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पानीपत का तृतीय युद्ध

सूची पानीपत का तृतीय युद्ध

पानीपत का तृतीय युद्ध अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच हुआ। पानीपत की तीसरी लड़ाई (95.5 किमी) उत्तर में मराठा साम्राज्य और अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली, दो भारतीय मुस्लिम राजा Rohilla अफगान दोआब और अवध के नवाब Shuja-उद-Daula (दिल्ली के सहयोगी दलों) के एक गठबंधन के साथ अहमद शाह अब्दाली के एक उत्तरी अभियान बल के बीच पर 14 जनवरी 1761, पानीपत, के बारे में 60 मील की दूरी पर हुआ। लड़ाई018 वीं सदी में सबसे बड़े, लड़ाई में से एक माना जाता है और एक ही दिन में एक क्लासिक गठन दो सेनाओं के बीच लड़ाई की रिपोर्ट में मौत की शायद सबसे बड़ी संख्या है। मुग़ल राज का अंत (१६८०-१७७०) में शुरु हो गया था, जब मुगलों के ज्यादातर भू भागों पर मराठाओं का अाधिपत्य हो गया था। गुजरात और मालवा के बाद बाजी राव ने १७३७ में दिल्ली पर मुगलों को हराकर अपने अधीन कर लिया था और दक्षिण दिल्ली के ज्यादातर भागों पर अपने मराठाओं का राज था। बाजी राव के पुत्र बाला जी बाजी राव ने बाद में पंजाब को भी जीतकर अपने अधीन करके मराठाओं की विजय पताका उत्तर भारत में फैला दी थी। पंजाब विजय ने १७५८ में अफगानिस्तान के दुर्रानी शासकों से टकराव को अनिवार्य कर दिया था। १७५९ में दुर्रानी शासक अहमद शाह अब्दाली ने कुछ पसतून कबीलो के सरदारों और भारत में अवध के नवाबों से मिलकर गंगा के दोआब क्षेत्र में मराठाओं से युद्ध के लिए सेना एकत्रित की। इसमें रोहलिआ अफगान ने भी उसकी सहायता की। पानीपत का तीसरा युद्ध इस तरह सम्मिलित इस्लामिक सेना और मराठाओं के बीच लड़ा गया। अवध के नवाब ने इसे इस्लामिक सेना का नाम दिया और बाकी मुसल्मानों को भी इस्लाम के नाम पर इकट्ठा किया। जबकि मराठा सेना ने अन्य हिन्दू राजाओं से सहायता की उम्मीद की १४ जनवरी १७६१ को हुए इस युद्ध में भूखे ही युद्ध में पहुँचे मराठाओं को सुरवती विजय के बाद हार का मुख देखना पड़ा.

17 संबंधों: नाना फडणवीस, नाना फडनवीस, पानीपत के युद्ध, पंजाब का इतिहास, बक्सर का युद्ध, मध्यकालीन भारत, महादजी शिंदे, महाराजा सूरज मल, माधवराव पेशवा, मीर तक़ी "मीर", युद्ध, शुजाउद्दौला, होलकर, विश्वास पाटील, गुलाम कादिर, इब्राहीम ख़ाँ गार्दी, कल्होड़ा राजवंश

नाना फडणवीस

नाना फडणवीस, जन्म: 12 फरवरी 1742 ई.- मृत्यु: 13 मार्च 1800 ई., एक अत्यंत चतुर और प्रभावशाली मराठा मंत्री थे, जब पानीपत का तृतीय युद्ध लड़ा जा रहा था उस समय वे पेशवा की सेवा में नियुक्त थे। वह अपनी चतुराई और बुद्धिमत्ता के लिये बहुत प्रसिद्ध थे। 1800 ई. में नाना फडणवीस की मृत्यु हो गई थी। नाना फडणवीस ने रघुनाथराव (राघोवा) की पेशवा बनने की सारी कोशिशें नाकाम कर दी थीं। नाना फडणवीस का टीपू सुल्तान से भी युद्ध हुआ था। उन्होंने मराठा साम्राज्य की शक्ति को एक नेतृत्व के नीचे एकत्र करने का सफल प्रयास किया था । .

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नाना फडनवीस

नाना फडनवीस (1741-1800) 'बालाजी जनार्दन भानु' उर्फ 'नाना फडनवीस' का जन्म सतारा में हुआ था। यह चतुर राजनीतिज्ञ तथा देशभक्त था और इसमें व्यावहारिक ज्ञान तथा वास्तविकता की चेतना जागृत थी। इसमें तीन गुण थे - स्वामिभक्ति, स्वाभिमान, तथा स्वदेशाभिमान। इसके जीवन की यही कसौटी है। इसके सामने तीन समस्यएँ थीं; पेशवा पद को स्थिर रखना, मराठा संघ को बनाए रखना, तथा विदेशियों से मराठा राज्य की रक्षा करना। कुशल राजनीतिज्ञ नाना फडनवीस पर मराठा-संघ की नीति के संचालन का भार 1774 से आया। मराठा संघ के घटक सिंधिया, होल्कर, गायकवाड़ तथा भोसले भी थे। इनमें परस्पर द्वेष और कटुता थी और पक्ष और उपपक्ष थे जिनकी प्रेरणा से अनेक षड्यंत्र, विप्लव, विश्वासघात आदि घृणित कार्य करवाए जा रहे थे। अत: नाना फडनवीस को बड़ी दूरदर्शिता एवं कूटनीतिज्ञता से संघ का कार्य चलाना पड़ा और राज्य के अंदर सुव्यवस्था लाने का भार भी उसपर आ पड़ा। सभी सरदार पेशवा को अपना नेता मानते थे। परंतु पानीपत की तीसरी लड़ाई (1761) के बाद पेशवा का नियंत्रण अत्यंत शिथिल होने लगा था। साथ ही पेशवा के उत्तराधिकार के संबंध में मतभेद और आपसी षड्यंत्र भी चल रहे थे। अत: नाना को दो समस्याओं का हल एक साथ ही करना था। अत: अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए नाना ने पेशवा की, तथा मराठाराज्य की रक्षा की, तथा मराठा संघ को विछिन्न होने से बचाया। अंग्रेज अपने साम्राज्य को बढ़ाना चाहते थे परंतु नाना ने वर्षानुवर्ष युद्ध करके मराठों के शत्रु अंग्रेजों से पेशवा का साष्टी के अतिरिक्त पूराराज्य जीत लिया। इस प्रकार नाना ने अंग्रेजों की बढ़ती हुई शक्ति को रोका और संघ को विच्छिन्न होने से बचाया। परन्तु नाना की मृत्यु के बाद ही मराठा संघ का अंत हुआ। लार्ड वेलजली के नाना के संबंध के शब्द स्मरणीय हैं। नाना फडनवीस केवल एक योग्य मंत्री ही नहीं था, किंतु वह ईमानदार तथा उच्च आदर्शों से प्रेरित था। उसने अपना पूरा जीवन राज्य के कल्याण के लिए तथा अपने अधिकारियों की कल्याणकामना के लिए उत्सर्ग किया। श्रेणी:भारत का इतिहास श्रेणी:मराठा.

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पानीपत के युद्ध

पानीपत में तीन ऐतिहासिक लड़ाईयां हुईं -.

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पंजाब का इतिहास

पंजाब शब्द का सबसे पहला उल्लेख इब्न-बतूता के लेखन में मिलता है, जिसनें 14वीं शताब्दी में इस क्षेत्र की यात्रा की थी। इस शब्द का 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में व्यापक उपयोग होने लगा, और इस शब्द का प्रयोग तारिख-ए-शेरशाही सूरी (1580) नामक किताब में किया गया था, जिसमें "पंजाब के शेरखान" द्वारा एक किले के निर्माण का उल्लेख किया गया था। 'पंजाब' के संस्कृत समकक्षों का पहला उल्लेख, ऋग्वेद में "सप्त सिंधु" के रूप में होता है। यह नाम फिर से आईन-ए-अकबरी (भाग 1) में लिखा गया है, जिसे अबुल फजल ने लिखा था, उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि पंजाब का क्षेत्र दो प्रांतों में विभाजित है, लाहौर और मुल्तान। इसी तरह आईन-ए-अकबरी के दूसरे खंड में, एक अध्याय का शीर्षक इसमें 'पंजाद' शब्द भी शामिल है। मुगल राजा जहांगीर ने तुज-ए-जान्हगेरी में भी पंजाब शब्द का उल्लेख किया है। पंजाब, जो फारसी भाषा की उत्पत्ति है और भारत में तुर्की आक्रमणकारियों द्वारा प्रयोग किया जाता था। पंजाब का शाब्दिक अर्थ है "पांच" (पंज) "पानी" (अब), अर्थात पांच नदियों की भूमि, जो इस क्षेत्र में बहने वाली पाँच नदियां का संदर्भ देते हैं। अपनी उपज भूमि के कारण इसे ब्रिटिश भारत का भंडारगृह बनाया गया था। वर्तमान में, तीन नदियाँ पंजाब (पाकिस्तान) में बहती हैं, जबकि शेष दो नदियाँ हिमाचल प्रदेश और पंजाब (भारत) से निकलती है, और अंततः पाकिस्तान में चली जाता है। .

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बक्सर का युद्ध

बक्सर का युद्ध २२ अक्टूबर १७६४ में बक्सर नगर के आसपास ईस्ट इंडिया कंपनी के हैक्टर मुनरो और मुगल तथा नबाबों की सेनाओं के बीच लड़ा गया था। बंगाल के नबाब मीर कासिम, अवध के नबाब शुजाउद्दौला, तथा मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना अंग्रेज कंपनी से लड़ रही थी। लड़ाई में अंग्रेजों की जीत हुई और इसके परिणामस्वरूप पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और बांग्लादेश का दीवानी और राजस्व अधिकार अंग्रेज कंपनी के हाथ चला गया। .

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मध्यकालीन भारत

मध्ययुगीन भारत, "प्राचीन भारत" और "आधुनिक भारत" के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास की लंबी अवधि को दर्शाता है। अवधि की परिभाषाओं में व्यापक रूप से भिन्नता है, और आंशिक रूप से इस कारण से, कई इतिहासकार अब इस शब्द को प्रयोग करने से बचते है। अधिकतर प्रयोग होने वाले पहली परिभाषा में यूरोपीय मध्य युग कि तरह इस काल को छठी शताब्दी से लेकर सोलहवीं शताब्दी तक माना जाता है। इसे दो अवधियों में विभाजित किया जा सकता है: 'प्रारंभिक मध्ययुगीन काल' 6वीं से लेकर 13वीं शताब्दी तक और 'गत मध्यकालीन काल' जो 13वीं से 16वीं शताब्दी तक चली, और 1526 में मुगल साम्राज्य की शुरुआत के साथ समाप्त हो गई। 16वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक चले मुगल काल को अक्सर "प्रारंभिक आधुनिक काल" के रूप में जाना जाता है, लेकिन कभी-कभी इसे "गत मध्ययुगीन" काल में भी शामिल कर लिया जाता है। एक वैकल्पिक परिभाषा में, जिसे हाल के लेखकों के प्रयोग में देखा जा सकता है, मध्यकालीन काल की शुरुआत को आगे बढ़ा कर 10वीं या 12वीं सदी बताया जाता है। और इस काल के अंत को 18वीं शताब्दी तक धकेल दिया गया है, अत: इस अवधि को प्रभावी रूप से मुस्लिम वर्चस्व (उत्तर भारत) से ब्रिटिश भारत की शुरुआत के बीच का माना जा सकता है। अत: 8वीं शताब्दी से 11वीं शताब्दी के अवधि को "प्रारंभिक मध्ययुगीन काल" कहा जायेगा। .

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महादजी शिंदे

महादजी सिंदे महादजी शिंदे (या, महादजी सिंधिया; १७३० -- १७९४) मराठा साम्राज्य के एक शासक थे जिन्होंने ग्वालियर पर शासन किया। वे सरदार राणोजी राव शिंदे के पाँचवे तथा अन्तिम पुत्र थे। शिंदे (अथवा सिंधिया) वंश के संस्थापक राणोजी शिंदे के पुत्रों में केवल महादजी पानीपत के तृतीय युद्ध से जीवित बच सके। तदनंतर, सात वर्ष उसके उत्तराधिकार संघर्ष में बीते (१७६१-६८)। स्वाधिकार स्थापन के पश्चात् महादजी का अभूतपूर्व उत्कर्ष आरंभ हुआ (१७६८)। पेशवा के शक्तिसंवर्धन के साथ, उसने अपनी शक्ति भी सुदृढ़ की। पेशवा की ओर से दिल्ली पर अधिकार स्थापित कर (१० फरवरी, १७७१), उसने शाह आलम को मुगल सिंहासन पर बैठाया (६ जनवरी, १७७२)। इस प्रकार, पानीपत में खोये, उत्तरी भारत पर मराठा प्रभुत्व का उसने पुनर्लाभ किया। माधवराव की मृत्यु से उत्पन्न अव्यवस्था तथा उससे उत्पन्न आंग्ल-मराठा युद्ध में उसने रघुनाथराव (राघोबा) तथा अंग्रेजों के विरुद्ध नाना फड़नवीस और शिशु पेशवा का पक्ष ग्रहण किया। तालेगाँव में अंग्रेजों की पराजय (जनवरी, १७७९) से वह महाराष्ट्र संघ का सर्वप्रमुख सदस्य मान्य हुआ। अंतत:, उसी की मध्यस्थता से मराठों और अंग्रेजों में सालबाई की संधि संभव हो सकी (१७८२)। इससे उसकी महत्ता और प्रभुत्व में बड़ी अभिवृद्धि हुई। युद्ध की समाप्ति पर महादजी पुन: उत्तर की ओर अभिमुख हुआ। ग्वालियर अधिकृत कर (१७८३), उसने गोहद के राणा को पराजित किया (१७८४)। फ्रेंच सैनिक डिबोयन (de boigne) की सहायता से उसने अपनी सेना सुशिक्षित एवं सशक्त की। मुगल सम्राट् ने उसे वकील-ए-मुतलक की पदवी से पुरस्कृत किया; तथा मुगल राज्य संचालन का उत्तरदायित्व उसे सौंपा। महादजी ने अनेक विद्रोहों का दमन कर मुगल राज्य में व्यवस्था स्थापित की। किंतु जयपुर के सैनिक अभियान की असफलता के कारण उसकी स्थिति संकटापन्न हो गई (१७८७), तथापि इस्माइल बेग की पराजय से (जून, १७८८) उसने अपनी सत्ता पुन:स्थापित कर ली। दानवी आततायी गुलाम कादिर को दिल्ली से खदेड़, नेत्रविहीन मुगल सम्राट् को उसने पुन: सिंहासनासीन किया (अक्टूबर, १७८९)। १७९१ के अंत तक उसने राजपूतों को भी नत कर दिया। अब नर्मदा से सतलज तक पूरा उत्तरी भारत उसके आधिपत्य में था। अपनी सफलता के चरमोत्कर्ष में, १२ वर्षों बाद, वह महाराष्ट्र लौटा। दो वर्ष पूना में रहकर (१७९२-९४) उसने महाराष्ट्र संघ को पुन: संगठित करने का सतत किंतु विफल प्रयत्न किया। लाखेरी में तुकोजी होल्कर की पूर्ण पराजय (जून १७९३) उसकी अंतिम विजय थी, यद्यपि पारस्परिक विभेद से दु:खित महादजी ने उसे विजय दिवस संबोधित करने की अपेक्षा शोक दिवस ही की संज्ञा दी। १२ फरवरी, १७९४ को उसकी मृत्यु हुई। कुशाग्रबुद्धि महादजी व्यक्तिगत जीवन में सरल, तथा स्वभाव से सहिष्णु, धैर्यशील और उदार था। उसमें नेतृत्व शक्ति और सैनिक प्रतिभा तो थी ही, राजनीतिज्ञता भी असाधारण थी। उसके महान् कार्य, विषम परिस्थितियों तथा आंतरिक वैमनस्य - नाना फड़निस के द्वेषी स्वभाव और तुकोजी होल्कर के शत्रुतापूर्ण व्यवहार - के बावजूद केवल स्वावलंबन के बल पर संपन्न हुए। किंतु इन सब के ऊपर थी उसकी स्वार्थरहित उदात्त दृष्टि, जिसे, महाराष्ट्र के दुर्भाग्य से, सहयोग की अपेक्षा सदैव गत्यवरोध ही प्राप्त हुआ। .

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महाराजा सूरज मल

महाराजा सूरजमल (१७०७-१७६३) भरतपुर राज्य के दूरदर्शी हरयाणा में 'दांगी' भी उन्हीं की शाखा है। मराठों के पतन के बाद महाराजा सूरजमल ने गाजियाबाद, रोहतक, झज्जर के इलाके भी जीते। 1763 में फरुखनगर पर भी कब्जा किया। वीरों की सेज युद्धभूमि ही है। 25 दिसम्बर 1763 को नवाब नजीबुदौला के साथ युद्ध में महाराज सूरजमल वीरगति को प्राप्त हुए। .

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माधवराव पेशवा

पेशवा माधवराव प्रथम (शासनकाल- 1761-1772 ई०) मराठा साम्राज्य के चौथे पूर्णाधिकार प्राप्त पेशवा थे। वे मराठा साम्राज्य के महानतम पेशवा के रूप में मान्य हैं जिनके अल्पवयस्क होने के बावजूद अद्भुत दूरदर्शिता एवं संगठन-क्षमता के कारण पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की खोयी शक्ति एवं प्रतिष्ठा की पुनर्प्राप्ति संभव हो पायी। 11 वर्षों की अपनी अल्पकालीन शासनावधि में भी आरंभिक 2 वर्ष गृहकलह में तथा अंतिम वर्ष क्षय रोग की पीड़ा में गुजर जाने के बावजूद उन्होंने न केवल उत्तम शासन-प्रबंध स्थापित किया, बल्कि अपनी दूरदर्शिता से योग्य सरदारों को एकजुट कर तथा नाना फडणवीस एवं महादजी शिंदे दोनों का सहयोग लेकर मराठा साम्राज्य को भी सर्वोच्च विस्तार तक पहुँचा दिया। .

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मीर तक़ी "मीर"

ख़ुदा-ए-सुखन मोहम्मद तकी उर्फ मीर तकी "मीर" (1723 - 20 सितम्बर 1810) उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। मीर को उर्दू के उस प्रचलन के लिए याद किया जाता है जिसमें फ़ारसी और हिन्दुस्तानी के शब्दों का अच्छा मिश्रण और सामंजस्य हो। अहमद शाह अब्दाली और नादिरशाह के हमलों से कटी-फटी दिल्ली को मीर तक़ी मीर ने अपनी आँखों से देखा था। इस त्रासदी की व्यथा उनकी रचनाओं मे दिखती है। अपनी ग़ज़लों के बारे में एक जगह उन्होने कहा था- हमको शायर न कहो मीर कि साहिब हमने दर्दो ग़म कितने किए जमा तो दीवान किया .

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युद्ध

वर्ष १९४५ में कोलोन युद्ध एक लंबे समय तक चलने वाला आक्रामक कृत्य है जो सामान्यतः राज्यों के बीच झगड़ों के आक्रामक और हथियारबंद लड़ाई में परिवर्तित होने से उत्पन्न होता है। .

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शुजाउद्दौला

शुजाउद्दौला (१९ जनवरी१७३२, दारा शिकोह के महल में, दिल्ली – १७७५) अवध के नवाब थे। उन्हें वज़ीर उल ममालिक ए हिंदुस्तान, शुजा उद् दौला, नवाब मिर्ज़ा जलाल उद् दीन हैदर खान बहादुर, अवध के नवाब वज़ीर आदि नामों से भी जाना जाता था। अवध का साम्राज्य उस समय औरंगज़ेब की मौत की वजह से मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद एक छोटी रियासत बन गया था। एक छोटे शासक होने के बावजूद वे भारत के इतिहास के दो प्रमुख युद्धों में भाग लेने के लिए जाने जाते हैं - पानीपत की तीसरी लड़ाई, जिसने भारत में मराठों का वर्चस्व समाप्त किया और बक्सर की लड़ाई, जिसने अंग्रेज़ों की हुकूमत स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई। .

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होलकर

होलकर राजवंश मल्हार राव से प्रारंभ हुआ जो १७२१ में पेशवा की सेवा में शामिल हुए और जल्दी ही सूबेदार बने। होल्कर वंश के लोग 'होलगाँव' के निवासी होने से 'होलकर' कहलाए। अतः पूरे भारत में अलग-अलग क्षेत्रों में इस जाती को अलग अलग नाम से जाना जाता है परंतु यह एक ही जाती है इनके नाम अलग अलग है पूरे भारत में इनकी एक ही पहचान हैधनगर नाम से यह सब जातियां जानी जाती है जैसे(1) पाल (2)बघेल(3) गाडरी(4) गडरिया (5)होलकर (6)गायरी उन्होने और उनके वंशजों ने मराठा राजा और बाद में १८१८ तक मराठा महासंघ के एक स्वतंत्र सदस्य के रूप में मध्य भारत में इंदौर पर शासन किया और बाद में भारत की स्वतंत्रता तक ब्रीटिश भारत की एक रियासत रहे। होलकर वंश उन प्रतिष्ठित राजवंशों मे से एक था जिनका नाम शासक के शीर्षक से जुडा, जो आम तौर पर महाराजा होल्कर या 'होलकर महाराजा' के रूप में जाना जाता था, जबकि पूरा शीर्षक 'महाराजाधिराज राज राजेश्वर सवाई श्री (व्यक्तिगत नाम) होलकर बहादुर, महाराजा ऑफ़ इंदौर' था। .

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विश्वास पाटील

विश्वास पाटील (जन्म:28 नवम्बर, 1959) मराठी भाषा के एक साहित्यकार, इतिहासकार और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं। उन्होंने रायगढ़ जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और मुंबई उपनगर जिला के जिलाधिकारी के रूप में काम किया है। .

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गुलाम कादिर

गुलाम कादिर (ग़ुलाम क़ादिर, Ghulam Qadir) रुहेलखंड (नजीबाबाद) का शासक था जो अपने दानवी अत्याचारों के लिए कुख्यात है। गुलाम कादिर ने अपनी अविवेकपूर्ण महत्त्वाकांक्षा तथा युवावस्था के आवेग में न केवल अपने दादा द्वारा अर्जित तथा संगठित राज्य गँवाया, वरन् मराठों से वैर मोल लेकर तथा दिल्ली के तत्कालीन सम्राट शाह आलम एवं उनके परिवार पर भीषण अमानवीय अत्याचार करने के कारण स्वयं तो दुर्दशाग्रस्त मृत्यु को प्राप्त हुआ ही, इतिहास में भी सदा के लिए एक कलंकित अत्याचारी के रूप में अंकित रह गया। .

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इब्राहीम ख़ाँ गार्दी

इब्राहीम ख़ाँ गार्दी" अथवा इब्राहीम ख़ाँ गर्दी (निधन 1761) 18वीं सदी में भारत के दखाणी मुस्लिम जनरल थे। उसके पूर्वज भील अथवा संबद्ध जनजाति के लोग थे। तोपखाने में एक विशेषज्ञ के रूप में उन्हें मराठा साम्राज्य का पेशवा के लिए काम करने से पहले हैदराबाद के निज़ाम बनाये गये। माराठा साम्राज्य के जनरल के रूप में वे पैदल सेना और तोपखाने के साथा 10,000 लोगों की सेना की कमान सम्भालते थे। 1761 में पानीपत का तृतीय युद्ध में वो अफगानों द्वारा पकड़कर मार दिये गये। .

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कल्होड़ा राजवंश

कल्होड़ा राजवंश (सिन्धी:, कल्होड़ा राज; या, सिलसिला कल्होड़ा) सिन्ध और आधुनिक पाकिस्तान के कुछ अन्य हिस्सों पर लगभग एक शताब्दी तक शासन करने वाला एक राजवंश था। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

पानीपत का तीसरा युद्ध, पानीपत की तीसरी लड़ाई

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