लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

प्रयोगशाला

सूची प्रयोगशाला

उन्नीसवीं शताब्दी के भौतिकशास्त्री एवं रसायनज्ञ माइकल फैराडे अपनी प्रयोगशाला में जैव रसायन प्रयोगशाला प्रयोगशाला एक ऐसी सुविधा (कक्ष, भवन या स्थान) को कहते हैं, जो वैज्ञानिक अनुसंधान, प्रयोग एवं मापन के लिए आवश्यक माहौल प्रदान करता है। .

50 संबंधों: डाल्टन योजना, डेंगू बुख़ार, नाइट्रोजन, नीला थोथा, प्रयोग, प्रायोगिक भौतिकी, फ़िलिप ऐंडरसन, बम का निबटारा, बेल प्रयोगशाला, बोरोसिलिकेट काँच, मनोविज्ञान, मनोविज्ञान का इतिहास तथा शाखाएँ, मृत्तिकाशिल्प, यूरोपीय नाभिकीय अनुसंधान संगठन, रसायन शिक्षा, राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, गोवा, रासायनिक उपकरण, रिचर्ड अबेग, रक्षा शरीरक्रिया एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान, रॉसलिंड एल्सी फ्रेंकलिन, रोडरनर, रोजमर्रा की जिंदगी में रसायन शास्त्र, लोक प्रशासन की प्रकृति, शिक्षण विधियाँ, सरल परिसर्प, संधिवार्ता, संरचनात्मक अभियांत्रिकी अनुसंधान केन्द्र, चेन्नै, संरचनावाद (मनोविज्ञान), सुधा भट्टाचार्य, सूक्ष्मजीव प्रौद्योगिकी संस्थान, सेरेना ग्राण्डी, होमी भाभा विज्ञान शिक्षा केन्द्र, वनस्पती वर्गिकरण, वाइन मेकिंग (वाइन बनाना), विराम घड़ी, विल्नुस विश्वविद्यालय का पुस्तकालय, विकृतिविज्ञान, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद, गन्धकाम्ल, कार्बधातुक यौगिक, क्रम-विकास से परिचय, केन्द्रीय नमक व समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान, केन्‍द्रीय सड़क अनुसंधान संस्‍थान, केन्‍द्रीय इलेक्‍ट्रोनिकी अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्‍थान (सीरी), केन्‍द्रीय कांच एवं सिरामिक अनुसन्धान संस्‍थान, अमोनिया, अज़ीज़ सैंकर, अजीवात् जीवोत्पत्ति, अगर, उच्च उर्जा पदार्थ अनुसंधान प्रयोगशाला

डाल्टन योजना

डाल्टन प्रयोगशाला योजना या 'डाल्टन योजना' (Dalton Plan) शिक्षण का एक कांसेप्ट है जिसे अमेरिका की शिक्षाशास्त्रिणी कुमारी हेलेन पार्खस्ट (Helen Parkhurst) ने आरम्भ किया। सन्‌ 1912 में अमरीका की शिक्षाशास्त्रिणी कुमारी हेलन पार्खस्ट ने आठ से 12 वर्ष के बीच की अवस्थावाले बालकों के लिए एक नई शिक्षायोजना बनाई। यद्यपि यह योजना उनके मन में पहले से ही थी किंतु उसका वास्तविक प्रयोग सन्‌ 1913 और 1915 के बीच किया गया। इसी बीच प्रथम विश्वयुद्ध (1914-18) छिड़ गया और कुमारी पार्खर्स्ट ने भी अपनी योजना थोड़े दिन के लिए ढीली कर दी। विश्वयुद्ध समाप्त होने के पश्चात्‌ सन्‌ 1920 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र अमरीका के मैसाच्यूसेट राज्य के डाल्टन स्थित विद्यालयों में अपनी योजना प्रारंभ की। इसके पश्चात्‌ उन्होंने एक बाल विश्वविद्यालय पाठशाला (चिल्ड्रेंस यूनिवर्सिटी स्कूल) स्थापित करके उसमें अपनी डाल्टन प्रयोगशाला योजना (डाल्टन लैबोरेटरी प्लान) का व्यवहार किया। .

नई!!: प्रयोगशाला और डाल्टन योजना · और देखें »

डेंगू बुख़ार

डेंगू बुख़ार एक संक्रमण है जो डेंगू वायरस के कारण होता है। समय पर करना बहुत जरुरी होता हैं. मच्छर डेंगू वायरस को संचरित करते (या फैलाते) हैं। डेंगू बुख़ार को "हड्डीतोड़ बुख़ार" के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इससे पीड़ित लोगों को इतना अधिक दर्द हो सकता है कि जैसे उनकी हड्डियां टूट गयी हों। डेंगू बुख़ार के कुछ लक्षणों में बुखार; सिरदर्द; त्वचा पर चेचक जैसे लाल चकत्ते तथा मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द शामिल हैं। कुछ लोगों में, डेंगू बुख़ार एक या दो ऐसे रूपों में हो सकता है जो जीवन के लिये खतरा हो सकते हैं। पहला, डेंगू रक्तस्रावी बुख़ार है, जिसके कारण रक्त वाहिकाओं (रक्त ले जाने वाली नलिकाएं), में रक्तस्राव या रिसाव होता है तथा रक्त प्लेटलेट्स  (जिनके कारण रक्त जमता है) का स्तर कम होता है। दूसरा डेंगू शॉक सिंड्रोम है, जिससे खतरनाक रूप से निम्न रक्तचाप होता है। डेंगू वायरस चार भिन्न-भिन्न प्रकारों के होते हैं। यदि किसी व्यक्ति को इनमें से किसी एक प्रकार के वायरस का संक्रमण हो जाये तो आमतौर पर उसके पूरे जीवन में वह उस प्रकार के डेंगू वायरस से सुरक्षित रहता है। हलांकि बाकी के तीन प्रकारों से वह कुछ समय के लिये ही सुरक्षित रहता है। यदि उसको इन तीन में से किसी एक प्रकार के वायरस से संक्रमण हो तो उसे गंभीर समस्याएं होने की संभावना काफी अधिक होती है।  लोगों को डेंगू वायरस से बचाने के लिये कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। डेंगू बुख़ार से लोगों को बचाने के लिये कुछ उपाय हैं, जो किये जाने चाहिये। लोग अपने को मच्छरों से बचा सकते हैं तथा उनसे काटे जाने की संख्या को सीमित कर सकते हैं। वैज्ञानिक मच्छरों के पनपने की जगहों को छोटा तथा कम करने को कहते हैं। यदि किसी को डेंगू बुख़ार हो जाय तो वह आमतौर पर अपनी बीमारी के कम या सीमित होने तक पर्याप्त तरल पीकर ठीक हो सकता है। यदि व्यक्ति की स्थिति अधिक गंभीर है तो, उसे अंतः शिरा द्रव्य (सुई या नलिका का उपयोग करते हुये शिराओं में दिया जाने वाला द्रव्य) या रक्त आधान (किसी अन्य व्यक्ति द्वारा रक्त देना) की जरूरत हो सकती है। 1960 से, काफी लोग डेंगू बुख़ार से पीड़ित हो रहे हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से यह बीमारी एक विश्वव्यापी समस्या हो गयी है। यह 110 देशों में आम है। प्रत्येक वर्ष लगभग 50-100 मिलियन लोग डेंगू बुख़ार से पीड़ित होते हैं। वायरस का प्रत्यक्ष उपचार करने के लिये लोग वैक्सीन तथा दवाओं पर काम कर रहे हैं। मच्छरों से मुक्ति पाने के लिये लोग, कई सारे अलग-अलग उपाय भी करते हैं।  डेंगू बुख़ार का पहला वर्णन 1779 में लिखा गया था। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में वैज्ञानिकों ने यह जाना कि बीमारी डेंगू वायरस के कारण होती है तथा यह मच्छरों के माध्यम से संचरित होती (या फैलती) है। .

नई!!: प्रयोगशाला और डेंगू बुख़ार · और देखें »

नाइट्रोजन

नाइट्रोजन (Nitrogen), भूयाति या नत्रजन एक रासायनिक तत्व है जिसका प्रतीक N है। इसका परमाणु क्रमांक 7 है। सामान्य ताप और दाब पर यह गैस है तथा पृथ्वी के वायुमण्डल का लगभग 78% नाइट्रोजन ही है। यह सर्वाधिक मात्रा में तत्व के रूप में उपलब्ब्ध पदार्थ भी है। यह एक रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन और प्रायः अक्रिय गैस है। इसकी खोज 1772 में स्कॉटलैण्ड के वैज्ञनिक डेनियल रदरफोर्ड ने की थी। आवर्त सारणी के १५ वें समूह का प्रथम तत्व है। नाइट्रोजन का रसायन अत्यंत मनोरंजक विषय है, क्योंकि समस्त जैव पदार्थों में इस तत्व का आवश्यक स्थान है। इसके दो स्थायी समस्थानिक, द्रव्यमान संख्या 14, 15 ज्ञात हैं तथा तीन अस्थायी समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या 13, 16, 17) भी बनाए गए हैं। नाइट्रोजन तत्व की पहचान सर्वप्रथम 1772 ई. में रदरफोर्ड और शेले ने स्वतंत्र रूप से की। शेले ने उसी वर्ष यह स्थापित किया कि वायु में मुख्यत: दो गैसें उपस्थित हैं, जिसमें एक सक्रिय तथा दूसरी निष्क्रिय है। तभी प्रसिद्ध फ्रांसीसी वैज्ञानिक लाव्वाज़्ये ने नाइट्रोजन गैस को ऑक्सीजन (सक्रिय अंश) से अलग कर इसका नाम 'ऐजोट' रखा। 1790 में शाप्टाल (Chaptal) ने इसे नाइट्रोजन नाम दिया। .

नई!!: प्रयोगशाला और नाइट्रोजन · और देखें »

नीला थोथा

नीला थोथा या तूतिया या कॉपर सल्फेट अकार्बनिक यौगिक है जिसका रासायनिक सूत्र CuSO4 है। इसे 'क्युप्रिक सल्फेट' भी कहते हैं। कॉपर सल्फेट कई यौगिकों के रूप में पाया जाता है जिनमें क्रिस्टलन जल की मात्रा अलग-अलग होती है। उदाहरण के लिये इसका सूखा (अजलीय) क्रिस्टल सफेद या हल्के पीले-हरे रंग का होता है जबकि पेंटाहाइड्रेट (CuSO4·5H2O) चमकीले नीले रंग का होता है। इसका पेन्टाहाइड्रेट रूप ही सर्वाधिक पाया जाने वाला रूप है। कॉपर सल्फेट, कॉपर का सबसे अधिक पाया जाने वाला यौगिक है। .

नई!!: प्रयोगशाला और नीला थोथा · और देखें »

प्रयोग

बेंजामिन फ्रैंकलिन का तड़ित सम्बन्धी प्रयोग किसी वैज्ञानिक जिज्ञासा (scientific inquiry) के समाधान के लिये उससे सम्बन्धित क्षेत्र में और अधिक आंकड़े (data) एकत्र करने जी आवश्यकता होती है। इन आंकड़ों की प्राप्ति के लिये जो कुछ किया जाता है उसे प्रयोग (experiment) कहते हैं। प्रयोग, वैज्ञानिक विधि का प्रमुख स्तम्भ है। प्रयोग करना एवं आंकड़े प्राप्त करना इसलिये भी जरूरी है ताकि सिद्धान्त के प्रतिपादन में कहीं पूर्वाग्रह या पक्षपात आड़े न आ जाँए। किसी क्षेत्र के गहन अध्ययन एवं ज्ञान के लिये प्रयोग का बहुत महत्व है। प्राकृतिक एवं सामाजिक दोनो ही विज्ञानों में प्रयोग की महती भूमिका है। व्यावहारिक समस्याओं के समाधान में, कम ज्ञात क्षेत्रों के और अधिक जानकारी प्राप्ति के लिये तथा सैद्धान्तिक मान्यताओं (theoretical assumptions) की जाँच के लिये प्रयोग करने की जरूरत पड़ती रहती है। कुछ प्रयोग इसलिये नहीं किये जा सकते कि वे बहुत महंगे हो सकते हैं, बहुत भयंकर हो सकते हैं या उन्हें करना नैतिक दृष्टि से मान्य नहीं है। .

नई!!: प्रयोगशाला और प्रयोग · और देखें »

प्रायोगिक भौतिकी

भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में, प्रायोगिक भौतिकी ब्रह्माण्ड के बारे में आँकड़े संग्रहित करने के क्रम में भौतिक परिघटनाओं के प्रेक्षण से सम्बंधित विषय और उप-विषयों की श्रेणी है। इसकी विधियाँ एक विषय से दूसरे विषय में बहुत परिवर्तित होता है जैसे सरल प्रयोग से प्रेक्षण जैसे कैवेंडिश प्रयोग से बहुत जटिल प्रयोगों में से एक वृहद हेड्रॉन संघट्टक तक। .

नई!!: प्रयोगशाला और प्रायोगिक भौतिकी · और देखें »

फ़िलिप ऐंडरसन

फिलिप एण्डरसन, १९७७ में भौतिक शास्त्र में नोबेल पुरस्कार के विजेता रहे हैं। .

नई!!: प्रयोगशाला और फ़िलिप ऐंडरसन · और देखें »

बम का निबटारा

बम का निबटारा वह विधि है जिससे खतरनाक विस्फोटक पदार्थो से सुरक्षित हुआ जा सकता है। मुख्य विस्फोटक निरीक्षक का मुख्यालय नागपुर में स्थित है तथा इसकी शाखाये आगरा, कोल्कता, गवाहटी, चंडीगढ़, मुंबई, चेन्नई, सिकन्दराबाद में स्थित है। इस काम के लिए सेना की निकटतम यूनिट की भी सहायता ली जाती है। और न्यायालयिक विज्ञान की प्रयोगशाला में भी बम का निबटारा करने के लिए विशेषज्ञ उपलब्ध है। बम का निबटारा करने की स्थिति में देशी बम, पाइप बम, ट्रांजिस्टर बम आदि को बिना हिलाए पानी से भरी बाल्टी में ७२ घंटो के लिए रख देने से उसमे मौजूद सारा बारूद गीला हो जाता है, जिससे वह बम विस्फोट नहीं होता। .

नई!!: प्रयोगशाला और बम का निबटारा · और देखें »

बेल प्रयोगशाला

मुर्रे हिल्स, न्यू जर्सी स्थित बेल प्रयोगशाला बेल्ल प्रयोगशाला (Bell Laboratoris) एक अनुसंधान एवं विकास की प्रयोगशाला है। इसे "बेल्ल लैब्स" भी कहते हैं। पहले इसे "एटी&टी बेल लैबोरेटरीज" के नाम से और "बेल टेलीफोन लैबोरेटरीज" के नाम से जाना जाता था। इस समय यह अल्काटेल-लुसेन्ट के स्वामित्व में है। इसके पहले यह अमेरिकन टेलीफोन एवं टेलीग्राफ कम्पनी (AT&T) के स्वामित्व में थी। बेल प्रयोगशाला का मुख्यालय मुर्रे हिल्ल, न्यू जर्सी में है। इसके अनुसंधान एवं विकास केन्द्र विश्व भर में फैले हुए हैं। .

नई!!: प्रयोगशाला और बेल प्रयोगशाला · और देखें »

बोरोसिलिकेट काँच

बोरोसिलिकेट काँच से बनी एक वस्तु बोरोसिलिकेट काँच एक प्रकार का काँच होता है, जो सिलिका और बोरॉन ट्राईऑक्साइड से मिल कर बना एक यौगिक है। .

नई!!: प्रयोगशाला और बोरोसिलिकेट काँच · और देखें »

मनोविज्ञान

मनोविज्ञान (Psychology) वह शैक्षिक व अनुप्रयोगात्मक विद्या है जो प्राणी (मनुष्य, पशु आदि) के मानसिक प्रक्रियाओं (mental processes), अनुभवों तथा व्यक्त व अव्यक्त दाेनाें प्रकार के व्यवहाराें का एक क्रमबद्ध तथा वैज्ञानिक अध्ययन करती है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो क्रमबद्ध रूप से (systematically) प्रेक्षणीय व्यवहार (observable behaviour) का अध्ययन करता है तथा प्राणी के भीतर के मानसिक एवं दैहिक प्रक्रियाओं जैसे - चिन्तन, भाव आदि तथा वातावरण की घटनाओं के साथ उनका संबंध जोड़कर अध्ययन करता है। इस परिप्रेक्ष्य में मनोविज्ञान को व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं के अध्ययन का विज्ञान कहा गया है। 'व्यवहार' में मानव व्यवहार तथा पशु व्यवहार दोनों ही सम्मिलित होते हैं। मानसिक प्रक्रियाओं के अन्तर्गत संवेदन (Sensation), अवधान (attention), प्रत्यक्षण (Perception), सीखना (अधिगम), स्मृति, चिन्तन आदि आते हैं। मनोविज्ञान अनुभव का विज्ञान है, इसका उद्देश्य चेतनावस्था की प्रक्रिया के तत्त्वों का विश्लेषण, उनके परस्पर संबंधों का स्वरूप तथा उन्हें निर्धारित करनेवाले नियमों का पता लगाना है। .

नई!!: प्रयोगशाला और मनोविज्ञान · और देखें »

मनोविज्ञान का इतिहास तथा शाखाएँ

आधुनिक मनोविज्ञान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में इसके दो सुनिश्चित रूप दृष्टिगोचर होते हैं। एक तो वैज्ञानिक अनुसंधानों तथा आविष्कारों द्वारा प्रभावित वैज्ञानिक मनोविज्ञान तथा दूसरा दर्शनशास्त्र द्वारा प्रभावित दर्शन मनोविज्ञान। वैज्ञानिक मनोविज्ञान 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से आरंभ हुआ है। सन् 1860 ई में फेक्नर (1801-1887) ने जर्मन भाषा में "एलिमेंट्स आव साइकोफ़िज़िक्स" (इसका अंग्रेजी अनुवाद भी उपलब्ध है) नामक पुस्तक प्रकाशित की, जिसमें कि उन्होंने मनोवैज्ञानिक समस्याओं को वैज्ञानिक पद्धति के परिवेश में अध्ययन करने की तीन विशेष प्रणालियों का विधिवत् वर्णन किया: मध्य त्रुटि विधि, न्यूनतम परिवर्तन विधि तथा स्थिर उत्तेजक भेद विधि। आज भी मनोवैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में इन्हीं प्रणालियों के आधार पर अनेक महत्वपूर्ण अनुसंधान किए जाते हैं। वैज्ञानिक मनोविज्ञान में फेक्नर के बाद दो अन्य महत्वपूर्ण नाम है: हेल्मोलत्स (1821-1894) तथा विल्हेम वुण्ट (1832-1920) हेल्मोलत्स ने अनेक प्रयोगों द्वारा दृष्टीर्द्रिय विषयक महत्वपूर्ण नियमों का प्रतिपादन किया। इस संदर्भ में उन्होंने प्रत्यक्षीकरण पर अनुसंधान कार्य द्वारा मनोविज्ञान का वैज्ञानिक अस्तित्व ऊपर उठाया। वुंट का नाम मनोविज्ञान में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्होंने सन् 1879 ई में लाइपज़िग (जर्मनी) में मनोविज्ञान की प्रथम प्रयोगशाला स्थापित की। मनोविज्ञान का औपचारिक रूप परिभाषित किया। मनोविज्ञान अनुभव का विज्ञान है, इसका उद्देश्य चेतनावस्था की प्रक्रिया के तत्त्वों का विश्लेषण, उनके परस्पर संबंधों का स्वरूप तथा उन्हें निर्धारित करनेवाले नियमों का पता लगाना है। लाइपज़िग की प्रयोगशाला में वुंट तथा उनके सहयोगियों ने मनोविज्ञान की विभिन्न समस्याओं पर उल्लेखनीय प्रयोग किए, जिसमें समयअभिक्रिया विषयक प्रयोग विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। क्रियाविज्ञान के विद्वान् हेरिंग (1834-1918), भौतिकी के विद्वान् मैख (1838-1916) तथा जी ई. म्यूलर (1850 से 1934) के नाम भी उल्लेखनीय हैं। हेरिंग घटना-क्रिया-विज्ञान के प्रमुख प्रवर्तकों में से थे और इस प्रवृत्ति का मनोविज्ञान पर प्रभाव डालने का काफी श्रेय उन्हें दिया जा सकता है। मैख ने शारीरिक परिभ्रमण के प्रत्यक्षीकरण पर अत्यंत प्रभावशाली प्रयोगात्मक अनुसंधान किए। उन्होंने साथ ही साथ आधुनिक प्रत्यक्षवाद की बुनियाद भी डाली। जीदृ ई. म्यूलर वास्तव में दर्शन तथा इतिहास के विद्यार्थी थे किंतु फेक्नर के साथ पत्रव्यवहार के फलस्वरूप उनका ध्यान मनोदैहिक समस्याओं की ओर गया। उन्होंने स्मृति तथा दृष्टींद्रिय के क्षेत्र में मनोदैहिकी विधियों द्वारा अनुसंधान कार्य किया। इसी संदर्भ में उन्होंने "जास्ट नियम" का भी पता लगाया अर्थात् अगर समान शक्ति के दो साहचर्य हों तो दुहराने के फलस्वरूप पुराना साहचर्य नए की अपेक्षा अधिक दृढ़ हो जाएगा ("जास्ट नियम" म्यूलर के एक विद्यार्थी एडाल्फ जास्ट के नाम पर है)। मनोविज्ञान पर वैज्ञानिक प्रवृत्ति के साथ साथ दर्शनशास्त्र का भी बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है। वास्तव में वैज्ञानिक परंपरा बाद में आरंभ हुई। पहले तो प्रयोग या पर्यवेक्षण के स्थान पर विचारविनिमय तथा चिंतन समस्याओं को सुलझाने की सर्वमान्य विधियाँ थीं। मनोवैज्ञानिक समस्याओं को दर्शन के परिवेश में प्रतिपादित करनेवाले विद्वानों में से कुछ के नाम उल्लेखनीय हैं। डेकार्ट (1596-1650) ने मनुष्य तथा पशुओं में भेद करते हुए बताया कि मनुष्यों में आत्मा होती है जबकि पशु केवल मशीन की भाँति काम करते हैं। आत्मा के कारण मनुष्य में इच्छाशक्ति होती है। पिट्यूटरी ग्रंथि पर शरीर तथा आत्मा परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। डेकार्ट के मतानुसार मनुष्य के कुछ विचार ऐसे होते हैं जिन्हे जन्मजात कहा जा सकता है। उनका अनुभव से कोई संबंध नहीं होता। लायबनीत्स (1646-1716) के मतानुसार संपूर्ण पदार्थ "मोनैड" इकाई से मिलकर बना है। उन्होंने चेतनावस्था को विभिन्न मात्राओं में विभाजित करके लगभग दो सौ वर्ष बाद आनेवाले फ्रायड के विचारों के लिये एक बुनियाद तैयार की। लॉक (1632-1704) का अनुमान था कि मनुष्य के स्वभाव को समझने के लिये विचारों के स्रोत के विषय में जानना आवश्यक है। उन्होंने विचारों के परस्पर संबंध विषयक सिद्धांत प्रतिपादित करते हुए बताया कि विचार एक तत्व की तरह होते हैं और मस्तिष्क उनका विश्लेषण करता है। उनका कहना था कि प्रत्येक वस्तु में प्राथमिक गुण स्वयं वस्तु में निहित होते हैं। गौण गुण वस्तु में निहित नहीं होते वरन् वस्तु विशेष के द्वारा उनका बोध अवश्य होता है। बर्कले (1685-1753) ने कहा कि वास्तविकता की अनुभूति पदार्थ के रूप में नहीं वरन् प्रत्यय के रूप में होती है। उन्होंने दूरी की संवेदनाके विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि अभिबिंदुता धुँधलेपन तथा स्वत: समायोजन की सहायता से हमें दूरी की संवेदना होती है। मस्तिष्क और पदार्थ के परस्पर संबंध के विषय में लॉक का कथन था कि पदार्थ द्वारा मस्तिष्क का बोध होता है। ह्यूम (1711-1776) ने मुख्य रूप से "विचार" तथा "अनुमान" में भेद करते हुए कहा कि विचारों की तुलना में अनुमान अधिक उत्तेजनापूर्ण तथा प्रभावशाली होते हैं। विचारों को अनुमान की प्रतिलिपि माना जा सकता है। ह्यूम ने कार्य-कारण-सिद्धांत के विषय में अपने विचार स्पष्ट करते हुए आधुनिक मनोविज्ञान को वैज्ञानिक पद्धति के निकट पहुँचाने में उल्लेखनीय सहायता प्रदान की। हार्टले (1705-1757) का नाम दैहिक मनोवैज्ञानिक दार्शनिकों में रखा जा सकता है। उनके अनुसार स्नायु-तंतुओं में हुए कंपन के आधार पर संवेदना होती है। इस विचार की पृष्ठभूमि में न्यूटन के द्वारा प्रतिपादित तथ्य थे जिनमें कहा गया था कि उत्तेजक के हटा लेने के बाद भी संवेदना होती रहती है। हार्टले ने साहचर्य विषयक नियम बताते हुए सान्निध्य के सिद्धांत पर अधिक जोर दिया। हार्टले के बाद लगभग 70 वर्ष तक साहचर्यवाद के क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ। इस बीच स्काटलैंड में रीड (1710-1796) ने वस्तुओं के प्रत्यक्षीकरण का वर्णन करते हुए बताया कि प्रत्यक्षीकरण तथा संवेदना में भेद करना आवश्यक है। किसी वस्तु विशेष के गुणों की संवेदना होती है जबकि उस संपूर्ण वस्तु का प्रत्यक्षीकरण होता है। संवेदना केवल किसी वस्तु के गुणों तक ही सीमित रहती है, किंतु प्रत्यक्षीकरण द्वारा हमें उस पूरी वस्तु का ज्ञान होता है। इसी बीच फ्रांस में कांडिलैक (1715-1780) ने अनुभववाद तथा ला मेट्री ने भौतिकवाद की प्रवृत्तियों की बुनियाद डाली। कांडिलैंक का कहना था कि संवेदन ही संपूर्ण ज्ञान का "मूल स्त्रोत" है। उन्होंने लॉक द्वारा बताए गए विचारों अथवा अनुभवों को बिल्कुल आवश्यक नहीं समझा। ला मेट्री (1709-1751) ने कहा कि विचार की उत्पत्ति मस्तिष्क तथा स्नायुमंडल के परस्पर प्रभाव के फलस्वरूप होती है। डेकार्ट की ही भाँति उन्होंने भी मनुष्य को एक मशीन की तरह माना। उनका कहना था कि शरीर तथा मस्तिष्क की भाँति आत्मा भी नाशवान् है। आधुनिक मनोविज्ञान में प्रेरकों की बुनियाद डालते हुए ला मेट्री ने बताया कि सुखप्राप्ति ही जीवन का चरम लक्ष्य है। जेम्स मिल (1773-1836) तथा बाद में उनके पुत्र जान स्टुअर्ट मिल (1806-1873) ने मानसिक रसायनी का विकास किया। इन दोनों विद्वानों ने साहचर्यवाद की प्रवृत्ति को औपचारिक रूप प्रदान किया और वुंट के लिये उपयुक्त पृष्ठभूमि तैयार की। बेन (1818-1903) के बारे में यही बात लागू होती है। कांट समस्याओं के समाधान में व्यक्तिनिष्ठावाद की विधि अपनाई कि बाह्य जगत् के प्रत्यक्षीकरण के सिद्धांत में जन्मजातवाद का समर्थन किया। हरबार्ट (1776-1841) ने मनोविज्ञान को एक स्वरूप प्रदान करने में महत्वपूण्र योगदान किया। उनके मतानुसार मनोविज्ञान अनुभववाद पर आधारित एक तात्विक, मात्रात्मक तथा विश्लेषात्मक विज्ञान है। उन्होंने मनोविज्ञान को तात्विक के स्थान पर भौतिक आधार प्रदान किया और लॉत्से (1817-1881) ने इसी दिशा में ओर आगे प्रगति की। मनोवैज्ञानिक समस्याओं के वैज्ञानिक अध्ययन का शुभारंभ उनके औपचारिक स्वरूप आने के बाद पहले से हो चुका था। सन् 1834 में वेबर ने स्पर्शेन्द्रिय संबंधी अपने प्रयोगात्मक शोधकार्य को एक पुस्तक रूप में प्रकाशित किया। सन् 1831 में फेक्नर स्वयं एकदिश धारा विद्युत् के मापन के विषय पर एक अत्यंत महत्वपूर्ण लेख प्रकाशित कर चुके थे। कुछ वर्षों बाद सन् 1847 में हेल्मो ने ऊर्जा सरंक्षण पर अपना वैज्ञानिक लेख लोगों के सामने रखा। इसके बाद सन् 1856 ई., 1860 ई. तथा 1866 ई. में उन्होंने "आप्टिक" नामक पुस्तक तीन भागों में प्रकाशित की। सन् 1851 ई. तथा सन् 1860 ई. में फेक्नर ने भी मनोवैज्ञानिक दृष्टि से दो महत्वपूर्ण ग्रंथ ('ज़ेंड आवेस्टा' तथा 'एलिमेंटे डेयर साईकोफ़िजिक') प्रकाशित किए। सन् 1858 ई में वुंट हाइडलवर्ग विश्वविद्यालय में चिकित्सा विज्ञान में डाक्टर की उपधि प्राप्त कर चुके थे और सहकारी पद पर क्रियाविज्ञान के क्षेत्र में कार्य कर रहे थे। उसी वर्ष वहाँ बॉन से हेल्मोल्त्स भी आ गए। वुंट के लिये यह संपर्क अत्यंत महत्वपूर्ण था क्योंकि इसी के बाद उन्होंने क्रियाविज्ञान छोड़कर मनोविज्ञान को अपना कार्यक्षेत्र बनाया। वुंट ने अनगिनत वैज्ञानिक लेख तथा अनेक महत्वपूर्ण पुस्तक प्रकाशित करके मनोविज्ञान को एक धुँधले एवं अस्पष्ट दार्शनिक वातावरण से बाहर निकाला। उसने केवल मनोवैज्ञानिक समस्याओं को वैज्ञानिक परिवेश में रखा और उनपर नए दृष्टिकोण से विचार एवं प्रयोग करने की प्रवृत्ति का उद्घाटन किया। उसके बाद से मनोविज्ञान को एक विज्ञान माना जाने लगा। तदनंतर जैसे जैसे मरीज वैज्ञानिक प्रक्रियाओं पर प्रयोग किए गए वैसे वैसे नई नई समस्याएँ सामने आईं। व्यवहार विषयक नियमों की खोज ही मनोविज्ञान का मुख्य ध्येय था। सैद्धांतिक स्तर पर विभिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत किए गए। सन् 1912 ई. के आसपास मनोविज्ञान के क्षेत्र में संरचनावाद, क्रियावाद, व्यवहारवाद, गेस्टाल्टवाद तथा मनोविश्लेषण आदि मुख्य मुख्य शाखाओं का विकास हुआ। इन सभी वादों के प्रवर्तक इस विषय में एकमत थे कि मनुष्य के व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन ही मनोविज्ञान का उद्देश्य है। उनमें परस्पर मतभेद का विषय था कि इस उद्देश्य को प्राप्त करने का सबसे अच्छा ढंग कौन सा है। सरंचनावाद के अनुयायियों का मत था कि व्यवहार की व्याख्या के लिये उन शारीरिक संरचनाओं को समझना आवश्यक है जिनके द्वारा व्यवहार संभव होता है। क्रियावाद के माननेवालों का कहना था कि शारीरिक संरचना के स्थान पर प्रेक्षण योग्य तथा दृश्यमान व्यवहार पर अधिक जोर होना चाहिए। इसी आधार पर बाद में वाटसन ने व्यवहारवाद की स्थापना की। गेस्टाल्टवादियों ने प्रत्यक्षीकरण को व्यवहारविषयक समस्याओं का मूल आधार माना। व्यवहार में सुसंगठित रूप से व्यवस्था प्राप्त करने की प्रवृत्ति मुख्य है, ऐसा उनका मत था। फ्रायड ने मनोविश्लेषणवाद की स्थापना द्वारा यह बताने का प्रयास किया कि हमारे व्यवहार के अधिकांश कारण अचेतन प्रक्रियाओं द्वारा निर्धारित होते हैं। आधुनिक मनोविज्ञान में इन सभी "वादों" का अब एकमात्र ऐतिहासिक महत्व रह गया है। इनके स्थान पर मनोविज्ञान में अध्ययन की सुविधा के लिये विभिन्न शाखाओं का विभाजन हो गया है। प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में मुख्य रूप से उन्हीं समस्याओं का मनोवैज्ञानिक विधि से अध्ययन किया जाने लगा जिन्हें दार्शनिक पहले चिंतन अथवा विचारविमर्श द्वारा सुलझाते थे। अर्थात् संवेदन तथा प्रत्यक्षीकरण। बाद में इसके अंतर्गत सीखने की प्रक्रियाओं का अध्ययन भी होने लगा। प्रयोगात्मक मनोविज्ञान आधुनिक मनोविज्ञान की प्राचीनतम शाखा है। मनुष्य की अपेक्षा पशुओं को अधिक नियंत्रित परिस्थितियों में रखा जा सकता है, साथ ही साथ पशुओं की शारीरिक रचना भी मनुष्य की भाँति जटिल नहीं होती। पशुओं पर प्रयोग करके व्यवहार संबंधी नियमों का ज्ञान सुगमता से हो सकता है। सन् 1912 ई. के लगभग थॉर्नडाइक ने पशुओं पर प्रयोग करके तुलनात्मक अथवा पशु मनोविज्ञान का विकास किया। किंतु पशुओं पर प्राप्त किए गए परिणाम कहाँ तक मनुष्यों के विषय में लागू हो सकते हैं, यह जानने के लिये विकासात्मक क्रम का ज्ञान भी आवश्यक था। इसके अतिरिक्त व्यवहार के नियमों का प्रतिपादन उसी दशा में संभव हो सकता है जब कि मनुष्य अथवा पशुओं के विकास का पूर्ण एवं उचित ज्ञान हो। इस संदर्भ को ध्यान में रखते हुए विकासात्मक मनोविज्ञान का जन्म हुआ। सन् 1912 ई. के कुछ ही बाद मैक्डूगल (1871-1938) के प्रयत्नों के फलस्वरूप समाज मनोविज्ञान की स्थापना हुई, यद्यपि इसकी बुनियाद समाज वैज्ञानिक हरबर्ट स्पेंसर (1820-1903) द्वारा बहुत पहले रखी जा चुकी थी। धीरे-धीरे ज्ञान की विभिन्न शाखाओं पर मनोविज्ञान का प्रभाव अनुभव किया जाने लगा। आशा व्यक्त की गई कि मनोविज्ञान अन्य विषयों की समस्याएँ सुलझाने में उपयोगी हो सकता है। साथ ही साथ, अध्ययन की जानेवाली समस्याओं के विभिन्न पक्ष सामने आए। परिणामस्वरूप मनोविज्ञान की नई नई शाखाओं का विकास होता गया। आज मनोविज्ञान की लगभग 12 शाखाएँ हैं। इनमें से कुछ ने अभी हाल में ही जन्म लिया है, जिनमें प्रेरक मनोविज्ञान, सत्तात्मक मनोविज्ञान, गणितीय मनोविज्ञान विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। आजकल रूस में अनुकूलन तथा अंतरिक्ष मनोविज्ञान में काफी काम हो रहा है। अमरीका में लगभग सभी क्षेत्रों में शोधकार्य हो रहा है। संमोहन तथा प्रेरक मनोविज्ञान में अपेक्षाकृत कुछ अधिक काम किया जा रहा है। परा-इंद्रीय प्रत्यक्षीकरण की तरफ मनोवैज्ञानिकों के सामान्य दृष्टिकोण में कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं हुआ है। आज भी इस क्षेत्र में पर्याप्त वैज्ञानिक तथ्यों एवं प्रमाणों का अभाव है। किंतु ड्यूक विश्वविद्यालय (अमरीका) में डा राईन के निदेशन में इस क्षेत्र में बराबर काम हो रहा है। एशिया में जापान मनोविज्ञान के क्षेत्र में सबसे आगे बढ़ा हुआ है। समाज मनोविज्ञान तथा प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के साथ साथ वहाँ ज़ेन बुद्धवाद का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है। .

नई!!: प्रयोगशाला और मनोविज्ञान का इतिहास तथा शाखाएँ · और देखें »

मृत्तिकाशिल्प

चीनी पोर्सलीन का पात्र (किंग वंश, १८वीं शती) खपरैल मेक्सिको से प्राप्त योद्धा की मृतिकाशिल्प (तीसरी शती ईसापूर्व से चौथी शती ई के बीच) मृत्तिकाशिल्प 'सिरैमिक्स' (ceramics) का हिन्दी पर्याय है। ग्रीक भाषा के 'कैरेमिक' का अर्थ है - 'कुंभकार का शिल्प'। अमरीका में मृद भांड, दुर्गलनीय पदार्थ, कांच, सीमेंट, एनैमल तथा चूना उद्योग मृत्तिकाशिल्प के अंतर्गत हैं। गढ़ने तथा सुखाने के बाद अग्नि द्वारा प्रबलित मिट्टी या अन्य सुधट्य पदार्थ की निर्मिति को यूरोप में 'मृत्तिका शिल्प उत्पादन' कहते हैं। मृत्पदार्थो के निर्माण, उनके तकनीकी लक्षण तथा निर्माण में प्रयुक्त कच्चे माल से संबंधित उद्योग को हम मृत्तिकाशिल्प या सिरैमिक्स कहते हैं। मिट्टी के उत्पाद अनेक क्षेत्रों में, जैसे भवन निर्माण तथा सजावट, प्रयोगशाला, अस्पताल, विद्युत उत्पादन और वितरण, जलनिकास मलनिर्यास, पाकशाला, ऑटोमोबाइल तथा वायुयान आदि में काम आते हैं। .

नई!!: प्रयोगशाला और मृत्तिकाशिल्प · और देखें »

यूरोपीय नाभिकीय अनुसंधान संगठन

सर्न (Organisation Européenne pour la Recherche Nucléaire या CERN (फ़्रान्सीसी में) .

नई!!: प्रयोगशाला और यूरोपीय नाभिकीय अनुसंधान संगठन · और देखें »

रसायन शिक्षा

रसायन शिक्षा विद्यालय, महाविद्यालय या विश्वविद्यालय में पढ़ाया जाने वाला एक विषय है। इसके विषय इस तरह से बनाए जाते हैं की कोई भी विद्यार्थी इसे आसानी से समझ ले कि किस प्रकार से कोई अभिक्रिया होती है और रसायन का हमारे जीवन में क्या महत्व है और हम इस शिक्षा का उपयोग किस प्रकार से कर सकते हैं। .

नई!!: प्रयोगशाला और रसायन शिक्षा · और देखें »

राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, गोवा

राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, गोवा राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (National Institute of Oceanography) भारत सरकार के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की एक प्रयोगशाला है। इसका मुख्यालय गोवा में स्थित है तथा मुम्बई, कोच्चि एवं विशाखापट्टनम में इसके क्षेत्रीय कार्यालय हैं। इसकी स्थापना १ जनवरी सन् १९६६ को हुई थी। इसका मुख्य ध्येय उत्तरी हिन्द महासागर के विशिष्ट समुद्रवैज्ञानिक पहलुओं का विस्तृत अध्ययन करना है। .

नई!!: प्रयोगशाला और राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, गोवा · और देखें »

रासायनिक उपकरण

किसी भी रासायनिक प्रयोगशाला में ठोस, द्रव, या गैस अवस्था में अनेक प्रकार के पदार्थों के साथ प्रयोग करने पड़ते हैं तथा विभिन्न प्रयोगों के साथ विशेष प्रकार के उपकरणों को जुटाना पड़ता है। अत: उन साधारण उपकरणों को, जिनसे अन्य अनेक प्रकार के जटिल उपकरण तैयार कर प्रयोग किए जाते हैं, जान लेना नितांत आवश्यक है। रासायनिक उपकरणों (Chemical Apparatus) का चुनना इस बात पर भी निर्भर करता है कि क्रिया किस ताप पर होगी और क्रियाशील पदार्थ संक्षारक (corrosive) तो नहीं होंगे। रासायनिक क्रियाएँ ठोस, द्रव, या गैस अवस्थावाले पदार्थों के साथ हो सकती हैं। अत: विलयन, निस्यंदन, निष्कर्षण, अवक्षेपण, वाष्पीकरण, संघनन, शोषणश् आदि अनेक विधियों के लिए विभिन्न प्रकार के उपकरण, जैसे वीकर, परखनली, कीप, पंप, निस्यंदन फ्लास्क, जल ऊष्मक, वालू ऊष्मक, आंशिक आसवन स्तंभ, फ्लास्क शोषक स्तंभ, गैसजनित्र, धावन बोतल, काग, रबर तथ काँच की नली, तापमापी, मूषा, तोल बोतल, ब्यूरेट, पिपेट, अंशांकित फ्लास्क आदि, प्रयुक्त होते हैं। किसी विशेष प्रकार का उपकरण तैयार करने के लिए विभिन्न उपकरणों को शीशे तथा रबर, या प्लास्टिक की नलियों की सहायता से जोड़ना पड़ता है। उनमें साधारण, या रबर के काग लगाने पड़ते हैं। उन कागों में छेद करने पड़ते हैं, काँच की नलियों को मोड़ना पड़ता है तथा उन्हें झुकाना, खींचना या किसी विशेष अभीष्ट रूप में बनाना आवश्यक होता है। आजकल घर्षित काँच के प्रामाणिक जोड़वाले उपकरण भी ऐसी नापों के मिलते हैं जो इस प्रकार जुट जाते हैं कि उनमें जल, या हवा का पूर्ण रोधन हो सके। अत: काग लगाने, या अन्य प्रकार से जोड़ने की आवश्यकता नहीं होती। प्रयोग करते समय जोड़ों का सिलीकोन ग्रीज़ से स्नेहन (lubrication) करना पड़ता है, जिससे वे पूर्णरूपेण वायुरोधी हो जाएँ। प्रयोगशाला की विधियों में समय-समय पर परिवर्तन होते रहे हैं, अत: कम मात्रा में पदार्थ लेकर काम करने के लिए सूक्ष्म उपकरणों का, जैसे सूक्ष्म बीकर, सूक्ष्म ब्यूरेट, सूक्ष्ममापी तुला आदि का प्रयोग होने लगा है, जिनकी सहायता से हम कुछ मिलिग्राम पदार्थ से अनेक क्रियाएँ कर सकते हैं। ऐसे अधिकांश उपकरण अधिक मात्रा में पदार्थ लेकर काम में आनेवाले उपकरणों के लघु रूप हैं। इसके अतिरिक्त प्रयोगशाला में कुछ भौतिक मापों का निकालना पड़ता है, जिसके लिए तुला, तापमापी, बैरोमीटर, स्पेक्ट्रोमीटर, पी.एच मापी, चालकतामापी, ध्रुवणमापी, विवर्तनमापी, श्यानतामापी आदि अनेक विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है। .

नई!!: प्रयोगशाला और रासायनिक उपकरण · और देखें »

रिचर्ड अबेग

रिचर्ड अबेग रिचार्ड अबेग (१८६९-१९१०) ब्रेस्लाव में प्रोफेसर तथा प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे। इनका जन्म डेनज़िग तथा प्रशिक्षण बर्लिन में हुआ था। थोड़ी आयु से ही वैज्ञानिक कार्यों में इनकी बहुत रुचि थी और अपने घर में इन्होंने एक छोटी सी प्रयोगशाला भी बना ली थी, जिसको इनकी माँ, रासायनिक पदार्थो की दुर्गध के कारण, पसंद नहीं करती थी। आगे चलकर बड़े-बड़े वैज्ञानिकों, जैसे ओस्टवाल्ड तथा अर्रहिनियस, के संपर्क में आने का इनको अवसर मिला। इन्होंने अपनी सैनिक शिक्षा के अवसर पर गुब्बारे की उड़ान में भाग लेते रहे; इसी में इन्हें अपनी जान भी गँवानी पड़ी। भौतिक रसायन के कई विषयों पर इन्होंने अनुसंधान किया। अबेग विख्यात लेखक भी थे। ये 'हैंडबुक डर एनार्गैनिशेन् केमी' तथा 'साइट्सश्रिफ़्ट फ़ूर इलेक्ट्रोकेमी' नामक पत्रिका के संपादक थे। .

नई!!: प्रयोगशाला और रिचर्ड अबेग · और देखें »

रक्षा शरीरक्रिया एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान

रक्षा शरीरक्रिया एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान (Defence Institute of Physiology & Allied Sciences (DIPAS)) भारत की एक रक्षा प्रयोगशाला है और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के अन्तर्गत है। यह दिल्ली में स्थित है। इसमें चरम परिस्थितियों में तथा युद्ध की अवस्था में मानव के कार्य करने की क्षमता बढ़ाने के लिये शरीरक्रिया और जैवचिकित्सीय अनुसंधान किये जाते हैं। 'दिपास' डीआरडीओ के जीवन विज्ञान निदेशालय के अन्तर्गत आता है। .

नई!!: प्रयोगशाला और रक्षा शरीरक्रिया एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान · और देखें »

रॉसलिंड एल्सी फ्रेंकलिन

अंगूठाकार रॉसलिंड एल्सी फ्रेंकलिन (25 जुलाई 1920 - 16 अप्रैल 1958) डीएनए (डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड), आरएनए (रैबोनुक्लियक एसिड), वायरस, कोयले की आणविक संरचना को समझने के लिए योगदान दिया है जो एक अंग्रेजी केमिस्ट और एक्स-रे स्फटिक था और ग्रेफाइट। कोयला और वायरस पर उसके काम करता है उसके जीवन में सराहा गया है हालांकि, डीएनए की खोज करने के लिए उनके योगदान को काफी हद तक मरणोपरांत पहचाना गया। एक प्रमुख ब्रिटिश यहूदी परिवार में जन्मे, फ्रेंकलिन पश्चिम लंदन, ससेक्स में युवा महिलाओं के लिए लिन्डोस स्कूल, और सेंट पॉल गर्ल्स स्कूल में नोरलान्ट प्लेस में एक निजी दिन स्कूल में शिक्षित किया गया। वह सभी प्रमुख विषयों और खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। वह अठारह वर्ष की आयु में उसे मैट्रिक पास है, और तीन साल के लिए £ 30 एक साल की प्रदर्शनी स्कूल छोड़ने जीता। उसके पिता ने कहा कि वह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान शरणार्थी छात्रों के लिए अर्जित धन दान करने को कहा। फिर वह न्युहाम कॉलेज, कैम्ब्रिज में प्राकृतिक विज्ञान ट्र्यिपोस का अध्ययन किया है, वह एक शोध फैलोशिप कमाई 1941 में स्नातक की उपाधि प्राप्त है, जहां से वह उत्साह की कमी के लिए उसे निराश करने वाले रोनाल्ड जॉर्ज रेफोरड नोरिष, के तहत कैंब्रिज भौतिक रसायन विज्ञान प्रयोगशाला के विश्वविद्यालय में शामिल हो गए। सौभाग्य से, ब्रिटिश कोयला उपयोगिता रिसर्च एसोसिएशन (बिसियुरए) 1942 में उसे एक शोध पद की पेशकश की है, और अंगारों पर उसके काम शुरू कर दिया। यह उसका वह एक निपुण एक्स-रे स्फटिक बन गया है जहां लाबोरटरि सेंट्रल डेस सेवा चिमिक्युस डे ल Etat, पर जैक्स मेरिंग के तहत वह एक चेरचेयुर(पोस्ट डॉक्टरेट शोधकर्ता) के रूप में 1947 में पेरिस के लिए गया था 1945 में पीएचडी की डिग्री कमाने में मदद की। वह 1951 में, किंग्स कॉलेज लंदन में एक शोध सहयोगी बन गया है, लेकिन उसके निदेशक जॉन रान्डेल और तो और अधिक उसके सहयोगी मौरिस विल्किंस के साथ साथ अप्रिय झड़पों के कारण दो साल बाद बिरक्कबेक कॉलेज को स्थानांतरित करने के लिए मजबूर किया गया था। बर्कबेक में, चेयर भौतिकी विभाग के जेडी बरनाल उसे एक अलग शोध टीम की पेशकश की। वह या गर्भाशय के कैंसर का 37 वर्ष की उम्र में 1958 में निधन हो गया। फ्रेंकलिन सबसे अच्छा डीएनए के एक्स-रे विवर्तन छवियों पर अपने काम के लिए जाना जाता है, जबकि डीएनए डबल हेलिक्स की खोज हुई जो किंग्स कॉलेज, लंदन, पर। डीएनए के लिए एक पेचदार संरचना में निहित है और उसके कुछ महत्वपूर्ण विवरण के विषय में अनुमान सक्षम है, जो फ्रेंकलिन की एक्स-रे विवर्तन छवियों, विल्किंस द्वारा जेम्स वाटसन को दिखाया गया है। फ्रांसिस क्रिक के अनुसार, उसके डेटा वाटसन और क्रिक द्वारा 1953 में मॉडल निर्धारित करने में महत्वपूर्ण थे डीएनए के पेचदार संरचना का सही विवरण। वाटसन भी 2000 में किंग्स कॉलेज लंदन फ्रेंकलिन-विल्किंस इमारत के उद्घाटन के अवसर पर अपने ही बयान में इस राय की पुष्टि। उसकी कुंजी निष्कर्षों में डीएनए डबल हेलिक्स की रचना हाइड्रेशन के स्तर पर निर्भर करता है कि था। वह खोज और नामकरण क्रमश: निम्न और उच्च हाइड्रेशन पर रूपों रहे हैं जो एक-डीएनए और बी-डीएनए के लिए जिम्मेदार है। वाटसन और क्रिक मॉडल सेल में आम रूप है, जो बी फार्म, के लिए था। यह एक डीएनए किसी भी जैविक कार्यों के लिए किया था या नहीं, पता नहीं चल पाया है, लेकिन कई अब जाना जाता है। उसका काम वाटसन और क्रिक की कागज के नेतृत्व में तीन डीएनए प्रकृति लेखों की श्रृंखला में तीसरे प्रकाशित किया गया था। वाटसन, क्रिक और विल्किंस वाटसन फ्रेंकलिन आदर्श होता है कि सुझाव 1962 में फिजियोलॉजी या चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार साझा विल्किंस के साथ रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, लेकिन नोबेल समिति मरणोपरांत पुरस्कार नहीं कर सकता है। बर्कबेक कॉलेज में अपने स्वयं के अनुसंधान दल के साथ, डीएनए पर काम करने के उसके हिस्से खत्म करने के बाद, फ्रेंकलिन तंबाकू मोज़ेक वायरस और पोलियो वायरस सहित वायरस की आणविक संरचना, पर अग्रणी काम का नेतृत्व किया। उसकी टीम के सदस्य है, और बाद में उसे लाभार्थी हारून क्लग वह बहुत संभावना के रूप में अच्छी तरह से है कि पुरस्कार साझा किया जाएगा, उसके शोध जारी रखा और वह जिंदा हो गया था 1982 में रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार जीतने पर चला गया। डीएनए संरचना.

नई!!: प्रयोगशाला और रॉसलिंड एल्सी फ्रेंकलिन · और देखें »

रोडरनर

कंप्यूटर बनाने वाली शीर्ष कंपनी आईबीएम दुनिया का सबसे तेज़ सुपर कंप्यूटर बना रही है जो प्रति सेकेंड में 1.6 हज़ार खरब तक गणना करने में सक्षम होगा। कंपनी ने इसका नाम 'रोडरनर' रखा है और इसे अमरीकी शहर न्यू मेक्सिको की लॉस अलामोस प्रयोगशाला में तैयार किया जाएगा.

नई!!: प्रयोगशाला और रोडरनर · और देखें »

रोजमर्रा की जिंदगी में रसायन शास्त्र

Molecular Modeling.png|Caption1 Hydrogen eigenstate n5 l3 m1.png|Caption2 .

नई!!: प्रयोगशाला और रोजमर्रा की जिंदगी में रसायन शास्त्र · और देखें »

लोक प्रशासन की प्रकृति

जिस प्रकार लोक प्रशासन की परिभाषा में कई दृष्टिकोण दिखाई देते हैं, उसी प्रकार इसकी प्रकृति के विषय में भी दो तरह के दृष्टिकोण हैं। प्रथम, व्यापक दृष्टिकोण जिसे 'पूर्ण विचार' अथवा 'एकीकृत विचार' कहा जाता है और दूसरा संकुचित दृष्टिकोण जिसे 'प्रबन्धकीय विचार' कहा जाता है। .

नई!!: प्रयोगशाला और लोक प्रशासन की प्रकृति · और देखें »

शिक्षण विधियाँ

जिस ढंग से शिक्षक शिक्षार्थी को ज्ञान प्रदान करता है उसे शिक्षण विधि कहते हैं। "शिक्षण विधि" पद का प्रयोग बड़े व्यापक अर्थ में होता है। एक ओर तो इसके अंतर्गत अनेक प्रणालियाँ एवं योजनाएँ सम्मिलित की जाती हैं, दूसरी ओर शिक्षण की बहुत सी प्रक्रियाएँ भी सम्मिलित कर ली जाती हैं। कभी-कभी लोग युक्तियों को भी विधि मान लेते हैं; परंतु ऐसा करना भूल है। युक्तियाँ किसी विधि का अंग हो सकती हैं, संपूर्ण विधि नहीं। एक ही युक्ति अनेक विधियों में प्रयुक्त हो सकती है। .

नई!!: प्रयोगशाला और शिक्षण विधियाँ · और देखें »

सरल परिसर्प

सरल परिसर्प (हर्पीज़ सिम्प्लेक्स) (ἕρπης - herpes, शाब्दिक अर्थ - "धीरे-धीरे बढ़ता हुआ") एक विषाणुजनित रोग है जो सरल परिसर्प विषाणु 1 (एचएसवी-1 (HSV-1)) और सरल परिसर्प विषाणु 2 (एचएसवी-2 (HSV-2)) दोनों के कारण होता है। परिसर्प विषाणु से होने वाले संक्रमण को संक्रमण स्थल पर आधारित कई विशिष्ट विकारों में से एक विकार के रूप में वर्गीकृत किया गया है। मौखिक परिसर्प, जिसके दिखाई देने वाले लक्षणों को बोलचाल की भाषा में शीतल घाव कहते हैं, चेहरे और मुंह को संक्रमित कर देते है। मौखिक परिसर्प, संक्रमण का सबसे सामान्य रूप है। जननांगी परिसर्प, जिसे आमतौर पर सिर्फ परिसर्प के रूप में जाना जाता है, परिसर्प का दूसरा सबसे सामान्य रूप है। अन्य विकार जैसे ददहा बिसहरी, परिसर्प ग्लैडायटोरम, नेत्रों में होने वाला परिसर्प (स्वच्छपटलशोथ), प्रमस्तिष्क में परिसर्प के संक्रमण से होने वाला मस्तिष्ककलाशोथ, मोलारेट का मस्तिष्कावरणशोथ, नवजात शिशुओं में होने वाला परिसर्प और संभवतः बेल का पक्षाघात सभी सरल परिसर्प विषाणु के कारण होते हैं। परिसर्प के विषाणु किसी व्यक्ति के रोगग्रस्त होने की स्थिति में अपना प्रभाव दिखाना शुरू करते हैं अर्थात् ये रोगग्रस्त व्यक्ति में छाले के रूप में प्रकट होते हैं जिसमें संक्रामक विषाणु के अंश होते हैं जो 2 से 21 दिनों तक प्रभावी रहते हैं और उसके बाद जब रोगी की हालत में सुधार होने लगता है तो ये घाव गायब हो जाते हैं। जननांगी परिसर्प, हालांकि, प्रायः स्पर्शोन्मुख होते हैं, तथापि विषाणुजनित बहाव अभी भी हो सकता है। आरंभिक संक्रमण के बाद, विषाणु संवेदी तंत्रिकाओं की तरफ बढ़ते हैं जहां वे चिरकालिक अदृश्य विषाणुओं के रूप में निवास करते हैं। पुनरावृत्ति के कारण अनिश्चित हैं, तथापि कुछ संभावित कारणों की पहचान की गई हैं। समय के साथ, सक्रिय रोग के प्रकरणों की आवृत्ति और तीव्रता में कमी आ जाती है। सरल परिसर्प, एक संक्रमित व्यक्ति के घाव या शरीर द्रव के सीधे संपर्क में आने पर बड़ी आसानी से फ़ैल जाता है। स्पर्शोन्मुख बहाव के समय के दौरान त्वचा से त्वचा के संपर्क के माध्यम से भी संचरण हो सकता है। अवरोध संरक्षण विधियां, परिसर्प के संचरण की रोकथाम की सबसे विश्वसनीय विधियां हैं लेकिन वे जोखिम को ख़त्म करने के बजाय सिर्फ कम करते हैं। मौखिक परिसर्प की आसानी से पहचान हो जाती है यदि रोगी के घाव या अल्सर दिखाई देने योग्य हो। ओरोफेसियल परिसर्प और जननांगी परिसर्प के प्रारंभिक चरणों का पता लगाना थोड़ा कठिन हैं; इसके लिए आम तौर पर प्रयोगशाला परीक्षण की आवश्यकता है। अमेरिका की जनसंख्या का बीस प्रतिशत के पास एचएसवी-2 (HSV-2) का रोग-प्रतिकारक हैं हालांकि उन सब का जननांगी घावों का इतिहास नहीं है।आतंरिक दवा के प्रति हरिसन के सिद्धांत, 16वां संस्करण, अध्याय 163, सरल परिसर्प के विषाणु, लॉरेंस कोरी परिसर्प का कोई इलाज़ नहीं है। एक बार संक्रमित होने जाने के बाद विषाणु जीवन पर्यंत शरीर में रहता है। हालांकि, कई वर्षों के बाद, कुछ लोग सदा के लिए स्पर्शोन्मुख हो जाएंगे और उन्हें कभी किसी प्रकार के प्रकोप का कोई अनुभव नहीं होगा लेकिन वे फिर भी दूसरों के लिए संक्रामक हो सकते हैं। इसके टीकों का रोग-विषयक परीक्षण चल रहा है लेकिन प्रभावशाली साबित नहीं हुए हैं। उपचार के माध्यम से विषाणुजनित प्रजनन और बहाव को कम किया जा सकता है, विषाणु को त्वचा में प्रवेश करने से रोका जा सकता है और रोगसूचक प्रकरणों की गंभीरता को कम किया जा सकता है। सरल परिसर्प के सम्बन्ध में उन हालातों के साथ भ्रमित नहीं होना चाहिए जो परिसर्पवायरिडा परिवार जैसे परिसर्प ज़ोस्टर में अन्य विषाणुओं के कारण होते हैं जो छोटी माता या चेचक के ज़ोस्टर विषाणु के कारण होने वाला एक विषाणुजनित रोग है। त्वचा पर घावों के होने के आभास के कारण "हाथ, पैर और मुख रोग" के साथ भी भ्रमित होने की सम्भावना है। .

नई!!: प्रयोगशाला और सरल परिसर्प · और देखें »

संधिवार्ता

संधिवार्ता (निगोशिएशन) उस बातचीत को कहते हैं जिसका उद्देश्य विवादों को हल करना, विभिन्न क्रियाओं की दिशा पर सहमति पैदा करना, किसी एक व्यक्ति अथवा सामूहिक लाभ के लिए सौदा करना, या विभिन्न हितों को तुष्ट करने के लिए परिणामों को तराशना है। यह वैकल्पिक विवाद समाधान का प्राथमिक तरीका है। समझौता वार्ता, व्यापार, लाभरहित संगठनों, सरकारी शाखाओं, कानूनी कार्यवाहियों, देशों के बीच और व्यक्तिगत परिस्थितियों जैसे विवाह, तलाक, बच्चों की परवरिश और रोजमर्रा की जिंदगी में होती हैं। इस विषय के अध्ययन को समझौता वार्ता का सिद्धांत कहा जाता है। पेशेवर वार्ताकार अक्सर विशेषज्ञ होते हैं, जैसे कि संघ के वार्ताकार, उत्तोलन खरीद वार्ताकार, शांति वार्ताकार, बंधक वार्ताकार, या वे अन्य किसी पदनाम के अंतर्गत भी काम कर सकते हैं, जैसे राजनयिक, विधायक या दलाल.

नई!!: प्रयोगशाला और संधिवार्ता · और देखें »

संरचनात्मक अभियांत्रिकी अनुसंधान केन्द्र, चेन्नै

संरचनात्मक अभियांत्रिकी अनुसंधान केन्द्र (Structuarl engineering Research Centre) भारत सरकार के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सी.एस.आई.आर.) द्वारा स्थापित एक राष्ट्रीय प्रयोगशाला है। यह चेन्नै में स्थित है। यहाँ संरचना एवं संरचनात्मक घटकों के विश्लेषण, अभिकल्प एवं परीक्षण के लिए उत्तम सुविधाएँ मौजूद हैं। इस केन्द्र की सेवाओं से केन्द्र और राज्य सरकार, निजी संस्थान एवं उपक्रम विस्तृत रूप से लाभान्वित हो रहे हैं। एस.ई.आर.सी के वैज्ञानिक अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय समितियों में काम करते हैं और संरचनात्मक अभियांत्रिकी के क्षेत्र में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस केन्द्र ने अपना नाम प्रतिष्ठित किया है। स.ई.आर.सी अभी हाल ही में ISO 9001:2008 गुणवत्ता संस्थान का प्रमाणन प्राप्त किया है। .

नई!!: प्रयोगशाला और संरचनात्मक अभियांत्रिकी अनुसंधान केन्द्र, चेन्नै · और देखें »

संरचनावाद (मनोविज्ञान)

मनोविज्ञान में संरचनावाद (Structuralism in psychology) या संरचनात्मक मनोविज्ञान (structural psychology), विल्हेम वुन्ट तथा एडवर्ड ब्रडफोर्ड टिचनर द्वारा विकसित एक चेतना सिद्धान्त (theory of consciousness) है। मनोविज्ञान को दर्शनशास्त्र से अलग करके क्रमबद्ध अध्ययन करने का श्रेय संरचनावाद को जाता है, जिसके प्रवर्तक विलियम बुण्ट (1832-1920) तथा ई.बी.

नई!!: प्रयोगशाला और संरचनावाद (मनोविज्ञान) · और देखें »

सुधा भट्टाचार्य

सुधा भट्टाचार्य (जन्म ७ मार्च १९५२) एक भारतीय अकादमिक, वैज्ञानिका और लेखिका हैं। डॉ। भट्टाचार्य की प्रयोगशाला ने पहले परिपत्र डीएनए पर रिबोसोमल आरएनए जीन पाया, परजीवी का अध्ययन करते समय। भट्टाचार्य पर्यावरण विज्ञान स्कूल, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में प्रोफेसर हैं। वह नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज भारत, भारतीय एकेडमी ऑफ साइंसेज और इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी (२०१४) में एक सयोगी है। .

नई!!: प्रयोगशाला और सुधा भट्टाचार्य · और देखें »

सूक्ष्मजीव प्रौद्योगिकी संस्थान

सूक्ष्मजीव प्रौद्योगिकी संस्थान (Institute of Microbial Technology (इमटैक/IMTECH)) चण्डीगढ़ में स्थित वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद, भारत की 38 राष्‍ट्रीय प्रयोगशालाओं में से एक है और इसकी सबसे नवीनतम प्रयोगशाला है। इसकी स्थापना १९८४ में की गयी थी। यह संस्‍थान लगभग 47 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है जिसमें से प्रयोगशालाऍं 22 एकड़ क्षेत्र में और आवासीय परिसर 25 एकड़ क्षेत्र में है। .

नई!!: प्रयोगशाला और सूक्ष्मजीव प्रौद्योगिकी संस्थान · और देखें »

सेरेना ग्राण्डी

श्रीमती सेरेना ग्राण्डी (जन्म 23 मार्च 1958) 1980 एवं 1990 के दशक के सुप्रसिद्ध इतालवी अभिनेत्री है। सेरेना देवी का जन्म बोलोग्ना में हुआ। यौवनकाल के प्रारंभिक दिनों में उन्होंने संगणक क्रमानुदेशन में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके पश्चात वे वैज्ञानिक विश्लेषण प्रयोगशाला में कार्यरत हुईं। 1980 में सेरेना जी ने अपनी चलचित्र आजीविका का प्रारम्भ किया। 1990 के दशक में वे दूरदर्शन धारावाहिकों में काम करने लगीं। .

नई!!: प्रयोगशाला और सेरेना ग्राण्डी · और देखें »

होमी भाभा विज्ञान शिक्षा केन्द्र

होमी भाभा विज्ञान शिक्षा केन्द्र (HBCSE; एचबीसीएसई) मुम्बई स्थित टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान का एक राष्ट्रीय केन्द्र है। देश में विज्ञान ‍‌और गणित शिक्षा में समता और उत्कृष्टता को ब‌ढावा देना, तथा जनमानस में वैज्ञानिक प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करना इस केन्द्र के ध्येय हैं। .

नई!!: प्रयोगशाला और होमी भाभा विज्ञान शिक्षा केन्द्र · और देखें »

वनस्पती वर्गिकरण

कोई विवरण नहीं।

नई!!: प्रयोगशाला और वनस्पती वर्गिकरण · और देखें »

वाइन मेकिंग (वाइन बनाना)

अंगूर की वाइन. वाइन मेकिंग या विनिफिकेशन, वाइन के उत्पादन की प्रक्रिया को कहते हैं जो अंगूरों या अन्य सामग्रियों के चुनाव से शुरू होकर तैयार वाइन को बोतलबंद करने के साथ समाप्त होती है। हालांकि अधिकांश वाइन को अगूरों से बनाया जाता है, इसे अन्य फलों अथवा गैर-विषाक्त पौध सामग्रियों से भी तैयार किया जा सकता है। मीड एक प्रकार की वाइन है जिसमें पानी के बाद शहद सबसे प्रमुख घटक होता है। वाइन उत्पादन को दो सामान्य श्रेणियों में बाँटा जा सकता है: स्टिल वाइन उत्पादन (कार्बनीकरण के बिना) और स्पार्कलिंग वाइन उत्पादन (कार्बनीकरण के साथ).

नई!!: प्रयोगशाला और वाइन मेकिंग (वाइन बनाना) · और देखें »

विराम घड़ी

समय गणना यंत्र प्रयोगशाला, खेल के मैदान तथा ओलम्पिक खेलों में जिस घड़ी का उपयोग होता है, उसे समय गणना यंत्र कहते हैं। इस घड़ी को इच्छानुसार चलाया या बन्द किया जा सकता है। विराम घड़ी की सहायता से सेकेंड के एक पंचमांश अथवा एक दशमांश तक का समय मापा जा सकता है। श्रेणी:यंत्र.

नई!!: प्रयोगशाला और विराम घड़ी · और देखें »

विल्नुस विश्वविद्यालय का पुस्तकालय

श्रेणी:पुस्तकालय विल्नुस विश्वविद्यालय का पुस्तकालय (VUB) - सब से पुराना पुस्तकालय लिथुआनिया में है। वह जेशूइट के द्वारा स्थापित किया गया था। पुस्तकालय विल्नुस विश्वविद्यालय से पुराना है - पुस्तकालय १५७० में और विश्वविद्यालय १५७९ में स्थापित किया गया था। कहने तो लायक है कि अभी तक पुस्तकालय समान निर्माण में रहा है।पहले पुस्तकालय वर्तमान भाषाशास्त्र (फ़िलोलोजी) के वाचनालय में रहा था। आज पुस्तकालय में लगभग ५४ लाख दस्तावेज रखे हैं। ताक़ों की लम्बाई - १६६ किलोमीटर ।अभी पुस्तकालय के २९ हज़ार प्रयोक्ते हैं। १७५३ में यहाँ लिथुआनिया की प्रथम वेधशाला स्थापित की गयी थी। प्रतिवर्ष विल्नुस विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में बहुत पर्यटक आते हैं - न केवल लिथुआनिया से बल्कि भारत, स्पेन, चीन, अमरीका से, वगैरह। विल्नुस विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में प्रसिद्ध व्यक्तित्व भी आते हैं। उदाहरण के लिये - राष्ट्रपति, पोप, दलाई लामा, वगैरह। विल्नुस विश्वविद्यालय के पुस्तकालय का सदर मकान उनिवेर्सितेतो ३ में, राष्ट्रपति भवन के पास स्थापित किया गया है। यहाँ १३ वाचनालय और ३ समूहों के कमरे हैं। दूसरे विल्नुस के स्थानों में अन्य पुस्तकालय के भाग मिलते हैं। .

नई!!: प्रयोगशाला और विल्नुस विश्वविद्यालय का पुस्तकालय · और देखें »

विकृतिविज्ञान

जिन कारणों से शरीर के विभिन्न अंगों की साम्यावस्था, या स्वास्थ्यावस्था, नष्ट होकर उनमें विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं, उनको हेतुकीकारक (Etiological factors) और उनके शास्त्र को हेतुविज्ञान (Etiology) कहते हैं। ये कारण अनेक हैं। इन्हें निम्नलिखित भागों में विभक्त किया गया है.

नई!!: प्रयोगशाला और विकृतिविज्ञान · और देखें »

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद भारत का सबसे बड़ा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर अनुसंधान एवं विकास संबंधी संस्थान है। इसकी स्थापना १९४२ में हुई थी। इसकी ३९ प्रयोगशालाएं एवं ५० फील्ड स्टेशन भारत पर्यन्त फैले हुए हैं। इसमें १७,००० से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं। आधिकारिक जालस्थल हालांकि इसकी वित्त प्रबंध भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा होता है, फिर भी ये एक स्वायत्त संस्था है। इसका पंजीकरण भारतीय सोसायटी पंजीकरण धारा १८६० के अंतर्गत हुआ है। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं/संस्थानों का एक बहुस्थानिक नेटवर्क है जिसका मैंडेट विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में अनुप्रयुक्त अनुसंधान तथा उसके परिणामों के उपयोग पर बल देते हुए अनुसंधान एवं विकास परियोजनाएं प्रारंभ करना है। वतर्मान में ३९ अनुसंधान संस्थान हैं जिनमें पाँच क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाएं शामिल हैं। इनमें से कुछेक संस्थानों ने अपने अनुसंधान क्रियाकलापों को और गति प्रदान करने के लिए प्रायोगिक, सर्वेक्षण क्षेत्रीय केन्द्रों की भी स्थापना की है तथा वतर्मान में 16 प्रयोगशालाओं से सम्बद्ध ऐसे 39 केन्द्र कायर्रत हैं। सीएसआईआर की गिनती विश्‍व में इस प्रकार के 2740 संस्‍थानों में 81वें स्‍थान पर होती है।(सितंबर २०१४) .

नई!!: प्रयोगशाला और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद · और देखें »

गन्धकाम्ल

गन्धकाम्ल (सल्फ्युरिक एसिड) एक तीव्र अकार्बनिक अम्ल है। प्राय: सभी आधुनिक उद्योगों में गन्धकाम्ल अत्यावश्यक होता है। अत: ऐसा माना जाता है कि किसी देश द्वारा गन्धकाम्ल का उपभोग उस देश के औद्योगीकरण का सूचक है। गन्धकाम्ल के विपुल उपभोगवाले देश अधिक समृद्ध माने जाते हैं। शुद्ध गन्धकाम्ल रंगहीन, गंधहीन, तेल जैसा भारी तरल पदार्थ है जो जल में हर परिमाण में विलेय है। इसका उपयोग प्रयोगशाला में प्रतिकारक के रूप में तथा अनेक रासायनिक उद्योगों में विभिन्न रासायनिक पदार्थों के संश्लेषण में होता है। बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन करने के लिए सम्पर्क विधि का प्रयोग किया जाता है जिसमें गन्धक को वायु की उपस्थिति में जलाकर विभिन्न प्रतिकारकों से क्रिया कराई जाती है। खनिज अम्लों में सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला यह महत्त्वपूर्ण अम्ल है। प्राचीन काल में हराकसीस (फेरस सल्फेट) के द्वारा तैयार गन्धक द्विजारकिक गैस को जल में घोलकर इसे तैयार किया गया। यह तेल जैसा चिपचिपा होता है। इन्ही कारणों से प्राचीन काल में इसका नाम 'आयँल ऑफ विट्रिआँल' रखा गया था। हाइड्रोजन, गन्धक तथा जारक तीन तत्वों के परमाणुओं द्वारा गन्धकाम्ल के अणु का संश्लेषण होता है। आक्सीजन युक्ति होने के कारण इस अम्ल को 'आक्सी अम्ल' कहा जाता है। इसका अणुसूत्र H2SO4 है तथा अणु भार ९८ है। गन्धकाम्ल प्राचीनकाल के कीमियागर एवं रसविद् आचार्यों को गन्धकाम्ल के संबंध में बहुत समय से पता था। उस समय हरे कसीस को गरम करने से यह अम्ल प्राप्त होता था। बाद में फिटकरी को तेज आँच पर गरम करने से भी यह अम्ल प्राप्त होने लगा। प्रारंभ में गन्धकाम्ल चूँकि हरे कसीस से प्राप्त होता था, अत: इसे "कसीस का तेल' कहा जाता था। तेल शब्द का प्रयोग इसलिए हुआ कि इस अम्ल का प्रकृत स्वरूप तेल सा है। .

नई!!: प्रयोगशाला और गन्धकाम्ल · और देखें »

कार्बधातुक यौगिक

उन रासायनिक वस्तुओं को, जिनमें एक या अधिक हाइड्रोकार्बन मूलक धातु या उपधातु (metalloid) से ऋजु संयोजित होते हैं, कार्बधातुक यौगिक (Organomettllic Compounds) कहते हैं। प्रकृति में ये अप्राप्य हैं, पर प्रयोगशाला में संश्लेषित इन यौगिकों की संख्या बहुत बड़ी है। फ़्रैंकलैंड ने सर्वप्रथम 1849 ई. में डाइ-एथिल जस्ता नामक एक कार्बधातुक यौगिक का पृथक्करण किया और उसकी संरचना निर्धारित की। बाद में अनेक धातुओं और उपधातुओं के संयोग से कई यौगिकों का संश्लेषण किया गया। इन यौगिकों ने आधुनिक रसायन की उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जैसे टेट्रा-एथिल सीस (Lead) एक बेहद उपयोगी प्रत्याघात (antiknock) है, जिसका उपयोग मोटर ईंधन में होता है। ये यौगिक कई प्रकार के हैं, जिन्हें साधारणत दो भागों में विभाजित किया जाता है: (1) "सरल" कार्बधातुक यौगिक, जिनमें कार्बनिक समूह आर (R) (ऐल्किल, ऐरिल आदि) धातु से संयोजित हैं और (2) कार्बधातुक यौगिक "मिश्रित", जब आर (R) और एक्स (X) (हैलोजन, हाइड्राक्सिल, हाइड्रोजन आदि) दोनों ही धातु से संबद्ध हों। इन यौगिकों का संश्लेषण प्राय: जस्ता, मैग्नीशियम, पारद आदि धातुओं और ऐल्किल आयोडाइडों की अभिक्रिया से होता है। विशेष क्रियाशील होने के कारण इनका उपयोग रासायनिक संश्लेषण क्रियाओं में अधिकता से होता है। सोडियम मेथिल (NaCH3) जैसे सोडियम ऐल्किल की प्राप्ति, पारद ऐल्किलों पर सोडियम की अभिक्रिया से, होती है। शुद्ध रूप में ये अमणिभीय पदार्थ हैं, जो भिन्न-भिन्न विलायकों में अविलेय हैं। गर्म करने पर बिना द्रवित हुए ही विच्छेदित होते हैं। .

नई!!: प्रयोगशाला और कार्बधातुक यौगिक · और देखें »

क्रम-विकास से परिचय

क्रम-विकास किसी जैविक आबादी के आनुवंशिक लक्षणों के पीढ़ियों के साथ परिवर्तन को कहते हैं। जैविक आबादियों में जैनेटिक परिवर्तन के कारण अवलोकन योग्य लक्षणों में परिवर्तन होता है। जैसे-जैसे जैनेटिक विविधता पीढ़ियों के साथ बदलती है, प्राकृतिक वरण से वो लक्षण ज्यादा सामान्य हो जाते हैं जो उत्तरजीवन और प्रजनन में ज्यादा सफलता प्रदान करते हैं। पृथ्वी की उम्र लगभग ४.५४ अरब वर्ष है। जीवन के सबसे पुराने निर्विवादित सबूत ३.५ अरब वर्ष पुराने हैं। ये सबूत पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में ३.५ वर्ष पुराने बलुआ पत्थर में मिले माइक्रोबियल चटाई के जीवाश्म हैं। जीवन के इस से पुराने, पर विवादित सबूत ये हैं: १) ग्रीनलैंड में मिला ३.७ अरब वर्ष पुराना ग्रेफाइट, जो की एक बायोजेनिक पदार्थ है और २) २०१५ में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में ४.१ अरब वर्ष पुराने पत्थरों में मिले "बायोटिक जीवन के अवशेष"। Early edition, published online before print. क्रम-विकास जीवन की उत्पत्ति को समझाने की कोशिश नहीं करता है (इसे अबायोजेनेसिस समझाता है)। पर क्रम-विकास यह समझाता है कि प्राचीन सरल जीवन से आज का जटिल जीवन कैसे विकसित हुआ है। आज की सभी जातियों के बीच समानता देख कर यह कहा जा सकता है कि पृथ्वी के सभी जीवों का एक साझा पूर्वज है। इसे अंतिम सार्वजानिक पूर्वज कहते हैं। आज की सभी जातियाँ क्रम-विकास की प्रक्रिया के द्वारा इस से उत्पन्न हुई हैं। सभी शख़्सों के पास जीन्स के रूप में आनुवांशिक पदार्थ होता है। सभी शख़्स इसे अपने माता-पिता से ग्रहण करते हैं और अपनी संतान को देते हैं। संतानों के जीन्स में थोड़ी भिन्नता होती है। इसका कारण उत्परिवर्तन (यादृच्छिक परिवर्तनों के माध्यम से नए जीन्स का प्रतिस्थापन) और लैंगिक जनन के दौरान मौजूदा जीन्स में फेरबदल है। इसके कारण संताने माता-पिता और एक दूसरे से थोड़ी भिन्न होती हैं। अगर वो भिन्नताएँ उपयोगी होती हैं तो संतान के जीवित रहने और प्रजनन करने की संभावना ज्यादा होती है। इसके कारण अगली पीढ़ी के विभिन्न शख्सों के जीवित रहने और प्रजनन करने की संभावना समान नहीं होती है। फलस्वरूप जो लक्षण जीवों को अपनी परिस्थितियों के ज्यादा अनुकूलित बनाते हैं, अगली पीढ़ियों में वो ज्यादा सामान्य हो जाते हैं। ये भिन्नताएँ धीरे-धीरे बढ़ती रहती हैं। आज देखी जाने वाली जीव विविधता के लिए यही प्रक्रिया जिम्मेदार है। अधिकांश जैनेटिक उत्परिवर्तन शख़्सों को न कोई सहायता प्रदान करते हैं, न उनकी दिखावट को बदलते हैं और न ही उन्हें कोई हानि पहुँचाते हैं। जैनेटिक ड्रिफ्ट के माध्यम से ये निष्पक्ष जैनेटिक उत्परिवर्तन केवल संयोग से आबादियों में स्थापित हो जाते हैं और बहुत पीढ़ियों तक जीवित रहते हैं। इसके विपरीत, प्राकृतिक वरण एक यादृच्छिक प्रक्रिया नहीं है क्योंकि यह उन लक्षणों को बचाती है जो जीवित रहने और प्रजनन करने के लिए जरुरी हैं। प्राकृतिक वरण और जैनेटिक ड्रिफ्ट जीवन के नित्य और गतिशील अंग हैं। अरबों वर्षों में इन प्रक्रियाओं ने जीवन के वंश वृक्ष की शाखाओं की रचना की है। क्रम-विकास की आधुनिक सोच १८५९ में प्रकाशित चार्ल्स डार्विन की किताब जीवजातियों का उद्भव से शुरू हुई। इसके साथ ग्रेगर मेंडल द्वारा पादपों पर किये गए अध्ययन ने अनुवांशिकी को समझने में मदद की। जीवाश्मों की खोज, जनसंख्या आनुवांशिकी में प्रगति और वैज्ञानिक अनुसंधान के वैश्विक नैटवर्क ने क्रम-विकास की क्रियाविधि की और अधिक विस्तृत जानकारी प्रदान की है। वैज्ञानिकों को अब नयी जातियों के उद्गम (प्रजातीकरण) की ज्यादा समझ है और उन्होंने अब प्रजातीकरण की प्रक्रिया का अवलोकन प्रयोगशाला और प्रकृति में कर लिया है। क्रम-विकास वह मूल वैज्ञानिक सिद्धांत है जिसे जीववैज्ञानिक जीवन को समझने के लिए प्रयोग करते हैं। यह कई विषयों में प्रयोग होता है जैसे आयुर्विज्ञान, मानस शास्त्र, जैव संरक्षण, मानवशास्त्र, फॉरेंसिक विज्ञान, कृषि और अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक विषय। .

नई!!: प्रयोगशाला और क्रम-विकास से परिचय · और देखें »

केन्द्रीय नमक व समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान

केन्द्रीय नमक व समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान (Central Salt and Marine Chemicals Research Institute) वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद की एक प्रयोगशाला है। यह भावनगर में स्थित है। इसकी स्थापना १९५६ में की गयी थी। संस्थान का उद्देश्य है - दीर्घद्दष्टा प्रायोंजकों एवम्‌ सहयोगीओं की साझेदारी में, भारत की तटीय बंजर जमीन, समुद्री जल, समुद्री शैवाल, सौर शक्ति तथा सिलिकेटस के प्रभावी उपयोग के लिये अन्वेषण करना तथा ज्ञान अर्जित करना। संस्थान इस क्षेत्र के तथा अन्य क्षेत्रो के उद्योगों एवम्‌ संस्थानों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जैव विज्ञान, रसायण रुपांतरण, प्रक्रिया अभियांत्रिकी, पर्यावरण नियंत्रण, पृथक्करण विज्ञान तथा विश्लेषण में भी अपना सामर्थ्य सिद्ध करेगा। यह संस्थान देश में उत्कृष्ट कार्यप्रदर्शन कर रही अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं में से एक है। संस्थान ने विशेष वैज्ञानिक उत्साह द्वारा कुछ उत्कृष्ट प्रोद्योगिकियाँ तथा संस्थान के मुख्य अधिदेश अंतर्गत कई स्वीकृत पेटन्ट की उपलब्धि हांसिल की है। वर्ष 2011 के प्रारंभ में, 150 वैज्ञानिक तथा तकनीकी कर्मचारियों के साथ लगभग 360 कर्मचारी इसके वेतनपत्र पर हैं साथ ही 250 अनुसंधान छात्रों, परियोजना सहायकों उनके डॉक्टरेट कार्यक्रम कर रहे हैं। .

नई!!: प्रयोगशाला और केन्द्रीय नमक व समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान · और देखें »

केन्‍द्रीय सड़क अनुसंधान संस्‍थान

केन्‍द्रीय सड़क अनुसंधान संस्‍थान (Central Road Research Institute / CRRI) की स्‍थापना भारत की एक प्रमुख राष्‍ट्रीय प्रयोगशाला के रूप में 1948 में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद की एक अंगभूत प्रयोगशाला के रूप में की गई I संस्‍थान की स्‍थापना का उद्देश्‍य सड़कों तथा हवाई पट्टियों का अभिकल्‍प, निर्माण एवं रखरखाव, बडे़ तथा मध्‍यम शहरों की यातायात तथा परिवहन आयोजना, विभिन्‍न क्षेत्रों में सड़कों का प्रबन्‍ध, मार्जिनल सामग्री का सुधार, सड़क निर्माण में औद्योगिक अपशिष्‍ट की उपयोगिता, भू स्‍खलन नियंत्रण, भू सुधार पर्यावरणीय प्रदूषण तथा सड़क यातायात सुरक्षा पर अनुसंधान तथा विकास परियोजनाओं पर कार्य करना है I संस्‍थान भारत तथा विदेशों में विभिन्‍न उपयोगकर्ता संगठनों को तकनीकी तथा परामर्श सेवाएं प्रदान करता है I संस्‍थान सड़क तथा रन-वे परियोजनाओं के कार्य निष्‍पादित करने के लिए 1962 से जन समूह तक अनुसंधान तथा विकास उप‍लब्धियों के प्रचार प्रसार के लिए राष्‍ट्रीय तथा अन्‍तर्राष्‍ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों/पुनर्ग्रहण शिक्षण पाठ्यक्रमों को आयोजित करने का सामर्थ्‍य रखता है I महामार्ग अभियांत्रिकी के क्षेत्रों में मानव संसाधन की क्षमता बनाने के लिए संस्‍थान के पास राष्‍ट्रीय तथा अन्‍तर्राष्‍ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों को आयोजित करने की क्षमता है I सीएसआईआर केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) की स्थापना भारत सरकार के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद की एक घटक प्रयोगशाला के रूप में सन् 1952 में दिल्ली में की गई। संस्थान राजमार्ग और सड़क परिवहन प्रौद्योगिकी के प्रमुख क्षेत्रों में व्यवसाय को उच्च गुणवत्ता और विश्व स्तर पर स्वीकार्य अनुसंधान और परामर्श सेवाएं प्रदान करता है। संस्थान के पांच अनुसंधान एवं विकास क्षेत्र तथा चार अवसंरचना तकनीकी सहायता क्षेत्र है। सीएसआईआर - सीआरआरआई एक आईएसओ 9001 प्रमाणपत्र प्राप्त संस्थान है। संस्थान में अनुसंधान और विकास क्षेत्रों में सड़क और सड़क परिवहन के सभी पहलुओं पर अनुसंधान और विकास कार्य संपन्न किए जाते हैं। इनकी गतिविधियों को पाँच प्रमुख क्षेत्रों में समूहीकृत कर सकते हैं, जैसे कुटिटम अभियांत्रिकी और सामग्री, भूतकनीकी अभियांत्रिकी, सेतु और संरचनाएं, यातायात और परिवहन योजना, सड़क विकास योजना एवं प्रबंधन। संस्थान प्रायोजित और अनुबंध अनुसंधान कार्य करता है और सभी सरकारी और निजी क्षेत्र के संगठनों के लिए परामर्श सेवाएं प्रदान करता है। .

नई!!: प्रयोगशाला और केन्‍द्रीय सड़क अनुसंधान संस्‍थान · और देखें »

केन्‍द्रीय इलेक्‍ट्रोनिकी अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्‍थान (सीरी)

केन्‍द्रीय इलेक्‍ट्रोनिकी अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्‍थान (Central Electronics Engineering Research Institute / सीरी), पिलानी, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद की एक संघटक प्रयोगशाला है जिसकी स्थापना सन् 1953 में हुई थी। वास्तविक अनुसंधान एवं विकास कार्य वर्ष 1958 के अंतिम भाग से आरंभ हुआ। यह संस्थान मुख्यत: अर्धचालक युक्तियों, इलेक्ट्रोनिक प्रणालियों और इलेक्ट्रोनिक नलिकाओं के क्षेत्र में शोध् एवं विकास में कार्यरत है। अनेक परियोजनाओं के कार्यान्वयन में आरंभ से ही आधारभूत सुविधाएँ, विशिष्‍ट जनशक्ति एवं विशेषज्ञता के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाता रहा है। पिलानी में मुख्यालय के साथ-साथ चेन्‍नै में इसका क्षेत्रीय केन्द्र है जो कि सी.एस.आई.आर काम्‍प्‍लेक्स के परिसर में कार्यरत है। इस क्षेत्रीय केन्द्र में मुख्यत: कागज एवं खाद्य पदार्थ प्रक्रमण सम्बन्धी शोध एवं विकास कार्य चल रहा है। .

नई!!: प्रयोगशाला और केन्‍द्रीय इलेक्‍ट्रोनिकी अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्‍थान (सीरी) · और देखें »

केन्‍द्रीय कांच एवं सिरामिक अनुसन्धान संस्‍थान

केन्‍द्रीय कांच एवं सिरामिक अनुसंधान संस्‍थान (सीजीसीआरआई) भारत की कांच एवं सिरामिक से सम्बन्धित अनुसंधान की प्रमुख प्रयोगशाला है। यह पश्चिम बंगाल के यादवपुर (जादवपुर) में स्थित है। यह वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अन्तर्गत है। इसका उद्देश्य कांच, सिरामिकी एवं संबन्धित पदार्थों के क्षेत्र में वैज्ञानिक-औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास करना है ताकि देश की जनता को अधिकतम आर्थिक, पर्यावरणीय एवं सामाजिक लाभ मिल सके। आरंभिक चरण में देश में उपलब्‍ध खनिज संसाधनों का पता लगाना एवं विशेष उत्पादों के विकास में उनका उपयोग करना ही मुख्‍य उद्देश्‍य था। इस संस्‍थान ने सन् 1944 में सीमित रूप में काम करना आरंभ तो कर दिया था परंतु औपचारिक रूप से इसका उद्घाटन 26 अगस्‍त 1950 को किया गया। आरंभिक समय में यह सेन्‍ट्रल ग्‍लास एण्‍ड सिलिकेट रिसर्च इंस्‍टट्यूट के नाम से बना था और यह संस्‍थान वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुससंधान परिषद के अंतर्गत आरंभ की गई सबसे पहली चार प्रस्‍तावित प्रयोगशालाओंमें से एक है। अन्‍य तीन प्रयोगशालाएं हैं एन.सी.एल.-पुणे, एन.पी.एल-नई दिल्‍ली एवं सीएफआरआई-धनबाद। .

नई!!: प्रयोगशाला और केन्‍द्रीय कांच एवं सिरामिक अनुसन्धान संस्‍थान · और देखें »

अमोनिया

अमोनिया एक तीक्ष्म गंध वाली रंगहीन गैस है। यह हवा से हल्की होती है तथा इसका वाष्प घनत्व ८.५ है। यह जल में अति विलेय है। अमोनिया के जलीय घोल को लिकर अमोनिया कहा जाता है यह क्षारीय प्रकृति का होता है। जोसेफ प्रिस्टले ने सर्वप्रथम अमोनियम क्लोराइड को चूने के साथ गर्म करके अमोनिया गैस को तैयार किया। बर्थेलाट ने इसके रासायनिक गठन का अध्ययन किया तथा इसको बनाने वाले तत्वों को पता लगाया। प्रयोगशाला में अमोनियम क्लोराइड तथा बुझे हुए सूखे चूने के मिश्रण को गर्म करके अमोनिया गैस तैयार की जाती है। .

नई!!: प्रयोगशाला और अमोनिया · और देखें »

अज़ीज़ सैंकर

अज़ीज़ सैंकर एक अमेरिकी तुर्की जैव वैज्ञानिक हैं। इन्हें रसायन शास्त्र में नोबेल पुरस्कार मिला है। .

नई!!: प्रयोगशाला और अज़ीज़ सैंकर · और देखें »

अजीवात् जीवोत्पत्ति

अजीवात् जीवोत्पत्ति सरल कार्बनिक यौगिक जैसे अजीवात् पदार्थों से जीवन की उत्पत्ति की प्राकृतिक प्रक्रिया को कहते हैं। जीवोत्पत्ति पृथ्वी पर अनुमानित ३.८ से ४ अरब वर्ष पूर्व हुई थी। इसका अध्ययन प्रयोगशाला में किए गए कुछ प्रयोगों के द्वारा, और आज के जीवों के जेनेटिक पदार्थों से जीवन पूर्व पृथ्वी पर हुए उन रासायनिक अभिक्रियाओं का अनुमान लगा कर किया गया है जिनसे संभवतः जीवन की उत्पत्ति हुई है। जीवोत्पत्ति के अध्ययन के लिए मुख्यतः तीन तरह की परिस्थितियों का ध्यान रखना पड़ता है: भूभौतिकी, रासायनिक और जीवविज्ञानी। बहुत अध्ययन यह अनुसंधान करते हैं कि अपनी प्रतिलिपि बनाने वाले अणु कैसे उत्पन्न हुए। यह स्वीकृत है कि आज के सभी जीव आर एन ए अणुओं के वंशज हैं.

नई!!: प्रयोगशाला और अजीवात् जीवोत्पत्ति · और देखें »

अगर

200px अगर एक कालिलीय (कोलायडल) पदार्थ है जिसे विभिन्न प्रकार के लाल शैवालों से प्राप्त किया जाता है। इसमें सूक्ष्मजीवों का कल्चर करते है। सुक्ष्मजीवों के आवश्यकता अनुसार अगर में विभिन्न पदार्थ रखे होते है। अगर के पदार्थ अनुसार अगर भिन्न होते है। इसमें गैलेक्टोस और सल्फेट होता है। यह विभिन्न प्रकार से प्रयोगों में लाया जाता है। आरेचक (लैक्ज़ेटिव) के रूप में इसका उपयोग अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। प्रयोगशाला में इसका उपयोग सूक्ष्म जीवों के भोज्य पदार्थों (माइक्रोबियल कल्चर मीडिया) का ठोस बनाने के लिए किया जाता है। मिष्ठान्नशाला में तथा मांस संवेष्ठन उद्योगों (मीट पैकिंग इंडस्ट्रीज) में भी अगर का उपयोग होता है। भेषजीय उत्पादन में यह प्रनिलंबक अभिकर्ता (इमल्सीफाइंग एजेंट) के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। अगर के पौधों को इकट्ठा करके तुरंत सुखाया जाता है। इसके बाद कारखाने में भेज दिया जाता है, जहाँ पर ये धोए जाते हैं। विशेष प्रयोग में लाए जाने वाले अगर की उपलब्धि के लिए उक्त पौधों को विरंजित (ब्लीच्ड) करके पुन शुद्ध किया जाता है। तत्पश्चात्‌ म्यूसीलेज को कुछ घंटों के लिए उबाला जाता है और अनेक छननों से छानते हुए विभिन्न फ्रेमों में जेली के रूप में प्रवाहित किया जाता है। तत्पश्चात्‌ ठंढा करके जमा दिया जाता है। पानी को फेंककर जेली सुखाई जाती है और अंत में इसे चूर्ण का रूप दिया जाता है। इसका प्रयोग भिन्न-भिन्न प्रकार से किया जाता है। इससे अगरबत्तियाँ भी बनाई जाती है। .

नई!!: प्रयोगशाला और अगर · और देखें »

उच्च उर्जा पदार्थ अनुसंधान प्रयोगशाला

उच्च उर्जा पदार्थ अनुसंधान प्रयोगशाला (एच.ई.एम.आर.एल.) रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डी.आर.डी.ओ.) की एक प्रयोगशाला है। यह पुणे में स्थित है। इसका मुख्य कार्य उच्च ऊर्जा पदार्थ और विस्फोटक पदार्थ के क्षेत्र में अनुसंधान, प्रौद्योगिकियों और उत्पादों के विकास है। एचईएमआरएल में लगभग 1200 कर्मी है, जिसमें भौतिकविद, गणितज्ञ, रासायन, यांत्रिक और इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर शामिल है। यह एक आईएसओ 9001: 2000 प्रमाणित प्रयोगशाला है। .

नई!!: प्रयोगशाला और उच्च उर्जा पदार्थ अनुसंधान प्रयोगशाला · और देखें »

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »