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फलन

सूची फलन

''X'' के किसी सदस्य का ''Y'' के केवल एक सदस्य से सम्बन्ध हो तो वह फलन है अन्यथा नहीं। ''Y''' के कुछ सदस्यों का '''X''' के किसी भी सदस्य से सम्बन्ध '''न''' होने पर भी फलन परिभाषित है। गणित में जब कोई राशि का मान किसी एक या एकाधिक राशियों के मान पर निर्भर करता है तो इस संकल्पना को व्यक्त करने के लिये फलन (function) शब्द का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिये किसी ऋण पर चक्रवृद्धि ब्याज की राशि मूलधन, समय एवं ब्याज की दर पर निर्भर करती है; इसलिये गणित की भाषा में कह सकते हैं कि चक्रवृद्धि ब्याज, मूलधन, ब्याज की दर तथा समय का फलन है। स्पष्ट है कि किसी फलन के साथ दो प्रकार की राशियां सम्बन्धित होती हैं -.

91 संबंधों: चरघातांकी फलन, ऊष्मा समीकरण, चिह्न फलन, टेलर प्रमेय, टेलर श्रेणी, एन्ट्रॉपी, एकैकी फलन, ठोस अवस्था भौतिकी, डी मायवर का प्रमेय, त्रिकोणमितीय फलन, त्रिकोणमितीय सर्वसमिकाओं की सूची, न्यूटन विधि, परतंत्र और स्वतंत्र चर, पुनरावृत्त फलन, प्रतिचित्रण, प्रतिलोम फलन, प्रतिवर्तन, प्रथम आदितत्व, प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र, प्राचल, प्राचलिक समीकरण, पूर्ण ऊष्मा, फलन का प्रभावक्षेत्र, फलन का कोणांक, फलन की सीमा, फुरिअर विश्लेषण, फूर्ये रूपान्तर, बीजीय फलन, भास्कराचार्य, भौतिकी की शब्दावली, मैटलैब, मूल (फलन के), रैखिकीकरण, रीमान जीटा फलन, रीमान-समाकल, लांबिक फलन, लजान्द्र रूपान्तर, लग्रान्ज गुणक, लैब्नीज का सामान्य नियम, शृंखला नियम (अवकलन), शेषफल प्रमेय, षट्खण्डागम, सतत फलन, सन्निकटन सिद्धांत, समुच्चय सिद्धान्त, सम्मिश्र विश्लेषण, समीकरण, समीकरण का हल, संरेखण, संहति-केन्द्र, ..., संवलन, संख्यात्मक विश्लेषण, सुतीक्ष्ण समुच्चय, स्पेक्ट्रोस्कोपी, सीमा (गणित), सीमाओं की सूची, हार्मोनिक विश्लेषण, हैमिल्टन का सिद्धान्त, ज्या, ज्या, कोटिज्या और उत्क्रमज्या, घन फलन, घात श्रेणी, वर्ग माध्य मूल, वायुगतिकी, विचरण-कलन, वितत भिन्न, विद्युत प्रतिरोध, विभिन्न निर्देशांकों में डेल संक्रिया, वक्र आसंजन, गणित का इतिहास, गणितीय संकेतन, गणितीय विश्लेषण, गुणन नियम, ग्राफ़ सिद्धान्त, गोलीय त्रिकोणमिति, आद्य समाकल, आंशिक अवकलज, कलन, कलन का मूलभूत प्रमेय, क्रमित युग्म, अतिपरवलयिक फलन, अनुकोण प्रतिचित्रण, अबीजीय फलन, अभिलक्षणिक बहुपद, अस्पष्ट समीकरण, अवशेष प्रमेय, अवकलज, अवकलजों की सूची, अंतर्वेशन, उच्चिष्ठ और निम्निष्ठ, SAT (सैट) सूचकांक विस्तार (41 अधिक) »

चरघातांकी फलन

गणित में चरघातांकी फलन एक ऐसा फलन है जिसका अवकलज उसी के बराबर होता है। अर्थात किसी बिन्दु पर इस फलन के वृद्धि की दर उस बिन्दु पर इस फलन के मान के बराबर होती है। इस फलन को e^x से निरुपित किया जाता है जहाँ e एक अपरिमेय संख्या है जिसका मान लगभग 2.718281828 के बराबर होता है। इस फलन को प्रायः exp(x) भी लिखते हैं .

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ऊष्मा समीकरण

उष्मा समीकरण (heat equation) महत्वपूर्ण आंशिक अवकल समीकरण है जो किसी वस्तु के किसी क्षेत्र में समय के साथ ताप की स्थिति बताता है। तीन स्पेस चरों (x,y,z) एवं समय t के किसी फलन u(x,y,z,t) के लिये उष्मा समीकरण निम्नवत है: ऐसे भी लिखा जाता है या कभी कभी .

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चिह्न फलन

चिह्न फलन (Signum function) y .

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टेलर प्रमेय

कैलकुलस में, टेलर प्रमेय (Taylor's theorem) किसी फलन का किसी बिन्दु पर सन्निकट प्रसार देने वाला एक प्रमेय है। यह प्रमेय किसी k-बार अवकलन किए जाने योग्य फलन का किसी बिन्दु पर k-वें आर्डर के टेलर बहुपद के रूप में सन्निकटन (approximation) करता है। एक्सपोन्सियल फलन y .

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टेलर श्रेणी

गणित में टेलर श्रेणी (Taylor series) एक श्रेणी है किसी फलन को अनन्त पदों के योग से निरूपित करती है। ये पद उस फलन के किसी बिन्दु पर अवकलों के मान से निकाले जाते हैं। इसे अंग्रेज गणितज्ञ ब्रूक टेलर ने १७७५ में दिया था। .

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एन्ट्रॉपी

एन्ट्रॉपी। ऊष्मागतिकी में, एन्ट्रॉपी एक भौतिक राशि है जो सीधे मापी नहीं जाती बल्कि गणना (कैल्कुलेशन) द्वारा इसका मान निकाला जाता है। इसका प्रतीक S है। किसी निकाय की कुल ऊर्जा का वह भाग जिसे उपयोग में नहीं लाया जा सकता (दूसरे शब्दों में, कार्य में नहीं बदला जा सकता), उस निकाय की एन्ट्रॉपी कहलाती है। एण्ट्रॉपी की गणितीय परिभाषा नीचे दी गयी है। जर्मनी के गणितज्ञ एवं भौतिकशास्त्री रुडॉल्फ क्लासिअस ने १८५० के दशक में एन्ट्रॉपी की संकल्पना दी और उसका यह नाम दिया। १८७७ में लुडविग बोल्ट्जमान ने एन्ट्रॉपी की प्रायिकता पर आधारित परिभाषा दी। .

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एकैकी फलन

एकैकी फलन (किन्तु यह बाइजेक्टिव नहीं है) एकैकी फलन जो बाइजेक्टिव भी है। अनैकैकी फलन - जो वस्तुतः 'सर्जेक्टिव' है। गणित में ऐसे फलन एकैकी फलन या अंतःक्षेपी कहलाते हैं जो डोमेन के एक से अधिक अवयवों को सहडोमेन के एक ही अवयव से प्रतिचित्रण नहीं करते। दूसरे शब्दों में, सहडोमेन का प्रत्येक अवयव डोमैन के अधिकतम एक अवयव से ही प्रतिचित्रित होता है। यदि कोई फलन एकैकी होने के अलावा यह भी शर्त पूरा करता है कि कोडोमेन के सभी अवयव डोमेन के किसी न किसी अवयव से प्रतिचित्रित हों, तो ऐसे फलन को बाइजेक्टिव फलन कहते हैं। .

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ठोस अवस्था भौतिकी

हीरा की संरचना का चलित दृष्य ठोस अवस्था की भौतिकी (Solid-state physics) को ठोस अवस्था का सिद्धांत (Solid-state theory) के नाम से भी जाना जाता है। यह भौतिकी की वह शाखा है जिसमें ठोस की संरचना और उसके भौतिक गुणों का अध्ययन किया जाता है। यह संघनित प्रावस्था भौतिकी की सबसे बड़ी शाखा है। ठोस अवस्था भौतिकी में इस बात पर विचार किया जाता है कि ठोसों के वाह्य गुण उनके परमाणु-स्तरीय गुणों से किस प्रकार सम्बन्धित हैं। इस प्रकार ठोस अवस्था भौतिकी, पदार्थ विज्ञान का सैद्धान्तिक आधार बनाती है। इसके अलावा ट्रांजिस्टरों की प्रौद्योगिकी एवं अर्धचालकों की तकनीकी आदि में इसका सीधा उपयोग भी होता है। .

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डी मायवर का प्रमेय

अब्रहम डि मायवर डी मॉयवर का प्रमेय या डी मॉयवर का सूत्र (De Moivre's formula) समिश्र संख्याओं के घात (इन्डेक्स) से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण सूत्र है। इसका प्रतिपादन अब्राहम डी मॉयवर (Abraham de Moivre) ने किया था। इस प्रमेय के अनुसार, जहाँ n कोई पूर्णांक (integer) है तथा x कोई भी समिश्र संख्या है। (अतः x के वास्तविक मान के लिये भी सत्य है) इस सूत्र की महत्ता इस बात में है कि यह समिश्र संख्याओं को त्रिकोणमिति से जोड़ता है।'"cos x + i sin x"' को प्रयः '"cis x"' के संक्षिप्त रूप से भी व्यक्त किया जाता है। .

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त्रिकोणमितीय फलन

right गणित में त्रिकोणमितीय फलन (trigonometric functions) या 'वृत्तीय फलन' (circular functions) कोणों के फलन हैं। ये त्रिभुजों के अध्ययन में तथा आवर्ती संघटनाओं (periodic phenomena) के मॉडलन एवं अन्य अनेकानेक जगह प्रयुक्त होते हैं। ज्या (sine), कोज्या (कोज) (cosine) तथा स्पर्शज्या (स्पर) (tangent) सबसे महत्व के त्रिकोणमितीय फलन हैं। ईकाई त्रिज्या वाले मानक वृत्त के संदर्भ में ये फलन सामने के चित्र में प्रदर्शित हैं। इन तीनों फलनों के व्युत्क्रम फलनों को क्रमशः व्युज्या (व्युज) (cosecant), व्युकोज्या (व्युक) (secant) तथा व्युस्पर्शज्या (व्युस) (cotangent) कहते हैं। .

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त्रिकोणमितीय सर्वसमिकाओं की सूची

त्रिकोणमितीय सर्वसमिकाएँ, चरों के त्रिकोणमितीय फलनों के रूप में व्यक्त समतायें होती हैं। All of the trigonometric functions of an angle θ can be constructed geometrically in terms of a unit circle centered at ''O''. The unit circle .

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न्यूटन विधि

न्यूटन की विधि को बारबार लगाने से क्रमशः अधिक शुद्ध मूल प्राप्त होते हैं। संख्यात्मक विश्लेषण में न्यूटन विधि किसी वास्तविक मान वाले फलन के मूल निकालने की एक पुनरावृत्‍तिमूलक विधि (इटरेटिव प्रॉसेस) है जिसके द्वारा मूल के सन्निकट मान से आरम्भ करके क्रमशः अधिक यथार्थ मूल प्राप्त किया जाता है। इसको 'न्यूटन-रैप्सन विधि' (Newton–Raphson method) भी कहते हैं। एक चर वाले फलनों के लिए इस विधि का वर्णन इस प्रकार है: माना वास्तविक x के लिए फलन ƒ और इसका अवकलज ƒ ', दिया हुआ है। फलन f का मूल निकालने के लिए सबसे पहले मूल का प्रथम अनुमान x0 लेकर यह विधि शुरू होतीहै। अब निम्नलिखित सूत्र से मूल का अधिक यथार्थ मान (better approximation) x1 निकाला जाता है: इसी प्रक्रिया को बार-बार दोहराया जाता है जब तक मूल का पर्याप्त रूप से यथार्थ मान न प्राप्त हो जाय। .

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परतंत्र और स्वतंत्र चर

गणित में स्वतंत्र चर (independent variable) ऐसी राशि होती है जिसका मान (value) किसी अन्य राशि पर निर्भर न हो। इसके विपरीत परतंत्र चर (dependent variable) ऐसी राशि होती है जिसका मान एक या एक से अधिक स्वतंत्र चरों पर निर्भर हो। उदाहरण के लिए यदि किसी खेत में डाली गई खाद की मात्रा को x के चिन्ह द्वारा प्रकट करा जाए और उस खेत में पैदा होने वाले गेंहू को y द्वारा, तो फ़सल की मात्रा खेत में डाली गई खाद की मात्रा का एक फलन (फ़न्क्शन) होगी, जिसे गणितीय रूप से y .

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पुनरावृत्त फलन

गणित में, पुनरावृत्त फलन X → X में परिभाषित (एक ऐसा फलन जो समुच्चय X से इसमें ही परिभाषित हो) फलन है जो इसी समुच्चय में अन्य फलन f: X → X को निश्चित संख्या में पुनरावृत्तियों से प्राप्त किया जाता है। प्रक्रिया के समान फलन के बार बार पुनरावृत्ति होने के कारण इसे पुनरावृत्ति फलन कहते हैं। इस प्रक्रिया को किसी निश्चित संख्या से आरम्भ किया जाता है और बाद में प्राप्त मान को फलन में निविष्ट करके तथा इस प्रक्रिया की पुनरावृत्ति करके परिणाम प्राप्त किया जाता है। पुनरावृत्त फलनों का अध्ययन कम्प्यूटर विज्ञान, भग्न, गतिकीय तन्त्र, गणित और पुनः प्रसामान्यीकरण समूह भौतिकी में किया जाता है। .

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प्रतिचित्रण

गणित एवं इससे संबंधित क्षेत्रों में प्रतिचित्रण (मैपिंग) शब्द का प्रयोग फलन के समानार्थी शब्द जैसा होता है। .

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प्रतिलोम फलन

फलन ƒ तथा इसका प्रतिलोम ƒ–1. फलन ƒ, a को 3 से प्रतिचित्रित करता है, इसलिये प्रतिलोम फलन ƒ–1, 3 का प्रतिचित्रण पुनः a पर कर रहा है। गणित में किसी फलन का प्रतिलोम फलन (inverse function) उस फलन को कहते हैं जो मूल फलन द्वारा किये गये परिवर्तन को बदलकर मूल रूप में ला दे। किसी फलन ƒ में x रखने पर परिणाम y मिलता है तो ƒ के प्रतिलोम फलन में y रखने पर परिणाम x मिलेगा, अर्थात् ƒ(x).

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प्रतिवर्तन

प्रकृति में प्रतिवर्तन प्रतिवर्तन (Recursion) का सामान्य अर्थ है - किसी वस्तु या कार्य का बार-बार उसी रूप में दोहराया जाना। अनेकों विधाओं में इस शब्द का प्रयोग होता है और उनमें इसके भिन्न-भिन्न अर्थ और परिभाषाएँ हैं। उदाहरण के लिए, गणित एवं कम्प्यूटर विज्ञान में जब किसी फलन की परिभाषा में उसी फलन का उपयोग हो तो इसे प्रतिवर्तन कहा जाता है। प्रतिवर्तन का सर्वाधिक उपयोग गणित में ही होता है। गणित तथा तथा संगणक विज्ञान के अतिरिक्त भाषाविज्ञान, तर्कशास्त्र, दर्शनशास्त्र, जीवविज्ञान, तथा कला में भी विविध रूपों में प्रतिवर्तन देखा जा सकता है।; प्रतिवर्तन के कुछ सामान्य उदाहरण.

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प्रथम आदितत्व

प्रथम आदितत्व (first principle) किसी ऐसे आधारभूत कथन, नियम या सिद्धान्त को कहते हैं जो किसी अन्य नियम या सिद्धांत द्वारा निष्कर्षित न किया जा सके। गणित में प्राथमिक ज्ञान को अभिगृहीत (ऐक्सियम) कहा जाता है। .

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प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र

प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र (Managerial economics) अर्थशास्त्र की एक विशिष्ट शाखा है विवेकपूर्ण प्रबन्धकीय निर्णयों में सहायक होता है। यह आर्थिक सिद्धान्तों एवं व्यावसायिक व्यवहारों का ऐसा एकीकरण है जो प्रबन्धकों को निर्णय लेने और भावी योजनाऐं बनाने में सुविधा प्रदान करता है। इसे 'व्यावसायिक अर्थशास्त्र' या 'फर्मों का अर्थशास्त्र' भी कहा जाता है। प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र उन आर्थिक सिद्धान्तों, प्रविधियों एवं तर्कों का अध्ययन है जिनका उपयोग व्यवसाय की व्यावहारिक समस्याओं के हल के लिए किया जाता है। अतः प्रबंधकीय अर्थशास्त्र, आर्थिक विज्ञान का वह भाग है जिसका व्यवसाय-जगत की समस्याओं के विश्लेषण तथा विवेकपूर्ण व्यावसायिक निर्णय लेने में उपयोग किया जाता है। R आधुनिक विश्व की बढ़ती जटिलताओं और विषम आर्थिक समस्याओं के समाधान में अर्थशास्त्र के निरपेक्ष सिद्धान्तों का व्यावहारिक प्रयोग निरन्तर लोकप्रिय होता जा रहा है। जहां पहले व्यावसायिक क्षेत्रों में प्रबन्धकीय समस्याओं के विश्लेषण और समाधान में आर्थिक सिद्धान्तों का प्रयोग सीमित था वहां अब अर्थशास्त्र की नवीन अवधारणाओं, वैज्ञानिक विधियों और आर्थिक विश्लेषण की गणितीय पद्धतियों के विकास से प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र का जन्म हुआ है। प्रबन्धकों को व्यावसायिक जटिल समस्याओं के समाधान का व्यावहारिक हल प्रदान कर उनकी आशाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति करता है। आर्थिक सिद्धान्त दो या दो से अधिक आर्थिक चरों के फलनात्मक सम्बन्ध व्यक्त करतें है, जो कुछ दी हुई शर्तों पर आधारित होते हैं। व्यवसाय की समस्याओं में व्यावसायिक निर्णयन में सम्बन्धित आर्थिक सिद्धान्तों का उपयोग तीन प्रकार से सहायता करते हैं -.

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प्राचल

गणित, सांख्यिकी एवं गणितीय विज्ञानों में उस राशि को प्राचल (parameter) कहते हैं जो फलनों एवं चरों को एक उभयनिष्ट (कॉमन) चर की सहायता से परस्पर जोड़ती है। प्राय: t को प्राचल के रूप में प्रयोग किया जाता है। प्राचल के प्रयोग से चरों के सम्बन्ध सरल तरीके से अभिव्यक्त् करने की सुविधा प्राप्त हो जाती है। दूसरे शब्दों में, प्राचल के प्रयोग के बिना राशियों का आपसी सम्बन्ध एक समीकरण की सहायता से बताना बहुत कठिन, असम्भव या जटिल होता है। ध्यातव्य है कि प्राचल शब्द का प्रयोग अलग-अलग संदर्भों में भिन्न-भिन्न प्रकार से किया जाता है। .

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प्राचलिक समीकरण

जब किसी वक्र के समीकरण को इस प्रकार लिखा जाय कि वक्र पर स्थित बिन्दु के x, y तथा z निर्देशांक किसी अन्य चर t के फलन के रूप में व्यक्त हों तो ऐसे समीकरण को प्राचलिक समीकरण (parametric equation) कहते हैं तथा t को प्राचल (parameter) कहलाता है। जब प्राचल किसी कोण को निरूपित करता हो तो प्रायः प्राचल के रूप में θ का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, x&.

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पूर्ण ऊष्मा

किसी निकाय की पूर्ण ऊष्मा या एन्थैल्पी (Enthalpy, प्रतीक: H) निम्नलिखित प्रकार से पारिभाषित है- जहाँ U आन्तरिक ऊर्जा है, p निकाय का दाब है और V आयतन। चूंकि p और V दोनों ही ऊष्मागतिक निकाय के अवस्था (state) के फलन है, इसलिये पूर्ण ऊष्मा भी अवस्था का फलन है। .

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फलन का प्रभावक्षेत्र

बीजगणित में फलन का प्रभावक्षेत्र (domain of a function) किसी फलन (फ़न्क्शन) में प्रयोग होने वाले कोणांकों (argument) के वह मान होने हैं जिनके लिए फलन परिभाषित हो, यानि आर्थपूर्ण हो। .

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फलन का कोणांक

गणित में फलन का कोणांक (argument of a function) किसी फलन (फ़न्क्शन) में निवेश (input) होने वाले स्वतंत्र चर को कहते हैं। उदाहरण के लिए, f(x,y) .

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फलन की सीमा

यद्यपि फलन (sin x)/x शून्य पर परिभषित नहीं है लेकिन जैसे ही x शून्य की ओर अग्रसर होता है वैसे ही (sin x)/x यादृच्छिक रूप से 1 की ओर अग्रसर होता है। अन्य शब्दों में x.

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फुरिअर विश्लेषण

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में किसी फलन (फंक्शन) को छोटे-छोटे सरल फलनों के योग के रूप में व्यक्त करने को विश्लेषण कहा जाता है एवं इसकी उल्टी प्रक्रिया को संश्लेषण कहते हैं। हमें ज्ञात है कि फुरिअर श्रेणी के प्रयोग से किसी भी आवर्ती फलन को उचित आयाम, आवृत्ति एवं कला की साइन तरंगो (sine waves) के योग के रूप मे व्यक्त करना सम्भव है। इसके सामान्यीकरण के रूप में यह भी कह सकते हैं किं किसी भी समय के साथ परिवर्तनशील संकेत को उचित आयाम, आवृत्ति एवं कला की साइन तरंगो (sine waves) के योग के रूप में व्यक्त करना सम्भव है। फुरिअर विश्लेषण (Fourier analysis) वह तकनीक है जिसका प्रयोग करके बताया जा सकता है कि कोई संकेत (सिग्नल) किन साइन तरंगों से मिलकर बना हुआ है। फलनों (या अन्य वस्तुओं) को सरल टुकड़ों में तोडकर समझने का प्रयास फुरिअर विश्लेषण का सार है। आजकल फुरिअर विश्लेषण का विस्तार होकर यह एक अधिक सामान्य हार्मोनिक विश्लेषण के अंग के रूप में जाना जाने लगा है। .

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फूर्ये रूपान्तर

फूर्ये रूपान्तर (Fourier transform) एक गणितीय रूपान्तर है जो भौतिकी एवं इंजीनियरी में अत्यन्त उपयोगी है। इसका नाम जोसेफ फूर्ये के नाम पर पड़ा है। फूर्ये रूपान्तर समय \scriptstyle f(t) के किसी फलन को एक नए फलन \scriptstyle \hat f or \scriptstyle F, में रूपन्तरित करता है जिसका अर्गुमेन्ट आवृत्ति (रेडियन प्रति सेकेण्ड) है। इस नए फलन F को फलन f का फूर्ये रूपान्तर या 'फ्रेक्वेंसी स्पेक्ट्रम' कहते हैं। .

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बीजीय फलन

गणित में बीजीय फलन (algebraic function) ऐसे फलनों को कहते हैं जो बहुपद गुणांक वाले बहुपदीय समीकरणों को संतुष्ट करें। उदाहरण के लिये, एक ही चर वाला बीजीय व्यंजक x निम्नलिखित बहुपदीय समीकरण का हल है- यहाँ गुणांक ai(x), x के बहुपदी फलन हैं। इसके विपरीत ऐसे फलन जो बीजीय न हों, अबीजीय फलन (transcendental function) कहलाते हैं। इसी प्रकार n चरों वाला बीजीय फलन वह फलन y है जो n + 1 चरों वाले बहुपदीय समीकरण का हल हो। .

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भास्कराचार्य

---- भास्कराचार्य या भाष्कर द्वितीय (1114 – 1185) प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं ज्योतिषी थे। इनके द्वारा रचित मुख्य ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि है जिसमें लीलावती, बीजगणित, ग्रहगणित तथा गोलाध्याय नामक चार भाग हैं। ये चार भाग क्रमशः अंकगणित, बीजगणित, ग्रहों की गति से सम्बन्धित गणित तथा गोले से सम्बन्धित हैं। आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्य ने उजागर कर दिया था। भास्कराचार्य ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस कारण आकाशीय पिण्ड पृथ्वी पर गिरते हैं’। उन्होने करणकौतूहल नामक एक दूसरे ग्रन्थ की भी रचना की थी। ये अपने समय के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ थे। कथित रूप से यह उज्जैन की वेधशाला के अध्यक्ष भी थे। उन्हें मध्यकालीन भारत का सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ माना जाता है। भास्कराचार्य के जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं मिलती है। कुछ–कुछ जानकारी उनके श्लोकों से मिलती हैं। निम्नलिखित श्लोक के अनुसार भास्कराचार्य का जन्म विज्जडविड नामक गाँव में हुआ था जो सहयाद्रि पहाड़ियों में स्थित है। इस श्लोक के अनुसार भास्कराचार्य शांडिल्य गोत्र के थे और सह्याद्रि क्षेत्र के विज्जलविड नामक स्थान के निवासी थे। लेकिन विद्वान इस विज्जलविड ग्राम की भौगोलिक स्थिति का प्रामाणिक निर्धारण नहीं कर पाए हैं। डॉ.

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भौतिकी की शब्दावली

* ढाँचा (Framework).

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मैटलैब

मैटलैब (MATLAB; matrix laboratory का लघुरूप) आंकिक गणना का सॉफ्टवेयर है। यह चतुर्थ पीढ़ी की प्रोग्रामन भाषा भी है जो अर्रे को मूल मानकर बनायी गयी है। यह मैथवर्क्स (MathWorks) द्वारा निर्मित है। इसके प्रयोग से मैट्रिक्स से संबन्धित गणनाएँ, फलनों एवं आंकड़ों की प्लॉटिंग, किसी अल्गोरिद्म का लागू करना, प्रयोक्ता-इंटरफेस का निर्माण आदि किये जा सकते हैं। यह C, C++ और फोर्ट्रान (Fortran) आदि अन्य प्रोग्रामन भाषाओं में लिखे कोड को भी चला सकती है। .

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मूल (फलन के)

गणित में किसी फलन का मूल वह संख्या होती है जिस पर उस फलन का मान शून्य हो जाता है। इसे 'फलन का शून्य' या 'फलन का हल' भी कहते हैं। किसी फलन के शून्य, एक, या एक से अधिक, मूल हो सकते हैं। उदाहरण के लिये निम्नलिखित फलन को देखिये- फलन ƒ का एक मूल 3 है क्योंकि x.

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रैखिकीकरण

गणित में किसी फलन को किसी बिंदु पर किसी रैखिक फलन द्वारा अभिव्यक्त करने को रैखिकीकरण (linearization) कहते हैं। इसके बहुत से उपयोग हैं। इसका उपयोग इंजीनियरी, भौतिकी, अर्थशास्त्र एवं नियंत्रण सिद्धांत में होता है।; उदाहरण f(x) .

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रीमान जीटा फलन

रीमान जीटा फलन अथवा आयलर–रीमान जीटा फलन, ζ(s), उन सम्मिश्र चर s का फलन है जो अनन्त श्रेणी के संकलन में वैश्लेषिक हैं जो s के वास्तविक मान के 1 से अधिक होने पर अभिसारी होती है। सभी s के लिए ζ(s) व्यापक निरूपण नीचे दिया गया है। रीमान जीटा फलन विश्लेषी संख्या सिद्धान्त में मुख्य फलन के रूप में प्रयुक्त होता है और इसके अनुप्रयोग भौतिकी, प्रायिकता सिद्धांत और अनुप्रयुक्त सांख्यिकी में मिलते हैं। वास्तविक तर्क के फलन के रूप में, यह फलन १८वीं सदी के पूर्वार्द्ध में सम्मिश्र विश्लेषण का उपयोग किये बिना (क्योंकि उस समय यह उपलब्ध नहीं थी) पहली बार लियोनार्ड आयलर ने किया था। बर्नहार्ड रीमान ने 1859 में प्रकाशित अपने लेख "दिये गये परिमाण से छोटी अभाज्य संख्याओं पर" (मूल जर्मन: Ueber die Anzahl der Primzahlen unter einer gegebenen Grösse) आयलर की परिभाषा सम्मिश्र चरों के लिए विस्तारित किया तथा फलनिक समीकरण और अनंतकी अनुवर्ती सिद्ध किया एवं शून्य व अभाज्य संख्याओं के बंटन में सम्बन्ध स्थापित किया। धनात्मक सम संख्याओं पर रीमान जीटा फलन के मान आयलर द्वारा अभिकलित किये गये। इनमें प्रथम ζ(2) बेसल समस्या का हल प्रदान करता है। सन् १९७९ में एपेरी ने ''ζ''(3) की अपरिमेयता सिद्ध की। नकारात्मक पूर्णांक बिन्दुओं के लिए भी आयलर के अनुसार परिमेय संख्यायें प्रतिरूपक के रूप में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। डीरिख्ले श्रेणी, डीरिख्ले एल-फलन और एल-फलन के रूप में रीमान जीटा फलन के विभिन्न व्यापकीकरण ज्ञात हैं। .

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रीमान-समाकल

गणित की वास्तविक विश्लेषण के रूप में पहचानी जाने वाली शाखा में रीमान समाकलन किसी फलन का किसी अन्तराल में परिभाषित प्रथम निश्चित परिभाषा है। यह परिभाषा बर्नहार्ड रीमान ने दी थी। विभिन्न फलनोम और प्रायोगिक अनुप्रयोगों के लिए रीमान समाकलन कलन की मूलभूत प्रमेय अथवा संख्यात्मक समाकलन के सन्निकटन द्वारा ज्ञात किया जा सकता है। रीमान समाकलन विभिन्न सैद्धान्तिक उद्देश्यों के लिए अनुपयुक्त है। .

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लांबिक फलन

गणित में दो फलन f तथा g परस्पर लम्बकोणीय (orthogonal) कहलाते हैं यदि उनका आन्तरिक गुणनफल (inner product) \langle f,g\rangle सभी f ≠ g के लिए शून्य हो। आन्तरिक गुणफल की परिभाषा भी सन्दर्भ के साथ बदलती रहती है। तथापि आन्तरिक गुणफल की निम्नलिखित परिभाषा दे सकते हैं: इसमें समाकलन की सीमा समुचित रूप से ली जा सकती है। यहाँ 'तारांकित f' का अर्थ f के समिश्र युग्म से है।; कुछ उदाहरण.

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लजान्द्र रूपान्तर

लजान्द्र रूपान्तर की ज्यामितीय व्याख्या गणित में किसी वास्तविक मान वाले, तथा सभी बिन्दुओं पर अवकलनीय फलन f तथा g में निम्नलिखित सम्बन्ध हो तो g को f का लजान्द्र रूपान्तर (LegendreTransform) कहा जाता है। इस रूपान्तर का नाम फ्रांसीसी गणितज्ञ आद्रियें मारि लजान्द्र (Adrien-Marie Legendre) के नाम पर पड़ा है। जहाँ D, अवकलज (डिफरेंशियल) का प्रतीक है तथा दाहिनी ओर आने वाला -1, प्रतिलोम फलन को सूचित कर रहा है। यह आसानी से दिखाया जा सकता है कि g, f का लजान्द्र रूपान्तर हो तो f, g का लजान्द्र रूपान्तर होगा उदाहरण के लिये, फलन f(x).

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लग्रान्ज गुणक

गणितीय इष्टमीकरण में, लग्रान्ज गुणक विधि (method of Lagrange multipliers), किसी फलन का, समता शर्तों (equality constraints) के अधीन, स्थानीय उच्चिष्ठ तथा निम्निष्ठ प्राप्त करने की एक विधि है। इसका नामकरण इटली के गणितज्ञ जोजेफ लुई लग्रान्ज के नाम पर पड़ा है। श्रेणी:गणितीय इष्टतमीकरण.

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लैब्नीज का सामान्य नियम

कैलकुलस में लैब्नीज का सामान्य नियम (general Leibniz rule) गुणन नियम (product rule) का सामान्यीकरण करता है। इसका नाम जर्मन गणितज्ञ लैब्नीज के नाम पर रखा गया है। इस नियम के अनुसार, यदि f और g दो फलन हैं जो n-बार अवकलित किये जा सकते हैं, तो fg भी न-बार अवकलित किया जा सकता है तथा इसका n-वाँ अवकलज निम्नलिखित है- जहाँ .

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शृंखला नियम (अवकलन)

कैलकुलस में दो या अधिक फलनों के संयुक्त फलन का अवकलज निकालने के लिये शृंखला नियम (chain rule) का उपयोग किया जाता है। समाकलन में, प्रतिस्थापन द्वारा समाकलन, इस विधि की उल्टी (counterpart) विधि है। इसी को लैब्नीज की संकेतन विधि में इस प्रकार लिखा जाता है- .

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शेषफल प्रमेय

बीजगणित में बहुपदी शेषफल प्रमेय, बहुपदी दीर्घ भाजन (polynomial long division) का एक अनुप्रयोग है। इस प्रमेय के अनुसार, किसी रेखीय भाजक (divisor) x-a\, से किसी बहुपद f(x)\, को भाग करने पर शेष r\, का मान f(a) के बराबर होता है। .

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षट्खण्डागम

षट्खण्डागम (अर्थ .

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सतत फलन

गणित में किसी चर राशी x पर परिभाषित फलन f(x) सतत फलन (Continuous function) कहलाता है यदि x में अल्प परिवर्तन करने पर f(x) के मान में भी केवल अल्प परिवर्तन हो अन्यथा यह असतत फलन कहलाता है। एक सतत फलन के प्रतिलोम फलन का सतत होना आवश्यक नहीं। .

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सन्निकटन सिद्धांत

गणित में फलनों को मूल फलन की अपेक्षा अधिक सरल फलनों द्वारा इस प्रकार निरूपित करना कि ताकि इसके गुणधर्म यह मूल फलन के जैसे ही हो, बहुत उपयोगी है। यह कार्य संन्निकटन सिद्धान्त (approximation theory) के अन्तर्गत आता है। जटिल फलनो के सरल फलनों द्वारा निरूपण के फलस्वरूप गणना में जो त्रुटियाँ आ जाती हैं उनका अध्ययन भी सन्निकटन सिद्धांत के अंतर्गत किया जाता है। .

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समुच्चय सिद्धान्त

वेन-आरेख द्वारा दो समुच्चयों के सर्वनिष्‍ठ का सरल प्रदर्शन समुच्चय सिद्धान्त (set theory), गणित की एक शाखा है जो समुच्चयों का अध्ययन करती है। वस्तुओं के संग्रह (collection) को समुच्चय कहते हैं। यद्यपि समुच्चय के अन्तर्गत किसी भी प्रकार की वस्तुओं का संग्रह सम्भव है, किन्तु समुच्चय सिद्धान्त मुख्यतः गणित से सम्बन्धित समुच्चयों का ही अध्ययन करता है। स्थूल रूप से अंग्रेजी समुच्चय के पर्याय 'सेट' (set), ऐग्रिगेट (aggregate), क्लास (class), डोमेन (domain) तथा टोटैलिटी (totality) हैं। समुच्चय में अवयवों का विभिन्न होना आवश्यक है। प्रथम श्रेणी के तर्क (first-order logic) से सुव्यवस्थित (formalized) किया हुआ समुच्चय सिद्धान्त आज गणित का सर्वाधिक प्रयुक्त आधारभूत तन्त्र है। समुच्चय सिद्धान्त की भाषा गणित के लगभग सभी वस्तुओं (यथा- फलन) को परिभाषित करने के काम आती है। समुच्चय सिद्धान्त के आरम्भिक कांसेप्ट इतने सरल हैं कि इन्हें प्राथमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी पढाया जा सकता है। .

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सम्मिश्र विश्लेषण

सम्मिश्र विश्‍लेषण (Complex analysis) जिसे सामान्यतः सम्मिश्र चरों के फलनों का सिद्धान्त भी कहा जाता है गणितीय विश्लेषण की एक शाखा है जिसमें सम्मिश्र संख्याओं के फलनों का अध्ययन किया जाता है। यह बीजीय ज्यामिति, संख्या सिद्धान्त, व्यावहारिक गणित सहित गणित की विभिन्न शाखाओं में उपयोगी है तथा इसी प्रकार तरल गतिकी, उष्मागतिकी, यांत्रिक अभियान्त्रिकी और विद्युत अभियान्त्रिकी सहित भौतिक विज्ञान में भी उपयोगी है। .

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समीकरण

---- समीकरण (equation) प्रतीकों की सहायता से व्यक्त किया गया एक गणितीय कथन है जो दो वस्तुओं को समान अथवा तुल्य बताता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आधुनिक गणित में समीकरण सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय है। आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकी में विभिन्न घटनाओं (फेनामेना) एवं प्रक्रियाओं का गणितीय मॉडल बनाने में समीकरण ही आधारका काम करने हैं। समीकरण लिखने में समता चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। यथा- समीकरण प्राय: दो या दो से अधिक व्यंजकों (expressions) की समानता को दर्शाने के लिये प्रयुक्त होते हैं। किसी समीकरण में एक या एक से अधिक चर राशि (यां) (variables) होती हैं। चर राशि के जिस मान के लिये समीकरण के दोनो पक्ष बराबर हो जाते हैं, वह/वे मान समीकरण का हल या समीकरण का मूल (roots of the equation) कहलाता/कहलाते है। ऐसा समीकरण जो चर राशि के सभी मानों के लिये संतुष्ट होता है, उसे सर्वसमिका (identity) कहते हैं। जैसे - एक सर्वसमिका है। जबकि एक समीकरण है जिसका मूल हैं x.

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समीकरण का हल

गणित में, 'समीकरण के हल' का अर्थ है, ऐसी संख्याएँ, फलन या समुच्चय खोजना जो उस दिये गये समीकरण को सन्तुष्ट करते हैं। जब हम समीकरण के हल की बात करते हैं तो उसमें आये हुए एक या अधिक चर राशियों को 'अज्ञात' (unknowns) माना गया होता है। उदाहरण के लिए, समीकरण 4.x3 + x2 - 36 .

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संरेखण

स्मिथ चार्ट एक प्रमुख संरेख (नोमोग्राम) है। संरेख (nomogram) एक ग्राफ पर आधारित गणना की युक्ति है। दूसरे शब्दों में, यह एक द्वि-विम आरेख (two-dimensional diagram) होता है जो किसी फलन का मोटा-मोटी (approximate) गणना की सुविधा प्रदान करता है। स्मिथ चार्ट, चाई-वर्ग वितरण का संरेख, दो प्रतिरोधों के समान्तरक्रम का संरेख आदि कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। संरेखण (Nomography) अपेक्षतया एक नया विषय है, जो समतल ज्यामिति और लघुगणकों के सरल सिद्धांतों पर आधारित है। यह विषय वर्णनात्मक ज्यामिति, अथवा आलेखी स्थैतिकी (Graphic Statics), के सदृश है। इसकी उत्पत्ति इंजीनियरी के क्षेत्र से हुई है। एम.

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संहति-केन्द्र

अलग-अलग द्रव्यमान वाली चार गेंदों के निकाय का '''संहति-केन्द्र भौतिकी में, संहतियों के किसी वितरण का संहति-केंद्र (center of mass) वह बिन्दु है जिस पर वह सारी संहतियाँ केन्द्रीभूत मानी जा सकती हैं। संहति केन्द्र के कुछ विशेष गुण हैं, उदाहरण के लिये यदि किसी वस्तु पर कोई बल लगाया जाय जिसकी क्रियारेखा उस वस्तु के संहति-केन्द्र से होकर जाती हो तो उस वस्तु में केवल स्थानातरण गति होगी (घूर्णी गति नहीं)। संहति-केन्द्र के सापेक्ष उस वस्तु में निहित सभी संहतियों के आघूर्णों (मोमेण्ट) का योग शून्य होता है। दूसरे शब्दों में, संहति-केन्द्र के सापेक्ष, सभी संहतियों की स्थिति का भारित औसत (वेटेड एवरेज) शून्य होता है। कणों के किसी निकाय का संहति केन्द्र वह बिन्दु है जहाँ, अधिकांश उद्देश्यों के लिए, निकाय ऐसे गति करता है जैसे निकाय का सब द्रव्यमान उस बिन्दु पर संकेंद्रित हो। संहति केन्द्र, केवल निकाय के कणों के स्थिति-सदिश और द्रव्यमान पर निर्भर होता है। संहति केन्द्र पर वास्तविक पदार्थ होना अनिवार्य नहीं है (जैसे, एक खोखले गोले का संहति-केन्द्र उस गोले के केन्द्र पर होता है जहाँ कोई द्रव्यमान ही नहीं है)। गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के एकसमान होने की स्थिति में कभी-कभी इसे गलती से गुरुत्वाकर्षण केन्द्र भी कहा जाता है। किसी वस्तु का रेखागणितीय केन्द्र, द्रव्यमान केन्द्र तथा गुरुत्व केन्द्र अलग-अलग हो सकते हैं। संवेग-केन्द्रीय निर्देश तंत्र वह निर्देश तंत्र है जिसमें निकाय का द्रव्यमान केन्द्र स्थिर है। यह एक जड़त्वीय फ्रेम है। एक द्रव्यमान-केन्द्रीय निर्देश तंत्र वह तंत्र है जहाँ द्रव्यमान केन्द्र न केवल स्थिर है बल्कि निर्देशांक निकाय के मूल बिन्दु पर स्थित है। .

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संवलन

दो आयताकार पल्सों का संवलन एक त्रिभुज होता है। गणित में संवलन (convolution) दो फलनों की एक गणितीय संक्रिया है जिससे एक तीसरा फलन प्राप्त होता है। संवलन, अन्तःसहसंबंध (cross-correlation) के समान है। इसका उपयोग फलनीय विश्लेषण तथा संकेत प्रसंस्करण में होता है। कुछ प्रमुख अनुप्रयोग हैं- प्रायिकता, सांख्यिकी, संगणक दृष्टि (computer vision), छबि प्रसंस्करण, संकेत प्रसंस्करण, अवकल समीकरण आदि। .

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संख्यात्मक विश्लेषण

गणितीय समस्याओं का कम्प्यूटर की सहायता से हल निकालने से सम्बन्धित सैद्धान्तिक एवं संगणनात्मक अध्ययन संख्यात्मक विश्लेषण या आंकिक विश्लेषण (Numerical analysis) कहलाता है। सैद्धान्तिक तथा संगणनात्मक पक्षों पर जोर वस्तुतः कलन विधियों (अल्गोरिद्म) की समीक्षा की ओर ले जाती है। इस बात की जाँच-परख की जाती है कि विचाराधीन कलन विधि द्वारा दी गयी गणितीय समस्या का हल निकालने में -.

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सुतीक्ष्ण समुच्चय

गणित में सुतीक्ष्ण समुच्चय अथवा पोइंटेड समुच्चय (आधारी समुच्चय अथवा नियत समुच्चय भी) (X, x_0) का क्रमित युग्म है जहाँ X एक समुच्चय तथा x_0 समुच्चय X का एक अवयव है जिसे इसका आधार बिन्दु कहते हैं तथा इसे अधार बिन्दु अथवा बेसपॉइंट पढ़ा जाता है। सुतीक्ष्ण समुच्चयों (X, x_0) और (Y, y_0) पर प्रतिचित्रण (जिसे आधार प्रतिचित्रण, सुतीक्ष्ण प्रतिचित्रण, अथवा बिन्दू-सरंक्षी प्रतिचित्रण कहा जाता है) X से Y में परिभाषित फलन हैं जो एक से अन्य में आधार बिन्दु का प्रतिचित्रण करते हैं। उदाहरण के लिए f: X \to Y इस प्रकार है कि f(x_0) .

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स्पेक्ट्रोस्कोपी

स्पेक्ट्रमिकी का सबसे सरल उदाहरण: श्वेत प्रकाश को प्रिज्म होकर ले जाने पर वह सात रंगों में बंट जाती है। स्पेक्ट्रमिकी, भौतिकी विज्ञान की एक शाखा है जिसमें पदार्थों द्वारा उत्सर्जित या अवशोषित विद्युत चुंबकीय विकिरणों के स्पेक्ट्रमों का अध्ययन किया जाता है और इस अध्ययन से पदार्थों की आंतरिक रचना का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। इस शाखा में मुख्य रूप से वर्णक्रम का ही अध्ययन होता है अत: इसे स्पेक्ट्रमिकी या स्पेक्ट्रमविज्ञान (Spectroscopy) कहते हैं। मूलत: विकिरण एवं पदार्थ के बीच अन्तरक्रिया (interaction) के अध्ययन को स्पेक्ट्रमिकी या स्पेक्ट्रोस्कोपी (Spectroscopy) कहा जाता था। वस्तुत: ऐतिहासिक रूप से दृष्य प्रकाश का किसी प्रिज्म से गुजरने पर अलग-अलग आवृत्तियों का अलग-अलग रास्ते पर जाना ही स्पेक्ट्रोस्कोपी कहलाता था। बाद में 'स्पेक्ट्रोस्कोपी' शबद के अर्थ का विस्तार हुआ। अब तरंगदैर्ध्य (या आवृत्ति) के फलन के रूप में किसी भी राशि का मापन स्पेक्ट्रोस्कोपी कहलाती है। इसकी परिभाषा का और विस्तार तब मिला जब उर्जा (E) को चर राशि के रूप में सम्मिलित कर लिया गया (क्योंकि पता चला कि उर्जा और आवृत्ति में सीधा सम्बन्ध है: E .

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सीमा (गणित)

गणित में सीमा (limit) की संकल्पना (कांसेप्ट) एक अत्यन्त मौलिक संकलपना है। सीमा की संकल्पना के विकास के परिणामस्वरूप ही कैलकुलस का जन्म सम्भव हुआ। सीमा का उपयोग किसी फलन का अवकलन निकालने तथा किसी फलन के किसी बिन्दु पर सातत्य (continuity) के परीक्षण में होता है। गणित में सीमा के दो अर्थ हैं -.

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सीमाओं की सूची

यहाँ कुछ प्रमुख एवं महत्वपूर्ण गणितीय फलनों की सीमाएँ (limit) दी गई हैं। a और b दोनों नियतांक हैं (x के सापेक्ष)। .

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हार्मोनिक विश्लेषण

हार्मोनिक विश्लेषण गणित की वह शाखा है जो फलनों या संकेतों को मौलिक तरंगों योग (superposition) के रूप में व्यक्त करने की विधियों एवं अन्य पक्षों का अध्ययन करती है। चूंकि भौतिकी में मौलिक सरल तरंगोंको हर्मोनिक कहा जाता है इसलिये इस विषय का नाम हार्मोनिक विश्लेषण पडा। पिछली दो शताब्दियों में एक विस्तृत विषय बनकर उभरा है। संकेत प्रसंस्करण, क्वांटम यांत्रिकी एवं तंत्रिकाविज्ञान आदि विविध विषयों में इसका उपयोग होता है। हार्मोनिक विश्लेषण, फुरिअर विश्लेषण का अधिक व्यापक रूप है। .

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हैमिल्टन का सिद्धान्त

भौतिकी में, हैमिल्टन सिद्धान्त (Hamilton's principle) के अनुसार, किसी भौतिक निकाय की गतिकी, केवल एक फलन के परिवर्तन की समस्या (variational problem) द्वारा ही निर्धारित होता है। इस फलन को लाग्रेंजियन (Lagrangian) कहते हैं। यह सिद्धान्त विलियम रोवन हैमिल्टन (William Rowan Hamilton) ने प्रतिपादित किया था। .

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ज्या

समकोण त्रिभुज में किसी कोण की ज्या उस कोण के सामने की भुजा और कर्ण के अनुपात के बराबर होती है। गणित में ज्या (Sine), एक त्रिकोणमितीय फलन का नाम है। समकोण त्रिभुज में का समकोण के अलावा एक कोण x है तो, उदाहरण के लिये, यदि कोण का मान डिग्री में हो तो, .

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ज्या, कोटिज्या और उत्क्रमज्या

ज्या तथा अर्धज्या के अर्थ 'ज्या', 'कोटिज्या' तथा 'उत्क्रमज्या' नामक तीन त्रिकोणमितीय फलन भारतीय खगोलशास्त्रियों एवं गणितज्ञों द्वारा प्रतिपादित किये गये थे। वर्तमान समय में प्राप्त ग्रंथों में सबसे पहले ये सूर्यसिद्धान्त में मिलते हैं। वस्तुतः ये वृत्त के चाँप के फलन हैं न कि कोण के फलन। किन्तु आज हमे ज्ञात है कि ज्या और कोज्या का वर्तमान समय के sine और cosine से बहुत नजदीक का सम्बन्ध है। और वास्तव में sine और cosine नामक इन वर्तमान फलनों के नाम संस्कृत के ज्या और कोज्या से ही व्युत्पन्न हुए हैं। 'जीवा' और 'ज्या' समानार्थी हैं। 'जीवा' का मूल अर्थ है - 'धनुष (चाप) की डोरी' .

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घन फलन

किसी घन फलन (जिसके तीनों मूल वास्तविक हैं) का आरेख गणित में निम्नलिखित स्वरूप वाले फलन को घन फलन (cubic function) या "त्रिघाती बहुपद" कहते हैं: यहाँ a अशून्य संख्या है। यह मानते हुए कि a ≠ 0 तथा ƒ(x) .

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घात श्रेणी

गणित में घात श्रेणी (एक चर में) एक अनन्त श्रेणी है जिसको निम्न रूप में लिखा जाता है: जहाँ an nवें पद के गुणांक को निरुपित करता है एवं c एक नियतांक है और x, c के आसपास का एक बिन्दु है। यह श्रेणी सामान्यतः किसी ज्ञात फलन का टेलर श्रेणी विस्तार होता है। श्रेणी:वास्तविक विश्लेषण.

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वर्ग माध्य मूल

गणित में वर्ग माध्य मूल (root mean square / RMS or rms), किसी चर राशि के परिमाण (magnitude) को व्यक्त करने का एक प्रकार का सांख्यिकीय तरीका है। इसे द्विघाती माध्य (quadratic mean) भी कहते हैं। यह उस स्थिति में विशेष रूप से उपयोगी है जब चर राशि धनात्मक एवं ऋणात्मक दोनों मान ग्रहण कर रही हो। जैसे ज्यावक्रीय (sinusoids) का आरएमएस एक उपयोगी राशि है। 'वर्ग माध्य मूल' का शाब्दिक अर्थ है - दिये हुए आंकड़ों के "वर्गों के माध्य का वर्गमूल (root)".

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वायुगतिकी

वायुगतिकी (Aerodynamics) गतिविज्ञान की वह शाखा है जिसमें वायु तथा अन्य गैसीय तरलों (gaseous fluids) की गति का और इन तरलों के सापेक्ष गतिवान ठोसों पर लगे बलों का विवेचन होता है। इस विज्ञान के सार्वाधिक महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों में से एक अनुप्रयोग वायुयान की अभिकल्पना है। .

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विचरण-कलन

विचरण-कलन (Calculus of variations), गणितीय विश्लेषण का एक क्षेत्र है जिसमें फंक्शनल्स के न्यूनीकरण या अधिकतमीकरण का विवेचन किया जाता है। फंक्शनल्स, फलनों के समुच्चय से वास्तविक संख्याओं पर प्रतिचित्रण होते हैं। श्रेणी:गणितीय विश्लेषण.

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वितत भिन्न

गणित में निम्नलिखित प्रकार के व्यंजक (expression) को वितत भिन्न (continued fraction) कहते हैं। यहाँ, a0 एक पूर्णांक है तथान्य सभी संख्याएँ ai (i ≠ 0) धनात्मक पूर्णांक हैं। यदि उपरोक्त वितत भिन्न में अंश एवं हर का मान कुछ भी होने की स्वतंत्रता दे दी जाय (जैसे फलन होने की छूट) तो इसे 'सामान्यीकृत वितत भिन्न' कह सकते हैं। .

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विद्युत प्रतिरोध

आदर्श प्रतिरोधक का V-I वैशिष्ट्य। जिन प्रतिरोधकों का V-I वैशिष्ट्य रैखिक नहीं होता, उन्हें अनओमिक प्रतिरोधक (नॉन-ओमिक रेजिस्टर) कहते हैं। किसी प्रतिरोधक के सिरों के बीच विभवान्तर तथा उससे प्रवाहित विद्युत धारा के अनुपात को उसका विद्युत प्रतिरोध (electrical resistannce) कहते हैं।इसे ओह्म में मापा जाता है। इसकी प्रतिलोमीय मात्रा है विद्युत चालकता, जिसकी इकाई है साइमन्स। जहां बहुत सारी वस्तुओं में, प्रतिरोध विद्युत धारा या विभवांतर पर निर्भर नहीं होता, यानी उनका प्रतिरोध स्थिर रहता है। right समान धारा घनत्व मानते हुए, किसी वस्तु का विद्युत प्रतिरोध, उसकी भौतिक ज्यामिति (लम्बाई, क्षेत्रफल आदि) और वस्तु जिस पदार्थ से बना है उसकी प्रतिरोधकता का फलन है। जहाँ इसकी खोज जार्ज ओह्म ने सन 1820 ई. में की।, विद्युत प्रतिरोध यांत्रिक घर्षण के कुछ कुछ समतुल्य है। इसकी SI इकाई है ओह्म (चिन्ह Ω).

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विभिन्न निर्देशांकों में डेल संक्रिया

इस पृष्ट पर विभिन्न निर्देशांक निकायों (coordinate systems) में कार्य करते समय प्रयोग में आने वाले सदिश कैलकुलस के प्रमुख सूत्र दिये गये हैं। कार्तीय एवं अन्य निर्देशांक निकायों में डेल संक्रिया (del operator) को प्रदर्शित करने वाली तालिका .

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वक्र आसंजन

Fitting of a noisy curve by an asymmetrical peak model, with an iterative process (Gauss–Newton algorithm with variable damping factor α). Top: raw data and model. Bottom: evolution of the normalised sum of the squares of the errors. वक्र आसंजन या वक्र बैठाना (Curve fitting) एक गणितीय प्रक्रिया है जिसमें किसी दिये हुए आंकड़े के आधार पर एक वक्र की रचना करना या एक गणितीय फलन की गणना करना होता है जो इन आंकड़ों से सर्वाधिक शुद्धतापूर्वक मेल खाता हो (best fit)। वैज्ञानिकों, इंजीनियरों एवं अन्य प्रायोगिक कार्य करने वालों को प्रयोग से प्राप्त आंकड़ों पर वक्र बैठाने की बहुत जरूरत पड़ती है। समुचित वक्र फिट करने से आंकड़ों में छिपा हुआ रहस्य बहुत हद तक साफ दिखने लगता है। कर्व फिटिंग करने से इन आंकड़ों से सम्बन्धित प्रक्रिया या फेनामेना का मॉडल तैयार करने में भी मदद मिलती है। इसके अलावा वक्र बैठाने से उस आंकड़े में छिपी बहुत सी विशेषताएँ आसानी से ज्ञात की जा सकतीं हैं; जैसे किसी बिन्दु पर अवकलज (derivative), स्थानीय अधिकतम व न्यूनतम बिन्दु, वक्र के अन्दर आने वाला क्षेत्रफल (समाकलन द्वारा) आदि। .

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गणित का इतिहास

ब्राह्मी अंक, पहली शताब्दी के आसपास अध्ययन का क्षेत्र जो गणित के इतिहास के रूप में जाना जाता है, प्रारंभिक रूप से गणित में अविष्कारों की उत्पत्ति में एक जांच है और कुछ हद तक, अतीत के अंकन और गणितीय विधियों की एक जांच है। आधुनिक युग और ज्ञान के विश्व स्तरीय प्रसार से पहले, कुछ ही स्थलों में नए गणितीय विकास के लिखित उदाहरण प्रकाश में आये हैं। सबसे प्राचीन उपलब्ध गणितीय ग्रन्थ हैं, प्लिमपटन ३२२ (Plimpton 322)(बेबीलोन का गणित (Babylonian mathematics) सी.१९०० ई.पू.) मास्को गणितीय पेपाइरस (Moscow Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित (Egyptian mathematics) सी.१८५० ई.पू.) रहिंद गणितीय पेपाइरस (Rhind Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित सी.१६५० ई.पू.) और शुल्बा के सूत्र (Shulba Sutras)(भारतीय गणित सी. ८०० ई.पू.)। ये सभी ग्रन्थ तथाकथित पाईथोगोरस की प्रमेय (Pythagorean theorem) से सम्बंधित हैं, जो मूल अंकगणितीय और ज्यामिति के बाद गणितीय विकास में सबसे प्राचीन और व्यापक प्रतीत होती है। बाद में ग्रीक और हेल्लेनिस्टिक गणित (Greek and Hellenistic mathematics) में इजिप्त और बेबीलोन के गणित का विकास हुआ, जिसने विधियों को परिष्कृत किया (विशेष रूप से प्रमाणों (mathematical rigor) में गणितीय निठरता (proofs) का परिचय) और गणित को विषय के रूप में विस्तृत किया। इसी क्रम में, इस्लामी गणित (Islamic mathematics) ने गणित का विकास और विस्तार किया जो इन प्राचीन सभ्यताओं में ज्ञात थी। फिर गणित पर कई ग्रीक और अरबी ग्रंथों कालैटिन में अनुवाद (translated into Latin) किया गया, जिसके परिणाम स्वरुप मध्यकालीन यूरोप (medieval Europe) में गणित का आगे विकास हुआ। प्राचीन काल से मध्य युग (Middle Ages) के दौरान, गणितीय रचनात्मकता के अचानक उत्पन्न होने के कारण सदियों में ठहराव आ गया। १६ वीं शताब्दी में, इटली में पुनर् जागरण की शुरुआत में, नए गणितीय विकास हुए.

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गणितीय संकेतन

गणितयीय संकेतन (Mathematical Notations) वे चिन्ह अथवा संकेत हैं जो किसी गणितीय क्रिया अथवा संबंध को व्यक्त करने में, किसी गणितयी राशि की प्रकृति अथवा गुण को दर्शाने में, अथवागणित में प्राय: प्रयुक्त होनेवाले वाक्यांश, विशिष्ट संख्या या गणितीय राशि को निर्दिष्ट करने के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं। इस प्रकार अ + ब में धन का चिन्ह निर्दिष्ट करता है कि अ में ब जोड़ना है; अ.

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गणितीय विश्लेषण

गणितीय विश्लेषण (Mathematical analysis) शुद्ध गणित की एक शाखा है। इसके अन्तर्गत अवकलन, समाकलन, सीमा, अनन्त श्रेणी तथा वैश्लेषिक फलनों (analytic functions) के सिद्धान्त आदि आते हैं। ये सिद्धान्त प्रायः वास्तविक संख्याओं, समिश्र संख्याओं तथा वास्तविक एवं समिश्र फलनों के सन्दर्भ में अध्ययन किए जाते हैं। विश्लेषण को परम्परागत रूप से ज्यामिति से अलग गणित की श्रेणी में रखा जाता रहा है। .

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गुणन नियम

कैलकुलस में, गुणन नियम (product rule) दो या अधिक फलनों के गुणनफल का अवकलज निकालने का एक सूत्र है। गुणन नियम को निम्नलिखित ढंग से अभिव्यक्त किया जा सकता है- इसे ही लैब्नीज के निरूपण (Leibniz notation) के द्वारा निम्नलिखित ढंग से लिखा जाता है- और, डिफरेंशियल्स के रूप में इसे निम्नलिखित प्रकार से लिखा जाता है_ .

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ग्राफ़ सिद्धान्त

एक ग्राफ जिसमें छः नोड और सात कोर हैं। गणित तथा संगणक विज्ञान में ग्राफ सिद्धांत (graph theory) में वस्तुओं से जुड़ी वस्तुओं और उनकी आपसी दूरी का अध्ययन किया जाता है। इस संदर्भ में ग्राफ उन गणितीय संरचनाओं को कहते हैं जो वस्तुओं के बीच जुड़े या युग्मित संबन्धों (pairwise relations) को मॉडल करने के काम आती हैं। इसकी तुलना किसी मानचित्र में शहरों के बीच बने सड़कों के जाल से कर सकते हैं। दो शहरों के बीच की दूरी उनके बीच बनी सड़क की लंबाई बताती है। यदि उन शहरों से बीच सीधी सड़क न हो, तो किसी अन्य शहर द्वारा वहाँ तक पहुँचने की दूरी निकाली जा सकती है। इसके आरेखों और चित्रों में दर्शाने के लिए वस्तुओं को बिन्दु या गोले (node, vertex) से दर्शाया जाता है। इनके बीच के जुड़ाव को एक रेख द्वारा जिसे कोर (edges) कहते हैं। अतः ग्राफ शीर्षों (vertices or nodes) तथा उनको जोड़ने वाली कोरों (edges) का समुच्चय है। विविक्त गणित (discrete mathematics) में ग्राफ का अध्ययन एक महत्वपूर्ण विषय है। ध्यान रहे कि 'ग्राफ सिद्धान्त' का 'ग्राफ', फलनों के आलेख (ग्राफ) यानि वक्र रेखा द्वारा किसी संबंध को दिखाने से बिलकुल भिन्न चीज है। ग्राफ़ सिद्धांत का प्रयोग वस्तुओं के विशाल समूह में एक दूसरे से दूरी (या अन्तर) निकालने के लिए किया जाता है। ग्राफ़ सिद्धांत के अनुसार, इसी प्रकार आकड़ों के पुंजीकरण, वस्तुओं की समरूपता इत्यादि जैसे कार्यों का हल निकाला जा सकता है। सामान्यतया ग्राफ़ को G.

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गोलीय त्रिकोणमिति

गोलीय त्रिकोणमिति (Spherical trigonometry), गोलीय ज्यामिति की शाखा है जिसमें गोलीय बहुभुजों (मुख्यतः गोलीय त्रिभुज) के कोणों एवं भुजाओं में सम्बन्ध बताने वाले त्रिकोणमितीय फलनों का अध्ययन किया जाता है। खगोलविज्ञान, भूगणित (geodesy) और नौचालन से सम्बन्धित गणनाओं में इसका बहुत महत्व है। श्रेणी:ज्यामिति की शाखाएँ.

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आद्य समाकल

कैलकुलस में, फलन का आद्य समाकल (primitive integral) अथवा प्रतिअवकलज (antiderivative) फलन होता है जिसका अवकलज मूल फलन होता है। इसी को संकेत रूप में ऐसे लिख सकते हैं- 'आद्य समाकल' को प्रति-अवकलज (एन्टीडेरिवेटिव), आद्य फलन (primitive functio) या अनिश्चित समाकल (indefinite integral) भी कहते हैं। .

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आंशिक अवकलज

गणित में, कई चरों के किसी फलन का आंशिक अवकलज उस फलन में आये हुए अन्य चरों को अपरिवर्ती मानते हुए तथा केवल किसी एक चर को परिवर्ती मानते हुए उसके सापेक्ष उस फलन के अवकलज के बराबर होता है। कोई फलन f(x, y,...), x, y, z आदि का फलन हो तो x के सापेक्ष उसका आंशिक अवकलज निकालने के लिये केवल x को परिवर्ती मानते हुए तथा y z आदि को अपरिवर्ती मानते हुए निकाला जायेगा। उदाहरण के लिये x2y3 का x के सापेक्ष आंशिक अवकलज 2xy3 होगा। किसी फलन f का आंशिक अवकलज विभिन्न संकेतों के द्वारा निरूपित किया जाता है जो निम्नलिखित हैं- .

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कलन

कलन (Calculus) गणित का प्रमुख क्षेत्र है जिसमें राशियों के परिवर्तन का गणितीय अध्ययन किया जाता है। इसकी दो मुख्य शाखाएँ हैं- अवकल गणित (डिफरेंशियल कैल्कुलस) तथा समाकलन गणित (इटीग्रल कैलकुलस)। कैलकुलस के ये दोनों शाखाएँ कलन के मूलभूत प्रमेय द्वारा परस्पर सम्बन्धित हैं। वर्तमान समय में विज्ञान, इंजीनियरी, अर्थशास्त्र आदि के क्षेत्र में कैल्कुलस का उपयोग किया जाता है। भारत में कैल्कुलस से सम्बन्धित कई कॉन्सेप्ट १४वीं शताब्दी में ही विकसित हो गये थे। किन्तु परम्परागत रूप से यही मान्यता है कि कैलकुलस का प्रयोग 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में आरंभ हुआ तथा आइजक न्यूटन तथा लैब्नीज इसके जनक थे। .

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कलन का मूलभूत प्रमेय

कलन के मूलभूत प्रमेय के दो भाग हैं। इनको कभी-कभी 'कलन का प्रथम मूलभूत प्रमेय' एवं 'कलन का द्वितीय मूलभूत प्रमेय' कहा जाता हैं। इस प्रमेय का प्रथम भाग प्रदर्शित करता है कि अनिश्चित समाकल को अवकलन द्वरा उलटा जा सकता है। इस प्रमेय का दूसरा भाग किसी फलन के निश्चित समाकल निकालने के लिये उसके असीमित व्युत्क्रम-अवकलजों (antiderivatives) के उपयोग की छूट देता है। .

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क्रमित युग्म

इस समतल के आठ बिन्दुओं की स्थिति को आठ '''क्रमित युग्मों''' के द्वारा निरुपित किया गया है। गणित में किन्ही दो गणितीय वस्तुओं के जोड़े को क्रमित युग्म या क्रमित युगल (ordered pair) कहते हैं यदि इस युग्म में क्रम का भी महत्व हो (अर्थात पहला कौन है और दूसरा कौन?)। यदि किसी क्रमित युग्म का पहला अवयव a तथा दूसरा अवयव b हो तो इस क्रमित युग्म को (a, b) के रूप में दर्शाते हैं। समुच्चय तथा क्रमित युग्म में अन्तर है। समुच्चय केवल अपने अवयवों द्वारा पारिभाषित होता है (उनके क्रम का महत्व नहीं है) जबकि क्रमित युग्म में अवयवों के अलावा क्रम का भी महत्व है। उदाहरण के लिये समुच्चय तथा समान हैं लेकिन क्रमित युग्म (0, 1) एवं (1, 0) अलग-अलग हैं। क्रमित युग्म का सामान्यीकरण किया जा सकता है और वस्तुओं के 'परिमित क्रमित समूह' की बात की जा सकती है। समुच्चयों का कार्तीय गुणन, द्विचर संबंध (binary relations, कार्तीय निर्देशांक (Cartesian coordinates), भिन्न (fractions) तथा फलन आदि की परिभाषा क्रमित युग्म की सहायता से ही की जाती है। श्रेणी:सम्बन्ध.

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अतिपरवलयिक फलन

गणित में, अतिपरवलयिक फलन (hyperbolic functions) ऐसे फलन हैं जो सामान्य त्रिकोणमितीय फलनों से मिलते-जुलते किन्तु अलग फलन हैं। हाइपरबोलिक साइन "sinh" (या), और हाइपरबोलिक कोसाइन "cosh",Collins Concise Dictionary, p. 328 मूलभूत अतिपरवलयिक फलन हैं। इनसे हाइपरबोलिक टैन्जेन्ट "tanh" (या), हाइपरबोलिक कोसेकेन्ट "csch" या "cosech" (या), हाइपरबोलिक सेकेन्ट "sech" (या), तथा हाइपरबोलिक कोटैन्जेन्ट "coth" (या), व्युत्पन्न हुए हैं। .

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अनुकोण प्रतिचित्रण

इस चित्र में नीचे वाली आकृति उपर वाले चित्र में बनी हुई आयताकार ग्रिड का 'इमेज' है जो एक अनुकोणी प्रतिचित्रण के द्वारा प्राप्त हुआ है। द्रष्टव्य है कि इस प्रतिचित्रण के अन्तर्गत 90° पर परस्पर काटने वाली रेखाएँ 'इमेज' में भी परस्पर 90° पर ही काटतीं हैं। गणित में उस फलन को अनुकोणी प्रतिचित्रण (Conformal mapping या angle-preserving mapping) कहते हैं जिसके अन्तर्गत कोण अपरिवर्तित रहते हैं। प्रायः यह समिश्र तल में उपयोग किया जाता है। अनुकोण प्रतिचित्रण में अनन्त-सूक्ष्म चित्रों के कोण और स्वरूप (shape) दोनों ही सुरक्षित रहते हैं किन्तु आवश्यक नहीं है कि आकार (साइज) भी अपरिवर्तित रहे। अनुकोणी प्रतिचित्रण का सबसे प्रसिद्ध प्रयोग मर्केटर प्रक्षेप कहलाता है जिसके द्वारा भूमंडल की आकृतियों का चित्रण समतल पर किया जाता है। .

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अबीजीय फलन

उस फलन को अबीजीय फलन (transcendental function) कहते हैं जो किसी बहुपदीय समीकरण को संतुष्ट नहीं कर सकता। (इन बहुपदीय समीकरणों के गुणांक भी नियतांक हों या बहुपद होने चाहिये)। अबीजीय फलनों के मान f(x) को इसके चर x के योग, घटाना, गुणन, भाग, घात एवं मूल की सीमित बीजीय संक्रियाओं के द्वारा अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता। इसके विपरीत बीजीय फलन वे होत हैं जिनको सीमित बीजीय संक्रियाओं के रूप में अभिव्यक्त करना सम्भव हो। .

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अभिलक्षणिक बहुपद

रैखिक बीजगणित में प्रत्येक वर्ग मैट्रिक्स के सहवर्ती एक लाक्षणिक बहुपद (characteristic polynomial) परिभाषित किया जाता है। किसी वर्ग मैट्रिक्स का लाक्षणिक बहुपद बहुत उपयोगी परिकल्पना है - इससे उस वर्ग मैट्रिक्स में निहित (छिपी हुई) बहुत से महत्वपूर्ण गुण बाहर आ जाते हैं। लाक्षणिक बहुपद के द्वारा आइगेनमान (eigenvalues), मैट्रिस का सारणिक (determinant) तथा इसके ट्रेस (trace) का ज्ञान हो जाता है। .

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अस्पष्ट समीकरण

गणित में R(x1,..., xn) .

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अवशेष प्रमेय

अवशेष प्रमेय सम्मिश्र विश्‍लेषण में गणित का एक क्षेत्र है जिसे कौशी अवशेष प्रमेय भी कहा जाता है जो कि बन्द वक्र में विश्लेषणात्मक फलनों का रेखा समाकल ज्ञात करने के लिए बहुत उपयोगी है; यह वास्तविक समाकल ज्ञात करने के लिए भी बहुत सहायक है। यह कौशी समाकल प्रमेय और कौशी समाकल सूत्र का व्यापकीकृत रूप है। ज्यामितीय परिप्रेक्ष्य से यह व्यापकीकृत स्टोक्स प्रमेय की विशेष अवस्था है। कथन का चित्रण। इसका कथन निम्न प्रकार है: माना U सम्मिश्र समतल में एकशः सम्बद्ध विवृत उपसमुच्चय है और a1,...,an, U पर परिमित बिन्दु हैं और f एक फलन है जो U \ पर परिभाषित और होलोमार्फिक है। यदि γ, U में चापकलनीय वक्र है जो कहीं भी ak से नहीं मिलता और इसका आरम्भिक बिन्दु ही इसका अन्तिम बिन्दु है, तो 2\pi i \sum_^n \operatorname(\gamma, a_k) \operatorname(f, a_k).

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अवकलज

एक वक्र के विभिन्न बिन्दुओं पर प्रवणता (स्लोप) वास्तव में उस बिन्दु पर '''x''' के सापेक्ष '''y''' का मान बढ़ने की दर के बराबर होता है। किसी चर राशि के किसी अन्य चर राशि के सम्बन्ध में तात्कालिक बदलाव की दर की गणना को अवकलन (Differentiation) कहते हैं तथा इस क्रिया द्वारा प्राप्त दर को अवकलज (Derivative) कहते हैं। यह किसी फलन को किसी चर राशि के साथ बढ़ने की दर को मापता है। जैसे यदि कोई फलन y किसी चर राशि x पर निर्भर है और x का मान x1 से x2 करने पर y का मान y1 से y2 हो जाता है तो (y2-y1)/(x2-x1) को y का x के सन्दर्भ में अवकलज कहते हैं। इसे dy/dx से निरूपित किया जाता है। ध्यान रहे कि परिवर्तन (x2 - x1) सूक्ष्म से सूक्ष्मतम (tend to zero) होना चाहिये। इसीलिये सीमा (limit) का अवकलन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। किसी वक्र (curve) का किसी बिन्दु पर प्रवणता (slope) जानने के लिये उस बिन्दु पर अवकलज की गणना करनी पड़ती है।; परिभाषा फलन ƒ का बिन्दु a पर अवकलज निम्नलिखित सीमा के बराबर होता है (बशर्ते सीमा का अस्तित्व हो) - यदि सीमा का अस्तित्व है तो ƒ बिन्दु a पर अवकलनीय कहलाता है।; उदाहरण d/dx (ज्या(x)) .

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अवकलजों की सूची

किसी व्यंजक या फलन का अवकलज निकालना अवकलन की प्राथमिक क्रिया है। नीचे बहुत से फलनों के अवकलज (differentials) या अवकल गुणांक दिए गये हैं। इनमे f एवं g, x के सापेक्ष अवकलनीय फलन हैं; c कोई वास्तविक संख्या है। .

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अंतर्वेशन

अंतर्वेशन (इंटरपोलेशन / Interpolation) का अर्थ है किसी गणितीय सारणी में दिए हुए मानों के बीच वाले मानों को ज्ञात करना। अंग्रेजी शब्द इंटरपोलेशन का शाब्दिक अर्थ है - 'बीच में शब्द बढ़ाना' या किसी के वर्ग या समूह के बीच में उसी तरह की और कोई चीज बाहर से लाकर जमाना, बैठाना या लगाना।। .

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उच्चिष्ठ और निम्निष्ठ

गणित में किसी फलन के सबसे अधिक और सबसे कम मान को उस फलन का उच्चिष्ट और निम्निष्ट (maximum and minimum; बहुवचन: maxima and minima) कहते हैं। उच्चिष्ट और निम्निष्ट को सम्मिलित रूप से चरम (extrema; एकवचन: extremum) कहते हैं। ये उच्चिष्ट और निम्निष्ट फलन के किसी सीमित क्षेत्र में हो सकते हैं अथवा उस फलन के सम्पूर्ण डोमेन में। फलन के किसी सीमित क्षेत्र में स्थित उच्चिष्ट और निम्निष्ट को 'स्थानीय चरम' (local or relative extremum) कहते हैं जबकि फलन के सम्पूर्ण डोमेन में फलन का जो सबसे अधिक/कम मान हो उसे 'ग्लोबल चरम' (global or absolute extremum) कहते हैं। पार्श्व चित्र में लोबल और लोकल चरम मान दिखाये गये हैं। इससे अधिक व्यापक रूप से कहें तो, किसी समुच्चय का उच्चिष्ट और निम्निष्ट, उस समुच्चय के सदस्यों में सबसे अधिक और सबसे कम मान वाले सदस्य होते हैं। फलनों के चरम मानों को निकालना ही इष्टतमकरण (optimization) का उद्देश्य है। .

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SAT (सैट)

SAT रिजनिंग टेस्ट (सैट तर्क परीक्षा) संयुक्त राज्य अमेरिका में कॉलेज में प्रवेश के लिए एक मानकीकृत परीक्षा है। संयुक्त राज्य अमेरिका में SAT एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो कॉलेज बोर्ड के स्वामित्व में है और उसके द्वारा प्रकाशित और विकसित किया गया है। और, यह पहले एडुकेशनल टेस्टिंग सर्विस (ETS) द्वारा विकसित, प्रकाशित किया जाता था और उसीके द्वारा अंक दिए जाते थे। ETS अब परीक्षा का प्रबंध करता है। कॉलेज बोर्ड का दावा है कि परीक्षा निर्धारित कर सकती हैं कि कोई व्यक्ति कॉलेज के लिए तैयार है या नहीं है। वर्तमान SAT रिजनिंग टेस्ट में तीन घंटे पैंतालीस मिनट लगते हैं और इसमें विलंब फीस के अलावा 45 डॉलर (71 डॉलर अंतर्राष्ट्रीय) का खर्च आता है। 1901 में SAT की शुरूआत से, इसके नाम और अंक दिए जाने के तरीके कई बार बदल चुके हैं। 2005 में, 800 नंबर के तीन विभाग (गणित, विवेचनात्मक पठन और लेखन) को मिलाकर परीक्षा परिणाम में 600 से 2400 तक संभाव्य अंक प्राप्त करने के साथ दूसरे उप-विभागों में भी अलग से प्राप्त किए गए अंक मिलाकर इस परीक्षा का फिर से नामकरण "SAT रिजनिंग टेस्ट" किया गया। .

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