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फाँसी

सूची फाँसी

The hanging of two participants in the Indian Rebellion of 1857. गले में रस्सी के कसने के कारण हुई मौत को फांसी कहा जाता है। प्राचीन काल में अपराधियोँ को दण्ड देने के लिये फांसी की सजा दी जाती थी और वर्तमान में भी जघन्य अपराधोँ के दण्ड हेतु यह प्रथा प्रचलन में है। अरब देशोँ में फांसी बहुत सामान्य सजा है। भारत में भी फांसी की सजा प्रचलन में है और देश की प्रमुख जेलोँ में इसके लिये फांसीघर बने हुये हैं। इन जेलोँ में फांसी देने वाले कर्मचारियोँ की नियुक्ति होती है जिन्हे जल्लाद कहा जाता है। आत्महत्या के लिये भी फांसी एक सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाला तरीका है। फांसी में व्यक्ति के गले में रस्सी का फन्दा कस जाता है और उसका साँस मार्ग अवरुद्ध हो जाने से उसका दम घुट जाता है और इस प्रकार उस व्यक्ति की दर्दनाक मौत हो जाती है। श्रेणी:मृत्यु के कारण.

69 संबंधों: चन्द्रशेखर आजाद, टॉमस आर्थर डी लैली, दिल्ली बम काण्ड, दुर्गा मल्ल, नथुराम विनायक गोडसे, नारायण आप्टे, निर्भया, निकोलस द्वितीय, प्रेयोक्ति, फतेहपुर जिला, फ़्रान्सीसी क्रान्ति, फ़्रांस का इतिहास, बांग्लादेश का इतिहास, बुन्देलखण्ड, भारत में इस्लाम, भाई परमानन्द, भाई बालमुकुन्द, भगत राम तलवार, भगत सिंह, मदनलाल ढींगरा, मदनलाल पाहवा, मनिराम देवान, मन्मथनाथ गुप्त, महात्मा गांधी की हत्या, महाराज नंदकुमार, मास्टर अमीर चंद, मगिंग, मक़बूल भट्ट, मृत्युदंड, मैनपुरी षड्यन्त्र, रानी गाइदिन्ल्यू, राबर्ट एम्मेट, राम प्रसाद 'बिस्मिल', राजगुरु, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह, लाला हरदयाल, लेस्ली हिल्टन, शहीद (1965 फ़िल्म), शहीद दिवस (भारत), सरबजीत सिंह, सुशीला दीदी, सुखदेव, सूर्य सेन, सोहनलाल पाठक, हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन, हिन्दी पुस्तकों की सूची/प, हेमू कालाणी, जैनेन्द्र कुमार, जेम्स द्वितीय, ..., विष्णु गणेश पिंगले, खुदीराम बोस, ग्रेट एक्स्पेक्टैशन, गोण्डा, गोरखपुर, आधर्षण, आन (रूसी सम्राज्ञी), काकोरी (मंगल ग्रह), काकोरी काण्ड, अली हसन अल-मजीद, अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ, अजमल क़साब, अवध बिहारी, उधम सिंह, उमराव सिंह (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी), ११ (संख्या), १७ दिसम्बर, १९ दिसम्बर, 2012 दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामला सूचकांक विस्तार (19 अधिक) »

चन्द्रशेखर आजाद

पण्डित चन्द्रशेखर 'आजाद' (२३ जुलाई १९०६ - २७ फ़रवरी १९३१) ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे। वे पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व सरदार भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे। सन् १९२२ में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले ९ अगस्त १९२५ को काकोरी काण्ड किया और फरार हो गये। इसके पश्चात् सन् १९२७ में 'बिस्मिल' के साथ ४ प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स का हत्या करके लिया एवं दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया। .

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टॉमस आर्थर डी लैली

टॉमस आर्थर डी लैली (Thomas Arthur, comte de Lally; १७०२ ई. - १७६६ ई.) निर्भीक फ्रांसीसी सेनापति था। सप्तवर्षीय युद्ध में उसने फ्रांसीसी सेना का नेतृत्व किया जिसमें उसके अपने लाल कोटधारी रेजिमेन्ट के दो बटालियन भी शामिल थे। १७२१ में वह सैनिक अफसर नियुक्त हुआ। आस्ट्रिया के उत्तराधिकारयुद्ध तथा जैकाबाइट विद्रोह में विशेष पराक्रम के पुरस्कारस्वरूप लुई पंद्रहवें ने उसे ब्रिगेडियर का पद दिया। सप्तवर्षीय युद्ध आरंभ होते ही अंग्रेज़ों को भारत से निकाल बाहर करने के लिए लैली को सर्वोच्च अधिकारी बनाकर पांडिचेरी भेजा गया। इस उद्देश्य की पूर्ति में पदाधिकारियों के ईर्ष्या-द्वेष तथा अपने अहंकार के कारण उसे किसी का हार्दिक सहयोग न मिला। जल सेनानायक ने उसे देर से पॉडिचेरी पहुँचाया और किसी अभियान में उसकी सहायता नहीं की। पाँडिचेरी के गवर्नर ने युद्ध के साधन नहीं जुटाए। अन्य पदाधिकारियों ने भी कोई उत्साह नहीं दिखाया। इसपर भी लैली ने गूडलूर, फोर्ट सेंट डेविड तथा देविकोट को अंग्रेजों से छीनकर अद्भुत कर्मण्यता दिखाई। धनाभाव के कारण मद्रास पर आक्रमण स्थापित करके उसे तंजोर पर आक्रमण करना पड़ा। किंतु पांडिचेरी पर संकट आने के भय से उसे छोड़ना पड़ा। दिसंबर, १७५८ में बुसी के सहयोग से कांचीपुरम् जीतकर लैली ने मद्रास का घेरा डाला, पर सफल न हुआ। बुसी को हैदराबाद से बुलाकर उसने बड़ी भूल की। इससे सलाबतर्जग ने अंग्रेजों के संरक्षण में आकर उत्तरी सरकार उन्हें सौंप दिया। १७६१ में पाँडिचेरी में उसे आत्मसमर्पण करना पड़ा। साधनों तथा सहयोग के अभाव से उसकी योजना विफल रही। पेरिस की संधि होने पर उसे फ्रांस भेज दिया गया। वहाँ राजद्रोह का झूठा अभियोग लगाकर १७१६ में उसे फाँसी दे दी गई। Template:फ्रांसीसी सेनापति.

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दिल्ली बम काण्ड

दिल्ली बम काण्ड सन् १९१२ में बनायी गयी मास्टर अमीरचन्द, लाला हनुमन्त सहाय, मास्टर अवध बिहारी, भाई बालमुकुन्द और बसन्त कुमार विश्वास द्वारा लार्ड हार्डिंग नामक ब्रिटिश वायसराय को जान से मार डालने की एक क्रान्तिकारी योजना थी जो सफल न हो सकी। लार्ड हार्डिंग तो बच गया किन्तु जिस हाथी पर बैठाकर दिल्ली के चाँदनी चौक क्षेत्र में वायसराय की शानदार शाही सवारी निकाली जा रही थी उसका महावत मारा गया। पुलिस ने इस काण्ड में चारो प्रमुख क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार करके उन पर वायसराय की हत्या की साजिश का मुकदमा चलाया। लालाजी को उम्रकैद की सजा देकर अण्डमान भेज दिया गया जबकि अन्य चारो को फाँसी की सजा हुई। लाला हनुमन्त सहाय ने इस फैसले के विरुद्ध अपील की थी जिसके परिणाम स्वरूप उनकी उम्र कैद को सात वर्ष के कठोर कारावास में बदल दिया गया। पुरानी दिल्ली में बहादुरशाह जफर रोड पर दिल्ली गेट से आगे स्थित वर्तमान खूनी दरवाजे के पास जिस जेल में दिल्ली बम काण्ड के इन चार शहीदों को फाँसी दी गयी थी उसके निशान भी मिटा दिये गये। अब वहाँ जेल की जगह मौलाना आजाद मेडिकल कालेज बन गया है। जनता की बेहद माँग पर अब इस मेडिकल कॉलेज के परिसर में चारो शहीदों की मूर्तियाँ स्थापित कर दी गयी हैं। .

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दुर्गा मल्ल

मेजर दुर्गा मल्ल (1 जुलाई 1913 - 25 अगस्त, 1944), आजाद हिन्द फौज के प्रथम गोरखा सैनिक थे जिन्होने भारत की स्वतन्त्रता के लिये अपने प्राणों की आहुति दी। दुर्गामल्ल का जन्म १ जुलाई १९१३ को देहरादून के निकट डोईवाला गाँव में गंगाराम मल्ल के घर हुआ था जो गोरखा राइफल्स में नायब सूबेदार थे। माताजी का नाम श्रीमती पार्वती देवी था। बचपन से ही वे अपने साथ के बालकों में सबसे अधिक प्रतिभावान और बहादुर थे। उन्होने गोरखा मिलिटरी मिडिल स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा हासिल की, जिसे अब गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज के नाम से जाना जाता है। दिसम्बर 1941 में जापानियों ने दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र में तैनात मित्र सेना पर हमला करके युद्ध की घोषणा कर दी। सन 1931 में मात्र 18 वर्ष की आयु में दुर्गा मल्ल गोरखा रायफल्स की 2/1 बटालियन में भर्ती हो गए। उन्हें संकेत प्रशिक्षण (सिगनल ट्रेनिंग) के लिए महाराष्ट्र भेज दिया गया। लगभग 10 वर्ष तक सेना में सेवारत रहने के पश्चात् जनवरी, 1941 में (युद्ध के लिए विदेश जाने से पूर्व) अपने घरवालों से विदा लेने धर्मशाला गए, और वहीं ठाकुर परिवार की कन्या शारदा देवी के साथ उनका विवाह हुआ। अप्रैल 1941 में दुर्गा मल्ल की टुकड़ी सिकन्दराबाद पहुंची जहां से उसे आगे विदेश रवाना होना था। अपने सैनिक धर्म को निभाते हुए 23 अगस्त 1941 को बटालियन के साथ मलाया रवाना हुए। 8 दिसंबर 1941 को मित्र देशों पर जापान के आक्रमण के बाद युद्ध की घोषणा हो गई थी। इसके परिणामस्वरूप जापान की मदद से 1 सितम्बर 1942 को सिंगापुर में आजाद हिन्द फौज का गठन हुआ, जिसमें दुर्गा मल्ल की बहुत सराहनीय भूमिका थी। इसके लिए मल्ल को मेजर के रूप में पदोन्नत किया गया। उन्होने युवाओं को आजाद हिन्द फ़ौज में शामिल करने में बड़ा योगदान दिया। बाद में गुप्तचर शाखा का महत्वपूर्ण कार्य दुर्गा मल्ल को सौंपा गया। 27 मार्च 1944 को महत्वपूर्ण सूचनाएं एकत्र करते समय दुर्गामल्ल को शत्रु सेना ने मणिपुर में कोहिमा के पास उखरूल में पकड़ लिया। युद्धबंदी बनाने और मुकदमे के बाद उन्हें बहुत यातना दी गई। 15 अगस्त 1944 को उन्हें लाल किले की सेंट्रल जेल लाया गया और दस दिन बाद 25 अगस्त 1944 को उन्हें फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया गया। .

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नथुराम विनायक गोडसे

नथुराम विनायक गोडसे, या नथुराम गोडसे(१९ मई १९१० - १५ नवंबर १९४९) एक कट्टर हिन्दू राष्ट्रवादी समर्थक थे, जिसने ३० जनवरी १९४८ को नई दिल्ली में गोली मारकर मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या कर दी थी। गोडसे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुणे से पूर्व सदस्य थे। गोडसे का मानना था कि भारत विभाजन के समय गांधी ने भारत और पाकिस्तान के मुसलमानों के पक्ष का समर्थन किया था। जबकि हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार पर अपनी आंखें मूंद ली थी। गोडसे ने नारायण आप्टे और ६ लोगों के साथ मिल कर इस हत्याकाण्ड की योजना बनाई थी। एक वर्ष से अधिक चले मुकद्दमे के बाद ८ नवम्बर १९४९ को उन्हें मृत्युदंड प्रदान किया गया। हालाँकि गांधी के पुत्र, मणिलाल गांधी और रामदास गांधी द्वारा विनिमय की दलीलें पेश की गई थीं, परंतु उन दलीलों को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, महाराज्यपाल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी एवं उपप्रधानमंत्री वल्लभभाई पटेल, तीनों द्वारा ठुकरा दिया गया था। १५ नवम्बर १९४९ को गोडसे को अम्बाला जेल में फाँसी दे दी गई। .

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नारायण आप्टे

गान्धी-वध के अभियुक्तों का एक समूह चित्र। '' खड़े हुए '': शंकर किस्तैया, गोपाल गोडसे, मदनलाल पाहवा, दिगम्बर बड़गे. ''बैठे हुए'': नारायण आप्टे, वीर सावरकर, नाथूराम गोडसे, विष्णु रामकृष्ण करकरे नारायण आप्टे (१९११ - १९४९) हिन्दू महासभा के एक कार्यकर्ता थे। इन्हें गांधी-वध के मामले में नाथूराम गोडसे के साथ फाँसी दे दी गयी थी। अदालत में जब गांधी-वध का अभियोग चला तो मदनलाल पाहवा ने उसमें स्वीकार किया कि जो भी लोग इस षड्यंत्र में शामिल थे पूर्व योजनानुसार उसे केवल बम फोडकर सभा में गडबडी फैलाने का काम करना था, शेष कार्य अन्य लोगों के जिम्मे था। जब उसे छोटूराम ने जाने से रोका तो उसने जैसे भी उससे बन पाया अपना काम कर दिया। उस दिन की योजना भले ही असफल हो गयी हो परन्तु इस बात की जानकारी तो सरकार को हो ही गयी थी कि गान्धी की हत्या कभी भी कोई कर सकता है फिर उनकी सुरक्षा की चिन्ता आखिरकार किन्हें करनी चाहिये थी? .

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निर्भया

निर्भया (अंग्रेजी:Nirbhaya) दिल्ली में 16 दिसम्बर 2012 के बहुचर्चित बलात्कार और हत्या की आपराधिक घटना की पीड़िता को समाज व मीडिया द्वारा दिया गया नाम है। भारतीय कानून व मानवीय सद्भावना के अनुसार एसे मामले में पीड़ित की पहचान को उजागर नहीं किया जाता। कोई नाम ना होने का ही शायद यह असर था कि भारत भर की जनता ने बिना किसी धर्म, जाति-पाति के चश्मों से देखने की बजाय निर्भया को सव्यं से जुड़ा हुआ महसूस किया और भारतीय नारी के सम्मान मात्र की रक्षा के लिए एक अभूतपूर्व आंदोलन खड़ा कर दिया। मीडिया ने पूरे जोर शोर से जनता की वकालत की और सरकार को कटघरे में खड़ा किया। सरकार को भी अपनी जिम्मेवारी का अहसास हुआ और उसने व्यवस्था में परिवर्तन का संकल्प लिया। निर्भया ने साहस के साथ जिदंगी की जंग लड़ी और हमेशा के लिए सोने से पहले सबको जगा कर चली गई। इस घटना के बाद जब देश जगा तो सिस्टम को भी बदलना पड़ा। .

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निकोलस द्वितीय

निकोलस द्वितीय् निकोलस द्वितीय (रूसी: Николай II, Николай Александрович Романов, tr. Nikolai II, Nikolai Alexandrovich Romanov Nicholas II; 18 मई 1868 – 17 जुलाई 1918) रूस का अन्तिम सम्राट (ज़ार), फिनलैण्ड का ग्रैण्ड ड्यूक तथा पोलैण्ड का राजा था। उसकी औपचारिक लघु उपाधि थी: निकोलस द्वितीय, सम्पूर्ण रूस का सम्राट तथा आटोक्रैट। रूसी आर्थोडोक्स चर्च उसे करुणाधारी सन्त निकोलस कहता है। .

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प्रेयोक्ति

एक प्रेयोक्ति का अर्थ होता है, सुननेवाले को रुष्ट करने वाली या कोई अप्रिय अर्थ देने वाली अभिव्यक्ति को एक रुचिकर या कम अपमानजनक अभिव्यक्ति के साथ प्रतिस्थापित करना, या कहने वाले के लिए उसे कम कष्टकर बनाना, जैसा की द्विअर्थी के मामले में होता है। प्रेयोक्ति का परिनियोजन राजनीतिक विशुद्धता के सार्वजनिक उपयोग में केंद्रीय पहलू है। यह किसी वस्तु या किसी व्यक्ति के वर्णन को भी प्रतिस्थापित कर सकता है ताकि गोपनीय, पवित्र, या धार्मिक नामों को अयोग्य के समक्ष ज़ाहिर करने से बचा जा सके, या किसी वार्ता के विषय की पहचान को किसी संभावित प्रच्छ्न्न श्रोता से गुप्त रखा जा सके.

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फतेहपुर जिला

फतेहपुर जिला उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है जो कि पवित्र गंगा एवं यमुना नदी के बीच बसा हुआ है। फतेहपुर जिले में स्थित कई स्थानों का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है जिनमें भिटौरा, असोथर अश्वस्थामा की नगरी) और असनि के घाट प्रमुख हैं। भिटौरा, भृगु ऋषि की तपोस्थली के रूप में मानी जाती है। फतेहपुर जिला इलाहाबाद मंडल का एक हिस्सा है और इसका मुख्यालय फतेहपुर शहर है। .

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फ़्रान्सीसी क्रान्ति

बेसिल दिवस: १४ जुलाई १७८९ फ्रांसीसी क्रांति (फ्रेंच: Révolution française / रेवोलुस्योँ फ़्राँसेज़; 1789-1799) फ्रांस के इतिहास की राजनैतिक और सामाजिक उथल-पुथल एवं आमूल परिवर्तन की अवधि थी जो 1789 से 1799 तक चली। बाद में, नेपोलियन बोनापार्ट ने फ्रांसीसी साम्राज्य के विस्तार द्वारा कुछ अंश तक इस क्रांति को आगे बढ़ाया। क्रांति के फलस्वरूप राजा को गद्दी से हटा दिया गया, एक गणतंत्र की स्थापना हुई, खूनी संघर्षों का दौर चला, और अन्ततः नेपोलियन की तानाशाही स्थापित हुई जिससे इस क्रांति के अनेकों मूल्यों का पश्चिमी यूरोप में तथा उसके बाहर प्रसार हुआ। इस क्रान्ति ने आधुनिक इतिहास की दिशा बदल दी। इससे विश्व भर में निरपेक्ष राजतन्त्र का ह्रास होना शुरू हुआ, नये गणतन्त्र एव्ं उदार प्रजातन्त्र बने। आधुनिक युग में जिन महापरिवर्तनों ने पाश्चात्य सभ्यता को हिला दिया उसमें फ्रांस की राज्यक्रांति सर्वाधिक नाटकीय और जटिल साबित हुई। इस क्रांति ने केवल फ्रांस को ही नहीं अपितु समस्त यूरोप के जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया। फ्रांसीसी क्रांति को पूरे विश्व के इतिहास में मील का पत्थर कहा जाता है। इस क्रान्ति ने अन्य यूरोपीय देशों में भी स्वतन्त्रता की ललक कायम की और अन्य देश भी राजशाही से मुक्ति के लिए संघर्ष करने लगे। इसने यूरोपीय राष्ट्रों सहित एशियाई देशों में राजशाही और निरंकुशता के खिलाफ वातावरण तैयार किया। .

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फ़्रांस का इतिहास

९८५ से लेकर १९४७ तक की अवधि में फ्रांस की सीमाओं का विस्तार तथा संकुचन फ्रांस का प्राचीन नाम 'गॉल' था। यहाँ अनेक जंगली जनजातियों के लोग, मुख्य रूप से, केल्टिक लोग, निवास करते थे। सन्‌ 57-51 ई.पू.

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बांग्लादेश का इतिहास

बांग्लादेश में सभ्यता का इतिहास काफी पुराना रहा है। आज के भारत का अंधिकांश पूर्वी क्षेत्र कभी बंगाल के नाम से जाना जाता था। बौद्ध ग्रंथो के अनुसार इस क्षेत्र में आधुनिक सभ्यता की शुरुआत ७०० इसवी इसा पू.

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बुन्देलखण्ड

बुन्देलखण्ड मध्य भारत का एक प्राचीन क्षेत्र है।इसका प्राचीन नाम जेजाकभुक्ति है.

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भारत में इस्लाम

भारतीय गणतंत्र में हिन्दू धर्म के बाद इस्लाम दूसरा सर्वाधिक प्रचलित धर्म है, जो देश की जनसंख्या का 14.2% है (2011 की जनगणना के अनुसार 17.2 करोड़)। भारत में इस्लाम का आगमन करीब 7वीं शताब्दी में अरब के व्यापारियों के आने से हुआ था (629 ईसवी सन्‌) और तब से यह भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का एक अभिन्न अंग बन गया है। वर्षों से, सम्पूर्ण भारत में हिन्दू और मुस्लिम संस्कृतियों का एक अद्भुत मिलन होता आया है और भारत के आर्थिक उदय और सांस्कृतिक प्रभुत्व में मुसलमानों ने महती भूमिका निभाई है। हालांकि कुछ इतिहासकार ये दावा करते हैं कि मुसलमानों के शासनकाल में हिंदुओं पर क्रूरता किए गए। मंदिरों को तोड़ा गया। जबरन धर्मपरिवर्तन करा कर मुसलमान बनाया गया। ऐसा भी कहा जाता है कि एक मुसलमान शासक टीपू शुल्तान खुद ये दावा करता था कि उसने चार लाख हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करवाया था। न्यूयॉर्क टाइम्स, प्रकाशित: 11 दिसम्बर 1992 विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां सरकार हज यात्रा के लिए विमान के किराया में सब्सिडी देती थी और २००७ के अनुसार प्रति यात्री 47454 खर्च करती थी। हालांकि 2018 से रियायत हटा ली गयी है। .

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भाई परमानन्द

भाई परमानन्द का एक दुर्लभ चित्र भाई परमानन्द (जन्म: ४ नवम्बर १८७६ - मृत्यु: ८ दिसम्बर १९४७) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। भाई जी बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे जहाँ आर्यसमाज और वैदिक धर्म के अनन्य प्रचारक थे, वहीं इतिहासकार, साहित्यमनीषी और शिक्षाविद् के रूप में भी उन्होंने ख्याति अर्जित की थी। सरदार भगत सिंह, सुखदेव, पं॰ राम प्रसाद 'बिस्मिल', करतार सिंह सराबा जैसे असंख्य राष्ट्रभक्त युवक उनसे प्रेरणा प्राप्त कर बलि-पथ के राही बने थे। देशभक्ति, राजनीतिक दृढ़ता तथा स्वतन्त्र विचारक के रूप में भाई जी का नाम सदैव स्मरणीय रहेगा। आपने कठिन तथा संकटपूर्ण स्थितियों का डटकर सामना किया और कभी विचलित नहीं हुए। आपने हिंदी में भारत का इतिहास लिखा है। इतिहास-लेखन में आप राजाओं, युद्धों तथा महापुरुषों के जीवनवृत्तों को ही प्रधानता देने के पक्ष में न थे। आपका स्पष्ट मत था कि इतिहास में जाति की भावनाओं, इच्छाओं, आकांक्षाओं, संस्कृति एवं सभ्यता को भी महत्व दिया जाना चाहिए। आपने अपने जीवन के संस्मरण भी लिखे हैं जो युवकों के लिये आज भी प्रेरणा देने में सक्षम हैं। .

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भाई बालमुकुन्द

भाई बालमुकुन्द (१८८९ - ११ मई १९१५) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी थे। सन 1912 में दिल्ली के चांदनी चौक में हुए लॉर्ड हार्डिग बम कांड में मास्टर अमीरचंद, भाई बालमुकुंद और मास्टर अवध बिहारी को 8 मई 1915 को ही फांसी पर लटका दिया गया, जबकि अगले दिन यानी 9 मई को अंबाला में वसंत कुमार विश्वास को फांसी दी गई। वे महान क्रान्तिकारी भाई परमानन्द के चचेरे भाई थे। सभी पर आरोप था कि इन्होंने 1912 में चांदनी चौक में लार्ड हार्डिग पर बम फेंका था। हालांकि इनके खिलाफ जुर्म साबित नहीं हुआ, लेकिन अंग्रेज हुकूमत ने शक के आधार पर इन्हें फांसी की सजा सुना दी। जिस स्थान पर इन्हें फांसी दी गई, वहां शहीद स्मारक बना दिया गया है जो दिल्ली गेट स्थित मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में स्थित है। भाई बालमुकुंद का विवाह एक साल पहले ही हुआ था। आजादी की लड़ाई में जुटे होने के कारण वे कुछ समय ही पत्नी के साथ रह सके। उनकी पत्नी का नाम रामरखी था। उनकी इच्छा थी कि भाई बालमुकुंद का शव उन्हें सौंप दिया जाए, लेकिन अंग्रेज हुकूमत ने उन्हें शव नहीं दिया। उसी दिन से रामरखी ने भोजन व पानी त्याग दिया और अठारहवें दिन उनकी भी मृत्यु हो गई। .

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भगत राम तलवार

भगत राम तलवार भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। सन १९४१ में गृहबन्दी से सुभाष चन्द्र बोस को छुड़ाकर भगाने में भगत राम की महती भूमिका थी। दोनों ने एक साथ कोलकाता से काबुल तक की यात्रा की, जिसके बाद नेताजी जर्मनी चले गये। भगत राम तलवार वस्तुतः कम से कम चार देशों (जर्मनी, जापान, सोवियत रूस, और ब्रितानी भारत)) के गुप्तचर थे, जो बात सुभाष चन्द्र बोस को पता न थी। भगत राम तलवार उस समय के 'उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त' के किसान नेता थे। वे कीर्ति किसान पार्टी के प्रमुख सदस्य थे। उनके बड़े भाई हरि किशन ने पंजाब के ब्रिटिश गवर्नर पर जानलेवा हमला किया था किन्तु वह बच निकला। इसके आरोप में हरि किशन को १९३१ में फाँसी पर चढ़ा दिया गया। श्रेणी:भारतीय क्रांतिकारी.

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भगत सिंह

भगत सिंह (जन्म: २८ सितम्बर या १९ अक्टूबर, १९०७, मृत्यु: २३ मार्च १९३१) भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया। पहले लाहौर में साण्डर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। इन्होंने असेम्बली में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप इन्हें २३ मार्च १९३१ को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। सारे देश ने उनके बलिदान को बड़ी गम्भीरता से याद किया। भगत सिंह को समाजवादी,वामपंथी और मार्क्सवादी विचारधारा में रुचि थी। सुखदेव, राजगुरु तथा भगत सिंह के लटकाये जाने की ख़बर - लाहौर से प्रकाशित ''द ट्रिब्युन'' के मुख्य पृष्ठ --> .

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मदनलाल ढींगरा

मदनलाल धींगड़ा (१८ सितम्बर १८८३ - १७ अगस्त १९०९) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अप्रतिम क्रान्तिकारी थे। वे इंग्लैण्ड में अध्ययन कर रहे थे जहाँ उन्होने विलियम हट कर्जन वायली नामक एक ब्रिटिश अधिकारी की गोली मारकर हत्या कर दी। यह घटना बीसवीं शताब्दी में भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन की कुछेक प्रथम घटनाओं में से एक है। .

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मदनलाल पाहवा

गान्धी वध के अभियुक्तों का एक समूह चित्र'' खड़े हुए '': शंकर किस्तैया, गोपाल गोडसे, मदनलाल पाहवा, दिगम्बर बड़गे. ''बैठे हुए'': नारायण आप्टे, वीर सावरकर, नाथूराम गोडसे, विष्णु करकरे मदनलाल पाहवा (अंग्रेजी: Madan Lal Pahwa, पंजाबी: ਮਦਨ ਲਾਲ ਪਾਹਵਾ, तमिल: மதன்லால் பக்வா) हिन्दू महासभा के एक कार्यकर्ता थे जिन्होंने नई दिल्ली स्थित बिरला हाउस में गान्धी-वध की तिथि से दस दिन पूर्व २० जनवरी १९४८ को उनकी प्रार्थना सभा में हथगोला फेंका था। उपस्थित जन समुदाय ने उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया था। उस घटना के ठीक १० दिन बाद जब नाथूराम गोडसे ने ३० जनवरी १९४८ को गोली मारकर गान्धी को मौत की नींद सुला दिया तो भारत सरकार ने फटाफट मुकद्दमा चलाकर गोडसे को फाँसी के साथ मदनलाल को भी गान्धी-वध के षड्यन्त्र में शामिल होने व हत्या के प्रयास के आरोप में आजीवन कारावास का दण्ड देकर मामला रफादफा कर दिया। .

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मनिराम देवान

मनिराम दत्त बरुआ (17 अप्रैल, 1806 – 26 फरवरी, 1858), असम के एक सामन्त थे जिन्हें १८५७ के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजों ने फाँसी दे दी। उन्होने असम में पहला चाय बगान स्थापित किया था। पहले वे अंग्रेजों के सहयोगी थे किन्तु १८५७ में उन्होने उनके विरुद्ध होकर भारत की जनता का साथ दिया। वे मनिराम देवान के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं। .

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मन्मथनाथ गुप्त

मन्मथनाथ गुप्त (जन्म: ७ फ़रवरी १९०८ - मृत्यु: २६ अक्टूबर २०००) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी तथा सिद्धहस्त लेखक थे। उन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी तथा बांग्ला में आत्मकथात्मक, ऐतिहासिक एवं गल्प साहित्य की रचना की है। वे मात्र १३ वर्ष की आयु में ही स्वतन्त्रता संग्राम में कूद गये और जेल गये। बाद में वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सक्रिय सदस्य भी बने और १७ वर्ष की आयु में उन्होंने सन् १९२५ में हुए काकोरी काण्ड में सक्रिय रूप से भाग लिया। उनकी असावधानी से ही इस काण्ड में अहमद अली नाम का एक रेल-यात्री मारा गया जिसके कारण ४ लोगों को फाँसी की सजा मिली जबकि मन्मथ की आयु कम होने के कारण उन्हें मात्र १४ वर्ष की सख्त सजा दी गयी। १९३७ में जेल से छूटकर आये तो फिर क्रान्तिकारी लेख लिखने लगे जिसके कारण उन्हें १९३९ में फिर सजा हुई और वे भारत के स्वतन्त्र होने से एक वर्ष पूर्व १९४६ तक जेल में रहे । स्वतन्त्र भारत में वे योजना, बाल भारती और आजकल नामक हिन्दी पत्रिकाओं के सम्पादक भी रहे। नई दिल्ली स्थित निजामुद्दीन ईस्ट में अपने निवास पर २६ अक्टूबर २००० को दीपावली के दिन उनका जीवन-दीप बुझ गया। .

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महात्मा गांधी की हत्या

मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या 30 जनवरी 1948 की शाम को नई दिल्ली स्थित बिड़ला भवन में गोली मारकर की गयी थी। वे रोज शाम को प्रार्थना किया करते थे। 30 जनवरी 1948 की शाम को जब वे संध्याकालीन प्रार्थना के लिए जा रहे थे तभी नाथूराम गोडसे नाम के व्यक्ति ने पहले उनके पैर छुए और फिर सामने से उन पर बैरेटा पिस्तौल से तीन गोलियाँ दाग दीं। उस समय गान्धी अपने अनुचरों से घिरे हुए थे। इस मुकदमे में नाथूराम गोडसे सहित आठ लोगों को हत्या की साजिश में आरोपी बनाया गया था। इन आठ लोगों में से तीन आरोपियों शंकर किस्तैया, दिगम्बर बड़गे, वीर सावरकर, में से दिगम्बर बड़गे को सरकारी गवाह बनने के कारण बरी कर दिया गया। शंकर किस्तैया को उच्च न्यायालय में अपील करने पर माफ कर दिया गया। वीर सावरकर के खिलाफ़ कोई सबूत नहीं मिलने की वजह से अदालत ने जुर्म से मुक्त कर दिया। बाद में सावरकर के निधन पर भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया।सावरकर पर सरकार द्वारा जारी डाक टिकट और अन्त में बचे पाँच अभियुक्तों में से तीन - गोपाल गोडसे, मदनलाल पाहवा और विष्णु रामकृष्ण करकरे को आजीवन कारावास हुआ तथा दो- नाथूराम गोडसे व नारायण आप्टे को फाँसी दे दी गयी। .

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महाराज नंदकुमार

महाराज नंदकुमार महाराज नंदकुमार बंगाल का एक संभ्रांत ब्राहमण था। बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के समय में वह हुगली का फौजदार था। मार्च, सन्‌ 1757 में अंग्रेजों ने जब फ्रांसीसियों की बस्ती चंदननगर पर हमले की तैयारी की, तो नवाब सिराजुद्दौला ने नंदकुमार को एक बड़ी सेना के साथ फ्रांसीसियों और वहाँ की भारतीय प्रजा की रक्षा के लिये तुरंत चंद्रनगर भेज दिया था। लेकिन अंग्रेजों से रिश्वत पाकर नंदकुमार अंग्रेजी सेना के चंद्रनगर पहुँचते ही वहाँ से हट गया। उसके हट जाने से फ्रांसीसी कमजोर पड़ गए और चंद्रनगर पर अंग्रेजों का सरलता से अधिकार हो गया (23 मार्च 1757)। जून, 1757 में रिश्वत ओर धोखे का सहारा लेकर क्लाइव के नेतृत्व में अंग्रेजों ने प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला को हराकर गद्दार मीर जाफर को बंगाल का नवाब बना दिया। बाद में अंग्रेजों ने उसे भी गद्दी से उतारकर उसके दामाद और मीर कासिम को, बहुत सा धन पाने के वादे पर, नवाब बना दिया। कुछ समय बाद अंग्रेजों की लूट-खसोट की नीति के कारण मीर कासिम को अंग्रेजों से युद्ध करने को विवश होना पड़ा किंतु लड़ाई में वह हार गया। जब 1763 ईo में मीर जाफर दुबारा नवाब बना तो उसने महाराज नंदकुमार को अपना दीवान बनाया। नंदकुमार अब अंग्रेजों की चालों को समझ गया था। इसलिये उसने बंगाल की नवाबी को पुष्ट करने के लिये मीर जाफर को यह सलाह दी कि वह बंगाल की सूबेदारी के लिये सम्राट् शाह आलम और वजीर शुजाउद्दौला को प्रसन्न करके शाही फरमान हासिल कर ले। ऐसा होने से नवाब अंग्रेजों के चंगुल से छूटकर स्वाधीन हो सकता था। इसपर अंग्रेज नंदकुमार से चिढ़ गए। फरवरी, 1765 में मीर जाफर के मरने पर उसका लड़का नवाब नजमुद्दौला गद्दी पर बैठा। उसने नंदकुमार को अपना दीवान रखना चाहा, लेकिन अंग्रेजों ने ऐसा नहीं होने दिया। फलत: नवाब का एक योग्य एवं स्वामिभक्त सेवक उसके हाथ से जाता रहा। अंग्रेज गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स ने अब महाराज नंदकुमार को हमेशा के लिये खत्म कर देने की योजना बनाई। नवाब नजमुद्दौला ने मुहम्मद रज़ा खाँ नाम के व्यक्ति को अपना नायब नियुक्त किया था। हेस्टिंग्स ने नंदकुमार को बंगाल का नायब बनाने का लालच देकर उसे मुहम्मद रजा खाँ के खिलाफ कर दिया था। इस लालच में नंदकुमार ने रजा खाँ पर गबन का इलजाम साबित करने में मदद की थी। लेकिन काम निकलने के बाद हेस्टिंग्स नंदकुमार को पुरस्कृत करने बजाय उसका विरोधी हो गया। नंदकुमार ने भी अब हेस्टिंग्स के खिलाफ कलकत्ते की कौंसिल को एक अर्जी पेश की जिसमें हेस्टिंग्स पर रिश्वत लेने और जबरदस्ती धन वसूल करने तथा मुर्शिदाबाद के नवाब की माँ मुन्नी बेगम से बहुत सा धन वसूल करने आदि के इलजाम लगाए थे। ये इलजाम कौंसिल के मेंबरों ने यद्यपि सही समझे, तथापि हेस्टिंग्स को कोई दंड नहीं दिया गया। अपितु हेस्टिंग्स ने उलटे नंदकुमार पर यह जुर्म लगाया कि पाँच साल पहले सन्‌ 1770 में नंदकुमार ने किसी दीवानी के मामले में एक जाली दस्तावेज बनाया था। जालसाजी का यह मुकदृमा मोहनप्रसाद नाम के एक व्यक्ति द्वारा कलकत्ते की अँग्रेजी `सुप्रीम कोर्ट` में चलाया गया। कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश सर एलिजाह इंपी वारेन हेस्टिंग्स का बचपन का मित्र था। नंदकुमार पर जालसाजी का इलजाम बिलकुल झूठा था, जिसको सिद्ध करने के लिये फर्जी गवाह खड़े किए गए थे। वस्तुत: अंग्रेज और विशेषतया हेस्टिंग्स नंदकुमार से चिढ़ते थे और उसे खत्म करने के लिये ही यह मुकदमा चलाया गया था। सात दिन इस मुकदमे की सुनवाई हुई और अंत में अँग्रेजी अदालत ने नंदकुमार को अपराधी करार देकर उसे फाँसी की सजा दे दी। 5 अगस्त सन्‌ 1776 को महाराज नंदकुमार को कलकत्ते में फाँसी पर लटका दिया गया। नंदकुमार ने शांति और अदम्य धैर्य के साथ मृत्यु का आलिंगन किया। .

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मास्टर अमीर चंद

मास्टर अमीर चंद (१८६९ - ८ मई १९१५) भारत की स्वतंत्रता-संग्राम के क्रांतिकारी थे। अमीर चंद का जन्म 1869 में हैदराबाद की विधानसभा के सेक्रेटरी के घर हुआ था। उनके मन में देश भक्ति की मान्यता इतनी प्रबल थी कि स्वदेशी आंदोलन के दौरान हैदराबाद के बाजार में उन्होंने स्वदेशी स्टोर खोला जहां वह देशभक्तों की तस्वीरें तथा क्रांतिकारी साहित्य बेचते थे। 1919 में दिल्ली में भी स्वदेशी प्रदर्शनी लगाई। 1912 में दिल्ली में उस समय के वापसरोय लार्ड हार्डिग पर बम फेंकने की घटना में सक्रिय भूमिका निभाई। 1914 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 1915 में उन्हें तीन साथियों (अवध बिहारी, बाल मुकुंद, बसन्त कुमार बिस्वास) के साथ दिल्ली केंद्रीय जेल में फांसी दे दी गई। .

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मगिंग

न्यायालयिक विज्ञान में मगिंग हत्या का वह प्रकार है जिसमे गले को पैर, कुहनी, घुटने अथवा शारीर के अन्य कठोर अंग से दबा कर हत्या की जाती है। मगिंग गला घोंट कर मरने का ही अन्य तरीका है जो की अक्सर लोग दूसरे लोगों को हानि पहुचाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। मगिंग करते समय कुहनी का सारा का सारा दबाव कुंठली पर होता है। व्यक्ति की मृत्यु की जांच के लिए जब न्यायालयिक वैज्ञानिक विश्लेषण के लिए आते है तो वह गले के आस पास की रगड़न देखकर पता लगाते है की मृत्यु गला घोटने से हुई है या फांसी लगाने से। मगिंग किसी भी व्यक्ति की हत्या के लिए की जाती है, इसमें व्यक्ति कोहनी से पूरा दबाव लगा देता है किसी मनुष्य की हत्या करने के लिए। .

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मक़बूल भट्ट

मक़बूल भट्ट (कश्मीरी: (नस्तालीक़), 18 फ़रवरी 1938 – 11 फ़रवरी 1984) जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ़्रंट के संस्थापकों में से एक था। Last Retrieved 9 February 2013 उसको 11 फ़रवरी 1984 में तिहाड़ जेल में उसके दो क़तल इलज़ाम क़ुबूलने के बाद फाँसी की सज़ा दी गई थी। .

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मृत्युदंड

एशियाई विश्व में सबसे प्रचलित मृत्युदंड का रूप है फांसी मृत्युदण्ड (अंग्रेज़ी:''कैपिटल पनिश्मैन्ट''), किसी व्यक्ति को कानूनी तौर पर न्यायिक प्रक्रिया के फलस्वरूप किसी अपराध के परिणाम में प्राणांत का दण्ड देने को कहते हैं। अंग्रेज़ी में इसके लिये प्रयुक्त कैपिटल शब्द लैटिन के कैपिटलिस शब्द से आया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है "सिर के संबंध में या से संबंधित" (लैटिन कैपुट)। इसके मूल में आरंभिक रूप में दिये जाने वाले मृत्युदण्ड का स्वरूप सिर को धड़ से अलग कर देने की प्रक्रिया में है। वर्तमान समय में एमनेस्टी इंटरनेशनल के आंकड़ों के अनुसार विश्व के 58 देशों में अभी मृत्युदंड दिया जाता है, जबकि अन्य देशों में या तो इस पर रोक लगा दी गई है, या गत दस वर्षो से किसी को फांसी नहीं दी गई है। यूरोपियाई संघ के सदस्य देशों में,चार्टर ऑफ फ़्ण्डामेण्टल राइट्स ऑफ द यूरोपियन यूनियन की धारा-2 मृत्युदण्ड को निषेध करती है। .

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मैनपुरी षड्यन्त्र

पं० गेंदालाल दीक्षित (मैनपुरी काण्ड के नेता) का चित्र परतन्त्र भारत में स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने के लिये उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी में सन् १९१५-१६ में एक क्रान्तिकारी संस्था की स्थापना हुई थी जिसका प्रमुख केन्द्र मैनपुरी ही रहा। मुकुन्दी लाल, दम्मीलाल, करोरीलाल गुप्ता, सिद्ध गोपाल चतुर्वेदी, गोपीनाथ, प्रभाकर पाण्डे, चन्द्रधर जौहरी और शिव किशन आदि ने औरैया जिला इटावा निवासी पण्डित गेंदालाल दीक्षित के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध काम करने के लिये उनकी संस्था शिवाजी समिति से हाथ मिलाया और एक नयी संस्था मातृवेदी की स्थापना की। इस संस्था के छिप कर कार्य करने की सूचना अंग्रेज अधिकारियों को लग गयी और प्रमुख नेताओं को पकड़कर उनके विरुद्ध मैनपुरी में मुकदमा चला। इसे ही बाद में अंग्रेजों ने मैनपुरी षडयन्त्र कहा। इन क्रान्तिकारियों को अलग-अलग समय के लिये कारावास की सजा हुई। मैनपुरी षडयन्त्र की विशेषता यह थी कि इसकी योजना प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश के निवासियों ने ही बनायी थी। यदि इस संस्था में शामिल मैनपुरी के ही देशद्रोही गद्दार दलपतसिंह ने अंग्रेजी सरकार को इसकी मुखबिरी न की होती तो यह दल समय से पूर्व इतनी जल्दी टूटने या बिखरने वाला नहीं था। मैनपुरी काण्ड में शामिल दो लोग - मुकुन्दीलाल और राम प्रसाद 'बिस्मिल' आगे चलकर सन् १९२५ के विश्वप्रसिद्ध काकोरी काण्ड में भी शामिल हुए। मुकुन्दीलाल को आजीवन कारावास की सजा हुई जबकि राम प्रसाद 'बिस्मिल' को तो फाँसी ही दे दी गयी क्योंकि वे भी मैनपुरी काण्ड में गेंदालाल दीक्षित को आगरा के किले से छुडाने की योजना बनाने वाले मातृवेदी दल के नेता थे। यदि कहीं ये लोग अपने अभियान में कामयाब हो जाते तो न तो सन् १९२७ में राजेन्द्र लाहिडी व अशफाक उल्ला खाँ सरीखे होनहार नवयुवक फाँसी चढते और न ही चन्द्रशेखर आजाद जैसे नर नाहर तथा गणेशशंकर विद्यार्थी सरीखे प्रखर पत्रकार की सन् १९३१ में जघन्य हत्याएँ हुई होतीं। .

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रानी गाइदिन्ल्यू

रानी गिडालू रानी गिडालू या रानी गाइदिन्ल्यू (Gaidinliu; 1915–1993) भारत की नागा आध्यात्मिक एवं राजनीतिक नेत्री थीं जिन्होने भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह का नेतृत्व किया। उनको भारत सरकार द्वारा समाज सेवा के क्षेत्र में सन १९८२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। http://pib.nic.in/newsite/hindifeature.aspx?relid.

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राबर्ट एम्मेट

रॉबर्ट एम्मेट डब्लिन में रॉबर्ट एम्मेट की प्रतिमा राबर्ट एम्मेट (Robert Emmet; १७७८ - १८०३) आयरलैंड का राष्त्रवादी, वक्ता तथा विद्रोही नेता था। १८०३ में उसने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध एक असफल विद्रोह किया। .

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राम प्रसाद 'बिस्मिल'

राम प्रसाद 'बिस्मिल' (११ जून १८९७-१९ दिसम्बर १९२७) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे, जिन्हें ३० वर्ष की आयु में ब्रिटिश सरकार ने फाँसी दे दी। वे मैनपुरी षड्यन्त्र व काकोरी-काण्ड जैसी कई घटनाओं में शामिल थे तथा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य भी थे। राम प्रसाद एक कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे। बिस्मिल उनका उर्दू तखल्लुस (उपनाम) था जिसका हिन्दी में अर्थ होता है आत्मिक रूप से आहत। बिस्मिल के अतिरिक्त वे राम और अज्ञात के नाम से भी लेख व कवितायें लिखते थे। ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (निर्जला एकादशी) विक्रमी संवत् १९५४, शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में जन्मे राम प्रसाद ३० वर्ष की आयु में पौष कृष्ण एकादशी (सफला एकादशी), सोमवार, विक्रमी संवत् १९८४ को शहीद हुए। उन्होंने सन् १९१६ में १९ वर्ष की आयु में क्रान्तिकारी मार्ग में कदम रखा था। ११ वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और स्वयं ही उन्हें प्रकाशित किया। उन पुस्तकों को बेचकर जो पैसा मिला उससे उन्होंने हथियार खरीदे और उन हथियारों का उपयोग ब्रिटिश राज का विरोध करने के लिये किया। ११ पुस्तकें उनके जीवन काल में प्रकाशित हुईं, जिनमें से अधिकतर सरकार द्वारा ज़ब्त कर ली गयीं। --> बिस्मिल को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध की लखनऊ सेण्ट्रल जेल की ११ नम्बर बैरक--> में रखा गया था। इसी जेल में उनके दल के अन्य साथियोँ को एक साथ रखकर उन सभी पर ब्रिटिश राज के विरुद्ध साजिश रचने का ऐतिहासिक मुकदमा चलाया गया था। --> .

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राजगुरु

अमर शहीद '''शिवराम हरि राजगुरु''' शिवराम हरि राजगुरु (मराठी: शिवराम हरी राजगुरू, जन्म:२४अगस्त१९०८-मृत्यु:२३ मार्च १९३१) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। इन्हें भगत सिंह और सुखदेव के साथ २३ मार्च १९३१ को फाँसी पर लटका दिया गया था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में राजगुरु की शहादत एक महत्वपूर्ण घटना थी। शिवराम हरि राजगुरु का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी सम्वत् १९६५ (विक्रमी) तदनुसार सन् १९०८ में पुणे जिला के खेडा गाँव में हुआ था। ६ वर्ष की आयु में पिता का निधन हो जाने से बहुत छोटी उम्र में ही ये वाराणसी विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने आ गये थे। इन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रंन्थों तथा वेदो का अध्ययन तो किया ही लघु सिद्धान्त कौमुदी जैसा क्लिष्ट ग्रन्थ बहुत कम आयु में कण्ठस्थ कर लिया था। इन्हें कसरत (व्यायाम) का बेहद शौक था और छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के बड़े प्रशंसक थे। वाराणसी में विद्याध्ययन करते हुए राजगुरु का सम्पर्क अनेक क्रान्तिकारियों से हुआ। चन्द्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी पार्टी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गये। आजाद की पार्टी के अन्दर इन्हें रघुनाथ के छद्म-नाम से जाना जाता था; राजगुरु के नाम से नहीं। पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद, सरदार भगत सिंह और यतीन्द्रनाथ दास आदि क्रान्तिकारी इनके अभिन्न मित्र थे। राजगुरु एक अच्छे निशानेबाज भी थे। साण्डर्स का वध करने में इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव का पूरा साथ दिया था जबकि चन्द्रशेखर आज़ाद ने छाया की भाँति इन तीनों को सामरिक सुरक्षा प्रदान की थी। २३ मार्च १९३१ को इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ लाहौर सेण्ट्रल जेल में फाँसी के तख्ते पर झूल कर अपने नाम को हिन्दुस्तान के अमर शहीदों की सूची में अहमियत के साथ दर्ज करा दिया। .

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राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी

राजेन्द्र लाहिडी की दुर्लभ फोटो राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी (अंग्रेजी:Rajendra Nath Lahiri, बाँग्ला:রাজেন্দ্র নাথ লাহিড়ী, जन्म:१९०१-मृत्यु:१९२७) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण स्वतंत्रता सेनानी थे। युवा क्रान्तिकारी लाहिड़ी की प्रसिद्धि काकोरी काण्ड के एक प्रमुख अभियुक्त के रूप में हैं। .

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रोशन सिंह

रोशन सिंह (जन्म:१८९२-मृत्यु:१९२७) ठाकुर रोशन सिंह (१८९२ - १९२७) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के एक क्रान्तिकारी थे। असहयोग आन्दोलन के दौरान उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में हुए गोली-काण्ड में सजा काटकर जैसे ही शान्तिपूर्ण जीवन बिताने घर वापस आये कि हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसियेशन में शामिल हो गये। यद्यपि ठाकुर साहब ने काकोरी काण्ड में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लिया था फिर भी आपके आकर्षक व रौबीले व्यक्तित्व को देखकर काकोरी काण्ड के सूत्रधार पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व उनके सहकारी अशफाक उल्ला खाँ के साथ १९ दिसम्बर १९२७ को फाँसी दे दी गयी। ये तीनों ही क्रान्तिकारी उत्तर प्रदेश के शहीदगढ़ कहे जाने वाले जनपद शाहजहाँपुर के रहने वाले थे। इनमें ठाकुर साहब आयु के लिहाज से सबसे बडे, अनुभवी, दक्ष व अचूक निशानेबाज थे। .

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लाला हरदयाल

लाला हरदयाल (१४ अक्टूबर १८८४, दिल्ली -४ मार्च १९३९) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के उन अग्रणी क्रान्तिकारियों में थे जिन्होंने विदेश में रहने वाले भारतीयों को देश की आजादी की लडाई में योगदान के लिये प्रेरित व प्रोत्साहित किया। इसके लिये उन्होंने अमरीका में जाकर गदर पार्टी की स्थापना की। वहाँ उन्होंने प्रवासी भारतीयों के बीच देशभक्ति की भावना जागृत की। काकोरी काण्ड का ऐतिहासिक फैसला आने के बाद मई, सन् १९२७ में लाला हरदयाल को भारत लाने का प्रयास किया गया किन्तु ब्रिटिश सरकार ने अनुमति नहीं दी। इसके बाद सन् १९३८ में पुन: प्रयास करने पर अनुमति भी मिली परन्तु भारत लौटते हुए रास्ते में ही ४ मार्च १९३९ को अमेरिका के महानगर फिलाडेल्फिया में उनकी रहस्यमय मृत्यु हो गयी। उनके सरल जीवन और बौद्धिक कौशल ने प्रथम विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़ने के लिए कनाडा और अमेरिका में रहने वाले कई प्रवासी भारतीयों को प्रेरित किया। .

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लेस्ली हिल्टन

लेस्ली जॉर्ज हिल्टन (२९ मार्च १९०५ - १७ मई १९५५) एक वेस्टइंडीज के पूर्व क्रिकेटर थे, जो एक तेज गेंदबाज थे तथा इन्होंने वेस्टइंडीज के लिए १९३५ और १९३९ के बीच छह टेस्ट मैच खेले थे। १९२७ से १९३९ तक उन्होंने अपने मूल जमैका के लिए घरेलू प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेला था। हिल्टन ने १९३४-३५ के सत्र में इंग्लैंड के खिलाफ चार टेस्ट मैचों में १९.३३ की औसत से १३ विकेट लिए, जबकि इंग्लैंड के ही खिलाफ साल १९३९ की श्रृंखला में अपने अगले दो टेस्ट मैचों में तीन विकेट लिए थे। .

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शहीद (1965 फ़िल्म)

शहीद (1965 फ़िल्म) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम पर हिन्दी भाषा की फिल्म है। भगत सिंह के जीवन पर 1965 में बनी यह देशभक्ति की सर्वश्रेष्ठ फिल्म है। जिसकी कहानी स्वयं भगत सिंह के साथी बटुकेश्वर दत्त ने लिखी थी। इस फ़िल्म में अमर शहीद राम प्रसाद 'बिस्मिल' के गीत थे। मनोज कुमार ने इस फिल्म में शहीद भगत सिंह का जीवन्त अभिनय किया था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम पर आधारित यह अब तक की सर्वश्रेष्ठ प्रामाणिक फ़िल्म है। 13वें राष्ट्रीय फ़िल्म अवार्ड की सूची में इस फ़िल्म ने हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के पुरस्कार के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता पर बनी सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के लिये नर्गिस दत्त पुरस्कार भी अपने नाम किया। बटुकेश्वर दत्त की कहानी पर आधारित सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखन के लिये दीनदयाल शर्मा को पुरस्कृत किया गया था। यह भी महज़ एक संयोग ही है कि जिस साल यह फ़िल्म रिलीज़ हुई थी उसी साल बटुकेश्वर दत्त का निधन भी हुआ। .

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शहीद दिवस (भारत)

भारत में कई तिथियाँ शहीद दिवस (सर्वोदय दिवस) के रूप में मनायी जातीं हैं, जिनमें मुख्य हैं- ३० जनवरी, २३ मार्च, २१ अक्टूबर, १७ नवम्बर तथा १९ नवम्बर। ३० जनवरी १९४८ को महात्मा गांधी की हत्या हुई थी। 23 मार्च 1931 के दिन अंग्रेजों ने शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर लटका दिया गया था। भगत सिंह (28 सितम्बर 1907 - 23 मार्च 1931) एक जाट सिख परिवार से थे। १९ नवम्बर रानी लक्ष्मीबाई का जन्मदिन है। .

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सरबजीत सिंह

सरबजीत सिंह (1963 - 2 मई 2013) एक भारतीय नागरिक थे जिन्हें पाकिस्तान ने जासूसी और आतंकवाद के आरोप लगाकर सजा और प्रताड़ना दी। वे १९९० से पाकिस्तान के कोट लखपत जेल, में थे जहाँ उसी जेल के कैदियों ने हमला करके उन्हें मार दिया। .

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सुशीला दीदी

सुशीला दीदी (५ मार्च १९०५ - १३ जनवरी १९६३) भारत के स्वतंत्रता संग्राम की एक क्रांतिकारी महिला थीं। .

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सुखदेव

सुखदेव (पंजाबी: ਸੁਖਦੇਵ ਥਾਪਰ, जन्म: 15 मई 1907 मृत्यु: 23 मार्च 1931) का पूरा नाम सुखदेव थापर था। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्हें भगत सिंह और राजगुरु के साथ २३ मार्च १९३१ को फाँसी पर लटका दिया गया था। इनकी शहादत को आज भी सम्पूर्ण भारत में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। सुखदेव भगत सिंह की तरह बचपन से ही आज़ादी का सपना पाले हुए थे। ये दोनों 'लाहौर नेशनल कॉलेज' के छात्र थे। दोनों एक ही सन में लायलपुर में पैदा हुए और एक ही साथ शहीद हो गए। .

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सूर्य सेन

सूर्य सेन (1894 - 12 जनवरी 1934) भारत की स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। उन्होने इंडियन रिपब्लिकन आर्मी की स्थापना की और चटगांव विद्रोह का सफल नेतृत्व किया। वे नेशनल हाईस्कूल में सीनियर ग्रेजुएट शिक्षक के रूप में कार्यरत थे और लोग प्यार से उन्हें "मास्टर दा" कहकर सम्बोधित करते थे। अंग्रेजों ने उन्हें १२ जनवरी १९३४ को मेदिनीपुर जेल में फांसी दे दी। .

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सोहनलाल पाठक

सोहनलाल पाठक (१८८३-) भारतीय स्वतंत्रतता के लिये शहीद होने वाले क्रांतिकारी थे। .

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हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन

हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन, जिसे संक्षेप में एच॰आर॰ए॰ भी कहा जाता था, भारत की स्वतंत्रता से पहले उत्तर भारत की एक प्रमुख क्रान्तिकारी पार्टी थी जिसका गठन हिन्दुस्तान को अंग्रेजों के शासन से मुक्त कराने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश तथा बंगाल के कुछ क्रान्तिकारियों द्वारा सन् १९२४ में कानपुर में किया गया था। इसकी स्थापना में लाला हरदयाल की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। काकोरी काण्ड के पश्चात् जब चार क्रान्तिकारियों को फाँसी दी गई और एच०आर०ए० के सोलह प्रमुख क्रान्तिकारियों को चार वर्ष से लेकर उम्रकैद की सज़ा दी गई तो यह संगठन छिन्न-भिन्न हो गया। बाद में इसे चन्द्रशेखर आजाद ने भगत सिंह के साथ मिलकर पुनर्जीवित किया और एक नया नाम दिया हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन। सन् १९२४ से लेकर १९३१ तक लगभग आठ वर्ष इस संगठन का पूरे भारतवर्ष में दबदबा रहा जिसके परिणामस्वरूप न केवल ब्रिटिश सरकार अपितु अंग्रेजों की साँठ-गाँठ से १८८५ में स्थापित छियालिस साल पुरानी कांग्रेस पार्टी भी अपनी मूलभूत नीतियों में परिवर्तन करने पर विवश हो गयी। .

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हिन्दी पुस्तकों की सूची/प

* पंच परमेश्वर - प्रेम चन्द्र.

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हेमू कालाणी

हेमू कालाणी हेमू कालाणी (Hemu Kalani) भारत के एक क्रान्तिकारी एवं स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे। अंग्रेजी शासन ने उन्हें फांसी पर लटका दिया था। .

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जैनेन्द्र कुमार

प्रेमचंदोत्तर उपन्यासकारों में जैनेंद्रकुमार (२ जनवरी, १९०५- २४ दिसंबर, १९८८) का विशिष्ट स्थान है। वह हिंदी उपन्यास के इतिहास में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक के रूप में मान्य हैं। जैनेंद्र अपने पात्रों की सामान्यगति में सूक्ष्म संकेतों की निहिति की खोज करके उन्हें बड़े कौशल से प्रस्तुत करते हैं। उनके पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ इसी कारण से संयुक्त होकर उभरती हैं। जैनेंद्र के उपन्यासों में घटनाओं की संघटनात्मकता पर बहुत कम बल दिया गया मिलता है। चरित्रों की प्रतिक्रियात्मक संभावनाओं के निर्देशक सूत्र ही मनोविज्ञान और दर्शन का आश्रय लेकर विकास को प्राप्त होते हैं। .

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जेम्स द्वितीय

जेम्स द्वितीय (१६३३-१७०१) ग्रेट ब्रिटेन तथा आयरलैंड का शासक (१६८५-८८) था। वह चार्ल्स प्रथम तथा हेनरिटा मेरिया की द्वितीय संतान था। वह १६४३ ई॰ में आर्क ड्यूक बना था। वह योग्य सैनिक, साहसी एवं दृढ़ निश्चय व्यक्ति था, किंतु उसमें दूरदर्शिता की न्यूनता, धर्मान्धता, तथा अनैतिकता थी। अपने पिता की फाँसी के थोड़े समय ही पूर्व वह हालैंड भागा, फिर फ्रांस चला गया। १६५९ ई॰ में उसने एन हाइड से विवाह किया जिससे उसकी दो लड़कियाँ मेरी और एन उत्पन्न हुईं, जो आगे चलकर क्रमश: इंग्लैंड की रानी हुईं। उसकी द्वितीय पत्नी मेरी ऑव मांडेना से १८६६ में एक पुत्र हुआ जो 'ओल्ड प्रिटेंडर' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। राजतंत्र की पुन: स्थापना के उपरांत जेम्स लॉर्ड हाई ऐडमिरल नियुक्त हुआ। १६८५ ई॰ में गद्दी पर बैठा और ड्यूक ऑव आरगाइल तथा मनमथ के विद्रोहों को दबाया। कैथालिक के रूप में तथा निरंकुश शासन का संकल्प कर लेने के कारण उसने अपने स्वेच्छानुसार के द्वारा इंग्लैंड के कानूनों का नियमित अतिक्रमण आरंभ किया। जेम्स ने कैथोलिकों का प्रवेश सेना एवं विश्वविद्यालयों में कराया। एक स्थायी सेना की रचना के साथ साथ उसने इंग्लैंड के कानूनों को स्थगित एवं रद्द करने का अधिकार ग्रहण किया। उसकी इंडलजेंस की प्रथम घोषणा ने १६८७ ई॰ में कैथोलिको एवं डिसेंटर्स के विरुद्ध लगाए सारे दंड-विधानों को स्थगित कर दिया जिससे एक राष्ट्रीय चेतना फैल गई। उसकी इंडलजेंस की दूसरी घोषणा का विरोध सात बिशपों ने किया जिनपर मुकदमा चलाया गया। जब वे मुक्त किए गए तो लोगों ने करतल ध्वनि द्वारा इसका स्वागत किया। जेम्स के पुत्र उत्पन्न होने पर प्रोटेस्टेंट विलियम ऑव ओरंज, जो जेम्स का दामाद था, इंगलैंड की गद्दी पर बैठने के लिए भी आमंत्रित किया गया। विलियम के आने पर इंगलैंड की सेना भी उसके साथ हो गई और जेम्स फ्रांस भागा। इंगलैंड की गद्दी को पुन: प्राप्त करने के लिए जेम्स ने १६९० ई॰ में आयरलैंड में एक असफल विद्रोह किया। ६ सितंबर १७०१ ई॰ को सेंट जर्मेंन में जेम्स की मृत्यु हो गई। श्रेणी:इंग्लैंड का इतिहास श्रेणी:ब्रिटेन के शासक.

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विष्णु गणेश पिंगले

महान क्रांतिकारी विष्णु गणेश पिंगले विष्णु गणेश पिंगले (2 जनवरी 1888-17 नवम्बर 1915) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक क्रान्तिकारी थे। वे गदर पार्टी के सदस्य थे। लाहौर षडयंत्र केस और हिन्दू-जर्मन षडयंत्र में उनको सन् १९१५ फांसी की सजा दी गयी। विष्णु का जन्म 2 जनवरी 1888 को पूना के गांव तलेगांव में हुआ। सन 1911 में वह इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करने अमेरिका पहुंचे जहां उन्होंने सिटेल विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग कालेज में प्रवेश लिया। वहां लाला हरदयाल जैसे नेताओं का उन्हें मार्गदर्शन मिला। महान क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा से उनकी मित्रता थी। देश में गदर पैदा करके देश को स्वतंत्र करवाने का सुनहरी मौका देखकर विष्णु गणेश बाकी साथियों के साथ भारत लौटे और ब्रिटिश इंडिया की फौजों में क्रांति लाने की तैयारी में जुट गये। उन्होंने कलकत्ता में श्री रास बिहारी बोस से मुलाकात की। वह शचीन्द्रनाथ सांयाल को लेकर पंजाब चले आए। उस समय पंजाब, बंगाल और उतर प्रदेश में सैनिक क्रांति का पूरा प्रबंध हो गया था किन्तु एक गद्दार की गद्दारी के कारण सारी योजना विफल हो गई। विष्णु पिंगले को नादिर खान नामक एक व्यक्ति ने गिरफ्तार करवा दिया। गिरफ्तारी के समय उनके पास दस बम थे। उन पर मुकदमा चलाया गया और 17 नवम्बर 1915 को सेंट्रल जेल लाहौर में उन्हें फांसी दे दी गयी। .

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खुदीराम बोस

युवा क्रान्तिकारी '''खुदीराम बोस''' (१९०५ में) खुदीराम बोस (बांग्ला: ক্ষুদিরাম বসু; जन्म: ३-१२-१८८९ - मृत्यु: ११ अगस्त १९०८) भारतीय स्वाधीनता के लिये मात्र १९ साल की उम्र में हिन्दुस्तान की आजादी के लिये फाँसी पर चढ़ गये। कुछ इतिहासकारों की यह धारणा है कि वे अपने देश के लिये फाँसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के ज्वलन्त तथा युवा क्रान्तिकारी देशभक्त थे। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि खुदीराम से पूर्व १७ जनवरी १८७२ को ६८ कूकाओं के सार्वजनिक नरसंहार के समय १३ वर्ष का एक बालक भी शहीद हुआ था। उपलब्ध तथ्यानुसार उस बालक को, जिसका नम्बर ५०वाँ था, जैसे ही तोप के सामने लाया गया, उसने लुधियाना के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर कावन की दाढी कसकर पकड ली और तब तक नहीं छोडी जब तक उसके दोनों हाथ तलवार से काट नहीं दिये गये बाद में उसे उसी तलवार से मौत के घाट उतार दिया गया था। (देखें सरफरोशी की तमन्ना भाग ४ पृष्ठ १३) .

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ग्रेट एक्स्पेक्टैशन

ग्रेट एक्स्पेक्टैशन चार्ल्स डिकेंस का एक उपन्यास है। इसे सबसे पहले 1 दिसम्बर 1860 से 3 अगस्त 1861 तक ऑल द इयर राउंड प्रकाशन की एक श्रृंखला के रूप में प्रकाशित किया गया। इसे 250 से अधिक बार स्टेज और स्क्रीन के लिए चुना गया है। ग्रेट एक्स्पेक्टैशन बिल्दुंग्सरोमन (bildungsroman) की शैली में लिखा गया है, जो अपनी परिपक्वता की खोज में किसी पुरुष या महिला की कहानी का अनुसरण करती है, आम तौर पर यह बचपन से शुरू होती है और अंततः मुख्य पात्र की वयस्कता में समाप्त होती है। ग्रेट एक्स्पेक्टैशन एक अनाथ पिप की कहानी है, जो उसके जीवन के बारे में लिखी गयी है, जो एक जेंटलमेन बनने का प्रयास कर रहा है। उपन्यास को डिकेंस की अर्द्ध-आत्मकथा भी माना जा सकता है, उनके अधिकांश काम की तरह वे इस उपन्यास में भी जीवन और लोगों के अनुभव का चित्रण कर रहे हैं। ग्रेट एक्स्पेक्टैशन का मुख्य कथानक 1812 के क्रिसमस की पूर्व संध्या से शुरू होता है, जब नायक लगभग सात साल का है (जो डिकेंस के जन्म का साल भी है) और यह 1840 की सर्दियों तक जाता है। .

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गोण्डा

नोट: यह लेख गोण्डा जिला मुख्यालय (उत्तर प्रदेश) के संबंध में है। गोंडा जिले के लिए गोंडा जिला देखें। यह भारत के प्रान्त उत्तर प्रदेश के एक प्रमुख जिला गोंडा जिले का मुख्यालय है जो पूर्व में बस्ती, पश्चिम में बहराइच, उत्तर में बलरामपुर तथा दक्षिण में बाराबंकी और फैजाबाद से घिरा हुआ है। यहाँ की जिला जेल में काकोरी काण्ड के एक प्रमुख क्रान्तिकारी राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को निर्धारित तिथि से दो दिन पूर्व १७ दिसम्बर १९२७ को बेरहम ब्रिटिश सरकार द्वारा फाँसी दी गयी थी। .

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गोरखपुर

300px गोरखपुर उत्तर प्रदेश राज्य के पूर्वी भाग में नेपाल के साथ सीमा के पास स्थित भारत का एक प्रसिद्ध शहर है। यह गोरखपुर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। यह एक धार्मिक केन्द्र के रूप में मशहूर है जो बौद्ध, हिन्दू, मुस्लिम, जैन और सिख सन्तों की साधनास्थली रहा। किन्तु मध्ययुगीन सर्वमान्य सन्त गोरखनाथ के बाद उनके ही नाम पर इसका वर्तमान नाम गोरखपुर रखा गया। यहाँ का प्रसिद्ध गोरखनाथ मन्दिर अभी भी नाथ सम्प्रदाय की पीठ है। यह महान सन्त परमहंस योगानन्द का जन्म स्थान भी है। इस शहर में और भी कई ऐतिहासिक स्थल हैं जैसे, बौद्धों के घर, इमामबाड़ा, 18वीं सदी की दरगाह और हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों का प्रमुख प्रकाशन संस्थान गीता प्रेस। 20वीं सदी में, गोरखपुर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक केन्द्र बिन्दु था और आज यह शहर एक प्रमुख व्यापार केन्द्र बन चुका है। पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय, जो ब्रिटिश काल में 'बंगाल नागपुर रेलवे' के रूप में जाना जाता था, यहीं स्थित है। अब इसे एक औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिये गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा/GIDA) की स्थापना पुराने शहर से 15 किमी दूर की गयी है। .

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आधर्षण

अंग्रेजी विधि प्रणाली में सामान्य कानून के अंतर्गत, मृत्यु दंडोदश के पश्चात्‌ जब यह प्रत्यक्ष हो जाता था कि अपराधी जीवित रहने योग्य नहीं है तब उसको 'अटेंड' कहा जाता था और इस कार्यवाही को अटेंडर (Attainder) कहते थे। अटेंडर का अर्थ है आर्धषण। आर्धषण की कार्यवाही मृत्युदंडादेश के पश्चात्‌ अथवा मृत्युदंडादेशतुल्य परिस्थिति में हुआ करती थी। निर्णय के बिना, केवल दोषसिद्धि के आधार पर, आधार्षण नहीं हो सकता था। आधर्षण के परिणामस्वरूप अपराधी की समस्त चल या अचल संपति का राज्य द्वारा अपहरण हो जाता था; वह संपति के उत्तराधिकार से स्वयं तो वंचित हो ही जाता था, उसके उत्तराधिकारी भी उसकी संपति नहीं पा सकते थे। इसको रक्तभ्रष्टता कहते थे। परंतु सन्‌ 1870 के 'फॉरफीचर ऐक्ट' के अंतर्गत आधर्षण अथवा संपतिअपहार या रक्तभ्रष्टता वर्जित हो गई और अब अटेंडर सिद्धांत का कोई विशेष महत्व नहीं रहा। .

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आन (रूसी सम्राज्ञी)

रूसी सम्राज्ञी '''आन''' आन (Anna) (7 फ़रवरी 1693 – 28 अक्टूबर 1740); रूस की सम्राज्ञी, महान्‌ पीटर के भाई ईवान पंचम की पुत्री। .

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काकोरी (मंगल ग्रह)

काकोरी (मंगल ग्रह) पृथ्वी से करोड़ों मील दूर मंगल ग्रह पर स्थित एक क्रेटर का नाम है। इसका व्यास 29.7 किलोमीटर है और यह मंगल ग्रह के अक्षांश 41.8 व देशांतर 29.9 पर स्थित है। सन् 1976 में इसका नामकरण भारत के एक ऐतिहासिक शहर काकोरी के नाम पर किया गया था। .

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काकोरी काण्ड

काकोरी-काण्ड के क्रान्तिकारी सबसे ऊपर या प्रमुख बिस्मिल थे राम प्रसाद 'बिस्मिल' एवं अशफाक उल्ला खाँ नीचे ग्रुप फोटो में क्रमश: 1.योगेशचन्द्र चटर्जी, 2.प्रेमकृष्ण खन्ना, 3.मुकुन्दी लाल, 4.विष्णुशरण दुब्लिश, 5.सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य, 6.रामकृष्ण खत्री, 7.मन्मथनाथ गुप्त, 8.राजकुमार सिन्हा, 9.ठाकुर रोशानसिंह, 10.पं० रामप्रसाद 'बिस्मिल', 11.राजेन्द्रनाथ लाहिडी, 12.गोविन्दचरण कार, 13.रामदुलारे त्रिवेदी, 14.रामनाथ पाण्डेय, 15.शचीन्द्रनाथ सान्याल, 16.भूपेन्द्रनाथ सान्याल, 17.प्रणवेशकुमार चटर्जी काकोरी काण्ड (अंग्रेजी: Kakori conspiracy) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रान्तिकारियों द्वारा ब्रिटिश राज के विरुद्ध भयंकर युद्ध छेड़ने की खतरनाक मंशा से हथियार खरीदने के लिये ब्रिटिश सरकार का ही खजाना लूट लेने की एक ऐतिहासिक घटना थी जो ९ अगस्त १९२५ को घटी। इस ट्रेन डकैती में जर्मनी के बने चार माउज़र पिस्तौल काम में लाये गये थे। इन पिस्तौलों की विशेषता यह थी कि इनमें बट के पीछे लकड़ी का बना एक और कुन्दा लगाकर रायफल की तरह उपयोग किया जा सकता था। हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के केवल दस सदस्यों ने इस पूरी घटना को अंजाम दिया था। क्रान्तिकारियों द्वारा चलाए जा रहे आजादी के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत के मद्देनजर शाहजहाँपुर में हुई बैठक के दौरान राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनायी थी। इस योजनानुसार दल के ही एक प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने ९ अगस्त १९२५ को लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी "आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन" को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खाँ, पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद व ६ अन्य सहयोगियों की मदद से समूची ट्रेन पर धावा बोलते हुए सरकारी खजाना लूट लिया। बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के कुल ४० क्रान्तिकारियों पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को मृत्यु-दण्ड (फाँसी की सजा) सुनायी गयी। इस मुकदमें में १६ अन्य क्रान्तिकारियों को कम से कम ४ वर्ष की सजा से लेकर अधिकतम काला पानी (आजीवन कारावास) तक का दण्ड दिया गया था। .

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अली हसन अल-मजीद

अली हसन अब्द अल-मजीद अल तिकृती: 'Ali Hassan Abd al-Majid al-Tikriti'; (1941? – 25 जनवरी 2010) एक बाथिस्ट इराकी रक्षा मंत्री, गृह मंत्री, सैन्य कमांडर और इराकी खुफिया सेवा के प्रमुख थे। वह फारसी खाड़ी युद्ध के दौरान कुवैत के अबैध गवर्नर भी थे। पूर्व बाथिस्ट इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के पहले चचेरे भाई थे, वह 1980 और 1990 के दशक में आंतरिक विपक्षी सेनाओं, अर्थात् उत्तर के जातीय कुर्द विद्रोहियों, और दक्षिण के शिया विद्रोहियों के खिलाफ इराकी सरकार के अभियानों में सैन्य भूमिका के लिए कुख्यात हो गए। प्रतिक्रियात्मक उपायों में निर्वासन और सामूहिक हत्याएं शामिल थीं; अल-मजीद को कुर्दो के खिलाफ हमलों में रासायनिक हथियारों के उपयोग के लिए इराकियों द्वारा "केमिकल अली" (علي الكيماوي, अली अल-किमावियाई) कहा जाता था।.

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अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ

अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, (उर्दू: اشفاق اُللہ خان, अंग्रेजी:Ashfaq Ulla Khan, जन्म:22 अक्तूबर १९००, मृत्यु:१९२७) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और १९ दिसम्बर सन् १९२७ को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है। .

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अजमल क़साब

अजमल क़साब (पाकिस्तानी आतंकवादी) अजमल क़साब (पूरा नाम: मुहम्मद अजमल आमिर क़साब, उर्दू: محمد اجمل امیر قصاب‎, जन्म: १३ जुलाई १९८७ ग्राम: फरीदकोट, पाकिस्तान - फांसी: २१ नवम्बर २०१२ यरवदा जेल, पुणे) २६/११/२००८ को ताज़ होटल मुंबई पर वीभत्स हमला करने वाला एक पाकिस्तानी आतंकवादी था। मुहम्मद आमिर क़साब उसके बाप का नाम था। वह कसाई जाति का मुसलमान था। "क़साब" (قصاب‎) शब्द अरबी भाषा का है जिसका हिन्दी में अर्थ कसाई या पशुओं की हत्या करने वाला होता है। साधारणतया लोगबाग उसे अजमल क़साब के नाम से ही जानते थे। क़साब पाकिस्तान में पंजाब प्रान्त के ओकरा जिला स्थित फरीदकोट गाँव का मूल निवासी था और पिछले कुछ साल से आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त था। हमलों के बाद चलाये गये सेना के एक अभियान के दौरान यही एक मात्र ऐसा आतंकी था जो जिन्दा पुलिस के हत्थे चढ़ गया। इस अभियान में इसके सभी नौ अन्य साथी मारे गये थे। इसने और इसके साथियों ने इन हमलों में कुल १६६ निहत्थे लोगों की बर्बरतापूर्ण हत्या कर दी थी। पाकिस्तान सरकार ने पहले तो इस बात से इनकार किया कि क़साब पाकिस्तानी नागरिक है किन्तु जब भारत सरकार द्वारा सबूत पेश किये गये तो जनवरी २००९ में उसने स्वीकार कर लिया कि हाँ वह पाकिस्तान का ही मूल निवासी है। ३ मई २०१० को भारतीय न्यायालय ने उसे सामूहिक ह्त्याओं, भारत के विरुद्ध युद्ध करने तथा विस्फोटक सामग्री रखने जैसे अनेक आरोपों का दोषी ठहराया। ६ मई २०१० को उसी न्यायालय ने साक्ष्यों के आधार पर मृत्यु दण्ड की सजा सुनायी। २६-११-२००८ को मुम्बई में ताज़ होटल पर हुए हमले में ९ आतंकवादियों के साथ कुल १६६ निरपराध लोगों की हत्या में उसके विरुद्ध एक मामले में ४ और दूसरे मामले में ५ हत्याओं का दोषी होना सिद्ध हुआ था। इसके अतिरिक्त नार्को टेस्ट में उसने ८० मामलों में अपनी संलिप्तता भी स्वीकार की थी। २१ फ़रवरी २०११ को मुम्बई उच्च न्यायालय ने उसकी फाँसी की सजा पर मोहर लगा दी। २९ अगस्त २०१२ को भारत के उच्चतम न्यायालय ने भी उसके मृत्यु दण्ड की पुष्टि कर दी। बाद में गृह मंत्रालय, भारत सरकार के माध्यम से उसकी दया याचिका राष्ट्रपति के पास भिजवायी गयी। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा उसे अस्वीकार करने के बाद पुणे की यरवदा केन्द्रीय कारागार में २१ नवम्बर २०१२ को प्रात: ७ बजकर ३० मिनट पर उसे फाँसी दे दी गयी। .

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अवध बिहारी

शहीद अवध बिहारी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। बोस की क्रांतिकारी गतिविधियों के चलते अंग्रेजी शासकों की नींद हराम हो गई थी। उन्होंने वायसराय लार्ड हार्डिंग्ज पर बम प्रहार किया तथा लारेंस गार्डस बम कांड में भी मुख्य भूमिका निभाई। स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने के कारण 11 मई 1915 को अंबाला जेल में अवध बिहारी बोस को फांसी दी गई थी। श्रेणी:भारतीय क्रांतिकारी.

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उधम सिंह

अंगूठाकार सरदार उधम सिंह (26 दिसम्बर 1899 से 31 जुलाई 1940) का नाम भारत की आज़ादी की लड़ाई में पंजाब के क्रान्तिकारी के रूप में दर्ज है। उन्होंने जलियांवाला बाग कांड के समय पंजाब के गर्वनर जनरल रहे माइकल ओ' ड्वायर (en:Sir Michael Francis O'Dwyer) को लन्दन में जाकर गोली मारी। कई इतिहासकारों का मानना है कि यह हत्याकाण्ड ओ' ड्वायर व अन्य ब्रिटिश अधिकारियों का एक सुनियोजित षड्यंत्र था, जो पंजाब पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए पंजाबियों को डराने के उद्देश्य से किया गया था। यही नहीं, ओ' ड्वायर बाद में भी जनरल डायर के समर्थन से पीछे नहीं हटा था। मिलते जुलते नाम के कारण यह एक आम धारणा है कि उधम सिंह ने जालियाँवाला बाग हत्याकांड के उत्तरदायी जनरल डायर (पूरा नाम - रेजिनाल्ड एडवार्ड हैरी डायर, Reginald Edward Harry Dyer) को मारा था, लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि प्रशासक ओ' ड्वायर जहां उधम सिंह की गोली से मरा (सन् १९४०), वहीं गोलीबारी को अंजाम देने वाला जनरल डायर १९२७ में पक्षाघात तथा कई तरह की बीमारियों से ग्रसित होकर मरा। उत्तर भारतीय राज्य उत्तराखण्ड के एक ज़िले का नाम भी इनके नाम पर उधम सिंह नगर रखा गया है। .

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उमराव सिंह (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी)

उमराव सिंह गुर्जर (१८३२ - १८५७) - सन १८५७ की क्रान्ति के एक नायक थे। राव उमरावसिंह गुर्जर का जन्म सन् 1832 में दादरी (उ. प्र) के निकट ग्राम कटेहडा में राव किशन भाटी गुर्जर के पुत्र के रूप में हुआ था। 10 मई को मेरठ से 1857 की जन-क्रान्ति की शुरूआत कोतवाल धनसिंह गुर्जर द्वारा हो चुकी थी। राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत भारत-पुत्र उमरावसिंह गुर्जर ने आसपास के ग्रामीणो को प्रेरित कर 12 मई 1857 को सिकन्द्राबाद तहसील पर धावा बोल दिया। वहाँ के खजाने को अपने अधिकार में कर लिया। इसकी सूचना मिलते ही बुलन्दशहर से सिटी मजिस्ट्रेट सैनिक बल सिक्नद्राबाद आ धमका। 7 दिन तक क्रान्तिकारी सैना अंग्रेज सैना से ट्क्कर लेती रही। अंत में 19 मई को सश्स्त्र सैना के सामने क्रान्तिकारी वीरो को हथियार डालने पडे 46 लोगो को बंदी बनाया गया। उमरावसिंह गुर्जर बच निकले। इस क्रान्तिकारी सैना में गुर्जर समुदाय की मुख्य भूमिका होने के कारण उन्हे ब्रिटिश सत्ता का कोप भाजन होना पडा। उमरावसिंह गुर्जर अपने दल के साथ 21 मई को बुलन्दशहर पहुचे एवं जिला कारागार पर घावा बोलकर अपने सभी राजबंदियो को छुडा लिया। बुलन्दशहर से अंग्रेजी शासन समाप्त होने के बिंदु पर था लेकिन बाहर से सैना की मदद आ जाने से यह संभव नहीं हो सका। हिंडन नदी के तट पर 30 व 31 मई को क्रान्तिकारी सैना और अंग्रेजी सैना के बीच एक ऐतिहासिक युद्ध हुआ। 26 सितम्बर, 1857 को कासना-सुरजपुर के बीच उमरावसिंह गुर्जर की अंग्रेजी सैना से भारी टक्कर हुई। लेकिन दिल्ली के पतन के कारण क्रान्तिकारी सैना का उत्साह भंग हो चुका था। भारी जन हानि के बाद क्रान्तिकारी सेना ने पराजय स्वीकार करली। उमरावसिंह गुर्जर को गिरफ्तार कर लिया गया। बुलन्दशहर में कालेआम के चौहराहे पर हाथी के पैर से कुचलवाकर फाँसी पर लटका दिया गया। श्रेणी:भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम श्रेणी:भारतीय क्रांतिकारी श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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११ (संख्या)

11 (महिला की आवाज में, पुरुष की आवाज में,(उच्चारण: ग्यारह) एक प्राकृतिक संख्या है। इससे पूर्व 10 और इसके पश्चात् 12 आता है अर्थात् ग्यारह 10 से एक अधिक होता है एवं 12 में से एक कम करने पर ग्यारह प्राप्त होता है। इसे शब्दों में ग्यारह से लिखा जाता है। छः और पाँच का योग ग्यारह होता है। .

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१७ दिसम्बर

17 दिसंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 351वॉ (लीप वर्ष मे 352 वॉ) दिन है। साल में अभी और 14 दिन बाकी है। .

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१९ दिसम्बर

19 दिसम्बर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 353वॉ (लीप वर्ष में 354 वॉ) दिन है। साल में अभी और 12 दिन बाकी हैं। .

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2012 दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामला

दिल्ली के सामूहिक बलात्कार कांड के विरोध में कलकत्ता में हुए प्रदर्शन का एक दृश्य दिल्ली के सामूहिक बलात्कार कांड के विरोध में पूरे देश में प्रदर्शन हुए उन्हीं में से बंगलौर का एक दृश्य 2012 दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामला भारत की राजधानी दिल्ली में 16 दिसम्बर 2012 को हुई एक बलात्कार तथा हत्या की घटना थी, जो संचार माध्यम के त्वरित हस्तक्षेप के कारण प्रकाश में आयी। इसकी संक्षेप में कहानी इस प्रकार है। "भारत की राजधानी नई दिल्ली में भौतिक चिकित्सा की प्रशिक्षण कर रही एक युवती पर दक्षिण दिल्ली में अपने पुरुष मित्र के साथ बस में सफर के दौरान 16 दिसम्बर 2012 की रात में बस के निर्वाहक, मार्जक व उसके अन्य साथियों द्वारा पहले फब्तियाँ कसी गयीं और जब उन दोनों ने इसका विरोध किया तो उन्हें बुरी तरह पीटा गया। जब उसका पुरुष दोस्त बेहोश हो गया तो उस युवती के साथ उन ने बलात्कार करने की कोशिश की। उस युवती ने उनका डटकर विरोध किया परन्तु जब वह संघर्ष करते-करते थक गयी तो उन्होंने पहले तो उससे बेहोशी की हालत में बलात्कार करने की कोशिश की परन्तु सफल न होने पर उसके यौनांग में व्हील जैक की रॉड घुसाकर उसके अन्तरंगों को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया। बाद में वे सभी उन दोनों को एक निर्जन स्थान पर बस से नीचे फेंककर भाग गये। किसी तरह उन्हें दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया। वहाँ बलात्कृत युवती की शल्य चिकित्सा की गयी। परन्तु हालत में कोई सुधार न होता देख उसे 26 दिसम्बर 2012 को सिंगापुर के माउन्ट एलिजाबेथ अस्पताल ले जाया गया जहाँ उस युवती ने 29 दिसम्बर 2012 को यह शरीर सदा-सदा के लिये त्याग दिया।" 30 दिसम्बर 2012 को उसका शव दिल्ली लाकर पुलिस की सुरक्षा में जला दिया गया। भारत सरकार के इस कृत्य की निन्दा करते हुए सोशल मीडिया में ट्वीटर फेसबुक आदि पर काफी कुछ लिखा गया। इस घटना के विरोध में पूरे देश में उग्र व शान्तिपूर्ण प्रदर्शन हुए उन्हीं में से नई दिल्ली, कलकत्ता और बंगलौर में हुए प्रदर्शनों के कुछ दृश्य भी बानगी के तौर पर यहाँ दिये जा रहे हैं। उल्लेखनीय बात यह है कि नई दिल्ली में यौन अपराधों की दर अन्य मैट्रोपॉलिटन शहरों के मुकाबले सर्वाधिक (प्रति 18 घण्टे पर लगभग एक बलात्कार) है। इससे पूर्व भारत की एक मात्र महिला राष्ट्र्पति प्रतिभा पाटिल सुप्रीम कोर्ट द्वारा बलात्कार के पाँच मामलों में दी गयी फाँसी की सजा को माफ करके उम्रकैद में बदल चुकी हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी निन्दा हुई है। सम्प्रति जनता के आक्रोश और समय की माँग को देखते हुए भारत की केन्द्र सरकार बलात्कारियों को जीवन भर के लिये नपुंसक बना देने पर विचार कर रही है। .

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