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प्रलय

सूची प्रलय

प्रलय का अर्थ होता है संसार का अपने मूल कारण प्रकृति में सर्वथा लीन हो जाना, सृष्टि का सर्वनाश, सृष्टि का जलमग्न हो जाना। पुराणों में काल को चार युगों में बाँटा गया है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार जब चार युग पूरे होते हैं तो प्रलय होती है। इस समय ब्रह्मा सो जाते हैं और जब जागते हैं तो संसार का पुनः निर्माण करते हैं और युग का आरम्भ होता है। प्रकृति का ब्रह्म में लीन (लय) हो जाना ही प्रलय है। संपूर्ण ब्रह्मांड ही प्रकृति कही गई हैं जो सबसे शक्तिशाली है। .

12 संबंधों: परमाणुवाद, पुराण, मत्स्य अवतार, मन्वन्तर, रोमानिया, शिवधनुष (पिनाक), शक्ति (देवी), सूर्यसिद्धान्त, हिन्दू मापन प्रणाली, हिन्दू काल गणना, कल्प, अक्षय वट

परमाणुवाद

परमाणुवाद (Atomic theory) के विकास में अनेक विचारकों ने भाग लिया है। प्राचीन विचारकों में डिमाक्राइटस और कणाद के नाम और आधुनिक विचारकों में न्यूटन, रदरफोर्ड और हाइसनबर्ग के नाम विशेष महत्व के हैं। डिमाक्राइटस के अनुसार परमाणु परिमाण, आकार और स्थान में एक दूसरे से भिन्न हैं, परंतु इनमें गुणभेद नहीं। संयोग वियोग में गति आवश्यक है और गति अवकाश में ही हो सकती है। इसलिये परमाणुओं के अतिरिक्त अवकाश भी सत्ता का अंतिम अंश है। बोझिल होने के कारण परमाणु नीचे गिरते हैं; भारी परमाणु अधिक वेग से गिरते हैं और नीचे के हलके परमाणुओं से आ टकराते हैं। इस तरह परमाणुओं में संयोग होता है। न्यूटन ने परमाणुओं को भारी, ठोस और एकरस माना और उनमें गुणभेद को भी स्वीकार किया। परमाणु की सरलता चिरकाल तक मान्य रही; नवीन भौतिकी ने इसे अमान्य ठहराया है। रदरफोर्ड के अनुसार परमाणु एक नन्हा सा सौरमंडल है, जिसमें अनेक इलेक्ट्रान अत्यधिक वेग से केंद्र के गिर्द चक्कर लगा रहे हैं। हाइसनवर्ग का अनिर्णीतता का नियम एक और पुराने विचार को ठोकर लगाता है, इस नियम के अनुसार परमाणुओं के समूहों की दशा में नियम का शासन प्रतीत होता है, परंतु व्यक्तिगत क्रिया में परमाणु नियम की उपेक्षा करते हैं; इनकी गति अनिर्णीत है। कणाद ने परमाणुओं में गुणभेद देखा। भौतिक द्रव्यों में गुणभेद है और इस भेद के कारण हमें रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्द का बोध होता है। संभवत:, सवेदनाओं के भेद ने उसे परमाणुओं में गुणभेद देखने को प्रेरणा की। नवीन विज्ञान कहता है कि कुछ तत्वों को छोड़ अन्य तत्वों के परमाणु अकेले नहीं मिलते, अपितु २, ३, ४ के समूहों में मिलते हैं। कणाद के विचार में परमाणुओं का मिलकर भी "चतुरणुक बनाना सृष्टि में मौलिक घटना है, इस संयोग का टूटना ही संहार या प्रलय है। .

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पुराण

पुराण, हिंदुओं के धर्म संबंधी आख्यान ग्रंथ हैं। जिनमें सृष्टि, लय, प्राचीन ऋषियों, मुनियों और राजाओं के वृत्तात आदि हैं। ये वैदिक काल के बहुत्का बाद के ग्रन्थ हैं, जो स्मृति विभाग में आते हैं। भारतीय जीवन-धारा में जिन ग्रन्थों का महत्वपूर्ण स्थान है उनमें पुराण भक्ति-ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। अठारह पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र मानकर पाप और पुण्य, धर्म और अधर्म, कर्म और अकर्म की गाथाएँ कही गई हैं। कुछ पुराणों में सृष्टि के आरम्भ से अन्त तक का विवरण किया गया है। 'पुराण' का शाब्दिक अर्थ है, 'प्राचीन' या 'पुराना'।Merriam-Webster's Encyclopedia of Literature (1995 Edition), Article on Puranas,, page 915 पुराणों की रचना मुख्यतः संस्कृत में हुई है किन्तु कुछ पुराण क्षेत्रीय भाषाओं में भी रचे गए हैं।Gregory Bailey (2003), The Study of Hinduism (Editor: Arvind Sharma), The University of South Carolina Press,, page 139 हिन्दू और जैन दोनों ही धर्मों के वाङ्मय में पुराण मिलते हैं। John Cort (1993), Purana Perennis: Reciprocity and Transformation in Hindu and Jaina Texts (Editor: Wendy Doniger), State University of New York Press,, pages 185-204 पुराणों में वर्णित विषयों की कोई सीमा नहीं है। इसमें ब्रह्माण्डविद्या, देवी-देवताओं, राजाओं, नायकों, ऋषि-मुनियों की वंशावली, लोककथाएं, तीर्थयात्रा, मन्दिर, चिकित्सा, खगोल शास्त्र, व्याकरण, खनिज विज्ञान, हास्य, प्रेमकथाओं के साथ-साथ धर्मशास्त्र और दर्शन का भी वर्णन है। विभिन्न पुराणों की विषय-वस्तु में बहुत अधिक असमानता है। इतना ही नहीं, एक ही पुराण के कई-कई पाण्डुलिपियाँ प्राप्त हुई हैं जो परस्पर भिन्न-भिन्न हैं। हिन्दू पुराणों के रचनाकार अज्ञात हैं और ऐसा लगता है कि कई रचनाकारों ने कई शताब्दियों में इनकी रचना की है। इसके विपरीत जैन पुराण जैन पुराणों का रचनाकाल और रचनाकारों के नाम बताए जा सकते हैं। कर्मकांड (वेद) से ज्ञान (उपनिषद्) की ओर आते हुए भारतीय मानस में पुराणों के माध्यम से भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित हुई है। विकास की इसी प्रक्रिया में बहुदेववाद और निर्गुण ब्रह्म की स्वरूपात्मक व्याख्या से धीरे-धीरे मानस अवतारवाद या सगुण भक्ति की ओर प्रेरित हुआ। पुराणों में वैदिक काल से चले आते हुए सृष्टि आदि संबंधी विचारों, प्राचीन राजाओं और ऋषियों के परंपरागत वृत्तांतों तथा कहानियों आदि के संग्रह के साथ साथ कल्पित कथाओं की विचित्रता और रोचक वर्णनों द्वारा सांप्रदायिक या साधारण उपदेश भी मिलते हैं। पुराण उस प्रकार प्रमाण ग्रंथ नहीं हैं जिस प्रकार श्रुति, स्मृति आदि हैं। पुराणों में विष्णु, वायु, मत्स्य और भागवत में ऐतिहासिक वृत्त— राजाओं की वंशावली आदि के रूप में बहुत कुछ मिलते हैं। ये वंशावलियाँ यद्यपि बहुत संक्षिप्त हैं और इनमें परस्पर कहीं कहीं विरोध भी हैं पर हैं बडे़ काम की। पुराणों की ओर ऐतिहासिकों ने इधर विशेष रूप से ध्यान दिया है और वे इन वंशावलियों की छानबीन में लगे हैं। .

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मत्स्य अवतार

मत्स्यावतार Matsyavatar भगवान विष्णु का अवतार है जो उनके दस अवतारों में से एक है। विष्णु को पालनकर्ता कहा जाता है अत: वह ब्रह्मांड की रक्षा हेतु विविध अवतार धरते हैं। .

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मन्वन्तर

हिन्दू मापन प्रणाली में मन्वन्तर, लघुगणकीय पैमाने पर मन्वन्तर, मनु, हिन्दू धर्म अनुसार, मानवता के प्रजनक, की आयु होती है। यह समय मापन की खगोलीय अवधि है। मन्वन्तर एक संस्कॄत शब्द है, जिसका संधि-विच्छेद करने पर .

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रोमानिया

रोमानिया (प्राचीन: Rumania (रूमानिया), Roumania (रौमानिया);România) काले सागर की सीमा पर, कर्पेथियन चाप के बाहर और इसके भीतर, निचले डेन्यूब पर, बाल्कन प्रायद्वीप के उत्तर में, दक्षिणपूर्वी और मध्य यूरोप में स्थित एक देश है.

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शिवधनुष (पिनाक)

शिवधनुष (संस्कृत: शिवधनुष) या पिनाक (संस्कृत: पिनाक) भगवान शिव का धनुष है। हिंदू महाकाव्य रामायण में इस धनुष का उल्लेख है, जब श्री राम इसे जनक की पुत्री सीता को अपनी पत्नी के रूप में जीतने के लिए भंग करते हैं। भगवान राम, सीता को पत्नी रूप में प्राप्त करने हेतु शिवधनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते हुए .

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शक्ति (देवी)

दुर्गा के रूप में शक्ति शक्ति, ईश्वर की वह कल्पित माया है जो उसकी आज्ञा से सब काम करनेवाली और सृष्टिरचना करनेवाली मानी जाती है। यह अनंतरूपा और अनंतसामर्थ्यसंपन्ना कही गई है। यही शक्ति जगत्रूप में व्यक्त होती है और प्रलयकाल में समग्र चराचर जगत् को अपने में विलीन करके अव्यक्तरूपेण स्थित रहती है। यह जगत् वस्तुत: उसकी व्यवस्था का ही नाम है। गीता में वर्णित योगमाया यही शक्ति है जो व्यक्त और अव्यक्त रूप में हैं। कृष्ण 'योगमायामुवाश्रित:' होकर ही अपनी लाला करते हैं। राधा उनकी आह्वादिनी शक्ति है। शिव शक्तिहीन होकर कुछ नहीं कर सकते। शक्तियुक्त शिव ही सब कुछ करने में, न करने में, अन्यथा करने में समर्थ होते हैं। इस तरह भारतीय दर्शनों में किसी न किसी नाम रूप से इसकी चर्चा है। पुराणों में विभिन्न देवताओं की विभिन्न शक्तियों की कल्पना की गई है। इन शक्तियों को बहुधा देवी के रूप में और मूर्तिमती माना गया है। जैसे, विष्णु की कीर्ति, कांति, तुष्टि, पुष्टि आदि; रुद्र की गुणोदरी, गोमुखी, दीर्घजिह्वा, ज्वालामुखी आदि। मार्कण्डेयपुराण के अनुसार समस्त देवताओं की तेजोराशि देवी शक्ति के रूप में कही गई है जिसकी शक्ति वैष्णवी, माहेश्वरी, ब्रह्माणी, कौमारी, नारसिंही, इंद्राणी, वाराही आदि हैं। उन देवों के स्वरूप और गुणादि से युक्त इनका वर्णन प्राप्त होता है। तंत्र के अनुसार किसी पीठ की अधिष्ठात्री देवी शक्ति के रूप में कही गई है, जिसकी उपासना की जाती है। इसके उपासक शाक्त कहे जाते हैं। यह शक्ति भी सृष्टि की रचना करनेवाली और पूर्ण सामर्थ्यसंपन्न कही गई है। बौद्ध, जैन आदि संप्रदायों के तंत्रशास्त्रों में शक्ति की कल्पना की गई है, इन्हें बौद्धाभर्या भी कहा गया है। तांत्रिकों की परिभाषा में युवती, रूपवती, सौभाग्यवती विभिन्न जाति की स्त्रियों को भी इस नाम से कहा गया है और विधिपूर्वक इनका पूजन सिद्धिप्रद माना गया है। प्रभु, मंत्र और उत्साह नाम से राजाओं की तीन शक्तियाँ कही गई हैं। कोष और दंड आदि से संबंधित शक्ति प्रभुशक्ति, संधिविग्रह आदि से संबंधित मंत्रशक्ति और विजय प्राप्त करने संबंधी शक्ति को उत्साह शक्ति कहा गया। राज्यशासन की सुदृढ़ता के निमित्त इनका होना आवश्यक कहा गया है। शब्द के अंतर्निहित अर्थ को व्यक्त करने का व्यापार शब्दशक्ति नाम से अभिहित है। ये व्यापार तीन कहे गए हैं - अभिधा, लक्षणा और व्यंजना। आचार्यों ने इसे शक्ति और वृत्ति नाम से कहा है। घट के निर्माण में मिट्टी, चक्र, दंड, कुलाल आदि कारण है और चक्र का घूमना शक्ति या व्यापार है और अभिधा, लक्षणा आदि व्यापार शक्तियाँ हैं। मम्मट ने व्यापार शब्द का प्रयोग किया है तो विश्वनाथ ने शक्ति का। 'शक्ति' में ईश्वरेच्छा के रूप में शब्द के निश्चित अर्थ के संकेत को माना गया है। यह प्राचीन तर्कशास्त्रियों का मत है। बाद में 'इच्छामात्र' को 'शक्ति' माना गया, अर्थात् मनुष्य की इच्छा से भी शब्दों के अर्थसंकेत की परंपरा को माना। 'तर्कदीपिका' में शक्ति को शब्द अर्थ के उस संबंध के रूप में स्वीकार किया गया है जो मानस में अर्थ को व्यक्त करता है। .

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सूर्यसिद्धान्त

सूर्यसिद्धान्त भारतीय खगोलशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। कई सिद्धान्त-ग्रन्थों के समूह का नाम है। वर्तमान समय में उपलब्ध ग्रन्थ मध्ययुग में रचित ग्रन्थ लगता है किन्तु अवश्य ही यह ग्रन्थ पुराने संस्क्रणों पर आधारित है जो ६ठी शताब्दी के आरम्भिक चरण में रचित हुए माने जाते हैं। भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्रियों ने इसका सन्दर्भ भी लिया है, जैसे आर्यभट्ट और वाराहमिहिर, आदि.

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हिन्दू मापन प्रणाली

हिन्दू समय मापन (लघुगणकीय पैमाने पर) गणित और मापन के बीच घनिष्ट सम्बन्ध है। इसलिये आश्चर्य नहीं कि भारत में अति प्राचीन काल से दोनो का साथ-साथ विकास हुआ। लगभग सभी प्राचीन भारतीय गणितज्ञों ने अपने ग्रन्थों में मापन, मापन की इकाइयों एवं मापनयन्त्रों का वर्णन किया है। ब्रह्मगुप्त के ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त के २२वें अध्याय का नाम 'यन्त्राध्याय' है। संस्कृत कें शुल्ब शब्द का अर्थ नापने की रस्सी या डोरी होता है। अपने नाम के अनुसार शुल्ब सूत्रों में यज्ञ-वेदियों को नापना, उनके लिए स्थान का चुनना तथा उनके निर्माण आदि विषयों का विस्तृत वर्णन है। .

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हिन्दू काल गणना

हिन्दू समय मापन, लघुगणकीय पैमाने पर प्राचीन हिन्दू खगोलीय और पौराणिक पाठ्यों में वर्णित समय चक्र आश्चर्यजनक रूप से एक समान हैं। प्राचीन भारतीय भार और मापन पद्धतियां, अभी भी प्रयोग में हैं (मुख्यतः हिन्दू और जैन धर्म के धार्मिक उद्देश्यों में)। यह सभी सुरत शब्द योग में भी पढ़ाई जातीं हैं। इसके साथ साथ ही हिन्दू ग्रन्थों मॆं लम्बाई, भार, क्षेत्रफ़ल मापन की भी इकाइयाँ परिमाण सहित उल्लेखित हैं। हिन्दू ब्रह्माण्डीय समय चक्र सूर्य सिद्धांत के पहले अध्याय के श्लोक 11–23 में आते हैं.

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कल्प

हिन्दू समय इकाइयां कल्प हिन्दू समय चक्र की बहुत लम्बी मापन इकाई है। मानव वर्ष गणित के अनुसार ३६० दिन का एक दिव्य अहोरात्र होता है। इसी हिसाब से दिव्य १२००० वर्ष का एक चतुर्युगी होता है। ७१ चतुर्युगी का एक मन्वन्तर होता है और १४ मन्वन्तर/ १०००चतुरयुगी का एक कल्प होता है। यह शब्द का अति प्राचीन वैदिक हिन्दू ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है। यह बौद्ध ग्रन्थों में भी मिलता है, हालाँकि बहुत बाद के काल में, वह भी हिन्दू पाठ से लिया हुआ ही है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि बुद्ध एक हिन्दू परिवार में जन्में लोग हिन्दू ही थे। .

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अक्षय वट

पुराणों में वर्णन आता है कि कल्पांत या प्रलय में जब समस्त पृथ्वी जल में डूब जाती है उस समय भी वट का एक वृक्ष बच जाता है। अक्षय वट कहलाने वाले इस वृक्ष के एक पत्ते पर ईश्वर बालरूप में विद्यमान रहकर सृष्टि के अनादि रहस्य का अवलोकन करते हैं। अक्षय वट के संदर्भ कालिदास के रघुवंश तथा चीनी यात्री ह्वेन त्सांग के यात्रा विवरणों में मिलते हैं। भारतवर्ष में क्रमशः चार पौराणिक पवित्र वटवृक्ष हैं--- गृद्धवट- सोरों 'शूकरक्षेत्र', अक्षयवट- प्रयाग, सिद्धवट- उज्जैन और वंशीवट- वृन्दावन। .

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