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ब्रह्मगुप्त

सूची ब्रह्मगुप्त

ब्रह्मगुप्त का प्रमेय, इसके अनुसार ''AF'' .

54 संबंधों: चक्रवाल विधि, डायोफैंटीय समीकरण, त्रिकोणमिति, द्विघात समीकरण, प्रबोध चन्द्र सेनगुप्त, पेल का समीकरण, ब्रह्मगुप्त प्रमेय, ब्रह्मगुप्त मैट्रिक्स, ब्रह्मगुप्त सर्वसमिका, ब्रह्मगुप्त का सूत्र, ब्रह्मगुप्त अन्तर्वेशन सूत्र, ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त, बीजगणित, बीजगणित (संस्कृत ग्रन्थ), भारत में मापन प्रणालियों का इतिहास, भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, भारत के प्राचीन वैज्ञानिक, भारतीय ज्योतिष, भारतीय ज्योतिषी, भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का इतिहास, भारतीय व्यक्तित्व, भारतीय गणित, भारतीय गणित का इतिहास, भारतीय गणितज्ञों की सूची, भारतीय अंक प्रणाली, भाष्य, भास्कराचार्य, भिन्न, भीनमाल, महावीर (गणितज्ञ), मापयंत्रण, मंजुल भार्गव, यन्त्र (संस्कृत), राफेल बम्बेली, लल्ल, शंकर बालकृष्ण दीक्षित, शंकुक, श्रीधराचार्य, शून्य, शून्य से भाजन, साँचे:ज्यामिति, सांयोगिकी का इतिहास, सिविल इंजीनियरी, संस्कृत ग्रन्थों की सूची, हिन्दू मापन प्रणाली, ज्या, ज्यामिति का इतिहास, वर्ग समीकरण, खण्डखाद्यक, गणित का इतिहास, ..., आर्यभट, आर्यभट्ट द्वितीय, आर्यभटीय, अनिर्धार्य समीकरण सूचकांक विस्तार (4 अधिक) »

चक्रवाल विधि

चक्रवाल विधि अनिर्धार्य वर्ग समीकरणों (indeterminate quadratic equations) को हल करने की चक्रीय विधि है। इसके द्वारा पेल के समीकरण का भी हल निकल जाता है। इसके आविष्कार का श्रेय प्राय भास्कर द्वितीय को दिया जाता है किन्तु कुछ लोग इसका श्रेय जयदेव (950 ~ 1000 ई) को भी देते हैं। इस विधि का नाम 'चक्रवाल' (चक्र की तरह वलयिय (भ्रमण)) इसलिए पड़ा है क्योंकि इसमें कुट्टक से गुण लब्धि के बाद पुनः वर्गप्रकृति और पुनः कुट्टक किया जाता है। ६२८ ई में ब्रह्मगुप्त ने x और y के सबसे छोटे पूर्णांकों के लिए इसका हल निकाला था। वे N के कुछ ही मानों के लिये इसका हल निकाल सके, सभी के लिये नहीं। जयदेव (गणितज्ञ) और भास्कर (१२वीं शताब्दी) ने चक्रवाल विधि का उपयोग करते हुए इस समीकरण का सबसे पहले हल प्रस्तुत किया था। उन्होने निम्नलिखित समीकरण का हल दिया है- उनके द्वारा निम्नलिखित हल दिया गया है- यह समस्या बहुट कठिन समस्या है क्योंकि x और y के मान बहुत बड़े आते हैं। इसकी कठिनाई का अनुमान इससे ही लगाया जा सकता है कि यूरोप में इसका हल विलियम ब्राउंकर (William Brouncker) ने १६५७-५८ में जाकर निकाला था। अपने बीजगणित नामक ग्रन्थ में भास्कराचार्य ने चक्रवाल विधि का वर्णन इस प्रकार किया है- .

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डायोफैंटीय समीकरण

पूर्णांक भुजाओं वाले सभी समकोण त्रिभुज प्राप्त करना एक प्रकार से डायोफैंटीय समीकरण a^2+b^2.

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त्रिकोणमिति

किसी दूरस्थ और सीधे मापन में कठिनाई वाले सर्वेक्षण के लिए समरूप त्रिभुज के उपयोग का उदाहरण (1667) त्रिकोणमिति गणित की वह शाखा है जिसमें त्रिभुज और त्रिभुजों से बनने वाले बहुभुजों का अध्ययन होता है। त्रिकोणमिति का शब्दिक अर्थ है 'त्रिभुज का मापन'। त्रिकोणमिति में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है समकोण त्रिभुज का अध्ययन। त्रिभुजों और बहुभुजों की भुजाओं की लम्बाई और दो भुजाओं के बीच के कोणों का अध्ययन करने का मुख्य आधार यह है कि समकोण त्रिभुज की किन्ही दो भुजाओं (आधार, लम्ब व कर्ण) का अनुपात उस त्रिभुज के कोणों के मान पर निर्भर करता है। त्रिकोणमिति का ज्यामिति की प्रसिद्ध बौधायन प्रमेय (पाइथागोरस प्रमेय) से गहरा सम्बन्ध है। .

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द्विघात समीकरण

वर्ग समीकरण x^2 -5 x + 6 .

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प्रबोध चन्द्र सेनगुप्त

प्रबोध चन्द्र सेनगुप्त (1876 – 1962) प्राचीन भारतीय खगोलविज्ञान के इतिहासकार थे। वे कोलकाता के बेथुने कॉलेज में गणित के प्रोफेसर तथा कोलकाता विश्वविद्यालय में भारतीय खगोलिकी एवं गणित के प्रवक्ता थे। .

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पेल का समीकरण

निम्नलिखित स्वरूप वाले समीकरण को पेल् का समीकरण (Pell's equation) कहते हैं- जहाँ n एक धनात्मक अवर्ग पूर्णांक है। इस समीकरण में आये x और y के लिये पूर्णांक हल वांचित होता है। भारत में इस तरह के समीकरणों को वर्ग-प्रकृति कहते थे। ब्रह्मगुप्त ने ऐसे समीकरणों का विस्तृत अध्ययन किया था तथा पेल से १००० वर्ष पहले ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त में इसके हल की चक्रवाल विधि बतायी थी। इनके हल के लिये ब्रह्मगुप्त ने दो प्रमेयिकाओं (लेम्माज) की खोज की थी जिन्हें 'भावना' कहा गया है। .

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ब्रह्मगुप्त प्रमेय

ब्रह्मगुप्त प्रमेय ज्यामिति का एक प्रमेय है। इसके अनुसार यदि किसी चक्रीय चतुर्भुज के विकर्ण परस्पर लम्बवत हों तो इन विकर्णों के प्रतिच्छेद बिन्दु से इस चतुर्भुज के किसी भुजा पर खींचा गया लम्ब उस भुजा के सामने वाली भुजा को समद्विभाजित करता है। यह प्रमेय भारत के महान गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने दिया था। दूसरे शब्दों में, माना कि A, B, C तथा D किसी वृत्त की परिधि पर स्थित हैं तथा रेखाएँ AC व BD परस्पर लम्बवत हैं। AC तथा BD का प्रतिच्छेद बिन्दु M है। M से रेखा BC पर लम्ब डालो जो इसे E बिन्दु पर मिलता है। EM को आगे बढ़ाने पर यह AD को F पर मिलती है। तो इस प्रमेय के अनुसार बिन्दु F रेखा AD का मध्य बिन्दु होगा। इसी को ब्रह्मगुप्त में श्लोक में कुछ इस प्रकार अभिव्यक्त किया है- .

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ब्रह्मगुप्त मैट्रिक्स

गणित में निम्नलिखित मैट्रिक्स को ब्रह्मगुप्त मैट्रिक्स कहते हैं। यह भारत के महान गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त द्वारा प्रतिपादित की गयी थी। x & y \\ \pm ty & \pm x \end.

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ब्रह्मगुप्त सर्वसमिका

ब्रह्मगुप्त सर्वसमिका भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त द्वारा है। यह सर्वसमिका दो योगों का गुणनफल, जिनमें प्रत्येक गुणक स्वयं दो वर्गों का योग हो, को दो वर्गों के योग के रूप में अभिव्यक्त करती है। \left(a^2 + b^2\right)\left(c^2 + d^2\right) & .

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ब्रह्मगुप्त का सूत्र

ब्रह्मगुप्त का सूत्र किसी चक्रीय चतुर्भुज का क्षेत्रफल निकालने का सूत्र है यदि उसकी चारों भुजाएँ ज्ञात हों। उस चतुर्भुज को चक्रीय चतुर्भुज कहते हैं जिसके चारों शीर्षों से होकर कोई वृत्त खींचा जा सके।I .

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ब्रह्मगुप्त अन्तर्वेशन सूत्र

ब्रह्मगुप्त का अन्तर्वेशन सूत्र (Brahmagupta's interpolation formula) भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त द्वारा प्रस्तुत एक अन्तर्वेशन सूत्र है जो दो घात वाले बहुपद का उपयोग करता है। इस अन्तर्वेशन का वर्णन उनके प्रसिद्ध ग्रन्थ खण्डखाद्यक के परिशिष्ट में आया है। यही श्लोक ब्रह्मगुप्त द्वारा इससे पहले रचित 'ध्यान-ग्रह-अधिकार' में भी आता है किन्तु उसकी रचनाकाल अनिश्चित है। इसी कि निम्नलिखित आधुनिक रूप में लिख सकते हैं- \begin f(a) & .

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ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त

ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त, ब्रह्मगुप्त की प्रमुख रचना है। यह संस्कृत मे है। इसकी रचना सन ६२८ के आसपास हुई। ध्यानग्रहोपदेशाध्याय को मिलाकर इसमें कुल पचीस (२५) अध्याय हैं। यह ग्रन्थ पूर्णतः काव्य रूप में लिखा गई है। 'ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त' का अर्थ है - 'ब्रह्मगुप्त द्वारा स्फुटित (प्रकाशित) सिद्धान्त'। इस ग्रन्थ में अन्य बातों के अलावा गणित के निम्नलिखित विषय वर्णित हैं-.

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बीजगणित

बीजगणित (संस्कृत ग्रन्थ) भी देखें। ---- आर्यभट बीजगणित (algebra) गणित की वह शाखा जिसमें संख्याओं के स्थान पर चिन्हों का प्रयोग किया जाता है। बीजगणित चर तथा अचर राशियों के समीकरण को हल करने तथा चर राशियों के मान निकालने पर आधारित है। बीजगणित के विकास के फलस्वरूप निर्देशांक ज्यामिति व कैलकुलस का विकास हुआ जिससे गणित की उपयोगिता बहुत बढ़ गयी। इससे विज्ञान और तकनीकी के विकास को गति मिली। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय ने कहा है - अर्थात् मंदबुद्धि के लोग व्यक्ति गणित (अंकगणित) की सहायता से जो प्रश्न हल नहीं कर पाते हैं, वे प्रश्न अव्यक्त गणित (बीजगणित) की सहायता से हल कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में, बीजगणित से अंकगणित की कठिन समस्याओं का हल सरल हो जाता है। बीजगणित से साधारणतः तात्पर्य उस विज्ञान से होता है, जिसमें संख्याओं को अक्षरों द्वारा निरूपित किया जाता है। परंतु संक्रिया चिह्न वही रहते हैं, जिनका प्रयोग अंकगणित में होता है। मान लें कि हमें लिखना है कि किसी आयत का क्षेत्रफल उसकी लंबाई तथा चौड़ाई के गुणनफल के समान होता है तो हम इस तथ्य को निमन प्रकार निरूपित करेंगे— बीजगणिति के आधुनिक संकेतवाद का विकास कुछ शताब्दी पूर्व ही प्रारंभ हुआ है; परंतु समीकरणों के साधन की समस्या बहुत पुरानी है। ईसा से 2000 वर्ष पूर्व लोग अटकल लगाकर समीकरणों को हल करते थे। ईसा से 300 वर्ष पूर्व तक हमारे पूर्वज समीकरणों को शब्दों में लिखने लगे थे और ज्यामिति विधि द्वारा उनके हल ज्ञात कर लेते थे। .

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बीजगणित (संस्कृत ग्रन्थ)

बीजगणित, भास्कर द्वितीय की रचना है। इसमें बीजगणित (algebra) की चर्चा है। यह सिद्धान्तशिरोमणि का द्वितीय भाग है। अन्य भाग हैं - लीलावती, ग्रहगणित तथा गोलाध्याय। इस ग्रन्थ में भास्कराचार्य ने अनिर्धार्य द्विघात समीकरणों के हल की चक्रवाल विधि दी है। यह विधि जयदेव की विधि का भी परिष्कृत रूप है। जयदेव ने ब्रह्मगुप्त द्वारा दी गयी अनिर्धार्य द्विघात समीकरणों के हल की विधि का सामान्यीकरण किया था। यह विश्व की पहली पुस्तक है जिसमें स्पष्ट उल्लेख है कि धनात्मक संख्याओं के दो वर्गमूल होते हैं। .

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भारत में मापन प्रणालियों का इतिहास

समय-मापन की हिन्दू इकाइयाँ (लघुगणकीय पैमाने पर प्रदर्शित) भारत में मापन प्रणालियों का इतिहास बहुत पुराना है। सिन्धु घाटी की सभ्यता में प्राप्त कुछ सबसे प्राचीन मापक नमूने ५वीं सहराब्दी ईसापूर्व के हैं। संस्कृत कें 'शुल्ब' शब्द का अर्थ 'नापने की रस्सी' या डोरी होता है। अपने नाम के अनुसार शुल्ब सूत्रों में यज्ञ-वेदियों को नापना, उनके लिए स्थान का चुनना तथा उनके निर्माण आदि विषयों का विस्तृत वर्णन है। नीलकण्ठ सोमयाजि ने अपने ज'योतिर्मीमांसा' नामक ग्रन्थ में लिखा है कि ज्योतिष के ऐसे ग्रन्थ ही अनुसरण करना चाहिए जो वास्तविक प्रेक्षणों से मेल खाते हैं। .

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भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी

भारत के प्रथम रिएक्टर '''अप्सरा''' तथा प्लुटोनियम संस्करण सुविधा का अमेरिकी उपग्रह से लिया गया चित्र (१९ फरवरी १९६६) भारतीय विज्ञान की परंपरा विश्व की प्राचीनतम वैज्ञानिक परंपराओं में एक है। भारत में विज्ञान का उद्भव ईसा से 3000 वर्ष पूर्व हुआ है। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त सिंध घाटी के प्रमाणों से वहाँ के लोगों की वैज्ञानिक दृष्टि तथा वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोगों का पता चलता है। प्राचीन काल में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत, खगोल विज्ञान व गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट द्वितीय और रसायन विज्ञान में नागार्जुन की खोजों का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। इनकी खोजों का प्रयोग आज भी किसी-न-किसी रूप में हो रहा है। आज विज्ञान का स्वरूप काफी विकसित हो चुका है। पूरी दुनिया में तेजी से वैज्ञानिक खोजें हो रही हैं। इन आधुनिक वैज्ञानिक खोजों की दौड़ में भारत के जगदीश चन्द्र बसु, प्रफुल्ल चन्द्र राय, सी वी रमण, सत्येन्द्रनाथ बोस, मेघनाद साहा, प्रशान्त चन्द्र महलनोबिस, श्रीनिवास रामानुजन्, हरगोविन्द खुराना आदि का वनस्पति, भौतिकी, गणित, रसायन, यांत्रिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान है। .

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भारत के प्राचीन वैज्ञानिक

पाश्चात्य वैज्ञानिकों के बारे मे विश्व के अधिकाँश लोगों को काफी जानकारी है। विद्यालयों मे भी इस विषय पर काफी कुछ पढ़ाया जाता है। पर बड़े खेद की बात है कि प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिकों के बारे मे आज भी संसार बहुत कम जानता है। हमारे देश के विद्यार्थियों को भी अपने देश के चरक, सुश्रुत, आर्यभट तथा भास्कराचार्य आदि चोटी के प्राचीन वैज्ञानिकों के कृतित्व की जानकारी शायद नहीं होगी। आचार्य कणाद परमाणु संरचना पर सर्वप्रथम प्रकाश डालने वाले महापुरूष आचार्य कणाद का जन्म ६०० ईसा पूर्व हुआ थाI उनका नाम आज भी डॉल्टन के साथ जोडा जाता हैं, क्योंकि पहले कणाद ने बताया था कि पदार्थ अत्यन्त सूक्ष्म कणों से बना हुआ हैंI उनका यह विचार दार्शनिक था, उन्होंने इन सूक्ष्म कणों को परमाणु नाम दियाI बाद में डॉल्टन ने परमाणु का सिद्धांत प्रस्तुत कियाI परमाणु को अंग्रेजी भाषा में एटम कहते हैंI कणाद का कहना था– "यदि किसी पदार्थ को बार-बार विभाजित किया जाए और उसका उस समय तक विभाजन होता रहे, जब तक वह आगे विभाजित न हो सके, तो इस सूक्ष्म कण को परमाणु कहते हैंI परमाणु स्वतंत्र रूप से नहीं रह सकतेI परमाणु का विनाश कर पाना भी सम्भव नहीं हैंI" बौधायन, चरक, कौमारभृत्य जीवक, सुश्रुत, आर्यभट, वराह मिहिर, ब्रह्मगुप्त, वाग्भट, नागार्जुन भास्कराचार्य .

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भारतीय ज्योतिष

नक्षत्र भारतीय ज्योतिष (Indian Astrology/Hindu Astrology) ग्रहनक्षत्रों की गणना की वह पद्धति है जिसका भारत में विकास हुआ है। आजकल भी भारत में इसी पद्धति से पंचांग बनते हैं, जिनके आधार पर देश भर में धार्मिक कृत्य तथा पर्व मनाए जाते हैं। वर्तमान काल में अधिकांश पंचांग सूर्यसिद्धांत, मकरंद सारणियों तथा ग्रहलाघव की विधि से प्रस्तुत किए जाते हैं। कुछ ऐसे भी पंचांग बनते हैं जिन्हें नॉटिकल अल्मनाक के आधार पर प्रस्तुत किया जाता है, किंतु इन्हें प्राय: भारतीय निरयण पद्धति के अनुकूल बना दिया जाता है। .

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भारतीय ज्योतिषी

भारतीय ज्योतिषी से अभिप्राय उन ग्रंथकारों से है जिन्होंने अपने ग्रंथ, भारत में विकसित ज्योतिष प्रणाली के आधार पर लिखे। प्राचीन काल के ज्योतिषगणना संबंधी कुछ ग्रंथ ऐसे हैं, जिनके लेखकों ने अपने नाम नहीं दिए हैं। ऐसे ग्रंथ हैं वेदांग ज्योतिष (काल ई पू 1200); पंचसिद्धांतिका में वर्णित पाँच ज्योतिष सिद्धांत ग्रंथ। कुछ ऐसे भी ज्योतिष ग्रंथकार हुए हैं जिनके वाक्य अर्वाचीन ग्रंथों में उद्धृत हैं, किंतु उनके ग्रंथ नहीं मिलते। उनमें मुख्य हैं नारद, गर्ग, पराशर, लाट, विजयानंदि, श्रीषेण, विष्णुचंद आदि। अलबेरूनी के लेख के आधार पर लाट ने मूल सूर्यसिद्धांत के आधार पर इसी नाम के एक ग्रंथ की रचना की है। श्रीषेण के मूल वसिष्ठ सिद्धांत के आधार पर वसिष्ठ-सिद्धांत लिखा। ये सब ज्योतिषी ब्रह्मगुप्त (शक संवत् 520) से पूर्व हुए है। श्रीषेण आर्यभट के बाद तथा ब्रह्मगुप्त से पूर्व हुए हैं। प्रसिद्ध ज्योतिषियों का परिचय निम्नलिखित है:;आर्यभट प्रथम;वराहमिहिर;ब्रह्मगुप्त;मनु रचनाकाल: शक संवत् 800 के लगभग, ग्रंथ: बृहन्मानसकरण।;विटेश्वर रचनाकाल: शंक संवत् 821, ग्रंथ: करणसार।;बटेश्वर इन्होंने सिद्धांत बटेश्वर लिखा है, जिसे हाल ही में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑव ऐस्ट्रोनॉमिकल ऐंड संस्कृत रिसर्च, नई दिल्ली, ने छपाया है। अलबेरुनी के पास इस ग्रंथ का एक अरबी अनुवाद था और उसने इसकी बहुत प्रंशसा की है। इसकी ज्याप्रणाली अन्य सिद्धांतों की ज्याप्रणाली से सूक्ष्म है। कुछ विद्वानों के अनुसार वित्तेश्वर और बटेश्वर एक ही व्यक्ति थे।;मुंजाल इनका रचनाकाल शक संवत् 854 है। इनका उपलब्ध ग्रंथ लघुमानसकरण है। इन्होंने अयनगति 1 कला मानी है। अयनगति के प्रसंग में भास्कराचार्य ने इनका नाम लिया है। मुनीश्वर ने मरीचि में अयनगति विषयक इनके कुछ श्लोक उद्धृत किए हैं, जो लघुमानस के नहीं हैं। इससे पता चलता है कि मुंजाल का एक और मानस नामक ग्रंथ था, जो उपलब्घ नहीं है।;आर्यभट द्वितीय;चतुर्वेद पृथूदक स्वामी, रचनाकाल: 850-900 शक संवत् के भीतर। ग्रंथ: ब्रह्मस्फुटसिद्धांत की टीका।;विजयनंदि रचनाकाल: शक सं 888। ग्रंथ: करणतिलक।;श्रीपति इनका रचनाकाल शक सं 961 हैं। इन्होंने सिद्धांतशेखर तथा धीकोटिदकरण नामक गणित ज्योतिष विषयक और रत्नमाला नामक मुहूर्त्त विषयक ग्रंथ लिखा है। सुधाकर द्विवेदी के अनुसार इनका रत्नसार नामक एक अन्य मुहूर्त ग्रंथ भी है। इनकी विशेषता यह है कि इन्होंने ज्याखंडों के बिना केवल चाप के अंशों से ज्यासाधन किया है। ये नागदेव के पुत्र थे।;वरुण रचनाकाल: शक सं 962। ग्रंथ: खंडखाद्य टीका।;भोजराज इनका रचनाकाल शक सं 964 है। इनका ग्रंथ राजमृगांक है। इसमें इन्होंने ब्रह्मगुप्त के सिद्धांत के लिये बीजसंस्कारों को निकाला है।;दशबल इनका रचनाकाल शक सं 980 है। इसका ग्रंथ करणकमलमार्तंड है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें सारणियाँ दी गई हैं, जिनसे ग्रहों की गणना सुगम हो जाती है।;ब्रह्मदेव गणक इनके पिता का नाम चंद्र था। ये मथुरा के रहनेवाले थे। इनका रचनाकाल शक सं 1014 है। इन्होंने करणप्रकाश नामक ग्रंथ लिखा है। इन्होंने आर्यभटीयम् की गतियों में लल्ल के बीजसंस्कार करके उसे ग्रहण किया है। इनका शून्यायनांश वर्ष शक सं 445 है। इन्होंने अयनगति 1 कला मानी है1;शतानंद जगन्नाथपुरी निवासी शतानंद का रचनाकाल शक सं 1021 है। इनका प्रसिद्ध ग्रंथ भास्वतीकरण है। इनका शून्यायनांश वर्ष 450 तथा अयनगति 1 कला है। इन्होंने अहर्गण का साधन स्पष्ट मेष से किया है। इनकी विशेषता यह है कि इन्होंने ग्रहगतियों को शतांश अथवा प्रति शत में रखा है, जिससे गणित करने में सरलता हो जाती है। यह पद्धति आधुनिक दशमलव प्रणाली जैसी है1;महेश्वर प्रसिद्ध गणित ज्योतिषी भास्कराचार्य के पिता तथा गुरु, महेश्वर, का जन्मकाल शक सं 1000 के लगभग है। शेखर इनका गणितज्योतिष का ग्रंथ है। इनके अन्य ग्रंथ हैं। लघुजातकटीका, वृत्तशत, प्रतिष्ठाविधिदीपक।;सोमेश्वर तृतीय इनके अन्य नाम हैं भूलोक मल्ल और सर्वज्ञभूपाल। ये चालुक्य वंश के राजा थे। इन्होंने शक सं 1051 में अभिलाषितार्थचिंतामणि नामक ग्रंथ लिखा।;भास्कराचार्य;वाविलालकोच्चन्ना रचनाकाल: शक संवत् 1220। इन्होंने सूर्यसिद्धांत के आधार पर एक करणग्रंथ लिखा है।;महादेव प्रथम ये गुजराती ब्राह्मण थे। शक संवत् 1238 में इन्होंने चक्रेश्वर नामक ज्योतिषी द्वारा आरंभ किए हुए, ग्रहसिद्धि नामक सारणीग्रंथ को पूर्ण किया।;महादेव तृतीय ये त्र्यंबक की राजसभा के पंडित, बोपदेव, के पुत्र थे। इन्होंने शक संवत् 1289 में कामधेनुकरण नामक ग्रंथ लिखा।;नार्मद रचनाकाल: शक संवत् 1300। रचना: सूर्यसिद्धांत टीका।;पद्नाभ रचनाकाल: शक संवत् 1320। रचना: यंत्ररत्नावली, जिसके द्वितीय अध्याय में प्रसिद्ध ध्रुवमय यंत्र है।;लल्ल पं सुधाकर द्विवेदी ने इनका रचनाकाल शक संवत् 421 तथा केर्न ने शक संवत् 420 माना है, किंतु बालशंकर दीक्षित के अनुसार इनका काल लगभग शक संवत् 560 है। इन्होंने आर्यभटीय के आधार पर अपना शिष्यधीवृद्धिदतंत्र नामक ग्रहगणित का ग्रंथ लिखा है। प्रत्यक्ष वेध द्वारा इन्होंने कुछ बीज संस्कारों का वर्णन किया है। भास्कराचार्य ने सिद्धांतशिरोमणि में कई स्थानों पर इनके गणनासूत्रों की अशुद्धियाँ दिखलाई हैं।;दामोदर रचनाकाल: शक सं 1339, ग्रंथ: भट्टतुल्य। इसकी ग्रहगणना आर्यभट सरीखी है।;गंगाधर रचनाकाल: शक सं 1356। ग्रंथ: चंद्रमान।;मकरंद रचनाकाल: शक सं 1400। इन्होंने सूर्यसिद्धांत के अनुसार सारणियाँ बनाईं, जो बहुत प्रसिद्ध है। आज भी बहुत से पंचांग इनके आधार पर बनते हैं।;केशव प्रसिद्ध ग्रहलाघवाकार गणेश के पिता केशव का रचनाकाल 1418 ई सं के लगभग है। इन्होंने करणग्रंथ ग्रहकौतुक लिखा। ये बहुत निपुण वेधकर्त्ता थे। इन्होंने अपने ग्रंथ में प्रत्यक्ष वेध द्वारा अन्य सिद्धांतकारों के ग्रहगणित की अशुद्धियों का निर्देश किया है।;गणेश केशव के पुत्र गणेश का जन्मकाल 1420 शक सं के लगभग है। इनके ग्रंथ हैं ग्रहलाघव, लघुतिथि चिंतामणि, बृहत्तिथिचिंतामणि, सिद्धांतशिरोमणि टीका, लीलावती टीका, विवाहवृंदावन टीका, मुहूर्तत्व टीका, श्राद्धनिर्णय, छंदोर्णव, टीका, तर्जनीयंत्र, कृष्णाष्टमीनिर्णय, होलिकानिर्णय, लघुपाय पात आदि। इनकी कीर्ति का मुख्य स्तंभ है ग्रहलाघवकरण। सिद्धांतग्रंथों में वर्ण्य प्राय: सभी विषय इसमें हैं। इसकी विशेषता यह है कि इसमें ज्या चाप की गणना के बिना ही सब गणना की गई है और यह अत्यंत शुद्ध है। ये बहुत अच्छे वेधकर्ता थे। इन्होंने अपने पिता के वेधों से भी लाभ उठाया। इसीलिये इन्होंने एक ऐसी गणनाप्रणाली निकाली जो अति सरल होते हुए भी बहुत शुद्ध थी। इनके ग्रंथ के आधार पर भारत में बहुत से पंचांग बनते हैं। ग्रहलाघव की अनेक टीकाएँ हो चुकी हैं।;लक्ष्मीदास रचनाकाल: शक सं 1422, रचना: सिद्धांतशिरोमणि के गणिताध्याय तथा गोलाध्याय की उदाहरण सहित टीका।;ज्ञानराज इनका रचनाकाल शक सं 1425 है। इनका ग्रंथ सुंदरसिद्धांत है। इसके दो मुख्य भाग हैं: गणिताध्याय तथा गोलाध्याय। ग्रहगणित के लिये इन्होंने करणग्रंथों की तरह क्षेपक तथा वर्षगतियाँ भी दी हैं। कहीं कहीं पर इनकी उपपत्तियाँ भास्करसिद्धांत से विशिष्ट हैं। इन्होंने यंत्रमालाधिकार में एक नवीन यंत्र बनाया है।;सूर्य इनका जनम शक सं 1430 है। ये ज्ञानराज के पुत्र थे। इन्होंने गणित ज्योतिष के सूर्यप्रकाश, लीलावती टीका, बीज टीका, श्रीपतिपद्धतिगणित, बीजगणित, नामक ग्रंथों की रचना की है। कोलब्रुक के अनुसार इन्होंने सिद्धांतशिरोमणि टीका तथा गणितमालती ग्रंथ भी बनाए हैं। इनका एक और ग्रंथ है सिद्धांतसंहितासार समुच्चय।;अनंत प्रथम रचनाकाल: शक सं 1447। रचना: अनंतसुधारस नामक सारणीग्रंथ।;ढुंढिराज रचनाकाल: शक सं 1447 के लगभग, रचना: अनुंबसुधारस की सुधारस-चषक-टीका, ग्रहलाघवोदाहरण, ग्रहफलोपपत्ति; पंचांगफल, कुंडकल्पलता तथा प्रसिद्ध फलितग्रंथ जातकाभरण।;नृसिंह प्रथम ये गणेश के भाई, राम, के पुत्र थे। रचना मध्यग्रहसिद्धि (शक सं 1400) तथा ग्रहकौमुदी।;अनंत द्वितीय मुहूर्तचिंतामणि के निर्माता राम तथा ताजिक नीलकंठी के निर्माता, नीलकंठ के पिता अनंत, का रचनाकाल शक सं 1480 है। इन्होंने कामधेनु की टीका तथा जातकपद्धति की रचना की।;नीलकंठ रचनाकाल: शक सं 509, ग्रंथ: तोडरानंद तथा ताजिकनीलकंठी। गणकतरंगिणी के अनुसार इन्होंने जातकपद्धति भी लिखी थी। आफ्रेच सूची के अनुसार इनके अन्य ग्रंथ हैं: तिथिरतनमाला, प्रश्नकौमुदी अथवा ज्योतिषकौमुदी, दैवज्ञवल्लभा, जैमिनीसूत्र की सूबोधिनी टीका। ग्रहलाघव टीका, ग्रहौतक टीका, मकरंद टीका तथा एक मुहूर्तग्रंथ की टीका।;रघुनाथ प्रथम काल: शक सं 1484, रचना: सुबोधमंजरी।;रघुनाथ द्वितीय काल: शक सं 1487, रचना: मणिप्रदीप।;कृपाराम काल: शक सं 1420 के पश्चात्, रचनाएँ: बीजगणित, मकरंद तथा यंत्रचिंतामणि की उदाहरणस्वरूप टीकाएँ। इन्होंने सर्वार्थचिंतामणि, पंचपक्षी तथा मुहूर्ततत्व की टीकाएँ भी की हैं।;दिनकर काल: शक सं 1500, ग्रंथ: खेटकसिद्धि तथा चंद्रार्की।;गंगाधर काल: शक सं 1508, ग्रंथ: ग्रहलाघव की मनोरमा टीका।;रामभट काल: शक सं 1512, ग्रंथ: रामविनोदकरण।;श्रीनाथ काल: शक सं 1512, ग्रंथ: ग्रहचिंतामणि।;विष्णु काल: शक सं 1530, ग्रंथ: एक करणग्रंथ।;मल्लारि काल: शक सं 1524, ग्रंथ: ग्रहलाघव की उपपत्तिसहित टीका।;विश्वनाथ काल: शक सं 1534-1556। ये प्रसिद्ध सोदाहरण टीकाकार हैं। इन्होंने सूर्यसिद्धांत शिरोमणि, करणकुतूहल, मकरंद, केशबीजातक पद्धति, सोमसिद्धांत, तिथिचिंतामणि, चंद्रमानतंत्र, बृहज्जातक, श्रीपतिपद्धति वसिष्ठसंहिता तथा बृहत्संहिता पर टीकाएँ की हैं।;नृसिंह द्वितीय जन्म: शक सं 1508, ग्रंथ: सूर्यसिद्धांत की सौरभाष्य तथा सिद्धांतशिरोमणि की वासनाभाष्य टीकाएँ।;शिव जन्म: शक सं 1510, ग्रंथ: अनंतसुधारस टीका।;कृष्ण प्रथम रचना: शक सं 1500-1530, ग्रंथ: भास्कराचार्य के बीजगणित की बीजनवांकुद तथा जातकपद्धति की टीकाएँ, तथा छादकनिर्णय।;रंगनाथ प्रथम रचना: शक सं 1525, ग्रंथ: सूर्यसिद्धांत की गूढ़ार्थप्रकाशिका टीका।;नागेश रचनाकाल: शक सं-1541, ग्रंथ: करणग्रंथ, तथा ग्रहप्रबोध।;मुनीश्वर ये गूढ़ार्थप्रकाशिकाकार रंगनाथ के पुत्र थे। इनका जन्मकाल श सं 1525 है। इन्होंने सिद्धांतसार्वभौम ग्रंथ लिखा तथा लीलावती पर निसृष्टार्थदूती और सिद्धांतशिरोमणि की मरीचि टीका की। कुछ विद्वान् पाटीसार भी इनका लिखा मानते हैं।;दिवाकर जन्मकाल: शक सं 1528 है, रचना: मकरंद की मकरंदविवृत्ति टीका।;कमलाकर भट्ट जन्म: शक सं 1530 के लगभग। इन्होंने काशी में शक सं 1580 के लगभग सिद्धांततत्वविवेक बनाया। यह आधुनिक सूर्यसिद्धांत के आधार पर लिखा गया है। इसमें बहुत सी गणित संबंधी नवीन रीतियाँ है। तुरीय यंत्र का विस्तृत वर्णन तथा ध्रुवतारा की स्थिरता का वर्णन इनकी नूतनता है। इन्होंने मुनीश्वर तथा भास्कराचार्य का कई स्थलों पर खंडन किया है, जो कुछ स्थलों पर इनके निजी अज्ञान का द्योतक है। ये संक्षिप्त न लिखकर बहुत विस्तार से लिखते हैं। इनके 13 अध्यायों के ग्रंथ में 3,024 श्लोक हैं।;रंगनाथ द्वितीय जन्म: शक सं 1534 के लगभग, ग्रंथ: सिद्धांतशिरोमणि की मितभाषिणी टीका तथा सिद्धांतचूड़ामणि।;नित्यानंद रचनाकाल: शक सं 1561। इन्होंने सायन मानों से सर्वसिद्धांतराज ग्रंथ लिखा है। इसमें वर्तमान 365.14.33.7 40448 दिनादि है, जो वास्तव काल के निकटतर है। इनके दिए हुए भगणों से यह स्पष्ट है कि ये कुशल वेधकर्ता थे।;कृष्ण द्वितीय इन्होंने शक सं 1575 में करणकौस्तुभ लिखा1;रत्नकंठ इन्होंने शक सं 1580 में पंचांगकौस्तुभ नामक सारणीग्रंथ लिखा।;विद्दन शक सं 1626 से कुछ पूर्व, इन्होंने वार्षिकतंत्र लिखा। इनका अन्य ग्रंथ ग्रहणमुकुर है।;जटाधर इन्होंने शक सं 1626 में फत्तेशाह प्रकाश नामक करणग्रंथ लिखा।;दादाभट इन्होंने शक सं 1641 में सूर्यसिद्धांत की करणावलि टीका लिखी1;नारायण रचना: शक सं 1661। इन्होंने होरासारसुधानिधि, नरजातकव्याख्या, गणकप्रिया, स्वरसार तथा ताजकसुधानिधि लिखे।;जयसिंह राजा जयसिंह शंक सं 1615 में राजसिंहासन पर बैठे थे। इन्होंने हिंदू, मुसलमान तथा यूरोपीय ज्योतिष ग्रंथों का अध्ययन किया और देखा कि उनसे स्पष्ट ग्रह तथा दृश्य ग्रहों में अंतर है। इसलिये इन्होंने जयपुर, दिल्ली, मथुरा, उज्जैन तथा काशी में पक्की वेधशालाएँ बनवाईं जो अब भी इनके कीर्तिस्तंभ की तरह विद्यमान हैं। आठ साल तक वेध करवाकर इन्होंने अरबी का जिजमुहम्मद तथा संस्कृत में सम्राट् सिद्धांत नामक ग्रंथ बनवाए। सिद्धांत सम्राट् इन्होंने जगन्नाथ पंडित से शक सं 1653 में बनवाया। इनके ग्रंथ से ग्रह अतिसूक्ष्म आते हैं।;शंकर इन्होंने शक सं 1688 में वैष्णवकरण लिखा।;मणिराम इन्होंने शक सं 1696 में ग्रहगणित चिंतामणि लिखी।;भुला इन्होंने शक सं 1703 में ब्रह्मसिद्धांतसार लिखा।;मथुरानाथ इन्होंने शक सं 1704 में यंत्रराजघटना लिखा।;चिंतामणिदीक्षित शक सं 1658-1733। इन्होंने सूर्यसिद्धांतसारणी तथा गोलानंद नामक वेधग्रंथ लिखा।;शिव इन्होंने शक सं 1737 में तिथिपारिजात लिखा।;दिनकर इन्होंने शक सं 1734 से 1761 के बीच ग्रहविज्ञानसारणी, मासप्रवेशसारणी, लग्नसारणी, क्रांतिसारणी आदि ग्रंथ लिखे।;बापूदेव शास्त्री काशी के संस्कृत कालेज के ज्योतिष के मुख्य अध्यापक थे। बापूदेव शास्त्री (नृसिंह) का जन्म शक सं 1743 में हुआ। ये प्रयाग तथा कलकत्ता विश्वविद्यालयों के परिषद तथा आयरलैंड और ग्रेट ब्रिटेन की रॉयल के सम्मानित सदस्य थे। इन्हें महामहोपाध्याय की उपाधि मिली थी। इनके ग्रंथ हैं: रेखागणित प्रथमाध्याय, त्रिकोणमिति, प्राचीन ज्योतिषाचार्याशयवर्णन, सायनवाद, तत्वविवेकपरीक्षा, मानमंदिरस्थ यंत्रवर्णन, अंकगणित, बीजगणित। इन्होंने सिद्धांतशिरोमणि का संपादन तथा सूर्यसिद्धांत का अंग्रेजी में अनुवाद किया। इनका दृक्सिद्ध पंचांग आज भी वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रकाशित होता है।;नीलांबर शर्मा इनका गोलप्रकाश शक सं 1793 में प्रकाशित हुआ।;विनायक अथवा केरो लक्ष्मण छत्रे इन्होंने पाश्चात्य ज्योतिष के आधार पर ग्रहसाधनकोष्ठक शक सं 1772 में लिखा। इनका अन्य ग्रंथ चिंतामणि हैं।;चिंतामणि रघुनाथ आचार्य जन्म: शक सं 1750। इन्होंने तमिल में ज्योतिषचिंतामणि लिखा।;कृष्ण शास्त्री गाडबोले जन्म: शक सं 1753। इन्होंने वामनकृष्ण जोशी गद्रे के साथ ग्रहलाघव का मराठी अनुवाद, ज्योतिषशास्त्र तथा पंचांगसाधनसार छपाया तथा "मासानां मार्गशीर्षोहं" लेख द्वारा यह सिद्ध किया कि वेद शकपूर्व 30 हजार वर्ष से प्राचीन हैं1;वेंकटेश बापूजी केतकर इन्होंने शक सं 1812 में पाश्चात्य ज्योतिष के आधार पर "ज्योतिर्गणित" लिखा, जिससे ग्रहगणना बहुत सूक्ष्म होती है।;सुधाकर द्विवेदी इनका जन्मकाल शक सं 1782 है। ये काशी के संस्कृत कालेज के ज्योतिष के प्रधान पंडित तथा अपने समय के अति प्रसिद्ध विद्वान् थे। इन्हें महामहोपाध्याय की उपाधि प्राप्त थी। इनके ग्रंथ हैं: दीर्घवृत्तलक्षण, विचित्र प्रश्न सभंग, द्युचरचार, वास्ववचंद्रश्रृंगोन्नति, पिंडप्रभाकर, भाभ्रम रेखानिरूपण, धराभ्रम, ग्रहणकरण, गोलीयरेखागणित, रेखागणित के एकादश द्वादश अध्याय तथा गणकतरंगिणी। इन्होंने सूर्यसिद्धांत, ग्रहलाघव आदि ग्रंथों की टीकाएँ तथा बहुत से ग्रंथों का संपादन भी किया।; शंकर बालकृष्ण दीक्षित जन्मकाल सं 1775 है। इन्होंने विद्यार्थीबुद्धिवर्द्धिनी, सृष्टिचमत्कार,

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भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का इतिहास

भारत की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की विकास-यात्रा प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होती है। भारत का अतीत ज्ञान से परिपूर्ण था और भारतीय संसार का नेतृत्व करते थे। सबसे प्राचीन वैज्ञानिक एवं तकनीकी मानवीय क्रियाकलाप मेहरगढ़ में पाये गये हैं जो अब पाकिस्तान में है। सिन्धु घाटी की सभ्यता से होते हुए यह यात्रा राज्यों एवं साम्राज्यों तक आती है। यह यात्रा मध्यकालीन भारत में भी आगे बढ़ती रही; ब्रिटिश राज में भी भारत में विज्ञान एवं तकनीकी की पर्याप्त प्रगति हुई तथा स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों में तेजी से प्रगति कर रहा है। सन् २००९ में चन्द्रमा पर यान भेजकर एवं वहाँ पानी की प्राप्ति का नया खोज करके इस क्षेत्र में भारत ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की है। चार शताब्दियों पूर्व प्रारंभ हुई पश्चिमी विज्ञान व प्रौद्योगिकी संबंधी क्रांति में भारत क्यों शामिल नहीं हो पाया ? इसके अनेक कारणों में मौखिक शिक्षा पद्धति, लिखित पांडुलिपियों का अभाव आदि हैं। .

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भारतीय व्यक्तित्व

यहाँ पर भारत के विभिन्न भागों एवं विभिन्न कालों में हुए प्रसिद्ध व्यक्तियों की सूची दी गयी है। .

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भारतीय गणित

गणितीय गवेषणा का महत्वपूर्ण भाग भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न हुआ है। संख्या, शून्य, स्थानीय मान, अंकगणित, ज्यामिति, बीजगणित, कैलकुलस आदि का प्रारम्भिक कार्य भारत में सम्पन्न हुआ। गणित-विज्ञान न केवल औद्योगिक क्रांति का बल्कि परवर्ती काल में हुई वैज्ञानिक उन्नति का भी केंद्र बिन्दु रहा है। बिना गणित के विज्ञान की कोई भी शाखा पूर्ण नहीं हो सकती। भारत ने औद्योगिक क्रांति के लिए न केवल आर्थिक पूँजी प्रदान की वरन् विज्ञान की नींव के जीवंत तत्व भी प्रदान किये जिसके बिना मानवता विज्ञान और उच्च तकनीकी के इस आधुनिक दौर में प्रवेश नहीं कर पाती। विदेशी विद्वानों ने भी गणित के क्षेत्र में भारत के योगदान की मुक्तकंठ से सराहना की है। .

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भारतीय गणित का इतिहास

सभी प्राचीन सभ्यताओं में गणित विद्या की पहली अभिव्यक्ति गणना प्रणाली के रूप में प्रगट होती है। अति प्रारंभिक समाजों में संख्यायें रेखाओं के समूह द्वारा प्रदर्शित की जातीं थीं। यद्यपि बाद में, विभिन्न संख्याओं को विशिष्ट संख्यात्मक नामों और चिह्नों द्वारा प्रदर्शित किया जाने लगा, उदाहरण स्वरूप भारत में ऐसा किया गया। रोम जैसे स्थानों में उन्हें वर्णमाला के अक्षरों द्वारा प्रदर्शित किया गया। यद्यपि आज हम अपनी दशमलव प्रणाली के अभ्यस्त हो चुके हैं, किंतु सभी प्राचीन सभ्यताओं में संख्याएं दशमाधार प्रणाली पर आधारित नहीं थीं। प्राचीन बेबीलोन में 60 पर आधारित संख्या-प्रणाली का प्रचलन था। भारत में गणित के इतिहास को मुख्यता ५ कालखंडों में बांटा गया है-.

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भारतीय गणितज्ञों की सूची

सिन्धु सरस्वती सभ्यता से आधुनिक काल तक भारतीय गणित के विकास का कालक्रम नीचे दिया गया है। सरस्वती-सिन्धु परम्परा के उद्गम का अनुमान अभी तक ७००० ई पू का माना जाता है। पुरातत्व से हमें नगर व्यवस्था, वास्तु शास्त्र आदि के प्रमाण मिलते हैं, इससे गणित का अनुमान किया जा सकता है। यजुर्वेद में बड़ी-बड़ी संख्याओं का वर्णन है। .

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भारतीय अंक प्रणाली

भारतीय अंक प्रणाली को पश्चिम के देशों में हिंदू-अरबी अंक प्रणाली के नाम से जाना जाता है क्योंकि यूरोपीय देशों को इस अंक प्रणाली का ज्ञान अरब देश से प्राप्त हुआ था। जबकि अरबों को यह ज्ञान भारत से मिला था। भारतीय अंक प्रणाली में 0 को मिला कर कुल 10 अंक होते हैं। संसार के अधिकतम 10 अंकों वाली अंक प्रणाली भारतीय अंक प्रणाली पर ही आधारित हैं। फ्रांस के प्रसिद्ध गणितज्ञ पियरे साइमन लाप्लास के अनुसार, .

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भाष्य

संस्कृत साहित्य की परम्परा में उन ग्रन्थों को भाष्य (शाब्दिक अर्थ - व्याख्या के योग्य), कहते हैं जो दूसरे ग्रन्थों के अर्थ की वृहद व्याख्या या टीका प्रस्तुत करते हैं। मुख्य रूप से सूत्र ग्रन्थों पर भाष्य लिखे गये हैं। भाष्य, मोक्ष की प्राप्ति हेतु अविद्या (ignorance) का नाश करने के साधन के रूप में जाने जाते हैं। पाणिनि के अष्टाध्यायी पर पतंजलि का व्याकरणमहाभाष्य और ब्रह्मसूत्रों पर शांकरभाष्य आदि कुछ प्रसिद्ध भाष्य हैं। .

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भास्कराचार्य

---- भास्कराचार्य या भाष्कर द्वितीय (1114 – 1185) प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं ज्योतिषी थे। इनके द्वारा रचित मुख्य ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि है जिसमें लीलावती, बीजगणित, ग्रहगणित तथा गोलाध्याय नामक चार भाग हैं। ये चार भाग क्रमशः अंकगणित, बीजगणित, ग्रहों की गति से सम्बन्धित गणित तथा गोले से सम्बन्धित हैं। आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्य ने उजागर कर दिया था। भास्कराचार्य ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस कारण आकाशीय पिण्ड पृथ्वी पर गिरते हैं’। उन्होने करणकौतूहल नामक एक दूसरे ग्रन्थ की भी रचना की थी। ये अपने समय के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ थे। कथित रूप से यह उज्जैन की वेधशाला के अध्यक्ष भी थे। उन्हें मध्यकालीन भारत का सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ माना जाता है। भास्कराचार्य के जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं मिलती है। कुछ–कुछ जानकारी उनके श्लोकों से मिलती हैं। निम्नलिखित श्लोक के अनुसार भास्कराचार्य का जन्म विज्जडविड नामक गाँव में हुआ था जो सहयाद्रि पहाड़ियों में स्थित है। इस श्लोक के अनुसार भास्कराचार्य शांडिल्य गोत्र के थे और सह्याद्रि क्षेत्र के विज्जलविड नामक स्थान के निवासी थे। लेकिन विद्वान इस विज्जलविड ग्राम की भौगोलिक स्थिति का प्रामाणिक निर्धारण नहीं कर पाए हैं। डॉ.

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भिन्न

एक केक के चार भाग दर्शाए गये हैं। उसमें से एक भाग को निकाल दिया गया है। इसी को दूसरे शब्दों में कहेंगे कि केक का \tfrac14भाग काटकर निकाल दिया गया है और \tfrac34 भाग बचा है। भिन्न (Fraction) एक संख्या है जो पूर्ण के किसी भाग को दर्शाती है। भिन्न दो पूर्ण संख्याओं का भागफल है। भिन्न का एक उदाहरण है \tfrac जिसमें 3 अंश कहलाता है और 5 हर कहलाता है। .

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भीनमाल

भीनमाल (English:Bhinmal) राजस्थान राज्य के जालौर जिलान्तर्गत भारत का एक ऐतिहसिक शहर है। यहाँ से आशापुरी माताजी तीर्थ स्थल मोदरान स्टेशन भीनमाल के पास स्थित है जिसकी यहां से दूरी 28 किलोमीटर है। शहर प्राचीनकाल में 'श्रीमाल' नगर के नाम से जाना जाता था। "श्रीमाल पुराण" व हिंदू मान्यताओ के अनुसार विष्णु भार्या महालक्ष्मी द्वारा इस नगर को बसाया गया था। इस प्रचलित जनश्रुति के कारण इसे 'श्री' का नगर अर्थात 'श्रीमाल' नगर कहा गया। प्राचीनकाल में गुजरात राज्य की राजधानी रहा भीनमाल संस्कृत साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान महाकवि माघ एवँ खगोलविज्ञानी व गणीतज्ञ ब्रह्मगुप्त की जन्मभूमि है। यह शहर जैन धर्म का विख्यात तीर्थ है। .

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महावीर (गणितज्ञ)

महावीर (या महावीराचार्य) नौवीं शती के भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। वे गुलबर्ग के निवासी थे। वे जैन धर्म के अनुयायी थे। उन्होने क्रमचय-संचय (कम्बिनेटोरिक्स) पर बहुत उल्लेखनीय कार्य किये तथा विश्व में सबसे पहले क्रमचयों एवं संचयों (कंबिनेशन्स) की संख्या निकालने का सामान्यीकृत सूत्र प्रस्तुत किया। वे अमोघवर्ष प्रथम नामक महान राष्ट्रकूट राजा के आश्रय में रहे। उन्होने गणितसारसंग्रह नामक गणित ग्रन्थ की रचना की जिसमें बीजगणित एवं ज्यामिति के बहुत से विषयों (टॉपिक्स) की चर्चा है। उनके इस ग्रंथ का पावुलूरि मल्लन ने तेलुगू में 'सारसंग्रह गणितम्' नाम से अनुवाद किया। महावीर ने गणित के महत्व के बारे में कितनी महान बात कही है- .

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मापयंत्रण

वाष्प टरबाइन का नियंत्रण पटल (कंट्रोल पैनेल) मापयंत्रण (Instrumentation) इंजीनियरी की एक शाखा है जो मापन एवं नियंत्रण से सम्बन्धित है। इन युक्तियों को मापकयंत्र (instrument) कहते हैं जो किसी प्रक्रम (process) के प्रवाह (flow), ताप, दाब, स्तर आदि चरों (variables) को मापने या नियंत्रित करने के काम आते हैं। मापकयंत्र के अन्तर्गत वाल्व, प्रेषित्र (transmitters) आदि अत्यन्त सरल युक्तियों से लेकर विश्लेषक (analyzers) जैसे जटिल युक्तियां सम्मिलित हैं। प्रक्रमों का नियंत्रण अनुप्रयुक्त मापयंत्रण की प्रमुख शाखा है। आधुनिक नियंत्रण कक्ष .

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मंजुल भार्गव

मंजुल भार्गव (अगस्त ८, १९७४) एक भारतीय मूल के गणितज्ञ हैं। इन्हें २०१४ में प्रतिष्ठित वैश्विक पुरस्कार फील्ड्स मेडल से नवाजा गया है। .

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यन्त्र (संस्कृत)

यन्त्र शब्द भारतीय साहित्य में उपकरण, मशीन या युक्ति के अर्थ में आया है। ज्योतिष, रसशास्त्र, आयुर्वेद, गणित आदि में इस शब्द का प्रयोग हुआ है। ब्रह्मगुप्त द्वारा रचित ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त में 'यन्त्राध्याय' नामक २२वां अध्याय है।;संस्कृत साहित्य में वर्णित कुछ यन्त्रों के नाम यन्त्रराज, दोलायन्त्र, तिर्यक्पातनयन्त्र, डमरूयन्त्र, ध्रुवभ्रमयन्त्र, पातनयन्त्र, राधायन्त्र, धरायन्त्र, ऊर्ध्वपातनयन्त्र, स्वेदनीयन्त्र, मूसयन्त्र, कोष्ठियन्त्र, यन्त्रमुक्त, खल्वयन्त्र .

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राफेल बम्बेली

राफेल बम्बेली (Rafael Bombelli; 20 जनवरी 1526 – 1572) इटली का गणितज्ञ था। उसका जन्म बोलग्ना में हुआ था। उसने बीजगणित के एक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की थी तथा काल्पनिक संख्याओं का यथार्थ सामने लाने में उसकी उल्लेखनीय भूमिका थी। अपनी पुस्तक (Algebra) में बम्बेल्ली ने पूर्व में ब्रह्मगुप्त द्वारा प्रतिपादित ऋणात्मक संख्याओं से सम्बन्धित नियम को बहुत ही सरल भाषा में लिखा। इस पुस्तक में उसने 'अल्जेब्रा' के बारे में लिखा है कि अल्जेब्रा भारत में खोजा गया 'उच्च गणित' है। (सन्दर्भ: Travelling Mathematics - The Fate of Diophantos' Arithmetic By Ad Meskens, Springer, page 143) .

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लल्ल

लल्लाचार्य (७२०-७९० ई) भारत के ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। वे शाम्ब के पौत्र तथा भट्टत्रिविक्रम के पुत्र थे। उन्होने 'शिष्यधीवृद्धिदतन्त्रम्' (.

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शंकर बालकृष्ण दीक्षित

शंकर बालकृष्ण दीक्षित (जन्म 24 जुलाई 1853 - मृत्यु 20 अप्रैल 1898) भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी थे। मराठी में लिखित "भारतीय ज्योतिषशास्त्र" आपका अमूल्य ग्रंथ है। .

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शंकुक

५० अंश उत्तरी अक्षांश पर गर्मी के समय नोमन का चलितचित्र (एनिमेशन) शंकुक, या नोमन (Gnomon), दिन में समय ज्ञात करने का सरल प्राचीन उपकरण था। .

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श्रीधराचार्य

श्रीधराचार्य (जन्म: ७५० ई) प्राचीन भारत के एक महान गणितज्ञ थे। इन्होंने शून्य की व्याख्या की तथा द्विघात समीकरण को हल करने सम्बन्धी सूत्र का प्रतिपादन किया। उनके बारे में हमारी जानकारी बहुत ही अल्प है। उनके समय और स्थान के बारे में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। किन्तु ऐसा अनुमान है कि उनका जीवनकाल ८७० ई से ९३० ई के बीच था; वे वर्तमान हुगली जिले में उत्पन्न हुए थे; उनके पिताजी का नाम बलदेवाचार्य औरा माताजी का नाम अच्चोका था। .

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शून्य

शून्य (0) एक अंक है जो संख्याओं के निरूपण के लिये प्रयुक्त आजकी सभी स्थानीय मान पद्धतियों का अपरिहार्य प्रतीक है। इसके अलावा यह एक संख्या भी है। दोनों रूपों में गणित में इसकी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है। पूर्णांकों तथा वास्तविक संख्याओं के लिये यह योग का तत्समक अवयव (additive identity) है। .

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शून्य से भाजन

गणित में जब किसी संख्या को शून्य से भाग करते हैं तो इसे शून्य से भाजन (division by zero) कहते हैं। इस भाजन में भाजक (divisor) शून्य होता है। ऐसे भाजन को a/0 लिखा जा सकता है जहाँ a भाज्य (dividend (अंश)) है। सामान्य अंकगणित में यह व्यंजक अर्थहीन है क्योंकि कोई ऐसी संख्या नहीं है जिसको 0 से गुणा करने पर a मिलता है (यहाँ माना गया है कि a≠0)। अतः शून्य से भाजन अपरिभाषित है। चूँकि किसी भी संख्या में शून्य का गुणा करने पर परिणाम शून्य ही आता है, इस कारण 0/0 का भी कोई निश्चित मान नहीं है। .

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साँचे:ज्यामिति

श्रेणी:ज्यामिति साँचा.

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सांयोगिकी का इतिहास

सांयोजिकी (combinatorics) पर सबसे पुराना चिन्तन भारतीय मनीषियों द्वारा किया गया। भगवती सूत्र नामक जैन ग्रंथ में सांयोजिकी पर एक प्रश्न है। इसके उपरान्त पिंगल ने छंदशास्त्र में सांयोजिकी का सुन्दर प्रयोग किया है। महान गणितज्ञ महावीर और ब्रह्मगुप्त ने भी इस विषय पर बहुत काम किया है। यूरोप में चौदहवीं शताब्दी में इस क्षेत्र में काम आरम्भ हुआ जिसमें फिबोनाकी (Leonardo Fibonacci) आदि ने अग्रणी भूमिका निभाई। .

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सिविल इंजीनियरी

द पेट्रोनस ट्विन टावर्स, जिसे वास्तुकार सीज़र पेली और थोरनटन-टोमेसिटी और रेन हिल बरसेकुटू एस.डी. एन. बी. एच. डी. इंजीनियरों ने बनाया था। ये इमारत 1998-2004 तक दुनिया की सबसे ऊँची इमारत थी। सिविल इंजीनियरी, व्यावसायिक इंजीनियरिंग की एक शाखा है जो कि भौतिक और प्राकृतिक रूप से बने परिवेश में पुल, सड़क,नहरें, बाँध और भवनों आदि के डिजाइन, निर्माण और रखरखाव से जुड़ी है।सिविल इंजीनियरिंग, सैन्य अभियान्त्रिकी के बाद आने वाली इंजीनियरिंग की सबसे पुरानी शाखा है। इसे सैन्य इंजीनियरिंग से अलग करने के लिए 'असैनिक इंजीनियरिंग' (सिविल इंजीनियरी) के रूप में परिभाषित किया गया। परंपरागत रूप से इसे कई उप-शाखाओं में बांटा गया है, जिनमें -पर्यावरण इंजीनियरिंग, भू-तकनीक इंजीनियरिंग, संरचनात्मक इंजीनियरिंग, परिवहन इंजीनियरिंग, नगरपालिका या शहरी इंजीनियरिंग, जल संसाधन इंजीनियरिंग, पदार्थ इंजीनियरिंग, तटीय इंजीनियरिंग, सर्वेक्षण और निर्माण इंजीनियरिंग. सिविल इंजीनियरिंग हर स्तर पर होती है: सार्वजनिक क्षेत्र में नगरपालिका के क्षेत्र से संघीय स्तरों तक और निजी क्षेत्र में व्यक्तिगत घरों के मालिकों से अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों तक.

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संस्कृत ग्रन्थों की सूची

निम्नलिखित सूची अंग्रेजी (रोमन) से मशीनी लिप्यन्तरण द्वारा तैयार की गयी है। इसमें बहुत सी त्रुटियाँ हैं। विद्वान कृपया इन्हें ठीक करने का कष्ट करे। .

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हिन्दू मापन प्रणाली

हिन्दू समय मापन (लघुगणकीय पैमाने पर) गणित और मापन के बीच घनिष्ट सम्बन्ध है। इसलिये आश्चर्य नहीं कि भारत में अति प्राचीन काल से दोनो का साथ-साथ विकास हुआ। लगभग सभी प्राचीन भारतीय गणितज्ञों ने अपने ग्रन्थों में मापन, मापन की इकाइयों एवं मापनयन्त्रों का वर्णन किया है। ब्रह्मगुप्त के ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त के २२वें अध्याय का नाम 'यन्त्राध्याय' है। संस्कृत कें शुल्ब शब्द का अर्थ नापने की रस्सी या डोरी होता है। अपने नाम के अनुसार शुल्ब सूत्रों में यज्ञ-वेदियों को नापना, उनके लिए स्थान का चुनना तथा उनके निर्माण आदि विषयों का विस्तृत वर्णन है। .

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ज्या

समकोण त्रिभुज में किसी कोण की ज्या उस कोण के सामने की भुजा और कर्ण के अनुपात के बराबर होती है। गणित में ज्या (Sine), एक त्रिकोणमितीय फलन का नाम है। समकोण त्रिभुज में का समकोण के अलावा एक कोण x है तो, उदाहरण के लिये, यदि कोण का मान डिग्री में हो तो, .

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ज्यामिति का इतिहास

1728 साइक्लोपीडिया से ज्यामिति की तालिका. ज्यामिति (यूनानी भाषा γεωμετρία; जियो .

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वर्ग समीकरण

गणित में दो घात वाले समीकरण को वर्ग समीकरण (quadratic equation) या द्विघात समीकरण कहते हैं। विज्ञान, तकनीकी एवं अन्य अनेक स्थितियों में किसी समस्या के समाधान के समय वर्ग समीकरण से अक्सर सामना पडता रहता है। इसलिये वर्ग समीकरण का हल बहुत महत्व रखता है। वर्ग समीकरण का सामान्य समीकरण(General Equation) इस प्रकार का होता है: यहाँ a ≠ 0.

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खण्डखाद्यक

खण्डखाद्यक ब्रह्मगुप्त द्वारा रचित खगोलशास्त्र (ज्योतिष) ग्रन्थ है। इसकी रचना ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त के बाद (६६५ ई में) हुई। खण्डखाद्यक के दो भाग हैं-.

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गणित का इतिहास

ब्राह्मी अंक, पहली शताब्दी के आसपास अध्ययन का क्षेत्र जो गणित के इतिहास के रूप में जाना जाता है, प्रारंभिक रूप से गणित में अविष्कारों की उत्पत्ति में एक जांच है और कुछ हद तक, अतीत के अंकन और गणितीय विधियों की एक जांच है। आधुनिक युग और ज्ञान के विश्व स्तरीय प्रसार से पहले, कुछ ही स्थलों में नए गणितीय विकास के लिखित उदाहरण प्रकाश में आये हैं। सबसे प्राचीन उपलब्ध गणितीय ग्रन्थ हैं, प्लिमपटन ३२२ (Plimpton 322)(बेबीलोन का गणित (Babylonian mathematics) सी.१९०० ई.पू.) मास्को गणितीय पेपाइरस (Moscow Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित (Egyptian mathematics) सी.१८५० ई.पू.) रहिंद गणितीय पेपाइरस (Rhind Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित सी.१६५० ई.पू.) और शुल्बा के सूत्र (Shulba Sutras)(भारतीय गणित सी. ८०० ई.पू.)। ये सभी ग्रन्थ तथाकथित पाईथोगोरस की प्रमेय (Pythagorean theorem) से सम्बंधित हैं, जो मूल अंकगणितीय और ज्यामिति के बाद गणितीय विकास में सबसे प्राचीन और व्यापक प्रतीत होती है। बाद में ग्रीक और हेल्लेनिस्टिक गणित (Greek and Hellenistic mathematics) में इजिप्त और बेबीलोन के गणित का विकास हुआ, जिसने विधियों को परिष्कृत किया (विशेष रूप से प्रमाणों (mathematical rigor) में गणितीय निठरता (proofs) का परिचय) और गणित को विषय के रूप में विस्तृत किया। इसी क्रम में, इस्लामी गणित (Islamic mathematics) ने गणित का विकास और विस्तार किया जो इन प्राचीन सभ्यताओं में ज्ञात थी। फिर गणित पर कई ग्रीक और अरबी ग्रंथों कालैटिन में अनुवाद (translated into Latin) किया गया, जिसके परिणाम स्वरुप मध्यकालीन यूरोप (medieval Europe) में गणित का आगे विकास हुआ। प्राचीन काल से मध्य युग (Middle Ages) के दौरान, गणितीय रचनात्मकता के अचानक उत्पन्न होने के कारण सदियों में ठहराव आ गया। १६ वीं शताब्दी में, इटली में पुनर् जागरण की शुरुआत में, नए गणितीय विकास हुए.

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आर्यभट

आर्यभट (४७६-५५०) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की। .

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आर्यभट्ट द्वितीय

आर्यभट्ट (द्वितीय) गणित और ज्योतिष दोनों विषयों के अच्छे आचार्य थे। इनका बनाया हुआ महासिद्धान्त ग्रंथ ज्योतिष सिद्धांत का अच्छा ग्रंथ है। .

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आर्यभटीय

आर्यभटीय नामक ग्रन्थ की रचना आर्यभट प्रथम (४७६-५५०) ने की थी। यह संस्कृत भाषा में आर्या छंद में काव्यरूप में रचित गणित तथा खगोलशास्त्र का ग्रंथ है। इसकी रचनापद्धति बहुत ही वैज्ञानिक और भाषा बहुत ही संक्षिप्त तथा मंजी हुई है। इसमें चार अध्यायों में १२३ श्लोक हैं। आर्यभटीय, दसगीतिका पाद से आरम्भ होती है। इसके चार अध्याय इस प्रकार हैं: 1.

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अनिर्धार्य समीकरण

जिस समीकरण के अनन्त हल हों उसे अनिर्धार्य समीकरण (indeterminate equation) कहते हैं। जैसे, 2x .

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