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बादल कक्ष

सूची बादल कक्ष

स्पष्ट आयनीकरण विकिरण के पथ चिन्हों को दिखाता बादल कक्ष (छोटे, मोटे: α-कण; लम्बे, पतले: β-कण)। बादल कक्ष (अंग्रेजी: Cloud chamber) जिसे विल्सन कक्ष के नाम से भी जाना जाता है, का प्रयोग आयनीकरण विकिरण के कणों का पता लगाने के लिए किया जाता है। अपने सबसे बुनियादी रूप में बादल कक्ष एक बंद वातावरण होता है जिसमें परमशीतल या परमसंतृप्त जल अथवा अल्कोहल वाष्प भरी होती है। जब कोई अल्फा या बीटा कण मिश्रण से गुजरता है, तो यह वाष्प आयनीकृत हो जाती है। इस क्रिया से उत्पन्न आयन संघनन नाभिक के रूप में कार्य करते हैं और इनके चारों ओर एक धुंध इकत्र हो जाती है (क्योंकि मिश्रण संघनन के कगार पर होता है)। उच्च ऊर्जा से आवेशित अल्फा और बीटा कणों के मार्ग की दिशा में कई आयनों का उत्पादन होने के परिणामस्वरूप कई पथचिन्ह पीछे छूट जाते हैं। यह पथ कई आकार और आकृति के होते हैं, उदाहरण के लिए अल्फा कण का पथ चौड़ा और सीधा होता है, जबकि एक इलेक्ट्रॉन का पथ पतला और संघट्‍टन से हुये विक्षेपण के अधिक साक्ष्य प्रस्तुत करता है। जब किसी बादल कक्ष पर एक समान चुंबकीय क्षेत्र आरोपित किया जाता है तो लोरेंट्ज़ के बल के नियम के अनुसार धनात्मक और ऋणात्मक आवेशित कण विपरीत दिशाओं में वक्रित होते हैं। .

3 संबंधों: पोजीट्रॉन, बादल संघनन नाभिक, सी टी आर विल्सन

पोजीट्रॉन

पाजीट्रोन (e+) या पोजीटिव इलेक्ट्रोन (धन आवेश युक्त इलेक्ट्रोन) परमाणु में पाया जाने वाला एक मौलिक कण है। यह धन आवेश युक्त इलेक्ट्रोन है। इसके गुण इलेक्ट्रोन के समान होते किन्तु दोनो में अंतर यह है कि इलेक्ट्रोन ऋण आवेश युक्त कण है तथा पोजीट्रोन धन आवेश युक्त कण है। इसका द्रव्यमान इलेक्ट्रोन के द्रव्यमान के समान होता है। इसकी खोज सन १९३२ में कार्ल डी एंडरसन ने की थी। इसका विद्युत आवेश +1.602176487(40)×10−19 कूलाम्ब होता है। इसकी घूर्णन गति आधी होती है। पोजिट्रोन को β+ चिन्ह से भी दर्शाते है। जब पोजिट्रोन तथा इलेक्ट्रोन की टक्कर होती है तो दोनो नष्ट हो जाते हैं और दो गामा किरण फोटान उत्पन्न होती है। चिकित्सालय में उपयोग होने वाले एक्स किरण में न्यूट्रोन, गामा किरण, प्रोटोन, न्यूट्रिनो, के साथ पोजिट्रोन भी शामिल रहता है। .

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बादल संघनन नाभिक

उत्तरी भारत और बांग्लादेश के ऊपर एअरोसोल प्रदूषण- नासाबादल संघनन नाभिक या संघनन का नाभिक (अंग्रेजी: Cloud condensation nuclei) वो छोटे कण (आमतौर पर 0.2 μm या बादल की बूदों के आकार का 1/100 वां भाग) होते हैं जिन पर, बादल की छोटी बूंदें आपस में जुड़कर एक बड़ी बूंद का निर्माण करती हैं। जल को वाष्प से द्रव अवस्था प्राप्त करने के लिए एक गैर-गैस सतह की आवश्यकता होती है और वातावरण में, यह सतह बादल संघनन नाभिक उपलब्ध कराते हैं। जब कोई बादल संघनन नाभिक मौजूद नहीं होता तो भी, जल वाष्प को 0° सेल्सियस (32 °F) से नीचे परमशीतल किया जा सकता है ताकि बूंदों का स्वत: निर्माण हो सके (यह उपपरमाण्विक कणों का पता लगाने के लिए प्रयुक्त बादल कक्ष तकनीक का आधार है)। हिमांक से ऊपर के तापमान में बूंदों के निर्माण के लिए वायु की परमसंतृप्ता 400% के आसपास होनी चाहिए। बादल संघनन नाभिक ही मेघांकुर की अवधारणा का आधार है, जिसके अंतर्गत वर्षा करवाने के लिए वायु में मेघांकुर छोड़े जाते हैं। .

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सी टी आर विल्सन

चार्ल्स थॉमसन रीस विल्सन (4 फ़रवरी 1869 – 15 नवम्बर 1959) स्कॉटलैंड के भौतिक विज्ञानी और मौसम विज्ञानी थे। बादल कक्ष के आविष्कार के लिए वर्ष 1927 में उन्हें भौतिक विज्ञान में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

विल्सन अभ्रकोष्ठ, अभ्र प्रकोष्ठ

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