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पदार्थ विज्ञान

सूची पदार्थ विज्ञान

पदार्थ विज्ञान एक बहुविषयक क्षेत्र है जिसमें पदार्थ के विभिन्न गुणों का अध्ययन, विज्ञान एवं तकनीकी के विभिन्न क्षेत्रों में इसके प्रयोग का अध्ययन किया जाता है। इसमें प्रायोगिक भौतिक विज्ञान और रसायनशास्त्र के साथ-साथ रासायनिक, वैद्युत, यांत्रिक और धातुकर्म अभियांत्रिकी जैसे विषयों का समावेश होता है। नैनोतकनीकी और नैनोसाइंस में उपयोजता के कारण, वर्तमान समय में विभिन्न विश्वविद्यालयों, प्रयोगशालाओं और संस्थानों में इसे काफी महत्व मिला है। .

32 संबंधों: ठोस, ठोस यांत्रिकी, ठोस अवस्था भौतिकी, तन्यता, तापानुशीतन, द्रवण, द्रव्यगुण शास्त्र, धातुरचना विज्ञान, धातुकर्म, नैनोप्रौद्योगिकी, पदार्थ, पदार्थ प्रौद्योगिकी की समय रेखा, प्रकृतिवाद (दर्शन), बहुरूपता, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर, भूगोल की रूपरेखा, मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भोपाल, यांत्रिक इंजीनियरी, श्रांति (पदार्थ), शैक्षणिक विषयों की सूची, सिविल इंजीनियरी, संरचनात्मक विश्‍लेषण, सुलभ कुलकर्णी, सुघट्यता, सी॰ एन॰ आर॰ राव, आयन रोपण, कार्बन नैनोट्यूब, किरणपुंज रेखा, क्यूरी ताप, क्रिस्टल, अनुप्रयुक्त विज्ञान, अपरूपण गुणांक

ठोस

ठोस (solid) पदार्थ की एक अवस्था है, जिसकी पहचान पदार्थ की संरचनात्मक दृढ़ता और विकृति (आकार, आयतन और स्वरूप में परिवर्तन) के प्रति प्रत्यक्ष अवरोध के गुण के आधार पर की जाती है। ठोस पदार्थों में उच्च यंग मापांक और अपरूपता मापांक होते है। इसके विपरीत, ज्यादातर तरल पदार्थ निम्न अपरूपता मापांक वाले होते हैं और श्यानता का प्रदर्शन करते हैं। भौतिक विज्ञान की जिस शाखा में ठोस का अध्ययन करते हैं, उसे ठोस-अवस्था भौतिकी कहते हैं। पदार्थ विज्ञान में ठोस पदार्थों के भौतिक और रासायनिक गुणों और उनके अनुप्रयोग का अध्ययन करते हैं। ठोस-अवस्था रसायन में पदार्थों के संश्लेषण, उनकी पहचान और रासायनिक संघटन का अध्ययन किया जाता है। .

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ठोस यांत्रिकी

ठोस यांत्रिकी की एक समस्या ठोस यांत्रिकी (Solid mechanics) सातत्यक यांत्रिकी (continuum mechanics/कन्टिनुअम यांत्रिकी) की वह शाखा है जिसमें ठोस वस्तुओं के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। इसमें विशेषतः विभिन्न प्रकार के बल लगाने पर ठोसों की गति और इनमें होने वाली विरूपण (डिफॉर्मेशन) का अध्यन किया जाता है। बल के अलावा ताप परिवर्तन, प्रावस्था परिवर्तन (phase changes) तथा अन्य वाह्य तथा आन्तरिक कारकों के कारण उत्पन्न गति एवं विरूपण का भी अध्ययन किया जाता है। ठोस यांत्रिकी का अध्ययन सिविल इंजीनियरी, यांत्रिक इंजीनियरी, भूविज्ञान तथा पदार्थ विज्ञान आदि के क्षेत्र में बहुत महत्व रखता है। .

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ठोस अवस्था भौतिकी

हीरा की संरचना का चलित दृष्य ठोस अवस्था की भौतिकी (Solid-state physics) को ठोस अवस्था का सिद्धांत (Solid-state theory) के नाम से भी जाना जाता है। यह भौतिकी की वह शाखा है जिसमें ठोस की संरचना और उसके भौतिक गुणों का अध्ययन किया जाता है। यह संघनित प्रावस्था भौतिकी की सबसे बड़ी शाखा है। ठोस अवस्था भौतिकी में इस बात पर विचार किया जाता है कि ठोसों के वाह्य गुण उनके परमाणु-स्तरीय गुणों से किस प्रकार सम्बन्धित हैं। इस प्रकार ठोस अवस्था भौतिकी, पदार्थ विज्ञान का सैद्धान्तिक आधार बनाती है। इसके अलावा ट्रांजिस्टरों की प्रौद्योगिकी एवं अर्धचालकों की तकनीकी आदि में इसका सीधा उपयोग भी होता है। .

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तन्यता

ताम्बा अपनी तन्यता के कारण, बिना टूटे, तारों में खींचा जा सकता है बेलनाकार छड़ के सिरों को विपरीत दिशा में खींचकर तानने पर:(क) भंगुर पदार्थ का भंजन (टूटना)(ख) तन्य पदार्थ का भंजन (ग) पूर्णतः तन्य पदार्थ का भंजन पदार्थ विज्ञान में तन्यता (ductility) किसी ठोस पदार्थ की तनाव डालने पर खिचकर आकार बदल लेने की क्षमता को बोलते हैं। तन्य पदार्थ (ductile materials) आसानी से खींचकर तार के रूप में बनाए जा सकते हैं, जबकि अतन्य (non-ductile) पदार्थ तनाव डालने पर असानी से नहीं खिंचते और अक्सर टूट जाते हैं। सोना और ताम्बा दोनों तन्य पदार्थों के उदाहरण हैं। इसी तरह आघातवर्धनीयता (Malleability) किसी पदार्थ की दबाव या आघात पड़ने पर बिना टूटे आकार बदल लेने की क्षमता को कहते हैं। मसलन चाँदी को पीटकर उसका मिठाई व पान पर चढ़ाने वाला वर्क इसलिए बनाया जा सकता है क्योंकि वह तत्व आघातवर्धनीय (malleable) है। .

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तापानुशीतन

तापानुशीतन या 'अनीलन' या एनिंलिंग (Annealing) धातुकर्म और पदार्थ विज्ञान में एक प्रकार का ऊष्मा उपचार है। इसका उपयोग किसी वस्तु या पदार्थ में आवश्यक गुण (जैसे कठोरता, नम्रता आदि) लाने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया में एक क्रान्तिक ताप से अधिक ताप तक वस्तु को गरम किया जाता है तत्पश्चात कुछ समय तक एक नियत ताप पर बनाए रखते हैं और अन्ततः नियंत्रित रूप में उसे ठण्डा कर दिया जाता है। तापानुशीतन का उपयोग तन्यता बढ़ाने, पदार्थ को मुलायम बनाने, पदार्थ में किसी कारण उत्पन्न प्रतिबलों को समाप्त करने, पदार्थ की संरचना को बदलने आदि के लिए किया जाता है। तापानुशीतन का उपयोग निम्नलिखित में से किसी एक या अधिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है-.

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द्रवण

पदार्थ विज्ञान के सन्दर्भ में द्रवण (Liquefaction) उन सभी प्रक्रियाओं को कहते हैं जो ठोस से या द्रव से आरम्भ होकर गैस बनाते हैं। .

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द्रव्यगुण शास्त्र

द्रव्यगुण आयुर्वेद का मूल विषय है। इसके अन्तर्गत औषधीय पादपों - उनकी पहचान, गुण तथा उपचारात्मक उपयोगों का अध्ययन किया जाता है। इसे आयुर्वेद का 'मैटेरिया मेडिका' कह सकते हैं। इस विज्ञान में भेषजगुण विज्ञान (फर्माकोलॉजी), भेषज-अभिज्ञान (pharmacognosy) तथा पादपों के चिकित्सीय उपयोग शामिल है। इसकी आठ शाखाएं हैं। 'द्रव्यगुण' दो शब्दों से मिलकर बना है - 'द्रव्य' (matter) तथा 'गुण' (properties)। द्रव्य के अन्तर्गत जीवित और निर्जीव दोनो वस्तुएँ आ जाती हैं। चरक का कहना है कि कुछ भी ऐसा नहीं है जो 'औषधि' न हो। आयुर्वेद का मत है कि किसी औषधि का प्रभाव उसके किसी एक घटक के अकेले के प्रभाव से प्रायः भिन्न होता है। आयुर्वेद में वनस्पतियों के गुणागुणों को पाँच भागों में भाँटा गया है- रस (taste), गुण (properties), वीर्य (biological properties), विपाक (attributes of drug assimilation) और शक्ति (Energy)। औषधियों के कार्य और प्रभाव को जानने के लिये उनके रस, गुण, वीर्य, विपाक, और शक्ति का ज्ञान अति आवश्यक है। ये भी कहा गया है कि- आयुर्वेद में 600 से भी अधिक औषधीय पादपों को औषध के रूप में उपयोग में लाया जाता है। इन्हें अकेले या दूसरों साथ मिलाकर रोगों से मुक्ति पाया जाता है। औषधीय पादप अलग-अलग तरह के कृषि-जलवायीय क्षेत्रों (जंगल, अनूप, साधारण देश) में पैदा होते हैं। वर्तमान समय में औषधीय पादपों को 'प्राकृतिक औषध' के रूप में प्रयोग करने का चलन बढ़ा है। इस कारण इस विषय का महत्व और भी बढ़ गया है। .

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धातुरचना विज्ञान

धातुओं के अनेकानेक गुण सूक्ष्मदर्शी की सहायता से ज्ञात किए जा सकते हैं। सूक्ष्मदर्शी द्वारा धातुपरीक्षण की इस विधि को धातु-रचना-विज्ञान (Metallography) कहते हैं। इसके द्वारा धातुओं अथवा मिश्र धातुओं की आंतरिक रचना, अथवा उनपर उष्मोपचार के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। इस कार्य के लिए जो सूक्ष्मदर्शी उपयोग में लाए जाते हैं उनका निर्माण जीवविज्ञान इत्यादि में प्रयुक्त होनेवाले सूक्ष्मदर्शियों से भिन्न होता है। धातुएँ परांध होती हैं। प्रकाश की किरणें उनमें से पार नहीं हो सकती। इसलिए यहाँ पर परावर्तन सिद्धांत का उपयोग किया जाता है, जिससे निदर्श (specimen) पर पड़नेवाली प्रकाश की किरणें परावर्तित होकर मनुष्य के नेत्र तक पहुँचती हैं। धातुओं के सूक्ष्मदर्शियों परीक्षण के लिए पहले उन्हें लगभग 1/2 इंच घनाकार टुकड़े के रूप में काट लेते हैं। इस टुकड़े को निदर्श कहते हैं। तत्पश्चात्‌ निदर्श एमरी रेगमाल (emery paper) से अच्छी तरह पालिश किया जाता है। इसके बाद पालिश चक्र पर इसे शीशे की तरह चमक दी जाती है। अब निदर्श सूक्ष्मदर्शी परीक्षण के लिए तैयार हो गया। इस रूप में इसे सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखने से उसमें विद्यमान छिद्र, विजातीय पदार्थ अथवा धातुमल इत्यादि दिखलाई पड़ते हैं। फलक में पिटवां लोहे का एक सूक्ष्म आलेख (micrograph) दिखाया गया है। इसमें ग्रैफाइट के काले रेशे दिखाई दे रहे हैं। केवल पालिश की हुई सतह से धातु की आंतरिक संरचना नहीं दिखाई पड़ती, इसलिए इसे किसी रासायनिक विलयन से निक्षारित (etch) किया जाता है। निक्षारण के पश्चात्‌ धातु की आंतरिक संरचना दिखाई पड़ने लगती है। फलक में पिटवाँ लोहे का निक्षारित सूक्ष्म आलेख दिखलाया गया है। अन्य चित्रों में क्रमश: मृदु तथा कठोर इस्पात की सूक्ष्म संरचना (micro-structure) देखी जा सकती है। अब धातुरचना का क्षेत्र बहुत विस्तृत हो गया है और नए नए प्रकार के सूक्ष्मदर्शी उपयोग में लाए जाने लगे हैं। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा धातुओं की संरचना को एक लाख गुना आवर्धित किया जा सकता है। एक्सरे द्वारा भी धातुओं की आंतरिक संरचना के अध्ययन में बहुत सहायता मिली है। .

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धातुकर्म

धातुनिर्माता कारखाने में इस्पात का निर्माण दिल्ली का लौह-स्तम्भ भारतीय धातुकर्म के गौरव का साक्षी है। धातुकर्म पदार्थ विज्ञान और पदार्थ अभियांत्रिकी का एक क्षेत्र है, जिसके अंतर्गत धातुओं, उनसे बनी मिश्रधातुओं और अंतर्धात्विक यौगिकों के भौतिक और रासायनिक गुणों का अध्ययन किया जाता है। .

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नैनोप्रौद्योगिकी

नैनोतकनीक या नैनोप्रौद्योगिकी, व्यावहारिक विज्ञान के क्षेत्र में, १ से १०० नैनो (अर्थात 10−9 m) स्केल में प्रयुक्त और अध्ययन की जाने वाली सभी तकनीकों और सम्बन्धित विज्ञान का समूह है। नैनोतकनीक में इस सीमा के अन्दर जालसाजी के लिये विस्तृत रूप में अंतर-अनुशासनात्मक क्षेत्रों, जैसे व्यावहारिक भौतिकी, पदार्थ विज्ञान, अर्धचालक भौतिकी, विशाल अणुकणिका रसायन शास्त्र (जो रासायन शास्त्र के क्षेत्र में अणुओं के गैर कोवलेन्त प्रभाव पर केन्द्रित है), स्वयमानुलिपिक मशीनएं और रोबोटिक्स, रसायनिक अभियांत्रिकी, याँत्रिक अभियाँत्रिकी और वैद्युत अभियाँत्रिकी.

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पदार्थ

रसायन विज्ञान और भौतिक विज्ञान में पदार्थ (matter) उसे कहते हैं जो स्थान घेरता है व जिसमे द्रव्यमान (mass) होता है। पदार्थ और ऊर्जा दो अलग-अलग वस्तुएं हैं। विज्ञान के आरम्भिक विकास के दिनों में ऐसा माना जाता था कि पदार्थ न तो उत्पन्न किया जा सकता है, न नष्ट ही किया जा सकता है, अर्थात् पदार्थ अविनाशी है। इसे पदार्थ की अविनाशिता का नियम कहा जाता था। किन्तु अब यह स्थापित हो गया है कि पदार्थ और ऊर्जा का परस्पर परिवर्तन सम्भव है। यह परिवर्तन आइन्स्टीन के प्रसिद्ध समीकरण E.

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पदार्थ प्रौद्योगिकी की समय रेखा

कोई विवरण नहीं।

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प्रकृतिवाद (दर्शन)

प्रकृतिवाद (Naturalism) पाश्चात्य दार्शनिक चिन्तन की वह विचारधारा है जो प्रकृति को मूल तत्त्व मानती है, इसी को इस बरह्माण्ड का कर्ता एवं उपादान (कारण) मानती है। यह वह 'विचार' या 'मान्यता' है कि विश्व में केवल प्राकृतिक नियम (या बल) ही कार्य करते हैं न कि कोई अतिप्राकृतिक या आध्यातिम नियम। अर्थात् प्राक्रितिक संसार के परे कुछ भी नहीं है। प्रकृतिवादी आत्मा-परमात्मा, स्पष्ट प्रयोजन आदि की सत्ता में विश्वास नहीं करते। यूनानी दार्शनिक थेल्स (६४० ईसापूर्व-५५० इसापूर्व) का नाम सबसे पहले प्रकृतिवादियों में आता है जिसने इस सृष्टि की रचना जल से सिद्ध करने का प्रयास किया था। किन्तु स्वतन्त्र दर्शन के रूप में इसका बीजारोपण डिमोक्रीटस (४६०-३७० ईसापूर्व) ने किया। प्रकृतिवादी विचारक बुद्धि को विशेष महत्व देते हैं परन्तु उनका विचार है कि बुद्धि का कार्य केवल वाह्य परिस्थितियों तथा विचारों को काबू में लाना है जो उसकी शक्ति से बाहर जन्म लेते हैं। इस प्रकार प्रकृतिवादी आत्मा-परमात्मा, स्पष्ट प्रयोजन इत्यादि की सत्ता में विश्वास नहीं करते हैं। प्रो.

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बहुरूपता

पदार्थ विज्ञान में बहुरूपता (polymorphism) किसी ठोस पदार्थ के एक से अधिक रूप या क्रिस्टल ढांचे में हो सकने की क्षमता को कहते हैं। उदाहरण के लिये कोयला, ग्रेफाइट और हीरा तीनों कार्बन के ही बहुरूप हैं। इसी तरह कैल्साइट और ऐरागोनाइट दोनों कैल्सियम कार्बोनेट के बहुरूप हैं। प्रकृति में बहुरूपता कई पदार्थों में देखी जाती है और रासायनिक तत्वों के स्तर पर यह अपरूपता (allotropy) से सम्बन्धित है। .

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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर (Indian Institute of Technology Kanpur), जो कि आईआईटी कानपुर अथवा आईआईटीके के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में से एक है। इसकी स्थापना सन् १९५९ में उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में हुई। आईआईटी कानपुर मुख्य रूप से विज्ञान एवं अभियान्त्रिकी में शोध तथा स्नातक शिक्षा पर केंद्रित एक प्रमुख भारतीय तकनीकी संस्थान बनकर उभरा है। .

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भूगोल की रूपरेखा

ज्ञान के फलक का तात्पर्य एक ऐसे त्रिविमीय विन्यास है जिसे पूर्णरूपेण समझने के लिए हमें तीन दृष्टि बिन्दुओं से निरीक्षण करना चाहिए। इनमें से किसी भी एक बिन्दु वाला निरीक्षण एक पक्षीय ही होगा और वह संपूर्ण को प्रदर्शित नहीं करेगा। एक बिन्दु से हम सदृश वस्तुओं के संबंध देखते हैं। दूसरे से काल के संदर्भ में उसके विकास का और तीसरे से क्षेत्रीय संदर्भ में उनके क्रम और वर्गीकरण का निरीक्षण करते हैं। इस प्रकार प्रथम वर्ग के अंतर्गत वर्गीकृत विज्ञान (classified science), द्वितीय वर्ग में ऐतिहासिक विज्ञान (historial sciences), और तृतीय वर्ग में क्षेत्रीय या स्थान-संबंधी विज्ञान (spatial sciences) आते हैं। वर्गीकृत विज्ञान पदार्थो या तत्वों की व्याख्या करते हैं अतः इन्हें पदार्थ विज्ञान (material sciences) भी कहा जाता है। ऐतिहासिक विज्ञान काल (time) के संदर्भ में तत्वों या घटनाओं के विकासक्रम का अध्ययन करते हैं। क्षेत्रीय विज्ञान तत्वों या घटनाओं का विश्लेषण स्थान या क्षेत्र के संदर्भ में करते हैं। पदार्थ विज्ञानों के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु ‘क्यों ’, ‘क्या’ और ‘कैसे’ है। ऐतिहासिक विज्ञानों का केन्द्र बिन्दु ‘कब’ है तथा क्षेत्रीय विज्ञानों का केन्द्र बिन्दु ‘कहां ’ है। स्थानिक विज्ञानों (Spatial sciences) को दो प्रधान वर्गों में विभक्त किया जाता है-.

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मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भोपाल

---- मौलाना आजाद राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान, भोपाल की स्थापना १९६० में की गई थी और २६ जून २००२ को इसे राष्‍ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान का दर्जा दिया गया। इस संस्थान में 8 विभाग हैं। यह संस्थान सिविल इंजीनियरी, अभियांत्रिकी इंजीनियरी, विद्युत इंजीनियरी, इलैक्टोनिकी तथा संचार इंजीनियरी, कम्प्यूटर विज्ञान तथा इंजीनियरी, सूचना प्रौद्योगिकी में चार वर्षीय बी.टेक कार्यक्रम और एक पांच वर्षीय बी.आर्क.

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यांत्रिक इंजीनियरी

सिलाई मशीन (सन् 1900 के आसपास); मशीन के कार्य आज भी लगभग वही है जो पहले था। एक आधुनिक मशीन: फिलिंग और डोसिंग मशीन यांत्रिक इंजीनियर इंजन, शक्ति-संयंत्र आदि की डिजाइन करते हैं। Two involute gears, the left driving the right: Blue arrows show the contact forces between them. The force line (or Line of Action) runs along a tangent common to both base circles. यान्त्रिक अभियांत्रिकी (Mechanical engineering) तरह-तरह की मशीनों की बनावट, निर्माण, चालन आदि का सैद्धान्तिक और व्यावहारिक ज्ञान है। यान्त्रिक अभियांत्रिकी, अभियांत्रिकी की सबसे पुरानी और विस्तृत शाखाओं में से एक है। यान्त्रिक अभियांत्रिकी १८वीं शताब्दी में यूरोप में औद्योगिक क्रांति के दौरान एक क्षेत्र के रूप में उभरी है, लेकिन, इसका विकास दुनिया भर में कई हजार साल में हुआ है। १९वीं सदी में भौतिकी के क्षेत्र में विकास के एक परिणाम के रूप में यांत्रिक अभियांत्रिकी विज्ञान सामने आया। इसके आधआरभूत विषय हैं.

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श्रांति (पदार्थ)

ब्रिटिल अल्युमिनियम का एस-एन वक्र पदार्थ विज्ञान के सन्दर्भ में, किसी पदार्थ पर बार-बार एक ही तरह का लोड लगाने और हटाने के कारण पदार्थ कमजोर हो जाता है, जिसे श्रांति (फैटिग) कहते हैं। श्रेणी:पदार्थ विज्ञान.

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शैक्षणिक विषयों की सूची

यहाँ शैक्षणिक विषय (academic discipline) से मतलब ज्ञान की किसी शाखा से है जिसका अध्ययन महाविद्यालय स्तर या विश्वविद्यालय स्तर पर किया जाता है या जिन पर शोध कार्य किया जाता है। .

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सिविल इंजीनियरी

द पेट्रोनस ट्विन टावर्स, जिसे वास्तुकार सीज़र पेली और थोरनटन-टोमेसिटी और रेन हिल बरसेकुटू एस.डी. एन. बी. एच. डी. इंजीनियरों ने बनाया था। ये इमारत 1998-2004 तक दुनिया की सबसे ऊँची इमारत थी। सिविल इंजीनियरी, व्यावसायिक इंजीनियरिंग की एक शाखा है जो कि भौतिक और प्राकृतिक रूप से बने परिवेश में पुल, सड़क,नहरें, बाँध और भवनों आदि के डिजाइन, निर्माण और रखरखाव से जुड़ी है।सिविल इंजीनियरिंग, सैन्य अभियान्त्रिकी के बाद आने वाली इंजीनियरिंग की सबसे पुरानी शाखा है। इसे सैन्य इंजीनियरिंग से अलग करने के लिए 'असैनिक इंजीनियरिंग' (सिविल इंजीनियरी) के रूप में परिभाषित किया गया। परंपरागत रूप से इसे कई उप-शाखाओं में बांटा गया है, जिनमें -पर्यावरण इंजीनियरिंग, भू-तकनीक इंजीनियरिंग, संरचनात्मक इंजीनियरिंग, परिवहन इंजीनियरिंग, नगरपालिका या शहरी इंजीनियरिंग, जल संसाधन इंजीनियरिंग, पदार्थ इंजीनियरिंग, तटीय इंजीनियरिंग, सर्वेक्षण और निर्माण इंजीनियरिंग. सिविल इंजीनियरिंग हर स्तर पर होती है: सार्वजनिक क्षेत्र में नगरपालिका के क्षेत्र से संघीय स्तरों तक और निजी क्षेत्र में व्यक्तिगत घरों के मालिकों से अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों तक.

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संरचनात्मक विश्‍लेषण

लोड के कारण भौतिक संरचनाओं तथा उनके विभिन्न भागों पर पड़ने वाले प्रभाव की गणना करना संरचनात्मक विश्‍लेषण (Structural analysis) कहलाता है। भवन, पुल, वाहन, मशीनें, फर्नीचर, जैव उत्तक आदि सभी में संरचनात्मक विश्लेषण करने की आवश्यकता पड़ सकती है। संरचनात्मक विश्लेषण के अन्तर्गत प्रयुक्त यांत्रिकी, पदार्थ विज्ञान, तथा अनुप्रयुक्त गणित का उपयोग होता है। इनका प्रयोग करते हुए संरचना की विकृतियों, आन्तरिक बलों, प्रतिबलों, सपोर्ट की प्रतिक्रियाओं, त्वरण तथा स्थायित्व आदि की गणना की जाती है। इस गणना से यह जाँचा जाता है कि कोई संरचना उपयोग के योग्य है या नहीं। संरचनात्मक विश्लेषण करके भौतिक जाँचों से बचा जा सकता है। अतः संरचनाओं के डिजाइन के लिए संरचनात्मक विश्लेषण की महती भूमिका है। .

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सुलभ कुलकर्णी

सुलभ कुलकर्णी (जन्म १९४९) भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, पुणे, भारत में भौतिक विज्ञान की प्रोफ़ेसर हैं। वो नैनोप्रौद्योगिकी, पदार्थ विज्ञान और पृष्ठ विज्ञान के क्षेत्र में शोध कार्य करती हैं। .

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सुघट्यता

भौतिकी और पदार्थ विज्ञान में, सुघट्यता किसी पदार्थ का वह गुण है जो उस विरुपण की व्याख्या करती है जो उस पदार्थ पर आरोपित बलों के फलस्वरूप उसकी आकृति में आये अप्रतिवर्ती परिवर्तन के कारण होता है। .

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सी॰ एन॰ आर॰ राव

चिंतामणि नागेश रामचंद्र राव (कन्नड़: ಚಿಂತಾಮಣಿ ನಾಗೇಶ ರಾಮಚಂದ್ರ ರಾವ್) जिन्हें सी॰ एन॰ आर॰ राव के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय रसायनज्ञ हैं जिन्होंने घन-अवस्था और संरचनात्मक रसायन शास्त्र के क्षेत्र में मुख्य रूप से काम किया है। वर्तमान में वह भारत के प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार परिषद के प्रमुख के रूप में सेवा कर रहे हैं। डॉ॰ राव को दुनिया भर के 60 विश्वविद्यालयों से मानद डॉक्टरेट प्राप्त है। उन्होंने लगभग 1500 शोध पत्र और 45 वैज्ञानिक पुस्तकें लिखी हैं। वर्ष 2013 में भारत सरकार ने उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया। सी वी रमण और ए पी जे अब्दुल कलाम के बाद इस पुरस्कार से सम्मानित किये जाने वाले वे तीसरे ऐसे वैज्ञानिक हैं। .

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आयन रोपण

आयन रोपण का योजनामूलक चित्र आयन रोपण (Ion implantation), पदार्थ इंजीनियरी का एक प्रक्रम है जिसमें किसी पदार्थ के आयनों को विद्युत क्षेत्र की सहायता से त्वरित करते हुए किसी दूसरे ठोस पदार्थ पर टकराया जाता है। इस प्रकार के टक्कर के कारण उस पदार्थ के भौतिक, रासायनिक एवं वैद्युत गुण बदल जाते हैं। आयन रोपण का उपयोग अर्धचालक युक्तियों के निर्माण (जैसे आईसी निर्माण) में किया जाता है। इसके अलावा इसका उपयोग धातु परिष्करण (मेटल फिनिशिंग) एवं पदार्थ विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान में किया जाता है। श्रेणी:पदार्थ विज्ञान श्रेणी:अर्धचालक युक्ति निर्माण.

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कार्बन नैनोट्यूब

कार्बन नैनोट्यूब का घूर्णन करता यह एनिमेशन उसकी 3 डी संरचना को दर्शाता है। कार्बन नैनोट्यूब (CNTs) एक बेलनाकार नैनोसंरचना वाले कार्बन के एलोट्रोप्स हैं। नैनोट्यूब को 28,000,000:1 तक के लंबाई से व्यास अनुपात के साथ निर्मित किया गया है, जो महत्वपूर्ण रूप से किसी भी अन्य द्रव्य से बड़ा है। इन बेलनाकार कार्बन अणुओं में नवीन गुण हैं जो उन्हें नैनोतकनीक, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्रकाशिकी और पदार्थ विज्ञान के अन्य क्षेत्रों के कई अनुप्रयोगों के साथ-साथ वास्तु क्षेत्र में संभावित रूप से उपयोगी बनाते हैं। वे असाधारण शक्ति और अद्वितीय विद्युत् गुण प्रदर्शित करते हैं और कुशल ताप परिचालक हैं। उनका अंतिम उपयोग, लेकिन, उनकी संभावित विषाक्तता और रासायनिक शोधन की प्रतिक्रिया में उनके गुण परिवर्तन को नियंत्रित करने के द्वारा सीमित हो सकता है। नैनोट्यूब फुलरीन संरचनात्मक परिवार के सदस्य हैं, जिसमें गोलाकार बकिबॉल भी शामिल हैं। एक नैनोट्यूब के छोर को बकिबॉल संरचना के एक गोलार्द्ध के साथ ढका जा सकता है। उनका नाम उनके आकार से लिया गया है, चूंकि एक नैनोट्यूब का व्यास कुछ नैनोमीटर के क्रम में है (एक मानव बाल की चौड़ाई का लगभग 1/50,000 वां हिस्सा), जबकि वे लंबाई में कई मिलीमीटर हो सकते हैं (यथा 2008).

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किरणपुंज रेखा

फ्रांस के सिन्क्रोट्रान सोलिल (SOLEIL) की योजना: इसमें विशाल केन्द्रीय वलय (लाल रंग में चित्रित) में इलेक्ट्रान घूमते हैं और जहाँ वे अपने पथ से मोड़े जाते हैं वहाँ सिन्क्रोट्रान विकिरण निकालते हैं। यह सिन्क्रोट्रान आठ स्पर्शरेखीय बीमलाइनों में ले जाया जाता है जहाँ विभिन्न प्रकार के प्रयोग किए जाते हैं। कण त्वरक के सन्दर्भ में किरणपुंज रेखा (बीमलाइन / beamline) से अभिप्राय किररणपुंज अथवा कणपुंज के गमनपथ से है जिसके अन्तर्गत किरणपुंज के मार्ग में आने वाले सभी अवयव (निर्वात नली/पाइप, विभिन्न प्रकार के चुम्बक, नैदानिक युक्तियाँ, प्रकाशीय युक्तियाँ आदि) भी सम्मिलित हैं। बीमलाइन प्रायः दो प्रकार की होती है-.

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क्यूरी ताप

भौतिकी और पदार्थ विज्ञान में क्यूरी ताप (Curie temperature (Tc)) या क्यूरी बिन्दु (Curie point) वह ताप है जिस पर उस पदार्थ का स्थायी चुम्बकत्व समाप्त हो जाता है और केवल प्रेरित चुम्बकत्व ही शेष रहता है। .

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क्रिस्टल

क्रिस्टलीय, बहुक्रिस्टलीय तथा अक्रिस्टलीय पदार्थों की सूक्ष्म संरचना स्फटिक, इस बहुमणिभीय खनिज की पर्तें स्पष्ट पारदर्शी होतीं हैं बिस्मथ का क्रिस्टल इन्सुलिन का क्रिस्टल गैलियम, जिसकी वृहत एकपर्त होती हैं रसायन शास्त्र, खनिज शास्त्र एवं पदार्थ विज्ञान में क्रिस्टल उन ठोसों को कहते हैं जिनके अणु, परमाणु या आयन, एक व्यवस्थित क्रम में लगे होते हैं तथा यही क्रम सभी तरफ दोहराया जाता है। प्रतिदिन के प्रयोग के अधिकतर पदार्थ बहुक्रिस्टलीय (पॉलीक्रिटलाइन) होते हैं। क्रिस्टलों तथा क्रिस्टल निर्माण के वैज्ञानिक अध्ययन को क्रिस्टलकी (crystallography) कहते हैं। क्रिस्टल बनने की प्रक्रिया को क्रिस्टलन या क्रिस्टलीकरण (crystallization या solidification) कहते हैं। .

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अनुप्रयुक्त विज्ञान

विज्ञान की वे शाखायें जो पहले से विद्यमान वैज्ञानिक ज्ञान का का उपयोग और अधिक व्यावहारिक कार्यों (जैसे प्रौद्योगिकी, अनुसंधान आदि) के सम्पादन के लिये करतीं हैं, उन्हें अनुप्रयुक्त विज्ञान (applied science) कहते हैं। 'शुद्ध विज्ञान', अनुप्रयुक्त विज्ञान का उल्टा है जो प्रकृति की परिघटनाओं की व्याख्या करने एवं उनका पूर्वानुमान लगाने आदि का कार्य करता इंजीनीयरिंग (अभियांत्रिकी) की विद्या अनुप्रयुक्त विज्ञान है। अनुप्रयुक्त विज्ञान टेक्नोलोजी विकास के लिये महत्वपूर्ण्ण है। औद्योगिक क्षेत्र में इसे 'अनुसंधान और विकास' (R&D) कहते हैं। .

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अपरूपण गुणांक

अपरूपण विकृति पदार्थ विज्ञान में, अपरूपण प्रतिबल और अपरूपण विकृति के अनुपात को अपरूपण गुणांक (shear modulus' या modulus of rigidity) कहते हैं। इसे G (कभी-कभी S याr μ) से निरूपित किया जाता है।: जहाँ अपरूपण गुणांक की एस आई इकाई पास्कल (Pa) है। इसकी विमा (dimension) M1L−1T−2 है। अपरूपण गुणांक सदा धनात्मक होता है।.

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