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प्रमाणमीमांसा

सूची प्रमाणमीमांसा

सामान्यतः जैन और हिन्दु धर्म में कोई विशेष अंतर नहीं है। जैन धर्म वैदिक कर्मकाण्ड के प्रतीबंध एवं उस के हिंसा संबंधी विधानोकों स्वीकार नहीं करता। हेमचंद्राचार्य के दर्शन ग्रंथ 'प्रमाणमीमांसा' का विशिष्ट स्थान है। हेमचंद्र के अंतिम अपूर्ण ग्रंथ प्रमाण मीमांसा का प्रज्ञाचक्षु पंडित सुखलालजी द्वारा संपादान हुआ। सूत्र शैली का ग्रंथ कणाद या अक्षपाद के समान है। दुर्भाग्य से इस समय तक १०० सूत्र ही उपलब्ध है। संभवतः वृद्वावस्था में इस ग्रंथ को पूर्ण नहीं कर सके अथवा शेष भाग काल कवलित होने का कलंक शिष्यों को लगा। हेमचंद्र के अनुसार प्रमाण दो ही है। प्रत्यक्ष ओर परोक्ष। जो एक दुसरे से बिलकुल अलग है। स्वतंत्र आत्मा के आश्रित ज्ञान ही प्रत्यक्ष है। आचार्य के ये विचार तत्वचिंतन में मौलिक है। हेमचंद्र ने तर्क शास्त्रमें कथा का एक वादात्मक रूप ही स्थिर किया। जिस में छल आदि किसी भी कपट-व्यवहार का प्रयोग वर्ज्य है। हेमचंद्र के अनुसार इंद्रियजन्म, मतिज्ञान और परमार्थिक केवलज्ञान में सत्य की मात्रा में अंतर है, योग्यता अथवा गुण में नहीं। प्रमाण मीमांसा से संपूर्ण भारतीय दर्शन शास्त्र के गौरव में वृद्वि हुई। .

3 संबंधों: योगशास्त्र, संस्कृत ग्रन्थों की सूची, हेमचन्द्राचार्य

योगशास्त्र

हेमचंद्राचार्यने योगशास्त्र पर बडा ही महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखा है। ईसकी शैली पतंजलि के योगसूत्र के अनुसार ही है। किंतु विषय और वर्णन क्रम में मौलिकता एवं भिन्नता है। विशद् टीका सहित प्रथम चार परिच्छेदों में जैन दर्शन का विस्तृत और स्पष्ट वर्णन दिया ग्या है। योगशास्त्र नीति विषयक उपदेशात्मक काव्य की कोटि में आता है। योगशास्त्र जैन संप्रदाय का धार्मिक एवं दार्शनिक ग्रंथ है। वह अध्यात्मोपनिषद् है। आचार प्रधान है तथा धर्म और दर्शन दोनो से प्रभावित है। योग शाश्त्र ने नीतिकाव्यों या उपदेश काव्यों की प्ररम्परा को समृद्व एवं समुन्नत किया है। योगशास्त्र विशुद्व धार्मिक एवं दार्शनिक ग्रंथ है। इसमें १२ प्रकाश तथा १०१८ श्लोक है। इसके अंतर्गत मदिरा दोष, मांस दोष, नवनीत भक्षण दोष, मधु दोष, उदुम्बर दोष, रात्रि भोजन दोष का वर्णन है। अंतिम १२ वें प्रकाश के प्रारम्भ में श्रुत समुद्र और गुरु के मुखसे जो कुछ मैं ने जाना है उसका वर्णन कर चुका हुं, अब निर्मल अनुभव सिद्व तत्वको प्रकाशित करता हुं ऐसा निदेश कर के विक्षिप्त, यातायात, इन चित-भेंदो के स्वरुपका कथन करते बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा का स्वरुप कहा गया है।.

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संस्कृत ग्रन्थों की सूची

निम्नलिखित सूची अंग्रेजी (रोमन) से मशीनी लिप्यन्तरण द्वारा तैयार की गयी है। इसमें बहुत सी त्रुटियाँ हैं। विद्वान कृपया इन्हें ठीक करने का कष्ट करे। .

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हेमचन्द्राचार्य

ताड़पत्र-प्रति पर आधारित '''हेमचन्द्राचार्य''' की छवि आचार्य हेमचन्द्र (1145-1229) महान गुरु, समाज-सुधारक, धर्माचार्य, गणितज्ञ एवं अद्भुत प्रतिभाशाली मनीषी थे। भारतीय चिंतन, साहित्य और साधना के क्षेत्रमें उनका नाम अत्यंत महत्वपूर्ण है। साहित्य, दर्शन, योग, व्याकरण, काव्यशास्त्र, वाड्मयके सभी अंड्गो पर नवीन साहित्यकी सृष्टि तथा नये पंथको आलोकित किया। संस्कृत एवं प्राकृत पर उनका समान अधिकार था। संस्कृत के मध्यकालीन कोशकारों में हेमचंद्र का नाम विशेष महत्व रखता है। वे महापंडित थे और 'कालिकालसर्वज्ञ' कहे जाते थे। वे कवि थे, काव्यशास्त्र के आचार्य थे, योगशास्त्रमर्मज्ञ थे, जैनधर्म और दर्शन के प्रकांड विद्वान् थे, टीकाकार थे और महान कोशकार भी थे। वे जहाँ एक ओर नानाशास्त्रपारंगत आचार्य थे वहीं दूसरी ओर नाना भाषाओं के मर्मज्ञ, उनके व्याकरणकार एवं अनेकभाषाकोशकार भी थे। समस्त गुर्जरभूमिको अहिंसामय बना दिया। आचार्य हेमचंद्र को पाकर गुजरात अज्ञान, धार्मिक रुढियों एवं अंधविश्र्वासों से मुक्त हो कीर्ति का कैलास एवं धर्मका महान केन्द्र बन गया। अनुकूल परिस्थिति में कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचंद्र सर्वजनहिताय एवं सर्वापदेशाय पृथ्वी पर अवतरित हुए। १२वीं शताब्दी में पाटलिपुत्र, कान्यकुब्ज, वलभी, उज्जयिनी, काशी इत्यादि समृद्धिशाली नगरों की उदात्त स्वर्णिम परम्परामें गुजरात के अणहिलपुर ने भी गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया। .

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