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ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र

सूची ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र

'''ब्रह्मोस''' विश्व की सबसे तीव्रगामी मिसाइल है। ब्रह्मोस एक कम दूरी की रैमजेट, सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइल है। इसे पनडुब्बी से, पानी के जहाज से, विमान से या जमीन से भी छोड़ा जा सकता है। रूस की एनपीओ मशीनोस्ट्रोयेनिया (NPO Mashinostroeyenia) तथा भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने संयुक्त रूप से इसका विकास किया है। यह रूस की पी-800 ओंकिस क्रूज मिसाइल की प्रौद्योगिकी पर आधारित है। ब्रह्मोस के समुद्री तथा थल संस्करणों का पहले ही सफलतापूर्वक परीक्षण किया जा चुका है तथा भारतीय सेना एवं नौसेना को सौंपा जा चुका है। ब्रह्मोस भारत और रूस के द्वारा विकसित की गई अब तक की सबसे आधुनिक प्रक्षेपास्त्र प्रणाली है और इसने भारत को मिसाइल तकनीक में अग्रणी देश बना दिया है। .

12 संबंधों: निर्भय क्रूज मिसाइल, ब्रह्मोस 2, भारत के वैदेशिक सम्बन्ध, भारतीय थलसेना, भारतीय मिसाइलों की सूची, राजपूत श्रेणी के विनाशक पोत, रॉकेट, सुखोई एसयू-३० एमकेआई, आई एन एस कोच्चि, आईएनएस राजपूत, आईएनएस कोलकाता, केंद्रीय आयुध भंडार

निर्भय क्रूज मिसाइल

निर्भय (अर्थात बिना भय) एक लंबी दूरी की सबसॉनिक क्रूज मिसाइल है। इसे भारत में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन द्वारा विकसित किया गया है। .

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ब्रह्मोस 2

ब्रह्मोस 2 (BrahMos-2) रूस की एनपीओ मशीनोस्त्रोयेनिया और भारत की रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन द्वारा वर्तमान में संयुक्त रूप से विकासाधीन एक हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। जो एक साथ ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड द्वारा गठित है। यह ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल श्रृंखला की दूसरी क्रूज मिसाइल है। ब्रह्मोस-2 की रेंज 290 किलोमीटर और मेक 7 की गति होने की संभावना है। उड़ान के क्रूज चरण के दौरान मिसाइल एक स्क्रैमजेट एयरब्रेस्टिंग जेट इंजन का प्रयोग करेगी। मिसाइल की उत्पादन लागत और भौतिक आयाम सहित अन्य विवरण, अभी तक प्रकाशित नहीं किए गए हैं। इस मिसाइल की 2020 तक परीक्षण के लिए तैयार होने की उम्मीद है। ब्रह्मोस-2 की योजनाबद्ध परिचालन सीमा 290 किलोमीटर तक सीमित कर दी गई है क्योंकि रूस मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) का एक हस्ताक्षरकर्ता सदस्य देश है, जो रूस को 300 किलोमीटर (190 मील। 160 एनएमआई) के ऊपर सीमाओं वाली मिसाइलों को विकसित करने में अन्य देशों की मदद से रोकता है। हालांकि, अब भारत एक मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था हस्ताक्षरकर्ता सदस्य देश बन गया है। इसकी शीर्ष गति वर्तमान ब्रह्मोस 1 की दोगुनी होगी। और यह दुनिया में सबसे तेज क्रूज मिसाइल होगी। ब्रह्मोस 2 को मेक 5 की गाति से पार करने के लिए रूस एक विशेष और गुप्त ईंधन सूत्र विकसित कर रहा है। अक्टूबर 2011 तक मिसाइल के कई रूपों का डिजाइन पूरा किया गया था। और 2012 में परीक्षण शुरू होने वाले थे। चौथी पीढ़ी के बहुउद्देश्यीय रूसी नौसेना विध्वंसक (प्रोजेक्ट 21956) को भी ब्रह्मोस 2 से लैस करने की संभावना है। ब्रह्मोस एयरोस्पेस ने भारत के पूर्व राष्ट्रपति ऐ॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम के सम्मान में मिसाइल को ब्रह्मोस-2 (के) का नाम दिया है। .

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भारत के वैदेशिक सम्बन्ध

किसी भी देश की विदेश नीति इतिहास से गहरा सम्बन्ध रखती है। भारत की विदेश नीति भी इतिहास और स्वतन्त्रता आन्दोलन से सम्बन्ध रखती है। ऐतिहासिक विरासत के रूप में भारत की विदेश नीति आज उन अनेक तथ्यों को समेटे हुए है जो कभी भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन से उपजे थे। शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व व विश्वशान्ति का विचार हजारों वर्ष पुराने उस चिन्तन का परिणाम है जिसे महात्मा बुद्ध व महात्मा गांधी जैसे विचारकों ने प्रस्तुत किया था। इसी तरह भारत की विदेश नीति में उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद व रंगभेद की नीति का विरोध महान राष्ट्रीय आन्दोलन की उपज है। भारत के अधिकतर देशों के साथ औपचारिक राजनयिक सम्बन्ध हैं। जनसंख्या की दृष्टि से यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्रात्मक व्यवस्था वाला देश भी है और इसकी अर्थव्यवस्था विश्व की बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ रूसी राष्ट्रपति, 34वाँ जी-8 शिखर सम्मेलन प्राचीन काल में भी भारत के समस्त विश्व से व्यापारिक, सांस्कृतिक व धार्मिक सम्बन्ध रहे हैं। समय के साथ साथ भारत के कई भागों में कई अलग अलग राजा रहे, भारत का स्वरूप भी बदलता रहा किंतु वैश्विक तौर पर भारत के सम्बन्ध सदा बने रहे। सामरिक सम्बन्धों की बात की जाए तो भारत की विशेषता यही है कि वह कभी भी आक्रामक नहीं रहा। 1947 में अपनी स्वतंत्रता के बाद से, भारत ने अधिकांश देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखा है। वैश्विक मंचों पर भारत सदा सक्रिय रहा है। 1990 के बाद आर्थिक तौर पर भी भारत ने विश्व को प्रभावित किया है। सामरिक तौर पर भारत ने अपनी शक्ति को बनाए रखा है और विश्व शान्ति में यथासंभव योगदान करता रहा है। पाकिस्तान व चीन के साथ भारत के संबंध कुछ तनावपूर्ण अवश्य हैं किन्तु रूस के साथ सामरिक संबंधों के अलावा, भारत का इजरायल और फ्रांस के साथ विस्तृत रक्षा संबंध है। भारत की विदेश नीति के निर्माण की अवस्था को निम्न प्रकार से समझा जा सकता हैः- .

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भारतीय थलसेना

भारतीय थलसेना, सेना की भूमि-आधारित दल की शाखा है और यह भारतीय सशस्त्र बल का सबसे बड़ा अंग है। भारत का राष्ट्रपति, थलसेना का प्रधान सेनापति होता है, और इसकी कमान भारतीय थलसेनाध्यक्ष के हाथों में होती है जो कि चार-सितारा जनरल स्तर के अधिकारी होते हैं। पांच-सितारा रैंक के साथ फील्ड मार्शल की रैंक भारतीय सेना में श्रेष्ठतम सम्मान की औपचारिक स्थिति है, आजतक मात्र दो अधिकारियों को इससे सम्मानित किया गया है। भारतीय सेना का उद्भव ईस्ट इण्डिया कम्पनी, जो कि ब्रिटिश भारतीय सेना के रूप में परिवर्तित हुई थी, और भारतीय राज्यों की सेना से हुआ, जो स्वतंत्रता के पश्चात राष्ट्रीय सेना के रूप में परिणत हुई। भारतीय सेना की टुकड़ी और रेजिमेंट का विविध इतिहास रहा हैं इसने दुनिया भर में कई लड़ाई और अभियानों में हिस्सा लिया है, तथा आजादी से पहले और बाद में बड़ी संख्या में युद्ध सम्मान अर्जित किये। भारतीय सेना का प्राथमिक उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद की एकता सुनिश्चित करना, राष्ट्र को बाहरी आक्रमण और आंतरिक खतरों से बचाव, और अपनी सीमाओं पर शांति और सुरक्षा को बनाए रखना हैं। यह प्राकृतिक आपदाओं और अन्य गड़बड़ी के दौरान मानवीय बचाव अभियान भी चलाते है, जैसे ऑपरेशन सूर्य आशा, और आंतरिक खतरों से निपटने के लिए सरकार द्वारा भी सहायता हेतु अनुरोध किया जा सकता है। यह भारतीय नौसेना और भारतीय वायुसेना के साथ राष्ट्रीय शक्ति का एक प्रमुख अंग है। सेना अब तक पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ चार युद्धों तथा चीन के साथ एक युद्ध लड़ चुकी है। सेना द्वारा किए गए अन्य प्रमुख अभियानों में ऑपरेशन विजय, ऑपरेशन मेघदूत और ऑपरेशन कैक्टस शामिल हैं। संघर्षों के अलावा, सेना ने शांति के समय कई बड़े अभियानों, जैसे ऑपरेशन ब्रासस्टैक्स और युद्ध-अभ्यास शूरवीर का संचालन किया है। सेना ने कई देशो में संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों में एक सक्रिय प्रतिभागी भी रहा है जिनमे साइप्रस, लेबनान, कांगो, अंगोला, कंबोडिया, वियतनाम, नामीबिया, एल साल्वाडोर, लाइबेरिया, मोज़ाम्बिक और सोमालिया आदि सम्मलित हैं। भारतीय सेना में एक सैन्य-दल (रेजिमेंट) प्रणाली है, लेकिन यह बुनियादी क्षेत्र गठन विभाजन के साथ संचालन और भौगोलिक रूप से सात कमान में विभाजित है। यह एक सर्व-स्वयंसेवी बल है और इसमें देश के सक्रिय रक्षा कर्मियों का 80% से अधिक हिस्सा है। यह 1,200,255 सक्रिय सैनिकों और 909,60 आरक्षित सैनिकों के साथ दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी स्थायी सेना है। सेना ने सैनिको के आधुनिकीकरण कार्यक्रम की शुरुआत की है, जिसे "फ्यूचरिस्टिक इन्फैंट्री सैनिक एक प्रणाली के रूप में" के नाम से जाना जाता है इसके साथ ही यह अपने बख़्तरबंद, तोपखाने और उड्डयन शाखाओं के लिए नए संसाधनों का संग्रह एवं सुधार भी कर रहा है।.

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भारतीय मिसाइलों की सूची

ब्रह्मोस मिसाइल भारत द्वारा विकसित मिसाइलों की एक सूची। .

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राजपूत श्रेणी के विनाशक पोत

भारतीय युद्ध पोत रणविजय भारतीय नौसेना के राजपूत श्रेणी के विनाशक पोत रूसी विनाशक पोत काशीन के आधुनिक वंशज हैं। यह श्रेणी भारतीय नौसेना की वह पहली विनाशक पोतो के श्रेणी है जिसे ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र से लेस किया गया हैं। .

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रॉकेट

अपोलो १५ अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण रॉकेट एक प्रकार का वाहन है जिसके उड़ने का सिद्धान्त न्यूटन के गति के तीसरे नियम क्रिया तथा बराबर एवं विपरीत प्रतिक्रिया पर आधारित है। तेज गति से गर्म वायु को पीछे की ओर फेंकने पर रॉकेट को आगे की दिशा में समान अनुपात का बल मिलता है। इसी सिद्धांत पर कार्य करने वाले जेट विमान, अंतरिक्ष यान एवं प्रक्षेपास्त्र विभिन्न प्रकार के राकेटों के उदाहरण हैं। रॉकेट के भीतर एक कक्ष में ठोस या तरल ईंधन को आक्सीजन की उपस्थिति में जलाया जाता है जिससे उच्च दाब पर गैस उत्पन्न होती है। यह गैस पीछे की ओर एक संकरे मुँह से अत्यन्त वेग के साथ बाहर निकलती है। इसके फलस्वरूप जो प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है वह रॉकेट को तीव्र वेग से आगे की ओर ले जाती है। अंतरिक्ष यानों को वायुमंडल से ऊपर उड़ना होता है इसलिए वे अपना ईंधन एवं आक्सीजन लेकर उड़ते हैं। जेट विमान में केवल ईँधन रहता है। जब विमान चलना प्रारम्भ करता है तो विमान के सिरे पर बने छिद्र से बाहर की वायु इंजन में प्रवेश करती है। वायु के आक्सीजन के साथ मिलकर ईँधन अत्यधिक दबाव पर जलता है। जलने से उत्पन्न गैस का दाब बहुत अधिक होता है। यह गैस वायु के साथ मिलकर पीछे की ओर के जेट से तीव्र वेग से बाहर निकलती है। यद्यपि गैस का द्रव्यमान बहुत कम होता है किन्तु तीव्र वेग के कारण संवेग और प्रतिक्रिया बल बहुत अधिक होता है। इसलिए जेट विमान आगे की ओर तीव्र वेग से गतिमान होता है। रॉकेट का इतिहास १३वी सदी से प्रारंभ होता है। चीन में राकेट विद्या का विकास बहुत तेज़ी से हुआ और जल्दी ही इसका प्रयोग अस्त्र के रूप में किया जाने लगा। मंगोल लड़ाकों के द्वारा रॉकेट तकनीक यूरोप पहुँची और फिर विभिन्न शासकों द्वारा यूरोप और एशिया के अन्य भागों में प्रचलित हुई। सन १७९२ में मैसूर के शासक टीपू सुल्तान ने अंग्रेज सेना के विरुद्ध लोहे के बने रॉकेटों का प्रयोग किया। इस युद्ध के बाद अंग्रेज सेना ने रॉकेट के महत्त्व को समझा और इसकी तकनीक को विकसित कर विश्व भर में इसका प्रचार किया। स्पेस टुडे पर--> .

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सुखोई एसयू-३० एमकेआई

सुखोई ३० एमकेआई भारतीय वायुसेना का अग्रिम पन्क्ति का लड़ाकू विमान है। यह बहु-उपयोगी लड़ाकू विमान रूस के सैन्य विमान निर्माता सुखोई तथा भारत के हिन्दुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड के सहयोग से बना है। इस के नाम में स्थित एम के आई का विस्तार मॉडर्नि रोबान्बि कॉमर्स्कि इंडिकि (модернизированный коммерческий индийский) है यानि आधुनिक व्यावसायिक भारतीय (विमान)। इसी श्रृंखला के सुखोई ३०-एमकेके तथा एमके२ विमानों को चीन तथा बाद में इण्डोनेशिया को बेचा गया था। इसके अलावा एमकेएम, एमकेवी तथा एमकेए संस्करणों को मलेशिया, वेनेजुएला तथा अल्जीरिया को भी बेचा गया है। विमान ने सन १९९७ में पहली उड़ान भरी थी। सन २००२ में इसे भारतीय वायुसेना में सम्मिलित कर लिया गया। सन २००४ से इनका निर्माण भारत में ही हिन्दुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है। यह एक ४++ पीढ़ी का लडाकू विमान है। अकतूबर २००९ में ऐसे १०५ विमानो की ६ स्क्वाड्रन भारतीय वायुसेना की सेवा में थी। ऐसे कुल २८० विमान हिन्दुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा बनाये जाने की योजना है। यह विमान ३००० किमी की दूरी तक जा कर हमला कर सकता है। इसे शक्ति इसके दो एएल-३१ तर्बोफैन इन्जनो से मिलती है जो इसे २६०० किमी प्रति घण्टे की गति देते हैं। यह विमान हवा में ईन्धन भर सकता है। इस विमान में अलग अलग तरह के बम तथा प्रक्षेपास्त्र ले जाने के लिये १२ स्थान है। भविष्य में इसे ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र से लैस किया जायेगा। इसके अतिरिक्त इसमे एक ३० मिमि की तोप भी लगी है। .

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आई एन एस कोच्चि

आई एन एस कोच्चि के कमीशन समारोह का दृष्य.

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आईएनएस राजपूत

आईएनएस राजपूत (INS Rajput) भारतीय नौसेना के प्रारंभिक ध्वंसक पोतों में से एक है जिसका पहचान क्रमांक डी-५१ (D-51) है। एक निर्देशित-मिसाइल विध्वंसक है और भारतीय नौसेना के राजपूत श्रेणी के विध्वंसक बेड़े का प्रमुख पोत है। यह 30 सितंबर 1980 को कमीशन की गई थी। कमोडोर (बाद में वाइस एडमिरल) गुलाब मोहनलाल हीरानंदानी इसके पहले कमांडिंग ऑफिसर थे। आईएनएस राजपूत ने ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल के लिए एक परीक्षण मंच के रूप में कार्य किया। दो पी-20 एम ने एकल लांचर (पोर्ट और स्टारबोर्ड) को दो बॉक्सिंग लांचरों से बदल दिया गया था, प्रत्येक में दो ब्रह्मोस सेल थे। पृथ्वी-३ मिसाइल के एक नए संस्करण का मार्च 2007 में राजपूत से परीक्षण किया गया था। यह भूमि के लक्ष्यों पर हमला करने के साथ टास्कफोर्स या वाहक एस्कॉर्ट के रूप में एन्टी-विमान और एंटी-पनडुब्बी मिसाइल लॉन्च करने में सक्षम है। राजपूत ने 2005 में एक सफल परीक्षण के दौरान धनुष बैलिस्टिक मिसाइल को ट्रैक किया। .

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आईएनएस कोलकाता

आईएनएस कोलकाता - डी-63, भारत में अब तक तैयार किया गया सर्वाधिक ताकतवर युद्धपोत माना जाता है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 16-अगस्त, 2014 को मुंबई स्थित नौसेना गोदी में ‘आईएनएस कोलकाता’ भारतीय नौसेना को सौंपा। इसमें लगी ज्यादातर प्रणालियां स्वदेश निर्मित हैं जिनमें सीएमएस, एसीएस, एपीएमएस, फोल्डेबल हैंगर डोर, हेलो ट्रैवर्सिंग सिस्टम और एचयूएमएसए एनर्जी प्रणाली प्रमुख हैं। आईएनएस कोलकाता की एक अन्य खासियत है कि यह नाविकगण के लिए अत्यंत आरामदेह है। .

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केंद्रीय आयुध भंडार

केंद्रीय आयुध भंडार महाराष्ट्र के वर्धा जिल के पुलगांव में स्थित भारतीय सेना का सबसे बड़ा आयुध भंडार है जो कि लगभग 7,000-10,000 एकड़ में फैला है। इसकी गिनती एशिया के सबसे बड़े आयुध भंडारों में होती है। भारतीय सेना के कुल 12 आयुध भंडार हैं, जिनमें 11 फील्ड आयुध भंडार तथा एक केंद्रीय आयुध भंडार हैं। केंद्रीय आयुध भंडार नागपुर से 115 किलोमीटर दूर पुलगांव में स्थित है जिसमें सेना के सभी हथियारों व गोल बारूद का भंडारण किया जाता है। नागपुर से पुलगांव 1 घंटे की दूरी पर है। देश की विभिन्न आयुध फैक्ट्रियों में बनने वाले हथियार पहले केंद्रीय भंडार में लाए जाते हैं जहां से उन्हें अग्रिम ठिकानों पर भेजा जाता है। इस भंडार में बमों, हथगोलों, गोलों, रायफलों, मिसाइलों और अन्य विस्फोटक सामग्री का विशाल भंडार है। अपनी निर्धारित अवधि पार कर चुके हथियारों को नष्ट करने का काम भी इसी आयुध भंडार द्वारा किया जाता है। ब्रह्मोस मिसाइल, एके 47 भी इस आयुध भंडार में रखे जाते हैं। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

ब्रह्मोस, ब्रह्मोस 1, ब्रह्मोस मिसाइल, ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का सफल परीक्षण

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