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भारतीय स्वतंत्रता का क्रांतिकारी आन्दोलन

सूची भारतीय स्वतंत्रता का क्रांतिकारी आन्दोलन

महान क्रान्तिकारी '''यतीन्द्रनाथ मुखर्जी'' भारत की स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन दो प्रकार का था एक अहिंसक आन्दोलन एवं दूसरा सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन। भारत की आज़ादी के लिए 1757 से 1947 के बीच जितने भी प्रयत्न हुए, उनमें स्वतंत्रता का सपना संजोये क्रान्तिकारियों और शहीदों की उपस्थित सबसे अधिक प्रेरणादायी सिद्ध हुई। वस्तुतः भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग है। भारत (यतीन्द्रनाथ मुखर्जी)की धरती के जितनी भक्ति और मातृ-भावना उस युग में थी, उतनी कभी नहीं रही। मातृभूमि की सेवा और उसके लिए मर-मिटने की जो भावना उस समय थी, आज उसका नितांत अभाव हो गया है। क्रांतिकारी आंदोलन का समय सामान्यतः लोगों ने सन् 1857 से 1942 तक माना है। श्रीकृष्ण सरल का मत है कि इसका समय सन् 1757 अर्थात् प्लासी के युद्ध से सन् 1961 अर्थात् गोवा मुक्ति तक मानना चाहिए। सन् 1961 में गोवा मुक्ति के साथ ही भारतवर्ष पूर्ण रूप से स्वाधीन हो सका है। जिस प्रकार एक विशाल नदी अपने उद्गम स्थान से निकलकर अपने गंतव्य अर्थात् सागर मिलन तक अबाध रूप से बहती जाती है और बीच-बीच में उसमें अन्य छोटी-छोटी धाराएँ भी मिलती रहती हैं, उसी प्रकार हमारी मुक्ति गंगा का प्रवाह भी सन् 1757 से सन् 1961 तक अजस्र रहा है और उसमें मुक्ति यत्न की अन्य धाराएँ भी मिलती रही हैं। भारतीय स्वतंत्रता के सशस्त्र संग्राम की विशेषता यह रही है कि क्रांतिकारियों के मुक्ति प्रयास कभी शिथिल नहीं हुए। भारत की स्वतंत्रता के बाद आधुनिक नेताओं ने भारत के सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन को प्रायः दबाते हुए उसे इतिहास में कम महत्व दिया गया और कई स्थानों पर उसे विकृत भी किया गया। स्वराज्य उपरांत यह सिद्ध करने की चेष्टा की गई कि हमें स्वतंत्रता केवल कांग्रेस के अहिंसात्मक आंदोलन के माध्यम से मिली है। इस नये विकृत इतिहास में स्वाधीनता के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले, सर्वस्व समर्पित करने वाले असंख्य क्रांतिकारियों, अमर हुतात्माओं की पूर्ण रूप से उपेक्षा की गई। .

4 संबंधों: बहादुर सिंह लोधी, भारत का सैन्य इतिहास, भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन, रमेश चन्द्र झा

बहादुर सिंह लोधी

बहादुर सिंह लोधी मध्य प्रदेश के मंडला जनपद के ही सुकरी बरगी के प्रतिष्ठित जमींदार थे। ठाकुर बहादुर सिंह लोधी जिन्होंने १८५८ की राज्य क्रांति मैं अपनी अद्वितीय बहादुरी का परिचय दिया था। उन दिनों मंडल जनपद के अनेक छोटे बड़े जमीदार और जागीरदार स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे। बहादुर सिंह लोधी ने १८५७ में अंग्रेजों की मालगुजारी देना बंद कर दिया। निकटवर्ती क्षेत्रों, मंडला और सिवनी जिलों के लोगों को एकत्रित कर सेना खड़ी की। उसे लेकर स्वतंत्रता के युध्द में कूद पड़े अंग्रेजी सेना के जनरल ह्वित लॉक से उनका कड़ा संघर्ष हुआ। जैसा बहादुर सिंह लोधी को पकड़ लिया गया और टॉप के मुंह से बाँध कर निर्दयता पूर्वक उड़ा दिया गया। भारतीय शहीदों का परिचय पुस्तक में यह अंकित है कि वे युध्द के बाद अंग्रेजों द्वारा पकडे गए और फांसी पर चढ़ा दिए गए। .

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भारत का सैन्य इतिहास

भरतीय योद्धा का चित्रण: गान्धर्व कला, प्रथम शताब्दी युद्ध के लिये प्रस्थान करते हुए रामचन्द्र भारत के इतिहास में 'सेना' का उल्लेख वेदों, रामायण तथा महाभारत में मिलता है। महाभारत में सर्वप्रथम सेना की इकाई 'अक्षौहिणी' उल्लिखित है। प्रत्येक 'अक्षौहिणी' सेना में पैदल, घुडसवार, हाथी, रथ आदि की संख्या निश्चित होती थी। .

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भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन

* भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय आह्वानों, उत्तेजनाओं एवं प्रयत्नों से प्रेरित, भारतीय राजनैतिक संगठनों द्वारा संचालित अहिंसावादी और सैन्यवादी आन्दोलन था, जिनका एक समान उद्देश्य, अंग्रेजी शासन को भारतीय उपमहाद्वीप से जड़ से उखाड़ फेंकना था। इस आन्दोलन की शुरुआत १८५७ में हुए सिपाही विद्रोह को माना जाता है। स्वाधीनता के लिए हजारों लोगों ने अपने प्राणों की बलि दी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने १९३० कांग्रेस अधिवेशन में अंग्रेजो से पूर्ण स्वराज की मांग की थी। .

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रमेश चन्द्र झा

रमेशचन्द्र झा (8 मई 1928 - 7 अप्रैल 1994) भारतीय स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय क्रांतिकारी थे जिन्होंने बाद में साहित्य के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई। वे बिहार के एक स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ साथ हिन्दी के कवि, उपन्यासकार और पत्रकार भी थे। बिहार राज्य के चम्पारण जिले का फुलवरिया गाँव उनकी जन्मस्थली है। उनकी कविताओं, कहानियों और ग़ज़लों में जहाँ एक तरफ़ देशभक्ति और राष्ट्रीयता का स्वर है, वहीं दुसरी तरफ़ मानव मूल्यों और जीवन के संघर्षों की भी अभिव्यक्ति है। आम लोगों के जीवन का संघर्ष, उनके सपने और उनकी उम्मीदें रमेश चन्द्र झा कविताओं का मुख्य स्वर है। "अपने और सपने: चम्पारन की साहित्य यात्रा" नाम के एक शोध-परक पुस्तक में उन्होंने चम्पारण की समृद्ध साहित्यिक विरासत को भी बखूबी सहेजा है। यह पुस्तक न केवल पूर्वजों के साहित्यिक कार्यों को उजागर करता है बल्कि आने वाले संभावी साहित्यिक पीढ़ी की भी चर्चा करती है। .

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