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पुरानी दिल्ली

सूची पुरानी दिल्ली

जामा मस्जिद से दिल्ली का दृश्य पुरनी दिल्ली मुग़ल बादशाह शाह जहाँ द्वारा १९६३ में बसाया गया एवं सुरक्षा दीवारों से परिबद्ध शाहजहानाबाद नामक क्षेत्र है। यह क्षेत्र मुग़ल साम्राज्य के पतन तक मुग़लों की राजधानी रहा। .

17 संबंधों: चाँदनी चौक, चावड़ी बाजार, दिल्ली, दिल्ली दरवाजा, दिल्ली, दिल्ली का इतिहास, दिल्ली का काला बन्दर, दिल्ली ६, नया मन्दिर, निहारी, भारत में सबसे बड़े साम्राज्यों की सूची, भारत के ध्वजों की सूची, महावरत विद्यालंकर, मुग़ल साम्राज्य, लाल क़िला, सुनहरी मस्जिद, खूनी दरवाजा, कश्मीरी गेट, दिल्ली, अग्रसेन की बावली

चाँदनी चौक

चाँदनी चौक दिल्ली का सबसे पुराना एवं सबसे व्यस्त क्षेत्र है। यह पुरानी दिल्ली के सबसे व्यस्त बाजारों में से एक है। चांदनी चौक पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के नजदीक स्थित है। लाल किला स्मारक बाजार के भीतर स्थित है। यह १७ वीं शताब्दी में भारत के मुगल सम्राट शाहजहां द्वारा बनाया गया था, और इसका डिजाइन उनकी बेटी जहांआरा द्वारा तैयार किया गया था। चांद की रोशनी को प्रतिबिंबित करने के लिए बाजार को नहरों द्वारा विभाजित किया गया था और यह भारत के सबसे बड़े थोक बाजारों में से एक बना हुआ है। .

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चावड़ी बाजार, दिल्ली

चावड़ी बाजार, दिल्ली दिल्ली शहर का एक क्षेत्र है। यह दिल्ली मेट्रो रेल की येलो लाइन शाखा का एक स्टेशन भी है। चावड़ी बाजार में स्थित एक पीतल बर्तन की दुकान, दिसं.२००६ श्रेणी:दिल्ली मेट्रो ब्लूलाइन श्रेणी:मेट्रो स्टेशन श्रेणी:दिल्ली के क्षेत्र.

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दिल्ली दरवाजा, दिल्ली

दिल्ली दरवाजा (जिसे दिल्ली गेट भी कहा जाता है) दिल्ली शहर के दक्षिणी ओर का नगर रक्षक द्वार था। यह द्वार पुरानी दिल्ली क्षेत्र (शाहजहानाबाद) और नई दिल्ली क्षेत्र के बीच स्थित है। पुरानी दिल्ली क्षेत्र के नेताजी सुभाष मार्ग एवं नई दिल्ली क्षेत्र के बहादुर शाह ज़फ़र मार्ग के बीच यह दरयागंज के छोर पर स्थित है। इस दरवाजे का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने १६३८ में दिल्ली के सातवे शहर तथा तत्कालीन राजधानी शहर शाहजहानाबाद की घेराबन्दी करती रक्षक दीवार के प्रवेशद्वार के रूप में करवाया था। बादशाह इस द्वार का उपयोग नमाज करने हेतु जामा मस्जिद जाने के ल्लिये किया करता था। यह द्वार नगर के तत्कालीन उत्तरी द्वार कश्मीरी दरवाजे (१८३८) से मिलता जुलता था एवं इसे हाथी-पोल भी कहा जाता थाआ। यह लाल बलुआ पत्थर एवं अन्य पत्थरों से बड़े आकार का करवाया गया था। द्वार के निकट ही दो बड़े बड़े हाथी की मूर्तियां भी बनी थीं। इसे पहले हाथी पोल भी कहा जाता था। इस दरवाजे से निकलती सड़क उत्तरी ओर मुख्य शहर से गुजरती हुई उत्तरी द्वार, कश्मीरी दरवाजे तक जाती थी, एवं दरियागंज से निकलती है। वहाम की दीवार का कुछ भाग दिल्ली जंक्शन रेलवे स्टेशन के निर्माण हेतु ध्वस्त कर दिया गया था। वर्तमान में इस इमारत को ऐतिहासिक स्मारक रूप में संरक्षित किया गया है, तथा इसका रखरखाव भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण विभाग द्वारा किया जा रहा है। .

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दिल्ली का इतिहास

दिल्ली का लौह स्तम्भ दिल्ली को भारतीय महाकाव्य महाभारत में प्राचीन इन्द्रप्रस्थ, की राजधानी के रूप में जाना जाता है। उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ तक दिल्ली में इंद्रप्रस्थ नामक गाँव हुआ करता था। अभी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की देखरेख में कराये गये खुदाई में जो भित्तिचित्र मिले हैं उनसे इसकी आयु ईसा से एक हजार वर्ष पूर्व का लगाया जा रहा है, जिसे महाभारत के समय से जोड़ा जाता है, लेकिन उस समय के जनसंख्या के कोई प्रमाण अभी नहीं मिले हैं। कुछ इतिहासकार इन्द्रप्रस्थ को पुराने दुर्ग के आस-पास मानते हैं। पुरातात्विक रूप से जो पहले प्रमाण मिलते हैं उन्हें मौर्य-काल (ईसा पूर्व 300) से जोड़ा जाता है। तब से निरन्तर यहाँ जनसंख्या के होने के प्रमाण उपलब्ध हैं। 1966 में प्राप्त अशोक का एक शिलालेख(273 - 300 ई पू) दिल्ली में श्रीनिवासपुरी में पाया गया। यह शिलालेख जो प्रसिद्ध लौह-स्तम्भ के रूप में जाना जाता है अब क़ुतुब-मीनार में देखा जा सकता है। इस स्तंभ को अनुमानत: गुप्तकाल (सन ४००-६००) में बनाया गया था और बाद में दसवीं सदी में दिल्ली लाया गया।लौह स्तम्भ यद्यपि मूलतः कुतुब परिसर का नहीं है, ऐसा प्रतीत होता है कि यह किसी अन्य स्थान से यहां लाया गया था, संभवतः तोमर राजा, अनंगपाल द्वितीय (1051-1081) इसे मध्य भारत के उदयगिरि नामक स्थान से लाए थे। इतिहास कहता है कि 10वीं-11वीं शताब्दी के बीच लोह स्तंभ को दिल्ली में स्थापित किया गया था और उस समय दिल्ली में तोमर राजा अनंगपाल द्वितीय (1051-1081) था। वही लोह स्तंभ को दिल्ली में लाया था जिसका उल्लेख पृथ्वीराज रासो में भी किया है। जबकि फिरोजशाह तुगलक 13 शताब्दी मे दिल्ली का राजा था वो केसे 10 शताब्दी मे इसे ला सकता है। चंदरबरदाई की रचना पृथवीराज रासो में तोमर वंश राजा अनंगपाल को दिल्ली का संस्थापक बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि उसने ही 'लाल-कोट' का निर्माण करवाया था और लौह-स्तंभ दिल्ली लाया था। दिल्ली में तोमर वंश का शासनकाल 900-1200 इसवी तक माना जाता है। 'दिल्ली' या 'दिल्लिका' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम उदयपुर में प्राप्त शिलालेखों पर पाया गया, जिसका समय 1170 ईसवी निर्धारित किया गया। शायद 1316 ईसवी तक यह हरियाणा की राजधानी बन चुकी थी। 1206 इसवी के बाद दिल्ली सल्तनत की राजधानी बनी जिसमें खिलज़ी वंश, तुग़लक़ वंश, सैयद वंश और लोधी वंश समते कुछ अन्य वंशों ने शासन किया। .

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दिल्ली का काला बन्दर

दिल्ली का काला बन्दर एक बहुत ही असाधारण उत्पाती प्राणी था जो की सन् 2001 के मध्य में दिल्ली और इसके आस पास के राज्य में रात्रि के समय प्रकट होता था  .

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दिल्ली ६

दिल्ली 6 -(दिल्ली 6) राकेश ओमप्रकाश मेहरा द्वारा निर्मित एक हिंदी फ़िल्म है; जिसमें अभिषेक बच्चन, सोनम कपूर, ओम पूरी, वहीदा रहमान, ऋषि कपूर, अतुल कुलकर्णी, दीपक दोब्रियल और दिव्या दत्ता ने अभिनय किया है। यह फ़िल्म पुरानी दिल्ली में चांदनी चौक क्षेत्र में मेहरा के बढ़ते हुए वर्षों पर आधारित है। यह अक्स और रंग दे बसंती के बाद मेहरा की तीसरी फ़िल्म है। यह फ़िल्म 20 फ़रवरी 2009 को रिलीज़ हुई, इसने बहुत अच्छा बॉक्स ऑफिस कलेक्शन किया, लेकिन आलोचकों की ओर से इसे मिश्रित समीक्षा ही प्राप्त हुई। .

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नया मन्दिर

नया मन्दिर भारत में पुरानी दिल्ली में एक ऐतिहासिक जैन मन्दिर है, जो औरंगजेब द्वारा "धरमपुर" इलाके में जैन समुदाय को आवंटित किया गया था। .

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निहारी

निहारी (نهاری) पाकिस्तान, भारत, But if there is one dish that migrated from Delhi to Karachi and became a roaring success then it is none other than nihari, a curry with lots of red meat, a sprinkling of bheja (brain) and garnished with thin slices of ginger.

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भारत में सबसे बड़े साम्राज्यों की सूची

भारत में सबसे बडे साम्राज्यों की सूची इसमें 10 लाख से अधिक वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र पर राज करने वाले भारत के सबसे बड़े साम्राज्यों की ऐतिहासिक सूची है। (भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी पूंजी के साथ है, ब्रिटिश राज और सिकंदर महान साम्राज्य की तरह विदेशी शासित साम्राज्य को छोड़कर) एक साम्राज्य बाहरी प्रदेशों के ऊपर एक राज्य की संप्रभुता का विस्तार शामिल है। सम्राट अशोक का मौर्य साम्राज्य भारत का सबसे बडा साम्राज्य और सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था। .

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भारत के ध्वजों की सूची

यह सूची भारत में प्रयोग हुए सभी ध्वजों की है.

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महावरत विद्यालंकर

महावरत विद्यालंकर का भारतीय वामपंथी राष्ट्रवादी नेता और अनुवादक थे। वे सुभाष चन्द्र बोस के निकट सलाहकार और लाल किले में क़ैद रहे थे। .

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मुग़ल साम्राज्य

मुग़ल साम्राज्य (फ़ारसी:, मुग़ल सलतनत-ए-हिंद; तुर्की: बाबर इम्परातोरलुग़ु), एक इस्लामी तुर्की-मंगोल साम्राज्य था जो 1526 में शुरू हुआ, जिसने 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय उपमहाद्वीप में शासन किया और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ। मुग़ल सम्राट तुर्क-मंगोल पीढ़ी के तैमूरवंशी थे और इन्होंने अति परिष्कृत मिश्रित हिन्द-फारसी संस्कृति को विकसित किया। 1700 के आसपास, अपनी शक्ति की ऊँचाई पर, इसने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग को नियंत्रित किया - इसका विस्तार पूर्व में वर्तमान बंगलादेश से पश्चिम में बलूचिस्तान तक और उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कावेरी घाटी तक था। उस समय 40 लाख किमी² (15 लाख मील²) के क्षेत्र पर फैले इस साम्राज्य की जनसंख्या का अनुमान 11 और 13 करोड़ के बीच लगाया गया था। 1725 के बाद इसकी शक्ति में तेज़ी से गिरावट आई। उत्तराधिकार के कलह, कृषि संकट की वजह से स्थानीय विद्रोह, धार्मिक असहिष्णुता का उत्कर्ष और ब्रिटिश उपनिवेशवाद से कमजोर हुए साम्राज्य का अंतिम सम्राट बहादुर ज़फ़र शाह था, जिसका शासन दिल्ली शहर तक सीमित रह गया था। अंग्रेजों ने उसे कैद में रखा और 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश द्वारा म्यानमार निर्वासित कर दिया। 1556 में, जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर, जो महान अकबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, के पदग्रहण के साथ इस साम्राज्य का उत्कृष्ट काल शुरू हुआ और सम्राट औरंगज़ेब के निधन के साथ समाप्त हुआ, हालाँकि यह साम्राज्य और 150 साल तक चला। इस समय के दौरान, विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने में एक उच्च केंद्रीकृत प्रशासन निर्मित किया गया था। मुग़लों के सभी महत्वपूर्ण स्मारक, उनके ज्यादातर दृश्य विरासत, इस अवधि के हैं। .

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लाल क़िला

लाल किला या लाल क़िला, दिल्ली के ऐतिहासिक, क़िलेबंद, पुरानी दिल्ली के इलाके में स्थित, लाल रेत-पत्थर से निर्मित है। इस किले को पाँचवे मुग़ल बाद्शाह शाहजहाँ ने बनवाया था। इस के किले को "लाल किला", इसकी दीवारों के लाल रंग के कारण कहा जाता है। इस ऐतिहासिक किले को वर्ष २००७ में युनेस्को द्वारा एक विश्व धरोहर स्थल चयनित किया गया था। .

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सुनहरी मस्जिद

सुनहरी मस्जिद पुरानी दिल्ली में स्थित एक मस्जिद है। यह लाल किले के दिल्ली दरवाजे के दक्षिण-पश्चिमी किनारे में, नेताजी सुभाष बाग के सामने स्थित है। इसके चारों ओर तीन गुंबद बने हुए हैं, जिसमें तांबे के साथ सोने का पानी चढ़ाया गया था। इसी से इसका नाम सुनहरी मस्जिद पड़ गया। .

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खूनी दरवाजा

खूनी दरवाजा (उर्दू خونی دروازہ), जिसे लाल दरवाजा भी कहा जाता है, दिल्ली में बहादुर शाह ज़फ़र मार्ग पर दिल्ली गेट के निकट स्थित है। यह दिल्ली के बचे हुए १३ ऐतिहासिक दरवाजों में से एक है। यह पुरानी दिल्ली के लगभग आधा किलोमीटर दक्षिण में, फ़िरोज़ शाह कोटला मैदान के सामने स्थित है। इसके पश्चिम में मौलाना आज़ाद चिकित्सीय महाविद्यालय का द्वार है। यह असल में दरवाजा न होकर तोरण है। भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसे सुरक्षित स्मारक घोषित किया है। .

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कश्मीरी गेट, दिल्ली

कश्मीरी दरवाज़ा (या कश्मीरी गेट) दिल्ली के लाल किले के निकटस्थ पुराने दिल्ली शहर (शाहजहानाबाद) का एक उत्तर मुखी द्वार हुआ करता था। इसका निर्माण एक सैन्य अभियांत्रिक रॉबर्ट स्मिथ द्वारा १८३५ में करवाय़ा गया था, एवं इसके उत्तरी ओर कश्मीर प्रान्त को मुख होने के कारण इसे कश्मीरी दरवाजा कहा गया। यहां से निकलने वाली सड़क कश्मीर को जाती थी। वर्तमान में यह उत्तरी दिल्ली का एक मोहल्ला है, जो पुरानी दिल्ली क्षेत्र में आता है। यहां कुछ महत्त्वपूर्ण मार्ग मिलते हैं, जो लाल किले, महाराणा प्रताप अन्तर्राज्यीय बस टर्मिनल एवं दिल्ली जंक्शन रेलवे स्टेशन को जोड़ते हैं। .

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अग्रसेन की बावली

अग्रसेन की बावली अग्रसेन की बावली, एक संरक्षित पुरातात्विक स्थल हैं जो नई दिल्ली में कनॉट प्लेस के पास स्थित है।इस बावली में सीढ़ीनुमा कुएं में करीब 105 सीढ़ीयां हैं। 14वीं शताब्दी में महाराजा अग्रसेन ने इसे बनाया था। सन 2012 में भारतीय डाक अग्रसेन की बावली पर डाक टिकट जारी किया गया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और अवशेष अधिनियम 1958 के तहत भारत सरकार द्वारा संरक्षित हैं। इस बावली का निर्माण लाल बलुए पत्थर से हुआ है। अनगढ़ तथा गढ़े हुए पत्थर से निर्मित यह दिल्ली की बेहतरीन बावलियों में से एक है। क़रीब 60 मीटर लंबी और 15 मीटर ऊंची इस बावली के बारे में विश्वास है कि महाभारत काल में इसका निर्माण कराया गया था। बाद में अग्रवाल समाज ने इस बावली का जीर्णोद्धार कराया। यह दिल्ली की उन गिनी चुनी बावलियों में से एक है, जो अभी भी अच्छी स्थिति में हैं। जंतर मंतर के निकट, हेली रोड पर यह बावली मौजूद है। यहाँ पर नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली के लोग कभी तैराकी सीखने के लिए आते थे। बावली की स्थापत्य शैली उत्तरकालीन तुग़लक़ तथा लोदी काल (13वी-16वी ईस्वी) से मेल खाती है। लाल बलुए पत्थर से बनी इस बावली की वास्तु संबंधी विशेषताएँ तुग़लक़ और लोदी काल की तरफ़ संकेत कर रहे हैं, लेकिन परंपरा के अनुसार इसे अग्रहरि एवं अग्रवाल समाज के पूर्वज अग्रसेन ने बनवाया था। इमारत की मुख्य विशेषता है कि यह उत्तर से दक्षिण दिशा में 60 मीटर लम्बी तथा भूतल पर 15 मीटर चौड़ी है। पश्चिम की ओर तीन प्रवेश द्वार युक्त एक मस्जिद है। यह एक ठोस ऊँचे चबूतरे पर किनारों की भूमिगत दालानों से युक्त है। इसके स्थापत्य में ‘व्हेल मछली की पीठ के समान’ छत, ‘चैत्य आकृति’ की नक़्क़ाशी युक्त चार खम्बों का संयुक्त स्तम्भ, चाप स्कन्ध में प्रयुक्त पदक अलंकरण इसको विशिष्टता प्रदान करता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

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