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भारतीय समाजसुधारक

सूची भारतीय समाजसुधारक

भारतीय समाज सुधारक, जिन्होंने आधुनिक भारत की नींव स्थापित करने में मदद की है एक समृद्ध इतिहास के कुछ मामलों में, राजनीतिक कार्रवाई और दार्शनिक शिक्षाओं के माध्यम से दुनिया भर में अपने प्रभाव से प्रभावित किया है, यह एक साथ समाज सुधारकों जो उम्र के माध्यम से रहता है की एक विस्तृत सूची डाल करने के लिए लगभग असंभव है। नीचे उनमें से कुछ कर रहे हैं।.

23 संबंधों: तेज बहादुर सप्रू, धोंडो केशव कर्वे, नारायण गणेश चंदावरकर, नवीनचन्द्र राय, पुरुषोत्तम दास टंडन, बाल गंगाधर तिलक, बेहरामजी मलाबारी, राधाचरण गोस्‍वामी, राधाबाई सुबरायण, रामदेवी चौधरी, शंकरदेव, शैक्षिक सुधार, समाज कार्य, सुब्रह्मण्य भारती, स्वामी केशवानन्द, विलियम काबेट, गोपाल गणेश आगरकर, आत्माराम पांडुरंग, आर्य समाज, कंदुकूरि वीरेशलिंगम्, केशव सीताराम ठाकरे, कॉर्नेलिया सोराबजी, २५ जून

तेज बहादुर सप्रू

तेज बहादुर सप्रू मोटे अक्षरसर तेज बहादुर सप्रू (8 दिसम्बर 1875 – 20 जनवरी 1949) प्रसिद्ध वकील, राजनेता और समाज सुधारक थे। उन्होंने गोपाल कृष्ण गोखले की उदारवादी नीतियों को आगे बढ़ाया और आजाद हिन्द फौज के सेनानियों का मुकदमा लड़ने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। .

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धोंडो केशव कर्वे

महर्षि डॉ॰ धोंडो केशव कर्वे (अप्रेल १८, १८५८ - नवंबर ९, १९६२) प्रसिद्ध समाज सुधारक थे। उन्होने महिला शिक्षा और विधवा विवाह मे महत्त्वपूर्ण योगदान किया। उन्होने अपना जीवन महिला उत्थान को समर्पित कर दिया। उनके द्वारा मुम्बई में स्थापित एस एन डी टी महिला विश्वविघालय भारत का प्रथम महिला विश्वविघालय है। वे वर्ष १८९१ से वर्ष १९१४ तक पुणे के फरगुस्सन कालेज में गणित के अध्यापक थे। उन्हे वर्ष १९५८ में भारत रत्न से सम्मनित किया गया। .

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नारायण गणेश चंदावरकर

नारायण गणेश चंदावरकर (2 दिसम्बर 1855 - 14 मई 1923)), प्रार्थना समाज के संस्थापकों में थे और भक्तिसंप्रदाय पर उनका बड़ा विश्वास था। वे भारत के पर्मुख समाज सुधारक थे। इनका जन्म गौड़ सारस्वतों में हुआ। बचपन में पढ़ने के लिये बंबई भेजे गए ओर वहीं के निवासी बन गए। सन् 1879 में एल-एल.बी. हुए। उसके बाद उन्होंने बंबई में सफलतापूर्वक वकालत करना आरंभ किया और बंबई हाईकोर्ट के न्यायाधीश बने। वे विश्वविद्यालय के प्रथम भारतीय चांसलर थे। इस सेवानिवृत्ति के बाद राष्ट्रीय सभा के अध्यक्ष इंदौर के प्रधानमंत्री और अंत में, बंबई व्यवस्थापिका सभा के अध्यक्ष नियुक्त हुए। अंग्रेज सरकार का इनपर पूर्ण विश्वास था और सरकारी क्षेत्र में इनका बड़ा वजन भी था। रोलेट कमेटी के बाद जो कमेटियाँ हुईं उनमें भी सरकार ने इनसे काफी लाभ उठाया। बचपन से ही इन्हें समाचारपत्रों में लेख लिखने का चाव था। सन् 1899 तक इन्होंने फिरोजशाह मेहता के सहकारी की स्थिति से राजनीति में हाथ बँटाया। किंतु न्यायाधीश होने पर राजनीति से विमुख ही रहे। सामाजिक सुधार के लिये ये पाश्चात्य मतों को ही प्रधानता देते थे किंतु उनको व्यवहार में नहीं लाते थे। श्रेणी:भारतीय समाज सुधारक श्रेणी:न्यायधीश श्रेणी:भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष.

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नवीनचन्द्र राय

नवीनचन्द्र राय (१८३७ - १८९०) ब्रह्म धर्म के अनुयायी, लाहौर में ब्रह्म समाज के संस्थापक, तथा महान हिन्दीसेवी थे। वे महा आचार्य द्वारा पंजाब में ब्रह्म धर्म के प्रचार के लिये नियुक्त किये गये थे। उन्होने सन् १८६१ में लहौर में ब्रह्म समाज की स्थापना की। उनकी मातृभाषा बंगला थी किन्तु हिन्दी के प्रचारक थे। सन् १८८० के आसपास उन्होने पंजाब में हिन्दी का प्रचार किया। वे उर्दू के विरोधी और देवनागरी के समर्थक थे। जिस प्रकार इधर संयुक्त प्रांत में राजा शिवप्रसाद शिक्षाविभाग में रहकर हिन्दी की किसी न किसी रूप में रक्षा कर रहे थे उसी प्रकार पंजाब में बाबू नवीनचंद्र राय महाशय कर रहे थे। संवत् 1920 और 1937 के बीच नवीन बाबू ने भिन्न-भिन्न विषयों की बहुत सी हिन्दी पुस्तकें तैयार कीं और दूसरों से तैयार कराईं। ये पुस्तकें बहुत दिनों तक वहाँ कोर्स में रहीं। पंजाब में स्त्री शिक्षा का प्रचार करनेवालों में ये मुख्य थे। शिक्षा प्रचार के साथ साथ समाज सुधार आदि के उद्योग में भी बराबर रहा करते थे। नवीनचंद्र ने ब्रह्मसमाज के सिध्दांतों के प्रचार के उद्देश्य से समय-समय पर कई पत्रिकाएँ भी निकालीं। संवत् 1924 (मार्च, सन् 1867) में उनकी 'ज्ञानप्रदायिनी पत्रिका' निकली जिसमें शिक्षासंबंधी तथा साधारण ज्ञान विज्ञानपूर्ण लेख भी रहा करते थे। यहाँ पर यह कह देना आवश्यक है कि शिक्षा विभाग द्वारा जिस हिन्दी गद्य के प्रचार में ये सहायक हुए वह शुद्ध हिन्दी गद्य था। हिन्दी को उर्दू के झमेले में पड़ने से ये सदा बचाते रहे। हिन्दी की रक्षा के लिए उन्हें उर्दू के पक्षपातियों से उसी प्रकार लड़ना पड़ता था जिस प्रकार यहाँ राजा शिवप्रसाद को। विद्या की उन्नति के लिए लाहौर में 'अंजुमन लाहौर' नाम की एक सभा स्थापित थी। संवत् 1923 के उसके एक अधिवेशन में किसी सैयद हादी हुसैन खाँ ने एक व्याख्यान देकर उर्दू को ही देश में प्रचलित होने के योग्य कहा, उस सभा की दूसरी बैठक में नवीनबाबू ने खाँ साहब के व्याख्यान का पूरा खंडन करते हुए कहा, श्रेणी:हिन्दीसेवी.

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पुरुषोत्तम दास टंडन

पुरूषोत्तम दास टंडन (१ अगस्त १८८२ - १ जुलाई, १९६२) भारत के स्वतन्त्रता सेनानी थे। हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करवाने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। वे भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के अग्रणी पंक्ति के नेता तो थे ही, समर्पित राजनयिक, हिन्दी के अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक भी थे। हिन्दी को भारत की राजभाषा का स्थान दिलवाने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान किया। १९५० में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। उन्हें भारत के राजनैतिक और सामाजिक जीवन में नयी चेतना, नयी लहर, नयी क्रान्ति पैदा करने वाला कर्मयोगी कहा गया। वे जन सामान्य में राजर्षि (संधि विच्छेदः राजा+ऋषि.

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बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक (अथवा लोकमान्य तिलक,; २३ जुलाई १८५६ - १ अगस्त १९२०), जन्म से केशव गंगाधर तिलक, एक भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और एक स्वतन्त्रता सेनानी थे। ये भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता हुएँ; ब्रिटिश औपनिवेशिक प्राधिकारी उन्हें "भारतीय अशान्ति के पिता" कहते थे। उन्हें, "लोकमान्य" का आदरणीय शीर्षक भी प्राप्त हुआ, जिसका अर्थ हैं लोगों द्वारा स्वीकृत (उनके नायक के रूप में)। इन्हें हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है। तिलक ब्रिटिश राज के दौरान स्वराज के सबसे पहले और मजबूत अधिवक्ताओं में से एक थे, तथा भारतीय अन्तःकरण में एक प्रबल आमूल परिवर्तनवादी थे। उनका मराठी भाषा में दिया गया नारा "स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच" (स्वराज यह मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूँगा) बहुत प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कई नेताओं से एक क़रीबी सन्धि बनाई, जिनमें बिपिन चन्द्र पाल, लाला लाजपत राय, अरविन्द घोष, वी० ओ० चिदम्बरम पिल्लै और मुहम्मद अली जिन्नाह शामिल थे। .

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बेहरामजी मलाबारी

बेहरामजी मेरवानजी मालाबारी (1853–1912) भारत के कवि, प्रकशक, लेखक तथा समाज सुधारक थे। वे स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा के प्रबल पक्षधर थे। .

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राधाचरण गोस्‍वामी

राधाचरण गोस्‍वामी (२५ फरवरी १८५९ - १२ दिसम्बर १९२५) हिन्दी के भारतेन्दु मण्डल के साहित्यकार जिन्होने ब्रजभाषा-समर्थक कवि, निबन्धकार, नाटकरकार, पत्रकार, समाजसुधारक, देशप्रेमी आदि भूमिकाओं में भाषा, समाज और देश को अपना महत्वपूर्ण अवदान दिया। आपने अच्छे प्रहसन लिखे हैं। .

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राधाबाई सुबरायण

राधाबाई सुबरायण एक भारतीय राजनीतिज्ञ, महिला अधिकार कार्यकर्ता और समाज सुधारक थीं। उन्होंने अखिल भारतीय महिला सम्मेलन के एक सदस्य के रूप में भी काम किया। १९३० में राधाबाई सुबरायण ने भारतीय महिलाओं का प्रतिनिधित्व लंदन में प्रथम गोलमेज सम्मेलन में बेगम शाह नवाज के साथ किया। उन्होंने सेकंड रौंद टैबल कोन्फेरेंस में भी भाग लिया था। इसी के साथ साथ उन्होंने महिलाओं के लिए पांच प्रतिशत आरक्षण की मांग भी की। .

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रामदेवी चौधरी

रामदेवी चौधरी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक थीं। उड़ीसा के लोगों उन्हें माँ कहते थे। वह गोपाल बल्लाव दास की बेटी थीं और १५ वर्ष की आयु में, उनकी गोपाबन्धु चौधरी से शादी हुई।.

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शंकरदेव

श्रीमन्त शंकरदेव असमिया भाषा के अत्यंत प्रसिद्ध कवि, नाटककार तथा हिन्दू समाजसुधारक थे। .

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शैक्षिक सुधार

शैक्षिक सुधार का सरल अर्थ यह है - 'व्यक्तियों को सूचना या ज्ञान प्रदान करने की विधि में परिवर्तन करना'। हमेशा से ही शिक्षा का अर्थ, शिक्षा की विधियाँ, शिक्षा-सामग्री (पाठ्यक्रम) आदि पर बहस होती रही है जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा में आवश्यक परिवर्तन किये जाते रहे हैं। .

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समाज कार्य

वियतनाम में सामाजिक कार्यकर्ता दाँत एवं मसूड़ों के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देते हुए समाज-कार्य (social work) या समाजसेवा एक शैक्षिक एवं व्यावसायिक विधा है जो सामुदायिक सगठन एवं अन्य विधियों द्वारा लोगों एवं समूहों के जीवन-स्तर को उन्नत बनाने का प्रयत्न करता है। सामाजिक कार्य का अर्थ है सकारात्मक, और सक्रिय हस्तक्षेप के माध्यम से लोगों और उनके सामाजिक माहौल के बीच अन्तःक्रिया प्रोत्साहित करके व्यक्तियों की क्षमताओं को बेहतर करना ताकि वे अपनी ज़िंदगी की ज़रूरतें पूरी करते हुए अपनी तकलीफ़ों को कम कर सकें। इस प्रक्रिया में समाज-कार्य लोगों की आकांक्षाओं की पूर्ति करने और उन्हें अपने ही मूल्यों की कसौटी पर खरे उतरने में सहायक होता है। 'समाजसेवा'वैयक्तिक आधार पर, समूह अथवा समुदाय में व्यक्तियों की सहायता करने की एक प्रक्रिया है, जिससे व्यक्ति अपनी सहायता स्वयं कर सके। इसके माध्यम से सेवार्थी वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों में उत्पन्न अपनी समस्याओं को स्वयं सुलझाने में सक्षम होता है। समाजसेवा अन्य सभी व्यवसायों से सर्वथा भिन्न होती है, क्योंकि समाज सेवा उन सभी सामाजिक, आर्थिक एवं मनोवैज्ञानिक कारकों का निरूपण कर उसके परिप्रेक्ष्य में क्रियान्वित होती है, जो व्यक्ति एवं उसके पर्यावरण-परिवार, समुदाय तथा समाज को प्रभावित करते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता पर्यावरण की सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक शक्तियों के बाद व्यक्तिगत जैविकीय, भावात्मक तथा मनोवैज्ञानिक तत्वों को गतिशील अंत:क्रिया को दृष्टिगत कर ही सेवार्थी की सेवा प्रदान करता है। वह सेवार्थी के जीवन के प्रत्येक पहलू तथा उसके पर्यावरण में क्रियाशील, प्रत्येक सामाजिक स्थिति से अवगत रहता है क्योंकि सेवा प्रदान करने की योजना बताते समय वह इनकी उपेक्षा नहीं कर सकता। समाज-कार्य का अधिकांश ज्ञान समाजशास्त्रीय सिद्धांतों से लिया गया है, लेकिन समाजशास्त्र जहाँ मानव-समाज और मानव-संबंधों के सैद्धांतिक पक्ष का अध्ययन करता है, वहीं समाज-कार्य इन संबंधों में आने वाले अंतरों एवं सामाजिक परिवर्तन के कारणों की खोज क्षेत्रीय स्तर पर करने के साथ-साथ व्यक्ति के मनोसामाजिक पक्ष का भी अध्ययन करता है। समाज-कार्य करने वाले कर्त्ता का आचरण विद्वान की तरह न होकर समस्याओं में हस्तक्षेप के ज़रिये व्यक्तियों, परिवारों, छोटे समूहों या समुदायों के साथ संबंध स्थापित करने की तरफ़ उन्मुख होता है। इसके लिए समाज-कार्य का अनुशासन पूर्ण रूप से प्रशिक्षित और पेशेवर कार्यकर्ताओं पर भरोसा करता है। .

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सुब्रह्मण्य भारती

सुब्रह्मण्य भारती (சுப்பிரமணிய பாரதி, ११ दिसम्बर १८८२ - ११ सितम्बर १९२१) एक तमिल कवि थे। उनको 'महाकवि भरतियार' के नाम से भी जाना जाता है। उनकी कविताओं में राष्ट्रभक्ति कूट-कूट कर भरी हुई है। वह एक कवि होने के साथ-साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल सेनानी, समाज सुधारक, पत्रकार तथा उत्तर भारत व दक्षिण भारत के मध्य एकता के सेतु समान थे। .

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स्वामी केशवानन्द

स्वामी केशवानन्द स्वामी केशवानन्द (1883-1972) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं समाज सुधारक थे। .

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विलियम काबेट

विलियम काबेट (William Cobbett; १७६२ - १८३५) इंग्लैण्ड के कृषक, पत्रकार और पम्फलेटिअर (pamphleteer) थे। 'रूरल राइड्स' उनकी प्रसिद्ध पुस्तक है। विलियम कॉबेट का संघर्षमय जीवन ऐसे काल में व्यतीत हुआ था, जो इंग्लैंड ही नहीं, समस्त पाश्चात्य श्वेत जाति के इतिहास में क्रांतिपूर्ण युग माना जाता है। इसी काल में अमरीका का स्वातंत्र्य संग्राम हुआ और फ्रांस में राजनीतिक क्रांति का विस्फोट; इसके बाद ही नेपोलियन का उदय हुआ और समस्त यूरोप में उसकी विजयवाहिनी ने आतंकपूर्ण वातावरण पैदा कर दिया। इन विप्लवात्मक परिवर्तनों का इंग्लैंड के राजनीतिक तथा सामाजिक जीवन पर गहरा असर पड़ा और इसके फलस्वरूप पार्लियामेंट संबंधी सुधारों का क्रम आरंभ हुआ। परंतु इससे अधिक महत्वपूर्ण वह आर्थिक तथा औद्योगिक क्रांति थी जो इंग्लैंड की परंपरागत ग्राम तथा कृषि व्यवस्था का कलेवर ही ध्वस्त करने पर उतारू थी। पूँजीपतियों की लोलुपता तथा कुचक्रों के फलस्वरूप भूस्वामियों, कृषकों तथा भूमिहीन श्रमिकों का ह्रास और औद्योगिक जमींदारियों का विस्तार हो रहा था। विलियम काबेट ने अपने लंबे जीवनकाल में इन घातक परिवर्तनों का भरपूर विरोध किया क्योंकि इससे राष्ट्रीय शक्ति के मूल स्रोतों का ही शोषण हो रहा था। वे स्वयं कृषक वर्ग के प्रतिनिधि थे। उनका जन्म सन् १७६२ में फार्नहैम गाँव के एक कृषक परिवार में हुआ था और उनका बचपन कृषि संबंधी परिश्रमों तथा मनोरंजनों के बीच व्यतीत हुआ। इसी समय उनके हृदय में प्रकृतिप्रेम का भी बीजारोपण हुआ जो उत्तरोत्तर बढ़ता हुआ उनके लेखों में काव्यमय होकर प्रस्फुटित हुआ। इनकी शिक्षा सुव्यवस्थित रूप से नहीं हो पाई परंतु विद्याप्रेम इनका जन्मजात गुण था और बचपन ही में अपने जेब की समस्त पूँजी स्विफ़्ट के प्रसिद्ध ग्रंथ 'ए टेल ऑव ए टब' पर लगाकार इन्होंने इसका आश्चर्यजनक परिचय दिया। स्वच्छंद स्वभाव का यह नवयुवक गाँव के संकीर्ण दायरे में बँधकर रहना पसंद न कर सका; इसलिए घर से भागकर यह सेना में भर्ती हुआ और कालांतर में अमरीका के संघर्षपूर्ण वातावरण का अंग बन गया। आठ वर्षों तक काबेट ने अमरीका में उदार तथा प्रगतिशील सिद्धांतों का निर्बाध रूप से प्रतिपादन किया, फलस्वरूप उन्हें 'पीटर पारक्युपाइन' का सार्थक उपनाम दिया गया। परंतु इसके साथ ही साथ वे अपने देश की राजनीतिक संस्थाओं का भी जोरदार समर्थन करते रहे। स्वदेश लौटने पर टोरी दल ने उनकी प्रतिभा को क्रय करने का भगीरथ प्रयत्न किया परंतु काबेट किसी भी मूल्य पर बिकने के लिए तैयार नहीं हुए। सन् १८०२ ई. में उन्होंने 'द पोलिटिकल रजिस्टर' नामक प्रसिद्ध पत्रिका का संपादन आरंभ किया और वैधानिक सुधारों के पक्ष में अपनी भावपूर्ण लेखनी को सर्वदा के लिए समर्पित कर दिया। सन् १८३२ में ओल्ढम क्षेत्र से वे पार्लियामेंट के सदस्य चुने गए और वहाँ के कृषकों तथा श्रमिकों का आजीवन समर्थन करते रहे। कई बार सरकार से लोहा लेकर वे उसके कोपभाजन भी बने पंरतु उनका उत्साह अदम्य था और कंटकाकीर्ण मार्ग पर चलने में वे काफी अभ्यस्त थे। सन् १८३५ में वे अस्वस्थ हुए परंतु मृत्यु काल तक लिखते तथा काम करते रहे। विलियम काबेट के लेखों का संग्रह ५० मोटी जिल्दों में हुआ है, जिनमें 'काटेज इकानोमी', 'ऐडवाइस टु यंग मेन', 'रूरल राइड्स' तथा 'लिगेसी टु वर्कर्स' विशेष उल्लेखनीय हैं। इन लेखों में विविध विषयों का समावेश है परंतु इनके दो केंद्रबिंदु हैं—राजनीति तथा ग्राम्य जीवन संबंधी प्रकृतिसौंदर्य। राजनीतिक लेखों में उन्होंने अन्याय तथा कुरीतियों के प्रति विदग्ध लेखनी का संचालन कर अपनी स्वाभाविक उग्रता तथा संघर्षप्रियता का परिचय दिया, परंतु 'रूरल राइड्स' के पृष्ठों में उनके प्रकृतिप्रेम तथा काव्यमयी प्रतिभा की सुखद अभिव्यक्ति हुई है। उनकी ख्याति का स्थायी आधारस्तंभ इन्हीं साहित्यिक लेखों में क्योंकि उनके राजनीतिक तथा सामजिक विचार ऐतिहासिक महत्व के ही रह गए हैं। समाजसुधारक के रूप में उनका दृष्टिकोण प्रगतिशील नहीं था। रस्किन तथा मारिस के समान वे मध्यकालीन समाजव्यवस्था के समर्थक थे, जिसमें समस्त गाँव एक कुटुंब के समान रहता था और पारिवारिक जीवन परिश्रमजन्य सुखसाधनों से संपन्न था। .

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गोपाल गणेश आगरकर

गोपाल गणेश आगरकर गोपाल गणेश आगरकर (१४ जुलाई, १८५६ - १८९५) भारत के महाराष्ट्र प्रदेश के समाज सुधारक एवं पत्रकार थे। वे मराठी के प्रसिद्ध समाचार पत्र केसरी के प्रथम सम्पादक थे। किन्तु बाल गंगाधर तिलक से वैचारिक मतभेद के कारण उन्होने केसरी का सम्पादकत्व छोड़कर सुधारक नामक पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया। आगरकर, विष्णु कृष्ण चिपलूणकर तथा तिलक "डेकन एजुकेशन सोसायटी" के संस्थापक सदस्य थे। .

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आत्माराम पांडुरंग

आत्माराम पाण्डुरंग आत्माराम पाण्डुरंग (1823-1898) भारत के एक चिकित्सक तथा समाजसुधारक थे। उन्होने प्रार्थना समाज की स्थापना की। वे मुंबई प्राकृतिक इतिहास सोसायटी के संस्थापकों में से एक थे। श्रेणी:भारतीय समाज सुधारक.

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आर्य समाज

आर्य समाज एक हिन्दू सुधार आंदोलन है जिसकी स्थापना स्वामी दयानन्द सरस्वती ने १८७५ में बंबई में मथुरा के स्वामी विरजानंद की प्रेरणा से की थी। यह आंदोलन पाश्चात्य प्रभावों की प्रतिक्रिया स्वरूप हिंदू धर्म में सुधार के लिए प्रारंभ हुआ था। आर्य समाज में शुद्ध वैदिक परम्परा में विश्वास करते थे तथा मूर्ति पूजा, अवतारवाद, बलि, झूठे कर्मकाण्ड व अंधविश्वासों को अस्वीकार करते थे। इसमें छुआछूत व जातिगत भेदभाव का विरोध किया तथा स्त्रियों व शूद्रों को भी यज्ञोपवीत धारण करने व वेद पढ़ने का अधिकार दिया था। स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रन्थ आर्य समाज का मूल ग्रन्थ है। आर्य समाज का आदर्श वाक्य है: कृण्वन्तो विश्वमार्यम्, जिसका अर्थ है - विश्व को आर्य बनाते चलो। प्रसिद्ध आर्य समाजी जनों में स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी श्रद्धानन्द, महात्मा हंसराज, लाला लाजपत राय, भाई परमानन्द, पंडित गुरुदत्त, स्वामी आनन्दबोध सरस्वती, स्वामी अछूतानन्द, चौधरी चरण सिंह, पंडित वन्देमातरम रामचन्द्र राव, बाबा रामदेव आदि आते हैं। .

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कंदुकूरि वीरेशलिंगम्

कंदुकूरि वीरेशलिंगम् (16 अप्रैल 1848 - 27 मई 1919) तेलुगु साहित्य के आधुनिक काल के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं समाज सुधारक थे। उन्हें 'गद्य ब्रह्मा' के नाम से ख्याति मिली। सनातनपंथी ब्राह्मण परिवार में जन्मे वीरेशलिंगम जाति-पांति के कट्टर विरोधी थे। कंदुकूरी वीरेशलिंगम ने जाति विरोध आंदोलन का सूत्रपात किया। वीरेशलिंगम का जीवन लक्ष्य आदर्श नहीं, बल्कि आचरण था। इसीलिए उन्होंने विधवा आश्रमों की स्थापना की। स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने 1874 में राजमंड्री के समीप धवलेश्‍वरम में और 1884 में इन्निसपेटा में बालिकाओं के लिए पाठशालाओं की स्थापना की। आधुनिक तेलुगु गद्य साहित्य के प्रवर्तक वीरेशलिंगम ने प्रथम उपन्यासकार, प्रथम नाटककार और आधुनिक पत्रकारिता के प्रवर्तक के रूप मे ख्याति अर्जित की थी। .

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केशव सीताराम ठाकरे

केशव सीताराम ठाकरे प्रबोधनकार केशव सीताराम ठाकरे (१७ सितम्बर १८८५ - २० नवम्बर १९७३) एक सत्यशोधक आंदोलन के चोटी के समाज सुधारक और प्रभावी लेखक थे। शिव सेना के नेता बालासाहेब ठाकरे उनके पुत्र हैं। उनका कर्तृत्व और प्रतिभा अनेकानेक रंगों में पुष्पित-पल्लवित हुई। विचारवंत, नेता, लेखक, पत्रकार, संपादक, प्रकाशक, वक्ता, धर्म सुधारक, समाज सुधारक, इतिहास संशोधक, नाटककार, सिनेमा पटकथा संवाद लेखक, अभिनेता, संगीतज्ञ, आंदोलनकारी, शिक्षक, भाषाविद, लघु उद्योजक, फोटोग्राफर, टाइपिस्ट, चित्रकार जैसे दर्जनों विशेषण अर्पित करने के बावजूद उनका व्यक्तित्व एक दशांगुल ऊंचा ही रहेगा। उन्होंने खजूर की तरह ऊंचा होने की बजाय वटवृक्ष की तरह अपने व्यक्तित्व को विस्तृत किया। मानो एक ही व्यक्ति ने सौ लोगों का आयुष्यमान जीने का पुरुषार्थ किया हो। .

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कॉर्नेलिया सोराबजी

6 इन्हें भी देखें7 सन्दर्भ8 और पढ़ें9 बाहरी लिंक कार्नेलिया सोराबजी कॉर्नेलिया सोराबजी (15 नवंबर 1866 - 6 जुलाई 1954) एक भारतीय महिला थी, जो बॉम्बे विश्वविद्यालय से पहली महिला स्नातक, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में कानून का अध्ययन करने वाली पहली महिला थी(वास्तव में, किसी भी ब्रिटिश विश्वविद्यालय में अध्ययन करने वाली पहली भारतीय राष्ट्रीय), भारत में पहली महिला वकील, और भारत और ब्रिटेन में कानून का अभ्यास करने वाली पहली महिला। 2012 में, लंदन के लिंकन इन में उनकी प्रतिमा का अनावरण किया गया था। वे समाज सुधारक तथा लेखिका भी थीं। .

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२५ जून

25 जून ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 176वाँ (लीप वर्ष में 177 वाँ) दिन है। साल में अभी और 189 दिन बाकी हैं। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

समाज सुधार, समाज सुधारक, समाजसुधारक

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