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बंदर

सूची बंदर

बंदर एक मेरूदण्डी, स्तनधारी प्राणी है। इसके हाथ की हथेली एवं पैर के तलुए छोड़कर सम्पूर्ण शरीर घने रोमों से ढकी है। कर्ण पल्लव, स्तनग्रन्थी उपस्थित होते हैं। मेरूदण्ड का अगला भाग पूँछ के रूप में विकसित होता है। हाथ, पैर की अँगुलियाँ लम्बी नितम्ब पर मांसलगदी है। .

28 संबंधों: डमरु, डोडो, तीर्थंकर, दक्षिण अमेरिका, पत्तन, पर्णाहारी, पशुजन्यरोग, पालामऊ व्याघ्र आरक्षित वन, प्रचलित गलत धारणाओं की सूची, मैथुन, मेसोअमेरिकी, युगाण्डा, लीमर, स्नेह सिद्धान्त, हनुमान लंगूर में पूँछ वहन, हैप्लोराइनी, जैन धर्म के तीर्थंकर, वर्षावन, खारे पानी के मगरमच्छ, गारफ़ील्ड, गिबन, अनंत बंदर प्रमेय, अफ़्रीका, अफ़्रीका की प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीव, अफ्फनपिन्स्चर, अभिनंदननाथ, उष्णकटिबंधीय वर्षा-वन, २४ तीर्थंकर

डमरु

डमरु या डुगडुगी एक छोटा संगीत वाद्य यन्त्र होता है। इसमें एक-दूसरे से जुड़े हुए दो छोटे शंकुनुमा हिस्से होते हैं जिनके चौड़े मुखों पर चमड़ा या ख़ाल कसकर तनी हुई होती है। डमरू के तंग बिचौले भाग में एक रस्सी बंधी होती है जिसके दूसरे अन्त पर एक पत्थर या कांसे का डला या भारी चमड़े का टुकड़ा बंधा होता है। हाथ एक-फिर-दूसरी तरफ़ हिलाने पर यह डला पहले एक मुख की ख़ाल पर प्रहार करता है और फिर उलटकर दूसरे मुख पर, जिस से 'डुग-डुग' की आवाज़ उत्पन्न होती है। तेज़ी से हाथ हिलाने पर इस 'डुग-डुग' की गति और ध्वनि-शक्ति काफ़ी बढ़ाई जा सकती है। .

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डोडो

डोडो (रैफस कुकुलैटस) हिंद महासागर के द्वीप मॉरीशस का एक स्थानीय पक्षी था। यह पक्षी वर्ग में होते हुए भी थलचर था, क्योंकि इसमे उड़ने की क्षमता नहीं थी। १७वीं सदी के अंत तक यह पक्षी मानव द्वारा अत्याधिक शिकार किये जाने के कारण विलुप्त हो गया। यह पक्षी कबूतर और फाख्ता के परिवार से संबंधित था। यह मुर्गे के आकार का लगभग एक मीटर उँचा और २० किलोग्राम वजन का होता था। इसके कई दुम होती थीं। यह अपना घोंसला ज़मीन पर बनाता था, तथा इसकी खुराक में स्थानीय फल शामिल थे। डोडो मुर्गी से बड़े आकार का भारी-भरकम, गोलमटोल पक्षी था। इसकी टांगें छोटी व कमजोर थीं, जो उसका वजन संभाल नहीं पाती थीं। इसके पंख भी बहुत ही छोटे थे, जो डोडो के उड़ने के लिए पर्याप्त नहीं थे। इस कारण यह न तेज दौड़ सकता था, न उड़ सकता था। रंग-बिरंगे डोडो झुंड में लुढ़कते-गिरते चलते थे, तो स्थानीय लोगों का मनोरंजन होता था। डोडो शब्द की उत्पत्ति पुर्तगाली शब्द दोउदो से हुई है, जिसका अर्थ मूर्ख या बावला होता है। कहा जाता है कि उन्होंने डोडो पक्षी को मुगल दरबार में भी पेश किया था, जहाँ के दरबारी चित्रकार ने इस विचित्र और बेढंगे पक्षी का चित्र भी बनाया था। कुछ प्राणिशास्त्रियों के अनुसार पहले अतीत में उड़ानक्षम डोडो, परिस्थितिजन्य कारणों से धीरे-धीरे उड़ने की क्षमता खो बैठे। अब डोडो मॉरीशस के राष्ट्रीय चिह्न में दिखता है। इसके अलावा डोडो की विलुप्ति को मानव गतिविधियों के कारण हुई न बदलने वाली घटनाओं के एक उदाहरण के तौर पर देखा जाता है। मानवों के मॉरीशस द्वीप पर आने से पूर्व डोडो का कोई भी प्राकृतिक शिकारी इस द्वीप पर नहीं था। यही कारण है कि यह पक्षी उड़ान भरने मे सक्षम नहीं था। इसका व्यवहार मानवों के प्रति पूरी तरह से निर्भीक था और अपनी न उड़ पाने की क्षमता के कारण यह आसानी से शिकार बन गया। .

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तीर्थंकर

जैन धर्म में तीर्थंकर (अरिहंत, जिनेन्द्र) उन २४ व्यक्तियों के लिए प्रयोग किया जाता है, जो स्वयं तप के माध्यम से आत्मज्ञान (केवल ज्ञान) प्राप्त करते है। जो संसार सागर से पार लगाने वाले तीर्थ की रचना करते है, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। तीर्थंकर वह व्यक्ति हैं जिन्होनें पूरी तरह से क्रोध, अभिमान, छल, इच्छा, आदि पर विजय प्राप्त की हो)। तीर्थंकर को इस नाम से कहा जाता है क्योंकि वे "तीर्थ" (पायाब), एक जैन समुदाय के संस्थापक हैं, जो "पायाब" के रूप में "मानव कष्ट की नदी" को पार कराता है। .

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दक्षिण अमेरिका

दक्षिण अमेरिका (स्पेनी: América del Sur; पुर्तगाली: América do Sul) उत्तर अमेरिका के दक्षिण पूर्व में स्थित पश्चिमी गोलार्द्ध का एक महाद्वीप है। दक्षिणी अमेरिका उत्तर में १३० उत्तरी अक्षांश (गैलिनस अन्तरीप) से दक्षिण में ५६० दक्षिणी अक्षांश (हार्न अन्तरीप) तक एवं पूर्व में ३५० पश्चिमी देशान्तर (रेशिको अन्तरीप) से पश्चिम में ८१० पश्चिमी देशान्तर (पारिना अन्तरीप) तक विस्तृत है। इसके उत्तर में कैरीबियन सागर तथा पनामा नहर, पूर्व तथा उत्तर-पूर्व में अन्ध महासागर, पश्चिम में प्रशान्त महासागर तथा दक्षिण में अण्टार्कटिक महासागर स्थित हैं। भूमध्य रेखा इस महाद्वीप के उत्तरी भाग से एवं मकर रेखा मध्य से गुजरती है जिसके कारण इसका अधिकांश भाग उष्ण कटिबन्ध में पड़ता है। दक्षिणी अमेरिका की उत्तर से दक्षिण लम्बाई लगभग ७,२०० किलोमीटर तथा पश्चिम से पूर्व चौड़ाई ५,१२० किलोमीटर है। विश्व का यह चौथा बड़ा महाद्वीप है, जो आकार में भारत से लगभग ६ गुना बड़ा है। पनामा नहर इसे पनामा भूडमरुमध्य पर उत्तरी अमरीका महाद्वीप से अलग करती है। किंतु पनामा देश उत्तरी अमरीका में आता है। ३२,००० किलोमीटर लम्बे समुद्रतट वाले इस महाद्वीप का समुद्री किनारा सीधा एवं सपाट है, तट पर द्वीप, प्रायद्वीप तथा खाड़ियाँ कम हैं जिससे अच्छे बन्दरगाहों का अभाव है। खनिज तथा प्राकृतिक सम्पदा में धनी यह महाद्वीप गर्म एवं नम जलवायु, पर्वतों, पठारों घने जंगलों तथा मरुस्थलों की उपस्थिति के कारण विकसित नहीं हो सका है। यहाँ विश्व की सबसे लम्बी पर्वत-श्रेणी एण्डीज पर्वतमाला एवं सबसे ऊँची टीटीकाका झील हैं। भूमध्यरेखा के समीप पेरू देश में चिम्बोरेजो तथा कोटोपैक्सी नामक विश्व के सबसे ऊँचे ज्वालामुखी पर्वत हैं जो लगभग ६,०९६ मीटर ऊँचे हैं। अमेजन, ओरीनिको, रियो डि ला प्लाटा यहाँ की प्रमुख नदियाँ हैं। दक्षिण अमेरिका की अन्य नदियाँ ब्राज़ील की साओ फ्रांसिस्को, कोलम्बिया की मैगडालेना तथा अर्जेण्टाइना की रायो कोलोरेडो हैं। इस महाद्वीप में ब्राज़ील, अर्जेंटीना, चिली, उरुग्वे, पैराग्वे, बोलिविया, पेरू, ईक्वाडोर, कोलोंबिया, वेनेज़ुएला, गुयाना (ब्रिटिश, डच, फ्रेंच) और फ़ाकलैंड द्वीप-समूह आदि देश हैं। .

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पत्तन

| समुद्रबंदरगाह, क्लाड लोरेन द्वारा एक 17 वीं सदी का चित्रण, 1638 |- | डोवर का बंदरगाह, ब्रिटेन. |- | ग्रीस में पीरइउस का बंदरगाह |- | विशाखापटनम बंदरगाह, आंध्र प्रदेश, भारत. |- | कोबे का बंदरगाह, गोधूलि के समय जापान |- | मियामी का बंदरगाह |- | बंदरगाह नेवार्क, नेवार्क खाड़ी के पार देखा जाने वाला |- | एक बंदरगाह, एक तट या किनारे पर एक स्थान होता है, जिसमें एक या अधिक बंदरगाह समाविष्ट होते हैं, जहां जहाज़ लोगों या नौभार को ज़मीन से या तक डॉक और हस्तान्तरित कर सकते है। बंदरगाह स्थान, वाणिज्यिक मांग और हवा एंव लहरों से शरण के लिए, भूमि और नौगम्य पानी के अधिगम को उपयुक्त बनाने के लिए चयनित किये जाते हैं। गहरे पानी वाले बंदरगाह कम हैं, लेकिन बड़े, अधिक किफायती जहाज़ संभाल सकते हैं। चूँकि, पूरे इतिहास में बंदरगाहों ने प्रत्येक प्रकार का यातायात संभाला है, इसलिए समर्थन और भंडारण सुविधाएं व्यापक रूप से भिन्न हैं, यह मीलों के लिए विस्तृत किये हो सकते हैं और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर हावी होते हैं। कुछ बंदरगाहों की एक महत्वपूर्ण, संभवतः विशेष रूप से सामरिक भूमिका है। .

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पर्णाहारी

प्राणी विज्ञान में पर्णाहारी (folivore) ऐसे शाकाहारी प्राणी होते हैं जो अधिकतर पत्ते खाते हैं। शिशु पत्तों को छोड़कर, पूरी तरह से विकसित पत्तों में सेलुलोस की भरमार होती है जिसे पचाना कठिन होता है। इसके अलावा कई पत्तों में विषैले पदार्थ भी पाए जाते हैं। इस कारणवश पर्णाहारी पशुओं में पचन तंत्र की नली बहुत लम्बी होती है और पचन-क्रिया धीमी होती है, जिस से वह सेलुलोस को रसायनिक क्रिया से तोड़कर हज़म कर सकें और विष भी निकालकर अलग कर सकें। नरवानर जैसे कई पर्णाहारियों में भी शिशु पत्तों को चुनकर खाने की आदत देखी गई है क्योंकि उन्हें पचाना अधिक आसान होता है। .

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पशुजन्यरोग

ज़ूनोसिस या ज़ूनोस कोई भी ऐसा संक्रामक रोग है जो (कुछ उदाहरणों में, एक निश्चित परिमाण द्वारा) गैर मानुषिक जानवरों, घरेलू और जंगली दोनों ही, से मनुष्यों में या मनुष्यों से गैर मानुषिक जानवरों में संक्रमित हो सकता है (मनुष्यों से जानवरों में संक्रमित होने पर इसे रिवर्स ज़ुनिसिस या एन्थ्रोपोनोसिस कहते हैं).

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पालामऊ व्याघ्र आरक्षित वन

पलामू व्याघ्र आरक्षित वन झारखंड के छोटा नागपुर पठार के लातेहर जिले में स्थित है। यह १९७४ में बाघ परियोजना के अंतर्गत गठित प्रथम ९ बाघ आरक्षों में से एक है। पलामू व्याघ्र आरक्ष १,०२६ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें पलामू वन्यजीव अभयारण्य का क्षेत्रफल 980 वर्ग किलोमीटर है। अभयारण्य के कोर क्षेत्र 226 वर्ग किलोमीटर को बेतला राष्ट्रीय उद्यान के रूप में अधिसूचित किया गया है। पलामू आरक्ष के मुख्य आकर्षणों में शामिल हैं बाघ, हाथी, तेंदुआ, गौर, सांभर और चीतल। पलामू ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। सन १८५७ की क्रांति में पलामू ने अहम भूमिका निभाई थी। चेरो राजाओं द्वारा निर्मित दो किलों के खंडहर पलामू व्याघ्र आरक्ष में विद्यमान हैं। पलामू में कई प्रकार के वन पाए जाते हैं, जैसे शुष्क मिश्रित वन, साल के वन और बांस के झुरमुट, जिनमें सैकड़ों वन्य जीव रहते हैं। पलामू के वन तीन नदियों के जलग्रहण क्षेत्र को सुरक्षा प्रदान करते हैं। ये नदियां हैं उत्तर कोयल औरंगा और बूढ़ा। २०० से अधिक गांव पलामू व्याघ्र आरक्ष पर आर्थिक दृष्टि से निर्भर हैं। इन गांवों की मुख्य आबादी जनजातीय है। इन गांवों में लगभग १,००,००० लोग रहते हैं। पलामू के खूबसूरत वन, घाटियां और पहाड़ियां तथा वहां के शानदार जीव-जंतु बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। .

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प्रचलित गलत धारणाओं की सूची

यहाँ पर उन धारणाओं का विवरण दिया गया है जो जनसाधारण में व्यापक रूप से प्रचलित हैं किन्तु गहराई से विचार करने पर पता चलता है कि उनमें त्रुटि है। .

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मैथुन

मैथुन जीव विज्ञान में आनुवांशिक लक्षणों के संयोजन और मिश्रण की एक प्रक्रिया है जो किसी जीव के नर या मादा (जीव का लिंग) होना निर्धारित करती है। मैथुन में विशेष कोशिकाओं (गैमीट) के मिलने से जिस नये जीव का निर्माण होता है, उसमें माता-पिता दोनों के लक्षण होते हैं। गैमीट रूप व आकार में बराबर हो सकते हैं परन्तु मनुष्यों में नर गैमीट (शुक्राणु) छोटा होता है जबकि मादा गैमीट (अण्डाणु) बड़ा होता है। जीव का लिंग इस पर निर्भर करता है कि वह कौन सा गैमीट उत्पन्न करता है। नर गैमीट पैदा करने वाला नर तथा मादा गैमीट पैदा करने वाला मादा कहलाता है। कई जीव एक साथ दोनों पैदा करते हैं जैसे कुछ मछलियाँ। .

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मेसोअमेरिकी

350 पीएक्स (px) 350 पीएक्स (px) 350 पीएक्स (px) 350 पीएक्स (px) पैलेंकी के क्लासिक माया शहर का दृश्य, जो 6 और 7 सदियों में सुशोभित हुआ, मेसोअमेरिकी सभ्यता की उपलब्धियों के कई उदाहरणों में से एक है ट्युटिहुकन के मेसोअमेरिकी शहर का एक दृश्य, जो 200 ई. से 600 ई. तक सुशोभित हुआ और जो अमेरिका में दूसरी सबसे बड़ी पिरामिड की साइट है माया चित्रलिपि पत्रिका में अभिलेख, कई मेसोअमरिकी लेखन प्रणालियों में से एक शिलालेख.दुनिया में मेसोअमेरिका पांच स्थानों में से एक है जहां स्वतंत्र रूप से लेखन विकसित हुआ है मेसोअमेरिका या मेसो-अमेरिका (Mesoamérica) अमेरिका का एक क्षेत्र एवं सांस्कृतिक प्रान्त है, जो केन्द्रीय मैक्सिको से लगभग बेलाइज, ग्वाटेमाला, एल सल्वाडोर, हौंड्यूरॉस, निकारागुआ और कॉस्टा रिका तक फैला हुआ है, जिसके अन्दर 16वीं और 17वीं शताब्दी में, अमेरिका के स्पैनिश उपनिवेशवाद से पूर्व कई पूर्व कोलंबियाई समाज फलफूल रहे थे। इस क्षेत्र के प्रागैतिहासिक समूह, कृषि ग्रामों तथा बड़ी औपचारिक व राजनैतिक-धार्मिक राजधानियों द्वारा वर्णित हैं। यह सांस्कृतिक क्षेत्र अमेरिका की कुछ सर्वाधिक जटिल और उन्नत संस्कृतियों जैसे, ऑल्मेक, ज़ैपोटेक, टियोतिहुआकैन, माया, मिक्सटेक, टोटोनाक और एज़्टेक को शामिल करता है। .

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युगाण्डा

युगांडा गणराज्य पूर्वी अफ्रीका में स्थित एक लैंडलाक देश है। इसकी सीमा पूर्व में केन्या, उत्तर में सूडान, पश्चिम में कांगो लोकतान्त्रिक गणराज्य, दक्षिण पश्चिम में रवांडा और दक्षिण में तंजानिया से मिलती है। देश के दक्षिणी हिस्से में विक्टोरिया झील का एक बड़ा भाग शामिल है, जिससे केन्या और तंजानिया से सीमा निर्धारित होती है। युगांडा नाम बुगांडा राजशाही से लिया गया है, जिसमें देश का दक्षिणी ह्स्सिा, राजधानी कंपाला को शामिल कर, आता था। देश की एक तिहाई जनसंख्या अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा (2 डालर प्रतिदिन) से नीचे जीवनयापन करती है। .

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लीमर

लीमर मैडागास्कर में पाये जाने वाले छोटे वानर कुल के प्राणी हैं। यह स्ट्रॅपसराइनी उपकुल के वानर हैं जो मैडागास्कर के मूल निवासी हैं। काले और सफेद रंग के इस जंतु की पूंछ काफी लंबी व धारीदार होती है, जबकि आंखें बड़ी होती हैं। बंदरों से मिलता-जुलता लीमर अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। लीमर की 101 प्रजातियों में से 90 प्रतिशत विलुप्ति के कगार पर हैं। सबसे अधिक संकट ग्रेटर बैंबू लीमर प्रजाति पर है। पूरे विश्व में केवल 500 ग्रेटर बैंबू लीमर बचे हैं। अमेरिका के उत्तरी कैरोलिना में काफी संख्या में लीमर हैं, जबकि मेडागास्कर में इनकी संख्या गिनतियों में बची है। .

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स्नेह सिद्धान्त

स्नेह सिद्धान्त में जॉन बाल्बी ने मनुष्य की विशेष अन्यों से मज़बूत स्नेह बंधन बनाने की प्रवृत्ति को वैचारिक रूप दिया, तथा विरह से उत्पन्न व्यक्तित्व की समस्याओं व संवेगात्मक पीड़ा के साथ-साथ चिंता, गुस्से, उदासी तथा अलगाव की व्याख्या की। बच्चे के जन्म के समय उसके चारों ओर के वातावरण में माँ की अहम् भूमिका है। बच्चे का पहला सम्बन्ध माँ से आरम्भ होता है। स्मिथ कहते हैं कि कुदरत ने इस रिश्ते को मज़बूत बनाया है, तो समाज, धर्म और साहित्य ने माँ और बच्चे के स्नेह को पवित्रता प्रदान की। इस लेख में, समाजशास्त्रियों की मानव समाज में प्रेममूलक सम्बन्धों की दो अवधारणाओं की चर्चा के बाद, स्नेह की वैकल्पिक सोच के संदभ में, लारेन्ज़ के हंस, बतख आदि पक्षियों के चूज़ों, तथा हार्लो के बंदर के बच्चों, पर अध्ययनों का संक्षिप्त वर्णन देकर, बाल्बी के स्नेह सिद्धान्त को रखा गया है। और अंत में स्नेह सिद्धान्त के अन्य क्षेत्रों में बढ़ते दायरे पर नज़र डाली गयी है। .

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हनुमान लंगूर में पूँछ वहन

हनुमान लंगूर में पूँछ वहन एक सहज व्यवहार है और जैव वैज्ञानिक रूनवाल के अनुसार भारत के लंगूरों में इसकी कई शैलियाँ हैं। पूँछ वहन की इन शैलियों के आधार पर लंगूरों को समूहों में बांटा जा सकता है। पुरानी दुनिया का हनुमान लंगूर लगभग पूरे भारत में पाया जाता है, और हिन्दू इसे भगवन हनुमान का अवतार मानते हैं। फिलिप का कहना है कि भाषा और साहित्य में यह काले मूंह और लम्बी पूंछ वाला बंदर लांगुल का पर्याय है। प्राणी विज्ञान में लंगूर नरवानर गण में आता है, पहले इसका नाम प्रेसबाईटेस एंटेलस था और इसकी १६ किसमों का वर्णन है, किन्तु लगभग २००० के बाद इसका नाम सेमनोपीथेकस, और इसकी ज़्यादातर किस्मों को प्रजातियों में बदल दिया गया। अर्थात हनुमान लंगूर या प्रेसबाईटेस, जिसकी पूंछ की बात यहाँ हो रही है, उसे अब सेमनोपीथेकस कहते हैं। इस लेख के पहले भाग में लंगूरों में पूँछ वहन की चार मुख्य शैलियों का वर्णन, दूसरे भाग में हनुमान और लंगूर की पूँछ वहन शैलियों की तुलना, और अंत में बंदर की कुछ अन्य प्रजातियों की अनोखी पूँछों से परिचय है। .

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हैप्लोराइनी

हैप्लोराइनी (Haplorhini) या शुष्क-नाक नरवानर (dry-nosed primates) नरवानर गण (प्राइमेट) का एक क्लेड है जिसमें टार्सियर और सिमियन (बंदर व कपि) आते हैं। मानव भी एक प्रकार का महाकपि है इसलिये वह भी हैप्लोराइनी की श्रेणी में आता है। हैप्लोराइनी लगभग ६.३ करोड़ वर्ष पूर्व स्ट्रेपसिराइनी (Strepsirrhini) से क्रमविकास (इवोल्यूशन) द्वारा अलग हो गये थे।Groves, C.P. (2005).

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जैन धर्म के तीर्थंकर

श्रेणी:जैन धर्म श्रेणी:जैन तीर्थंकर श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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वर्षावन

ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में डैनट्री वर्षावन. क्वींसलैंड, ऑस्ट्रेलिया में केर्न्स के पास डैनट्री वर्षावन. न्यू साउथ वेल्स, ऑस्ट्रेलिया में इल्लावारा ब्रश के भाग। वर्षावन वे जंगल हैं, जिनमें प्रचुर मात्रा में वर्षा होती है अर्थात जहां न्यूनतम सामान्य वार्षिक वर्षा 1750-2000 मि॰मी॰ (68-78 इंच) के बीच है। मानसूनी कम दबाव का क्षेत्र जिसे वैकल्पिक रूप से अंतर-उष्णकटिबंधीय संसृति क्षेत्र के नाम से जाना जाता है, की पृथ्वी पर वर्षावनों के निर्माण में उल्लेखनीय भूमिका है। विश्व के पशु-पौधों की सभी प्रजातियों का कुल 40 से 75% इन्हीं वर्षावनों का मूल प्रवासी है। यह अनुमान लगाया गया है कि पौधों, कीटों और सूक्ष्मजीवों की कई लाख प्रजातियां अभी तक खोजी नहीं गई हैं। उष्णकटिबंधीय वर्षावनों को पृथ्वी के आभूषण और संसार की सबसे बड़ी औषधशाला कहा गया है, क्योंकि एक चौथाई प्राकृतिक औषधियों की खोज यहीं हुई है। विश्व के कुल ऑक्सीजन प्राप्ति का 28% वर्षावनों से ही मिलता है, इसे अक्सर कार्बन डाई ऑक्साइड से प्रकाश संष्लेषण के द्वारा प्रसंस्करण कर जैविक अधिग्रहण के माध्यम से कार्बन के रूप में भंडारण करने वाले ऑक्सीजन उत्पादन के रूप में गलत समझ लिया जाता है। भूमि स्तर पर सूर्य का प्रकाश न पहुंच पाने के कारण वर्षावनों के कई क्षेत्रों में बड़े वृक्षों के नीचे छोटे पौधे और झाड़ियां बहुत कम उग पाती हैं। इस से जंगल में चल पाना संभव हो जाता है। यदि पत्तों के वितानावरण को काट दिया जाए या हलका कर दिया जाए, तो नीचे की जमीन जल्दी ही घनी उलझी हुई बेलों, झाड़ियों और छोटे-छोटे पेड़ों से भर जाएगी, जिसे जंगल कहा जाता है। दो प्रकार के वर्षावन होते हैं, उष्णकटिबंधीय वर्षावन तथा समशीतोष्ण वर्षावन। .

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खारे पानी के मगरमच्छ

कायर्न्स, क्वींसलैंड के बाहर खारे पानी के मगरमच्छ खारे पानी का मगरमच्छ या एस्टूएराइन क्रोकोडाइल (estuarine crocodile) (क्रोकोडिलस पोरोसस) सबसे बड़े आकार का जीवित सरीसृप है। यह उत्तरी ऑस्ट्रेलिया, भारत के पूर्वी तट और दक्षिण-पूर्वी एशिया के उपयुक्त आवास स्थानों में पाया जाता है। .

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गारफ़ील्ड

गारफील्ड जिम डेविस द्वारा बनाई गई एक सिलसिलेवार वर्णात्मक हास्य-कौतुक चित्रावली श्रृंखला है। 19 जून 1978 में प्रकाशित यह शीर्षनाम चरित्र बिल्ली गारफील्ड (जो दरअसल डेविस के दादा जी के नाम पर ही रखा गया); उसमें रखवाले मालिक ज़ोन आर्बकल; एवं आर्बकल के कुत्ते ओडी के जीवन का इतिवृत्त है। सन 2007 तक यह मोटे तौर पर लगभग 2580 समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहा, तथा गिनीज़ विश्व रिकॉर्ड में इसने संसार की सार्वाधिक प्रकाशित होने वाली कॉमिक (हास्य-कौतुक) चित्रावली श्रृंखला होने का रिकॉर्ड दर्ज करवा लिया। हालांकि मुद्रित रूप में इसका उल्लेख कभी भी नहीं किया गया, टेलिविज़न के विशेष प्रदर्शन 'गारफील्ड गोज़ हॉलीवुड के अनुसार जिम डेविस के निवास स्थान म्युन्साई इंडियाना में स्थित है। इस हास्य-कौतुक श्रृंखला का आम प्रसंग गारफील्ड का आलस्य, भुख्ख्ड़ जैसा भोजन और सोमवारों तथा (सिमित) आहारों से नफरत है। यह हास्य-कौतुक चित्रावली विशेष रूप से गारफील्ड, जॉन एवं ओडी के बीच आपस में बातचीत पर प्रकाश डालती है, जबकि बीच-बीच में छोटे-मोटे चरित्र भी दिखाई देते हैं। मौलिक रूप से इसके निर्माण का अभिर्प्राय था, "एक अच्छे-भले, विपणन योग्य चरित्र को सामने लाना" था, गारफील्ड ने $750 मिलियन डॉलर से $1 मिलियन डॉलर की सालाना कमाई की है। विभिन्न सौदेबाजी और वाणिज्यिक अनुबंधों के अतिरिक्त इस हास्य-कौतुक चित्रावली श्रृंखला ने नई एनिमेटेड टेलिविज़न स्पेशल, दो एनिमेटेड टेलिविज़न सिरीज़, दो थियेटर वाली, फीचर की लंबाई में साथ लाइव-एक्शन फिल्म एवं तीन सीजीआई (CGI) एनिमेटेड डायरेक्ट-टू-वीडियो फिल्मों को जन्म दिया है। इस हास्य-कौतुक चित्रावली श्रृंखला के व्यापक रूप से प्रभाव के कारण का एक पहलू इसकी सामाजिक अथवा राजनितिक व्याख्या के विवरण की कमी है; हालांकि यह डेविस का मौलिक आशय ही था, उसने यह भी स्वीकार किया है की उसकी राजनितिक की पकड़ उतनी मजबूत नहीं है," कई सालों तक ऐसी टिप्पणी करते हुए उसने सोचा "ओपेक (ओपीईसी (OPEC)) दोनों चिपकाकर जोड़ने वाली कृत्रिम चिपकाने वल्ली गोंद है".

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गिबन

गिबन (Gibbon) लंबी बाहोंवाला, पेड़ों पर दौड़नेवाला एक कपि का जीववैज्ञानिक कुल है जो उत्तरपूर्वी भारत, पूर्वी बंग्लादेश और दक्षिणपूर्वी चीन से लेकर इण्डोनेशिया के कई द्वीपों (सुमात्रा, जावा और बोर्नियो समेत) में पाया जाता है। गिबन कुल के चार जीववैज्ञानिक वंश और १७ जीववैज्ञानिक जातियाँ अस्तित्व में हैं। इनका रंग काला, भूरा और श्वेत का मिश्रण होता है। पूरे श्वेत रंग के गिबन बहुत् कम ही दिखते हैं। गिबन जातियों में सियामंग, श्वेत-हस्त या लार गिबन और हूलोक गिबन शामिल हैं। यह मानव, चिम्पैन्ज़ी, ओरंग उतान, गोरिला और बोनोबो जैसे महाकपियों की तुलना में आकार में छोटे होते हैं और उनसे अधिक बंदर-जैसे दिखते हैं लेकिन सभी कपियों की भाँति इनकी भी पूँछ नहीं होती और यह अक्सर अपने पिछले पाँवों पर चलते हैं। इन्हें अक्सर हीनकपि (smaller apes) कहा जाता है। ये पृथ्वी पर खड़े होकर तो चल सकते ही हैं, पेड़ों पर भी हाथ के सहारे से खड़े होकर चलते हैं। यह वृक्षों में डाल-से-डाल लटककर बहुत तेज़ी से एक स्थान से दूसरे स्थान जाने में सक्षम होते हैं। इन्हें एक डाल से ५० फ़ुट (१५ मीटर) दूर की डाल तक कूदते हुए और ५५ किमी प्रति घंटे (३४ मील प्रति घंटे) की गति से पेड़ों में घूमते हुए मापा गया है। उड़ सकने वाले स्तनधारियों को छोड़कर, यह विश्व के सबसे गतिशील वृक्ष विचरणी स्तनधारी हैं। गिबन आजीवन एक ही जीवनसाथी चुनकर उसके साथ रहने के लिये जाने जाते हैं हालांकि कुछ जीववैज्ञानिक इसपर विवाद करते हैं और उनके अनुसार गिबनों में कभी-कभी तलाक जैसी प्रक्रिया भी देखी जा सकती है। .

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अनंत बंदर प्रमेय

अगर पर्याप्त समय दिया जाए तो कोई काल्पनिक बंदर यादृच्छिक तौर पर टाइप करते हुए विलियम शेक्सपियर के सम्पूर्ण कार्य का निर्माण कर सकता है। इस चित्र में एक चिंपांज़ी इस कार्य को अजांम देने की कोशिश कर रहा है। अनंत बंदर प्रमेय के अनुसार अगर कोई बंदर अनंत काल के लिए टाइपराइटर कुँजीपटल की कुंजियाँ यादृच्छिक रूप से दबाता रहें तो वह दिये गये पाठ को लगभग निश्चित रूप से टाइप कर देगा, जैसे विलियम शेक्सपियर का पूरा काम। .

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अफ़्रीका

अफ़्रीका वा कालद्वीप, एशिया के बाद विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है। यह 37°14' उत्तरी अक्षांश से 34°50' दक्षिणी अक्षांश एवं 17°33' पश्चिमी देशान्तर से 51°23' पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। अफ्रीका के उत्तर में भूमध्यसागर एवं यूरोप महाद्वीप, पश्चिम में अंध महासागर, दक्षिण में दक्षिण महासागर तथा पूर्व में अरब सागर एवं हिन्द महासागर हैं। पूर्व में स्वेज भूडमरूमध्य इसे एशिया से जोड़ता है तथा स्वेज नहर इसे एशिया से अलग करती है। जिब्राल्टर जलडमरूमध्य इसे उत्तर में यूरोप महाद्वीप से अलग करता है। इस महाद्वीप में विशाल मरुस्थल, अत्यन्त घने वन, विस्तृत घास के मैदान, बड़ी-बड़ी नदियाँ व झीलें तथा विचित्र जंगली जानवर हैं। मुख्य मध्याह्न रेखा (0°) अफ्रीका महाद्वीप के घाना देश की राजधानी अक्रा शहर से होकर गुजरती है। यहाँ सेरेनगेती और क्रुजर राष्‍ट्रीय उद्यान है तो जलप्रपात और वर्षावन भी हैं। एक ओर सहारा मरुस्‍थल है तो दूसरी ओर किलिमंजारो पर्वत भी है और सुषुप्‍त ज्वालामुखी भी है। युगांडा, तंजानिया और केन्या की सीमा पर स्थित विक्टोरिया झील अफ्रीका की सबसे बड़ी तथा सम्पूर्ण पृथ्वी पर मीठे पानी की दूसरी सबसे बड़ी झीलहै। यह झील दुनिया की सबसे लम्बी नदी नील के पानी का स्रोत भी है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसी महाद्वीप में सबसे पहले मानव का जन्म व विकास हुआ और यहीं से जाकर वे दूसरे महाद्वीपों में बसे, इसलिए इसे मानव सभ्‍यता की जन्‍मभूमि माना जाता है। यहाँ विश्व की दो प्राचीन सभ्यताओं (मिस्र एवं कार्थेज) का भी विकास हुआ था। अफ्रीका के बहुत से देश द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्र हुए हैं एवं सभी अपने आर्थिक विकास में लगे हुए हैं। अफ़्रीका अपनी बहुरंगी संस्कृति और जमीन से जुड़े साहित्य के कारण भी विश्व में जाना जाता है। .

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अफ़्रीका की प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीव

प्राकृतिक परिवेश में जिर्राफ सवाना, घास का मैदान बोतल वृक्ष अफ़्रीका का शेर प्राकृतिक वनस्पति जलवायु का अनुसरण करती है। अफ़्रीका में जलवायु की विभिन्नता के आधार पर विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक वनस्पति पायी जाती है। भूममध्य-रेखीय क्षेत्र में अधिक गर्मी एवं वर्षा के कारण घने वन पाये जाते हैं। बड़े-बड़े वृक्षों के बीच छोटे वृक्ष, लताएँ तथा झाड़ियाँ पायी जाती हैं। वृक्ष पास-पास उगते हैं। वृक्षों की ऊपरी टहनियां इस प्रकार फैल जाती हैं कि सूर्य का प्रकाश भूमि पर नहीं पहुँच पाता और अंधकार छाया रहता है। वर्ष भर वर्षा होने के कारण वृक्ष किसी खाश समय में अपनी पत्तियाँ नहीं गिराते, अतः इन वृक्षों को सदाबहार वृक्ष कहा जाता है। इन वृक्षों की पत्तियाँ चौड़ी होती हैं, अतः इन वनों को चौड़ी पत्ती वाले सदाबहार वन कहा जाता है। इन वनों के प्रमुख वृक्षों में महोगनी, रबड़, ताड़, आबनूस, गटापार्चा, बांस, सिनकोना और रोजउड हैं। इन वनों में विभिन्न प्रकार के बन्दर, हाथी, दरियाई घोड़ा (हिप्पो), चिम्पैंजी, गोरिल्ला, चीता, भैंसा, साँप, अजगर आदि जंगली जानवर पाए जाते हैं। यहाँ टिसीटिसी नामक मक्खी पाई जाती है। मैंड्रिल नामक विशालकाय बन्दर होते हैं। यहाँ पर ओकापी नामक भूरे रंग का जीव पाया जाता है जिसके पैर पर सफेद धारी पायी जाती है। यह घोड़े की तरह दिखलाई पड़ता है, पर यह जिराफ जाति का होता है। नदियों में मगर पाये जाते हैं। यहाँ पर चमीकले रंग की विभिन्न प्रकर की चिड़ियां पायी जाती हैं। भूमध्यरेखीय वनों के दोनों ओर, जहाँ वर्षा काफी कम होती है, पेड़ नहीं उग सकते। वहाँ मुख्यतः लम्बी-लम्बी (२ से ४ मीटर ऊँची) घासें उगती हैं। इन उष्ण कटिबन्धीय घास के मैदानों को सवाना कहते हैं। बीच-बीच में कहीं-कहीं पत्तों से रहित कुछ पेड़ भी पाए जाते हैं। यह प्रदेश विभिन्न प्रकार के घास खाने वाले पशुओं का घर है। इन पशुओं में हिरण, बारहसिंगा, जेब्रा, जिर्राफ तथा हाथी मुख्य हैं। जिर्राफ विश्व का सबसे ऊँचा जानवर माना जाता है। कुछ जन्तुशास्त्रियों का मानना है कि जिर्राफ कभी सोते नहीं हैं। यहाँ कुछ हिंसक पशु भी रहते हैं जो इन घास खाने वाले पशुओं का शिकार करते हैं। इनमें शेर, चीता एवं गीदड़ मुख्य हैं। दक्षिणी अफ़्रीका के शेर बहुत लम्बे होते हैं। चीता विश्व में सबसे तेज दोड़ने वाला जानवर है। सवाना घास के मैदान के दोनों ओर जहाँ की जलवायु अत्यन्त गर्म व शुष्क है, वहाँ उष्ण मरुस्थलीय वनस्पति पाई जाती है। यहाँ केवल कँटीली झाड़ियाँ हीं उगती हैं। मरुद्यानों में खजूर के पेड़ पाए जाते हैं। यहाँ का मुख्य पशु ऊँट है जिसे मरुस्थल का जहाज कहते हैं। यहाँ बड़े आकार तथा घोड़े के समान तेज दौड़ने वाले शुतुर्मुर्ग नामक पक्षी पाए जाते हैं। अफ़्रीका के उत्तरी एवं दक्षिणी-पश्चिमी तटीय क्षेत्रों पर केवल जाड़े में ही वर्षा होती है फिर भी यहाँ चौड़ी पत्ती वाले सदाबहार वृक्ष पाए जाते हैं। क्योंकि यहाँ के वृक्ष अपने आपको वातावरण के अनुसार बदल लेते हैं। इन वृक्षों की जड़े लम्बी, पत्तियाँ छोटी तथा छालें मोटी होती हैं। इन विशेषताओं के कारण ये वृक्ष गर्मियों में भी हरे-भरे रहते हैं। यहाँ जैतुन, कार्क, लारेल एवं ओक के वृक्ष पाए जाते हैं। यहाँ की जलवायु फलों की खेती के लिए काफी उपयुक्त है। यहाँ नींबू, सन्तरा, अंगूर, सेव, अंजीर आदि रस वाले फलों की खेती की जाती है। यहाँ जंगली पशुओं का अभाव है। प्रायः पालतू पशु ही पाए जाते हैं। अफ़्रीका के दक्षिणी-पूर्वी भागों में भी वर्षा की कमी के कारण शुष्क घास के मैदान पाए जाते हैं। यहाँ पर उगने वाली घासें छोटी-छोटी मुलायम तथा गुच्छेदार होती हैं। इन घास के मैदानों को वेल्ड कहते हैं। घास के इन मैदानों में वृक्षों का एकदम अभाव होता है। इस भाग में पशुचारण का कार्य किया जाता है। अफ़्रीका के दक्षिणी एवं पूर्वी भागों में, जहाँ अधिक ऊँचाई के कारण हिमपात होता है, नुकीली पत्ती वाले सदाबहार वन पाए जाते हैं। मेडागास्कर द्वीप पर बोबाब नामक एक विचित्र वृक्ष पाया जाता हैजो जमीन के नीचे से नमी खींचकर अपने अन्दर जल का संचय करता है। जीव, अफ़्रीका की प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य.

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अफ्फनपिन्स्चर

अफ्फनपिन्स्चर कुत्ता अफ्फनपिन्स्चर, तेर्रिएर जैसी दिखने वाली खिलौना कुत्तों की एक प्रजाति है। यह प्रजाति मूल रूप से जर्मनी की है और १७वि शताब्दी से इसकी पहचान की जाती हैं। इसका नाम जर्मन अफ्फे यानि की बन्दर के नाम पर पड़ा.

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अभिनंदननाथ

अभिनंदन जी वर्तमान अवसर्पिणी कल के चतुर्थ तीर्थंकर है। .

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उष्णकटिबंधीय वर्षा-वन

ब्राजील में अमेज़न वर्षावन का एक क्षेत्र. दक्षिण अमेरिका के उष्णकटिबंधीय वर्षावन में धरती पर प्रजातियों की सबसे बड़ी विविधता है। उष्णकटिबंधीय वर्षा-वन एक ऐसा क्षेत्र होता है जो भूमध्य रेखा के दक्षिण या उत्तर में लगभग 28 डिग्री के भीतर होता है। वे एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, मध्य अमेरिका, मेक्सिको और प्रशांत द्वीपों पर पाए जाते हैं। विश्व वन्यजीव निधि के बायोम वर्गीकरण के भीतर उष्णकटिबंधीय वर्षावन को उष्णकटिबंधीय आर्द्र वन (या उष्णकटिबंधीय नम चौड़े पत्ते के वन) का एक प्रकार माना जाता है और उन्हें विषुवतीय सदाबहार तराई वन के रूप में भी निर्दिष्ट किया जा सकता है। इस जलवायु क्षेत्र में न्यूनतम सामान्य वार्षिक वर्षा और के बीच होती है। औसत मासिक तापमान वर्ष के सभी महीनों के दौरान से ऊपर होता है। धरती पर रहने वाले सभी पशुओं और पौधों की प्रजातियों की आधी संख्या इन वर्षावनों में रहती है। मिशिगन विश्वविद्यालय के रीजेण्ट.

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२४ तीर्थंकर

२४ तीर्थंकरों का वर्णन आइटम विवरण: यह लगभग 9 फीट या 3 मीटर है 1 धनुष 1 लाख 100000 (एक लाख) 1 पूर्वा एक्स 84 लाख 84 लाख वर्ष .

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