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प्राचीन भारतीय शिलालेख

सूची प्राचीन भारतीय शिलालेख

भारतीय उपमहाद्वीप से प्राप्त सबसे प्राचीन पुरालेख सिन्धु घाटी की सभ्यता की खुदाई से प्राप्त हुए हैं जो अब तक पढ़े नहीं जा सके हैं। उनका समय तीसरी सहस्राब्दी ईसापूर्व है। .

3 संबंधों: वट्टेऴुत्तु, ग्वालियर प्रशस्ति, अभिलेख

वट्टेऴुत्तु

वट्टेऴुत्तु (तमिल: வட்டெழுத்து) (अर्थात् गोल अक्षर) एक अबुगिडा लेखन प्रणाली है जिसका उपज दक्षिण भारत और श्री लंका के तमिल लोगों द्वारा हुई। इस उच्चारण-आधारित वर्णमाला के ६ठी सदी से १४वीं सदी के बीच के साक्ष्य वर्तमान काल के भारतीय राज्यों तमिल नाडु और केरल में मिलते हैं। बाद में इसकी जगह आधुनिक तमिल लिपि और मलयालम लिपि ने ले ली। वट्टेऴुत्तु जैसे व्यापक शब्द का प्रयोग जॉर्ज कोईड्स व डीजीई हॉल जैसे दक्षिणपूर्व एशिया अध्ययन करने वाले विद्वानों ने किया है। दूसरी सदी तक तमिल को तमिल ब्राह्मी में लिखा जाता था। बाद में तमिल के लिए इस लिपि का प्रयोग होने लगा। तमिल ब्राह्मी भी ब्राह्मी आधारित लिपि ही है। इस गोल लिपि का प्रयोग केरल में तमिल, प्राचीन-मलयालम व मलयालम भाषा लिखने के लिए भी किया जाता था। इस समय मलयालम के लिए मलयालम लिपि का प्रयोग होता है। तमिल भाषा के ३०० ई.पू.

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ग्वालियर प्रशस्ति

मिहिरकुल की ग्वालियर प्रशस्ति एक शिलालेख है जिस पर संस्कृत में मातृछेत द्वारा सूर्य मन्दिर के निर्माण का उल्लेख है। अलेक्जैण्डर कनिंघम ने १८६१ में इसे देखा था और इसके बारे में उसी वर्ष प्रकाशित किया। उसके बाद इस शिलालेख के अनेकों अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। यह क्षतिग्रत अवस्था में विद्यमान है। इसकी लिपि प्राचीन उत्तरी गुप्त लिपि है और श्लोक के रूप में लिखा गया है। इस शिलालेख में हूण राजा मिहिरकुल के शासनकाल में, ६ठी शताब्दी के प्रथम भाग में सूर्य मन्दिर के निर्माण का उल्लेख है।.

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अभिलेख

कंधार स्थित सम्राट अशोक के द्वारा उत्कीर्ण एक पाषाण अभिलेख अभिलेख पत्थर अथवा धातु जैसी अपेक्षाकृत कठोर सतहों पर उत्कीर्ण किये गये पाठन सामाग्री को कहते है। प्राचीन काल से इसका उपयोग हो रहा है। शासको के द्वारा अपने आदेशो को इस तरह उत्कीर्ण करवाते थे, ताकि लोग उन्हे देख सके एवं पढ़ सके और पालन कर सके। आधुनिक युग मे भी इसका उपयोग हो रहा है। .

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