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बेयरिंग

सूची बेयरिंग

चार बिन्दुओं पर सम्पर्क वाला बाल-बेयरिंग बाल-बेयरिंग का एनिमेशन किसी घूमनेवाली मशीन के अंग को संभालने के लिए धारुक या बेयरिंग (Bearings) का उपयोग होता है। यह एक ऐसी यांत्रिक युक्ति है जो मशीन के दो या अधिक भागों के बीच कम से कम घर्षण के साथ सापेक्ष गति (रेखीय गति या घूर्णन गति) की सुविधा प्रदान करती है। धुरी या तकले (शाफ्ट) के उस भाग को, जो बेयरिंग पर रखा जाता है, जर्नल (journal) कहा जाता है। जर्नल, धारुक के भीतर घूमती रहती है और इस प्रकार एक तो धारुक धुरी का भार और दूसरे उसपर डाले हुए बलों को सहन करती है तथा धूरी को बिना किसी रुकावट के घूमने का अवसर देती है। सरल धारुक एक नली के समान होता है, जिसमें धुरी को डाल दिया जाता है। परंतु तेज चलनेवाली धुरियों के लिए, या जहाँ घर्षण के कारण धारुक तपकर खराब हो सकता हो, धारुक के दो पाटों में बनाया जाता है जो विभिन्न प्रकार के होते हैं। किसी मशीन का धारुक ऐसा भाग है जिसपर मशीन के चलने से हर समय भार रहता है और धुरी के घूमने के कारण धारुक कुछ न कुछ घिसता ही रहता है। यदि धारुक को ठीक प्रकार से न बनाया जाए तो बहुत जल्द उसको बदलना पड़ता है। इसलिए सब बातों को ध्यान में रखते हुए धारुक को इस प्रकार बनाना पड़ता है कि वह कम से कम घिसे तथा घिसे हुए भागों को सुविधा से बदला जा सके। धारुक के दो भाग होते हैं, एक बंधनी (bracket) कहलाता है, जो मशीन में कसा जाता है और इस बंधनी के भीतर धारुक को जमाया जाता है, जो पीतल "गन" धातु (gun metal), या काँसे का होता है। इसी प्रकार की दूसरी धातुएँ भी इस भाग के बनाने में काम आती हैं। इसी भाग के भीतर धुरी घूमती है। .

9 संबंधों: चुम्बकीय बेयरिंग, चूल, ढलवां लोहा, लेथ मशीन, घर्षण, घर्षणमारक धातु एवं मिश्रातु, घूर्णी असंतुलन, काज, अतिचालकता

चुम्बकीय बेयरिंग

चुम्बकीय धारुक या चुम्बकीय बेयरिंग (magnetic bearing) ऐसा बेयरिंग है जो किसी शैफ्ट को चुम्बकीय बलों के द्वारा एक अक्ष पर बनाये रखता है। चुम्बकीय बीयरिंग बिना किसी भौतिक-सम्पर्क के ही चलायमान अवयवों को एक सीमा में धारण किये रहते हैं। इस कारण चुम्बकीय बेयरिंग सबसे अधिक गति से चलने वाले शैफ्टों आदि को भी धारण करने में सक्षम हैं। मोटे तौर पर चुम्बकीय बेयरिंग दो तरह के होते हैं-.

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चूल

द्वार के लिए बना एक क़ब्ज़ा पुरानी शैली का एक कुलाबा कब्ज़ा, कुलाबा, चूल या द्वारसन्धि (अंग्रेज़ी: hinge, हिंज) एक ऐसे बेयरिंग को कहते हैं जो दो ठोस वस्तुओं से जुड़ा हो और एक को दूसरे के सम्बन्ध में घूमने दे।, Hardev Bahri, Rajpal & Sons, 1999, ISBN 978-81-7028-290-7,...

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ढलवां लोहा

आयरन-सेमेंटाईट मेटा-स्टेबल डायग्राम. ढलवां लोहा (कास्ट आयरन) आम तौर पर धूसर रंग के लोहे को कहा जाता है लेकिन इसके साथ-साथ यह एक बड़े पुंज में लौह अयस्कों का मिश्रण भी है, जो एक गलनक्रांतिक तरीके से ठोस बन जाता है। किसी भी धातु की खंडित सतह को देखकर उसके मिश्र धातु होने का पता लगाया जा सकता है। सफेद ढलवां लोहे का नामकरण इसकी खंडित सफ़ेद सतह के आधार पर किया गया है क्योंकि इसमें कार्बाइड सम्बन्धी अशुद्धियां पाई जाती हैं जिसकी वजह से इसमें सीधी दरार पड़ती है। धूसर ढलवां लोहे का नामकरण इसकी खंडित धूसर सतह के आधार पर किया गया है, इसके खंडित होने का कारण यह है कि ग्रेफाइट की परतें पदार्थ के टूटने के दौरान पड़ने वाली दरार को विक्षेपित कर देती हैं जिससे अनगिनत नई दरारें पड़ने लगती हैं। मिश्र (अयस्क) धातु में पाए जाने वाले पदार्थों के वजन (wt%) में से 95% से भी अधिक लोहा (Fe) होता है जबकि अन्य मुख्य तत्वों में कार्बन (C) और सिलिकॉन (Si) शामिल हैं। ढलवां लोहे में कार्बन की मात्रा 2.1 से 4 wt% होती है। ढलवां लोहे में सिलिकॉन की पर्याप्त राशि, सामान्य रूप से 1 से 3 wt% होती है और इसके फलस्वरूप इन धातुओं को त्रिगुट Fe-C-Si (लोहा-कार्बन-सिलिकन) धातु माना जाना चाहिए। तथापि ढलवां लोहा घनीकरण का सिद्धांत द्विआधारी लोहा-कार्बन चरण आरेख से समझ आता है, जहां गलनक्रांतिक बिंदु और 4.3 wt% कार्बन के 4.3 % वजन (4.3 wt%) पर है। चूंकि ढलवां लोहे की संरचना का अनुमान इस तथ्य से ही लग जता है कि, इसका गलनांक (पिघलने का तापमान) शुद्ध लोहे के गलनांक से लगभग कम है। पिटवां ढलवां लोहे को छोड़कर, बाकि ढलवां लोहे भंगुर होते है। निम्न गलनांक (कम पिघलने वाले तापमान), अच्छी द्रवता, आकार देने की योग्यता, इच्छित आकार देने की उत्कृष्ट योग्यता, विरूपण करने के लिए प्रतिरोध और जीर्ण होने के प्रतिरोध के साथ ढलवां लोहा अनुप्रयोगों की व्यापक श्रेणी के साथ इंजीनियरिंग सामग्री बन गए हैं, पाइप और मशीनों और मोटर वाहन उद्योग के कुछ हिस्सों, जैसे सिलेंडर हेड्स (उपयोग में गिरावट), सिलेंडर ब्लॉक और गियरबॉक्स के डब्बे (केसेज)(उपयोग में गिरावट) में इसका प्रयोग किया जाता है। यह ऑक्सीकरण (जंग) के द्वारा क्षय होने और कमजोर हो जाने में प्रतिरोधी है। .

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लेथ मशीन

आधुनिक 'सेन्टर लेथ' लेथ मशीन या खराद एक मशीनी औजार है जो अक्ष के सममित (सिमेट्रिक) रचना वाले सामान बनाने के काम आती है। इसमें धातु का पिण्ड एक अक्ष पर घूर्णन करता रहता है और काटने, छेद करने एवं अन्य क्रियाएँ करने वाले औजार इस पर आवश्यकतानुसार लगाकर इसे उचित रूप दिया जाता है। खराद (Lathe) एक ऐसा यंत्र है जिस पर गोल अंशों को तैयार किया जाता है। .

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घर्षण

धरती पर रखे एक ब्लाक के लिये फ्री-बॉडी आरेख घर्षण (Friction) एक बल है जो दो तलों के बीच सापेक्षिक स्पर्शी गति का विरोध करता है। घर्षण बल का मान दोनों तलों के बीच अभिलंब बल पर निर्भर करता है। घर्षण के दो प्रकार हैं: स्थैतिक और गतिज। स्थैतिक घर्षण दो पिण्डों के संपर्क-पृष्ठ की समान्तर दिशा में लगता है, लेकिन गतिज घर्षण गति की दिशा पर निर्भर नही करता। .

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घर्षणमारक धातु एवं मिश्रातु

घर्षणमारक धातु एवं मिश्रातु (Antifriction metals and alloys) वे धातुएँ तथा मिश्रातु है जो परस्पर घिसकर चलने वाले दो मशीन-पुर्जों के बीच घर्षण गुणांक को कम करने में सहायक होती हैं तथा घर्षण के कारण स्वयं भी कम घिसती हैं। .

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घूर्णी असंतुलन

असंतुलित घूर्णी शाफ्ट जब घूर्णन-अक्ष के चारों तरफ घूमने वाला द्रव्यमान असमान/असममित रूप से वितरित नहीं होता तो उसे घूर्णी असंतुलन (Rotating unbalance) कहते हैं। घूर्णी असंतुलन के कारण एक बलाघूर्ण (moment) उत्पन्न होता है जिसके कारण घूमने वाली वस्तु में घूर्णन-अक्ष के लम्बवत दिशा में कम्पन होने लगता है। .

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काज

काज एक बेयरिंग जैसा हार्डवेयर जो 2 पक्षों को आपस में जोड़ता है। जैसे दरवाजे को लटकाने के लिए काज लगाना पड़ता है। ये काफी मजबूत होते हैं तथा ये कई प्रकार के आते हैं। इसे अंग्रेजी में (Hinge) कहते हैं। .

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अतिचालकता

सामान्य चालकों तथा अतिचालकों में ताप के साथ प्रतिरोधकता का परिवर्तन जब किसी मैटेरियल को 0°k तक ठंडा किया जाता है तो उसका प्रतिरोध पूर्णतः शून्य प्रतिरोधकता प्रदर्शित करते हैं। उनके इस गुण को अतिचालकता (superconductivity) कहते हैं। शून्य प्रतिरोधकता के अलावा अतिचालकता की दशा में पदार्थ के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र भी शून्य हो जाता है जिसे मेसनर प्रभाव (Meissner effect) के नाम से जाना जाता है। सुविदित है कि धात्विक चालकों की प्रतिरोधकता उनका ताप घटाने पर घटती जाती है। किन्तु सामान्य चालकों जैसे ताँबा और चाँदी आदि में, अशुद्धियों और दूसरे अपूर्णताओं (defects) के कारण एक सीमा के बाद प्रतिरोधकता में कमी नहीं होती। यहाँ तक कि ताँबा (कॉपर) परम शून्य ताप पर भी अशून्य प्रतिरोधकता प्रदर्शित करता है। इसके विपरीत, अतिचालक पदार्थ का ताप क्रान्तिक ताप से नीचे ले जाने पर, इसकी प्रतिरोधकता तेजी से शून्य हो जाती है। अतिचालक तार से बने हुए किसी बंद परिपथ की विद्युत धारा किसी विद्युत स्रोत के बिना सदा के लिए स्थिर रह सकती है। अतिचालकता एक प्रमात्रा-यांत्रिक दृग्विषय (quantum mechanical phenomenon.) है। अतिचालक पदार्थ चुंबकीय परिलक्षण का भी प्रभाव प्रदर्शित करते हैं। इन सबका ताप-वैद्युत-बल शून्य होता है और टामसन-गुणांक बराबर होता है। संक्रमण ताप पर इनकी विशिष्ट उष्मा में भी अकस्मात् परिवर्तन हो जाता है। यह विशेष उल्लेखनीय है कि जिन परमाणुओं में बाह्य इलेक्ट्रॉनों की संख्या 5 अथवा 7 है उनमें संक्रमण ताप उच्चतम होता है और अतिचालकता का गुण भी उत्कृष्ट होता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

धारुक, बीयरिंग

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