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भारतीय सर्वेक्षण विभाग

सूची भारतीय सर्वेक्षण विभाग

भारतीय सर्वेक्षण विभाग, भारत की नक्शे बनाने और सर्वेक्षण करने वाली केन्द्रीय एजेंसी है। इसका गठन १७६७ में ब्रिटिश इंडिया कम्पनी के क्षेत्रों को संगठित करने हेतु किया गया था। यह भारत सरकार के पुरातनतम अभियांत्रिक विभागों में से एक है। सर्वेक्षण विभाग की अद्भुत इतिहास रचना में व्याल/मैमथ महान त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण भी आते हैं। .

21 संबंधों: देहरादून जिला, नन्दा देवी पर्वत, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग, भारतीय प्राणि सर्वेक्षण, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, भारतीय मानचित्रकला, भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार, भारतीय सर्वेक्षण विभाग, भारतीय सिविल सेवा, भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान, भारतीय वन सर्वेक्षण, भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण, महान त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण, मानचित्र, मानचित्रकला, मैकमहोन रेखा, संरक्षित स्मारक, जल सर्वेक्षण, जॉर्ज एवरेस्ट, कर्नल विलियम लेम्बटन, उल्टा सिर चार आने

देहरादून जिला

यह लेख देहरादून जिले के विषय में है। नगर हेतु देखें देहरादून। देहरादून, भारत के उत्तराखंड राज्य की राजधानी है इसका मुख्यालय देहरादून नगर में है। इस जिले में ६ तहसीलें, ६ सामुदायिक विकास खंड, १७ शहर और ७६४ आबाद गाँव हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ १८ गाँव ऐसे भी हैं जहाँ कोई नहीं रहता। देश की राजधानी से २३० किलोमीटर दूर स्थित इस नगर का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह नगर अनेक प्रसिद्ध शिक्षा संस्थानों के कारण भी जाना जाता है। यहाँ तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग, सर्वे ऑफ इंडिया, भारतीय पेट्रोलियम संस्थान आदि जैसे कई राष्ट्रीय संस्थान स्थित हैं। देहरादून में वन अनुसंधान संस्थान, भारतीय राष्ट्रीय मिलिटरी कालेज और इंडियन मिलिटरी एकेडमी जैसे कई शिक्षण संस्थान हैं। यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। अपनी सुंदर दृश्यवाली के कारण देहरादून पर्यटकों, तीर्थयात्रियों और विभिन्न क्षेत्र के उत्साही व्यक्तियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। विशिष्ट बासमती चावल, चाय और लीची के बाग इसकी प्रसिद्धि को और बढ़ाते हैं तथा शहर को सुंदरता प्रदान करते हैं। देहरादून दो शब्दों देहरा और दून से मिलकर बना है। इसमें देहरा शब्द को डेरा का अपभ्रंश माना गया है। जब सिख गुरु हर राय के पुत्र रामराय इस क्षेत्र में आए तो अपने तथा अनुयायियों के रहने के लिए उन्होंने यहाँ अपना डेरा स्थापित किया। www.sikhiwiki.org.

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नन्दा देवी पर्वत

नन्दा देवी पर्वत भारत की दूसरी एवं विश्व की २३वीं सर्वोच्च चोटी है।। हिन्दुस्तान लाइव। १४ अक्टूबर २००९ इससे ऊंची व देश में सर्वोच्च चोटी कंचनजंघा है। नन्दा देवी शिखर हिमालय पर्वत शृंखला में भारत के उत्तरांचल राज्य में पूर्व में गौरीगंगा तथा पश्चिम में ऋषिगंगा घाटियों के बीच स्थित है। इसकी ऊंचाई ७८१६ मीटर (२५,६४३ फीट) है। इस चोटी को उत्तरांचल राज्य में मुख्य देवी के रूप में पूजा जाता है।। नवभारत टाइम्स। हरेन्द्र सिंह रावत इन्हें नन्दा देवी कहते हैं। नन्दादेवी मैसिफ के दो छोर हैं। इनमें दूसरा छोर नन्दादेवी ईस्ट कहलाता है। इन दोनों के मध्य दो किलोमीटर लम्बा रिज क्षेत्र है। इस शिखर पर प्रथम विजय अभियान में १९३६ में नोयल ऑडेल तथा बिल तिलमेन को सफलता मिली थी। पर्वतारोही के अनुसार नन्दादेवी शिखर के आसपास का क्षेत्र अत्यंत सुंदर है। यह शिखर २१००० फुट से ऊंची कई चोटियों के मध्य स्थित है। यह पूरा क्षेत्र नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया जा चुका है। इस नेशनल पार्क को १९८८ में यूनेस्को द्वारा प्राकृतिक महत्व की विश्व धरोहर का सम्मान भी दिया जा चुका है। .

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भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, भारत सरकार के संस्कृति विभाग के अन्तर्गत एक सरकारी एजेंसी है, जो कि पुरातत्व अध्ययन और सांस्कृतिक स्मारकों के अनुरक्षण के लिये उत्तरदायी होती है। इसकी वेबसाइट के अनुसार, ए.एस.

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भारतीय प्राणि सर्वेक्षण

भारतीय प्राणि सर्वेक्षण (जूलोजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया / जेडएसआई) पर्यावरण और वन मंत्रालय का एक अधीनस्थ संगठन है। इसकी स्थापना १९१६ में की गयी थी ताकि पशुवर्ग संबंधी असाधारण विविधता के धनी भारतीय उपमहाद्वीप के प्राणियों के बारे में हमारा ज्ञानभण्डार बढ़ सके। इसका मुख्यालय कोलकाता में है और इसके 16 क्षेत्रीय स्टेशन देश के विभिन्न भौगोलिक स्थानों में स्थित है। सबसे पहले १८७५ में कोलकाता के भारतीय संग्रहालय में प्राणि प्रभाग स्थापित किया गया। .

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भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण

कोलकाता में जी एस आई का मुख्यालय १८७० में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के सदस्यगण भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India) भारत सरकार के खान मंत्रालय के अधीन कार्यरत एक संगठन है। इसकी स्थापना १८५१ में हुई थी। इसका कार्य भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और अध्ययन करना है। ये इस तरह के दुनिया के सबसे पुराने संगठनों में से एक है। .

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भारतीय मानचित्रकला

अभी प्राचीन भारत की मानचित्र कला तथा संबंधित भौगोलिक ज्ञान के विषय में शोध कार्य नहीं हुआ है, लेकिन अन्य विषयों के शोध कार्यों से संबंधित तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन भारतीयों ने मानचित्र कला में पर्याप्त उन्नति की थी। जोजेफ स्क्वार्टबर्ग (Joseph E. Schwartzberg (2008)) का विचार है कि कांस्य युगीन सिन्धु घाटी की सभ्यता (c. 2500–1900 BCE) मानचित्रकला से परिचित थी। यह बात वहाँ खनन से प्राप्त वस्तुओं में सर्वेक्षण उपकरण तथा मापन दण्ड (measuring rods) से स्पष्ट होती है। इसके अलावा बड़े आकार की निर्माण-योजनाएँ, ब्रह्माण्डीय चित्र, तथा मानचित्र निर्माण से सम्बन्धित सामग्री भारत में वैदिक काल से ही नियमित रूप से मिलती है। परिलेखन ज्ञान, प्रक्षेप, सर्वेक्षण, शुल्व सूत्र तथा तत्संबंधी विविध प्रकार के यंत्रों के निर्माण एवं ज्ञान का आभास प्राचीन पुस्तकों में मिलता है। यह कला रोमनों से बहुत पहले ऋग्वेद (4,000 ई0 पू0 से 1,500 ई0 पू0), बौधायन (800 ई0 पूर्व), आपस्तंब एवं कात्यायन के काल में उन्नत अवस्था में थी। भूमि पर विभिन्न आकृतियों और योजना लेखों के खींचने की परिपाटी बौधायन से पहले ही प्रारंभ हो चुकी थी। पाणिनि के अष्टाध्यायी से भी सर्वेक्षण ज्ञान की स्थिति का पता चलता है। मौर्य काल में सुसंगठित सर्वेक्षण ज्ञान की स्थिति, मानचित्रों को समाहित कर्यों में उपयोग करने की परंपरा तथा जातकों में शुल्व कार्य में यष्टि और रज्जु के प्रयोग आदि तथ्यों के उल्लेख से स्पष्ट हैं कि भारतीय लोग मानचित्रों के निर्माता ही नहीं थे, वरन्‌ उसका कुशल और व्यावहारिक उपयोग भी करते थे। सूर्यसिद्धांत तथा विविध ज्योतिष ग्रंथों में भूगोल एवं तत्संबंधी चित्रों एवं सीमांकन रेखाचित्रों आदि के संबंध में सर्वार्थवाची शब्द 'परिलेख' का उपयोग हुआ है। विभिन्न खगोल संबंधी कार्यों तथा ग्रहण आदि के अवसर पर विविध ग्रह उपग्रहों की स्थितियों, मार्गों आदि को प्रक्षेप प्रतिपाद के द्वारा दिखलाया जाता था। सूर्यसिद्धांत के अनुसार गोलक पर अक्षांश, देशांतर, क्रांति, विषुवत आदि को अंकित करने की रीतियाँ बताई गई हैं। उसी पुस्तक से स्पष्ट होता है कि जल द्वारा तलमापन (levelling) किया जाता था, जो आजकल स्पिरिट लेवल (spirit level) से किया जाता है। अक्षांश, देशांतर के स्थान पर सर्वप्रथम भारतीय पुराणकारों ने पृथ्वी के चारों ओर चार प्रमुख स्थानों, यथा श्रीलंका, श्रीलंका से 90° पूर्व यमकोटि, श्रीलंका से 90° पश्चिम सिद्धपुर तथा उसके विपरीत अध:भाग में रोमकपत्तन, का उल्लेख करते हुए सूर्य की दृश्यमान गति को स्पष्ट किया है। यहीं से बाद में अक्षांश तथा देशांतर का सूत्रपात होता है। प्रक्षेप की पद्धति का सूत्रपात भी सर्वप्रथम ज्योतिष ग्रंथों में ही मिलता है। आर्यभट्ट ने ही सर्वप्रथम पाई का वास्वविक फल तथा वृत्त का क्षेत्रफल निकलने की रीति बतलाई। पौराणिक काल में जंबू द्वीप आदि का मानचित्र बनाकर उन्हें मंजूषा में रखा जाता था। एक वर्ग हस्त के समपटल पर मानचित्र बनाने की पद्धति पाई जाती है। .

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भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार

भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार में भारत सरकार के अप्रचलित अभिलेखों का भंडारण किया जाता है। इसका प्रयोग अधिकतर प्रशासकों और शोधार्थियों के द्वारा किया जाता है। यह भारत सरकार के पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध एक कार्यालय है। इसकी शुरुआत कलकत्ता (अब कोलकाता) में मार्च 1891 में इंपीरियल रिकॉर्ड डिपार्टमेंट की स्थापना के साथ हुई थी। 1911 में जब राष्ट्रीय राजधानी को कलकत्ता से बदलकर नई दिल्ली किया गया उस समय इस अभिलेखागार को भी नई दिल्ली स्थानानांतरित कर दिया गया। अपने वर्तमान भवन में यह सन 1926 में स्थानानांतरित हुआ। यह अभिलेखागार 'प्रथमोक्त' नाम से नई दिल्ली के जनपथ और राजपथ के चौक के पास लाल और सफ़ेद पत्थरों के एक भव्य भवन में स्थित है। प्राकृतिक कारकों से अभिलेखों की रक्षा के लिए आधुनिक वैज्ञानिक साधन उपलब्ध कराये गए हैं। .

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भारतीय सर्वेक्षण विभाग

भारतीय सर्वेक्षण विभाग, भारत की नक्शे बनाने और सर्वेक्षण करने वाली केन्द्रीय एजेंसी है। इसका गठन १७६७ में ब्रिटिश इंडिया कम्पनी के क्षेत्रों को संगठित करने हेतु किया गया था। यह भारत सरकार के पुरातनतम अभियांत्रिक विभागों में से एक है। सर्वेक्षण विभाग की अद्भुत इतिहास रचना में व्याल/मैमथ महान त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण भी आते हैं। .

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भारतीय सिविल सेवा

भारतीय सिविल सेवा भारत सरकार की नागरिक सेवा तथा स्थायी नौकरशाही है। सिविल सेवा देश की प्रशासनिक मशीनरी की रीढ है। भारत के संसदीय लोकतंत्र में जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों, जो कि मंत्रीगण होते हैं, के साथ वे प्रशासन को चलाने के लिए जिम्मेदार होते हैं। ये मंत्री विधायिकाओं के लिए उत्तरदायी होते हैं जिनका निर्वाचन सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर आम जनता द्वारा होता है। मंत्रीगण परोक्ष रूप से लोगों के लिए भी जिम्मेदार हैं। लेकिन आधुनिक प्रशासन की कई समस्याओं के साथ मंत्रीगण द्वारा व्यक्तिगत रूप से उनसे निपटने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। इस प्रकार मंत्रियों ने नीतियों का निर्धारण किया और नीतियों के निर्वाह के लिए सिविल सेवकों की नियुक्ति की जाती है। कार्यकारी निर्णय भारतीय सिविल सेवकों द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। सिविल सेवक, भारतीय संसद के बजाए भारत सरकार के कर्मचारी हैं। सिविल सेवकों के पास कुछ पारंपरिक और सांविधिक दायित्व भी होते हैं जो कि कुछ हद तक सत्ता में पार्टी के राजनैतिक शक्ति के लाभ का इस्तेमाल करने से बचाता है। वरिष्ठ सिविल सेवक संसद के स्पष्टीकरण के लिए जिम्मेवार हो सकते हैं। सिविल सेवा में सरकारी मंत्रियों (जिनकी नियुक्ति राजनैतिक स्तर पर की गई हो), संसद के सदस्यों, विधानसभा विधायी सदस्य, भारतीय सशस्त्र बलों, गैर सिविल सेवा पुलिस अधिकारियों और स्थानीय सरकारी अधिकारियों को शामिल नहीं किया जाता है। .

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भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान

भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (आईआईआरएस), भारत सरकार के अन्तरिक्ष विभाग के राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केन्द्र के अंतर्गत एक प्रमुख प्रशिक्षण एवं शिक्षण संस्थान है। इसे सुदूर संवेदन, भू-सूचना एवं प्राकृतिक संसाधनों तथा आपदा प्रबंधन हेतु जीपीएस प्रौद्योगिकी में व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए विकसित किया गया है। संस्थान के प्रमुख कार्यों का क्षेत्र प्रयोक्ता समुदाय के बीच प्रौद्योगिकी अंतरण द्वारा क्षमता निर्माण, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन हेतु सुदूर संवेदन एवं भूरूपाकृतिक तथा सुदूर संवेदन के अनुप्रयोगों में स्नातकोत्तर स्तर का शिक्षण तथा सुदूर संवेदन एवं भूरूपाकृतिक में किए गए अनुसंधानों का प्रचार-प्रसार है। इस संस्थान द्वारा प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, सुदूर संवेदन, जीआईएस तथा जीपीएस प्रौद्योगिकी में अधिमूल्य सेवाएं उपलब्ध करायी जाती है। .

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भारतीय वन सर्वेक्षण

भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India (FSI / भवस) भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय अधीन एक संस्थान है। इसका प्रमुख अधिदेश, देश में वन सर्वेक्षण करना एवं वन संसाधनों का आकलन करना है। वनों की कटाई के प्रभावों हमें गंभीर रूप से। वनों की कटाई: यह इसके लायक है। इसकी शुरूआत 1965 में, वन संसाधन निवेश पूर्व सर्वेक्षण (व-स-नि-पू-स-) संस्थान के रूप में एफ-ए-ओ-/यू-एन-डी-पी-/भारत सरकार परियोजना के अन्तर्गत हुई। सूचनाओं में परिवर्तन होने के परिणामस्वरूप वन संसाधनों के निवेश पूर्व सर्वेक्षण के क्रियाकलापों के कार्य क्षेत्र में विस्तार होने से 1981 में इसका भारतीय वन सर्वेक्षण के नाम से पुनर्गठन किया गया। .

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भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण

प्रतीक भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (Botanical Survey of India / BSI) भारत सरकार के वन एवं पर्यावरन मंत्रालय के अधीन एक वनस्पति वैज्ञानिक संस्थान है। इसकी स्थापना १८८७ अंग्रेजी राज के समय में हुई थी जिसका उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के पादप-संसाधनों का सर्वेक्षण करना था। .

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महान त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण

१८७० में निर्मित भारतीय उपमहाद्वीप का एक मानचित्र जिसमें त्रिभुज और ट्रान्सेक्ट (transects) दर्शाए गये हैं। महान त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण भारतीय सर्वेक्षण विभाग की एक परियोजना थ। यह १९वीं शताब्दी में चली थी। इसको आरंभिक दौर में विलियम लैम्बटन ने चलाया था और बाद में जॉर्ज एवरेस्ट ने संचालित किया था। इसके अंतर्गत ब्रिटिश भारत में मानचित्र बनाना, हिमालय क्षेत्रों की ऊंचाइयां नापना आदि आता था। श्रेणी:भारतीय सर्वेक्षण विभाग.

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मानचित्र

विश्व का मानचित्र (२००४, सीआईए वर्ल्ड फैक्टबुक) पृथ्वी के सतह के किसी भाग के स्थानों, नगरों, देशों, पर्वत, नदी आदि की स्थिति को पैमाने की सहायता से कागज पर लघु रूप में बनाना मानचित्रण कहलाता हैं। मानचित्र दो शब्दों मान और चित्र से मिल कर बना है जिसका अर्थ किसी माप या मूल्य को चित्र द्वारा प्रदर्शित करना है। जिस प्रकार एक सूक्ष्मदर्शी किसी छोटी वस्तु को बड़ा करके दिखाता है, उसके विपरीत मानचित्र किसी बड़े भूभाग को छोटे रूप में प्रस्तुत करते हैं जिससे एक नजर में भौगोलिक जानकारी और उनके अन्तर्सम्बन्धों की जानकारी मिल सके। मानचित्र को नक्शा भी कहा जाता है। आजकल मानचित्र केवल धरती, या धरती की सतह, या किसी वास्तविक वस्तु तक ही सीमित नहीं हैं। उदाहरण के लिये चन्द्रमा या मंगल ग्रह की सतह का मानचित्र बनाया जा सकता है; किसी विचार या अवधारणा का मानचित्र बनाया जा सकता है; मस्तिष्क का मानचित्रण (जैसे एम आर आई की सहायता से) किया जा रहा है। .

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मानचित्रकला

विश्व का मध्यकालीन (१४८२) निरूपण मानचित्र तथा विभिन्न संबंधित उपकरणों की रचना, इनके सिद्धांतों और विधियों का ज्ञान एवं अध्ययन मानचित्रकला (Cartography) कहलाता है। मानचित्र के अतिरिक्त तथ्य प्रदर्शन के लिये विविध प्रकार के अन्य उपकरण, जैसे उच्चावचन मॉडल, गोलक, मानारेख (cartograms) आदि भी बनाए जाते हैं। मानचित्रकला में विज्ञान, सौंदर्यमीमांसा तथा तकनीक का मिश्रण है। 'कार्टोग्राफी' शब्द ग्रीक Χάρτης, chartes or charax .

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मैकमहोन रेखा

मैकमोहन रेखा पूर्वी-हिमालय क्षेत्र के चीन-अधिकृत एवं भारत अधिकृत क्षेत्रों के बीच सीमा चिह्नित करती है। यही सीमा-रेखा १९६२ के भारत-चीन युद्ध का केन्द्र एवं कारण थी। यह क्षेत्र अत्यधिक ऊंचाई का पर्वतीय स्थान है, जो मानचित्र में लाल रंग से दर्शित है। मैकमहोन रेखा भारत और तिब्बत के बीच सीमा रेखा है। यह अस्तित्व में सन् १९१४ में भारत की तत्कालीन ब्रिटिश सरकार और तिब्बत के बीच शिमला समझौते के तहत आई थी। १९१४ के बाद से अगले कई वर्षो तक इस सीमारेखा का अस्तित्व कई अन्य विवादों के कारण कहीं छुप गया था, किन्तु १९३५ में ओलफ केरो नामक एक अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी ने तत्कालीन अंग्रेज सरकार को इसे आधिकारिक तौर पर लागू करने का अनुरोध किया। १९३७ में सर्वे ऑफ इंडिया के एक मानचित्र में मैकमहोन रेखा को आधिकारिक भारतीय सीमारेखा के रूप में पर दिखाया गया था। इस सीमारेखा का नाम सर हैनरी मैकमहोन के नाम पर रखा गया था, जिनकी इस समझौते में महत्त्वपूर्ण भूमिका थी और वे भारत की तत्कालीन अंग्रेज सरकार के विदेश सचिव थे। अधिकांश हिमालय से होती हुई सीमारेखा पश्चिम में भूटान से ८९० कि॰मी॰ और पूर्व में ब्रह्मपुत्र तक २६० कि॰मी॰ तक फैली है। जहां भारत के अनुसार यह चीन के साथ उसकी सीमा है, वही, चीन १९१४ के शिमला समझौते को मानने से इनकार करता है। चीन के अनुसार तिब्बत स्वायत्त राज्य नहीं था और उसके पास किसी भी प्रकार के समझौते करने का कोई अधिकार नहीं था। चीन के आधिकारिक मानचित्रों में मैकमहोन रेखा के दक्षिण में ५६ हजार वर्ग मील के क्षेत्र को तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र का हिस्सा माना जाता है। इस क्षेत्र को चीन में दक्षिणी तिब्बत के नाम से जाना जाता है। १९६२-६३ के भारत-चीन युद्ध के समय चीनी फौजों ने कुछ समय के लिए इस क्षेत्र पर अधिकार भी जमा लिया था। इस कारण ही वर्तमान समय तक इस सीमारेखा पर विवाद यथावत बना हुआ है, लेकिन भारत-चीन के बीच भौगोलिक सीमा रेखा के रूप में इसे अवश्य माना जाता है। .

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संरक्षित स्मारक

http://museumsrajasthan.gov.in/index.htm.

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जल सर्वेक्षण

निजी सर्वेक्षण पोत-नेप्च्यून जल सर्वेक्षण या हाइड्रोग्राफिक सर्वे सागर का वैज्ञानिक मानचित्र होता है, जिसमें सागर की गहराई, उसकी आकृति, उसका तल, उसमें किस दिशा से और कितनी धाराएं बहती हैं, का ज्ञान होता है। इसके साथ ही उसमें आने वाले ज्वारों का समय और परिमाण भी पता लगाया जाता है। झीलों और नदियों का जल सर्वेक्षण केवल उस स्थिति में किया जाता है जब उनमें जहाज चलते हों। इससे अभियांत्रिकी और नौवहन के काम में सहायता मिलती है। जल सर्वेक्षण में पानी की वर्तमान मात्र और रिजर्वायर के के बारे में जानकारी मिलती है। जल सर्वेक्षण सागर की तह में होने वाले दैनिक परिवर्तनों के और इसके अंदर के रहस्यों के ज्ञान हेतु किया जाता है। इस सर्वेक्षण की सहायता से समुद्र में मौजूद खनिजों, धातुओं, गैस आदि के भंडार पता लगाने में मदद मिलती है। साथ-साथ ही समुद्र के भीतर केबल, पाइपलाइन बिछाने, ड्रेजिंग जैसे कार्यो के लिए उसमें लगातार होने वाले परिवर्तनों के बारे में जानकारी करना बेहद आवश्यक हो जाता है। भारत में पहली बार नौसैनिक जल सर्वेक्षण विभाग, जो मैरीन सर्वे ऑफ इंडिया के नियंत्रण में था, की स्थापना १७७० में ईस्ट इंडिया कंपनी ने की थी। १८७४ में कैप्टन डुंडस टेलर ने मेरीन सर्वे ऑफ इंडिया को कोलकाता में स्थापित किया। १९४७ में भारत की स्वतंत्रता उपरान्त इस विभाग को मेरीन सर्वे ऑफ इंडिया के अन्तर्गत्त कर दिया गया। इसके बाद इसे १९५४ में देहरादून में स्थापित किया गया और इसका नाम नौसैनिक जल सर्वेक्षण कार्यालय (नेवल हाइड्रोग्राफिक ऑफिस) कर दिया गया। इसके बाद में १९९६ में इसका नाम नेशनल हाइड्रोग्राफिक ऑफिस कर दिया गया। नेशनल हाइड्रोग्राफिक सर्वे मार्च १९९९ में आईएसओ ९००२ का स्तर प्रदान किया गया। .

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जॉर्ज एवरेस्ट

कर्नल सर जॉर्ज एवरेस्ट (४ जुलाई, १७९० - १ दिसंबर, १८६६) एक सर्वेक्षणकर्ता, भूगोलज्ञ और १८३०-१८४३ तक भारत के महा सर्वेयर रहे थे। .

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कर्नल विलियम लेम्बटन

कर्नल विलियम लेम्बटन भारत के पहले सर्वेयर जनरल ऑफ सर्वे रहे थे। इन्होंने १८०२ में ट्राइगोनोमेट्रीकल सर्वे ऑफ इंडिया की स्थापना की थी। .

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उल्टा सिर चार आने

उल्टा सिर चार आने भारत मे छपी एक एक प्रसिद्ध डाक टिकट है और डाक टिकटों के संग्राहकों के लिए बेशकीमती है। भारतीय सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा अश्ममुद्रित यह डाक टिकट 1854 में पहली बार मुद्रित हुई थी, इसे लाल और नीले रंग में छापा गया था और इसका मूल्य चार आने था, हालांकि इसके मुद्रण के दौरान हुई एक प्रतीप त्रुटि के कारण इस पर रानी का सिर "उल्टा" छप गया था। यह दुनिया की पहली बहुरंगी डाक टिकटों में से एक है, बेसल डव इसके लगभग यह 9 साल बाद आई। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

भारतीय सर्वेक्षण, मैपिंग सर्वे, रेवेन्यू सर्वे, सर्वे ऑफ इंडिया, सर्वे आफॅ इंडिया, ट्राइगोनोमेट्रीकल सर्वे

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