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पाइथागोरस प्रमेय

सूची पाइथागोरस प्रमेय

'''बौधायन का प्रमेय''': समकोण त्रिभुज की दो भुजाओं की लम्बाइयों के वर्गों का योग कर्ण की लम्बाई के वर्ग के बराबर होता है। पाइथागोरस प्रमेय (या, बौधायन प्रमेय) यूक्लिडीय ज्यामिति में किसी समकोण त्रिभुज के तीनों भुजाओं के बीच एक सम्बन्ध बताने वाला प्रमेय है। इस प्रमेय को आमतौर पर एक समीकरण के रूप में निम्नलिखित तरीके से अभिव्यक्त किया जाता है- जहाँ c समकोण त्रिभुज के कर्ण की लंबाई है तथा a और b अन्य दो भुजाओं की लम्बाई है। पाइथागोरस यूनान के गणितज्ञ थे। परम्परानुसार उन्हें ही इस प्रमेय की खोज का श्रेय दिया जाता है,हेथ, ग्रंथ I,p.

22 संबंधों: त्रिभुज, त्रिकोणमिति, त्रिकोणमितीय सर्वसमिकाओं की सूची, त्रिकोणीय सर्वेक्षण, पाइथागोरस, बौधायन, बौधायन धर्मसूत्र, बौधायन का शुल्बसूत्र, भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का इतिहास, भारतीय गणित, भारतीय गणित का इतिहास, शुल्बसूत्र, समबाहु त्रिभुज, समकोण त्रिभुज, साँचे:त्रिकोणमितीय, साँचे:ज्यामिति, सूत्र (फॉर्मूला), ज्यामिति का इतिहास, गणित का इतिहास, गुणोत्तर माध्य प्रमेय, आर्यभटीय, कोज्या नियम

त्रिभुज

त्रिभुज (Triangle), तीन शीर्षों और तीन भुजाओं वाला एक बहुभुज (Polygon) होता है। यह ज्यामिति की मूल आकृतियों में से एक है। शीर्षों A, B, और C वाले त्रिभुज को \triangle ABC द्वारा दर्शाया जाता है। यूक्लिडियन ज्यामिति में कोई भी तीन असंरेखीय बिन्दु, एक अद्वितीय त्रिभुज का निर्धारण करते हैं और साथ ही, एक अद्वितीय तल (यानी एक द्वि-विमीय यूक्लिडियन समतल) का भी। दूसरे शब्दों में, तीन सरल रेखाओं से घिरी बंद आकृति को त्रिभुज या त्रिकोण कहते हैं। त्रिभुज में तीन भुजाएं और तीन कोण होते हैं। त्रिभुज सबसे कम भुजाओं वाला बहुभुज है। किसी त्रिभुज के तीनों आन्तरिक कोणों का योग सदैव 180° होता है। इन भुजाओं और कोणों के माप के आधार पर त्रिभुज का विभिन्न प्रकार से वर्गीकरण किया जाता है। .

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त्रिकोणमिति

किसी दूरस्थ और सीधे मापन में कठिनाई वाले सर्वेक्षण के लिए समरूप त्रिभुज के उपयोग का उदाहरण (1667) त्रिकोणमिति गणित की वह शाखा है जिसमें त्रिभुज और त्रिभुजों से बनने वाले बहुभुजों का अध्ययन होता है। त्रिकोणमिति का शब्दिक अर्थ है 'त्रिभुज का मापन'। त्रिकोणमिति में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है समकोण त्रिभुज का अध्ययन। त्रिभुजों और बहुभुजों की भुजाओं की लम्बाई और दो भुजाओं के बीच के कोणों का अध्ययन करने का मुख्य आधार यह है कि समकोण त्रिभुज की किन्ही दो भुजाओं (आधार, लम्ब व कर्ण) का अनुपात उस त्रिभुज के कोणों के मान पर निर्भर करता है। त्रिकोणमिति का ज्यामिति की प्रसिद्ध बौधायन प्रमेय (पाइथागोरस प्रमेय) से गहरा सम्बन्ध है। .

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त्रिकोणमितीय सर्वसमिकाओं की सूची

त्रिकोणमितीय सर्वसमिकाएँ, चरों के त्रिकोणमितीय फलनों के रूप में व्यक्त समतायें होती हैं। All of the trigonometric functions of an angle θ can be constructed geometrically in terms of a unit circle centered at ''O''. The unit circle .

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त्रिकोणीय सर्वेक्षण

उन्नीसवीं शती का राइनलैण्ड-हेस्स क्षेत्र का त्रिकोणीय सर्वेक्षण त्रिकोणीय सर्वेक्षण (Triangulation) उस विधि का नाम है जिसमें सर्वेक्षण के लिये दिये गये क्षेत्र को त्रिकोणीय टुकड़ों के जाल के रूप में बाँटकर सर्वेक्षण को सरलतापूर्वक कर लिया जाता है। इसका सिद्धान्त बहुत सरल है - ज्ञात दूरी पर स्थित किन्हीं भी दो बिंदुओं से किसी तीसरे बिंदु द्वारा बनाये गये कोणों को मापकर त्रिकोणमित्तीय सर्वसमिकाओं की सहायता से उस तीसरे बिन्दु की सही स्थिति निर्धारित की जा सकती है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें दूरी का मापन कम से कम करना पड़ता है और कोणों के मापन से काम चल जाता है। कोणों का मापन अधिक शुद्धता से, कम समय मे, कम श्रम से हो जाता है। सामान्यत:, जहाँ दो दूर के बिंदुओं के बीच सीधी दूरी नाप पाना संभव न हो, मगर वे आपस मे दृष्टिगत हों, वहाँ त्रिकोणीय सर्वेक्षण बड़ा लाभप्रद होता है। ट्रैंगुलेशन के उपयोग द्वारा समुद्र में स्थित किसी जलयान की तट से दूरी और उसके निर्देशांक निकाले जा सकते हैं। '''A''' बिन्दु पर स्थित प्रेक्षक कोण '''α''' मापता है; इसी प्रकार, बिन्दु '''B''' पर स्थित प्रेक्षक कोण '''β''' मापता है। यदि A और B के बीच की दूरी या उनके निर्देशांक ज्ञात हों तो ज्या सूत्र की सहायता से '''C''' बिन्दु पर स्थित जहाज के निर्देशांक तथा दूरी '''d''' निकाली जा सकती है। यदि ऐसे त्रिभुज की एक, दो या तीनों भुजाओं पर क्रमानुगत त्रिभुज बनाते चले जाएँ और प्रारंभिक त्रिभुज की एक भुजा, उसके दोनों शीर्ष बिंदुओं के नियामक (coordinate) और बनाए गए सभी त्रिभुजों के कोण ज्ञात हों, तो ऐसी संपूर्ण त्रिभुजमाला की भुजाओं की लंबाइयाँ और त्रिभुज बनानेवाले बिंदुओं के नियामक और बनाए गए सभी त्रिभुजों के कोण ज्ञात हों, तो ऐसी संपूर्ण त्रिभुजमाला की भुजाओं की लंबाइयाँ और त्रिभुज बनानेवाले बिंदुओं के नियामक गणितीय कलन (computations) से ज्ञात किए जा सकते हैं। किसी भी क्षेत्र का मानचित्र बनाने के लिये इस प्रकार के बिंदु संपूर्ण क्षेत्र में समान रूप से बिखरें हुए स्थापित करना आवश्यक होता है। ऐसे बिंदुओं को सामूहिक रूप में सर्वेक्षण हेतु 'नियंत्रण ढाँचा' और प्रत्येक बिंदु को अलग अलग 'सर्वेक्षण स्टेशन' कहते हैं। त्रिकोणीय सर्वेक्षण में गणना में त्रिकोणमित्तीय सर्वसमिकाओं की सहायता ली जाती है जिनमे निम्नलिखित प्रमुख हैं -.

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पाइथागोरस

सामोस के पाईथोगोरस (Ὁ Πυθαγόρας ὁ Σάμιος, ओ पुथागोरस ओ समिओस, "पाईथोगोरस दी समियन (Samian)," या साधारण रूप से; उनका जन्म 580 और 572 ई॰पू॰ के बीच हुआ और मृत्यु 500 और 490 ई॰पू॰ के बीच हुई), या फ़ीसाग़ोरस, एक अयोनिओयन (Ionian) ग्रीक (Greek)गणितज्ञ (mathematician) और दार्शनिक थे और पाईथोगोरियनवाद (Pythagoreanism) नामक धार्मिक आन्दोलन के संस्थापक थे। उन्हें अक्सर एक महान गणितज्ञ, रहस्यवादी (mystic) और वैज्ञानिक (scientist) के रूप में सम्मान दिया जाता है; हालाँकि कुछ लोग गणित और प्राकृतिक दर्शन में उनके योगदान की संभावनाओं पर सवाल उठाते हैं। हीरोडोट्स उन्हें "यूनानियों के बीच सबसे अधिक सक्षम दार्शनिक" मानते हैं। उनका नाम उन्हें पाइथिआ (Pythia) और अपोलो से जोड़ता है; एरिस्तिपस (Aristippus) ने उनके नाम को यह कह कर स्पष्ट किया कि "वे पाइथियन (पाइथ-) से कम सच (एगोर-) नहीं बोलते थे," और लम्ब्लिकास (Iamblichus) एक कहानी बताते हैं कि पाइथिआ ने भविष्यवाणी की कि उनकी गर्भवती माँ एक बहुत ही सुन्दर, बुद्धिमान बच्चे को जन्म देगी जो मानव जाती के लिए बहुत ही लाभकारी होगा। (The Savisier-) उन्हें मुख्यतः पाईथोगोरस की प्रमेय (Pythagorean theorem) के लिए जाना जाता है, जिसका नाम उनके नाम पर दिया गया है। पाइथोगोरस को "संख्या के जनक" के रूप में जाना जाता है, छठी शताब्दी ईसा पूर्व में धार्मिक शिक्षण और दर्शनमें उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। पूर्व सुकराती (pre-Socratic) काल के अन्य लोगों की तुलना में उनके कार्य ने कथा कहानियों को अधिक प्रभावित किया, उनके जीवन और शिक्षाओं के बारे में अधिक विश्वास के साथ कहा जा सकता है। हम जानते हैं कि पाइथोगोरस और उनके शिष्य मानते थे कि सब कुछ गणित से सम्बंधित है और संख्याओं में ही अंततः वास्तविकता है और गणित के माध्यम से हर चीज के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है तथा हर चीज को एक ताल बद्ध प्रतिरूप या चक्र के रूप में मापा जा सकता है। लम्बलीकस (Iamblichus) के अनुसार, पाइथोगोरस ने कहा कि "संख्या ही विचारों और रूपों का शासक है और देवताओं और राक्षसों का कारण है।" वो पहले आदमी थे जो अपने आप को एक दार्शनिक, या बुद्धि का प्रेमी कहते थे, और पाइथोगोरस के विचारों ने प्लेटो पर एक बहुत गहरा प्रभाव डाला। दुर्भाग्य से, पाइथोगोरस के बारे में बहुत कम तथ्य ज्ञात हैं, क्योंकि उन के लेखन में से बहुत कम ही बचे हैं। पाइथोगोरस की कई उपलब्धियां वास्तव में उनके सहयोगियों और उत्तराधिकारियों की उपलब्धियां हैं। पाईथोगोरस का जन्म सामोस (Samos) में हुआ, जो एशिया माइनर (Asia Minor) के किनारे पर, पूर्वी ईजियन में एक यूनानी द्वीप है। उनकी माँ पायथायस (समोस की निवासी) और पिता मनेसार्चस (टायर (Tyre) के एक फोनिसियन (Phoenicia) व्यापारी) थे। जब वे जवान थे तभी उन्होंने, अपने जन्म स्थान को छोड़ दिया और पोलिक्रेट्स (Polycrates) की अत्याचारी (tyrannical) सरकार से बच कर दक्षिणी इटलीमें क्रोटोन (Croton) केलेब्रिया (Calabria) में चले गए। लम्ब्लिकस (Iamblichus) के अनुसार थेल्स (Thales) उनकी क्षमताओं से बहुत अधिक प्रभावित था, उसने पाइथोगोरस को इजिप्त में मेम्फिस (Memphis) को चलने और वहाँ के पुजारियों के साथ अध्ययन करने की सलाह दी जो अपनी बुद्धि के लिए जाने जाते थे। वे फोनेशिया में टायर और बैब्लोस में शिष्य बन कर भी रहे। इजिप्ट में उन्होंने कुछ ज्यामितीय सिद्धांतों को सिखा जिससे प्रेरित होकर उन्होंने अंततः प्रमेय दी जो अब उनके नाम से जानी जाती है। यह संभव प्रेरणा बर्लिन पेपाइरस (Berlin Papyrus) में एक असाधारण समस्या के रूप में प्रस्तुत है। समोस से क्रोटोन (Croton), केलेब्रिया (Calabria), इटली, आने पर उन्होंने एक गुप्त धार्मिक समाज की स्थापना की जो प्रारंभिक ओर्फिक कल्ट (Orphic cult) से बहुत अधिक मिलती जुलती थी और संभवतः उससे प्रभावित भी थी। Vatican) पाइथोगोरस ने क्रोटन के सांस्कृतिक जीवन में सुधर लाने की कोशिश की, नागरिकों को सदाचार का पालन करने के लिए प्रेरित किया और अपने चारों और एक अनुयायियों का समूह स्थापित कर लिया जो पाइथोइगोरियन कहलाते हैं। इस सांस्कृतिक केन्द्र के संचालन के नियम बहुत ही सख्त थे। उसने लड़कों और लड़कियों दोनों के liye सामान रूप से अपना विद्यालय खोला.जिन लोगों ने पाइथोगोरस के सामाज के अंदरूनी हिस्से में भाग लिए वे अपने आप को मेथमेटकोई कहते थे। वे स्कूल में ही रहते थे, उनकी अपनी कोई निजी संपत्ति नहीं थी, उन्हें मुख्य रूप से शाकाहारी भोजन खाना होता था, (बलि दिया जाने वाला मांस खाने की अनुमति थी) अन्य विद्यार्थी जो आस पास के क्षेत्रों में रहते थे उन्हें भी पाइथोगोरस के स्कूल में भाग लेने की अनुमति थी। उन्हें अकउसमेटीकोई के नाम से जाना जाता था और उन्हें मांस खाने और अपनी निजी सम्पति रखने की अनुमति थी। रिचर्ड ब्लेक्मोर ने अपनी पुस्तक दी ले मोनेस्ट्री (१७१४) में पाइथोगोरियनो के धार्मिक प्रेक्षणों को बताया, "यह इतिहास में दर्ज संन्यासी जीवन का पहला उदाहरण था। लम्ब्लिकास (Iamblichus) के अनुसार, पाइथोगोरस ने धार्मिक शिक्षण, सामान्य भोजन, व्यायाम, पठन और दार्शनिक अध्ययन से युक्त जीवन का अनुसरण किया। संगीत इस जीवन का एक आवश्यक आयोजन कारक था: शिष्य अपोलो के लिए नियमित रूप से मिल जुल कर भजन गाते थे; वे आत्मा या शरीर की बीमारी का इलाज करने के लिए वीणा (lyre) का उपयोग करते थे; याद्दाश्त को बढ़ाने के लिए सोने से पहले और बाद में कविता पठन किया जाता था। फ्लेवियस जोजेफस (Flavius Josephus), एपियन के विरुद्ध (Against Apion), यहूदी धर्म की रक्षा में ग्रीक दर्शनशास्त्र (Greek philosophy) के खिलाफ कहा कि समयरना के हर्मिपस (Hermippus of Smyrna) के अनुसार पाइथोगोरस यहूदी विश्वासों से परिचित था, उसने उनमें से कुछ को अपने दर्शन में शामिल किया। जिंदगी के अंतिम चरण में उसके और उसके अनुयायियों के खिलाफ क्रोतों के एक कुलीन सैलों (Cylon) द्वारा रचित शाजिश की वजह से वह मेतापोंतुम (Metapontum) भाग गया। वह अज्ञात कारणों से मेटापोंटम म में ९० साल की उम्र में मर गया। बर्ट्रेंड रसेल, ने पश्चिमी दर्शन के इतिहास (History of Western Philosophy), में बताया कि पाइथोगोरस का प्लेटो और अन्य लोगों पर इतना अधिक प्रभाव था कि वह सभी पश्चिमी दार्शनिकों में सबसे ज्यादा प्रभावी माना जाता था। .

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बौधायन

बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुल्ब सूत्र तथा श्रौतसूत्र के रचयिता थे। ज्यामिति के विषय में प्रमाणिक मानते हुए सारे विश्व में यूक्लिड की ही ज्यामिति पढ़ाई जाती है। मगर यह स्मरण रखना चाहिए कि महान यूनानी ज्यामितिशास्त्री यूक्लिड से पूर्व ही भारत में कई रेखागणितज्ञ ज्यामिति के महत्वपूर्ण नियमों की खोज कर चुके थे, उन रेखागणितज्ञों में बौधायन का नाम सर्वोपरि है। उस समय भारत में रेखागणित या ज्यामिति को शुल्व शास्त्र कहा जाता था। .

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बौधायन धर्मसूत्र

यह धर्मसूत्र चार प्रश्नों में हैं। प्रश्नों का विभाजन अध्याय तथा खण्डों में किया गया है।.

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बौधायन का शुल्बसूत्र

शुल्बसूत्रों में बौधायन का शुल्बसूत्र सबसे प्राचीन माना जाता है। इन शुल्बसूत्रों का रचना समय १२०० से ८०० ईसा पूर्व माना गया है। अपने एक सूत्र में बौधायन ने विकर्ण के वर्ग का नियम दिया है- एक आयत का विकर्ण उतना ही क्षेत्र इकट्ठा बनाता है जितने कि उसकी लम्बाई और चौड़ाई अलग-अलग बनाती हैं। - यही तो पाइथागोरस का प्रमेय है। स्पष्ट है कि इस प्रमेय की जानकारी भारतीय गणितज्ञों को पाइथागोरस के पहले से थी। वस्तुतः इस प्रमेय को बौधायन-पाइथागोरस प्रमेय कहा जाना चाहिए। .

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भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का इतिहास

भारत की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की विकास-यात्रा प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होती है। भारत का अतीत ज्ञान से परिपूर्ण था और भारतीय संसार का नेतृत्व करते थे। सबसे प्राचीन वैज्ञानिक एवं तकनीकी मानवीय क्रियाकलाप मेहरगढ़ में पाये गये हैं जो अब पाकिस्तान में है। सिन्धु घाटी की सभ्यता से होते हुए यह यात्रा राज्यों एवं साम्राज्यों तक आती है। यह यात्रा मध्यकालीन भारत में भी आगे बढ़ती रही; ब्रिटिश राज में भी भारत में विज्ञान एवं तकनीकी की पर्याप्त प्रगति हुई तथा स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों में तेजी से प्रगति कर रहा है। सन् २००९ में चन्द्रमा पर यान भेजकर एवं वहाँ पानी की प्राप्ति का नया खोज करके इस क्षेत्र में भारत ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की है। चार शताब्दियों पूर्व प्रारंभ हुई पश्चिमी विज्ञान व प्रौद्योगिकी संबंधी क्रांति में भारत क्यों शामिल नहीं हो पाया ? इसके अनेक कारणों में मौखिक शिक्षा पद्धति, लिखित पांडुलिपियों का अभाव आदि हैं। .

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भारतीय गणित

गणितीय गवेषणा का महत्वपूर्ण भाग भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न हुआ है। संख्या, शून्य, स्थानीय मान, अंकगणित, ज्यामिति, बीजगणित, कैलकुलस आदि का प्रारम्भिक कार्य भारत में सम्पन्न हुआ। गणित-विज्ञान न केवल औद्योगिक क्रांति का बल्कि परवर्ती काल में हुई वैज्ञानिक उन्नति का भी केंद्र बिन्दु रहा है। बिना गणित के विज्ञान की कोई भी शाखा पूर्ण नहीं हो सकती। भारत ने औद्योगिक क्रांति के लिए न केवल आर्थिक पूँजी प्रदान की वरन् विज्ञान की नींव के जीवंत तत्व भी प्रदान किये जिसके बिना मानवता विज्ञान और उच्च तकनीकी के इस आधुनिक दौर में प्रवेश नहीं कर पाती। विदेशी विद्वानों ने भी गणित के क्षेत्र में भारत के योगदान की मुक्तकंठ से सराहना की है। .

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भारतीय गणित का इतिहास

सभी प्राचीन सभ्यताओं में गणित विद्या की पहली अभिव्यक्ति गणना प्रणाली के रूप में प्रगट होती है। अति प्रारंभिक समाजों में संख्यायें रेखाओं के समूह द्वारा प्रदर्शित की जातीं थीं। यद्यपि बाद में, विभिन्न संख्याओं को विशिष्ट संख्यात्मक नामों और चिह्नों द्वारा प्रदर्शित किया जाने लगा, उदाहरण स्वरूप भारत में ऐसा किया गया। रोम जैसे स्थानों में उन्हें वर्णमाला के अक्षरों द्वारा प्रदर्शित किया गया। यद्यपि आज हम अपनी दशमलव प्रणाली के अभ्यस्त हो चुके हैं, किंतु सभी प्राचीन सभ्यताओं में संख्याएं दशमाधार प्रणाली पर आधारित नहीं थीं। प्राचीन बेबीलोन में 60 पर आधारित संख्या-प्रणाली का प्रचलन था। भारत में गणित के इतिहास को मुख्यता ५ कालखंडों में बांटा गया है-.

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शुल्बसूत्र

शुल्ब सूत्र या शुल्बसूत्र संस्कृत के सूत्रग्रन्थ हैं जो स्रौत कर्मों से सम्बन्धित हैं। इनमें यज्ञ-वेदी की रचना से सम्बन्धित ज्यामितीय ज्ञान दिया हुआ है। संस्कृत कें शुल्ब शब्द का अर्थ नापने की रस्सी या डोरी होता है। अपने नाम के अनुसार शुल्ब सूत्रों में यज्ञ-वेदियों को नापना, उनके लिए स्थान का चुनना तथा उनके निर्माण आदि विषयों का विस्तृत वर्णन है। ये भारतीय ज्यामिति के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं। .

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समबाहु त्रिभुज

ज्यामिति में समबाहु त्रिभुज (equilateral triangle) वह त्रिभुज है जिसकी तीनों भुजाएं समान लम्बाई की हों। यूक्लिडीय ज्यामिति में, समबाहु त्रिभुज के तीनों कोण भी समान (६० डिग्री के) होते हैं। .

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समकोण त्रिभुज

ज्यामिति में समकोण त्रिभुज की परिभाषा एक ऐसे त्रिभुज के रूप में की जाती है जिसका एक कोण 90 अंश का (अर्थात, समकोण) हो। समकोण के सामने वाली भुजा कर्ण कहलाती है। इसकी भुजाओं की लम्बाई के बीच में एक विशेष सम्बन्ध होता है जिसे बौधायन प्रमेय द्वारा व्यक्त किया जाता है। इसे शब्दों में इस प्रकार व्यक्त करते हैं- 300px.

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साँचे:त्रिकोणमितीय

This will be a list of the articles related to trigonometry - at the moment they are all spread out and overlap too much; they need focusing.

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साँचे:ज्यामिति

श्रेणी:ज्यामिति साँचा.

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सूत्र (फॉर्मूला)

यह लेख गणित, विज्ञान, प्रौद्योगिकी आदि में प्रयुक्त सूत्र या फॉर्मूला के विषय में हैं। संस्कृत साहित्य में सूत्र ग्रन्थों के लिये सम्बन्धित लेख देखें। ---- गणित में प्रतीकों एवं किसी तर्क-भाषा के रचना के नियमों का प्रयोग करते हुए बनायी गयी वस्तु को सूत्र (formula) कहते हैं। विज्ञान में किसी सूचना या विभिन्न राशियों के बीच गणितीय सम्बन्ध को संक्षिप्त तरीके से दिखाने को सूत्र कहते हैं। रासायनिक सूत्र भी किसी तत्व या यौगिक को प्रतीकात्मक रूप से संक्षेप में दिखाने का तरीका मात्र है। उदाहरण के लिये किसी गोले का आयतन का सूत्र निम्नलिखित है-; अन्य सूत्र -.

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ज्यामिति का इतिहास

1728 साइक्लोपीडिया से ज्यामिति की तालिका. ज्यामिति (यूनानी भाषा γεωμετρία; जियो .

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गणित का इतिहास

ब्राह्मी अंक, पहली शताब्दी के आसपास अध्ययन का क्षेत्र जो गणित के इतिहास के रूप में जाना जाता है, प्रारंभिक रूप से गणित में अविष्कारों की उत्पत्ति में एक जांच है और कुछ हद तक, अतीत के अंकन और गणितीय विधियों की एक जांच है। आधुनिक युग और ज्ञान के विश्व स्तरीय प्रसार से पहले, कुछ ही स्थलों में नए गणितीय विकास के लिखित उदाहरण प्रकाश में आये हैं। सबसे प्राचीन उपलब्ध गणितीय ग्रन्थ हैं, प्लिमपटन ३२२ (Plimpton 322)(बेबीलोन का गणित (Babylonian mathematics) सी.१९०० ई.पू.) मास्को गणितीय पेपाइरस (Moscow Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित (Egyptian mathematics) सी.१८५० ई.पू.) रहिंद गणितीय पेपाइरस (Rhind Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित सी.१६५० ई.पू.) और शुल्बा के सूत्र (Shulba Sutras)(भारतीय गणित सी. ८०० ई.पू.)। ये सभी ग्रन्थ तथाकथित पाईथोगोरस की प्रमेय (Pythagorean theorem) से सम्बंधित हैं, जो मूल अंकगणितीय और ज्यामिति के बाद गणितीय विकास में सबसे प्राचीन और व्यापक प्रतीत होती है। बाद में ग्रीक और हेल्लेनिस्टिक गणित (Greek and Hellenistic mathematics) में इजिप्त और बेबीलोन के गणित का विकास हुआ, जिसने विधियों को परिष्कृत किया (विशेष रूप से प्रमाणों (mathematical rigor) में गणितीय निठरता (proofs) का परिचय) और गणित को विषय के रूप में विस्तृत किया। इसी क्रम में, इस्लामी गणित (Islamic mathematics) ने गणित का विकास और विस्तार किया जो इन प्राचीन सभ्यताओं में ज्ञात थी। फिर गणित पर कई ग्रीक और अरबी ग्रंथों कालैटिन में अनुवाद (translated into Latin) किया गया, जिसके परिणाम स्वरुप मध्यकालीन यूरोप (medieval Europe) में गणित का आगे विकास हुआ। प्राचीन काल से मध्य युग (Middle Ages) के दौरान, गणितीय रचनात्मकता के अचानक उत्पन्न होने के कारण सदियों में ठहराव आ गया। १६ वीं शताब्दी में, इटली में पुनर् जागरण की शुरुआत में, नए गणितीय विकास हुए.

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गुणोत्तर माध्य प्रमेय

भूरे रंग के वर्ग का क्षेत्रफल .

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आर्यभटीय

आर्यभटीय नामक ग्रन्थ की रचना आर्यभट प्रथम (४७६-५५०) ने की थी। यह संस्कृत भाषा में आर्या छंद में काव्यरूप में रचित गणित तथा खगोलशास्त्र का ग्रंथ है। इसकी रचनापद्धति बहुत ही वैज्ञानिक और भाषा बहुत ही संक्षिप्त तथा मंजी हुई है। इसमें चार अध्यायों में १२३ श्लोक हैं। आर्यभटीय, दसगीतिका पाद से आरम्भ होती है। इसके चार अध्याय इस प्रकार हैं: 1.

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कोज्या नियम

चित्र 1 – त्रिभुज, जिसमें कोण ''α'', ''β'', तथा ''γ'' क्रमशः भुजाओं ''a'', ''b'', and ''c'' के सामने के कोण हैं। त्रिकोणमिति में एक सामान्य त्रिभुज के लिये निम्नलिखित संबन्ध को कोज्या नियम (law of cosines) या कोज्या सूत्र कहते हैं (सन्दर्भ चित्र १) - कोज्या नियम पाइथागोरस के प्रमेय का सामान्यीकृत स्थिति (केस) है, अर्थात \gamma\ .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

पायथोगोरस प्रमेय, पाईथोगोरस की प्रमेय, पाइथागोरस का प्रमेय, पाइथागोरस का सूत्र, बौधायन प्रमेय

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