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बाबरनामा

सूची बाबरनामा

मुग़ल सम्राट बाबर की बाबरनामा नामक जीवनी में एक गेंडे के शिकार का चित्रण बाबरनामा से एक दृश्य बाबरनामा (चग़ताई/फ़ारसी) या तुज़्क-ए-बाबरी मुग़ल साम्राज्य के पहले सम्राट बाबर की आत्मलिखित जीवनी है। यह उन्होंने अपनी मातृभाषा चग़ताई तुर्की में लिखी थी। इसमें उन्होंने अपना उज़्बेकिस्तान की फ़रग़ना वादी में गुज़ारा हुआ बचपन और यौवन, बाद में अफ़्ग़ानिस्तान और भारतीय उपमहाद्वीप पर आक्रमण और क़ब्ज़ा और अन्य घटनाओं का विवरण दिया है। उन्होंने हर क्षेत्र की भूमि, राजनीति, अर्थव्यवस्था, प्राकृतिक वातावरण, शहरों-इमारतों, फलों, जानवरों, इत्यादि का बखान किया है। इसमें कुछ फ़ारसी भाषा के छोटे-मोटे छंद भी आते हैं, हालांकि फ़ारसी बोलने वाले इसे समझने में अक्षम हैं। हालांकि चग़ताई भाषा विलुप्त हो चुकी है आधुनिक उज़बेक भाषा उसी की वंशज है और उसे बोलने वाले उज़बेक लोग बाबरनामा पढ़ सकते हैं। इस किताब को चग़ताई और उज़बेक भाषाओं के साहित्य का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है।, Calum MacLeod, Bradley Mayhew, Odyssey, 2008, ISBN 978-962-217-795-6,...

17 संबंधों: चग़चरान, चग़ताई भाषा, पानीपत का प्रथम युद्ध, बाबर, बाबरी मस्जिद, भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास, भारतीय चित्रकला, सियालकोट ज़िला, हाजीपुर, हिन्दुओं का उत्पीड़न, हिन्दी पुस्तकों की सूची/प, हेनरी बेवरीज, जीवनचरित, घना पक्षी अभयारण्य, कमल, कालिंजर दुर्ग, कोहिनूर हीरा

चग़चरान

चग़चरान​ का एक पुल चग़चरान​ (दरी फ़ारसी:, अंग्रेज़ी: Chaghcharan), जिसे इतिहास में चख़चेरान और आहंगारान​ के नाम से भी जाना जाता था, मध्य अफ़ग़ानिस्तान के ग़ोर प्रान्त की राजधानी है। हरीरूद (हरी नदी) के दक्षिणी किनारे पर बसा यह शहर २,२८० मीटर की ऊँचाई पर है।, Ludwig W. Adamec, pp.

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चग़ताई भाषा

मुग़ल सम्राट बाबर की बाबरनामा नामक जीवनी चग़ताई तुर्की में ही लिखी गई थी चग़ताई भाषा (उज़बेक:, अंग्रेज़ी: Chagatai) एक विलुप्त तुर्की भाषा है जो कभी मध्य एशिया के विस्तृत क्षेत्र में बोली जाती थी। बीसवी सदी तक इसकी बोलचाल तो बंद हो चुकी थी लेकिन इसे एक साहित्यिक भाषा के रूप में फिर भी प्रयोग किया जा रहा था। भारतीय उपमहाद्वीप में मुग़ल साम्राज्य के शुरुआती सम्राटों की मातृभाषा भी चग़ताई तुर्की ही थी और बाबर ने अपनी प्रसिद्ध 'बाबरनामा' जीवनी इसी भाषा में लिखी थी।, Calum MacLeod, Bradley Mayhew, Odyssey, 2008, ISBN 978-962-217-795-6,...

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पानीपत का प्रथम युद्ध

पानीपत का पहला युद्ध, उत्तरी भारत में लड़ा गया था और इसने इस इलाके में मुग़ल साम्राज्य की नींव रखी। यह उन पहली लड़ाइयों में से एक थी जिसमें बारूद, आग्नेयास्त्रों और मैदानी तोपखाने को लड़ाई में शामिल किया गया था। सन् 1526 में, काबुल के तैमूरी शासक ज़हीर उद्दीन मोहम्मद बाबर, की सेना ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी, की एक ज्यादा बड़ी सेना को युद्ध में परास्त किया। युद्ध को 21 अप्रैल को पानीपत नामक एक छोटे से गाँव के निकट लड़ा गया था जो वर्तमान भारतीय राज्य हरियाणा में स्थित है। पानीपत वो स्थान है जहाँ बारहवीं शताब्दी के बाद से उत्तर भारत के नियंत्रण को लेकर कई निर्णायक लड़ाइयां लड़ी गयीं। एक अनुमान के मुताबिक बाबर की सेना में 15000 के करीब सैनिक और 20-24 मैदानी तोपें थीं। लोधी का सेनाबल 130000 के आसपास था, हालांकि इस संख्या में शिविर अनुयायियों की संख्या शामिल है, जबकि लड़ाकू सैनिकों की संख्या कुल 100000 से 110000 के आसपास थी, इसके साथ कम से कम 300 युद्ध हाथियों ने भी युद्ध में भाग लिया था। क्षेत्र के हिंदू राजा-राजपूतों इस युद्ध में तटस्थ रहे थे, लेकिन ग्वालियर के कुछ तोमर राजपूत इब्राहिम लोदी की ओर से लड़े थे। .

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बाबर

ज़हिर उद-दिन मुहम्मद बाबर (14 फ़रवरी 1483 - 26 दिसम्बर 1530) जो बाबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, एक मुगल शासक था, जिनका मूल मध्य एशिया था। वह भारत में मुगल वंश के संस्थापक था। वो तैमूर लंग के परपोते था, और विश्वास रखते था कि चंगेज़ ख़ान उनके वंश के पूर्वज था। मुबईयान नामक पद्य शैली का जन्मदाता बाबर को ही माना जाता है! .

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बाबरी मस्जिद

बाबरी मस्जिद उत्तर प्रदेश के फ़ैज़ाबाद ज़िले के अयोध्या शहर में रामकोट पहाड़ी ("राम का किला") पर एक मस्जिद थी। रैली के आयोजकों द्वारा मस्जिद को कोई नुकसान नहीं पहुंचाने देने की भारत के सर्वोच्च न्यायालय से वचनबद्धता के बावजूद, 1992 में 150,000 लोगों की एक हिंसक रैली.

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भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास

भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास बहुत पुराना है। भारत की आजादी के पूर्व अंग्रंजों ने सुविधाएं प्राप्त करने के लिए भारत के सम्पन्न लोगों को सुविधास्वरूप धन देना प्रारंभ किया। राजे-रजवाड़े और साहूकारों को धन देकर उनसे वे सब प्राप्त कर लेते थे जो उन्हे चाहिए था। अंग्रेज भारत के रईसों को धन देकर अपने ही देश के साथ गद्दारी करने के लिए कहा करते थे और ये रईस ऐसा ही करते थे। यह भ्रष्टाचार वहीं से प्रारम्भ हुआ और तब से आज तक लगातार चलते हुए फल फूल रहा है। बाबरनामा में उल्लेख है कि कैसे मुट्ठी भर बाहरी हमलावर भारत की सड़कों से गुजरते थे। सड़क के दोनों ओर लाखों की संख्या में खड़े लोग मूकदर्शक बन कर तमाशा देखते थे। बाहरी आक्रमणकारियों ने कहा है कि यह मूकदर्शक बनी भीड़, अगर हमलावरों पर टूट पड़ती, तो भारत के हालात भिन्न होते। इसी तरह पलासी की लड़ाई में एक तरफ़ लाखों की सेना, दूसरी तरफ़ अंगरेजों के साथ मुट्ठी भर सिपाही, पर भारतीय हार गये। एक तरफ़ 50,000 भारतीयों की फ़ौज, दूसरी ओर अंगरेजों के 3000 सिपाही.

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भारतीय चित्रकला

'''भीमवेटका''': पुरापाषाण काल की भारतीय गुफा चित्रकला भारत मैं चित्रकला का इतिहास बहुत पुराना रहा हैं। पाषाण काल में ही मानव ने गुफा चित्रण करना शुरु कर दिया था। होशंगाबाद और भीमबेटका क्षेत्रों में कंदराओं और गुफाओं में मानव चित्रण के प्रमाण मिले हैं। इन चित्रों में शिकार, शिकार करते मानव समूहों, स्त्रियों तथा पशु-पक्षियों आदि के चित्र मिले हैं। अजंता की गुफाओं में की गई चित्रकारी कई शताब्दियों में तैय्यार हुई थी, इसकी सबसे प्राचिन चित्रकारी ई.पू.

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सियालकोट ज़िला

पाकिस्तानी पंजाब प्रांत में सियालकोट ज़िला (लाल रंग में) सियालकोट (उर्दू:, अंग्रेज़ी: Sialkot) पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का एक ज़िला है। सियालकोट ज़िले की राजधानी सियालकोट शहर है। इस ज़िले की चार तहसीलें हैं - डसका, पसरूर, सम्बड़ियाल और सियालकोट। यह ज़िला पाकिस्तानी पंजाब प्रान्त के पूर्वोत्तर में स्थित है। इसकी सीमाएँ पश्चिमोत्तर में गुजरात ज़िले से, पूर्वोत्तर में भारत के जम्मू ज़िले से, दक्षिण पूर्व में नारोवाल ज़िले सेऔर दक्षिण-पश्चिम में गुजराँवाला ज़िले से लगतीं हैं। .

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हाजीपुर

हाजीपुर (Hajipur) भारत गणराज्य के बिहार प्रान्त के वैशाली जिला का मुख्यालय है। हाजीपुर भारत की संसदीय व्यवस्था के अन्तर्गत एक लोकसभा क्षेत्र भी है। 12 अक्टुबर 1972 को मुजफ्फरपुर से अलग होकर वैशाली के स्वतंत्र जिला बनने के बाद हाजीपुर इसका मुख्यालय बना। ऐतिहासिक महत्त्व के होने के अलावा आज यह शहर भारतीय रेल के पूर्व-मध्य रेलवे मुख्यालय है, इसकी स्थापना 8 सितम्बर 1996 को हुई थी।, राष्ट्रीय स्तर के कई संस्थानों तथा केले, आम और लीची के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। .

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हिन्दुओं का उत्पीड़न

हिन्दुओं का उत्पीडन हिन्दुओं के शोषण, जबरन धर्मपरिवर्तन, सामूहिक नरसहांर, गुलाम बनाने तथा उनके धर्मस्थलो, शिक्षणस्थलों के विनाश के सन्दर्भ में है। मुख्यतः भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा मलेशिया आदि देशों में हिन्दुओं को उत्पीडन से गुजरना पड़ा था। आज भी भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ हिस्सो में ये स्थिति देखने में आ रही है। .

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हिन्दी पुस्तकों की सूची/प

* पंच परमेश्वर - प्रेम चन्द्र.

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हेनरी बेवरीज

हेनरी बेवरीज। हेनरी बेवरिज (Henry Beveridge १८३७-१९२९) भारत में अंग्रेजी राज के समय का अईसीएस अधिकारी तथा भारतविद था। उसका बेटा विलियम बेवरीज प्रसिद्ध ब्रिटिश अर्थशास्त्री हुआ। उसका दादा नानाबाई था और पिता, हेनरी बेवरिज, क्रमश: पादरी, बैरिस्टर, दिवालिया और भाड़े का लेखक रहा। उसकी पुस्तक, 'कॉम्प्रीहेन्सिव हिस्ट्री ऑव इंडिया' तीन जिल्दों में १८६२ में छपी। अत:, शैशवकाल से ही हेनरी बेवरिज (छोटा) घर में भारत की चर्चा सुनता रहता था। .

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जीवनचरित

प्रसिद्ध इतिहासज्ञ और जीवनी-लेखक टामस कारलाइल ने अत्यंत सीधी सादी और संक्षिप्त परिभाषा में इसे "एक व्यक्ति का जीवन" कहा है। इस तरह किसी व्यक्ति के जीवन वृत्तांतों को सचेत और कलात्मक ढंग से लिख डालना जीवनचरित कहा जा सकता है। यद्यपि इतिहास कुछ हद तक, कुछ लोगों की राय में, महापुरुषों का जीवनवृत्त है तथापि जीवनचरित उससे एक अर्थ में भिन्न हो जाता है। जीवनचरित में किसी एक व्यक्ति के यथार्थ जीवन के इतिहास का आलेखन होता है, अनेक व्यक्तियों के जीवन का नहीं। फिर भी जीवनचरित का लेखक इतिहासकार और कलाकार के कर्त्तव्य के कुछ समीप आए बिना नहीं रह सकता। जीवनचरितकार एक ओर तो व्यक्ति के जीवन की घटनाओं की यथार्थता इतिहासकार की भाँति स्थापित करता है; दूसरी ओर वह साहित्यकार की प्रतिभा और रागात्मकता का तथ्यनिरूपण में उपयोग करता है। उसकी यह स्थिति संभवत: उसे उपन्यासकार के निकट भी ला देती है। जीवनचरित की सीमा का यदि विस्तार किया जाय तो उसके अंतर्गत आत्मकथा भी आ जायगी। यद्यपि दोनों के लेखक पारस्परिक रुचि और संबद्ध विषय की भिन्नता के कारण घटनाओं के यथार्थ आलेखन में सत्य का निर्वाह समान रूप से नहीं कर पाते। आत्मकथा के लेखक में सतर्कता के बावजूद वह आलोचनात्मक तर्कना चरित्र विश्लेषण और स्पष्टचारिता नहीं आ पाती जो जीवनचरित के लेखक विशिष्टता होती है। इस भिन्नता के लिये किसी को दोषी नहीं माना जा सकता। ऐसा होना पूर्णत: स्वाभाविक है। .

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घना पक्षी अभयारण्य

पौराणिक ब्रज क्षेत्र के एक भाग भरतपुर में केवलादेव (महादेव) मंदिर की अवस्थिति के कारण केवलादेव या घना कहा जाने वाला यह असाधारण रूप से विलक्षण राष्ट्रीय उद्यान वर्ष १९८५ से यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल है। इस उद्यान का क्षेत्रफल २.८७३ हेक्टेयर है। सर्दी की ऋतु में सेंकडों वर्षों से करीब ३६५ प्रजातियों के प्रवासी पक्षी अफगानिस्तान, तुर्की, चीन और सुदूर साइबेरिया तक से हजारों किलोमीटर का सफर तय कर के घना पहुँचते आये हैं, इसका उल्लेख मुग़ल सम्राट बाबर(February 23 1483 — जनवरी 5 1531) के ग्रन्थ बाबरनामा में भी आता है। दुर्भाग्य से अनेक कारणों से अब इस राष्ट्रीय पार्क में पिछले कुछ सालों में साइबेरियन क्रेन की यात्राएं और प्रवास दुर्लभ हो चले हैं। गोल्डनबैक्ड वूड्पेकर: छाया: हे.शे. महान पक्षीविज्ञानी सालिम अली के अनुसार पक्षियों का यह अंतर्राष्ट्रीय प्रवास, एक अनसुलझी गुत्थी,'एक रहस्य' है। शीतकाल में पक्षी विशेषज्ञों और पर्यावरण प्रेमियों के लिए ये जगह एक तरह से स्वर्ग बन जाती है, जब लगभग २३० से ज्यादा स्थानीय प्रजातियों के अलावा विदेशी परिंदे, जिनमें साइबेरियन क्रेन सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं, यहां निर्द्वन्द्व दाना चुगते, घोंसले बनाते, प्रजनन करते देखे जा सकते हैं। .

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कमल

'''कमल''' - यही भारत का राष्ट्रीय पुष्प भी है। कमल (वानस्पतिक नाम:नीलंबियन न्यूसिफ़ेरा (Nelumbian nucifera)) वनस्पति जगत का एक पौधा है जिसमें बड़े और सुन्दर फूल खिलते हैं। यह भारत का राष्ट्रीय पुष्प है। संस्कृत में इसके नाम हैं - कमल, पद्म, पंकज, पंकरुह, सरसिज, सरोज, सरोरुह, सरसीरुह, जलज, जलजात, नीरज, वारिज, अंभोरुह, अंबुज, अंभोज, अब्ज, अरविंद, नलिन, उत्पल, पुंडरीक, तामरस, इंदीवर, कुवलय, वनज आदि आदि। फारसी में कमल को 'नीलोफ़र' कहते हैं और अंग्रेजी में इंडियन लोटस या सैक्रेड लोटस, चाइनीज़ वाटर-लिली, ईजिप्शियन या पाइथागोरियन बीन। कमल का पौधा (कमलिनी, नलिनी, पद्मिनी) पानी में ही उत्पन्न होता है और भारत के सभी उष्ण भागों में तथा ईरान से लेकर आस्ट्रेलिया तक पाया जाता है। कमल का फूल सफेद या गुलाबी रंग का होता है और पत्ते लगभग गोल, ढाल जैसे, होते हैं। पत्तों की लंबी डंडियों और नसों से एक तरह का रेशा निकाला जाता है जिससे मंदिरों के दीपों की बत्तियाँ बनाई जाती हैं। कहते हैं, इस रेशे से तैयार किया हुआ कपड़ा पहनने से अनेक रोग दूर हो जाते हैं। कमल के तने लंबे, सीधे और खोखले होते हैं तथा पानी के नीचे कीचड़ में चारों ओर फैलते हैं। तनों की गाँठों पर से जड़ें निकलती हैं। .

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कालिंजर दुर्ग

कालिंजर, उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के बांदा जिले में कलिंजर नगरी में स्थित एक पौराणिक सन्दर्भ वाला, ऐतिहासिक दुर्ग है जो इतिहास में सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रहा है। यह विश्व धरोहर स्थल प्राचीन मन्दिर नगरी-खजुराहो के निकट ही स्थित है। कलिंजर नगरी का मुख्य महत्त्व विन्ध्य पर्वतमाला के पूर्वी छोर पर इसी नाम के पर्वत पर स्थित इसी नाम के दुर्ग के कारण भी है। यहाँ का दुर्ग भारत के सबसे विशाल और अपराजेय किलों में एक माना जाता है। इस पर्वत को हिन्दू धर्म के लोग अत्यंत पवित्र मानते हैं, व भगवान शिव के भक्त यहाँ के मन्दिर में बड़ी संख्या में आते हैं। प्राचीन काल में यह जेजाकभुक्ति (जयशक्ति चन्देल) साम्राज्य के अधीन था। इसके बाद यह दुर्ग यहाँ के कई राजवंशों जैसे चन्देल राजपूतों के अधीन १०वीं शताब्दी तक, तदोपरांत रीवा के सोलंकियों के अधीन रहा। इन राजाओं के शासनकाल में कालिंजर पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, शेर शाह सूरी और हुमांयू जैसे प्रसिद्ध आक्रांताओं ने आक्रमण किए लेकिन इस पर विजय पाने में असफल रहे। अनेक प्रयासों के बाद भी आरम्भिक मुगल बादशाह भी कालिंजर के किले को जीत नहीं पाए। अन्तत: मुगल बादशाह अकबर ने इसे जीता व मुगलों से होते हुए यह राजा छत्रसाल के हाथों अन्ततः अंग्रेज़ों के अधीन आ गया। इस दुर्ग में कई प्राचीन मन्दिर हैं, जिनमें से कई तो गुप्त वंश के तृतीय -५वीं शताब्दी तक के ज्ञात हुए हैं। यहाँ शिल्पकला के बहुत से अद्भुत उदाहरण हैं। .

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कोहिनूर हीरा

Glass replica of the Koh-I-Noor as it appeared in its original form, turned upside down कोहिनूर (फ़ारसी: कूह-ए-नूर) एक १०५ कैरेट (२१.६ ग्राम) का हीरा है जो किसी समय विश्व का सबसे बड़ा ज्ञात हीरा रह चुका है। कहा जाता है कि यह हीरा भारत की गोलकुंडा की खान से निकाला गया था। 'कोहिनूर' का अर्थ है- आभा या रोशनी का पर्वत। यह कई मुगल व फारसी शासकों से होता हुआ, अन्ततः ब्रिटिश शासन के अधिकार में लिया गया, व उनके खजाने में शामिल हो गया, जब ब्रिटिश प्रधान मंत्री, बेंजामिन डिजराएली ने महारानी विक्टोरिया को १८७७ में भारत की सम्राज्ञी घोषित किया। अन्य कई प्रसिद्ध जवाहरातों की भांति ही, कोहिनूर की भी अपनी कथाएं रही हैं। इससे जुड़ी मान्यता के अनुसार, यह पुरुष स्वामियों का दुर्भाग्य व मृत्यु का कारण बना, व स्त्री स्वामिनियों के लिये सौभाग्य लेकर आया। अन्य मान्यता के अनुसार, कोहिनूर का स्वामी संसार पर राज्य करने वाला बना। .

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तुजके-बाबरी

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