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भदावर

सूची भदावर

भदावर 20px - भदौरियो के १९४७ से पहले का राजसी साम्राज्य का नाम है ! यह क्षेत्र भारत के उत्तर प्रदेश में जिला इटावा, आगरा, मध्य प्रदेश के भिन्ड, राजस्थान के धौलपुर तक फ़ैला हुआ है, भिण्ड, मुरैना, इटावा, ग्वालियर, दतिया, धौलपुर, आगरा, तथा जालौन तथा यमुना, चम्बल, पहूज, सिन्ध, बेतवा तथा क्वांरी के खारों में फैला क्षेत्र भदावर कहलाता है ! भदावर के राजा हिन्दू साम्राज्य के चार स्थाम्बो में से एक थे ! उनकी गिनती जयपुर, जोधपुर और बूंदी के महाराजाओं के साथ होती है ! भदावर - महाभारत काल भदावर महाभारत काल में प्राचीन भद्रावर्त राज्य था। महत कांतार (हतकांत) विंध्याटवी (अटेर) तथा विंध्यकानन (भिंड) इसके एतिहासिक साक्षी हैं। पांडव काल में भद्रावर्त राज्य एक समृद्ध गणराज्य था। यहाँ के क्षत्रिय विपुल साधन सम्पत्र थे यहाँ के राजकुमार बहुत सा रत्न धन सुवर्ण लेकर युधिष्ठर यज्ञ में उपस्थित हुए थे और उसे यज्ञ की भेंट किया। अथर्वद के गोपाल तापिनी उपनिषद में गोपाल के प्रिय दो बनों में भद्रवन का उल्लेख है जो यमुना के तट पर था। द्वेबने स्त: कृष्णवनं भद्रवनं- पुण्यानि पुष्य तमानि तेष्वेव देवा स्तिष्ठन्ति सिद्धा: सिद्धिं प्राप्ता:।। 33।।। वेदों के अनुसार- 'भदंकर्णेभि श्रृणुयाम देवा:' - देवों की वाणी "भद्रश्रव" भदावर की बोली थी। .

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नहतोली गाँव, बाह (आगरा)

नहतोली बाह, आगरा, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। प्राचीन भदावर में माथुर चौबों का गाँव - नहटौली (नाट्य कला कुशल नाहटा नटों का गांव) .

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परना गाँव, बाह (आगरा)

परना बाह, आगरा, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। प्राचीन भदावर में माथुर चौबों का गाँव - पारनां (पारावत रावतों का केन्द्र) है। .

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पिनहट देहात गाँव, बाह (आगरा)

पिनहट देहात बाह, आगरा, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। प्राचीन भदावर पिन्हाहट (ब्रज के गोपीनाथ भगवान के उपासकों का गोपीनाथ बन और देव स्थान) पिनाहट में यादव वंश के देवता गोपीनाथ के प्राचीन मन्दिर का स्तंभ मण्डप अभी दर्शनीय हैं। पिनाहट में ही पाली भाषा में अंकित शिला लेखों में 567 वि0 कें हूणों के अक्रमणों का उल्लेख है। .

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बटेश्वर

बटेश्वर आगरा जिले में स्थित एक तहसील है। भारतवर्ष के सुप्रसिद्ध शहर आगरा जो कि संसार के सातवें आश्चर्य ताजमहल के नाम से विश्व विख्यात है, से सत्तर किलोमीटर पूर्व दिशा में बाह नामक स्थान है जो जिला आगरा की पूर्वी और आखिरी तहसील है। बाह से दस किलोमीटर उत्तर में यमुना नदी के किनारे बाबा भोले नाथ का प्रसिद्ध स्थान बटेश्वर धाम है। यहां पर हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष दूज से बहुत बड़ा मेला लगता है, और भगवान शिव के एक सौ एक मन्दिर यमुना नदी के किनारे पर यहां के तत्कालीन राजा महाराज भदावर ने बनवाये थे। बटेश्वर धाम के लिये एक कथा कही जाती है, कि राजा भदावर के और तत्कालीन राजा परमार के यहां उनकी रानियो ने गर्भ धारण किया, और दोनो राजा एक अच्छे मित्र थे, दोनो के बीच समझौता हुआ कि जिसके भी कन्या होगी, वह दूसरे के पुत्र से शादी करेगा, राजा परमार और राजा भदावर दोनो के ही कन्या पैदा हो गई, और राजा भदावर ने परमार को सूचित कर दिया कि उनके पुत्र पैदा हुआ है, उनकी झूठी बात का परमार राजा को पता नहीं था, वे अपनी कन्या को पालते रहे और राजा भदावर के पुत्र से अपनी कन्या का विवाह करने के लिये बाट जोहते रहे। जब राजा भदावर की कन्या को पता लगा कि उसके पिता ने झूठ बोलकर राजा परमार को उसकी लडकी से शादी का वचन दिया हुआ है, तो वह अपने पिता के वचन को पूरा करने के लिये भगवान शिव की आराधना यहीं बटेश्वर नामक स्थान पर करने लगी। जब राजा परमार की खबरें राजा भदावर के पास आने लगीं कि अब शादी जल्दी की जाये, उधर राजा भदावर की कन्या अपने पिता की लाज रखने के लिये तपस्या करने लगी, और उसकी विनती न सुनी जाने के कारण उसने अपने पिता की लाज को बचाने हेतु यमुना नदी में आत्महत्या के लिये छलांग लगा दी। भगवान शिव की की गई आराधना का चम्त्कार हुआ, और वह कन्या पुरुष रूप में इसी स्थान पर उत्पन हुई, राजा भदावर ने उसी कारण से इस स्थान पर एक सौ एक मन्दिरों का निर्माण करवाया, जो आज बटेश्वर नाम से प्रसिद्ध हैं। यहां पर यमुना नदी चार किलोमीटर तक उल्टी धारा के रूप में बही हैं। .

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बटेश्वर गाँव, बाह (आगरा)

बटेश्वर के मन्दिर बटेश्वर उत्तर प्रदेश आगरा जिले में स्थित एक गाँव है। इसे 'भदावर के काशी' के नाम से जाना जाता है। त्रेता युग में यह 'शूर सैनपुर' के नाम से जाना जाता था। बटेश्वर के घाट में प्रसिद्ध घाट आज भी 'कंश कगार' के नाम से जाना जाता है। भदावर के भदौरिया महाराजाओं ने यहाँ १०८ मंदिरों का निर्माण कर इस पवित्र स्थान को तीर्थ में बदल दिया। अठारहवीं सदी में औरंगजेब की मंदिरों को ध्वंश कर के इस्लामी राज्य स्थापित करने के प्रयास का दीर्घकालिक प्रभाव हिन्दू पहचान की भावना बढाता जा रहा था। बटेश्वर शहर के निर्माण में हिंदू भक्ति के महत्व का एक शानदार उदाहरण है। भदावर के राजा द्वारा १७२० और १७४० के बीच का १०८ मंदिरों का निर्माण कराया गया था I .

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भदौरिया

भदौरिया राजपूत कुल का नाम है। इनका नाम ग्वालियर के ग्राम भदावर पर पड़ा। इस वंश के महाराजा को 'महेन्द्र' (पृथ्वी का स्वामी) की उपाधि से संबोधित किया जाता है। यह उपाधि आज भी इस कुल के मुखिया के नाम रहती है। एक पाण्डुलिपि के अनुसार १६५० में आगरा के भदौरिया का उलेख इस प्रकार किया गया है:- वो एक असंख्य उद्यमी और वीर योद्धा हैं, उनके हर गाँव में किला और किलेबंदी थी, वो बिना युध्य के कभी भी जागीरदार या हाकिम को लगान नहीं देते थे, रियाया जो हल चलती थी, उनके कंधे पर बंदूक लटकती थी और अंटी में अभरक बंधा होता था | उन्हे लगान माफी के रूप में हाकिम से (अभरक और गंधक) बारूद मिलता था | भदौरिया चार श्रेणी में बटे हुए है ये बिभाजन १२०० सताब्दी में राजा रज्जू राउत के चार पुत्रो से शुरु हुआ जो उनके चार विवाहों से हुए क्रमशा:- १. कुंवर बामदेओ (पहला विवाह - बरसला, पिनाहट के राव खीरसमद की पुत्री से) के वंसज राउत भदौरिया के नाम से जाने जाते है २. कुंवर मानसिंह (दुसरा विवाह - असा मुरेना के राव गुमम सिंह तोमर की पुत्री से) के वंसज मेनू भदौरिया के fनाम से जाने जाते है ३. कुंवर तस्-सिंह (तीसरा विवाह - नर्केजरी, राजस्थान के राव ज्ञान सिंह गौर की पुत्री से) के वंसज तसेला भादौरिया के नाम से जाने जाते है ४. राजा उदय राज (चोथे विवाह - लाहार के राजा कारन सिंह कछवाहा की पुत्री से) राजा हुए १४०० शताब्दी तक उनका वंश बिना किसी विभाजन के चला १४२७ में जैतपुर की स्थापना करनेवाले राजा जैतसिंह के भाई कुंवर भाव सिंह १४४० में कालपी के नवाब के लहार पर आक्रमण को विफल किया और कालपी के नवाब को मार कर उसका कुल्हा (राजमुकुट) छीन hलिया, इस घटना के बाद से कुंवर भाव सिंह के वंसज कुल्हिया भादौरिया के नाम से जाने जाते है। "भदौरिया" की प्रतिशाखा राजा रुद्र प्रताप १५०९/१५४९ ई और उनकी तीसरी रानी (पुत्री राजा मदन सिंह परिहार, रामगढ़, एता) के पुत्र राजा मुक्तमन १५४९/१५९०, का वंश अठभईया भदौरिया के रूप में जाना जाता है आठ बड़े भाइयों की वरीयता में राजा मुक्तमन अपने पिता के उत्तरअधिकारी होने में सफल हुए थे ! इस कुल का इतिहास गौरव पूर्ण रहा है और भदौरिया राजाओ ने कई किलो और मंदिरों का निर्माण कराया |भदावर राजाओ का एक छत्र राज्य रहा जिसमें भदावर का सर्वांगीण विकास होता रहा। .

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माई गाँव, बाह (आगरा)

माई बाह, आगरा, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। प्राचीन भदावर में माथुर चौबों का गाँव हैं - मई गाँव (मय दानव का कला और शिल्प केन्द्र) .

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हनुमान लंगूर में पूँछ वहन

हनुमान लंगूर में पूँछ वहन एक सहज व्यवहार है और जैव वैज्ञानिक रूनवाल के अनुसार भारत के लंगूरों में इसकी कई शैलियाँ हैं। पूँछ वहन की इन शैलियों के आधार पर लंगूरों को समूहों में बांटा जा सकता है। पुरानी दुनिया का हनुमान लंगूर लगभग पूरे भारत में पाया जाता है, और हिन्दू इसे भगवन हनुमान का अवतार मानते हैं। फिलिप का कहना है कि भाषा और साहित्य में यह काले मूंह और लम्बी पूंछ वाला बंदर लांगुल का पर्याय है। प्राणी विज्ञान में लंगूर नरवानर गण में आता है, पहले इसका नाम प्रेसबाईटेस एंटेलस था और इसकी १६ किसमों का वर्णन है, किन्तु लगभग २००० के बाद इसका नाम सेमनोपीथेकस, और इसकी ज़्यादातर किस्मों को प्रजातियों में बदल दिया गया। अर्थात हनुमान लंगूर या प्रेसबाईटेस, जिसकी पूंछ की बात यहाँ हो रही है, उसे अब सेमनोपीथेकस कहते हैं। इस लेख के पहले भाग में लंगूरों में पूँछ वहन की चार मुख्य शैलियों का वर्णन, दूसरे भाग में हनुमान और लंगूर की पूँछ वहन शैलियों की तुलना, और अंत में बंदर की कुछ अन्य प्रजातियों की अनोखी पूँछों से परिचय है। .

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कमतरी गाँव, बाह (आगरा)

कमतरी बाह, आगरा, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। कार्मुक, धनुष-कमान, कमंठा चलाने में विशेषज्ञ कमठानों का पुर - भदावर में 1100 वि0 में कमंठाधारी भदौरिया कमतरी में जा बसे थे। 1692 वि0 में शाहजहाँ काल में उसके क्रूर पुत्र औरंगजेब का मथुरा पर आतंक फैला देखकर मथुरा से चक्रपाणि के पुत्र शिरोमणि चौबे यहाँ कमतरी में आकर बसे यह लेख हरिद्वार के पंडा की बही में है। .

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कोषड

कोषढ़ मध्यप्रदेश के भिंड जिले की अटेर तहसील, भारत20px में एक गांव है। कोषढ़ से इस जिला का मुख्य शहर भिंड 25.6 किमी है। कोषढ़ का पोस्ट ऑफिस ग्वालियर क्षेत्र के मुरैना डिवीजन के अंतर्गत आता है। यहाँ का पिन कोड 477555 है। कई साल पहले कोषढ़ चम्बल के तट पर एक बडा गांव था, जो नियमित बाढ़ की वजह से करीब बीस छोटे गांवों में बट गया था, यह मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश कि सीमा पर स्थित हैभदावर राज्य का खजाना कोषढ़ गांव में था। भदावर का कोष यही था इसीलिए इस गांव का नाम कोषढ़ पड़ा। कोषढ़ गांव की स्थापना श्री होडल शाह राव ने की थी। सन १६९२ की विषम परिस्थितियों में श्री हिम्मत सिंह भदौरिया का वंश, कोषढ़ छोड़ कर खरिक गाँव में बस गए थे श्री हिम्मत सिंह भदौरिया के जेष्ट पुत्र श्री कालू सिंह भदौरिया को गोहद पर विजय के उपलक्ष्य में शीर्खिपुर दिया गया और ये गाँव आज सरोखीपुरा के नाम से जाना जाता है। .

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