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प्रतिरोधक

सूची प्रतिरोधक

नियत मान वाले कुछ प्रतिरोधक प्रतिरोधक (resistor) दो सिरों वाला वैद्युत अवयव है जिसके सिरों के बीच विभवान्तर उससे बहने वाली तात्कालिक धारा के समानुपाती (या लगभग समानुपाती) होता है। ये विभिन्न आकार-प्रकार के होते हैं। इनसे होकर धारा बहने पर इनके अन्दर उष्मा उत्पन्न होती है। कुछ प्रतिरोधक ओम के नियम का पालन करते हैं जिसका अर्थ है कि -; V .

14 संबंधों: थर्मिस्टर, प्रेरक, पेस्टिवाइरस, मशीन सारावली, यंत्र, रैखिक निकाय, लाउडस्पीकर, संधारित्र, विद्युत प्रतिरोध, ओम का नियम, इलेक्ट्रानिक परिपथ, इलेक्ट्रानिक अवयवों का वर्ण संकेतन, इलेक्ट्रॉनिक अवयव, अचलताकारक कशेरूकाशोथ

थर्मिस्टर

थर्मिस्टर का प्रतीक 300pxकुछ थर्मिस्टर जिनका ताप बढ़ने पर प्रतिरोध कम होता है (NTC Thermister) थर्मिस्टर (thermistor) एक प्रकार का प्रतिरोधक है जिसका प्रतिरोध उसके ताप के साथ बहुत अधिक परिवर्तित होता है। अन्य प्रकार प्रतिरोधों का मान भी ताप के परिवर्तित होने पर परिवर्तित होता है किन्तु यह परिवर्तन बहुत कम होता है, जबकि थर्मिस्टर का ताप बदलने पर उसका प्रतिरोध बहुत अधिक बदल जाता है। 'थर्मिस्टर' शब्द 'थर्मल' और 'रेजिस्टर' को मिलाकर बना है। थर्मिस्टर का प्रयोग इनरश-धारा रोकने, ताप-संसूचक (टेम्परेचर-सेन्सर), सेल्फ-रीसेटिटिंग ओवरकरेण्ट प्रोटेक्टर, तथा स्वयं-नियंत्रित हीटिंग एलिमेण्ट में बहुतायत से होता है। ताप के परिवर्तन के साथ प्रतिरोध के परिवर्तन की दृष्टि से थर्मिस्टर दो प्रकार के होते हैं-.

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प्रेरक

प्रेरकत्व का प्रतीक कुछ छोटे आकार-प्रकार के प्रेरकत्व अपेक्षाकृत बड़ा प्रेरकत्व जो पावर सप्लाइयों में प्रयुक्त होते हैं। प्रेरक या इंडक्टर (inductor) एक वैद्युत अवयव है जिसमें कोई विद्युत धारा प्रवाहित करने पर यह चुम्बकीय क्षेत्र के रूप में उर्जा का भंडारण करता है। प्रेरक द्वारा चुम्बकीय उर्जा के भंडारण की क्षमता को इसका प्रेरकत्व (inductance) कहा जाता है और इसे मापने की इकाई हेनरी है। प्रेरक को साधारण भाषा में 'चोक' (choke) और 'कुण्डली' (coil) भी कहते हैं। .

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पेस्टिवाइरस

पेस्टिवाइरस रोग पेस्टिवाइरस फ्लेविविरिदे परिवार में विषाणुओं का एक जीनस है। जो विषाणुऐं पेस्टिवाइरस के जीनस में हैं वह स्तनधारियों, बोविदे परिवार के सदस्य (पशु, भेड़, बकरियाँ शामिल हैं पर उन तक सीमित नहीं) और सुइदे परिवार(सुअर के कई जाति शामिल हैं) को संक्रमित करते हैं। वर्तमान में इस जिनस में चार जाति हैं बोवईन वायरल दस्त वाइरस १ के प्रकार जाति को समेत। इस जीनस से संबंधित रोग: रक्तस्रावी सिंड्रोम, गर्भपात, घातक श्लैष्मिक रोग। .

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मशीन सारावली

उन युक्तियों को मशीन (Machine) कहते हैं जो कोई उपयोगी कार्य करती हैं या करने में मदद करतीं हैं। सभी मशीनें प्राय: उर्जा लेकर (निवेश) कार्य करतीं हैं। नीचे मशीनों की सारावली दी गयी है जो मशीनों एवं उनसे सम्बन्धित उपविषयों पर एक विहंगम दृष्टि प्रस्तुत करती है। .

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यंत्र

जेम्स अल्बर्ट बोनसैक द्वारा सन् १८८० में विकसित मशीन; यह मशीन प्रति घण्टे लगभग २०० सिगरेट बनाती थी। कोई भी युक्ति जो उर्जा लेकर कुछ कार्यकलाप करती है उसे यंत्र या मशीन (machine) कहते हैं। सरल मशीन वह युक्ति है जो लगाये जाने वाले बल का परिमाण या दिशा को बदल दे किन्तु स्वयं कोई उर्जा खपत न करे। .

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रैखिक निकाय

रेखीय तन्त्र (Linear systems) वे तन्त्र हैं अध्यारोपण का सिद्धान्त (superposition) तथा स्केलिंग (scaling) के गुण को सन्तुष्ट करते हैं .

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लाउडस्पीकर

एक सस्ता, कम विश्वस्तता 3½ इंच स्पीकर, आमतौर पर छोटे रेडियो में पाया जाता है। एक चतुर्मार्गी, उच्च विश्वस्तता लाउडस्पीकर सिस्टम. एक लाउडस्पीकर (या "स्पीकर") एक विद्युत-ध्वनिक ऊर्जा परिवर्तित्र है, जो वैद्युत संकेतों को ध्वनि में परिवर्तित करता है। स्पीकर वैद्युत संकेतों के परिवर्तनों के अनुसार चलता है तथा वायु या जल के माध्यम से ध्वनि तरंगों का संचार करवाता है। श्रवण क्षेत्रों की ध्वनिकी के बाद, लाउडस्पीकर (तथा अन्य विद्युत-ध्वनि ऊर्जा परिवर्तित्र) आधुनिक श्रव्य प्रणालियों में सर्वाधिक परिवर्तनशील तत्व हैं तथा ध्वनि प्रणालियों की तुलना करते समय प्रायः यही सर्वाधिक विरूपणों और श्रव्य असमानताओं के लिए उत्तरदायी होते हैं। .

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संधारित्र

विभिन्न प्रकार के आधुनिक संधारित्र समान्तर प्लेट संधारित्र का एक सरल रूप संधारित्र या कैपेसिटर (Capacitor), विद्युत परिपथ में प्रयुक्त होने वाला दो सिरों वाला एक प्रमुख अवयव है। यदि दो या दो से अधिक चालकों को एक विद्युत्रोधी माध्यम द्वारा अलग करके समीप रखा जाए, तो यह व्यवस्था संधारित्र कहलाती है। इन चालकों पर बराबर तथा विपरीत आवेश होते हैं। यदि संधारित्र को एक बैटरी से जोड़ा जाए, तो इसमें से धारा का प्रवाह नहीं होगा, परंतु इसकी प्लेटों पर बराबर मात्रा में घनात्मक एवं ऋणात्मक आवेश संचय हो जाएँगे। विद्युत् संधारित्र का उपयोग विद्युत् आवेश, अथवा स्थिर वैद्युत उर्जा, का संचय करने के लिए तथा वैद्युत फिल्टर, स्नबर (शक्ति इलेक्ट्रॉनिकी) आदि में होता है। संधारित्र में धातु की दो प्लेटें होतीं हैं जिनके बीच के स्थान में कोई कुचालक डाइएलेक्ट्रिक पदार्थ (जैसे कागज, पॉलीथीन, माइका आदि) भरा होता है। संधारित्र के प्लेटों के बीच धारा का प्रवाह तभी होता है जब इसके दोनों प्लेटों के बीच का विभवान्तर समय के साथ बदले। इस कारण नियत डीसी विभवान्तर लगाने पर स्थायी अवस्था में संधारित्र में कोई धारा नहीं बहती। किन्तु संधारित्र के दोनो सिरों के बीच प्रत्यावर्ती विभवान्तर लगाने पर उसके प्लेटों पर संचित आवेश कम या अधिक होता रहता है जिसके कारण वाह्य परिपथ में धारा बहती है। संधारित्र से होकर डीसी धारा नही बह सकती। संधारित्र की धारा और उसके प्लेटों के बीच में विभवान्तर का सम्बन्ध निम्नांकित समीकरण से दिया जाता है- जहाँ: .

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विद्युत प्रतिरोध

आदर्श प्रतिरोधक का V-I वैशिष्ट्य। जिन प्रतिरोधकों का V-I वैशिष्ट्य रैखिक नहीं होता, उन्हें अनओमिक प्रतिरोधक (नॉन-ओमिक रेजिस्टर) कहते हैं। किसी प्रतिरोधक के सिरों के बीच विभवान्तर तथा उससे प्रवाहित विद्युत धारा के अनुपात को उसका विद्युत प्रतिरोध (electrical resistannce) कहते हैं।इसे ओह्म में मापा जाता है। इसकी प्रतिलोमीय मात्रा है विद्युत चालकता, जिसकी इकाई है साइमन्स। जहां बहुत सारी वस्तुओं में, प्रतिरोध विद्युत धारा या विभवांतर पर निर्भर नहीं होता, यानी उनका प्रतिरोध स्थिर रहता है। right समान धारा घनत्व मानते हुए, किसी वस्तु का विद्युत प्रतिरोध, उसकी भौतिक ज्यामिति (लम्बाई, क्षेत्रफल आदि) और वस्तु जिस पदार्थ से बना है उसकी प्रतिरोधकता का फलन है। जहाँ इसकी खोज जार्ज ओह्म ने सन 1820 ई. में की।, विद्युत प्रतिरोध यांत्रिक घर्षण के कुछ कुछ समतुल्य है। इसकी SI इकाई है ओह्म (चिन्ह Ω).

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ओम का नियम

जॉर्ज साइमन ओम प्रतिरोध ''R'', के साथ ''V'' विभवान्तर का स्रोत लगाने पर उसमें विद्युत धारा, ''I '' प्रवाहित होती है। ये तीनों राशियाँ ओम के नियम का पालन करती हैं, अर्थात ''V .

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इलेक्ट्रानिक परिपथ

घरों के पंखे, बल्ब आदि की शक्ति नियंत्रित करने वाला परिपथ; इसमें ट्रायक का उपयोग किया गया है। इलेक्ट्रॉनिक परिपथ (electronic circuit) वह परिपथ है जिसमें प्रतिरोधक, संधारित्र, ट्रांजिस्टर, प्रेरकत्व, डायोड आदि तार से या बोर्ड पर बने चालक मार्गों से जुड़े हों। इसके मुख्य दो प्रकार हैं- एनालाग परिपथ और डिजिटल परिपथ। जिस परिप्थ में एनालॉग और डिजिटल दोनों का मिश्रण होता है उसे मिश्रि परिपथ (मिक्स्ड सर्किट) या संकर परिपथ (हाइब्रिड सर्किट) कहते हैं। श्रेणी:विद्युत परिपथ *.

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इलेक्ट्रानिक अवयवों का वर्ण संकेतन

१०० किलोओम तथा ५% टॉलरेंस वाले प्रतिरोधक का वर्ण संकेतन वर्ण संकेतन (color coding) का प्रयोग प्रतिरोधक तथा कुछ अन्य इलेक्ट्रानिक अवयवों का मान या रेटिंग दर्शाने के लिए किया जाता है। इस संकेतन का विकास १९२० के दशक में रेडियो मैनुफैक्चरर्स एशोसिएशन द्वारा किया गया था। इसे EIA-RS-279 के नाम से प्रकाशित किया गया था। वर्तमान अन्तरराष्ट्रीय मानक IEC 60062 है। छोटे इलेक्ट्रानिक अवयवों का मान एवं रेटिंग को संख्या के रूप में सीधे लिखने के बजाय वर्ण-संकेतों के रूप में लिखने के कुछ लाभ हैं, जैसे बहुत छोटी संख्याओं के रूप में लिखने की कठिनाई तथा उसे पढ़ पाने की कठिनाई। किन्तु इसकी कुछ हानियाँ भी हैं, जैसे वर्णांध व्यक्ति के लिये वर्ण संकेत पढ़ना कठिन है। .

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इलेक्ट्रॉनिक अवयव

कुछ प्रमुख '''इलेक्ट्रॉनिक अवयव''' जिन विभिन्न अवयवों का उपयोग करके इलेक्ट्रॉनिक परिपथ (जैसे- आसिलेटर, प्रवर्धक, पॉवर सप्लाई आदि) बनाये जाते हैं उन्हें इलेक्ट्रॉनिक अवयव (electronic component) कहते हैं इलेक्ट्रॉनिक अवयव दो सिरे वाले, तीन सिरों वाले या इससे अधिक सिरों वाले होते हैं जिन्हें सोल्डर करके या किसी अन्य विधि से (जैसे स्क्रू से कसकर) परिपथ में जोड़ा जाता है। प्रतिरोधक, प्रेरकत्व, संधारित्र, डायोड, ट्रांजिस्टर (या बीजेटी), मॉसफेट, आईजीबीटी, एससीआर, प्रकाश उत्सर्जक डायोड, आपरेशनल एम्प्लिफायर एवं अन्य एकीकृत परिपथ आदि प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक अवयव हैं। प्रमुख एलेक्ट्रॉनिक अवयवों के प्रतीक .

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अचलताकारक कशेरूकाशोथ

अचलताकारक कशेरूकाशोथ (ए.एस., ग्रीक एंकिलॉज़, मुड़ा हुआ; स्पॉन्डिलॉज़, कशेरूका), जिसे पहले बेक्ट्रू के रोग, बेक्ट्रू रोगसमूह, और एक प्रकार के कशेरूकासंधिशोथ, मारी-स्ट्रम्पेल रोग के नाम से जाना जाता था, एक दीर्घकालिक संधिशोथ और स्वक्षम रोग है। यह रोग मुख्यतया मेरू-दण्ड या रीढ़ के जोड़ों और श्रोणि में त्रिकश्रोणिफलक को प्रभावित करता है। यह सशक्त आनुवंशिक प्रवृत्तियुक्त कशेरूकासंधिरोगों के समूह का एक सदस्य है। संपूर्ण संयोजन के परिणामस्वरूप रीढ़ की हड्डी पूरी तरह से अकड़ जाती है, जिसे बांस जैसी रीढ़ (बैंबू स्पाइन) का नाम दिया गया है। .

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