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पठान

सूची पठान

अफ़्ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के नक़्शे में पश्तून क्षेत्र (नारंगी रंग में) ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान एक पश्तून थे अफ़्ग़ानिस्तान के ख़ोस्त प्रान्त में पश्तून बच्चे अमीर शेर अली ख़ान अपने पुत्र राजकुमार अब्दुल्लाह जान और सरदारों के साथ (सन् १८६९ ई में खींची गई) पश्तून, पख़्तून (पश्तो:, पश्ताना) या पठान (उर्दू) दक्षिण एशिया में बसने वाली एक लोक-जाति है। वे मुख्य रूप में अफ़्ग़ानिस्तान में हिन्दु कुश पर्वतों और पाकिस्तान में सिन्धु नदी के दरमियानी क्षेत्र में रहते हैं हालांकि पश्तून समुदाय अफ़्ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के अन्य क्षेत्रों में भी रहते हैं। पश्तूनों की पहचान में पश्तो भाषा, पश्तूनवाली मर्यादा का पालन और किसी ज्ञात पश्तून क़बीले की सदस्यता शामिल हैं।, James William Spain, Mouton,...

105 संबंधों: चारसद्दा ज़िला, चग़चरान, टांक ज़िला, झ़ोब ज़िला, डूरण्ड रेखा, तरीनकोट, तालोक़ान, तोरख़म, दायकुंदी प्रान्त, दिल्ली सल्तनत, दुर्रानी साम्राज्य, दुर्गेशनन्दिनी, दोस्त मुहम्मद ख़ान, नंगरहार प्रान्त, नीमरूज़ प्रान्त, पण्डारी, परवान प्रान्त, पश्तून लोगों के प्राचीन इस्राएलियों के वंशज होने की अवधारणा, पश्तूनवाली, पश्तो भाषा, पाकिस्तान, पिशीन, पख़्तूनिस्तान, पख़्तूनख़्वा मिल्ली अवामी पार्टी, पंजाब क्षेत्र, पकतिया प्रान्त, पकतीका प्रान्त, पुल-ए-आलम, पेच नदी, फ़राह प्रान्त, फ़राह, अफ़्ग़ानिस्तान, फ़ारयाब प्रान्त, फ़ैज़ाबाद, बदख़्शान, बन्नू ज़िला, बाचा ख़ान विश्वविद्यालय, बारकज़ई, बंगश, बुज़कशी, भारतीय स्थापत्यकला, महमूद-ए-राक़ी, मानसेहरा ज़िला, मुग़ल साम्राज्य, मैदान शहर, मैदान वरदक प्रान्त, मैवंद की मलाला, मेयमना, मेहमान ख़ाना, यूसुफ़ज़ई, योद्धा जातियाँ, लश्कर गाह, ..., लग़मान प्रान्त, लक्की मरवत ज़िला, लोया पकतिया, लोगर प्रान्त, शबरग़ान, शाहरुख़ ख़ान, शुजाउद्दौला, शेर शाह सूरी, सरदार हरि सिंह नलवा, सारगढ़ी का युद्ध, साशा आग़ा, सिन्धु-गंगा के मैदान, सूरी साम्राज्य, सोग़दा, हरिपुर ज़िला, हिन्दको भाषा, हिन्दी पुस्तकों की सूची/प, हज़ाराजात, हंगू ज़िला, हेरात प्रान्त, हेलमंद प्रान्त, जमरूद किला, ज़रंज, ज़ाबुल प्रान्त, ज़ियारत ज़िला, जुनागढ़ रियासत, जोज़जान प्रान्त, वटापूर ज़िला, ख़ैबर दर्रा, ख़ोस्त, ख़ोस्त प्रान्त, गरदेज़, ग़ज़नी प्रान्त, ओरूज़्गान प्रान्त, आदिल खान, इमरान ख़ान, कराची, करक ज़िला, क़लन्दर मोमंद, क़ला-ए-नौ, अफ़्ग़ानिस्तान, क़िला अब्दुल्लाह ज़िला, कांधार प्रान्त, कुनर प्रान्त, कुर्रम वादी, कुंदुज़ प्रान्त, क्वेटा ज़िला, कोहाट ज़िला, कोहिस्तानी भाषा, अफ़रीदी, अफ़ग़ानिस्तान, अहमद फ़राज़, अहमद शाह अब्दाली, अइमाक़ लोग, उत्तरी मित्रपक्ष, उपनाम सूचकांक विस्तार (55 अधिक) »

चारसद्दा ज़िला

ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत में चारसद्दा ज़िला (लाल रंग में) चारसद्दा का मशहूर चप्पल बाज़ार चारसद्दा (उर्दू:, पश्तो:, अंग्रेज़ी: Charsadda) पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत के मध्य भाग में स्थित एक ज़िला है। इस ज़िले की राजधानी चारसद्दा नाम का ही शहर है। यह ज़िला पहले पेशावर महानगर का हिस्सा हुआ करता था। माना जाता है कि भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीन नगरी पुष्कलावती, जिसका रामायण में भी ज़िक्र आता है, इसी चारसद्दा ज़िले में स्थित थी।, Raj Kumar Pruthi, APH Publishing, 2004, ISBN 978-81-7648-581-4,...

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चग़चरान

चग़चरान​ का एक पुल चग़चरान​ (दरी फ़ारसी:, अंग्रेज़ी: Chaghcharan), जिसे इतिहास में चख़चेरान और आहंगारान​ के नाम से भी जाना जाता था, मध्य अफ़ग़ानिस्तान के ग़ोर प्रान्त की राजधानी है। हरीरूद (हरी नदी) के दक्षिणी किनारे पर बसा यह शहर २,२८० मीटर की ऊँचाई पर है।, Ludwig W. Adamec, pp.

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टांक ज़िला

ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत में टांक ज़िला (गाढ़े नारंगी रंग में) टांक (उर्दू:, टांक; पश्तो:, टक; सराइकी:, टंक; अंग्रेज़ी: Tank) पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत का एक ज़िला है। यह पहले डेरा इस्माइल ख़ान ज़िले का हिस्सा हुआ करता था। .

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झ़ोब ज़िला

झ़ोब (पश्तो: ژوب‎, अंग्रेज़ी: Zhob) पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रान्त का उत्तरतम ज़िला है। .

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डूरण्ड रेखा

अफ़गानिस्तान -पाकिस्तान को बांटने वाली डूरण्ड रेखा अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच २४३० किमी॰ लम्बी अन्तराष्ट्रीय सीमा का नाम डूरण्ड रेखा (Durand Line; पश्तो: د ډیورنډ کرښه‎) है। यह 'रेखा' १८९६ में एक समझौते के द्वारा स्वीकार की गयी थी। यह रेखा पश्तून जनजातीय क्षेत्र से होकर दक्षिण में बलोचिस्तान से बीच से होकर गुजरती है। इस प्रकार यह रेखा पश्तूनों और बलूचों को दो देशों में बाँटते हुए निकलती है। भूराजनैतिक तथा भूरणनीति की दृष्टि से डूरण्ड रेखा को विश्व की सबसे खतरनाक सीमा माना जाता है। अफगानिस्तन इस सीमा को अस्वीकार करता रहा है। अफ़्गानिस्तान चारों ओर से जमीन से घिरा हुआ है और इसकी सबसे बड़ी सीमा पूर्व की ओर पाकिस्तान से लगी है, इसे डूरण्ड रेखा कहते हैं। यह 1893 में हिंदुकुश में स्थापित सीमा है, जो अफगानिस्तान और ब्रिटिश भारत के जनजातीय क्षेत्रों से उनके प्रभाव वाले क्षेत्रों को रेखांकित करती हुयी गुजरती थी। आधुनिक काल में यह अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच की सीमा रेखा है। .

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तरीनकोट

तरीनकोट (पश्तो:, अंग्रेज़ी: Tarinkot या Tarin Kowt) दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान के ओरूज़्गान प्रान्त की राजधानी है। इस शहर की आबादी सन् २०१२ में लगभग ६,३०० अनुमानित की गई थी। यह शहर वास्तव में एक छोटा सा क़स्बा है जिसके बाज़ार में लगभग २०० दुकाने हैं। प्रांत के राज्यपाल, जो २०१२ में असदउल्लाह हमदम थे, इसी बाज़ार से लगे एक दफ़्तर में काम करते हैं। .

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तालोक़ान

अलाउद्दीन मुहम्मद इब्न तेकेश (राजकाल: १२००-१२२०) द्वारा तालोक़ान में ज़र्ब सिक्का - इस राजा से चंगेज़ ख़ान ने आक्रमण करके राज छीन लिया था तालोक़ान (दरी फ़ारसी:, अंग्रेज़ी: Taloqan) उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान के तख़ार प्रान्त की राजधानी है। यह शहर २,८७४ फ़ुट (८७६ मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है। .

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तोरख़म

तोरख़म में पाकिस्तान-अफ़्ग़ानिस्तान अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर करते लोग तोरख़म या तूरख़म (पश्तो) पाकिस्तान के पश्चिमोत्तरी संघ-शासित जनजातीय क्षेत्र (फ़ाटा) की ख़ैबर एजेंसी में स्थित पाकिस्तान-अफ़्ग़ानिस्तान अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर एक छोटा सा सरहदी क़स्बा है। सीमा के उस पार अफ़्ग़ानिस्तान का नंगरहार प्रान्त है। यह बस्ती प्रसिद्ध ख़ैबर दर्रे से सिर्फ़ पाँच किलोमीटर पूर्व पर स्थित है और पाकिस्तान-अफ़्ग़ानिस्तान के दर्मियान यातायात और व्यापार का एक मुख्य पड़ाव है। तोरख़म और उसके इर्द-गिर्द के इलाक़ों में मुख्य रूप से पश्तून लोग बसते हैं।, United Nations, United Nations Publications, 2009, ISBN 978-92-1-130285-1,...

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दायकुंदी प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का दायकुंदी प्रांत (लाल रंग में) दायकुंदी या दाय कुंदी (फ़ारसी:, अंग्रेजी: Daykundi) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के मध्य भाग में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल १८,०८८ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००६ में लगभग ४ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी नीली शहर है। बामयान प्रान्त की तरह, इस प्रान्त में भी अधिकतर आबादी हज़ारा समुदाय की है, जो मंगोल नस्ल के वंशज हैं और शिया इस्लाम के अनुयायी हैं। .

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दिल्ली सल्तनत

सन् 1210 से 1526 तक भारत पर शासन करने वाले पाँच वंश के सुल्तानों के शासनकाल को दिल्ली सल्तनत (دلی سلطنت) या सल्तनत-ए-हिन्द/सल्तनत-ए-दिल्ली कहा जाता है। ये पाँच वंश ये थे- गुलाम वंश (1206 - 1290), ख़िलजी वंश (1290- 1320), तुग़लक़ वंश (1320 - 1414), सैयद वंश (1414 - 1451), तथा लोधी वंश (1451 - 1526)। इनमें से चार वंश मूलतः तुर्क थे जबकि अंतिम वंश अफगान था। मोहम्मद ग़ौरी का गुलाम कुतुब-उद-दीन ऐबक, गुलाम वंश का पहला सुल्तान था। ऐबक का साम्राज्य पूरे उत्तर भारत तक फैला था। इसके बाद ख़िलजी वंश ने मध्य भारत पर कब्ज़ा किया परन्तु भारतीय उपमहाद्वीप को संगठित करने में असफल रहा। इस सल्तनत ने न केवल बहुत से दक्षिण एशिया के मंदिरों का विनाश किया साथ ही अपवित्र भी किया,रिचर्ड ईटन (2000),, Journal of Islamic Studies, 11(3), pp 283-319 पर इसने भारतीय-इस्लामिक वास्तुकला के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दिल्ली सल्तनत मुस्लिम इतिहास के कुछ कालखंडों में है जहां किसी महिला ने सत्ता संभाली। १५२६ में मुगल सल्तनत द्वारा इस इस साम्राज्य का अंत हुआ। .

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दुर्रानी साम्राज्य

दुर्रानी साम्राज्य (पश्तो:, द दुर्रानियानो वाकमन​ई) एक पश्तून साम्राज्य था जो अफ़्ग़ानिस्तान पर केन्द्रित था और पूर्वोत्तरी ईरान, पाकिस्तान और पश्चिमोत्तरी भारत पर विस्तृत था। इस १७४७ में कंदहार में अहमद शाह दुर्रानी (जिसे अहमद शाह अब्दाली भी कहा जाता है) ने स्थापित किया था जो अब्दाली कबीले का सरदार था और ईरान के नादिर शाह की फ़ौज में एक सिपहसलार था। १७७३ में अहमद शाह की मृत्यु के बाद राज्य उसके पुत्रों और फिर पुत्रों ने चलाया जिन्होने राजधानी को काबुल स्थानांतरित किया और पेशावर को अपनी शीतकालीन राजधानी बनाया। अहमद शाह दुर्रानी ने अपना साम्राज्य पश्चिम में ईरान के मशाद शहर से पूर्व में दिल्ली तक और उत्तर में आमू दरिया से दक्षिण में अरब सागर तक फैला दिया और उसे कभी-कभी आधुनिक अफ़्ग़ानिस्तान का राष्ट्रपिता माना जाता है।, Library of Congress Country Studies on Afghanistan, 1997, Accessed 2010-08-25 .

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दुर्गेशनन्दिनी

दुर्गेशनन्दिनी (शाब्दिक अर्थ: दुर्ग के स्वामी की बेटी) बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित प्रथम बांग्ला उपन्यास था। सन १८६५ के मार्च मास में यह उपन्यास प्रकाशित हुआ। दुर्गेशनन्दिनी बंकिमचन्द्र की चौबीस से लेकर २६ वर्ष के आयु में लिखित उपन्यास है। इस उपन्यास के प्रकाशित होने के बाद बांग्ला कथासाहित्य की धारा एक नये युग में प्रवेश कर गयी। १६वीं शताब्दी के उड़ीसा को केन्द्र में रखकर मुगलों और पठानों के आपसी संघर्ष की पृष्टभूमि में यह उपन्यास रचित है। फिर भी इसे सम्पूर्ण रूप से एक ऐतिहासिक उपन्यास नहीं माना जाता। .

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दोस्त मुहम्मद ख़ान

दोस्त मोहम्मद खान (पश्तो: दोस्त मोहम्मद खान, 23 दिसंबर 1793 - 1863) 9 जून प्रथम आंग्ल-अफगान दौरान बारक़ज़ई वंश का संस्थापक और अफगानिस्तान के प्रमुख शासकों में से एक था।826-1839 अफगानिस्तान के अमीर बन गया और दुर्रानी वंश के पतन के साथ, वह 1845 से 1863 तक अफ़ग़ानिस्तान पर शासन किया। वह सरदार पाइंदा खान (बरक़ज़ई जनजाति के प्रमुख) का 11 वां बेटा था जो जमान शाह दुर्रानी से 1799 में मारा गया था। दोस्त मोहम्मद के दादा हाजी जमाल खान था। अफ़ग़ानों और अंग्रेजों की पहली लड़ाई के बाद उसे कलकत्ता निर्वासित कर दिया गया था लेकिन शाह शुजा की हत्या के बाद, 1842 में ब्रिटिश उसे अफ़ग़ानिस्तान का अमीर बना गए। उसने पंजाब के रणजीत सिंह से भी लोहा लिया। .

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नंगरहार प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का नंगरहार प्रान्त (लाल रंग में) नंगरहार (पश्तो:, अंग्रेजी: Nangarhar) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के पूर्व में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल ७,७२७ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००९ में लगभग १३.३ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी जलालाबाद शहर है। इस प्रान्त की पूर्वी और दक्षिणी सरहदें पाकिस्तान से लगती हैं। यहाँ के अधिकतर निवासी पश्तो बोलने वाले पठान हैं। .

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नीमरूज़ प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का नीमरूज़ प्रान्त (लाल रंग में) नीमरूज़ प्रान्त में शुष्क-पथरीली ज़मीन पर उगने वाला 'चश्त' नामक पौधा नीमरूज़ प्रान्त के चख़ानसूर ज़िले का एक नज़ारा नीमरूज़ (पश्तो:, अंग्रेजी: Nimruz) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के पश्चिम में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल ४१,००५ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००२ में लगभग १.५ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी ज़रंज शहर है। इस प्रान्त की सरहदें ईरान और पाकिस्तान से लगती हैं। नीमरूज़ प्रान्त अफ़्ग़ानिस्तान की सब से कम घनी आबादी वाला सूबा है और इसका एक बड़ा भूभाग सीस्तान द्रोणी और दश्त-ए-मारगो के भयंकर रेगिस्तान में आता है। .

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पण्डारी

पिंडारी (मराठी:पेंढारी) दक्षिण भारत के युद्धप्रिय पठान सवार थे। उनकी उत्पत्ति तथा नामकरण विवादास्पद है। वे बड़े कर्मठ, साहसी तथा वफादार थे। टट्टू उनकी सवारी थी। तलवार और भाले उनके अस्त्र थे। वे दलों में विभक्त थे और प्रत्येक दल में साधारणत: दो से तीन हजार तक सवार होते थे। योग्यतम व्यक्ति दल का सरदार चुना जाता था। उसकी आज्ञा सर्वमान्य होती थी। पिंडारियों में धार्मिक संकीर्णता न थी। 18वीं शताब्दी में पासी जाति भी उनके सैनिक दलों में शामिल थे। उनकी स्त्रियों का रहन-सहन हिंदू स्त्रियों जैसा था। उनमें-देवी देवताओं की पूजा प्रचलित थी। मराठों की अस्थायी सेना में उनका महत्वपूर्ण स्थान था। पिंडारी सरदार नसरू ने मुगलों के विरुद्ध शिवाजी की सहायता की। पुनापा ने उनके उत्तराधिकारियों का साथ दिया। गाजीउद्दीन ने बाजीराव प्रथम को उसके उत्तरी अभियानों में सहयोग दिया। चिंगोदी तथा हूल के नेतृत्व में 15 हजार पिंडारियों ने पानीपत के युद्ध में भाग लिया। अंत में वे मालवा में बस गए और सिंधियाशाही तथा होल्करशाही पिंडारी कहलाए। ही डिग्री और बुर्रन उनके सरदार थे। बाद में चीतू, करीम खाँ, दोस्तमुहम्मद और वसीलमुहम्मद सिंधिया की पिंडारी सेना के प्रसिद्ध सरदार हुए तथा कादिर खाँ, तुक्कू खाँ, साहिब खाँ और शेख दुल्ला होल्कर की सेना में रहे। पिंडारी सवारों की कुल संख्या लगभग 50,000 थी। युद्ध में लूटमार और विध्वंस के कार्य उन्हीं को सौंपे जाते थे। लूट का कुछ भाग उन्हें भी मिलता था। शांतिकाल में वे खेतीबाड़ी तथा व्यापार करते थे। गुजारे के लिए उन्हें करमुक्त भूमि तथा टट्टू के लिए भत्ता मिलता था। मराठा शासकों के साथ वेलेजली की सहायक संधियों के फलस्वरूप पिंडारियों के लिए उनकी सेना में स्थान न रहा। इसलिए वे धन लेकर अन्य राज्यों का सैनिक सहायता देने लगे तथा अव्यवस्था से लाभ उठाकर लूटमार से धन कमाने लगे। संभव है उन्हीं के भय से कुछ देशी राज्यों ने सहायक संधियाँ स्वीकार की हों। सन् 1807 तक पिंडारियों के धावे यमुना और नर्मदा के बीच तक सीमित रहे। तत्पश्चात् उन्होंने मिर्जापुर से मद्रास तक और उड़ीसा से राजस्थान तथा गुजरात तक अपना कार्यक्षेत्र विस्तृत कर दिया। 1812 में उन्होंने बुंदेलखंड पर, 1815 में निजाम के राज्य से मद्रास तक तथा 1816 में उत्तरी सरकारों के इलाकों पर भंयकर धावे किए। इससे शांति एवं सुरक्षा जाती रही तथा पिंडारियों की गणना लुटेरों में होने लगी। इस गंभीर स्थिति से मुक्ति पाने के उद्देश्य से लार्ड हेस्टिंग्ज ने 1817 में मराठा संघ को नष्ट करने के पूर्व कूटनीति द्वारा पिंडारी सरदारों में फूट डाल दी तथा संधियों द्वारा देशी राज्यों से उनके विरुद्ध सहायता ली। फिर अपने और हिसलप के नेतृत्व में 120,000 सैनिकों तथा 300 तोपों सहित उनके इलाकों को घेरकर उन्हें नष्ट कर दिया। हजारों पिंडारी मारे गए, बंदी बने या जंगलों में चले गए। चीतू को असोरगढ़ के जंगल में चीते ने खा डाला। वसील मुहम्मद ने कारागार में आत्महत्या कर ली। करीम खाँ को गोरखपुर जिले में गणेशपुर की जागीर दी गई। इस प्रकार पिंडारियों के संगठन टूट गए और वे तितर बितर हो गए। .

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परवान प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का परवान प्रान्त (लाल रंग में) परवान (फ़ारसी:, अंग्रेजी: Parwan) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के पूर्व में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल ५,९७४ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००९ में लगभग ५.६ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी चारीकार शहर है। यहाँ के ज़्यादातर लोग फ़ारसी बोलने वाले ताजिक लोग हैं, हालाँकि यहाँ पश्तून समुदाय के लोग भी रहते हैं। .

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पश्तून लोगों के प्राचीन इस्राएलियों के वंशज होने की अवधारणा

पश्तून लोगों के प्राचीन इस्राएलियों के वंशज होने की अवधारणा (Theory of Pashtun descent from Israelites) १९वीं सदी के बाद से बहुत पश्चिमी इतिहासकारों में एक विवाद का विषय बनी हुई है। पश्तून लोक मान्यता के अनुसार यह समुदाय इस्राएल के उन दस क़बीलों का वंशज है जिन्हें लगभग २,८०० साल पहले असीरियाई साम्राज्य के काल में देश-निकाला मिला था। .

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पश्तूनवाली

ख़ोस्त प्रान्त में एक पठान आदमी अपनी बेटी के साथ पश्तूनवाली (पश्तो) या पख़्तूनवाली दक्षिण एशिया के पश्तून समुदाय (पठान समुदाय) की संस्कृति की अलिखित मर्यादा परम्परा है। इसके कुछ तत्व उत्तर भारत और पाकिस्तान की इज़्ज़त मर्यादा से मिलते-जुलते हैं।, Anne L. Clunan, Harold A. Trinkunas, Stanford University Press, 2010, ISBN 978-0-8047-7013-2,...

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पश्तो भाषा

कोई विवरण नहीं।

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पाकिस्तान

इस्लामी जम्हूरिया पाकिस्तान या पाकिस्तान इस्लामी गणतंत्र या सिर्फ़ पाकिस्तान भारत के पश्चिम में स्थित एक इस्लामी गणराज्य है। 20 करोड़ की आबादी के साथ ये दुनिया का छठा बड़ी आबादी वाला देश है। यहाँ की प्रमुख भाषाएँ उर्दू, पंजाबी, सिंधी, बलूची और पश्तो हैं। पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद और अन्य महत्वपूर्ण नगर कराची व लाहौर रावलपिंडी हैं। पाकिस्तान के चार सूबे हैं: पंजाब, सिंध, बलोचिस्तान और ख़ैबर​-पख़्तूनख़्वा। क़बाइली इलाक़े और इस्लामाबाद भी पाकिस्तान में शामिल हैं। इन के अलावा पाक अधिकृत कश्मीर (तथाकथित आज़ाद कश्मीर) और गिलगित-बल्तिस्तान भी पाकिस्तान द्वारा नियंत्रित हैं हालाँकि भारत इन्हें अपना भाग मानता है। पाकिस्तान का जन्म सन् 1947 में भारत के विभाजन के फलस्वरूप हुआ था। सर्वप्रथम सन् 1930 में कवि (शायर) मुहम्मद इक़बाल ने द्विराष्ट्र सिद्धान्त का ज़िक्र किया था। उन्होंने भारत के उत्तर-पश्चिम में सिंध, बलूचिस्तान, पंजाब तथा अफ़गान (सूबा-ए-सरहद) को मिलाकर एक नया राष्ट्र बनाने की बात की थी। सन् 1933 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र चौधरी रहमत अली ने पंजाब, सिन्ध, कश्मीर तथा बलोचिस्तान के लोगों के लिए पाक्स्तान (जो बाद में पाकिस्तान बना) शब्द का सृजन किया। सन् 1947 से 1970 तक पाकिस्तान दो भागों में बंटा रहा - पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान। दिसम्बर, सन् 1971 में भारत के साथ हुई लड़ाई के फलस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बना और पश्चिमी पाकिस्तान पाकिस्तान रह गया। .

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पिशीन

पिशीन (Pishin) पाकिस्तान के पश्चिमी बलोचिस्तान सूबे के पिशीन ज़िले की राजधानी है। यह एक पश्तून बहुसंख्यक इलाक़ा है और यहाँ की आम-बोली पश्तो है। किसी ज़माने में यह अफ़्ग़ानिस्तान का हिस्सा हुआ करता था लेकिन प्रथम ब्रिटिश-अफ़्ग़ान युद्ध के बाद इसे ब्रिटिश हिन्दुस्तान में सम्मिलित कर लिया गया और भारत की आज़ादी और विभाजन के बाद यह पाकिस्तान में आ गया। पिशीन में बहुत गर्मी और सर्दी दोनों पड़ती हैं। गर्मियों में तापमान ४० सेंटीग्रेड से ज्यादा और सर्दियों में शुन्य से कम जाता है। पिशीन शहर इसी नाम की पिशीन वादी में स्थित है, जो एक बहुत ही शुष्क इलाक़ा है। यहाँ कुछ फलों के पेड़ों को छोड़कर बहुत कम वृक्ष हैं।, British Association for the Advancement of Science, J. Murray, 1879,...

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पख़्तूनिस्तान

दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान में जनजातीय एवं धार्मिक नेता पख़्तूनिस्तान का प्रस्तावित ध्वज पख़्तूनिस्तान या पठानिस्तान, शब्द "पठान" (पश्तून) और "स्तान" (जगह या क्षेत्र) के संयोजन है। इसका अर्थ संसार का वह ऐतिहासिक क्षेत्र जिसमें पठान लोगों की जनसंख्या सर्वाधिक है और जहाँ पश्तो भाषा बोली जाती है। पख़्तूनिस्तान का अधिक हिस्सा अफ़्ग़ानिस्तान और पाकिस्तान की भूमि में है लेकिन भारत और ईरान का भी छोटा सा हिस्सा शामिल है। पख़्तूनिस्तान शब्द का उपयोग अंग्रेज़ों ने तब किया जब वह भारत पर शासन कर रहे थे, ब्रिटिश राज ने पश्चिमी-उत्तरी क्षेत्रों को पख़्तूनिस्तान कहा करते थे और यही कारण से इस नाम संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में प्रसिद्ध हुआ और फिर इस क्षेत्र को पख़्तूनिस्तान कहा गया है। .

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पख़्तूनख़्वा मिल्ली अवामी पार्टी

पख़्तूनख़्वा मिली अवामी पार्टी पाकिस्तान की एक प्रमुख राजनैतिक दल है। मुहम्मद ख़ान अचकज़ई इस दल के मुखिया हैं। .

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पंजाब क्षेत्र

पंजाब दक्षिण एशिया का क्षेत्र है जिसका फ़ारसी में मतलब पांच नदियों का क्षेत्र है। पंजाब ने भारतीय इतिहास को कई मोड़ दिये हैं। अतीत में शकों, हूणों, पठानों व मुगलों ने इसी पंजाब के रास्ते भारत में प्रवेश किया था। आर्यो का आगमन भी हिन्दुकुश पार कर इसी पंजाब के रास्ते ही हुआ था। पंजाब की सिन्धु नदी की घाटी में आर्यो की सभ्यता का विकास हुआ। उस समय इस भूख़ड का नाम सप्त सिन्धु अर्थात सात सागरों का देश था। समय के साथ सरस्वती जलस्रोत सूख् गया। अब रह गयीं पाँच नदियाँ-झेलम, चेनाब, राबी, व्यास और सतलज इन्हीं पाँच नदियों का प्रांत पंजाब हुआ। पंजाब का नामाकरण फारसी के दो शब्दों से हुआ है। पंज का अर्थ है पाँच और आब का अर्थ होता है जल। .

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पकतिया प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का पकतिया प्रान्त (लाल रंग में) पकतिया प्रान्त के बमोज़ई गाँव में पढ़ते बच्चे पकतिया (फ़ारसी:, अंग्रेजी: Paktia) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के पूर्व में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल ६,४३२ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००२ में लगभग ४.१५ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी गरदेज़ शहर है। इस प्रान्त की सरहदें पाकिस्तान से लगती हैं। यहाँ के लगभग ९०% लोग पश्तून हैं और लगभग १०% फ़ारसी बोलने वाले ताजिक लोग हैं। .

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पकतीका प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का पकतीका प्रान्त (लाल रंग में) पकतीका प्रान्त में एक चरवाहा अपनी बकरियों के साथ पकतीका (फ़ारसी:, अंग्रेजी: Paktika) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के पूर्व में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल १९,४८२ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००९ में लगभग ४ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी शरना शहर है। पकतीका की सरहदें पाकिस्तान से लगती हैं। यहाँ के लगभग ९६% लोग पश्तून हैं। यहाँ चंद हज़ार उज़बेक लोग भी रहते हैं जो आबादी के २% से भी कम हैं। .

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पुल-ए-आलम

पुल-ए-आलम का एक दृश्य पुल-ए-आलम (दरी फ़ारसी:, अंग्रेज़ी: Pul-i-Alam) पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान के लोगर प्रान्त की राजधानी है। यह शहर अफ़ग़ानिस्तान के गृह युद्ध में बहुत क्षतिग्रस्त हुस था और सन् २००१ में तालिबान के सत्ता से हटाए जाने के बाद यहाँ काफ़ी पुनर्निर्माण हुआ है। अपने शासन के दौरान तालिबान ने यहाँ सभी लड़कियों के स्कूल बंद कराने की कोशिश करी थी। सत्ता से हटाए जाने के बाद भी २ अक्टूबर २००६ को दस कट्टरपंथियों के दस्ते ने यहाँ एक लड़कियों की पाठशाला जलाने की कोशिश करी लेकिन नागरिकों ने एक दल ने उन्हें खदेड़ दिया।, Brendan O'Malley, pp.

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पेच नदी

पेच नदी (Pech River;, दरिया-ए-पेच) पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान में स्थित एक नदी है। यह नूरिस्तान प्रान्त के मध्य भाग में हिन्दु कुश पर्वतों की बर्फ़ और हिमानियों (ग्लेशियरों) से शुरु होकर दक्षिण-दक्षिणपूर्व दिशा में कुनर प्रान्त में प्रवेश करती है और प्रान्तीय राजधानी असदाबाद के पास कुनर नदी में विलय हो जाती है।, David B. Edwards, pp.

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फ़राह प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का फ़राह प्रांत (लाल रंग में) फ़राह (पश्तो:, अंग्रेजी: Farah) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के पश्चिमी भाग में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल ४८,४७१ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००६ में लगभग ९. ३ लाख अनुमानित की गई थी। यह ईरान की सरहद से लगा हुआ बहुत ही हलकी आबादी वाला इलाक़ा है।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी फ़राह नाम का ही शहर है। इस प्रान्त में बसने वाले अधिकतर लोग पश्तून हैं। फ़राह में बहुत से प्राचीन क़िलों के खँडहर मिलते हैं। इनमें एक मिटटी की ईंटों का बना क़िला जिसका नाम 'काफ़िर क़ला' (यानि 'काफ़िर का क़िला') प्रसिद्ध है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे सिकंदर महान ने बनाया था।, Malalai Joya, Derrick O'Keefe, Simon and Schuster, 2009, ISBN 978-1-4391-0946-5,...

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फ़राह, अफ़्ग़ानिस्तान

कुछ अमेरिकी सैनिक फ़राह में 'सिकंदर का क़िला' कहलाए जाने वाले ढाँचे के सामने फ़राह (फ़ारसी और पश्तो:, अंग्रेजी: Farah) पश्चिमी अफ़्ग़ानिस्तान के फ़राह प्रान्त की राजधानी है। यह शहर फ़राह नदी के किनारे स्थित है और ईरान की सीमा के काफ़ी पास है। .

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फ़ारयाब प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का फ़ारयाब प्रांत (लाल रंग में) फ़ारयाब (फ़ारसी:, अंग्रेजी: Faryab) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के उत्तरी भाग में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल २०,२९३ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००६ में लगभग ८.५ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी मेयमना शहर है। फ़ारयाब में बसने वाले ५३% लोग उज़बेक नस्ल के, २७% ताजिक (यानि फ़ारसी-भाषी) और १३% पश्तून हैं। इस प्रान्त कि उत्तरी सीमा तुर्कमेनिस्तान से लगती है। .

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फ़ैज़ाबाद, बदख़्शान

बदख़्शान प्रान्त की राजधानी फ़ैज़ाबाद​ का एक नज़ारा फ़ैज़ाबाद​ (फ़ारसी:, अंग्रेज़ी: Fayzabad) उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान के बदख़्शान प्रान्त की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है। १,२०० मीटर की ऊंचाई पर कोकचा नदी के किनारे स्थित यह शहर पामीर क्षेत्र का एक मुख्य व्यापारिक और प्रशासनिक केंद्र भी है। .

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बन्नू ज़िला

ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत में बन्नू ज़िला (लाल रंग में) बन्नू शहर का एक दृश्य बन्नू शहर में बन्नू (उर्दू और पश्तो:, अंग्रेज़ी: Bannu) पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत का एक ज़िला है। यह करक ज़िले के दक्षिण में, लक्की मरवत ज़िले के उत्तर में और उत्तर वज़ीरिस्तान नामक क़बाइली क्षेत्र के पूर्व में स्थित है। इस ज़िले के मुख्य शहर का नाम भी बन्नू है। यहाँ बहुत-सी शुष्क पहाड़ियाँ हैं हालांकि वैसे इस ज़िले में बहुत हरियाली दिखाई देती है और यहाँ की धरती बहुत उपजाऊ है। ब्रिटिश राज के ज़माने में यहाँ के क़ुदरती सौन्दर्य से प्रभावित होकर बन्नू की 'स्वर्ग' से तुलना भी की जाती थी। .

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बाचा ख़ान विश्वविद्यालय

बाचा खान विश्वविद्यालय(باچا خان یونیورسٹی) चरसद्दा, ख़ैबर पख़्तूनख़्वा पाकिस्तान में स्थित एक जन विश्वविद्यालय है। विश्वविद्यालय का नाम महान स्वतंत्रता सेनानी, भारत रत्न से सम्मानित व शांति समर्थक पश्तून कार्यकर्ता बाचा खान के नाम पर रखा गया था। पाकिस्तान को विश्व पटल पर सम्मानित राष्ट्र का दर्ज़ा दिलाने के लिये बाचा ख़ान का वैश्विक भाईचारे व शांति का संदेश इस विश्वविद्यालय का ध्येय है। 20 जनवरी 2016 को इस विश्वविद्यालय पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के आतंकवादियों ने आतंकी हमला कर दिया। इसमें कम-से-कम २५ लोगों की मृत्यु हो गयी। .

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बारकज़ई

बारकज़ई (पश्तो: بارکزی‎, bārakzay) एक अफ़गान पश्तून समूह है जो उन्नीसवीं सदी में अफ़ग़ानिस्तान पर राज किया करते थे। बीसवीं सदी के प्रसिद्ध अफ़ग़ान शासक ज़हिर शाह भी इसी कबीले से थे। Category:पश्तून.

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बंगश

भारत के पद्म भूषण-सम्मानित मशहूर सरोद वादक अमजद अली ख़ान एक बंगश पश्तून हैं बंगश (पश्तो:, अंग्रेज़ी: Bangash) एक प्रमुख पश्तून क़बीले का नाम है। बंगश लोग पाकिस्तान के संघ-शासित क़बाईली क्षेत्र की कुर्रम एजेंसी और ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रान्त के हन्गू, कोहाट और पेशावर इलाक़ों में पाए जाते हैं। भारत में कुछ बंगश लोग उत्तर प्रदेश के फ़र्रूख़ाबाद ज़िले में भी बसे हुए हैं। फ़र्रूख़ाबाद के नवाबों ने वहाँ एक अलग अफ़्ग़ान मोहल्ला भी स्थापित किया हुआ था।, D. H. A. Kolff, Om Prakash, Brill, 2003, ISBN 978-90-04-13155-2,...

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बुज़कशी

बल्ख़ प्रांत में बुज़कशी कज़ाख़ नाम) बुज़कशी (दरी फ़ारसी:, अंग्रेज़ी: Buzkashi) या कोक-बोरू (उज़बेक: kökbörü, अंग्रेज़ी: Kok-boru) या वुज़लोबा (पश्तो:, अंग्रेज़ी: Wuzloba) मध्य एशिया में घोड़ों पर सवार होकर खेले जाने वाला एक खेल है। यह अफ़्ग़ानिस्तान, उज़बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, किरगिज़स्तान, तुर्कमेनिस्तान, कज़ाख़स्तान, पाकिस्तान के पठान इलाक़ों और चीन के उईग़ुर इलाक़ों में खेला जाता है। यह सदियों से स्तेपी के मैदानों पर रहने वाले क़बीलों द्वारा खेला जा रहा है जो घुड़सवारी में हुनरमंद होते हैं। इसमें खिलाड़ियों के दो गुट होते हैं और खेल के मैदान के बीच में एक सिर-कटा बकरा या बछड़ा रखा जाता है। खिलाड़ी अपने घोड़े दौड़ाते हुए उसे उठाने की कोशिश करते हैं। जो उसे उठा लेता है वह दुसरे गुट के खिलाड़ियों से बचकर उसे जीत की लकीर के पार फेंकने की कोशिश करता है, जबकि दूसरे खिलाड़ी उस लाश को उस से छीनने की कोशिश करते हैं।, Paul Connolly, Pier 9, 2011, ISBN 978-1-74266-513-9,...

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भारतीय स्थापत्यकला

सांची का स्तूप अजन्ता गुफा २६ का चैत्य भारत के स्थापत्य की जड़ें यहाँ के इतिहास, दर्शन एवं संस्कृति में निहित हैं। भारत की वास्तुकला यहाँ की परम्परागत एवं बाहरी प्रभावों का मिश्रण है। भारतीय वास्तु की विशेषता यहाँ की दीवारों के उत्कृष्ट और प्रचुर अलंकरण में है। भित्तिचित्रों और मूर्तियों की योजना, जिसमें अलंकरण के अतिरिक्त अपने विषय के गंभीर भाव भी व्यक्त होते हैं, भवन को बाहर से कभी कभी पूर्णतया लपेट लेती है। इनमें वास्तु का जीवन से संबंध क्या, वास्तव में आध्यात्मिक जीवन ही अंकित है। न्यूनाधिक उभार में उत्कीर्ण अपने अलौकिक कृत्यों में लगे हुए देश भर के देवी देवता, तथा युगों पुराना पौराणिक गाथाएँ, मूर्तिकला को प्रतीक बनाकर दर्शकों के सम्मुख अत्यंत रोचक कथाओं और मनोहर चित्रों की एक पुस्तक सी खोल देती हैं। 'वास्तु' शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के 'वस्' धातु से हुई है जिसका अर्थ 'बसना' होता है। चूंकि बसने के लिये भवन की आवश्यकता होती है अतः 'वास्तु' का अर्थ 'रहने हेतु भवन' है। 'वस्' धातु से ही वास, आवास, निवास, बसति, बस्ती आदि शब्द बने हैं। .

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महमूद-ए-राक़ी

महमूद-ए-राक़ी (दरी फ़ारसी:, अंग्रेज़ी: Mahmud-i-Raqi), जिसे अक्सर सिर्फ़ महमूद राक़ी कहा जाता है, पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान के कापीसा प्रान्त की राजधानी है। .

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मानसेहरा ज़िला

मानसेहरा (उर्दू:, पश्तो:, अंग्रेज़ी: Mansehra) पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत का एक ज़िला है। इसके उत्तर में शांगला, बट्टग्राम, कोहिस्तान ज़िले, दक्षिण में ऐब्टाबाद​ और हरिपुर ज़िले, पश्चिम में बुनेर ज़िला और पूर्व में जम्मू और कश्मीर पड़ते हैं। यह एक रमणीय पहाड़ी इलाक़ा है और इस ज़िले की काग़ान वादी पर्यटन के लिए लोकप्रीय है। चीन और पाकिस्तान के दरम्यान चलने वाला काराकोरम राजमार्ग भी इस ज़िले से गुज़रता है। .

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मुग़ल साम्राज्य

मुग़ल साम्राज्य (फ़ारसी:, मुग़ल सलतनत-ए-हिंद; तुर्की: बाबर इम्परातोरलुग़ु), एक इस्लामी तुर्की-मंगोल साम्राज्य था जो 1526 में शुरू हुआ, जिसने 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय उपमहाद्वीप में शासन किया और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ। मुग़ल सम्राट तुर्क-मंगोल पीढ़ी के तैमूरवंशी थे और इन्होंने अति परिष्कृत मिश्रित हिन्द-फारसी संस्कृति को विकसित किया। 1700 के आसपास, अपनी शक्ति की ऊँचाई पर, इसने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग को नियंत्रित किया - इसका विस्तार पूर्व में वर्तमान बंगलादेश से पश्चिम में बलूचिस्तान तक और उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कावेरी घाटी तक था। उस समय 40 लाख किमी² (15 लाख मील²) के क्षेत्र पर फैले इस साम्राज्य की जनसंख्या का अनुमान 11 और 13 करोड़ के बीच लगाया गया था। 1725 के बाद इसकी शक्ति में तेज़ी से गिरावट आई। उत्तराधिकार के कलह, कृषि संकट की वजह से स्थानीय विद्रोह, धार्मिक असहिष्णुता का उत्कर्ष और ब्रिटिश उपनिवेशवाद से कमजोर हुए साम्राज्य का अंतिम सम्राट बहादुर ज़फ़र शाह था, जिसका शासन दिल्ली शहर तक सीमित रह गया था। अंग्रेजों ने उसे कैद में रखा और 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश द्वारा म्यानमार निर्वासित कर दिया। 1556 में, जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर, जो महान अकबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, के पदग्रहण के साथ इस साम्राज्य का उत्कृष्ट काल शुरू हुआ और सम्राट औरंगज़ेब के निधन के साथ समाप्त हुआ, हालाँकि यह साम्राज्य और 150 साल तक चला। इस समय के दौरान, विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने में एक उच्च केंद्रीकृत प्रशासन निर्मित किया गया था। मुग़लों के सभी महत्वपूर्ण स्मारक, उनके ज्यादातर दृश्य विरासत, इस अवधि के हैं। .

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मैदान शहर

मैदान शहर (दरी फ़ारसी), जिसे पश्तो लहजे में मैदान शार (पश्तो:, अंग्रेज़ी: Maidan Shar) कहते हैं, दक्षिण-पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान के मैदान वरदक प्रान्त की राजधानी है। .

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मैदान वरदक प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का मैदान वरदक प्रान्त (लाल रंग में) मैदान वरदक, मैदान वरदग या केवल वरदक (फ़ारसी:, अंग्रेजी: Maidan Wardak) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के पूर्व में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल ९,९३४ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००९ में लगभग ५.४ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी मैदान शहर नामक नगर है। यहाँ के अधिकतर लोग पश्तून हैं और पश्तूनों के वरदक क़बीले के ऊपर ही इस प्रान्त का नाम रखा गया है। यहाँ की ज़्यादातर आबादी यहाँ से निकलने वाले काबुल-कंदहार के आसपास के इलाक़े में बस्ती है और बाक़ी पहाड़ी स्थानों पर आबादी बहुत कम घनी है। .

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मैवंद की मलाला

मलाला क़न्दहार के करीब एक जगह मैवंद से सम्बंध रखनेवाली एक पश्तून स्त्री थी | इतिहास में मैवंद-युद्ध (जंग) (27 जुलाई 1880) के कारण से याद की जाती है क्योंकि मलाला ने पश्तूनों को उस समय प्रोत्साहित किया जब वह अंग्रेज़ सेना के विरुध लड़ रहे थे | युद्ध एक ऐसे समय पर हुआ जब मलाला की शादी तय हो चुकी थी। युद्ध में उसके मंगेतर और पिता भी शामिल थे। उस समय प्रचलित प्रथा के हिसाब से मलाला घायलों की देख-रेख करना शुरू कर चुकी थी। युद्ध में जब अंग्रेज़ों ने ज़ोर पकड़ा तो मलाला अपनी भाषा में शेर गाकर लोगों को लड़ने के लिए उभारने लगी। एक समय पर अंग्रेज़ों ने पश्तून झंडे को थामे आदमी को मार डाला तो मलाला ने झंडा अपने हाथों में लिया और रणभूमि में कूद पड़ी यहाँ तक कि उसे शहीद कर दिया गया। उस समय से मलाला एक लोकप्रिय नाम बन गया। पाकिस्तान में स्त्री-शिक्षा समर्थक मलाला यूसुफ़ज़ई का नाम भी इसी वीर महिला पर रखा गया है। .

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मेयमना

मेयमना​ (दरी फ़ारसी:, अंग्रेज़ी: Maymana) उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान के फ़ारयाब प्रान्त की राजधानी है। यह तुर्कमेनिस्तान के साथ लगी अंतर्राष्ट्रीय सीमा के काफ़ी पास है और अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल के लगभग ४०० किमी पश्चिमोत्तर में स्थित है। .

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मेहमान ख़ाना

मेहमान ख़ाना या बैठक उत्तर भारत, पाकिस्तान व बांग्लादेश के पारम्परिक घरों में वह कमरा होता है जहाँ अतिथियों को बैठाकर उनका सत्कार किया जाता है। इसे संस्कृत में अतिथि कक्ष कहा जाता था। पाकिस्तान व अफ़ग़ानिस्तान के पश्तून इलाक़ों में इसे हुजरा भी कहते हैं। इन कमरों में बैठने के लिए अक्सर मूढ़े और तख़्त / तख़्तपोश रखे होते हैं और व्यवस्था आधुनिक भारतीय शहरों के घरों के 'ड्राइंग रूम' से भिन्न होती है। .

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यूसुफ़ज़ई

यूसुफ़ज़ई पश्तून लोग का एक क़बीला है। यह लोग आम तौर पर पाकिस्तान के सूबे ख़ैबर पख़्तूनख़्वा और अफ़्ग़ानिस्तान के पूर्वी इलाक़ों में आबाद हैं, लेकिन इसके अतिरिक्त यह लोग भारत के ऐतिहासिक क्षेत्र रोहिलखंड और दक्कन में भी आबाद हैं। श्रेणी:पश्तून लोग.

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योद्धा जातियाँ

योद्धा जातियाँ, 1857 की क्रांति के बाद, ब्रिटिश कालीन भारत के सैन्य अधिकारियों बनाई गयी उपाधि थी। उन्होने समस्त जतियों को "योद्धा" व "गैर-योद्धा" जतियों के रूप मे वर्गीकृत किया था। उनके अनुसार, सुगठित शरीर व बहादुर "योदधा वर्ण" लड़ाई के लिए अधिक उपयुक्त था, जबकि आराम पसंद जीवन शैली वाले "गैर-लड़ाकू वर्ण" के लोगों को ब्रिटिश सरकार लड़ाई हेतु अनुपयुक्त समझती थी। एक वैकल्पिक परिकल्पना यह भी है कि 1857 की क्रांति मे अधिकतर ब्रिटिश प्रशिक्षित भारतीय सैनिक ही थे जिसके फलस्वरूप सैनिक भर्ती प्रक्रिया उन लोगों की पक्षधर थी जो ब्रिटिश हुकूमत के बफादार रहे थे अतः बंगाल आर्मी में खाड़ी क्षेत्र से होने वाली भर्ती या तो कम कर दी गयी या रोक दी गयी थी। उक्त धारणा भारत के वैदिक हिन्दू समाज की चतुर्वर्णीय व्यवस्था मे "क्षत्रिय वर्ण" के रूप मे पहले से ही विद्यमान थी जिसका शाब्दिक अर्थ "योद्धा जाति" है। .

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लश्कर गाह

लश्कर गाह मस्जिद लश्कर गाह (पश्तो:, फ़ारसी:, अंग्रेज़ी: Lashkar Gah), जिसे इतिहास में बोस्त (Bost) के नाम से भी जाना जाता था, दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान के हेलमंद प्रान्त की राजधानी है। हेलमंद नदी और अर्ग़नदाब नदी के बीच बसा यह शहर राजमार्ग द्वारा पूर्व में कंदहार से, पश्चिम में ज़रंज से और पश्चिमोत्तर में हेरात से जुड़ा हुआ है। .

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लग़मान प्रान्त

लग़मान प्रान्त का एक नज़ारा लग़मान (पश्तो:, अंग्रेजी: Laghman) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के पूर्व में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल ३,८४३ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००८ में लगभग ३.८ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी मेहतर लाम शहर है। इस प्रान्त में पश्तून लोगों की बहुसंख्या है और वे कुल जनसँख्या का ५८% हैं। यहाँ नूरिस्तानी लोग और पाशाई लोग भी रहते हैं और कम संख्या में फ़ारसी-भाषी ताजिक लोगों के भी समुदाय हैं। लग़मान में अरामाई भाषा में लिखी अशोक के आदेश वाली दो शिलाएँ भी मौजूद हैं।, Niharranjan Ray, Brajadulal Chattopadhyaya, Orient Blackswan, 2000, ISBN 978-81-250-1871-1,...

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लक्की मरवत ज़िला

ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत में लक्की मरवत ज़िला (पीले रंग में) लक्की मरवत (उर्दू और पश्तो:, अंग्रेज़ी: Lakki Marwat) पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत के दक्षिणी भाग में स्थित एक ज़िला है। यह कभी बन्नू ज़िले का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन १ जुलाई १९९२ को इसे एक अलग ज़िले का दर्जा दे दिया गया। .

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लोया पकतिया

ख़ोस्त प्रान्त और कुछ पड़ोसी इलाक़े लोया पकतिया में शामिल माने जाते हैं लोया पकतिया (पश्तो:; अंग्रेज़ी: Loya Paktia), जिसका मतलब 'महा-पकतिया' होता है, अफ़्ग़ानिस्तान का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक क्षेत्र है जिसमें उस देश के पकतिया, पकतीका और ख़ोस्त के सम्पूर्ण प्रान्त और लोगर और ग़ज़नी प्रान्तों के कुछ भाग शामिल हैं। इसमें कभी-कभी पाकिस्तान की कुर्रम एजेंसी भी शामिल की जाती है। लोया पकतिया के पश्तून क़बीलों की एक सांझी संस्कृति है जो उनकी वेशभूषा, पगड़ी की शैली और रंगों, पश्तो बोलने के लहजों और अन्य चीज़ों से प्रकट होती है। यहाँ मुख्यतर ग़िलज़​ई और करलानी गुटों के क़बीले रहते हैं जिनमें ख़रोटी, ज़ाज़ी, ज़दराण और सुलयमानख़ेल शामिल हैं। यहाँ ख़ानाबदोश कूची क़बीले भी रहते हैं।, Andrew Krepinevich, Random House Digital, Inc., 2010, ISBN 978-0-553-38472-7,...

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लोगर प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का लोगर प्रान्त (लाल रंग में) लोगर (पश्तो:, अंग्रेजी: Logar) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के पूर्व में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल ३,८८० वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००८ में लगभग ३.३ से ५.५ लाख के बीच अनुमानित की गई थी (ठीक संख्या पर मतभेद है)।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी पुल-ए-आलम शहर है। इस प्रान्त के ६०% निवासी पश्तून और ४०% फ़ारसी-भाषी ताजिक लोग है। .

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शबरग़ान

शबरग़ान में चुनावों में मतदान देते कुछ नागरिक शबरग़ान (फ़ारसी:, अंग्रेजी: Sheberghan) उत्तरी अफ़्ग़ानिस्तान के जोज़जान प्रान्त की राजधानी है। यह शहर सफ़ीद नदी के किनारे मज़ार-ए-शरीफ़ से लगभग १३० किलोमीटर दूर स्थित है। सन् २००६ में इसकी जनसँख्या १,४८,३२९ अनुमानित की गई थी। .

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शाहरुख़ ख़ान

शाहरुख़ ख़ान (उच्चारण; जन्म 2 नवम्बर 1965), जिन्हें अक्सर शाहरुख खान के रूप में श्रेय दिया जाता है और अनौपचारिक रूप में एसआरके नाम से सन्दर्भित किया जाता, एक भारतीय फ़िल्म अभिनेता है। अक्सर मीडिया में इन्हें "बॉलीवुड का बादशाह", "किंग खान", "रोमांस किंग" और किंग ऑफ़ बॉलीवुड नामों से पुकारा जाता है। खान ने रोमैंटिक नाटकों से लेकर ऐक्शन थ्रिलर जैसी शैलियों में 75 हिन्दी फ़िल्मों में अभिनय किया है। फिल्म उद्योग में उनके योगदान के लिये उन्होंने तीस नामांकनों में से चौदह फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीते हैं। वे और दिलीप कुमार ही ऐसे दो अभिनेता हैं जिन्होंने साथ फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार आठ बार जीता है। 2005 में भारत सरकार ने उन्हें भारतीय सिनेमा के प्रति उनके योगदान के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया। अर्थशास्त्र में उपाधी ग्रहण करने के बाद इन्होने अपने करियर की शुरुआत १९८० में रंगमंचों व कई टेलिविज़न धारावाहिकों से की और १९९२ में व्यापारिक दृष्टी से सफल फ़िल्म दीवाना से फ़िल्म क्षेत्र में कदम रखा। इस फ़िल्म के लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर प्रथम अभिनय पुरस्कार प्रदान किया गया। इसके पश्च्यात उन्होंने कई फ़िल्मों में नकारात्मक भूमिकाएं अदा की जिनमे डर (१९९३), बाज़ीगर (१९९३) और अंजाम (१९९४) शामिल है। वे कई प्रकार की भूमिकाओं में दिखे व भिन्न-भिन्न प्रकार की फ़िल्मों में कार्य किया जिनमे रोमांस फ़िल्में, हास्य फ़िल्में, खेल फ़िल्में व ऐतिहासिक ड्रामा शामिल है। उनके द्वारा अभिनीत ग्यारह फ़िल्मों ने विश्वभर में १ बिलियन का व्यवसाय किया है। खान की कुछ फ़िल्में जैसे दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे (१९९५), कुछ कुछ होता है (१९९८), ''देवदास'' (२००२), ''चक दे! इंडिया'' (२००७), ओम शांति ओम (२००७), रब ने बना दी जोड़ी (२००८) और रा.वन (२०११) अबतक की सबसे बड़ी हीट फ़िल्मों में रही है और कभी खुशी कभी ग़म (२००१), कल हो ना हो (२००३), वीर ज़ारा (२००६)। वेल्थ रिसर्च फर्म वैल्थ एक्स के मुताबिक किंग खान पहले सबसे अमीर भारतीय अभिनेता बन गए हैं। फर्म ने अभिनेता की कुल संपत्ति 3660 करोड़ रूपए आंकी थी लेकिन अब 4000 करोङ बताई जाती है। .

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शुजाउद्दौला

शुजाउद्दौला (१९ जनवरी१७३२, दारा शिकोह के महल में, दिल्ली – १७७५) अवध के नवाब थे। उन्हें वज़ीर उल ममालिक ए हिंदुस्तान, शुजा उद् दौला, नवाब मिर्ज़ा जलाल उद् दीन हैदर खान बहादुर, अवध के नवाब वज़ीर आदि नामों से भी जाना जाता था। अवध का साम्राज्य उस समय औरंगज़ेब की मौत की वजह से मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद एक छोटी रियासत बन गया था। एक छोटे शासक होने के बावजूद वे भारत के इतिहास के दो प्रमुख युद्धों में भाग लेने के लिए जाने जाते हैं - पानीपत की तीसरी लड़ाई, जिसने भारत में मराठों का वर्चस्व समाप्त किया और बक्सर की लड़ाई, जिसने अंग्रेज़ों की हुकूमत स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई। .

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शेर शाह सूरी

शेरशाह सूरी (1472-22 मई 1545) (फारसी/पश्तो: فريد خان شير شاہ سوري, जन्म का नाम फ़रीद खाँ) भारत में जन्मे पठान थे, जिन्होनें हुमायूँ को 1540 में हराकर उत्तर भारत में सूरी साम्राज्य स्थापित किया था। शेरशाह सूरी ने पहले बाबर के लिये एक सैनिक के रूप में काम किया था जिन्होनें उन्हे पदोन्नति कर सेनापति बनाया और फिर बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया। 1537 में, जब हुमायूँ कहीं सुदूर अभियान पर थे तब शेरशाह ने बंगाल पर कब्ज़ा कर सूरी वंश स्थापित किया था। सन् 1539 में, शेरशाह को चौसा की लड़ाई में हुमायूँ का सामना करना पड़ा जिसे शेरशाह ने जीत लिया। 1540 ई. में शेरशाह ने हुमायूँ को पुनः हराकर भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया और शेर खान की उपाधि लेकर सम्पूर्ण उत्तर भारत पर अपना साम्रज्य स्थापित कर दिया। एक शानदार रणनीतिकार, शेर शाह ने खुद को सक्षम सेनापति के साथ ही एक प्रतिभाशाली प्रशासक भी साबित किया। 1540-1545 के अपने पांच साल के शासन के दौरान उन्होंने नयी नगरीय और सैन्य प्रशासन की स्थापना की, पहला रुपया जारी किया है, भारत की डाक व्यवस्था को पुनः संगठित किया और अफ़गानिस्तान में काबुल से लेकर बांग्लादेश के चटगांव तक ग्रांड ट्रंक रोड को बढ़ाया। साम्राज्य के उसके पुनर्गठन ने बाद में मुगल सम्राटों के लिए एक मजबूत नीव रखी विशेषकर हुमायूँ के बेटे अकबर के लिये। .

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सरदार हरि सिंह नलवा

सरदार हरि सिंह (1791 - 1837), सिक्ख महाराजा रणजीत सिंह के सेनाध्यक्ष थे जिन्होने पठानों से साथ कई युद्धों का नेतृत्व किया। रणनीति और रणकौशल की दृष्टि से हरि सिंह नलवा की तुलना भारत के श्रेष्ठ सेनानायकों से की जा सकती है। हरि सिंह नलवा ने कश्मीर पर विजय प्राप्त कर अपना लोहा मनवाया। यही नहीं, काबुल पर भी सेना चढ़ाकर जीत दर्ज की। खैबर दर्रे से होने वाले अफगान आक्रमणों से देश को मुक्त किया। इतिहास में पहली बार हुआ था कि पेशावरी पश्तून, पंजाबियों द्वारा शासित थे। महाराजा रणजीत सिंह के निर्देश के अनुसार हरि सिंह नलवा ने सिख साम्राज्य की भौगोलिक सीमाओं को पंजाब से लेकर काबुल बादशाहत के बीचोंबीच तक विस्तार किया था। महाराजा रणजीत सिंह के सिख शासन के दौरान 1807 ई. से लेकर 1837 ई. तक हरि सिंह नलवा लगातार अफगानों के खिलाफ लड़े। अफगानों के खिलाफ जटिल लड़ाई जीतकर नलवा ने कसूर, मुल्तान, कश्मीर और पेशावर में सिख शासन की व्यवस्था की थी। सर हेनरी ग्रिफिन ने हरि सिंह को "खालसाजी का चैंपियन" कहा है। ब्रिटिश शासकों ने हरि सिंह नलवा की तुलना नेपोलियन से भी की है। .

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सारगढ़ी का युद्ध

सारगढ़ी युद्ध १२ सितम्बर १८९७ को ब्रिटिश भारतीय सेना और अफ़्ग़ान ओराक्ज़ई जनजातियों के मध्य तिराह अभियान से पहले लड़ा गया। यह उत्तर-पश्चिम फ्रण्टियर प्रान्त (वर्तमान खैबर-पखतुन्खवा, पाकिस्तान में) में हुआ। ब्रितानी भारतीय सैन्यदल में ३६ सिखों (सिख पलटन की चौथी बटालियन) के २१ सिख थे, जिन पर १०,००० अफ़्ग़ानों ने हमला किया। सिखों का नेतृत्व कर रहे हवालदार ईशर सिंह ने मृत्यु पर्यन्त युद्ध करने का निर्णय लिया। इसे सैन्य इतिहास में इतिहास के सबसे महान अन्त वाले युद्धों में से एक माना जाता है। युद्ध के दो दिन बाद अन्य ब्रिटिश भारतीय सैना द्वारा उस स्थान पर पुनः अधिकार प्राप्त किया गया। सिख सैन्य कर्मियों द्वारा इस युद्ध की याद में १२ सितम्बर को सारगढ़ी दिवश के रूप में मनाते हैं। .

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साशा आग़ा

ज़ारा आग़ा ख़ान भारतीय और पाकिस्तानी मूल के बर्तानवी अभिनेत्री और गायिका जो हिन्दी फ़िल्मों में काम करती हैं। आग़ा-ख़ान ख़ानदान के सदस्य होते हुए उनकी पहली फ़िलम औरंगज़ेब में उन्होंने ऋतु की भूमिका को निभाई। .

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सिन्धु-गंगा के मैदान

सिन्धु-गंगा मैदान का योजनामूलक मानचित्र सिन्धु-गंगा का मैदान, जिसे उत्तरी मैदानी क्षेत्र तथा उत्तर भारतीय नदी क्षेत्र भी कहा जाता है, एक विशाल एवं उपजाऊ मैदानी इलाका है। इसमें उत्तरी तथा पूर्वी भारत का अधिकांश भाग, पाकिस्तान के सर्वाधिक आबादी वाले भू-भाग, दक्षिणी नेपाल के कुछ भू-भाग तथा लगभग पूरा बांग्लादेश शामिल है। इस क्षेत्र का यह नाम इसे सींचने वाली सिन्धु तथा गंगा नामक दो नदियों के नाम पर पड़ा है। खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी होने के कारण इस इलाके में जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक है। 7,00,000 वर्ग किमी (2,70,000 वर्ग मील) जगह पर लगभग 1 अरब लोगों (या लगभग पूरी दुनिया की आबादी का 1/7वां हिस्सा) का घर होने के कारण यह मैदानी इलाका धरती की सर्वाधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों में से एक है। सिन्धु-गंगा के मैदानों पर स्थित बड़े शहरों में अहमदाबाद, लुधियाना, अमृतसर, चंडीगढ़, दिल्ली, जयपुर, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, कोलकाता, ढाका, लाहौर, फैसलाबाद, रावलपिंडी, इस्लामाबाद, मुल्तान, हैदराबाद और कराची शामिल है। इस क्षेत्र में, यह परिभाषित करना कठिन है कि एक महानगर कहां शुरू होता है और कहां समाप्त होता है। सिन्धु-गंगा के मैदान के उत्तरी छोर पर अचानक उठने वाले हिमालय के पर्वत हैं, जो इसकी कई नदियों को जल प्रदान करते हैं तथा दो नदियों के मिलन के कारण पूरे क्षेत्र में इकट्ठी होने वाली उपजाऊ जलोढ़ मिटटी के स्रोत हैं। इस मैदानी इलाके के दक्षिणी छोर पर विंध्य और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाएं तथा छोटा नागपुर का पठार स्थित है। पश्चिम में ईरानी पठार स्थित है। .

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सूरी साम्राज्य

शेर शाह सूरी द्वारा ज़र्ब किया गया सिक्का, (बाई तरफ़) अरबी-फ़ारसी लिपि और देवनागरी के एक रूप में लिखा है 'सुलतान शेर शाह' दिल्ली के पुराने क़िले के आगे स्थित 'लाल दरवाज़ा' जिसे 'सूरी गेट' भी कहते हैं सूरी साम्राज्य (पश्तो:, द सूरियानो टोलवाकमन​ई) भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में स्थित पश्तून नस्ल के शेर शाह सूरी द्वारा स्थापित एक साम्राज्य था जो सन् १५४० से लेकर १५५७ तक चला। इस दौरान सूरी परिवार ने बाबर द्वारा स्थापित मुग़ल सल्तनत को भारत से बेदख़ल कर दिया और ईरान में शरण मांगने पर मजबूर कर दिया। शेर शाह ने दुसरे मुग़ल सम्राट हुमायूँ को २६ जून १५३९ में (पटना के क़रीब) चौसा के युद्ध में और फिर १७ मई १५४० में बिलग्राम के युद्ध में परास्त किया। सूरी साम्राज्य पश्चिमोत्तर में ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा से पूर्व में बंगाल तक विस्तृत था। .

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सोग़दा

३०० ईसापूर्व में सोग़दा का क्षेत्र एक चीनी शिल्प-वस्तु पर सोग़दाई लोगों का चित्रण सोग़दाई व्यापारी भगवान बुद्ध को भेंट देते हुए (बाएँ की तस्वीर के निचले हिस्से को दाई तरफ़ बड़ा कर के दिखाया गया है) सोग़दा, सोग़दिया या सोग़दियाना (ताजिक: Суғд, सुग़्द; तुर्की: Soğut, सोग़ुत) मध्य एशिया में स्थित एक प्राचीन सभ्यता थी। यह आधुनिक उज़्बेकिस्तान के समरक़न्द, बुख़ारा, ख़ुजन्द और शहर-ए-सब्ज़ के नगरों के इलाक़े में फैली हुई थी। सोग़दा के लोग एक सोग़दाई नामक भाषा बोलते थे जो पूर्वी ईरानी भाषा थी और समय के साथ विलुप्त हो गई। माना जाता है कि आधुनिक काल के ताजिक, पश्तून और यग़नोबी लोगों में से बहुत इन्ही सोग़दाई लोगों के वंशज हैं। .

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हरिपुर ज़िला

हरिपुर (उर्दू:, पश्तो:, अंग्रेज़ी: Mansehra) पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत का एक ज़िला है। इसके पश्चिम में स्वाबी ज़िला, पश्चिमोत्तर में बुनेर ज़िला, उत्तर में मानसेहरा ज़िला, पूर्वोत्तर में ऐब्टाबाद ज़िला और दक्षिण में पंजाब प्रांत पड़ता है। हरिपुर ज़िला ऐतिहासिक हज़ारा क्षेत्र का हिस्सा है, जो ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा में होने के बावजूद एक पंजाबी प्रभावित क्षेत्र माना जाता है। .

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हिन्दको भाषा

हिन्दको (Hindko) पश्चिमोत्तरी पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत के हिन्दकोवी लोगों और अफ़ग़ानिस्तान के कुछ भागों में हिन्दकी लोगों द्वारा बोली जाने वाली एक हिंद-आर्य भाषा है। कुछ भाषावैज्ञानिकों के अनुसार यह पंजाबी की एक पश्चिमी उपभाषा है हालांकि इसपर कुछ विवाद भी रहा है। कुछ पश्तून लोग भी हिन्दको बोलते हैं। पंजाबी के मातृभाषी बहुत हद तक हिन्दको समझ-बोल सकते हैं।, Aydin Yücesan Durgunoğlu, Ludo Th Verhoeven, pp.

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हिन्दी पुस्तकों की सूची/प

* पंच परमेश्वर - प्रेम चन्द्र.

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हज़ाराजात

हज़ाराजात (फ़ारसी:, अंग्रेज़ी: Hazarajat, हज़ारगी), जिसे हज़ारिस्तान भी कहा जाता है, हज़ारा लोगों की मध्य अफ़ग़ानिस्तान में स्थित मातृभूमि है। यह हिन्दू कुश पर्वतों के पश्चिमी भाग में कोह-ए-बाबा श्रृंखला में विस्तृत है। उत्तर में बामयान द्रोणी, दक्षिण में हेलमंद नदी, पश्चिम में फिरूज़कुह पहाड़ और पूर्व में उनई दर्रा इसकी सरहदें मानी जाती हैं। पश्तून क़बीलों द्वारा हमलों के कारण इसकी सरहदें समय-समय पर बदलती रहीं हैं।, Arash Khazeni, Encyclopedia Iranica, Accessed September 15, 2011 बामयान और दायकुंदी प्रांत लगभग पूरे-के-पूरे हज़ाराजात में आते हैं, जबकि बग़लान, हेलमंद, ग़ज़नी, ग़ोर, ओरूज़्गान, परवान, समंगान, सर-ए-पोल और मैदान वरदक प्रान्तों के बड़े हिस्से भी इसका भाग माने जाते हैं।, Indiana University, 1997 .

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हंगू ज़िला

ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत में हंगू ज़िला (लाल रंग में) हंगू (उर्दू:, पश्तो:, अंग्रेज़ी: Hangu) पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत का एक ज़िला है। यह कोहाट ज़िले के पश्चिम में और करक ज़िले के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। इसकी उत्तरी सीमा ओरकज़​ई एजेंसी, पश्सिमोत्तरी सीमा कुर्रम एजेंसी और दक्षिणी सीमा उत्तरी वज़ीरिस्तान से लगती है जो तीनों पाकिस्तान के संघ शासित क़बाईली क्षेत्र में आते हैं। .

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हेरात प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का हेरात प्रान्त (लाल रंग में) हेरात प्रान्त में कुछ बच्चियाँ हेरात (पश्तो:, अंग्रेजी: Herat) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के पश्चिम में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल ५४,७७८ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००६ में लगभग १७.६ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी ऐतिहासिक हेरात शहर है। अफ़्ग़ानिस्तान के अन्य प्रान्तों के अलावा, हेरात प्रान्त की सरहदें ईरान और तुर्कमेनिस्तान को भी लगती हैं। इस प्रान्त के लगभग ६०% लोग फ़ारसी-भाषी ताजिक समुदाय से हैं। यहाँ पश्तून लोग भी हैं, जिनमें से बहुत से ख़ानाबदोश चरवाहे हैं।, Neamatollah Nojumi, Dyan E. Mazurana, Elizabeth Stites, Rowman & Littlefield, 2009, ISBN 978-0-7425-4032-3,...

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हेलमंद प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का हेलमंद प्रान्त (लाल रंग में) हेलमंद प्रान्त में कुछ बच्चे हेलमंद (पश्तो:, अंग्रेजी: Helmand) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल ५८,५८४ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००६ में लगभग १४.४ लाख अनुमानित की गई थी। हेलमंद के लगभग ९०% लोग पश्तून समुदाय के हैं।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी लश्कर गाह शहर है। वैसे तो यह इलाक़ा रेगिस्तानी है लेकिन हेलमंद नदी यहाँ से निकलती है और उसका पानी फ़सलों के लिए बहुत लाभदायक होता है। यह ग़ैर-क़ानूनी अफ़ीम की पैदावार का भी बहुत बड़ा केंद्र है और विश्व की ७५% अफ़ीम यहीं पैदा होती है। .

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जमरूद किला

जमरूद किला ख़ैबर दर्रे के मुख पर स्थित बाब-ए-ख़ैबर के पास स्थित एक क़िला है। प्रशासनिक रूप से यह पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा के संघ-शासित जनजातीय क्षेत्र में पड़ता है। .

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ज़रंज

ईरान-अफ़ग़ानिस्तान सीमा के नज़दीक ज़रंज-देलाराम राजमार्ग पर ज़रंज (बलोच, पश्तो, फ़ारसी:, अंग्रेज़ी: Zaranj) दक्षिण-पश्चिमी अफ़ग़ानिस्तान के नीमरूज़ प्रान्त की राजधानी है। यह ईरान की सरहद के बहुत पास है और ईरान-अफ़ग़ानिस्तान सीमा पर एक महत्वपूर्ण चौकी है। यह राजमार्गों द्वारा पूर्व में लश्कर गाह से, उत्तर में फ़राह से और पश्चिम में ईरान के ज़ाबोल नगर से जुड़ा हुआ है। भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के पुनर्निर्माण के लिए ज़रंज से देलाराम के बीच एक राजमार्ग बनाया था। .

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ज़ाबुल प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का ज़ाबुल प्रान्त (लाल रंग में) ज़ाबुल (फ़ारसी:, अंग्रेजी: Zabul) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के दक्षिण में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल १७,३४३ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००९ में लगभग २.८ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी क़लात नामक शहर है। यहाँ के अधिकतर लोग पश्तून हैं। ज़ाबुल प्रान्त सन् १९६३ में पड़ोसी कंदहार प्रान्त को बांटकर बनाया गया था। इसकी दक्षिणी सरहद पाकिस्तान से लगती है। .

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ज़ियारत ज़िला

ज़ियारत (उर्दू व बलोच: زیارت, अंग्रेज़ी: Ziarat) पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रान्त के उत्तरी भाग में स्थित एक ज़िला है। बलोचिस्तान एक पिछड़ा इलाक़ा है लेकिन ज़ियारत उसका सबसे विकसित भाग है। यह एक रमणीय पहाड़ी क्षेत्र है जहाँ बहुत पर्यटक आते हैं। यहाँ के हपुषा (ज्यूनिपर) वृक्षों के वन विश्व के सबसे प्राचीन माने जाते हैं। .

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जुनागढ़ रियासत

जूनागढ़ 1948 तक एक रियासत था, जिसपर बाबी राजवंश का शासन था। एकीकरण के दौरान भारतीय संघ में जनमत द्वारा शामिल कर लिया गया। .

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जोज़जान प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का जोज़जान प्रान्त (लाल रंग में) जोज़जान (फ़ारसी:, अंग्रेजी: Jowzjan) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के उत्तर में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल ११,७९८ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००९ में लगभग ४.९ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी शबरग़ान शहर है। इस प्रान्त के लगभग ४०% लोग उज़बेक जाति के हैं और वही सबसे बड़ा समुदाय हैं। उनके अलावा यहाँ तुर्कमेनी (२९%), पश्तून (१७%) और ताजिक (१२%) भी बसते हैं। उत्तर में जोज़जान की तुर्कमेनिस्तान के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमा है। .

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वटापूर ज़िला

वटापूर ज़िला या वोटापूर ज़िला (Watapur District) अफ़ग़ानिस्तान के कुनर प्रान्त के मध्य भाग में स्थित एक ज़िला है। इसका क्षेत्र कभी असदाबाद ज़िले का भाग हुआ करता था। .

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ख़ैबर दर्रा

ख़ैबर दर्रा ख़ैबर दर्रा ख़ैबर दर्रा या दर्र-ए-ख़ैबर (Khyber Pass) उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान की सीमा और अफगानिस्तान के काबुलिस्तान मैदान के बीच हिंदुकुश के सफेद कोह पर्वत शृंखला में स्थित एक प्रख्यात ऐतिहासिक दर्रा है। यह दर्रा ५० किमी लंबा है और इसका सबसे सँकरा भाग केवल १० फुट चौड़ा है। यह सँकरा मार्ग ६०० से १००० फुट की ऊँचाई पर बल खाता हुआ बृहदाकार पर्वतों के बीच खो सा जाता है। इस दर्रे के ज़रिये भारतीय उपमहाद्वीप और मध्य एशिया के बीच आया-जाया सकता है और इसने दोनों क्षेत्रों के इतिहास पर गहरी छाप छोड़ी है। ख़ैबर दर्रे का सबसे ऊँचा स्थान पाकिस्तान के संघ-शासित जनजातीय क्षेत्र की लंडी कोतल (لنڈی کوتل, Landi Kotal) नामक बस्ती के पास पड़ता है। इस दर्रे के इर्द-गिर्द पश्तून लोग बसते हैं। पेशावर से काबुल तक इस दर्रे से होकर अब एक सड़क बन गई है। यह सड़क चट्टानी ऊसर मैदान से होती हुई जमरूद से, जो अंग्रेजी सेना की छावनी थी और जहाँ अब पाकिस्तानी सेना रहती है, तीन मील आगे शादीबगियार के पास पहाड़ों में प्रवेश करती है और यहीं से खैबर दर्रा आरंभ होता है। कुछ दूर तक सड़क एक खड्ड में से होकर जाती है फिर बाई और शंगाई के पठार की ओर उठती है। इस स्थान से अली मसजिद दुर्ग दिखाई पड़ता है जो दर्रे के लगभग बीचोबीच ऊँचाई पर स्थित है। यह दुर्ग अनेक अभियानों का लक्ष्य रहा है। पश्चिम की ओर आगे बढ़ती हुई सड़क दाहिनी ओर घूमती है और टेढ़े-मेढ़े ढलान से होती हुई अली मसजिद की नदी में उतर कर उसके किनारे-किनारे चलती है। यहीं खैबर दर्रे का सँकरा भाग है जो केवल पंद्रह फुट चौड़ा है और ऊँचाई में २,००० फुट है। ५ किमी आगे बढ़ने पर घाटी चौड़ी होने लगती है। इस घाटी के दोनों और छोटे-छोटे गाँव और जक्काखेल अफ्रीदियों की लगभग साठ मीनारें है। इसके आगे लोआर्गी का पठार आता है जो १० किमी लंबा है और उसकी अधिकतम चौड़ाई तीन मील है। यह लंदी कोतल में जाकर समाप्त होता है। यहाँ अंगरेजों के काल का एक दुर्ग है। यहाँ से अफगानिस्तान का मैदानी भाग दिखाई देता है। लंदी कोतल से आगे सड़क छोटी पहाड़ियों के बीच से होती हुई काबुल नदी को चूमती डक्का पहुँचती है। यह मार्ग अब इतना प्रशस्त हो गया है कि छोटी लारियाँ और मोटरगाड़ियाँ काबुल तक सरलता से जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त लंदी खाना तक, जिसे खैबर का पश्चिम कहा जाता है, रेलमार्ग भी बन गया है। इस रेलमार्ग का बनना १९२५ में आरंभ हुआ था। सामरिक दृष्टि में संसार भर में यह दर्रा सबसे अधिक महत्व का समझा जाता रहा है। भारत के 'प्रवेश द्वार' के रूप में इसके साथ अनेक स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं। समझा जाता है कि सिकन्दर के समय से लेकर बहुत बाद तक जितने भी आक्रामक शक-पल्लव, बाख्त्री, यवन, महमूद गजनी, चंगेज खाँ, तैमूर, बाबर आदि भारत आए उन्होंने इसी दर्रे के मार्ग से प्रवेश किया। किन्तु यह बात पूर्णतः सत्य नहीं है। दर्रे की दुर्गमता और इस प्रदेश के उद्दंड निविसियों के कारण इस मार्ग से सबके लिए बहुत साल तक प्रवेश सहज न था। भारत आनेवाले अधिकांश आक्रमणकारी या तो बलूचिस्तान होकर आए या 2 साँचा:पाकिस्तान के प्रमुख दर्रे श्रेणी:भारत का इतिहास श्रेणी:पाकिस्तान के पहाड़ी दर्रे श्रेणी:अफ़्गानिस्तान के पहाड़ी दर्रे श्रेणी:पश्तून लोग श्रेणी:ऐतिहासिक मार्ग.

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ख़ोस्त

ख़ोस्त मस्जिद ख़ोस्त (पश्तो:, अंग्रेजी: Khost) पूर्वी अफ़्ग़ानिस्तान का एक शहर है। यह ख़ोस्त प्रान्त की राजधानी भी है, जो पाकिस्तान के सीमा के नज़दीक एक पर्वतीय इलाक़ा है। ख़ोस्त शहर की आबादी लगभग १.६ लाख है और पूरे ख़ोस्त प्रान्त की जनसँख्या क़रीब १० लाख है। यहाँ के अधिकतर निवासी पश्तो भाषी पठान हैं और सामाजिक व्यवस्था क़बीलीयाई है। अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत युद्ध के दौरान ख़ोस्त जुलाई १९८३ से नवम्बर १९८७ तक विद्रोही फौजों द्वारा घिरा रहा था।, David Rohde, Kristen Mulvihill, Penguin, 2010, ISBN 978-0-670-02223-6,...

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ख़ोस्त प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का ख़ोस्त प्रान्त (लाल रंग में) ख़ोस्त (पश्तो:, अंग्रेजी: Khost) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल ४,१५२ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००९ में लगभग ६.४ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी ख़ोस्त शहर है। इस प्रान्त में ज़्यादातर लोग पश्तो बोलने वाले पश्तून हैं। इसकी दक्षिणी और पूर्वी सीमा पाकिस्तान से लगती है। .

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गरदेज़

गरदेज़ (पश्तो:, अंग्रेजी: Gardez) पूर्वी अफ़्ग़ानिस्तान का एक शहर है। यह पकतिया प्रान्त की राजधानी भी है और पाकिस्तान की सीमा के नज़दीक है। गरदेज़ शहर की सन् २००८ में आबादी लगभग ७०,००० अनुमानित की गई थी, जिनमें से अधिकतर पश्तो-भाषी पठान थे। यह शहर एक बड़ी वादी में स्थित है जिसके उत्तर, पूर्व और पश्चिम में हिन्दु कुश के पर्वत हैं। यह शहर २,३०० मीटर की ऊँचाई पर है और गुफ़ाओं और सुरंगों वाले प्रसिद्ध तोरा बोरा इलाक़े के पास है। शहर से रूद-ए-गरदेज़ (यानि गरदेज़ नदी) निकलती है जो आब-ए-इस्तादा नामक झील में जाकर ख़त्म हो जाती है। गरदेज़ ग़ज़नी से पाकिस्तान और काबुल से ख़ोस्त जाने वाले रास्तों के चौराहे पर स्थित है। इस वजह से यह पूर्वी अफ़्ग़ानिस्तान में व्यापार का केंद्र रहा है और इसने बहुत से आक्रामकों के हमले सहे हैं। दो हज़ार साल से भी अधिक पहले सिकंदर महान द्वारा आसपास की पहाड़ियों पर पहरे के लिए बनवाई गई पत्थर की चौकियाँ आज भी धीरे-धीरे टूट रहीं हैं। गरदेज़ के बीच में ऊँचाई पर बाला हिसार क़िला (Bala Hisar) है, जिसका मतलब 'ऊँचाई का क़िला' होता है।, Ken Scar, 7th Mobile Public Affairs Detachment, 22 Feb 2012,...

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ग़ज़नी प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का ग़ज़नी प्रान्त (लाल रंग में) ग़ज़नी (पश्तो:, अंग्रेजी: Ghazni) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल २२,९१५ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००२ में लगभग ९.३ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी ग़ज़नी शहर है। ग़ज़नी प्रान्त काबुल से कंदहार जाने वाले राजमार्ग पर आता है और इतिहास में उन दोनों के बीच एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र रहा है। इस प्रान्त में लगभग आधे लोग पश्तून हैं लेकिन यहाँ हज़ारा लोगों और ताजिक लोगों के भी बड़े समुदाय रहते हैं। .

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ओरूज़्गान प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का ओरूज़्गान प्रांत (लाल रंग में) ओरूज़्गान में गेंहू के खेत ओरूज़्गान या उरोज़्गान (पश्तो:, अंग्रेजी: Oruzgan) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के मध्य भाग में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल २२,६९६ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००६ में लगभग ३.१ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी तरीनकोट शहर है। इस प्रान्त में बसने वाले अधिकतर लोग पश्तून हैं और सांस्कृतिक रूप से यह प्रान्त कंदहार के क्षेत्र से मिलता-जुलता है। .

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आदिल खान

आदिल खान पंजाबी /पख्तून वंश के एक नॉर्वेजियाई नर्तक और अभिनेता हैं। आदिल, नॉर्वे में तब एक ‘सेलिब्रिटी’ बन गये जब वह दांसेफेबेर जीते। दांसेफेबेर एक नृत्य प्रतियोगिता कार्यक्रम था जिसे टीवी नोर्गे नामक एक नॉर्वेजियाई टीवी चैनल ने आयोजित किया था। दांसेफेबेर " सो यू थिंक यू कैन डांस " (So You Think You Can Dance) नामक अमेरिकी कार्यक्रम का नॉर्वेजियाई संस्करण था। यह एक कार्यक्रम था जिसे अमेरिकी चैनल फॉक्स टीवी द्वारा प्रस्तुत किया गया था। .

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इमरान ख़ान

इमरान ख़ान नियाजी عمران خان نیازی (जन्म 25 नवम्बर 1952) एक सेवानिवृत्त पाकिस्तानी क्रिकेटर हैं, जिन्होंने बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध के दो दशकों में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेला और 1990 के दशक के मध्य से राजनीतिज्ञ हो गए। वर्तमान में, अपनी राजनीतिक सक्रियता के अलावा, ख़ान एक धर्मार्थ कार्यकर्ता और क्रिकेट कमेंटेटर भी हैं। ख़ान, 1971-1992 तक पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के लिए खेले और 1982 से 1992 के बीच, आंतरायिक कप्तान रहे। 1987 के विश्व कप के अंत में, क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, उन्हें टीम में शामिल करने के लिए 1988 में दुबारा बुलाया गया। 39 वर्ष की आयु में ख़ान ने पाकिस्तान की प्रथम और एकमात्र विश्व कप जीत में अपनी टीम का नेतृत्व किया। उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में 3,807 रन और 362 विकेट का रिकॉर्ड बनाया है, जो उन्हें 'आल राउंडर्स ट्रिपल' हासिल करने वाले छह विश्व क्रिकेटरों की श्रेणी में शामिल करता है। अप्रैल 1996 में ख़ान ने पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (न्याय के लिए आंदोलन) नाम की एक छोटी और सीमांत राजनैतिक पार्टी की स्थापना की और उसके अध्यक्ष बने और जिसके वे संसद के लिए निर्वाचित केवल एकमात्र सदस्य हैं। उन्होंने नवंबर 2002 से अक्टूबर 2007 तक नेशनल असेंबली के सदस्य के रूप में मियांवाली का प्रतिनिधित्व किया। ख़ान ने दुनिया भर से चंदा इकट्ठा कर, 1996 में शौकत ख़ानम मेमोरियल कैंसर अस्पताल और अनुसंधान केंद्र और 2008 में मियांवाली नमल कॉलेज की स्थापना में मदद की। .

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कराची

कराची पाकिस्तान का सबसे बड़ा नगर है और सिन्ध प्रान्त की राजधानी है। यह अरब सागर के तट पर बसा है और पाकिस्तान का सबसे बड़ा बन्दरगाह भी है। इसके उपनगरों को मिलाकर यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। यह 3527 वर्ग किलोमीटर में फैला है और करीब 1.45 करोड़ लोगों का घर है। यहाँ के निवासी इस शहर की ज़िन्दादिली की वजह से इसे रौशनियों का शहर और क़ैद-ए-आज़म जिन्ना का निवास स्थान होने की वजह से इसे शहर-ए-क़ैद कह कर बुलाते हैं। जिन्‍नाह की जन्‍मस्‍थली के लिए प्रसिद्ध कराची पाकिस्‍तान के सिंध प्रांत की राजधानी है। यह पाकिस्‍तान का सबसे बड़ा शहर है। अरब सागर के तट पर बसा कराची पाकिस्‍तान की सांस्‍कृतिक, आर्थिक और शैक्षणिक राजधानी मानी जाती है। यह पाकिस्‍तान का सबसे बड़ा बंदरगाह शहर भी है। यह शहर पाकिस्‍तान आने वाले पर्यटकों के बीच भी खासा लोकप्रिय है। पर्यटक यहां बीच, म्‍यूजियम और मस्जिद आदि देख सकते हैं। आज के पाकिस्तानी भूभाग का मानवीय इतिहास कम से कम 5000 साल पुराना है, यद्यपि इतिहास पाकिस्तान शब्द का जन्म सन् 1933 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र चौधरी रहमत अली के द्वारा हुआ। आज का पाकिस्तानी भूभाग कई संस्कृतियों का गवाह रहा है। ईसापूर्व 3300-1800 के बीच यहाँ सिन्धुघाटी सभ्यता का विकास हुआ। यह विश्व की चार प्राचीन ताम्र-कांस्यकालीन सभ्यताओं में से एक थी। इसका क्षेत्र सिन्धु नदी के किनारे अवस्थित था पर गुजरात (भारत) और राजस्थान में भी इस सभ्यता के अवशेष पाए गए हैं। मोहेन्जो-दारो, हड़प्पा इत्यादि स्थल पाकिस्तान में इस सभ्यता के प्रमुख अवशेष-स्थल हैं। इस सभ्यता के लोग कौन थे इसके बारे में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। कुछ इसे आर्यों की पूर्ववर्ती शाखा कहते हैं तो कुछ इसे द्रविड़। कुछ इसे बलोची भी ठहराते हैं। इस मतभेद का एक कारण सिन्धु-घाटी सभ्यता की लिपि का नहीं पढ़ा जाना भी है। ऐसा माना जाता है कि 1500 ईसापूर्व के आसपास आर्यों का आगमन पाकिस्तान के उत्तरी क्षेत्रों के मार्फ़त भारत में हुआ। आर्यों का निवास स्थान कैस्पियन सागर के पूर्वी तथा उत्तरी हिस्सों में माना जाता है जहाँ से वे इसी समय के करीब ईरान, यूरोप और भारत की ओर चले गए थे। सन् 543 ईसापूर्व में पाकिस्तान का अधिकांश इलाका ईरान (फारस) के हख़ामनी साम्राज्य के अधीन आ गया। लेकिन उस समय इस्लाम का उदय नहीं हुआ था; ईरान के लोग ज़रदोश्त के अनुयायी थे और देवताओं की पूजा करते थे। सन् 330 ईसापूर्व में मकदूनिया (यूनान) के विजेता सिकन्दर ने दारा तृतीय को तीन बार हराकर हखामनी वंश का अन्त कर दिया। इसके कारण मिस्र से पाकिस्तान तक फैले हखामनी साम्राज्य का पतन हो गया और सिकन्दर पंजाब तक आ गया। ग्रीक स्रोतों के मुताबिक उसने सिन्धु नदी के तट पर भारतीय राजा पुरु (ग्रीक - पोरस) को हरा दिया। पर उसकी सेना ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया और वह भारत में प्रवेश किये बिना वापस लौट गया। इसके बाद उत्तरी पाकिस्तान और अफगानिस्तान में यूनानी-बैक्ट्रियन सभ्यता का विकास हुआ। सिकन्दर के साम्राज्य को उसके सेनापतियों ने आपस में बाँट लिया। सेल्युकस नेक्टर सिकन्दर के सबसे शक्तिशाली उत्तराधिकारियों में से एक था। मौर्यों ने 300 ईसापूर्व के आसपास पाकिस्तान को अपने साम्राज्य के अधीन कर लिया। इसके बाद पुनः यह ग्रीको-बैक्ट्रियन शासन में चला गया। इन शासकों में सबसे प्रमुख मिनांदर ने बौद्ध धर्म को प्रोत्साहित किया। पार्थियनों के पतन के बाद यह फारसी प्रभाव से मुक्त हुआ। सिन्ध के राय राजवंश (सन् 489-632) ने इसपर शासन किया। इसके बाद यह उत्तर भारत के गुप्त और फारस के सासानी साम्राज्य के बीच बँटा रहा। सन् 712 में फारस के सेनापति मुहम्मद बिन क़ासिम ने सिन्ध के राजा को हरा दिया। यह फारसी विजय न होकर इस्लाम की विजय थी। बिन कासिम एक अरब था और पूर्वी ईरान में अरबों की आबादी और नियंत्रण बढ़ता जा रहा था। हालांकि इसी समय केन्द्रीय ईरान में अरबों के प्रति घृणा और द्वेष बढ़ता जा रहा था पर इस क्षेत्र में अरबों की प्रभुसत्ता स्थापित हो गई थी। इसके बाद पाकिस्तान का क्षेत्र इस्लाम से प्रभावित होता चला गया। पाकिस्तानी सरकार के अनुसार इसी समय 'पाकिस्तान की नींव' डाली गई थी। इसके 1192 में दिल्ली के सुल्तान पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद ही दिल्ली की सत्ता पर फारस से आए तुर्कों, अरबों और फारसियों का नियंत्रण हो गया। पाकिस्तान दिल्ली सल्तनत का अंग बन गया। सोलहवीं सदी में मध्य-एशिया से भाग कर आए हुए बाबर ने दिल्ली की सत्ता पर अधिकार किया और पाकिस्तान मुगल साम्राज्य का अंग बन गया। मुगलों ने काबुल तक के क्षेत्र को अपने साम्राज्य में मिला लिया था। अठारहवीं सदी के अन्त तक विदेशियों (खासकर अंग्रेजों) का प्रभुत्व भारतीय उपमहाद्वीप पर बढ़ता गया.

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करक ज़िला

ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत में करक ज़िला (लाल रंग में) करक (उर्दू:, पश्तो:, अंग्रेज़ी: Karak) पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत का एक ज़िला है। यह कोहाट ज़िले के दक्षिण में, बन्नू और लक्की मरवत ज़िलों के उत्तर में स्थित है। पेशावर से कराची जाने वाले सिन्धु राजमार्ग के रस्ते में आने वाला यह ज़िला ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा की राजधानी पेशावर से १२३ किलोमीटर की दूरी पर है। कहा जाता है कि करक पाकिस्तान का इकलौता ज़िला है जिसमें केवल एक ही पश्तून क़बीले के लोग रहते हैं और यह ख़टक कबीला है। .

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क़लन्दर मोमंद

साहबज़ादा हबीब-उर-रहमान क़लन्दर मोमंद, जिन्हें आमतौर पर केवल क़लन्दर मोमंद (पश्तो:, अंग्रेज़ी: Qalandar Momand) के नाम से जाना जाता है, एक पश्तून लेखक, कवि, समीक्षक और विद्वान थे। वे मज़दूर संघ के नेता, पश्तून राष्ट्रीयता के समर्थक, राजनैतिक कार्यकर्ता और पाकिस्तानी साम्यवादी पार्टी (कोम्युनिस्ट पार्टी) के सदस्य भी थे। धार्मिक दृष्टि से वे अहमदिया समुदाय के सदस्य थे। क़लन्दर मोमंद ने पश्तो भाषा में लिखाई और पत्रकारिता करी और पाकिस्तान की सरकार की तरफ़ से उन्हें कई इनाम भी दिए गए। उन्होंने अपना पत्रकार जीवन 'अल-हक़' समाचार पत्र के साथ शुरू किया और आगे जाकर कई अन्य अख़बारों में काम किया, जिनमें अंजाम, शहबाज़, बांग-ए-हरम, ख़ैबर​ मेल,​ पेशावर टाइम्ज़, फ़्रंटियर गार्डियन, नक़ीब, लार, रहबर, सरहद और मसावात शामिल थे। .

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क़ला-ए-नौ, अफ़्ग़ानिस्तान

बादग़ीस प्रान्त की राजधानी क़ला-ए-नौ​ का एक नज़ारा क़ला-ए-नौ​ (फ़ारसी:, अंग्रेज़ी: Qala i Naw) पश्चिमोत्तरी अफ़ग़ानिस्तान के बादग़ीस प्रान्त की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है। जिस ज़िले में यह शहर पड़ता है उसका नाम भी क़ला-ए-नौ ज़िला है। इस ज़िले की ८०% आबादी ताजिक है और ताजिक भाषा ही यहाँ सबसे अधिक बोली जाती है हालांकि बहुत से लोगों को पश्तो भी आती है। क़ला-ए-नौ के आसपास का इलाक़ा अपने पिस्ते के वनों के लिए मशहूर है। .

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क़िला अब्दुल्लाह ज़िला

बलोचिस्तान प्रांत में क़िला अब्दुल्लाह ज़िला (लाल रंग में) क़िला अब्दुल्लाह (उर्दू:, अंग्रेज़ी: Killa Abdullah) पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रांत के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित एक ज़िला है। इसका क्षेत्रफल ३,२९३ किमी२ है और सन् २००५ में इसकी आबादी ४ लाख से ज़्यादा अनुमानित की गई थी। यहाँ रहने वाले अधिकतर लोग पश्तून हैं और पश्तो यहाँ सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है। जून १९९३ तक यह पिशीन ज़िले (Pishin) का हिस्सा हुआ करता था लेकिन फिर इसे एक अलग ज़िले का दर्जा दिया गया। .

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कांधार प्रान्त

कांधार या क़ंदहार (पश्तो: या, अंग्रेजी: Kandahar या Qandahar) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के दक्षिण में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल ५४,०२२ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००९ में लगभग १० लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी ऐतिहासिक कांधार शहर है। यह प्रान्त पश्तो बोलने वाले पश्तून लोगों का क्षेत्र है। बहुत से इतिहासकार इसे तालिबान कट्टरवादी विचारधारा की जन्मभूमि मानते हैं। इसकी दक्षिणी सीमा पाकिस्तान से लगती है। .

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कुनर प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का कुनर प्रान्त (लाल रंग में) कुनर या कुनड़ (पश्तो:, फ़ारसी:, अंग्रेजी: Kunar) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के पूर्व में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल ४,३३९ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००९ में लगभग ४.१ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी असदाबाद शहर है। इस प्रान्त में ज़्यादातर लोग पश्तो बोलने वाले पश्तून हैं। इसकी दक्षिणी और पूर्वी सीमा पाकिस्तान से लगती है। .

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कुर्रम वादी

अफ़्ग़ानिस्तान के पकतिया प्रान्त से दक्षिण की तरफ़ सरहद पार स्थित कुर्रम वादी का नज़ारा कुर्रम (पश्तो:, द कुर्रमा; अंग्रेज़ी: Kurram) पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर में अफ़्ग़ानिस्तान से लगी हुई एक सुन्दर वादी है। प्राचीनकाल में इसे वैदिक संस्कृत में ऋग्वेद में क्रुमू कहते थे।, George Erdösy, Walter de Gruyter, 1995, ISBN 978-3-11-014447-5,...

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कुंदुज़ प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का कुंदुज़ प्रान्त (लाल रंग में) कुंदुज़ (पश्तो:, अंग्रेजी: Kunar) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के उत्तर-पूर्व में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल ८,०४० वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००९ में लगभग ८.२ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी कुंदुज़ शहर है। इस प्रान्त में ताजिक और पश्तून लोगों की बहुतायत है, लेकिन यहाँ बहुत उज़बेक लोग भी रहते हैं। इसकी उत्तरी सीमा ताजिकिस्तान से लगती है। कुंदुज़ नदी यहाँ का एक महत्वपूर्ण जल-स्रोत है और यह अमु दरिया की एक उपनदी है। यही अमु दरिया कुंदुज़ प्रान्त और उसके उत्तर में स्थित ताजिकिस्तान के बीच की अंतर्राष्ट्रीय सीमा भी है। कुंदुज़ प्रान्त पश्चिम में मज़ार-ए-शरीफ़ तथा दक्षिण में काबुल से सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है। इसके अलावा यह ताजिकिस्तान से भी सड़क द्वारा संयुक्त है। .

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क्वेटा ज़िला

क्वेटा (उर्दू: کوئٹہ‎, पश्तो: کوټه‎, अंग्रेज़ी: Quetta) पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रान्त का एक ज़िला है। प्रान्तीय राजधानी क्वेटा इसी ज़िले में स्थित है। .

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कोहाट ज़िला

ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत में कोहाट ज़िला (लाल रंग में) कोहाट (उर्दू:, पश्तो:, अंग्रेज़ी: Kohat) पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत का एक ज़िला है। यह करक ज़िले के उत्तर में और फ़ाटा नाम के क़बीलाई इलाक़ों के दक्षिण में स्थित है। इसमें बहुत से पश्तून क़बीलों के लोग रहते हैं, जैसे कि अफ़रीदी, ख़टक, बन्गश और ओरकज़ई। इस पूरे क्षेत्र में पश्तो बोली जाती है। कोहाट दो तहसीलों में बँटा हुआ है - कोहाट तहसील और लाची तहसील। .

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कोहिस्तानी भाषा

कोहिस्तानी भाषा ख़ैबर​-पख़्तूनख़्वा के कोहिस्तान ज़िले (लाल रंग) में बोली जाती है कोहिस्तानी या सिन्धु-कोहिस्तानी हिन्द-आर्य भाषा-परिवार की दार्दी भाषाओँ वाली शाखा की एक भाषा है जो पश्चिमोत्तरी पाकिस्तान के ख़ैबर​-पख़्तूनख़्वा राज्य के कोहिस्तान ज़िले में बोली जाती है। सन् १९९३ में इसे बोलने वालों की संख्या लगभग २,२०,००० अनुमानित की गई थी। .

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अफ़रीदी

सन् १८७८ में कुछ अफ़रीदी लड़ाके अफ़रीदी (Afridi) या आफ़रीदी, जो स्वयं को पश्तो में 'अपरीदी' बुलाते हैं, एक प्रमुख पश्तून क़बीले का नाम है। अफ़रीदी लोग अफ़्ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में पूर्वी सफ़ेद कोह पर्वती-क्षेत्र, पश्चिमी पेशावर वादी और पूर्वी नंगरहार प्रान्त में बसते हैं। पाकिस्तान के संघ-शासित क़बाईली क्षेत्रों के ख़ैबर विभाग, पेशावर सरहदी क्षेत्र और कोहाट सरहदी क्षेत्र में भी अफ़रीदी विस्तृत हैं। वे इसी इलाके के प्रसिद्ध ख़ैबर दर्रे के दोनों तरफ़ रहते हैं। बहुत से अफ़रीदी भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार और जम्मू व कश्मीर राज्यों में भी रहते हैं।, G. Tucker, Calcutta Central Press Company, 1884,...

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अफ़ग़ानिस्तान

अफ़ग़ानिस्तान इस्लामी गणराज्य दक्षिणी मध्य एशिया में अवस्थित देश है, जो चारो ओर से जमीन से घिरा हुआ है। प्रायः इसकी गिनती मध्य एशिया के देशों में होती है पर देश में लगातार चल रहे संघर्षों ने इसे कभी मध्य पूर्व तो कभी दक्षिण एशिया से जोड़ दिया है। इसके पूर्व में पाकिस्तान, उत्तर पूर्व में भारत तथा चीन, उत्तर में ताजिकिस्तान, कज़ाकस्तान तथा तुर्कमेनिस्तान तथा पश्चिम में ईरान है। अफ़ग़ानिस्तान रेशम मार्ग और मानव प्रवास का8 एक प्राचीन केन्द्र बिन्दु रहा है। पुरातत्वविदों को मध्य पाषाण काल ​​के मानव बस्ती के साक्ष्य मिले हैं। इस क्षेत्र में नगरीय सभ्यता की शुरुआत 3000 से 2,000 ई.पू.

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अहमद फ़राज़

अहमद फ़राज़ (१४ जनवरी १९३१- २५ अगस्त २००८), असली नाम सैयद अहमद शाह, का जन्म पाकिस्तान के नौशेरां शहर में हुआ था। वे आधुनिक उर्दू के सर्वश्रेष्ठ रचनाकारों में गिने जाते हैं। .

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अहमद शाह अब्दाली

अहमद शाह अब्दाली अहमद शाह अब्दाली, जिसे अहमद शाह दुर्रानी भी कहा जाता है, सन 1748 में नादिरशाह की मौत के बाद अफ़ग़ानिस्तान का शासक और दुर्रानी साम्राज्य का संस्थापक बना। उसने भारत पर सन 1748 से सन 1758 तक कई बार चढ़ाई की। उसने अपना सबसे बड़ा हमला सन 1757 में जनवरी माह में दिल्ली पर किया। अहमदशाह एक माह तक दिल्ली में ठहर कर लूटमार करता रहा। वहाँ की लूट में उसे करोड़ों की संपदा हाथ लगी थी।, Library of Congress Country Studies on Afghanistan, 1997, Accessed 2010-08-25 .

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अइमाक़ लोग

अइमाक़​ (Aimaq) हेरात नगर से उत्तर में पश्चिम-मध्य अफ़्ग़ानिस्तान में और ईरान के ख़ोरासान प्रांत​ में विस्तृत कुछ ईरानी भाषाएँ बोलने वाले ख़ानाबदोश क़बीलों का सामूहिक नाम है। यह फ़ारसी की कई अइमाक़​ उपभाषाएँ बोलते हैं, हालांकि इनके तइमानी और मालेकी उपसमुदायों ने पश्तो भाषा और पश्तून संस्कृति अपना ली है। अफ़्ग़ानिस्तान के ग़ोर प्रान्त में अइमाक़ बहुसंख्यक समुदाय समझे जाते हैं। इसके अलावा यह बड़ी संख्या में हेरात और बादग़ीस प्रान्तों में और कम संख्या में फ़राह, फ़ारयाब, जोज़जान और सर-ए-पोल प्रान्तों में भी रहते हैं।, Willem Vogel, pp.

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उत्तरी मित्रपक्ष

अफ़ग़ान उत्तरी मित्रपक्ष (Afghan Northern Allaince), जिसे औपचारिक रूप से अफ़ग़ानिस्तान की मुक्ति के लिए संयुक्त इस्लामी मोर्चा (United Islamic Front for the Salvation of Afghanistan,, जबहा-ए-मुत्तहिद-ए-इस्लामी-ए-मिल्ली बरा-ए-निजात-ए-अफ़ग़ानिस्तान), अफ़ग़ानिस्तान में एक सैनिक मोर्चा था जो १९९६ में काबुल पर तालिबान कट्टरपंथी गुट का क़ब्ज़ा हो जाने के बाद उस का बलपूर्वक विरोध करने के लिए बना था। इसे तालिबान-विरोधी विस्थापित अफ़ग़ान राष्ट्रीय सरकार के राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी और भूतपूर्व रक्षामंत्री अहमद शाह मसूद ने स्थापित किया था। शुरू में इसमें अधिकतर ताजिक समुदाय के लोग थे लेकिन सन् २००० तक अन्य जातीय गुट भी इससे जुड़ चुके थे। इसके नेताओं में उज़बेक समुदाय के अब्दुल रशीद दोस्तुम, पश्तून समुदाय के अब्दुल क़ादिर और हज़ारा समुदाय के मुहम्मद मोहक़िक़ और सय्यद हुसैन अनवरी शामिल थे। उत्तरी मित्रपक्ष को तालिबान के ख़िलाफ़ लड़ने में ईरान, रूस, भारत व ताजिकिस्तान से मदद मिली, जबकि तालिबान को पाकिस्तान और अल-क़ायदा सहायता दी।, Joel Ostrow, pp.

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उपनाम

नाम के साथ प्रयोग हुआ दूसरा शब्द जो नाम कि जाति या किसी विशेषता को व्यक्त करता है उपनाम (Surname / सरनेम) कहलाता है। जैसे महात्मा गाँधी, सचिन तेंदुलकर, भगत सिंह आदि में दूसरा शब्द गाँधी, तेंदुलकर, सिंह उपनाम हैं। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

पठानों, पश्तून, पश्तून लोग, पश्तून समुदाय, पश्तून क़बीलों, पश्तूनों

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