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बाबूराव विष्णु पराडकर

सूची बाबूराव विष्णु पराडकर

बाबूराव विष्णु पराड़कर (16 नवम्बर 1883 - 12 जनवरी 1955) हिन्दी के जाने-माने पत्रकार, साहित्यकार एवं हिन्दीसेवी थे। उन्होने हिन्दी दैनिक 'आज' का सम्पादन किया। भारत की आजादी के आंदोलन में अखबार को बाबूराव विष्णु पराड़कर ने एक तलवार की तरह उपयोग किया। उनकी पत्रकारिता ही क्रांतिकारिता थी। उनके युग में पत्रकारिता एक मिशन हुआ करता था। एक जेब में पिस्तौल, दूसरी में गुप्त पत्र 'रणभेरी' और हाथों में 'आज', 'संसार' जैसे पत्रों को संवारने, जुझारू तेवर देने वाली लेखनी के धनी पराडकरजी ने जेल जाने, अखबार की बंदी, अर्थदंड जैसे दमन की परवाह किए बगैर पत्रकारिता का वरण किया। मुफलिसी में सारा जीवन न्यौछावर करने वाले पराडकर जी ने आजादी के बाद देश की आर्थिक गुलामी के खिलाफ धारदार लेखनी चलाई। मराठीभाषी होते हुए भी हिंदी के इस सेवक की जीवनयात्रा अविस्मरणीय है। .

6 संबंधों: देशेर कथा, पुरुषोत्तम दास टंडन, सखाराम गणेश देउस्कर, हिन्दी वंगवासी, आज, अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन

देशेर कथा

देशेर कथा (हिन्दी अर्थ: 'देश की बात') महान क्रान्तिकारी विचारक एवं लेखक सखाराम गणेश देउस्कर द्वारा लिखित क्रांतिकारी बांग्ला पुस्तक है। सन् 1904 में ‘देशेर कथा’ शीर्षक से प्रकाशित यह पुस्तक ब्रिटिश साम्राज्य में गुलामी की जंजीरों में जकड़ी और शोषण की यातना में जीती-जागती भारतीय जनता के चीत्कार का दस्तावेज है। मात्र पांच वर्षों में इसके पांच संस्करण की तेरह हजार प्रतियों के प्रकाशन की सूचना से भयभीत अंग्रेज़ों ने सन् 1910 में इस पुस्तक पर पाबंदी लगा दी। भारतीय अर्थव्यवस्था को तबाह करने के लिए यहां की कृषि व्यवस्था कारीगरी और उद्योग-धंधों को तहस-नहस करने और भारतीय नागरिक के संबंध में अवमानना भरे वाक्यों का व्यवहार करने की घटनाओं का प्रमाणिक चित्र यहां उपस्थित है। सखाराम गणेश देउस्कर ने देश में स्वाधीनता की चेतना के जागरण और विकास के लिए ‘देशेर कथा’ की रचना की थी। यद्यपि उन्होंने कांग्रेस द्वारा संचालित स्वाधीनता आंदोलन का समर्थन किया, लेकिन उन्होंने उस आंदोलन की रीति-नीति की आलोचना भी की है। उन्होंने देशेर कथा की भूमिका में स्पष्ट लिखा है कि ‘‘हमारे आंदोलन भिक्षुक के आवेदन मात्र है। हमलोगों को दाता की करुणा पर एकांत रूप से निर्भर रहना पड़ता है। यह बात सत्य होते हुए भी राजनीति की कर्तव्य-बुद्धि को उद्बोधित करने के लिए पुन: पुन: चीत्कार के अलावा हमारे पास दूसरे उपाय कहां है।’’1 वस्ततु: ‘देशेर कथा’ गुलामी की जंजीरों में जकड़ी और शोषण की यातना में जीती-मरती भारतीय जनता के चीत्कार की प्रामाणिक और प्रभावशाली अभिव्यक्ति है। इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद 'देश की बात' नाम से बाबूराव विष्णु पराड़कर ने लगभग शताब्दीभर पूर्व किया। पहली बार सन् 1908 में मुंबई से तथा उसका परिवर्द्धित संस्करण सन् 1910 में कलकत्ता से प्रकाशित हुआ। .

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पुरुषोत्तम दास टंडन

पुरूषोत्तम दास टंडन (१ अगस्त १८८२ - १ जुलाई, १९६२) भारत के स्वतन्त्रता सेनानी थे। हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करवाने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। वे भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के अग्रणी पंक्ति के नेता तो थे ही, समर्पित राजनयिक, हिन्दी के अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक भी थे। हिन्दी को भारत की राजभाषा का स्थान दिलवाने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान किया। १९५० में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। उन्हें भारत के राजनैतिक और सामाजिक जीवन में नयी चेतना, नयी लहर, नयी क्रान्ति पैदा करने वाला कर्मयोगी कहा गया। वे जन सामान्य में राजर्षि (संधि विच्छेदः राजा+ऋषि.

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सखाराम गणेश देउस्कर

सखाराम गणेश देउस्कर (17 दिसम्बर 1869 - 23 नवम्बर 1912) क्रांतिकारी लेखक, इतिहासकार तथा पत्रकार थे। वे भारतीय जन-जागरण के ऐसे विचारक थे जिनके चिंतन और लेखन में स्थानीयता और अखिल बांग्ला तथा चिंतन-मनन का क्षेत्र इतिहास, अर्थशास्त्र, समाज एवं साहित्य था। देउस्कर भारतीय जनजागरण के ऐसे विचारक थे जिनके चिंतन और लेखन में स्थानीयता और अखिल भारतीयता का अद्भुत संगम था। वे महाराष्ट्र और बंगाल के नवजागरण के बीच सेतु के समान हैं। उनका प्रेरणा-स्रोत महाराष्ट्र है, पर वे लिखते बांग्ला में हैं। अपने मूल से अटटू लगाव और वर्तमान से गहरे जुड़ाव का संकेत उनके देउस्कर नाम में दिखाई देता है, जो 'देउस' और ' करौं ' के योग से बना है। विचारक, पत्रकार और लेखक सखाराम गणेश देउस्कर भारतीय नवजागरण के प्रमुख निर्माताओं में से एक थे। मराठी मूल के लेकिन बंगाली परिवेश में जन्मे और पले-बढ़े देउस्कर ने महाराष्ट्र और बंगाल के नवजागरण के बीच सेतु की तरह काम किया। अरविंद घोष ने लिखा है कि 'स्वराज्य' शब्द के पहले प्रयोग का श्रेय देउस्कर को ही जाता है। पत्रकार के तौर पर जीवन की शुरुआत करने वाले देउस्कर की इतिहास, साहित्य और राजनीति में विशेष रूप से रुचि थी। उन्होंने बांग्ला की अधिकांश क्रांतिकारी पत्रिकाओं में सतत लेखन किया। देउस्कर की जिस एक रचना ने नवजागरण काल के प्रबुद्धवर्ग को सर्वाधिक प्रभावित किया, वह थी 1904 में प्रकाशित कृति 'देशेर कथा'। इसका हिंदी-अनुवाद 'देश की बात' (1910) नाम से हुआ। विलियम डिग्बी, दादाभाई नौरोजी और रमेश चंद्र दत्त ने भारतीय अर्थव्यवस्था के जिस विदेशी शोषण के बारे में लिखा था, सखाराम देउस्कर ने मुख्यतः उसी आधार पर इस ऐतिहासिक कृति की रचना की। हिंदुस्तान के उद्योग-धंधों की बर्बादी का चित्रण करती देउस्कर की यह कृति ब्रिटिश साम्राज्यवाद की जंजीरों में जकड़ी और शोषण के तले जीती-मरती भारतीय जनता के रुदन का दस्तावेज़ है। .

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हिन्दी वंगवासी

हिंदी बंगवासी पण्डित रामलाल चक्रवर्ती के सम्पादन में सन 1890 में निकाला गया हिन्दी समाचार पत्र था। तत्कालीन भारत में यह बिल्कुल नये प्रकार का अखबार था। इसका अपना ऐतिहासिक महत्व है, क्योंकि सभी श्रेष्ठ पत्रकारों ने इसका सम्पादन में योगदान किया था। यह समाचार पत्र दीर्घजीवी रहा और सफलतापूर्वक प्रकाशित होता रहा। हिन्दी के वरिष्ठ पत्रकारों के लिए यह पत्र प्राथमिक विद्यालय सिद्ध हुआ था। इसके सम्पादन में बालमुकुन्द गुप्त, बाबूराव विष्णु पराड़कर, अम्बिका प्रसाद वाजपेयी और लक्ष्मण नारायण गर्दे आदि का नाम प्रमुख रूप से उल्लेखनीय है। श्रेणी:हिन्दी समाचार पत्र.

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आज

आज हिन्दी भाषा का एक दैनिक समाचार पत्र है। इस समय `आज' वाराणसी, कानपुर, गोरखपुर, पटना, इलाहाबाद, तथा रांची से प्रकाशित हो रहा है। .

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अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन

अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, हिन्दी भाषा एवं साहित्य तथा देवनागरी का प्रचार-प्रसार को समर्पित एक प्रमुख सार्वजनिक संस्था है। इसका मुख्यालय प्रयाग (इलाहाबाद) में है जिसमें छापाखाना, पुस्तकालय, संग्रहालय एवं प्रशासनिक भवन हैं। हिंदी साहित्य सम्मेलन ने ही सर्वप्रथम हिंदी लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिए उनकी रचनाओं पर पुरस्कारों आदि की योजना चलाई। उसके मंगलाप्रसाद पारितोषिक की हिंदी जगत् में पर्याप्त प्रतिष्ठा है। सम्मेलन द्वारा महिला लेखकों के प्रोत्साहन का भी कार्य हुआ। इसके लिए उसने सेकसरिया महिला पारितोषिक चलाया। सम्मेलन के द्वारा हिंदी की अनेक उच्च कोटि की पाठ्य एवं साहित्यिक पुस्तकों, पारिभाषिक शब्दकोशों एवं संदर्भग्रंथों का भी प्रकाशन हुआ है जिनकी संख्या डेढ़-दो सौ के करीब है। सम्मेलन के हिंदी संग्रहालय में हिंदी की हस्तलिखित पांडुलिपियों का भी संग्रह है। इतिहास के विद्वान् मेजर वामनदास वसु की बहुमूल्य पुस्तकों का संग्रह भी सम्मेलन के संग्रहालय में है, जिसमें पाँच हजार के करीब दुर्लभ पुस्तकें संगृहीत हैं। .

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