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बरनावा

सूची बरनावा

बरनावा या वारणावत मेरठ से ३५ किलोमीटर दूर और सरधना से १७ कि.मी बागपत जिला में स्थित एक तहसील है। इसकी स्थापना राजा अहिरबारन तोमर ने बहुत समय पूर्व की थी। यहां महाभारत कालीन लाक्षाग्रह चिन्हित है। लाक्षाग्रह नामक इमारत के अवशेष यहां आज एक टीले के रूप में दिखाई देते हैं। महाभारत में कौरव भाइयों ने पांडवों को इस महल में ठहराया था और फिर जलाकर मारने की योजना बनायी थी। किन्तु पांडवों के शुभचिंतकों ने उन्हें गुप्त रूप से सूचित कर दिया और वे निकल भागे। वे यहां से गुप्त सुरंग द्वारा निकले थे। ये सुरंग आज भी निकलती है, जो हिंडन नदी के किनारे पर खुलती है। इतिहास अनुसार पांडव इसी सुरंग के रास्ते जलते महल से सुरक्षित बाहर निकल गए थे।। मुसाफ़िर हूं यारों। १६ दिसम्बर २००८। नीरज जाट जी जनपद में बागपत व बरनावा तक पहुंचने वाली कृष्णा नदी का यहां हिंडन में मिलन होता है। उल्लेखनीय है कि पांडवों ने जो पाँच गाँव दुर्योधन से माँगे थे वह गाँव पानीपत, सोनीपत, बागपत, तिलपत, वरुपत (बरनावा) यानि पत नाम से जाने जाते हैं। जब श्रीकृष्ण जी संधि का प्रस्ताव लेकर दुर्योधन के पास आए थे तो दुर्योधन ने कृष्ण का यह कहकर अपमान कर दिया था कि "युद्ध के बिना सुई की नोक के बराबर भी जमीन नहीं मिलेगी।" इस अपमान की वजह से कृष्ण ने दुर्योधन के यहाँ खाना भी नहीं खाया था। वे गए थे महामुनि विदुर के आश्रम में। विदुर का आश्रम आज गंगा के उस पार बिजनौर जिले में पड़ता है। वहां पर विदुर जी ने कृष्ण को बथुवे का साग खिलाया था। आज भी इस क्षेत्र में बथुवा बहुतायत से उगता है। .

3 संबंधों: लाक्षागृह, हिण्डन नदी, कुरुक्षेत्र युद्ध

लाक्षागृह

बरनावा सथित लाक्षागृह का चिह्नित सथान लाक्षागृहम् महाभारत के अट्ठारह पर्वों में से एक पर्व है। .

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हिण्डन नदी

हिण्डन नदी, उत्तरी भारत में यमुना नदी की एक सहायक नदी है। इसका पुरातन नाम हरनदी या हरनंदी भी था। इसका उद्गम सहारनपुर जिला में निचले हिमालय क्षेत्र के ऊपरी शिवालिक पर्वतमाला में स्थित है। यह पूर्णत: वर्षा-आश्रित नदी है और इसका बेसिन क्षेत्र ७,०८३ वर्ग कि॰ मी॰ है। यह गंगा और यमुना नदियों के बीच लगभग ४०० कि॰ मी॰ की लम्बाई में मुज़फ्फरनगर जिला, मेरठ जिला, बागपत जिला, गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा से निकलते हुए दिल्ली से कुछ दूरी पर यमुना मिल जाती है। कभी महानगर की पहचान मानी जाने वाली हिंडन नदी का अस्तित्व खतरे में है। इसका पानी पीने लायक तो कभी रहा नहीं, अब इस नदी में प्रदूषण इतना बढ़ चुका है कि जलीय प्राणियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। ऐसे में हिंडन नदी अब केवल शोध करने तक ही सीमित रह गई है। इसमें ऑक्सीजन की मात्रा लगातार घटती जा रही है। वर्षा ऋतु में भी यह लगभग जलविहीन रहती है। नदी में लगातार औद्योगिक अपशिष्ट व पूजन सामग्री आदि डाले जाने से उसमें घुलित ऑक्सीजन की मात्रा दो से तीन मिलीग्राम प्रति लीटर रह गई है। शोधकर्ता डॉ॰ प्रसूम त्यागी के अनुसार प्रायः ऑक्सीजन का स्तर ६० लाख मिलीग्राम प्रति लीटर या ज्यादा होना चाहिए। यही कारण है कि नदी में मोहन नगर व छगारसी के पास ही जलीय जीवन के नाम पर केवल काइरोनॉस लार्वा ही बचा है, जो भारी जल प्रदूषण का संकेत है। यह सूक्ष्म जीव की श्रेणी में आता है। हिंडन नदी में मोहन नगर औद्योगिक क्षेत्र से डिस्टलरी का अपशिष्ट, वेस्ट डिस्चार्ज, धार्मिक पूजन सामग्री व मलमूत्र मिलते हैं। इसके बाद छगारसी ग्राम में पशुओं को नहलाना व खनन आदि होता है, जिसके कारण प्रदूषण में बढोत्तरी होती है। लगभग दस साल पहले तक नदी में अनेक कशेरुकी प्राणी, मछलियां व मेढ़क आदि मिलते थे, जो कि वर्तमान में मात्र सूक्ष्मजीव, काइरोनॉमस लार्वा, नेपिडी, ब्लास्टोनेटिडी, फाइसीडी, प्लैनेरोबिडी परिवार के सदस्य ही बचे हैं। .

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कुरुक्षेत्र युद्ध

कुरुक्षेत्र युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य कुरु साम्राज्य के सिंहासन की प्राप्ति के लिए लड़ा गया था। महाभारत के अनुसार इस युद्ध में भारत के प्रायः सभी जनपदों ने भाग लिया था। महाभारत व अन्य वैदिक साहित्यों के अनुसार यह प्राचीन भारत में वैदिक काल के इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध था। महाभारत-गीताप्रेस गोरखपुर,सौप्तिकपर्व इस युद्ध में लाखों क्षत्रिय योद्धा मारे गये जिसके परिणामस्वरूप वैदिक संस्कृति तथा सभ्यता का पतन हो गया था। इस युद्ध में सम्पूर्ण भारतवर्ष के राजाओं के अतिरिक्त बहुत से अन्य देशों के क्षत्रिय वीरों ने भी भाग लिया और सब के सब वीर गति को प्राप्त हो गये। महाभारत-गीताप्रेस गोरखपुर,भीष्मपर्व इस युद्ध के परिणामस्वरुप भारत में ज्ञान और विज्ञान दोनों के साथ-साथ वीर क्षत्रियों का अभाव हो गया। एक तरह से वैदिक संस्कृति और सभ्यता जो विकास के चरम पर थी उसका एकाएक विनाश हो गया। प्राचीन भारत की स्वर्णिम वैदिक सभ्यता इस युद्ध की समाप्ति के साथ ही समाप्त हो गयी। इस महान युद्ध का उस समय के महान ऋषि और दार्शनिक भगवान वेदव्यास ने अपने महाकाव्य महाभारत में वर्णन किया, जिसे सहस्राब्दियों तक सम्पूर्ण भारतवर्ष में गाकर एवं सुनकर याद रखा गया। महाभारत में मुख्यतः चंद्रवंशियों के दो परिवार कौरव और पाण्डव के बीच हुए युद्ध का वृत्तांत है। १०० कौरवों और पाँच पाण्डवों के बीच कुरु साम्राज्य की भूमि के लिए जो संघर्ष चला उससे अंतत: महाभारत युद्ध का सृजन हुआ। उक्त युद्ध को हरियाणा में स्थित कुरुक्षेत्र के आसपास हुआ माना जाता है। इस युद्ध में पाण्डव विजयी हुए थे। महाभारत में इस युद्ध को धर्मयुद्ध कहा गया है, क्योंकि यह सत्य और न्याय के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध था। महाभारत काल से जुड़े कई अवशेष दिल्ली में पुराना किला में मिले हैं। पुराना किला को पाण्डवों का किला भी कहा जाता है। कुरुक्षेत्र में भी भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा महाभारत काल के बाण और भाले प्राप्त हुए हैं। गुजरात के पश्चिमी तट पर समुद्र में डूबे ७०००-३५०० वर्ष पुराने शहर खोजे गये हैं, जिनको महाभारत में वर्णित द्वारका के सन्दर्भों से जोड़ा गया, इसके अलावा बरनावा में भी लाक्षागृह के अवशेष मिले हैं, ये सभी प्रमाण महाभारत की वास्तविकता को सिद्ध करते हैं। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

वारणावत, वार्णावत

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