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भारतीय चित्रकला

सूची भारतीय चित्रकला

'''भीमवेटका''': पुरापाषाण काल की भारतीय गुफा चित्रकला भारत मैं चित्रकला का इतिहास बहुत पुराना रहा हैं। पाषाण काल में ही मानव ने गुफा चित्रण करना शुरु कर दिया था। होशंगाबाद और भीमबेटका क्षेत्रों में कंदराओं और गुफाओं में मानव चित्रण के प्रमाण मिले हैं। इन चित्रों में शिकार, शिकार करते मानव समूहों, स्त्रियों तथा पशु-पक्षियों आदि के चित्र मिले हैं। अजंता की गुफाओं में की गई चित्रकारी कई शताब्दियों में तैय्यार हुई थी, इसकी सबसे प्राचिन चित्रकारी ई.पू.

7 संबंधों: चित्रकला, पटना या कम्पनी शैली, पहाड़ी चित्रकला शैली, भारतीय चित्रशालाएँ, भारतीय कला, राय कृष्णदास, राजपूत शैली

चित्रकला

राजा रवि वर्मा कृत 'संगीकार दीर्घा' (गैलेक्सी ऑफ म्यूजिसियन्स) चित्रकला एक द्विविमीय (two-dimensional) कला है। भारत में चित्रकला का एक प्राचीन स्रोत विष्णुधर्मोत्तर पुराण है। .

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पटना या कम्पनी शैली

पटना कलम एक प्रमुख भारतीय चित्रकला शैली हैं। तत्कालीन जनसामान्य के आम पहलुओं के चित्रण के लिए प्रसिद्ध पटना या कम्पनी चित्रकला शैली का विकास मुगल साम्राज्य के पतन के बाद हुवा जब चित्रकारों ने पटना तथा उसके समीप्वर्ती क्षेत्रों को अपना विष्य बनाया। इन चित्रकारों द्वारा चित्र बनाकर ब्रिटेन भी भेजे गयें जो आज भी वहां के संग्रहालयों में विद्यमान हैं। .

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पहाड़ी चित्रकला शैली

पहाड़ी शैली में नल-दमयन्ती कथा का चित्रण पहाड़ी चित्रकला एक प्रमुख भारतीय चित्रकला शैली हैं। .

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भारतीय चित्रशालाएँ

भारतीय पुराणों में प्राय: चित्रशाला तथा विश्वकर्मामंदिर का वर्णन मिलता है। ये संभवत: मनोविनोद तथा शिक्षा के केंद्र थे। पुराणों में चित्रकला में अभिरुचि के साथ चित्रसंग्रह और चित्रशाला के अनेक संकेत मिलते हैं। इससे लगता है कि भारत में अति प्राचीन काल से ही चित्रशालाएँ थीं। वैसे भी इस देश में मंदिरों में चित्रकला तथा मूर्तिकला को आदिकाल से प्रमुखता मिलती आई है जो आज भी वर्तमान है। अजंता का कलामंडप इसका अद्भुत प्रमाण है। यह करीब दो हजार वर्ष पुरानी, संसार की अप्रतिम चित्रशाला है। प्राचीन कल के सभी मंदिर मूर्तिकला से परिपूर्ण हैं और कहीं कहीं अब भी उनमें चित्रकला वर्तमान है। मध्यकालीन मंदिरों में तो चित्रकला तथा मूर्तिकला के उत्कृष्ट उदाहरण मिलते हैं। इस काल में राजा महाराजा, बादशाहों, नवाबों के महलों में भी चित्रशालाएँ बनने लग गई थीं। आधुनिक अर्थों में भारत में सर्वप्रथम संग्रहालय तथा चित्रशाला एशियाटिक सोसाइटी ऑव बंगाल के प्रयास से 1814 में स्थापित हुई जिसे हम आज भारतीय संग्रहालय, कलकत्ता (इंडियन म्यूज़ियम, कलकत्ता) के नाम से जानते हैं और यह एशिया के सबसे समृद्ध संग्रहालयों में गिना जाता है। मंदिरों की चित्रशालाएँ अधिकतर दक्षिणा भारत में हैं। इस प्रकर की चित्रशालाओं में तंजोर में राजराज संग्रहालय प्रसिद्ध है। अब उसे पुनर्गठित किया गया है। सरस्वती महल में चित्रशाला स्थापित है। सीतारंगम मंदिर, मीनाक्षीसुंदरेश्वरी का मंदिर तथा मदुराई का मंदिर भी उल्लेखनीय है। सीतारंगम मंदिर में मूर्तिकला के अद्भुत नमूने हैं मीनाक्षी में हाथीदाँत की कला अद्भुत है। वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय, तिरुपत में भी कलात्मक कृतियों का अच्छा संग्रह हैं। इस समय भारत में सैकड़ों संग्रहालय है और कइयों में चित्रों का भी अच्छा संग्रह हैं पर सुनियोजित चित्रशालाएँ बहुत नहीं हैं। अधिकतर संग्रहालयों में राजस्थानी, मुगल, पहाड़ी, दक्खिनी, नेपाल तथा तिब्बती शैली के चित्र हैं। कुछेक में आधुनिक यूरोपीय चित्र भी हैं पर ऐसी चित्रशालाएँ, जहाँ आदि से अंत तक चित्रकला का इतिहास तथा प्रगति समझने में मदद मिले, कतिपय ही हैं। बंबई के प्रिंस ऑव वेल्स संग्रहालय में पूर्वी तथा पश्चिमी सिद्धहस्त चित्रहारों की कृतियों के साथ साथ मध्यकालीन तथा आधुनिक चित्रकला के विभिन्न पक्षों के चित्र हैं तथा अजंता की बड़ी बड़ी अनुकृतियाँ भी हैं। मैसूर की चित्रशाला में अधिकतर भारतीय आधुनिक शैली के चित्र है। ग्वालियर संग्रहालय में अजंता तथा बाघ के चित्रों की अनुकृतियों का अच्छा संग्रह है। इसी प्रकार हैदराबाद की चित्रशाला में भी अंजता तथा एलोरा की कलाकृतियों की सुंदर अनुकृतियाँ रखी गई हैं। इसमें यूरोपीय कला का भी सुंदर संग्रह है। अभी हाल में मद्रास संग्रहालय में भी चित्रशाला संयोजित हुई है। यहाँ दक्षिण भारत की चित्रकला संग्रहीत है। वैसे यहां प्राचीन तथा मध्यकालीन चित्र भी हैं। नई दिल्ली में एक बड़ी ही सुव्यवस्थित चित्रशाला नेशनल गैलरी ऑव माडर्न आर्ट है। इसमें अधिकतर शैली के भारतीय चित्र हैं। इसमें मुगल तथा राजस्थानी चित्र भी पर्याप्त मात्रा में हैं। .

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भारतीय कला

अजन्ता गुफा में चित्रित '''बोधि''' नृत्य करती हुई अप्सरा (१२वीं शताब्दी) भारतीय कला का एक नमूना - '''बनीठनी'''; किशनगढ़, जयपुर, राजस्थान कला, संस्कृति की वाहिका है। भारतीय संस्कृति के विविध आयामों में व्याप्त मानवीय एवं रसात्मक तत्व उसके कला-रूपों में प्रकट हुए हैं। कला का प्राण है रसात्मकता। रस अथवा आनन्द अथवा आस्वाद्य हमें स्थूल से चेतन सत्ता तक एकरूप कर देता है। मानवीय संबन्धों और स्थितियों की विविध भावलीलाओं और उसके माध्यम से चेतना को कला उजागार करती है। अस्तु चेतना का मूल ‘रस’ है। वही आस्वाद्य एवं आनन्द है, जिसे कला उद्घाटित करती है। भारतीय कला जहाँ एक ओर वैज्ञानिक और तकनीकी आधार रखती है, वहीं दूसरी ओर भाव एवं रस को सदैव प्राणतत्वण बनाकर रखती है। भारतीय कला को जानने के लिये उपवेद, शास्त्र, पुराण और पुरातत्त्व और प्राचीन साहित्य का सहारा लेना पड़ता है। .

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राय कृष्णदास

राय कृष्णदास (जन्म 13 नवम्बर 1892, वाराणसी, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 1985) हिन्दी कहानीकार तथा गद्य गीत लेखक थे। इन्होंने भारत कला भवन की स्थापना की थी, जिसे वर्ष 1950 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को दे दिया गया। राय कृष्णदास को 'साहित्य वाचस्पति पुरस्कार' तथा भारत सरकार द्वारा 'पद्म विभूषण' की उपाधि मिली थी। .

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राजपूत शैली

निहाल चन्द द्वारा १८वीं शताब्दी में चित्रित राजपूत शैली का चित्र रापूत चित्रशैली, भारतीय चित्रकला की प्रमुख शैली है। राजस्थान में लोक चित्रकला की समृद्धशाली परम्परा रही है। मुगल काल के अंतिम दिनों में भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक राजपूत राज्यों की उत्पत्ति हो गई, जिनमें मेवाड़, बूंदी, मालवा आदि मुख्य हैं। इन राज्यों में विशिष्ट प्रकार की चित्रकला शैली का विकास हुआ। इन विभिन्न शैलियों में की विशेषताओं के कारण उन्हे राजपूत शैली का नाम प्रदान किया गया। राजस्थानी चित्रशैली का पहला वैज्ञानिक विभाजन आनन्द कुमार स्वामी ने किया था। उन्होंने 1916 में ‘राजपूत पेन्टिंग’ नामक पुस्तक लिखी। उन्होंने राजपूत पेन्टिंग में पहाड़ी चित्रशैली को भी शामिल किया। परन्तु अब व्यवहार में राजपूत शैली के अन्तर्गत केवल राजस्थान की चित्रकला को ही स्वीकार करते हैं। वस्तुतः राजस्थानी चित्रकला से तात्पर्य उस चित्रकला से है, जो इस प्रान्त की धरोहर है और पूर्व में राजपूताना में प्रचलित थी। विभिन्न शैलियों एवं उपशैलियों में परिपोषित राजस्थानी चित्रकला निश्चय ही भारतीय चित्रकला में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। अन्य शैलियों से प्रभावित होने के उपरान्त भी राजस्थानी चित्रकला की मौलिक अस्मिता है। .

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