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पराशर ऋषि

सूची पराशर ऋषि

पराशर एक मन्त्रद्रष्टा ऋषि, शास्त्रवेत्ता, ब्रह्मज्ञानी एवं स्मृतिकार है। येे महर्षि वसिष्ठ के पौत्र, गोत्रप्रवर्तक, वैदिक सूक्तों के द्रष्टा और ग्रंथकार भी हैं। पराशर शर-शय्या पर पड़े भीष्म से मिलने गये थे। परीक्षित् के प्रायोपवेश के समय उपस्थित कई ऋषि-मुनियों में वे भी थे। वे छब्बीसवें द्वापर के व्यास थे। जनमेजय के सर्पयज्ञ में उपस्थित थे।  .

3 संबंधों: पराशर (बहुविकल्पी), पुलस्त्य, वेदव्यास

पराशर (बहुविकल्पी)

* पराशर - ज्‍योतिषियों का एक गोत्र।.

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पुलस्त्य

पुलस्त्य या पुलस्ति (सिंहली: පුලස්ති/पुलस्ति, थाई: ท้าวจตุรพักตร์) हिन्दू पौराणिक कथाओं के एक पात्र हैं। ये कथाएँ इन्हें ब्रह्मा के दस मानस पुत्रों में से एक बताती हैं। ये इन्हें प्रथम मन्वन्तर के सात सप्तर्षियों में से एक भी बताती हैं। विष्णुपुराण के अनुसार ये ऋषि उन लोगों में से एक हैं जिनके माध्यम से कुछ पुराण आदि मानवजाति को प्राप्त हुए। इसके अनुसार इन्होंने ब्रह्मा से विष्णु पुराण सुना था और उसे पराशर ऋषि को सुनाया, और इस तरह ये पुराण मानव जाति को प्राप्त हुआ। ये आदिपुराण का मनुष्यों में प्रचार करने का श्रेय भी इन्हें देता है। हिन्दू धर्म ग्रंथ पुलस्त्य के वंश के बारे में ये कहते हैं (यह सारांश है): पुलस्त्य ऋषि के पुत्र हुए विश्रवा, कालान्तर में जिनके वंश में कुबेर एवं रावण आदि ने जन्म लिया तथा राक्षस जाति को आगे बढ़ाया। पुलस्त्य ऋषि का विवाह कर्दम ऋषि की नौ कन्याओं में से एक से हुआ जिनका नाम हविर्भू था। उनसे ऋषि के दो पुत्र उत्पन्न हुए -- महर्षि अगस्त्य एवं विश्रवा। विश्रवा की दो पत्नियाँ थीं - एक थी राक्षस सुमाली एवं राक्षसी ताड़का की पुत्री कैकसी, जिससे रावण, कुम्भकर्ण तथा विभीषण उत्पन्न हुए, तथा दूसरी थी इलाविडा- जिसके कुबेर उत्पन्न हुए। इलाविडा चक्रवर्ती सम्राट तृणबिन्दु की अलामबुशा नामक अपसरा से उत्पन्न पुत्री थी। ये वैवस्वत मनु श्राद्धदेव के वंशावली की कड़ी थे। इन्होंने अपने एक यज्ञ में केवल स्वर्ण पात्रों का ही उपयोग किया था एवं ब्रह्मा को इतना दान दिया कि वे उसे ले जा भी न पाये और काफ़ी कुछ वहीं छोड़ गये। उसी बचे हुए स्वर्ण से, जो कालान्तर में युधिष्ठिर को मिला, उन्होंने भी यज्ञ किया। तृणबिन्दु मारुत की वंशावली में आते थे। तुलसीदास ने रावण के संबंध में उल्लेख करते हुए लिखा है-: उत्तम कुल पुलस्त्य कर गाती। विश्रवा के दो पत्नियाँ थीं, बड़ी से कुबेर हुए और छोटी से रावण तथा उसके दो भाई। .

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वेदव्यास

ऋषि कृष्ण द्वेपायन वेदव्यास महाभारत ग्रंथ के रचयिता थे। महाभारत के बारे में कहा जाता है कि इसे महर्षि वेदव्यास के गणेश को बोलकर लिखवाया था। वेदव्यास महाभारत के रचयिता ही नहीं, बल्कि उन घटनाओं के साक्षी भी रहे हैं, जो क्रमानुसार घटित हुई हैं। अपने आश्रम से हस्तिनापुर की समस्त गतिविधियों की सूचना उन तक तो पहुंचती थी। वे उन घटनाओं पर अपना परामर्श भी देते थे। जब-जब अंतर्द्वंद्व और संकट की स्थिति आती थी, माता सत्यवती उनसे विचार-विमर्श के लिए कभी आश्रम पहुंचती, तो कभी हस्तिनापुर के राजभवन में आमंत्रित करती थी। प्रत्येक द्वापर युग में विष्णु व्यास के रूप में अवतरित होकर वेदों के विभाग प्रस्तुत करते हैं। पहले द्वापर में स्वयं ब्रह्मा वेदव्यास हुए, दूसरे में प्रजापति, तीसरे द्वापर में शुक्राचार्य, चौथे में बृहस्पति वेदव्यास हुए। इसी प्रकार सूर्य, मृत्यु, इन्द्र, धनजंय, कृष्ण द्वैपायन अश्वत्थामा आदि अट्ठाईस वेदव्यास हुए। इस प्रकार अट्ठाईस बार वेदों का विभाजन किया गया। उन्होने ही अट्ठारह पुराणों की भी रचना की, ऐसा माना जाता है। वेदव्यास यह व्यास मुनि तथा पाराशर इत्यादि नामों से भी जाने जाते है। वह पराशर मुनि के पुत्र थे, अत: व्यास 'पाराशर' नाम से भि जाने जाते है। महर्षि वेदव्यास को भगवान का ही रूप माना जाता है, इन श्लोकों से यह सिद्ध होता है। नमोऽस्तु ते व्यास विशालबुद्धे फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्र। येन त्वया भारततैलपूर्णः प्रज्ज्वालितो ज्ञानमयप्रदीपः।। अर्थात् - जिन्होंने महाभारत रूपी ज्ञान के दीप को प्रज्वलित किया ऐसे विशाल बुद्धि वाले महर्षि वेदव्यास को मेरा नमस्कार है। व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे। नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नम:।। अर्थात् - व्यास विष्णु के रूप है तथा विष्णु ही व्यास है ऐसे वसिष्ठ-मुनि के वंशज का मैं नमन करता हूँ। (वसिष्ठ के पुत्र थे 'शक्ति'; शक्ति के पुत्र पराशर, और पराशर के पुत्र पाराशर (तथा व्यास)) .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

पराशर मुनि

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