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पुलस्त्य

सूची पुलस्त्य

पुलस्त्य या पुलस्ति (सिंहली: පුලස්ති/पुलस्ति, थाई: ท้าวจตุรพักตร์) हिन्दू पौराणिक कथाओं के एक पात्र हैं। ये कथाएँ इन्हें ब्रह्मा के दस मानस पुत्रों में से एक बताती हैं। ये इन्हें प्रथम मन्वन्तर के सात सप्तर्षियों में से एक भी बताती हैं। विष्णुपुराण के अनुसार ये ऋषि उन लोगों में से एक हैं जिनके माध्यम से कुछ पुराण आदि मानवजाति को प्राप्त हुए। इसके अनुसार इन्होंने ब्रह्मा से विष्णु पुराण सुना था और उसे पराशर ऋषि को सुनाया, और इस तरह ये पुराण मानव जाति को प्राप्त हुआ। ये आदिपुराण का मनुष्यों में प्रचार करने का श्रेय भी इन्हें देता है। हिन्दू धर्म ग्रंथ पुलस्त्य के वंश के बारे में ये कहते हैं (यह सारांश है): पुलस्त्य ऋषि के पुत्र हुए विश्रवा, कालान्तर में जिनके वंश में कुबेर एवं रावण आदि ने जन्म लिया तथा राक्षस जाति को आगे बढ़ाया। पुलस्त्य ऋषि का विवाह कर्दम ऋषि की नौ कन्याओं में से एक से हुआ जिनका नाम हविर्भू था। उनसे ऋषि के दो पुत्र उत्पन्न हुए -- महर्षि अगस्त्य एवं विश्रवा। विश्रवा की दो पत्नियाँ थीं - एक थी राक्षस सुमाली एवं राक्षसी ताड़का की पुत्री कैकसी, जिससे रावण, कुम्भकर्ण तथा विभीषण उत्पन्न हुए, तथा दूसरी थी इलाविडा- जिसके कुबेर उत्पन्न हुए। इलाविडा चक्रवर्ती सम्राट तृणबिन्दु की अलामबुशा नामक अपसरा से उत्पन्न पुत्री थी। ये वैवस्वत मनु श्राद्धदेव के वंशावली की कड़ी थे। इन्होंने अपने एक यज्ञ में केवल स्वर्ण पात्रों का ही उपयोग किया था एवं ब्रह्मा को इतना दान दिया कि वे उसे ले जा भी न पाये और काफ़ी कुछ वहीं छोड़ गये। उसी बचे हुए स्वर्ण से, जो कालान्तर में युधिष्ठिर को मिला, उन्होंने भी यज्ञ किया। तृणबिन्दु मारुत की वंशावली में आते थे। तुलसीदास ने रावण के संबंध में उल्लेख करते हुए लिखा है-: उत्तम कुल पुलस्त्य कर गाती। विश्रवा के दो पत्नियाँ थीं, बड़ी से कुबेर हुए और छोटी से रावण तथा उसके दो भाई। .

10 संबंधों: पराशर ऋषि, मनु, मन्वन्तर, मानसपुत्र, रावण, श्रीभार्गवराघवीयम्, संध्यावन्दनम्, स्वायम्भूव मनु, हविर्भू, विश्रवा

पराशर ऋषि

पराशर एक मन्त्रद्रष्टा ऋषि, शास्त्रवेत्ता, ब्रह्मज्ञानी एवं स्मृतिकार है। येे महर्षि वसिष्ठ के पौत्र, गोत्रप्रवर्तक, वैदिक सूक्तों के द्रष्टा और ग्रंथकार भी हैं। पराशर शर-शय्या पर पड़े भीष्म से मिलने गये थे। परीक्षित् के प्रायोपवेश के समय उपस्थित कई ऋषि-मुनियों में वे भी थे। वे छब्बीसवें द्वापर के व्यास थे। जनमेजय के सर्पयज्ञ में उपस्थित थे।  .

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मनु

मनु हिन्दू धर्म के अनुसार, संसार के प्रथम पुरुष थे। प्रथम मनु का नाम स्वयंभुव मनु था, जिनके संग प्रथम स्त्री थी शतरूपा। ये स्वयं भू (अर्थात होना) ब्रह्मा द्वारा प्रकट होने के कारण ही स्वयंभू कहलाये। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। मनु की सन्तान होने के कारण वे मानव या मनुष्य कहलाए। स्वायंभुव मनु को आदि भी कहा जाता है। आदि का अर्थ होता है प्रारंभ। सभी भाषाओं के मनुष्य-वाची शब्द मैन, मनुज, मानव, आदम, आदमी आदि सभी मनु शब्द से प्रभावित है। यह समस्त मानव जाति के प्रथम संदेशवाहक हैं। इन्हें प्रथम मानने के कई कारण हैं। सप्तचरुतीर्थ के पास वितस्ता नदी की शाखा देविका नदी के तट पर मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई। प्रमाण यही बताते हैं कि आदि सृष्टि की उत्पत्ति भारत के उत्तराखण्ड अर्थात् इस ब्रह्मावर्त क्षेत्र में ही हुई। मानव का हिन्दी में अर्थ है वह जिसमें मन, जड़ और प्राण से कहीं अधिक सक्रिय है। मनुष्य में मन की शक्ति है, विचार करने की शक्ति है, इसीलिए उसे मनुष्य कहते हैं। और ये सभी मनु की संतानें हैं इसीलिए मनुष्य को मानव भी कहा जाता है। ब्रह्मा के एक दिन को कल्प कहते हैं। एक कल्प में 14 मनु हो जाते हैं। एक मनु के काल को मन्वन्तर कहते हैं। वर्तमान में वैवस्वत मनु (7वें मनु) हैं। .

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मन्वन्तर

हिन्दू मापन प्रणाली में मन्वन्तर, लघुगणकीय पैमाने पर मन्वन्तर, मनु, हिन्दू धर्म अनुसार, मानवता के प्रजनक, की आयु होती है। यह समय मापन की खगोलीय अवधि है। मन्वन्तर एक संस्कॄत शब्द है, जिसका संधि-विच्छेद करने पर .

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मानसपुत्र

हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्मा ने अपने मन से १० पुत्रों को जन्म दिया जिन्हें मानसपुत्र कहा जाता है। भागवत पुरान के अनुसार ये मानसपुत्र ये हैं- अत्रि, अंगरिस, पुलस्त्य, मरीचि, पुलह, क्रतु, भृगु, वशिस्ठ, दक्ष, और नारद हैं। इन ऋषियों को प्रजापति भी कहते हैं। .

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रावण

त्रिंकोमली के कोणेश्वरम मन्दिर में रावण की प्रतिमा रावण रामायण का एक प्रमुख प्रतिचरित्र है। रावण लंका का राजा था। वह अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था, जिसके कारण उसका नाम दशानन (दश .

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श्रीभार्गवराघवीयम्

श्रीभार्गवराघवीयम् (२००२), शब्दार्थ परशुराम और राम का, जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा २००२ ई में रचित एक संस्कृत महाकाव्य है। इसकी रचना ४० संस्कृत और प्राकृत छन्दों में रचित २१२१ श्लोकों में हुई है और यह २१ सर्गों (प्रत्येक १०१ श्लोक) में विभक्त है।महाकाव्य में परब्रह्म भगवान श्रीराम के दो अवतारों परशुराम और राम की कथाएँ वर्णित हैं, जो रामायण और अन्य हिंदू ग्रंथों में उपलब्ध हैं। भार्गव शब्द परशुराम को संदर्भित करता है, क्योंकि वह भृगु ऋषि के वंश में अवतीर्ण हुए थे, जबकि राघव शब्द राम को संदर्भित करता है क्योंकि वह राजा रघु के राजवंश में अवतीर्ण हुए थे। इस रचना के लिए, कवि को संस्कृत साहित्य अकादमी पुरस्कार (२००५) तथा अनेक अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। महाकाव्य की एक प्रति, कवि की स्वयं की हिन्दी टीका के साथ, जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा ३० अक्टूबर २००२ को किया गया था। .

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संध्यावन्दनम्

जिला तंजावुर, तमिल नाडु। संध्यावंदनम् या संध्यावंदन (संस्कृत) या संध्योपासनम् (संध्योपासन) उपनयन संस्कार द्वारा धार्मिक अनुष्ठान के लिए संस्कारित हिंदू धर्म में गुरू द्वारा उसके निष्पादन हेतु दिए गए निदेशानुसार की जाने वाली महत्वपूर्ण नित्य क्रिया है। संध्यावंदन में महान वेदों से उद्धरण शामिल हैं जिनका दिन में तीन बार पाठ किया जाता है। एक सूर्योदय के दौरान (जब रात्रि से दिन निकलता है), अगला दोपहर के दौरान (जब आरोही सूर्य से अवरोही सूर्य में संक्रमण होता है) और सूर्यास्त के दौरान (जब दिन के बाद रात आती है)। प्रत्येक समय इसे एक अलग नाम से जाना जाता है - प्रातःकाल में प्रातःसंध्या, दोपहर में मध्याह्निक और सायंकाल में सायंसंध्या। शिवप्रसाद भट्टाचार्य इसे “हिंदुओं की पूजन पद्धति संबंधी संहिता” के रूप में परिभाषित करते हैं। यह शब्द संस्कृत का एक संयुक्त शब्द है जिसमें संध्या, का अर्थ है “मिलन”। जिसका दिन और रात की संधि या मिलन किंवा संगम से आशय है और वंदन का अर्थ पूजन से होता है। प्रातःकाल और सायंकाल के अलावा, दोपहर को दिन का तीसरा संगम माना जाता है। इसलिए उन सभी समयों में दैनिक ध्यान और प्रार्थना की जाती है। स्वयं शब्द संध्या का उपयोग दैनिक अनुष्ठान के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है जिसका आशय दिन के आरंभ और अस्त के समय इन अर्चनाओं का किया जाना है। वेदों की ऋचाओं तथा श्लोकों के आधार पर आवाहन आदि करके गायत्री मंत्र का २८, ३२, ५४ या १०८ बार जाप करना संध्योपासन का अभिन्न अंग है (यह संध्यावंदन कर रहे व्यक्ति पर निर्भर करता है। वह किसी भी संख्या में मंत्र का जाप कर सकता है। "यथाशक्ति गायत्री मंत्र जपमहं करिष्ये।" ऐसा संध्यावन्दन के संकल्प में जोड़कर वह यथाशक्ति मंत्र का जाप कर सकता है।)। मंत्र के अलावा संध्या अनुष्ठान में विचारों को भटकने से रोकने तथा ध्यान को केंद्रित करने के लिए कुछ अन्य शुद्धिकारक तथा प्रारंभिक अनुष्ठान हैं (संस्कृत: मंत्र)। इनमें से कुछ में ग्रहों और हिन्दू पंचांग के महीनों के देवताओं को संध्यावंदन न कर पाने तथा पिछली संध्या के बाद से किए गए पापों के प्रायश्चित स्वरूप में जल अर्पित किया जाता है। इसके अतिरिक्त एक संध्यावंदन के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अनुष्ठानों में प्रातः सूर्य की तथा सायं वरुण की मित्रदेव के रूप में पूजा की जाती है। इसके अलावा, ब्रह्मचारियों के लिए सांध्यवंदन की समाप्ति पर हवन करना और समिधादान करना आवश्यक होता है। पूजा के अन्य पहलुओं में जो कि मुख्यतः संध्यावंदना में शामिल नहीं है, जिनमें ध्यान मंत्रों का उच्चारण (संस्कृतः जप) तथा आराधक द्वारा देवी-देवताओं की पूजा शामिल है। ध्यान-योग से संबंध के बारे में मोनियर-विलियम्स लिखते हैं कि यदि इसे ध्यान की क्रिया माना जाए तो संध्या शब्द की उत्पत्ति का संबंध सन-ध्याई के साथ हो सकता है। .

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स्वायम्भूव मनु

मनु जो एक धर्मशास्त्रकार थे, धर्मग्रन्थों के बाद धर्माचरण की शिक्षा देने के लिये आदिपुरुष स्वयंभुव मनु ने स्मृति की रचना की जो मनुस्मृति के नाम से विख्यात है। ये ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से थे जिनका विवाह ब्रह्मा के दाहिने भाग से उत्पन्न शतरूपा से हुआ था। उत्तानपाद जिसके घर में ध्रुव पैदा हुआ था, इन्हीं का पुत्र था। मनु स्वायंभुव का ज्येष्ठ पुत्र प्रियव्रत पृथ्वी का प्रथम क्षत्रिय माना जाता है। इनके द्वारा प्रणीत 'स्वायंभुव शास्त्र' के अनुसार पिता की संपत्ति में पुत्र और पुत्री का समान अधिकार है। इनको धर्मशास्त्र का और प्राचेतस मनु अर्थशास्त्र का आचार्य माना जाता है। मनुस्मृति ने सनातन धर्म को आचार संहिता से जोड़ा था। .

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हविर्भू

हविर्भू कर्दम ऋषि एवं देवहूति की चतुर्थ कन्या थी। हविर्भू का विवाह पुलस्त्य ऋषि के साथ हुआ था। पुलस्त्य और हविर्भू से अगस्त्य और विश्रवा का जन्म हुआ। पुलस्त्य की दूसरी पत्नी केसिनी के गर्भ से रावण, कुम्भकर्ण तथा विभीषण उत्पन्न हुये। श्रेणी:श्रीमद्भागवत श्रेणी:हिन्दू धर्म.

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विश्रवा

विश्रवा महान ऋषि पुलस्त्य के पुत्र थे। उनकी माता का नाम हविर्भुवा था। विश्रवा स्वयं अपने पिता के समान वेद्‍‍विद और धर्मात्मा थे। रामायण का प्रख्यात पात्र रावण विश्रवा ऋषि का ही पुत्र था। श्रेणी:ऋषि मुनि.

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