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प्रागितिहास

सूची प्रागितिहास

आज से लगभग २७,००० साल पहले फ़्रान्स की एक गुफ़ा में एक प्रागैतिहासिक मानव ने अपने हाथ के इर्दगिर्द कालख लगाकर यह छाप छोड़ी प्रागैतिहासिक (Prehistory) इतिहास के उस काल को कहा जाता है जब मानव तो अस्तित्व में थे लेकिन जब लिखाई का आविष्कार न होने से उस काल का कोई लिखित वर्णन नहीं है।, Chris Gosden, pp.

26 संबंधों: एडवर्ड बर्नेट टाइलर, तमिल नाडु, त्रियुग पद्धति, दुग्धशाला, पत्थलगड़ी, पशुजन्यरोग, पुरातत्व स्थल, प्रस्तर मूर्तिकला, पेंगुइन, भारत में लौह युग, भारत के राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों की सूची, महापाषाण, मेगालोडोन, रेखाचित्र, सालार दे उयुनी, संचार का इतिहास, स्टोनहॅन्ज, जुनापाणी के शिलावर्त, वेताल द्वीप, गणित का इतिहास, गैलिक आयरलैंड, इस्ला देल पेस्कादो, इस्ला इन्काउआसी, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, इकसिंगा, अधिमहाद्वीप

एडवर्ड बर्नेट टाइलर

सर एडवर्ड बर्नेट टाइलर (2 अक्टूबर 1832 – 2 जनवरी 1917) एक अंग्रेज़ मानव विज्ञानी थे। टाइलर सांस्कृतिक विकासवाद के प्रतिनिधि हैं। टाइलर ने प्राचीन संस्कृति और मानवविज्ञान में, चार्ल्स लिएल के विकासवाद के सिद्धान्त पर आधारित मानव विज्ञान के वैज्ञानिक अध्ययन के संदर्भ का वर्णन किया है। उनका विश्वास था कि समाज और धर्म के विकास के पीछे एक कार्यात्मक आधार होता है, इनका दृढ़ विश्वास था कि वो आधार सार्वभौमिक होता है। ई. बी.

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तमिल नाडु

तमिल नाडु (तमिल:, तमिऴ् नाडु) भारत का एक दक्षिणी राज्य है। तमिल नाडु की राजधानी चेन्नई (चेऩ्ऩै) है। तमिल नाडु के अन्य महत्त्वपूर्ण नगर मदुरै, त्रिचि (तिरुच्चि), कोयम्बतूर (कोऽयम्बुत्तूर), सेलम (सेऽलम), तिरूनेलवेली (तिरुनेल्वेऽली) हैं। इसके पड़ोसी राज्य आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल हैं। तमिल नाडु में बोली जाने वाली प्रमुख भाषा तमिल है। तमिल नाडु के वर्तमान मुख्यमन्त्री एडाप्पडी  पलानिस्वामी  और राज्यपाल विद्यासागर राव हैं। .

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त्रियुग पद्धति

त्रि-युग पद्धति (three-age system) में प्रागितिहास को तीन से विभाज्य कालखण्डों में बांटा जाता है। जैसे पाषाण युग, कांस्ययुग, लौहयुग। श्रेणी:इतिहास के सिद्धांत en:Tree-age system.

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दुग्धशाला

एक दुग्धशाला दुग्धशाला या डेरी में पशुओं का दूध निकालने तथा तत्सम्बधी अन्य व्यापारिक एवं औद्योगिक गतिविधियाँ की जाती हैं। इसमें प्रायः गाय और भैंस का दूध निकाला जाता है किन्तु बकरी, भेड़, ऊँट और घोड़ी आदि के भी दूध निकाले जाते हैं। .

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पत्थलगड़ी

पत्थलगड़ी उन पत्थर स्मारकों को कहा जाता है जिसकी शुरुआत इंसानी समाज ने हजारों साल पहले की थी। यह एक पाषाणकालीन परंपरा है जो आदिवासियों में आज भी प्रचलित है। माना जाता है कि मृतकों की याद संजोने, खगोल विज्ञान को समझने, कबीलों के अधिकार क्षेत्रों के सीमांकन को दर्शाने, बसाहटों की सूचना देने, सामूहिक मान्यताओं को सार्वजनिक करने आदि उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रागैतिहासिक मानव समाज ने पत्थर स्मारकों की रचना की। पत्थलगड़ी की इस आदिवासी परंपरा को पुरातात्त्विक वैज्ञानिक शब्दावली में ‘महापाषाण’, ‘शिलावर्त’ और मेगालिथ कहा जाता है। दुनिया भर के विभिन्न आदिवासी समाजों में पत्थलगड़ी की यह परंपरा मौजूदा समय में भी बरकरार है। झारखंड के मुंडा आदिवासी समुदाय इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं जिनमें कई अवसरों पर पत्थलगड़ी करने की प्रागैतिहासिक और पाषाणकालीन परंपरा आज भी प्रचलित है। .

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पशुजन्यरोग

ज़ूनोसिस या ज़ूनोस कोई भी ऐसा संक्रामक रोग है जो (कुछ उदाहरणों में, एक निश्चित परिमाण द्वारा) गैर मानुषिक जानवरों, घरेलू और जंगली दोनों ही, से मनुष्यों में या मनुष्यों से गैर मानुषिक जानवरों में संक्रमित हो सकता है (मनुष्यों से जानवरों में संक्रमित होने पर इसे रिवर्स ज़ुनिसिस या एन्थ्रोपोनोसिस कहते हैं).

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पुरातत्व स्थल

पुरातत्व स्थल (archaeological site) ऐसे स्थान या स्थानों के समूह को बोलते हैं जहाँ इतिहास या प्रागैतिहास (प्रेईहिस्टरी) में बीती हुई घटनाओं व जीवन के चिह्न मिलें। इनका अध्ययन करना इतिहास मालूम करने के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण होता है और पुरातत्वशास्त्र (पुरातत्व स्थलों की छानबीन करना) इतिहास की एक जानीमानी शाखा है। .

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प्रस्तर मूर्तिकला

पत्थर की मूर्तियाँ प्रागैतिहासिक काल से ही अनेक कारणों से बनाई जा रही हैं। पत्थर की मूर्तियाँ केवल सुंदरता का ही नहीं, बलकी और भी बहुत चीज़ों का प्रतीक है। इस बात को इस लेख में समझाया गया है। और यह भी दिखाया है कि सालों से विकास करती यह कला अत्यंत आकर्शक और महत्वपूर्ण है। पत्थर की मूर्तियाँ पत्थर को तीन आयमों में काटने से बनती हैं। इनकी आधारभूत संकलपना एक ही होने पर भी हमें लाखों तरह की रचनाएँ देखने को मिलती हैं। यह एक प्राचीन कला है जिसमें प्राकृतिक पत्थर को नियंत्रित रीति से काटा जाता हैं। कलाकार अपनी क्शमता को पथ्थर को काटने में दिखाता हैं, जैसे वह उसकी कुशलता का प्रतीक हो। सुबह शाम, दिन रात एक करके वे पत्थर को विभिन्न आकृतियों में काँट कर, उसको एक मूर्ती का रूप देता हैं। .

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पेंगुइन

पेंगुइन (पीढ़ी स्फेनिस्कीफोर्मेस, प्रजाति स्फेनिस्कीडाई) जलीय समूह के उड़ने में असमर्थ पक्षी हैं जो केवल दक्षिणी गोलार्द्ध, विशेष रूप से अंटार्कटिक में पाए जाते हैं। पानी में जीवन के लिए अत्याधिक अनुकूलित, पेंगुइन विपरीत रंगों, काले और सफ़ेद रंग के बालों वाला पक्षी है और उनके पंख हाथ (फ्लिपर) बन गये हैं। पानी के नीचे तैराकी करते हुए अधिकांश पेंगुइन पकड़ी गयी छोटी मछलियों, मछलियों, स्क्विड और अन्य जलीय जंतुओं को भोजन बनाते हैं। वे अपना लगभग आधा जीवन धरती पर और आधा जीवन महासागरों में बिताते हैं। हालांकि सभी पेंगुइन प्रजातियां दक्षिणी गोलार्द्ध की मूल निवासी हैं, लेकिन ये केवल अंटार्कटिक जैसे ठंडे मौसम में ही नहीं पाई जातीं. वास्तव में, पेंगुइन की कुछ प्रजातियों में अब केवल कुछ ही दक्षिण में रहती हैं। कई प्रजातियां शीतोष्ण क्षेत्र में पाई जाती हैं और एक प्रजाति गैलापागोस पेंगुइन भूमध्य रेखा के पास रहती है। सबसे बड़ी जीवित प्रजाति एम्परर पेंगुइन (एप्टेनोडाईट्स फ़ोर्सटेरी): है - वयस्क की उंचाई औसतन 1.1 मी (3 फुट 7 इंच) लंबा और वजन 35 किलोग्राम (75 पौंड) होता है। सबसे छोटी प्रजाति लिटिल ब्लू पेंगुइन (यूडिपटुला माइनर), फेयरी पेंगुइन के नाम से भी जानी जाती है, की उंचाई लगभग 40 सेमी (16 इंच) और वजन 1 किलोग्राम (2.2 पौंड) होता है। वर्तमान में पाए जाने वाले पेंगुइनों में, बड़े पेंगुइन ठंडे क्षेत्रों में निवास करते हैं, जबकि छोटे पेंगुइन आम तौर पर शीतोष्ण या उष्णकटिबंधीय जलवायु में भी पाए जाते हैं (इसे भी देखें बर्गमैन'ज़ रूल). कुछ प्रागैतिहासिक प्रजातियां आकार में व्यस्क मानव जितनी उंची तथा वजनी थीं (अधिक जानकारी के लिए नीचे देखें). ये प्रजाति अंटार्कटिक क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं थी; बल्कि इसके विपरीत, अंटार्कटिक उपमहाद्वीप के क्षेत्रों में ज्यादा विविधता मिलती थी और कम से कम एक विशाल पेंगुइन उस क्षेत्र में मिला है जो भूमध्य रेखा के 35 से 2000 किमी दक्षिण से ज्यादा दूर नहीं था तथा जहां का वातावरण आज के अपेक्षाकृत ज्यादा गरम था। .

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भारत में लौह युग

भारतीय उपमहाद्वीप की प्रागितिहास में, लौह युग गत हड़प्पा संस्कृति (कब्र संस्कृति) के उत्तरगामी काल कहलाता है। वर्तमान में उत्तरी भारत के मुख्य लौह युग की पुरातात्विक संस्कृतियां, गेरूए रंग के मिट्टी के बर्तनों की संस्कृति (1200 से 600 ईसा पूर्व) और उत्तरी काले रंग के तराशे बर्तन की संस्कृति (700 से 200 ईसा पूर्व) में देखी जा सकती हैं। इस काल के अंत तक वैदिक काल के जनपद या जनजातीय राज्यों का सोलह महाजनपदों या प्रागैतिहासिक काल के राज्यों के रूप में संक्रमण हुआ, जो ऐतिहासिक बौद्ध मौर्य साम्राज्य के उद्भव में सहायक हुआ। .

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भारत के राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों की सूची

भारत में, राष्ट्रीय महत्व के स्मारक, भारत में स्थित वे ऐतिहासिक, प्राचीन अथवा पुरातात्विक संरचनाएँ, स्थल या स्थान हैं, जोकि, प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 किए अधीन, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के माध्यम से भारत की संघीय सरकार या राज्य सरकारों द्वारा संरक्षिक होती हैं। ऐसे स्मारकों को "राष्ट्रीय महत्व का स्मारक" होने के मापदंड, प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 द्वारा परिभाषित किये गए हैं। ऐसे स्मारकों को इस अधिनियम के मापदंडों पर खरा उतरने पर, एक वैधिक प्रक्रिया के तहत पहले "राष्ट्रीय महत्व" का घोषित किया जाता है, और फिर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के संसाक्षणाधीन कर दिया जाता है, ताकि उनकी ऐतिहासिक महत्व क्व मद्देनज़र, उनकी उचित देखभाल की जा सके। वर्त्तमान समय में, राष्ट्रीय महत्व के कुल 3650 से अधिक प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष देश भर में विद्यमान हैं। ये स्मारक विभिन्न अवधियों से संबंधित है जो प्रागैतिहासिक अवधि से उपनिवेशी काल तक के हैं, जोकि विभिन्न भूगोलीय स्थितियों में स्थित हैं। इनमें मंदिर, मस्जिद, मकबरे, चर्च, कब्रिस्तान, किले, महल, सीढ़ीदार, कुएं, शैलकृत गुफाएं, दीर्घकालिक वास्तुकला तथा साथ ही प्राचीन टीले तथा प्राचीन आवास के अवशेषों का प्रतिनिधित्व करने वाले स्थल शामिल हैं। इन स्मारकों तथा स्थलों का रखरखाव तथा परिरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के विभिन्न मंडलों द्वारा किया जाता है जो पूरे देश में फैले हुए हैं। .

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महापाषाण

महापाषाण (अंग्रेज़ी: megalith, मॅगालिथ) ऐसे बड़े पत्थर या शिला को कहते हैं जिसका प्रयोग किसी स्तम्भ, स्मारक या अन्य निर्माण के लिये किया गया हो। कुछ ऐतिहासिक व प्रागैतिहासिक (प्रीहिस्टोरिक) स्थलों में ऐसे महापाषाणों को तराशकर और एक-दूसरे में फँसने वाले हिस्से बनाकर बिना सीमेंट या मसाले के निर्माण किये जाते थे। महापाषाणों का ऐसा प्रयोग अधिकतर पाषाण युग और कुछ हद तक कांस्य युग में होता था। .

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मेगालोडोन

मेगालोडोन, जिसका अर्थ यूनानी, में "बड़े दाँत" होता है (कैरकारोडोन मेगालोडोन) प्रागैतिहासिक काल में रहने वाली एक विशाल हाँगर थी। इस प्रजाति के सबसे पुराने मिले अवशेष लगभग 18 लाख वर्ष पुराने है,और ऐसा माना जाता है कि कैरकारोडोन मेगालोडोन संभवतः 1.5 करोड़ वर्ष पहले विलुप्त हो गयी थी। यह अपने समय की शीर्ष शिकारी और सबसे बड़ी मांसाहारी मछली थी। कैरकारोडोन मेगालोडोन लंबाई मे 18 मीटर से अधिक बढ़ सकती थी और इससे प्रतीत होता है कि यह संभवतः अभी तक की सबसे बड़ी हाँगर थी। इसके अवशेषों की जांच से, वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि मेगालोडोन लैम्नीफॉर्म्स वर्ग से संबंधित थी। हालांकि, वैज्ञानिक अभी भी इसके जीनस को लेकर संशय मे हैं। मेगालोडोन के जीवाश्म से साक्ष्य मिलते हैं कि इसकी खुराक मे बड़े समुद्री जानवर शामिल थे। ''मेगालोडोन'' महान श्वेत हाँगर और मनुष्य के साथ आकार की तुलना के लिए .

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रेखाचित्र

एनीबल काराकी द्वारा चित्रित नग्न पुरुष, 16वीं सदी रेखाचित्र या 'आरेखण' (ड्राइंग) एक दृश्य कला है जो द्वि-आयामी साधन को चिह्नित करने के लिए किसी भी तरह के रेखाचित्र उपकरणों का उपयोग करता है। आम उपकरणों में शामिल है ग्रेफाइट पेंसिल, कलम और स्याही, स्याहीदार ब्रश, मोम की रंगीन पेंसिल, क्रेयोन, चारकोल, खड़िया, पैस्टल, मार्कर, स्टाइलस, या विभिन्न धातु सिल्वरपॉइंट। एक रेखाचित्र पर काम करने वाले कलाकार को नक्शानवीस या प्रारूपकार के रूप में उद्धृत किया जा सकता है। सामग्री की अल्प मात्रा एक द्वि-आयामी साधन पर डाली जाती है, जो एक गोचर निशान छोड़ती है - यह प्रक्रिया चित्रकारी के समान ही है। रेखाचित्र के लिए सबसे आम सहायक है कागज़, हालांकि अन्य सामग्री, जैसे गत्ता, प्लास्टिक, चमड़ा, कैनवास और बोर्ड का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। अस्थायी रेखाचित्रों को ब्लैकबोर्ड पर या व्हाईटबोर्ड पर या निस्संदेह लगभग हर चीज़ पर बनाया जा सकता है। यह माध्यम, स्थायी मार्कर की सुलभता के कारण भित्ति चित्रण के माध्यम से सार्वजनिक अभिव्यक्ति का एक लोकप्रिय साधन भी बन गया है। .

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सालार दे उयुनी

सालार दे उयुनी (स्पेनी: Salar de Uyuni), जिसे सालार दे तुनुपा (स्पेनी: Salar de Tunupa) भी कहा जाता है, दुनिया का सबसे बड़ा नमक का मैदान है। १०,५८२ वर्ग किमी के क्षेत्रफल (लगभग भारत के त्रिपुरा राज्य के बराबर) वाला यह नमक का मैदान बोलिविया के पोतोसी व ओरूरो विभागों में स्थित है। यह ३,६५६ मीटर (११,९९५ फ़ुट) की ऊँचाई पर ऐन्डी पर्वत शृंखला के छोर पर स्थित है।, Karen Hartburn, pp.

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संचार का इतिहास

संचार का इतिहास प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होता है। संचार के अन्तर्गत तुच्छ विचार-विनिमय से लेकर शास्त्रार्थ एवं जनसंचार (mass communication) सब आते हैं। कोई २००,००० वर्ष पूर्व मानव-वाणी के प्रादुर्भाव के साथ मानव संचार में एक क्रान्ति आयी थी। लगभग ३०,००० वर्ष पूर्व प्रतीकों का विकास हुआ एवं लगभग ७००० ईसापूर्व लिपि और लेखन का विकास हुआ। इनकी तुलना में पिछली कुछ शताब्दियों में ही दूरसंचार के क्षेत्र में बहुत अधिक विकास हुआ है। .

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स्टोनहॅन्ज

स्टोनहॅन्ज (अंग्रेज़ी: Stonehenge) ब्रिटेन की विल्टशायर काउंटी में स्थित एक प्रसिद्ध प्रागैतिहासिक (प्रीहिस्टोरिक) स्थापत्य है। यह एक महापाषाण शिलावर्त (बड़ी शिलाओं को व्यवस्थित करके बनाया गया गोला) है। इसमें ७ मीटर (२३ फ़ुट) से भी ऊँची शिलाओं को धरती में गाड़कर खड़ा करके एक चक्र बनाया गया था। इतिहासकार अनुमान लगाते हैं कि इसका निर्माण पाषाण युग और कांस्य युग में ३००० ईसापूर्व से २००० ईसापूर्व काल में सम्पन्न हुआ। स्टोनहॅन्ज के प्राचीन निर्माताओं के ध्येय के बारे में विद्वानों में मतभेद है लेकिन यहाँ ३००० ईसापूर्व काल से शुरु होकर मानव क़ब्रों के चिह्न मिलते हैं जिनमें सबसे प्राचीन अस्तियाँ ३००० ईपू में अग्निदाह किये गये एक मृतक की हैं।, Maev Kennedy, The Guardian, Friday 8 मार्च 2013,...

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जुनापाणी के शिलावर्त

जुनापाणी के शिलावर्त भारत के महाराष्ट्र राज्य के नागपुर नगर के पास स्थित जुनापाणी शहर में महापाषाण शिलावर्त (बड़ी शिलाओं से ज़मीन पर बने गोले) हैं जो यहाँ प्रागैतिहासिक काल में बनाए गए थे। यहाँ पत्थरों के ऐसे ३०० चक्र मिले हैं। सन् १८७९ में इतिहासकार जे॰ ऍच॰ रिवॅट-कारनैक ने यहाँ खुदाई करके इनकी खोज की थी। इन शिलावर्तों में लोहे के ख़ंजर, कुल्हाड़े, फावड़े, कंगन, छल्ले, तराशने के पैने औज़ार और चिमटे (जो शायद कभी लकड़ी के दस्ते रखते थे) मिले हैं। यहाँ लाल और काली मट्टी के बर्तनों के टुकड़े भी मिले हैं जिनमें से कुछ पर काले रंग से डिज़ाईन बने हुए हैं। कुछ जगहों पर लोग भी दफ़न हैं और वहाँ केअर्न (पत्थरों की व्यवस्थित ढेरियाँ) बने हुए हैं। इतिहासकारों के अनुसार यह शिलावर्त शायद १००० ईसापूर्व काल में बने हों। कुछ पत्थरों पर प्यालों के चिह्न हैं और उन्हें दिशाओं के अनुसार खड़ा किया गया है जिस से यह सम्भावना बनती है कि इनका प्रयोग खगोल-जिज्ञासा से सम्बन्धित रहा हो। हालांकि बहुत से शिलावर्त पाषाण युग में बने होते हैं, अपनी निर्माण आयु के मुताबिक़ यह शिलावर्त लौह युग में बने थे। .

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वेताल द्वीप

उत्तरी अंध महासागर में फ्रिसलैंड नामक वेताल द्वीप को दर्शाता 1558 का ज़ीनो मानचित्र वेताल द्वीप वो द्वीप हैं जिनका अस्तित्व दर्ज इतिहास के एक लंबे समय तक स्वीकार किया जाता था और इन्हे पुराने नक्शों में दर्शाया भी जाता था, पर बाद में यह पाया गया कि यह मात्र एक विश्वास ही था और इस प्रकार के द्वीप अस्तित्व में नहीं हैं। इनके विपरीत लुप्त भूमि वो द्वीप या महाद्वीप हैं जिनके बारे में कुछ लोग मानते हैं कि वो प्रागैतिहासिक काल के दौरान अस्तित्व में थे और अक्सर इन्हें प्राचीन मिथकों और किंवदंतियों के साथ जोड़ा जाता है। .

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गणित का इतिहास

ब्राह्मी अंक, पहली शताब्दी के आसपास अध्ययन का क्षेत्र जो गणित के इतिहास के रूप में जाना जाता है, प्रारंभिक रूप से गणित में अविष्कारों की उत्पत्ति में एक जांच है और कुछ हद तक, अतीत के अंकन और गणितीय विधियों की एक जांच है। आधुनिक युग और ज्ञान के विश्व स्तरीय प्रसार से पहले, कुछ ही स्थलों में नए गणितीय विकास के लिखित उदाहरण प्रकाश में आये हैं। सबसे प्राचीन उपलब्ध गणितीय ग्रन्थ हैं, प्लिमपटन ३२२ (Plimpton 322)(बेबीलोन का गणित (Babylonian mathematics) सी.१९०० ई.पू.) मास्को गणितीय पेपाइरस (Moscow Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित (Egyptian mathematics) सी.१८५० ई.पू.) रहिंद गणितीय पेपाइरस (Rhind Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित सी.१६५० ई.पू.) और शुल्बा के सूत्र (Shulba Sutras)(भारतीय गणित सी. ८०० ई.पू.)। ये सभी ग्रन्थ तथाकथित पाईथोगोरस की प्रमेय (Pythagorean theorem) से सम्बंधित हैं, जो मूल अंकगणितीय और ज्यामिति के बाद गणितीय विकास में सबसे प्राचीन और व्यापक प्रतीत होती है। बाद में ग्रीक और हेल्लेनिस्टिक गणित (Greek and Hellenistic mathematics) में इजिप्त और बेबीलोन के गणित का विकास हुआ, जिसने विधियों को परिष्कृत किया (विशेष रूप से प्रमाणों (mathematical rigor) में गणितीय निठरता (proofs) का परिचय) और गणित को विषय के रूप में विस्तृत किया। इसी क्रम में, इस्लामी गणित (Islamic mathematics) ने गणित का विकास और विस्तार किया जो इन प्राचीन सभ्यताओं में ज्ञात थी। फिर गणित पर कई ग्रीक और अरबी ग्रंथों कालैटिन में अनुवाद (translated into Latin) किया गया, जिसके परिणाम स्वरुप मध्यकालीन यूरोप (medieval Europe) में गणित का आगे विकास हुआ। प्राचीन काल से मध्य युग (Middle Ages) के दौरान, गणितीय रचनात्मकता के अचानक उत्पन्न होने के कारण सदियों में ठहराव आ गया। १६ वीं शताब्दी में, इटली में पुनर् जागरण की शुरुआत में, नए गणितीय विकास हुए.

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गैलिक आयरलैंड

गेलिक आयरलैंड या आयरलैंड की सेल्टिक सभ्यता, आयरलैंड द्वीप की देशज गेलिक लोगों द्वारा विकिसित राजनैतिक व सामाजिक व्यवस्था की सभ्यता को कहा जाता है, यह प्रागैतिहासिक काल से १७वीं सदी की शुरुआत तक आयरलैंड द्वीप पर अस्तित्व में रही। इस दौरान आयरलैंड अनेक छोटे-बड़े राज्यों और जागीरों में बँटा हुआ था, जिनपर विभिन्न गाइल् राजनों का राज था। समाज कुल-समूहों में विभाजित था और, बाकी के तत्कालीन यूरोप के समान, कुलीनता के आधार पर अनुक्रमित भी था(प्राचीन भारत में वर्ण-व्यवस्था के समान)। नॉर्मन आक्रमण से पूर्व, गेलिक समाज की अर्थव्यवस्था मूलतः पशुचारण पर आधारित थी, और साधारण रूप से मुद्रा का उपयोग नहीं होता था। इस काल के दौरान आयरिश लोगोंकी पारंपरिक पोशाक, संगीत, नृत्य, खेल, वास्तु औए कला का विकास हुआ था, जोकि बाद में एंग्लो-सैक्सन शैली के साथ मिल गया। १६वीं सदी के अंतिम वर्षों के समय, इंग्लैंड राजशाही ने आयरलैंड पर पूरी तरह कब्ज़ा कर लिया और इसी के साथ गेलिक आयरलैंड का अंत हो गया। .

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इस्ला देल पेस्कादो

इस्ला देल पेस्कादो (स्पेनी: Isla del Pescado), जो इस्ला दे लोस पेस्कादोरेस (स्पेनी: Isla de los Pescadores) और कुहिरी (स्पेनी: Cujiri) के नामों से भी जाना जाता है, एक पहाड़ी भूमि का टुकड़ा है जो दक्षिण अमेरिका के बोलिविया देश में सालार दे उयुनी नामक नमक के मैदान के बीच में स्थित है। प्रागैतिहासिक काल में, जब यह मैदान एक झील हुआ करती थी, इस्ला देल पेस्कादो उस झील में एक द्वीप था। प्रशासनिक रूप से यह बोलिविया के पोतोसी विभाग में स्थित है।, David Atkinson, pp.

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इस्ला इन्काउआसी

इस्ला इन्काउआसी (स्पेनी: Isla Incahuasi) एक पहाड़ी भूमि का टुकड़ा है जो दक्षिण अमेरिका के बोलिविया देश में सालार दे उयुनी नामक नमक के मैदान के बीच में स्थित है। प्रागैतिहासिक काल में, जब यह मैदान एक झील हुआ करती थी, इस्ला इन्काउआसी उस झील में एक द्वीप था। प्रशासनिक रूप से यह बोलिविया के पोतोसी विभाग में स्थित है।, David Atkinson, pp.

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इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय (IGRMS) भोपाल स्थित एक मानवविज्ञान संग्रहालय है। इसका उद्देश्य भारत के विशेष सन्दर्भ में मानव तथा संस्कृति के विकास के इतिहास को प्रदर्शित करना है। यह अनोखा संग्रहालय शामला की पहाडियों पर २०० एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है, जहाँ ३२ पारंपरिक एवं प्रागैतिहासिक चित्रित शैलाश्रय भी हैं। यह भारत ही नहीं अपितु एशिया में मानव जीवन को लेकर बनाया गया विशालतम संग्रहालय है। इसमें भारतीय प्ररिप्रेक्ष्य में मानव जीवन के कालक्रम को दिखाया गया है। इस संग्रहालय में भारत के विभिन्‍न राज्यों की जनजातीय संस्‍कृति की झलक देखी जा सकती है। यह संग्रहालय जिस स्‍थान पर बना है, उसे प्रागैतिहासिक काल से संबंधित माना जाता है। सोमवार और राष्ट्रीय अवकाश के अतिरिक्त यह संग्रहालय प्रतिदिन प्रातः १० बजे से शाम ५ बजे तक खुला रहता है। .

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इकसिंगा

इकसिंगा या यूनिकॉर्न (जो लैटिन शब्दों - unus (यूनस) अर्थात् 'एक' एवं cornu (कॉर्नू) अर्थात् 'सींग' से बना है) एक पौराणिक प्राणी है। हालांकि इकसिंगे का आधुनिक लोकप्रिय छवि कभी-कभी एक घोड़े की छवि की तरह प्रतीत होता है जिसमें केवल एक ही अंतर है कि इकसिंगे के माथे पर एक सींग होता है, लेकिन पारंपरिक इकसिंगे में एक बकरे की तरह दाढ़ी, एक सिंह की तरह पूंछ और फटे खुर भी होते हैं जो इसे एक घोड़े से अलग साबित करते हैं। मरियाना मेयर (द यूनिकॉर्न एण्ड द लेक) के अनुसार, "इकसिंगा एकमात्र ऐसा मनगढ़ंत पशु है जो शायद मानवीय भय की वजह से प्रकाश में नहीं आया है। यहां तक कि आरंभिक संदर्भों में भी इसे उग्र होने पर भी अच्छा, निस्वार्थ होने पर भी एकांतप्रिय, साथ ही रहस्यमयी रूप से सुंदर बताया गया है। उसे केवल अनुचित तरीके से ही पकड़ा जा सकता था और कहा जाता था कि उसके एकमात्र सींग में ज़हर को भी बेअसर करने की ताकत थी।", Geocities.com .

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अधिमहाद्वीप

भूविज्ञान में अधिमहाद्वीप (supercontinent) पृथ्वी के दो या दो से अधिक परिभाषित महाद्वीपों को मिलाकर बनने वाले भूभाग को कहते हैं। इनमें से कुछ तो वास्तव में ही १९वीं शताब्दी तक ज़मीनी पुलों से जुड़े हुए थे और कुछ प्रागैतिहासिक पृथ्वी में लाखों-करोड़ों वर्ष पूर्व जुड़े हुए थे। यूरोप और एशिया को मिलाकर यूरेशिया बनता है जो आज भी एक ही भूभाग के अंश हैं। उत्तर और दक्षिण अमेरिका पनामा नहर खुदने से पहले जुड़े हुए थे। अफ़्रीका और एशिया सुएज़ नहर खुदने से पहले जुड़े हुए थे। करोड़ों वर्ष पूर्व पैन्जीया नामक अधिमहाद्वीप में पृथ्वी के लगभग सभी महाद्वीपों का भूभाग एकत्रित था।Rogers, John J.W., and M. Santosh.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

प्रागैतिहास, प्रागैतिहासिक, प्रागैतिहासिक युग, प्रागैतिहासिक काल

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