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पशुपालन

सूची पशुपालन

भेड़ें और पशु चर रहे हैं। पशुपालन कृषि विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत पालतू पशुओं के विभिन्न पक्षों जैसे भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य, प्रजनन आदि का अध्ययन किया जाता है। पशुपालन का पठन-पाठन विश्व के विभिन्न विश्वविद्यालयों में एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में किया जा रहा है। .

79 संबंधों: चोल राजवंश, एरोंगो प्रदेश, तिब्बत, तिग्रे लोग, तुर्कमेनिस्तान, दक्षिण अमेरिका, दोमिनिकन गणराज्य, नान्देज, नारायण राणे, निम्बकर कृषि अनुसंधान संस्थान, नवपाषाण युग, पशु चिकित्सा विज्ञान, पशुधन, पुनर्जागरण, पुस्तकालय का इतिहास, प्रतापगढ़ (राजस्थान) की संस्कृति, प्रतापगढ़, राजस्थान, प्राचीन मिस्र, पीने का पानी, फुमी, बेक़आ वादी, भारत में पशुपालन, भारत के मूल अधिकार, निदेशक तत्त्व और मूल कर्तव्य, भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी, भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान, भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का इतिहास, भारतीय इतिहास की समयरेखा, भूवैज्ञानिक समय-मान, भेड़ पालन, भीनमाल, मांस उद्योग, मिश्रित खेती, मंडला ज़िला, मेहरगढ़, मोहन भागवत, याकूत लोग, यूरोकेन्द्रीयता, यी लोग, राजस्थान के पशु मेले, लोधी वंश, शिकारी-फ़रमर, शिकारी-खाद्य संग्रहक, शैक्षणिक विषयों की सूची, साख़ा गणतंत्र, साउथ डकोटा, सिंहली संस्कृति, सघन पशुपालन, स्कॉट्लैण्ड, सैल्मन, हमा प्रान्त, ..., हादीबू, होल छिद्रक, जैव विविधता, जेर्स, वनोन्मूलन, वाटरलू, वाहितमल उपचार, वियतनामी सीका हिरण, विजयशंकर व्यास, ख़तलोन प्रान्त, खोईखोई लोग, गाय, गुर्र, गुर्जर, ग्राम पंचायत झोंपड़ा, सवाई माधोपुर, ऑस्ट्रिया, ओट्योज़न्द्यूपा प्रदेश, ओशीकोतो प्रदेश, इसिक कुल प्रांत, कलात ज़िला, कातांगा प्रान्त, किसान, किज़िल कुम रेगिस्तान, कछी ज़िला, कुक्कुट पालन, कृषि, कृष्णम राजू, अबयन प्रान्त, अरख़ानगई प्रांत सूचकांक विस्तार (29 अधिक) »

चोल राजवंश

चोल (तमिल - சோழர்) प्राचीन भारत का एक राजवंश था। दक्षिण भारत में और पास के अन्य देशों में तमिल चोल शासकों ने 9 वीं शताब्दी से 13 वीं शताब्दी के बीच एक अत्यंत शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्य का निर्माण किया। 'चोल' शब्द की व्युत्पत्ति विभिन्न प्रकार से की जाती रही है। कर्नल जेरिनो ने चोल शब्द को संस्कृत "काल" एवं "कोल" से संबद्ध करते हुए इसे दक्षिण भारत के कृष्णवर्ण आर्य समुदाय का सूचक माना है। चोल शब्द को संस्कृत "चोर" तथा तमिल "चोलम्" से भी संबद्ध किया गया है किंतु इनमें से कोई मत ठीक नहीं है। आरंभिक काल से ही चोल शब्द का प्रयोग इसी नाम के राजवंश द्वारा शासित प्रजा और भूभाग के लिए व्यवहृत होता रहा है। संगमयुगीन मणिमेक्लै में चोलों को सूर्यवंशी कहा है। चोलों के अनेक प्रचलित नामों में शेंबियन् भी है। शेंबियन् के आधार पर उन्हें शिबि से उद्भूत सिद्ध करते हैं। 12वीं सदी के अनेक स्थानीय राजवंश अपने को करिकाल से उद्भत कश्यप गोत्रीय बताते हैं। चोलों के उल्लेख अत्यंत प्राचीन काल से ही प्राप्त होने लगते हैं। कात्यायन ने चोडों का उल्लेख किया है। अशोक के अभिलेखों में भी इसका उल्लेख उपलब्ध है। किंतु इन्होंने संगमयुग में ही दक्षिण भारतीय इतिहास को संभवत: प्रथम बार प्रभावित किया। संगमकाल के अनेक महत्वपूर्ण चोल सम्राटों में करिकाल अत्यधिक प्रसिद्ध हुए संगमयुग के पश्चात् का चोल इतिहास अज्ञात है। फिर भी चोल-वंश-परंपरा एकदम समाप्त नहीं हुई थी क्योंकि रेनंडु (जिला कुडाया) प्रदेश में चोल पल्लवों, चालुक्यों तथा राष्ट्रकूटों के अधीन शासन करते रहे। .

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एरोंगो प्रदेश

एरोंगो (Erongo Region) दक्षिणी अफ़्रीका में स्थित नामीबिया देश के १३ प्रदेशों में से एक है। इसकी राजधानी स्वाकोपमुंड (Swakopmund) है। इसका नाम एरोंगो पर्वत पर पड़ा है जो नामीबिया में जाना-माना है।, pp.

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तिब्बत

तिब्बत का भूक्षेत्र (पीले व नारंगी रंगों में) तिब्बत के खम प्रदेश में बच्चे तिब्बत का पठार तिब्बत (Tibet) एशिया का एक क्षेत्र है जिसकी भूमि मुख्यतः उच्च पठारी है। इसे पारम्परिक रूप से बोड या भोट भी कहा जाता है। इसके प्रायः सम्पूर्ण भाग पर चीनी जनवादी गणराज्य का अधिकार है जबकि तिब्बत सदियों से एक पृथक देश के रूप में रहा है। यहाँ के लोगों का धर्म बौद्ध धर्म की तिब्बती बौद्ध शाखा है तथा इनकी भाषा तिब्बती है। चीन द्वारा तिब्बत पर चढ़ाई के समय (1955) वहाँ के राजनैतिक व धार्मिक नेता दलाई लामा ने भारत में आकर शरण ली और वे अब तक भारत में सुरक्षित हैं। .

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तिग्रे लोग

तिग्रे (Tigre people) पूर्वी अफ़्रीका में इरित्रिया और सूडान के कुछ क्षेत्रों में बसने वाले एक समुदाय का नाम है। इसके सदस्य तिग्रे भाषा बोलते हैं। व्यावसायिक रूप से वे अधिकतर ख़ानाबदोश पशु-पालन में जुटे हुए हैं। तिग्रे लोग इरित्रिया और इथियोपिया के तिग्राय-तिग्रीन्या लोगों और सूडान के बेजा लोगों से सम्बन्धित लेकिन भिन्न हैं। .

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तुर्कमेनिस्तान

तुर्कमेनिस्तान (तुर्कमेनिया के नाम से भी जाना जाता है) मध्य एशिया में स्थित एक तुर्किक देश है। १९९१ तक तुर्कमेन सोवियत समाजवादी गणराज्य (तुर्कमेन SSR) के रूप में यह सोवियत संघ का एक घटक गणतंत्र था। इसकी सीमा दक्षिण पूर्व में अफ़ग़ानिस्तान, दक्षिण पश्चिम में ईरान, उत्तर पूर्व में उज़्बेकिस्तान, उत्तर पश्चिम में कज़ाख़िस्तान और पश्चिम में कैस्पियन सागर से मिलती है। 'तुर्कमेनिस्तान' नाम फारसी से आया है, जिसका अर्थ है, 'तुर्कों की भूमि'। देश की राजधानी अश्गाबात (अश्क़ाबाद) है। इसका हल्के तौर पर "प्यार का शहर" या "शहर जिसको मोहब्बत ने बनाया" के रूप में अनुवाद होता है। यह अरबी के शब्द 'इश्क़' और फारसी प्रत्यय 'आबाद' से मिलकर बना है।, Bradley Mayhew, Lonely Planet, 2007, ISBN 978-1-74104-614-4,...

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दक्षिण अमेरिका

दक्षिण अमेरिका (स्पेनी: América del Sur; पुर्तगाली: América do Sul) उत्तर अमेरिका के दक्षिण पूर्व में स्थित पश्चिमी गोलार्द्ध का एक महाद्वीप है। दक्षिणी अमेरिका उत्तर में १३० उत्तरी अक्षांश (गैलिनस अन्तरीप) से दक्षिण में ५६० दक्षिणी अक्षांश (हार्न अन्तरीप) तक एवं पूर्व में ३५० पश्चिमी देशान्तर (रेशिको अन्तरीप) से पश्चिम में ८१० पश्चिमी देशान्तर (पारिना अन्तरीप) तक विस्तृत है। इसके उत्तर में कैरीबियन सागर तथा पनामा नहर, पूर्व तथा उत्तर-पूर्व में अन्ध महासागर, पश्चिम में प्रशान्त महासागर तथा दक्षिण में अण्टार्कटिक महासागर स्थित हैं। भूमध्य रेखा इस महाद्वीप के उत्तरी भाग से एवं मकर रेखा मध्य से गुजरती है जिसके कारण इसका अधिकांश भाग उष्ण कटिबन्ध में पड़ता है। दक्षिणी अमेरिका की उत्तर से दक्षिण लम्बाई लगभग ७,२०० किलोमीटर तथा पश्चिम से पूर्व चौड़ाई ५,१२० किलोमीटर है। विश्व का यह चौथा बड़ा महाद्वीप है, जो आकार में भारत से लगभग ६ गुना बड़ा है। पनामा नहर इसे पनामा भूडमरुमध्य पर उत्तरी अमरीका महाद्वीप से अलग करती है। किंतु पनामा देश उत्तरी अमरीका में आता है। ३२,००० किलोमीटर लम्बे समुद्रतट वाले इस महाद्वीप का समुद्री किनारा सीधा एवं सपाट है, तट पर द्वीप, प्रायद्वीप तथा खाड़ियाँ कम हैं जिससे अच्छे बन्दरगाहों का अभाव है। खनिज तथा प्राकृतिक सम्पदा में धनी यह महाद्वीप गर्म एवं नम जलवायु, पर्वतों, पठारों घने जंगलों तथा मरुस्थलों की उपस्थिति के कारण विकसित नहीं हो सका है। यहाँ विश्व की सबसे लम्बी पर्वत-श्रेणी एण्डीज पर्वतमाला एवं सबसे ऊँची टीटीकाका झील हैं। भूमध्यरेखा के समीप पेरू देश में चिम्बोरेजो तथा कोटोपैक्सी नामक विश्व के सबसे ऊँचे ज्वालामुखी पर्वत हैं जो लगभग ६,०९६ मीटर ऊँचे हैं। अमेजन, ओरीनिको, रियो डि ला प्लाटा यहाँ की प्रमुख नदियाँ हैं। दक्षिण अमेरिका की अन्य नदियाँ ब्राज़ील की साओ फ्रांसिस्को, कोलम्बिया की मैगडालेना तथा अर्जेण्टाइना की रायो कोलोरेडो हैं। इस महाद्वीप में ब्राज़ील, अर्जेंटीना, चिली, उरुग्वे, पैराग्वे, बोलिविया, पेरू, ईक्वाडोर, कोलोंबिया, वेनेज़ुएला, गुयाना (ब्रिटिश, डच, फ्रेंच) और फ़ाकलैंड द्वीप-समूह आदि देश हैं। .

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दोमिनिकन गणराज्य

दोमिनिकन गणराज्य (Dominican Republic) उत्तर अमेरिका महाद्वीप में केरिबियन क्षेत्र में एक देश है। राष्ट्रीय राजधानी सान्तो दोमिन्गो नामक शहर है जो डिस्ट्रिटो नैशनल में स्थित है। .

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नान्देज

नान्देज (ते. दस्क्रोइ) भारत देश के पश्चिम भाग मे स्थित गुजरात राज्य के मध्य भाग मे अहमदाबाद जिल्ले के कुल ११ तालुका मे से एक दस्क्रोइ मे बसा गाव है। नान्देज गाव के लोगो का मुख्य व्यवसाय खेती, खेत मजदूरी, और पशुपालन है। इस गाव मे मुख्यरूप से गेहु, बाजरा, कपास, रेंड़ी और सब्जी जैसे पाक की खेती होती है। इस गाव मे प्राथमिक विद्यालय, पंचायत घर, आंगनवाड़ी और दुध बिक्री केन्द्र जैसी सुविधाएं उप्लब्ध है।  श्रेणी:गुजरात के गाँव श्रेणी:आधार.

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नारायण राणे

नारायण राणे (नारायण राणे) (जन्म 10 अप्रैल 1952) महाराष्ट्र सरकार, भारत के मौजूदा राजस्व मंत्री हैं और महाराष्ट्र राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हैं। जुलाई 2005 में वे भारतीय कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए जिसके पहले वे शिवसेना के सदस्य थे। राजनीति से जुड़ने से पहले वे चेंबूर क्षेत्र में हन्या-नर्या गिरोह के सदस्य थे, जो कि मुंबई का एक उपनगर है। उन्होंने महाराष्ट्र राज्य सरकार के बिक्री कर विभाग के साथ भी काम किया है। 6 दिसम्बर 2008 को उन्हें पार्टी के बारे में प्रतिकूल टिप्पणियां पारित करने के लिए भारतीय नेशनल कांग्रेस से निलंबित कर दिया गया था। 19 फ़रवरी 2009 को पार्टी की मुखिया सोनिया गांधी को माफीनामा पत्र देने के बाद पार्टी द्वारा उनके निलंबन को रद्द किया गया। .

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निम्बकर कृषि अनुसंधान संस्थान

निम्बकर कृषि अनुसंधान संस्थान (Nimbkar Agricultural Research Institute (NARI)) महाराष्ट्र के फलटण में स्थित एक अशासकीय एवं लाभनिरपेक्ष विकास संस्थान संस्था है। यह संस्था कृषि, नवीकरणीय ऊर्जा, पशुपालन तथा टिकाऊ विकास आदि के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास कार्य करती है। इसकी स्थापना १९६८ में बी वी निम्बकर ने की थी। १९९० तक वे ही इसके अध्यक्ष रहे। वर्तमान समय में डॉ नंदिनी निम्बकर इसकी अध्यक्ष हैं तथा डॉ अनिल कुमार राजवंशी इसके निदेशक हैं। श्रेणी:भारत की अशासकीय संस्थाएँ.

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नवपाषाण युग

अनेकों प्रकार की निओलिथिक कलाकृतियां जिनमें कंगन, कुल्हाड़ी का सिरा, छेनी और चमकाने वाले उपकरण शामिल हैं नियोलिथिक युग, काल, या अवधि, या नव पाषाण युग मानव प्रौद्योगिकी के विकास की एक अवधि थी जिसकी शुरुआत मध्य पूर्व: फस्ट फार्मर्स: दी ओरिजंस ऑफ एग्रीकल्चरल सोसाईटीज़ से, पीटर बेल्वुड द्वारा, 2004 में 9500 ई.पू.

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पशु चिकित्सा विज्ञान

एक गधे के घाव को साफ करने का तरीका सिखाते हुए पशु-तकनीशियन पशु-चिकित्सा-विज्ञान (Veterinary medicine) में मनुष्येतर जीवों की शरीररचना (anatomy), शरीरक्रिया (physiology), विकृतिविज्ञान (pathology), भेषज (medicine) तथा शल्यकर्म (surgery) का अध्ययन होता है। पशुपालन शब्द से साधारणतया स्वस्थ पशुओं के वैज्ञानिक ढंग से आहार, पोषण, प्रजनन, एवं प्रबंध का बोध होता है। पाश्चात्य देशों में पशुपालन एवं पशुचिकित्सा दोनों भिन्न-भिन्न माने गए हैं पर भारत में ये दोनों एक दूसरे के सूचक समझे जाते हैं। .

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पशुधन

घरेलू भेड़ और एक गाय (बछिया) दक्षिण अफ्रीका में एक साथ चराई करते हुए एक या अधिक पशुओं के समूह को, जिन्हें कृषि सम्बन्धी परिवेश में भोजन, रेशे तथा श्रम आदि सामग्रियां प्राप्त करने के लिए पालतू बनाया जाता है, पशुधन के नाम से जाना जाता है। शब्द पशुधन, जैसा कि इस लेख में प्रयोग किया गया है, में मुर्गी पालन तथा मछली पालन सम्मिलित नहीं है; हालांकि इन्हें, विशेष रूप से मुर्गीपालन को, साधारण रूप से पशुधन में सम्मिलित किया जाता हैं। पशुधन आम तौर पर जीविका अथवा लाभ के लिए पाले जाते हैं। पशुओं को पालना (पशु-पालन) आधुनिक कृषि का एक महत्वपूर्ण भाग है। पशुपालन कई सभ्यताओं में किया जाता रहा है, यह शिकारी-संग्राहक से कृषि की ओर जीवनशैली के अवस्थांतर को दर्शाता है। .

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पुनर्जागरण

फ्लोरेंस पुनर्जागरण का केन्द्र था पुनर्जागरण या रिनैंसा यूरोप में मध्यकाल में आये एक संस्कृतिक आन्दोलन को कहते हैं। यह आन्दोलन इटली से आरम्भ होकर पूरे यूरोप फैल गया। इस आन्दोलन का समय चौदहवीं शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी तक माना जाता है।.

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पुस्तकालय का इतिहास

आधुनिक भारत में पुस्तकालयों का विकास बड़ी धीमी गति से हुआ है। हमारा देश परतंत्र था और विदेशी शासन के कारण शिक्षा एवं पुस्तकालयों की ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया गया। इसी से पुस्तकालय आंदोलन का स्वरूप राष्ट्रीय नहीं था और न इस आंदोलन को कोई कानूनी सहायता ही प्राप्त थीं। बड़ौदा राज्य का योगदान इस दिशा में प्रशंसनीय रहा है। यहाँ पर 1910 ई. में पुस्तकालय आंदोलन प्रारंभ किया गया। राज्य में एक पुस्तकालय विभाग खोला गया और पुस्तकालयों चार श्रेणियों में विभक्त किया गया- जिला पुस्तकालय, तहसील पुस्तकालय, नगर पुस्तकालय, एवं ग्राम पुस्तकालय आदि। पूरे राज्य में इनका जाल बिछा दिया गया था। भारत में सर्वप्रथम चल पुस्तकालय की स्थापना भी बड़ौदा राज्य में ही हुई। श्री डब्ल्यू.

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प्रतापगढ़ (राजस्थान) की संस्कृति

सीतामाता मंदिर के सामने एक मीणा आदिवासी: छाया: हे. शे. हालाँकि प्रतापगढ़ में सभी धर्मों, मतों, विश्वासों और जातियों के लोग सद्भावनापूर्वक निवास करते हैं, पर यहाँ की जनसँख्या का मुख्य घटक- लगभग ६० प्रतिशत, मीना आदिवासी हैं, जो राज्य में 'अनुसूचित जनजाति' के रूप में वर्गीकृत हैं। पीपल खूंट उपखंड में तो ८० फीसदी से ज्यादा आबादी मीणा जनजाति की ही है। जीवन-यापन के लिए ये मीना-परिवार मूलतः कृषि, मजदूरी, पशुपालन और वन-उपज पर आश्रित हैं, जिनकी अपनी विशिष्ट-संस्कृति, बोली और वेशभूषा रही है। अन्य जातियां गूजर, भील, बलाई, भांटी, ढोली, राजपूत, ब्राह्मण, महाजन, सुनार, लुहार, चमार, नाई, तेली, तम्बोली, लखेरा, रंगरेज, रैबारी, गवारिया, धोबी, कुम्हार, धाकड, कुलमी, आंजना, पाटीदार और डांगी आदि हैं। सिख-सरदार इस तरफ़ ढूँढने से भी नज़र नहीं आते.

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प्रतापगढ़, राजस्थान

प्रतापगढ़, क्षेत्रफल में भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान के ३३वें जिले प्रतापगढ़ जिले का मुख्यालय है। प्राकृतिक संपदा का धनी कभी इसे 'कान्ठल प्रदेश' कहा गया। यह नया जिला अपने कुछ प्राचीन और पौराणिक सन्दर्भों से जुड़े स्थानों के लिए दर्शनीय है, यद्यपि इसके सुविचारित विकास के लिए वन विभाग और पर्यटन विभाग ने कोई बहुत उल्लेखनीय योगदान अब तक नहीं किया है। .

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प्राचीन मिस्र

गीज़ा के पिरामिड, प्राचीन मिस्र की सभ्यता के सबसे ज़्यादा पहचाने जाने वाले प्रतीकों में से एक हैं। प्राचीन मिस्र का मानचित्र, प्रमुख शहरों और राजवंशीय अवधि के स्थलों को दर्शाता हुआ। (करीब 3150 ईसा पूर्व से 30 ई.पू.) प्राचीन मिस्र, नील नदी के निचले हिस्से के किनारे केन्द्रित पूर्व उत्तरी अफ्रीका की एक प्राचीन सभ्यता थी, जो अब आधुनिक देश मिस्र है। यह सभ्यता 3150 ई.पू.

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पीने का पानी

नल का पानी पीने का पानी या पीने योग्य पानी, समुचित रूप से उच्च गुणवत्ता वाला पानी होता है जिसका तत्काल या दीर्घकालिक नुकसान के न्यूनतम खतरे के साथ सेवन या उपयोग किया जा सकता है। अधिकांश विकसित देशों में घरों, व्यवसायों और उद्योगों में जिस पानी की आपूर्ति की जाती है वह पूरी तरह से पीने के पानी के स्तर का होता है, लेकिन वास्तविकता में इसके एक बहुत ही छोटे अनुपात का उपयोग सेवन या खाद्य सामग्री तैयार करने में किया जाता है। दुनिया के ज्यादातर बड़े हिस्सों में पीने योग्य पानी तक लोगों की पहुंच अपर्याप्त होती है और वे बीमारी के कारकों, रोगाणुओं या विषैले तत्वों के अस्वीकार्य स्तर या मिले हुए ठोस पदार्थों से संदूषित स्रोतों का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह का पानी पीने योग्य नहीं होता है और पीने या भोजन तैयार करने में इस तरह के पानी का उपयोग बड़े पैमाने पर त्वरित और दीर्घकालिक बीमारियों का कारण बनता है, साथ ही कई देशों में यह मौत और विपत्ति का एक प्रमुख कारण है। विकासशील देशों में जलजनित रोगों को कम करना सार्वजनिक स्वास्थ्य का एक प्रमुख लक्ष्य है। सामान्य जल आपूर्ति नेटवर्क पीने योग्य पानी नल से उपलब्ध कराते हैं, चाहे इसका उपयोग पीने के लिए या कपड़े धोने के लिए या जमीन की सिंचाई के लिए किया जाना हो.

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फुमी

फुमी जाति चीन की बहुत कम जन संख्या वाली जातियों में से एक है, अब उस की कुल जन संख्या मात्र तीस हजार है, जो दक्षिण पश्चिम चीन के युन्नान प्रांत के उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र में स्थित पाई व फुमी जातीय स्वायत्त काऊंटी में रहती है। फुमी जाति के पूर्वज चीन के उत्तर पश्चिम भाग में घास मैदान में रहते थे और घुमंतू पशुपालन का जीवन बिताते थे। करीब 13 वीं शताब्दी में वे स्थानांतरित हो कर आज के आबाद स्थल आ कर बस गए। बीते सात सौ सालों में फुमी जाति के लोग युन्नान प्रांत के नानपिंग क्षेत्र की फुमी काऊंटी में रहते हुए अपनी जाति की अलग पहचान बनाए रखे हुए हैं, उन के जातीय संगीत, भाषा, संस्कृति व रीति रिवाज में स्पष्ट विशेषता पायी जाती है। फुमी जाति के विशेष ढंग के वाद्ययंत्र बांसुरी से बजायी गई धुन बहुलॉत सुरीली है, फुमी जाति के युवा येन ल्येनचुन को अपना जातीय वाद्य बजाना बहुत पसंद है। येन ल्येनचुन का जन्म युन्नान प्रांत के फुमी जाति बहुल स्थान में हुआ था, पर विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद वह पेइचिंग में बस गए, उस के दिल में अपने गांव तथा अपनी जाति की संस्कृति के प्रति गाढ़ा लगाव है और उसे फुमी का संगीत बहुत पसंद भी है। उस की बांसुरी धुन से घने पहाड़ी जंगल में आबाद फुमी गांव की याद आती है। फुमी जाति के लोग अपनी जाति से बहुत प्यार करते हैं, उन के जीवन में ढेर सारी प्राचीन मान्यताएं और प्रथाएं सुरक्षित हैं। युवा लोग बुजुर्ग पीढ़ी से एतिहासिक कहानी सुनने के उत्सुक हैं, जब कि बुजुर्ग लोग भी वाचन गायन के रूप में फुमी जाति के उत्तर से दक्षिण में स्थानांतरित होने का इतिहास बताना पसंद करते हैं। इन कहानियों से फुमी जाति के पूर्वजों की मेहनत तथा बुद्धिमता जाहिर होती है। अपने पूर्वजों के लम्बे रास्ते के स्थानांतरण की याद में फुमी महिलाओं के बहु तहों वाले स्कर्ट के बीचोंबीच लाल रंग की धागे से एक घूमादार रेखा कसीदा की जाती है, यह घूमादार रेखा फुमी के पूर्वजों के स्थानांतरण का प्रतीक है। फुमी लोगों की मान्यता के अनुसार उन की मृत्यु के बाद वे इसी रास्ते से अपना अंतिम पड़ाव पहुंच जाते हैं। फुमी जाति के लोग मानते हैं कि मृत्यु के बाद उन की आत्मा अपनी जन्म भूमि वापस लौटती है, इसलिए वे अंतिम संस्कार के आयोजन में भी पूर्वजों की समृत्ति में रस्म जोड़ देते हैं। फुमी जाति के लोगों के अंतिम संस्कार में बकरी का मार्ग दर्शन नामक रस्म होता है, इस के अनुसार पुजारी मृतक को उस के पूर्वजों के नाम और उत्तरी भाग में लौटने का रास्ता बताता है, मृतक को रास्ता दिखाने के लिए एक बकरी भी लाता है। रस्म के दौरान पुजारी यह मंत्र जपाता रहता है कि तुरंत तैयार हो, यह सफेद बालों वाला बकरी तुझे रास्ता दिखाएगा, तुम हमारे पूर्वजों की जन्म भूमि --उत्तरी भाग लौट जाओ। फुमी जाति में अपनी जाति की विशेषता बनाए रखने के लिए अनेक रीति रिवाज प्रचलित होते हैं। मसलन् घुमंतू जाति की संतान होने के नाते फुमी जाति के बच्चे 13 साल की उम्र में ही व्यस्क माने जाते हैं, इस के लिए व्यस्क रस्म आयोजित होता है। श्री येन ल्येनचुन ने अपने व्यस्क रस्म की याद करते हुए कहाः व्यस्क रस्म फुमी जाति के बच्चों का एक अहम उत्सव है, यह इस का प्रतीक है कि बच्चे अब परवान चढ़ गए हैं। व्यस्क रस्म के आयोजन के समय परिवार के सभी लोग अग्नि कुंड के सामने इक्ट्ठे हो जाते हैं, अग्नि कुंड के आगे देव स्तंभ खड़ा किया गया है, व्यस्क रस्म लेने वाले बच्चे का पांव अनाज से भरी बौरे पर दबा हुआ है, इस का अर्थ है कि उस का भावी जीवन खुशहाल होगा। रस्म के दौरान बच्चा हाथों में चौकू और चांदी की सिक्का पकड़ता है और बच्ची कंगन, रेशम और टाट के कपड़े हाथ में लेती है। यह उन की मेहनत और कार्यकुशलता का परिचायक होता है। व्यस्क रस्म के बाद फुमी जाति के युवक युवती सामुहित उत्पादन श्रम तथा विभिन्न सामाजिक कार्यवाहियों में भाग लेने लगते हैं और उन्हें प्यार मुहब्बत करने तथा शादी ब्याह करने की हैसियत भी प्राप्त हुई है। फुमी जाति में स्वतंत्र प्रेम विवाह की प्रथा चलती है। जाति में दुल्हन छीनने की प्रथा अब भी फुमी लोग बहुल क्षेत्रों में चलती है। .

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बेक़आ वादी

बेक़आ वादी में क़राऊन​ झील ज़हले शहर, जो बेक़आ प्रान्त की राजधानी और बेक़आ वादी का सबसे बड़ा नगर है रोमन काल में बना बालबेक में बाकस का मंदिर बेक़आ वादी (अरबी:, वादी अल-बिक़आ; अंग्रेज़ी: Beqaa Valley) पूर्वी लेबनान में स्थित एक उपजाऊ घाटी है। रोमन काल में यह एक महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्र था और आधुनिक लेबनान का भी सबसे अहम कृषि इलाक़ा है।, Laura S. Etheredge, pp.

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भारत में पशुपालन

किसान के घर के पास बंधी हुई गायें भारत में बहुत से किसानों की जीविका पशुपालन से चलती है। दूध, मांस, अण्डा, ऊन आदि की प्राप्ति के अलावा पशुओं का उपयोग शक्ति के स्रोत के रूप में भी होता है (मुख्यतः बैल)। अतः ग्रामीन अर्थव्यवस्था में पशुपालन की महती भूमिका है। .

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भारत के मूल अधिकार, निदेशक तत्त्व और मूल कर्तव्य

भारत के संविधान की प्रस्तावना - भारत के मौलिक और सर्वोच्च कानून मूल अधिकार, राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व और मूल कर्तव्य भारत के संविधान के अनुच्छेद हैं जिनमें अपने नागरिकों के प्रति राज्य के दायित्वों और राज्य के प्रति नागरिकों के कर्तव्यों का वर्णन किया गया है। इन अनुच्छेदों में सरकार के द्वारा नीति-निर्माण तथा नागरिकों के आचार एवं व्यवहार के संबंध में एक संवैधानिक अधिकार विधेयक शामिल है। ये अनुच्छेद संविधान के आवश्यक तत्व माने जाते हैं, जिसे भारतीय संविधान सभा द्वारा 1947 से 1949 के बीच विकसित किया गया था। ''मूल अधिकारों'' को सभी नागरिकों के बुनियादी मानव अधिकार के रूप में परिभाषित किया गया है। संविधान के भाग III में परिभाषित ये अधिकार नस्ल, जन्म स्थान, जाति, पंथ या लिंग के भेद के बिना सभी पर लागू होते हैं। ये विशिष्ट प्रतिबंधों के अधीन अदालतों द्वारा प्रवर्तनीय हैं। राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत सरकार द्वारा कानून बनाने के लिए दिशानिदेश हैं। संविधान के भाग IV में वर्णित ये प्रावधान अदालतों द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं, लेकिन जिन सिद्धांतों पर ये आधारित हैं, वे शासन के लिए मौलिक दिशानिदेश हैं जिनको राज्य द्वारा कानून तैयार करने और पारित करने में लागू करने की आशा की जाती है। मौलिक कर्तव्यों को देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देने तथा भारत की एकता को बनाए रखने के लिए भारत के सभी नागरिकों के नैतिक दायित्वों के रूप में परिभाषित किया गया है। संविधान के चतुर्थ भाग में वर्णित ये कर्तव्य व्यक्तियों और राष्ट्र से संबंधित हैं। निदेशक सिद्धांतों की तरह, इन्हें कानूनी रूप से लागू नहीं किया जा सकता। .

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भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी

300px भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान (Indian Grassland and Fodder Research Institute) उत्तर प्रदेश के झांसी में स्थित है। इसकी स्थापना 1962 में हुई थी। झांसी में इस संस्थान की स्थापना करने का मुख्य कारण यहाँ सभी प्रमुख घासों का पाया जाना भी था। तत्पश्चात् सन् 1966 में इसका प्रशासनिक नियंत्रण भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली को सौंपा गया। संस्थान ने अपने स्थापना काल से ही चारा उत्पादन व उपयोग के विभिन्न पहलुओं पर अनुसंधान कर राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसका प्रचार-प्रसार करने और समन्वित विकास करने में अहम् भूमिका निभायी है। इसके अतिरिक्त संस्थान में अखिल भारतीय चारा समन्वित परियोजना का संचालन भी किया जा रहा है। साथ ही संस्थान के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए देश-विदेश के सहयोग से अन्य परियोजनाएं सफलतापूर्वक संचालित की जा रहीं हैं। जलवायु तथा कृषि की क्षेत्रीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर भारत के अन्य भागों में इस संस्थान के तीन क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र स्थापित किए गए हैं जो अंबिका नगर (राजस्थान), धारवाड़ (कर्नाटक) एवं पालमपुर (हिमाचल प्रदेश) में स्थित हैं। .

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भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान

भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान (Indian Veterinary Research Institute या IVRI) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बरेली जिले में इज्जतनगर में स्थित है। यह पशुचिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में भारत की प्रमुख संस्था है। इसकी स्थापना सन् 1889 में हुई थी। .

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भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का इतिहास

भारत की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की विकास-यात्रा प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होती है। भारत का अतीत ज्ञान से परिपूर्ण था और भारतीय संसार का नेतृत्व करते थे। सबसे प्राचीन वैज्ञानिक एवं तकनीकी मानवीय क्रियाकलाप मेहरगढ़ में पाये गये हैं जो अब पाकिस्तान में है। सिन्धु घाटी की सभ्यता से होते हुए यह यात्रा राज्यों एवं साम्राज्यों तक आती है। यह यात्रा मध्यकालीन भारत में भी आगे बढ़ती रही; ब्रिटिश राज में भी भारत में विज्ञान एवं तकनीकी की पर्याप्त प्रगति हुई तथा स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों में तेजी से प्रगति कर रहा है। सन् २००९ में चन्द्रमा पर यान भेजकर एवं वहाँ पानी की प्राप्ति का नया खोज करके इस क्षेत्र में भारत ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की है। चार शताब्दियों पूर्व प्रारंभ हुई पश्चिमी विज्ञान व प्रौद्योगिकी संबंधी क्रांति में भारत क्यों शामिल नहीं हो पाया ? इसके अनेक कारणों में मौखिक शिक्षा पद्धति, लिखित पांडुलिपियों का अभाव आदि हैं। .

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भारतीय इतिहास की समयरेखा

पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं भारत एक साझा इतिहास के भागीदार हैं इसलिए भारतीय इतिहास की इस समय रेखा में सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास की झलक है। .

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भूवैज्ञानिक समय-मान

यह घड़ी भूवैज्ञानिक काल के प्रमुख ईकाइयों के के साथ-साथ पृथ्वी के जन्म से लेकर आज तक की प्रमुख घटनाओं को भी दिखा रही है। भूवैज्ञानिक समय-मान (geologic time scale) कालानुक्रमिक मापन की एक प्रणाली है जो स्तरिकी (stratigraphy) को समय के साथ जोड़ती है। यह एक स्तरिक सारणी (stratigraphic table) है। भूवैज्ञानिक, जीवाश्मवैज्ञानिक तथा पृथ्वी का अध्ययन करने वाले अन्य वैज्ञानिक इसका प्रयोग धरती के सम्पूर्ण इतिहास में हुई सभी घटनाओं का समय अनुमान करने के लिये करते हैं। जिस प्रकार चट्टानो के अधिक पुराने स्तर नीचे होते हैं तथा अपेक्षाकृत नये स्तर उपर होते हैं, उसी प्रकार इस सारणी में पुराने काल और घटनाएँ नीचे हैं जबकि नवीन घटनाएँ उपर (पहले) दी गई हैं। विकिरणमितीय प्रमाणों (radiomeric evidence) से पता चलता है पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 अरब वर्ष है। .

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भेड़ पालन

भेड़ों का झुण्ड भेड़ का मनुष्य से सम्बन्ध आदि काल से है तथा भेड़ पालन एक प्राचीन व्यवसाय है। भेड़ पालक भेड़ से ऊन तथा मांस तो प्राप्त करता ही है, भेड़ की खाद भूमि को भी अधिक ऊपजाऊ बनाती है। भेड़ कृषि-अयोग्य भूमि में चरती है, कई खरपतवार आदि अनावश्यक घासों का उपयोग करती है तथा उंचाई पर स्थित चरागाह जोकि अन्य पशुओं के अयोग्य है, उसका उपयोग करती है। भेड़ पालक भेड़ों से प्रति वर्ष मेमने प्राप्त करते हैं। भेड़: भेड़ पालन करने के लिए शुरुआती गाइड.

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भीनमाल

भीनमाल (English:Bhinmal) राजस्थान राज्य के जालौर जिलान्तर्गत भारत का एक ऐतिहसिक शहर है। यहाँ से आशापुरी माताजी तीर्थ स्थल मोदरान स्टेशन भीनमाल के पास स्थित है जिसकी यहां से दूरी 28 किलोमीटर है। शहर प्राचीनकाल में 'श्रीमाल' नगर के नाम से जाना जाता था। "श्रीमाल पुराण" व हिंदू मान्यताओ के अनुसार विष्णु भार्या महालक्ष्मी द्वारा इस नगर को बसाया गया था। इस प्रचलित जनश्रुति के कारण इसे 'श्री' का नगर अर्थात 'श्रीमाल' नगर कहा गया। प्राचीनकाल में गुजरात राज्य की राजधानी रहा भीनमाल संस्कृत साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान महाकवि माघ एवँ खगोलविज्ञानी व गणीतज्ञ ब्रह्मगुप्त की जन्मभूमि है। यह शहर जैन धर्म का विख्यात तीर्थ है। .

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मांस उद्योग

मांस के उत्पादन, पैकिंग, संरक्षण, तथा विपणन के लिये किये जाने वाले आधुनिक ढंग के औद्योगिक पशुपालन को मांस उद्योग (meat industry) कहते हैं। यह दुग्ध उत्पादन या ऊन उत्पादन से बिल्कुल अलग है। .

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मिश्रित खेती

जब फसलों के उत्पादन के साथ-साथ पशुपालन भी किया जाता है तो इसे मिश्रित कृषि या मिश्रित खेती (Mixed farming) कहते हैं। फसलोत्पादन के‚ साथ-साथ जब पशुपालन भी आय का स्रोत हो तो ऐसी खेती को मिश्रित खेती कहते हैं। मिश्रित् खेती में फसलोत्पादन के साथ केवल दुधारू गाय एवं भैंस पालन तक ही सीमित रखा गया है। जब फसलोत्पादन के साथ गाय-भैंस के अलावा भेड़, बकरी अथवा मुर्गी-पालन भी किया जाता है तब ऐसे प्रक्षेत्र को विविधकरण खेती की श्रेणी में रखा जाता है। बैलों का पालन डेरी व्यवसाय के रूप में नहीं देखा जाता है। भारत में पहले से भी मिश्रित् खेती होती आ रही है मिश्रित् खेती क्यों? मिश्रित खेती कहीं पर लाभ के उद्देश्य से किया जाता है तो कहीं मजबूरी के कारण। जैसे किसी क्षेत्र विशेष में अगर पशुओं की महामारी होने की सम्भावना संभावना रहती है तो केवल फसल उत्पादन ही कर पाता है और यदि फसलों में बीमारी होने की सम्भावना हो तो कृषक अपने अजीविका के लिये पशुपालन की तरफ देखता है। .

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मंडला ज़िला

मण्डला जिला मंडला जिला, भारत के मध्य प्रदेश राज्य में सतपुड़ा पहाड़ियों में स्थित एक जिला है। नर्मदा नदी उत्तर-पश्चिम बहती हुई इस जिले को रीवा से अलग करती है। नर्मदा की सहायक बंजार नदी की घाटी में जिले का सबसे अधिक उपजाऊ भाग पड़ता है, जिसे 'हवेली' कहते हैं। हवेली के दक्षिण बंजार की घाटी जंगलों से ढकी हुई हैं। सर्वप्रमुख इमारती पेड़ साल हैं। बाँस, टीक और हरड़ अन्य उल्लेखनीय वृक्ष हैं। नदियों की घाटियों में धान, गेहूँ और तिलहन की उपज होती है। जंगल में चीता के आखेट के लिये यह एक प्रसिद्ध जिला हैं। लाख उत्पादन, लकड़ी चीरना, पान उगाना, पशुपालन, चटाई और रस्सियों का निर्माण यहाँ के लोगों के उद्यम हैं। यहाँ के 60 प्रतिशत निवासी गौंड़ जनजाति के हें। यहाँ मैगनीज और धातु के निक्षेप हैं। मंडला नगर, नर्मदा नदी के किनारे जबलपुर के 45 मील दक्षिण-पूर्व में मंडला जिले का प्रशासनिक केन्द्र है, जो तीन ओर से नर्मदा द्वारा घिरा हुआ हैं। फुल धातु ((Bell metal) के पात्रों के लिये विख्यात है। यह गोंड़ वंश की राजधानी रह चुका है। यहाँ किले और प्रासाद के अवशेष हैं। देश का एकमात्र जीवाश्म राष्ट्रीय पार्क मंडला जिले में स्थित है। श्रेणी:मध्य प्रदेश के जिले.

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मेहरगढ़

प्राचीन मेहरगढ़, पाकिस्तानमेहरगढ़ पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण एक स्थान है जहाँ नवपाषाण युग (७००० ईसा-पूर्व से ३३००ईसा-पूर्व) के बहुत से अवशेष मिले हैं। यह स्थान वर्तमान बलूचिस्तान (पाकिस्तान) के कच्ची मैदानी क्षेत्र में है। यह स्थान विश्व के उन स्थानों में से एक है जहाँ प्राचीनतम कृषि एवं पशुपालन से सम्बन्धित साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। इन अवशेषों से पता चलता है कि यहाँ के लोग गेहूँ एवं जौ की खेती करते थे तथा भेड़, बकरी एवं अन्य जानवर पालते थे। ". मेहरगढ़ आज के बलूचिस्तान में बोलन नदी के किनारे स्थित है। भारतीय इतिहास में इस स्थल का महत्व अनेक कारणों से है। यह स्थल भारतीय उप महाद्वीप को भी गेंहूँ-जौ के मूल कृषि वाले क्षेत्र में शामिल कर देता है और नवपाषण युग के भारतीय काल निर्धारण को विश्व के नवपाषण काल निर्धारण के अधिक समीप ले आता है। इसके अतिरिक्त इस स्थल से सिंधु सभ्यता के विकास और उत्पत्ति पर प्रकाश पड़ता है। यह स्थल हड़प्पा सभ्यता से पूर्व का ऐसा स्थल है जहां से हड़प्पा जैसे ईंटों के बने घर मिले हैं और लगभग 6500 वर्तमान पूर्व तक मेहरगढ़ वासी हड़प्पा जैसे औज़ार एवं बर्तन भी बनाने लगे थे। निश्चित तौर पर इस पूरे क्षेत्र में ऐसे और भी स्थल होंगे जिनकी यदि खुदाई की जाए तो हड़प्पा सभ्यता के संबंध में नए तथ्य मिल सकते हैं। मेहरगढ़ से प्राप्त एक औज़ार ने सभी का ध्यान आकर्षित किया है। यह एक ड्रिल है जो बहुत कुछ आधुनिक दाँत चिकित्सकों की ड्रिल से मिलती जुलती है। इस ड्रिल के प्रयोग के साक्ष्य भी स्थल से प्राप्त दाँतों से मिले हैं। यह ड्रिल तांबे की है और इस नयी धातु को ले कर आरंभिक मानव की उत्सुकता के कारण इस पर अनेक प्रयोग उस समय किए गए होंगे ऐसा इस ड्रिल के आविष्कार से प्रतीत होता है। एक अन्य महत्वपूर्ण वस्तु है सान पत्थर जो धातु के धारदार औज़ार और हथियार बनाने के काम आता था। मेहरगढ़ से प्राप्त होने वाली अन्य वस्तुओं में बुनाई की टोकरियाँ, औज़ार एवं मनके हैं जो बड़ी मात्र में मिले हैं। इनमें से अनेक मनके अन्य सभ्यताओं के भी लगते हैं जो या तो व्यापार अथवा प्रवास के दौरान लाये गए होंगे। बाद के स्तरों से मिट्टी के बर्तन, तांबे के औज़ार, हथियार और समाधियाँ भी मिलीं हैं। इन समाधियों में मानव शवाधान के साथ ही वस्तुएँ भी हैं जो इस बात का संकेत हैं कि मेहरगढ़ वासी धर्म के आरंभिक स्वरूप से परिचित थे। दुर्भाग्य से पाकिस्तान की अस्थिरता के कारण अतीत का यह महत्वपूर्ण स्थल उपेक्षित पड़ा है। इस स्थल की खुदाई १९७७ ई० मे हुई थी। यदि इसकी समुचित खुदाई की जाए तो यह स्थल इस क्षेत्र में मानव सभ्यता के विकास पर नए तथ्य उद्घाटित कर सकता है। अभी तक की इस खुदाई में यहाँ से नवपाषण काल से लेकर कांस्य युग तक के प्रमाण मिलते है जो कुल 8 पुरातात्विक स्तरों में बिखरे हैं। यह 8 स्तर हमें लगभग 5000 वर्षों के इतिहास की जानकारी देते हैं। इनमें सबसे पुराना स्तर जो सबसे नीचे है नवपाषण काल का है और आज से लगभग 9000 वर्ष पूर्व का है वहीं सबसे नया स्तर कांस्य युग का है और तकरीबन 4000 वर्ष पूर्व का है। मेहरगढ़ और इस जैसे अन्य स्थल हमें मानव प्रवास के उस अध्याय को समझने की बेहतर अंतर्दृष्टि दे सकते है जो लाखों वर्षों पूर्व दक्षिण अफ्रीका से शुरू हुआ था और विभिन्न शाखाओं में बंट कर यूरोप, भारत और दक्षिण- पूर्व एशिया पहुंचा। .

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मोहन भागवत

मोहन मधुकर भागवत (जन्म: 11 सितम्बर 1950, चन्द्रपुर महाराष्ट्र) एक पशु चिकित्सक और 2009 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक हैं। उन्हें एक व्यावहारिक नेता के रूप में देखा जाता है। के एस सुदर्शन ने अपनी सेवानिवृत्ति पर उन्हें अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुना था।मोहन भागवत: 30 से अधिक वर्षों से एक पशु चिकित्सक और संघ के प्रचारक, 21 मार्च 2009, टाइम्स ऑफ इंडिया, .

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याकूत लोग

याकूत (अंग्रेज़ी: Yakut) या साख़ा (साख़ा: Саха) रूस के साइबेरिया क्षेत्र के मध्य-उत्तरी भाग में स्थित साख़ा गणतंत्र में बसने वाला तुर्क लोगों का एक समुदाय है। यह अपनी अलग साख़ा भाषा बोलते हैं जो तुर्की भाषाओं की साइबेरियाई शाखा की उत्तरी उपशाखा की एक बोली है। कुछ याकूत लोग साख़ा गणतंत्र से बाहर रूस के अमूर, मागादान व साख़ालिन क्षेत्रों में और तैमिर व एवेंक स्वशासित क्षेत्रों में भी रहते हैं। २००२ की जनगणना में इनकी लगभग साढ़े-चार लाख की आबादी साख़ा गणतंत्र में रह रही थी। सोवियत संघ के ज़माने में इनके इलाके में बहुत से रूसी लोग आ बसे जिस से इनका उन क्षेत्रों में प्रतिशत-हिस्सा घाट गया लेकिन सोवियत व्यवस्था टूटने के बाद यह ज़रा-बहुत बढ़ा है। भूगोल और अर्थव्यवस्था के हिसाब से याकूत लोग दो समूहों में बंटे हैं। उत्तरी याकूत शिकार, मछली पकड़ने और रेनडियर-पालन से जीवनी चलते हैं, जबकि दक्षिणी याकूत गाय और घोड़ों का मवेशी-पालन करते हैं।, Centre for Russian Studies, Accessed: 2006-10-26 .

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यूरोकेन्द्रीयता

विश्व का उल्टा मानचित्र: यह यूरोकेन्द्रीयता-रहित है। अधिकांश स्थानों पर यह बताया जाता है कि लोकतंत्र यूरोपीय संस्कृति के देन है। अन्य संस्कृतियों में लोकतंत्र बहुत पहले से पाया जाता है - यह बात कहीं कोनें में छोटे अक्षरों में लिख दी जाती है। कास्तुन्तुनिया पर तुर्कों के अधिकार ने यूरोकेन्द्रीयता को बहुत धक्का पहुँचाया। यूरोकेन्द्रीयता (Eurocentrism) वह पक्षपातपूर्ण विचारधारा है जिसमे यूरोप को सारी अच्छी चीजों की जन्मस्थली माना जाता है तथा हर चीज को यूरोप के नजरिये से देखने की कोशिश की जाती है। .

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यी लोग

यी लोग यी या लोलो (नोसू: ꆈꌠ, वियतनामी: Lô Lô, थाई: โล-โล, अंग्रेजी: Yi या Lolo) चीन, वियतनाम और थाईलैंड में बसने वाली एक मानव जाति है। विश्व भर में इनकी जनसँख्या लगभग ८० लाख अनुमानित की गई है। यी लोग तिब्बती-बर्मी भाषा-परिवार की यी भाषाएँ बोलते हैं, जिसका एक मानक रूप नोसू भाषा है और जो बर्मी भाषा से काफ़ी मिलती-जुलती हैं। अधिकतर यी लोग कृषि या गाय, भेड़ और बकरियों के मवेशी-पालन में लगे हुए हैं। कुछ शिकार से भी अपनी ज़रूरतें पूरी करते हैं। चीन में यह युन्नान, सिचुआन, गुइझोऊ और गुआंगशी प्रान्तों के देहाती इलाक़ों में बसते हैं।, Peter Hays Gries, Stanley Rosen, Psychology Press, 2004, ISBN 978-0-415-33205-7,...

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राजस्थान के पशु मेले

भारतीय राज्य राजस्थान में सभी जिलों और ग्रामीण स्तर पर लगभग 250 से अधिक पशु मेला का प्रतिवर्ष आयोजन किया जाता है। कला, संस्कृति, पशुपालन और पर्यटन की दृष्टि से यह मेले अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। देश विदेश के हजारों लाखों पर्यटक इसके माध्यम से लोक कला एवं ग्रामीण संस्कृति से रूबरू होते हैं। राज्य स्तरीय पशु मेलों के आयोजनों में नगरपालिका और ग्राम पंचायतों की ओर से पशुपालकों को पानी, बिजली पशु चिकित्सा व टीकाकरण की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। सरकार की ओर से इन मेलों में समय-समय पर प्रदर्शनी और अन्य ज्ञानवर्धक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जा रहा है। राजस्थान राज्य स्तरीय पशु मेला में अधिकांश मेले लोक देवी देवताओं एवं महान पुरुषों के नाम से जुड़े हुए हैं पशुपालन विभाग द्वारा आयोजित किए जाने वाले राज्य स्तरीय पशु मेले कुछ इस प्रकार है। .

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लोधी वंश

लोदी वंश (पश्तो / उर्दु) खिलजी अफ़्गान लोगों की पश्तून जाति से बना था। इस वंश ने दिल्ली के सल्तनत पर उसके अंतिम चरण में शासन किया। इन्होंने 1451 से 1526 तक शासन किया। दिल्ली का प्रथम अफ़गान शासक परिवार लोदियों का था। वे एक अफ़गान कबीले के थे, जो सुलेमान पर्वत के पहाड़ी क्षेत्र में रहता था और अपने पड़ोसी सूर, नियाजी और नूहानी कबीलों की ही तरह गिल्ज़ाई कबीले से जुड़ा हुआ था। गिल्ज़ाइयों में ताजिक या तुर्क रक्त का सम्मिश्रण था। पूर्व में मुल्तान और पेशावर के बीच और पश्चिम में गजनी तक सुलेमान पर्वत क्षेत्र में जो पहाड़ी निवासी फैले हुए थे लगभग १४वीं शताब्दी तक उनकी बिल्कुल अज्ञात और निर्धनता की स्थिति थी। वे पशुपालन से अपनी जीविका चलाते थे और यदा कदा अपने संपन्न पड़ोसी क्षेत्र पर चढ़ाई करके लूटपाट करते रहते थे। उनके उच्छृंखल तथा लड़ाकू स्वभाव ने महमूद गजनवी का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया और अल-उत्बी के अनुसार उसने उन्हें अपना अनुगामी बना लिया। गोरवंशीय प्रभुता के समय अफ़गान लोग दु:साहसी और पहाड़ी विद्रोही मात्र रहे। भारत के इलबरी शासकों ने अफ़गान सैनिकों का उपयोग अपनी चौकियों को मज़बूत करने और अपने विरोधी पहाड़ी क्षेत्रों पर कब्जा जमाने के लिए किया। यह स्थिति मुहम्मद तुगलक के शासन में आई। एक अफ़गान को सूबेदार बनाया गया और दौलताबाद में कुछ दिनों के लिए वह सुल्तान भी बना। फीरोज तुगलक के शासनकाल में अफ़गानों का प्रभाव बढ़ना शुरू हुआ और १३७९ ई. में मलिक वीर नामक एक अफ़गान बिहार का सूबेदार नियुक्त किया गया। दौलत खां शायद पहला अफ़गान था जिसने दिल्ली की सर्वोच्च सत्ता (१४१२-१४१४) प्राप्त की, यद्यपि उसने अपने को सुल्तान नहीं कहा। सैयदों के शासनकाल में कई प्रमुख प्रांत अफ़गानों के अधीन थे। बहलोल लोदी के समय दिल्ली की सुल्तानशाही में अफ़गानो का बोलबाला था। बहलोल लोदी मलिक काला का पुत्र और मलिक बहराम का पौत्र था। उसने सरकारी सेवा सरहिंद के शासक के रूप में शुरू की और पंजाब का सूबेदार बन गया। १४५१ ई. तक वह मुल्तान, लाहौर, दीपालपुर, समाना, सरहिंद, सुंनाम, हिसार फिरोज़ा और कतिपय अन्य परगनों का स्वामी बन चुका था। प्रथम अफ़गान शाह के रूप में वह सोमवार १९ अप्रैल १४५१ को अबू मुज़फ्फर बहलोल शाह के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा। गद्दी पर बैठने के बाद बहलोल लोदी को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। उसके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी थे जौनपुर के शर्की सुल्तान किंतु वह विजित प्रदेशों में अपनी स्थिति दृढ़ करने और अपने साम्राज्य का विस्तार करने में सफल हुआ। बहलोल लोदी की मृत्यु १४८९ ई. में हुई। उसकी मृत्यु के समय तक लोदी साम्राज्य आज के पूर्वी और पश्चिमी पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के एक भाग तक फैल चुका था। सुल्तान के रूप में बहलाल लोदी ने जो काम किए वे सिद्ध करते हैं कि वह बहुत बुद्धिमान तथा व्यवहारकुशल शासक था। अब वह लड़ाकू प्रवृत्ति का या युद्धप्रिय नहीं रह गया था। वह सहृदय था और शांति तथा व्यवस्था स्थापित करके, न्याय की प्रतिष्ठा द्वारा तथा अपनी प्रजा पर कर का भारी बोझ लादने से विरत रहकर जनकल्याण का संवर्धन करना चाहता था। वहलोल लोदी का पुत्र निजाम खाँ, जो उसकी हिंदू पत्नी तथा स्वर्णकार पुत्री हेमा के गर्भ से उत्पन्न हुआ था, १७ जुलाई १४८९ को सुल्तान सिकंदर शाह की उपाधि धारण करके दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। अपने पिता से प्राप्त राज्य में सिकंदर लोदी ने वियाना, बिहार, तिरहुत, धोलपुर, मंदरैल, अर्वतगढ़, शिवपुर, नारवार, चंदेरी और नागर के क्षेत्र भी मिलाए। शर्की शासकों की शक्ति उसने एकदम नष्ट कर दी, ग्वालियर राज्य को बहुत कमजोर बना दिया और मालवा का राज्य तोड़ दिया। किंतु नीतिकुशल, रणकुशल कूटनीतिज्ञ और जननायक के रूप में सिकंदर लोदी अपने पिता बहलोल लोदी की तुलना में नहीं टिक पाया। सिकंदर लोदी २१ नवम्बर १५१७ को मरा। गद्दी के लिए उसके दोनों पुत्रों, इब्राहीम और जलाल में झगड़ा हुआ। अत: साम्राज्य दो भागों में बँट गया। किंतु इब्राहीम ने बँटा हुआ दूसरा भाग भी छीन लिया और लोदी साम्राज्य का एकाधिकारी बन गया। जलाल १५१८ में मौत के घाट उतार दिया गया। लोदी वंश का आखिरी शासक इब्राहीम लोदी उत्तर भारत के एकीकरण का काम और भी आगे बढ़ाने के लिए व्यग्र था। ग्वालियर को अपने अधीन करने में वह सफल हो गया और कुछ काल के लिए उसने राणा साँगा का आगे बढ़ना रोक दिया। किंतु अफगान सरकार की अंतर्निहित निर्बलताओं ने सुल्तान की निपुणताहीन कठोरता का संयोग पाकर, आंतरिक विद्रोह तथा बाहरी आक्रमण के लिए दरवाजा खोल दिया। जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर ने २० अप्रैल १५२६ ई. को पानीपत की लड़ाई में इब्राहीम को हरा और मौत के घाट उतारकर भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की। तीनों लोदी राजाओं ने चौथाई शताब्दी तक शासन किया। इस प्रकार मुगलों के पूर्व के शाही वंशों में तुगलकों को छोड़कर उनका शासन सबसे लंबा था। दिल्ली के लोदी सुल्तानों ने एक नए वंश की स्थापना ही नहीं की; उन्होंने सुल्तानशारी की परंपराओं में कुछ परिवर्तन भी किए; हालाँकि उनकी सरकार का आम ढाँचा भी मुख्यत: वैसा ही था जैसा भारत में पिछले ढाई सौ वर्षों के तुर्क शासन में निर्मित हुआ था। हिंदुओं के साथ व्यवहार में वे अपने पूर्ववर्तियों से कहीं अधिक उदार थे और उन्होंने अपने आचरण का आधार धर्म के बजाय राजनीति को बनाया। फलस्वरूप उनके शासन का मूल बहुत गहराई तक जा चुका था। लोदियों ने हिंदू-मुस्लिम-सद्भाव का जो बीजारोपण किया वह मुगलशासन में खूब फलदायी हुआ। .

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शिकारी-फ़रमर

तंज़ानिया के शिकार-संचय व्यवस्था में रहने वाली हाद्ज़ा जनजाति के दो पुरुष शिकार से लौटते हुए archivedate.

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शिकारी-खाद्य संग्रहक

शिकारी-खाद्य संग्रहक सामाजीक व्यवस्था पुरापाषाण काल में जन्मी एक प्रकार की सामाजीक व्यस्था थी जिसमे मनुष्य छोटे समुहो में घुमते हुए खाद्य सामग्री संग्रहित करते थे। यह व्यवस्था मनुष्यो के द्वारा खेती और पशुपालन आरंभ करने के पूर्व की है। यह खाद्य सामग्री या तो पेड़ पौधो से इकठ्ठा की जाती थी अथवा पशुओ के शिकार से। अपनी प्राथमीक आवश्यकताओ को पूर्ण करने के लिये मनुष्यो ने २० लाख साल तक इस ही पद्धति का पालन किया। श्रेणी:पाषाण युग.

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शैक्षणिक विषयों की सूची

यहाँ शैक्षणिक विषय (academic discipline) से मतलब ज्ञान की किसी शाखा से है जिसका अध्ययन महाविद्यालय स्तर या विश्वविद्यालय स्तर पर किया जाता है या जिन पर शोध कार्य किया जाता है। .

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साख़ा गणतंत्र

साख़ा (याकूतिया) गणतंत्र (रूसी: Республика Саха (Якутия), रेसपूब्लिका साख़ा (याकूतिया); साख़ा: Саха Өрөспүүбүлүкэтэ; अंग्रेज़ी: Sakha (Yakutia) Republic) रूस का एक संघीय खंड है जो उस देश की शासन प्रणाली में गणतंत्र का दर्जा रखता है। यह पूर्वोत्तर साइबेरिया क्षेत्र में स्थित है और आकार में लगभग भारत से ज़रा छोटा ही है। यह दुनिया में किसी भी राष्ट्रीय उपखंड (जैसे कि प्रान्त, प्रदेश, आदि) से बड़ा है - कहा जा सकता है कि यह विश्व का सबसे बड़ा प्रांत है। यह इतना बड़ा है कि इसके अन्दर तीन समय क्षेत्र आते हैं। अगर साख़ा गणतंत्र एक स्वतन्त्र देश होता तो वह विश्व का आठवाँ सबसे बड़ा देश होता (भारत के बाद और आरजेन्टीना से पहले)। इसकी राजधानी याकूत्स्क​ शहर (Якутск, Yakutsk) है।, Natalia Yakovleva, pp.

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साउथ डकोटा

स्थान साउथ डकोटा (South Dakota) संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य-पश्चिमी क्षेत्र में एक राज्य है। 2 नवंबर, 1898 को साउथ डकोटा नॉर्थ डकोटा के साथ एक राज्य बन गया। साउथ डकोटा इन राज्यों से घिरा हुआ है: नॉर्थ डकोटा (उत्तर में), मिनेसोटा (पूर्व में), आयोवा (दक्षिण-पूर्व में), नेब्रास्का (दक्षिण में), वायोमिंग (पश्चिम में), और मोन्टाना (उत्तर-पश्चिम में)। राज्य को मिसोरी नदी ने पूर्व और पश्चिम भागों में विभाजित किया है। पूर्वी साउथ डकोटा अधिकतर आबादी का घर है और इस क्षेत्र की उपजाऊ मिट्टी का उपयोग विभिन्न फसलों को उगाने के लिए किया जाता है। मिसौरी के पश्चिम में पशुपालन प्रमुख कृषि गतिविधि है और अर्थव्यवस्था पर्यटन और रक्षा खर्च पर अधिक निर्भर है। 2016 के अनुमान के मुताबिक राज्य की जनसंख्या 8,65,454 हैं। इससे इसका सभी राज्यों में स्थान 46वां हुआ। क्षेत्र के हिसाब से यह 17वां सबसे बड़ा राज्य है। अंग्रेज़ी अधिकारिक भाषा है। .

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सिंहली संस्कृति

फसल पकने पर किया जाने वाला श्रीलंका का पारम्परिक नृत्य ऐसा विश्वास किया जाता है कि राजकुमार विजय और उसके 700 अनुयायी ई. पू.

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सघन पशुपालन

सघन पशुपालन (Intensive animal farming) से आशय पशुपालन के उस तरीके से है जिसमें बहुत कम जगह में अधिक पशुओं (चौपाये, कुक्कुट, मछली आदि) को रखा जाता है ताकि कम से कम खर्च में अधिक से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सके। इसे 'औद्योगिक पशुपालन' (industrial livestock production) या 'फैक्ट्री पशुपालन' भी कहते हैं। बहुत से लोग इसे अनैतिक मानते हैं और इसकी कटु आलोचना करते हैं। श्रेणी:कृषि श्रेणी:पशुपालन.

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स्कॉट्लैण्ड

स्काटलैंड यूनाइटेड किंगडम का एक देश है। यह ग्रेट ब्रिटेन का उत्तरी भाग है। यह पहाड़ी देश है जिसका क्षेत्रफल ७८,८५० वर्ग किमी है। यह इंगलैंड के उत्तर में स्थित है। यहां की राजधानी एडिनबरा है। ग्लासगो यहाँ का सबसे बड़ा शहर है। स्कॉटलैण्ड की सीमा दक्षिण में इंग्लैंड से सटी है। इसके पूरब में उत्तरी सागर तथा दक्षिण-पश्चिम में नॉर्थ चैनेल और आयरिश सागर हैं। मुख्य भूमि के अलावा स्कॉटलैण्ड के अन्तर्गत ७९० से भी अधिक द्वीप हैं। यूँ तो स्कॉटलैंड यूनाइटेड किंगडम के अधीन एक राज्य है लेकिन यहाँ का अपना मंत्रिमंडल है। यहाँ की मुद्रा का रंग और उस पर बने चित्र भी लंदन के पौंड से कुछ अलग है। लेकिन उनकी मान्यता और मूल्य दोनों ही पौंड के समान है। यहाँ घूमने और लोगों से बात करने पर पता चलता है कि यहाँ के लोग इंग्लैंड सरकार से थोड़े से खफा रहते हैं। .

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सैल्मन

मुख्य पेसिफिक सैल्मन प्रजातियां: सोकाई, चम, कोस्टल, कटथ्रोट ट्राउट, चिनूक, कोहो, स्टीलहेड और पिंक सैल्मोनिडे परिवार की विभिन्न प्रजातियों की मछली के लिए दिया जाने वाला आम नाम है सैल्मन.

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हमा प्रान्त

हमा प्रान्त (अरबी:, अंग्रेज़ी: Hama) सीरिया का एक प्रान्त है।, Diana Darke, Bradt Travel Guides, 2006, ISBN 978-1-84162-162-3 कृषि के नज़रिए से हमा प्रान्त देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। देश के आधे से अधिक आलू और पिस्ते यहीं उगाए जाते हैं और यहाँ मवेशी पालन भी काफ़ी विस्तृत है। .

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हादीबू

हादीबू (अरबी:, अंग्रेज़ी: Hadibu) यमन के सुक़ुत्रा द्वीप के उत्तरी तट पर स्थित एक शहर है, जो उस पूरे द्वीप का भी सबसे बड़ा क़स्बा है। इसे पहले 'तम्रीदा' (Tamrida) के नाम से भी जाना जाता था, जो पुर्तगाली भाषा में 'खजूर' के शब्द से आया है।, Harold F. Jacob, pp.

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होल छिद्रक

टेप मापक (इंच में) दिखाने के लिए अनुमानित आकार आम छेद पद एक होल छिद्रक या छेद पंच (छेद छेदने का शस्र) एक कार्यालय के उपकरण है प्रयोग किया जाता है बनाने के लिए छेद पत्रकों के कागज, अक्सर के उद्देश्य के लिए इकट्ठा करने में चादरें एक बांधने की मशीन या फ़ोल्डर.

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जैव विविधता

--> वर्षावन जैव विविधता जीवन और विविधता के संयोग से निर्मित शब्द है जो आम तौर पर पृथ्वी पर मौजूद जीवन की विविधता और परिवर्तनशीलता को संदर्भित करता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (युएनईपी), के अनुसार जैवविविधता biodiversity विशिष्टतया अनुवांशिक, प्रजाति, तथा पारिस्थितिकि तंत्र के विविधता का स्तर मापता है। जैव विविधता किसी जैविक तंत्र के स्वास्थ्य का द्योतक है। पृथ्वी पर जीवन आज लाखों विशिष्ट जैविक प्रजातियों के रूप में उपस्थित हैं। सन् 2010 को जैव विविधता का अंतरराष्ट्रीय वर्ष, घोषित किया गया है। .

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जेर्स

जेर्स (Gers; फ्रेंच: le Gers, उच्चारण: या; Gascon: Gers) फ्रांस का प्रशासकीय विभाग है जो जेर्स, आउर, जिमोने सेव आदि नदियों के प्रवाहक्षेत्र में लगभग ६,२९१ वर्ग किमी॰ पर फैला हुआ है। भूमि अधिकतर पठारी है, जिसकी ऊँचाई दक्षिण-पूर्व में ३३० मीटर तथा ढाल उत्तर-पूर्व की ओर है। जलवायु प्राय: समशीतोष्ण है। वार्षिक वर्षा का औसत ७२o से ७६ सेंमी॰ है। बर्फ और कुहरा कभी कभी पड़ता है। कृषि यहाँ के निवासियों का मुख्य व्यवसाय है, जिसमें अंगूर की कृषि विशेष महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त उपजाऊ घाटियों में गेहूं, मक्का आदि खाद्यान्न एवं फ्लैक्स की कृषि भी होती है। कृषि के बाद पशुपालन का ही विशेष महत्व है। मदिरा अच्छी और प्रचुर मात्रा में बनाई जाती है। श्रेणी:फ्रांस के प्रशासकीय विभाग.

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वनोन्मूलन

वनोन्मूलन का अर्थ है वनों के क्षेत्रों में पेडों को जलाना या काटना ऐसा करने के लिए कई कारण हैं; पेडों और उनसे व्युत्पन्न चारकोल को एक वस्तु के रूप में बेचा जा सकता है और मनुष्य के द्वारा उपयोग में लिया जा सकता है जबकि साफ़ की गयी भूमि को चरागाह (pasture) या मानव आवास के रूप में काम में लिया जा सकता है। पेडों को इस प्रकार से काटने और उन्हें पुनः न लगाने के परिणाम स्वरुप आवास (habitat) को क्षति पहुंची है, जैव विविधता (biodiversity) को नुकसान पहुंचा है और वातावरण में शुष्कता (aridity) बढ़ गयी है। साथ ही अक्सर जिन क्षेत्रों से पेडों को हटा दिया जाता है वे बंजर भूमि में बदल जाते हैं। आंतरिक मूल्यों के लिए जागरूकता का अभाव या उनकी उपेक्षा, उत्तरदायी मूल्यों की कमी, ढीला वन प्रबन्धन और पर्यावरण के कानून, इतने बड़े पैमाने पर वनोन्मूलन की अनुमति देते हैं। कई देशों में वनोन्मूलन निरंतर की जाती है जिसके परिणामस्वरूप विलोपन (extinction), जलवायु में परिवर्तन, मरुस्थलीकरण (desertification) और स्वदेशी लोगों के विस्थापन जैसी प्रक्रियाएं देखने में आती हैं। .

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वाटरलू

विश्व में वाटरलू नामक कम से कम दो नगर हैं। .

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वाहितमल उपचार

मलजल प्रशोधन का उद्देश्य - समुदायों के लिए कोई मुसीबत पैदा किए बिना या नुकसान पहुंचाए बिना निषकासनयोग्य उत्प्रवाही जल को उत्पन्न करना और प्रदूषण को रोकना है।1 मलजल प्रशोधन, या घरेलू अपशिष्ट जल प्रशोधन, अपवाही (गन्दा जल) और घरेलू दोनों प्रकार के अपशिष्ट जल और घरेलू मलजल से संदूषित पदार्थों को हटाने की प्रक्रिया है। इसमें भौतिक, रासायनिक और जैविक संदूषित पदार्थों को हटाने की भौतिक, रासायनिक और जैविक प्रक्रियाएं शामिल हैं। इसका उद्देश्य एक अपशिष्ट प्रवाह (या प्रशोधित गन्दा जल) और एक ठोस अपशिष्ट या कीचड़ का उत्पादन करना है जो वातावरण में निर्वहन या पुनर्प्रयोग के लिए उपयुक्त होता है। यह सामग्री अक्सर अनजाने में कई विषाक्त कार्बनिक और अकार्बनिक यौगिकों से संदूषित हो जाती है। .

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वियतनामी सीका हिरण

वियतनामी सीका हिरण (Vietnamese sika deer) सीका हिरण की एक उपजाति है। यह सीका हिरणों की अन्य उपजातियों से आकार में छोटी है और इसका कारण इसके निवास-क्षेत्र का गरम वातावरण माना जाता है। यह हिरण पहले उत्तरी वियतनाम और दक्षिणपश्चिमी चीन में मिला करते थे लेकिन अब जंगलों से विलुप्त हो गए हैं और केवल चिड़ियाघरों और बंद उद्यानों में पाए जाते हैं। इन्हें फिर से वियतनाम में फैलाने की योजना बन रही है। वियतनाम के न्गे ऐन (Nghệ An) और हा तन्ह (Hà Tĩnh) प्रान्तों में लगभग १०,००० वियतनामी सीका हिरण का बाक़ायदा पशु पालन हो रहा है क्योंकि इनके सींगों को पीसकर पारंपरिक दवाईयाँ बनाई जाती हैं।, Eleanor Jane Sterling, Martha Maud Hurley, Le Duc Minh, Yale University Press, 2006, ISBN 978-0-300-10608-4,...

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विजयशंकर व्यास

प्राध्यापक विजयशंकर व्यास (जन्म: २१ अगस्त १९३१) एक कृषि-अर्थशास्त्री हैं जिन्हें अर्थशास्त्र में उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने सन् 2005 पद्मभूषण से सम्मानित किया। राजस्थान में ग्रामीण अर्थशास्त्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्म्भुषण का सम्मान प्राप्त करने वाले एकमात्र अर्थशास्त्री है। .

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ख़तलोन प्रान्त

ताजिकी में लिखा है 'ख़ुश-ओमादीद' (हिन्दी के 'ख़ुशआमदीद' के बराबर) ख़तलोन (ताजिकी: Хатлон) या विलोयत-इ-ख़तलोन ताजिकिस्तान की एक विलायत (प्रान्त) है। यह ताजिकिस्तान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल २४,८०० वर्ग किमी है और सन् २००८ में इसकी आबादी २५.८ लाख अनुमानित की गई थी। ख़तलोन प्रान्त की राजधानी क़ुरग़ोनतेप्पा शहर है जिसका पुराना नाम कुर्गान-त्युबे था।, Bradley Mayhew, Greg Bloom, Paul Clammer, Lonely Planet, 2010, ISBN 978-1-74179-148-8 .

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खोईखोई लोग

खोईखोई (Khoekhoe), जिन्हें सिर्फ़ खोई (Khoi) भी कहा जाता है, अफ़्रीका के दक्षिणी भाग में बसने वाले खोईसान लोगों की एक शाखा है। यह समुदाय बुशमैन समुदाय से क़रीबी सम्बन्ध रखता है और ५वी सदी से दक्षिणी अफ़्रीका में बसा हुआ है। यहा वे मवेशी पालन और अस्थाई कृषि में लगे हुए हैं। वे खोईखोई भाषाएँ बोलते हैं। इन भाषाओं में मौजूद क्लिक व्यंजनों की नकल में यूरोपी लोग खोईखोई लोगों को हॉटेनटॉट (Hottentot) कहते थे लेकिन अब यह एक अपमानजनक नाम माना जाता है इसलिये इसका प्रयोग कम हो गया है। .

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गाय

अभारतीय गाय जर्सीगाय गाय एक महत्त्वपूर्ण पालतू जानवर है जो संसार में प्राय: सर्वत्र पाई जाती है। इससे उत्तम किस्म का दूध प्राप्त होता है। हिन्दू, गाय को 'माता' (गौमाता) कहते हैं। इसके बछड़े बड़े होकर गाड़ी खींचते हैं एवं खेतों की जुताई करते हैं। भारत में वैदिक काल से ही गाय का विशेष महत्त्व रहा है। आरंभ में आदान प्रदान एवं विनिमय आदि के माध्यम के रूप में गाय उपयोग होता था और मनुष्य की समृद्धि की गणना उसकी गोसंख्या से की जाती थी। हिन्दू धार्मिक दृष्टि से भी गाय पवित्र मानी जाती रही है तथा उसकी हत्या महापातक पापों में की जाती है।; गाय व भैंस में गर्भ से संबन्धित जानकारी.

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गुर्र

श्रेणी:कश्मीर श्रेणी:भारत की मानव जातियाँ श्रेणी:पाकिस्तान की जातियाँ श्रेणी:अफ़्गानिस्तान की जातियाँ.

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गुर्जर

सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति:भारत उपवन, अक्षरधाम मन्दिर, नई दिल्ली गुर्जर समाज, प्राचीन एवं प्रतिष्ठित समाज में से एक है। यह समुदाय गुज्जर, गूजर, गोजर, गुर्जर, गूर्जर और वीर गुर्जर नाम से भी जाना जाता है। गुर्जर मुख्यत: उत्तर भारत, पाकिस्तान और अफ़्ग़ानिस्तान में बसे हैं। इस जाति का नाम अफ़्ग़ानिस्तान के राष्ट्रगान में भी आता है। गुर्जरों के ऐतिहासिक प्रभाव के कारण उत्तर भारत और पाकिस्तान के बहुत से स्थान गुर्जर जाति के नाम पर रखे गए हैं, जैसे कि भारत का गुजरात राज्य, पाकिस्तानी पंजाब का गुजरात ज़िला और गुजराँवाला ज़िला और रावलपिंडी ज़िले का गूजर ख़ान शहर।; आधुनिक स्थिति प्राचीन काल में युद्ध कला में निपुण रहे गुर्जर मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। गुर्जर अच्छे योद्धा माने जाते थे और इसीलिए भारतीय सेना में अभी भी इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है| गुर्जर महाराष्ट्र (जलगाँव जिला), दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में फैले हुए हैं। राजस्थान में सारे गुर्जर हिंदू हैं। सामान्यत: गुर्जर हिन्दू, सिख, मुस्लिम आदि सभी धर्मो में देखे जा सकते हैं। मुस्लिम तथा सिख गुर्जर, हिन्दू गुर्जरो से ही परिवर्तित हुए थे। पाकिस्तान में गुजरावालां, फैसलाबाद और लाहौर के आसपास इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है। .

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ग्राम पंचायत झोंपड़ा, सवाई माधोपुर

झोंपड़ा गाँव राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले की चौथ का बरवाड़ा तहसील में आने वाली प्रमुख ग्राम पंचायत है ! ग्राम पंचायत का सबसे बड़ा गाँव झोंपड़ा है जिसमें मीणा जनजाति का नारेड़ा गोत्र मुख्य रूप से निवास करता हैं। ग्राम पंचायत में झोंपड़ा, बगीना, सिरोही, नाहीखुर्द एवं झड़कुंड गाँव शामिल है। झोंपड़ा ग्राम पंचायत की कुल जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 5184 है और ग्राम पंचायत में कुल घरों की संख्या 1080 है। ग्राम पंचायत की सबसे बड़ी नदी बनास नदी है वहीं पंचायत की सबसे लम्बी घाटी चढ़ाई बगीना गाँव में बनास नदी पर पड़ती है। ग्राम पंचायत का सबसे विशाल एवं प्राचीन वृक्ष धंड की पीपली है जो झोंपड़ा, बगीना एवं जगमोंदा गाँवों से लगभग बराबर दूरी पर पड़ती है। .

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ऑस्ट्रिया

ऑस्ट्रिया (जर्मन: Österreich एओस्तेराइख़, अर्थात पूर्वी राज्य) मध्य यूरोप में स्थित एक स्थल रुद्ध देश है। इसकी राजधानी वियना है। इसकी (मुख्य- और राज-) भाषा जर्मन भाषा है। देश का ज़्यादातर हिस्सा ऐल्प्स पर्वतों से ढका हुआ है। यूरोपीय संघ के इस देश की मुद्रा यूरो है। इसकी सीमाएं उत्तर में जर्मनी और चेक गणराज्य से, पूर्व में स्लोवाकिया और हंगरी से, दक्षिण में स्लोवाकिया और इटली और पश्चिम में स्विटजरलैंड और लीश्टेनश्टाइन से मिलती है। इस देश का उद्भव नौवीं शताब्दी के दौरान ऊपरी और निचले हिस्से में आबादी के बढ़ने के साथ हुआ। Ostarrichi शब्द का पहले पहल इस्तेमाल 996 में प्रकाशित आधिकारिक लेख में किया गया, जो बाद में Österreich एओस्तेराइख़ में बदल गया। आस्ट्रिया में पूर्वी आल्प्स की श्रेणियाँ फैली हुई हैं। इस पर्वतीय देश का पश्चिमी भाग विशेष पहाड़ी है जिसमें ओट्जरस्टुवार्ड, जिलरतुल आल्प्स (१,२४६ फुट) आदि पहाड़ियाँ हैं। पूर्वी भाग की पहाड़ियां अधिक ऊँची नहीं हैं। देश के उत्तर पूर्वी भाग में डैन्यूब नदी पश्चिम से पूर्व को (३३० किमी लंबी) बहती है। ईन, द्रवा आदि देश की सारी नदियां डैन्यूब की सहायक हैं। उत्तरी पश्चिमी सीमा पर स्थित कांस्टैंस, दक्षिण पूर्व में स्थित न्यूडिलर तथा अतर अल्फ गैंग, आसे आदि झीलें देश की प्राकृतिक शोभा बढ़ाती हैं। आस्ट्रिया की जलवायु विषम है। यहां ग्रर्मियों में कुछ अधिक गर्मी तथा जाड़ों में अधिक ठंडक पड़ती है। यहां पछुआ तथा उत्तर पश्चिमी हवाओं से वर्षा होती है। आल्प्स की ढालों पर पर्याप्त तथा मध्यवर्ती भागों में कम पानी बरसता है। यहाँ की वनस्पति तथा पशु मध्ययूरोपीय जाति के हैं। यहाँ देश के ३८ प्रतिशत भाग में जंगल हैं जिनमें ७१ प्रतिशत चीड़ जाति के, १९ प्रतिशत पतझड़ वाले तथा १० प्रतिशल मिश्रित जंगल हैं। आल्प्स के भागों में स्प्रूस (एक प्रकार का चीड़) तथा देवदारु के वृक्ष तथा निचले भागों में चीड़, देवदारु तथा महोगनी आदि जंगली वृक्ष पाए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि आस्ट्रिया का प्रत्येक दूसरा वृक्ष सरो है। इन जंगलों में हिरन, खरगोश, रीछ आदि जंगली जानवर पाए जाते हैं। देश की संपूर्ण भूमि के २९ प्रतिशत पर कृषि होती है तथा ३० प्रतिशत पर चारागाह हैं। जंगल देश की बहुत बड़ी संपत्ति है, जो शेष भूमि को घेरे हुए है। लकड़ी निर्यात करनेवाले देशों में आस्ट्रिया का स्थान छठा है। ईजबर्ग पहाड़ के आसपास लोहे तथा कोयले की खानें हैं। शक्ति के साधनों में जलविद्युत ही प्रधान है। खनिज तैल भी निकाला जाता है। यहां नमक, ग्रैफाइट तथा मैगनेसाइट पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। मैगनेसाइट तथा ग्रैफाइट के उत्पादन में आस्ट्रिया का संसार में क्रमानुसार दूसरा तथा चौथा स्थान है। तांबा, जस्ता तथा सोना भी यहां पाया जाता है। इन खनिजों के अतिरिक्त अनुपम प्राकृतिक दृश्य भी देश की बहुत बड़ी संपत्ति हैं। आस्ट्रिया की खेती सीमित है, क्योंकि यहां केवल ४.५ प्रतिशत भूमि मैदानी है, शेष ९२.३ प्रतिशत पर्वतीय है। सबसे उपजाऊ क्षेत्र डैन्यूब की पार्श्ववर्ती भूमि (विना का दोआबा) तथा वर्जिनलैंड है। यहां की मुख्य फसलें राई, जई (ओट), गेहूँ, जौ तथा मक्का हैं। आलू तथा चुकंदर यहां के मैदानों में पर्याप्त पैदा होते हैं। नीचे भागों में तथा ढालों पर चारेवाली फसलें पैदा होती हैं। इनके अतिरिक्त देश के विभिन्न भागों में तीसी, तेलहन, सन तथा तंबाकू पैदा किया जाता है। पर्वतीय फल तथा अंगूर भी यहाँ होता है। पहाड़ी क्षेत्रों में पहाड़ों को काटकर सीढ़ीनुमा खेत बने हुए हैं। उत्तरी तथा पूर्वी भागों में पशुपालन होता है तथा यहाँ से वियना आदि शहरों में दूध, मक्खन तथा चीज़ पर्याप्त मात्रा में भेजा जाता है। जोरारलबर्ग देश का बहुत बड़ा संघीय पशुपालन केंद्र है। यहां बकरियां, भेड़ें तथा सुअर पर्याप्त पाले जाते हैं जिनसे मांस, दूध तथा ऊन प्राप्त होता है। आस्ट्रिया की औद्योगिक उन्नति महत्वपूर्ण है। लोहा, इस्पात तथा सूती कपड़ों के कारखाने देश में फैले हुए हैं। रासायनिक वस्तुएँ बनाने के बहुत से कारखाने हैं। यहाँ धातुओं के छोटे मोटे सामान, वियना में विविध प्रकार की मशीनें तथा कलपुर्जे बनाने के कारखाने हैं। लकड़ी के सामान, कागज की लुग्दी, कागज एवं वाद्यतंत्र बनाने के कारखाने यहां के अन्य बड़े धंधे हैं। जलविद्युत् का विकास खूब हुआ है। देश को पर्यटकों का भी पर्याप्त लाभ होता है। पहाड़ी देश होने पर भी यहाँं सड़कों (कुल सड़कें ४१,६४९ कि.मी.) तथा रेलवे लाइनों (५,९०८ कि.मी.) का जाल बिछा हुआ है। वियना यूरोप के प्राय: सभी नगरों से संबद्ध है। यहां छह हवाई अड्डे हैं जो वियना, लिंज, सैल्बर्ग, ग्रेज, क्लागेनफर्ट तथा इंसब्रुक में हैं। यहां से निर्यात होनेवाली वस्तुओं में इमारती लकड़ी का बना सामान, लोहा तथा इस्पात, रासायनिक वस्तुएं और कांच मुख्य हैं। विभिन्न विषयों की उच्चतम शिक्षा के लिए आस्ट्रिया का बहुत महत्व है। वियना, ग्रेज तथा इंसब्रुक में संसारप्रसिद्ध विश्वविद्यालय हैं। आस्ट्रिया में गणतंत्र राज्य है। यूरोप के ३६ राज्यों में, विस्तार के अनुसार, आस्ट्रिया का स्थान १९वाँ है। यह नौ प्रांतों में विभक्त है। वियना प्रांत में स्थित वियना नगर देश की राजधानी है। आस्ट्रिया की संपूर्ण जनसंख्या का १/४ भाग वियना में रहता है जो संसार का २२वाँ सबसे बड़ा नगर है। अन्य बड़े नगर ग्रेज, जिंज, सैल्जबर्ग, इंसब्रुक तथा क्लाजेनफर्ट हैं। अधिकांश आस्ट्रियावासी काकेशीय जाति के हैं। कुछ आलेमनों तथा बवेरियनों के वंशज भी हैं। देश सदा से एक शासक देश रहा है, अत: यहां के निवासी चरित्रवान् तथा मैत्रीपूर्ण व्यवहारवाले होते हैं। यहाँ की मुख्य भाषा जर्मन है। आस्ट्रिया का इतिहास बहुत पुराना है। लौहयुग में यहाँ इलिरियन लोग रहते थे। सम्राट् आगस्टस के युग में रोमन लोगों ने देश पर कब्जा कर लिया था। हूण आदि जातियों के बाद जर्मन लोगों ने देश पर कब्जा कर लिया था (४३५ ई.)। जर्मनों ने देश पर कई शताब्दियों तक शासन किया, फलस्वरूप आस्ट्रिया में जर्मन सभ्यता फैली जो आज भी वर्तमान है। १९१९ ई. में आस्ट्रिया वासियों की प्रथम सरकार हैप्सबर्ग राजसत्ता को समाप्त करके, समाजवादी नेता कार्ल रेनर के प्रतिनिधित्व में बनी। १९३८ ई. में हिटलर ने इसे महान् जर्मन राज्य का एक अंग बना लिया। द्वितीय विश्वयुद्ध में इंग्लैंड आदि देशों ने आस्ट्रिया को स्वतंत्र करने का निश्चय किया और १९४५ ई. में अमरीकी, ब्रितानी, फ्रांसीसी तथा रूसी सेनाओं ने इसे मुक्त करा लिया। इससे पूर्व अक्टूबर, १९४३ ई. की मास्को घोषणा के अंतर्गत ब्रिटेन, अमरीका तथा रूस आस्ट्रिया को पुन: एक स्वतंत्र तथा प्रभुसत्तासंपन्न राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित कराने का अपना निश्चय व्यक्त कर चुके थे। २७ अप्रैल, १९४५ को डा.

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ओट्योज़न्द्यूपा प्रदेश

ओशाना (Otjozondjupa Region) दक्षिणी अफ़्रीका में स्थित नामीबिया देश के १३ प्रदेशों में से एक है। इसकी राजधानी ओत्यिवारोंगो (Otjiwarongo) है।, pp.

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ओशीकोतो प्रदेश

ओशाना (Oshikoto Region) दक्षिणी अफ़्रीका में स्थित नामीबिया देश के १३ प्रदेशों में से एक है। इसकी राजधानी ओमुथिया (Omuthiya) है।, pp.

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इसिक कुल प्रांत

सूर्यास्त के वक़्त इसिक कुल झील इसिक कुल प्रांत (किरगिज़: Ысык-Көл областы, अंग्रेज़ी: Issyk Kul Province) मध्य एशिया के किर्गिज़स्तान देश का पूर्वतम प्रांत है। इस प्रांत राजधानी काराकोल शहर है। इसिक कुल प्रांत का नाम प्रसिद्ध इसिक कुल झील पर पड़ा है। इस प्रांत की सीमाएँ काज़ाख़स्तान से और चीन के शिनजियांग प्रांत से लगती हैं। .

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कलात ज़िला

कलात (उर्दू व बलोच: قلات, अंग्रेज़ी: Kalat) पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रान्त का एक ज़िला है। यह पारम्परिक रूप से कलात ख़ानत का केन्द्र था। ज़िले की राजधानी कलात शहर है। .

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कातांगा प्रान्त

कातांगा प्रान्त (फ़्रान्सीसी व अंग्रेज़ी: Katanga) अफ़्रीका के कांगो लोकतान्त्रिक गणराज्य के दक्षिण-पूर्व हिस्से में स्थित एक प्रान्त है।, Barry Sergeant, pp.

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किसान

किसान उन्हें कहा जाता है, जो खेती का काम करते हैं। इन्हें कृषक और खेतिहर के नाम से भी जाना जाता है। ये बाकी सभी लोगो के लिए खाद्य सामग्री का उत्पादन करते है। इसमें फसलों को उगाना, बागों में पौधे लगाना, मुर्गियों या इस तरह के अन्य पशुओं की देखभाल कर उन्हें बढ़ाना भी शामिल है। कोई भी किसान या तो खेत का मालिक हो सकता है या उस कृषि भूमि के मालिक द्वारा काम पर रखा गया मजदूर हो सकता है। अच्छी अर्थव्यवस्था वाले जगहों में किसान ही खेत का मालिक होता है और उसमें काम करने वाले उसके कर्मचारी या मजदूर होते हैं। हालांकि इससे पहले तक केवल वही किसान होता था, जो खेत में फसल उगाता था और पशुओं, मछलियों आदि की देखभाल कर उन्हें बढ़ाता था। .

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किज़िल कुम रेगिस्तान

उज़बेकिस्तान में किज़िल कुम में एक बस्ती से निकलती सड़क अंतरिक्ष से किज़िल कुम - तस्वीर में मध्य में नीचे की तरफ - दाएँ में कैस्पियन सागर है और उस से ज़रा बाएँ में अधिकतर सूखा हुआ अरल सागर, किज़िल कुम दो नदियों की रेखाओं (आमू दरिया और सिर दरिया) के बीच का इलाक़ा है किज़िल कुम में रेत का टीला किज़िल कुम या क़िज़िल क़ुम (उज़बेक: Qizilqum; कज़ाख़: Қызылқұм; अंग्रेज़ी: Kyzyl Kum) मध्य एशिया में स्थित एक रेगिस्तान है। इसका क्षेत्रफल २,९८,००० वर्ग किमी (१,१५,००० वर्ग मील) है और यह दुनिया का ११वाँ सबसे बड़ा रेगिस्तान है। यह आमू दरिया और सिर दरिया के बीच के दोआब में स्थित है। इसका अधिकाँश हिस्सा कज़ाख़स्तान और उज़बेकिस्तान में आता है, हालांकि एक छोटा भाग तुर्कमेनिस्तान में भी पड़ता है। तुर्की भाषाओँ में 'किज़िल कुम' का मतलब 'लाल रेत' है और इस रेगिस्तान की रेतों में मिश्रित पदार्थ बहुत से स्थानों में इसे एक लालिमा देते हैं। इस से दक्षिण-पश्चिम में आमू दरिया के पार काराकुम रेगिस्तान पड़ता है जिसके नाम का अर्थ 'काली रेत' है।, R. Lal, Psychology Press, 2007, ISBN 978-0-415-42235-2,...

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कछी ज़िला

कछी (उर्दू व बलोच: کچھی, अंग्रेज़ी: Kachhi) पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रान्त का एक ज़िला है। सन् २००८ तक यह बोलान ज़िला (بولان, Bolan) कहलाता था। ज़िले की राजधानी धादर (دھادر, Dhadar) नामक शहर है। .

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कुक्कुट पालन

एक विशाल मुर्गी पालन गृह मांस अथवा अण्डे की प्राप्ति के लिये मुर्गी, टर्की, बत्तख आदि जानवरों को पालना कुक्कुट पालन (Poultry farming) कहलाता है। .

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कृषि

कॉफी की खेती कृषि खेती और वानिकी के माध्यम से खाद्य और अन्य सामान के उत्पादन से संबंधित है। कृषि एक मुख्य विकास था, जो सभ्यताओं के उदय का कारण बना, इसमें पालतू जानवरों का पालन किया गया और पौधों (फसलों) को उगाया गया, जिससे अतिरिक्त खाद्य का उत्पादन हुआ। इसने अधिक घनी आबादी और स्तरीकृत समाज के विकास को सक्षम बनाया। कृषि का अध्ययन कृषि विज्ञान के रूप में जाना जाता है तथा इसी से संबंधित विषय बागवानी का अध्ययन बागवानी (हॉर्टिकल्चर) में किया जाता है। तकनीकों और विशेषताओं की बहुत सी किस्में कृषि के अन्तर्गत आती है, इसमें वे तरीके शामिल हैं जिनसे पौधे उगाने के लिए उपयुक्त भूमि का विस्तार किया जाता है, इसके लिए पानी के चैनल खोदे जाते हैं और सिंचाई के अन्य रूपों का उपयोग किया जाता है। कृषि योग्य भूमि पर फसलों को उगाना और चारागाहों और रेंजलैंड पर पशुधन को गड़रियों के द्वारा चराया जाना, मुख्यतः कृषि से सम्बंधित रहा है। कृषि के भिन्न रूपों की पहचान करना व उनकी मात्रात्मक वृद्धि, पिछली शताब्दी में विचार के मुख्य मुद्दे बन गए। विकसित दुनिया में यह क्षेत्र जैविक खेती (उदाहरण पर्माकल्चर या कार्बनिक कृषि) से लेकर गहन कृषि (उदाहरण औद्योगिक कृषि) तक फैली है। आधुनिक एग्रोनोमी, पौधों में संकरण, कीटनाशकों और उर्वरकों और तकनीकी सुधारों ने फसलों से होने वाले उत्पादन को तेजी से बढ़ाया है और साथ ही यह व्यापक रूप से पारिस्थितिक क्षति का कारण भी बना है और इसने मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। चयनात्मक प्रजनन और पशुपालन की आधुनिक प्रथाओं जैसे गहन सूअर खेती (और इसी प्रकार के अभ्यासों को मुर्गी पर भी लागू किया जाता है) ने मांस के उत्पादन में वृद्धि की है, लेकिन इससे पशु क्रूरता, प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक) दवाओं के स्वास्थ्य प्रभाव, वृद्धि हॉर्मोन और मांस के औद्योगिक उत्पादन में सामान्य रूप से काम में लिए जाने वाले रसायनों के बारे में मुद्दे सामने आये हैं। प्रमुख कृषि उत्पादों को मोटे तौर पर भोजन, रेशा, ईंधन, कच्चा माल, फार्मास्यूटिकल्स और उद्दीपकों में समूहित किया जा सकता है। साथ ही सजावटी या विदेशी उत्पादों की भी एक श्रेणी है। वर्ष 2000 से पौधों का उपयोग जैविक ईंधन, जैवफार्मास्यूटिकल्स, जैवप्लास्टिक, और फार्मास्यूटिकल्स के उत्पादन में किया जा रहा है। विशेष खाद्यों में शामिल हैं अनाज, सब्जियां, फल और मांस। रेशे में कपास, ऊन, सन, रेशम और सन (फ्लैक्स) शामिल हैं। कच्चे माल में लकड़ी और बाँस शामिल हैं। उद्दीपकों में तम्बाकू, शराब, अफ़ीम, कोकीन और डिजिटेलिस शामिल हैं। पौधों से अन्य उपयोगी पदार्थ भी उत्पन्न होते हैं, जैसे रेजिन। जैव ईंधनों में शामिल हैं मिथेन, जैवभार (बायोमास), इथेनॉल और बायोडीजल। कटे हुए फूल, नर्सरी के पौधे, उष्णकटिबंधीय मछलियाँ और व्यापार के लिए पालतू पक्षी, कुछ सजावटी उत्पाद हैं। 2007 में, दुनिया के लगभग एक तिहाई श्रमिक कृषि क्षेत्र में कार्यरत थे। हालांकि, औद्योगिकीकरण की शुरुआत के बाद से कृषि से सम्बंधित महत्त्व कम हो गया है और 2003 में-इतिहास में पहली बार-सेवा क्षेत्र ने एक आर्थिक क्षेत्र के रूप में कृषि को पछाड़ दिया क्योंकि इसने दुनिया भर में अधिकतम लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया। इस तथ्य के बावजूद कि कृषि दुनिया के आबादी के एक तिहाई से अधिक लोगों की रोजगार उपलब्ध कराती है, कृषि उत्पादन, सकल विश्व उत्पाद (सकल घरेलू उत्पाद का एक समुच्चय) का पांच प्रतिशत से भी कम हिस्सा बनता है। .

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कृष्णम राजू

Uppalapati वेंकट Krishnam राजू (जन्म 20 जनवरी, 1940) एक भारतीय फिल्म अभिनेता, जाना जाता है के लिए अपने काम करता है में तेलुगू सिनेमाहै। उन्होंने व्यापक रूप से जाना जाता है के रूप में विद्रोही स्टार के लिए अपने विद्रोही अभिनय शैली है। वह भी विजेता के उद्घाटन नंदी पुरस्कार के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता.

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अबयन प्रान्त

अबयन प्रान्त (अरबी:, अंग्रेज़ी: Abyan) यमन का एक प्रान्त है। अबयन कभी 'फज़ली सल्तनत' का हिस्सा हुआ करता था जो २०वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश क़ब्ज़े में आ गया और आगे चलकर दक्षिण यमन के राष्ट्र और फिर यमन गणतंत्र का हिस्सा बना। यहाँ कृषि आर्थिक दृष्टि से महत्व रखती है और यह प्रान्त अपने मवेशी पालन और खजूरों के लिए जाना जाता है। अल-क़ायदा आतंकवादी संगठन यहाँ सक्रीय है और उन्होंने इस प्रान्त के कुछ भागों पर क़ब्ज़ा कर रखा है, हालाँकि उनकी और यमन सरकार की झड़पें चलती रहती हैं। .

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अरख़ानगई प्रांत

अरख़ानगई (मंगोल: Архангай; अंग्रेज़ी: Arkhangai) मंगोलिया के पश्चिम-मध्य में स्थित उस देश का एक अइमग (यानि प्रांत) है।, Michael Kohn, Lonely Planet, 2005,...

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