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प्रत्यास्थता

सूची प्रत्यास्थता

यांत्रिकी में प्रत्यास्थता (elasticity) पदार्थों के उस गुण को कहते हैं जिसके कारण उस पर वाह्य बल लगाने पर उसमें विकृति (deformation) आती है परन्तु बल हटाने पर वह अपनी मूल स्थिति में आ जाता है। यदि वाह्यबल के परिमाण को धीरे-धीरे बढ़ाया जाय तो विकृति समान रूप से बढ़ती जाती है, साथ ही साथ आंतरिक प्रतिरोध भी बढ़ता जाता है। किन्तु किसी पदार्थ पर एक सीमा से अधिक बल लगाया जाय तो उस वाह्य बल को हटा लेने के बाद भी पदार्थ पूर्णत: अपनी मूल अवस्था में नहीं लौट पाता; बल्कि उसमें एक स्थायी विकृति शेष रह जाती है। पदार्थ की इसी सीमा को प्रत्यास्थता सीमा (Limit of elasticity या Elastic limit) कहते हैं। आंकिक रूप से स्थायी परिवर्तन लानेवाला, इकाई क्षेत्र पर लगनेवाला, न्यूनतम बल ही "प्रत्यास्थता सीमा" (Elastic limit) कहलाता है। प्रत्यास्थता की सीमा पार चुके पदार्थ को सुघट्य (Plastic) कहते हैं। प्रत्यास्थता सीमा के भीतर, विकृति वस्तु में कार्य करनेवाले प्रतिबल की समानुपाती होती है। यह एक प्रायोगिक तथ्य है एवं हुक के नियम (Hooke's law of elasticity) के नाम से विख्यात है। .

18 संबंधों: दंत-लोमक, धातु, नारायण गोपाल डोंगरे, प्रत्यास्थलक, प्राकृतिक आवृत्‍ति, यांत्रिकी तथा द्रव्यगुण, यंग मापांक, सड़क सतह, सातत्यक यांत्रिकी, साल (वृक्ष), संरचना इंजीनियरी, स्वरित्र, हुक का नियम, जल इंजीनियरी, जेम्स क्लर्क मैक्सवेल, ओग्युस्तें लुई कौशी, आंशिक अवकल समीकरण, अनुप्रयुक्त भूभौतिकी

दंत-लोमक

एक आवधिक दांत की सफाई के दौरान डेंटल स्वास्थ्‍य विज्ञानवेत्ता एक मरीज की दांत को लोमकिंग कर रहे हैं। दंत-लोमक या तो महीन नायलॉन तंतुओं का एक पुलिंदा होता है या फिर प्लास्टिक (टेफ्लान या पॉलिथिलीन) का एक फीता होता है जिसका प्रयोग दांतों से खाद्यपदार्थ और दंत-पपड़ी निकालने के लिये किया जाता है। लोमक को धीरे से दांतों के बीच डाला जाता है और दांतों के दोनों पार्श्वों पर, विशेषकर मसूड़ों के नजदीक, कुरेदा जाता है। दंत-लोमक सुगंधित या सुगंधरहित और मोमयुक्त या मोमरहित हो सकता है। ऐसा ही प्रभाव प्राप्त करने के लिये उपयुक्त एक वैकल्पिक औजार है, अंतर्दंतीय ब्रश.

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धातु

'धातु' के अन्य अर्थों के लिए देखें - धातु (बहुविकल्पी) ---- '''धातुएँ''' - मानव सभ्यता के पूरे इतिहास में सर्वाधिक प्रयुक्त पदार्थों में धातुएँ भी हैं लुहार द्वारा धातु को गर्म करने पर रसायनशास्त्र के अनुसार धातु (metals) वे तत्व हैं जो सरलता से इलेक्ट्रान त्याग कर धनायन बनाते हैं और धातुओं के परमाणुओं के साथ धात्विक बंध बनाते हैं। इलेक्ट्रानिक मॉडल के आधार पर, धातु इलेक्ट्रानों द्वारा आच्छादित धनायनों का एक लैटिस हैं। धातुओं की पारम्परिक परिभाषा उनके बाह्य गुणों के आधार पर दी जाती है। सामान्यतः धातु चमकीले, प्रत्यास्थ, आघातवर्धनीय और सुगढ होते हैं। धातु उष्मा और विद्युत के अच्छे चालक होते हैं जबकि अधातु सामान्यतः भंगुर, चमकहीन और विद्युत तथा ऊष्मा के कुचालक होते हैं। .

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नारायण गोपाल डोंगरे

डॉ० नारायण गोपाल डोंगरे (जन्म: १ जुलाई, १९३९) भारत के एक वैज्ञानिक हैं। उन्होंने प्राचीन भारतीय अभिलेखों में स्थित विज्ञान ज्ञान को गणितीय सिद्धान्त व गणना के आधार आधुनिक विज्ञान के समकक्ष सिद्ध किया है। वैशेषिक दर्शन एवं अंशुबोधिनी पर इन्हें विशिष्टता प्राप्त है। .

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प्रत्यास्थलक

thumb प्रत्यास्थलक (.

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प्राकृतिक आवृत्‍ति

किसी बाहरी चलाने वाले बल या डैम्प करने वाले बल की अनुपस्थिति में कोई निकाय जिस आवृत्ति पर कम्पन करता है उसे उस निकाय की प्राकृतिक आवृत्ति (Natural frequency) कहते हैं। किसी भी प्रत्यास्थ वस्तु का स्वतंत्र कम्पन उसकी प्राकृतिक आवृत्ति पर ही होता है। स्वतंत्र कम्पन और प्रणोदित कंपन (forced vibration) से भिन्न है। प्रणोदित कम्पन की आवृत्ति लगाये गये वाह्य बल की आवृत्ति के बराबर होती है (प्राकृतिक आवृत्ति के बराबर नहीं)। किन्तु यदि लगाये गये वाह्य बल की आवृत्ति निकाय के प्राकृतिक आवृत्ति के बराबर (या बहुत पास) हो तो दोलन का आयाम कई गुना बढ़ जाता है। इसी को अनुनाद कहते हैं। .

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यांत्रिकी तथा द्रव्यगुण

यांत्रिकी तथा द्रव्यगुण यांत्रिकी में द्रव्यपिंडों की गति का अध्ययन किया जाता है। यह गति समूचे पिंड की भी हो सकती है और आंतरिक भी। भौतिकी की इस शाखा का बहुत महत्व है और इसके सिद्धांत भौतिकी के प्रत्येक विभाग मे, विशेषतया अभियान्त्रिकी (इंजीनियरिंग) और शिल्पविज्ञान में, प्रयुक्त होते हैं। इसके मूल में जो सिद्धांत लागू हाते हैं, उनको सर्वप्रथम न्यूटन ने प्रतिपादित किया था। लैग्रेंज, हैमिल्टन आदि वैज्ञानिकों ने इन नियमों को गंभीर गणितीय रूप देकर जटिल समस्याएँ हल करने योग्य बनाया। मूल समीकरणों द्वारा ऊर्जा संवेग (momentum), कोणीय संवेग इत्यादि, नवीन राशियों की कल्पना की गई। इस विज्ञान के मुख्य नियम ऊर्जा संरक्षण, संवेग संरक्षण तथा कोणीय संवेग संरक्षण हैं। सिद्धांत रूप से ज्ञात बलों के अधीन किसी भी पिंड की गति का पूरा विश्लेषण किया जा सकता है। द्रव्य गुण शाखा में द्रव्य की तीनों अवस्थाओं ठोस, द्रव, तथा गैस के गुणों की विवेचना की जाती है। इन गुणों के आपसी संबंधों की भी चर्चा की जाती है और इनसे संबंधित आँकड़े ज्ञात किए जाते हैं। कुछ गुण जिनका अध्ययन किया जाता है, ये हैं घनत्व, प्रत्यास्थता गुणांक, श्यानता, पृष्ठतनाव, गुरुत्वाकर्षण गुणांक इत्यादि। श्रेणी:भौतिकी.

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यंग मापांक

यांत्रिकी के सन्दर्भ में यंग गुणांक या यंग मापांक (Young's modulus), किसी समांग प्रत्यास्थ पदार्थ की प्रत्यास्थता का मापक है। यह एकअक्षीय प्रतिबल एवं विकृति के अनुपात के रूप में परिभाषित है। कभी-कभी गलती से इसे प्रत्यास्थता मापांक (modulus of elasticity) भी कह दिया जाता है क्योंकि सभी प्रत्यास्थता गुणांकों में यंग गुणांक ही सबसे प्रचलितेवं सबसे अधिक प्रयुक्त मापांक है। इसके अतिरिक्त दो और 'प्रत्यास्थता मापांक' हैं - आयतन प्रत्यास्थता मापांक एवं अपरूपण गुणांक। .

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सड़क सतह

पत्थर की छोटी फर्शियों से बनी सड़क की सतह एक सड़क जिसकी ऊपरी स्तह ऐस्फाल्ट की बनी है। गाड़ियों के चलने के उद्देश्य से बनायी गयी या पैदल चलने के बनी किसी मार्ग के सतह पर बिछाए सतह को कुट्टिम (pavement) कहते हैं। पूर्वकाल में बजरी (ग्रेवेल), फर्शी पत्थर (cobblestone) और ग्रेनाइट सेटों का बहुधा प्रयोग होता था। किन्तु अब इनकी जगह अधिकांशतः ऐस्फ़ाल्ट और कांक्रीट ने ले लिया है। किसी सड़क का काम केवल यही नहीं है कि वह गाड़ियाँ चलाने के लिए पर्याप्त पुष्ट हो, बल्कि वह गाड़ियों के भार और मौसम के प्रभाव से होनेवाली टूट फूट भी सहे। स्थानीय मिट्टी में ये सब उद्देश्य भली भाँति पूरा करने की सामर्थ्य संभवतः न हो, अत: संरचना की दृष्टि से उपयुक्त सतह की व्यवस्था करने का बड़ा महत्व है। संरचनात्मक दृष्टिकोण से उपयुक्त होने के अतिरिक्त सड़क की सतह में सर्वाधिक अपेक्षित गुण ये हैं: स्थिरीकृत मिट्टीवाली निकृष्ट कोटि से लेकर, सीमेंट ओर ऐस्फाल्टी कंक्रीट की उत्कृष्ट कोटि तक की विभिन्न प्रकार की सतहें होती हैं। इनके बीच बजरी की, पानीकुटौ मैकेडम और हलके बिटूमेनी आवरणवाली सड़कें होती हैं। किसी सड़क के लिए किस प्रकार की सतह उपयुक्त होगी, इसका चुनाव करने में यातायात की प्रगाढ़ता एवं प्रकार, सड़क का महत्व और धन की उपलब्धता सरीखे घटक ध्यान में रखने चाहिए। आरंभ में सोच विचारकर व्यय किया हुआ धन बाद में घटी हुई अनुरक्षण लागत के रूप में भली भाँति वसूल हो सकता है। निवारक उपाय उपचार से उत्तम होता है। यह सड़क के लिए उपयुक्त सतह चुनने के क्षेत्र में भी भली भाँति लागू होता है। .

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सातत्यक यांत्रिकी

सातत्यक यांत्रिकी (Continuum mechanics/कन्टिनुअम मेकैनिक्स) यांत्रिकी की वह शाखा है जो पदार्थों की गति तथा यांत्रिक व्यवहार का अध्ययन उन पदार्थों को 'सतत द्रव्य' मानकर करती है न कि उन्हें एक 'विविक्त कण' मानकर। फ्रांसीसी गणितज्ञ ऑगस्तिन लुई कॉशी इस तरह का मॉडल प्रस्तुत करने वाले प्रथम व्यक्ति थे।.

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साल (वृक्ष)

शाल या साखू (Shorea robusta) एक द्विबीजपत्री बहुवर्षीय वृक्ष है। इसकी लकड़ी इमारती कामों में प्रयोग की जाती है। इसकी लकड़ी बहुत ही कठोर, भारी, मजबूत तथा भूरे रंग की होती है। इसे संस्कृत में अग्निवल्लभा, अश्वकर्ण या अश्वकर्णिका कहते हैं। साल या साखू (Sal) एक वृंदवृत्ति एवं अर्धपर्णपाती वृक्ष है जो हिमालय की तलहटी से लेकर ३,०००-४,००० फुट की ऊँचाई तक और उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार तथा असम के जंगलों में उगता है। इस वृक्ष का मुख्य लक्षण है अपने आपको विभिन्न प्राकृतिक वासकारकों के अनुकूल बना लेना, जैसे ९ सेंमी से लेकर ५०८ सेंमी वार्षिक वर्षा वाले स्थानों से लेकर अत्यंत उष्ण तथा ठंढे स्थानों तक में यह आसानी से उगता है। भारत, बर्मा तथा श्रीलंका देश में इसकी कुल मिलाकर ९ जातियाँ हैं जिनमें शोरिया रोबस्टा (Shorea robusta Gaertn f.) मुख्य हैं। इस वृक्ष से निकाला हुआ रेज़िन कुछ अम्लीय होता है और धूप तथा औषधि के रूप में प्रयोग होता है। तरुण वृक्षों की छाल में प्रास लाल और काले रंग का पदार्थ रंजक के काम आता है। बीज, जो वर्षा के आरंभ काल के पकते हैं, विशेषकर अकाल के समय अनेक जगहों पर भोजन में काम आते हैं। इस वृक्ष की उपयोगिता मुख्यत: इसकी लकड़ी में है जो अपनी मजबूती तथा प्रत्यास्थता के लिए प्रख्यात है। सभी जातियों की लकड़ी लगभग एक ही भाँति की होती है। इसका प्रयोग धरन, दरवाजे, खिड़की के पल्ले, गाड़ी और छोटी-छोटी नाव बनाने में होता है। केवल रेलवे लाइन के स्लीपर बनाने में ही कई लाख घन फुट लकड़ी काम में आती है। लकड़ी भारी होने के कारण नदियों द्वारा बहाई नहीं जा सकती। मलाया में इस लकड़ी से जहाज बनाए जाते हैं। .

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संरचना इंजीनियरी

विश्व की सबसे बड़ी इमारत - '''बुर्ज दुबई''' संरचना इंजीनियरी, इंजीनियरी की वह शाखा है जो लोड (बल) सहन करने या बल का प्रतिरोध करने के के लिये बनायी जाने वाली संरचनाओं (structures) के विश्लेषण एवं डिजाइन से सम्बन्ध रखती है। इसे प्रायः सिविल इंजीनियरी के अन्दर एक विशेषज्ञता का क्षेत्र समझा जाता है। संरचना इंजीनियर का काम प्रायः भवनों तथा विशाल गैर-भवन संरचनाओं की डिजाइन करना होता है किन्तु वे मशीनरी, चिकित्सा उपकरण, वाहनों आदि के डिजाइन से भी जुड़े हो सकते हैं। संरचना इंजीनियरी का सिद्धान्त भौतिक नियमों तथा विभिन्न पदार्थों/ज्यामितियों के गुणधर्म से सम्बन्धित अनुभवजन्य ज्ञान पर आधारित है। अनेकों छोटे छोटे संरचनात्मक अवयवों के योग से जटिल संरचनाएँ निर्मित की जातीं हैं। संरचना इंजीनियर को लोहे और इस्पात का ही नहीं, बल्कि लकड़ी, ईंट, पत्थर, चूना और सीमेंट का भी आधुनिकतम ज्ञान तथा यांत्रिक एवं विद्युत् इंजीनियरी के कामों में भी दक्ष होना चाहिए, क्योंकि इन्हें अपने ढाँचे यांत्रिकी तथा भौतिकी के सिद्धांतों के अनुसार निरापद ढंग से बनाने पड़ते हैं। भूमि, जल और वायु की प्रकृति का भी पूर्ण ज्ञान सिविल इंजीनियर के समान ही होना चाहिए। .

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स्वरित्र

अनुनादी बक्से के उपर स्थापित '''स्वरित्र''' स्वरित्र (tuning fork) एक सरल युक्ति है जो मानक आवृत्ति की ध्वनि पैदा करने के काम आती है। संगीत के क्षेत्र में इसका उपयोग एक मानक पिच (pitch) उत्पादक के रूप में अन्य वाद्य यंत्रों को ट्यून करने में होती है। यह देखने में अंग्रेजी के यू आकार वाले फोर्क की तरह होता है। यह प्रायः इस्पात या किसी अन्य प्रत्यास्थ धातु का बना होता है। इसे किसी वस्तु के उपर ठोकने पर एक निश्चित आवृत्ति की ध्वनि उत्पन्न होती है। इसके द्वारा उत्पन्न ध्वनि की आवृत्ति इसके फोर्कों की लम्बाई तथा फोर्कों के प्रत्यास्थता पर निर्भर करती है। .

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हुक का नियम

हुक का नियम स्प्रिंग पर भी लागू होता है। हुक का नियम आम जीवन में उपयोग आने वाले स्प्रिंग आदि यांत्रिक युक्तियों की लम्बाई में लघु परिवर्तन को ठीक से मॉडेल करने में समर्थ है ब्रिटिश भौतिकशास्त्री रॉबर्ट हुक ने 1676 में यांत्रिक युक्तियों को किसी बल द्वारा विकृत करने के बारे में एक सामान्य बात कही जो लम्बाई में परिवर्तन (विकृति) और लगाये गये बल के सम्बन्ध में है। इसके अनुसार, इसका नियम का आधुनिक रूप इस प्रकार है: '''कम कार्बन वाले इस्पात का प्रतिबल-विकृति वक्र''' (Stress–strain curve)। ध्यातव्य है कि हुक का नियम इस वक्र के केवल रेखीय भाग में ही वैध है। (मूल बिन्दु से यील्ड-बिंदु तक) 1. Ultimate strength 2. Yield strength-corresponds to yield point. 3. Rupture 4. Strain hardening region 5. Necking region. A: Apparent stress (F/A0) B: Actual stress (F/A) यदि किसी प्रत्यास्थ पदार्थ की L लम्बाई एवं A अनुप्रस्थ क्षेत्रफल वाली छड़ पर F बल लगाने पर उसकी लम्बाई में \Delta L की वृद्धि होती है तो इकाई लम्बाई में वृद्धि \Delta L/L को विकृति (strain) तथा प्रति इकाई क्षेत्रफल पर लगने वाले बल F/A को प्रतिबल (stress) कहते हैं। विकृति को ε से तथा प्रतिबल को σ से प्रदर्शित किया जाता है। अत: हुक के नियमानुसार, अथवा, जहाँ E को पदार्थ की यंग प्रत्यास्थता गुणांक (Young's Modulus of Elasticity) कहते हैं। हुक का नियम एक सामान्य प्रेक्षण ही था किन्तु यांत्रिक प्रौद्योगिकी और सिविल प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में इसका अत्यधिक उपयोग होता है। .

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जल इंजीनियरी

द्रविकी का अन्य विधाओं से सम्बन्ध द्रविकी (Hydraulics / 'द्रवविज्ञान' या जल इंजीनियरी अथवा द्रव इंजीनियरी) के अंतर्गत तरल पदार्थों के प्रवाह के गुणधर्म का अध्ययन करती है। प्रौद्योगिकी में द्रविकी का उपयोग अन्य कार्यों के अलावा संकेत, बल या ऊर्जा के संचरण (ट्रांसमिशन) के लिये किया जाता है। द्रविकी में इंजीनियरी के उपतत्वों का विचार आ जाता है जिनके अंतर्गत जल, वायु तथा तैल और अन्य रासायनिक विलयनों का उपयोग प्राकृतिक दशा में या दबाव के अंदर होता है। इन द्रवों के प्राकृतिक गुणों का, जैसे घनत्व, श्यानता, प्रत्यास्थता और पृष्ठ तनाव आदि, के ऊपर इंजीनियरी के समस्त अभिकल्प निर्भर होते हैं, क्योंकि सारे द्रवों का आधारभूत व्यवहार एक सा ही होता है। जल इंजीनियरी के और भी बहुत से विशेष अंग हैं जिनका विवरण उन विशेष अंगों के अंतर्गत मिल सकता है। जल इंजीनियरी में मुख्यत: जल का स्थिर दबाव, उसकी गति तथा उसका प्रभाव, उसके द्वारा चालित यंत्र जल का मापन आदि विषयों का विचार आ जाता है। .

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जेम्स क्लर्क मैक्सवेल

जेम्स क्लर्क माक्सवेल जेम्स क्लार्क मैक्सवेल (James Clerk Maxwell) स्कॉटलैण्ड (यूके) के एक विख्यात गणितज्ञ एवं भौतिक वैज्ञानिक थे। इन्होंने 1865 ई. में विद्युत चुम्बकीय सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जिससे रेडियो और टेलीविजन का आविष्कार सम्भव हो सका। क्लासिकल विद्युत चुंबकीय सिद्धांत, चुंबकत्व और प्रकाशिकी के क्षेत्र में दिए गए सिद्धांतों के लिए उन्हें प्रमुखता से याद किया जाता है। मैक्सवेल ने क्रांतिकारी विचार रखा कि प्रकाश विद्युत चुंबकीय तरंग है और यह माध्यम से स्वतंत्र है। स्कॉटिश भौतिकविद जेम्स क्लार्क मैक्सवेल ने इस सिद्धांत से क्रांति ला दी। न्यूटन के बाद विद्युतचुंबकत्व के क्षेत्र में मैक्सवेल द्वारा किए गए कार्य को भौतिकी के क्षेत्र में दूसरा सबसे बड़ा एकीकरण कार्य माना जाता है। यह कई क्षेत्रों से जुड़ा है। .

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ओग्युस्तें लुई कौशी

ओग्युस्तें लुई कोशी ओग्युस्तें लुई कोशी (Augustin Louis Cauchy / 21 अगस्त 1789 – 23 मई 1857 ई.) फ्रांस के गणितज्ञ थे। वे गणितीय विश्लेषण के अग्रदूत थे। इसके अलावा उन्होने अनन्त श्रेणियों के अभिसार/अपसार, अवकल समीकरण, सारणिक, प्रायिकता एवं गणितीय भौतिकी में भी उल्लेखनीय दोगदान दिया। वे फ्रांस की विज्ञान अकादमी के सदस्य तथा 'इकोल पॉलीटेक्निक' (इंजीनियरी महाविद्यलय) के प्रोफेसर भी थे। कौशी के नाम पर जितने प्रमेयों एवं संकल्पनाओं (concepts) का नामकरण हुआ है, उतना किसी और गणितज्ञ के नाम पर नहीं। उन्होने अपने जीवनकाल में ८०० शोधपत्र तथा पाँच पाठ्यपुस्तकें लिखी। .

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आंशिक अवकल समीकरण

गणित में आंशिक अवकल समीकरण वो अवकल समीकरणें होती हैं जिनमें बहुचर फलन और उनके आंशिक अवकल होते हैं। (यह साधारण अवकल समीकरणों से भिन्न है जिनमें एक ही चर और उसके अवकलों में बंटा हुआ होता है। आंशिक अवकल समीकरणों का उपयोग उन समस्याओं को हल करने में प्रयुक्त किया जाता है जो विभिन्न स्वतंत्र चरों की फलन होती हैं एवं जिन्हें साधारणतया हल कर सकते हैं अथवा हल करने के लिए अभिकलित्र प्रोग्राम बनाया जा सके। आंशिक अवकल समीकरणो का उपयोग विभिन्न दृष्टिगत घटनाओं यथा ध्वनि, ऊष्मा, स्थिरवैद्युतिकी, विद्युत-गतिकी, द्रव का प्रवाह, प्रत्यास्थता या प्रमात्रा यान्त्रिकी को समझने में किया जा सकता है। ये पृथक प्रतीत होने वाली प्रक्रियाओं को आंशिक अवकल समीकरणों के रूप में सूत्रित किया जा सकता है। .

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अनुप्रयुक्त भूभौतिकी

अनुप्रयुक्त भूभौतिकी (Applied Geophysics), या भूभौतिक पूर्वेक्षण में पृथ्वी के पृष्ठ पर भौतिक मापों के द्वारा अधस्थल (subsurface) भूवैज्ञानिक जानकारियों का संग्रह किया जाता है। इसका उद्देश्य खनिज, पेट्रोलियम, जल, घात्विक निक्षेप, विखंडनीय पदार्थो (fissile material) का स्थान-निर्धारण और बाँध, रेलमार्ग, हवाई अड्डों, सैनिक और कृषि प्रायोजनाओं के निर्माणार्थ सतह के निकटस्थ स्तर के भूवैज्ञानिक लक्षणों से आँकड़ों का संग्रह है। .

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