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पोटैशियम

सूची पोटैशियम

पोटैशियम पोटैशियम (Potassium) एक रासायनिक तत्व है। इसका प्रतीक 'K' है। यह आर्वत सारणी के प्रथम मुख्य समूह का तत्व है। इसके दो स्थिर समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ३९ और ४१) ज्ञात हैं। एक अस्थिर समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ४०) प्रकृति में न्यून मात्रा में पाया जाता है। इनके अतिरिक्त तीन अन्य समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ३८, ४२ और ४३) कृत्रिम रूप से निर्मित हुए हैं। .

73 संबंधों: चार्ली घोड़ा, एनोरेक्सिया नर्वोज़ा, ऐक्शन पोटेंशिअल, तत्वों की सूची (नाम अनुसार), थकान (चिकित्सा), धातु, नादेप कम्पोस्ट, नोवियाल, नीबू, पादप पोषण, पाइरॉक्सीन, पीने का पानी, फ़्रान्स, फ़्रांस का भूगोल, फ्लोरीन, फेल्सपार, बादाम, बायोगैस, बियर, बुध (ग्रह), ब्राहुई भाषा, ब्रेल पद्धति, ब्रोमीन, बैण्ड अन्तराल, बीटा वल्गैरिस, भूतापीय प्रवणता, भोजन में फल व सब्जियां, महाबृहदांत्र, मंगल ग्रह, मृदा, मैंगनीज़, मूत्रमेह, मेवा, रत्न, रासायनिक तत्व, रासायनिक तत्वों की सूची, रासायनिक प्रतीक, राजस्थान की मिट्टियाँ, रक्त चाप, रक्त परीक्षण, रेडियोसक्रियता, लार, शैल, साबुन, संतरा (फल), हंफ्री डेवी, हेमोडायलिसिस, जल, जल (अणु), वर्मी वाश, ..., वाइन मेकिंग (वाइन बनाना), विद्युत अपघटन, वियतनामी लिपि, आयनन ऊर्जा, आहारीय पोटैशियम, आहारीय खनिज, आवर्त सारणी के नमूने, कब्ज, कातालोनिया, कार्डियक पेसमेकर, कार्बन नैनोट्यूब, कुम्हड़ा, क्षार धातु, कृत्रिम तत्वान्तरण, केशिकास्तवक, केंचुआ खाद, अधातु, अभ्रक, अयस्क, अंजीर, अंग्रेजी वर्णमाला, उच्च रक्तचाप, उर्वरक सूचकांक विस्तार (23 अधिक) »

चार्ली घोड़ा

चार्ली हॉर्स एक लोकप्रिय उत्तर अमेरिकी बोलचाल की शब्दावली है जो कि पैर की मांसपेशियों में कुछ सेकंड से कुछ घंटों तक दर्दनाक ऐंठन या उद्वेष्ट करता हैं.

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एनोरेक्सिया नर्वोज़ा

क्षुधा अभाव (एनोरेक्सिया नर्वोज़ा) (AN) एक प्रकार का आहार-संबंधी विकार है जिसके लक्षण हैं - स्वस्थ शारीरिक वजन बनाए रखने से इंकार और स्थूलकाय हो जाने का डर जो विभिन्न बोधसंबंधी पूर्वाग्रहों पर आधारित विकृत स्व-छवि के कारण उत्पन्न होता है। ये पूर्वाग्रह व्यक्ति की अपने शरीर, भोजन और खाने की आदतों के बारे में चिंतन-मनन की क्षमता को बदल देते हैं। AN एक गंभीर मानसिक रोग है जिसमें अस्वस्थता व मृत्युदरें अन्य किसी मानसिक रोग जितनी ही होती हैं। यद्यपि यह मान्यता है कि AN केवल युवा श्वेत महिलाओं में ही होता है तथापि यह सभी आयु, नस्ल, सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के पुरूषों और महिलाओं को प्रभावित कर सकता है। एनोरेक्सिया नर्वोज़ा पद का प्रयोग महारानी विक्टोरिया के निजी चिकित्सकों में से एक, सर विलियम गल द्वारा 1873 में किया गया था। इस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक से हुई है: a (α, निषेध का उपसर्ग), n (ν, दो स्वर वर्णों के बीच की कड़ी) और orexis (ओरेक्सिस) (ορεξις, भूख), इस तरह इसका अर्थ है – भोजन करने की इच्छा का अभाव.

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ऐक्शन पोटेंशिअल

शरीर-विज्ञान में ऐक्शन पोटेंशिअल एक अल्प-जीवी घटना होती है जिसमें कोशिका की विद्युतीय झिल्ली क्षमता, रूढ़ प्रारूप पथ का अनुगमन करते हुए तेजी से चढ़ती और गिरती है। ऐक्शन पोटेंशिअल, कई प्रकार की पशु कोशिका में होते हैं, जिसे उत्तेजनीय कोशिका कहा जाता है, जिसमें शामिल हैं न्यूरॉन, मांसपेशी कोशिका और अंत:स्त्रावी कोशिका.

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तत्वों की सूची (नाम अनुसार)

नीचे प्रत्येक तत्व के सबसे स्थिर समस्थानिक का तत्व प्रतीक, परमाणु क्रमांक और परमाणु भार का विवरण दिया गया है। साथ ही उनका समूह और आवर्त सारणी मे उनकी स्थिति भी प्रदर्शित है। |-style.

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थकान (चिकित्सा)

थकान या श्रांति (fatigue/फैटिग) एक एसी स्थिति है जो एक विशिष्ट श्रेणी में जागरूकता की वेदनाओं का वर्णन करता है, आमतौर पर ये शारीरिक और/या मानसिक कमजोरी से जोड़ा जाता है, हालांकि ये एक सामान्य सुस्ती से लेकर विशिष्ट काम करने की वजह से कुछ खास मास पेसियो में जलन का आभास होना.

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धातु

'धातु' के अन्य अर्थों के लिए देखें - धातु (बहुविकल्पी) ---- '''धातुएँ''' - मानव सभ्यता के पूरे इतिहास में सर्वाधिक प्रयुक्त पदार्थों में धातुएँ भी हैं लुहार द्वारा धातु को गर्म करने पर रसायनशास्त्र के अनुसार धातु (metals) वे तत्व हैं जो सरलता से इलेक्ट्रान त्याग कर धनायन बनाते हैं और धातुओं के परमाणुओं के साथ धात्विक बंध बनाते हैं। इलेक्ट्रानिक मॉडल के आधार पर, धातु इलेक्ट्रानों द्वारा आच्छादित धनायनों का एक लैटिस हैं। धातुओं की पारम्परिक परिभाषा उनके बाह्य गुणों के आधार पर दी जाती है। सामान्यतः धातु चमकीले, प्रत्यास्थ, आघातवर्धनीय और सुगढ होते हैं। धातु उष्मा और विद्युत के अच्छे चालक होते हैं जबकि अधातु सामान्यतः भंगुर, चमकहीन और विद्युत तथा ऊष्मा के कुचालक होते हैं। .

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नादेप कम्पोस्ट

कम्पोस्ट बनाने की यह विधि ग्राम पुसर, जिला यवतमाल, महाराष्ट्र के नारायण देवराव पण्ढ़री पांडे द्वारा विकसित की गई है। इसलिये इसे नादेप विधि (या अंग्रेजी में नाडेप) कहते हैं। नाडेप कम्पोस्ट विधि की विशेषता यह है, कि इस प्रक्रिया में जमीन पर टांका बनाया जाता है। इस विधि में कम से कम गोबर का उपयोग करके अधिक मात्रा में अच्छी खाद तैयार की जा सकती है। टांके को भरने के लिए गोबर, कचरा (बायोमास) और बारीक छनी हुई मिट्टी की आवश्यकता रहती है। जीवांश को 90 से 120 दिन पकाने में वायु संचार प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है। इसके द्वारा उत्पादित की गई खाद में प्रमुख रूप से 0.1 से 1.5 नत्रजन, 0.5 से 0.9 स्फुर (फास्फोरस) एवं 1.2 से 1.4 प्रतिशत पोटाश के अलावा अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व भी पाये जाते है। .

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नोवियाल

नोवियाल का ध्वज नोवियाल (Novial) एक कृत्रिम भाषा है, जिसे १९२८ में ओटो येस्पर्सन नामक एक डैनिश भाषाविद् ने निर्मित किया था। यह शब्द "nov" (नया) और "ial" (अन्तर्राष्ट्रीय सहायक भाषा) से बना है। .

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नीबू

नीबू का वृक्ष नीबू (Citrus limon, Linn.) छोटा पेड़ अथवा सघन झाड़ीदार पौधा है। इसकी शाखाएँ काँटेदार, पत्तियाँ छोटी, डंठल पतला तथा पत्तीदार होता है। फूल की कली छोटी और मामूली रंगीन या बिल्कुल सफेद होती है। प्रारूपिक (टिपिकल) नीबू गोल या अंडाकार होता है। छिलका पतला होता है, जो गूदे से भली भाँति चिपका रहता है। पकने पर यह पीले रंग का या हरापन लिए हुए होता है। गूदा पांडुर हरा, अम्लीय तथा सुगंधित होता है। कोष रसयुक्त, सुंदर एवं चमकदार होते हैं। नीबू अधिकांशत: उष्णदेशीय भागों में पाया जाता है। इसका आदिस्थान संभवत: भारत ही है। यह हिमालय की उष्ण घाटियों में जंगली रूप में उगता हुआ पाया जाता है तथा मैदानों में समुद्रतट से 4,000 फुट की ऊँचाई तक पैदा होता है। इसकी कई किस्में होती हैं, जो प्राय: प्रकंद के काम में आती हैं, उदाहरणार्थ फ्लोरिडा रफ़, करना या खट्टा नीबू, जंबीरी आदि। कागजी नीबू, कागजी कलाँ, गलगल तथा लाइम सिलहट ही अधिकतर घरेलू उपयोग में आते हैं। इनमें कागजी नीबू सबसे अधिक लोकप्रिय है। इसके उत्पादन के स्थान मद्रास, बंबई, बंगाल, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र हैदराबाद, दिल्ली, पटियाला, उत्तर प्रदेश, मैसूर तथा बड़ौदा हैं। नीबू की उपयोगिता जीवन में बहुत अधिक है। इसका प्रयोग अधिकतर भोज्य पदार्थों में किया जाता है। इससे विभिन्न प्रकार के पदार्थ, जैसे तेल, पेक्टिन, सिट्रिक अम्ल, रस, स्क्वाश तथा सार (essence) आदि तैयार किए जाते हैं। .

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पादप पोषण

पादप पोषण (Plant Nutrition) के अन्तर्गत पादपों के विकास के लिए आवश्यक रासायनिक तत्त्वों एवं यौगिकों का अध्ययन किया जाता है। सत्रह (17) अत्यावश्यक पादप-पोषक तत्व हैं। कार्बन, आक्सीजन, तथा जल के अलावा निम्नलिखित खनिज तत्त्व आवश्यक हैं-.

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पाइरॉक्सीन

'''पाइरॉक्सीन''' का एक नमूना पाइरॉक्सीन (Pyroxene) खनिजों का एक महत्वपूर्ण समूह है जो शैल-निर्माण करने वाले इनोसिलिकेट (inosilicate) होते हैं। ये बहुत सी आग्नेय एवं रूपान्तरित शैलों में पाये जाते हैं। .

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पीने का पानी

नल का पानी पीने का पानी या पीने योग्य पानी, समुचित रूप से उच्च गुणवत्ता वाला पानी होता है जिसका तत्काल या दीर्घकालिक नुकसान के न्यूनतम खतरे के साथ सेवन या उपयोग किया जा सकता है। अधिकांश विकसित देशों में घरों, व्यवसायों और उद्योगों में जिस पानी की आपूर्ति की जाती है वह पूरी तरह से पीने के पानी के स्तर का होता है, लेकिन वास्तविकता में इसके एक बहुत ही छोटे अनुपात का उपयोग सेवन या खाद्य सामग्री तैयार करने में किया जाता है। दुनिया के ज्यादातर बड़े हिस्सों में पीने योग्य पानी तक लोगों की पहुंच अपर्याप्त होती है और वे बीमारी के कारकों, रोगाणुओं या विषैले तत्वों के अस्वीकार्य स्तर या मिले हुए ठोस पदार्थों से संदूषित स्रोतों का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह का पानी पीने योग्य नहीं होता है और पीने या भोजन तैयार करने में इस तरह के पानी का उपयोग बड़े पैमाने पर त्वरित और दीर्घकालिक बीमारियों का कारण बनता है, साथ ही कई देशों में यह मौत और विपत्ति का एक प्रमुख कारण है। विकासशील देशों में जलजनित रोगों को कम करना सार्वजनिक स्वास्थ्य का एक प्रमुख लक्ष्य है। सामान्य जल आपूर्ति नेटवर्क पीने योग्य पानी नल से उपलब्ध कराते हैं, चाहे इसका उपयोग पीने के लिए या कपड़े धोने के लिए या जमीन की सिंचाई के लिए किया जाना हो.

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फ़्रान्स

फ़्रान्स,या फ्रांस (आधिकारिक तौर पर फ़्रान्स गणराज्य; फ़्रान्सीसी: République française) पश्चिम यूरोप में स्थित एक देश है किन्तु इसका कुछ भूभाग संसार के अन्य भागों में भी हैं। पेरिस इसकी राजधानी है। यह यूरोपीय संघ का सदस्य है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह यूरोप महाद्वीप का सबसे बड़ा देश है, जो उत्तर में बेल्जियम, लक्ज़मबर्ग, पूर्व में जर्मनी, स्विट्ज़रलैण्ड, इटली, दक्षिण-पश्चिम में स्पेन, पश्चिम में अटलांटिक महासागर, दक्षिण में भूमध्यसागर तथा उत्तर पश्चिम में इंग्लिश चैनल द्वारा घिरा है। इस प्रकार यह तीन ओर सागरों से घिरा है। सुरक्षा की दृष्टि से इसकी स्थिति उत्तम नहीं है। लौह युग के दौरान, अभी के महानगरीय फ्रांस को कैटलिक से आये गॉल्स ने अपना निवास स्थान बनाया। रोम ने 51 ईसा पूर्व में इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया गया। फ्रांस, गत मध्य युग में सौ वर्ष के युद्ध (1337 से 1453) में अपनी जीत के साथ राज्य निर्माण और राजनीतिक केंद्रीकरण को मजबूत करने के बाद एक प्रमुख यूरोपीय शक्ति के रूप में उभरा। पुनर्जागरण के दौरान, फ्रांसीसी संस्कृति विकसित हुई और एक वैश्विक औपनिवेशिक साम्राज्य स्थापित हुआ, जो 20 वीं सदी तक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी थी। 16 वीं शताब्दी में यहाँ कैथोलिक और प्रोटेस्टैंट (ह्यूजेनॉट्स) के बीच धार्मिक नागरिक युद्धों का वर्चस्व रहा। फ्रांस, लुई चौदहवें के शासन में यूरोप की प्रमुख सांस्कृतिक, राजनीतिक और सैन्य शक्ति बन कर उभरा। 18 वीं शताब्दी के अंत में, फ्रेंच क्रांति ने पूर्ण राजशाही को उखाड़ दिया, और आधुनिक इतिहास के सबसे पुराने गणराज्यों में से एक को स्थापित किया, साथ ही मानव और नागरिकों के अधिकारों की घोषणा के प्रारूप का मसौदा तैयार किया, जोकि आज तक राष्ट्र के आदर्शों को व्यक्त करता है। 19वीं शताब्दी में नेपोलियन ने वहाँ की सत्ता हथियाँ कर पहले फ्रांसीसी साम्राज्य की स्थापना की, इसके बाद के नेपोलियन युद्धों ने ही वर्तमान यूरोप महाद्वीपीय के स्वरुप को आकार दिया। साम्राज्य के पतन के बाद, फ्रांस में 1870 में तृतीय फ्रांसीसी गणतंत्र की स्थापना हुई, हलाकि आने वाली सभी सरकार लचर अवस्था में ही रही। फ्रांस प्रथम विश्व युद्ध में एक प्रमुख भागीदार था, जहां वह विजयी हुआ, और द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्र में से एक था, लेकिन 1940 में धुरी शक्तियों के कब्जे में आ गया। 1944 में अपनी मुक्ति के बाद, चौथे फ्रांसीसी गणतंत्र की स्थापना हुई जिसे बाद में अल्जीरिया युद्ध के दौरान पुनः भंग कर दिया गया। पांचवां फ्रांसीसी गणतंत्र, चार्ल्स डी गॉल के नेतृत्व में, 1958 में बनाई गई और आज भी यह कार्यरत है। अल्जीरिया और लगभग सभी अन्य उपनिवेश 1960 के दशक में स्वतंत्र हो गए पर फ्रांस के साथ इसके घनिष्ठ आर्थिक और सैन्य संबंध आज भी कायम हैं। फ्रांस लंबे समय से कला, विज्ञान और दर्शन का एक वैश्विक केंद्र रहा है। यहाँ पर यूरोप की चौथी सबसे ज्यादा सांस्कृतिक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल मौजूद है, और दुनिया में सबसे अधिक, सालाना लगभग 83 मिलियन विदेशी पर्यटकों की मेजबानी करता है। फ्रांस एक विकसित देश है जोकि जीडीपी में दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तथा क्रय शक्ति समता में नौवीं सबसे बड़ा है। कुल घरेलू संपदा के संदर्भ में, यह दुनिया में चौथे स्थान पर है। फ्रांस का शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, जीवन प्रत्याशा और मानव विकास की अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में अच्छा प्रदर्शन है। फ्रांस, विश्व की महाशक्तियों में से एक है, वीटो का अधिकार और एक आधिकारिक परमाणु हथियार संपन्न देश के साथ ही यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से एक है। यह यूरोपीय संघ और यूरोजोन का एक प्रमुख सदस्यीय राज्य है। यह समूह-8, उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो), आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी), विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) और ला फ्रैंकोफ़ोनी का भी सदस्य है। .

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फ़्रांस का भूगोल

कोई विवरण नहीं।

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फ्लोरीन

फ्लोरीन एक रासायनिक तत्व है। यह आवर्त सारणी (periodic table) के सप्तसमूह का प्रथम तत्व है, जिसमें सर्वाधिक अधातु गुण वर्तमान हैं। इसका एक स्थिर समस्थानिक (भारसंख्या 19) प्राप्त है और तीन रेडियोधर्मिता समस्थानिक (भारसंख्या 17,18 और 20) कृत्रिम साधनों से बनाए गए हैं। इस तत्व को 1886 ई. में मॉयसाँ ने पृथक्‌ किया। अत्यंत क्रियाशील तत्व होने के कारण इसको मुक्त अवस्था में बनाना अत्यंत कठिन कार्य था। मॉयसाँ ने विशुद्ध हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा दहातु तरस्विनिक के मिश्रण के वैद्युत्‌ अपघटन द्वारा यह तत्व प्राप्त किया था। तरस्विनी मुक्त अवस्था में नहीं पाया जाता। इसके यौगिक चूर्णातु तरस्विनिक (फ्लुओराइड), (चूर.त2) (CaF2) और क्रायोलाइड, (क्षा3स्फ.त6) (Na3AlF6) अनेक स्थानों पर मिलते हैं। तरस्विनी का निर्माण मॉयसाँ विधि द्वारा किया जाता है। महातु घनातु मिश्रधातु का बना यू (U) के आकार का विद्युत्‌ अपघटनी कोशिका लिया जाता है, जिसके विद्युदग्र भी इसी मिश्रधातु के बने रहते हैं। हाइड्रोफ्लोरिक अम्ल में दहातु तरस्विनिक (फ्लुओराइड) विलयित कर - 23° सें.

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फेल्सपार

फेल्सपार क्रिस्टल (18×21×8.5 cm) २००५ में फेल्सपार का वैश्विक उत्पादन फेल्सपार (Feldspar) शैलनिर्माणकारी खनिजों का सबसे महत्वपूर्ण वर्ग है। संघटन की दृष्टि से ये खनिज पोटैशियम, सोडियम, कैल्सियम, तथा बेरियम के ऐलुमिनोसिलिकेट हैं। धरती के गर्भ का लगभग ६०% भाग फेल्सपार से बना है। इस वर्ग के मुख्य खनिज निम्नलिखित हैं, जिनमें प्रथम के क्रिस्टल एकनताक्ष तथा शेष के त्रिनताक्ष होते हैं: ऐल्बाइट-ऐनॉर्थाइट संघटक एक खनिज माला का निर्माण करते हैं, जिसे प्लैजिओक्लेस (plagioclase) माला कहते हैं। इस माला के खनिज हैं: ऑलिगोक्लेस (oligoclase), ऐडेज़िन (andesine) लैब्राडोराइट (labrodorite) तथा बाइटोनाइट (bytownite)। इन खनिजों में ऐल्बाइट और ऐनॉर्थाइट संघटकों की भिन्न भिन्न मात्राएँ रहती हैं, उदाहरणार्थ लेब्रैडोराइट खनिज में ऐल्बाइट संघटक की प्रतिशत मात्रा 30 से 50 तथा ऐनॉर्थाइट संघटक की प्रतिशत मात्रा तदनुसार 70 से 50 तक हो सकती है। फेल्सपार खनिज भिन्न भिन्न रंगों में मिलते हैं। ऑर्थोक्लेज़ साधारणत: सफेद या गुलाबी होता है, माइक्रोक्लीन सफेद या हरा तथा प्लैजिओक्लेस सफेद या भूरे रंग के होते हैं तथा इनपर धारियाँ पड़ी रहती हैं। इनकी चमक काचोपम या मोतीसम होती है तथा इनमें दो दिशाओं में विदलन सतह विद्यमान रहती है। इनकी कठोरता 6 से 6.5 तथा आपेक्षिक घनत्व 2.6 से 2.8 तक है। फेल्सपार वर्ग के भिन्न भिन्न खनिजों की उपस्थिति पर ही शैलों का विभाजन किया जाता है। क्वार्ट्ज़ ऑर्थोक्लेज़, ऐल्बाइटयुक्त शैलें अम्लीय तथा ऐनॉर्थाइट युक्त शिलाएँ क्षारीय शैलें कहलाती हैं। ऑर्थोक्लेज, माइक्रोक्लीन और ऐल्बाइट के बहुत से आर्थिक उपयोग भी हैं। इनके संपूर्ण उत्पादन की दो तिहाई मात्रा काच तथा चीनी मिट्टी के उद्योगों में काम आती है। उच्च श्रेणी का पोटाश फेल्सपार विद्युत-अवरोधी पदार्थ तथा बनावटी दाँत बनाने के काम आता है। यद्यपि फेल्सपार सभी शैलों के विद्यमान रहते हैं, तथापि इनके आर्थिक महत्व के निक्षेप पैगमैटाइट शैलों तथा धारियों में मिलते हैं। .

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बादाम

बादाम (अंग्रेज़ी:ऑल्मंड, वैज्ञानिक नाम: प्रूनुस डल्शिस, प्रूनुस अमाइग्डैलस) मध्य पूर्व का एक पेड़ होता है। यही नाम इस पेड़ के बीज या उसकी गिरि को भी दिया गया है। इसकी बड़े तौर पर खेती होती है। बादाम एक तरह का मेवा होता है। संस्कृत भाषा में इसे वाताद, वातवैरी आदि, हिन्दी, मराठी, गुजराती व बांग्ला में बादाम, फारसी में बदाम शोरी, बदाम तल्ख, अंग्रेजी में आलमंड और लैटिन में एमिग्ड्रेलस कम्युनीज कहते हैं। आयुर्वेद में इसको बुद्धि और नसों के लिये गुणकारी बताया गया है। भारत में यह कश्मीर का राज्य पेड़ माना जाता है। एक आउंस (२८ ग्राम) बादाम में १६० कैलोरी होती हैं, इसीलिये यह शरीर को उर्जा प्रदान करता है।|नीरोग लेकिन बहुत अधिक खाने पर मोटापा भी दे सकता है। इसमें निहित कुल कैलोरी का ¾ भाग वसा से मिलता है, शेष कार्बोहाईड्रेट और प्रोटीन से मिलता है। इसका ग्लाईसेमिक लोड शून्य होता है। इसमें कार्बोहाईड्रेट बहुत कम होता है। इस कारण से बादाम से बना केक या बिस्कुट, आदि मधुमेह के रोगी भी ले सकते हैं। बादाम में वसा तीन प्रकार की होती है: एकल असंतृप्त वसीय अम्ल और बहु असंतृप्त वसीय अम्ल। यह लाभदायक वसा होती है, जो शरीर में कोलेस्टेरोल को कम करता है और हृदय रोगों की आशंका भी कम करता है। इसके अलावा दूसरा प्रकार है ओमेगा – ३ वसीय अम्ल। ये भी स्वास्थवर्धक होता है। इसमें संतृप्त वसीय अम्ल बहुत कम और कोलेस्टेरोल नहीं होता है। फाईबर या आहारीय रेशा, यह पाचन में सहायक होता है और हृदय रोगों से बचने में भी सहायक रहता है, तथा पेट को अधिक देर तक भर कर रखता है। इस कारण कब्ज के रोगियों के लिये लाभदायक रहता है। बादाम में सोडियम नहीं होने से उच्च रक्तचाप रोगियों के लिये भी लाभदायक रहता है। इनके अलावा पोटैशियम, विटामिन ई, लौह, मैग्नीशियम, कैल्शियम, फास्फोरस भी होते हैं।। हिन्दी मीडिया.इन। २५ सितंबर २००९। मीडिया डेस्क .

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बायोगैस

बायोगैसचालित बस (स्वीडेन) जैवगैस या बायोगैस (Biogas) वह गैस मिश्रण है जो आक्सीजन की अनुपस्थिति में जैविक सामग्री के विघटन से उत्पन्न होती है। यह सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा की तरह ही नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है। बायोगैस स्थानीय उपलब्ध कच्चे पदार्थों एवं कचरा से पैदा की जा सकती है। यह पर्यावरण-मित्र और CO2-न्यूट्रल है। .

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बियर

सीधे पीपा से 'श्लेंकेरला राउख़बियर' नामक बियर परोसी जा रही है​ बियर संसार का सबसे पुराना और सर्वाधिक व्यापक रूप से खुलकर सेवन किया जाने वाला मादक पेय है।Origin and History of Beer and Brewing: From Prehistoric Times to the Beginning of Brewing Science and Technology, John P Arnold, BeerBooks, Cleveland, Ohio, 2005, ISBN 0-9662084-1-2 सभी पेयों के बाद यह चाय और जल के बाद तीसरा सर्वाधिक लोकप्रिय पेय है।, European Beer Guide, Accessed 2006-10-17 क्योंकि बियर अधिकतर जौ के किण्वन (फ़र्मेन्टेशन​) से बनती है, इसलिए इसे भारतीय उपमहाद्वीप में जौ की शराब या आब-जौ के नाम से बुलाया जाता है। संस्कृत में जौ को 'यव' कहते हैं इसलिए बियर का एक अन्य नाम यवसुरा भी है। ध्यान दें कि जौ के अलावा बियर बनाने के लिए गेहूं, मक्का और चावल का भी व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। अधिकतर बियर को राज़क (हॉप्स) से सुवासित एवं स्वादिष्ट कर दिया जाता है, जिसमें कडवाहट बढ़ जाती है और जो प्राकृतिक संरक्षक के रूप में भी कार्य करता है, हालांकि दूसरी सुवासित जड़ी बूटियां अथवा फल भी यदाकदा मिला दिए जाते हैं।, Max Nelson, Routledge, Page 1, Pages 1, 2005, ISBN 0-415-31121-7, Accessed 2009-11-19 लिखित साक्ष्यों से यह पता चलता है कि मान्यता के आरंभ से बियर के उत्पादन एवं वितरण को कोड ऑफ़ हम्मुराबी के रूप में सन्दर्भित किया गया है जिसमें बियर और बियर पार्लर्स से संबंधित विनियमन कानून तथा "निन्कासी के स्रुति गीत", जो बियर की मेसोपोटेमिया देवी के लिए प्रार्थना एवं किंचित शिक्षित लोगों की संस्कृति के लिए नुस्खे के रूप में बियर का उपयोग किया जाता था। आज, किण्वासवन उद्योग एक वैश्विक व्यापार बन गया है, जिसमें कई प्रभावी बहुराष्ट्रीय कंपनियां और हजारों की संख्या में छोटे-छोटे किण्वन कर्म शालाओं से लेकर आंचलिक शराब की भट्टियां शामिल हैं। बियर के किण्वासन की मूल बातें राष्ट्रीय और सांस्कृतिक सीमाओं से परे भी एक साझे में हैं। आमतौर पर बियर को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है - दुनिया भर में लोकप्रिय हल्का पीला यवसुरा और आंचलिक तौर पर अलग किस्म के बियर, जिन्हें और भी कई किस्मों जैसे कि हल्का पीला बियर, घने और भूरे बियर में वर्गीकृत किया गया है। आयतन के दृष्टीकोण से बियर में शराब की मात्रा (सामान्य) 4% से 6% तक रहती है हालांकि कुछ मामलों में यह सीमा 1% से भी कम से आरंभ कर 20% से भी अधिक हो सकती है। बियर पान करने वाले राष्ट्रों के लिए बियर उनकी संस्कृति का एक अंग है और यह उनकी सामजिक परंपराओं जैसे कि बियर त्योहारों, साथ ही साथ मदिरालयी सांस्कृतिक गतिविधियों जैसे कि मदिरालय रेंगना तथा मदिरालय में खेले जाने वाले खेल जैसे कि बार बिलियर्ड्स शामिल हैं। .

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बुध (ग्रह)

बुध (Mercury), सौरमंडल के आठ ग्रहों में सबसे छोटा और सूर्य से निकटतम है। इसका परिक्रमण काल लगभग 88 दिन है। पृथ्वी से देखने पर, यह अपनी कक्षा के ईर्दगिर्द 116 दिवसो में घूमता नजर आता है जो कि ग्रहों में सबसे तेज है। गर्मी बनाए रखने के लिहाज से इसका वायुमंडल चुंकि करीब करीब नगण्य है, बुध का भूपटल सभी ग्रहों की तुलना में तापमान का सर्वाधिक उतार-चढाव महसूस करता है, जो कि 100 K (−173 °C; −280 °F) रात्रि से लेकर भूमध्य रेखीय क्षेत्रों में दिन के समय 700 K (427 °C; 800 °F) तक है। वहीं ध्रुवों के तापमान स्थायी रूप से 180 K (−93 °C; −136 °F) के नीचे है। बुध के अक्ष का झुकाव सौरमंडल के अन्य किसी भी ग्रह से सबसे कम है (एक डीग्री का करीब), परंतु कक्षीय विकेन्द्रता सर्वाधिक है। बुध ग्रह पर की तुलना में सूर्य से करीब 1.5 गुना ज्यादा दूर होता है। बुध की धरती क्रेटरों से अटी पडी है तथा बिलकुल हमारे चन्द्रमा जैसी नजर आती है, जो इंगित करता है कि यह भूवैज्ञानिक रूप से अरबो वर्षों तक मृतप्राय रहा है। बुध को पृथ्वी जैसे अन्य ग्रहों के समान मौसमों का कोई भी अनुभव नहीं है। यह जकडा हुआ है इसलिए इसके घूर्णन की राह सौरमंडल में अद्वितीय है। किसी स्थिर खडे सितारे के सापेक्ष देखने पर, यह हर दो कक्षीय प्रदक्षिणा के दरम्यान अपनी धूरी के ईर्दगिर्द ठीक तीन बार घूम लेता है। सूर्य की ओर से, किसी ऐसे फ्रेम ऑफ रिफरेंस में जो कक्षीय गति से घूमता है, देखने पर यह हरेक दो बुध वर्षों में मात्र एक बार घूमता नजर आता है। इस कारण बुध ग्रह पर कोई पर्यवेक्षक एक दिवस हरेक दो वर्षों का देखेगा। बुध की कक्षा चुंकि पृथ्वी की कक्षा (शुक्र के भी) के भीतर स्थित है, यह पृथ्वी के आसमान में सुबह में या शाम को दिखाई दे सकता है, परंतु अर्धरात्रि को नहीं। पृथ्वी के सापेक्ष अपनी कक्षा पर सफर करते हुए यह शुक्र और हमारे चन्द्रमा की तरह कलाओं के सभी रुपों का प्रदर्शन करता है। हालांकि बुध ग्रह बहुत उज्जवल वस्तु जैसा दिख सकता है जब इसे पृथ्वी से देख जाए, सूर्य से इसकी निकटता शुक्र की तुलना में इसे देखना और अधिक कठिन बनाता है। .

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ब्राहुई भाषा

ब्राहुई (Urdu: براہوی) या ब्राहवी (براوی) एक द्रविड़ भाषा है। यह भाषा पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के ब्राहुई लोगों द्वारा तथा क़तर, संयुक्त अरब अमीरात, इराक़ व ईरान के आप्रवासी समुदायों द्वारा बोली जाती है। यह अपनी निकटतम द्राविड़-भाषी जनसंख्या से १५०० किमी से भी अधिक की दूरी से विलग है। .

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ब्रेल पद्धति

ब्रेल पद्धति में देवनागरी लिपि फ्रेंच शब्द ''प्रिमिअर'' (प्रथम) का ब्रेल पद्धति में रूप ब्रेल पद्धति एक तरह की लिपि है, जिसको विश्व भर में नेत्रहीनों को पढ़ने और लिखने में छूकर व्यवहार में लाया जाता है। इस पद्धति का आविष्कार १८२१ में एक नेत्रहीन फ्रांसीसी लेखक लुई ब्रेल ने किया था। यह अलग-अलग अक्षरों, संख्याओं और विराम चिन्हों को दर्शाते हैं।। हिन्दुस्तान लाइव। १ फ़रवरी २०१०। सौरभ सुमन ब्रेल के नेत्रहीन होने पर उनके पिता ने उन्हें पेरिस के रॉयल नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड चिल्डे्रन में भर्ती करवा दिया। उस स्कूल में "वेलन्टीन होउ" द्वारा बनाई गई लिपि से पढ़ाई होती थी, पर यह लिपि अधूरी थी। इस विद्यालय में एक बार फ्रांस की सेना के एक अधिकारी कैप्टन चार्ल्स बार्बियर एक प्रशिक्षण के लिये आए और उन्होंने सैनिकों द्वारा अँधेरे में पढ़ी जाने वाली "नाइट राइटिंग" या "सोनोग्राफी" लिपि के बारे में व्याख्यान दिया। यह लिपि कागज पर अक्षरों को उभारकर बनाई जाती थी और इसमें १२ बिंदुओं को ६-६ की दो पंक्तियों को रखा जाता था, पर इसमें विराम चिह्न, संख्‍या, गणितीय चिह्न आदि नहीं होते थे। ब्रेल को वहीम से यह विचार आया। लुई ने इसी लिपि पर आधारित किन्तु १२ के स्थाण पर ६ बिंदुओं के उपयोग से ६४ अक्षर और चिह्न वाली लिपि बनायी। उसमें न केवल विराम चिह्न बल्कि गणितीय चिह्न और संगीत के नोटेशन भी लिखे जा सकते थे। यही लिपि आज सर्वमान्य है।। वेबदुनिया। अलकनंदा साने लुई ने जब यह लिपि बनाई तब वे मात्र १५ वर्ष के थे। सन् १८२४ में पूर्ण हुई यह लिपि दुनिया के लगभग सभी देशों में उपयोग में लाई जाती है। इसमें प्रत्येक आयताकार सेल में ६ बिन्दु यानि डॉट्स होते हैं, जो थोड़े-थोड़े उभरे होते हैं। यह दो पंक्तियों में बनी होती हैं। इस आकार में अलग-अलग ६४ अक्षरों को बनाया जा सकता है। सेल की बांई पंक्ति में उपर से नीचे १,२,३ बने होते हैं। इसी तरह दांईं ओर ४,५,६ बनी होती हैं। एक डॉट की औसतन ऊंचाई ०.०२ इंच होती है। इसको पढ़ने की विशेष तकनीक होती है। ब्रेल लिपि को पढ़ने के लिए अंधे बच्चों में इतना ज्ञान होना आवश्यक है कि वो अपनी उंगली को विभिन्न दिशाओं में सेल पर घुमा सकें। वैसे विश्व भर में इसको पढ़ने का कोई मानक तरीका निश्चित नहीं हैं। ब्रेल लिपि को स्लेट पर भी प्रयोग में लाया जा सकता है। इसके अलावा इसे ब्रेल टाइपराइटर पर भी प्रस्तुत किया जा सकता है। आधुनिक ब्रेल स्क्रिप्ट को ८ डॉट्स के सेल में विकसित कर दिया गया है, ताकि अंधे लोगों को अधिक से अधिक शब्दों को पढ़ने की सुविधा उपलब्ध हो सके। आठ डॉट्स वाले ब्रेल लिपि सेल में अब ६४ की बजाय २५६ अक्षर, संख्या और विराम चिह्नें के पढ़ सकने की सुविधा उपलब्ध है। ब्रेल पद्धति को वर्णमाला के वर्णों को कूट रूप में निरूपित करने वाली सबसे प्रथम प्रचलित प्रणाली कह सकते हैं, किन्तु ब्रेल लिपि नेत्रहीनों के पढ़ने और लिख सकने के उपाय का प्रथम प्रयास अध्याय नहीं है। इससे पहले भी १७वीं शताब्दी में इटली के जेसूट फ्रांसिस्को लाना ने नेत्रहीनों के लिखने-पढ़ने को लेकर काफी कोशिशें की थीं। .

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ब्रोमीन

ब्रोमीन आवर्त सारणी (periodic table) के सप्तम मुख्य समूह का तत्व है और सामान्य ताप पर केवल यही अधातु द्रव अवस्था में रहती है। इसके दो स्थिर समस्थानिक (isotopes) प्राप्य हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ 79 और 81 है। इसके अतिरिक्त इस तत्व के 11 रेडियोधर्मी समस्थानिक निर्मित हुए हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ 75, 76, 77, 78, 80, 82, 83, 84, 85, 86 और 88 हैं। फ्रांस के वैज्ञानिक बैलार्ड ने ब्रोमीन की 1826 ई. में खोज की। इसकी तीक्ष्ण गंध, के कारण ही उसने इसका नाम 'ब्रोमीन' रखा, जिसका अर्थ यूनानी भाषा में 'दुर्गंध' होता है। ब्रोमीन सक्रिय तत्व होने के कारण मुक्त अवस्था में नहीं मिलता। इसके मुख्य यौगिक सोडियम, पोटैशियम और मैग्नीशियम के ब्रोमाइड हैं। जर्मनी के शटासफुर्ट (Stassfurt) नामक स्थान में इसके यौगिक बहुत मात्रा में उपस्थित हैं। समुद्रतल भी इसका उत्तम स्रोत है। कुछ जलजीव एवं वनस्पति पदार्थो में ब्रोमीन यौगिक विद्यमान हैं। .

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बैण्ड अन्तराल

अर्धचालकों में बैंड अन्तराल धातु, अर्धचालक तथा कुचालक के बैण्ड अन्तराल; बीच की डॉटयुक्त रेखा 'फर्मी स्तर' है। हल्का बैंगनी बैण्ड - चालन बैण्ड है, लाल बैण्ड - संयोजी बैण्ड है। ठोस अवस्था भौतिकी में बैण्ड अन्तराल (band gap) इलेक्ट्रान की ऊर्जा की वह परास (रेंज) है जिसमें किसी भी इलेक्ट्रान अवस्था (electron states) का अस्तित्व नहीं होता। इसे 'ऊर्जा अन्तराल' (इनर्जी गैप) भी कहते हैं। ठोसों के इलेक्ट्रानिक बैण्ड संरचना के ग्राफ में सामान्यतः संयोजी बैण्ड (वैलेंस बैंड) की ऊपरी सीमा तथा चालन बैण्ड (कंडक्शन बैंड) की निचली सीमा के ऊर्जा के अन्तर को बैण्ड अन्तराल कहते हैं। (कुचालकों एवं अर्धचालकों में) .

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बीटा वल्गैरिस

बीटा वल्गैरिस, जिसे साधारण भाषा में चुकंदर कहते हैं, अमारैन्थ परिवार का एक पादप सदस्य है। इसे कई रूपों में, जिनमें अधिकतर लाल रंग की जड़ से प्राप्त सब्जी रूप में प्रयोगनीय उत्पाद के लिये उगाया जाता है। इसके अलावा अन्य उत्पादों में इसके पत्तों को शाक रूप में प्रयोग करते हैं, व इसे शर्करा-स्रोत रूप में भी प्रयोग किया जाता है। पशु-आहार के लिये भी कहीं-कहीं प्रयोग किया जाता है। इसकी अधिकतर प्रचलित Beta vulgaris उपजाति vulgaris में आती है। जबकि Beta vulgaris उपजाति:maritima, जो ई-बीट नाम से प्रचलित है, इसी का जंगली पूर्वज है और भूमध्य सागरीय क्षेत्र, यूरोप की अंध-महासागर तटरेखा एवं भारत में उगती है। एक अन्य जंगली प्रजाति Beta vulgaris उपजाति:adanensis, यूनान से सीरिया पर्यन्त पायी जाती है। ''Beta vulgaris'', नाम से प्रचलित चुकंदर, शाक विक्रेता के यहां चुकंदर में अच्छी मात्रा में लौह, विटामिन और खनिज होते हैं जो रक्तवर्धन और शोधन के काम में सहायक होते हैं। इसमें पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट तत्व शरीर को रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करते हैं। यह प्राकृतिक शर्करा का स्रोत होता है। इसमें सोडियम, पोटेशियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन, आयोडीन और अन्य महत्वपूर्ण विटामिन पाए जाते हैं। चुकंदर में गुर्दे और पित्ताशय को साफ करने के प्राकृतिक गुण हैं। इसमें उपस्थित पोटेशियम शरीर को प्रतिदिन पोषण प्रदान करने में मदद करता है तो वहीं क्लोरीन गुर्दों के शोधन में मदद करता है। यह पाचन संबंधी समस्याओं जैसे वमन, दस्त, चक्कर आदि में लाभदायक होता है। चुकंदर का रस पीने से रक्ताल्पता दूर हो जाती है क्योंकि इसमें लौह भी प्रचुर मात्र में पाया जाता है।। याहू जागरण चुकंदर का रस हाइपरटेंशन और हृदय संबंधी समस्याओं को दूर रखता है। विशेषतया महिलाओं के लिए बहुत लाभकारी है। चुकंदर में बेटेन नामक तत्व पाया जाता है जिसकी आंत व पेट को साफ करने के लिए शरीर को आवश्यकता होती है और चुकंदर में उपस्थित यह तत्व उसकी आपूर्ति करता है। कई शोधों के अनुसार चुकंदर कैंसर में भी लाभदायक होता है। चुकंदर और उसके पत्ते फोलेट का अच्छा स्रोत होते हैं, जो उच्च रक्तचाप और अल्जाइमर की समस्या को दूर करने में मदद करते हैं। चुकंदर की भारत में प्रचलित किस्म .

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भूतापीय प्रवणता

भूतापीय प्रवणता (Geothermal gradient) पृथ्वी में बढ़ती गहराई के साथ बढ़ते तापमान की प्रवणता (rate) को कहते हैं। भौगोलिक तख़्तों की सीमाओं से दूर और पृथ्वी की सतह के पास, हर किमी गहराई के साथ तापमान लगभग २५° सेंटीग्रेड बढ़ता है। .

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भोजन में फल व सब्जियां

भोजन में फल व सब्जियों का विशेष महत्त्व होता है। भोजन वह पदार्थ होता है, जिसे जीव अपनी जीविका चलाने हेतु ग्रहण किया करते हैं। मानव भोजन में पोषण के अलावा स्वाद भी महत्त्वपूर्ण होता है। किंतु स्वाद के साथ-साथ ही पोषण स्वास्थ्यवर्धक भी होना चाहिये। इसके लिये यह आवश्यक है कि आपके प्रतिदिन के खाने में अलग-अलग रंगों के फल एवं सब्जियां सम्मिलित हों।। हिन्दुस्तान लाइव। ७ फ़रवरी २०१० फलों और सब्जियों से विभिन्न प्रकार के विटामिन, खनिज और फाइटोकैमिकल्स प्राप्त होते हैं। इससे शरीर को रोगों से बचाव के लिए आवश्यक ऊर्जा प्राप्त होती है, साथ ही आयु के बढ़ते प्रभाव को कम करता है, युवा दिखने में मदद करता है और रोगों की रोकथाम करता है, जैसे कि उच्च रक्तचाप, हृदय रोग आदि। फलों और सब्जियों में पोटैशियम की अधिक मात्र होने से उच्च रक्तचाप और गुर्दे में पथरी होने से बचा जा सकता है। साथ ही ये हड्डियों के क्षय को भी रोकता है। सब्जियों में पाये जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट्स कई आवश्यक तत्वों, आहारीय रेशा, खनिज-लवण, विटामिनों और अन्य लाभदायक तत्वों को किसी भी गोली के माध्यम से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। फलों के तुल्य कोई भी अन्य भोज्य पदार्थ नहीं हो सकता है। इसमें कई ऐसे जादुई सूक्ष्मात्रिक तत्वों और एंटीआक्सीडेंट्स का मिश्रण पाया जाता है जिनकी पूर्ण खोज व ज्ञान अभी भी अज्ञात है। भोजन में पोटैशियम की पूर्ति फलों और सब्जियों के माध्यम से ही होती है, पोटैशियम की शारीरिक ऊर्जा उपापचय में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसकी कमी होने से मांसपेशियों में कमजोरी और कई मानसिक विषमताएं हो जाती हैं। ये कमियां हृदय की कार्यक्षमता में दिखाई देती है। टिटोफन एक आवश्यक एमिनो एसिड है जो फलों और सब्जियों में पाया जाता है। कई प्रकार के ट्रेस एलिमेन्ट्स और अकार्बनिक तत्वों की शरीर के एन्जाइम तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जिससे शरीर की प्रोटीन और हार्मोन संरचना बनी रहती है। कई प्रकार के खनिज लवण और अन्य सूक्ष्मात्रिक तत्व फलों और सब्जियों में पाये जाते हैं जिनकी मात्र मौसम, कृषि कार्य, मृदा प्रकार और किस्मों की मात्र पर निर्भर करती है। इसलिये अलग-अलग प्रकार के भोज्य पदार्थो को भोजन में शामिल अवश्य करना चाहिये व अच्छे स्वास्थ्य के लिए खाने में सभी आवश्यक तत्वों का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। जिन फलों के सेवन से स्वास्थ्य को अच्छा बनाये रखने में मदद मिलती है उनमें सेब, अमरूद, अंगूर, संतरा, केला, पपीता विशेष रूप से प्रयोग किया जा सकता है। इसके अलावा हरी सब्जियों का सेवन करना भी अत्यंत लाभदायक होता है। .

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महाबृहदांत्र

महाबृहदांत्र (मेगाकोलोंन) - बृहदान्त्र (बड़ी आँत का एक हिस्से) का असामान्य फैलाव है। अक्सर, फैलाव के साथ आंत्र के क्रमिक वृत्तों में सिकुड़नेवाले (क्रम-संकोचिक) लेहेरों का पक्षाघात भी होता है। अधिक चरम मामलों में, मल बृहदान्त्र के अंदर, कठोर पुंज की तरह जम जाता है, जिस को 'फेकलओमा' कहा जाता है (शाब्दिक रूप से, मल का ट्यूमर या गाँठ).

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मंगल ग्रह

मंगल सौरमंडल में सूर्य से चौथा ग्रह है। पृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम दिखती है, जिस वजह से इसे "लाल ग्रह" के नाम से भी जाना जाता है। सौरमंडल के ग्रह दो तरह के होते हैं - "स्थलीय ग्रह" जिनमें ज़मीन होती है और "गैसीय ग्रह" जिनमें अधिकतर गैस ही गैस है। पृथ्वी की तरह, मंगल भी एक स्थलीय धरातल वाला ग्रह है। इसका वातावरण विरल है। इसकी सतह देखने पर चंद्रमा के गर्त और पृथ्वी के ज्वालामुखियों, घाटियों, रेगिस्तान और ध्रुवीय बर्फीली चोटियों की याद दिलाती है। हमारे सौरमंडल का सबसे अधिक ऊँचा पर्वत, ओलम्पस मोन्स मंगल पर ही स्थित है। साथ ही विशालतम कैन्यन वैलेस मैरीनेरिस भी यहीं पर स्थित है। अपनी भौगोलिक विशेषताओं के अलावा, मंगल का घूर्णन काल और मौसमी चक्र पृथ्वी के समान हैं। इस गृह पर जीवन होने की संभावना है। 1965 में मेरिनर ४ के द्वारा की पहली मंगल उडान से पहले तक यह माना जाता था कि ग्रह की सतह पर तरल अवस्था में जल हो सकता है। यह हल्के और गहरे रंग के धब्बों की आवर्तिक सूचनाओं पर आधारित था विशेष तौर पर, ध्रुवीय अक्षांशों, जो लंबे होने पर समुद्र और महाद्वीपों की तरह दिखते हैं, काले striations की व्याख्या कुछ प्रेक्षकों द्वारा पानी की सिंचाई नहरों के रूप में की गयी है। इन् सीधी रेखाओं की मौजूदगी बाद में सिद्ध नहीं हो पायी और ये माना गया कि ये रेखायें मात्र प्रकाशीय भ्रम के अलावा कुछ और नहीं हैं। फिर भी, सौर मंडल के सभी ग्रहों में हमारी पृथ्वी के अलावा, मंगल ग्रह पर जीवन और पानी होने की संभावना सबसे अधिक है। वर्तमान में मंगल ग्रह की परिक्रमा तीन कार्यशील अंतरिक्ष यान मार्स ओडिसी, मार्स एक्सप्रेस और टोही मार्स ओर्बिटर है, यह सौर मंडल में पृथ्वी को छोड़कर किसी भी अन्य ग्रह से अधिक है। मंगल पर दो अन्वेषण रोवर्स (स्पिरिट और् ओप्रुच्युनिटी), लैंडर फ़ीनिक्स, के साथ ही कई निष्क्रिय रोवर्स और लैंडर हैं जो या तो असफल हो गये हैं या उनका अभियान पूरा हो गया है। इनके या इनके पूर्ववर्ती अभियानो द्वारा जुटाये गये भूवैज्ञानिक सबूत इस ओर इंगित करते हैं कि कभी मंगल ग्रह पर बडे़ पैमाने पर पानी की उपस्थिति थी साथ ही इन्होने ये संकेत भी दिये हैं कि हाल के वर्षों में छोटे गर्म पानी के फव्वारे यहाँ फूटे हैं। नासा के मार्स ग्लोबल सर्वेयर की खोजों द्वारा इस बात के प्रमाण मिले हैं कि दक्षिणी ध्रुवीय बर्फीली चोटियाँ घट रही हैं। मंगल के दो चन्द्रमा, फो़बोस और डिमोज़ हैं, जो छोटे और अनियमित आकार के हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह 5261 यूरेका के समान, क्षुद्रग्रह है जो मंगल के गुरुत्व के कारण यहाँ फंस गये हैं। मंगल को पृथ्वी से नंगी आँखों से देखा जा सकता है। इसका आभासी परिमाण -2.9, तक पहुँच सकता है और यह् चमक सिर्फ शुक्र, चन्द्रमा और सूर्य के द्वारा ही पार की जा सकती है, यद्यपि अधिकांश समय बृहस्पति, मंगल की तुलना में नंगी आँखों को अधिक उज्जवल दिखाई देता है। .

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मृदा

पृथ्वी ऊपरी सतह पर मोटे, मध्यम और बारीक कार्बनिक तथा अकार्बनिक मिश्रित कणों को मृदा (मिट्टी / soil) कहते हैं। ऊपरी सतह पर से मिट्टी हटाने पर प्राय: चट्टान (शैल) पाई जाती है। कभी कभी थोड़ी गहराई पर ही चट्टान मिल जाती है। 'मृदा विज्ञान' (Pedology) भौतिक भूगोल की एक प्रमुख शाखा है जिसमें मृदा के निर्माण, उसकी विशेषताओं एवं धरातल पर उसके वितरण का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता हैं। पृथऽवी की ऊपरी सतह के कणों को ही (छोटे या बडे) soil कहा जाता है .

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मैंगनीज़

मैंगनीज़ एक रासायनिक तत्व है जो रासायनिक नज़रिये से संक्रमण धातु समूह का सदस्य है। प्रकृति में यह शुद्ध रूप में नहीं मिलता बल्कि अन्य तत्वों के साथ बने यौगिकों में मिलता है, जिनमें अक्सर लोहे के यौगिक शामिल होते हैं। शुद्ध करने के बाद इसका रंग सलेटी होता है और अगर इसे इस्पात में मिलाया जाये तो इस्पात ज़ंग नहीं खाता है। ओक्सीजन के साथ मिलकर इसके जो आयन होते हैं वह परमैंगनेट (permanganate, MnO4−) कहलाते हैं, और जब यह पोटैशियम जैसी क्षार धातुओं या क्षारीय पार्थिव धातुओं के साथ यौगिक बनाते हैं तो वह बहुत ही ओक्सीकारक (oxidizing) होते हैं (मसलन पोटैशियम परमैंगनेट)। मनुष्यों व अन्य जीवों को थोड़ी मात्रा में मैंगनीज़ अपने आहार में ज़रूरी होता है लेकिन उस से अधिक मात्रा में यह विषैला साबित होता है। .

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मूत्रमेह

बहुमूत्ररोग एक अवस्था है जो अत्यधिक प्यास तथा अत्यधिक मात्रा में अत्यंत तरल मूत्र के उत्सर्जित होने से चरितार्थ होती है और तरल पदार्थ के सेवन में कमी होने पर भी मूत्र विसर्जन में कोई कमी नहीं आती.

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मेवा

दुकान पर प्रदर्शित मेवाएं मेवा या ख़ुश्क मेवा एक खाद्य श्रेणी है जिसमे सूखे हुए फल और फलों की गिरियां आती हैं। जहां सूखे हुए फलों, जैसे कि किशमिश, खजूर आदि को प्राकृतिक रूप से या मशीनों जैसे कि खाद्य निर्जलीकारक द्वारा सुखाकर तैयार किया जाता है, वहीं गिरियां फलों का तैलीय बीज होती है। मेवाओं को सदा से सेहत के लिए लाभदायक माना गया है।|हिन्दुस्तान लाइव अधिकांशतः लोगों की धारणा होती है कि मेवों में वसा की मात्रा अधिक होती है अतः इनका सेवन हानिकारक होता है। किन्तु इनमें वसा अधिक होने पर भी ये हानिकारक कतई नहीं होते हैं। वास्तव में मेवों में पॉली असंतृप्त वसा होती है जो बुरे कोलेस्ट्रॉल को कम करती है। हाल में हुए वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि मेवों में हृदय तथा अन्य असाध्य रोगों से सुरक्षा प्रदान करने की शक्ति होती है। मेवों को तलने या भूनने से उनके गुण नष्ट हो जाते हैं अतएव इनका प्रयोग बिना तले करना चाहिये। इसके अलावा इनमें नमक मिलाकर प्रयोग करने से इनकी कैलोरी की मात्रा बढ़ती है। यदि एक बार आप मेवों का प्रयोग कर लें तो फिर पूरे दिन अतिरिक्त कैलोरी लेने की जरूरत नहीं पड़ती। मेवों को मूड बनाने वाले खाद्य भी कहा जाता है अतः जब भी अवसाद से घिरा महसूस करें मेवों का प्रयोग कर तरोताजा हो सकते हैं। .

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रत्न

रत्न प्रकृति प्रदत्त एक मूल्यवान निधि है। मनुष्य अनादिकाल से ही रत्नों की तरफ आकर्षित रहा है, वर्तमान में भी है तथा भविष्य में भी रहेगा। रत्न सुवासित, चित्ताकर्षक, चिरस्थायीव दुर्लभ होने तथा अपने अद्भुत प्रभाव के कारण भी मनुष्य को अपने मोहपाश में बाँधे हुए हैं। रत्न आभूषणों के रूप में शरीर की शोभा तो बढ़ाते ही हैं, साथ ही अपनी दैवीय शक्ति के प्रभाव के कारण रोगों का निवारण भी करते हैं। रत्नों में चिरस्थायित्व का ऐसा गुण है कि ये ऋतुओं के परिवर्तन के कारण तथा समय-समय पर प्रकृति के भीषण उथल-पुथल से तहस-नहस होने के कारण भी प्रभावित नहीं होते। .

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रासायनिक तत्व

रासायनिक तत्वों की आवर्त सारणी रासायनिक तत्व (या केवल तत्व) ऐसे उन शुद्ध पदार्थों को कहते हैं जो केवल एक ही तरह के परमाणुओं से बने होते हैं। या जो ऐसे परमाणुओं से बने होते हैं जिनके नाभिक में समान संख्या में प्रोटॉन होते हैं। सभी रासायनिक पदार्थ तत्वों से ही मिलकर बने होते हैं। हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, आक्सीजन, तथा सिलिकॉन आदि कुछ तत्व हैं। सन २००७ तक कुल ११७ तत्व खोजे या पाये जा चुके हैं जिसमें से ९४ तत्व धरती पर प्राकृतिक रूप से विद्यमान हैं। कृत्रिम नाभिकीय अभिक्रियाओं के परिणामस्वरूप उच्च परमाणु क्रमांक वाले तत्व समय-समय पर खोजे जाते रहे हैं। .

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रासायनिक तत्वों की सूची

नीचे परमाणु क्रमांक के बढते हुए क्रम में रासायनिक तत्वों की सूची दी गयी है। अलग-अलग प्रकार के तत्वों को अलग-अलग रंगों से चिन्हित किया गया है। इस सूची में प्रत्येक तत्व का नाम, उसका रासायनिक प्रतीक, आवर्त सारणी में उसका समूह एवं पिरियड, रासायनिक श्रेणी, तथा परमाणु द्रब्यमान (सबसे स्थायी समस्थानिक का) दिये गये हैं। .

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रासायनिक प्रतीक

रासायनिक तत्वों के नामों के संक्षिप्त रूपों को रासायनिक प्रतीक कहते हैं। उदाहरण के लिये, नीचे एक रासायनिक अभिक्रिया को प्रतीकात्मक रूप में अभिव्यक्त किया गया है। इसमें उ (H) उदजन (हाइड्रोजन) के लिये एवं जा (O) जारक (आक्सीजन) के लिये प्रयुक्त हुई है। तत्वों के विशिष्ट समस्थानिक दिखाने, उनके परमाणु भार दिखाने एवं उनके आयनन की अवस्था या आक्सीकरण अवस्था आदि दिखाने के लिये रासायनिक संकेतों के साथ 'उपलिपि' (सबस्क्रिप्ट) एवं 'अधिकलिपि' (सुपरस्क्रिप्ट) भी जोड़े जाते हैं। .

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राजस्थान की मिट्टियाँ

साधारणतया जिसे हम मिट्टी कहते हैं, वह चट्टानों का चूरा होता है। ये चट्टानें मुख्यतया तीन प्रकार की होती हैं - स्तरीकृत, आग्नेय और परिवर्तित। क्षरण या नमीकरण के अभिकर्त्ता तापमान,वर्षा,हवा,हिमानी,बर्फ व नदियों द्वाया ये चट्टाने टुकड़ों में विभाजित होती हैं जो अंत में हमें के रूप में दिखाई देती हैं। .

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रक्त चाप

स्फिगमोमनोमीटर, धमनीय दाब के मापन में प्रयुक्त एक उपकरण. रक्त चाप (BP), रक्त वाहिकाओं की बाहरी झिल्ली पर रक्त संचार द्वारा डाले गए दबाव (बल प्रति इकाई क्षेत्र) है और यह प्रमुख जीवन संकेतों में से एक है। संचरित रक्त का दबाव, धमनियों और केशिकाओं के माध्यम से हृदय से दूर और नसों के माध्यम से हृदय की ओर जाते समय कम होता जाता है। जब अर्थ सीमित ना हो, तब सामान्यतः रक्त चाप शब्द से तात्पर्य '''बाहु धमनीय दाब''' है: अर्थात् बाईं या दाईं ऊपरी भुजा की मुख्य रक्त वाहिका, जो रक्त को हृदय से दूर ले जाती है। तथापि, रक्त चाप को कभी-कभी शरीर के अन्य भागों में भी मापा जा सकता है, जैसे टखनों पर.

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रक्त परीक्षण

right रक्त-परीक्षण रक्त के नमूनों पर किया जाने वाला एक प्रयोगशाला विश्लेषण है, जो कि सामान्यतः सुई या फिन्गार्प्रिक की सहायता से बांह के रग से लिया जाता है। रक्त परीक्षण का उपयोग शारीरिक और जैव रासायनिक, जैसे रोग, खनिज सामग्री, दवा प्रभावशीलता और इन्द्रिय प्रकार्य का निर्धारण करने के लिए किया जाता है। इनका उपयोग दवा परीक्षण के लिए भी किया जाता है। हालांकि अधिकांशतः रक्त परीक्षण शब्द का प्रयोग किया जाता है, लेकिन अधिकांश नियमित परीक्षण (रुधिरविज्ञान को छोड़कर) रक्त कोशिकाओं के बजाय प्लाज्मा या सीरम पर किए जाते हैं। .

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रेडियोसक्रियता

अल्फा, बीटा और गामा विकिरण की भेदन क्षमता अलग-अलग होती है। रेडियोसक्रियता (रेडियोऐक्टिविटी / radioactivity) या रेडियोधर्मिता वह प्रकिया होती है जिसमें एक अस्थिर परमाणु अपने नाभिक (न्यूक्लियस) से आयनकारी विकिरण (ionizing radiation) के रूप में ऊर्जा फेंकता है। ऐसे पदार्थ जो स्वयं ही ऐसी ऊर्जा निकालते हों विकिरणशील या रेडियोधर्मी कहलाते हैं। यह विकिरण अल्फा कण (alpha particles), बीटा कण (beta particle), गामा किरण (gamma rays) और इलेक्ट्रॉनों के रूप में होती है। ऐसे पदार्थ जिनकी परमाण्विक नाभी स्थिर नहीं होती और जो निश्चित मात्रा में आवेशित कणों को छोड़ते हैं, रेडियोधर्मी (रेडियोऐक्टिव) कहलाते हैं। .

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लार

लार (राल, थूक, ड्रूल अथवा स्लौबर नाम से भी निर्दिष्ट) मानव तथा अधिकांश जानवरों के मुंह में उत्पादित पानी-जैसा और आमतौर पर एक झागदार पदार्थ है। लार मौखिक द्रव का एक घटक है। लार उत्पादन और स्त्राव तीन में से एक लार ग्रंथियों से होता है। मानव लार 98% पानी से बना है, जबकि इसका शेष 2% अन्य यौगिक जैसे इलेक्ट्रोलाईट, बलगम, जीवाणुरोधी यौगिकों तथा एंजाइम होता है। भोजन पाचन की प्रक्रिया के प्रारंभिक भाग के रूप में, लार के एंजाइम भोजन के कुछ स्टार्च और वसा को आणविक स्तर पर तोड़ते हैं। लार दांतों के बीच फंसे खाने को भी तोड़ती है और उन्हें उस बैक्टीरिया से बचाती है जो क्षय का कारण होते हैं। इसके अलावा, लार दांतों, जीभ और मुंह के अंदर कोमल ऊतकों को चिकनाई देती है और उनकी रक्षा करती है। लार मुंह में रहने वाले वात निरपेक्ष बैक्टीरिया के द्वारा गंध-मुक्त भोजन यौगिकों से उत्पादित थायोल्स (thiols) को फंसा कर भोजन का स्वाद चखने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विभिन्न प्रजातियों ने लार के विशेष उपयोग विकसित किये हैं, जो पूर्वपाचन से परे हैं। कुछ अबाबील अपने चिपचिपे लार का उपयोग घोंसले का निर्माण करने के लिए करती हैं। चिड़िया के घोंसले के सूप के लिए छोटी हिमालयन अबाबील का घोंसला बेशकीमती है।मार्कोन, एम्.

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शैल

कलराडो स्प्रिंग्स कंपनी का गार्डेन ऑफ् गॉड्स में स्थित ''संतुलित शैल'' कोस्टा रिका के ओरोसी के निकट की चट्टानें पृथ्वी की ऊपरी परत या भू-पटल (क्रस्ट) में मिलने वाले पदार्थ चाहे वे ग्रेनाइट तथा बालुका पत्थर की भांति कठोर प्रकृति के हो या चाक या रेत की भांति कोमल; चाक एवं लाइमस्टोन की भांति प्रवेश्य हों या स्लेट की भांति अप्रवेश्य हों, चट्टान अथवा शैल (रॉक) कहे जाते हैं। इनकी रचना विभिन्न प्रकार के खनिजों का सम्मिश्रण हैं। चट्टान कई बार केवल एक ही खनिज द्वारा निर्मित होती है, किन्तु सामान्यतः यह दो या अधिक खनिजों का योग होती हैं। पृथ्वी की पपड़ी या भू-पृष्ठ का निर्माण लगभग २,००० खनिजों से हुआ है, परन्तु मुख्य रूप से केवल २० खनिज ही भू-पटल निर्माण की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। भू-पटल की संरचना में ऑक्सीजन ४६.६%, सिलिकन २७.७%, एल्यूमिनियम ८.१ %, लोहा ५%, कैल्सियम ३.६%, सोडियम २.८%, पौटैशियम २.६% तथा मैग्नेशियम २.१% भाग का निर्माण करते हैं। .

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साबुन

तरह-तरह के सजावटी साबुन साबुन उच्च अणु भार वाले कार्बनिक वसीय अम्लों के सोडियम या पोटैशियम लवण है। मृदु साबुन का सूत्र C17H35COOK एवं कठोर साबुन का सूत्र C17H35COONa है। साबुनीकरण की क्रिया में वनस्पति तेल या वसा एवं कास्टिक सोडा या कास्टिक पोटाश के जलीय घोल को गर्म करके रासायनिक प्रतिक्रिया के द्वारा साबुन का निर्माण होता तथा ग्लीसराल मुक्त होता है। साधारण तापक्रम पर साबुन नरम ठोस एवं अवाष्पशील पदार्थ है। यह कार्बनिक मिश्रण जल में घुलकर झाग उत्पन्न करता है। इसका जलीय घोल क्षारीय होता है जो लाल लिटमस को नीला कर देता है। .

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संतरा (फल)

संतरा एक फल है। संतरे को हाथ से छीलने के बाद पेशीयोँ को अलग कर के चूसकर खाया जा सकता है। सँतरे का रस निकालकर पीया जा सकता है। संतरा ठंडा, तन और मन को प्रसन्नता देने वाला है। उपवास और सभी रोगों में नारंगी दी जा सकती है। जिनकी पाचन शक्ति खराब हो, उनको नारंगी का रस तीन गुने पानी में मिलाकर देना चाहिये। एक व्यक्ति को एक बार में एक या दो नारंगी लेना पर्याप्त है। एक व्यक्ति को जितने विटामिन ‘सी’ की आवश्यकता होती है, वह एक नारंगी प्रतिदिन खाते रहने से पूरी हो जाती है। खांसी-जुकाम होने पर नारंगी के रस का एक गिलास नित्य पीते रहने से लाभ होगा। स्वाद के लिये नमक या मिश्री डालकर पी सकते है। .

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हंफ्री डेवी

हंफ्री डेवी (१७ दिसम्बर १७७८ - २९ मई १८२९) एक ब्रिटिश रासायनज्ञ थे। ने कोयला की खोनों में जलाने के सुरक्षा दीप का आविष्कार किया। इसके अलावा इन्होंने इलेक्ट्रोलिसिस, सोडियम, पोटैशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, बेरियम, बोरोन के भी आविष्कार या खोजें कीं। श्रेणी:रसायन शास्त्र.

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हेमोडायलिसिस

विकास के तहत हेमोडायलिसिस हेमोडायलिसिस की मशीन हेमोडायलिसिस एक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत गंदे पदार्थों जैसे कि क्रियेटिनिन और यूरिया के साथ-साथ मुक्त जल को रक्त से तब निकाला जाता है, जब गुर्दे, वृक्क विफलता में होते हैं। यह चिकित्सा में प्रचलित है। हेमोडायलिसिस तीन वृक्क प्रतिस्थापन उपचारों में से एक है (अन्य दो हैं वृक्क प्रत्यारोपण; उदरावरणीय अपोहन) हेमोडायलिसिस, एक आउटपेशेंट (अस्पताल के बाहर) या इनपेशेंट (अस्पताल के अन्दर) उपचार हो सकता है। नियमित हेमोडायलिसिस को एक डायलिसिस आउटपेशेंट सुविधा में आयोजित किया जाता है, यह या तो अस्पताल का इसी उद्देश्य के लिए निर्मित एक कमरा होता है या एक समर्पित स्वतन्त्र क्लिनिक होती है। हेमोडायलिसिस को घर पर कम ही किया जाता है। एक क्लीनिक में डायलिसिस उपचार को नर्सों और तकनीशियनों से निर्मित विशेष स्टाफ द्वारा शुरू और प्रबंधित किया जाता है; घर पर डायलिसिस उपचार को स्वयं आरंभ और प्रबंधित किया जा सकता है या किसी प्रशिक्षित सहायक की मदद से संयुक्त रूप से किया जा सकता है जो आमतौर पर परिवार का एक सदस्य होता है। .

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जल

जल या पानी एक आम रासायनिक पदार्थ है जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना है - H2O। यह सारे प्राणियों के जीवन का आधार है। आमतौर पर जल शब्द का प्प्रयोग द्रव अवस्था के लिए उपयोग में लाया जाता है पर यह ठोस अवस्था (बर्फ) और गैसीय अवस्था (भाप या जल वाष्प) में भी पाया जाता है। पानी जल-आत्मीय सतहों पर तरल-क्रिस्टल के रूप में भी पाया जाता है। पृथ्वी का लगभग 71% सतह को 1.460 पीटा टन (पीटी) (1021 किलोग्राम) जल से आच्छदित है जो अधिकतर महासागरों और अन्य बड़े जल निकायों का हिस्सा होता है इसके अतिरिक्त, 1.6% भूमिगत जल एक्वीफर और 0.001% जल वाष्प और बादल (इनका गठन हवा में जल के निलंबित ठोस और द्रव कणों से होता है) के रूप में पाया जाता है। खारे जल के महासागरों में पृथ्वी का कुल 97%, हिमनदों और ध्रुवीय बर्फ चोटिओं में 2.4% और अन्य स्रोतों जैसे नदियों, झीलों और तालाबों में 0.6% जल पाया जाता है। पृथ्वी पर जल की एक बहुत छोटी मात्रा, पानी की टंकिओं, जैविक निकायों, विनिर्मित उत्पादों के भीतर और खाद्य भंडार में निहित है। बर्फीली चोटिओं, हिमनद, एक्वीफर या झीलों का जल कई बार धरती पर जीवन के लिए साफ जल उपलब्ध कराता है। जल लगातार एक चक्र में घूमता रहता है जिसे जलचक्र कहते है, इसमे वाष्पीकरण या ट्रांस्पिरेशन, वर्षा और बह कर सागर में पहुॅचना शामिल है। हवा जल वाष्प को स्थल के ऊपर उसी दर से उड़ा ले जाती है जिस गति से यह बहकर सागर में पहँचता है लगभग 36 Tt (1012किलोग्राम) प्रति वर्ष। भूमि पर 107 Tt वर्षा के अलावा, वाष्पीकरण 71 Tt प्रति वर्ष का अतिरिक्त योगदान देता है। साफ और ताजा पेयजल मानवीय और अन्य जीवन के लिए आवश्यक है, लेकिन दुनिया के कई भागों में खासकर विकासशील देशों में भयंकर जलसंकट है और अनुमान है कि 2025 तक विश्व की आधी जनसंख्या इस जलसंकट से दो-चार होगी।.

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जल (अणु)

जल पृथ्वी की सतह पर सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला अणु है, जो इस ग्रह की सतह के 70% का गठन करता है। प्रकृति में यह तरल, ठोस और गैसीय अवस्था में मौजूद है। मानक दबावों और तापमान पर यह तरल और गैस अवस्थाओं के बीच गतिशील संतुलन में रहता है। घरेलू तापमान पर, यह तरल रूप में हल्की नीली छटा वाला बेरंग, बेस्वाद और बिना गंध का होता है। कई पदार्थ, जल में घुल जाते हैं और इसे सामान्यतः सार्वभौमिक विलायक के रूप में सन्दर्भित किया जाता है। इस वजह से, प्रकृति में मौजूद जल और प्रयोग में आने वाला जल शायद ही कभी शुद्ध होता है और उसके कुछ गुण, शुद्ध पदार्थ से थोड़ा भिन्न हो सकते हैं। हालांकि, ऐसे कई यौगिक हैं जो कि अनिवार्य रूप से, अगर पूरी तरह नहीं, जल में अघुलनशील है। जल ही ऐसी एकमात्र चीज़ है जो पदार्थ की सामान्य तीन अवस्थाओं में स्वाभाविक रूप से पाया जाता है - अन्य चीज़ों के लिए रासायनिक गुण देखें. पृथ्वी पर जीवन के लिए जल आवश्यक है। जल आम तौर पर, मानव शरीर के 55% से लेकर 78% तक का निर्माण करता है। .

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वर्मी वाश

वर्मीवाश (Vermiwash) एक तरल जैविक खाद है जो ताजा वर्मीकम्पोस्ट व केंचुए के शरीर को धोकर तैयार किय जाता है। वर्मीवाश के उपयोग से न केवल उत्तम गुणवत्ता युक्त उपज प्राप्त कर सकते हैं बल्कि इसे प्राकृतिक जैव कीटनाशक के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है। वर्मीवाश में घुलनशील नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश मुख्य पोषक तत्व होते हैं। इसके अलावा इसमें हार्मोन, अमीनो एसिड, विटामिन, एंजाइम, और कई उपयोगी सूक्ष्म जीव भी पाये जाते हैं। इसके प्रयोग से पच्चीस प्रतिशत तक उत्पादन बढ़ जाता है। .

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वाइन मेकिंग (वाइन बनाना)

अंगूर की वाइन. वाइन मेकिंग या विनिफिकेशन, वाइन के उत्पादन की प्रक्रिया को कहते हैं जो अंगूरों या अन्य सामग्रियों के चुनाव से शुरू होकर तैयार वाइन को बोतलबंद करने के साथ समाप्त होती है। हालांकि अधिकांश वाइन को अगूरों से बनाया जाता है, इसे अन्य फलों अथवा गैर-विषाक्त पौध सामग्रियों से भी तैयार किया जा सकता है। मीड एक प्रकार की वाइन है जिसमें पानी के बाद शहद सबसे प्रमुख घटक होता है। वाइन उत्पादन को दो सामान्य श्रेणियों में बाँटा जा सकता है: स्टिल वाइन उत्पादन (कार्बनीकरण के बिना) और स्पार्कलिंग वाइन उत्पादन (कार्बनीकरण के साथ).

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विद्युत अपघटन

डेनियल सेल से मेल खाता हा एक विद्युतरासायनिक सेल रसायन विज्ञान एवं निर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) मे विद्युत अपघटन (electrolysis) उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके द्वारा किसी रासायनिक यौगिक में विद्युत-धारा प्रवाहित करके उसके रासायनिक बन्धों को को तोड़ा जाता है। उदाहरण के लिये जल में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर जल, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन में विघटित हो जाता है जिसे जल का विद्युत अपघटन कहते हैं। विद्युत अपघटन के बहुत से उपयोग हैं। अयस्कों को प्रसंस्कारित करके उनमें निहित रासायनिक तत्व को शुद्ध करना एवं उसे अलग करना इसका सबसे महत्वपूर्ण औद्योगिक एवं व्यावसायिक उपयोग है। .

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वियतनामी लिपि

300px वियतनामी लिपि (वियतनामी भाषा: chữ Quốc ngữ; शाब्दिक अर्थ- राष्ट्र भाषा लिपि) वियतनामी भाषा को लिखने के लिये प्रयुक्त आधुनिक लिपि है। यह लैटिन लिपि पर आधारित है, और विशेष रूप से पुर्तगाली वर्णमाला पर। इसमें कुछ डाइग्राफ तथा ऐक्सेंत चिह्न जोड़कर यह लिपि बनी है जिसमें चार का प्रयोग अतिरिक्त ध्वनि के लिये किया जाता है जबकि अन्य पाँच का उपयोग प्रत्येक शब्द का 'टोन' (tone) बताने के लिये किया जाता है। वियतनामी वर्णमाला अपनी डायट्रिक्स की अधिकता (और प्रायः एक ही वर्ण पर दो डायट्रिक्स) के कारण आसानी से पहचानी जाती है। .

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आयनन ऊर्जा

किसी विलगित (आइसोलेटेड) गैसीय अवस्था वाले परमाणु के सबसे शिथिलतः बद्ध (लूजली बाउण्ड) इलेक्ट्रान को परमाणु से अलग करने के लिये आवश्यक ऊर्जा, आयनन ऊर्जा (ionization energy (IE)) या 'आयनन विभव' या 'आयनन एन्थैल्पी' कहलाती है। \ A_ + E_ \to A^+_ \ + e^-.

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आहारीय पोटैशियम

पोटाशियम एक भौतिक तत्त्व है, जो मानव शरीर के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। यह सदा ही किसी एसिड के साथ पाया जाता है। खनिज की कमी वाली मिट्टी खनिज की कमी वाला आहार उत्पन्न करती है, जिसका सेवन शरीर की कोशिकाओं से पोटाशियम लेने के लियें विवश करता है, जिससे सम्पूर्ण शरीर-रसायन विक्षुब्ध हो जाता है। पोटाशियम की कमी विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं में मिट्टी, दीवार का चूना इत्यादि या विशिष्ट प्रकार की मिट्टी भी खाने की इच्छा पैदा करती है। पोटाशियम, पेशियों, स्नायुओं की सामान्य शक्ति, हृदय की क्रिया और एन्जाइम प्रतिक्रियाओं के लियें आवश्यक है और शरीर के तरल सन्तुलन को नियमित करने में सहायक होता है। इसकी कमी से स्मरण-शक्ति का मांसपेशियों की कमजोरी, अनियमित हृदय-गति और चिड़चिड़ापन हो सकते है। इसकी अधिकता से हृदय की अनियमितायें हो सकती है। पोटाशियम कोमल ऊतकों के लिये ्वही कार्य करता है, जो कैल्शियम शरीर के कठोर ऊतकों के लिये है। पोटाशियम कोशिकाओं के भीतर और बाहर के तरलों का विद्युत-अपघटनी सन्तुलन बनाये रखने के लिये भी महत्वपूर्ण है। आयु के साथ पोटेशियम का अन्र्तग्रहण भी बढना आवश्यक होता है। पोटाशियम की कमी मानसिक सतर्कता के अभाव, पेशियों की थकावट विक्षाम करने में कठिनाई, सर्दी-जुकाम, कब्ज, मतली, त्वचा की खुजली और शरीर की मांसपेशियों में ऐठन के रूप में दिखाई होती है। सोडियम का बढा हुआ अन्र्तग्रहण शरीर की कोशिकाओं में से पोटैशियम की हानि को बढा देता है। अधिक पोटाशियम से रक्त-नलिकाओं की दीवारें कैल्शियम निक्षेप से मुक्त रखी जा सकती है। विकसित देशों में सेब के आसव का सिरका पोटेशियम का एक उत्तम स्रोत है। यह शरीर की वसाओं को जलाने में मदद करता है। गायों पर किये गये प्रयोगों में सेब के आसव के सिरके से गायों में गठिया समाप्त हो गया अरुअ दूध का उत्पादन बढ गया। .

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आहारीय खनिज

आहारीय खनिज वे खनिज होते हैं, जो आहार के संग शरीर को मिलते हैं एवं पोषण करने में सहाय्क होते हैं। शरीर के लिए पांच महत्त्वपूर्ण तत्त्व कैल्शियम, मैग्नेशियम, फ़ास्फ़ोरस, पोटाशियम और सोडियम अत्यावश्वक होते हैं। इनके अलावा अन्य महत्वपूर्ण किंतु सूक्ष्म मात्रिक तत्व हैं, क्रोमियम, तांबा, आयोडिन, लोहा, मैगनीज और जस्ता। इसके अतिरिक्त सेलेनियम भी अच्छे स्वास्थ्य बनाये रखने में एक उपयोगी है। अन्य सूक्ष्म मात्रिक तत्त्वों में सल्फ़र, निकल, कोबाल्ट, फ़्यूरीन, आंक्सीजन, कार्बन, हाइड्रोजन और नाइट्रोजन भी हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। ये सब मिलकर आहारीय खनिज कहलाते हैं। ये स्वास्थ्य के लिए उतने ही आवश्यक हैं, जितने विटामिन इत्यादि। लौह रक्त के लिए और कैल्शियम हडिडयों के लिए सम्पूरक के रूप में गर्भावस्था में महत्वपूर्ण है। आयोडिन की कमी गलगण्ड और मन्दबुद्धि, तथा मैग्नेशियम की कमी कैन्सर का कारण बन सकती है। मैगनीज और क्रोमियम का भी हृदय-रोग से संबध है। सामान्य रक्त-शर्करा के स्तरों को बनाए रखने के लिए क्रोमियम की आवश्यकता है। पाचन-तंत्र में जस्ते की कमी से गंजापन, भूख न लगना और यौन-दुष्क्रिया के परिणाम हो सकते है। एक ७० किलों भार वाले मनुष्य के लिए खनिजांश और उसके दैनिक औसत अन्नग्रहण की आवश्यकताओं का अनुमान निम्न प्रकार से है-.

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आवर्त सारणी के नमूने

नमूनों द्वारा प्रदर्शित रासायनिक तत्व, जिन्हें परमाणु अंक से क्रमबद्ध किया गया है। इन रासायनिक तत्वों के बारे में अधिक जानकारी के लिये उनके लेखों पर जायें। .

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कब्ज

कब्ज पाचन तंत्र की उस स्थिति को कहते हैं जिसमें कोई व्यक्ति (या जानवर) का मल बहुत कड़ा हो जाता है तथा मलत्याग में कठिनाई होती है। कब्ज अमाशय की स्वाभाविक परिवर्तन की वह अवस्था है, जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है, मल कड़ा हो जाता है, उसकी आवृति घट जाती है या मल निष्कासन के समय अत्यधिक बल का प्रयोग करना पड़ता है। सामान्य आवृति और अमाशय की गति व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है। (एक सप्ताह में 3 से 12 बार मल निष्कासन की प्रक्रिया सामान्य मानी जाती है। करने के लिए कई नुस्खे व उपाय यहां जोड़ें गए हैं। पेट में शुष्क मल का जमा होना ही कब्ज है। यदि कब्ज का शीघ्र ही उपचार नहीं किया जाये तो शरीर में अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं। कब्जियत का मतलब ही प्रतिदिन पेट साफ न होने से है। एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन में दो बार यानी सुबह और शाम को तो मल त्याग के लिये जाना ही चाहिये। दो बार नहीं तो कम से कम एक बार तो जाना आवश्यक है। नित्य कम से कम सुबह मल त्याग न कर पाना अस्वस्थता की निशानी है। .

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कातालोनिया

कातालोन्या (या कॅटालोनिया) स्पेन के 17 स्वायत्त समुदायों में से एक है। स्वायत्त समुदाय स्पेन का सबसे उच्च-स्तरीय प्रशासनिक विभाग होता है। कातालोन्या देश के उत्तर-पूर्व में स्थित है व उत्तर में इसकी सीमा फ्रांस और अण्डोरा से छूती है। पूर्व में इसके भूमध्य सागर, पश्चिम में आरागोन और दक्षिण में वैलेंसियाई समुदाय है। इसकी राजधानी और सबसे बड़ा नगर बार्सिलोना है, जो स्पेन का दूसरा सबसे बड़ा शहर व यूरोप के सबसे बड़े महानगरीय क्षेत्रों में से एक है। इसकी आधिकारिक भाषाओं में स्पेनी, कैटलन और ऑक्सिटन की उपभाषा आरानेस शामिल हैं। .

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कार्डियक पेसमेकर

छवि कार्डियक पेसमेकर जो एसए नोड दिखा रहा है सभी जानवरों में हृदय की मांसपेशी का संकुचन (हृदय संबंधी) रासायनिक आवेग द्वारा शुरू होता है। जिस वेग पर हृदय गति इन आवेगों की चाल को नियंत्रित करती है। कोशिकाएं जो इन आवेगों की ताल को बनाए रखती हैं उसे पेसमेकर कहते हैं और यह सीधे तौर पर हृदय गति को नियंत्रित करती हैं। एक यांत्रिक डिवाइस जिसे कृत्रिम पेसमेकर (या केवल "पेसमेकर") कहते हैं, जिसका प्रयोग मानव में और कभी कभी अन्य पशुओं में आवेगों के कृत्रिम उत्पादन के लिए किया जा सकता है जब शरीर की आंतरिक संवाहन प्रक्रिया क्षतिग्रस्त हो जाती है। .

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कार्बन नैनोट्यूब

कार्बन नैनोट्यूब का घूर्णन करता यह एनिमेशन उसकी 3 डी संरचना को दर्शाता है। कार्बन नैनोट्यूब (CNTs) एक बेलनाकार नैनोसंरचना वाले कार्बन के एलोट्रोप्स हैं। नैनोट्यूब को 28,000,000:1 तक के लंबाई से व्यास अनुपात के साथ निर्मित किया गया है, जो महत्वपूर्ण रूप से किसी भी अन्य द्रव्य से बड़ा है। इन बेलनाकार कार्बन अणुओं में नवीन गुण हैं जो उन्हें नैनोतकनीक, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्रकाशिकी और पदार्थ विज्ञान के अन्य क्षेत्रों के कई अनुप्रयोगों के साथ-साथ वास्तु क्षेत्र में संभावित रूप से उपयोगी बनाते हैं। वे असाधारण शक्ति और अद्वितीय विद्युत् गुण प्रदर्शित करते हैं और कुशल ताप परिचालक हैं। उनका अंतिम उपयोग, लेकिन, उनकी संभावित विषाक्तता और रासायनिक शोधन की प्रतिक्रिया में उनके गुण परिवर्तन को नियंत्रित करने के द्वारा सीमित हो सकता है। नैनोट्यूब फुलरीन संरचनात्मक परिवार के सदस्य हैं, जिसमें गोलाकार बकिबॉल भी शामिल हैं। एक नैनोट्यूब के छोर को बकिबॉल संरचना के एक गोलार्द्ध के साथ ढका जा सकता है। उनका नाम उनके आकार से लिया गया है, चूंकि एक नैनोट्यूब का व्यास कुछ नैनोमीटर के क्रम में है (एक मानव बाल की चौड़ाई का लगभग 1/50,000 वां हिस्सा), जबकि वे लंबाई में कई मिलीमीटर हो सकते हैं (यथा 2008).

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कुम्हड़ा

thumb कुम्हड़ा या कद्दू एक स्थलीय, द्विबीजपत्री पौधा है जिसका तना लम्बा, कमजोर व हरे रंग का होता है। तने पर छोटे-छोटे रोयें होते हैं। यह अपने आकर्षों की सहायता से बढ़ता या चढ़ता है। इसकी पत्तियां हरी, चौड़ी और वृत्ताकार होती हैं। इसका फूल पीले रंग का सवृंत, नियमित तथा अपूर्ण घंटाकार होता। नर एवं मादा पुष्प अलग-अलग होते हैं। नर एवं मादा दोनों पुष्पों में पाँच जोड़े बाह्यदल एवं पाँच जोड़े पीले रंग के दलपत्र होते हैं। नर पुष्प में तीन पुंकेसर होते हैं जिनमें दो एक जोड़ा बनाकार एवं तीसरा स्वतंत्र रहता है। मादा पुष्प में तीन संयुक्त अंडप होते हैं जिसे युक्तांडप कहते हैं। इसका फल लंबा या गोलाकार होता है। फल के अन्दर काफी बीज पाये जाते हैं। फल का वजन ४ से ८ किलोग्राम तक हो सकता है। सबसे बड़ी प्रजाति मैक्सिमा का वजन ३४ किलोग्राम से भी अधिक होता है।pumpkin.

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क्षार धातु

आवर्त सारणी के तत्त्व लिथियम (Li), सोडियम (Na), पोटैशियम (K), रुबिडियम (Rb), सीजियम (Cs) और फ्रांसियम (Fr) के समूह को क्षार धातुएँ (Alkali metals) कहते हैं। यह समूह आवर्त सारणी के एस-ब्लॉक में स्थित है। क्षार धातुएँ समान गुण वाली हैं। वे सभी मुलायम, चमकदार तथा मानक ताप तथा दाब पर उच्च अभिक्रियाशील होती हैं तथा कोमलता के कारण एक चाकू से आसानी से काटी जा सकती हैं। चूंकि ये शीघ्र अभिक्रिया करने वाले हैं, अत: वायु तथा इनके बीच की रासायनिक अभिक्रिया को रोकने हेतु इन्हें तेल आदि में संग्रहित रखना चाहिये। यह गैर मुक्त तत्व के रूप में प्राकृतिक रूप से लवण में पाए जाते हैं। सभी खोजे गये क्षार धातुएँ अपनी मात्रा के क्रम में प्रकृति में पाए जाते हैं जिनमें क्रमवार सोडियम जो सबसे आम हैं, तथा इसके बाद पोटैशियम, लिथियम, रुबिडियम, सिज़ियम तथा अंतिम फ्रांसियम, फ्रांसियम अपने उच्च रेडियोधर्मिता के कारण सबसे दुर्लभ है। .

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कृत्रिम तत्वान्तरण

कृत्रिम तत्वान्तरण का उपयोग कर कृत्रिम रूप से किसी अन्य तत्व में परिवर्तन करने में किया जाता है, यही कृत्रिम तत्वान्तरण कहलाता है।, प्रमुख आविष्कार एवं उनके आविष्कारक .

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केशिकास्तवक

एक केशिकास्तवक एक केशिका गुच्छा है जो रक्त को छानने के लिए मूत्र के रूप में पहला कदम उठाता है। यह हड्डीवाला गुर्दे की नेफ्रोन में बोमन कैप्सूल से घिरा हुआ है। एक केशिकास्तवक और उसके आसपास के बोमन कैप्सूल मिलकर एक वृक्क कणिका (गुर्दे का 'मूल' निस्यंद इकाई) का गठन करते हैं। दर, जिस पर खून सभी केशिकागुच्छीय के माध्यम से फ़िल्टर होता है और जिससे कुल गुर्दे समारोह का माप होता है, उसे गलोमेरुलर निस्पंदन दर (G F R) कहते हैं। .

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केंचुआ खाद

केंचुआ खाद ('रोटरी स्क्रीन विधि' से निर्मित) केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है। यह केंचुआ आदि कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाई जाती है। वर्मी कम्पोस्ट में बदबू नहीं होती है और मक्खी एवं मच्छर नहीं बढ़ते है तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता है। तापमान नियंत्रित रहने से जीवाणु क्रियाशील तथा सक्रिय रहते हैं। वर्मी कम्पोस्ट डेढ़ से दो माह के अंदर तैयार हो जाता है। इसमें 2.5 से 3% नाइट्रोजन, 1.5 से 2% सल्फर तथा 1.5 से 2% पोटाश पाया जाता है। केंचुआ खाद की विशेषताएँ: इस खाद में बदबू नहीं होती है, तथा मक्खी, मच्छर भी नहीं बढ़ते है जिससे वातावरण स्वस्थ रहता है। इससे सूक्ष्म पोषित तत्वों के साथ-साथ नाइट्रोजन 2 से 3 प्रतिशत, फास्फोरस 1 से 2 प्रतिशत, पोटाश 1 से 2 प्रतिशत मिलता है।.

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अधातु

अधातु (non-metals) रासायनिक वर्गीकरण में प्रयुक्त होने वाला एक शब्द है। आवर्त सारणी का प्रत्येक तत्व अपने रासायनिक और भौतिक गुणों के आधार पर धातु अथवा अधातु श्रेणी में वर्गीकृत किया जा सकता है। (कुछ तत्व जिनमें दोनों के गुण पाये जाते हैं उन्हें उपधातु (metaloid) की श्रेणी में रखा जाता है।) आवर्त सारणी में ये १४वें (XIV) से लेकर १८वें (XVIII) समूह में दाहिने-ऊपरी कोने में स्थित हैं। इसके अलावा प्रथम समूह में सबसे उपर स्थित उदजन भी अधातु है। हाइड्रोजन के अलावा जारक, प्रांगार, भूयाति, गंधक, भास्वर, हैलोजन, तथा अक्रिय गैसें अधातु मानी जाती हैं। प्रायः आवर्त सारणी के केवल 18 तत्व अधातु की श्रेणी में गिने जाते हैं जबकि धातु की श्रेणी में 80 से भी अधिक तत्व आते हैं। फिर भी पृथ्वी के गर्भ का, वायुमण्डल और जलमण्डल का अधिकांश भाग अधातुएँ ही हैं। जीवों की संरचना में भी अधातुओं का ही अधिकांशता है। .

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अभ्रक

चट्टान में उपस्थित माइका परतदार माइका अभ्रक (अंग्रेजी:Mica) एक बहुपयोगी खनिज है जो आग्नेय एवं कायांतरित चट्टानों में खण्डों के रूप में पाया जाता हैं। इसे बहुत पतली-पतली परतों में चीरा जा सकता है। यह रंगरहित या हलके पीले, हरे या काले रंग का होता है। अभ्रक एक जटिल सिलिकेट यौगिक है। इसमें पोटेशियम, सोडियम और लिथियम जैसे क्षारीय पदार्थ भी मिले रहते हैं। आग्नेय चट्टानों में प्राय: अभ्रक पाया जाता है। वायु तथा धूप आदि से प्रभावित होकर कभी-कभी सिलिकेट खनिज भी अभ्रक में बदल जाता है। .

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अयस्क

लोहे का एक अयस्क उन शैलों को अयस्क (ore) कहते हैं जिनमें वे खनिज हों जिनमें कोई धातु आदि महत्वपूर्ण तत्व हों। अयस्कों को खनन करके बाहर लाया जाता है; फिर इनका शुद्धीकरण करके महत्वपूर्ण तत्व प्राप्त किये जाते हैं। .

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अंजीर

अंजीर (अंग्रेजी नाम फ़िग, वानस्पतिक नाम: "फ़िकस कैरिका", प्रजाति फ़िकस, जाति कैरिका, कुल मोरेसी) एक वृक्ष का फल है जो पक जाने पर गिर जाता है। पके फल को लोग खाते हैं। सुखाया फल बिकता है। सूखे फल को टुकड़े-टुकड़े करके या पीसकर दूध और चीनी के साथ खाते हैं। इसका स्वादिष्ट जैम (फल के टुकड़ों का मुरब्बा) भी बनाया जाता है। सूखे फल में चीनी की मात्रा लगभग ६२ प्रतिशत तथा ताजे पके फल में २२ प्रतिशत होती है। इसमें कैल्सियम तथा विटामिन 'ए' और 'बी' काफी मात्रा में पाए जाते हैं। इसके खाने से कोष्ठबद्धता (कब्जियत) दूर होती है। अंजीर मध्यसागरीय क्षेत्र और दक्षिण पश्चिम एशियाई मूल की एक पर्णपाती झाड़ी या एक छोटे पेड़ है जो पाकिस्तान से यूनान तक पाया जाता है। इसकी लंबाई ३-१० फुट तक हो सकती है। अंजीर विश्व के सबसे पुराने फलों मे से एक है। यह फल रसीला और गूदेदार होता है। इसका रंग हल्का पीला, गहरा सुनहरा या गहरा बैंगनी हो सकता है। अंजीर अपने सौंदर्य एवं स्वाद के लिए प्रसिद्ध अंजीर एक स्वादिष्ट, स्वास्थ्यवर्धक और बहु उपयोगी फल है। यह विश्व के ऐसे पुराने फलों में से एक है, जिसकी जानकारी प्राचीन समय में भी मिस्त्र के फैरोह लोगों को थी। आजकल इसकी पैदावार ईरान, मध्य एशिया और अब भूमध्यसागरीय देशों में भी होने लगी है। प्राचीन यूनान में यह फल व्यापारिक दृष्टि से इतना महत्त्वपूर्ण था और इसके निर्यात पर पाबंदी थी। आज विश्व का सबसे पुराना अंजीर का पेड़ सिसली के एक बगीचे में है। अंजीर का वृक्ष छोटा तथा पर्णपाती (पतझड़ी) प्रकृति का होता है। तुर्किस्तान तथा उत्तरी भारत के बीच का भूखंड इसका उत्पत्ति स्थान माना जाता है। भूमध्यसागरीय तट वाले देश तथा वहाँ की जलवायु में यह अच्छा फलता-फूलता है। निस्संदेह यह आदिकाल के वृक्षों में से एक है और प्राचीन समय के लोग भी इसे खूब पसंद करते थे। ग्रीसवासियों ने इसे कैरिया (एशिया माइनर का एक प्रदेश) से प्राप्त किया; इसलिए इसकी जाति का नाम कैरिका पड़ा। रोमवासी इस वृक्ष को भविष्य की समृद्धि का चिह्न मानकर इसका आदर करते थे। स्पेन, अल्जीरिया, इटली, तुर्की, पुर्तगाल तथा ग्रीस में इसकी खेती व्यावसायिक स्तर पर की जाती है। नाशपाती के आकार के इस छोटे से फल की अपनी कोई विशेष तेज़ सुगंध नहीं पर यह रसीला और गूदेदार होता है। रंग में यह हल्का पीला, गहरा सुनहरा या गहरा बैंगनी हो सकता है। छिलके के रंग का स्वाद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता पर इसका स्वाद इस बात पर निर्भर करता है कि इसे कहाँ उगाया गया है और यह कितना पका है। इसे पूरा का पूरा छिलका बीज और गूदे सहित खाया जा सकता है। घरेलू उपचार में ऐसा माना जाता है कि स्थाई रूप से रहने वाली कब्ज़ अंजीर खाने से दूर हो जाती है। जुकाम, फेफड़े के रोगों में पाँच अंजीर पानी में उबाल कर छानकर यह पानी सुबह-शाम पीना चाहिए। दमा जिसमे कफ (बलगम) निकलता हो उसमें अंजीर खाना लाभकारी है इससे कफ बाहर आ जाता है। कच्चे अंजीरों को कमरे के तापमान पर रख कर पकाया जा सकता है लेकिन उसमें स्वाभाविक स्वाद नहीं आता। घरेलू उपचारों में अंजीर का विभिन्न प्रकार से प्रयोग किया जाता है। .

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अंग्रेजी वर्णमाला

आधुनिक अंग्रेजी वर्णमाला एक लातिन आधारित वर्णमाला है जिसमें २६ वर्ण हैं। .

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उच्च रक्तचाप

(HTN) हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप, जिसे कभी कभी धमनी उच्च रक्तचाप भी कहते हैं, एक पुरानी चिकित्सीय स्थिति है जिसमें धमनियों में रक्त का दबाव बढ़ जाता है। दबाव की इस वृद्धि के कारण, रक्त की धमनियों में रक्त का प्रवाह बनाये रखने के लिये दिल को सामान्य से अधिक काम करने की आवश्यकता पड़ती है। रक्तचाप में दो माप शामिल होती हैं, सिस्टोलिक और डायस्टोलिक, जो इस बात पर निर्भर करती है कि हृदय की मांसपेशियों में संकुचन (सिस्टोल) हो रहा है या धड़कनों के बीच में तनाव मुक्तता (डायस्टोल) हो रही है। आराम के समय पर सामान्य रक्तचाप 100-140 mmHg सिस्टोलिक (उच्चतम-रीडिंग) और 60-90 mmHg डायस्टोलिक (निचली-रीडिंग) की सीमा के भीतर होता है। उच्च रक्तचाप तब उपस्थित होता है यदि यह 90/140 mmHg पर या इसके ऊपर लगातार बना रहता है। हाइपरटेंशन प्राथमिक (मूलभूत) उच्च रक्तचाप तथा द्वितीयक उच्च रक्तचाप के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। 90-95% मामले "प्राथमिक उच्च रक्तचाप" के रूप में वर्गीकृत किये जाते हैं, जिसका अर्थ है स्पष्ट अंतर्निहित चिकित्सीय कारण के बिना उच्च रक्तचाप। अन्य परिस्थितियां जो गुर्दे, धमनियों, दिल, या अंतःस्रावी प्रणाली को प्रभावित करती हैं, शेष 5-10% मामलों (द्वितीयक उच्च रक्तचाप) का कारण होतीं हैं। हाइपरटेंशन स्ट्रोक, मायोकार्डियल रोधगलन (दिल के दौरे), दिल की विफलता, धमनियों की धमनी विस्फार (उदाहरण के लिए, महाधमनी धमनी विस्फार), परिधीय धमनी रोग जैसे जोखिमों का कारक है और पुराने किडनी रोग का एक कारण है। धमनियों से रक्त के दबाव में मध्यम दर्जे की वृद्धि भी जीवन प्रत्याशा में कमी के साथ जुड़ी हुई है। आहार और जीवन शैली में परिवर्तन रक्तचाप नियंत्रण में सुधार और संबंधित स्वास्थ्य जटिलताओं के जोखिम को कम कर सकते हैं। हालांकि, दवा के माध्यम से उपचार अक्सर उन लोगों के लिये जरूरी हो जाता है जिनमें जीवन शैली में परिवर्तन अप्रभावी या अपर्याप्त हैं। .

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उर्वरक

खाद डालते हुए; खाद एक जैविक उर्वरक है। उर्वरक (Fertilizers) कृषि में उपज बढ़ाने के लिए प्रयुक्त रसायन हैं जो पेड-पौधों की वृद्धि में सहायता के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। पानी में शीघ्र घुलने वाले ये रसायन मिट्टी में या पत्तियों पर छिड़काव करके प्रयुक्त किये जाते हैं। पौधे मिट्टी से जड़ों द्वारा एवं ऊपरी छिड़काव करने पर पत्तियों द्वारा उर्वरकों को अवशोषित कर लेते हैं। उर्वरक, पौधों के लिये आवश्यक तत्वों की तत्काल पूर्ति के साधन हैं लेकिन इनके प्रयोग के कुछ दुष्परिणाम भी हैं। ये लंबे समय तक मिट्टी में बने नहीं रहते हैं। सिंचाई के बाद जल के साथ ये रसायन जमीन के नीचे भौम जलस्तर तक पहुँचकर उसे दूषित करते हैं। मिट्टी में उपस्थित जीवाणुओं और सुक्ष्मजीवों के लिए भी ये घातक साबित होते हैं। इसलिए उर्वरक के विकल्प के रूप में जैविक खाद का प्रयोग तेजी से लोकप्रीय हो रहा है। भारत में रासायनिक खाद का सर्वाधिक प्रयोग पंजाब में होता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

K, दहातु, पौटैशियम, पोटाश, पोटाशियम, पोटासियम, पोटेशियम

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