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पत्थर

सूची पत्थर

पहाड़ों से प्राप्त होने बाला एक कठोर पदार्थ जो भवन निर्माण में प्रयुक्त होता है। इस शब्द का मूल संस्कृत शब्द पाषाण है। श्रेणी:भवन निर्माण.

34 संबंधों: चीन की विशाल दीवार, टिटहरी, ड्रिल, तटबन्ध, तलशिला, धूमकेतु, पड़िला महादेव मंदिर, पुरापाषाण काल, प्रस्तर, प्रस्तर मूर्तिकला, प्राचीन भारत, प्रागितिहास, ब्लिट्ज, भारत का पुरापाषाण युग, भूगतिकी, मिज़ूरी, मुण्डा, राजगीरी, शनि (ज्योतिष), संरचना इंजीनियरी, संगमील, सुनम्य कलाएँ, खंभात, गनोगा झील, गुप्त राजवंश, गौतम बुद्ध नगर जिला, कंक्रीट, कुट्टिम, कुमाऊँ मण्डल, कुल्हाड़ी, कोर, अभिलेख, अल्बर्ट हॉल संग्रहालय, उत्कीर्णन

चीन की विशाल दीवार

चीन की विशाल दीवार मिट्टी और पत्थर से बनी एक किलेनुमा दीवार है जिसे चीन के विभिन्न शासको के द्वारा उत्तरी हमलावरों से रक्षा के लिए पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर सोलहवी शताब्दी तक बनवाया गया। इसकी विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की इस मानव निर्मित ढांचे को अन्तरिक्ष से भी देखा जा सकता है। यह दीवार ६,४०० किलोमीटर (१०,००० ली, चीनी लंबाई मापन इकाई) के क्षेत्र में फैली है। इसका विस्तार पूर्व में शानहाइगुआन से पश्चिम में लोप नुर तक है और कुल लंबाई लगभग ६७०० कि॰मी॰ (४१६० मील) है। हालांकि पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के हाल के सर्वेक्षण के अनुसार समग्र महान दीवार, अपनी सभी शाखाओं सहित तक फैली है। अपने उत्कर्ष पर मिंग वंश की सुरक्षा हेतु दस लाख से अधिक लोग नियुक्त थे। यह अनुमानित है, कि इस महान दीवार निर्माण परियोजना में लगभग २० से ३० लाख लोगों ने अपना जीवन लगा दिया था।डैमियन ज़िमर्मैन,, ICE केस स्टडीज़, दिसंबर, १९९७ चीन में राज्य की रक्षा करने के लिए दीवार बनाने की शुरुआत हुई आठवीं शताब्दी ईसापूर्व में जिस समय कुई (अंग्रेजी:Qi), यान (अंग्रेजी:Yan) और जाहो (अंग्रेजी:Zhao) राज्यों ने तीर एवं तलवारों के आक्रमण से बचने के लिए मिटटी और कंकड़ को सांचे में दबा कर बनाई गयी ईटों से दीवार का निर्माण किया। ईसा से २२१ वर्ष पूर्व चीन किन (अंग्रेजी:Qin) साम्राज्य के अनतर्गत आ गया। इस साम्राज्य ने सभी छोटे राज्यों को एक करके एक अखंड चीन की रचना की। किन साम्राज्य से शासको ने पूर्व में बनायी हुई विभिन्न दीवारों को एक कर दिया जो की चीन की उत्तरी सीमा बनी। पांचवीं शताब्दी से बहुत बाद तक ढेरों दीवारें बनीं, जिन्हें मिलाकर चीन की दीवार कहा गया। प्रसिद्धतम दीवारों में से एक २२०-२०६ ई.पू.

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टिटहरी

टिटहरी (अंग्रेज़ी:Sandpiper, संस्कृत: टिट्टिभ) मध्यम आकार के जलचर पक्षी होते हैं, जिनका सिर गोल, गर्दन व चोंच छोटी और पैर लंबे होते हैं। यह प्राय: जलाशयों के समीप रहती है। इसे कुररी भी कहते हैं। नर अपनी मादा को हवाई करतबों से रिझाता है, जिनमें उड़ान के बीच में द्रुत चढ़ाव, पलटे और चक्कर होते है। यह तेज़ चक्करों, हिचकोलों और लुढ़कन भरी उड़ान है, जिसमें कुछ अंतराल पर पंख फड़फड़ाने की ऊंची ध्वनि दूर तक सुनाई देती है। ये धरती पर मामूली सा खोदकर अथवा थोड़े से कंकरों और बालू से घिरे गढ्डे में घोंसला बनाते हैं। इनका प्रजनन बरसात के समय मार्च से अगस्त के दौरान होता है। ये सामान्यत: दो से पांच नाशपाती के आकार के (पृष्ठभूमि से बिल्कुल मिलते-जुलते, पत्थर के रंग के हल्के पीले पर स्लेटी-भूरे, गहरे भूरे या बैंगनी धब्बों वाले) अंडे देती हैं। .

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ड्रिल

ड्रिल (अंग्रेजी:Drill) एक मशीनी औज़ार है जो फर्नीचर बनाने पत्थर में छेद तथा कहीं भी छेद करने में ड्रिल का प्रयोग किया जाता है। इसमें बिट डाला जाता है। .

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तटबन्ध

तटबन्ध तटबंध (embankment), ऐसे बाँध अर्थात् पत्थर या कंक्रीट के पलस्तर से सुरक्षित, मिट्टी या मिट्टी तथा कंकड़ इत्यादि के मिश्रण से बनाए तटों या ऊँचे, लंबें टीलों, को कहते हैं, जिनसे पानी के बहाव को रोकने अथवा सीमित करने का काम लिया जाता है, जैसे.

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तलशिला

तलशिला (bedrock) पृथ्वी व अन्य स्थलीय ग्रहों में उनकी ऊपरी सतह के नीचे के संगठित पत्थर को कहते हैं। साधारण रूप से तलशिला के ऊपर छोटे पत्थरों, मिट्टी व अन्य असंगठित मलबे की परते होती है। अलग-अलग स्थानों पर तलशिला भिन्न गहराईयों पर होती है। कहीं तो ऊपर से परतें हट जाने के कारण तलशिला दिखने लगती है और कहीं यह सतह से सैंकड़ों मीटर गहराई पर होती है। सिविल इंजीनियरी में इमारते बनाते हुए, निर्माण आरम्भ करने से पहले, नीचे की तलशिला तक की गहराई मापना और उसकी बनावट समझना एक महत्वपूर्ण कार्य होता है। .

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धूमकेतु

हेल-बॉप धुमकेतू २९ मार्च १९९७ में पेजिन, क्रोएशिया में देखा गया धूमकेतु सौरमण्डलीय निकाय है जो पत्थर, धूल, बर्फ और गैस के बने हुए छोटे-छोटे खण्ड होते है। यह ग्रहो के समान सूर्य की परिक्रमा करते है। छोटे पथ वाले धूमकेतु सूर्य की परिक्रमा एक अण्डाकार पथ में लगभग ६ से २०० वर्ष में पूरी करते है। कुछ धूमकेतु का पथ वलयाकार होता है और वो मात्र एक बार ही दिखाई देते है। लम्बे पथ वाले धूमकेतु एक परिक्रमा करने में हजारों वर्ष लगाते है। अधिकतर धूमकेतु बर्फ, कार्बन डाईऑक्साइड, मीथेन, अमोनिया तथा अन्य पदार्थ जैसे सिलिकेट और कार्बनिक मिश्रण के बने होते है। .

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पड़िला महादेव मंदिर

पड़िला महादेव मंदिर, प्रयाग के पाँचकोशी यात्रा का एक महत्वपूर्ण स्थान है।भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर तीर्थराज प्रयाग (इलाहाबाद) के उत्तरांचल मे जनपद मुख्यालय से 16 किलोमीटर दूर (इलाहाबाद-प्रतापगढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग 96) फाफामऊ के थरवई गाँव मे स्थित हैं। इसे पांडेश्वर महादेव मंदिर कजे नाम से भी जाना जाता है। यह स्थान सोराँव तहसील में फाफामऊ कस्बे से ३ किमी उत्तर पूर्व में स्थित हैं। किंवदन्ती है कि श्री कृष्ण की सलाह पर यहाँ पाण्ड्वों ने भगवान शंकर के लिंग की स्थापना अपने वनवासकाल के दौरान किया था। यह मन्दिर पूर्ण रूप से पत्थरों से बना हुआ है। गजेटियर के अनुसार यहाँ शिवरात्रि व फाल्गुन कृष्ण १५ को मेला लगता है। श्रेणी:शिव मंदिर.

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पुरापाषाण काल

पुरापाषाण काल (अंग्रेजी Palaeolithic) प्रौगएतिहासिक युग का वह समय है जब मानव ने पत्थर के औजार बनाना सबसे पहले आरम्भ किया। यह काल आधुनिक काल से २५-२० लाख साल पूर्व से लेकर १२,००० साल पूर्व तक माना जाता है। इस दौरान मानव इतिहास का ९९% विकास हुआ। इस काल के बाद मध्यपाषाण युग का प्रारंभ हुआ जब मानव ने खेती करना शुरु किया था। भारत में पुरापाषाण काल के अवशेष तमिल नाडु के कुरनूल, कर्नाटक के हुँस्न्गी, ओडिशा के कुलिआना, राजस्थान के डीडवानाके श्रृंगी तालाब के निकट और मध्य प्रदेश के भीमबेटका में मिलते हैं। इन अवशेषो की संख्या मध्यपाषाण काल के प्राप्त अवशेषो से बहुत कम है। इस काल को जलवायु परिवर्तन तथा उस समय के पत्थर के हथियारो तथा औजारो के प्रकारों के आधार पर निम्न तीन भागों में विभाजित किया गया है:- .

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प्रस्तर

प्रस्तर का अर्थ होता है पत्थर। .

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प्रस्तर मूर्तिकला

पत्थर की मूर्तियाँ प्रागैतिहासिक काल से ही अनेक कारणों से बनाई जा रही हैं। पत्थर की मूर्तियाँ केवल सुंदरता का ही नहीं, बलकी और भी बहुत चीज़ों का प्रतीक है। इस बात को इस लेख में समझाया गया है। और यह भी दिखाया है कि सालों से विकास करती यह कला अत्यंत आकर्शक और महत्वपूर्ण है। पत्थर की मूर्तियाँ पत्थर को तीन आयमों में काटने से बनती हैं। इनकी आधारभूत संकलपना एक ही होने पर भी हमें लाखों तरह की रचनाएँ देखने को मिलती हैं। यह एक प्राचीन कला है जिसमें प्राकृतिक पत्थर को नियंत्रित रीति से काटा जाता हैं। कलाकार अपनी क्शमता को पथ्थर को काटने में दिखाता हैं, जैसे वह उसकी कुशलता का प्रतीक हो। सुबह शाम, दिन रात एक करके वे पत्थर को विभिन्न आकृतियों में काँट कर, उसको एक मूर्ती का रूप देता हैं। .

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प्राचीन भारत

मानव के उदय से लेकर दसवीं सदी तक के भारत का इतिहास प्राचीन भारत का इतिहास कहलाता है। .

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प्रागितिहास

आज से लगभग २७,००० साल पहले फ़्रान्स की एक गुफ़ा में एक प्रागैतिहासिक मानव ने अपने हाथ के इर्दगिर्द कालख लगाकर यह छाप छोड़ी प्रागैतिहासिक (Prehistory) इतिहास के उस काल को कहा जाता है जब मानव तो अस्तित्व में थे लेकिन जब लिखाई का आविष्कार न होने से उस काल का कोई लिखित वर्णन नहीं है।, Chris Gosden, pp.

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ब्लिट्ज

ब्लिट्ज एक भारतीय समाचार-पत्र था जिसके सम्पादक रूसी करंजिया थे। .

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भारत का पुरापाषाण युग

पुरापाषाण काल (अंग्रेजी Palaeolithic) प्रागैतिहासिक युग का वह समय है जब मानव ने पत्थर के औजार बनाना सबसे पहले आरम्भ किया। यह काल आधुनिक काल से २५-२० लाख साल पूर्व से लेकर १२,००० साल पूर्व तक माना जाता है। इस दौरान मानव इतिहास का ९९% विकास हुआ। इस काल के बाद मध्यपाषाण युग का प्रारंभ हुआ जब मानव ने खेती करना शुरु किया था। भारत में पुरापाषाण काल के अवशेष तमिल नाडु के कुरनूल, कर्नाटक के हुँस्न्गी, ओडिशा के कुलिआना, राजस्थान के डीडवानाके श्रृंगी तालाब के निकट और मध्य प्रदेश के भीमबेटका में मिलते हैं। इन अवशेषो की संख्या मध्यपाषाण काल के प्राप्त अवशेषो से बहुत कम है। .

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भूगतिकी

भूगतिकी (Geodynamics) भूभौतिकी की वह शाखा है जो पृथ्वी पर केन्द्रित गति विज्ञान का अध्ययन करती है। इसमें भौतिकी, रसायनिकी और गणित के सिद्धांतों से पृथ्वी की कई प्रक्रियाओं को समझा जाता है। इनमें भूप्रावार (मैंटल) में संवहन (कन्वेक्शन) द्वारा प्लेट विवर्तनिकी का चलन शामिल है। सागर नितल प्रसरण, पर्वत निर्माण, ज्वालामुखी, भूकम्प, भ्रंशण जैसी भूवैज्ञानिक परिघटनाएँ भी इसमें सम्मिलित हैं। भूगतिकी में चुम्बकीय क्षेत्रों, गुरुत्वाकर्षण और भूकम्पी तरंगों का मापन तथा खनिज विज्ञान की तकनीकों के प्रयोग से पत्थरों और उनमें उपस्थित समस्थानिकों (आइसोटोपों) का मापन भूगतिकी में ज्ञानवर्धन की महत्वपूर्ण विधियाँ हैं। पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों पर अनुसंधान में भी भूगतिकी का प्रयोग होता है। .

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मिज़ूरी

अमेरिका के मानचित्र पर मिज़ूरी (Missouri) आयोवा, इलिनॉय, केन्टकी, टेनेसी, अर्कन्सास, ओक्लाहोमा, केन्सास और नेब्रास्का से घिरा संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य-पश्चिम क्षेत्र का एक राज्य है। मिसौरी सबसे अधिक जनसंख्या वाला 18वां राज्य है जिसकी 2009 में अनुमानित जनसंख्या 5,987,580 थी। यह 114 प्रान्तों और एक स्वतंत्र शहर से मिलकर बना है। मिसौरी की राजधानी जेफ़रसन शहर है। तीन सबसे बड़े शहरी क्षेत्र सेंट लुई, कन्सास शहर और स्प्रिंगफील्ड हैं। मिसौरी को मूल रूप से लुइसियाना खरीद के भाग के रूप में फ्रांस से अधिग्रहण किया गया था। मिसौरी राज्य क्षेत्र के भाग को 10 अगस्त 1821 में 24वें राज्य के रूप में संघ में शामिल कर लिया गया। मिसौरी में राष्ट्र के जनसांख्यिकीय, आर्थिक और राजनैतिक क्षेत्र में शहरी और ग्रामीण संस्कृति का मिश्रण देखने को मिलता है। इसे लंबे समय से एक राजनीतिक कसौटी राज्य माना जाता रहा है। 1956 और 2008 को छोड़कर, मिसौरी के U.S. राष्ट्रपति के पद के चुनाव के परिणाम ने 1904 से प्रत्येक चुनाव में संयुक्त राज्य अमेरिका के अगले राष्ट्रपति की सही-सही भविष्यवाणी की है। यह मध्य पश्चिमी और दक्षिणी दोनों संस्कृतियों से प्रभावित है और अपने इतिहास में एक सीमा राज्य के रूप में प्रदर्शित है। यह पूर्वी और पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच एक अवस्थांतर भी है क्योंकि सेंट लुई को अक्सर "सुदूर-पश्चिमी पूर्वी शहर" और कन्सास शहर को "सुदूर-पूर्वी पश्चिमी शहर" कहते हैं। मिसौरी के भूगोल में अत्यधिक विविधता है। राज्य का उत्तरी भाग विच्छेदित गोल मैदानों में पड़ता है जबकि दक्षिणी भाग ओज़ार्क पर्वतों (विच्छेदित पठार) में पड़ता है जिसे मिसोरी नदी दो भागों में बांटती है। मिसिसिपी और मिसौरी नदियों का संगम सेंट लुई के पास स्थित है। .

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मुण्डा

मुंडा एक भारतीय आदिवासी समुदाय है, जो मुख्य रूप से झारखण्ड के छोटा नागपुर क्षेत्र में निवास करता है| झारखण्ड के अलावा ये बिहार, पश्चिम बंगाल, ओड़िसा आदि भारतीय राज्यों में भी रहते हैं| इनकी भाषा मुंडारी आस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार की एक प्रमुख भाषा है| उनका भोजन मुख्य रूप से धान, मड़ूआ, मक्का, जंगल के फल-फूल और कंध-मूल हैं | वे सूत्ती वस्त्र पहनते हैं | महिलाओं के लिए विशेष प्रकार की साड़ी होती है, जिसे बारह हथिया (बारकी लिजा) कहते हैं | पुरुष साधारण-सा धोती का प्रयोग करते हैं, जिसे तोलोंग कहते हैं | मुण्डा, भारत की एक प्रमुख जनजाति हैं | २० वीं सदी के अनुसार उनकी संख्या लगभग ९,०००,००० थी |Munda http://global.britannica.com/EBchecked/topic/397427/Munda .

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राजगीरी

काम करता हुआ राजगीर पत्थर या ईंट की चिनाई करनेवालों को राज कहते हैं। और उनका काम व्यापक अर्थ में राजगीरी कहलाता है, किंतु व्यवहार में राजगीरी शब्द का प्रयोग प्राय: पत्थर की चिनाई के लिए ही हुआ करता है। ईंट का काम ईंट चिनाई ही कहा जाता है। .

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शनि (ज्योतिष)

बण्णंजी, उडुपी में शनि महाराज की २३ फ़ीट ऊंची प्रतिमा शनि ग्रह के प्रति अनेक आखयान पुराणों में प्राप्त होते हैं।शनिदेव को सूर्य पुत्र एवं कर्मफल दाता माना जाता है। लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी.शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियां और इस लिये उसे मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं। लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है, जितना उसे माना जाता है। इसलिये वह शत्रु नही मित्र है।मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है। सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है, और हर प्राणी के साथ उचित न्याय करता है। जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं, शनि केवल उन्ही को दण्डिंत (प्रताडित) करते हैं। वैदूर्य कांति रमल:, प्रजानां वाणातसी कुसुम वर्ण विभश्च शरत:। अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मज: अव्यतीति मुनि प्रवाद:॥ भावार्थ:-शनि ग्रह वैदूर्यरत्न अथवा बाणफ़ूल या अलसी के फ़ूल जैसे निर्मल रंग से जब प्रकाशित होता है, तो उस समय प्रजा के लिये शुभ फ़ल देता है यह अन्य वर्णों को प्रकाश देता है, तो उच्च वर्णों को समाप्त करता है, ऐसा ऋषि महात्मा कहते हैं। .

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संरचना इंजीनियरी

विश्व की सबसे बड़ी इमारत - '''बुर्ज दुबई''' संरचना इंजीनियरी, इंजीनियरी की वह शाखा है जो लोड (बल) सहन करने या बल का प्रतिरोध करने के के लिये बनायी जाने वाली संरचनाओं (structures) के विश्लेषण एवं डिजाइन से सम्बन्ध रखती है। इसे प्रायः सिविल इंजीनियरी के अन्दर एक विशेषज्ञता का क्षेत्र समझा जाता है। संरचना इंजीनियर का काम प्रायः भवनों तथा विशाल गैर-भवन संरचनाओं की डिजाइन करना होता है किन्तु वे मशीनरी, चिकित्सा उपकरण, वाहनों आदि के डिजाइन से भी जुड़े हो सकते हैं। संरचना इंजीनियरी का सिद्धान्त भौतिक नियमों तथा विभिन्न पदार्थों/ज्यामितियों के गुणधर्म से सम्बन्धित अनुभवजन्य ज्ञान पर आधारित है। अनेकों छोटे छोटे संरचनात्मक अवयवों के योग से जटिल संरचनाएँ निर्मित की जातीं हैं। संरचना इंजीनियर को लोहे और इस्पात का ही नहीं, बल्कि लकड़ी, ईंट, पत्थर, चूना और सीमेंट का भी आधुनिकतम ज्ञान तथा यांत्रिक एवं विद्युत् इंजीनियरी के कामों में भी दक्ष होना चाहिए, क्योंकि इन्हें अपने ढाँचे यांत्रिकी तथा भौतिकी के सिद्धांतों के अनुसार निरापद ढंग से बनाने पड़ते हैं। भूमि, जल और वायु की प्रकृति का भी पूर्ण ज्ञान सिविल इंजीनियर के समान ही होना चाहिए। .

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संगमील

राजस्थान के जोधपुर ज़िले में भीकमकोर के पास लगा एक संगमील संगमील या मील का पत्थर ऐसे पत्थर या चिह्न को कहा जाता है जो किसी मार्ग या सीमा पर हर मील, किलोमीटर, कोस या अन्य दूरी पर लगा हो। उसपर अक्सर कोई संख्या लिखी होती है जिस से वहाँ पर स्थित किसी वाहन या व्यक्ति को ज्ञात हो सकता है के वह उस मार्ग या सीमा पर कहाँ है और अपनी मंज़िल से कितना दूर है। किसी दुर्घटना की स्थिति में पुलीस या सहायता पहुँचाने के लिए भी इन संगमीलों का होना अति आवश्यक है। .

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सुनम्य कलाएँ

सुनम्य कलाएँ (Plastic arts) उन कलाओं की श्रेणी है जिनमें सुन्यता (plasticity) वाले पदार्थों से कलाकृतियाँ बनाई जाती हैं। इनमें मोल्डिंग (संचन) और शिल्पकला और मृतिकाशिल्प की कलाएँ शामिल हैं। सुनम्य कला में ऐसी सामग्रीयों का प्रयोग होता है जिन्हें आकार दिया जा सके, जैसे कि पत्थर, लकड़ी, कंक्रीट और धातु। हालांकि इन कलाओं का अंग्रेज़ी नाम "प्लास्टिक आर्ट्स" है, इनमें यह ज़रूरी नहीं है कि प्लास्टिक ही प्रयोग हो। .

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खंभात

खंभात नगर, (गुजराती:ખંભાત) पूर्व-मध्य गुजरात के आनन्द जिले की एक नगरपालिका है। यह खंभात की खाड़ी के उत्तर में, माही नदी के मुहाने पर स्थित एक प्राचीन नगर है। टॉलमी नामक विद्वान ने भी इसका उल्लेख किया है। प्रथम शती में यह महत्वपूर्ण सागर पत्तन था। १५वीं शताब्दी में खंभात पश्चिमी भारत के हिंदू राजा की राजधानी था। जेनरल गेडार्ड ने १७०० ई. में इस नगर को अधिकृत कर लिया था, किंतु १७८३ ई. में यह पुन: मराठों को लौटा दिया गया। १८०३ ई. के बाद से यह अंग्रेजी राज्य के अंतर्गत रहा। नगर के दक्षिण-पूर्व में प्राचीन जैन मंदिर के भग्नावशेष विस्तृत प्रदेश में मिलते हैं। प्राचीन काल में रेशम, सोने का समान और छींट यहाँ के प्रमुख व्यापार थे। कपास प्रधान निर्यात थी। किन्तु नदियों के निक्षेपण से पत्तन पर पानी छिछला होता गया और अब यह जलयानों के रुकने योग्य नहीं रहा। फलत: निकटवर्ती नगरों का व्यापारिक महत्व खंभात की अपेक्षा अधिक बढ़ गया और अब यह एक नगर मात्र रह गया है। .

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गनोगा झील

गनोगा झील संयुक्त राज्य अमेरिका के पेन्सिलवेनिया में एक प्राकृतिक झील है।Ricketts, pp.

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गुप्त राजवंश

गुप्त राज्य लगभग ५०० ई इस काल की अजन्ता चित्रकला गुप्त राजवंश या गुप्त वंश प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था। मौर्य वंश के पतन के बाद दीर्घकाल तक भारत में राजनीतिक एकता स्थापित नहीं रही। कुषाण एवं सातवाहनों ने राजनीतिक एकता लाने का प्रयास किया। मौर्योत्तर काल के उपरान्त तीसरी शताब्दी इ. में तीन राजवंशो का उदय हुआ जिसमें मध्य भारत में नाग शक्‍ति, दक्षिण में बाकाटक तथा पूर्वी में गुप्त वंश प्रमुख हैं। मौर्य वंश के पतन के पश्चात नष्ट हुई राजनीतिक एकता को पुनस्थापित करने का श्रेय गुप्त वंश को है। गुप्त साम्राज्य की नींव तीसरी शताब्दी के चौथे दशक में तथा उत्थान चौथी शताब्दी की शुरुआत में हुआ। गुप्त वंश का प्रारम्भिक राज्य आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार में था। गुप्त वंश पर सबसे ज्यादा रिसर्च करने वाले इतिहासकार डॉ जयसवाल ने इन्हें जाट बताया है।इसके अलावा तेजराम शर्माhttps://books.google.co.in/books?id.

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गौतम बुद्ध नगर जिला

गौतम बुद्ध नगर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक मह्त्वपूर्ण जिला है। इस जिले की स्थापना 9 जून 1997 को बुलन्दशहर एवं गाजियाबाद जिलों के कुछ ग्रामीण व अर्द्धशहरी क्षेत्रों को काटकर की गयी थी। प्रदेश में सत्ता-परिवर्तन होते ही मुलायम सिंह यादव ने इस जिले को भंग कर दिया जिसके विरोध में यहाँ की जनता ने प्रबल आन्दोलन किया था। बाद में जनता के दबाव को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को अपना निर्णय बदलना पड़ा और जिला बहाल किया गया। आज स्थिति यह है कि गौतम बुद्ध नगर जिला प्रदेश की राजस्व प्राप्ति में अपनी प्रमुख भूमिका निभा रहा है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से सटे हुए इस जिले का मुख्यालय ग्रेटर नोएडा में अवस्थित है। .

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कंक्रीट

वाणिज्यिक भवन के लिये कंक्रीट बिछायी जा रही है। कंक्रीट (Concrete) एक निर्माण सामग्री है जो सीमेंट एवं कुछ अन्य पदार्थों का मिश्रण होती है। कंक्रीट की यह विशेषता है कि यह पानी मिलाकर छोड़ देने के बाद धीरे-धीरे ठोस एवं कठोर बन जाता है। इस प्रक्रिया को जलीकरण (Hydration) कहते है। इस रासायनिक क्रिया में पानी, सिमेन्ट के साथ क्रिया करके पत्थर जैसा कठोर पदार्थ बनाती है जिसमें अन्य चीजें बंध जातीं हैं। कंक्रीट का प्रयोग सड़क बनाने, पाइप निर्माण, भवन निर्माण, नींव बनाने, पुल आदि बनाने में होता है। कंक्रीट का उपयोग 2000 ई.पू.

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कुट्टिम

कुट्टिम (pavement) ऐस्फाल्ट, पत्थर या खपरैल (टाइल) से बनी संरचना है जो फर्श या किसी मार्ग पर लगायी जाती है। .

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कुमाऊँ मण्डल

यह लेख कुमाऊँ मण्डल पर है। अन्य कुमाऊँ लेखों के लिए देखें कुमांऊॅं उत्तराखण्ड के मण्डल कुमाऊँ मण्डल भारत के उत्तराखण्ड राज्य के दो प्रमुख मण्डलों में से एक हैं। अन्य मण्डल है गढ़वाल। कुमाऊँ मण्डल में निम्न जिले आते हैं:-.

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कुल्हाड़ी

कुल्हाड़ी कटाई की कुल्हाड़ियां कुल्हाड़ी या कुल्हाड़ा, (अन्य हिन्दी शब्दः फरसा या कुठार) एक औजार है, जिसको सदियों से लकड़ी को आकार देने या टुकड़े करने, जंगल से लकड़ी काटने, युद्ध मे एक हथियार के रूप में और एक औपचारिक प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। कुल्हाड़ी को विभिन्न कार्यों के अनुसार कई रूप दिये गये हैं, लेकिन एक आम कुल्हाड़ी का एक लोहे या इस्पात का सिर और लकड़ी का हत्था होता है। कुल्हाड़ियों के प्राचीन प्रकारों मे इनका हत्था लकड़ी का और सिर और फाल पत्थर का होता था। सभ्यता में प्रगति और तकनीकों का विकास के साथ कुल्हाड़ी का सिर तांबे, पीतल, लोहे और इस्पात से बनाया जाने लगा। .

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कोर

नाली और बरसाती नाली किसी सड़क के संदर्भ में एक कोर वह किनारा होता है जहाँ एक उठा हुआ पैदलपथ/फुटपाथ, सड़क माध्यिका या सड़क स्कंध किसी बिना उठी हुई सड़क या बिना उठे हुये रास्ते से मिलता है। आमतौर पर किसी कोर को कंक्रीट, डामर, या लंबे पत्थर (कोराश्म या उपांताश्म: अक्सर ग्रेनाइट) से बनाया जाता है। कोर दो उद्देश्यों की पूर्ति करता है: पहला यह सड़क से उचित जल निकासी के लिए एक नाली मुहैया कराता है और दूसरा यह किसी वाहन चालक को स्कंध, माध्यिका या पैदलपथ पर चढ़ने से रोक कर, उसे और पैदल यात्रियों को सुरक्षा प्रदान करता है। .

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अभिलेख

कंधार स्थित सम्राट अशोक के द्वारा उत्कीर्ण एक पाषाण अभिलेख अभिलेख पत्थर अथवा धातु जैसी अपेक्षाकृत कठोर सतहों पर उत्कीर्ण किये गये पाठन सामाग्री को कहते है। प्राचीन काल से इसका उपयोग हो रहा है। शासको के द्वारा अपने आदेशो को इस तरह उत्कीर्ण करवाते थे, ताकि लोग उन्हे देख सके एवं पढ़ सके और पालन कर सके। आधुनिक युग मे भी इसका उपयोग हो रहा है। .

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अल्बर्ट हॉल संग्रहालय

अल्बर्ट हॉल संग्रहालय (अंग्रेजी:Albert Hall Museum) भारत के राजस्थान राज्य के जयपुर ज़िले में स्थित एक संग्रहालय है। यह राजस्थान का सबसे पुराना संग्रहालय है। यह संग्रहालय "राम निवास उद्यान" के बाहरी ओर सीटी वॉल के नये द्वार के सामने है। यह "भारत-अरबी शैली" में बनाई गयी एक बिल्डिंग है। इसकी डिजाइन सर सैम्युल स्विंटन जैकब ने की थी तथा यह पब्लिक संग्रहालय के रूप में 1887 में खुला था। .

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उत्कीर्णन

लकड़ी पर उत्कीर्ण सुन्दर दृष्य लकड़ी, हाथीदाँत, पत्थर आदि को गढ़ छीलकर अलंकृत करने या मूर्ति बनाने को उत्कीर्णन या नक्काशी करना (अंग्रेजी में कर्विग) कहते हैं। यहाँ काष्ठ उत्कीर्णन पर प्राविधिक दृष्टिकोण से विचार किया गया है। उत्कीर्णन के लिए लकड़ी को सावधानी से सूखने देना चाहिए। एक रीति यह है कि नई लकड़ी को बहते पानी में डाल दिया जाए, जिसमें उसका सब रस बह जाए हवादार जगह में छोड़ देना काफी होता है। शीशम, बाँझ (ओक) और लकड़ियों पर सूक्ष्म उत्कीर्णन किया जा सकता है। मोटा काम प्राय: सभी लकड़ियों पर हो सकता है। उत्कीर्णन के लिए छोटी बड़ी अनेक प्रकार की चपटी और गोल रुखानियों तथा छुरियों का प्रयोग किया जाता है। काम को पकड़ने के लिए बाँक (वाइस) भी हो तो सुविधा होती है। काठ की एक मुँगरी (हथौड़ा) भी चाहिए। कोने अँतरे में लकड़ी को चिकना करने के लिए टेढ़ी रेती भी चाहिए। बारीक काम में रुखानी को ठोंका नहीं जाता। केवल एक हाथ की गदोरी से दबाया जाता है और दूसरे हाथ की अँगुलियों से उसके अग्र को नियंत्रित किया जाता है। उत्कीर्णन सीख सकता है। नौसिखुए के लिए दस बारह औजार पर्याप्त होंगे। उत्कीर्णन के लिए बने यंत्रों को बढ़िया इस्पात का होना चाहिए और उन्हें छुरा तेज करने की सिल्ली पर तेज करे अंतिम धार चमड़े की चमोटी पर रगड़कर चढ़ानी चाहिए। अतीक्ष्ण यंत्रों से काम स्चच्छ नहीं बनता और लकड़ी के फटने या टूटने का डर रहाता है। गोल रुखानियों को नतोदार पृष्ठ की ओर से तेज करने के लिए बेलनाकार सिल्लियाँ मिलती हैं या साधारण सिल्लियाँ भी घिसकर वैसी बनाई जा सकती हैं। यों तो थोड़ा बहुत उत्कीर्णन सभी जगह होता है, पंरतु कश्मीर की बनी अखरोट की लकड़ी की उत्कीर्ण वस्तुएँ बड़ी सुंदर होती हैं। चीन और जापान के मंदिरों में काष्ठोत्कीर्णन के आश्चर्यजनक सूक्ष्म और सुंदर उदाहरण मिलते हैं। .

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