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2 संबंधों: त्रिदोष, आयुर्वेद में नयी खोजें

त्रिदोष

वात, पित्‍त, कफ इन तीनों को दोष कहते हैं। इन तीनों को धातु भी कहा जाता है। धातु इसलिये कहा जाता है क्‍योंकि ये शरीर को धारण करते हैं। चूंकि त्रिदोष, धातु और मल को दूषित करते हैं, इसी कारण से इनको ‘दोष’ कहते हैं। आयुर्वेद साहित्य शरीर के निर्माण में दोष, धातु मल को प्रधान माना है और कहा गया है कि 'दोष धातु मल मूलं हि शरीरम्'। आयुर्वेद का प्रयोजन शरीर में स्थित इन दोष, धातु एवं मलों को साम्य अवस्था में रखना जिससे स्वस्थ व्यक्ति का स्वास्थ्य बना रहे एवं दोष धातु मलों की असमान्य अवस्था होने पर उत्पन्न विकृति या रोग की चिकित्सा करना है। .

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आयुर्वेद में नयी खोजें

आयुर्वेद लगभग, 5000 वर्ष पुराना चिकित्‍सा विज्ञान है। इसे भारतवर्ष के विद्वानों ने भारत की जलवायु, भौगालिक परिस्थितियों, भारतीय दर्शन, भारतीय ज्ञान-विज्ञान के द्ष्टकोण को ध्यान में रखते हुये विकसित किया है। वतर्मान में स्‍वतंत्रता के पश्‍चात आयुर्वेद चिकित्‍सा विज्ञान ने बहुत प्रगति की है। भारत सरकार द्वारा स्‍थापित संस्‍था ‘’केन्द्रीय आयुर्वेद एवं सिद्ध अनुसं‍धान परिषद’’ (Central council for research in Ayurveda and Siddha, CCRAS) नई दिल्‍ली, भारत, आयुर्वेद में किये जा रहे अनुसन्‍धान कार्यों को समस्‍त देश में फैले हुये शोध संस्थानों में सम्‍पन्‍न कराता है। बहुत से एन0जी0ओ0 और प्राइवेट संस्थानों तथा अस्‍पताल और व्‍यतिगत आयुर्वेदिक चिकित्‍सक शोध कार्यों में लगे हुये है। इनमें से प्रमुख शोध त्रिफला, अश्वगंधा आदि औषधियों, इलेक्ट्रानिक उपकरणों द्वारा आयुर्वेदिक ढंग से रोगों की पहचान और निदान में सहायता से संबंधित हैं। .

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