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भू-आकृति विज्ञान

सूची भू-आकृति विज्ञान

धरती की सतह भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology) (ग्रीक: γῆ, ge, "पृथ्वी"; μορφή, morfé, "आकृति"; और λόγος, लोगोस, "अध्ययन") भू-आकृतियों और उनको आकार देने वाली प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन है; तथा अधिक व्यापक रूप में, उन प्रक्रियाओं का अध्ययन है जो किसी भी ग्रह के उच्चावच और स्थलरूपों को नियंत्रित करती हैं। भू-आकृति वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश करते हैं कि भू-दृश्य जैसे दिखते हैं वैसा दिखने के पीछे कारण क्या है, वे भू-आकृतियों के इतिहास और उनकी गतिकी को जानने का प्रयास करते हैं और भूमि अवलोकन, भौतिक परीक्षण और संख्यात्मक मॉडलिंग के एक संयोजन के माध्यम से भविष्य के बदलावों का पूर्वानुमान करते हैं। भू-आकृति विज्ञान का अध्ययन भूगोल, भूविज्ञान, भूगणित, इंजीनियरिंग भूविज्ञान, पुरातत्व और भू-तकनीकी इंजीनियरिंग में किया जाता है और रूचि का यह व्यापक आधार इस विषय के तहत अनुसंधान शैली और रुचियों की व्यापक विविधता को उत्पन्न करता है। पृथ्वी की सतह, प्राकृतिक और मानवोद्भव विज्ञान सम्बन्धी प्रक्रियाओं के संयोजन की प्रतिक्रिया स्वरूप विकास करती है और सामग्री जोड़ने वाली और उसे हटाने वाली प्रक्रियाओं के बीच संतुलन के साथ जवाब देती है। ऐसी प्रक्रियाएं स्थान और समय के विभिन्न पैमानों पर कार्य कर सकती हैं। सर्वाधिक व्यापक पैमाने पर, भू-दृश्य का निर्माण विवर्तनिक उत्थान और ज्वालामुखी के माध्यम से होता है। अनाच्छादन, कटाव और व्यापक बर्बादी से होता है, जो ऐसे तलछट का निर्माण करता है जिसका परिवहन और जमाव भू-दृश्य के भीतर या तट से दूर कहीं अन्य स्थान पर हो जाता है। उत्तरोत्तर छोटे पैमाने पर, इसी तरह की अवधारणा लागू होती है, जहां इकाई भू-आकृतियां योगशील (विवर्तनिक या तलछटी) और घटाव प्रक्रियाओं (कटाव) के संतुलन के जवाब में विकसित होती हैं। आधुनिक भू-आकृति विज्ञान, किसी ग्रह के सतह पर सामग्री के प्रवाह के अपसरण का अध्ययन है और इसलिए तलछट विज्ञान के साथ निकट रूप से संबद्ध है, जिसे समान रूप से उस प्रवाह के अभिसरण के रूप में देखा जा सकता है। भू-आकृतिक प्रक्रियाएं विवर्तनिकी, जलवायु, पारिस्थितिकी, और मानव गतिविधियों से प्रभावित होती हैं और समान रूप से इनमें से कई कारक धरती की सतह पर चल रहे विकास से प्रभावित हो सकते हैं, उदाहरण के लिए, आइसोस्टेसी या पर्वतीय वर्षण के माध्यम से। कई भू-आकृति विज्ञानी, भू-आकृतिक प्रक्रियाओं की मध्यस्थता वाले जलवायु और विवर्तनिकी के बीच प्रतिपुष्टि की संभावना में विशेष रुचि लेते हैं। भू-आकृति विज्ञान के व्यावहारिक अनुप्रयोग में शामिल है संकट आकलन जिसमें शामिल है भूस्खलन पूर्वानुमान और शमन, नदी नियंत्रण और पुनर्स्थापना और तटीय संरक्षण। .

16 संबंधों: प्राकृतिक दृश्य, भौतिक भूगोल, भू-आकारमिति, भूसन्नति, भूसंचलन, भूविज्ञान, भूगोल, भूगोल की रूपरेखा, स्थलरूप, हिमानी विज्ञान, ज्वालामुखी, व्यवहारिक भूआकारिकी, आधार, आल्ब्रेख्ट पेंक, अपरदन-चक्र, उच्चावच

प्राकृतिक दृश्य

स्विस आल्प्स की ऐशिना झील, एक अत्यंत विविधतापूर्ण प्राकृतिक दृश्य का एक उदाहरण. तोलिमा कोलम्बिया की प्राकृतिक दृश्य संबंधी तस्वीर बर्न में आरे नदी प्राकृतिक दृश्य भूमि के किसी एक हिस्से की सुस्पष्ट विशेषताएं हैं, जिनमें इसके प्राकृतिक स्वरूपों के भौतिक तत्त्व, जल निकाय जैसे कि नदियाँ, झीलें एवं समुद्र, प्राकृतिक रूप से उगनेवाली वनस्पतियों सहित धरती पर रहने वाले जीव-जंतु, मिट्टी से बनी उपयोगी मानव निर्मित वस्तुओं सहित भवन एवं संरचनाएं और अस्थायी तत्त्व जैसे कि विद्युत व्यवस्था एवं मौसम संबंधी परिस्थितियाँ शामिल हैं | मानवीय संस्कृति की छवि, जो बनने में सहस्राब्दियाँ लग जाती हैं, दोनों मिलकर दृश्य किसी भी स्थल के लोग तथा वह स्थल दोनों की स्थानीय तथा राष्ट्रीय पहचान को प्रतिबिंबित करते हैं। प्राकृतिक दृश्य, इनकी विशेषता और गुणवत्ता, किसी क्षेत्र की आत्म छवि और, उस स्थान की भावनात्मक अनुभूतियाँ, जो इसे दूसरे क्षेत्रों से अलग करती है, को परिभाषित करने में मदद करती है। यह लोगों के जीवन की गतिशील पृष्ठभूमि है। पृथ्वी पर प्राकृतिक दृश्यों का एक व्यापक विस्तार है जिसमें ध्रुवीय क्षेत्रों के बर्फीले प्राकृतिक दृश्य, पहाड़ी प्राकृतिक दृश्य, विस्तृत मरुस्थलीय प्राकृतिक दृश्य, द्वीपों और समुद्रतटों केप्राकृतिक दृश्य, घने जंगलों या पेड़ों के प्राकृतिक दृश्यों सहित पुराने उदीच्य वन एवं उष्णकटिबंधीय वर्षावन और शीतोष्ण एवं उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के कृषि योग्य प्राकृतिक दृश्य शामिल हैं। प्राकृतिक दृश्यों की समीक्षा आगे 2 श्रेणी:प्राकृतिक दृश्य (लैंडस्केप) श्रेणी:सांस्कृतिक भूगोल श्रेणी:भूदृश्य ar:منظر طبيعى bg:Пейзаж ca:Paisatge (geografia) cs:Krajina da:Landskab de:Landschaft en:Landscape eo:Pejzaĝo es:Paisaje et:Maastik fi:Maisema fr:Paysage hr:Krajolik id:Lanskap it:Paesaggio ja:ランドスケープ lt:Kraštovaizdis lv:Ainava mwl:Paisage nds:Landschap nl:Landschap nn:Landskap pl:Kraina geograficzna pt:Paisagem ro:Peisaj ru:Ландшафт sk:Geografická krajina sr:Пејзаж sv:Landskap (terräng) uk:Ландшафт yi:לאנדשאפט zh:风景.

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भौतिक भूगोल

पृथ्वी के धरातल और वतावरण का रंगीन चित्र भौतिक भूगोल (Physical geography) भूगोल की एक प्रमुख शाखा है जिसमें पृथ्वी के भौतिक स्वरूप का अध्ययन किया जाता हैं। यह धरातल पर अलग अलग जगह पायी जाने वाली भौतिक परिघटनाओं के वितरण की व्याख्या व अध्ययन करता है, साथ ही यह भूविज्ञान, मौसम विज्ञान, जन्तु विज्ञान और रसायनशास्त्र से भी जुड़ा हुआ है। इसकी कई उपशाखाएँ हैं जो विविध भौतिक परिघटनाओं की विवेचना करती हैं। .

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भू-आकारमिति

भू-आकारमिति (अंग्रेज़ी:Geomorphometry) भूगोल के अंतर्गत भू-आकृति विज्ञान की एक उपशाखा है जो पृथ्वी के धरातल की ज्यामिति का अध्ययन करने वाला विज्ञान है और यह स्थलरूपों के लक्षणों का मात्रात्मक निरूपण, वर्णन एवं विश्लेषण करता है। आसान शब्दों में यह धरातल का मात्रात्मक विश्लेषण (en:Quantitative research) करने वाला विज्ञान है। इवांस ने इसे दो प्रकारों में बाँटा है: विशिष्ट भूआकारमिति, जो असतत रूप से अलग-अलग स्थलरूप का अध्ययन करे और, सामान्य भूआकारमिति, पूरे धरातल को सतत इकाई के रूप में लेकर अध्ययन करे। भू आकृति विज्ञान की यह शाखा नयी नहीं है और भूगोल में कंप्यूटर के प्रयोग से पहले से रही है। किन्तु भूगोल में कम्प्यूटरों के प्रयोग और रिमोट सेंसिंग, जीआइएस और भूसूचना विज्ञान के क्षेत्र में हुई अभिवृद्धि ने भूआकारमिति के अध्ययन विधि में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया है। पुराने समय में यह स्थलाकृतिक नक्शों पर आधारित मापन के द्वारा संपन्न की जाती थी जिनसे विभिन्न प्राचलों की गणना होती थी। अब डिजिटल ऊँचाई मॉडल (DEM) के प्रयोग ने इसके विधितंत्र में काफ़ी बदलाव किया है। रिमोट सेंसिंग के बढ़ते उपयोग के चलते डिजिटल तुंगता मॉडल (DEM) की गुणवत्ता में और इसके परिणाम स्वरूप भूआकारमिति की गणनाओं की शुद्धता में भी काफ़ी परिष्कार हुआ है। .

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भूसन्नति

भूसन्नति भूविज्ञान तथा भूआकृतिविज्ञान की एक अपेक्षाकृत पुरानी संकल्पना और शब्द है जिसका व्यवहार अभी भी कभी-कभी ऐसे छिछले सागरों अथवा सागरीय द्रोणियों के लिए किया जाता है जिनमें अवसाद जमा होने और तली के धँसाव की प्रक्रिया चल रही हो। सर्वप्रथम इस तरह का विचार अमेरिकी भूवैज्ञानिक जेम्स हाल और जेम्स डी डाना द्वारा प्रस्तुत किया गया था और इसके द्वारा पर्वतों की उत्पत्ति की व्याख्या करने वाले सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया था। हालाँकि, प्लेट टेक्टॉनिक्स सिद्धांत के बाद यह परिकल्पना अब पुरानी पड़ चुकी है। हाल और डाना ने भूसन्नतियों की परिकल्पना एप्लेशियन पर्वत की उत्पत्ति की व्याख्या प्रस्तुत करने के लिए की थी और बाद में जर्मन भूवैज्ञानिक कोबर ने अपना पर्वत निर्माण का "भूसन्नति सिद्धांत" भी प्रस्तुत किया और अल्पाइन पर्वतों (ऍटलस, ऐल्प्स और हिमालय इत्यादि) के निर्माण की व्यख्या दी। .

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भूसंचलन

धरती के कुछ भाग दूसरे भागों के सापेक्ष धीमी किन्तु लगातार विस्थापित हो रहे हैं। इन्हें ही भूसंचलन (Earth's movements) कहते हैं। ये संचलन, धरती को अपरूपित (deform) करते हैं। भूसंचलन के निम्नलिखित कारक हैं-.

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भूविज्ञान

पृथ्वी के भूवैज्ञनिक क्षेत्र पृथ्वी से सम्बंधित ज्ञान ही भूविज्ञान कहलाता है।भूविज्ञान या भौमिकी (Geology) वह विज्ञान है जिसमें ठोस पृथ्वी का निर्माण करने वाली शैलों तथा उन प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जिनसे शैलों, भूपर्पटी और स्थलरूपों का विकास होता है। इसके अंतर्गत पृथ्वी संबंधी अनेकानेक विषय आ जाते हैं जैसे, खनिज शास्त्र, तलछट विज्ञान, भूमापन और खनन इंजीनियरी इत्यादि। इसके अध्ययन बिषयों में से एक मुख्य प्रकरण उन क्रियाओं की विवेचना है जो चिरंतन काल से भूगर्भ में होती चली आ रही हैं एवं जिनके फलस्वरूप भूपृष्ठ का रूप निरंतर परिवर्तित होता रहता है, यद्यपि उसकी गति साधारणतया बहुत ही मंद होती है। अन्य प्रकरणों में पृथ्वी की आयु, भूगर्भ, ज्वालामुखी क्रिया, भूसंचलन, भूकंप और पर्वतनिर्माण, महादेशीय विस्थापन, भौमिकीय काल में जलवायु परिवर्तन तथा हिम युग विशेष उल्लेखनीय हैं। भूविज्ञान में पृथ्वी की उत्पत्ति, उसकी संरचना तथा उसके संघटन एवं शैलों द्वारा व्यक्त उसके इतिहास की विवेचना की जाती है। यह विज्ञान उन प्रक्रमों पर भी प्रकाश डालता है जिनसे शैलों में परिवर्तन आते रहते हैं। इसमें अभिनव जीवों के साथ प्रागैतिहासिक जीवों का संबंध तथा उनकी उत्पत्ति और उनके विकास का अध्ययन भी सम्मिलित है। इसके अंतर्गत पृथ्वी के संघटक पदार्थों, उन पर क्रियाशील शक्तियों तथा उनसे उत्पन्न संरचनाओं, भूपटल की शैलों के वितरण, पृथ्वी के इतिहास (भूवैज्ञानिक कालों) आदि के अध्ययन को सम्मिलित किया जाता है। .

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भूगोल

पृथ्वी का मानचित्र भूगोल (Geography) वह शास्त्र है जिसके द्वारा पृथ्वी के ऊपरी स्वरुप और उसके प्राकृतिक विभागों (जैसे पहाड़, महादेश, देश, नगर, नदी, समुद्र, झील, डमरुमध्य, उपत्यका, अधित्यका, वन आदि) का ज्ञान होता है। प्राकृतिक विज्ञानों के निष्कर्षों के बीच कार्य-कारण संबंध स्थापित करते हुए पृथ्वीतल की विभिन्नताओं का मानवीय दृष्टिकोण से अध्ययन ही भूगोल का सार तत्व है। पृथ्वी की सतह पर जो स्थान विशेष हैं उनकी समताओं तथा विषमताओं का कारण और उनका स्पष्टीकरण भूगोल का निजी क्षेत्र है। भूगोल शब्द दो शब्दों भू यानि पृथ्वी और गोल से मिलकर बना है। भूगोल एक ओर अन्य शृंखलाबद्ध विज्ञानों से प्राप्त ज्ञान का उपयोग उस सीमा तक करता है जहाँ तक वह घटनाओं और विश्लेषणों की समीक्षा तथा उनके संबंधों के यथासंभव समुचित समन्वय करने में सहायक होता है। दूसरी ओर अन्य विज्ञानों से प्राप्त जिस ज्ञान का उपयोग भूगोल करता है, उसमें अनेक व्युत्पत्तिक धारणाएँ एवं निर्धारित वर्गीकरण होते हैं। यदि ये धारणाएँ और वर्गीकरण भौगोलिक उद्देश्यों के लिये उपयोगी न हों, तो भूगोल को निजी व्युत्पत्तिक धारणाएँ तथा वर्गीकरण की प्रणाली विकसित करनी होती है। अत: भूगोल मानवीय ज्ञान की वृद्धि में तीन प्रकार से सहायक होता है: सर्वप्रथम प्राचीन यूनानी विद्वान इरैटोस्थनिज़ ने भूगोल को धरातल के एक विशिष्टविज्ञान के रूप में मान्यता दी। इसके बाद हिरोडोटस तथा रोमन विद्वान स्ट्रैबो तथा क्लाडियस टॉलमी ने भूगोल को सुनिइतिहासश्चित स्वरुप प्रदान किया। इस प्रकार भूगोल में 'कहाँ' 'कैसे 'कब' 'क्यों' व 'कितनें' प्रश्नों की उचित वयाख्या की जाती हैं। .

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भूगोल की रूपरेखा

ज्ञान के फलक का तात्पर्य एक ऐसे त्रिविमीय विन्यास है जिसे पूर्णरूपेण समझने के लिए हमें तीन दृष्टि बिन्दुओं से निरीक्षण करना चाहिए। इनमें से किसी भी एक बिन्दु वाला निरीक्षण एक पक्षीय ही होगा और वह संपूर्ण को प्रदर्शित नहीं करेगा। एक बिन्दु से हम सदृश वस्तुओं के संबंध देखते हैं। दूसरे से काल के संदर्भ में उसके विकास का और तीसरे से क्षेत्रीय संदर्भ में उनके क्रम और वर्गीकरण का निरीक्षण करते हैं। इस प्रकार प्रथम वर्ग के अंतर्गत वर्गीकृत विज्ञान (classified science), द्वितीय वर्ग में ऐतिहासिक विज्ञान (historial sciences), और तृतीय वर्ग में क्षेत्रीय या स्थान-संबंधी विज्ञान (spatial sciences) आते हैं। वर्गीकृत विज्ञान पदार्थो या तत्वों की व्याख्या करते हैं अतः इन्हें पदार्थ विज्ञान (material sciences) भी कहा जाता है। ऐतिहासिक विज्ञान काल (time) के संदर्भ में तत्वों या घटनाओं के विकासक्रम का अध्ययन करते हैं। क्षेत्रीय विज्ञान तत्वों या घटनाओं का विश्लेषण स्थान या क्षेत्र के संदर्भ में करते हैं। पदार्थ विज्ञानों के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु ‘क्यों ’, ‘क्या’ और ‘कैसे’ है। ऐतिहासिक विज्ञानों का केन्द्र बिन्दु ‘कब’ है तथा क्षेत्रीय विज्ञानों का केन्द्र बिन्दु ‘कहां ’ है। स्थानिक विज्ञानों (Spatial sciences) को दो प्रधान वर्गों में विभक्त किया जाता है-.

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स्थलरूप

आस्ट्रेलिया मे स्थित आयर्स चट्टान या उल्लेर्रू का एक दृश्य अर्जेंटीना मे स्थित एक शंक्वाकार पहाड़ी स्थलरूप अथवा स्थलाकृति (अंग्रेज़ी: Landform) भूगोल और अन्य पृथ्वी विज्ञानों में प्रयुक्त शब्द है जिसका आशय एक भू-आकृतिक इकाई से है जिसे सामान्यतः उसकी धरातलीय बनावट अर्थात आकृति के द्वारा पहचाना जाता है। सामान्य भाषा में जमीन की ऊँचाई-निचाई द्वारा जो आकृतियाँ बनती हैं उन्हें स्थलरूप कहते हैं। .

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हिमानी विज्ञान

काराकोरम की बाल्तोरो हिमानी का एक चित्र हिमानी विज्ञान अथवा हिमनद विज्ञान (अंग्रेजी:Glaciology; फ्रैंक-प्रांतीय शब्द: glace, "बर्फ़"; याँ लातीनी: glacies, "हिम या बर्फ़"; और यूनानी: λόγος, logos, "अध्ययन"; अर्थात "हिम या बर्फ़ का अध्ययन") सामान्य तौर पर बर्फ़ और इससे जुड़ी प्रक्रियाओं का अध्ययन है और विशिष्ट रूप में हिमनदों के अध्ययन से संबंधित विज्ञान है। दूसरे शब्दों में यह पृथ्वी के हिममण्डल का अध्ययन एवं विश्लेषण करता है। अतएव हिमानी विज्ञान को एक ऐसे अंतरविषयी विज्ञान के रूप में परिभाषित किया जाता है जो भूभौतिकी, भूविज्ञान, भौतिक भूगोल, भू-आकृति विज्ञान, जलवायु विज्ञान, मौसम विज्ञान, जलविज्ञान, जीव विज्ञान तथा पारिस्थितिकी को जोड़ते हुए हिमनदों की क्रियाविधि, उनकी आकारिकी, एवं मानव जीवन पर उनके विविध प्रभावों का अध्ययन करता है। पृथ्वी के बाहर चंद्रमा, मंगल, यूरोपा इत्यादि परापार्थिव पिण्डों पर हिम के अध्ययन को एस्ट्रोग्लेशियोलाजी नाम भी दिया गया है। .

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ज्वालामुखी

तवुर्वुर का एक सक्रिय ज्वालामुखी फटते हुए, राबाउल, पापुआ न्यू गिनिया ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह पर उपस्थित ऐसी दरार या मुख होता है जिससे पृथ्वी के भीतर का गर्म लावा, गैस, राख आदि बाहर आते हैं। वस्तुतः यह पृथ्वी की ऊपरी परत में एक विभंग (rupture) होता है जिसके द्वारा अन्दर के पदार्थ बाहर निकलते हैं। ज्वालामुखी द्वारा निःसृत इन पदार्थों के जमा हो जाने से निर्मित शंक्वाकार स्थलरूप को ज्वालामुखी पर्वत कहा जाता है। ज्वालामुखी का सम्बंध प्लेट विवर्तनिकी से है क्योंकि यह पाया गया है कि बहुधा ये प्लेटों की सीमाओं के सहारे पाए जाते हैं क्योंकि प्लेट सीमाएँ पृथ्वी की ऊपरी परत में विभंग उत्पन्न होने हेतु कमजोर स्थल उपलब्ध करा देती हैं। इसके अलावा कुछ अन्य स्थलों पर भी ज्वालामुखी पाए जाते हैं जिनकी उत्पत्ति मैंटल प्लूम से मानी जाती है और ऐसे स्थलों को हॉटस्पॉट की संज्ञा दी जाती है। भू-आकृति विज्ञान में ज्वालामुखी को आकस्मिक घटना के रूप में देखा जाता है और पृथ्वी की सतह पर परिवर्तन लाने वाले बलों में इसे रचनात्मक बल के रूप में वर्गीकृत किया जाता है क्योंकि इनसे कई स्थलरूपों का निर्माण होता है। वहीं, दूसरी ओर पर्यावरण भूगोल इनका अध्ययन एक प्राकृतिक आपदा के रूप में करता है क्योंकि इससे पारितंत्र और जान-माल का नुकसान होता है। .

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व्यवहारिक भूआकारिकी

मानव द्वारा स्थलरुपों अथवा भूआक्रितिक विशेषताओं का उपयोग कर किसी स्थान के संसाधनों का नियोजन ही व्यवहरिक भूआकारिकी (अप्लायड जिओमॉर्फोलोजी) कहलता है। .

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आधार

कोई विवरण नहीं।

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आल्ब्रेख्ट पेंक

आल्ब्रेख्ट पेंक, (Albrecht Penck; सन्‌ 1858 -- 1945) जर्मन भूगोलविद् एवं भूविद् थे। इन्होंने विभिन्न धरातलीय स्वरूपों के निर्माण एवं इसके लिये उत्तरदायी प्रक्रियाओं की विवेचना एवं संबंधित सिद्धांतों के प्रतिपादन में महत्वपूर्ण कार्य किया है। भू-आकृतिविज्ञान तथा जलवायुविज्ञान के क्षेत्र में उनके द्वारा किये गये कार्य के कारण वियना भौतिक भूगोल संस्थान को अन्तरराष्ट्रीय ख्याति मिली। इनका जन्म राउडिट्ज (Reudnitz) में हुआ था। वे १८८५ से १९०६ तक वियना में तथा १९०६ से १९२७ तक बर्लिन में प्रोफेसर थे। सन्‌ 1905 में इन्होंने प्रतिपादित किया कि भौम्याकृतियों के विकासक्रम में संरचना की अपेक्षा प्रक्रिया (process) श्रेष्ठतर एवं अधिक प्रभावशाली होती है। इन्होंने अपने इस सिद्धांत को नदीघाटी के विकासक्रम में ढालों के क्रमिक परिवर्तित स्वरूपों एवं प्रयासमभूमि (peneplain) की निर्माण क्रिया द्वारा स्पष्ट किया। पृथ्वी के मानचित्र को 1: 10,00,000 मापक पर तैयार करने की विधि में विकास किया। इन्होंने तृतीयक (Tertiary) एवं डिल्यूवियल (Diluvial) काल में हिमानियों के निर्माण एवं हिमयुग का अध्ययन किया था। ये सन्‌ 1886 से 1906 तक बर्लिन में समुद्रविज्ञान संस्था एवं भूगोल परिषद् के निदेशक रहे। इनके कई प्रकाशन महत्व के हैं। .

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अपरदन-चक्र

समुद्रतल के ऊपर उठने के उपरांत धरातल के किसी भाग पर होने वाली भूम्याकृतियों के क्रमिक परिवर्तन को ही अपरदन-चक्र य 'क्षयचक्र' या 'अपक्षयचक्र' (Cycle of Erosion) अथवा भूम्याकृतिचक्र (जियोमार्फिल साइकिल) कहते हैं। .

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उच्चावच

उच्चावच धरातल की ऊँचाई-निचाई से बनने वाले प्रतिरूप या पैटर्न को कहते हैं। क्षेत्रीय स्तर पर उच्चावच भू-आकृतिक प्रदेशों के रूप में व्यक्त होता है और छोटे स्तर पर यह एक स्थलरूप या स्थलरूपों के एक संयुक्त समूह का प्रतिनिधित्व करता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

भू-आकारिकी, भू-आकृतिविज्ञान, भूआकृति विज्ञान, भूआकृतिविज्ञान

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