5 संबंधों: नदी घाटी परियोजनाएँ, भारत की नदी घाटी परियोजनाएं, जगत मेहता, गंगा नदी, गंगा का आर्थिक महत्त्व।
नदी घाटी परियोजनाएँ
नदियों की घाटियो पर बडे-बडे बाँध बनाकर ऊर्जा, सिंचाई, पर्यटन स्थलों की सुविधाएं प्राप्त की जातीं हैं। इसीलिए इन्हें बहूद्देशीय परियोजना कहते हैं। नदीघाटी योजना का प्राथमिक उद्देश्य होता है किसी नदीघाटी के अंतर्गत जल और थल का मानवहितार्थ पूर्ण उपयोग। .
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भारत की नदी घाटी परियोजनाएं
यह भारत में नदी घाटी परियोजनाओं की सूची है:- मयूराक्षी परियोजना.
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जगत मेहता
जगत मेहता एक प्रबुद्ध समाजकर्मी और सेवानिवृत्त भारतीय विदेश सेवा अधिकारी थे। 17 जुलाई 1922 को प्रख्यात शिक्षाविद् डॉ॰ मोहन सिंह मेहता तथा विद्यादेवी के घर जन्मे जगत मेहता की प्रारंभिक शिक्षा विद्या भवन स्कूल में हुई। मेहता की उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय तथा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में हुई। मेहता मार्च 1947 में भारतीय विदेश सेवा में चयनित हुए तथा विदेश नीति आयोजना विभाग के पहले प्रमुख बने। इससे पूर्व, जगत सिंह मेहता इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक तथा भारतीय नौसेना में भी कार्यरत रहे थे। जगत मेहता की 1960 में भारत चीन सीमा-विवाद सुलझाने, 1975 में युगाण्डा से निकाले गये भारतीयों के मुद्दे का निराकरण करने, 1976 में पाकिस्तान के साथ सामान्य संबंधों की बहाली, भारत पाकिस्तान के मध्य 1976 में सलाल बांध एवं 1977 में फरक्का बांध विवाद निपटाने तथा नेपाल के साथ 1978 में व्यापारिक रिश्तों संबंधी समझौतों में ऐतिहासिक भूमिका रही। जगत मेहता ने अपने विदेश सेवा काल में 50 से अधिक देशों के साथ भारत के बहुपक्षीय संबंधों पर नेतृत्व किया। कॉमनवैल्थ प्रधानमंत्रियों तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न सम्मेलनों व बैठकों में मेहता की उपस्थिति व योगदान भारत की वैदेशिक कूटनीति के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जगत मेहता 1976 से 1979 के मध्य, देश के विदेश-सचिव रहे। वे टेक्सास विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे। जगत सिंह मेहता अपने पिता द्वारा संस्थापित संस्था सेवा मन्दिर से पूरी उम्र जुड़े रहे तथा समाज-कार्यों के माध्यम से इन्होंने उदयपुर के लगभग 400 गांवों के समेकित विकास में प्रमुख भूमिका निभाई। 1985 से 94 तक वे सेवा मन्दिर के अध्यक्ष भी रहे तथा 1993 से 2000 तक उदयपुर की ही एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्था विद्या भवन के अध्यक्ष रहे। 1985 से अंत तक डॉ॰ मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट के प्रन्यासी भी रहे। जगत मेहता उदयपुर स्थित झील संरक्षण समिति के अध्यक्ष भी थे तथा उदयपुर की झीलों के लिये चिंता करते रहे। उनके परिवार में तीन पुत्र विक्रम मेहता, अजय मेहता तथा उदय मेहता एवं एक पुत्री विजया हैं। विदेश नीति के क्षेत्र में सम्पूर्ण विश्व में विशिष्ट पहचान रखने वाले तथा प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक को विदेश नीति के मसलों पर सारगर्भित सलाह देने वाले, पूर्व विदेश सचिव पद्मभूषण जगत मेहता का 6 मार्च 2014 गुरूवार को उदयपुर में निधन हुआ। .
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गंगा नदी
गंगा (गङ्गा; গঙ্গা) भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है। यह भारत और बांग्लादेश में कुल मिलाकर २,५१० किलोमीटर (कि॰मी॰) की दूरी तय करती हुई उत्तराखण्ड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुन्दरवन तक विशाल भू-भाग को सींचती है। देश की प्राकृतिक सम्पदा ही नहीं, जन-जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। २,०७१ कि॰मी॰ तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। १०० फीट (३१ मी॰) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ तथा देवी के रूप में की जाती है। भारतीय पुराण और साहित्य में अपने सौन्दर्य और महत्त्व के कारण बार-बार आदर के साथ वंदित गंगा नदी के प्रति विदेशी साहित्य में भी प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णन किये गये हैं। इस नदी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियाँ तो पायी ही जाती हैं, मीठे पानी वाले दुर्लभ डॉलफिन भी पाये जाते हैं। यह कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बांध और नदी परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से सम्बन्धित ज़रूरतों को पूरा करती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस अनुपम शुद्धीकरण क्षमता तथा सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसको प्रदूषित होने से रोका नहीं जा सका है। फिर भी इसके प्रयत्न जारी हैं और सफ़ाई की अनेक परियोजनाओं के क्रम में नवम्बर,२००८ में भारत सरकार द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी तथा इलाहाबाद और हल्दिया के बीच (१६०० किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है। .
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गंगा का आर्थिक महत्त्व
गंगा में मत्स्य पालन गंगा भारत के आर्थिक तंत्र का एक महत्वपूर्ण भाग है। उसके द्वारा सींची गई खेती, उसके वनों में आश्रित पशुपक्षी, उसके जल में पलने वाले मीन मगर, उसके ऊपर बने बाँधों से प्राप्त बिजली और पानी, उस पर ताने गए पुलों से बढ़ता यातायात और उसके जलमार्ग से होता आवागमन और व्यापार तथा पर्यटन उसे भारत की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण साधन साबित करते हैं। गंगा अपनी उपत्यकाओं से भारत और बांग्लादेश की कृषि आधारित अर्थ में भारी सहयोग तो करती ही है, यह अपनी सहायक नदियों सहित बहुत बड़े क्षेत्र के लिए सिंचाई के बारहमासी स्रोत भी हैं। इन क्षेत्रों में उगाई जाने वाली प्रधान उपज में मुख्यतः धान, गन्ना, दाल, तिलहन, आलू एवं गेहूँ हैं। जो भारत की कृषि आज का महत्वपूर्ण स्रोत हैं। गंगा के तटीय क्षेत्रों में दलदल एवं झीलों के कारण यहां लेग्यूम, मिर्चें, सरसों, तिल, गन्ने और जूट की अच्छी फसल होती है। नदी में मत्स्य उद्योग भी बहुत जोरों पर चलता है। गंगा नदी प्रणाली भारत की सबसे बड़ी नदी प्रणाली है। इसमें लगभग ३७५ मत्स्य प्रजातियाँ उपलब्ध हैं। वैज्ञानिकों द्वारा उत्तर प्रदेश व बिहार में १११ मत्स्य प्रजातियों की उपलब्धता बतायी गयी है। फरक्का बांध बन जाने से गंगा नदी में हिल्सा मछली के बीजोत्पादन में सहायता मिली है। गंगा का महत्व पर्यटन पर आधारित आय के कारण भी है। इसके तट पर ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तथा प्राकृति सौंदर्य से भरपूर कई पर्यटन स्थल है जो राष्ट्रीय आज का महत्वपूर्ण स्रोत हैं। गंगा नदी पर रैफ्टिंग के शिविरों का आयोजन किया जाता है। जो साहसिक खेलों और पर्यावरण द्वारा भारत के आर्थिक सहयोग में सहयोग करते हैं। गंगा तट के तीन बड़े शहर हरिद्वार, इलाहाबाद एवं वाराणसी जो तीर्थ स्थलों में विशेष स्थान रखते हैं। इस कारण यहाँ श्रद्धालुओं की संख्या में निरंतर बनी रहता है और धार्मिक पर्यटन में महत्वपूर्म योगदान करती है। गर्मी के मौसम में जब पहाड़ों से बर्फ पिघलती है, तब नदी में पानी की मात्रा व बहाव अच्छा होता है, इस समय उत्तराखंड में ऋषिकेश - बद्रीनाथ मार्ग पर कौडियाला से ऋषिकेश के मध्य रैफ्टिंग के शिविरों का आयोजन किया जाता है, जो साहसिक खोलों के शौकीनों और पर्यटकों को विशेष रूप से आकर्षित कर के भारत के आर्थिक सहयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। .
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