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प्रतिरक्षा प्रणाली

सूची प्रतिरक्षा प्रणाली

A scanning electron microscope image of a single neutrophil (yellow), engulfing anthrax bacteria (orange). प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune system) किसी जीव के भीतर होने वाली उन जैविक प्रक्रियाओं का एक संग्रह है, जो रोगजनकों और अर्बुद कोशिकाओं को पहले पहचान और फिर मार कर उस जीव की रोगों से रक्षा करती है। यह विषाणुओं से लेकर परजीवी कृमियों जैसे विभिन्न प्रकार के एजेंट की पहचान करने मे सक्षम होती है, साथ ही यह इन एजेंटों को जीव की स्वस्थ कोशिकाओं और ऊतकों से अलग पहचान सकती है, ताकि यह उन के विरुद्ध प्रतिक्रिया ना करे और पूरी प्रणाली सुचारु रूप से कार्य करे।। हिन्दुस्तान लाइव। २४ नवम्बर २००९ रोगजनकों की पहचान करना एक जटिल कार्य है क्योंकि रोगजनकों का रूपांतर बहुत तेजी से होता है और यह स्वयं का अनुकूलन इस प्रकार करते हैं कि प्रतिरक्षा प्रणाली से बचकर सफलतापूर्वक अपने पोषक को संक्रमित कर सकें। शरीर की प्रतिरक्षा-प्रणाली में खराबी आने से रोग में प्रवेश कर जाते हैं। प्रतिरक्षा-प्रणाली में खराबी को इम्यूनोडेफिशिएंसी कहते हैं। इम्यूनोडेफिशिएंसी या तो किसी आनुवांशिक रोग के कारण हो सकता है, या फिर कुछ खास दवाओं या संक्रमण के कारण भी संभव है। इसी का एक उदाहरण है एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम (एड्स) जो एचआईवी वायरस के कारण फैलता है। ठीक इसके विपरीत स्वप्रतिरक्षित रोग (ऑटोइम्यून डिजीज) एक उत्तेजित ऑटो इम्यून सिस्टम के कारण होते हैं जो साधारण ऊतकों पर बाहरी जीव होने का संदेह कर उन पर आक्रमण करता है। प्रतिरक्षा प्रणाली के अध्ययन को प्रतिरक्षा विज्ञान (इम्म्यूनोलॉजी) का नाम दिया गया है। इसके अध्ययन में प्रतिरक्षा प्रणाली संबंधी सभी बड़े-छोटे कारणों की जांच की जाती है। इसमें प्रणाली पर आधारित स्वास्थ्य के लाभदायक और हानिकारक कारणों का ज्ञान किया जाता है। प्रतिरक्षा प्रणाली के क्षेत्र में खोज और शोध निरंतर जारी हैं एवं इससे संबंधित ज्ञान में निरंतर बढोत्तरी होती जा रही है। यह प्रणाली लगभग सभी उन्नत जीवों जैसे हरेक पौधे और जानवरों में मिलती मिलती है। प्रतिरक्षा प्रणाली के कई प्रतिरोधक (बैरियर) जीवों को बीमारियों से बचाते हैं, इनमें यांत्रिक, रसायन और जैव प्रतिरोधक होते हैं। .

39 संबंधों: चक्र, एचआइवी, तानिकाशोथ, थाइमस ग्रंथि, थकान (चिकित्सा), दमा, प्रतिरक्षा विज्ञान, प्रतिरक्षादमन, प्रतिजन, प्रोबायोटिक, पेप्सिको, भारतीय मोर, भौतिक विज्ञान में अनसुलझी पहेलियों की सूची, महाबृहदांत्र, मानव श्वेताणु प्रतिजन, मेसोथेलियोमा, यकृत शोथ, रक्त के प्रकार, रक्तिम ल्यूपस, लसीका पर्व, श्वेत रक्त कोशिका, सफ़ेद बाघ, सरल परिसर्प, सहज वृत्ति (इंस्टिंक्ट), स्ट्रेप्टोकॉकल ग्रसनीशोथ, स्वप्रतिरक्षित रोग, जनसंख्या आनुवांशिकी, जीन चिकित्सा, विटामिन डी, व्यायाम, वृद्धि हार्मोन, गायन, ओजोन थेरेपी, इल्या इलिच मेखनिकोव, कर्कट रोग, कृत्रिम पेसमेकर, अतिसुग्राहिता, अनानास, अज्ञातहेतुक बिंबाणुअल्पताजन्य रक्तचित्तिता

चक्र

चक्र, (संस्कृत: चक्रम्); पालि: हक्क चक्का) एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ 'पहिया' या 'घूमना' है।परमहंस स्वामी महेश्वराआनंदा, मानव में छिपी बिजली, इबेरा वरलैग, पृष्ठ 54. ISBN 3-85052-197-4 भारतीय दर्शन और योग में चक्र प्राण या आत्मिक ऊर्जा के केन्द्र होते हैं। ये नाड़ियों के संगम स्थान भी होते हैं। यूँ तो कई चक्र हैं पर ५-७ चक्रों को मुख्य माना गया है। यौगिक ग्रन्थों में इनहें शरीर के कमल भी कहा गया है। प्रमुख चक्रों के नाम हैं-.

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एचआइवी

एचआइवी अथवा कपोसी सार्कोमा प्रभावित महिला की नाक का चित्र एचआईवी (ह्युमन इम्युनडिफिशिएंशी वायरस) या मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु एक विषाणु है जो शरीर की रोग-प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रहार करता है और संक्रमणों के प्रति उसकी प्रतिरोध क्षमता को धीरे-धीरे कम करता जाता है। यह लाइलाज बीमारी एड्स का कारण है। मुख्यतः यौण संबंध तथा रक्त के जरिए फैलने वाला यह विषाणु शरीर की श्वेत रक्त कणिकाओं का भक्षण कर लेता है। इसमें उच्च आनुवंशिक परिवर्तनशीलता का गुण है। यह विशेषता इसके उपचार में बहुत बड़ी बाधा उत्पन्न करता है। .

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तानिकाशोथ

केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र की तानिकाएं (Meninges): '''दृढ़तानिका''' या ड्यूरा मैटर (dura mater), '''जालतानिका''' या अराकनॉयड (arachnoid), तथा '''मृदुतानिका''' या पिया मैटर (pia mater) तानिकाशोथ या मस्तिष्कावरणशोथ या मेनिन्जाइटिस (Meningitis) मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु को ढंकने वाली सुरक्षात्मक झिल्लियों (मस्तिष्कावरण) में होने वाली सूजन होती है। यह सूजन वायरस, बैक्टीरिया तथा अन्य सूक्ष्मजीवों से संक्रमण के कारण हो सकती है साथ ही कम सामान्य मामलों में कुछ दवाइयों के द्वारा भी हो सकती है। इस सूजन के मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु के समीप होने के कारण मेनिन्जाइटिस जानलेवा हो सकती है; तथा इसीलिये इस स्थिति को चिकित्सकीय आपात-स्थिति के रूप में वर्गीकृत किया गया है। मेनिन्जाइटिस के सबसे आम लक्षण सर दर्द तथा गर्दन की जकड़न के साथ-साथ बुखार, भ्रम अथवा परिवर्तित चेतना, उल्टी, प्रकाश को सहन करने में असमर्थता (फ़ोटोफोबिया) अथवा ऊंची ध्वनि को सहन करने में असमर्थता (फ़ोनोफोबिया) हैं। बच्चे अक्सर सिर्फ गैर विशिष्ट लक्षण जैसे, चिड़चिड़ापन और उनींदापन प्रदर्शित करते हैं। यदि कोई ददोरा भी दिख रहा है, तो यह मेनिन्जाइटिस के विशेष कारण की ओर संकेत हो सकता है; उदाहरण के लिये, मेनिन्गोकॉकल बैक्टीरिया के कारण होने वाले मेनिन्जाइटिस में विशिष्ट ददोरे हो सकते हैं। मेनिन्जाइटिस के निदान अथवा पहचान के लिये लंबर पंक्चर की आवश्यकता हो सकती है। स्पाइनल कैनाल में सुई डाल कर सेरिब्रोस्पाइनल द्रव (CSF) का एक नमूना निकाला जाता है जो मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु को आवरण किये रहता है। सीएसएफ़ का परीक्षण एक चिकित्सा प्रयोगशाला में किया जाता है। तीव्र मैनिन्जाइटिस के प्रथम उपचार में तत्परता के साथ दी गयी एंटीबायोटिक तथा कुछ मामलों में एंटीवायरल दवा शामिल होती हैं। अत्यधिक सूजन से होने वाली जटिलताओं से बचने के लिये कॉर्टिकोस्टेरॉयड का प्रयोग भी किया जा सकता है। मेनिन्जाइटिस के गंभीर दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं जैसे बहरापन, मिर्गी, हाइड्रोसेफॉलस तथा संज्ञानात्मक हानि, विशेष रूप से तब यदि इसका त्वरित उपचार न किया जाये। मेनिन्जाइटिस के कुछ रूपों से (जैसे कि मेनिन्जोकॉकी, ''हिमोफिलस इन्फ्लुएंजा'' टाइप बी, न्यूमोकोकी अथवा मम्स वायरस संक्रमणों से संबंधित) प्रतिरक्षण के द्वारा बचाव किया जा सकता है। .

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थाइमस ग्रंथि

थाइमस (thymus), प्रतिरक्षा प्रणाली का एक विशिष्ट प्राथमिक लसीकाभ अंग है। थाइमस के अन्दर लिम्फोसाइट (या, T सेल) परिपक्व होते हैं। श्रेणी:अन्तःश्रावी गन्थि.

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थकान (चिकित्सा)

थकान या श्रांति (fatigue/फैटिग) एक एसी स्थिति है जो एक विशिष्ट श्रेणी में जागरूकता की वेदनाओं का वर्णन करता है, आमतौर पर ये शारीरिक और/या मानसिक कमजोरी से जोड़ा जाता है, हालांकि ये एक सामान्य सुस्ती से लेकर विशिष्ट काम करने की वजह से कुछ खास मास पेसियो में जलन का आभास होना.

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दमा

अस्थमा (दमा) (ग्रीक शब्द ἅσθμα, ásthma, "panting" से) श्वसन मार्ग का एक आम जीर्ण सूजन disease वाला रोग है जिसे चर व आवर्ती लक्षणों, प्रतिवर्ती श्वसन बाधा और श्वसनी-आकर्षसे पहचाना जाता है। आम लक्षणों में घरघराहट, खांसी, सीने में जकड़न और श्वसन में समस्याशामिल हैं। दमा को आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारकों का संयोजन माना जाता है।इसका निदान सामान्यतया लक्षणों के प्रतिरूप, समय के साथ उपचार के प्रति प्रतिक्रिया और स्पाइरोमेट्रीपर आधारित होता है। यह चिकित्सीय रूप से लक्षणों की आवृत्ति, एक सेकेन्ड में बलपूर्वक निःश्वसन मात्रा (FEV1) और शिखर निःश्वास प्रवाह दर के आधार पर वर्गीकृत है।दमे को अटॉपिक (वाह्य) या गैर-अटॉपिक (भीतरी) की तरह भी वर्गीकृत किया जाता है जहां पर अटॉपी को टाइप 1 अतिसंवेदनशीलता प्रतिक्रियाओं के विकास की ओर पहले से अनुकूलित रूप में सन्दर्भित किया गया है। गंभीर लक्षणों का उपचार आम तौर पर एक अंतःश्वसन वाली लघु अवधि मे काम करे वाली बीटा-2 एगोनिस्ट (जैसे कि सॉल्ब्यूटामॉल) और मौखिक कॉर्टिकोस्टरॉएड द्वारा किया जाता है। प्रत्येक गंभीर मामले में अंतःशिरा कॉर्टिकोस्टरॉएड, मैग्नीशियम सल्फेट और अस्पताल में भर्ती करना आवश्यक हो सकता है। लक्षणों को एलर्जी कारकों और तकलीफ कारकों जैसे उत्प्रेरकों से बचाव करके तथा कॉर्टिकोस्टरॉएड के उपयोग से रोका जा सकता है। यदि अस्थमा लक्षण अनियंत्रित रहते हैं तो लंबी अवधि से सक्रिय हठी बीटा (LABA) या ल्यूकोट्रीन प्रतिपक्षी को श्वसन किये जाने वाले कॉर्टिकोस्टरॉएड को उपयोग किया जा सकता है। 1970 के बाद से अस्थमा के लक्षण महत्वपूर्ण रूप से बढ़ गये हैं। 2011 तक, पूरे विश्व में 235-300 मिलियन लोग इससे प्रभावित थे, जिनमें लगभग 2,50,000 मौतें शामिल हैं। .

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प्रतिरक्षा विज्ञान

प्रतिरक्षाविज्ञान (Immunology) जीवचिकित्सा विज्ञान की एक शाखा है जिसमें सभी प्राणियों के सभी प्रतिरक्षा तंत्रों का अध्ययन किया जाता है। रूसी जीवविज्ञानी इल्या इलिच मेखनिकोव ने प्रतिरक्षा विज्ञान पर अध्ययन को बढ़ाया और उन्हें इस कार्य के लिए १९०८ में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। प्रतिरक्षा विज्ञान की चिकित्सा के कई विषयों में विशेष रूप से अंग प्रत्यारोपण, ऑन्कोलॉजी, वायरोलॉजी, बैक्टीरियोलॉजी, पैरासिटोलॉजी, मनोचिकित्सा, और त्वचाविज्ञान के क्षेत्र में अनुप्रयोग हैं। प्रतिरक्षा प्रणाली के कई घटक आमतौर पर प्रकृति में सेलुलर होते हैं और किसी विशिष्ट अंग से जुड़े नहीं होते हैं; बल्कि पूरे शरीर में स्थित विभिन्न ऊतकों में एम्बेडेड या परिसंचारी होते हैं। .

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प्रतिरक्षादमन

उन सभी क्रियाओं को प्रतिरक्षादमन (Immunosuppression) कहते हैं जो प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता को कम करतीं हैं। कई स्थितियों में प्रतिरक्षादमन करने की जरूरत पड़ती है और प्रतिरक्षादमन करने से हानि के बजाय लाभ होता है। उदाहरण के लिये किसी अंग के प्रतिरोपण की स्थिति में शरीर उस अंग को अस्वीकार करे तो प्रतिरक्षादमन उपयोगी होता है। इसी प्रकार स्वप्रतिरक्षित रोगों की चिकित्सा के लिये भी इसका सहारा लिया जाता है। प्रतिरक्षादमन करने के लिये प्रायः दवाओं का उपयोग किया जाता है किन्तु शल्य (सर्जरी), प्लाज्माफेरेसिस या विकिरण का उपयोग भी करना पड़ सकता है। .

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प्रतिजन

प्रतिजन प्रतिरक्षाविज्ञान में, प्रतिजन (antigen) किसी जीवधारी के शरीर में उपस्थित वे अणु हैं जो रोगों से लड़ने की क्षमता उत्पन्न करते हैं। दूसरे शब्दों में, कोई भी पदार्थ जो शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को प्रतिपिण्ड उत्पन्न करने में सहायक होता है, उसको प्रतिजन कहते हैं। http://www.microbiologyinfo.com/antigen-properties-types-and-determinants-of-antigenicity/ श्रेणी:जीव विज्ञान श्रेणी:शब्दावली श्रेणी:सूक्ष्मजैविकी श्रेणी:जैव प्रौद्योगिकी श्रेणी:आण्विक जैविकी.

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प्रोबायोटिक

लैक्टोबैसिलस जीवाणु प्रोबायोटिक जीवाणु है, जो दूध को दही में बदलता है। प्रोबायोटिक एक प्रकार के खाद्य पदार्थ होते हैं, जिसमें जीवित जीवाणु या सूक्ष्मजीव शामिल होते हैं। प्रोबायोटिक विधि रूसी वैज्ञानिक एली मैस्निकोफ ने २०वीं शताब्दी में प्रस्तुत की थी। इसके लिए उन्हें बाद में नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।। हिन्दुस्तान लाइव। १ दिसम्बर २००९ विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रोबायोटिक वे जीवित सूक्ष्मजीव होते हैं जिसका सेवन करने पर मानव शरीर में जरूरी तत्व सुनिश्चित हो जाते हैं।। बिज़नेस भास्कर। २४ मई २००९। डॉ॰ रतन सागर खन्ना ये शरीर में अच्छे जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि कर पाचन क्रिया को बेहतर बनाते हैं।। बिज्नेस स्टैण्डर्ड। नेहा भारद्वाज। १८ सितंबर २००८ इस विधि के अनुसार शरीर में दो तरह के जीवाणु होते हैं, एक मित्र और एक शत्रु। भोजन के द्वारा यदि मित्र जीवाणुओं को भीतर लें तो वे धीरे-धीरे शरीर में उपलब्ध शत्रु जीवाणुओं को नष्ट करने में कारगर सिद्ध होते हैं। मित्र जीवाणु प्राकृतिक स्रोतों और भोजन से प्राप्त होते हैं, जैसे दूध, दही और कुछ पौंधों से भी मिलते हैं। अभी तक मात्र तीन-चार ही ऐसे जीवाणु ज्ञात हैं जिनका प्रयोग प्रोबायोटिक रूप में किया जाता है। इनमें लैक्टोबेसिलस, बिफीडो, यीस्ट और बेसिल्ली हैं। इन्हें एकत्र करके प्रोबायोटिक खाद्य पदार्थ में डाला जाता है। वैज्ञानिकों के अब तक के अध्ययन के अनुसार इस तरह से शरीर में पहुंचने वाले जीवाणु किसी प्रकार की हानि भी नहीं पहुंचाते हैं। शोधों में रोगों के रोकथाम में इनकी भूमिका सकारात्मक पाई गई है तथा इनके कोई दुष्प्रभाव भी ज्ञात नहीं हैं। .

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पेप्सिको

पेप्सिको, इन्कोर्पोरेटेड फॉर्च्यून 500 अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनी है जिसका मुख्यालय परचेस, न्यूयॉर्क में है और इसकी रूचि कई प्रकार के कार्बोनेटेड एवं गैर कार्बोनेटेड पेय, अनाज आधारित मीठे और नमकीन स्नैक्स और अन्य खाद्य पदार्थ के उत्पादन और विपणन में है। पेप्सी ब्रांड के अलावा यह कम्पनी क्वेकर ओट्स, गेटोरेड, फ्रिटो ले, सोबे, नेकेड, ट्रॉपिकाना, कोपेल्ला, माउंटेन ड्यू, मिरिंडा और 7 अप (अमरीका के बाहर) जैसे दूसरे ब्रांड की भी मालिक है। 2006 से इंदिरा कृष्णामूर्ति नूयी पेप्सिको की मुख्य प्रबंधक हैं और इकाई के पेय पदार्थ वितरण और बॉटलिंग का उतरदायित्व सम्बंधित इकाई जैसे दी पेप्सी बॉटलिंग ग्रुप और पेप्सी अमेरिकास संभालती है। पेप्सिको एक एसआईसी 2080 (SIC 2080) पेय पदार्थ इकाई है। .

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भारतीय मोर

भारतीय मोर या नीला मोर (पावो क्रिस्टेटस) दक्षिण एशिया के देशी तीतर परिवार का एक बड़ा और चमकीले रंग का पक्षी है, दुनिया के अन्य भागों में यह अर्द्ध-जंगली के रूप में परिचित है। नर, मोर, मुख्य रूप से नीले रंग के होते हैं साथ ही इनके पंख पर चपटे चम्मच की तरह नीले रंग की आकृति जिस पर रंगीन आंखों की तरह चित्ती बनी होती है, पूँछ की जगह पंख एक शिखा की तरह ऊपर की ओर उठी होती है और लंबी रेल की तरह एक पंख दूसरे पंख से जुड़े होने की वजह से यह अच्छी तरह से जाने जाते हैं। सख्त और लम्बे पंख ऊपर की ओर उठे हुए पंख प्रेमालाप के दौरान पंखे की तरह फैल जाते हैं। मादा में इस पूँछ की पंक्ति का अभाव होता है, इनकी गर्दन हरे रंग की और पक्षति हल्की भूरी होती है। यह मुख्य रूप से खुले जंगल या खेतों में पाए जाते हैं जहां उन्हें चारे के लिए बेरीज, अनाज मिल जाता है लेकिन यह सांपों, छिपकलियों और चूहे एवं गिलहरी वगैरह को भी खाते हैं। वन क्षेत्रों में अपनी तेज आवाज के कारण यह आसानी से पता लगा लिए जाते हैं और अक्सर एक शेर की तरह एक शिकारी को अपनी उपस्थिति का संकेत भी देते हैं। इन्हें चारा जमीन पर ही मिल जाता है, यह छोटे समूहों में चलते हैं और आमतौर पर जंगल पैर पर चलते है और उड़ान से बचने की कोशिश करते हैं। यह लंबे पेड़ों पर बसेरा बनाते हैं। हालांकि यह भारत का राष्ट्रीय पक्षी है। .

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भौतिक विज्ञान में अनसुलझी पहेलियों की सूची

भौतिक विज्ञान में कुछ अनसुलझी पहेलियाँ सैद्धांतिक हैं, कहने का मतलब यह है कि उपलब्द्ध सिद्धांत कुछ प्रायोगिक परिणामों अथवा कुछ प्रेक्षित परिघटनाओं को समझाने में सक्षम नहीं हैं। अन्य प्रायोगिक हैं, जिसका मतलब यह है कि किसी परघटना को विस्तार से समझने अथवा किसी प्रस्तावित सिद्धांत का परिक्षण करने के लिए प्रयोग का निर्माण करना कठिन है। .

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महाबृहदांत्र

महाबृहदांत्र (मेगाकोलोंन) - बृहदान्त्र (बड़ी आँत का एक हिस्से) का असामान्य फैलाव है। अक्सर, फैलाव के साथ आंत्र के क्रमिक वृत्तों में सिकुड़नेवाले (क्रम-संकोचिक) लेहेरों का पक्षाघात भी होता है। अधिक चरम मामलों में, मल बृहदान्त्र के अंदर, कठोर पुंज की तरह जम जाता है, जिस को 'फेकलओमा' कहा जाता है (शाब्दिक रूप से, मल का ट्यूमर या गाँठ).

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मानव श्वेताणु प्रतिजन

क्रोमोज़ोम 6 का एचएलए (HLA) क्षेत्र. मानव श्वेताणु प्रतिजन प्रणाली (एचएलए (HLA)) मनुष्यों में मुख्य ऊतक-संयोज्यता संकुल (एमएचसी (MHC)) का नाम है। सुपर स्थल में मनुष्यों के प्रतिरक्षी तंत्र की कार्यप्रणाली से संबंधित जीन बड़ी संख्या में विद्यमान रहते हैं। यह जीन-समूह गुणसूत्र 6 पर स्थित रहता है और कोशिका-सतह प्रतिजन को प्रस्तुत करने वाले प्रोटीनों और कई अन्य जीनों को अनुकूटित करता है। एचएलए (HLA)) जीन एमएचसी (MHC)) जीन का मानव संस्करण हैं जो अधिकतर पृषठवंशियों में पाए जाते हैं (और इस प्रकार सर्वाधिक अध्ययन किए गए एमएचसी (MHC)) जीन हैं). अवयव प्रत्यारोपणों में कारकों के रूप में उनकी ऐतिहासिक खोज के परिणामस्वरूप कतिपय जीनों द्वारा अनुकूटित प्रोटीनों को प्रतिजन का नाम भी दिया जाता है। प्रतिरक्षी प्रकार्यों के लिये मुख्य एचएलए (HLA)) प्रतिजन आवश्यक तत्व हैं। विभिन्न वर्गों के भिन्न कार्य होते हैं। एमएचसी (MHC)) वर्ग I (ए, बी और सी) से संबधित एचएलए (HLA)) प्रतिजन कोशिका के भीतर के पेप्टाइडों (विषाणुज पेप्टाइड सहित, यदि उपस्थित हों) को प्रस्तुत करते हैं। ये पेप्टाइड पचे हुए उन प्रोटीनों से उत्पन्न होते हैं, जो प्रोटियासोम में विघटित हो जाते हैं। पेप्टाइड सामान्यतः छोटे बहुलक होते हैं और लंबाई में लगभग 9 अमीनो अम्लों जितने होते हैं। बाह्य प्रतिजन संहारक टी-कोशिकाओं (जो सीडी8 (CD8) सकारात्मक- या कोशिकाविषी टी-कोशिकाएं भी कहलाती हैं) को आकर्षित करते हैं, जो कोशिकाओं को नष्ट करते हैं। एमएचसी (MHC) वर्ग II (डीपी (DP), डीएम (DM), डीओए (DOA), डीओबी (DOB), डीक्यू (DQ) और डीआर (DR)) से संबंधित एचएलए (HLA) प्रतिजन टी-लिम्फोसाइटों के लिये कोशिका के बाहर से प्रतिजन प्रस्तुत करते हैं। ये विशेष प्रतिजन टी-हेल्पर कोशिकाओं के विभाजन को प्रोत्साहित करते हैं और तब ये टी-सहायक कोशिकाएं प्रतिरक्षी-उत्पादक बी-कोशिकाओं को उस विशिष्ट प्रतिजन के प्रति प्रतिरक्षकों का उत्पादन करने के लिये उत्प्रेरित करती हैं। स्वतः-प्रतिजनों का शमन शामक टी-कोशिकाओं द्वारा किया जाता है। एमएचसी (MHC) वर्ग III से संबंधित एचएलए (HLA) प्रतिजन पूरक प्रणाली के घटकों को अनुकूटित करते हैं। एचएलए (HLA) की अन्य भूमिकाएं भी होती हैं। वे रोग से रक्षा के लिये महत्वपूर्ण हैं। वे अवयव प्रत्यारोपण के अस्वीकरण का कारण हो सकते हैं। वे कैंसर से रक्षा कर सकते हैं या रक्षा करने में असमर्थ (यदि वे किसी संक्रमण द्वारा अवनियमित हो जाएं तो) हो सकते हैं। वे रोग से स्वतःप्रतिरक्षित होने में मध्यस्थता कर सकते हैं (उदाहरण: प्रकार। मधुमेह, उदरगुहा रोग). प्रजनन में भी, एचएलए (HLA) लोगों की व्यक्तिगत गंध से संबंध रख सकते हैं और सहवासी के चुनाव में शामिल हो सकते हैं। 6 मुख्य प्रतिजनों को अनुकूटित करने वाले जीनों के अलावा, एचएलए (HLA) समूह पर बड़ी संख्या में अन्य जीन स्थित होते है, जिनमें से कई प्रतिरक्षा के कार्य में हिस्सा लेते हैं। मानव आबादी में एचएलए (HLA) की विविधता रोग से रक्षा का एक पहलू है और इसके परिणामस्वरूप सभी स्थानों पर दो असंबंधित व्यक्तियों में एक समान एचएलए (HLA) अणुओं के पाए जाने की संभावना बहुत कम होती है। ऐतिहासिक रूप से, एचएलए (HLA) जीनों की पहचान समान एचएलए (HLA) वाले व्यक्तियों के बीच अवयवों के सफलतापूर्ण प्रतिरोपण की क्षमता का परिणाम थी। .

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मेसोथेलियोमा

मेसोथेलियोमा, अधिक स्पष्ट रूप से असाध्य मेसोथेलियोमा (Malignant Mesothelioma), एक दुर्लभ प्रकार का कैंसर है, जो शरीर के अनेक आंतरिक अंगों को ढंककर रखनेवाली सुरक्षात्मक परत, मेसोथेलियम, से उत्पन्न होता है। सामान्यतः यह बीमारी एस्बेस्टस के संपर्क से होती है। प्लुरा (फेफड़ों और सीने के आंतरिक भाग का बाह्य-आवरण) इस बीमारी का सबसे आम स्थान है, लेकिन यह पेरिटोनियम (पेट का आवरण), हृदय, पेरिकार्डियम (हृदय को घेरकर रखने वाला कवच) या ट्युनिका वेजाइनलिस (Tunica Vaginalis) में भी हो सकती है। मेसोथेलियोमा से ग्रस्त अधिकांश व्यक्ति या तो ऐसे स्थानों पर कार्यरत थे जहां श्वसन के दौरान एस्बेस्टस और कांच के कण उनके शरीर में प्रवेश कर गये या फिर वे अन्य तरीकों से एस्बेस्टस कणों और रेशों के संपर्क में आए.

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यकृत शोथ

हेपाटाइटिस या यकृत शोथ यकृत को हानि पहुंचाने वाला एक गंभीर और खतरनाक रोग होता है। इसका शाब्दिक अर्थ ही यकृत को आघात पहुंचना है। यह नाम प्राचीन ग्रीक शब्द हेपार (ἧπαρ), मूल शब्द हेपैट - (ἡπατ-) जिसका अर्थ यकृत और प्रत्यय -आइटिस जिसका अर्थ सूज़न है, से व्युत्पन्न है। इसके प्रमुख लक्षणों में अंगो के उत्तकों में सूजी हुई कोशिकाओं की उपस्थिति आता है, जो आगे चलकर पीलिया का रूप ले लेता है। यह स्थिति स्वतः नियंत्रण वाली हो सकती है, यह स्वयं ठीक हो सकता है, या यकृत में घाव के चिह्न रूप में विकसित हो सकता है। हैपेटाइटिस अतिपाती हो सकता है, यदि यह छः महीने से कम समय में ठीक हो जाये। अधिक समय तक जारी रहने पर चिरकालिक हो जाता है और बढ़ने पर प्राणघातक भी हो सकता है।। हिन्दुस्तान लाइव। १८ मई २०१० हेपाटाइटिस विषाणुओं के रूप में जाना जाने वाला विषाणुओं का एक समूह विश्व भर में यकृत को आघात पहुंचने के अधिकांश मामलों के लिए उत्तरदायी होता है। हेपाटाइटिस जीवविषों (विशेष रूप से शराब (एल्कोहोल)), अन्य संक्रमणों या स्व-प्रतिरक्षी प्रक्रिया से भी हो सकता है। जब प्रभावित व्यक्ति बीमार महसूस नहीं करता है तो यह उप-नैदानिक क्रम विकसित कर सकता है। यकृत यानी लिवर शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। वह भोजन पचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शरीर में जो भी रासायनिक क्रियाएं एवं परिवर्तन यानि उपापचय होते हैं, उनमें यकृत विशेष सहायता करता है। यदि यकृत सही ढंग से अपना काम नहीं करता या किसी कारण वे काम करना बंद कर देता है तो व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के रोग हो सकते हैं। जब रोग अन्य लक्षणों के साथ-साथ यकृत से हानिकारक पदार्थों के निष्कासन, रक्त की संरचना के नियंत्रण और पाचन-सहायक पित्त के निर्माण में संलग्न यकृत के कार्यों में व्यवधान पहुंचाता है तो रोगी की तबीयत ख़राब हो जाती है और वह रोगसूचक हो जाता है। ये बढ़ने पर पीलिया का रूफ लेता है और अंतिम चरण में पहुंचने पर हेपेटाइटिस लिवर सिरोसिस और यकृत कैंसर का कारण भी बन सकता है। समय पर उपचार न होने पर इससे रोगी की मृत्यु तक हो सकती है। .

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रक्त के प्रकार

रक्त प्रकार (जो रक्त समूह भी कहलाता है), लाल रक्त कोशिकाओं (RBCs) की सतह पर उपस्थित आनुवंशिक प्रतिजनी पदार्थों की उपस्थिति या अनुपस्थिति पर आधारित रक्त का वर्गीकरण है। ये प्रतिजन रक्त समूह तंत्र के आधार पर प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, ग्लाइकोप्रोटीन, या ग्लाइकोलिपिड होते हैं और कुछ प्रतिजन अन्य प्रकार के ऊतक की कोशिकाओं पर भी मौजूद हो सकते हैं इनमें से अनेक लाल रक्त कोशिकाओं की सतह के प्रतिजन, जो एक एलील (या बहुत नजदीकी से जुड़े हुआ जीन) से व्युत्पन्न होते हैं, सामूहिक रूप से एक रक्त समूह तंत्र बनाते हैं। रक्त के प्रकार वंशागत रूप से प्राप्त होते हैं और माता व पिता दोनों के योगदान का प्रतिनिधित्व करते हैं।अंतर्राष्ट्रीय रक्ताधन सोसाइटी (ISBT) के द्वारा अब कुल 30 मानव रक्त समूह तंत्रों की पहचान की जा चुकी है। बहुत गर्भवती महिलाओं में उपस्थित भ्रूण का रक्त समूह उनके अपने रक्त समूह से अलग होता है और मां भ्रूणीय लाल रक्त कोशिकाओं के विरुद्ध प्रतिरक्षियों का निर्माण कर सकती है। कभी कभी यह मातृ प्रतिरक्षी IgG होते हैं। यह एक छोटा इम्यूनोग्लोब्युलिन है, जो अपरा (प्लासेन्टा) को पार करके भ्रूण में चला जाता है और भ्रूणीय लाल रक्त कोशिकाओं के रक्त विघटन (हीमोलाइसिस) का कारण बन सकता है। जिसके कारण नवजात शिशु को रक्त अपघटन रोग हो जाता है, यहभ्रूणीय रक्ताल्पता की एक बीमारी है जो सौम्य से गंभीर हो सकती है। .

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रक्तिम ल्यूपस

रक्तिम ल्यूपस (Lupus erythematosus) प्रतिरक्षा प्रणाली की समस्या से सम्बन्धित कई रोगों का सामूहिक नाम है। ये रोग या इसके लक्षण जोड़ों, त्वचा, वृक्क, रक्त कोशों, हृदय, फेफड़ों आदि विभिन्न प्रणालियों को प्रभावित कर सकते हैं। चार मुख्य प्रकार के ल्यूपस ये हैं.

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लसीका पर्व

लसीका तंत्र लसीका पर्व (lymph node) प्रतिरक्षा प्रणाली के भाग हैं और छोटे बेर के आकार के (अण्डाकार) होते हैं। ये शरीर के विभिन्न भागों में स्थित हैं, जैसे कांख (armpit) और पेट आदि। ये लसीका पात्र से परस्पर जुड़े हुए हैं। .

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श्वेत रक्त कोशिका

सामान्य मानव रक्त की स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी छवि। अनियमित आकार की श्वेत रक्त कोशिकाओं के अलावा लाल रक्त कोशिकायें और चकती के आकार के बिम्बाणु दिख रहे हैं। श्वेत रक्त कोशिकायें (WBC), या श्वेताणु या ल्यूकोसाइट्स (यूनानी: ल्यूकोस-सफेद और काइटोस-कोशिका), शरीर की संक्रामक रोगों और बाह्य पदार्थों से रक्षा करने वाली प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकायें हैं। ल्यूकोसाइट्स पांच विभिन्न और विविध प्रकार की होती हैं, लेकिन इन सभी की उत्पत्ति और उत्पादन अस्थि मज्जा की एक मल्टीपोटेंट, हीमेटोपोईएटिक स्टेम सेल से होता है। ल्यूकोसाइट्स पूरे शरीर में पाई जाती हैं, जिसमें रक्त और लसीका प्रणाली शामिल हैं।इनका निर्माण अस्थि मज्जा में होता है। इसे शरीर का सिपाही के नाम से भी जाना जाता है। ये एंटीजन और एंटीबॉडी का निर्माण करती है जो प्रतिरक्षा तंत्र में भाग लेती है।एक बार बनी हुयी एंटीबॉडी जीवन भर नष्ट नहीं होती है।स्वेत रक्त कोशिकाओं का अपने स्तर से कम बनना ल्यूकेमिया कहलाता है जिसे हम ब्लड कैंसर भी कह सकते हैं। रक्त में ल्यूकोसाइट्स की संख्या प्रायः किसी रोग का सूचक होता है। आमतौर पर रक्त की एक लीटर मात्रा में 4×109 से लेकर 1.1×1010 के बीच श्वेत रक्त कोशिकायें होती हैं, जो किसी स्वस्थ वयस्क में रक्त का लगभग 1% होता है। ल्यूकोसाइट्स की संख्या में ऊपरी सीमा से अधिक हुई वृद्धि श्वेताणुवृद्धि या ल्यूकोसाइटोसिस (leukocytosis) कहलाती है जबकि निम्न सीमा के नीचे की संख्या को श्वेताणुह्रास या ल्यूकोपेनिया (leucopenia) कहा जाता है। ल्यूकोसाइट्स के भौतिक गुण, जैसे मात्रा, चालकता और कणिकामयता, सक्रियण, अपरिपक्व कोशिकाओं की उपस्थिति, या श्वेतरक्तता (ल्यूकेमिया) की हालत में घातक ल्यूकोसाइट्स की उपस्थिति के कारण बदल सकते हैं। .

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सफ़ेद बाघ

सफ़ेद बाघ (व्हाइट टाइगर/white tiger) एक ऐसा बाघ है जिसका प्रतिसारी पित्रैक (रिसेसिव पित्रैक) इसे हल्का रंग प्रदान करता है। एक अन्य आनुवंशिक अभिलक्षण बाघ की धारियों को बहुत हल्का रंग प्रदान करता है; इस प्रकार के सफ़ेद बाघ को बर्फ-सा सफ़ेद या "शुद्ध सफे़द" कहते हैं। सफ़ेद बाघ विवर्ण नहीं होते हैं और इनकी कोई अलग उप-प्रजाति नहीं है और इनका संयोग नारंगी रंग के बाघों के साथ हो सकता है, हालांकि (लगभग) इस संयोग के परिणामस्वरूप जन्म ग्रहण करने वाले शावकों में से आधे शावक प्रतिसारी सफ़ेद पित्रैक की वजह से विषमयुग्मजी हो सकते हैं और इनके रोएं नारंगी रंग के हो सकते हैं। इसमें एकमात्र अपवाद तभी संभव है जब खुद नारंगी रंग वाले माता/पिता पहले से ही एक विषमयुग्मजी बाघ हो, जिससे प्रत्येक शावक को या तो दोहरा प्रतिसारी सफ़ेद या विषमयुग्मजी नारंगी रंग के होने का 50 प्रतिशत अवसर मिलेगा.

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सरल परिसर्प

सरल परिसर्प (हर्पीज़ सिम्प्लेक्स) (ἕρπης - herpes, शाब्दिक अर्थ - "धीरे-धीरे बढ़ता हुआ") एक विषाणुजनित रोग है जो सरल परिसर्प विषाणु 1 (एचएसवी-1 (HSV-1)) और सरल परिसर्प विषाणु 2 (एचएसवी-2 (HSV-2)) दोनों के कारण होता है। परिसर्प विषाणु से होने वाले संक्रमण को संक्रमण स्थल पर आधारित कई विशिष्ट विकारों में से एक विकार के रूप में वर्गीकृत किया गया है। मौखिक परिसर्प, जिसके दिखाई देने वाले लक्षणों को बोलचाल की भाषा में शीतल घाव कहते हैं, चेहरे और मुंह को संक्रमित कर देते है। मौखिक परिसर्प, संक्रमण का सबसे सामान्य रूप है। जननांगी परिसर्प, जिसे आमतौर पर सिर्फ परिसर्प के रूप में जाना जाता है, परिसर्प का दूसरा सबसे सामान्य रूप है। अन्य विकार जैसे ददहा बिसहरी, परिसर्प ग्लैडायटोरम, नेत्रों में होने वाला परिसर्प (स्वच्छपटलशोथ), प्रमस्तिष्क में परिसर्प के संक्रमण से होने वाला मस्तिष्ककलाशोथ, मोलारेट का मस्तिष्कावरणशोथ, नवजात शिशुओं में होने वाला परिसर्प और संभवतः बेल का पक्षाघात सभी सरल परिसर्प विषाणु के कारण होते हैं। परिसर्प के विषाणु किसी व्यक्ति के रोगग्रस्त होने की स्थिति में अपना प्रभाव दिखाना शुरू करते हैं अर्थात् ये रोगग्रस्त व्यक्ति में छाले के रूप में प्रकट होते हैं जिसमें संक्रामक विषाणु के अंश होते हैं जो 2 से 21 दिनों तक प्रभावी रहते हैं और उसके बाद जब रोगी की हालत में सुधार होने लगता है तो ये घाव गायब हो जाते हैं। जननांगी परिसर्प, हालांकि, प्रायः स्पर्शोन्मुख होते हैं, तथापि विषाणुजनित बहाव अभी भी हो सकता है। आरंभिक संक्रमण के बाद, विषाणु संवेदी तंत्रिकाओं की तरफ बढ़ते हैं जहां वे चिरकालिक अदृश्य विषाणुओं के रूप में निवास करते हैं। पुनरावृत्ति के कारण अनिश्चित हैं, तथापि कुछ संभावित कारणों की पहचान की गई हैं। समय के साथ, सक्रिय रोग के प्रकरणों की आवृत्ति और तीव्रता में कमी आ जाती है। सरल परिसर्प, एक संक्रमित व्यक्ति के घाव या शरीर द्रव के सीधे संपर्क में आने पर बड़ी आसानी से फ़ैल जाता है। स्पर्शोन्मुख बहाव के समय के दौरान त्वचा से त्वचा के संपर्क के माध्यम से भी संचरण हो सकता है। अवरोध संरक्षण विधियां, परिसर्प के संचरण की रोकथाम की सबसे विश्वसनीय विधियां हैं लेकिन वे जोखिम को ख़त्म करने के बजाय सिर्फ कम करते हैं। मौखिक परिसर्प की आसानी से पहचान हो जाती है यदि रोगी के घाव या अल्सर दिखाई देने योग्य हो। ओरोफेसियल परिसर्प और जननांगी परिसर्प के प्रारंभिक चरणों का पता लगाना थोड़ा कठिन हैं; इसके लिए आम तौर पर प्रयोगशाला परीक्षण की आवश्यकता है। अमेरिका की जनसंख्या का बीस प्रतिशत के पास एचएसवी-2 (HSV-2) का रोग-प्रतिकारक हैं हालांकि उन सब का जननांगी घावों का इतिहास नहीं है।आतंरिक दवा के प्रति हरिसन के सिद्धांत, 16वां संस्करण, अध्याय 163, सरल परिसर्प के विषाणु, लॉरेंस कोरी परिसर्प का कोई इलाज़ नहीं है। एक बार संक्रमित होने जाने के बाद विषाणु जीवन पर्यंत शरीर में रहता है। हालांकि, कई वर्षों के बाद, कुछ लोग सदा के लिए स्पर्शोन्मुख हो जाएंगे और उन्हें कभी किसी प्रकार के प्रकोप का कोई अनुभव नहीं होगा लेकिन वे फिर भी दूसरों के लिए संक्रामक हो सकते हैं। इसके टीकों का रोग-विषयक परीक्षण चल रहा है लेकिन प्रभावशाली साबित नहीं हुए हैं। उपचार के माध्यम से विषाणुजनित प्रजनन और बहाव को कम किया जा सकता है, विषाणु को त्वचा में प्रवेश करने से रोका जा सकता है और रोगसूचक प्रकरणों की गंभीरता को कम किया जा सकता है। सरल परिसर्प के सम्बन्ध में उन हालातों के साथ भ्रमित नहीं होना चाहिए जो परिसर्पवायरिडा परिवार जैसे परिसर्प ज़ोस्टर में अन्य विषाणुओं के कारण होते हैं जो छोटी माता या चेचक के ज़ोस्टर विषाणु के कारण होने वाला एक विषाणुजनित रोग है। त्वचा पर घावों के होने के आभास के कारण "हाथ, पैर और मुख रोग" के साथ भी भ्रमित होने की सम्भावना है। .

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सहज वृत्ति (इंस्टिंक्ट)

सहज वृत्ति, किसी व्यवहार विशेष की तरफ जीवों के स्वाभाविक झुकाव को कहते हैं। गतिविधियों के स्थायी पैटर्न भुलाये जाते हैं और वंशानुगत होते हैं। किसी संवेदनशील समय में पड़ी छाप के कारण इसके उत्प्रेरक काफी विविध प्रकार के हो सकते हैं, या आनुवंशिक रूप से निर्धारित भी हो सकते हैं। सहज वृत्ति वाली गतिविधियों के स्थायी पैटर्न को पशुओं के व्यवहार में देखा जा सकता है, जो ऐसी कई गतिविधियों (अक्सर काफी जटिल) में संलग्न रहते हैं जो पूर्व अनुभवों पर आधारित नहीं होती हैं, जैसे कि कीड़ों के बीच प्रजनन तथा भोजन संबंधी गतिविधियां.

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स्ट्रेप्टोकॉकल ग्रसनीशोथ

स्ट्रेप्टोकॉकल ग्रसनीशोथ या स्ट्रेप थ्रोट एक ऐसा रोग है जो एक ऐसे जीवाणु द्वारा उत्पन्न होता है जिसे “समूह ए स्ट्रेप्टोकॉकस”कहा जाता है। स्ट्रेप थ्रोट गले तथा गलतुंडिका (टॉन्सिल)पर प्रभाव डालता है। गलतुंडिका (टॉन्सिल) गले में स्थित, दो ग्रंथियांहोती हैं जो मुँहके पीछे होती हैं। स्ट्रेप थ्रोट आवाज़ पैदा करने वाले (स्वर यंत्र) को भी प्रभावित कर सकता है। सामान्यलक्षणोंमें बुखार, गले में दर्द (जिसे ख़राश के साथ गले में दर्द की समस्या भी कहते हैं), तथासूजी हुई ग्रंथियां (लिम्फ नोड्स) जो गलेमें स्थित होती हैं, आदि शामिल हैं। स्ट्रेप थ्रोटबच्चोंके गले में होने वाली ख़राश तथा दर्द के कारणों का 37% होता है। स्ट्रेप थ्रोट किसी बीमार व्यक्ति से नज़दीकी संपर्क द्वारा फैलता है। किसी व्यक्ति में स्ट्रेप थ्रोट की पुष्टि करने के लिये, एक थ्रोट कल्चर कहे जाने वाले परीक्षण की आवश्यकता होती है। इस परीक्षण के बिना भी, स्ट्रेप थ्रोट की संभावित उपस्थिति को इसके लक्षणों से पहचाना जा सकता है।प्रतिजैविक (ऐंटीबायोटिक) स्ट्रेप थ्रोट से पीड़ित व्यक्ति को आराम पहुंचा सकती है। प्रतिजैविक (ऐंटीबायोटिक) वे दवाएं हैं जो जीवाणुओंको समाप्त करती हैं। ये मुख्य रूप से आमवात बुखार (रह्यूमेटिक फीवर) जैसी जटिलताओं की रोकथाम के लिये उपयोग की जाती हैं, न कि रोग की अवधि को कम करने के लिये। .

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स्वप्रतिरक्षित रोग

वे रोग स्वप्रतिरक्षित रोग (Autoimmune diseases) कहलाते हैं जिनके होने पर किसी जीव की प्रतिरक्षा प्रणाली अपने ही ऊतकों या शरीर में उपस्थित अन्य पदार्थों को रोगजनक (pathogen) समझने की गलती कर बैठती है और उन्हें समाप्त करने के लिये उन पर हमला कर देती है। इस प्रकार का रोग शरीर के किसी एक अंग में सीमित हो सकता है (जैसे स्वप्रतिरक्षित थॉयराय शोथ (autoimmune thyroiditis) या शरीर के विभिन्न स्थानों पर एक विशेष प्रकार के ऊतक को प्रभावित कर सकता है। स्वप्रतिरक्षित रोगों की चिकित्सा में प्रायः दवाओं का उपयोग करके प्रतिरक्षा प्रणाली की सक्रियता को कम किया जाता है जिसे प्रतिरक्षादमन (immunosuppression) कहते हैं। .

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जनसंख्या आनुवांशिकी

चार मुख्य विकासमूलक प्रक्रियाओं: प्राकृतिक चयन, आनुवांशिक झुकाव, उत्परिवर्तन और जीन-प्रवाह के प्रभाव में युग्म-विकल्पी आवृत्ति वितरण और परिवर्तन का अध्ययन जनसंख्या आनुवांशिकी कहलाता है। इसमें जनसंख्या उप-विभाजन तथा जनसंख्या संरचना के कारकों पर भी ध्यान दिया जाता है। यह अनुकूलन और प्रजातिकरण (speciation) जैसी अवधारणाओं की व्याख्या करने का भी प्रयास करती है। जनसंख्या आनुवांशिकी आधुनिक विकासमूलक संश्लेषण के उदभव का एक आवश्यक घटक थी। इसके प्रमुख संस्थापक सीवॉल राइट (Sewall Wright), जे.

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जीन चिकित्सा

कोशिकाओं और ऊतकों में किसी जीन की प्रविष्टि कराकर किसी बीमारी की चिकित्सा करना जीन चिकित्सा है, जैसे कि वंशानुगत बीमारी को ठीक करने के लिए उसका कारण बनने वाले किसी घातक उत्परिवर्ती एलील को किसी क्रियाशील जीन से प्रतिस्थापित करना.

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विटामिन डी

कोलेकैल्सिफेरॉल (डी३) विटामिन डी वसा-घुलनशील प्रो-हार्मोन का एक समूह होता है। इसके दो प्रमुख रूप हैं:विटामिन डी२ (या अर्गोकेलसीफेरोल) एवं विटामिन डी३ (या कोलेकेलसीफेरोल).

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व्यायाम

एक यू एस मैरीन ट्रायाथलॉन के तैरने के हिस्से को पूरा कर पानी से बाहर आता हुआ। व्यायाम वह गतिविधि है जो शरीर को स्वस्थ रखने के साथ व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य को भी बढाती है। यह कई अलग अलग कारणों के लिए किया जाता है, जिनमे शामिल हैं: मांसपेशियों को मजबूत बनाना, हृदय प्रणाली को सुदृढ़ बनाना, एथलेटिक कौशल बढाना, वजन घटाना या फिर सिर्फ आनंद के लिए। लगातार और नियमित शारीरिक व्यायाम, प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ा देता है और यह हमारी नींद कम करता है इससे हमें सुबह उठने पर तकलीफ नहीं होतीहृदय रोग, रक्तवाहिका रोग, टाइप 2 मधुमेह और मोटापा जैसे समृद्धि के रोगों को रोकने में मदद करता है। यह मानसिक स्वास्थ्य को सुधारता है और तनाव को रोकने में मदद करता है। बचपन का मोटापा एक बढ़ती हुई वैश्विक चिंता का विषय है और शारीरिक व्यायाम से बचपन के मोटापे के प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है। .

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वृद्धि हार्मोन

वृद्धि हार्मोन (जीएच (GH)) एक प्रोटीन पर आधारित पेप्टाइड हार्मोन है। यह मनुष्यों और अन्य जानवरों में वृद्दि, कोशिका प्रजनन और पुनर्निर्माण को प्रोत्साहित करता है। वृद्धि हार्मोन एक 191-अमाइनो अम्लों वाला, एकल-श्रंखला का पॉलिपेप्टाइड है जिसे अग्र पीयूष ग्रंथि के पार्श्विक कक्षों के भीतर सोमेटोट्रॉपिन (कायपोषी) कोशिकाओं द्वारा संश्लेषित, संचयित और स्रावित किया जाता है। सोमेटोट्रॉपिन (कायपोषी) से मतलब जानवरों में प्राकृतिक रूप से उत्पादित वृद्धि हार्मोन 1 से है, जबकि पुनःसंयोजी डीएनए (DNA) तकनीक से उत्पादित वृद्धि हार्मोन के लिये सोमाट्रॉपिन शब्द का प्रयोग किया जाता है जिसका संक्षिप्त रूप मनुष्यों में "एचजीएच (HGH)" है। वृद्धि हार्मोन का प्रयोग चिकित्सा-विज्ञान में बच्चों के वृद्धि विकारों और वयस्क वृद्धि हार्मोन अल्पता के उपचार के लिये नुस्खे में लिखी जाने वाली औषधि के रूप में किया जाता है। युनाइटेड स्टेट्स में यह कानूनी रूप से केवल डाक्टर के नुस्खे पर दवाई की दुकानों में उपलब्ध है। पिछले कुछ वर्षों में, युनाइटेड स्टेट्स में कुछ डाक्टरों ने जीएच-अल्पताग्रस्त (लेकिन स्वस्थ लोगों में नहीं) अधिक उम्र के रोगियों में जीवनशक्ति बढ़ाने के लिये वृद्धि हार्मोन के नुस्खे लिखना शुरू कर दिया है। कानूनन सही होते हुए भी, एचजीएच (HGH) के इस प्रयोग की प्रभावशीलता और सुरक्षा को किसी चिकित्सकीय प्रयोग में नहीं परखा गया है। इस समय, एचजीएच (HGH) को अभी भी एक अत्यंत जटिल हार्मोन माना जाता है और इसके कार्यों में से कई के बारे में अब तक जानकारी नहीं है। उपचय-प्रोत्साहक एजेंट के रूप में, एचजीएच (HGH) का प्रयोग 1970 के दशक से खेलों में प्रतिस्पर्धियों द्वारा किया जाता रहा है और इसे आईओसी (IOC) और एनसीएए (NCCA) द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया है। चूंकि पारम्परिक मूत्र विश्लेषण से एचजीएच (HGH) की उपस्थिति का पता नहीं लगाया जा सकता था, इसलिये इस प्रतिबंध को 2000 के दशक के प्रारंभ तक लागू नहीं किया जा सका, जिस समय प्राकृतिक और कृत्रिम एचजीएच (hGH) का अंतर पहचानने वाले रक्त परीक्षणों का विकास शुरू हो रहा था। एथेंस, ग्रीस में 2004 ओलिम्पिक खेलों में ‘वाडा (WADA)’ द्वारा किये गए रक्त के परीक्षणों का उद्देश्य मुख्यतः एचजीएच (HGH) का पता लगाना था। इस दवा का यह उपयोग एफडीए (FDA) द्वारा अनुमोदित नहीं है और युनाइटेड स्टेट्स में कानूनन जीएच (GH) केवल डाक्टरी नुस्खे पर ही उपलब्ध है। जीएच का अध्ययन औद्योगिक कृषि में पशुधन का अधिक बेहतर तरीके से विकास करने हेतु प्रयोग के लिये किया गया है और पशुधन के उत्पादन में जीएच के प्रयोग के लिये सरकारी अनुमोदन प्राप्त करने के लिये कई प्रयत्न किये गए हैं। ये प्रयोग विवादास्पद रहे हैं। युनाइटेड स्टेट्स में, जीएच (GH) का केवल एक एफडीए-अनुमोदित उपयोग है और वह है, डेरी की गायों में दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिये गोवंशीय सोमेटोट्रॉपिन नामक जीएच के एक गाय-विशिष्ट प्रकार का प्रयोग.

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गायन

हैरी बेलाफोन्ट 1954 गायन एक ऐसी क्रिया है जिससे स्वर की सहायता से संगीतमय ध्वनि उत्पन्न की जाती है और जो सामान्य बोलचाल की गुणवत्ता को राग और ताल दोनों के प्रयोग से बढाती है। जो व्यक्ति गाता है उसे गायक या गवैया कहा जाता है। गायक गीत गाते हैं जो एकल हो सकते हैं यानी बिना किसी और साज या संगीत के साथ या फिर संगीतज्ञों व एक साज से लेकर पूरे आर्केस्ट्रा या बड़े बैंड के साथ गाए जा सकते हैं। गायन अकसर अन्य संगीतकारों के समूह में किया जाता है, जैसे भिन्न प्रकार के स्वरों वाले कई गायकों के साथ या विभिन्न प्रकार के साज बजाने वाले कलाकारों के साथ, जैसे किसी रॉक समूह या बैरोक संगठन के साथ। हर वह व्यक्ति जो बोल सकता है वह गा भी सकता है, क्योंकि गायन बोली का ही एक परिष्कृत रूप है। गायन अनौपचारिक हो सकता है और संतोष या खुशी के लिये किया जा सकता है, जैसे नहाते समय या कैराओके में; या यह बहुत औपचारिक भी हो सकता है जैसे किसी धार्मिक अनुष्ठान के समय या मंच पर या रिकार्डिंग के स्टुडियो में पेशेवर गायन के समय। ऊंचे दर्जे के पेशेवर या नौसीखिये गायन के लिये सामान्यतः निर्देशन और नियमित अभ्यास आवश्यकता होती है। पेशेवर गायक सामान्यतः किसी एक प्रकार के संगीत में अपने पेशे का निर्माण करते हैं जैसे शास्त्रीय या रॉक और आदर्श रूप से वे अपने सारे करियर के दौरान किसी स्वर-अध्यापक या स्वर-प्रशिक्षक की सहायता से स्वर-प्रशिक्षण लेते हैं। .

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ओजोन थेरेपी

एक चिकित्सकीय ओज़ोन जनरेटर।सौजन्य: http://www.medpolinar.com/eng_version/ozon.htm www.medpolinar.com ओजोन थेरेपी में ओजोन और ऑक्सीजन के मिश्रण को मनुष्य के शरीर के लाभ हेतु प्रयोग किया जाता है। ओजोन एंटीऑक्सीडेंट प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में सक्षम है, इसलिए यह ऑक्सीडेटिव मानसिक तनाव को कम कर सकता है। ओजोन का यह एंटीऑक्सीडेंट प्रतिरोधक तंत्र विकिरण और कीमोथेरेपी के दौरान पैदा होने वाले रेडिकल्स को संतुलित करता है।। हिन्दुस्तान लाइव। ९ मई २०१० चाहे शरीर में शीघ्र थकान होने की शिकायत हो, सुस्ती अनुभव होती हो, छाती में दर्द की समस्या हो या उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्राल वृद्धि, मधुमेह आदि की चिंता हो, या कैंसर से लेकर एचआईवी जैसे घातक रोगों में, ओजोन थेरेपी इन सभी में वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के रूप में समान रूप से सहायक हो सकती है। यह अल्पजीवी गैस शरीर के अंदर जाकर ऑक्सीकरण प्रक्रिया को तेज करने के साथ-साथ ऑक्सीजन को फेफड़ों से लेकर शरीर की सभी कोशिकाओं तक ले जाने की क्षमता बढ़ा देती है। इससे शरीर द्वारा बनाये गए अफल विषैले तत्वों को बाहर निकालने एवं क्षय हो रही ऊर्जा के पुनर्संचय में मदद मिलती है। .

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इल्या इलिच मेखनिकोव

इल्या इलिच मेखनिकोव (Илья Ильич Мечников) (१६ मई १८४५ – १५ जुलाई १९१६) एक रूसी सूक्ष्मजैविक थे। इन्होंने प्रतिरक्षा प्रणाली पर अध्ययन किये। १९०८ में इन्हें फैगोसाइटोसिस पर कार्य के लिए नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। .

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कर्कट रोग

कर्कट (चिकित्सकीय पद: दुर्दम नववृद्धि) रोगों का एक वर्ग है जिसमें कोशिकाओं का एक समूह अनियंत्रित वृद्धि (सामान्य सीमा से अधिक विभाजन), रोग आक्रमण (आस-पास के उतकों का विनाश और उन पर आक्रमण) और कभी कभी अपररूपांतरण अथवा मेटास्टैसिस (लसिका या रक्त के माध्यम से शरीर के अन्य भागों में फ़ैल जाता है) प्रदर्शित करता है। कर्कट के ये तीन दुर्दम लक्षण इसे सौम्य गाँठ (ट्यूमर या अबुर्द) से विभेदित करते हैं, जो स्वयं सीमित हैं, आक्रामक नहीं हैं या अपररूपांतरण प्रर्दशित नहीं करते हैं। अधिकांश कर्कट एक गाँठ या अबुर्द (ट्यूमर) बनाते हैं, लेकिन कुछ, जैसे रक्त कर्कट (श्वेतरक्तता) गाँठ नहीं बनाता है। चिकित्सा की वह शाखा जो कर्कट के अध्ययन, निदान, उपचार और रोकथाम से सम्बंधित है, ऑन्कोलॉजी या अर्बुदविज्ञान कहलाती है। कर्कट सभी उम्र के लोगों को, यहाँ तक कि भ्रूण को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन अधिकांश किस्मों का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है। कर्कट में से १३% का कारण है। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, २००७ के दौरान पूरे विश्व में ७६ लाख लोगों की मृत्यु कर्कट के कारण हुई। कर्कट सभी जानवरों को प्रभावित कर सकता है। लगभग सभी कर्कट रूपांतरित कोशिकाओं के आनुवंशिक पदार्थ में असामान्यताओं के कारण होते हैं। ये असामान्यताएं कार्सिनोजन या का कर्कटजन (कर्कट पैदा करने वाले कारक) के कारण हो सकती हैं जैसे तम्बाकू धूम्रपान, विकिरण, रसायन, या संक्रामक कारक.

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कृत्रिम पेसमेकर

एक पेसमेकर, सेंटीमीटर में पैमाना ट्रांसवेनस प्रविष्टि के लिए इलेक्ट्रोड युक्त एक कृत्रिम पेसमेकर (सेंट जुड मेडिकल से).उपकरण का ढांचा लगभग 4 सेंटीमीटर लम्बा है, इलेक्ट्रोड की माप 50 और 60 सेंटीमीटर के बीच (20 से 24 इंच) है। दिल की धड़कन को नियंत्रित रखने के लिए पेसमेकर (या कृत्रिम पेसमेकर, ताकि दिल का प्राकृतिक पेसमेकर मानकर भ्रमित न हुआ जाय) एक चिकित्सा उपकरण है, जो दिल की मांसपेशियों से संपर्क करने के लिए इलेक्ट्रोड द्वारा प्रदत्त विद्युत आवेगों का उपयोग करता है। दिल अर्थात् हृदय के मूल पेसमेकर का पर्याप्त तेजी से काम नहीं करने या फिर दिल की विद्युत चालन प्रणाली में अवरोध आ जाने की वजह से पेसमेकर का प्राथमिक प्रयोजन पर्याप्त हृदय गति को बनाये रखने का है। आधुनिक पेसमेकर बाह्य रूप से प्रोग्रामयोग्य होते हैं और अलग-अलग मरीजों के लिए अनुकूलतम पेसिंग मोड का चयन करने की हृदय रोग विशेषज्ञ को अनुमति देते हैं। कुछ में एक ही इम्प्लांटयोग्य उपकरण में पेसमेकर और वितंतुविकंपनित्र (डिफाइबरीलेटर) सयुक्त रूप से होते हैं। दूसरों में, दिल के निचले कक्षों के संकालन (सिंक्रोनाइजेशन) में सुधार के लिए दिल के अंतर्गत भिन्न अंग-विन्यास के उद्दीप्तिकारक के बहुत सारे इलेक्ट्रोड होते हैं। .

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अतिसुग्राहिता

अतिसुग्राहिता (Hypersensitivity या hypersensitivity reaction या intolerance) से आशय प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा उत्पन्न किये गये अवांछित प्रतिक्रियाओं से है। श्रेणी:एलर्जी श्रेणी:अतिसुग्राहिता श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अनानास

अनन्नास (अंग्रेज़ी:पाइनऍप्पल, वैज्ञा:Ananas comosus) एक खाद्य उष्णकटिबन्धीय पौधे एवं उसके फल का सामान्य नाम है हालांकि तकनीकी दृष्टि से देखें, तो ये अनेक फलों का समूह विलय हो कर निकलता है। यह मूलतः पैराग्वे एवं दक्षिणी ब्राज़ील का फल है। अनन्नास को ताजा काट कर भी खाया जाता है और शीरे में संरक्षित कर या रस निकाल कर भी सेवन किया जाता है। इसे खाने के उपरांत मीठे के रूप में सलाद के रूप में एवं फ्रूट-कॉकटेल में मांसाहार के विकल्प के रूप में प्रयोग भी किया जाता है।। याहू जागरण मिष्टान्न रूप में ये उच्च स्तर के अम्लीय स्वभाव (संभवतः मैलिक या साइट्रिक अम्ल) का होता है। अनन्नास कृषि किया गया ब्रोमेल्याकेऐ एकमात्र फल है। अनन्नास फल व अनुप्रस्थ काट अनन्नास के औषधीय गुण भी बहुत होते हैं। ये शरीर के भीतरी विषों को बाहर निकलता है। इसमें क्लोरीन की भरपूर मात्रा होती है। साथ ही पित्त विकारों में विशेष रूप से और पीलिया यानि पांडु रोगों में लाभकारी है। ये गले एवं मूत्र के रोगों में लाभदायक है। इसके अलावा ये हड्डियों को मजबूत बनाता है। अनन्नास में प्रचुर मात्रा में मैग्नीशियम पाया जाता है। यह शरीर की हड्डियों को मजबूत बनाने और शरीर को ऊर्जा प्रदान करने का काम करता है। एक प्याला अनन्नास के रस-सेवन से दिन भर के लिए आवश्यक मैग्नीशियम के ७५% की पूर्ति होती है। साथ ही ये कई रोगों में उपयोगी होता है। इस फल में पाया जाने वाला ब्रोमिलेन सर्दी और खांसी, सूजन, गले में खराश और गठिया में लाभदायक होता है। यह पाचन में भी उपयोगी होता है। अनन्नास अपने गुणों के कारण नेत्र-ज्योति के लिए भी उपयोगी होता है। दिन में तीन बार इस फल को खाने से बढ़ती उम्र के साथ आंखों की रोशनी कम हो जाने का खतरा कम हो जाता है। आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों के शोधों के अनुसार यह कैंसर के खतरे को भी कम करता है। ये उच्च एंटीआक्सीडेंट का स्रोत है व इसमें विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और साधारण ठंड से भी सुरक्षा मिलती है। इससे सर्दी समेत कई अन्य संक्रमण का खतरा कम हो जाता है। .

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अज्ञातहेतुक बिंबाणुअल्पताजन्य रक्तचित्तिता

प्लेटलेट्स की कमी से उत्पन्न रक्तचित्तिता (परप्यूरा) जब किन्हीं अज्ञात कारणों से किसी के रक्त में बिंबाणुओं (प्लेटलेट्स) की संख्या अत्यन्त कम हो जाती है तो इसे अज्ञातहेतुक बिंबाणुअल्पताजन्य रक्तचित्तिता (Idiopathic thrombocytopenic purpura या ITP) कहते हैं अधिकांश मामलों में यह रोग बिंबाणुओं के विरुद्ध एण्टीबाडीज के उत्पादन से सम्बन्धित है, इस कारण इसे 'प्रतिरक्षी बिंबाणुअल्पताजन्य रक्तचित्तिता' (immune thrombocytopenic purpura) या 'प्रतिरक्षी बिंबाणुअल्पता' (immune thrombocytopenia) भी कहते हैं। प्रायः यह रोग लक्षणविहीन (asymptomatic) होता है अर्थात इस रोग में कोई लक्षण ही नहीं दिखते। किन्तु बिंबाणुओं की संख्या बहुत ही कम हो जाने पर रक्तस्राव (bleeding) हो सकती है और रक्तचित्तिता (purpura) भी देखी जा सकती है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

प्रतिरक्षा तंत्र, रोग-प्रतिरक्षा प्रणाली, इम्म्यून प्रणाली

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