46 संबंधों: त्रिलोक कपूर, दादासाहेब फाल्के पुरस्कार, नारायण प्रसाद 'बेताब', नारायणप्रसाद 'बेताब', परदेसी (1957 फ़िल्म), पारसी रंगमंच, पृथ्वीराज, भारतीय चलचित्र अभिनेता सूची, भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष, मुग़ल-ए-आज़म, ये रात फिर ना आयेगी (1966 फ़िल्म), रणबीर कपूर, राधेश्याम कथावाचक, राज कपूर, राजकुमार (1964 फ़िल्म), लुटेरा (1965 फ़िल्म), शशि कपूर, सिकन्दर-ए-आज़म (1965 फ़िल्म), सिकंदर (1941 फ़िल्म), संजीव कुमार, हिन्दको भाषा, हिंदी चलचित्र, १९४० दशक, हिंदी चलचित्र, १९५० दशक, हिंदी चलचित्र, १९६० दशक, हिंदी चलचित्र, १९७० दशक, हीर रांझा (१९७० फ़िल्म), जहाँ आरा (1964 फ़िल्म), वाल्मीकि (1946 फ़िल्म), गौरी (1943 फ़िल्म), गीता बाली, आलमआरा (1931 फ़िल्म), आवारा (1951 फ़िल्म), इन्कलाब (१९३५ फ़िल्म), कपूर (उपनाम), कपूर परिवार, कमल कपूर, करण कपूर, करीना कपूर, कल आज और कल (1971 फ़िल्म), कुणाल कपूर (कपूर परिवार), अफानासी निकितिन, अकबर, १९६९ में पद्म भूषण धारक, १९७२, २९ मई, 1941 की फिल्में।
त्रिलोक कपूर
त्रिलोक कपूर एक भारतीय सिनेमा के अभिनेता एवं कपूर परिवार के सदस्य थे। त्रिलोक वाशेश्वरनाथ कपूरके दुसरे पुत्र थे। वे अपने भैया पृथ्वीराज कपूर के तरह भारतीय सिनेमा में दाखिल हुए। उन्होंने अधिकतर पौराणिक फ़िल्म में काम की। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और त्रिलोक कपूर · और देखें »
दादासाहेब फाल्के पुरस्कार
दादा साहेब फाल्के पुरस्कार, भारत सरकार की ओर से दिया जाने वाला एक वार्षिक पुरस्कार है, को कि किसी व्यक्ति विशेष को भारतीय सिनेमा में उसके आजीवन योगदान के लिए दिया जाता है। इस पुरस्कार का प्रारंम्भ दादा साहेब फाल्के के जन्म शताब्दी वर्ष 1969 से हुआ। यह पुरस्कार उस वर्ष के अंत में रास्ट्रीय पुरस्कार के साथ प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार में 10 लाख रुपया और सुवणॅ कमल दिया जाता है। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और दादासाहेब फाल्के पुरस्कार · और देखें »
नारायण प्रसाद 'बेताब'
नारायणप्रसाद 'बेताब' (१८७२ - १५ सितंबर, १९४५) प्रसिद्ध नाटककार थे। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और नारायण प्रसाद 'बेताब' · और देखें »
नारायणप्रसाद 'बेताब'
नारायणप्रसाद 'बेताब' (संवत् १९२९ - १५ सितंबर १९४५ ई.) हिन्दी के प्रसिद्ध नाटककार एवं साहित्यकार थे। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और नारायणप्रसाद 'बेताब' · और देखें »
परदेसी (1957 फ़िल्म)
परदेसी 1957 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और परदेसी (1957 फ़िल्म) · और देखें »
पारसी रंगमंच
; 'पारसी रंगमंच' से 'फारसी भाषा का रंगमंच' या 'इरान का रंगमंच' का अर्थ न समझें। यह अलग है जो भारत से संबन्धित है। ---- अंग्रेजों के शासनकाल में भारत की राजधानी जब कलकत्ता (1911) थी, वहां 1854 में पहली बार अंग्रेजी नाटक मंचित हुआ। इससे प्रेरित होकर नवशिक्षित भारतीयों में अपना रंगमंच बनाने की इच्छा जगी। मंदिरों में होनेवाले नृत्य, गीत आदि आम आदमी के मनोरंजन के साधन थे। इनके अलावा रामायण तथा महाभारत जैसी धार्मिक कृतियों, पारंपरिक लोक नाटकों, हरिकथाओं, धार्मिक गीतों, जात्राओं जैसे पारंपरिक मंच प्रदर्शनों से भी लोग मनोरंजन करते थे। पारसी थियेटक से लोक रंगमंच का जन्म हुआ। एक समय में सम्पन्न पारसियों ने नाटक कंपनी खोलने की पहल की और धीरे-धीरे यह मनोरंजन का एक लोकप्रिय माध्यम बनता चला गया। इसकी जड़ें इतनी गहरी थीं कि आधुनिक सिनेमा आज भी इस प्रभाव से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाया है। पारसी रंगमंच, 19वीं शताब्दी के ब्रिटिश रंगमंच के मॉडल पर आधारित था। इसे पारसी रंगमंच इसलिए कहा जाता था क्योंकि इससे पारसी व्यापारी जुड़े थे। वे इससे अपना धन लगाते थे। उन्होंने पारसी रंगमंच की अपनी पूरी तकनीक ब्रिटेन से मंगायी। इसमें प्रोसेनियम स्टेज से लेकर बैक स्टेज की जटिल मशीनरी भी थी। लेकिन लोक रंगमंच-गीतों, नृत्यों परंपरागत लोक हास-परिहास के कुछ आवश्यक तत्वों और इनकी प्रारंभ तथा अंत की रवाइतों को पारसी रंगमंच ने अपनी कथा कहने की शैली में शामिल कर लिया था। दो श्रेष्ठ परंपराओं का यह संगम था और तमाम मंचीय प्रदर्शन पौराणिक विषयों पर होते थे जिनमें परंपरागत गीतों और प्रभावी मंचीय युक्तियों का प्रयोग अधिक होता था। कथानक गढ़े हुए और मंचीय होते थे जिसमें भ्रमवश एक व्यक्ति को दूसरा समझा जाता था, घटनाओं में संयोग की भूमिका होती थी, जोशीले भाषण होते थे, चट्टानों से लटकने का रोमांच होता था और अंतिम क्षण में उनका बचाव किया जाता था, सच्चरित्र नायक की दुष्चरित्र खलनायक पर जीत दिखायी जाती थी और इन सभी को गीत-संगीत के साथ विश्वसनीय बनाया जाता था। औपनिवेशिक काल में भारत के हिन्दी क्षेत्र के विशेष लोकप्रिय कला माध्यमों में आज के आधुनिक रंगमंच और फिल्मों की जगह आल्हा, कव्वाली मुख्य थे। लेकिन पारसी थियेटर आने के बाद दर्शकों में गाने के माध्यम से बहुत सी बातें कहने की परंपरा चल पड़ी जो दर्शकों में लोकप्रिय होती चली गयी। बाद में 1930 के दशक में आवाज रिकॉर्ड करने की सुविधा शुरू हुई और फिल्मों में भी इस विरासत को नये तरह से अपना लिया गया। वर्ष 1853 में अपनी शुरुआत के बाद से पारसी थियेटर धीरे-धीरे एक 'चलित थियेटर' का रूप लेता चला गया और लोग घूम-घूम कर नाटक देश के हर कोने में ले जाने लगे। पारसी थियेटर के अभिनय में ‘‘मेलोड्रामा’’ अहम तत्व था और संवाद अदायगी बड़े नाटकीय तरीके से होती थी। उन्होंने कहा कि आज भी फिल्मों के अभिनय में पारसी नाटक के तत्व दिखाई देते हैं। 80 वर्ष तक पारसी रंगमंच और इसके अनेक उपरूपों ने मनोरंजन के क्षेत्र में अपना सिक्का जमाए रखा। फिल्म के आगमन के बाद पारसी रंगमंच ने विधिवत् अपनी परंपरा सिनेमा को सौंप दी। पेशेवर रंगमंच के अनेक नायक, नायिकाएं सहयोगी कलाकार, गीतकार, निर्देशक, संगीतकार सिनेमा के क्षेत्र में आए। आर्देशिर ईरानी, वाजिया ब्रदर्स, पृथ्वीराज कपूर, सोहराब मोदी और अनेक महान दिग्गज रंगमंचकी प्रतिभाएं थीं जिन्होंने शुरुआती तौर में भारतीय फिल्मों को समृद्ध किया। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और पारसी रंगमंच · और देखें »
पृथ्वीराज
जुनाघर किला एक प्रसिद्ध किला है जहाँ बीकानेर के कई रजओं ने राज किया। पृथ्वीराज बीकानेरनरेश राजसिंह के भाई जो अकबर के दरबार में रहते थे। वे वीर रस के अच्छे कवि थे और मेवाड़ की स्वतंत्रता तथा राजपूतों की मर्यादा की रक्षा के लिये सतत संघर्ष करनेवाले महाराणा प्रताप के अनन्य समर्थक और प्रशंसक थे। जब आर्थिक कठिनाइयों तथा घोर विपत्तियों का सामना करते करते एक दिन राणा प्रताप अपनी छोटी लड़की को आधी रोटी के लिये बिलखते देखकर विचलित हो उठे तो उन्होंने सम्राट के पास संधि का संदेश भेज दिया। इसपर अकबर को बड़ी खुशी हुई और राणा का पत्र पृथ्वीराज को दिखलाया। पृथ्वीराज ने उसकी सचाई में विश्वास करने से इनकार कर दिया। उन्होंने अकबर की स्वीकृति से एक पत्र राणा प्रताप के पास भेजा, जो वीररस से ओतप्रोत, तथा अत्यंत उत्साहवर्धक कविता से परिपूर्ण था। उसमें उन्होंने लिखा हे राणा प्रताप ! तेरे खड़े रहते ऐसा कौन है जो मेवाड़ को घोड़ों के खुरों से रौंद सके ? हे हिंदूपति प्रताप ! हिंदुओं की लज्जा रखो। अपनी शपथ निबाहने के लिये सब तरह को विपत्ति और कष्ट सहन करो। हे दीवान ! मै अपनी मूँछ पर हाथ फेरूँ या अपनी देह को तलवार से काट डालूँ; इन दो में से एक बात लिख दीजिए।' यह पत्र पाकर महाराणा प्रताप पुन: अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ हुए और उन्होंने पृथ्वीराज को लिख भेजा 'हे वीर आप प्रसन्न होकर मूछों पर हाथ फेरिए। जब तक प्रताप जीवित है, मेरी तलवार को तुरुकों के सिर पर ही समझिए।' पृथ्वीराज की पहली रानी लालादे बड़ी ही गुणवती पत्नी थी। वह भी कविता करती थी। युवास्था में ही उसकी मृत्यु हो गई जिससे उन्हें बड़ा सदमा बैठा। उसके शव को चिता पर जलते देखकर वे चीत्कार कर उठे: 'तो राँघ्यो नहिं खावस्याँ, रे वासदे निसड्ड। मो देखत तू बालिया, साल रहंदा हड्ड।' (हे निष्ठुर अग्नि, मैं तेरा राँघा हुआ भोजन न ग्रहण करुँगा, क्योंकि तूने मेरे देखते देखते लालादे को जला डाला और उसका हाड़ ही शेष रह गया)। बाद में स्वास्थ्य खराब होता देखकर संबंधियों ने जैसलमेर के राव की पुत्री चंपादे से उनका विवाह करा दिया। यह भी कविता करती थी। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और पृथ्वीराज · और देखें »
भारतीय चलचित्र अभिनेता सूची
इस पृष्ठ पर भारतीय चलचित्र के अभिनेताओं की सूची दी गई है। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और भारतीय चलचित्र अभिनेता सूची · और देखें »
भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष
3 मई 2013 (शुक्रवार) को भारतीय सिनेमा पूरे सौ साल का हो गया। किसी भी देश में बनने वाली फिल्में वहां के सामाजिक जीवन और रीति-रिवाज का दर्पण होती हैं। भारतीय सिनेमा के सौ वर्षों के इतिहास में हम भारतीय समाज के विभिन्न चरणों का अक्स देख सकते हैं।उल्लेखनीय है कि इसी तिथि को भारत की पहली फीचर फ़िल्म “राजा हरिश्चंद्र” का रुपहले परदे पर पदार्पण हुआ था। इस फ़िल्म के निर्माता भारतीय सिनेमा के जनक दादासाहब फालके थे। एक सौ वर्षों की लम्बी यात्रा में हिन्दी सिनेमा ने न केवल बेशुमार कला प्रतिभाएं दीं बल्कि भारतीय समाज और चरित्र को गढ़ने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष · और देखें »
मुग़ल-ए-आज़म
मुग़ल-ए-आज़म हिन्दी भाषा की एक फ़िल्म है जो 1960 में प्रदर्शित हुई। यह फ़िल्म हिन्दी सिनेमा इतिहास की सफलतम फ़िल्मों में से है। इसे के॰ आसिफ़ के शानदार निर्देशन, भव्य सेटों, बेहतरीन संगीत के लिये आज भी याद किया जाता है। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और मुग़ल-ए-आज़म · और देखें »
ये रात फिर ना आयेगी (1966 फ़िल्म)
ये रात फिर ना आयेगी 1966 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और ये रात फिर ना आयेगी (1966 फ़िल्म) · और देखें »
रणबीर कपूर
रणबीर कपूर, (जन्म: सितम्बर २८ 1982), मुंबई महाराष्ट्र,भारत) एक भारतीय अभिनेता हैं जो बॉलीवुड सिनेमा में अभिनय करते है। रणबीर कपूर ने अपने फ़िल्मी जीवण की शुरुआत एक सहयोगी निर्देशक के रूप मैं निर्देशक संजय लीला भंसाली के साथ की। इसके तुरंत बाद उन्होंने सांवरिया फ़िल्म मैं बतौर अभिनेता अपना पहला अभिनय किया जिसके लिए उन्होंने फ़िल्मफेर द्वारा आयोजित सर्वश्रेष्ठ पुरुष फ़िल्म अभिनेता का खिताब जीता। इसके बाद उन्होंने वेक अप सीड, अजब प्रेम की गज़ब कहानी और रोक्केट सिंह: सेल्समन ऑफ़ द इयर, इन फ़िल्मो मैं एक ही साल मैं अभिनय करके सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त की. इन अभिनयों के लिए उन्हें फ़िल्मफेर द्वारा सर्वश्रेष्ठ अभिनेता क्रिटिक्स पुरस्कार दिया गया। इसके बाद फ़िल्म राजनीति (2010) मैं एक महत्वाकांक्षी राजनेता के रूप में उनकी भूमिका के लिए उन्होंने मान्यता प्राप्त की जो उनकी सबसे बड़ी व्यावसायिक सफलता मानी जाती है। रणबीर कपूर का जन्म 28 सितंबर 1982 जो हिंदी सिनेमा के एक अभिनेता है, उन्होंने अपने करियर की शुरुवात संजय लीला भंसाली के साथ काम करके की.2007 में उन्होंने वही डायरेक्टर के साथ अपनी पहली फ़िल्म में काम किया वो एक पंजाबी परिवार से सम्बन्ध रखते है। उन्होंने अपना शिक्षण मुंबई के महिम की बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल में पूर्ण किया। फिर उन्हें एक्टिंग सिखने के लिए नेव्योर्क के ली स्ट्रासबर्ग थिएटर एंड फ़िल्म इंस्टिट्यूट भेजा गया। अपने करियर की शुरुवात करने से पहले उन्होंने दो शोर्ट फ़िल्मे भी बनायीं। फिर उन्होंने संजय लीला भंसाली की फ़िल्म बलैक (2005) में उनकी मदद की। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और रणबीर कपूर · और देखें »
राधेश्याम कथावाचक
राधेश्याम कथावाचक (1890 - 1963) पारसी रंगमंच शैली के हिन्दी नाटककारों में एक प्रमुख नाम है। उनका जन्म 25 नवम्बर 1890 को उत्तर-प्रदेश राज्य के बरेली शहर में हुआ था। अल्फ्रेड कम्पनी से जुड़कर उन्होंने वीर अभिमन्यु, भक्त प्रहलाद, श्रीकृष्णावतार आदि अनेक नाटक लिखे। परन्तु सामान्य जनता में उनकी ख्याति राम कथा की एक विशिष्ट शैली के कारण फैली। लोक नाट्य शैली को आधार बनाकर खड़ी बोली में उन्होंने रामायण की कथा को 25 खण्डों में पद्यबद्ध किया। इस ग्रन्थ को राधेश्याम रामायण के रूप में जाना जाता है। आगे चलकर उनकी यह रामायण उत्तरप्रदेश में होने वाली रामलीलाओं का आधार ग्रन्थ बनी। 26 अगस्त 1963 को 73 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। 24 नवम्बर 2012 दैनिक ट्रिब्यून, अभिगमन तिथि: 27 दिसम्बर 2013 .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और राधेश्याम कथावाचक · और देखें »
राज कपूर
राज कपूर (१९२४-१९८८) प्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता एवं निर्देशक थे। नेहरूवादी समाजवाद से प्रेरित अपनी शुरूआती फ़िल्मों से लेकर प्रेम कहानियों को मादक अंदाज से परदे पर पेश करके उन्होंने हिंदी फ़िल्मों के लिए जो रास्ता तय किया, इस पर उनके बाद कई फ़िल्मकार चले। भारत में अपने समय के सबसे बड़े 'शोमैन' थे। सोवियत संघ और मध्य-पूर्व में राज कपूर की लोकप्रियता दंतकथा बन चुकी है। उनकी फ़िल्मों खासकर श्री ४२० में बंबई की जो मूल तस्वीर पेश की गई है, वह फ़िल्म निर्माताओं को अभी भी आकर्षित करती है। राज कपूर की फ़िल्मों की कहानियां आमतौर पर उनके जीवन से जुड़ी होती थीं और अपनी ज्यादातर फ़िल्मों के मुख्य नायक वे खुद होते थे। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और राज कपूर · और देखें »
राजकुमार (1964 फ़िल्म)
राजकुमार 1964 में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और राजकुमार (1964 फ़िल्म) · और देखें »
लुटेरा (1965 फ़िल्म)
लुटेरा 1965 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और लुटेरा (1965 फ़िल्म) · और देखें »
शशि कपूर
शशि कपूर (जन्म: 18 मार्च, 1938, निधन: 04 दिसम्बर 2017) हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता थे। शशि कपूर हिन्दी फ़िल्मों में लोकप्रिय कपूर परिवार के सदस्य थे। वर्ष २०११ में उनको भारत सरकार ने पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया। वर्ष २०१५ में उनको २०१४ के दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया। इस तरह से वे अपने पिता पृथ्वीराज कपूर और बड़े भाई राजकपूर के बाद यह सम्मान पाने वाले कपूर परिवार के तीसरे सदस्य बन गये। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और शशि कपूर · और देखें »
सिकन्दर-ए-आज़म (1965 फ़िल्म)
सिकन्दर-ए-आज़म 1965 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और सिकन्दर-ए-आज़म (1965 फ़िल्म) · और देखें »
सिकंदर (1941 फ़िल्म)
सिकंदर 1941 में बनी एक बॉलीवुड फ़िल्म है जिसके निर्देशक सोहराब मोदी हैं। इस फ़िल्म में पृथ्वीराज कपूर ने सिकंदर महान का किरदार निभाया है। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और सिकंदर (1941 फ़िल्म) · और देखें »
संजीव कुमार
संजीव कुमार (मूल नाम: हरीभाई जरीवाला; जन्म: 9 जुलाई 1938, मृत्यु: 6 नवम्बर 1985) हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता थे। उनका पूरा नाम हरीभाई जरीवाला था। वे मूल रूप से गुजराती थे। इस महान कलाकार का नाम फ़िल्मजगत की आकाशगंगा में एक ऐसे धुव्रतारे की तरह याद किया जाता है जिनके बेमिसाल अभिनय से सुसज्जित फ़िल्मों की रोशनी से बॉलीवुड हमेशा जगमगाता रहेगा। उन्होंने नया दिन नयी रात फ़िल्म में नौ रोल किये थे। कोशिश फ़िल्म में उन्होंने गूँगे बहरे व्यक्ति का शानदार अभिनय किया था। शोले फ़िल्म में ठाकुर का चरित्र उनके अभिनय से अमर हो गया। उन्हें श्रेष्ठ अभिनेता के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार के अलावा फ़िल्मफ़ेयर क सर्वश्रेष्ठ अभिनेता व सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार दिया गया। वे आजीवन कुँवारे रहे और मात्र 47 वर्ष की आयु में सन् 1984 में हृदय गति रुक जाने से बम्बई में उनकी मृत्यु हो गयी। 1960 से 1984 तक पूरे पच्चीस साल तक वे लगातार फ़िल्मों में सक्रिय रहे। उन्हें उनके शिष्ट व्यवहार व विशिष्ट अभिनय शैली के लिये फ़िल्मजगत में हमेशा याद किया जायेगा। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और संजीव कुमार · और देखें »
हिन्दको भाषा
हिन्दको (Hindko) पश्चिमोत्तरी पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत के हिन्दकोवी लोगों और अफ़ग़ानिस्तान के कुछ भागों में हिन्दकी लोगों द्वारा बोली जाने वाली एक हिंद-आर्य भाषा है। कुछ भाषावैज्ञानिकों के अनुसार यह पंजाबी की एक पश्चिमी उपभाषा है हालांकि इसपर कुछ विवाद भी रहा है। कुछ पश्तून लोग भी हिन्दको बोलते हैं। पंजाबी के मातृभाषी बहुत हद तक हिन्दको समझ-बोल सकते हैं।, Aydin Yücesan Durgunoğlu, Ludo Th Verhoeven, pp.
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और हिन्दको भाषा · और देखें »
हिंदी चलचित्र, १९४० दशक
यहाँ बीसवीं सदी के चालीस के दशक के कुछ प्रमुख हिंदी चलचित्रों की सूची है। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और हिंदी चलचित्र, १९४० दशक · और देखें »
हिंदी चलचित्र, १९५० दशक
१९५० के दशक का हिंदी चलचित्रौं का सूची .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और हिंदी चलचित्र, १९५० दशक · और देखें »
हिंदी चलचित्र, १९६० दशक
1960 दशक के हिंदी चलचित्र .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और हिंदी चलचित्र, १९६० दशक · और देखें »
हिंदी चलचित्र, १९७० दशक
1970 के दशक के सबसे सफल चलचित्र है: .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और हिंदी चलचित्र, १९७० दशक · और देखें »
हीर रांझा (१९७० फ़िल्म)
हीर रांझा चेतन आनन्द द्वारा निर्देशित १९७० में बनी हिन्दी फ़िल्म है। इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार राज कुमार और प्रिया राजवंश हैं। इस फ़िल्म की विशेषता यह है कि इसके संवाद पद्य में हैं। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और हीर रांझा (१९७० फ़िल्म) · और देखें »
जहाँ आरा (1964 फ़िल्म)
जहाँ आरा 1964 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और जहाँ आरा (1964 फ़िल्म) · और देखें »
वाल्मीकि (1946 फ़िल्म)
वाल्मीकि 1946 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और वाल्मीकि (1946 फ़िल्म) · और देखें »
गौरी (1943 फ़िल्म)
गौरी 1943 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और गौरी (1943 फ़िल्म) · और देखें »
गीता बाली
गीता बाली गीता बाली हिन्दी फिल्मों की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री हैं। गीता बाली का जन्म विभाजन के पूर्व के पंजाब में हरकिर्तन कौर के रूप में हुआ था। वह सिख थीं और उनके फ़िल्मों में आने से पहले उनका परिवार काफी गरीबी में रहता था। १९५० के दशक में वह काफी विख्यात अदाकारा थीं। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और गीता बाली · और देखें »
आलमआरा (1931 फ़िल्म)
आलमआरा (विश्व की रौशनी) 1931 में बनी हिन्दी भाषा और भारत की पहली सवाक (बोलती) फिल्म है। इस फिल्म के निर्देशक अर्देशिर ईरानी हैं। ईरानी ने सिनेमा में ध्वनि के महत्व को समझते हुये, आलमआरा को और कई समकालीन सवाक फिल्मों से पहले पूरा किया। आलम आरा का प्रथम प्रदर्शन मुंबई (तब बंबई) के मैजेस्टिक सिनेमा में 14 मार्च 1931 को हुआ था। यह पहली भारतीय सवाक इतनी लोकप्रिय हुई कि "पुलिस को भीड़ पर नियंत्रण करने के लिए सहायता बुलानी पड़ी थी"। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और आलमआरा (1931 फ़िल्म) · और देखें »
आवारा (1951 फ़िल्म)
आवारा 1951 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और आवारा (1951 फ़िल्म) · और देखें »
इन्कलाब (१९३५ फ़िल्म)
इन्कलाब १९३५ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और इन्कलाब (१९३५ फ़िल्म) · और देखें »
कपूर (उपनाम)
कपूर पंजाबी खत्री उपजाति या गोत्र है। इसका प्रयोग उपनाम के रूप में होता है। इस उपनाम वाले उल्लेखनीय लोगों की सूची जिनका इस जाति से सम्बद्ध हो भी सकता और नहीं भी, निम्नलिखित है:- .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और कपूर (उपनाम) · और देखें »
कपूर परिवार
कपूर परिवार एक प्रसिद्ध भारतीय परिवार है, इस परिवार के लोग ज्यादातर सिनेमा,अभिनेता,फ़िल्म निर्देशक और फ़िल्म निर्माता है। इस परिवार की कई पीढियों ने हिन्दी फ़िल्मों के विकास में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस परिवार ने हिन्दी सिनेमा और बॉलीवुड में बहुत सम्मान और लोकप्रियता हासिल की है। यह ख़ानदान मुख्यतः पंजाबी-हिन्दू है। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और कपूर परिवार · और देखें »
कमल कपूर
कमल कपूर (पंजाबी: ਕਮਲ ਕਪੂਰ) एक भारतीय बॉलीवुड अभिनेता थे जिन्होंने लगभग 600 हिन्दी, पंजाबी और गुजराती फ़िल्मों मे काम किया था। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और कमल कपूर · और देखें »
करण कपूर
करण कपूर (जन्म १८ जनवरी १९६२) भारतीय मूल के एक पूर्व फ़िल्म अभिनेता और मॉडल हैं। वे बॉलीवुड अभिनेता शशि कपूर और उनकी दिवंगत पत्नी, ब्रिटिश अभिनेत्री जेनिफर केंडल के बेटे हैं। उनके दादा पृथ्वीराज कपूर थे और उनके चाचा हैं: राज कपूर और शम्मी कपूर। उनके बड़े भाई कुणाल कपूर और बहन संजना कपूर ने भी कुछ फिल्मों में अभिनय किया है, लेकिन वे उनके जैसे सफल नहीं हुए। उनके नाना-नानी, जेफ़री केंडल और लौरा केंडल भी अभिनेता थे, जिन्होंने अपने थिएटर समूह "शेक्सपीराना" के साथ भारत और एशिया का दौरा किया करते थे और नाटक शेक्सपियर ऍण्ड शॉ का प्रदर्शन करते। बाद में करण ने फोटोग्राफी की ओर रुख़ किया और इस ही पेशे को अपनाने का फैसला किया, हालांकि उन्होंने एक अभिनेता के रूप में भी काम किया है। एक हालिया साक्षात्कार में करण का कहना था कि अभिनय से जुड़े एक बहुत प्रसिद्ध बॉलीवुड परिवार का हिस्सा रहने के बावजूद वे बचपन से ही हमेशा फोटोग्राफी में दिलचस्पी रखते हैं। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और करण कपूर · और देखें »
करीना कपूर
करीना कपूर (जन्म: २१ सितम्बर १९८०) बॉलीवुड फिल्मों में काम करने वाली एक भारतीय फ़िल्म अभिनेत्री हैं। कपूर फ़िल्म परिवार में जन्मी करीना ने अभिनय की शुरुआत साल २००० में रिलीज़ हुई फ़िल्म रिफ्युज़ी के साथ की। इस फ़िल्म में अपने अभिनय के लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट फीमेल डेब्यू यानि उस साल अपने अभिनय जीवन की शुरुआत करने वाली अभिनेत्रियों में से सर्वश्रेष्ठ अभिनत्री का पुरस्कार भी मिला। साल २००१ में, अपनी दूसरी फ़िल्म मुझे कुछ कहना है रिलीज़ होने के साथ ही, कपूर को अपनी पहली व्यावसायिक सफलता मिली। इसके बाद इसी साल आई करन जौहर की नाटक से भरपूर फ़िल्म कभी खुशी कभी ग़म में भी करीना नज़र आयीं। ये फ़िल्म उस साल विदेशों में सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली भारतीय फ़िल्म बन गई और साथ ही करीना के लिए ये तब तक की सबसे बड़ी व्यावसायिक सफलता थी। २००२ और २००३ में लगातार कई फिल्मों की असफलता और एक जैसी भूमिकाएं करने की वजह से करीना को समीक्षालों से काफ़ी नकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिलीं, उसके बाद करीना ने एक जैसी भूमिकाओं या टाईपकास्ट (typecast) से बचने के लिए ज्यादा मेहनत वाली और कठिन भूमिकाएं लेना शुरू कर दिया। फ़िल्म चमेली (Chameli) में देह व्यापार करने वाली एक लड़की की भूमिका ने उनके करियर की दिशा बदल दी। इस फ़िल्म में अपने अभिनय के लिए उन्हें फ़िल्मफेयर स्पेशल परफोर्मेंस अवार्ड या फ़िल्मफेयर विशिष्ट प्रदर्शन पुरस्कार (Filmfare Special Performance Award) भी मिला। इसके बाद, फ़िल्म समीक्षकों द्वारा बहुप्रशंसित फिल्मों देव और ओंकारा में अभिनय के लिए उन्हें फिल्मफेयर समारोह में आलोचकों की दृष्टि से दो सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार (Critics Awards for Best Actress) भी मिले। २००४ और २००६ के बीच अभिनय के क्षेत्र में इतनी अलग-अलग तरह की भूमिकाएं करने के बाद उन्हें बहुमुखी प्रतिभा की धनी अभिनेत्री के रूप में जाना जाने लगा। वर्ष २००७ में, कपूर ने व्यावसायिक दृष्टि से बेहद सफल रही कॉमेडी-रोमांस फ़िल्म जब वी मेट में अपने प्रदर्शन के लिए फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार जीता.बॉक्स ऑफिस पर कमाई करने के मामले में भले ही उनकी फिल्मों का प्रदर्शन काफी अलग अलग रहा हो लेकिन करीना ख़ुद को हिन्दी फ़िल्म उद्योग में आज कल की अग्रणी फ़िल्म अभिनेत्री के रूप में स्थापित करने में सफल रही हैं। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और करीना कपूर · और देखें »
कल आज और कल (1971 फ़िल्म)
कल आज और कल 1971 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और कल आज और कल (1971 फ़िल्म) · और देखें »
कुणाल कपूर (कपूर परिवार)
कुणाल कपूर ब्रिटिश व भारतीय मूल के पूर्व भारतीय अभिनेता हैं। वे शशि कपूर और स्वर्गीय जेनिफर केंडल के सबसे बड़े पुत्र हैं। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और कुणाल कपूर (कपूर परिवार) · और देखें »
अफानासी निकितिन
अफ़नासिय निकीतिन का स्मारक अफानासी निकितिन (रूसी: Афанасий Никитин) - एक रुसी व्यापारी था जिसने १५वीं शताब्दी में भारत की यात्रा की। वह लेखक के रूप में भी प्रसिद्ध है - उसकी पुस्तक "तीन समुद्र पार का सफरनामा" यह भारत के इतिहास का अहम सूत्र है। वास्को डि गामा से २५ वर्ष पूर्व भारत की धरती पर कदम रखने वाला पहला यूरोपीय अफ़नासी निकीतीन मूल रूप से रूस का रहने वाला था। वह सन् 1466 से 1475 के बीच लगभग तीन वर्ष तक भारत में रहा। निकीतीन रूस से चल कर जार्जिया, अरमेनिया, ईरान के रास्ते मुंबई पहुंचा था। सन् 1475 में वह अफ्रीका होता हुआ वापिस लौटा, लेकिन अपने घर त्वेर पहुंचने से पहले ही उसका निधन हो गया। निकीतीन द्वारा भारत-यात्रा पर लिखे संस्मरणों को १९वीं सदी में रूस के जाने-माने इतिहासविद् एन.एम.
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और अफानासी निकितिन · और देखें »
अकबर
जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर (१५ अक्तूबर, १५४२-२७ अक्तूबर, १६०५) तैमूरी वंशावली के मुगल वंश का तीसरा शासक था। अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान), शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है। अंतरण करने वाले के अनुसार बादशाह अकबर की जन्म तिथि हुमायुंनामा के अनुसार, रज्जब के चौथे दिन, ९४९ हिज़री, तदनुसार १४ अक्टूबर १५४२ को थी। सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पौत्र और नासिरुद्दीन हुमायूं एवं हमीदा बानो का पुत्र था। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से संबंधित था अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। अकबर के शासन के अंत तक १६०५ में मुगल साम्राज्य में उत्तरी और मध्य भारत के अधिकाश भाग सम्मिलित थे और उस समय के सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था। बादशाहों में अकबर ही एक ऐसा बादशाह था, जिसे हिन्दू मुस्लिम दोनों वर्गों का बराबर प्यार और सम्मान मिला। उसने हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच की दूरियां कम करने के लिए दीन-ए-इलाही नामक धर्म की स्थापना की। उसका दरबार सबके लिए हर समय खुला रहता था। उसके दरबार में मुस्लिम सरदारों की अपेक्षा हिन्दू सरदार अधिक थे। अकबर ने हिन्दुओं पर लगने वाला जज़िया ही नहीं समाप्त किया, बल्कि ऐसे अनेक कार्य किए जिनके कारण हिन्दू और मुस्लिम दोनों उसके प्रशंसक बने। अकबर मात्र तेरह वर्ष की आयु में अपने पिता नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायुं की मृत्यु उपरांत दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा था। अपने शासन काल में उसने शक्तिशाली पश्तून वंशज शेरशाह सूरी के आक्रमण बिल्कुल बंद करवा दिये थे, साथ ही पानीपत के द्वितीय युद्ध में नवघोषित हिन्दू राजा हेमू को पराजित किया था। अपने साम्राज्य के गठन करने और उत्तरी और मध्य भारत के सभी क्षेत्रों को एकछत्र अधिकार में लाने में अकबर को दो दशक लग गये थे। उसका प्रभाव लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर था और इस क्षेत्र के एक बड़े भूभाग पर सम्राट के रूप में उसने शासन किया। सम्राट के रूप में अकबर ने शक्तिशाली और बहुल हिन्दू राजपूत राजाओं से राजनयिक संबंध बनाये और उनके यहाँ विवाह भी किये। अकबर के शासन का प्रभाव देश की कला एवं संस्कृति पर भी पड़ा। उसने चित्रकारी आदि ललित कलाओं में काफ़ी रुचि दिखाई और उसके प्रासाद की भित्तियाँ सुंदर चित्रों व नमूनों से भरी पड़ी थीं। मुगल चित्रकारी का विकास करने के साथ साथ ही उसने यूरोपीय शैली का भी स्वागत किया। उसे साहित्य में भी रुचि थी और उसने अनेक संस्कृत पाण्डुलिपियों व ग्रन्थों का फारसी में तथा फारसी ग्रन्थों का संस्कृत व हिन्दी में अनुवाद भी करवाया था। अनेक फारसी संस्कृति से जुड़े चित्रों को अपने दरबार की दीवारों पर भी बनवाया। अपने आरंभिक शासन काल में अकबर की हिन्दुओं के प्रति सहिष्णुता नहीं थी, किन्तु समय के साथ-साथ उसने अपने आप को बदला और हिन्दुओं सहित अन्य धर्मों में बहुत रुचि दिखायी। उसने हिन्दू राजपूत राजकुमारियों से वैवाहिक संबंध भी बनाये। अकबर के दरबार में अनेक हिन्दू दरबारी, सैन्य अधिकारी व सामंत थे। उसने धार्मिक चर्चाओं व वाद-विवाद कार्यक्रमों की अनोखी शृंखला आरंभ की थी, जिसमें मुस्लिम आलिम लोगों की जैन, सिख, हिन्दु, चार्वाक, नास्तिक, यहूदी, पुर्तगाली एवं कैथोलिक ईसाई धर्मशस्त्रियों से चर्चाएं हुआ करती थीं। उसके मन में इन धार्मिक नेताओं के प्रति आदर भाव था, जिसपर उसकी निजि धार्मिक भावनाओं का किंचित भी प्रभाव नहीं पड़ता था। उसने आगे चलकर एक नये धर्म दीन-ए-इलाही की भी स्थापना की, जिसमें विश्व के सभी प्रधान धर्मों की नीतियों व शिक्षाओं का समावेश था। दुर्भाग्यवश ये धर्म अकबर की मृत्यु के साथ ही समाप्त होता चला गया। इतने बड़े सम्राट की मृत्यु होने पर उसकी अंत्येष्टि बिना किसी संस्कार के जल्दी ही कर दी गयी। परम्परानुसार दुर्ग में दीवार तोड़कर एक मार्ग बनवाया गया तथा उसका शव चुपचाप सिकंदरा के मकबरे में दफना दिया गया। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और अकबर · और देखें »
१९६९ में पद्म भूषण धारक
श्रेणी:पद्म भूषण श्रेणी:चित्र जोड़ें.
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और १९६९ में पद्म भूषण धारक · और देखें »
१९७२
१९७२ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और १९७२ · और देखें »
२९ मई
२९ मई ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का १४९वॉ (लीप वर्ष मे १५०वॉ) दिन है। वर्ष मे अभी और २१६ दिन बाकी है। .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और २९ मई · और देखें »
1941 की फिल्में
1941 में बनी फिल्में: .
नई!!: पृथ्वीराज कपूर और 1941 की फिल्में · और देखें »