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भदौरिया

सूची भदौरिया

भदौरिया राजपूत कुल का नाम है। इनका नाम ग्वालियर के ग्राम भदावर पर पड़ा। इस वंश के महाराजा को 'महेन्द्र' (पृथ्वी का स्वामी) की उपाधि से संबोधित किया जाता है। यह उपाधि आज भी इस कुल के मुखिया के नाम रहती है। एक पाण्डुलिपि के अनुसार १६५० में आगरा के भदौरिया का उलेख इस प्रकार किया गया है:- वो एक असंख्य उद्यमी और वीर योद्धा हैं, उनके हर गाँव में किला और किलेबंदी थी, वो बिना युध्य के कभी भी जागीरदार या हाकिम को लगान नहीं देते थे, रियाया जो हल चलती थी, उनके कंधे पर बंदूक लटकती थी और अंटी में अभरक बंधा होता था | उन्हे लगान माफी के रूप में हाकिम से (अभरक और गंधक) बारूद मिलता था | भदौरिया चार श्रेणी में बटे हुए है ये बिभाजन १२०० सताब्दी में राजा रज्जू राउत के चार पुत्रो से शुरु हुआ जो उनके चार विवाहों से हुए क्रमशा:- १. कुंवर बामदेओ (पहला विवाह - बरसला, पिनाहट के राव खीरसमद की पुत्री से) के वंसज राउत भदौरिया के नाम से जाने जाते है २. कुंवर मानसिंह (दुसरा विवाह - असा मुरेना के राव गुमम सिंह तोमर की पुत्री से) के वंसज मेनू भदौरिया के fनाम से जाने जाते है ३. कुंवर तस्-सिंह (तीसरा विवाह - नर्केजरी, राजस्थान के राव ज्ञान सिंह गौर की पुत्री से) के वंसज तसेला भादौरिया के नाम से जाने जाते है ४. राजा उदय राज (चोथे विवाह - लाहार के राजा कारन सिंह कछवाहा की पुत्री से) राजा हुए १४०० शताब्दी तक उनका वंश बिना किसी विभाजन के चला १४२७ में जैतपुर की स्थापना करनेवाले राजा जैतसिंह के भाई कुंवर भाव सिंह १४४० में कालपी के नवाब के लहार पर आक्रमण को विफल किया और कालपी के नवाब को मार कर उसका कुल्हा (राजमुकुट) छीन hलिया, इस घटना के बाद से कुंवर भाव सिंह के वंसज कुल्हिया भादौरिया के नाम से जाने जाते है। "भदौरिया" की प्रतिशाखा राजा रुद्र प्रताप १५०९/१५४९ ई और उनकी तीसरी रानी (पुत्री राजा मदन सिंह परिहार, रामगढ़, एता) के पुत्र राजा मुक्तमन १५४९/१५९०, का वंश अठभईया भदौरिया के रूप में जाना जाता है आठ बड़े भाइयों की वरीयता में राजा मुक्तमन अपने पिता के उत्तरअधिकारी होने में सफल हुए थे ! इस कुल का इतिहास गौरव पूर्ण रहा है और भदौरिया राजाओ ने कई किलो और मंदिरों का निर्माण कराया |भदावर राजाओ का एक छत्र राज्य रहा जिसमें भदावर का सर्वांगीण विकास होता रहा। .

1 संबंध: बाह

बाह

बाह आगला जिले के पूर्व में अंतिम तहसील है, इस तहसील के किनारे से चम्बल नदी गुजरती है। चम्बल और यमुना का दोआबा होने के कारण इस भू-भाग मे खेती की जमीन कम से कम है, पानी का जमीनी लेबल पचास मीटर नीचे होने के कारण यहाँ पीने के पानी की भी किल्लत होती है। भदौरिया राजपूत समुदाय अधिक होने के कारण इस दोआबे में अधिकतर बेरोजगारी की मार युवाओं को झेलनी पडती है और खून गर्म होने के कारण युवा वर्ग जरा सी बात पर मरने मारने के लिये उतारू हो जाता है। अधिकतर युवा अपने प्रयासों के कारण सेना में भर्ती हो जाते हैं और उनके परिवार के व्यक्तियों का जीवन आसानी से चल उठता है। एक तरफ़ चम्बल और दूसरी तरफ़ यमुना नदी होने के कारण बीहड जिन्हें निर्जन जंगल के रूप मे जाना जाता है, बहुत लम्बे भू-भाग में फ़ैले हैं। शिक्षा की कमी के चलते ७० प्रतिशत लोग बीहड के अन्दर अपना जीवन बिताना जानते है, सूखा इलाका होने के कारण यहाँ पर बाजरा और सरसों के अलावा चना अलसी आदि क फ़सलें भ पैदा हो जाती हैं, राज्य सरकार ने चम्बल को अभारण्य घोषित करने के बाद, इस भू-भाग के निवासियों ने बाहर के राज्यों रा्जस्थान दिल्ली बंगाल पंजाब आदि में पलायन शुरु कर दिया है, जो लोग रह गये है, उनमे दस प्रतिशत लोग अपने को जंगलो मे वनवासी रूप मे वासित कर रहे हैं। पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी इसी भू-भाग में बटेश्वर नामक स्थान के है। यह कानपुर जिले का एक प्रखंड भी है। इस प्रखंड में २०५ गाँव हैं। श्रेणी:आगरा श्रेणी:भदावर.

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