5 संबंधों: देवरानी जेठानी की कहानी, श्रद्धाराम शर्मा, हिन्दी से सम्बन्धित प्रथम, गौरीदत्त, उपन्यास।
देवरानी जेठानी की कहानी
देवरानी जेठानी की कहानी हिन्दी का उपन्यास है। इसके रचयिता हिन्दी व देवनागरी के महान सेवक पंडित गौरीदत्त हैं। न केवल अपने प्रकाशन वर्ष (1870), बल्कि अपनी निर्मिति के लिहाज से भी पं॰ गौरीदत्त की कृति 'देवरानी-जेठानी की कहानी' को हिन्दी का पहला उपन्यास होने का श्रेय जाता है। किंचित लड़खड़ाहट के बावजूद हिन्दी उपन्यास-यात्रा का यह पहला कदम ही आश्वस्ति पैदा करता है। अन्तर्वस्तु इतनी सामाजिक कि तत्कालीन पूरा समाज ही ध्वनित होता है, मसलन, बाल विवाह, विवाह में फिजूलखर्ची, स्त्रियों की आभूषणप्रियता, बंटवारा, वृद्धों, बहुओं की समस्या, शिक्षा, स्त्री-शिक्षा, - अपनी अनगढ़ ईमानदारी में उपन्यास कहीं भी चूकता नहीं। लोकस्वर संपृक्त भाषा इतनी जीवन्त है कि आज के साहित्यकारों को भी दिशा-निर्देशित करती है। दृष्टि का यह हाल है कि इस उपन्यास के माध्यम से हिन्दी पट्टी में नवजागरण की पहली आहट तक को सुना जा सकता है। कृति का उद्देश्य बारम्बार मुखर होकर आता है किन्तु वैशिष्टक यह कि यह कहीं भी आरोपित नहीं लगता। डेढ़ सौ साल पूर्व संक्रमणकालीन भारत की संस्कृति को जानने के लिए 'देवरानी जेठानी की कहानी' (उपन्यास) से बेहतर कोई दूसरा साधन नहीं हो सकता। .
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श्रद्धाराम शर्मा
पं.
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हिन्दी से सम्बन्धित प्रथम
यहाँ पर हिन्दी से सम्बन्धित सबसे पहले साहित्यकारों, पुस्तकों, स्थानों आदि के नाम दिये गये हैं।.
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गौरीदत्त
पंडित गौरीदत्त (1836 - 8 फ़रवरी 1906), देवनागरी के प्रथम प्रचारक व अनन्य भक्त थे। बच्चों को नागरी लिपि सिखाने के अलावा आप गली-गली में घूमकर उर्दू, फारसी और अंग्रेजी की जगह हिंदी और देवनागरी लिपि के प्रयोग की प्रेरणा दिया करते थे। कुछ दिन बाद आपने मेरठ में ‘नागरी प्रचारिणी सभा‘ की स्थापना भी की और सन् 1894 में उसकी ओर से सरकार को इस आशय का एक ज्ञापन दिया कि अदालतों में नागरी-लिपि को स्थान मिलना चाहिए। हिंदी भाषा और साहित्य के विकास में पंडित गौरीदत्त जी ने जो उल्लेखनीय कार्य किया था उससे उनकी ध्येयनिष्ठा और कार्य-कुशलता का परिचय मिलता है। नागरी लिपि परिषद ने उनके सम्मान में उनके नाम पर 'गौरीदत्त नागरी सेवी सम्मान' आरम्भ किया है। .
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उपन्यास
उपन्यास गद्य लेखन की एक विधा है। .