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ब्रजनिधि

सूची ब्रजनिधि

प्रतापसिंह 'ब्रजनिधि' (संवत् 1821-1860) जयपुरनरेश तथा हिन्दी कवि थे। 'ब्रजनिधि' उनका काव्यप्रयुक्त उपनाम है। प्रतापसिंह ब्रजनिधि ने भवननिर्माण में भी विशेष रुचि दिखाई। चंद्रमहल के कई विशाल भवन रिधसिधपोल, बड़ा दीवानखाना, गोविंद जी के पिछाड़ी का हौज, हवामहल, गोवर्धननाथ, ब्रजराजबिहारी, ठाकुर ब्रजनिधि तथा मदनमोहन जी के मंदिर आपके स्थापत्य कलाप्रेम के द्योतक हैं। प्रतापसिंह 14 वर्ष की अवस्था में सिंहासनारूढ़ हो गए थे। युद्धों में अत्यधिक व्यस्त एवं रोगों से ग्रस्त रहने पर भी इन्होंने अपने अल्प जीवन में लगभग 1400 वृत्तों का प्रणयन किया। लोकविश्रुत है कि महाराज परम भागवत थे। भक्ति-रस-तरंग अथवा मन की उमंग में वे जो पद, रेखते अथवा छंद रचते थे, उन्हें उसी दिन या अगले दिन अपने इष्टदेव गोविंददेव तथा ठाकुर ब्रजनिधि महाराज को समर्पित करते थे। कम से कम पाँच वृत्त नित्य भेंट करने का उनका नियम था। .

2 संबंधों: हवामहल, जयपुर राज्य

हवामहल

हवामहल हवा महल भारतीय राज्य राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक राजसी-महल है। इसे सन 1798 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने बनवाया था और इसे किसी 'राजमुकुट' की तरह वास्तुकार लाल चंद उस्ता द्वारा डिजाइन किया गया था। इसकी अद्वितीय पांच-मंजिला इमारत जो ऊपर से तो केवल डेढ़ फुट चौड़ी है, बाहर से देखने पर मधुमक्खी के छत्ते के समान दिखाई देती है, जिसमें ९५३ बेहद खूबसूरत और आकर्षक छोटी-छोटी जालीदार खिड़कियाँ हैं, जिन्हें झरोखा कहते हैं। इन खिडकियों को जालीदार बनाने के पीछे मूल भावना यह थी कि बिना किसी की निगाह पड़े "पर्दा प्रथा" का सख्ती से पालन करतीं राजघराने की महिलायें इन खिडकियों से महल के नीचे सडकों के समारोह व गलियारों में होने वाली रोजमर्रा की जिंदगी की गतिविधियों का अवलोकन कर सकें। इसके अतिरिक्त, "वेंचुरी प्रभाव" के कारण इन जटिल संरचना वाले जालीदार झरोखों से सदा ठंडी हवा, महल के भीतर आती रहती है, जिसके कारण तेज़ गर्मी में भी महल सदा वातानुकूलित सा ही रहता है। चूने, लाल और गुलाबी बलुआ पत्थर से निर्मित यह महल जयपुर के व्यापारिक केंद्र के हृदयस्थल में मुख्य मार्ग पर स्थित है। यह सिटी पैलेस का ही हिस्सा है और ज़नाना कक्ष या महिला कक्ष तक फैला हुआ है। सुबह-सुबह सूर्य की सुनहरी रोशनी में इसे दमकते हुए देखना एक अनूठा एहसास देता है। .

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जयपुर राज्य

जयपुर रजवाड़ा (अन्य नाम: जयपुर स्टेट) ११२८ से १९४७ अवधि का भारत का एक रजवाड़ा था। इसका केन्द्र जयपुर नगर था। यह बारहवीं शताब्दी से अस्तित्त्व में आया एवं १९४७ तक रहा। १९४७ में भारतीय स्वाधीनता उपरान्त भारतीय संघ में विलय हो गया। इतिहास के भिन्न कालों में इसे भिन्न भिन्न नामों से जाना गया जैसे: जयपुर राज्य, आम्बेर राज्य, ढूंढाड़ राज्य एवं कछवाहा राज्य, आदि। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

सवाई प्रताप सिंह, जयपुरनरेश प्रतापसिंह

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