5 संबंधों: प्रदीप चौधुरी, बासुदेब दाशगुप्ता, मलय रॉय चौधुरी, साठोत्तरी हिन्दी साहित्य, अनिल करनजय।
प्रदीप चौधुरी
प्रदीप चौधुरी (५ फरबरि १९४३) बांग्ला साहित्य के भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) साहित्य अंदोलनके प्रख्यात कवि, आलोचक एवम अनुवादक हैं। भूखी पीढी आंदोलन में योगदान के लिये उन्हें विश्वभारती विश्वविद्यालय से रसटिकेट (बेदखल) कर दिया गया था। आन्दोलन के जिन ग्यारह सदस्य के खिलाफ़ गिरफ़्तारी का समन निकला था उन लोगों में प्रदीप चौधुरी भी थे। उनके पिता के अगरतला (त्रिपुरा) स्थित घर से गिरफतार करके उन्हें कोलकाता के बंकशल अदालत में पेश किया गया था, हालांकि उनके खिलाफ मुकदमा नहीं चला था। रसटिकेट होने के बाद उन्होंने फिर से यादबपुर विश्व्विद्यालय में दाखिला लिया और अंग्रेजी में एम ए पास किया। वे कोलकाता में में स्कूलों में शिक्षक रहे, जिस दौरान उन्होंने फ़्रेन्च भाषा में पठन किया। यह पठन बाद में उनके अनुवाद कार्य में काम आया। शान्तिनिकेतन में पढ़ते समय वे स्वकाल् नाम से भूखी पीढ़ी की एक लघु पत्रिका का सम्पादन किया करते थे, जिसका नाम बदलकर सत्तर के दशक में उन्होने फु: रख लिया। फु: एक त्रिभाषिक (बांग्ला, अंग्रेजी एवं फ़्रेन्च) पत्रिका के रूप में काफ़ी सफल रही। .
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बासुदेब दाशगुप्ता
बासुदेब दाशगुप्ता (३१ दिसम्बर १९३८---३१ अगस्त २००५) (বাসুদেব দাশগুপ্ত) बांग्ला साहित्य के भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) के एक प्रमुख कहानीकार एवम उपन्यासकार हैं। सन १९६५ में प्रकाशित उनकी कहानी 'रन्धनशाला' को बांग्ला साहित्य की कालजयी रचना माना जाता है। वह पूर्वी बंगाल के मदारिपुर में पैदा हुये एवम पर्टिशन के समय भारत चले आये। अशोक्नगर रिफिउजि कलोनि में घर मिलने प्र वहिं बस गये, बि एड पढें और आजिवन वहिं कल्याण्गढ विद्यामन्दिर में पढाये। बीच में मार्क्सबाद के प्रति आकृष्ट हुये परन्तु क्रमश राजनीति से निर्मोह हो गये। अत्यधिक मादक सेवन एवम पीने के लत के कारण उनका स्वास्थ्य ढल गया और बिमार रहने लगे। .
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मलय रॉय चौधुरी
मलय रायचौधुरी (जन्म २९ अक्टूबर १९३९) (মলয় রায়চৌধুরী) बांग्ला साहित्य के प्रख्यात कवि एवम आलोचक है। वे साठ के दशक के सहित्य आन्दोलन भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) के जन्मदाता माने जाते है। इस आन्दोलन ने बांग्ला साहित्य को एक नयी दिशा दी और पूरे भारत में उथलपुथल मचायी। आन्दोलन के सिलसिले में मलय को उनहे कविता लिखने के कारण कारावास का दण्ड मिला था। वे अब तक सत्तर से ज्यादा कविताग्रन्थ, नाटक, उपन्यास एवम अनुवद के पुस्तक लिख चुके हैं। साठ के दशक मे जो बदलाव बांगला कविता मे आये, उन में एक बड़ा योगदान मलय रायचौधुरी का रहा है। उनके काव्यग्रन्थो मे ख्याति प्राप्त हैं मेधार वतानुकूल घुन्गुर। २००३ में उन्हें अनुवाद के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। .
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साठोत्तरी हिन्दी साहित्य
साठोत्तरी हिन्दी साहित्य हिन्दी साहित्य के इतिहास के अन्तर्गत सन् 1960 ई० के बाद मुख्यतः नवलेखन (नयी कविता, नयी कहानी आदि) युग से काफी हद तक भिन्नता की प्रतीति कराने वाली ऐसी पीढ़ी के द्वारा रचित साहित्य है जिनमें विद्रोह एवं अराजकता का स्वर प्रधान था। हालाँकि इसके साथ-साथ सहजता एवं जनवादी चेतना की समानान्तर धारा भी साहित्य-क्षेत्र में प्रवहमान रही जो बाद में प्रधान हो गयी। साठोत्तरी लेखन में विद्रोही चेतनायुक्त आन्दोलन प्राथमिक रूप से कविता के क्षेत्र में मुखर हुई। इसलिए इससे सम्बन्धित सारे आन्दोलन मुख्यतः कविता के आन्दोलन रहे। हालाँकि कहानी एवं अन्य विधाओं पर भी इसका असर पर्याप्त रूप से पड़ा और कहानी के क्षेत्र में भी 'अकहानी' जैसे आन्दोलन ने रूप धारण किया। .
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अनिल करनजय
अनिल करनजय (27 जून 1940 - 18 मार्च 2001) एक पूर्ण भारतीय कलाकार थे। पूर्व बंगाल में जन्म लेनेवाले करनजय ने बनारस में शिक्षा प्राप्त की, जहां उनका परिवार 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप के बंटवारे के बाद बस गया। एक छोटे बच्चे के रूप में वे मिट्टी के साथ खेलने, खिलौने और तीर बनाने में काफी समय बिताते थे। उन्होंने बहुत जल्दी ही जानवरों और पौधों का चित्र बनाना या जिस भी वस्तु ने उन्हें प्रेरित किया उसका चित्र बनाना भी शुरू कर दिया। 1956 में उन्होंने बंगाल स्कूल के एक गुरु और नेपाली मूल के करनमान सिंह की अध्यक्षता वाले भारतीय कला केन्द्र का पूर्णकालिक छात्र बनने के लिए स्कूल छोड़ दिया.
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यहां पुनर्निर्देश करता है:
भुखी पीढी ( हंगरी जेनरेशन ), भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन), हंग्री आन्दोलन (बांग्ला)।