साथ श्वेत क्रांति की पूर्ण सफलता में अकेले यह बीमारी सबसे बड़ी बाधक हैं। इस बीमारी से पूरे भारत में प्रतिवर्ष करोड़ों रूपये का नुकसान होता हैं, जो अतंतः पशुपालकों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता हैं। .

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दुग्ध-उत्पाद

दुग्ध-उत्पाद दुग्ध-उत्पाद (दुग्धोत्पाद) या डेयरी उत्पाद से अभिप्राय उन खाद्य वस्तुओं से है जो दूध से बनती हैं। यह आम तौर पर उच्च ऊर्जा प्रदान करने वाले खाद्य पदार्थ होते हैं। इन उत्पादों का उत्पादन या प्रसंस्करण करने वाले संयंत्र को डेयरी या दुग्धशाला कहा जाता है। भारत में इनके प्रसंस्करण के लिए कच्चा दूध आम तौर गाय या भैंसों से लिया जाता है, लेकिन यदा कदा अन्य स्तनधारियों जैसे बकरी, भेड़, ऊँट, जलीय भैंस, याक, या घोड़ों का दूध भी कई देशों में प्रयुक्त होता है। दुग्ध-उत्पाद सामान्यतः यूरोप, मध्य पूर्व और भारतीय भोजन का मुख्य हिस्सा हैं, जबकि पूर्वी एशियाई भोजन में इनका प्रयोग न के बराबर होता है। .

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दुग्धशाला

एक दुग्धशाला दुग्धशाला या डेरी में पशुओं का दूध निकालने तथा तत्सम्बधी अन्य व्यापारिक एवं औद्योगिक गतिविधियाँ की जाती हैं। इसमें प्रायः गाय और भैंस का दूध निकाला जाता है किन्तु बकरी, भेड़, ऊँट और घोड़ी आदि के भी दूध निकाले जाते हैं। .

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नवरात्रि

नवरात्रि एक हिंदू पर्व है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातें'। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है। पौष, चैत्र,आषाढ,अश्विन प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों - महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दुर्गा का मतलब जीवन के दुख कॊ हटानेवाली होता है। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है। नौ देवियाँ है:-.

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नील जिह्वा रोग

नील जिह्वा रोग या ब्लू टंग (Bluetongue disease या catarrhal fever) मुख्यतः भेड़ को होने वाला रोग है। कभी-कभी यह बकरी, भैंस, एवं अन्य चौपायों को भी हो जाता है। यह कीटों के माध्यम से फैलने वाला रोग है जो ब्लूटंग विषाणु (BTV) के कारण होता है। यह छूत से नहीं फैलता। .

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पचमढ़ी

पचमढ़ी की पांडव गुफ़ाएँमध्यप्रदेश के एकमात्र पर्वतीय स्थल होशंगाबाद जिले में स्थित पचमढ़ी समुद्र तल से १,०६७ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। सतपुड़ा श्रेणियों के बीच स्थित होने और अपने सुंदर स्थलों के कारण इसे सतपुड़ा की रानी भी कहा जाता है। यहाँ घने जंगल, कलकल करते जलप्रपात और तालाब हैं। सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान का भाग होने के कारण यहाँ आसपास बहुत घने जंगल हैं। यहाँ के जंगलों में शेर, तेंदुआ, सांभर, चीतल, गौर, चिंकारा, भालू, भैंसा तथा कई अन्य जंगली जानवर मिलते हैं। यहाँ की गुफाएँ पुरातात्विक महत्व की हैं क्योंकि यहाँ गुफाओं में शैलचित्र भी मिले हैं। .

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पशु बीमा

परवरिश पशुओ और बेचने के लिए पोल्ट्री अप्रत्याशित और जोखिम भरा हो सकता है। यही कारण है कि एक ठोस और पशुधन या मुर्गी बीमा पॅलिसी एक आवश्यकता है वह है। यह बीमा उन अप्रत्याशित घटनाओं और दुर्घटनाओं कि अपने जानवरों और अपनी आजीविका तबाह कर सकते हैं से अपने निवेश की सुरक्षा करता है। फ़ार्म पशु बीमा अपने विशेष पशु समूह को कवर के लिए अनुकूलित किया जा सकता है, तो पशु, सूअर, भेड, एमु, बकरी, मुर्गी या अपने खेत पर इनमें से किसी भी संयोजन है या नहीं। भारतीय कृषि उद्योग, एक और हरित क्रांति कि इसे और अधिक आकर्षक और लाभदायक बनाता के कगार पर भारत में कुल कृषि उत्पादन के रूप में अगले दस साल में दोगुना होने की संभावना है और वह भी एक जैविक तरीके से| पशु बीमा पॉलिसी अपने मवेशियों है, जो एक ग्रामीण समुदाय की सबसे मूल्यवान संपत्ति है कि मृत्यु के कारण वित्तीय नुकसान से भारतीय ग्रामीन लोगों की सुरक्षा के लिए प्रदान की जाती है। नीति होने गाय, बैल या तो सेक्स एक पशु चिकित्सक/ सर्जन द्वारा ध्वनि और उत्तम स्वास्थ्य और चोट या रोग से मुक्त होने के रूप में प्रमाणित की भैंस और जो माइक्रो फ़ाइनेंस संस्थानों, गैर सरकारी संगठनों के सदस्य कर रहे हैं व्यक्तियों को शामिल किया, सरकार प्रायोजित संगठनों और इस तरह के संबंध समूहों/ ग्रामीण और सामाजिक क्षेत्र में संस्थानों| पशु बीमा .

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पशु महामारी

पशु महामारी या रिंडरपेस्ट (Rinderpest) पशुओं को लगने वाला एक विषाणुजनित संक्रामक रोग था जो अब विश्व से समाप्त हो चुका है। यह भैंस एवं कुछ अन्य पशुओं को लगता था। इस रोग से ग्रसित पशु को ज्वर, अतिसार (पोंकनी या डायरिया), मुंह से लार टपकना आदि लक्षण देखने को मिलते थे। यह रोग भी एक विषाणु से पैदा होने वाला छूतदार रोग है जोकि जुगाली करने वाले लगभग सभी पशुओं को होता है। इसमें पशु को तीव्र दस्त अथवा पेचिस लग जाते हैं। यह रोग स्वस्थ पशु को रोगी पशु के सीधे संपर्क में आने से फैलता है। इसके अतिरिे वर्तनों तथा देखभाल करने वाले व्यिे द्वारा भी यह बीमारी फैल सकती है। इसमें पशु को तेज बुखार होजाता है तथा पशु बेचैन होजाता है। दुग्ध उत्पादन कम हो जाता है और पशु की आंखें सुर्ख लाल होजाती हैं। 2-3 दिन के बाद पशु के मुंह में होंठ, मसूड़े व जीभ के नीचे दाने निकल आते हैं जो बाद में घाव का रूप ले लेते हैं। पशु के मुंह से लार निकलने लगती हैतथा उसे पतले व बदबूदार दस्त लग जाते हैंजिनमें खून भी आने लगता है। इसमें पशु बहुत कमजोर होजाता है तथा उसमें पानी की कमी होजाती है। इस बीमारी में पशु की 3-9 दिनों में मृत्यु हो जाती है। इस बीमारी के प्रकोप से विश्व भर में लाखों की संख्या में पशु मरते थे लेकिन अब विश्व स्तर पर इस रोग के उन्मूलन की योजना के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा लागू की गयी रिन्डरपेस्ट इरेडीकेशन परियोजना के तहत लगातार शत प्रतिशत रोग निरोधक टीकों के प्रयोग से अब यह बीमारी प्रदेश तथा देश में लगभग समाप्त होचुकी है। .

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पशुपालन

भेड़ें और पशु चर रहे हैं। पशुपालन कृषि विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत पालतू पशुओं के विभिन्न पक्षों जैसे भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य, प्रजनन आदि का अध्ययन किया जाता है। पशुपालन का पठन-पाठन विश्व के विभिन्न विश्वविद्यालयों में एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में किया जा रहा है। .

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पार्श्व न्यूमोनिया

पार्श्व न्युमोनिया या प्लूरोन्युमोनिया (Pleuro-pneumonia) ढोरों (cattle) में अधिक होने वाला उग्र स्पर्शज जीवाणु रोग है, जो मुख्यतः फुफ्फुस (lungs) तथा वक्ष की अस्तर कला (lining membrane) को आक्रांत करता है। यह भैंस, जेबू और याक को भी होता है। इसे सामान्यतः फुफ्फुस ताऊन (Lung Plague) भी कहते हैं। इसके फलस्वरूप एक विशेष प्रकार का खंड एवं खंडशोथ (lobar and lobular pneumonia) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। गोजातीय पशु (bovine animals) के अतिरिक्त यह रोग अन्य पशुओं में प्रसारित नहीं होता। यह रोग अनेक देशों में, जैसे भारत, चीन, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया तथा यूरोप के बहुत से देशों में भी होता है। मनुष्यों को जब होता है तब शरीर-विकृति-विज्ञान (pathology) के अंतर्गत होनेवाले मुख्य परिवर्तनों में फुफ्फुस की आकृति संगमरमर के समान हो जाती है तथा फुफ्फुसावरण (pleura) में फाइब्रिनस विक्षेप (fibrinous deposit) हो जाता है। कभी-कभी वक्षगुहा (cavity of thorax) में अत्यधिक मात्रा में तरल पदार्थों का भी संचय हो जाता है। .

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पागुर

पागुर करती हुई गाय पागुर (Rumination) कुछ जानवरों के द्वारा की जाने वाली एक क्रिया है जो उनके भोजन के पाचन की प्रक्रिया का एक भाग है। ये जानवर निगले हुए भोजन (घास, भूसा आदि) को आमाशय से पुनः अपने मुंह में लाते हैं, उसे चबाते हैं और फिर उसे वापस पेट में भेज देते हैं। स्तनधारी प्राणियों की लगभग १५० प्रजातियाँ पागुर करती हैं। पागुर करके ये पशु चारे को और छोटे-छोटे टुकड़ों में बांट देते हैं जिससे भोजन का पाचन आसानी से हो जाता है। पागुर की प्रक्रिया जानवरों के लिये इसलिये उपयोगी है कि भोजन मिलने पर ये जानवर तीव्रता से इसे ग्रहण कर लेते हैं और समय पाकर आराम से पागुर के द्वारा उसे चबाते हैं। बकरी, भेड़, जिर्राफ, याक, भैंस, गाय, ऊँट, हिरन, नीलगाय आदि कुछ पशु हैं जो पागुर करते हैं। श्रेणी:पाचन.

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पिज़्ज़ा

पिज़्ज़ा (इतालवी Pizza) भट्टी में बनाए जानी वाली चपटी ब्रेड होती है, जीसे मुख्यतः टमाटर की चटनी, चीज़ और अन्य विविध टॉपिंग के साथ परोसा जाता है। इसकी उत्पत्ती इटली में हुई और अब यह विश्वभर में लोकप्रिय है। .

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पुँछकटवा रोग

पशुओं में पुँछकटवा रोग या डेगनाला रोग (Degnala disease) मुख्यतः भैंस जाति के पशुओं में होता है। वैसे गो-वंश के पशु भी इस संक्रमण के शिकार होते हैं। इस बीमारी का निश्चित कारण अभी तक ज्ञात नहीं है परन्तु डेगनाला एक फफुंद (फंगस) से पैदा होने वाला रोग है। इस बीमारी में पशुओं के कान, पूँछ एवं खुर सूखने लगते है और अंततः सड़ कर गिर जाते है। पशु भोजन करना बंद कर देता है एवं दिनों दिन कमजोर होते जाता है। कुछ वैज्ञानिकों का यह मत है कि यह बीमारी सूक्ष्म पोषक तत्वों (Mineral Deficiency) की कमी के वजह से हाेता है। अधिक नमी युक्त पुआल या भूसा खिलाने से यह रोग आमतौर पर जानवरों में होता है। .

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प्रतिरूपण

समुद्र एनेमोन, प्रतिरूपण की प्रक्रिया में अन्थोप्लयूरा एलेगंटिस्सिमा जीव-विज्ञान में प्रतिरूपण, आनुवांशिक रूप से समान प्राणियों की जनसंख्या उत्पन्न करने की प्रक्रिया है, जो प्रकृति में विभिन्न जीवों, जैसे बैक्टीरिया, कीट या पौधों द्वारा अलैंगिक रूप से प्रजनन करने पर घटित होती है। जैव-प्रौद्योगिकी में, प्रतिरूपण डीएनए खण्डों (आण्विक प्रतिरूपण), कोशिकाओं (सेल क्लोनिंग) या जीवों की प्रतिरूप निर्मित करने की प्रक्रिया को कहा जाता है। यह शब्द किसी उत्पाद, जैसे डिजिटल माध्यम या सॉफ्टवेयर की अनेक प्रतियां निर्मित करने की प्रक्रिया को भी सूचित करता है। क्लोन शब्द κλών से लिया गया है, "तना, शाखा" के लिये एक ग्रीक शब्द, जो उस प्रक्रिया को सूचित करता है, जिसके द्वारा एक टहनी से कोई नया पौधा निर्मित किया जा सकता है। उद्यानिकी में बीसवीं सदी तक clon वर्तनी का प्रयोग किया जाता था; अंतिम e का प्रयोग यह बताने के लिये शुरू हुआ कि यह स्वर एक "संक्षिप्त o" नहीं, वल्कि एक "दीर्घ o" है। चूंकि इस शब्द ने लोकप्रिय शब्दकोश में एक अधिक सामान्य संदर्भ के साथ प्रवेश किया, अतः वर्तनी clone का प्रयोग विशिष्ट रूप से किया जाता है। .

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प्राचीन भारत

मानव के उदय से लेकर दसवीं सदी तक के भारत का इतिहास प्राचीन भारत का इतिहास कहलाता है। .

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बरसीम

बरसीम बरसीम (वानस्पतिक नाम: Trifolium alexandrinum) चारे की वार्षिक फसल है। इसकी खेती अधिकांशतः सिंचित उपोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में भैंस एवं अन्य पशुओं के चारे के लिए की जाती है। प्राचीन मिस्र में यह एक महत्वपूर्ण फसल थी। भारत में बरसीम उन्नीसवीं शताब्दी में आरम्भ में आयी। अमेरिका और यूरोप में भी इसकी खेती होती है। बरसीम का पौधा 30 से 60 सेमी लम्बा होता है। .

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बायसन

बायसन (Bison) गोवंश के जीववैज्ञानिक कुल में विशाल समखुरीय प्राणियों का एक जीववैज्ञानिक वंश है। इस वंश में छह ज्ञात जातियाँ हैं, जिनमें से दो अस्तित्व में हैं और चार विलुप्त हो चुकी हैं। .

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बाघ

बाघ जंगल में रहने वाला मांसाहारी स्तनपायी पशु है। यह अपनी प्रजाति में सबसे बड़ा और ताकतवर पशु है। यह तिब्बत, श्रीलंका और अंडमान निकोबार द्वीप-समूह को छोड़कर एशिया के अन्य सभी भागों में पाया जाता है। यह भारत, नेपाल, भूटान, कोरिया, अफगानिस्तान और इंडोनेशिया में अधिक संख्या में पाया जाता है। इसके शरीर का रंग लाल और पीला का मिश्रण है। इस पर काले रंग की पट्टी पायी जाती है। वक्ष के भीतरी भाग और पाँव का रंग सफेद होता है। बाघ १३ फीट लम्बा और ३०० किलो वजनी हो सकता है। बाघ का वैज्ञानिक नाम पेंथेरा टिग्रिस है। यह भारत का राष्ट्रीय पशु भी है। बाघ शब्द संस्कृत के व्याघ्र का तदभव रूप है। .

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बिहु त्योहार

बिहु त्योहार बिहु (असमिया: বিহু) असम के तीन अलग सांस्कृतिक उत्सवों के एक समूह को दर्शाता है और दुनिया भर के असमी प्रवासी इसे धूमधाम से मनाते हैं। यद्यपि वे प्राचीन संस्कार और प्रथाओं को उनके मूल मानते है हालांकि उन लोगो ने निश्चित शहरी सुविधाओं को अपना लिया है और हाल की दशकों में शहरी और लोकप्रिय त्योहार बन गए हैं। उनमें से एक में अप्रैल में मनाये जाने वाले असमिया नव वर्ष भी शामिल है। बिहु शब्द बिहु नृत्य और बिहू लोक गीत दोनो की और संकेत करते है। रोंगाली बिहु या बोहाग बिहु असम का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। बिहु असम के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है, जो सभी असमियों द्वारा बहुतायत में मस्ती के साथ मनाया जाता है बिना उनके जाति, धर्म और विश्वास में भेद किये। बिहु शब्द दिमासा लोगों की भाषा से ली गई है जो की प्राचीन काल से एक कृषि समुदाय है। उनकी सर्वोच्च देवता ब्राई शिबराई या पिता शिबराई हैं। मौसम की पहली फसल अपनी शांति और समृद्धि की कामना करते हुए ब्राई शिबराई के नाम पर अर्पित किया जाता हैं। तो 'बि' मतलब 'पुछना' और 'शु' मतलब पृथ्वी में 'शांति और समृद्धि' हैं। अत: शब्दै बिशु धीरे-धीरे भाषाई तहजीह को समायोजित करने के लिये बिहु बन गया। अन्य सुझाव यह हैं कि 'बि' मतलब 'पुछ्ना' और 'हु' मतलब 'देना' और वही से बिहु नाम उत्पन्न हुआ। यह " कलागुरु " विष्णु प्रसाद राभा द्वारा कहा गया था। असम में रोंगाली बिहू बहुत सारे परंपराओं से ली जाती हैं जैसे की- बर्मी-चीन, ऑस्ट्रो - एशियाटिक, हिंद-आर्यन- और बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता हैं। त्योहार अप्रैल के मध्य में शुरू होता हैं और आम तौर पर एक महीने के लिए जारी रह्ता हैं। यह पारंपरिक नव वर्ष है। इसके अलावा दो और बिहु हैं: अक्टूबर में कोंगाली बिहु (सितम्बर विषुव के साथ जुड़े) और जनवरी में भोगाली बिहु (जनवरी संक्रांति से जुड़े)। अधिकांश अन्य भारतीय त्योहारों की तरह, बिहू (तीनों ही) खेती के साथ जुड़ा हुआ हैं, जैसे की पारंपरिक असमिया समाज मुख्य रूप से कृषि पर ही निर्भरीत हैं। वास्तव में, वैसा ही बहुत सारे उत्सब लगभग उसी वक्त पे पुरे भारतबर्श में मनाया जाता हैं। .

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भारत के पशुपक्षियों की बहुभाषीय सूची

भारत के पशुपक्षियों के नाम अलग-अलग भारतीय भाषाओं में भिन्न-भिन्न हैं। .

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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व में सातवें स्थान पर है, जनसंख्या में इसका दूसरा स्थान है और केवल २.४% क्षेत्रफल के साथ भारत विश्व की जनसंख्या के १७% भाग को शरण प्रदान करता है। १९९१ से भारत में बहुत तेज आर्थिक प्रगति हुई है जब से उदारीकरण और आर्थिक सुधार की नीति लागू की गयी है और भारत विश्व की एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरकर आया है। सुधारों से पूर्व मुख्य रूप से भारतीय उद्योगों और व्यापार पर सरकारी नियंत्रण का बोलबाला था और सुधार लागू करने से पूर्व इसका जोरदार विरोध भी हुआ परंतु आर्थिक सुधारों के अच्छे परिणाम सामने आने से विरोध काफी हद तक कम हुआ है। हंलाकि मूलभूत ढाँचे में तेज प्रगति न होने से एक बड़ा तबका अब भी नाखुश है और एक बड़ा हिस्सा इन सुधारों से अभी भी लाभान्वित नहीं हुये हैं। .

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भाषाविज्ञान

भाषाविज्ञान भाषा के अध्ययन की वह शाखा है जिसमें भाषा की उत्पत्ति, स्वरूप, विकास आदि का वैज्ञानिक एवं विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाता है। भाषा विज्ञान के अध्ययेता 'भाषाविज्ञानी' कहलाते हैं। भाषाविज्ञान, व्याकरण से भिन्न है। व्याकरण में किसी भाषा का कार्यात्मक अध्ययन (functional description) किया जाता है जबकि भाषाविज्ञानी इसके आगे जाकर भाषा का अत्यन्त व्यापक अध्ययन करता है। अध्ययन के अनेक विषयों में से आजकल भाषा-विज्ञान को विशेष महत्त्व दिया जा रहा है। .

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भैंस

भैंस विश्व में भैंस का वितरण की स्थिति भैंस एक दुधारू पशु है। कुछ लोगों द्वारा भैंस का दूध गाय के दूध से अधिक पसंद किया जाता है। यह ग्रामीण भारत में बहुत उपयोगी पशु है। .

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महिषासुर

महिषासुर की मैसूर में चामुंडीपर्वत पर मूर्तिपुराणिक कथाओ के अनुसार महिषासुर एक असुर था। महिषासुर के पिता रंभ, असुरों का राजा था जो एक बार जल में रहने वाले एक भैंस से प्रेम कर बैठा और इन्हीं के योग से महिषासुर का आगमन हुआ। इसी वज़ह से महिषासुर इच्छानुसार जब चाहे भैंस और जब चाहे मनुष्य का रूप धारण कर सकता था। संस्कृत में महिष का अर्थ भैंस होता है। महिषासुर सृष्टिकर्ता ब्रम्हा का महान भक्त था और ब्रम्हा जी ने उन्हें वरदान दिया था कि कोई भी देवता या दानव उसपर विजय प्राप्त नहीं कर सकता। महिषासुर बाद में स्वर्ग लोक के देवताओं को परेशान करने लगा और पृथ्वी पर भी उत्पात मचाने लगा। उसने स्वर्ग पर एक बार अचानक आक्रमण कर दिया और इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर कब्ज़ा कर लिया तथा सभी देवताओं को वहाँ से खदेड़ दिया। देवगण परेशान होकर त्रिमूर्ति ब्रम्हा, विष्णु और महेश के पास सहायता के लिए पहुँचे। सारे देवताओं ने फिर से मिलकर उसे फिर से परास्त करने के लिए युद्ध किया परंतु वे फिर हार गये। कोई उपाय न पाक देवताओं ने उसके विनाश के लिए दुर्गा का सृजन किया जिसे शक्ति और पार्वती के नाम से भी जाना जाता है। देवी दुर्गा ने महिषासुर पर आक्रमण कर उससे नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया। इसी उपलक्ष्य में हिंदू भक्तगण दस दिनों का त्यौहार दुर्गा पूजा मनाते हैं और दसवें दिन को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। जो बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है। श्रेणी:असुर.

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मुर्रा भैंस

मुर्रा भैंस पालतू भैंस की एक प्रजाति है जो दूध उत्पादन के लिए पाली जाती है। यह मूलतः अविभाजित पंजाब का पशु है किन्तु अब दूसरे प्रान्तों तथा दूसरे देशों (जैसे इटली, बल्गेरिया, मिस्र आदि) में भी पाली जातीहै। हरियाणा में इसे काला सोना कहा जाता हैै.

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मुंहपका-खुरपका रोग

गाय के मुँह में मुँहपका मुंहपका-खुरपका रोग (Foot-and-mouth disease, FMD या hoof-and-mouth disease) विभक्त-खुर वाले पशुओं का अत्यन्त संक्रामक एवं घातक विषाणुजनित रोग है। यह गाय, भैंस, भेंड़, बकरी, सूअर आदि पालतू पशुओं एवं हिरन आदि जंगली पशुओं को को होती है। .

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यमराज

यमराज हिन्दू धर्म के अनुसार मृत्यु के देवता हैं। इनका उल्लेख वेद में भी आता है। इनकी जुड़वां बहन यमुना (यमी) है। यमराज, महिषवाहन (भैंसे पर सवार) दण्डधर हैं। वे जीवों के शुभाशुभ कर्मों के निर्णायक हैं। वे परम भागवत, बारह भागवताचार्यों में हैं। यमराज दक्षिण दिशा के दिक् पाल कहे जाते हैं और आजकल मृत्यु के देवता माने जाते हैं। दक्षिण दिशा के इन लोकपाल की संयमनीपुरी समस्त प्राणियों के लिये, जो अशुभकर्मा हैं, बड़ी भयप्रद है। यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुभ्बर, दघ्न, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त - इन चौदह नामों से यमराज की आराधना होती है। इन्हीं नामों से इनका तर्पण किया जाता है। विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से भगवान सूर्य के पुत्र यमराज, श्राद्धदेव मनु और यमुना उत्पन्न हुईं। .

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युगाण्डा

युगांडा गणराज्य पूर्वी अफ्रीका में स्थित एक लैंडलाक देश है। इसकी सीमा पूर्व में केन्या, उत्तर में सूडान, पश्चिम में कांगो लोकतान्त्रिक गणराज्य, दक्षिण पश्चिम में रवांडा और दक्षिण में तंजानिया से मिलती है। देश के दक्षिणी हिस्से में विक्टोरिया झील का एक बड़ा भाग शामिल है, जिससे केन्या और तंजानिया से सीमा निर्धारित होती है। युगांडा नाम बुगांडा राजशाही से लिया गया है, जिसमें देश का दक्षिणी ह्स्सिा, राजधानी कंपाला को शामिल कर, आता था। देश की एक तिहाई जनसंख्या अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा (2 डालर प्रतिदिन) से नीचे जीवनयापन करती है। .

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राम प्रसाद 'बिस्मिल'

राम प्रसाद 'बिस्मिल' (११ जून १८९७-१९ दिसम्बर १९२७) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे, जिन्हें ३० वर्ष की आयु में ब्रिटिश सरकार ने फाँसी दे दी। वे मैनपुरी षड्यन्त्र व काकोरी-काण्ड जैसी कई घटनाओं में शामिल थे तथा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य भी थे। राम प्रसाद एक कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे। बिस्मिल उनका उर्दू तखल्लुस (उपनाम) था जिसका हिन्दी में अर्थ होता है आत्मिक रूप से आहत। बिस्मिल के अतिरिक्त वे राम और अज्ञात के नाम से भी लेख व कवितायें लिखते थे। ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (निर्जला एकादशी) विक्रमी संवत् १९५४, शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में जन्मे राम प्रसाद ३० वर्ष की आयु में पौष कृष्ण एकादशी (सफला एकादशी), सोमवार, विक्रमी संवत् १९८४ को शहीद हुए। उन्होंने सन् १९१६ में १९ वर्ष की आयु में क्रान्तिकारी मार्ग में कदम रखा था। ११ वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और स्वयं ही उन्हें प्रकाशित किया। उन पुस्तकों को बेचकर जो पैसा मिला उससे उन्होंने हथियार खरीदे और उन हथियारों का उपयोग ब्रिटिश राज का विरोध करने के लिये किया। ११ पुस्तकें उनके जीवन काल में प्रकाशित हुईं, जिनमें से अधिकतर सरकार द्वारा ज़ब्त कर ली गयीं। --> बिस्मिल को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध की लखनऊ सेण्ट्रल जेल की ११ नम्बर बैरक--> में रखा गया था। इसी जेल में उनके दल के अन्य साथियोँ को एक साथ रखकर उन सभी पर ब्रिटिश राज के विरुद्ध साजिश रचने का ऐतिहासिक मुकदमा चलाया गया था। --> .

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रुब अल-ख़ाली

अंतरिक्ष से ली गई रुब अल-ख़ाली में रेत के टीलों की तस्वीर रुब अल-ख़ाली में डूबता सूरज रुब अल-ख़ाली (अरबी:, अंग्रेज़ी: Rub' al-Khali), जिसका मतलब 'ख़ाली क्षेत्र' होता है, दुनिया का सबसे बड़ा रेत का रेगिस्तान है (अधिकतर रेगिस्तानों में रेत, पत्थरों और पहाड़ों का मिश्रण होता है)। अरबी प्रायद्वीप का दक्षिणी एक-तिहाई इलाक़ा इसमें आता है, जिसमें सउदी अरब का अधिकार क्षेत्रफल तथा ओमान, संयुक्त अरब अमीरात व यमन के कुछ भाग शामिल हैं। इसका क्षेत्रफल लगभग ६,५०,००० वर्ग किमी है, यानि राजस्थान और मध्य प्रदेश राज्यों को मिलाकर जितना बनता है। .

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रोमंथक

कड़ी.

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लंगड़ा बुखार

लंगडा बुखार (Blackleg या 'ब्लैक क्वार्टर' या BQ) साधारण भाषा में जहरबाद, फडसूजन, काला बाय, कृष्णजंधा, लंगड़िया, एकटंगा आदि नामों से भी जाना जाता है। यह रोग प्रायः सभी स्थानों पर पाया जाता है लेकिन नमी वाले क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैलता है। मुख्य रूप से इस रोग से गाय, भैंस एवं भेंड़ प्रभावित होती है। यह रोग छह माह से दो साल तक की आयु वाले पशुओं में अधिक पाया जाता है। यह रोग 'लंगड़ी बीमारी' के नाम से प्रसिद्ध है। यह गौ जाति में प्रायः तथा भैस और भेड़ों में कभी-कभी होने वाला छिटपुट अथवा महामारी प्रकृतिवाला जीवाणु (बैक्टिरिया) से पैदा होने वाला पशु रोग है (clostridium choviai bacteria)जिसमें साधारण ज्वर तथा मांसल भाग का दर्दयुक्त सूजन एवं लंगड़ापन प्रमुख लक्षण है। युवा तथा स्वस्थ पशु ज्यादा प्रभावित होते हैं। .

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शनि (ज्योतिष)

बण्णंजी, उडुपी में शनि महाराज की २३ फ़ीट ऊंची प्रतिमा शनि ग्रह के प्रति अनेक आखयान पुराणों में प्राप्त होते हैं।शनिदेव को सूर्य पुत्र एवं कर्मफल दाता माना जाता है। लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी.शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियां और इस लिये उसे मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं। लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है, जितना उसे माना जाता है। इसलिये वह शत्रु नही मित्र है।मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है। सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है, और हर प्राणी के साथ उचित न्याय करता है। जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं, शनि केवल उन्ही को दण्डिंत (प्रताडित) करते हैं। वैदूर्य कांति रमल:, प्रजानां वाणातसी कुसुम वर्ण विभश्च शरत:। अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मज: अव्यतीति मुनि प्रवाद:॥ भावार्थ:-शनि ग्रह वैदूर्यरत्न अथवा बाणफ़ूल या अलसी के फ़ूल जैसे निर्मल रंग से जब प्रकाशित होता है, तो उस समय प्रजा के लिये शुभ फ़ल देता है यह अन्य वर्णों को प्रकाश देता है, तो उच्च वर्णों को समाप्त करता है, ऐसा ऋषि महात्मा कहते हैं। .

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सच्चियाय माता मन्दिर

सच्चियाय माता (सचिया माता) के नाम से भी जानी जाती है इनका मंदिर जोधपुर से 63 किमी दूर ओसियां में स्थित है। यह मंदिर जोधपुर जिले का सबसे बड़ा मंदिर है इसका निर्माण 9वीं या 10वीं सदी में उपेन्द्र ने करवाया था। सच्चियाय माता की पूजा ओसवाल, जैन, परमार, पंवार, कुमावत, राजपूत, चारण तथा पारिक इत्यादि जातियों के लोग पूजते हैं। .

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सम-ऊँगली खुरदार

द्विखुरीयगणों के खुर द्विखुरीयगण या सम-ऊँगली खुरदार (आर्टियोडैक्टाइला, Artiodactyla) गाय, भैंस, सूअर, बकरी, ऊँट, हरिण आदि स्तनियों (mammals) का गण है, जिनमें गर्भनाल (placents), पैर पर सम संख्या की अँगुलियाँ तथा खुर होते हैं। इस गण में खरगोश से लेकर भैंस और दरियाई घोड़े जैसे भिन्न-भिन्न आकार-प्रकार के प्राणी सम्मिलित हैं। .

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सिन्घवा खास

सिन्घवा खास भारत के उत्तर में स्थित राज्य हरियाणा के हिसार जिले का एक गाँव है। यह गाँव राष्ट्रीय राजमार्ग-10 से लगभग 3 किमी की दूरी पर स्थित है। सिन्घवा खास में हिन्दुओं की लगभग 10-12 विभिन्न जातियों के लोग निवास करते हैं। गाँव की जनसंख्या लगभग 5000 है। इस गाँव के तालाब का क्षेत्रफल 2 से 3 वर्ग किमी के करीब है। यहाँ पर उत्तम किस्म कि मुर्राह नस्ल की भैंसें पाली जाती हैं। इस गाँव में एक चिकित्सालय, एक पशु चिकित्सालय, एक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, एक जल घर, चार पंचायत घर तथा एक प्राथमिक विद्यालय मौजूद हैं। .

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सिंधु घाटी सभ्यता

सिंधु घाटी सभ्यता अपने शुरुआती काल में, 3250-2750 ईसापूर्व सिंधु घाटी सभ्यता (3300 ईसापूर्व से 1700 ईसापूर्व तक,परिपक्व काल: 2600 ई.पू. से 1900 ई.पू.) विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है। जो मुख्य रूप से दक्षिण एशिया के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में, जो आज तक उत्तर पूर्व अफगानिस्तान,पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम और उत्तर भारत में फैली है। प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया की प्राचीन सभ्यता के साथ, यह प्राचीन दुनिया की सभ्यताओं के तीन शुरुआती कालक्रमों में से एक थी, और इन तीन में से, सबसे व्यापक तथा सबसे चर्चित। सम्मानित पत्रिका नेचर में प्रकाशित शोध के अनुसार यह सभ्यता कम से कम 8000 वर्ष पुरानी है। यह हड़प्पा सभ्यता और 'सिंधु-सरस्वती सभ्यता' के नाम से भी जानी जाती है। इसका विकास सिंधु और घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ। मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी और हड़प्पा इसके प्रमुख केन्द्र थे। दिसम्बर २०१४ में भिर्दाना को सिंधु घाटी सभ्यता का अब तक का खोजा गया सबसे प्राचीन नगर माना गया है। ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों का अनुमान है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े हैं। 7वी शताब्दी में पहली बार जब लोगो ने पंजाब प्रांत में ईटो के लिए मिट्टी की खुदाई की तब उन्हें वहां से बनी बनाई इटे मिली जिसे लोगो ने भगवान का चमत्कार माना और उनका उपयोग घर बनाने में किया उसके बाद 1826 में चार्ल्स मैसेन ने पहली बार इस पुरानी सभ्यता को खोजा। कनिंघम ने 1856 में इस सभ्यता के बारे में सर्वेक्षण किया। 1856 में कराची से लाहौर के मध्य रेलवे लाइन के निर्माण के दौरान बर्टन बंधुओं द्वारा हड़प्पा स्थल की सूचना सरकार को दी। इसी क्रम में 1861 में एलेक्जेंडर कनिंघम के निर्देशन में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की। 1904 में लार्ड कर्जन द्वारा जॉन मार्शल को भारतीय पुरातात्विक विभाग (ASI) का महानिदेशक बनाया गया। फ्लीट ने इस पुरानी सभ्यता के बारे में एक लेख लिखा। १९२१ में दयाराम साहनी ने हड़प्पा का उत्खनन किया। इस प्रकार इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया व दयाराम साहनी को इसका खोजकर्ता माना गया। यह सभ्यता सिन्धु नदी घाटी में फैली हुई थी इसलिए इसका नाम सिन्धु घाटी सभ्यता रखा गया। प्रथम बार नगरों के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता है। प्रथम बार कांस्य के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है। सिन्धु घाटी सभ्यता के १४०० केन्द्रों को खोजा जा सका है जिसमें से ९२५ केन्द्र भारत में है। ८० प्रतिशत स्थल सरस्वती नदी और उसकी सहायक नदियों के आस-पास है। अभी तक कुल खोजों में से ३ प्रतिशत स्थलों का ही उत्खनन हो पाया है। .

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सोहावल

300px सोहावल उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले की एक तहसील है। यह जनपद मुख्यालय से 19 किमी॰ पश्चिम दिशा में है। यहाँ एक रेलवे स्टेशन भी है जोकि तहसील से 500 मी॰ की दूरी पर है। सोहावल से कुछ दूरी पर 'खिरौनी' गाँव है। यह गाँव एकता विविधता एवं सम्पूर्णता का प्रतीक है। प्रसिद्ध शारदा सहायक नहर यहाँ से होकर गई है। इस ग्रामसभा में छोटी बड़ी मिलाकर 27 पंचायते हैं। सरयू नदी यहाँ से 4 किमी॰ दूर है जोकि ढेमवा नदी के स्थानीय नाम से प्रसिद्ध है। खिरौनी ग्रामसभा में 'पूरे अहलाद' नामक छोटा सा गाँव है। 'सोहावल' प्रसिद्ध लोगों की जन्म स्थली है। यहाँ जन्मे लल्लू सिंह, अवधेश प्रसाद आदि मंत्री रह चुके है। पहले सोहावल एक विधानसभा हुआ करती थी परन्तु अब सोहावल को अब बीकापुर विधानसभा में परिवर्तित कर दिया गया है। दिवाकर द्विवेदी प्रसिद्ध भोजपुरी गायक यहीँ के है। इसके अतिरिक्त:en:Narendra Dev University of Agriculture and Technology के प्रसिद्ध वैज्ञानिक अजय कुमार मौर्य सोहावल के मोइयाकपूर पुर गाँव के है। .

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जावा (द्वीप)

मेरबाबु पर्वत ज्वालामुखी जावा द्वीप इंडोनेशिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला द्वीप है। प्राचीन काल में इसका नाम यव द्वीप था और इसका वर्णन भारत के ग्रन्थों में बहुत आता है। यहां लगभग २००० वर्ष तक हिन्दू सभ्यता का प्रभुत्व रहा। अब भी यहां हिन्दुओं की बस्तियां कई स्थानों पर पाई जाती हैं। विशेषकर पूर्व जावा में मजापहित साम्राज्य के वंशज टेंगर लोग रहते हैं जो अब भी हिन्दू हैं। सुमेरू पर्वत और ब्रोमो पर्वत पूर्व जावा में यहां की और पूरे इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता (संस्कृत: जयकर्त) है। बोरोबुदुर और प्रमबनन मन्दिर यहां स्थित हैं। .

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ज्ञानेश्वर

संत ज्ञानेश्वर महाराष्ट्र तेरहवीं सदी के एक महान सन्त थे जिन्होंने ज्ञानेश्वरी की रचना की। संत ज्ञानेश्वर की गणना भारत के महान संतों एवं मराठी कवियों में होती है। ये संत नामदेव के समकालीन थे और उनके साथ इन्होंने पूरे महाराष्ट्र का भ्रमण कर लोगों को ज्ञान-भक्ति से परिचित कराया और समता, समभाव का उपदेश दिया। वे महाराष्ट्र-संस्कृति के 'आद्य-प्रवर्तकों' में भी माने जाते हैं। .

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जैन धर्म के तीर्थंकर

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घास

घास का मैदान घास घास (grass) एक एकबीजपत्री हरा पौधा है। इसके प्रत्येक गाँठ से रेखीय पत्तियाँ निकलती हुई दिखाई देती हैं। साधारणतः यह कमजोर, शाखायुक्त, रेंगनेवाला पौधा है। बाँस, मक्का तथा धान के पौधे भी घास ही हैं। .

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घी

घी घी (संस्कृत: घृतम्), एक विशेष प्रकार का मख्खन (बटर) है जो भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन काल से भोजन के एक अवयव के रूप में प्रयुक्त होता रहा है। भारतीय भोजन में खाद्य तेल के स्थान पर भी प्रयुक्त होता है। यह दूध के मक्खन से बनाया जाता है। दक्षिण एशिया एवं मध्य पूर्व के भोजन में यह एक महत्वपूर्ण अवयव है। .

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वज्रमुष्टि

वज्रमुष्टि एक शस्त्र भी है और कुश्ती का एक प्रकार भी जिसमें इस हथियार का उपयोग किया जाता है। इस शस्त्र को इन्द्रमुष्टि भी कहते हैं। यह शस्त्र हाथी-दाँत का या भैंसे के सींग का बना होता है। बज्रमुष्टि का प्रथम उल्लेख चालुक्य राजा सोमेश्वर तृतीय (1124–1138) द्वारा रचित मानसोल्लास में मिलता है। किन्तु ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि यह शस्त्र मौर्यकाल से ही अस्तित्व में है। ज्येष्ठिमल्ल नामक कृष्णपूजक जाति वज्रमुष्टि तथा मल्लयुद्ध की कला का अभ्यास करने वाली प्रसिद्ध जाति थी। मल्लपुराण इसी जाति से सम्बन्धित है जिसकी रचना अनुमानतः १३वीं शताब्दी में हुई थी। .

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गलाघोंटू

गलाघोंटू (Hemorrhagic Septicemia) रोग मुख्य रूप से गाय तथा भैंस को लगता है। इस रोग को साधारण भाषा में गलघोंटू के अतिरिक्त 'घूरखा', 'घोंटुआ', 'अषढ़िया', 'डकहा' आदि नामों से भी जाना जाता है। इस रोग से पशु अकाल मृत्यु का शिकार हो जाता है। यह मानसून के समय व्यापक रूप से फैलता है। अति तीव्र गति से फैलने वाला यह जीवाणु जनित रोग, छूत वाला भी है। यह Pasteurella multocida नामक जीवाणु (बैक्टीरिया) के कारण होता है। गलाघोंटू बहुत खतरनाक रोग है। लक्षण के साथ ही इलाज न शुरू होने पर एक-दो दिन में पशु मर जाता है। इसमें मौत की दर 80 फीसदी से अधिक है। शुरुआत तेज बुखार (105-107 डिग्री) से होती है। पीड़ित पशु के मुंह से ढेर सारा लार निकलता है। गर्दन में सूजन के कारण सांस लेने के दौरान घर्र-घर्र की आवाज आती है और अंतत: 12-24 घंटे में मौत हो जाती है। रोग से मरे पशु को गढ्डे में दफनाएं। खुले में फेंकने से संक्रमित बैक्टीरिया पानी के साथ फैलकर रोग के प्रकोप का दायरा बढ़ा देता है। .

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गंगा नदी

गंगा (गङ्गा; গঙ্গা) भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है। यह भारत और बांग्लादेश में कुल मिलाकर २,५१० किलोमीटर (कि॰मी॰) की दूरी तय करती हुई उत्तराखण्ड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुन्दरवन तक विशाल भू-भाग को सींचती है। देश की प्राकृतिक सम्पदा ही नहीं, जन-जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। २,०७१ कि॰मी॰ तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। १०० फीट (३१ मी॰) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ तथा देवी के रूप में की जाती है। भारतीय पुराण और साहित्य में अपने सौन्दर्य और महत्त्व के कारण बार-बार आदर के साथ वंदित गंगा नदी के प्रति विदेशी साहित्य में भी प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णन किये गये हैं। इस नदी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियाँ तो पायी ही जाती हैं, मीठे पानी वाले दुर्लभ डॉलफिन भी पाये जाते हैं। यह कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बांध और नदी परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से सम्बन्धित ज़रूरतों को पूरा करती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस अनुपम शुद्धीकरण क्षमता तथा सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसको प्रदूषित होने से रोका नहीं जा सका है। फिर भी इसके प्रयत्न जारी हैं और सफ़ाई की अनेक परियोजनाओं के क्रम में नवम्बर,२००८ में भारत सरकार द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी तथा इलाहाबाद और हल्दिया के बीच (१६०० किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है। .

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ग्राम पंचायत झोंपड़ा, सवाई माधोपुर

झोंपड़ा गाँव राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले की चौथ का बरवाड़ा तहसील में आने वाली प्रमुख ग्राम पंचायत है ! ग्राम पंचायत का सबसे बड़ा गाँव झोंपड़ा है जिसमें मीणा जनजाति का नारेड़ा गोत्र मुख्य रूप से निवास करता हैं। ग्राम पंचायत में झोंपड़ा, बगीना, सिरोही, नाहीखुर्द एवं झड़कुंड गाँव शामिल है। झोंपड़ा ग्राम पंचायत की कुल जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 5184 है और ग्राम पंचायत में कुल घरों की संख्या 1080 है। ग्राम पंचायत की सबसे बड़ी नदी बनास नदी है वहीं पंचायत की सबसे लम्बी घाटी चढ़ाई बगीना गाँव में बनास नदी पर पड़ती है। ग्राम पंचायत का सबसे विशाल एवं प्राचीन वृक्ष धंड की पीपली है जो झोंपड़ा, बगीना एवं जगमोंदा गाँवों से लगभग बराबर दूरी पर पड़ती है। .

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गोबर

गोबर गोबर शब्द का प्रयोग गाय, बैल, भैंस या भैंसा के मल के लिये प्राय: होता है। घास, भूसा, खली आदि जो कुछ चौपायों द्वारा खाया जाता है उसके पाचन में कितने ही रासायनिक परिवर्तन होते हैं तथा जो पदार्थ अपचित रह जाते हैं वे शरीर के अन्य अपद्रव्यों के साथ गोबर के रूप में बाहर निकल जाते हैं। यह साधारणत: नम, अर्द्ध ठोस होता है, पर पशु के भोजन के अनुसार इसमें परिवर्तन भी होते रहते हैं। केवल हरी घास या अधिक खली पर निर्भर रहनेवाले पशुओं का गोबर पतला होता है। इसका रंग कुछ पीला एवं गाढ़ा भूरा होता है। इसमें घास, भूसे, अन्न के दानों के टुकड़े आदि विद्यमान रहते हैं और सरलता से पहचाने जा सकते हैं। सूखने पर यह कड़े पिंड में बदल जाता है। .

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गोवंश

गोवंश या बोविनाए (Bovinae) लगभग १४० प्रजातियों वाला जीववैज्ञानिक कुल है। इसमें मवेशी, गौर, भैंस, बायसन, आदि और कुछ चार सींगो वाले व सर्पिल सींगो वाले खुरदार प्राणी आते हैं। गौर इस पूरे कुल का सबसे भीमकाय प्राणी है। ध्यान दें कि सभी हिरण इस कुल का हिस्सा नहीं हैं। .

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कोरिया का इतिहास

बुलगुक्सा मंदिर यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत घोषित किया गया है। कोरिया, पूर्वी एशिया में मुख्य स्थल से संलग्न एक छोटा सा प्रायद्वीप जो पूर्व में जापान सागर तथा दक्षिण-पश्चिम में पीतसागर से घिरा है (स्थिति: ३४० ४३ उ. अ. से १२४० १३१ पू. दे.)। उसके उत्तरपश्चिम में मंचूरिया तथा उत्तर में रूस की सीमाएँ हैं। यह प्रायद्वीप दो खंडों में बँटा हुआ है। उत्तरी कोरिया का क्षेत्रफल १,२१,००० वर्ग किलोमीटर है। इसकी राजधनी पियांगयांग है। दक्षिणी कोरिया का क्षेत्रफल ९८,००० वर्ग किलोमीटर है। यहाँ पर ई. पू.

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अफ़्रीका

अफ़्रीका वा कालद्वीप, एशिया के बाद विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है। यह 37°14' उत्तरी अक्षांश से 34°50' दक्षिणी अक्षांश एवं 17°33' पश्चिमी देशान्तर से 51°23' पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। अफ्रीका के उत्तर में भूमध्यसागर एवं यूरोप महाद्वीप, पश्चिम में अंध महासागर, दक्षिण में दक्षिण महासागर तथा पूर्व में अरब सागर एवं हिन्द महासागर हैं। पूर्व में स्वेज भूडमरूमध्य इसे एशिया से जोड़ता है तथा स्वेज नहर इसे एशिया से अलग करती है। जिब्राल्टर जलडमरूमध्य इसे उत्तर में यूरोप महाद्वीप से अलग करता है। इस महाद्वीप में विशाल मरुस्थल, अत्यन्त घने वन, विस्तृत घास के मैदान, बड़ी-बड़ी नदियाँ व झीलें तथा विचित्र जंगली जानवर हैं। मुख्य मध्याह्न रेखा (0°) अफ्रीका महाद्वीप के घाना देश की राजधानी अक्रा शहर से होकर गुजरती है। यहाँ सेरेनगेती और क्रुजर राष्‍ट्रीय उद्यान है तो जलप्रपात और वर्षावन भी हैं। एक ओर सहारा मरुस्‍थल है तो दूसरी ओर किलिमंजारो पर्वत भी है और सुषुप्‍त ज्वालामुखी भी है। युगांडा, तंजानिया और केन्या की सीमा पर स्थित विक्टोरिया झील अफ्रीका की सबसे बड़ी तथा सम्पूर्ण पृथ्वी पर मीठे पानी की दूसरी सबसे बड़ी झीलहै। यह झील दुनिया की सबसे लम्बी नदी नील के पानी का स्रोत भी है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसी महाद्वीप में सबसे पहले मानव का जन्म व विकास हुआ और यहीं से जाकर वे दूसरे महाद्वीपों में बसे, इसलिए इसे मानव सभ्‍यता की जन्‍मभूमि माना जाता है। यहाँ विश्व की दो प्राचीन सभ्यताओं (मिस्र एवं कार्थेज) का भी विकास हुआ था। अफ्रीका के बहुत से देश द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्र हुए हैं एवं सभी अपने आर्थिक विकास में लगे हुए हैं। अफ़्रीका अपनी बहुरंगी संस्कृति और जमीन से जुड़े साहित्य के कारण भी विश्व में जाना जाता है। .

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अफ़्रीका की प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीव

प्राकृतिक परिवेश में जिर्राफ सवाना, घास का मैदान बोतल वृक्ष अफ़्रीका का शेर प्राकृतिक वनस्पति जलवायु का अनुसरण करती है। अफ़्रीका में जलवायु की विभिन्नता के आधार पर विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक वनस्पति पायी जाती है। भूममध्य-रेखीय क्षेत्र में अधिक गर्मी एवं वर्षा के कारण घने वन पाये जाते हैं। बड़े-बड़े वृक्षों के बीच छोटे वृक्ष, लताएँ तथा झाड़ियाँ पायी जाती हैं। वृक्ष पास-पास उगते हैं। वृक्षों की ऊपरी टहनियां इस प्रकार फैल जाती हैं कि सूर्य का प्रकाश भूमि पर नहीं पहुँच पाता और अंधकार छाया रहता है। वर्ष भर वर्षा होने के कारण वृक्ष किसी खाश समय में अपनी पत्तियाँ नहीं गिराते, अतः इन वृक्षों को सदाबहार वृक्ष कहा जाता है। इन वृक्षों की पत्तियाँ चौड़ी होती हैं, अतः इन वनों को चौड़ी पत्ती वाले सदाबहार वन कहा जाता है। इन वनों के प्रमुख वृक्षों में महोगनी, रबड़, ताड़, आबनूस, गटापार्चा, बांस, सिनकोना और रोजउड हैं। इन वनों में विभिन्न प्रकार के बन्दर, हाथी, दरियाई घोड़ा (हिप्पो), चिम्पैंजी, गोरिल्ला, चीता, भैंसा, साँप, अजगर आदि जंगली जानवर पाए जाते हैं। यहाँ टिसीटिसी नामक मक्खी पाई जाती है। मैंड्रिल नामक विशालकाय बन्दर होते हैं। यहाँ पर ओकापी नामक भूरे रंग का जीव पाया जाता है जिसके पैर पर सफेद धारी पायी जाती है। यह घोड़े की तरह दिखलाई पड़ता है, पर यह जिराफ जाति का होता है। नदियों में मगर पाये जाते हैं। यहाँ पर चमीकले रंग की विभिन्न प्रकर की चिड़ियां पायी जाती हैं। भूमध्यरेखीय वनों के दोनों ओर, जहाँ वर्षा काफी कम होती है, पेड़ नहीं उग सकते। वहाँ मुख्यतः लम्बी-लम्बी (२ से ४ मीटर ऊँची) घासें उगती हैं। इन उष्ण कटिबन्धीय घास के मैदानों को सवाना कहते हैं। बीच-बीच में कहीं-कहीं पत्तों से रहित कुछ पेड़ भी पाए जाते हैं। यह प्रदेश विभिन्न प्रकार के घास खाने वाले पशुओं का घर है। इन पशुओं में हिरण, बारहसिंगा, जेब्रा, जिर्राफ तथा हाथी मुख्य हैं। जिर्राफ विश्व का सबसे ऊँचा जानवर माना जाता है। कुछ जन्तुशास्त्रियों का मानना है कि जिर्राफ कभी सोते नहीं हैं। यहाँ कुछ हिंसक पशु भी रहते हैं जो इन घास खाने वाले पशुओं का शिकार करते हैं। इनमें शेर, चीता एवं गीदड़ मुख्य हैं। दक्षिणी अफ़्रीका के शेर बहुत लम्बे होते हैं। चीता विश्व में सबसे तेज दोड़ने वाला जानवर है। सवाना घास के मैदान के दोनों ओर जहाँ की जलवायु अत्यन्त गर्म व शुष्क है, वहाँ उष्ण मरुस्थलीय वनस्पति पाई जाती है। यहाँ केवल कँटीली झाड़ियाँ हीं उगती हैं। मरुद्यानों में खजूर के पेड़ पाए जाते हैं। यहाँ का मुख्य पशु ऊँट है जिसे मरुस्थल का जहाज कहते हैं। यहाँ बड़े आकार तथा घोड़े के समान तेज दौड़ने वाले शुतुर्मुर्ग नामक पक्षी पाए जाते हैं। अफ़्रीका के उत्तरी एवं दक्षिणी-पश्चिमी तटीय क्षेत्रों पर केवल जाड़े में ही वर्षा होती है फिर भी यहाँ चौड़ी पत्ती वाले सदाबहार वृक्ष पाए जाते हैं। क्योंकि यहाँ के वृक्ष अपने आपको वातावरण के अनुसार बदल लेते हैं। इन वृक्षों की जड़े लम्बी, पत्तियाँ छोटी तथा छालें मोटी होती हैं। इन विशेषताओं के कारण ये वृक्ष गर्मियों में भी हरे-भरे रहते हैं। यहाँ जैतुन, कार्क, लारेल एवं ओक के वृक्ष पाए जाते हैं। यहाँ की जलवायु फलों की खेती के लिए काफी उपयुक्त है। यहाँ नींबू, सन्तरा, अंगूर, सेव, अंजीर आदि रस वाले फलों की खेती की जाती है। यहाँ जंगली पशुओं का अभाव है। प्रायः पालतू पशु ही पाए जाते हैं। अफ़्रीका के दक्षिणी-पूर्वी भागों में भी वर्षा की कमी के कारण शुष्क घास के मैदान पाए जाते हैं। यहाँ पर उगने वाली घासें छोटी-छोटी मुलायम तथा गुच्छेदार होती हैं। इन घास के मैदानों को वेल्ड कहते हैं। घास के इन मैदानों में वृक्षों का एकदम अभाव होता है। इस भाग में पशुचारण का कार्य किया जाता है। अफ़्रीका के दक्षिणी एवं पूर्वी भागों में, जहाँ अधिक ऊँचाई के कारण हिमपात होता है, नुकीली पत्ती वाले सदाबहार वन पाए जाते हैं। मेडागास्कर द्वीप पर बोबाब नामक एक विचित्र वृक्ष पाया जाता हैजो जमीन के नीचे से नमी खींचकर अपने अन्दर जल का संचय करता है। जीव, अफ़्रीका की प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य.

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उपला

उपले उपले या कंडे या गोइठा को गाय या भैंस के गोबर को हाथ से आकार देकर और फिर धूप में सुखाकर तैयार किया जाता है। गीले गोबर को आम तौर पर ग्रामीण महिलाएं हाथ से आकार देती हैं और यह प्रक्रिया उपले पाथना कहलाती है। सूखने के पश्चात इनका भंडारण एक गोबर और भूसे से बनी कोठरी जिसे बिटौरा कहते हैं में किया जाता है। इनका उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में खाना पकाने में प्रयुक्त होने वाले ईंधन के रूप में लकड़ियों के साथ या बिना लकड़ियों के किया जाता है। .

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२४ तीर्थंकर

२४ तीर्थंकरों का वर्णन आइटम विवरण: यह लगभग 9 फीट या 3 मीटर है 1 धनुष 1 लाख 100000 (एक लाख) 1 पूर्वा एक्स 84 लाख 84 लाख वर्ष .

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