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फल

सूची फल

फल और सब्ज़ियाँ निषेचित, परिवर्तित एवं परिपक्व अंडाशय को फल कहते हैं। साधारणतः फल का निर्माण फूल के द्वारा होता है। फूल का स्त्री जननकोष अंडाशय निषेचन की प्रक्रिया द्वारा रूपान्तरित होकर फल का निर्माण करता है। कई पादप प्रजातियों में, फल के अंतर्गत पक्व अंडाशय के अतिरिक्त आसपास के ऊतक भी आते है। फल वह माध्यम है जिसके द्वारा पुष्पीय पादप अपने बीजों का प्रसार करते हैं, हालांकि सभी बीज फलों से नहीं आते। किसी एक परिभाषा द्वारा पादपों के फलों के बीच में पायी जाने वाली भारी विविधता की व्याख्या नहीं की जा सकती है। छद्मफल (झूठा फल, सहायक फल) जैसा शब्द, अंजीर जैसे फलों या उन पादप संरचनाओं के लिए प्रयुक्त होता है जो फल जैसे दिखते तो है पर मूलत: उनकी उत्पप्ति किसी पुष्प या पुष्पों से नहीं होती। कुछ अनावृतबीजी, जैसे कि यूउ के मांसल बीजचोल फल सदृश होते है जबकि कुछ जुनिपरों के मांसल शंकु बेरी जैसे दिखते है। फल शब्द गलत रूप से कई शंकुधारी वृक्षों के बीज-युक्त मादा शंकुओं के लिए भी होता है। .

118 संबंधों: चटनी, चिरौंजी, चकोतरा, चीकू, एथिलीन, झारखण्ड के आदिवासी त्योहार, तना, ताड़ का तेल, ताब्लास द्वीप, तेंदू, तोता, दही (योगहर्ट या योगर्ट), दा-वेन सन, दक्षिण एशियाई भोजन में प्रयुक्त पादप, नाशपाती, निम्बू-वंश, नीबू, नीलगिरी (यूकलिप्टस), पपीता, पहाड़ी मैना, पादप, पादप हार्मोन, पंजाब (भारत), पक्वन, पुथंडु, पुष्प, पुंजफल, प्रचलित गलत धारणाओं की सूची, प्राचीन भारत, प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास, पेय-पदार्थ, फलदार वृक्ष, फलों की खेती, फ़ालसा, फ़्लोरिडा, बड़ी दुधी, बरगद, बाँस, बाग़बानी, बाग़ान, बिल्व, बुलबुल, ब्रूस ली, बैंगन, मरे-डार्लिंग बेसिन, मार्केट यार्ड, मिर्च, मोम की पर्त, यूरोप, रस (वनस्पति), ..., रसबेर, रामफल, रक्ताल्पता, लाइकोपेन, लोमाटिया तस्मानिका, लोरिस, शर्करा, सदाफूली, सपुष्पक पौधा, सलाद, सिंघाड़ा, संतरा (फल), संयुक्त फल, संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द, सुनहला चावल, स्तंभपुष्पता, स्नैक फूड (अल्पाहार), स्फुटन(वनस्पति विज्ञान), स्वस्थ आहार, सेब, हाट, हार्मोन, हवन, जनन, जामुन, जायफल, जिन्को बाइलोबा, जोमाय शष्टि, वन, वाइटिस, विटामिन सी, वैनिला, वॉलफ्रेम अल्फा, खटिक, खमो, ख़रबूज़ा, खजूर, खीरा, गाँजे का पौधा, गिलहरी, आँवला, आयुर्वेद, आंगवांतीबो, कच्चा भोजन, कटहल, कमरख, कर्कट रोग, करोंदा, किन्नू, कुपोषण, कुकी (एक प्रकार का बिस्कुट), कृषि, कूट फल, कोलेस्टेरॉल, कीवी फल, अचार, अन-नफ़ूद रेगिस्तान, अनार, अपच्छेदन, अमरूद, अल्फोन्सो आम में स्प्ंजी टिशू की समस्या एंव इसका समाधान, अखरोट, अखरोट (फल), अगस्ति, अंजीर, अंग (शारीरिकी), अंगूर, उष्णकटिबंधीय वर्षा-वन सूचकांक विस्तार (68 अधिक) »

चटनी

चटनी का अर्थ होता है दो या उससे अधिक चीजों का मिश्रण। आम बोलचाल में चटनी या खिचड़ी शब्द का इस्तेमाल वैसी चीजों के लिये किया जाता है जिसमें आनुपातिक मात्रा का कोई खास खयाल नहीं रखा जाता। चटनी मूल रूप से भारत का सौस है जो मूल रूप से हरी मिर्च और नमक से बनी होती है और इसके अतिरिक्त इसमें खुली प्रयोग की छूट ली जा सकती है। ज्यादातर चटनियों के बनाने में हरी मिर्च और नमक के अलावा अपने पसंद की किसी भी खास सब्ज़ी को चुना जा सकता है। ज्यादातर सब्ज़ियों की चटनियाँ यूँ तो कच्ची सब्ज़ी को सिल-बट्टे पर पीसकर या ब्लेंडर में ब्लेंड कर के बनायी जा सकती हैं लेकिन किसी किसी फलों की चटनी बनाते समय उन्हें पकाने की जरूरत पड़ सकती है। कुछ लोकप्रिय चटनियों में ये चटनियाँ शामिल हैं:-.

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चिरौंजी

चिरौंजी चिरौंजी या चारोली पयार या पयाल नामक वृक्ष के फलों के बीज की गिरी है जो खाने में बहुत स्वादिष्ट होती है। इसका प्रयोग भारतीय पकवानों, मिठाइयों और खीर व सेंवई इत्यादि में किया जाता है। चारोली वर्षभर उपयोग में आने वाला पदार्थ है जिसे संवर्द्धक और पौष्टिक जानकर सूखे मेवों में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। चिरौंजी दो प्रकार की वस्तुओं को कहते हैं एक तो जो मंदिर में प्रसाद के रूप में चढ़ाई जाती है वह है चिरौंजी दाना। और दूसरी है वह मिलती है हमें एक वृक्ष के फलों की गुठली से। जो फलों की गुठली फोड़कर निकाली जाती है। जिसे बोलचाल की भाषा में पियाल, प्रियाल या फिर चारोली या चिरौंजी भी कहा जाता है। चारोली का वृक्ष अधिकतर सूखे पर्वतीय प्रदेशों में पाया जाता है। दक्षिण भारत, उड़ीसा, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, छोटा नागपुर आदि स्थानों पर यह वृक्ष विशेष रूप से पैदा होता है। इस वृक्ष की लंबाई तकरीबन ५० से ६० फीट के आसपास की होती है। इस वृक्ष के फल से निकाली गई गुठली को मींगी कहते हैं। यह मधुर बल वीर्यवर्द्धक, हृदय के लिए उत्तम, स्निग्ध, विष्टंभी, वात पित्त शामक तथा आमवर्द्धक होती है। जिसका सेवन रूग्णावस्था और शारीरिक दुर्बलता में किया जाता है। चारोली का यह पका हुआ फल भारी होने के साथ-साथ मधुर, स्निग्ध, शीतवीर्य तथा दस्तावार और वात पित्त, जलन, प्यास और ज्वर का शमन करने वाला होता है। इस वृक्ष के फल की गुठली से निकली मींगी और छाल दोनों मानवीय उपयोगी होती है। चिरौंजी का उपयोग अधिकतर मिठाई में जैसे हलवा, लड्डू, खीर, पाक आदि में सूखे मेवों के रूप में किया जाता है। सौंदर्य प्रसाधनों में भी इसका उपयोग किया जाता है। .

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चकोतरा

चकोतरा निम्बू-वंश का एक फल है, जो उस वंश की सबसे बड़ी जातियों में से एक है। हालांकि निम्बू-वंश के बहुत से फल दो या उस से अधिक जातियों के संकर (हाइब्रिड) होते हैं, चकोतरा एक शुद्ध प्राकृतिक जाति है। इसके कच्चे फल का रंग हरा, और पके हुए का हल्का हरा या फिर पीला होता है। पूरा बड़ा होने पर इसके फल का व्यास (डायामीटर) १५-२५ सेमी और वज़न १ से २ किलोग्राम होता है। इसके स्वाद में खटास और कुछ मीठापन तो होता है, लेकिन कड़वाहट नहीं। चकोतरा मूलतः भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिणपूर्वी एशिया क्षेत्र की जन्मी हुई जाति है। .

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चीकू

चीकू का वृक्ष जिस पर फल लगे हैं। मैसूर में एक स्त्री पके चीकू बेच रही है। चीकू (वानस्पतिक नाम: Manilkara zapota) फल का एक प्रकार हैं। चीकू मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं।.

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एथिलीन

एथिलीन (Ethylene; (IUPAC नाम: एथीन/ethene) एक हाइड्रोकार्बन है जिसका अणुसूत्र or H2C.

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झारखण्ड के आदिवासी त्योहार

झारखंड में कुल ३२ जनजातिया मिलकर रह्ती है। एक विशाल सांस्कृतिक प्रभाव होने के साथ साथ, झारखंड यहाँ के मनाये जाने वाले त्योहारों की मेजबानी के लिए जाना जाता है। इसके उत्सव प्रकृति के कारण यह भारत की ज्वलंत आध्यात्मिक कैनवास पर भी कुछ अधिक रंग डालता है। यह राज्य प्राचीन काल के संदर्भ में बहुत मायने रखता है। झारखंड में पूरे मज़ा और उल्लास के साथ सभी त्योहारो को मनाया जाता है। देशभर में मनाये जाने वाले सभी त्योहारों को भी झारखंड में पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस राज्य में मनाये जाने वाले त्योहारों से झारखंड का भारत में सांस्कृतिक विरासत के अद्भुत उपस्थिति का पता चलता है। हालाकि झारखंड के मुख्य आकर्षण आदिवासी त्योहारों के उत्सव में होता है। यहाँ की सबसे प्रमुख, उल्लास के साथ मनायी जाने वाली त्योहारो में से एक है सरहुल। .

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तना

एक पौधे का तना पौधे का वह भाग जो भुमि के ऊपर भ्रूण के प्रांकुर से विकसित होकर पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण के विपरीत प्रकाश की ओर बढ़ता है, तना कहलाता है। इससे शाखाएँ, पत्ते, फूल और फल उत्पन्न होते हैं। .

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ताड़ का तेल

उबाल के परिणाम स्वरूप ताड़ के तेल का ब्लॉक हल्के रंग दिखा रहा है। ताड़ का तेल, नारियल तेल और ताड़ की गरी का तेल ताड़ के पेड़ों के फल से निकाले गये खाने योग्य वनस्पति तेल हैं। ताड़ का तेल आयल पाम एलएईस गुइनीन्सिस के फल की लुगदी से निकाला जाता है; ताड़ की गरी का तेल आयल पाम के फल की गरी (बीज) से निकाला जाता है और नारियल का तेल नारियल (कोकोस नुसिफेरा) की गरी से प्राप्त किया जाता है। ताड़ के तेल का रंग स्वाभाविक रूप से लाल होता है, क्योंकि इसमें बीटा कैरोटीन का एक उच्च परिमाण शामिल रहता है। ताड़ का तेल, ताड़ की गरी का तेल और नारियल तेल कुछ अत्यधिक संतृप्त वनस्पति वसाओं में से तीन हैं। ताड़ का तेल कमरे के तापमान पर अर्ध ठोस रहता है। ताड़ के तेल में कई संतृप्त और असंतृप्त वसाएं ग्लिसरिल ल्यूरेट (0.1%, संतृप्त), मिरिस्टेट (1%, संतृप्त), पामिटेट (44%, संतृप्त), स्टीयरेट (5%, संतृप्त), ओलेट (39%, एकलअसंतृप्त) लीनोलियेट (10%, बहुलअसंतृप्त और लिनोलेनेट (0.3%, बहुलअसंतृप्त) के रूप में शामिल हैं। ताड़ की गरी का तेल और नारियल तेल, ताड़ के तेल से अधिक उच्च संतृप्त तेल हैं। सभी वनस्पति तेलों की तरह ताड़ के तेल में कोलेस्ट्रॉल (अपरिष्कृत पशु वसा में पाया जाने वाला) नहीं होता, हालांकि संतृप्त वसा के सेवन से एलडीएल और एचडीएल कोलेस्ट्रॉल दोनों बढ़ जाते हैं। ताड़ का तेल अफ्रीका, दक्षिणपूर्व एशिया और ब्राजील के कुछ भागों की उष्णकटिबंधीय पट्टी में खाना पकाने का एक आम उपादान है। इसकी कम लागत और तलने में उपयोग के समय परिष्कृत उत्पाद की उच्च जारणकारी स्थिरता (संतृप्ति) दुनिया के अन्य भागों में व्यावसायिक भोजन उद्योग में इसके बढ़ते उपयोग को प्रोत्साहित कर रही है। .

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ताब्लास द्वीप

ताब्लास (Tablas) दक्षिणपूर्वी एशिया के फ़िलिपीन्ज़ देश के रोमब्लोन द्वीपसमूह व प्रान्त का सबसे बड़ा द्वीप है, जो प्रशासनिक दृष्टि से मिमारोपा क्षेत्र का भाग है। फ़िलिपीन्ज़ पर स्पेनी उपनिवेशी क़ब्ज़ा होने से पहले इस द्वीप का नाम ओसिगान (Osigan) हुआ करता था और यह अपने मोम के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था। आधुनिक काल में ताब्लास पर ९ नगरपालिकाएँ हैं और इसकी अर्थव्यवस्था फलों व सब्ज़ियों की कृषि और मत्स्योद्योग पर आधारित है। .

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तेंदू

तेंदू फल - साबुत और कटे हुए तेंदू या अकमोल या स्वर्णाम्र एक पीले, नारंगी या लाल रंग का मीठा फल होता है। इसका अकार ०.५ से ४ इंच तक का गोला होता है। भारत में यह मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में, ख़ासकर विन्ध्याचल की पहाड़ियों में, पैदा किया जाता है। .

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तोता

तोता तोता या शुक एक पक्षी है जिसका वैज्ञानिक नाम 'सिटाक्यूला केमरी' है। यह कई प्रकार के रंग में मिलता है। .

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दही (योगहर्ट या योगर्ट)

तुर्की दही एक तुर्की ठंडा भूख बढ़ाने वाला दही का किस्म दही (Yoghurt) एक दुग्ध-उत्पाद है जिसे दूध के जीवाण्विक किण्वन के द्वारा बनाया जाता है। लैक्टोज के किण्वन से लैक्टिक अम्ल बनता है, जो दूध के प्रोटीन पर कार्य करके इसे दही की बनावट और दही की लाक्षणिक खटास देता है। सोय दही, दही का एक गैर-डेयरी विकल्प है जिसे सोय दूध से बनाया जाता है। लोग कम से कम 4,500 साल से दही-बना रहे हैं-और खा रहे हैं। आज यह दुनिया भर में भोजन का एक आम घटक है। यह एक पोषक खाद्य है जो स्वास्थ्य के लिए अद्वितीय रूप से लाभकारी है। यह पोषण की दृष्टि से प्रोटीन, कैल्सियम, राइबोफ्लेविन, विटामिन B6 और विटामिन B12 में समृद्ध है। .

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दा-वेन सन

'''''दा-वेन सन''''' / 孫大文 / 孙大文 Da-Wen Sun @ UN FAO सन दावेन (अंग्रेजी: Da-Wen Sun; साधारणीकृत चीनी: 孙大文; पारंपरिक चीनी: 孫大文; हान्यू पिनयिन: Sūn Dàwén) (दा-वेन सन नाम से प्रसिद्ध), प्रोफ़ेसर, खाद्य एवं जैविक प्रणाली अभियांत्रिकी, यूनिवर्सिटी कॉलेज डब्लिन, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ आयरलैण्ड.

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दक्षिण एशियाई भोजन में प्रयुक्त पादप

दक्षिण एशिया और विशेषतः भारतीय, भोजन अधिकांशतः शाकमय होता है जिसमें विभिन्न प्रकार के फल, सब्जियाँ, अन्न, तथा मसाले होते हैं। इस लेख में दणिण एशिया के देशों के भोजन में प्रयुक्त पौधों के नाम विभिन्न भाषाओं में दिए गये हैं। .

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नाशपाती

नाशपाती (अंग्रेजी: Pear; वानस्पतिक नाम) एक फल है। नाशपाती भी सेब से जुड़ा एक उप-अम्लीय फल है, लेकिन इसमें शर्करा अधिक तथा अम्ल कम पाया जाता है। यह मूल रूप से उत्तरी अफ्रीका, पश्चिमी यूरोप का निवासी था और पूर्वी जंबुद्वीप तक इसका विस्तार हुआ करता था। यह एक मध्यम ऊंचाई का पेड़ होता है जो तक पहुंचता है, प्रायः ऊपर ऊंचा, संकरा किरीट आकार होता है। इसकी कुछ प्रजातियां झाड़ रूपी भी होती हैं, जिनकी ऊंचाई अधिक नहीं होती। इसकी पत्तियां एक एक करके दायें बाएं व्यवस्थित होती हैं व सीधी लम्बी, कुछ प्रजातियों में चमकदार हरी, तो कुछ अन्य प्रजातियों में घने रजतवर्णी रोयें से ढंकी हरी होती हैं। इनका आकार चौड़ा ओवल से लेकर संकरा भालानुमा भी होता है। अधिकतर नाश्पाती की प्रजातियाँ पर्णपाती होती हैं, किन्तु दक्षिण-पूर्वी एशिया में एक-दो प्रजातियां सदाबहार भी पायी जाती हैं। अधिकतर ठंड सहने वाली कुछ सख्त होती हैं, जिनमें शीत ऋतु में शून्य के नीचे से शून्य के नीचे तापमान सहने की क्षमता होती है। जो सदाबहार प्रजातियाँ होती हैं, उनकी क्षमता मात्र शून्य के नीचे ही होती है। .

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निम्बू-वंश

निम्बू-वंश एक पादप वंश है, जो रुटेसी (Rutaceae) कुल के पुष्पीय पादपों का वंश है। इनकी उत्पत्ति दुनिया के उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण दक्षिण पूर्वी क्षेत्रों में हुई है। इस वंश की वर्गिकी और क्रमबद्धता जटिल है और इसकी प्राकृतिक प्रजातियों की सटीक संख्या अस्पष्ट है, क्योंकि कई ज्ञात प्रजातियां कृंतकीय रूप से विकसित संकर प्रजाति हैं और इस बात के आनुवंशिक साक्ष्य हैं कि कुछ जंगली, विशुद्ध-प्रजनित वास्तव मे संकर, मूल की हैं। निम्बू-वंश के कृषि योग्य फल मूलतः चार पैतृक प्रजातियों से संबंधित हैं। वाणिज्यिक रूप से कृषि योग्य प्राकृतिक और मूल संकर प्रजातियों मे महत्वपूर्ण फल हैं, संतरा, चकोतरा, नीबू, नारंगी और किन्नू। .

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नीबू

नीबू का वृक्ष नीबू (Citrus limon, Linn.) छोटा पेड़ अथवा सघन झाड़ीदार पौधा है। इसकी शाखाएँ काँटेदार, पत्तियाँ छोटी, डंठल पतला तथा पत्तीदार होता है। फूल की कली छोटी और मामूली रंगीन या बिल्कुल सफेद होती है। प्रारूपिक (टिपिकल) नीबू गोल या अंडाकार होता है। छिलका पतला होता है, जो गूदे से भली भाँति चिपका रहता है। पकने पर यह पीले रंग का या हरापन लिए हुए होता है। गूदा पांडुर हरा, अम्लीय तथा सुगंधित होता है। कोष रसयुक्त, सुंदर एवं चमकदार होते हैं। नीबू अधिकांशत: उष्णदेशीय भागों में पाया जाता है। इसका आदिस्थान संभवत: भारत ही है। यह हिमालय की उष्ण घाटियों में जंगली रूप में उगता हुआ पाया जाता है तथा मैदानों में समुद्रतट से 4,000 फुट की ऊँचाई तक पैदा होता है। इसकी कई किस्में होती हैं, जो प्राय: प्रकंद के काम में आती हैं, उदाहरणार्थ फ्लोरिडा रफ़, करना या खट्टा नीबू, जंबीरी आदि। कागजी नीबू, कागजी कलाँ, गलगल तथा लाइम सिलहट ही अधिकतर घरेलू उपयोग में आते हैं। इनमें कागजी नीबू सबसे अधिक लोकप्रिय है। इसके उत्पादन के स्थान मद्रास, बंबई, बंगाल, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र हैदराबाद, दिल्ली, पटियाला, उत्तर प्रदेश, मैसूर तथा बड़ौदा हैं। नीबू की उपयोगिता जीवन में बहुत अधिक है। इसका प्रयोग अधिकतर भोज्य पदार्थों में किया जाता है। इससे विभिन्न प्रकार के पदार्थ, जैसे तेल, पेक्टिन, सिट्रिक अम्ल, रस, स्क्वाश तथा सार (essence) आदि तैयार किए जाते हैं। .

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नीलगिरी (यूकलिप्टस)

नीलगिरी मर्टल परिवार, मर्टसिया प्रजाति के पुष्पित पेड़ों (और कुछ झाडि़यां) की एक भिन्न प्रजाति है। इस प्रजाति के सदस्य ऑस्ट्रेलिया के फूलदार वृक्षों में प्रमुख हैं। नीलगिरी की 700 से अधिक प्रजातियों में से ज्यादातर ऑस्ट्रेलिया मूल की हैं और इनमें से कुछ बहुत ही अल्प संख्या में न्यू गिनी और इंडोनेशिया के संलग्न हिस्से और सुदूर उत्तर में फिलपिंस द्वीप-समूहों में पाये जाते हैं। इसकी केवल 15 प्रजातियां ऑस्ट्रेलिया के बाहर पायी जाती हैं और केवल 9 प्रजातियां ऑस्ट्रेलिया में नहीं होतीं.

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पपीता

पपीते के पके फल अन्य पौधों के साथ पपीते का फल लगा पेड़ पपीता एक फल है। कच्ची अवस्था में यह हरे रंग का होता है और पकने पर पीले रंग का हो जाता है। इसके कच्चे और पके फल दोनों ही उपयोग में आते हैं। कच्चे फलों की सब्जी बनती है। इन कारणों से घर के पास लगाने के लिये यह बहुत उत्तम फल है। इसके कच्चे फलों से दूध भी निकाला जाता है, जिससे पपेइन तैयार किया जाता है। पपेइन से पाचन संबंधी औषधियाँ बनाई जाती हैं पपीता पाचन शक्ति को बढ़ाता है। अत: इसके पक्के फल का सेवन उदरविकार में लाभदायक होता है। पपीता सभी उष्ण समशीतोष्ण जलवायु वाले प्रदेशों में होता है। .

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पहाड़ी मैना

आम हिल Myna (सारिका), कभी - कभी "मैना" वर्तनी और पूर्व बस"हिल Myna रूप में जाना जाता", सबसे अधिक मैना पक्षी में देखा पक्षीपालन, जहां यह अक्सर बस बाद के दो नामों से करने के लिए भेजा.

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पादप

पादप या उद्भिद (plant) जीवजगत का एक बड़ी श्रेणी है जिसके अधिकांश सदस्य प्रकाश संश्लेषण द्वारा शर्कराजातीय खाद्य बनाने में समर्थ होते हैं। ये गमनागम (locomotion) नहीं कर सकते। वृक्ष, फर्न (Fern), मॉस (mosses) आदि पादप हैं। हरा शैवाल (green algae) भी पादप है जबकि लाल/भूरे सीवीड (seaweeds), कवक (fungi) और जीवाणु (bacteria) पादप के अन्तर्गत नहीं आते। पादपों के सभी प्रजातियों की कुल संख्या की गणना करना कठिन है किन्तु प्रायः माना जाता है कि सन् २०१० में ३ लाख से अधिक प्रजाति के पादप ज्ञात हैं जिनमें से 2.7 लाख से अधिक बीज वाले पादप हैं। पादप जगत में विविध प्रकार के रंग बिरंगे पौधे हैं। कुछ एक को छोड़कर प्रायः सभी पौधे अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं। इनके भोजन बनाने की क्रिया को प्रकाश-संश्लेषण कहते हैं। पादपों में सुकेन्द्रिक प्रकार की कोशिका पाई जाती है। पादप जगत इतना विविध है कि इसमें एक कोशिकीय शैवाल से लेकर विशाल बरगद के वृक्ष शामिल हैं। ध्यातव्य है कि जो जीव अपना भोजन खुद बनाते हैं वे पौधे होते हैं, यह जरूरी नहीं है कि उनकी जड़ें हों ही। इसी कारण कुछ बैक्टीरिया भी, जो कि अपना भोजन खुद बनाते हैं, पौधे की श्रेणी में आते हैं। पौधों को स्वपोषित या प्राथमिक उत्पादक भी कहा जाता है। 'पादपों में भी प्राण है' यह सबसे पहले जगदीश चन्द्र बसु ने कहा था। पादपों का वैज्ञानिक अध्ययन वनस्पति विज्ञान कहलाता है। .

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पादप हार्मोन

ऑक्सिम हार्मोन के अभाव मे पादप (दांय) की असमान्य वृद्धि पादप हार्मोन, जिन्हें फाइटोहार्मोन भी कहते हैं, रसायन होते हैं जो पौधों के विकास को विनियमित करते हैं। पादप हार्मोन, संकेत अणु होते है और बहुत कम परिमाण में इनका उत्पादन पौधों में ही होता है। हार्मोन, स्थानीय रूप से लक्षित कोशिकाओं में कोशिकीय प्रक्रियाओं को विनियमित करते हैं और जब यह पौधे में दूसरे स्थानों पर पहुँचते हैं तो वहाँ कि कोशिकीय प्रक्रियाओं को विनियमित करते हैं। पौधों में जानवरों की तरह हार्मोन के उत्पादन और स्रावण के लिए ग्रंथियों नहीं होतीं। पादप हार्मोन, पौधे को निश्चित आकार देने के साथ, बीज विकास, पुष्पण का समय, फूलों के लिंग, पत्तियों और फलों के वार्धक्य (बुढा़पा) के लिए उत्तरदायी होते हैं। यह उन ऊतकों जो नीचे या ऊपर की ओर बढ़ते हैं, पत्ती और तने के विकास, फल विकास और पक्वन, पादप की दीर्घायु और यहां तक कि उसकी मृत्यु को भी प्रभावित करते हैं। हार्मोन, पादप के विकास के लिए महत्वपूर्ण है और इनके अभाव में पादप का विकास नामुमकिन है। पौधों में मुख्यतः पाँच प्रकार के हार्मोन पाए जाते हैं। वे हैं - अॉक्स़िन, जिब्रेलिक अम्ल, साइटोकाईनिन, इथाइलिन और एब्सिसिक अम्ल। श्रेणी:हार्मोन.

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पंजाब (भारत)

पंजाब (पंजाबी: ਪੰਜਾਬ) उत्तर-पश्चिम भारत का एक राज्य है जो वृहद्तर पंजाब क्षेत्र का एक भाग है। इसका दूसरा भाग पाकिस्तान में है। पंजाब क्षेत्र के अन्य भाग (भारत के) हरियाणा और हिमाचल प्रदेश राज्यों में हैं। इसके पश्चिम में पाकिस्तानी पंजाब, उत्तर में जम्मू और कश्मीर, उत्तर-पूर्व में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में हरियाणा, दक्षिण-पूर्व में केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ और दक्षिण-पश्चिम में राजस्थान राज्य हैं। राज्य की कुल जनसंख्या २,४२,८९,२९६ है एंव कुल क्षेत्रफल ५०,३६२ वर्ग किलोमीटर है। केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी है जोकि हरियाणा राज्य की भी राजधानी है। पंजाब के प्रमुख नगरों में अमृतसर, लुधियाना, जालंधर, पटियाला और बठिंडा हैं। 1947 भारत का विभाजन के बाद बर्तानवी भारत के पंजाब सूबे को भारत और पाकिस्तान दरमियान विभाजन दिया गया था। 1966 में भारतीय पंजाब का विभाजन फिर से हो गया और नतीजे के तौर पर हरियाणा और हिमाचल प्रदेश वजूद में आए और पंजाब का मौजूदा राज बना। यह भारत का अकेला सूबा है जहाँ सिख बहुमत में हैं। युनानी लोग पंजाब को पैंटापोटाम्या नाम के साथ जानते थे जो कि पाँच इकठ्ठा होते दरियाओं का अंदरूनी डेल्टा है। पारसियों के पवित्र ग्रंथ अवैस्टा में पंजाब क्षेत्र को पुरातन हपता हेंदू या सप्त-सिंधु (सात दरियाओं की धरती) के साथ जोड़ा जाता है। बर्तानवी लोग इस को "हमारा प्रशिया" कह कर बुलाते थे। ऐतिहासिक तौर पर पंजाब युनानियों, मध्य एशियाईओं, अफ़ग़ानियों और ईरानियों के लिए भारतीय उपमहाद्वीप का प्रवेश-द्वार रहा है। कृषि पंजाब का सब से बड़ा उद्योग है; यह भारत का सब से बड़ा गेहूँ उत्पादक है। यहाँ के प्रमुख उद्योग हैं: वैज्ञानिक साज़ों सामान, कृषि, खेल और बिजली सम्बन्धित माल, सिलाई मशीनें, मशीन यंत्रों, स्टार्च, साइकिलों, खादों आदि का निर्माण, वित्तीय रोज़गार, सैर-सपाटा और देवदार के तेल और खंड का उत्पादन। पंजाब में भारत में से सब से अधिक इस्पात के लुढ़का हुआ मीलों के कारख़ाने हैं जो कि फ़तहगढ़ साहब की इस्पात नगरी मंडी गोबिन्दगढ़ में हैं। .

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पक्वन

तीन प्रकार की ब्लैकबेरी- पकी हुई, पकती हुई, और अपक्व कच्ची और पकी हुई स्ट्राबेरी पक्वन या पकना (Ripening), फलों में होने वाली वह प्रक्रिया है जो उन्हें अधिक स्वादिष्ट बनाती है। सामान्यतः, जैसे-जैसे फल पकता है, वह अधिक मीठा, कम हरा, और अधिक मृदु होता जाता है। यद्यपि पकने पर फल की अम्लता बढ़ जाती है, किन्तु यह अम्लता इतनी अधिक नहीं होती कि फल खट्टा (tarter) लगने लगे। .

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पुथंडु

पुथंडु (तमिल: புத்தாண்டு), जिसे पुथुरूषम या तमिल नव वर्ष भी कहा जाता है, तमिल कैलेंडर पर वर्ष का पहला दिन है। तमिल तारीख को तमिल महीने चिधिराई के पहले दिन के रूप में, लन्नीसरोल हिंदू कैलेंडर के सौर चक्र के साथ स्थापित किया गया है। इसलिए यह हर साल ग्रेगोरियन कैलेंडर के 14 अप्रैल या उसके आस पास ही मनाया जाता हैं। यह दिन हिंदुओं के द्वारा पारंपरिक तौर पर नए साल के रूप में मनाया जाता है, लेकिन इसके नाम अलग अलग होते हैं जिसे केरल में विशु एवं मध्य और उत्तर भारत में वैसाखी जैसे अन्य नामों से जाना जाता है। इस दिन, तमिल लोग "पुट्टू वतुत्काका!" कहकर एक-दूसरे को बधाई देते हैं जो हिंदी के "नया साल मुबारक हो" के बराबर है। इस दिन ज्यादातर लोग अपने परिवार के साथ समय बिताते हैं एवं लोग अपने घर-द्वार की साफ सफाई करते हैं। एक थाली भी सजाते हैं जिसमे फलों, फूलों और अन्य शुभ वस्तुएं राखी जाती हैं। पुथंडु तमिलनाडु और पोंडिचेरी के बाहर रहने वाले तमिल हिंदुओं के द्वारा भी मनाया जाता है, जैसे श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, रीयूनियन, मॉरीशस और अन्य देशों में भी जहाँ तमिल लोग प्रवासी के तौर पर रहते हैं। .

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पुष्प

flower bouquet) पर चित्रकारी रेशम पर स्याही और रंग, १२ वीं शताब्दी की अंत-अंत में और १३ वीं शताब्दी के प्रारम्भ में. पुष्प, अथवा फूल, जनन संरचना है जो पौधों में पाए जाते हैं। ये (मेग्नोलियोफाईटा प्रकार के पौधों में पाए जाते हैं, जिसे एग्नियो शुक्राणु भी कहा जाता है। एक फूल की जैविक क्रिया यह है कि वह पुरूष शुक्राणु और मादा बीजाणु के संघ के लिए मध्यस्तता करे। प्रक्रिया परागन से शुरू होती है, जिसका अनुसरण गर्भधारण से होता है, जो की बीज के निर्माण और विखराव/ विसर्जन में ख़त्म होता है। बड़े पौधों के लिए, बीज अगली पुश्त के मूल रूप में सेवा करते हैं, जिनसे एक प्रकार की विशेष प्रजाति दुसरे भूभागों में विसर्जित होती हैं। एक पौधे पर फूलों के जमाव को पुष्पण (inflorescence) कहा जाता है। फूल-पौधों के प्रजनन अवयव के साथ-साथ, फूलों को इंसानों/मनुष्यों ने सराहा है और इस्तेमाल भी किया है, खासकर अपने माहोल को सजाने के लिए और खाद्य के स्रोत के रूप में भी। .

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पुंजफल

किसी एक पुष्प के अनेक गर्भकेसर में से प्रत्येक से पृथक-पृथक फल की उत्पत्ति होती है, ऐसे फलों को पुंजफल कहते हैं। श्रेणी:फल.

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प्रचलित गलत धारणाओं की सूची

यहाँ पर उन धारणाओं का विवरण दिया गया है जो जनसाधारण में व्यापक रूप से प्रचलित हैं किन्तु गहराई से विचार करने पर पता चलता है कि उनमें त्रुटि है। .

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प्राचीन भारत

मानव के उदय से लेकर दसवीं सदी तक के भारत का इतिहास प्राचीन भारत का इतिहास कहलाता है। .

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प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास

प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास उतना ही पुराना है जितना स्वयं प्रकृति। यह चिकित्सा विज्ञान आज की सभी चिकित्सा प्राणालियों से पुराना है। अथवा यह भी कहा जा सकता है कि यह दूसरी चिकित्सा पद्धतियों कि जननी है। इसका वर्णन पौराणिक ग्रन्थों एवं वेदों में मिलता है, अर्थात वैदिक काल के बाद पौराणिक काल में भी यह पद्धति प्रचलित थी। आधुनिक युग में डॉ॰ ईसाक जेनिग्स (Dr. Isaac Jennings) ने अमेरिका में 1788 में प्राकृतिक चिकित्सा का उपयोग आरम्भ कर दिया था। जोहन बेस्पले ने भी ठण्डे पानी के स्नान एवं पानी पीने की विधियों से उपचार देना प्रारम्भ किया था। महाबग्ग नामक बोध ग्रन्थ में वर्णन आता है कि एक दिन भगवान बुद्ध के एक शिष्य को सांप ने काट लिया तो उस समय विष के नाश के लिए भगवान बुद्ध ने चिकनी मिट्टी, गोबर, मूत्र आदि को प्रयोग करवाया था और दूसरे भिक्षु के बीमार पड़ने पर भाप स्नान व उष्ण गर्म व ठण्डे जल के स्नान द्वारा निरोग किये जाने का वर्णन 2500 वर्ष पुरानी उपरोक्त घटना से सिद्ध होता है। प्राकृतिक चिकित्सा के साथ-2 योग एवं आसानों का प्रयोग शारीरिक एवं आध्यात्मिक सुधारों के लिये 5000 हजारों वर्षों से प्रचलन में आया है। पतंजलि का योगसूत्र इसका एक प्रामाणिक ग्रन्थ है इसका प्रचलन केवल भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी है। प्राकृतिक चिकित्सा का विकास (अपने पुराने इतिहास के साथ) प्रायः लुप्त जैसा हो गया था। आधुनिक चिकित्सा प्राणालियों के आगमन के फलस्वरूप इस प्रणाली को भूलना स्वाभाविक भी था। इस प्राकृतिक चिकित्सा को दोबारा प्रतिष्ठित करने की मांग उठाने वाले मुख्य चिकित्सकों में बड़े नाम पाश्चातय देशों के एलोपैथिक चिकित्सकों का है। ये वो प्रभावशाली व्यक्ति थे जो औषधि विज्ञान का प्रयोग करते-2 थक चुके थे और स्वयं रोगी होने के बाद निरोग होने में असहाय होते जा रहे थे। उन्होने स्वयं पर प्राकृतिक चिकित्सा के प्रयोग करते हुए स्वयं को स्वस्थ किया और अपने शेष जीवन में इसी चिकित्सा पद्धति द्वारा अनेकों असाध्य रोगियों को उपचार करते हुए इस चिकित्सा पद्धति को दुबारा स्थापित करने की शुरूआत की। इन्होने जीवन यापन तथा रोग उपचार को अधिक तर्कसंगत विधियों द्वारा किये जाने का शुभारम्भ किया। प्राकृतिक चिकित्सा संसार मे प्रचलित सभी चिकित्सा प्रणाली से पुरानी है आदिकाल के ग्रंथों मे जल चिकित्सा व उपवास चिकित्सा का उल्लेख मिलता है पुराण काल मे (उपवास)को लोग अचूक चिकित्सा माना करते थे .

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पेय-पदार्थ

एक कार्बोनेटेड पेय-पदार्थ. एक पेय-पदार्थ या पेय, कोई द्रव होता है, जो विशिष्ट रूप से मनुष्य के द्वारा ग्रहण किये जाने के लिये तैयार किया जाता है। मनुष्य की बुनियादी आवश्यकता की पूर्ति करने के अलावा, पेय मानव समाज की संस्कृति के एक भाग का निर्माण भी करते हैं। .

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फलदार वृक्ष

300px उन वृक्षों को फलदार वृक्ष कहते हैं जिन पर लगने वाले फल मनुष्य एवं कुछ जानवरों के खाने के काम आते हैं। पुष्प वाले सभी वृक्ष फल भी देते हैं। फल वास्तव में पुष्प का पका हुआ अण्डाशय ही है। इनमें एक या अधिक बीज होते हैं। किन्तु उद्यानिकी में 'फलदार वृक्ष' से तात्पर्य केवल उन वृक्षों से है जो मानव के भोजन के काम आने वाले फल देते हैं। .

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फलों की खेती

सेब के बाग साधारणतया लोगों का यह विचार है कि फलों का उत्पादन लाभप्रद नहीं होता। इस धारणा के कई कारण हैं: इन सब कारणों से पेड़ों की फसल अच्छी नहीं होती और बाग से कोई लाभ नहीं होता। यदि उचित ढंग से बाग लगाया जाए और बाद में भी ठीक देखभाल हो, तो लाभ न होने का कोई कारण नहीं है। .

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फ़ालसा

फालसा के कच्चे और पके फल फालसा दक्षिणी एशिया में भारत, पाकिस्तान से कम्बोडिया तक के क्षेत्र मूल का फल है। इसकी पैदावार अन्य उषणकटिबन्धीय क्षेत्रों में भी खूब की जाती रही है।Flora of Pakistan: Pacific Island Ecosystems at Risk: इसकी झाड़ी ८ मी तक की हो सकती है और पत्तियां चौड़ी गोलाकार, 5–18 सें मी लम्बी होती हैं। इसके फ़ूल गुच्छों में होते हैं, जिनमें एक-एक पुष्प २ सेंमी व्यास का होता है और इसमें १२ मि.मी की ५ पंखुड़ियाम होती हैं। इसके फल ५-१२ मि.मी व्यास के गोलाकार फ़ालसई वर्ण के होते हैं जो पकने पर लगभग काले हो जाते हैं। Flora of Western Australia: .

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फ़्लोरिडा

फ्लोरिडा संयुक्त राज्य के दक्षिणपूर्वी क्षेत्र में स्थित एक राज्य है, जिसके उत्तर-पश्चिमी सीमा पर अलाबामा और उत्तरी सीमा पर जॉर्जिया स्थित है।संयुक्त राज्य में शामिल होने वाला यह 27वां राज्य था। इस राज्य के भूस्थल का अधिकांश भाग एक बड़ा प्रायद्वीप है जिसके पश्चिम में मैक्सिको की खाड़ी और पूर्व में अटलांटिक महासागर है। साधारणतया इसकी गर्म जलवायु की वजह से इसे "सनशाइन स्टेट" के रूप में उपनामित किया गया है। इसके उत्तरी और मध्य क्षेत्रों में उपोष्णकटिबंधीय एवं दक्षिणी भाग में उष्णकटिबंधीय जलवायु पाई जाती है। इस राज्य में चार बड़े शहरी क्षेत्र, कई छोटे-छोटे औद्योगिक नगर और बहुत से छोटे कस्बें हैं।संयुक्त राज्य के जनगणना विभाग (यूनाइटेड स्टेट्स सेंसस ब्यूरो) का अनुमान है कि 2008 में इस राज्य की जनसंख्या 18,328,340 थी और फ्लोरिडा, U.S. के चौथे सर्वाधिक आबादी वाले राज्य के रूप में श्रेणीत था। टलहसी, इस राज्य की राजधानी और मियामी सबसे बड़ा महानगरीय क्षेत्र है। फ्लोरिडा के निवासियों को सटीक तौर पर "फ्लोरिडियन्स" के रूप में जाना जाता है। .

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बड़ी दुधी

बड़ी दुधी बड़ी दुधी (वानस्पतिक नाम:Euphorbia hirta) एक खरपतवार है। बडी दुद्धी एकवर्षीय खरपतवार है। यह ऊँची भूमि में उगता है। वर्षा ऋतु में अधिक वृद्धि होती है। पत्तियां व तना तोड़ने पर दूध के रंग जैसा तरल पदार्थ निकलता हैं। जडें मूसला होती हैं लेकिन अधिक गहराई तक भूमि में नहीं जाती हैं। तना कमजोर होता है जो भूमि पर फैलकर बढता है तथा तने पर छोटे-छोटे बाल होते हैं। पत्तियां दीर्घायत (ओबलांग), लाल रंग लिए हुए तथा सिरा नुकीला होता है। फूल कम्पोजिट, फल कैप्सूल बाल युक्त, ०.१२५ सेमी लम्बे होते हैं। .

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बरगद

220px बरगद बहुवर्षीय विशाल वृक्ष है। यह एक स्थलीय द्विबीजपत्री एंव सपुष्पक वृक्ष है। इसका तना सीधा एंव कठोर होता है। इसकी शाखाओं से जड़े निकलकर हवा में लटकती हैं तथा बढ़ते हुए जमीन के अंदर घुस जाती हैं एंव स्तंभ बन जाती हैं। इन जड़ों को बरोह या प्राप जड़ कहते हैं। इसका फल छोटा गोलाकार एंव लाल रंग का होता है। इसके अन्दर बीज पाया जाता है। इसका बीज बहुत छोटा होता है किन्तु इसका पेड़ बहुत विशाल होता है। इसकी पत्ती चौड़ी, एंव लगभग अण्डाकार होती है। इसकी पत्ती, शाखाओं एंव कलिकाओं को तोड़ने से दूध जैसा रस निकलता है जिसे लेटेक्स कहा जाता है। .

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बाँस

बाँस, ग्रामिनीई (Gramineae) कुल की एक अत्यंत उपयोगी घास है, जो भारत के प्रत्येक क्षेत्र में पाई जाती है। बाँस एक सामूहिक शब्द है, जिसमें अनेक जातियाँ सम्मिलित हैं। मुख्य जातियाँ, बैंब्यूसा (Bambusa), डेंड्रोकेलैमस (नर बाँस) (Dendrocalamus) आदि हैं। बैंब्यूसा शब्द मराठी बैंबू का लैटिन नाम है। इसके लगभग २४ वंश भारत में पाए जाते हैं। बाँस एक सपुष्पक, आवृतबीजी, एक बीजपत्री पोएसी कुल का पादप है। इसके परिवार के अन्य महत्वपूर्ण सदस्य दूब, गेहूँ, मक्का, जौ और धान हैं। यह पृथ्वी पर सबसे तेज बढ़ने वाला काष्ठीय पौधा है। इसकी कुछ प्रजातियाँ एक दिन (२४ घंटे) में १२१ सेंटीमीटर (४७.६ इंच) तक बढ़ जाती हैं। थोड़े समय के लिए ही सही पर कभी-कभी तो इसके बढ़ने की रफ्तार १ मीटर (३९ मीटर) प्रति घंटा तक पहुँच जाती है। इसका तना, लम्बा, पर्वसन्धि युक्त, प्रायः खोखला एवं शाखान्वित होता है। तने को निचले गांठों से अपस्थानिक जड़े निकलती है। तने पर स्पष्ट पर्व एवं पर्वसन्धियाँ रहती हैं। पर्वसन्धियाँ ठोस एवं खोखली होती हैं। इस प्रकार के तने को सन्धि-स्तम्भ कहते हैं। इसकी जड़े अस्थानिक एवं रेशेदार होती है। इसकी पत्तियाँ सरल होती हैं, इनके शीर्ष भाग भाले के समान नुकीले होते हैं। पत्तियाँ वृन्त युक्त होती हैं तथा इनमें सामानान्तर विन्यास होता है। यह पौधा अपने जीवन में एक बार ही फल धारण करता है। फूल सफेद आता है। पश्चिमी एशिया एवं दक्षिण-पश्चिमी एशिया में बाँस एक महत्वपूर्ण पौधा है। इसका आर्थिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। इससे घर तो बनाए ही जाते हैं, यह भोजन का भी स्रोत है। सौ ग्राम बाँस के बीज में ६०.३६ ग्राम कार्बोहाइड्रेट और २६५.६ किलो कैलोरी ऊर्जा रहती है। इतने अधिक कार्बोहाइड्रेट और इतनी अधिक ऊर्जा वाला कोई भी पदार्थ स्वास्थ्यवर्धक अवश्य होगा। ७० से अधिक वंशो वाले बाँस की १००० से अधिक प्रजातियाँ है। ठंडे पहाड़ी प्रदेशों से लेकर उष्ण कटिबंधों तक, संपूर्ण पूर्वी एशिया में, ५०० उत्तरी अक्षांश से लेकर उत्तरी आस्ट्रेलिया तथा पश्चिम में, भारत तथा हिमालय में, अफ्रीका के उपसहारा क्षेत्रों तथा अमेरिका में दक्षिण-पूर्व अमेरिका से लेकर अर्जेन्टीना एवं चिली में (४७० दक्षिण अक्षांश) तक बाँस के वन पाए जाते हैं। बाँस की खेती कर कोई भी व्यक्ति लखपति बन सकता है। एक बार बाँस खेत में लगा दिया जायें तो ५ साल बाद वह उपज देने लगता है। अन्य फसलों पर सूखे एवं कीट बीमारियो का प्रकोप हो सकता है। जिसके कारण किसान को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। लेकिन बाँस एक ऐसी फसल है जिस पर सूखे एवं वर्षा का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है। बाँस का पेड़ अन्य पेड़ों की अपेक्षा ३० प्रतिशत अधिक ऑक्सीजन छोड़ता और कार्बन डाईऑक्साइड खींचता है साथ ही यह पीपल के पेड़ की तरह दिन में कार्बन डाईऑक्साइड खींचता है और रात में आक्सीजन छोड़ता है। .

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बाग़बानी

बाग़बानी (Gardening) पौधों को उगाने व उनकी देख रेख करने की क्रिया को कहते हैं। यह उद्यान विज्ञान (horticulture) का भाग है और इसमें फूलों और अन्य पौधों को सजावट के लिये; जड़ वाले, पत्तेदार व फलदार पौधें और जड़ी-बूटीयाँ खाने के लिये, और अन्य पौधे रंगों, औष्धियों और श्रृंगार-सामग्रियों के लिये उगाये जाते हैं। .

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बाग़ान

बाग़ान (plantation) ऐसा भूक्षेत्र या जलक्षेत्र होता है जहाँ व्यापारिक ध्येय से एक ही प्रकार के पौधे की कृषि करी जाए। विश्व में कपास, चाय, फल, कॉफ़ी, ईख, रबड़, इत्यादि के बाग़ान मिलते हैं। अक्सर यह किसी स्थान की प्राकृतिक परिस्थितियों का लाभ उठाने के लिए स्थापित करे जाते हैं। मसलन भूमि, वर्षा और तापमान के अनुकूल होने के कारण भारत के असम राज्य में चाय, संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलीफ़ोर्निया राज्य में बादाम और फ़िलिपीन्ज़ के बिकोल क्षेत्र में नारियल के बाग़ान लगे हुए हैं। कुछ स्थानों पर लकड़ी के लिए काटे जाने वाले वृक्षों के बाग़ान भी लगाए जाते हैं, मसलन भारत में इस प्रयोग के लिए शीशम के कई बाग़ान हैं। .

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बिल्व

बिल्व, बेल या बेलपत्थर, भारत में होने वाला एक फल का पेड़ है। इसे रोगों को नष्ट करने की क्षमता के कारण बेल को बिल्व कहा गया है। इसके अन्य नाम हैं-शाण्डिल्रू (पीड़ा निवारक), श्री फल, सदाफल इत्यादि। इसका गूदा या मज्जा बल्वकर्कटी कहलाता है तथा सूखा गूदा बेलगिरी। बेल के वृक्ष सारे भारत में, विशेषतः हिमालय की तराई में, सूखे पहाड़ी क्षेत्रों में ४००० फीट की ऊँचाई तक पाये जाते हैं।।अभिव्यक्ति पर। दीपिका जोशी मध्य व दक्षिण भारत में बेल जंगल के रूप में फैला पाया जाता है। इसके पेड़ प्राकृतिक रूप से भारत के अलावा दक्षिणी नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया एवं थाईलैंड में उगते हैं। इसके अलाव इसकी खेती पूरे भारत के साथ श्रीलंका, उत्तरी मलय प्रायद्वीप, जावा एवं फिलीपींस तथा फीजी द्वीपसमूह में की जाती है।। वेबग्रीन पर धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण इसे मंदिरों के पास लगाया जाता है। हिन्दू धर्म में इसे भगवान शिव का रूप ही माना जाता है व मान्यता है कि इसके मूल यानि जड़ में महादेव का वास है तथा इनके तीन पत्तों को जो एक साथ होते हैं उन्हे त्रिदेव का स्वरूप मानते हैं परंतु पाँच पत्तों के समूह वाले को अधिक शुभ माना जाता है, अतः पूज्य होता है। धर्मग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है।।अखिल विश्व गायत्री परिवार इसके वृक्ष १५-३० फीट ऊँचे कँटीले एवं मौसम में फलों से लदे रहते हैं। इसके पत्ते संयुक्त विपत्रक व गंध युक्त होते हैं तथा स्वाद में तीखे होते हैं। गर्मियों में पत्ते गिर जाते हैं तथा मई में नए पुष्प आ जाते हैं। फल मार्च से मई के बीच आ जाते हैं। बेल के फूल हरी आभा लिए सफेद रंग के होते हैं व इनकी सुगंध भीनी व मनभावनी होती है। .

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बुलबुल

बुलबुल, शाखाशायी गण के पिकनोनॉटिडी कुल (Pycnonotidae) का पक्षी है और प्रसिद्ध गायक पक्षी "बुलबुल हजारदास्ताँ" से एकदम भिन्न है। ये कीड़े-मकोड़े और फल फूल खानेवाले पक्षी होते हैं। ये पक्षी अपनी मीठी बोली के लिए नहीं, बल्कि लड़ने की आदत के कारण शौकीनों द्वारा पाले जाते रहे हैं। यह उल्लेखनीय है कि केवल नर बुलबुल ही गाता है, मादा बुलबुल नहीं गा पाती है। बुलबुल कलछौंह भूरे मटमैले या गंदे पीले और हरे रंग के होते हैं और अपने पतले शरीर, लंबी दुम और उठी हुई चोटी के कारण बड़ी सरलता से पहचान लिए जाते हैं। विश्व भर में बुलबुल की कुल ९७०० प्रजातियां पायी जाती हैं। इनकी कई जातियाँ भारत में पायी जाती हैं, जिनमें "गुलदुम बुलबुल" सबसे प्रसिद्ध है। इसे लोग लड़ाने के लिए पालते हैं और पिंजड़े में नहीं, बल्कि लोहे के एक (अंग्रेज़ी अक्षर -टी) (T) आकार के चक्कस पर बिठाए रहते हैं। इनके पेट में एक पेटी बाँध दी जाती है, जो एक लंबी डोरी के सहारे चक्कस में बँधी रहती है। .

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ब्रूस ली

ब्रूस ली (जून फान,李振藩,李小龙; पिनयिन: Lǐ Zhènfān, Lǐ Xiăolóng; 27 नवंबर, 1940 - 20 जुलाई, 1973) अमेरिका में जन्मे, चीनी हांगकांग अभिनेता, मार्शल कलाकार, दार्शनिक, फ़िल्म निर्देशक, पटकथा लेखक, विंग चुन के अभ्यासकर्ता और जीत कुन डो अवधारणा के संस्थापक थे। कई लोग उन्हें 20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली मार्शल कलाकार और एक सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में मानते हैं। वे अभिनेता ब्रैनडन ली और अभिनेत्री शैनन ली के पिता भी थे। उनका छोटा भाई रॉबर्ट एक संगीतकार और द थंडरबर्ड्स नामक हांगकांग के एक लोकप्रिय बीट बैंड का सदस्य था। ली सैन फ्रांसिस्को, कैलिफ़ोर्निया में पैदा हुए थे और किशोर वय के अंत से कुछ पहले तक हांगकांग में पले-बढ़े. उनकी हांगकांग और हॉलीवुड निर्मित फ़िल्मों ने, परंपरागत हांगकांग मार्शल आर्ट फ़िल्मों को लोकप्रियता और ख्याति के एक नए स्तर पर पहुंचा दिया और पश्चिम में चीनी मार्शल आर्ट के प्रति दिलचस्पी की दूसरी प्रमुख लहर छेड़ दी। उनकी फ़िल्मों की दिशा और लहजे ने मार्शल आर्ट तथा हांगकांग के साथ-साथ बाक़ी दुनिया में मार्शल आर्ट फ़िल्मों को परिवर्तित और प्रभावित किया। वे मुख्य रूप से पांच फ़ीचर फ़िल्मों में अपने अभिनय के लिए जाने जाते हैं, लो वाई की द बिग बॉस (1971) और फ़िस्ट ऑफ़ फ़्यूरी (1972); ब्रूस ली द्वारा निर्देशित और लिखित वे ऑफ़ द ड्रैगन (1972); वार्नर ब्रदर्स की एंटर द ड्रैगन (1973), रॉबर्ट क्लाउस द्वारा निर्देशित और द गेम ऑफ़ डेथ (1978). ली एक अनुकरणीय व्यक्तित्व बन गए, विशेष रूप से चीनियों में, क्योंकि उन्होंने अपनी फिल्मों में चीनी राष्ट्रीय गौरव और चीनी राष्ट्रवाद का चित्रण किया। वे मुख्यतः चीनी मार्शल आर्ट, विशेषकर विंग चुन, का अभ्यास करते थे (लोकप्रिय पाश्चात्यीकृत शब्दावली में "कुंग फू, ") .

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बैंगन

बैंगन का फला हुआ पौधा सब्ज़ी जिसके सिर पर ताज है:- '''बैंगन''' बैगन (Brinjal) एक सब्जी है। बैंगन भारत में ही पैदा हुआ और आज आलू के बाद दूसरी सबसे अधिक खपत वाली सब्जी है। विश्व में चीन (54 प्रतिशत) के बाद भारत बैंगन की दूसरी सबसे अधिक पैदावार (27 प्रतिशत) वाले देश हैं। यह देश में 5.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में उगाया जाता है। बैंगन का पौधा २ से ३ फुट ऊँचा खड़ा लगता है। फल बैंगनी या हरापन लिए हुए पीले रंग का, या सफेद होता है और कई आकार में, गोल, अंडाकार, या सेव के आकार का और लंबा तथा बड़े से बड़ा फुटबाल गेंद सा हो सकता है। लंबाई में एक फुट तक का हो सकता है। बैंगन भारत का देशज है। प्राचीन काल से भारत से इसकी खेती होती आ रही है। ऊँचे भागों को छोड़कर समस्त भारत में यह उगाया जाता है। .

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मरे-डार्लिंग बेसिन

मरे-डार्लिंग बेसिन का मानचित्र मरे-डार्लिंग बेसिन मरे तथा उसकी सहायक डार्लिंग तथा मिर्रमबिज नदियों द्वारा लायी गयी मिट्टी से बना हुआ समतल व उपजाऊ मैदान है। इस प्रदेश के अन्तर्गत न्यूसाउथवाल्स, विक्टोरिया का उत्तरी भाग तथा दक्षिणी आस्ट्रेलिया का दक्षिणी-पूर्वी भाग सम्मिलित हैं। इस नदी घाटी के पूर्व व दक्षिण में ग्रेट डिवाइडिंग रेंज तथा पश्चिम में बैरियर पर्वत हैं। उत्तर में ग्रे पर्वत इसे आयर झील के निम्न प्रदेश से अलग करता है। मरे-डार्लिंग बेसिन का उत्तरी भाग वृष्टिछाया प्रदेश में पड़ने के कारण कम वर्षा पाता है और यहाँ प्रेयरी तुल्य जलवायु मिलती है। दक्षिणी भाग में वर्षा मुख्यतः जाड़े में होती है अतः यहाँ भूमध्यसागरीय जलवायु मिलती है। जाड़े का औसत तापक्रम १००सेंटीग्रेड तथा गर्मी का औसत तापक्रम २७०सेंटीग्रेड रहता है। इस बेसिन का उत्तरी भाग समशीतोष्ण घास के मैदान से ढका है तथा दक्षिणी भाग में युकलिप्टस के पेड़ अधिक मिलते हैं। कृषि तथा पशुपालन मरे-डार्लिंग बेसिन के प्रमुख व्यवसाय हैं। यहाँ के उपजाऊ खेतों में गेहूँ, जई और मक्का की आधुनिक ढंग से खेती की जाती है तथा उद्यानों में अंगूर, सेव, नारंगी, नींबू आदि फल पैदा होते हैं। समशीतोष्ण जलवायु एवं उत्तम चारागाहों की अधिकता के कारण शुष्क भागों तथा पहाड़ी ढालों पर भेड़ें पाली जाती हैं। इस क्षेत्र की मैरिनो नामक भेड़ ऊन-उत्पादन के लिए विश्वविख्यात हैं। संसार की सबसे अधिक भेड़ों की संख्या यहीं पर है। यहाँ कई प्रकार के खनिज भी मिलते हैं जिनमें- सोना, कोयला, शीशा तथा चाँदी मुख्य हैं। सोने की प्रमुख खानें बाथस्रट व मुडगी में हैं। यहाँ से पशुओं के मांस को डिब्बों में बन्द करके विदेशों में भेजा जाता है। मक्खन, पनीर, जमाया एवं सुखाया हुआ दूध तैयार करने का उद्योग विकिसित है। एडिलेड तथा सिडनी में इंजीनियरिंग, वस्त्र तथा रसायन के कारखाने हैं। इस सुन्दर एवं मनोहर जलवायु वाले प्रदेश का सर्वप्रमुख नगर सिडनी है जिसे उसकी सुन्दरता के कारण दक्षिण की रानी कहा जाता हैं। .

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मार्केट यार्ड

मार्केट यार्ड भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे ज़िले का एक क्षेत्र अर्थात नेबरहुड है ' यह पुणे ज़िले का एक मार्केट प्लेस है। यह महर्षि नगर इलाके में गुलटेकड़ी के पास स्थित है। यह पुणे में एक महत्वपूर्ण व्यापारिक क्षेत्र भी गिना जाता है। यह फल,सब्जियों, फूलों और थोक बाजार के रूप में प्रसिद्ध है ' .

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मिर्च

मिर्च मिर्च कैप्सिकम वंश के एक पादप का फल है, तथा यह सोलेनेसी (Solanaceae) कुल का एक सदस्य है। वनस्पति विज्ञान में इस पौधे को एक बेरी की झाड़ी समझा जाता है। स्वाद, तीखापन और गूदे की मात्रा, के अनुसार इनका उपयोग एक सब्जी (शिमला मिर्च) या एक मसाले (लाल मिर्च) के रूप में किया जाता है। मिर्च प्राप्त करने के लिए इसकी खेती की जाती है। मिर्च का जन्म स्थान दक्षिण अमेरिका है जहाँ से यह पूरे विश्व में फैली। अब इनकी विभिन्न किस्में पूरे विश्व में उगायी जा रही हैं। मिर्च का प्रयोग एक औषधि के रूप में भी होता है। मिर्ची का तीखापन केप्सेसिन के कारण होता है। .

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मोम की पर्त

वैक्स कोटिंग वाले फल चमकदार होने से मन लुभाते हैं मोम की पर्त (अंग्रेज़ी:वैक्स कोटिंग) फलों और सब्जियों को अधिक दिनों तक सुरक्षित रखने का आधुनिक तरीका है, किंतु इसे प्रेज़र्वेशन से भिन्न समझें।।हिन्दुस्तान लाइव।।३ अक्टूबर,२००९। सौरभ सुमन इसका प्रयोग विशेषकर परिवहन के समय फलों और सब्जियों को सड़ने और गलने से बचाने के लिए किया जाता है। इसमें एक प्रकार का खाद्य मोम (एडीबल वैक्स) का प्रयोग होता है। इस खाद्य मोम की एक महीन पर्त फलों और सब्जियों के छिलके के ऊपर चढ़ाई जाती है। इससे ये फल, इत्यादि आठ से बारह दिनों तक मौसम के प्रभाव से बचे रहते हैं व सड़ते या गलते नहीं हैं।।। बिज़नेस भास्कर।२१ सितंबर, २००९। डॉ॰ एस मुखर्जी, कृषि अनुसंधान केंद्र दुर्गापुरा, जयपुर यह मोम स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता है, यदि खाद्य मोम ही प्रयोग किया गया है। एक सर्वेक्षण के अनुसार कृषि उत्पादों का लगभग ६५ प्रतिशत ही बाजारों तक पहुंच पाता है, बाकी परिवहन के दौरान खराब होकर बेकार हो जाता है। इस प्रकार किसानों के लाभ में भी फर्क पड़ता है, व दूसरी ओर ये फलों के मूल्व की वृद्धि करता है। इस प्रक्रिया के लिए प्रयोग होने वाला के खाद्य श्रेणी का मोम सेंपरफ्रेश है, जिससे फलों और सब्जियों पर कोटिंग करने से इनकी ताजगी कई दिनों तक बनी रहती है। फलों और सब्जियों पर पर्त चढ़ाने का यह बहुत सस्ता तरीका है। साधारण मोम की पर्त मात्र उन फलों व सब्जियों पर चढ़ायी जाती थीं, जिनके छिलके मोटे होते थे, जैसे लौकी, तुरई आदि, किंतु बाजारों में उपलब्ध नये मोम सेंपरफ्रेश को किसी भी तरह के छिलके (मोटे हों या पतले) वाले फलों और सब्जियों पर चढ़ाई जा सकती है। सेंपरफ्रेश से पर्त चढ़ाने के लिए उसमें ओलिक एसिड और ट्राईइथेलॉल एमाइन का मिश्रण बनाते हैं। फिर इस घोल से फलों और सब्जियों पर छिड़काव किया जाता है। अन्य खाद्य मोम की पर्त चढ़ाने के लिए सब्जियों को मोम के पिछले घोल में डुबाकर निकाल लिया जाता है और इसे छाया में सूखा लिया जाता है। इस प्रक्रिया से सब्जियों पर जल्दी फफूंद नहीं लगती। यहां ये ध्यानयोग्य है, कि सेंपरफ्रेश की पर्त चढ़ाने के बाद भी फलों और सब्जियों को छाया में सुखाना उतना ही आवश्यक होता है। इस प्रकार रखरखाव व परिवहन की असुविधा के कारण किसानों को होने वाले भारी नुकसान से बचने का यह बेहतर तरीका है। सेंपरफ्रेश एवं अन्य खाद्य मोम आसानी से बाजार में उपलब्ध होते हैं। फलों और सब्जियों पर इस मोम की पर्त चढ़ाने का खर्च लगभग १५-१५ पैसे प्रति किलो आता है। इसके अलावा इस पर्त को चढ़ाने के बाद फलों में चमक भी आ जाती है, जो ग्राहकों को लुभाती हैं। कृषि अनुसंधानों में यह पाया गया है कि कानरेवा वैक्स की पर्त चढ़ाने से सब्जियों की चमक तो बढ़ती ही है, साथ ही नमी बरकरार रहने से लंबी अवधि तक इनको भंडारगृह में रख कर किसान इनको ओने-पौने दामों पर बेचने की मजबूरी से बच सकते हैं। मानक मोम की पर्त के अलावा अन्य सस्ते उपलब्ध मोम स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी हो सकते हैं। इनमें खासकर विदेशों से आने वाले फलों आदि से सावधाण रहना चाहिये। छत्रपति शाहूजी महराज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ के औषधि विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो॰ सी.जी.

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यूरोप

यूरोप पृथ्वी पर स्थित सात महाद्वीपों में से एक महाद्वीप है। यूरोप, एशिया से पूरी तरह जुड़ा हुआ है। यूरोप और एशिया वस्तुतः यूरेशिया के खण्ड हैं और यूरोप यूरेशिया का सबसे पश्चिमी प्रायद्वीपीय खंड है। एशिया से यूरोप का विभाजन इसके पूर्व में स्थित यूराल पर्वत के जल विभाजक जैसे यूराल नदी, कैस्पियन सागर, कॉकस पर्वत शृंखला और दक्षिण पश्चिम में स्थित काले सागर के द्वारा होता है। यूरोप के उत्तर में आर्कटिक महासागर और अन्य जल निकाय, पश्चिम में अटलांटिक महासागर, दक्षिण में भूमध्य सागर और दक्षिण पश्चिम में काला सागर और इससे जुड़े जलमार्ग स्थित हैं। इस सबके बावजूद यूरोप की सीमायें बहुत हद तक काल्पनिक हैं और इसे एक महाद्वीप की संज्ञा देना भौगोलिक आधार पर कम, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आधार पर अधिक है। ब्रिटेन, आयरलैंड और आइसलैंड जैसे देश एक द्वीप होते हुए भी यूरोप का हिस्सा हैं, पर ग्रीनलैंड उत्तरी अमरीका का हिस्सा है। रूस सांस्कृतिक दृष्टिकोण से यूरोप में ही माना जाता है, हालाँकि इसका सारा साइबेरियाई इलाका एशिया का हिस्सा है। आज ज़्यादातर यूरोपीय देशों के लोग दुनिया के सबसे ऊँचे जीवनस्तर का आनन्द लेते हैं। यूरोप पृष्ठ क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का दूसरा सबसे छोटा महाद्वीप है, इसका क्षेत्रफल के १०,१८०,००० वर्ग किलोमीटर (३,९३०,००० वर्ग मील) है जो पृथ्वी की सतह का २% और इसके भूमि क्षेत्र का लगभग ६.८% है। यूरोप के ५० देशों में, रूस क्षेत्रफल और आबादी दोनों में ही सबसे बड़ा है, जबकि वैटिकन नगर सबसे छोटा देश है। जनसंख्या के हिसाब से यूरोप एशिया और अफ्रीका के बाद तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला महाद्वीप है, ७३.१ करोड़ की जनसंख्या के साथ यह विश्व की जनसंख्या में लगभग ११% का योगदान करता है, तथापि, संयुक्त राष्ट्र के अनुसार (मध्यम अनुमान), २०५० तक विश्व जनसंख्या में यूरोप का योगदान घटकर ७% पर आ सकता है। १९०० में, विश्व की जनसंख्या में यूरोप का हिस्सा लगभग 25% था। पुरातन काल में यूरोप, विशेष रूप से यूनान पश्चिमी संस्कृति का जन्मस्थान है। मध्य काल में इसी ने ईसाईयत का पोषण किया है। यूरोप ने १६ वीं सदी के बाद से वैश्विक मामलों में एक प्रमुख भूमिका अदा की है, विशेष रूप से उपनिवेशवाद की शुरुआत के बाद.

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रस (वनस्पति)

संतरे का रस रस फल या सब्जी के ऊतकों में निहित एक प्राकृतिक तरल है। रस को ताजे फल या सब्जियों से उष्मा या विलायक (सॉल्वैंट) का प्रयोग किए बिना, या तो याँत्रिक विधि से निचोड़ कर या फिर सिझा कर निकाला जाता है। उदाहरण के लिए, संतरे का रस, संतरे के फल को दबा कर या निचोड़ कर निकाला जाता है। ताजा फल और सब्जियों का रस घर में हाथ या बिजली के जूसर की सहायता से निकाला जा सकता है। व्यवसायिक रूप से निर्मित कई रसों से रेशे और गूदे को छान कर अलग कर देते हैं, लेकिन आजकल रेशे और गूदे से युक्त ताजा संतरे का रस एक लोकप्रिय पेय है। रस को आजकल गाढ़ा करके या जमा कर के भी विपणित किया जाता है और इस रस को पुन: पीने योग्य बनाने के लिए इसमे पानी मिलाना पड़ता है। ताजे निचोड़े रस की तुलना मे इसका स्वाद काफ़ी अलग होता है। फलों के रस के संरक्षण और प्रसंस्करण के लिए आम तरीकों मे डिब्बाबंदी, पास्च्युरीकरण, जमाना, वाष्पीकरण और स्प्रे शुष्कण आदि शामिल हैं। .

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रसबेर

रसभरी की चार प्रजातियों के फल.दक्षिणावर्त शीर्ष बाएं से: बौल्डर रसभरी, कोरियाई रसभरी, ऑस्ट्रेलियाई देशी रसभरी, पश्चिम भारतीय रसभरी रूबस इडास और आर. स्ट्रिगोसस के बीच आमतौर पर रसभरी की खेती रूबस जाति में पौधे की प्रजातियों के एक समूह का खाने योग्य फल है रसभरी (raspberry), इनमें से अधिकांश उपजाति आइडिओबेटस (Idaeobatus) की हैं; यह नाम खुद भी इन पौधों के लिए प्रयुक्त होता है। रसभरी बारहमासी होती हैं। नाम मूलतः रूबस इडाइअस (Rubus idaeus) नामक यूरोपीय प्रजाति के लिए संदर्भित है (लाल फलों के साथ) और अब भी इसके मानक अंग्रेजी नाम के रूप में प्रयुक्त होता है।वनस्पतियों के एनडब्ल्यू (NW) यूरोप: रूबस इडेयस .

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रामफल

रामफल रामफल रामफल (वानस्पतिक नाम: Annona reticulata) एक फल है। श्रेणी:फल.

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रक्ताल्पता

रक्ताल्पता (रक्त+अल्पता), का साधारण मतलब रक्त (खून) की कमी है। यह लाल रक्त कोशिका में पाए जाने वाले एक पदार्थ (कण) रूधिर वर्णिका यानि हीमोग्लोबिन की संख्या में कमी आने से होती है। हीमोग्लोबिन के अणु में अनचाहे परिवर्तन आने से भी रक्ताल्पता के लक्षण प्रकट होते हैं। हीमोग्लोबिन पूरे शरीर मे ऑक्सीजन को प्रवाहित करता है और इसकी संख्या मे कमी आने से शरीर मे ऑक्सीजन की आपूर्ति मे भी कमी आती है जिसके कारण व्यक्ति थकान और कमजोरी महसूस कर सकता है। .

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लाइकोपेन

लाइकोपेन एक लाल चमकदार कैरोटीन और कैरोटीनॉयड रंगद्रव्य और फिटोकेमिकल है, जो टमाटर एवं अन्य लाल फलों और सब्जियों, जैसे लाल गाजर, तरबूज और पपीता (लेकिन स्ट्रॉबेरी या चेरी में नहीं) में पाया जाता है। हालांकि, रासायनिक दृष्टि से लाइकोपेन एक कैरोटीन है, पर इसमें कोई विटामिन ए गतिविधि नहीं होती है। पौधों, शैवाल और अन्य प्रकाश संश्लेषक जैविक संरचनाओं में, लाइकोपेन पीले, नारंगी या लाल रंगद्रव्यों, प्रकाश संश्लेषण तथा प्रकाश संरक्षण के लिए जिम्मेदार बीटा कैरोटीन सहित अधिकांश कैरोटीनॉयड के जैविक संश्लेषण का एक महत्वपूर्ण मध्यस्थ होता है। संरचनात्मक रूप से यह एक टेट्राटरपेन है, जो पूरी तरह कार्बन और हाइड्रोजन से बने आठ आइसोप्रेन इकाइयों का एक संगठित रूप है और यह पानी में अघुलनशील है। लाइकोपेन के ग्यारह संयुग्मित दुहरे जुडाव इसे इसका गहरा लाल रंग देते हैं और इसकी ऑक्सीकरण प्रतिरोधक गतिविधि के लिए जिम्मेदार है। अपने सशक्त रंग और गैर-विषाक्तता के कारण लाइकोपेन भोजन में प्रयुक्त होनेवाला एक उपयोगी रंग है। लाइकोपेन, मनुष्य के लिए आवश्यक पोषक तत्व नहीं है, लेकिन सामान्यतः यह आहार में, मुख्य रूप से टमाटर सॉस के साथ तैयार व्यंजनों में पाया जाता है। अमाशय में अवशोषित होने के बाद लाइकोपेन विभिन्न लिपो प्रोटीनों द्वारा रक्त में पहुंचाया है और यकृत, अधिवृक्क ग्रंथियों तथा वीर्यकोश में जमा हो जाता है। प्रारंभिक अनुसंधान में टमाटर के उपभोग और कैंसर के खतरे में प्रतिकूल व्युत्क्रम दिखाए जाने की वजह से लाइकोपेन को कई प्रकार के कैंसर, विशेष रूप से प्रोस्टेट कैंसर की रोकथाम के लिए एक संभावित एजेंट माना गया है। हालांकि, अमेरिका के फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा किसी स्वास्थ्य सम्बन्धी दावे के अनुमोदन के लिए इस क्षेत्र के अनुसंधान और प्रोस्टेट कैंसर के साथ इसके संबंध को अपर्याप्त सबूत समझा गया है (नीचे ऑक्सीकारक गुण और संभावित स्वास्थ्य लाभ के तहत देखें).

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लोमाटिया तस्मानिका

लोमाटिया तस्मानिका या किंग्स लोमाटिया, प्रोटेसी कुल की एक तस्मानियाई जड़ी है। इसके पौधे के पत्ते चमकदार हरे होते है और यह गुलाबी फूल उत्पन्न करता है परंतु, यह कोई फल अथवा बीज उत्पादित नहीं करता। माना जाता है कि जंगल में किंग्स लोमाटिया की मात्र एक ही जीवित बस्ती बची है। लोमाटिया तस्मानिका इसलिए असाधारण है क्योंकि इसके शेष बचे सभी पौधे आनुवंशिक रूप से एक समान हैं। इसमें अगुणित गुणसूत्रों के तीन समुच्च्य होते हैं (3x .

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लोरिस

लोरिस (Loris) भारत, श्रीलंका और दक्षिणपूर्वी एशिया में मिलने वाले लोरिनाए (Lorinae) कुल के निशाचरी (रात्रि में सक्रीय) नरवानर प्राणी होते हैं। लोरिस वनों में रहते हैं और धीमी गति से पेड़ों पर चलते हैं। कुछ लोरिस जातियाँ केवल कीट खाती हैं जबकि अन्य फल, वृक्षों के छाल से निकलने वाला गोंद, पत्ते और घोंघे खाती हैं। मादा लोरिस पेड़ों पर घर बनाकर उनमें अपने शिशु छोड़कर खाने के लिये निकलतीं हैं। इसके लिये वे अपने बच्चों को अपनी कोहनियों के भीतरी भाग चाटने के बाद चाटती हैं। उनकी कोहनियों के पीछे के क्षेत्र में एक हल्का विष बनता है जो शिशुओं के बालों में फैल जाता है और परभक्षियों को उन्हें खाने से रोकता है। कुछ क्षेत्रों में इसके बावजूद भी ओरंग उतान इनके शिशुओं को खा लेते हैं। .

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शर्करा

डेट्राइट, मिशिगनआवर्धित रूप में चीनी के दाने शक्कर, शर्करा या चीनी (Sugar) एक क्रिस्टलीय खाद्य पदार्थ है। इसमें मुख्यत: सुक्रोज, लैक्टोज एवं फ्रक्टोज उपस्थित होता है। मानव की स्वाद ग्रन्थियाँ मस्तिष्क को इसका स्वाद मीठा बताती हैं। चीनी मुख्यत: गन्ना (या ईख) एवं चुकन्दर से तैयार की जाती है। यह फलों, मधु एवं अन्य कई स्रोतों में भी पायी जाती है। इसे मारवाडी भाषा में 'खोड' अथवा ' मुरस ' कहा जाता है। चीनी की अत्यधिक मात्रा खाने से प्रकार-२ का मधुमेह होने की घटनाएँ अधिक देखी गयीं हैं। इसके अलावा मोटापा और दाँतों का क्षरण भी होता है। विश्व में ब्राजील में प्रति व्यक्ति चीनी की खपत सर्वाधिक होती है। भारत में एक देश के रूप में सर्वाधिक चीनी का खपत होती है। .

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सदाफूली

सदाफूली या सदाबहार बारहों महीने खिलने वाले फूलों का एक पौधा है। इसकी आठ जातियां हैं। इनमें से सात मेडागास्कर में तथा आठवीं भारतीय उपमहाद्वीप में पायी जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम केथारेन्थस है।Flora of Madagascar: Germplasm Resources Information Network: भारत में पायी जाने वाली प्रजाति का वैज्ञानिक नाम केथारेन्थस रोजस है। इसे पश्चिमी भारत के लोग सदाफूली के नाम से बुलाते है। मेडागास्कर मूल की यह फूलदार झाड़ी भारत में कितनी लोकप्रिय है इसका पता इसी बात से चल जाता है कि लगभग हर भारतीय भाषा में इसको अलग नाम दिया गया है- उड़िया में अपंस्कांति, तमिल में सदाकाडु मल्लिकइ, तेलुगु में बिल्लागैन्नेस्र्, पंजाबी में रतनजोत, बांग्ला में नयनतारा या गुलफिरंगी, मराठी में सदाफूली और मलयालम में उषामालारि। इसके श्वेत तथा बैंगनी आभावाले छोटे गुच्छों से सजे सुंदर लघुवृक्ष भारत की किसी भी उष्ण जगह की शोभा बढ़ाते हुए सालों साल बारह महीने देखे जा सकते हैं। इसके अंडाकार पत्ते डालियों पर एक-दूसरे के विपरीत लगते हैं और झाड़ी की बढ़वार इतनी साफ़ सुथरी और सलीकेदार होती है कि झाड़ियों की काँट छाँट की कभी ज़रूरत नहीं पड़ती। .

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सपुष्पक पौधा

कमल बीज पैदा करनेवाले पौधे दो प्रकार के होते हैं: नग्न या विवृतबीजी तथा बंद या संवृतबीजी। सपुष्पक, संवृतबीजी, या आवृतबीजी (flowering plants या angiosperms या Angiospermae या Magnoliophyta, Magnoliophyta, मैग्नोलिओफाइटा) एक बहुत ही बृहत् और सर्वयापी उपवर्ग है। इस उपवर्ग के पौधों के सभी सदस्यों में पुष्प लगते हैं, जिनसे बीज फल के अंदर ढकी हुई अवस्था में बनते हैं। ये वनस्पति जगत् के सबसे विकसित पौधे हैं। मनुष्यों के लिये यह उपवर्ग अत्यंत उपयोगी है। बीज के अंदर एक या दो दल होते हैं। इस आधार पर इन्हें एकबीजपत्री और द्विबीजपत्री वर्गों में विभाजित करते हैं। सपुष्पक पौधे में जड़, तना, पत्ती, फूल, फल निश्चित रूप से पाए जाते हैं। .

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सलाद

एक सलाद की थाली. व्यंजनों के व्यापक विविध प्रकार में से एक है सलाद जिसमें शामिल है वेजीटेबल सलाद; पास्ता सलाद, फलियां, अंडा, या अनाज सलाद; मिश्रित सलाद जिसमें मांस, अंडा, या सीफ़ूड होता है; और फ्रुट सलाद.

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सिंघाड़ा

जल पर पसरी हुई सिंघाड़े की लता सिंघाड़ा या 'सिंघाण' (संस्कृत: शृंगाटक) पानी में पसरने वाली एक लता में पैदा होने वाला एक तिकोने आकार का फल है। इसके सिर पर सींगों की तरह दो काँटे होते हैं। चीनी खाने का यह एक अभिन्न अंग है। इसको छील कर इसके गूदे को सुखाकर और फिर पीसकर जो आटा बनाया जाता है उस आटे से बनी खाद्य वस्तुओं का भारत में लोग व्रत उपवास में सेवन करते हैं क्योंकि इसे एक अनाज नहीं वरण एक फल माना जाता है। अंग्रेजी भाषा में यह Water caltrop, Water Chestnut आदि नामों से भी जाना जाता है। सिंघाड़ा भारतवर्ष के प्रत्येक प्रांत में तालों और जलाशयों में रोपकर लगाया जाता है। इसकी जड़ें पानी के भीतर दूर तक फैलती है। इसके लिये पानी के भीतर कीचड़ का होना आवश्यक है, कँकरीली या बलुई जमीन में यह नहीं फैल सकता। इसके पत्ते तीन अंगुल चौड़े कटावदार होते हैं। जिनके नीचे का भाग ललाई लिए होता है। फूल सफेद रंग के होते हैं। फल तिकोने होते हैं जिनकी दो नोकें काँटे या सींग की तरह निकली होती हैं। बीच का भाग खुरदरा होता है। छिलका मोटा पर मुलायम होता है जिसके भीतर सफेद गूदा या गिरी होती है। ये फल हरे खाए जाते हैं। सूखे फलों की गिरी का आटा भी बनता है जो व्रत के दिन फलाहार के रूप में लोग खाते हैं। अबीर बनाने में भी यह आटा काम में आता है। वैद्यक में सिंघाड़ा शीतल, भारी कसैला वीर्यवर्द्घक, मलरोधक, वातकारक तथा रुधिरविकार और त्रिदोष को दूर करनेवाला कहा गया है। .

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संतरा (फल)

संतरा एक फल है। संतरे को हाथ से छीलने के बाद पेशीयोँ को अलग कर के चूसकर खाया जा सकता है। सँतरे का रस निकालकर पीया जा सकता है। संतरा ठंडा, तन और मन को प्रसन्नता देने वाला है। उपवास और सभी रोगों में नारंगी दी जा सकती है। जिनकी पाचन शक्ति खराब हो, उनको नारंगी का रस तीन गुने पानी में मिलाकर देना चाहिये। एक व्यक्ति को एक बार में एक या दो नारंगी लेना पर्याप्त है। एक व्यक्ति को जितने विटामिन ‘सी’ की आवश्यकता होती है, वह एक नारंगी प्रतिदिन खाते रहने से पूरी हो जाती है। खांसी-जुकाम होने पर नारंगी के रस का एक गिलास नित्य पीते रहने से लाभ होगा। स्वाद के लिये नमक या मिश्री डालकर पी सकते है। .

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संयुक्त फल

शहतूत के फल जब किसी पौधे के अनेक फूल मिलकर एक फल का निर्माण करते हैं तो उस फल को संयुक्त फल कहते हैं। अनानास, कटहल आदि संयुक्त फल हैं। श्रेणी:फल.

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संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द

हिन्दी भाषी क्षेत्र में कतिपय संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द प्रचलित हैं। जैसे- सप्तऋषि, सप्तसिन्धु, पंच पीर, द्वादश वन, सत्ताईस नक्षत्र आदि। इनका प्रयोग भाषा में भी होता है। इन शब्दों के गूढ़ अर्थ जानना बहुत जरूरी हो जाता है। इनमें अनेक शब्द ऐसे हैं जिनका सम्बंध भारतीय संस्कृति से है। जब तक इनकी जानकारी नहीं होती तब तक इनके निहितार्थ को नहीं समझा जा सकता। यह लेख अभी निर्माणाधीन हॅ .

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सुनहला चावल

सुनहला चावल (गोल्डन चावल) औरिजा सैटिवा चावल का एक किस्म है जिसे बेटा-कैरोटिन, जो खाने वाले चावल में प्रो-विटामिन ए का अगुआ है, के जैवसंश्लेषण के लिए जेनेटिक इंजिनियरिंग के द्वारा बनाया जाता है।ये एट अल.

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स्तंभपुष्पता

तने पर फला कटहल आस्ट्रेलिया का वाटरमेलन पौधे के क्षैतिज शाखा पर लगे पुष्प स्तंभपुष्पता (Cauliflory) वनस्पति विज्ञान का एक शब्द है। उन पेड़ों को स्तम्भपुष्पी कहते हैं जिनके पुष्प और फल उनके मुख्य तने या अन्य मोटी शाखाओं पर लगते हैं, न कि नये पल्लवों पर। गूलर, और कटहल इसके प्रमुख उदाहरण हैम। श्रेणी:वनस्पति विज्ञान.

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स्नैक फूड (अल्पाहार)

स्नैक (अल्पाहार) भोजन का वह भाग है जो अक्सर नियमित भोजन से कम होता है, आमतौर पर जिसे दो भोजनों के बीच में खाया जाता है। स्नैक्स कई किस्मों में आते हैं जिसमें शामिल हैं पैक किये हुए और संसाधित खाद्य पदार्थ और घर पर ताजा सामग्री से बनी चीज़ें.

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स्फुटन(वनस्पति विज्ञान)

आक के फल का स्फुटन, बीज अंदर दिख रहे हैंस्फुटन एक पादप संरचना जैसे कि एक फल, परागकोश, या बीजाणुकोश (sporangium) के परिपक्व होने पर स्वत: एकाएक खुल कर अपने अंदर समाहित सामग्री को बिखेरने को कहते है। .

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स्वस्थ आहार

ताजा सब्जियां स्वस्थ आहार की महत्वपूर्ण घटक हैं। प्रमुख रंगीन फल स्वस्थ आहार वह है जोकि स्वास्थ्य को बनाए रखने या उसे सुधारने में मदद करता है। यह कई चिरकालिक स्वास्थ्य जोखिम जैसे कि: मोटापा, हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर की रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण है। एक स्वस्थ आहार में समुचित मात्रा में सभी पोषक तत्वों और पानी का सेवन शामिल है। पोषक तत्व कई अलग खाद्य पदार्थों से प्राप्त किए जा सकते हैं, अतः विस्तृत विविध आहार मौजूद हैं जिन्हें स्वस्थ आहार माना जा सकता है। स्वस्थ्य आहार हमारे शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है। .

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सेब

कोई विवरण नहीं।

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हाट

हाट, हटिया या पेठिया आमतौर पर भारत के गाँवों में लगनेवाले स्थानीय बाजार को कहा जाता है। सब्जी, फल, ताजा मांस, खाद्यान्न या परचून सामग्री आदि हाट में खरीद-बिक्री की जानेवाली प्रमुख मद हैं। गाँव के लोगों की दैनिक जरुरतों को पूरा करने में हाट की भूमिका अतिमहत्वपूर्ण है। सदियों से भारत के गाँवों की आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने में हाट की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। कृषि-विपणन के अलावे हाट स्थल महत्वपूर्ण मिलन बिंदु एवं सांस्कृतिक केंद्र भी है। .

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हार्मोन

ऑक्सीटोसिन हार्मोन का चित्र आड्रेनालिन (Adrenaline) नामक हार्मोन की रासायनिक संरचना हार्मोन या ग्रन्थिरस या अंत:स्राव जटिल कार्बनिक पदार्थ हैं जो सजीवों में होने वाली विभिन्न जैव-रसायनिक क्रियाओं, वृद्धि एवं विकास, प्रजनन आदि का नियमन तथा नियंत्रण करता है। ये कोशिकाओं तथा ग्रन्थियों से स्रावित होते हैं। हार्मोन साधारणतः अपने उत्पत्ति स्थल से दूर की कोशिकाओं या ऊतकों में कार्य करते हैं इसलिए इन्हें 'रासायनिक दूत' भी कहते हैं। इनकी सूक्ष्म मात्रा भी अधिक प्रभावशाली होती है। इन्हें शरीर में अधिक समय तक संचित नहीं रखा जा सकता है अतः कार्य समाप्ति के बाद ये नष्ट हो जाते हैं एवं उत्सर्जन के द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिए जाते हैं। हार्मोन की कमी या अधिकता दोनों ही सजीव में व्यवधान उत्पन्न करती हैं। .

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हवन

हवन अथवा यज्ञ भारतीय परंपरा अथवा हिंदू धर्म में शुद्धीकरण का एक कर्मकांड है। कुण्ड में अग्नि के माध्यम से देवता के निकट हवि पहुँचाने की प्रक्रिया को यज्ञ कहते हैं। हवि, हव्य अथवा हविष्य वह पदार्थ हैं जिनकी अग्नि में आहुति दी जाती है (जो अग्नि में डाले जाते हैं).

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जनन

जनन (Reproduction) द्वारा कोई जीव (वनस्पति या प्राणी) अपने ही सदृश किसी दूसरे जीव को जन्म देकर अपनी जाति की वृद्धि करता है। जन्म देने की इस क्रिया को जनन कहते हैं। जनन जीवितों की विशेषता है। जीव की उत्पत्ति किसी पूर्ववर्ती जीवित जीव से ही होती है। निर्जीव पिंड से सजीव की उत्पत्ति नहीं देखी गई है। संभवत: विषाणु (Virus) इसके अपवाद हों (देखें, स्वयंजनन, Abiogenesis)। जनन के दो उद्देश्य होते हैं एक व्यक्तिविशेष का संरक्षण और दूसरा जाति की शृंखला बनाए रखना। दोनों का आधार पोषण है। पोषण से ही संरक्षण, वृद्धि और जनन होते हैं। जीवधारियों के अंतअंतहेलनस्पति और प्राणी दोनों आते हैं। दोनों में ही जैविक घटनाएँ घटित होती है। दोनों की जननविधियों में समानता है, पर सूक्ष्म विस्तार में अंतर अवश्य है। अत: उनका विचार अलग अलग किया जा रहा है। .

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जामुन

जामुन का पेड़ जामुन (वैज्ञानिक नाम: Syzygium cumini) एक सदाबहार वृक्ष है जिसके फल बैंगनी रंग के होते हैं (लगभग एक से दो सेमी. व्यास के) | यह वृक्ष भारत एवं दक्षिण एशिया के अन्य देशों एवं इण्डोनेशिया आदि में पाया जाता है। इसे विभिन्न घरेलू नामों जैसे जामुन, राजमन, काला जामुन, जमाली, ब्लैकबेरी आदि के नाम से जाना जाता है। प्रकृति में यह अम्लीय और कसैला होता है और स्वाद में मीठा होता है। अम्लीय प्रकृति के कारण सामान्यत: इसे नमक के साथ खाया जता है। जामुन का फल 70 प्रतिशत खाने योग्य होता है। इसमें ग्लूकोज और फ्रक्टोज दो मुख्य स्रोत होते हैं। फल में खनिजों की संख्या अधिक होती है। अन्य फलों की तुलना में यह कम कैलोरी प्रदान करता है। एक मध्यम आकार का जामुन 3-4 कैलोरी देता है। इस फल के बीज में काबोहाइट्ररेट, प्रोटीन और कैल्शियम की अधिकता होती है। यह लोहा का बड़ा स्रोत है। प्रति 100 ग्राम में एक से दो मिग्रा आयरन होता है। इसमें विटामिन बी, कैरोटिन, मैग्नीशियम और फाइबर होते हैं। .

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जायफल

गोवा में मिरिस्टिका फ्रेग्रंस वृक्ष वृक्ष पर जायफल (केरल) जायफल (वानस्पतिक नाम: Myristica fragrans; संस्कृत: जातीफल) एक सदाबहार वृक्ष है जो इण्डोनेशिया के मोलुकास द्वीप (Moluccas) का देशज है। इससे दो मसाले प्राप्त होते हैं - जायफल (nutmeg) तथा जावित्री (mace)। यह चीन, ताइवान, मलेशिया, ग्रेनाडा, केरल, श्रीलंका, और दक्षिणी अमेरिका में खूब पैदा होता है। मिरिस्टिका नामक वृक्ष से जायफल तथा जावित्री प्राप्त होती है। मिरिस्टका की अनेक जातियाँ हैं परंतु व्यापारिक जायफल अधिकांश मिरिस्टिका फ्रैग्रैंस से ही प्राप्त होता है। मिरिस्टिका प्रजाति की लगभग ८० जातियाँ हैं, जो भारत, आस्ट्रेलिया तथा प्रशंत महासागर के द्वीपों में उपलब्ध हैं। यह पृथग्लिंगी (डायोशियस, dioecious) वृक्ष है। इसके पुष्प छोटे, गुच्छेदार तथा कक्षस्थ (एक्सिलरी, axillary) होते हैं। मिरिस्टिका वृक्ष के बीज को जायफल कहते हैं। यह बीज चारों ओर से बीजोपांग (aril) द्वारा ढँका रहता है। यही बीजोपांग व्यापारिक महत्व का पदार्थ जावित्री है। इस वृक्ष का फल छोटी नाशपाती के रूप का १ इंच से डेढ़ इंच तक लंबा, हल्के लाल या पीले रंग का गूदेदा होता है। परिपक्व होने पर फल दो खंडों में फट जाता है और भीतर सिंदूरी रंग का बीजोपांग या जावित्री दिखाई देने लगती है। जावित्री के भीतर गुठली होती है, जिसके काष्ठवत् खोल को तोड़ने पर भीतर जायफल (nutmeg) प्राप्त होता है। जायफल तथा जावित्री व्यापार के लिये मुख्यत: पूर्वी ईस्ट इंडीज से प्राप्त होता हैं। जायफल का वृक्ष समुद्रतट से ४००-५०० फुट तक की ऊँचाई पर उष्णकटिबंध की गरम तथा नम घाटियों में पैदा होता है। इसकी सफलता के लिये जल-निकास-युक्त गहरी तथा उर्वरा दूमट मिट्टी उपयुक्त है। इसके वृक्ष ६-७ वर्ष की आयु प्राप्त होने पर फूलते-फलते हैं। फूल लगने के पहले नर या मादा वृक्ष का पहचाना कठिन होता है। ग्रैनाडा (वेस्ट इंडीज) में साधारणत: नर तथा मादावृक्ष ३: १ के अनुपात में पाए जाते हैं जमैका के वनस्पति उद्यान में जायफल के छोटे पौधों पर मादावृक्ष की टहनी कलम करके मादा वृक्ष की संख्यावृद्धि में सफलता प्राप्त की गई है। .

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जिन्को बाइलोबा

जिन्को (जिन्को बाइलोबा; चीनी और जापानी में 银杏, पिनयिन रोमनकृत: यिन जिंग हेपबर्न रोमनकृत ichō या जिन्नान), जिसकी अंग्रेज़ी वर्तनी gingko भी है, इसे एडिअंटम के आधार पर मेडेनहेयर ट्री के रूप में भी जाना जाता है, पेड़ की एक अनोखी प्रजाति है जिसका कोई नज़दीकी जीवित सम्बन्धी नहीं है। जिन्को को अपने स्वयं के ही वर्ग में वर्गीकृत किया गया है, जिसमें एकल वर्ग जिन्कोप्सिडा, जिन्कोएल्स, जिन्कोएशिया, जीनस जिन्को शामिल हैं और यह इस समूह के अन्दर एकमात्र विद्यमान प्रजाति है। यह जीवित जीवाश्म का एक सबसे अच्छा ज्ञात उदाहरण है, क्योंकि जी.

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जोमाय शष्टि

माँ शाष्टि जोमाय शष्टि एक बेंगालि पर्व है जो जमाई के लिये मनाया जाता है। इसे गरमि के मौसम में मनाया जाता है (बंगालि मे जैश्ट)। बंगाल के उपजाऊ धरती पर ईस महिने में आम, लीची, कृष्ण बदररी, कटहैल आदि फल उगता है। इस शुभ अवसर पर अनेक परिवारों मे जमाई के लिये जशन आयोजित किया जाता है। .

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वन

National Park)). एक क्षेत्र जहाँ वृक्षों का घनत्व अत्यधिक रहता है उसे वन कहते हैं। पेड़ जंगल के कई परिभाषाएँ, है जो कि विभिन्न मानदंडों पर आधारित हैं। वनों ने पृथ्वी के लगभग ९.४% भाग को घेर रखा है और कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 30% भाग घेर रखा है। कभी वन कुल भूमि क्षेत्र के ५०% भाग में फैल हुए थे। वन जीव जन्तुओं के लिए आवास स्थल, जल-चक्र को प्रभावित करते हैं और मृदा संरक्षण के काम आते हैं इसी कारण यह पृथ्वी के जैवमण्डल का अहम हिस्सा कहलाते हैं। इतिहास बताता है, कि "वन" एक बीहड़ क्षेत्र जिसका मतलब कानूनी तौर पर बाजू के लिए निर्धारित शिकार के द्वारा सामंती कुलीनता है और इन शिकार जंगलों जरूरी ज्यादा अगर में सभी (देखें जंगली नहीं थे रॉयल वन। हालांकि, शिकार के जंगलों अक्सर वुडलैंड के महत्वपूर्ण क्षेत्रों को शामिल किया जबकि, शब्द वन अंततः जंगली भूमि अधिक सामान्यतः मतलब करने के लिए आया था। एक वुडलैंड जो की एक जंगल से भिन्न है। .

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वाइटिस

वाइटिस (Vitis), जिसके सदस्यों को साधारण भाषा में अंगूरबेल (grapevine) कहा जाता है, सपुष्पक द्विबीजपत्री वनस्पतियों के वाइटेसिए कुल के अंतर्गत एक जीववैज्ञानिक वंश है। इस वंश में ७९ जीववैज्ञानिक जातियाँ आती हैं जो अधिकतर पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में उत्पन्न हुई हैं और लताओं के रूप में होती हैं। अंगूर इसका एक महत्वपूर्ण सदस्य है और उसके फल सीधे खाये जाते हैं और उसके रस को किण्वित (फ़रमेन्ट) कर के बड़े पैमाने पर हाला (वाइन) बनाई जाती है। अंगूरबेलों के पालन-पोषण और अंगूर-उत्पादन के अध्ययन को द्राक्षाकृषि (viticulture, विटिकल्चर) कहा जाता है। .

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विटामिन सी

विटामिन सी या एल-एस्कॉर्बिक अम्ल मानव एवं विभिन्न अन्य पशु प्रजातियों के लिये अत्यंत आवश्यक पोषक तत्त्व है। ये विटामिन रूप में कार्य करता है। कई प्रकार की उपापचयी अभिक्रियाओं हेतु एस्कॉर्बेट (एस्कॉर्बिक अम्ल का एक आयन) सभी पादपों व पशुओं में आवश्यक होता है। ये लगभग सभी जीवों द्वारा आंतरिक प्रणाली द्वारा निर्मित किया जाता है (सिवाय कुछ विशेष प्रजातियों के) जिनमें स्तनपायी समूह जैसे चमगादड़, एक या दो प्रधान प्राइमेट सबऑर्डर, ऐन्थ्रोपोएडिया (वानर, वनमानुष एवं मानव) आते हैं। इसका निर्माण गिनी शूकर एवं पक्षियों एवं मछलियों की कुछ प्रजातियों में नहीं होता है। जो भी प्रजातियां इसका निर्माण आंतरिक रूप से नहीं कर पातीं, उन्हें ये आहार रूप में वांछित होता है। इस विटामिन की कमी से मानवों में स्कर्वी नामक रोग हो जाता है।। हिन्दुस्ताण लाइव। २८ मार्च २०१० इसे व्यापक रूप से खाद्य पूर्क रूप में प्रयोग किया जाता है। .

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वैनिला

वैनिला के फल, सूखने के बाद वैनिला एक सुगंधित पदार्थ है, जो वैनिला वंश के ऑर्किड से व्युत्पन्न होता है, जिसका मूल स्थान मेक्सिको है। व्युत्पत्ति विज्ञान के अनुसार वैनिला शब्द की उत्पत्ति स्पैनिश शब्द "vainilla" लिट्ल पॉड से हुई है। मूल रूप से प्री-कोलंबियाई मेसो-अमेरिकी लोगों द्वारा उपजाए जाने वाले वैनिला को 1520 ई. में चॉकलेट के साथ यूरोप में लाने का श्रेय स्पैनिश विजेता हर्नैन कोर्टेस को जाता है। वैनिला के पौधे को मेक्सिको और मध्य अमेरिका से बाहर उपजाने का प्रयास वैनिला ऑर्किड उत्पन्न करने वाली टिक्सोचिट (tlilxochitl) लता और मेलिपोना मक्खी की स्थानीय प्रजाति के बीच के सहजीवी संबंध के कारण निरर्थक सिद्ध हुआ; हालांकि सन् 1837 में बेल्जियन वनस्पति वैज्ञानिक चार्ल्स फ्रैंकोइस एंटोनी मॉरेन द्वारा इस तथ्य की खोज करने के बाद तथा पौधे के कृत्रिम परागण की एक विधि को विकसित करने के बाद यह सफल हो गया। पर यह विधि वित्तीय रूप से कारगर नहीं रही और इसे व्यावसायिक रूप से नहीं अपनाया गया। सन् 1841 में इले बौर्बोन (Île Bourbon) में रहने वाले, फ़्रांसीसी स्वामित्व वाले एक 12 वर्षीय गुलाम एडमंड एल्बियस ने यह पता लगाया कि इस पौधे का हाथ से परागण किया जा सकता है, जिसके बाद इस पौधे की वैश्विक कृषि का रास्ता खुल लगा। वर्तमान में वैनिला की वैश्विक रूप से उपजाई जाने वाली (कल्टीवेटर्ज़) तीन प्रमुख कृषि योग्य किस्में हैं, जिनमें से सभी मेसो-अमेरिका तथा आधुनिक मेक्सिको के कुछ हिस्सों में पाए जाने वाली एक प्रजाति से व्युत्पन्न हुई हैं। इसकी विभिन्न उप-किस्में हैं- वानील्ला प्लानीफ़ोल्या (Vanilla planifolia) (पर्याय वा॰ फ़्राग्रान्स् (fragrans)), जिसे मेडागास्कर, रियूनियन (Réunion) एवं हिंद महासागर के साथ अन्य उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में उपजाया जाता है; वा॰ ताहीतेन्सीस् (V. tahitensis) दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में उपजाया जाता है; तथा वा॰ पोम्पोना (V. pompona) वेस्ट इंडीज, मध्य तथा दक्षिण अमेरिका के प्रशांत क्षेत्रों में पाया जाया है। दुनिया भर में उपजाया जाने वाला अधिकतर वैनिला वा॰ प्लानीफ़ोल्या (V. planifolia) की किस्में हैं, जिसे आम तौर पर “मेडागास्कर-बॉर्बन ”वैनिला के नाम से जाना जाता है और इसे मेडागास्कर तथा इंडोनेशिया के एक छोटे-से क्षेत्र में उपजाया जाता है। वैनिला बीज की फलियों को उपजाने में लगने वाले गहन श्रम के कारण केसर के बाद वैनिला दूसरा सबसे कीमती मसाला है। व्यय के बावजूद अपने सुगंध के कारण इसकी अधिक महत्ता है, जिसके बारे में लेखक फ्रेडरिक रोजेन्गार्डन जूनियर ने अपनी पुस्तक द बुक ऑफ स्पाइसेज में इसे "शुद्ध, मसालेदार तथा उत्कृष्ट" बताया है तथा इसके जटिल पुष्पीय सुगंध को "विशिष्ट गुलदस्ता" के रूप में वर्णित किया है। इसकी ऊंची कीमत के बावजूद वैनिला का प्रयोग व्यावसायिक तथा घरेलू दोनों तरह के बेकिंग, इत्र निर्माण एवं गंध-चिकित्सा (एरोमाथेरापी) में होता है। .

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वॉलफ्रेम अल्फा

वॉलफ्रेम अल्फा एक गणकीय ज्ञान (कंम्प्यूटेशनल नॉलेज) सर्च इंजन है। इसका प्रयोग सटीक और संक्षिप्त सूचना प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इसमें गूगल की तरह एक जानकारी की मांग देने पर प्रतिक्रिया स्वरूप ढेरों परिणाम जालपृष्ठ नहीं दिखाई देते बल्कि संक्षिप्त व सटीक जानकारी प्राप्त होती है।। हिन्दुस्तान लाइव। २२ जुलाई २०१०। अभिगमन तिथि:२५ जुलाई २०१० ये आधुनिक समय में अंतरजाल पर जानकारी प्राप्त करने का सरल माध्यम है। अंतरजाल पर किसी विषय से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए सामान्त: किसी सर्च इंजन जैसे गूगल या ऐल्टाविस्टा आदि का प्रयोग किया जाता है। इन सर्च इंजनों पर किसी एक विषय से जुड़ी जानकारी ढूढ़ने पर बहुत-सी समान दिखने वाली व उस समय अनावश्यक सूचनाओं का भंडार भी खुल जाता है। ऐसे में कई बार सही जानकारी ढूंढना मुश्किल हो जाता है। इसी समस्या के समाधान रूप में वॉलफ्रेम अल्फा का प्रयोग किया जा सकता है। इस जालस्थल की सबसे बड़ी विशेषता ये है की जब इसके सर्च बार में कोई शब्द अंकित करते हैं तो इसमें उस शब्द के अर्थ को अलग-अलग भागो में बांटा जाता है, जैसे एप्पल टाइप करने पर फ्रूट, कंपनी, सॉफ्टवेयर आदि के विकल्प आते हैं। तब उपरोक्ता को जो भी जानकारी चाहिए उसके विकल्प को चुनने पर वह सामने होती है। अभी तक ये हिन्दी भाषा में उपलब्ध नहीं है, किन्तु अंग्रेज़ी में अच्छा काम करता है। इस नवीन सर्च इंजन का प्रारूप और आकार ब्रिटिश भौतिक वैज्ञानिक प्रोफेसर स्टीफन वॉलफ्रेम ने मार्च २००९ को तैयार किया था। इसको आधिकारिक तौर पर सार्वजनिक रूप से १५ मई २००९ को लॉन्च किया गया। इस कंम्प्यूटेशनल नॉलेज सर्च इंजन को लॉन्च करने से पहले इसकी कार्यक्षमता की जांच की जा चुकी है। वैज्ञानिक एंड इंटरनेट एंटरप्रेन्योर नोव स्पीवेक द्वारा वॉलफ्रेम एल्फा की कार्यदक्षता का हर पहलू से निरीक्षण किया गया। पॉपुलर साइंस द्वारा इसे वर्ष २००९न के लिये सर्वोच्च कंप्यूटर इनोवेशन घोषित किया गया था। वॉलफ्रेम एल्फा साइट पर हर विषय से जुड़ी सही और सटीक जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इसके अलावा पाकशास्त्र, सैर-सपाटे, संगीत, व्यापार, भौगोलिक व ऐतिहासिक आंकड़े जैसे विषयों के बारे में भी संक्षिप्त ज्ञान प्राप्त किया ज सकता है। इस जालस्थल में चिट्ठे (ब्लॉग), डाउनलोड, उदाहरण (एग्जैम्पल), समाचार (न्यूज) जैसे विकल्प भी उपलब्ध हैं। वॉलफ्रेम एल्फा में विकिपीडिया की तरह किसी विषय से जुड़ी विस्तृत जानकारी नहीं मिलती, पर उस विषय से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य आंकड़ों के रूप में मिल सकते हैं। इसको विकसित करने वाले डॉ॰ वॉलफ्रेम के अनुसार इसकी एक और विशेषता यह है कि इससे प्राप्त सूचनाओं की गुणवत्ता अधिक होगी। उपयोक्ताओं को उपलब्ध कराने से पहले विशेषज्ञों द्वारा सूचनाओं की जाँच की जाती है। उन्होंने इसके लिए एक हजार लोगों की टीम बनाई गई है। टीम में सभी क्षेत्रों के विशेषज्ञों को शामिल करने का प्रयास किया गया है।। हिन्दी मीडिया.इन। १३ मई २००९ .

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खटिक

खटिक, भारत एवं पाकिस्तान में पायी जाने वाली एक जाति है। भारत में ये पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में पायी जाती है। पाकिस्तान में ये पंजाब प्रान्त में पाये जाते हैं। भारत के अधिकांश खटिक हिन्दू हैं जबकि पाकिस्तान के अधिकांश मुसलमान। हिन्दू खटिक अनुसूचित जाति के हैं जबकि मुसलमान खटिक अनुसूचित जाति में सम्मिलित किये जाने के लिये प्रयत्न कर रहे। समझा जाता है कि 'खटिक' शब्द के मूल में संस्कृत 'खट्टिक' शब्द है जिसका अर्थ कसाई अथवा व्याध (बहेलिया) होता है। किन्तु उत्तर प्रदेश और बिहार के खटिक खेती करते और तरकारी तथा फल बेचने का कार्य करते हैं। महाराष्ट्र में संखार, बकरकसाव, चलनमहाराव एवं ओर चराव नामक इसकी उपजातियाँ कही जाती हैं। बकरकसाव मांस बेचने का काम करते हैं। श्रेणी:जाति.

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खमो

खमो खमो भारत, बर्मा और अंदमान के सागरतटीय दरारों में पाया जानेवाला एक छोटा सदाबहार पेड़ है जिसके छिलके में सब्जी अधिक होती है तथा जो चमड़ा सिझाने (टैनिंग) के काम आता है। इसके रंग से सूती कपड़े भी रंगे जाते हें। इसके फल खाने में सुस्वादु होते हैं। डालियों से निकली हुई जटाओं से एक प्रकार का नमक बनता है। इसे 'राई' भी कहते हैं। श्रेणी:पादप.

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ख़रबूज़ा

ख़रबूज़ा एक फल है। यह पकने पर हरे से पीले रंग के हो जाते है, हलांकि यह कई रंगों मे उपलब्ध है। मूल रूप से इसके फल लम्बी लताओं में लगते हैं। .

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खजूर

खजूर खजूर (फीनिक्स डेक्टाइलेफेरा) एक ताड़ प्रजाति का वृक्ष है, जिसकी कृषि बड़े पैमाने पर इसके खाद्य फल के लिए की जाती है। चूँकि इसकी खेती बहुत पहले से हो रही है इसलिए इसका सटीक मूल स्थान तलाशना लगभग असंभव है, लेकिन जलवायु के परि इसकी अनुकूलता को देखते हुये कहा जा सकता है के इसका मूल शायद उत्तरी अफ्रीका के किसी नख़लिस्तान या शायद दक्षिण पश्चिम एशिया में है। यह एक मध्यम आकार का पेड़ है और इसकी ऊँचाई 15-25 मीटर तक होती है, अक्सर कई तने एक ही मूल (जड़) प्रणाली से जुडे़ होते हैं पर यह अक्सर अकेले भी बढ़ते हैं। श्रेणी:फल श्रेणी:उद्यान विज्ञान और बाग़बानी श्रेणी:वृक्ष.

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खीरा

खीरे की लता, पुष्प एवं फल खीरा (cucumber; वैज्ञानिक नाम: Cucumis sativus) ज़ायद की एक प्रमुख फसल है। सलाद के रूप में सम्पूर्ण विश्व में खीरा का विशेष महत्त्व है। खीरा को सलाद के अतिरिक्त उपवास के समय फलाहार के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके द्वारा विभिन्न प्राकर की मिठाइयाँ भी तैयार की जाती है। पेट की गड़बडी तथा कब्ज में भी खीरा को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। खीरा कब्ज़ दूर करता है। पीलिया, प्यास, ज्वर, शरीर की जलन, गर्मी के सारे दोष, चर्म रोग में लाभदायक है। खीरे का रस पथरी में लाभदायक है। पेशाब में जलन, रुकावट और मधुमेह में भी लाभदायक है। घुटनों में दर्द को दूर करने के लिये भोजन में खीरा अधिक खायें। .

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गाँजे का पौधा

गाँजे का पौधा गाँजे के पौधे का वानस्पतिक नाम कैनाबिस सैटिवा (Cannabis sativa) है। यह भांग की जाति का ही एक पौधा है। यह देखने में भाँग से भिन्न नहीं होता, पर भाँग की तरह इसमें फूल नहीं लगते। कैनाबिस के पौधों से गाँजा, चरस और भाँग, ये मादक और चिकित्सोपयोगी द्रव्य तथा फल, बीजतैल और हेंप (सन सदृश रेशा), ये उद्योगोपयोगी द्रव्य, प्राप्त किए जाते हैं। नैपाल की तराई, बंगाल आदि में यह भाँग के साथ आपसे आप उगता है; पर कहीं कहीं इसकी खेती भी होती है। इसमें बाहर फूल नहीं लगते, पर बीज पड़ते हैं। वनस्पतिशास्त्रविदों का मत है कि भाँग के पौधे के तीन भेद होते है—स्त्री, पुरुष और उभयलिंगी। इसकी खेती करनेवालों का यह भी अनुभव है कि यदि गाँजे के पौधे के पास या खेत में भाँग के पौधे हो, तो गाँजा अच्छा नहीं होता। इसलिये गाँजे के खेत से किसान प्रायः भाँग के पौधे उखाड़कर फेंक देते हैं। .

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गिलहरी

गिलहरी की कई प्रजातियों में कालेपन की प्रावस्था पाई जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा के बड़े हिस्से में शहरी क्षेत्रों में सर्वाधिक आसानी से देखी जा सकने वाली गिलहरियाँ पूर्वी ग्रे गिलहरियों का कालापन लिया हुआ एक रूप है। गिलहरियाँ छोटे व मध्यम आकार के कृन्तक प्राणियों की विशाल परिवार की सदस्य है जिन्हें स्कियुरिडे कहा जाता है। इस परिवार में वृक्षारोही गिलहरियाँ, भू गिलहरियाँ, चिम्पुंक, मार्मोट (जिसमे वुड्चक भी शामिल हैं), उड़न गिलहरी और प्रेइरी श्वान भी शामिल हैं। यह अमेरिका, यूरेशिया और अफ्रीका की मूल निवासी है और आस्ट्रेलिया में इन्हें दूसरी जगहों से लाया गया है। लगभग चालीस मिलियन साल पहले गिलहरियों को पहली बार, इयोसीन में साक्ष्यांकित किया गया था और यह जीवित प्रजातियों में से पर्वतीय ऊदबिलाव और डोरमाइस से निकट रूप से सम्बद्ध हैं। .

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आँवला

आँवला, एक स्वास्थ्यवर्धक फल। आंवले की एक डाली पर पत्ते एवं फल साम्राज्य - पादप विभाग - मैंगोलियोफाइटा वर्ग - मैंगोलियोफाइटा जाति - रिबीस प्रजाति - आर यूवा-क्रिस्पा वैज्ञानिक नाम - रिबीस यूवा-क्रिस्पा आँवला एक फल देने वाला वृक्ष है। यह करीब २० फीट से २५ फुट तक लंबा झारीय पौधा होता है। यह एशिया के अलावा यूरोप और अफ्रीका में भी पाया जाता है। हिमालयी क्षेत्र और प्राद्वीपीय भारत में आंवला के पौधे बहुतायत मिलते हैं। इसके फूल घंटे की तरह होते हैं। इसके फल सामान्यरूप से छोटे होते हैं, लेकिन प्रसंस्कृत पौधे में थोड़े बड़े फल लगते हैं। इसके फल हरे, चिकने और गुदेदार होते हैं। स्वाद में इनके फल कसाय होते हैं। संस्कृत में इसे अमृता, अमृतफल, आमलकी, पंचरसा इत्यादि, अंग्रेजी में 'एँब्लिक माइरीबालन' या इण्डियन गूजबेरी (Indian gooseberry) तथा लैटिन में 'फ़िलैंथस एँबेलिका' (Phyllanthus emblica) कहते हैं। यह वृक्ष समस्त भारत में जंगलों तथा बाग-बगीचों में होता है। इसकी ऊँचाई 2000 से 25000 फुट तक, छाल राख के रंग की, पत्ते इमली के पत्तों जैसे, किंतु कुछ बड़े तथा फूल पीले रंग के छोटे-छोटे होते हैं। फूलों के स्थान पर गोल, चमकते हुए, पकने पर लाल रंग के, फल लगते हैं, जो आँवला नाम से ही जाने जाते हैं। वाराणसी का आँवला सब से अच्छा माना जाता है। यह वृक्ष कार्तिक में फलता है। आयुर्वेद के अनुसार हरीतकी (हड़) और आँवला दो सर्वोत्कृष्ट औषधियाँ हैं। इन दोनों में आँवले का महत्व अधिक है। चरक के मत से शारीरिक अवनति को रोकनेवाले अवस्थास्थापक द्रव्यों में आँवला सबसे प्रधान है। प्राचीन ग्रंथकारों ने इसको शिवा (कल्याणकारी), वयस्था (अवस्था को बनाए रखनेवाला) तथा धात्री (माता के समान रक्षा करनेवाला) कहा है। .

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आयुर्वेद

आयुर्वेद के देवता '''भगवान धन्वन्तरि''' आयुर्वेद (आयुः + वेद .

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आंगवांतीबो

आंगवांतीबो (Angwantibo) अफ़्रीका के मुख्य महाद्वीप में मिलने वाला निशाचरी (रात्रि में सक्रीय) नरवानर प्राणी होते हैं। यह नरवानर गण के स्ट्रेपसिराइनी उपगण के लीमरिफ़ोर्मीस अधोगण (इन्फ़ाऑर्डर) के लोरिसिडाए कुल में आर्कटिसीबस (Arctocebus) नामक वंश की दो जातियों का साधारण नाम हैं। यह दिखने में पोटो जैसे लगते हैं लेकिन इनका रंग सुनहरा होता है, जिस कारणवश इन्हें सुनहरा पोटो (golden potto) भी कहा जाता है। आंगवांतीबो की दोनो जातियाँ - कालाबार आंगवांतीबो और सुनहरा आंगवांतीबो - दोनों मध्य अफ़्रीका में रहते हैं और उनका विस्तार नाइजीरिया और कैमरून से लेकर कांगो लोकतांत्रिक गणतंत्र के उत्तरी भाग तक है। .

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कच्चा भोजन

कच्चे खाये जाने योग्य भोज्य सामग्री सलाद कच्चा भोजन (Raw foodism या following a raw food diet), खानपान की वह शैली है जिसमें केवल बिना पकायी गई (uncooked), बिना परिष्कृत (unprocessed) भोजन ही किया जाता है। इसके अन्तर्गत अनेकों तरह के फल, सब्जियाँ, दृढफल (nuts), बीज (seeds), अण्डा (खाद्य), मांस और दुग्ध उत्पाद आदि सब सम्मिलित हैं जिन्हें अपने जीवन दर्शन और पसन्द के अनुसार लोग तरह-तरह से चुनते हैं। .

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कटहल

कटहल का पेड़ और उस पर लगे फल कटहल या फनस का वृक्ष शाखायुक्त, सपुष्पक तथा बहुवर्षीय वृक्ष है। यह दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व एशिया का मूल-निवासी है। पेड़ पर होने वाले फलों में इसका फल विश्व में सबसे बड़ा होता है। फल के बाहरी सतह पर छोटे-छोटे काँटे पाए जाते हैं। इस प्रकार के संग्रन्थित फल को सोरोसिस कहते हैं। .

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कमरख

पेड़ पर लगे हुए कमरख कमरख (Carambola या starfruit) एक फल है। यह स्वाद में खट्टा होता है और इसकी चटनी, अचार आदि बनाया जाता है। यह भारत, बंगलादेश, श्रीलंका, मलेशिया, इंडोनेशिया और फिलीपींस में पैदा होते हैं। इसके अलावा यह पेरू, कोलम्बिया, त्रिनिदाद, इक्वेटर, गुयाना, ब्राजील और संयुक्त राज्य अमेरिका में भी पैदा होता है। इसका फल प्रायः पाँच कोण के तारे जैसी आकृति का होता है। .

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कर्कट रोग

कर्कट (चिकित्सकीय पद: दुर्दम नववृद्धि) रोगों का एक वर्ग है जिसमें कोशिकाओं का एक समूह अनियंत्रित वृद्धि (सामान्य सीमा से अधिक विभाजन), रोग आक्रमण (आस-पास के उतकों का विनाश और उन पर आक्रमण) और कभी कभी अपररूपांतरण अथवा मेटास्टैसिस (लसिका या रक्त के माध्यम से शरीर के अन्य भागों में फ़ैल जाता है) प्रदर्शित करता है। कर्कट के ये तीन दुर्दम लक्षण इसे सौम्य गाँठ (ट्यूमर या अबुर्द) से विभेदित करते हैं, जो स्वयं सीमित हैं, आक्रामक नहीं हैं या अपररूपांतरण प्रर्दशित नहीं करते हैं। अधिकांश कर्कट एक गाँठ या अबुर्द (ट्यूमर) बनाते हैं, लेकिन कुछ, जैसे रक्त कर्कट (श्वेतरक्तता) गाँठ नहीं बनाता है। चिकित्सा की वह शाखा जो कर्कट के अध्ययन, निदान, उपचार और रोकथाम से सम्बंधित है, ऑन्कोलॉजी या अर्बुदविज्ञान कहलाती है। कर्कट सभी उम्र के लोगों को, यहाँ तक कि भ्रूण को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन अधिकांश किस्मों का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है। कर्कट में से १३% का कारण है। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, २००७ के दौरान पूरे विश्व में ७६ लाख लोगों की मृत्यु कर्कट के कारण हुई। कर्कट सभी जानवरों को प्रभावित कर सकता है। लगभग सभी कर्कट रूपांतरित कोशिकाओं के आनुवंशिक पदार्थ में असामान्यताओं के कारण होते हैं। ये असामान्यताएं कार्सिनोजन या का कर्कटजन (कर्कट पैदा करने वाले कारक) के कारण हो सकती हैं जैसे तम्बाकू धूम्रपान, विकिरण, रसायन, या संक्रामक कारक.

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करोंदा

करोंदा का पौधा करोंदा एक झाड़ी नुमा पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम कैरिसा कैरेंडस (Carissa carandus) है। करोंदा फलों का उपयोग सब्जी और अचार बनाने में किया जाता है। यह पौधा भारत में राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हिमालय के क्षेत्रों में पाया जाता है। यह नेपाल और अफगानिस्तान में भी पाया जाता है। करोंदा फल यह पौधा बीज से अगस्त या सितम्बर में १.५ मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। कटिंग या बडिंग से भी लगाया जा सकता है। दो साल के पौधे में फल आने लगते हैं। फूल आना मार्च के महीने में शुरू होता है और जुलाई से सितम्बर के बीच फल पक जाता है। .

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किन्नू

पेड़ से किन्नू तोड़ा जा रहा है। किन्नू निम्बू-वंश का एक गोलाकार फल है। इसमें विटामिन सी एवं शर्करा प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह अत्यंत स्वादिष्ट एवं स्वास्थ्य वर्धक फल है। यह संतरे जैसे दिखता है किन्तु आकार थोड़ा बड़ा होता है। श्रेणी:फल श्रेणी:निम्बू-वंश.

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कुपोषण

अतिशय कुपोषण से ग्रसित एक बालक शरीर के लिए आवश्यक सन्तुलित आहार लम्बे समय तक नहीं मिलना ही कुपोषण है। कुपोषण के कारण बच्चों और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार बन जाते हैं। अत: कुपोषण की जानकारियाँ होना अत्यन्त जरूरी है। कुपोषण प्राय: पर्याप्त सन्तुलित अहार के आभाव में होता है। बच्चों और स्त्रियों के अधिकांश रोगों की जड़ में कुपोषण ही होता है। स्त्रियों में रक्ताल्पता या घेंघा रोग अथवा बच्चों में सूखा रोग या रतौंधी और यहाँ तक कि अंधत्व भी कुपोषण के ही दुष्परिणाम हैं। इसके अलावा ऐसे पचासों रोग हैं जिनका कारण अपर्याप्त या असन्तुलित भोजन होता है। .

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कुकी (एक प्रकार का बिस्कुट)

संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में एक छोटे, चपटे आकार के पकाए गए स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ को कुकी कहते हैं, जिसमें आमतौर पर वसा, आटे, अण्डे तथा चीनी का मिश्रण होता है। उत्तरी अमेरिका के बाहर अंग्रेजी भाषा बोलने वाले ज्यादातर देशों में, इसका अधिक प्रचलित नाम बिस्कुट है, कई क्षेत्रों में दोनों नामों का प्रयोग होता है, जबकि बाकी जगहों पर दोनों शब्दों के अर्थ अलग-अलग हैं। स्कॉटलैंड में एक सादी पाव रोटी (बन) को कुकी कहा जाता है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में एक टिकिया जैसी क्विक ब्रेड (रोटी) को बिस्कुट कहा जाता है। ब्रिटेन में, पकाए गए बिस्कुट को कुकी कहा जाता है, जिसमें अधिकतर चॉकलेट के टुकड़े होते हैं। .

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कृषि

कॉफी की खेती कृषि खेती और वानिकी के माध्यम से खाद्य और अन्य सामान के उत्पादन से संबंधित है। कृषि एक मुख्य विकास था, जो सभ्यताओं के उदय का कारण बना, इसमें पालतू जानवरों का पालन किया गया और पौधों (फसलों) को उगाया गया, जिससे अतिरिक्त खाद्य का उत्पादन हुआ। इसने अधिक घनी आबादी और स्तरीकृत समाज के विकास को सक्षम बनाया। कृषि का अध्ययन कृषि विज्ञान के रूप में जाना जाता है तथा इसी से संबंधित विषय बागवानी का अध्ययन बागवानी (हॉर्टिकल्चर) में किया जाता है। तकनीकों और विशेषताओं की बहुत सी किस्में कृषि के अन्तर्गत आती है, इसमें वे तरीके शामिल हैं जिनसे पौधे उगाने के लिए उपयुक्त भूमि का विस्तार किया जाता है, इसके लिए पानी के चैनल खोदे जाते हैं और सिंचाई के अन्य रूपों का उपयोग किया जाता है। कृषि योग्य भूमि पर फसलों को उगाना और चारागाहों और रेंजलैंड पर पशुधन को गड़रियों के द्वारा चराया जाना, मुख्यतः कृषि से सम्बंधित रहा है। कृषि के भिन्न रूपों की पहचान करना व उनकी मात्रात्मक वृद्धि, पिछली शताब्दी में विचार के मुख्य मुद्दे बन गए। विकसित दुनिया में यह क्षेत्र जैविक खेती (उदाहरण पर्माकल्चर या कार्बनिक कृषि) से लेकर गहन कृषि (उदाहरण औद्योगिक कृषि) तक फैली है। आधुनिक एग्रोनोमी, पौधों में संकरण, कीटनाशकों और उर्वरकों और तकनीकी सुधारों ने फसलों से होने वाले उत्पादन को तेजी से बढ़ाया है और साथ ही यह व्यापक रूप से पारिस्थितिक क्षति का कारण भी बना है और इसने मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। चयनात्मक प्रजनन और पशुपालन की आधुनिक प्रथाओं जैसे गहन सूअर खेती (और इसी प्रकार के अभ्यासों को मुर्गी पर भी लागू किया जाता है) ने मांस के उत्पादन में वृद्धि की है, लेकिन इससे पशु क्रूरता, प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक) दवाओं के स्वास्थ्य प्रभाव, वृद्धि हॉर्मोन और मांस के औद्योगिक उत्पादन में सामान्य रूप से काम में लिए जाने वाले रसायनों के बारे में मुद्दे सामने आये हैं। प्रमुख कृषि उत्पादों को मोटे तौर पर भोजन, रेशा, ईंधन, कच्चा माल, फार्मास्यूटिकल्स और उद्दीपकों में समूहित किया जा सकता है। साथ ही सजावटी या विदेशी उत्पादों की भी एक श्रेणी है। वर्ष 2000 से पौधों का उपयोग जैविक ईंधन, जैवफार्मास्यूटिकल्स, जैवप्लास्टिक, और फार्मास्यूटिकल्स के उत्पादन में किया जा रहा है। विशेष खाद्यों में शामिल हैं अनाज, सब्जियां, फल और मांस। रेशे में कपास, ऊन, सन, रेशम और सन (फ्लैक्स) शामिल हैं। कच्चे माल में लकड़ी और बाँस शामिल हैं। उद्दीपकों में तम्बाकू, शराब, अफ़ीम, कोकीन और डिजिटेलिस शामिल हैं। पौधों से अन्य उपयोगी पदार्थ भी उत्पन्न होते हैं, जैसे रेजिन। जैव ईंधनों में शामिल हैं मिथेन, जैवभार (बायोमास), इथेनॉल और बायोडीजल। कटे हुए फूल, नर्सरी के पौधे, उष्णकटिबंधीय मछलियाँ और व्यापार के लिए पालतू पक्षी, कुछ सजावटी उत्पाद हैं। 2007 में, दुनिया के लगभग एक तिहाई श्रमिक कृषि क्षेत्र में कार्यरत थे। हालांकि, औद्योगिकीकरण की शुरुआत के बाद से कृषि से सम्बंधित महत्त्व कम हो गया है और 2003 में-इतिहास में पहली बार-सेवा क्षेत्र ने एक आर्थिक क्षेत्र के रूप में कृषि को पछाड़ दिया क्योंकि इसने दुनिया भर में अधिकतम लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया। इस तथ्य के बावजूद कि कृषि दुनिया के आबादी के एक तिहाई से अधिक लोगों की रोजगार उपलब्ध कराती है, कृषि उत्पादन, सकल विश्व उत्पाद (सकल घरेलू उत्पाद का एक समुच्चय) का पांच प्रतिशत से भी कम हिस्सा बनता है। .

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कूट फल

सेव, प्रमुख कूट फल जब किसी फल का गठन अंडाशय के साथ-साथ फूल के अन्य अंगो से भी होता है तो उस फल को कूट फल कहते हैं। सेव, शरीफा प्रमुख कूट फल हैं। श्रेणी:फल.

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कोलेस्टेरॉल

कोलेस्ट्रॉल क्रिस्टल का सूक्ष्मदर्शी दर्शन, जल में। छायाचित्र ध्युवीकृत प्रकाश में लिया गया है। कोलेस्ट्रॉल या पित्तसांद्रव मोम जैसा एक पदार्थ होता है, जो यकृत से उत्पन्न होता है। यह सभी पशुओं और मनुष्यों के कोशिका झिल्ली समेत शरीर के हर भाग में पाया जाता है। कोलेस्ट्रॉल कोशिका झिल्ली का एक महत्वपूर्ण भाग है, जहां उचित मात्रा में पारगम्यता और तरलता स्थापित करने में इसकी आवश्यकता होती है। कोलेस्ट्रॉल शरीर में विटामिन डी, हार्मोन्स और पित्त का निर्माण करता है, जो शरीर के अंदर पाए जाने वाले वसा को पचाने में मदद करता है। शरीर में कोलेस्ट्रॉल भोजन में मांसाहारी आहार के माध्यम से भी पहुंचता है यानी अंडे, मांस, मछली और डेयरी उत्पाद इसके प्रमुख स्रोत हैं। अनाज, फल और सब्जियों में कोलेस्ट्रॉल नहीं पाया जाता। शरीर में कोलेस्ट्रॉल का लगभग २५ प्रतिशत उत्पादन यकृत के माध्यम से होता है। कोलेस्ट्रॉल शब्द यूनानी शब्द कोले और और स्टीयरियोज (ठोस) से बना है और इसमें रासायनिक प्रत्यय ओल लगा हुआ है। १७६९ में फ्रेंकोइस पुलीटियर दी ला सैले ने गैलेस्टान में इसे ठोस रूप में पहचाना था। १८१५ में रसायनशास्त्री यूजीन चुरवेल ने इसका नाम कोलेस्ट्राइन रखा था। मानव शरीर को कोलेस्ट्रॉल की आवश्यकता मुख्यतः कोशिकाओं के निर्माण के लिए, हारमोन के निर्माण के लिए और बाइल जूस के निर्माण के लिए जो वसा के पाचन में मदद करता है; होती है। फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में नैशनल पब्लिक हेल्थ इंस्टीट्यूट के प्रमुख रिसर्चर डॉ॰ गांग हू के अनुसार कोलेस्ट्रॉल अधिक होने से पार्किंसन रोग की आशंका बढ़ जाती है। .

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कीवी फल

कीवी कीवी (वैज्ञानिक नाम- एक्टीनीडिया डेलीसिओसा) देखने में हल्का भूरा, रोएदार व आयताकार, रूप में चीकू फल की तरह का फल होता है। इसमें विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। एक फल का वजन ४० से ५० ग्राम तक होता है। इस फल की खेती नैनीताल जिले के रामगढ़, धारी, भीमताल, ओखलकांडा, बेतालघाट, लमगड़ा, मुक्तेश्वर, नथुवाखान, तत्तापानी आदि क्षेत्रों के लिए लाभदायक सिद्ध हुई है।masudo ke liye labhdayak hai श्रेणी:फल.

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अचार

आम का चार अचार (भारतीय अचार) बहुत से फलों एवं मसालों से बना एक स्वादिष्ट चटपटा व्यंजन है जो प्राय: दूसरे पकवानों के साथ खाया जाता है। पूरे भारतवर्ष के रसोई में अचार का अद्वितीय स्थान है। हिन्दुस्तान में अचार के अनेका-नेक प्रकार फलों एवं शब्जियों से बनाए जाते है। .

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अन-नफ़ूद रेगिस्तान

अन-नफ़ूद (अरबी:, सहरा अन-नफ़ूद; अंग्रेज़ी: An-Nafud) या अल-नफ़ूद या नफ़ूद अरबी प्रायद्वीप में स्थित एक बड़ा रेगिस्तान है। इसका क्षेत्रफल १,०३,००० वर्ग किमी है, यानि लगभग भारत के बिहार राज्य से ज़रा बड़ा।The New York Times Almanac, Editors and reporters of The New York Times, John W. (ed.) Wright, Penguin Books, Page 67, 2006, ISBN 0-14-303820-6 नफ़ूद एक अर्ग है, जिसमें ज़बरदस्त हवाएँ अचानक चल पड़ती हैं। इस वजह से यह क्षेत्र अर्धचन्द्र अकार के टीलों से भरा हुआ है। यहाँ की रेत का रंग थोड़ा लाल है। .

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अनार

अनार अनार (वानस्पतिक नाम-प्यूनिका ग्रेनेटम) एक फल हैं, यह लाल रंग का होता है। इसमें सैकड़ों लाल रंग के छोटे पर रसीले दाने होते हैं। अनार दुनिया के गर्म प्रदेशों में पाया जाता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह एक महत्त्वपूर्ण फल है। भारत में अनार के पेड़ अधिकतर महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और गुजरात में पाए जाते हैं। सबसे पहले अनार के बारे में रोमन भाषियों ने पता लगाया था। रोम के निवासी अनार को ज्यादा बीज वाला सेब कहते थे। भारत में अनार को कई नामों में जाना जाता है। बांग्ला भाषा में अनार को बेदाना कहते हैं, हिन्दी में अनार, संस्कृत में दाडिम और तमिल में मादुलई कहा जाता है। अनार के पेड़ सुंदर व छोटे आकार के होते हैं। इस पेड़ पर फल आने से पहले लाल रंग का बडा फूल लगता है, जो हरी पत्तियों के साथ बहुत ही खूबसूरत दिखता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह फल लगभग ३०० साल पुराना है। यहूदी धर्म में अनार को जननक्षमता का सूचक माना जाता है, जबकि भारत में अनार अपने स्वास्थ्य सम्ब्न्धी गुण के कारण लोकप्रिय है। .

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अपच्छेदन

अपच्छेदन (Abscission) किसी जीव के किसी अंग के अलग होकर गिर जाने की प्रक्रिया को कहते हैं। उदाहरण के लिये वृक्षों से पत्तों, फलों, फूलों या बीजों का गिरना औपचारिक रूप से जीव विज्ञान में अपच्छेदन कहलाता है। इसी तरह से प्राणी विज्ञान में किसी स्वस्थय प्राणी द्वारा नियमित रूप से त्वचा, बाल या पंजे का झड़ना, या फिर किसी परभक्षी से बचने के लिये कुछ प्राणियों द्वारा जान-बूझकर अपनी पूँछ को अलग कर देना भी अपच्छेदन कहलाता है। कोशिका विज्ञान में कोशिकाद्रव्य विभाजन (cytokinesis, साइटोकाइनीसिस) में किसी कोशिका के बंटकर दो अलग पुत्री कोशिकाओं का बन जाना भी अपच्छेदन के नाम से जाना जाता है। .

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अमरूद

लाल अमरूद का फल अमरूद (वानस्पतिक नाम: सीडियम ग्वायवा, प्रजाति सीडियम, जाति ग्वायवा, कुल मिटसी) एक फल देने वाला वृक्ष है। वैज्ञानिकों का विचार है कि अमरूद की उत्पति अमरीका के उष्ण कटिबंधीय भाग तथा वेस्ट इंडीज़ से हुई है। .

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अल्फोन्सो आम में स्प्ंजी टिशू की समस्या एंव इसका समाधान

thumbnail 'अल्फोन्सो' आम की किस्मों में राजा माना जाता हैं।इसके विकास के द्श्कों बाद भी आंतरिक खराबी या स्प्ंजी टिशू की समस्या के कारण भारत अभी भी इसके नियार्त में काफी पीछे है।इसके फलस्वरुप देश के राजस्व में भारी घाटा होता है।वर्ष १९९८ से यह समस्या एक पह्ली बनी रही हैं। .

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अखरोट

अखरोट (अंग्रेजी: Walnut, वैज्ञानिक नाम: Juglans Regia) पतझड़ करने वाले बहुत सुन्दर और सुगन्धित पेड़ होते हैं। इसकी दो जातियां पाई जाती हैं। 'जंगली अखरोट' 100 से 200 फीट तक ऊंचे, अपने आप उगते हैं। इसके फल का छिलका मोटा होता है। 'कृषिजन्य अखरोट' 40 से 90 फुट तक ऊंचा होता है और इसके फलों का छिलका पतला होता है। इसे 'कागजी अखरोट' कहते हैं। इससे बन्दूकों के कुन्दे बनाये जाते हैं। अखरोट का फल एक प्रकार का सूखा मेवा है जो खाने के लिये उपयोग में लाया जाता है। अखरोट का बाह्य आवरण एकदम कठोर होता है और अंदर मानव मस्तिष्क के जैसे आकार वाली गिरी होती है। अखरोट (के वृक्ष) का वानस्पतिक नाम जग्लान्स निग्रा (Juglans Nigra) है। आधी मुट्ठी अखरोट में 392 कैलोरी ऊर्जा होती हैं, 9 ग्राम प्रोटीन होता है, 39 ग्राम वसा होती है और 8 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होता है। इसमें विटामिन ई और बी6, कैल्शियम और मिनेरल भी पर्याप्तं मात्रा में होते है। .

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अखरोट (फल)

कॉमन हेज़ल से हेज़लनट्स चेस्टनट एक अखरोट और एक अखरोट का बाहरी कोर सारगर्भित फल से हटा रहे हैं। अखरोट वास्तविक अखरोट नहीं हैं। एक नटक्रैकर से सख्त अखरोट काटते हैंशिमला संग्रहालय, हिमाचल प्रदेश, भारत से चित्र. अखरोट एक अस्‍फोटी बीज वाले पौधे का फल है जिसके छिलके सख्त होते हैं। हालांकि विविध सूखे बीजों और फलों को अंग्रेजी में नट्स कहते हैं, उनमें से बहुत कम संख्या को जीवविज्ञानियों के विचार से वास्तविक अखरोट माना जाता है। अखरोट मानव और वन्य जीवन दोनों के लिए पोषक तत्वों का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। अखरोट बीज और फल का यौगिक है, जहां फलों से बीज नहीं निकलते हैं। ज्यादातर बीज फलों से आते हैं और बीज फलों से मुक्त होते हैं, अखरोट के ठीक विपरीत जैसे कि पहाड़ी बादाम, हिकॉरी, शाहबलूत के फल और बंजुफल, फलों के छिलके सख्त होते हैं और यौगिक अंडाशय में से उत्पन्न होते हैं। इस शब्द का पाकशाला में प्रयोग सीमित है और भोजन निर्माण की प्रक्रिया में परिभाषित कुछ अखरोट जैविक अर्थ में अखरोट नहीं हैं, जैसे कि पिस्ता और ब्राजील अखरोट.

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अगस्ति

अगस्ति या गाछ मूंगा (वैज्ञानिक नाम: Sesbania grandiflora, सेस्बानिया ग्रैन्डीफ़्लोरा) सेस्बानिया जीववैज्ञानिक वंश का एक छोटा पौधा है। यह एक तेज़ी से उगने वाला वृक्ष है जो ३ से ७ मीटर लम्बा होता है और मुलायम लकड़ी का बना होता है। इसके फल लम्बी व चपटी फलियों जैसे होते हैं और फूल लाल या सफ़ेद रंग के। यह मूल रूप से मलेशिया से उत्तर ऑस्ट्रेलिया के क्षेत्र का निवासी है लेकिन अब भारत और श्रीलंका में भी उगाया जाता है। इसकी छाल, फूल और जड़ को आयुर्वेद और कई अन्य पारम्परिक चिकित्सा प्रणालियों में रोग-निवारण के लिये प्रयोग में लाया जाता है। .

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अंजीर

अंजीर (अंग्रेजी नाम फ़िग, वानस्पतिक नाम: "फ़िकस कैरिका", प्रजाति फ़िकस, जाति कैरिका, कुल मोरेसी) एक वृक्ष का फल है जो पक जाने पर गिर जाता है। पके फल को लोग खाते हैं। सुखाया फल बिकता है। सूखे फल को टुकड़े-टुकड़े करके या पीसकर दूध और चीनी के साथ खाते हैं। इसका स्वादिष्ट जैम (फल के टुकड़ों का मुरब्बा) भी बनाया जाता है। सूखे फल में चीनी की मात्रा लगभग ६२ प्रतिशत तथा ताजे पके फल में २२ प्रतिशत होती है। इसमें कैल्सियम तथा विटामिन 'ए' और 'बी' काफी मात्रा में पाए जाते हैं। इसके खाने से कोष्ठबद्धता (कब्जियत) दूर होती है। अंजीर मध्यसागरीय क्षेत्र और दक्षिण पश्चिम एशियाई मूल की एक पर्णपाती झाड़ी या एक छोटे पेड़ है जो पाकिस्तान से यूनान तक पाया जाता है। इसकी लंबाई ३-१० फुट तक हो सकती है। अंजीर विश्व के सबसे पुराने फलों मे से एक है। यह फल रसीला और गूदेदार होता है। इसका रंग हल्का पीला, गहरा सुनहरा या गहरा बैंगनी हो सकता है। अंजीर अपने सौंदर्य एवं स्वाद के लिए प्रसिद्ध अंजीर एक स्वादिष्ट, स्वास्थ्यवर्धक और बहु उपयोगी फल है। यह विश्व के ऐसे पुराने फलों में से एक है, जिसकी जानकारी प्राचीन समय में भी मिस्त्र के फैरोह लोगों को थी। आजकल इसकी पैदावार ईरान, मध्य एशिया और अब भूमध्यसागरीय देशों में भी होने लगी है। प्राचीन यूनान में यह फल व्यापारिक दृष्टि से इतना महत्त्वपूर्ण था और इसके निर्यात पर पाबंदी थी। आज विश्व का सबसे पुराना अंजीर का पेड़ सिसली के एक बगीचे में है। अंजीर का वृक्ष छोटा तथा पर्णपाती (पतझड़ी) प्रकृति का होता है। तुर्किस्तान तथा उत्तरी भारत के बीच का भूखंड इसका उत्पत्ति स्थान माना जाता है। भूमध्यसागरीय तट वाले देश तथा वहाँ की जलवायु में यह अच्छा फलता-फूलता है। निस्संदेह यह आदिकाल के वृक्षों में से एक है और प्राचीन समय के लोग भी इसे खूब पसंद करते थे। ग्रीसवासियों ने इसे कैरिया (एशिया माइनर का एक प्रदेश) से प्राप्त किया; इसलिए इसकी जाति का नाम कैरिका पड़ा। रोमवासी इस वृक्ष को भविष्य की समृद्धि का चिह्न मानकर इसका आदर करते थे। स्पेन, अल्जीरिया, इटली, तुर्की, पुर्तगाल तथा ग्रीस में इसकी खेती व्यावसायिक स्तर पर की जाती है। नाशपाती के आकार के इस छोटे से फल की अपनी कोई विशेष तेज़ सुगंध नहीं पर यह रसीला और गूदेदार होता है। रंग में यह हल्का पीला, गहरा सुनहरा या गहरा बैंगनी हो सकता है। छिलके के रंग का स्वाद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता पर इसका स्वाद इस बात पर निर्भर करता है कि इसे कहाँ उगाया गया है और यह कितना पका है। इसे पूरा का पूरा छिलका बीज और गूदे सहित खाया जा सकता है। घरेलू उपचार में ऐसा माना जाता है कि स्थाई रूप से रहने वाली कब्ज़ अंजीर खाने से दूर हो जाती है। जुकाम, फेफड़े के रोगों में पाँच अंजीर पानी में उबाल कर छानकर यह पानी सुबह-शाम पीना चाहिए। दमा जिसमे कफ (बलगम) निकलता हो उसमें अंजीर खाना लाभकारी है इससे कफ बाहर आ जाता है। कच्चे अंजीरों को कमरे के तापमान पर रख कर पकाया जा सकता है लेकिन उसमें स्वाभाविक स्वाद नहीं आता। घरेलू उपचारों में अंजीर का विभिन्न प्रकार से प्रयोग किया जाता है। .

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अंग (शारीरिकी)

जीवविज्ञान (biology) की दृष्टि से एक विशिष्ट कार्य करने वाले उत्तकों के समूह को अंग (organ) कहते हैं। .

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अंगूर

अंगूर अंगूर (संस्कृत: द्राक्षा) एक फल है। अंगूर एक बलवर्द्धक एवं सौन्दर्यवर्धक फल है। अंगूर फल माँ के दूध के समान पोषक है। फलों में अंगूर सर्वोत्तम माना जाता है। यह निर्बल-सबल, स्वस्थ-अस्वस्थ आदि सभी के लिए समान उपयोगी होता है। ये अंगूर की बेलों पर बड़े-बड़े गुच्छों में उगता है। अंगूर सीधे खाया भी जा सकता है, या फिर उससे अंगूरी शराब भी बनायी जा सकती है, जिसे हाला (अंग्रेज़ी में "वाइन") कहते हैं, यह अंगूर के रस का ख़मीरीकरण करके बनायी जाती है। .

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उष्णकटिबंधीय वर्षा-वन

ब्राजील में अमेज़न वर्षावन का एक क्षेत्र. दक्षिण अमेरिका के उष्णकटिबंधीय वर्षावन में धरती पर प्रजातियों की सबसे बड़ी विविधता है। उष्णकटिबंधीय वर्षा-वन एक ऐसा क्षेत्र होता है जो भूमध्य रेखा के दक्षिण या उत्तर में लगभग 28 डिग्री के भीतर होता है। वे एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, मध्य अमेरिका, मेक्सिको और प्रशांत द्वीपों पर पाए जाते हैं। विश्व वन्यजीव निधि के बायोम वर्गीकरण के भीतर उष्णकटिबंधीय वर्षावन को उष्णकटिबंधीय आर्द्र वन (या उष्णकटिबंधीय नम चौड़े पत्ते के वन) का एक प्रकार माना जाता है और उन्हें विषुवतीय सदाबहार तराई वन के रूप में भी निर्दिष्ट किया जा सकता है। इस जलवायु क्षेत्र में न्यूनतम सामान्य वार्षिक वर्षा और के बीच होती है। औसत मासिक तापमान वर्ष के सभी महीनों के दौरान से ऊपर होता है। धरती पर रहने वाले सभी पशुओं और पौधों की प्रजातियों की आधी संख्या इन वर्षावनों में रहती है। मिशिगन विश्वविद्यालय के रीजेण्ट.

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