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पक्षी

सूची पक्षी

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213 संबंधों: चमगादड़ गण, चरस (पक्षी), ऊष्मायन, चातक, चानक, चिड़ियाघर, चिल्मिआ, चकोर, चौपाये, चोंच, चीनी तीतर, चीर, चील, टिटहरी, टॅमिन्क ट्रॅगोपॅन, एडीज, एमू, ऐम्नीओट, ऐकीपिट्रीडाए, ऐकीपिट्रीफ़ोर्मीस, झाड़मुर्गी, झुंड व्यवहार, डोडो, तिब्बती तीतर, तिब्बती रामचकोर, तोता, तीतर जैसी पूंछ वाला जल-कपोत, दर्जिन चिड़िया, दाँत, दूधराज, धनेश, धारीदार पूँछ वाला तीतर, नासिका, नियततापी प्राणी, निकोबार मॅगापोड, नीलकंठ पक्षी, पतेना, पपीहा, पर्वतीय बटेर, पर्वतीय बांस का तीतर, पशु बीमा, पासरीफ़ोर्मीज़, पिद्दी, पियोरा, पंख, पक्षियों का वर्गीकरण, पक्षीपालन, पक्षीविज्ञान, पुष्प, प्राणी, ..., प्राणी उड़ान और पाल-उड़ान, प्रजनन ऋतु, पृथ्वीराज चौहान, पूँछ, पेंटेड फ़्रैंकोलिन, पेंगुइन, पीनियल ग्रंथि, पीयूष ग्रन्थि, फ़िन की बया, फ़ैल्कोनीडाए, फ्रांस की संस्कृति, बटेर, बड़ा बटेर, बतख, बया, बाज़, बाइलेटेरिया, बगुला, बंगाल का गिद्ध, बुलबुल, ब्युसेरोटीफ़ोर्मीस, ब्राह्मिनी चील, ब्लाइद ट्रॅगोपॅन, बैंकसिया, भारतीय चित्तीदार महाश्येन, भारतीय पक्षियों की सूची, भारतीय गिद्ध, भूरी छाती वाला तीतर, मणिपुरी बटेर, मथुरा की मूर्तिकला, मनौस, महापद पक्षी, महाश्येन, महेन्द्रनाथ मंदिर , सिवान , बिहार, महोख, मांस, मुण्डा, मुनिया, मुर्लेन राष्ट्रीय उद्यान, मुर्गी, मैना, मूषक गुनगुन, मेसोअमेरिकी, मेंढक, मोनाल, मोर, युग वर्णन, रामचिरैया, लायर बर्ड, लाल सिर वाला गिद्ध, लाल जंगली मुर्गा, लाल गले वाला तीतर, लंबी चोंच का गिद्ध, लौवा, लौआ, लूंगी, शाह बुलबुल, शिकरा, शिकार (खाना), शुतुरमुर्ग, श्येन, श्रीलंका के वन्य जीव, श्वेतकण्ठ कौड़िल्ला, सफ़ेद तीतर, सफ़ेद गाल वाला तीतर, सफ़ेद गिद्ध, सफेद पुट्ठे वाली मुनिया, सलेटी मयूर-तीतर, सलेटी जंगली मुर्गा, साँप, सारस (पक्षी), सिन्गातोका, सिंगापुर में पर्यटन, सवाई माधोपुर, सुअर इन्फ्लूएंजा, स्ट्रेट द्वीप, स्वर्गपक्षी, स्वसंगठन, स्क्लैटर मोनाल, सूरजमुखी, सॅटिर ट्रॅगोपॅन, सी-सी तीतर, हँस, हरियाल, हार्ट-स्पॉटेड कठफोड़वा, हिम तीतर, हिमालय का रामचकोर, हिमालयी मोनाल, हिमालयी वन चिड़िया, हिंदू धर्म में कर्म, हंस (पक्षी), हुत्काह, हृदय, हूपू, जयपुर का इंडियन ऑयल डिपो अग्निकांड, जाति (जीवविज्ञान), जापानी बटेर, जंगली तीतर, जुनबगला, जैव संरक्षण, जैव विविधता, जेवर (पक्षी), जीवाश्मविज्ञान, जीववैज्ञानिक वर्गीकरण, घरेलू गौरैया, वर्षावन, विश्व गौरैया दिवस, व्याध, व्यवहार प्रक्रिया, खरमोर, खारे पानी के मगरमच्छ, खंजन, खीहा, गायन, गिलहरी, गंडभेरुंड, गंगा चिल्ली, गंगई, गुर्दा, गुलाबी मैना, ग्रहणी, ग्रेटर रैकेट-पूंछ ड्रोंगो, गैलापागोस एल्बाट्रॉस, गैलीफ़ॉर्मेस, गोडावण, गोबल बुटई, गोरामानसिंह, ऑसेलॉट, ओपनबिल्ड स्टॉर्क, आमाशय (पेट), आर्कियोप्टेरिक्स, आर्कोसोरिया, कठफोड़वा, कपोतक, कबूतर, करामोअन प्रायद्वीप, कर्कट रोग, कलविंकक, काराकारा, काला तीतर, कालिज, काली चील, कावर झील, काइली मिनोग, किलुम-इजिम वन, किंगफिशर, कुक्कुट, कौड़िल्ला, कौआ, कैक्टस, कोयल (एशियाई), कोयल (पक्षी), कोरैसीडाए, कोरैसीफ़ोर्मीस, कोकनी लौवा, कोकलास, अण्डा (खाद्य), अण्डजता, अफ़्रीका, अफ़्रीका की प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीव, असुर (आदिवासी), उड़ान, छोटी जंगली मुर्गी सूचकांक विस्तार (163 अधिक) »

चमगादड़ गण

भारतीय उड़नलोमड़ी (''Pteropus giganteus'') चमगादड़ गण या काइरॉप्टेरा (Chiroptera) स्तनधारी (mammalia) वर्ग का एक गण है, जिसके अंतर्गत सभी प्रकार के चमगादड़ निहित हैं। इस वर्ग के जंतु अन्य स्तनियों से बिल्कुल भिन्न मालूम पड़ते हैं और इसके सभी सदस्यों में उड़ने की शक्ति पाई जाती है। उड्डयन के लिये इनकी अग्रभुजाएँ पंखों में परिवर्तित हो गई हैं। यद्यपि ये जंतु हवा में बहुत ऊपर तक उड़ते हैं, पर चिड़ियों से भिन्न हैं। देखने में इनकी मुखाकृति चूहे जैसी मालूम होती है। इनके कान होते हैं। चिड़ियों की भाँति ये अंडे नहीं वरन् बच्चे देते हैं और बच्चों को दूध पिलाते हैं। .

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चरस (पक्षी)

चरस चरस (वैज्ञानिक नाम: Houbaropsis bengalensis; अंग्रेजी: Bengal Florican), भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाने वाला विशाल आकार का पक्षी है। यह अत्यन्त संकटग्रस्त पक्षी है जो लगभग विलुप्ति के कगार पर है। इनकी संख्या सम्भवतः १००० से भी कम होगी। श्रेणी:भारत के पक्षी.

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ऊष्मायन

ऊष्मायन (incubation) कुछ अण्डज (अण्डा देने वाले) प्राणियों की उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें वह अपने अण्डों को किसी विषेश तापमान पर रखते हैं ताकि उनके अंदर शिशु अनुकूल तापमान में जीवित रहें और पनप सकें। अक्सर इसमें जानवर या पक्षी अपने अण्डों पर बैठकर उन्हें गरम रखते हैं। .

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चातक

चातक पक्षी चातक एक पक्षी है। इसके सिर पर चोटीनुमा रचना होती है। भारतीय साहित्य में इसके बारे में ऐसा माना जाता है कि यह वर्षा की पहली बूंदों को ही पीता है। अगर यह पक्षी बहुत प्यासा है और इसे एक साफ़ पानी की झील में डाल दिया जाए तब भी यह पानी नहीं पिएगा और अपनी चोंच बंद कर लेगा ताकि झील का पानी इसके मुहं में न जा सके। यह पक्षी मुख्यतः एशिया और अफ्रीका महाद्वीप पर पाया जाता है। इसे मारवाडी भाषा में 'मेकेवा' कहा जाता हैं| .

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चानक

चानक या चीनी बटेर (Rain Quail या Black-breasted Quail) (Coturnix coromandelica) बटेर की एक जाति है जो भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाती है। यह जाति कंबोडिया, थाइलैंड, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भारत, म्यानमार, वियतनाम और श्रीलंका की मूल निवासी है। .

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चिड़ियाघर

कैलिफोर्निया के सैन डिएगो चिड़ियाघर का प्रवेश द्वार, मई 2007. चिड़ियाघर या प्राणिउपवन (Zoological garden) वह संस्थान है जहाँ जीवित पशु पक्षियों को बहुत बड़ी संख्या में संग्रहीत कर रखा जाता है। लोग इन संग्रहित पशु पक्षियों को सुविधा और सुरक्षापूर्वक देख सकें इसकी भी व्यवस्था की जाती है। यहाँ उनके प्रजनन और चिकित्सा आदि की भी व्यवस्था होती है। दुनिया भर में आम जनता के लिए खोले गए प्रमुख पशु संग्रहालयों की संख्या अब 1,000 से भी अधिक है और उनमें से लगभग 80 प्रतिशत शहरों में हैं। जीवित पशु पक्षियों के संग्रह को रखने की परिपाटी बहुत प्राचीन है। ऐसे उपवनों के होने का सबसे पुराना उल्लेख चीन में ईसा के 1200 वर्ष पूर्व में मिलता है। चीन के चाऊ वंश के प्रथम शासक के पास उस समय ऐसा एक पशु पक्षियों का संग्रहालय था। ईसा के 2000 वर्ष पूर्व के मिस्रवासियों की कब्रों के आसपास पशुओं की हड्डियाँ पाई गई हैं, जिससे पता लगता है कि वे लोग आमोद प्रमोद के लिए अपने आसपास पशुओं को रखा करते थे। पीछे रोमन लोग भी पशुओं को पकड़कर अपने पास रखते थे। प्राचीन रोमनों और यूनानियों के पास ऐसे संग्रह थे जिनमें सिंह, बाघ, चीता, तेंदुए आदि रहते थे। ऐसा पता लगता है कि ईसा के 29 वर्ष पूर्व ऑगस्टस ऑक्टेवियस (Augustus Octavious) के पास 410 बाघ, 260 चीते और 600 अफ्रीकी जंतुओं का संग्रह था, जिसमें बाघ राइनोसिरस, हिपोपॉटैमस (दरियाई घोड़ा), भालू, हाथी, मकर, साँप, सील (seal), ईगल (उकाब) इत्यादि थे। पीछे जंतुओं के संग्रह की दिशा में उत्तरोत्तर वृद्धि हेती रही है और आज संसार के प्रत्येक देश और प्रत्येक बड़े-बड़े नगर में प्राणिउपवन विद्यमान हैं। .

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चिल्मिआ

चिल्मिआ (Blood pheasant) (Ithaginis cruentus) फ़ीज़ॅन्ट कुल का पक्षी है जो अपनी प्रजाति का इकलौता पक्षी है। यह भूटान, चीन, भारत, म्यानमार तथा नेपाल में मूलत: पाया जाता है। .

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चकोर

चकोर (Chukor or French Partridge, Caccabis chukor) (Chukar) (Alectoris chukar) एक साहित्यिक पक्षी है, जिसके बारे में भारत के कवियों ने यह कल्पना कर रखी है कि यह सारी रात चंद्रमा की ओर ताका करता है और अग्निस्फुलिंगों को चंद्रमा के टुकड़े समझकर चुनता रहता है। इसमें वास्तविकता केवल इतनी है कि कीटभक्षी पक्षी होने के कारण, चकोर चिनगारियों को जुगनू आदि चमकनेवाले कीट समझकर उनपर भले ही चोंच चला दे। लेकिन न तो यह आग के टुकड़े ही खाता है और न निर्निमेष सारी रात चंद्रमा को ताकता ही रहता है। यह पाकिस्तान का राष्ट्रीय पक्षी है। Birds of Hindustan luchas, called būqalamūn, and partridges '' Alectoris chukar falki '' चकोर पक्षी (Aves) वर्ग के मयूर (Phasianidae) कुल का प्राणी है, जिसकी शिकार किया जाता है। इसका माँस स्वादिष्ट होता है। चकोर मैदान में न रहकर पहाड़ों पर रहना पसंद करता है। यह तीतर से स्वभाव और रहन सहन में बहुत मिलता जुलता है। पालतू हो जाने पर तीतर की भाँति ही अपने मालिक के पीछे-पीछे चलता है। इसके बच्चे अंडे से बाहर आते ही भागने लगते हैं। चकोर- (साहित्य) परंपराप्राप्त लोकप्रसिद्धि के अनुसार तथा कविसमय को काल्पनिक मान्यताओं के अनुरूप, चकोर चंद्रकिरणों पीकर जीवित रहता है (शां‌र्गघरपद्धति, १.२३)। इसीलिये इसे "चंद्रिकाजीवन' और "चंद्रिकापायी' भी कहते हैं। प्रवाद है कि वह चंद्रमा का एकांत प्रेमी है और रात भर उसी को एकटक देखा करता है। अँधेरी रातों में चद्रमा और उसकी किरणों के अभाव में वह अंगारों को चंद्रकिरण समझकर चुगता है। चंद्रमा के प्रति उसकी इस प्रसिद्ध मान्यता के आधार पर कवियों द्वारा प्राचीन काल से, अनन्य प्रेम और निष्ठा के उदाहरण स्वरूप चकोर संबंधी उक्तियाँ बराबर की गई हैं। इसका एक नाम विषदशर्नमृत्युक है जिसका आधार यह विश्वास है कि विषयुक्त खाद्य सामाग्री देखते ही उसकी आँखें लाल हो जाती है और वह मर जाता है। कहते हैं, भोजन की परीक्षा के लिये राजा लोग उसे पालते थे। .

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चौपाये

चौपाये (Tetrapod) या चतुरपाद उन प्राणियों का महावर्ग है जो पृथ्वी पर चार पैरों पर चलने वाले सर्वप्रथम कशेरुकी (यानि रीढ़-वाले) प्राणियों के वंशज हैं। इसमें सारे वर्तमान और विलुप्त उभयचर (ऐम्फ़िबियन), सरीसृप (रेप्टाइल), स्तनधारी (मैमल), पक्षी और कुछ विलुप्त मछलियाँ शामिल हैं। यह सभी आज से लगभग ३९ करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी के डिवोनी कल्प में उत्पन्न हुई कुछ समुद्री लोब-फ़िन मछलियों से क्रम-विकसित हुए थे। चौपाये सब से पहले कब समुद्र से निकल कर ज़मीन पर फैलने लगे, इस बात को लेकर अनुसंधान व बहस जीवाश्मशास्त्रियों में जारी है। हालांकि वर्तमान में अधिकतर चौपाई जातियाँ धरती पर रहती हैं, पृथ्वी की पहली चौपाई जातियाँ सभी समुद्री थीं। उभयचर अभी-भी अर्ध-जलीय जीवन व्यतीत करते हैं और उनका आरम्भ पूर्णतः जल में रहने वाले मछली-रूपी बच्चें से होता है। लगभग ३४ करोड़ वर्ष पूर्व ऐम्नीओट (Amniotes) उत्पन्न हुये, जिनके शिशुओं का पोषण अंडों में या मादा के गर्भ में होता है। इन ऐम्नीओटों के वंशजों ने पानी में अंडे छोड़ने-वाले उभयचरों की अधिकतर जातियों को विलुप्त कर दिया हालांकि कुछ वर्तमान में भी अस्तित्व में हैं। आगे चलकर यह ऐम्नीओट भी दो मुख्य शाखाओं में बंट गये। एक शाखा में छिपकलियाँ, डायनासोर, पक्षी और उनके सम्बन्धी उत्पन्न हुए, जबकि दूसरी शाखा में स्तनधारी और उनके अब-विलुप्त सम्बन्धी विकसित हुए। जहाँ मछलियों में क्रम-विकास से चार-पाऊँ बनकर चौपाये बने थे, वहीं सर्प जैसे कुछ चौपायों में क्रम-विकास से ही यह पाऊँ ग़ायब हो गये। कुछ ऐसे भी चौपाये थे जो वापस समुद्री जीवन में चले गये, जिनमें ह्वेल शामिल है। फिर-भी जीववैज्ञानिक दृष्टि से चौपायों के सभी वंशज चौपाये ही समझे जाते हैं, चाहें उनके पाँव हो या नहीं और चाहे वे समुद्र में रहें या धरती पर। .

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चोंच

चोंच (bill) पक्षियों के मुख का एक शारीरिक अंग होता है जिसे रक्षा व आक्रमण करने, वस्तुओं व ग्रास को पकड़ने, स्वयं को स्वच्छ रखने, शिशुओं को खाना देने, चीज़ें टटोलने और प्रणय-क्रियाओं के लिए प्रयोग किया जाता है। यह लगभग उसी स्थान पर होता है जहाँ कुछ अन्य प्राणियों का थूथन होता है। अलग-अलग जातियों की चोंचों में आकार, रंग व ढांचे का बहुत अंतर होता है लेकिन उनकी मूल संरचना एक समान होती है। एक हड्डीदार ऊपरी और एक निचला हिस्सा होता है जिसपर त्वचा की एक केराटिन-युक्त परत होती है - जीववैज्ञानिक इस परत को "राम्पोथेका" (Rhamphotheca) कहते हैं। अधिकतर जातियों में चोंच पर सांस लेने के लिए दो छिद्र भी होते हैं। .

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चीनी तीतर

चीनी तीतर (Chinese Francolin) (Francolinus pintadeanus) फ़्रैंकोलिन प्रजाति का एक पक्षी है। .

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चीर

चीर (Cheer pheasant) (Catreus wallichii) एक मयूरवंशी पक्षी है जो कि पाक अधिकृत कश्मीर, भारत तथा नेपाल में पाया जाता है। .

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चील

चील, श्येन कुल, फैमिली फैलकोनिडी (Family falconidae), का बहुत परिचित पक्षी है, जिसकी कई जातियाँ संसार के प्राय: सभी देशों में फैली हुई हैं। इनमें काली चील (Black kite), ब्रह्मनी या खैरी चील (Brahminy kite), ऑल बिल्ड चील (Awl billed kite), ह्विसलिंग चील (Whistling kite) आदि मुख्य हैं। चील लगभग दो फुट लंबी चिड़िया है, जिसकी दुम लंबी ओर दोफंकी रहती है। इसका सारा बदन कलछौंह भूरा होता है, जिसपर गहरे रंग के सेहरे से पड़े रहते हैं। चोंच काली और टाँगें पीली होती हैं। बाज, बहरी आदि शिकारी चिड़ियों से इसके डैने बड़े, टाँगें छोटी और चोंच तथा पंजे कमजोर होते हैं। चील उड़ने में बड़ी दक्ष होती है। बाजार में खाने की चीजों पर बिना किसी से टकराए हुए, यह ऐसी सफाई से झपट्टा मारती है कि देखकर ताज्जुब होता है। यह सर्वभक्षी तथा मुर्दाखोर चिड़िया है, जिससे कोई भी खाने की वस्तु नहीं बचने पाती। ढीठ तो यह इतनी होती है कि कभी कभी बस्ती के बीच के किसी पेड़ पर ही अपना भद्दा सा घोंसला बना लेती है। मादा दो तीन सफेद या राखी के रंग के अंडे देती है, जिनपर कत्थई चित्तियाँ पड़ी रहती हैं। .

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टिटहरी

टिटहरी (अंग्रेज़ी:Sandpiper, संस्कृत: टिट्टिभ) मध्यम आकार के जलचर पक्षी होते हैं, जिनका सिर गोल, गर्दन व चोंच छोटी और पैर लंबे होते हैं। यह प्राय: जलाशयों के समीप रहती है। इसे कुररी भी कहते हैं। नर अपनी मादा को हवाई करतबों से रिझाता है, जिनमें उड़ान के बीच में द्रुत चढ़ाव, पलटे और चक्कर होते है। यह तेज़ चक्करों, हिचकोलों और लुढ़कन भरी उड़ान है, जिसमें कुछ अंतराल पर पंख फड़फड़ाने की ऊंची ध्वनि दूर तक सुनाई देती है। ये धरती पर मामूली सा खोदकर अथवा थोड़े से कंकरों और बालू से घिरे गढ्डे में घोंसला बनाते हैं। इनका प्रजनन बरसात के समय मार्च से अगस्त के दौरान होता है। ये सामान्यत: दो से पांच नाशपाती के आकार के (पृष्ठभूमि से बिल्कुल मिलते-जुलते, पत्थर के रंग के हल्के पीले पर स्लेटी-भूरे, गहरे भूरे या बैंगनी धब्बों वाले) अंडे देती हैं। .

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टॅमिन्क ट्रॅगोपॅन

टॅमिन्क ट्रॅगोपॅन (Temminck's tragopan) (Tragopan temminckii) फ़ीज़ॅन्ट कुल के ट्रॅगोपॅन प्रजाति का पक्षी है। .

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एडीज

एडीज मच्छर एडीज, मच्छरो का एक वंश हैं। सभी मच्छरों की तरह ही इसके जीवन चक्र की चार अवस्थाएं हैं: अण्डा, लारवा, प्यूपा एंव व्यस्क.

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एमू

एमू एमू' (Emu) एक विशालकाय पक्षी है। यह आस्ट्रेलिया का राष्ट्रीय पक्षी है। यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा पक्षी है। .

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ऐम्नीओट

उल्बीय प्राणी या ऐम्नीओट (Amniotes) ऐसे कशेरुकी (रीढ़-वाले) चौपाये प्राणियों का क्लेड (समूह) है जो या तो अपने अंडे धरती पर देते हैं या जन्म तक अपने शिशु का आरम्भिक पोषण मादा के गर्भ के अंदर ही करते हैं। सरीसृप (रेप्टाइल), स्तनधारी (मैमल) और पक्षी तीनों ऐम्नीओटों की श्रेणी में आते हैं। इसके विपरीत उभयचर (ऐम्फ़िबियन) और मछलियाँ ग़ैर-ऐम्नीओट या अनैम्निओट (anamniotes) होते हैं जो अधिकतर अपने अंडे जल में देते हैं। ऐम्नीओट चौपाये होते हैं (चार-पाँव और रीढ़ वाले प्राणियों के वंशज) और इनके अंडों में उल्ब (amniotic fluid, द्रव) भरा होता है - चाहे वे किसी छिलके में मादा से बाहर हो या फिर मादा के गर्भ के भीतर पनप रहें हो। इस उल्ब के कारण ऐम्नीओटों को बच्चे जनने के लिये किसी भी समुद्री या अन्य जलीय स्थान जाने की कोई आवश्यकता नहीं। इसके विपरीत ग़ैर-ऐम्नीओटों को अपने अंडे किसी जल-युक्त स्थान पर या सीधा समुद्र में ही देने की ज़रूरत होती है। यह अंतर क्रम-विकास (इवोल्यूशन) में एक बड़ा पड़ाव था जिस कारण से चौपाये समुद्र से निकलकर पृथ्वी के ज़मीनी क्षेत्रों पर फैल पाये। .

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ऐकीपिट्रीडाए

ऐकीपिट्रीडाए (Accipitridae) पक्षियों के ऐकीपिट्रीफ़ोर्मीस गण के चार कुलों में से एक है। इसमें छोटे से बड़े आकार की अंकुशाकार चोंच रखने वाली कई जातियाँ हैं। महाश्येन (ईगल), चील, बाज़ और पूर्वजगत गिद्ध इस कुल के सदस्य हैं। .

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ऐकीपिट्रीफ़ोर्मीस

ऐकीपिट्रीफ़ोर्मीस (Accipitriformes) पक्षियों का एक गण है जिसमें अधिकांश दिवाचर शिकारी पक्षी शामिल हैं, जैसे कि बाज़, महाश्येन (ईगल), चील और गिद्ध। कुल मिलाकर इसमें लगभग २२५ जातियाँ सम्मिलित हैं। .

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झाड़मुर्गी

झाड़मुर्गी (scrubfowl) मेगापोडिअस‎ जीववैज्ञानिक वंश के पक्षियों को कहते हैं। यह मुर्गी-जैसे मोटे, मध्यमाकार के मेगापोडिडाए जीववैज्ञानिक कुल के पक्षी होते हैं। इनका विस्तार दक्षिणपूर्व एशिया से ऑस्ट्रेलिया और पश्चिम प्रशांत महासागर के द्वीपों तक है। झाड़मुर्गियाँ अपने अण्डों पर बैठकर उन्हें गरम रखने की बजाए सड़ते हुए पत्तों व अन्य वनस्पतियों की ढेरी बना लेते हैं जिनमें गरमी पैदा होती है और अण्डों को गरम रखती है। झाड़मुर्गी नर समय-समय पर ढेरी का निरीक्षण करता है और तापमान नियंत्रित रखने के लिये उसमें सामग्री डालता-हटाता है। .

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झुंड व्यवहार

झुंड व्यवहार (swarm behaviour) एक जैसे आकार के जीवों, विषेशकर प्राणियों, के ऐसे सामूहिक व्यवहार को कहते हैं जहाँ वे एकत्रित होकर एक ही स्थान पर व्य्वस्थित रूप से हिलें या किसी व्यवस्थित रूप से तालमेल बनाकर एक स्थान से दूसरे स्थान जाएँ। यह व्यवहार कीटों, पक्षियों व मछलियों में बहुत देखा जाता है, जो घने झुंड बनाकर एक साथ चलते हैं। इनके अलावा हिरणों, गायों व अन्य बड़े प्राणियों में भी झुंड व्यवहार देखा जा सकता है। .

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डोडो

डोडो (रैफस कुकुलैटस) हिंद महासागर के द्वीप मॉरीशस का एक स्थानीय पक्षी था। यह पक्षी वर्ग में होते हुए भी थलचर था, क्योंकि इसमे उड़ने की क्षमता नहीं थी। १७वीं सदी के अंत तक यह पक्षी मानव द्वारा अत्याधिक शिकार किये जाने के कारण विलुप्त हो गया। यह पक्षी कबूतर और फाख्ता के परिवार से संबंधित था। यह मुर्गे के आकार का लगभग एक मीटर उँचा और २० किलोग्राम वजन का होता था। इसके कई दुम होती थीं। यह अपना घोंसला ज़मीन पर बनाता था, तथा इसकी खुराक में स्थानीय फल शामिल थे। डोडो मुर्गी से बड़े आकार का भारी-भरकम, गोलमटोल पक्षी था। इसकी टांगें छोटी व कमजोर थीं, जो उसका वजन संभाल नहीं पाती थीं। इसके पंख भी बहुत ही छोटे थे, जो डोडो के उड़ने के लिए पर्याप्त नहीं थे। इस कारण यह न तेज दौड़ सकता था, न उड़ सकता था। रंग-बिरंगे डोडो झुंड में लुढ़कते-गिरते चलते थे, तो स्थानीय लोगों का मनोरंजन होता था। डोडो शब्द की उत्पत्ति पुर्तगाली शब्द दोउदो से हुई है, जिसका अर्थ मूर्ख या बावला होता है। कहा जाता है कि उन्होंने डोडो पक्षी को मुगल दरबार में भी पेश किया था, जहाँ के दरबारी चित्रकार ने इस विचित्र और बेढंगे पक्षी का चित्र भी बनाया था। कुछ प्राणिशास्त्रियों के अनुसार पहले अतीत में उड़ानक्षम डोडो, परिस्थितिजन्य कारणों से धीरे-धीरे उड़ने की क्षमता खो बैठे। अब डोडो मॉरीशस के राष्ट्रीय चिह्न में दिखता है। इसके अलावा डोडो की विलुप्ति को मानव गतिविधियों के कारण हुई न बदलने वाली घटनाओं के एक उदाहरण के तौर पर देखा जाता है। मानवों के मॉरीशस द्वीप पर आने से पूर्व डोडो का कोई भी प्राकृतिक शिकारी इस द्वीप पर नहीं था। यही कारण है कि यह पक्षी उड़ान भरने मे सक्षम नहीं था। इसका व्यवहार मानवों के प्रति पूरी तरह से निर्भीक था और अपनी न उड़ पाने की क्षमता के कारण यह आसानी से शिकार बन गया। .

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तिब्बती तीतर

तिब्बती तीतर (तिब्बती:सकफा) (Tibetan Partridge) (Perdix hodgsoniae) फ़ीज़ैन्ट कुल का एक पक्षी है जो व्यापक रूप से तिब्बती पठार में पाया जाता है। इस पक्षी का आवासीय क्षेत्र बहुत विशाल है और इसी वजह से इसे संकट से बाहर की जाति माना गया है। इस पक्षी का मूल निवास चीन, भारत, भूटान और नेपाल है। .

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तिब्बती रामचकोर

तिब्बती रामचकोर (Tibetan Snowcock) (Tetraogallus tibetanus) फ़ीज़ैन्ट कुल का एक पक्षी है जो पश्चिमी हिमालय तथा तिब्बती पठार के ऊँचाई वाले इलाकों में रहता है और हिमालय के कुछ इलाकों में यह हिमालय के रामचकोर के साथ इलाका बांटता है। .

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तोता

तोता तोता या शुक एक पक्षी है जिसका वैज्ञानिक नाम 'सिटाक्यूला केमरी' है। यह कई प्रकार के रंग में मिलता है। .

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तीतर जैसी पूंछ वाला जल-कपोत

भरतपुर, राजस्थान, भारत में गैर प्रजनन पंख. तीतर जैसी पूंछ वाला जल-कपोत (हाइड्रोफेसियानस चिरुरगस) एक प्रतिरुपी प्रजाति हाइड्रोफेसियानस में आनेवाला एक जल-कपोत है। जल-कपोत, जकानिडे परिवार के लम्बे पैरों वाले पक्षी (वेडर) हैं, जिन्हें इनके बड़े पंजों द्वारा पहचाना जाता है जो इन्हें अपने पसंदीदा प्राकृतिक वास, छिछली झीलों में तैरती हुई वनस्पतियों पर चलने में समर्थ बनाते हैं। तीतर जैसी पूंछ वाला जल-कपोत तैर भी सकता है, हालांकि सामान्यतया यह वनस्पतियों पर चलना ही पसंद करता है। इस प्रजाति की मादाएं, नर की अपेक्षा अधिक रंगबिरंगी होती हैं और बहुनरगामी होती हैं। जल-कपोत एक Linnæus' की ब्राजीलियाई पुर्तगाली जकाना (इस पक्षी के टूपी नाम से लिया गया) के लिए मिथ्या लैटिन गलत वर्तनी है जिसका उच्चारण लगभग जैसा होता है। .

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दर्जिन चिड़िया

दर्जिन चिड़िया, ओर्थोटोमस वंश और सिल्वाइडी (Sylviidae) कुल से संबंधित छोटे आकार के पक्षी (फुदकी) हैं। इनकी कुल नौ प्रजातियां अस्तित्व में हैं। दर्जिन चिड़िया को उसका यह नाम उसकी घोंसला बुनने की खास कला के कारण मिला है। यह चिड़िया अपनी लंबी पतली चोंच से एक पत्ती या कई पत्तियों में छेदों की एक श्रृंखला बनाता है और फिर इन छेद के बीच से पौधों के रेशों, कीटों के रेशम और कभी कभी घरेलू इस्तेमाल के धागों को पिरो कर एक दर्जी की तरह पत्तियों की सिलाई कर इन्हें आपस में जोड़ देते हैं। इन सिली हुई पत्तियों के बीच बनी जगह में फिर घास-पात या रूई इत्यादि बिछाकर एक सुविधाजनक घोंसला तैयार किया जाता है। दर्जिन चिड़ियायें, पुराने विश्व (यूरोप, एशिया और अफ्रीका) और मुख्य रूप से एशिया के उष्णकटिबंधीय भागों में पाई जाती हैं। यह फुदकियां आमतौर पर गहरे रंगों में पाई जाती हैं जिनका ऊपरी हिस्सा हरा या धूसर और निचला हिस्सा पीला या सफेद रंग का होता है। अक्सर इनके सिर का रंग भूरा-लाल होता है। दर्जिन चिड़िया के पंख छोटे और गोलाकार, पूंछ छोटी, पैर मजबूत और चोंच लंबी और घुमावदार होती है। यह फुदकियां अपनी पूंछ को आमतौर पर ऊपर की ओर सतर रखती हैं। यह आमतौर पर खुले जंगलों, मैदानों और उद्यानों में पाई जाती हैं। .

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दाँत

दाँत (tooth) मुख की श्लेष्मिक कला के रूपांतरित अंकुर या उभार हैं, जो चूने के लवण से संसिक्त होते हैं। दाँत का काम है पकड़ना, काटना, फाड़ना और चबाना। कुछ जानवरों में ये कुतरने (चूहे), खोदने (शूकर), सँवारने (लीमर) और लड़ने (कुत्ते) के काम में भी आते हैं। दांत, आहार को काट-पीसकर गले से उतरने योग्य बनाते हैं। दाँत की दो पंक्तियाँ होती हैं,.

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दूधराज

दूधराज या सुल्ताना बुलबुल, जिसे अंग्रेज़ी में एशियाई दिव्यलोकी कीटमार (Asian Paradise Flycatcher) कहते हैं, पासरीफ़ोर्मीज़ जीववैज्ञानिक गण का मध्य आकार का एक पक्षी है। नरों की दुम पर लम्बे पंख होते हैं जो उत्तर भारत में अक्सर सफ़ेद रंग के, लेकिन अन्य जगहों पर आमतौर से काले या लाल-भूरे होते हैं। यह घनी टहनियों वाले पेड़ों के नीचे कीट पकड़कर खाते हैं।, Eugene William Oates, William Thomas Blanford, pp.

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धनेश

धनेश एक पक्षी प्रजाति है जिनकी चोंच लंबी और नीचे की ओर घूमी होती है और अमूमन ऊपर वाली चोंच के ऊपर लंबा उभार होता है जिसकी वजह से इसका अंग्रेज़ी नाम Hornbill (Horn.

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धारीदार पूँछ वाला तीतर

धारीदार पूँछ वाला तीतर (Mrs. Hume's pheasant) या (Hume's pheasant) या (bar-tailed pheasant) (Syrmaticus humiae) भारत के पूर्वोत्तर हिमालय तथा चीन, म्यानमार तथा थाइलैंड में पाया जाता है। .

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नासिका

नासिका (nostril) या नास कुछ प्राणियों की नाक के अंत में शरीर से बाहर खुलने वाली दो नलियों में से एक को कहते हैं। पक्षियों और स्तनधारियों में नासिकाओं में उन्हें ढांचा प्रदान करने वाली हड्डियाँ या उपास्थियाँ होती हैं, और नासिकाएँ अंदर लिए जाने वाले श्वास को गरम करती हैं और बाहर जाने वाले श्वास से नमी हटाकर उसका जल शरीर से खोए जाने से रोकती हैं। मछलियाँ अपने नाक से श्वास नहीं लेतीं, हालांकि उनमें भी दो छोटे छिद्र होते हैं जिनका प्रयोग सूंघने के लिए किया जाता है। .

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नियततापी प्राणी

उष्मीय तस्वीर: एक शीतरक्ती सांप एक गर्मरक्ती चूहे को खा रहा है नियततापी या गर्मरक्ती (warm-blooded) प्राणियों की ऐसे जातियों को कहा जाता है जिनके रक्त का तापमान अन्य शीतरक्ती जानवरों की तुलना में अधिक होता है और जो अपनी अंदरूनी चयापचय प्रक्रियाओं के द्वारा अपनी ऊष्मीय समस्थिति बहाल रखते हैं। प्राणी-जगत में यह लक्षण पक्षियों और स्तनधारियों (मैमलों) के हैं। गर्मरक्ती जानवर सर्द परिस्थितियों में भी अपना अंदरूनी तापमान ऊँचा रख पाते हैं और वे अक्सर ऐसा ठिठुर कर करते हैं, जबकि शीतरक्ती जानवरों का तापमान वही हो जाता है जो उनके इर्द-गिर्द के वातावरण का है।, pp.

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निकोबार मॅगापोड

निकोबार मॅगापोड या निकोबारी जंगली मुर्ग (Nicobar Megapode या Nicobar Scrubfowl) (Megapodius nicobariensis) भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के निकोबार के द्वीपों में पाया जाता है। इसकी २ उपजातियाँ निकोबार के १४ द्वीपों में पाई जाती हैं जो इस प्रकार हैं:-.

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नीलकंठ पक्षी

left left left नीलकंठ (कोरेशियस बेन्गालेन्सिस), जिसे इंडियन रोलर बर्ड या ब्लू जे कहते थे, एक भारतीय पक्षी है। यह उष्णकटिबन्धीय दक्षिणी एशिया में ईराक से थाइलैंड तक पाया जाता है। .

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पतेना

पतेना (Bee-eater) पक्षियों के कोरैसीफ़ोर्मीस जीववैज्ञानिक गण का एक कुल है, जिसे जीववैज्ञानिक रूप से मेरोपिडाए (Meropidae) कहा जाता है। इस कुल में तीन वंश सम्मिलित हैं जिनमें मिलाकर २७ ज्ञात जातियाँ हैं। यह अपने रंग-बिरंगे पतले शरीरों और लम्बी दुमों से पहचानी जाती हैं। इस कुल की अधिकांश जातियाँ अफ़्रीका और एशिया में पाई जाती हैं, लेकिन कुछ दक्षिणी यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और नया गिनी में भी रहती हैं। .

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पपीहा

पपीहा एक पक्षी है जो दक्षिण एशिया में बहुतायत में पाया जाता है। यह दिखने में शिकरा की तरह होता है। इसके उड़ने और बैठने का तरीका भी बिल्कुल शिकरा जैसा होता है। इसीलिए अंग्रेज़ी में इसको Common Hawk-Cuckoo कहते हैं। यह अपना घोंसला नहीं बनाता है और दूसरे चिड़ियों के घोंसलों में अपने अण्डे देता है। प्रजनन काल में नर तीन स्वर की आवाज़ दोहराता रहता है जिसमें दूसरा स्वर सबसे लंबा और ज़्यादा तीव्र होता है। यह स्वर धीरे-धीरे तेज होते जाते हैं और एकदम बन्द हो जाते हैं और काफ़ी देर तक चलता रहता है; पूरे दिन, शाम को देर तक और सवेरे पौं फटने तक। .

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पर्वतीय बटेर

पर्वतीय बटेर फ़ीज़ैन्ट कुल का एक पक्षी है जो केवल उत्तराखण्ड में देखा गया है और वह भी आख़िरी बार सन् १८७६ में। सन् १८७७ से पूर्व मसूरी और नैनीताल के नज़दीक से क़रीब एक दर्ज़न नमूने इकट्ठा किए गए। उन्नीसवीं सदी के मध्य में किए गए शोध से यह नतीजा निकला कि एक समय यह काफ़ी संख्या में रहा होगा, लेकिन उन्नीसवीं सदी के अंत तक यह यक़ीनन दुर्लभ हो चला था, जो यह दर्शाता है कि इसकी संख्या में काफ़ी गिरावट आई। उस समय से अब तक इसको नहीं देखा गया जिससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह जाति अब शायद विलुप्त हो गई है। सन् १९८४ में सुआखोली के पास और पुन: सन् २००३ में नैनीताल के पास यह शायद फिर एक बार दिखा। सन् २०१० में ख़बर मिली कि एक शिकारी ने एक मादा देखी है। यह उम्मीद लगाई जा रही है कि इस पक्षी की शायद एक छोटी संख्या मध्य और निचली हिमालय श्रंखला में अब भी जीवित बची है क्योंकि इस तक पहुँच पाना या इसको देख पाना बहुत ही मुश्किल है। इस पक्षी की संख्या ५० से भी कम आंकी गई है। .

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पर्वतीय बांस का तीतर

पर्वतीय बांस का तीतर Mountain Bamboo Partridge (Bambusicola fytchii) तीतर के कुल का एक पक्षी है। .

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पशु बीमा

परवरिश पशुओ और बेचने के लिए पोल्ट्री अप्रत्याशित और जोखिम भरा हो सकता है। यही कारण है कि एक ठोस और पशुधन या मुर्गी बीमा पॅलिसी एक आवश्यकता है वह है। यह बीमा उन अप्रत्याशित घटनाओं और दुर्घटनाओं कि अपने जानवरों और अपनी आजीविका तबाह कर सकते हैं से अपने निवेश की सुरक्षा करता है। फ़ार्म पशु बीमा अपने विशेष पशु समूह को कवर के लिए अनुकूलित किया जा सकता है, तो पशु, सूअर, भेड, एमु, बकरी, मुर्गी या अपने खेत पर इनमें से किसी भी संयोजन है या नहीं। भारतीय कृषि उद्योग, एक और हरित क्रांति कि इसे और अधिक आकर्षक और लाभदायक बनाता के कगार पर भारत में कुल कृषि उत्पादन के रूप में अगले दस साल में दोगुना होने की संभावना है और वह भी एक जैविक तरीके से| पशु बीमा पॉलिसी अपने मवेशियों है, जो एक ग्रामीण समुदाय की सबसे मूल्यवान संपत्ति है कि मृत्यु के कारण वित्तीय नुकसान से भारतीय ग्रामीन लोगों की सुरक्षा के लिए प्रदान की जाती है। नीति होने गाय, बैल या तो सेक्स एक पशु चिकित्सक/ सर्जन द्वारा ध्वनि और उत्तम स्वास्थ्य और चोट या रोग से मुक्त होने के रूप में प्रमाणित की भैंस और जो माइक्रो फ़ाइनेंस संस्थानों, गैर सरकारी संगठनों के सदस्य कर रहे हैं व्यक्तियों को शामिल किया, सरकार प्रायोजित संगठनों और इस तरह के संबंध समूहों/ ग्रामीण और सामाजिक क्षेत्र में संस्थानों| पशु बीमा .

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पासरीफ़ोर्मीज़

पासरीफ़ोर्मीज़ (Passeriformes) पक्षियों का एक जीववैज्ञानिक गण है जिसमें सभी ज्ञात पक्षी जातियों की लगभग ५०% जातियाँ शामिल हैं। इन पक्षियों की विशेषता यह है कि इनके पाँव के तीन पंजे आगे की ओर और एक पंजा पीछे की ओर सज्जित होता है। इस से वे किसी टहनी या अन्य पतली वस्तु को आसानी से जकड़कर उसपर संतुलित प्रकार से देर तक बैठने में सक्षम हैं। यह कशेरुक (रीढ़दार) प्राणियों के सबसे विविध जीववैज्ञानिक गणों में से एक है। पासरीफ़ोर्मीज़ की ५,००० से भी अधिक जातियाँ हैं और चौपाये प्राणियों में केवल सरिसृपों के स्क्वमाटा गण में ही इस से अधिक जातियाँ पाई जाती हैं। .

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पिद्दी

पिद्दी (wren) एक छोटी और अक्सर भूरे-ख़ाकी रंग की चिड़िया होती है। यह लगभग २० जीववैज्ञानिक वंशों में विभाजित है और इसकी कुल लगभग ४० ज्ञात भिन्न जातियाँ हैं। पूर्वजगत में केवल इसकी एक ही जाति रहती है, जिसे यूरेशियाई पिद्दी (Eurasian wren, वैज्ञानिक नाम: Troglodytes troglodytes) कहते हैं। अन्य सभी जातियाँ नवजगत में ही मिलती हैं। .

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पियोरा

पियोरा (Hill Partridge) (Arborophila torqueola) तीतर कुल का एक पक्षी है जो पूर्वोत्तर भारत से लेकर लगभग समूचे दक्षिण पूर्व एशिया में काफ़ी संख्या में पाया जाता है। .

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पंख

तरह-तरह के पंख पर या पंख (Feather) कुछ प्राणियों, विशेषकर पक्षियों के शरीर को ढकने वाले अंग होते हैं। पक्षियों के शरीरों पर मिलने वाले पंख आज से करोड़ों वर्ष पूर्व पृथ्वी के प्राकृतिक इतिहास में कुछ डायनासोरों के शरीरों पर भी हुआ करते थे।, Kathleen Weidner Zoehfeld, HarperCollins, 2003, ISBN 978-0-06-445218-2,...

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पक्षियों का वर्गीकरण

इसके अंतर्गत अनुडुयी, किंतु दौड़ने में सहायता करनेवाले, क्षीण डैने और उरफलक, लंबी टांगें और घुँघराले परवाले पक्षी आते हैं। इस अधिवर्ग के सदस्यों में हनुसंधिका (quadrate) करोटि (skull) के साथ केवल एक ही शीर्ष द्वारा जुड़ती हैं, अंसफलक (scapula) और अंसतुंड (coracoid) छोटे और एकरूप होते हैं एवं अंसतुंड अंसफलकीय कोण (coraco scapular angle) एक समकोण से अधिक होता है। जत्रुक (clavicle) और पुच्छफाल (pygostyle) अनुपस्थित होते हैं। पिच्छिकाओं (barbules) में अंतग्र्रंथित रचना नहीं होती। नर में शिश्न विद्यमान रहता है और बच्चे अकाल प्रौढ़ होनेवाले (precocious) होते हैं। यह अधिगण निम्नलिखित सात गणों (orders) में बँटा है.

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पक्षीपालन

पक्षीपालन (Aviculture) पक्षियों को पालने, उनकी देख-रेख व प्रजनन द्वारा उनकी संख्या बढ़ाने को कहते हैं। इसमें पक्षियों के प्राकृतिक पर्यावास की सुरक्षा करने और पक्षी संरक्षण के लिए लोक-चेतना जगाने के अभियान भी शामिल हैं। .

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पक्षीविज्ञान

पक्षी की आकृति का विधिवत मापन बहुत महत्व रखता है। पक्षीविज्ञान (Ornithology) जीवविज्ञान की एक शाखा है। इसके अंतर्गत पक्षियों की बाह्य और अंतररचना का वर्णन, उनका वर्गीकरण, विस्तार एवं विकास, उनकी दिनचर्या और मानव के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आर्थिक उपयोगिता इत्यादि से संबंधित विषय आते हैं। पक्षियों की दिनचर्या के अंतर्गत उनके आहार-विहार, प्रव्रजन, या एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में स्थानांतरण, अनुरंजन (courtship), नीड़ निर्माण, मैथुन, प्रजनन, संतान का लालन पालन इत्यादि का वर्णन आता है। आधुनिक फोटोग्राफी द्वारा पक्षियों की दिनचर्याओं के अध्ययन में बड़ी सहायता मिली है। पक्षियों की बोली के फोनोग्राफ रेकार्ड भी अब तैयार कर लिए गए हैं। .

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पुष्प

flower bouquet) पर चित्रकारी रेशम पर स्याही और रंग, १२ वीं शताब्दी की अंत-अंत में और १३ वीं शताब्दी के प्रारम्भ में. पुष्प, अथवा फूल, जनन संरचना है जो पौधों में पाए जाते हैं। ये (मेग्नोलियोफाईटा प्रकार के पौधों में पाए जाते हैं, जिसे एग्नियो शुक्राणु भी कहा जाता है। एक फूल की जैविक क्रिया यह है कि वह पुरूष शुक्राणु और मादा बीजाणु के संघ के लिए मध्यस्तता करे। प्रक्रिया परागन से शुरू होती है, जिसका अनुसरण गर्भधारण से होता है, जो की बीज के निर्माण और विखराव/ विसर्जन में ख़त्म होता है। बड़े पौधों के लिए, बीज अगली पुश्त के मूल रूप में सेवा करते हैं, जिनसे एक प्रकार की विशेष प्रजाति दुसरे भूभागों में विसर्जित होती हैं। एक पौधे पर फूलों के जमाव को पुष्पण (inflorescence) कहा जाता है। फूल-पौधों के प्रजनन अवयव के साथ-साथ, फूलों को इंसानों/मनुष्यों ने सराहा है और इस्तेमाल भी किया है, खासकर अपने माहोल को सजाने के लिए और खाद्य के स्रोत के रूप में भी। .

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प्राणी

प्राणी या जंतु या जानवर 'ऐनिमेलिया' (Animalia) या मेटाज़ोआ (Metazoa) जगत के बहुकोशिकीय और सुकेंद्रिक जीवों का एक मुख्य समूह है। पैदा होने के बाद जैसे-जैसे कोई प्राणी बड़ा होता है उसकी शारीरिक योजना निर्धारित रूप से विकसित होती जाती है, हालांकि कुछ प्राणी जीवन में आगे जाकर कायान्तरण (metamorphosis) की प्रकिया से गुज़रते हैं। अधिकांश जंतु गतिशील होते हैं, अर्थात अपने आप और स्वतंत्र रूप से गति कर सकते हैं। ज्यादातर जंतु परपोषी भी होते हैं, अर्थात वे जीने के लिए दूसरे जंतु पर निर्भर रहते हैं। अधिकतम ज्ञात जंतु संघ 542 करोड़ साल पहले कैम्ब्रियन विस्फोट के दौरान जीवाश्म रिकॉर्ड में समुद्री प्रजातियों के रूप में प्रकट हुए। .

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प्राणी उड़ान और पाल-उड़ान

पृथ्वी पर बहुत से प्राणियों में उड़ान और पाल-उड़ान की क्षमता है जिससे वे धरातल या समुद्रतल से उठकर वायु में यातायात कर सकते हैं। कुछ में पंख मारकर ऊर्जा के व्यय से उड़ान की क्षमता होती है जबकि अन्यों में पाल-उड़ान (ग्लाइडिंग) द्वारा स्थान-से-स्थान बिना अधिक ऊर्जा ख़र्च करे जाने की क्षमता होती है। पृथ्वी पर क्रम-विकास से चार बिलकुल अलग ज्ञात अवसरों पर उड़ने की क्षमता विकसित हुई है: कीटों में, पक्षियों में, चमगादड़ों में और टेरोसोरों में। पाल-उड़ान की क्षमता इस से कई अधिक बार स्वतंत्र रूप से प्राणियों में विकसित हुई है और अक्सर प्राणियों को एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष तक जाने में सहायक रही है। यह विशेष रूप से बोर्नियो जैसे स्थानों में देखा गया है जहाँ के वनों में पेड़ों के बीच अधिक दूरी होती है। .

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प्रजनन ऋतु

प्रजनन ऋतु। प्रजनन ऋतु या प्रजनन काल कुछ वन्य जीवों (पशु एवं पक्षी) के लिए साल का वह समय होता है जिसके अंतर्गत प्रजनन के लिए सबसे अनुकूल हालात, जैसे भोजन एवं पानी की प्रचुरता, उत्पन्न होते हों। प्रजनन ऋतु वाली जीव जगत की कई जातियाँ प्राकृतिक रूप से साल के एक निश्चित समय पर समागम करने के लिए विकसित हुयी हैं जिससे उनको प्रजनन करने में सबसे अधिक सफलता मिले। वन्य जीवों की अलग-अलग प्रजातियों के प्रजनन ऋतुएँ भी उनकी अपनी आवासीय क्षेत्र की ज़रूरतों के मुताबिक तथा भोजन की उपलब्धी के अनुसार पृथक्-पृथक् होती हैं। प्रजनन की शुरुआत और उसकी सफलता में अजैविक घटक जैसे वर्षा और हवायें भी अहम भूमिका अदा करते हैं। कुछ जीवों की कोई प्रजनन ऋतु नहीं होती है और उनकी मादाएँ साल के किसी भी समय गर्भ धारण कर सकती हैं — उदाहरण के लिए मनुष्य। .

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पृथ्वीराज चौहान

पृथ्वीराज चौहान (भारतेश्वरः पृथ्वीराजः, Prithviraj Chavhan) (सन् 1178-1192) चौहान वंश के हिंदू क्षत्रिय राजा थे, जो उत्तर भारत में १२ वीं सदी के उत्तरार्ध में अजमेर (अजयमेरु) और दिल्ली पर राज्य करते थे। वे भारतेश्वर, पृथ्वीराजतृतीय, हिन्दूसम्राट्, सपादलक्षेश्वर, राय पिथौरा इत्यादि नाम से प्रसिद्ध हैं। भारत के अन्तिम हिन्दूराजा के रूप में प्रसिद्ध पृथ्वीराज १२३५ विक्रम संवत्सर में पंद्रह वर्ष (१५) की आयु में राज्य सिंहासन पर आरूढ हुए। पृथ्वीराज की तेरह रानीयाँ थी। उन में से संयोगिता प्रसिद्धतम मानी जाती है। पृथ्वीराज ने दिग्विजय अभियान में ११७७ वर्ष में भादानक देशीय को, ११८२ वर्ष में जेजाकभुक्ति शासक को और ११८३ वर्ष में चालुक्य वंशीय शासक को पराजित किया। इन्हीं वर्षों में भारत के उत्तरभाग में घोरी (ग़ोरी) नामक गौमांस भक्षण करने वाला योद्धा अपने शासन और धर्म के विस्तार की कामना से अनेक जनपदों को छल से या बल से पराजित कर रहा था। उसकी शासन विस्तार की और धर्म विस्तार की नीत के फलस्वरूप ११७५ वर्ष से पृथ्वीराज का घोरी के साथ सङ्घर्ष आरंभ हुआ। उसके पश्चात् अनेक लघु और मध्यम युद्ध पृथ्वीराज के और घोरी के मध्य हुए।विभिन्न ग्रन्थों में जो युद्ध सङ्ख्याएं मिलती है, वे सङ्ख्या ७, १७, २१ और २८ हैं। सभी युद्धों में पृथ्वीराज ने घोरी को बन्दी बनाया और उसको छोड़ दिया। परन्तु अन्तिम बार नरायन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज की पराजय के पश्चात् घोरी ने पृथ्वीराज को बन्दी बनाया और कुछ दिनों तक 'इस्लाम्'-धर्म का अङ्गीकार करवाने का प्रयास करता रहा। उस प्रयोस में पृथ्वीराज को शारीरक पीडाएँ दी गई। शरीरिक यातना देने के समय घोरी ने पृथ्वीराज को अन्धा कर दिया। अन्ध पृथ्वीराज ने शब्दवेध बाण से घोरी की हत्या करके अपनी पराजय का प्रतिशोध लेना चाहा। परन्तु देशद्रोह के कारण उनकी वो योजना भी विफल हो गई। एवं जब पृथ्वीराज के निश्चय को परिवर्तित करने में घोरी अक्षम हुआ, तब उसने अन्ध पृथ्वीराज की हत्या कर दी। अर्थात्, धर्म ही ऐसा मित्र है, जो मरणोत्तर भी साथ चलता है। अन्य सभी वस्तुएं शरीर के साथ ही नष्ट हो जाती हैं। इतिहासविद् डॉ.

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पूँछ

पूँछ एक जानवर के शरीर के पृष्ठ भाग का उप-भाग होती है। साधारणत: इसका अर्थ होता है धड़ के पीछे एक लचीला उपांग। यह शरीर का वह अंग होता है जो कि स्तनपायी, सरीसृप तथा पक्षियों में लगभग कूल्हे से निकलता है। हालाँकि पूँछ रज्जुकी में पायी जाती है, लेकिन कुछ अरज्जुकी प्राणी जैसे कि बिच्छू, घोंघा इत्यादि की भी पूँछ-समान उपांग होते हैं जिनको पूँछ कहा जाता है। श्रेणी:प्राणी विज्ञान.

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पेंटेड फ़्रैंकोलिन

पेंटेड फ़्रैंकोलिन (मराठी:काला तीतर) (Painted Francolin) (Francolinus pictus) फ़्रैंकोलिन जाति का एक पक्षी है जो मध्य और दक्षिणी भारत के घास के इलाकों में और दक्षिण-पूर्व श्रीलंका के निचले इलाकों में पाया जाता है।The Painted Partridge may be said to take the place of the Black in Central and part of Southern India.

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पेंगुइन

पेंगुइन (पीढ़ी स्फेनिस्कीफोर्मेस, प्रजाति स्फेनिस्कीडाई) जलीय समूह के उड़ने में असमर्थ पक्षी हैं जो केवल दक्षिणी गोलार्द्ध, विशेष रूप से अंटार्कटिक में पाए जाते हैं। पानी में जीवन के लिए अत्याधिक अनुकूलित, पेंगुइन विपरीत रंगों, काले और सफ़ेद रंग के बालों वाला पक्षी है और उनके पंख हाथ (फ्लिपर) बन गये हैं। पानी के नीचे तैराकी करते हुए अधिकांश पेंगुइन पकड़ी गयी छोटी मछलियों, मछलियों, स्क्विड और अन्य जलीय जंतुओं को भोजन बनाते हैं। वे अपना लगभग आधा जीवन धरती पर और आधा जीवन महासागरों में बिताते हैं। हालांकि सभी पेंगुइन प्रजातियां दक्षिणी गोलार्द्ध की मूल निवासी हैं, लेकिन ये केवल अंटार्कटिक जैसे ठंडे मौसम में ही नहीं पाई जातीं. वास्तव में, पेंगुइन की कुछ प्रजातियों में अब केवल कुछ ही दक्षिण में रहती हैं। कई प्रजातियां शीतोष्ण क्षेत्र में पाई जाती हैं और एक प्रजाति गैलापागोस पेंगुइन भूमध्य रेखा के पास रहती है। सबसे बड़ी जीवित प्रजाति एम्परर पेंगुइन (एप्टेनोडाईट्स फ़ोर्सटेरी): है - वयस्क की उंचाई औसतन 1.1 मी (3 फुट 7 इंच) लंबा और वजन 35 किलोग्राम (75 पौंड) होता है। सबसे छोटी प्रजाति लिटिल ब्लू पेंगुइन (यूडिपटुला माइनर), फेयरी पेंगुइन के नाम से भी जानी जाती है, की उंचाई लगभग 40 सेमी (16 इंच) और वजन 1 किलोग्राम (2.2 पौंड) होता है। वर्तमान में पाए जाने वाले पेंगुइनों में, बड़े पेंगुइन ठंडे क्षेत्रों में निवास करते हैं, जबकि छोटे पेंगुइन आम तौर पर शीतोष्ण या उष्णकटिबंधीय जलवायु में भी पाए जाते हैं (इसे भी देखें बर्गमैन'ज़ रूल). कुछ प्रागैतिहासिक प्रजातियां आकार में व्यस्क मानव जितनी उंची तथा वजनी थीं (अधिक जानकारी के लिए नीचे देखें). ये प्रजाति अंटार्कटिक क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं थी; बल्कि इसके विपरीत, अंटार्कटिक उपमहाद्वीप के क्षेत्रों में ज्यादा विविधता मिलती थी और कम से कम एक विशाल पेंगुइन उस क्षेत्र में मिला है जो भूमध्य रेखा के 35 से 2000 किमी दक्षिण से ज्यादा दूर नहीं था तथा जहां का वातावरण आज के अपेक्षाकृत ज्यादा गरम था। .

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पीनियल ग्रंथि

पीनियल ग्रंथि (जिसे पीनियल पिंड, एपिफ़ीसिस सेरिब्रि, एपिफ़ीसिस या "तीसरा नेत्र" भी कहा जाता है) पृष्ठवंशी मस्तिष्क में स्थित एक छोटी-सी अंतःस्रावी ग्रंथि है। यह सेरोटोनिन व्युत्पन्न मेलाटोनिन को पैदा करती है, जोकि जागने/सोने के ढर्रे तथा मौसमी गतिविधियों का नियमन करने वाला हार्मोन है। इसका आकार एक छोटे से पाइन शंकु से मिलता-जुलता है (इसलिए तदनुसार नाम) और यह मस्तिष्क के केंद्र में दोनों गोलार्धों के बीच, खांचे में सिमटी रहती है, जहां दोनों गोलकार चेतकीय पिंड जुड़ते हैं। .

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पीयूष ग्रन्थि

पीयूष ग्रन्थि या पीयूषिका, एक अंत:स्रावी ग्रंथि है जिसका आकार एक मटर के दाने जैसा होता है और वजन 0.5 ग्राम (0.02 आउन्स) होता है। यह मस्तिष्क के तल पर हाइपोथैलेमस (अध;श्चेतक) के निचले हिस्से से निकला हुआ उभार है और यह एक छोटे अस्थिमय गुहा (पर्याणिका) में दृढ़तानिका-रज्जु (diaphragma sellae) से ढंका हुआ होता है। पीयूषिका खात, जिसमें पीयूषिका ग्रंथि रहता है, वह मस्तिष्क के आधार में कपालीय खात में जतुकास्थी में स्थित रहता है। इसे एक मास्टर ग्रंथि माना जाता है। पीयूषिका ग्रंथि हार्मोन का स्राव करने वाले समस्थिति का विनियमन करता है, जिसमें अन्य अंत:स्रावी ग्रंथियों को उत्तेजित करने वाले ट्रॉपिक हार्मोन शामिल होते हैं। कार्यात्मक रूप से यह हाइपोथैलेमस से माध्यिक उभार द्वारा जुड़ा हुआ होता है। .

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फ़िन की बया

फ़िन की बया एक छोटी बुनकर चिड़िया की जाति है जो भारत और नेपाल में गंगा तथा ब्रह्मपुत्र की घाटियों में पाई जाती है। इसकी दो उपजातियाँ पहचानी जाती हैं—प्लोसिअस मॅगरहिन्चस, जो कि कुमाऊँ में और प्लोसिअस सलीमअली जो कि पूर्वी तराई में पाई जाती हैं। जब ह्यूम को नैनीताल के पास कालाढूंगी से इस जाति का नमूना मिला तो उन्होंने इसका नामकरण किया। यह जाति फ़्रॅन्क फ़िन द्वारा कोलकाता के पास के तराई इलाके में दुबारा खोजी गई और इसे उनका नाम मिला। ओट्स ने सन् १८८९ में इसे पूर्वी बया नाम दिया जबकि स्टुअर्ट बेकर ने सन् १९२५ में इसे फ़िन की बया नाम दिया। .

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फ़ैल्कोनीडाए

फ़ैल्कोनीडाए (Falconidae) शिकारी पक्षियों का एक जीववैज्ञानिक कुल है जिसमें फ़ैल्कोनीनाए (Falconinae) और पोलीबोरिनाए (Polyborinae) के दो उपकुल सम्मिलित हैं। फ़ैल्कोनीनाए में श्येन, केस्ट्रेल और उनसे सम्बन्धित पक्षी आते हैं, जबकि पोलीबोरिनाए में काराकारा और वन श्येन से सम्बन्धित पक्षी शामिल हैं। कुल मिलाकर फ़ैल्कोनीडाए कुल में लगभग ६० जातियाँ सम्मिलित हैं। यह दिवाचरी होते हैं, यानि दिन से समय सक्रीय होते हैं। इनमें और ऐकीपिट्रीडाए गण (मसलन महाश्येन (ईगल), चील, बाज़) के पक्षियों में एक अंतर यह है कि जहाँ ऐकीपिट्रीडाए अपने पंजो से अपने ग्रास को मारते हैं वहाँ फ़ैल्कोनीडाए जातियाँ अपनी चोंच से यह काम करती हैं। .

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फ्रांस की संस्कृति

स्वच्छंदतावाद की शैलीगत विचारों का उपयोग करते हुए यूजीन देलाक्रोइक्स की जुलाई क्रांति का चित्रण करनेवाली सर्वश्रेष्ठ पेंटिंग लि‍बर्टी लीडिंग द पीपुल कहलायी.चूंकि लिबर्टी (आजादी), आदर्श वाक्य «लिबर्टी एगैलाइट फ्रैंटर्नाइट» («Liberté, égalité, fraternité») का हिस्सा है, यह पेंटिंग फ्रांसिसी क्रांति का प्राथमिक प्रतीक है, जैसा कि फ्रांस ने इसे लिया है। फ्रांस की संस्कृति और फ्रांसीसियों की संस्कृति भूगोल, गंभीर ऐतिहासिक घटनाओं और विदेशी तथा आंतरिक शक्तियों और समूहों द्वारा गढ़ी गयी है। फ्रांस और विशेष रूप से पेरिस, ने सत्रहवीं सदी से उन्नीसवीं सदी तक विश्वव्यापी स्तर पर उच्च सांस्कृतिक केंद्र और आलंकारिक कला के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है, इस मामले में यह यूरोप में प्रथम है। उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम चरण से, फ्रांस ने आधुनिक कला, सिनेमा, फैशन और भोजन शैली में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। सदियों तक फ़्रांसिसी संस्कृति का महत्व इसके आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य महत्व के आधार पर घटता और बढ़ता रहा है। आज फ़्रांसिसी संस्कृति महान क्षेत्रीय तथा सामाजिक-आर्थिक अंतरों और सुदृढ़ एकीकृत प्रवृत्तियों दोनों के द्वारा चिह्नित है। चाहे फ्रांस या यूरोप में या सामान्य रूप से, सामाजिकीकरण प्रक्रिया और भौतिक कलाकृतियों के माध्यम से मान्यताओं और मूल्यों के मिलन को सीखा जाता है। समाज के सदस्यों के बीच सामाजिक संबंधों का मार्गदर्शन संस्कृति करती है और यह निजी मान्यताओं और मूल्यों को प्रभावित करती है जो व्यक्ति की अपने वातावरण की अभिज्ञता को आकार देते हैं: "संस्कृति एक समूह के सदस्यों के साझा विश्वासों, मूल्यों, मानदंडों और भौतिक वस्तुओं का विज्ञ समुच्चय है। बचपन से बुढ़ापे तक के जीवनक्रम के दौरान समूहों में हम जो कुछ भी सीखते हैं वो सब संस्कृति में शामिल है।" लेकिन "फ़्रांसिसी" संस्कृति की अवधारणा कुछ कठिनाइयां खड़ी करती है और "फ़्रांसिसी" ("फ्रेंच") अभिव्यक्ति का ठीक क्या मतलब है इस बारे में धारणाओं या अनुमानों की एक श्रृंखला है। जबकि अमेरिकी संस्कृति के बारे में "मेल्टिंग पौट" और सांस्कृतिक विविधता की धारणा को मान लिया गया है, लेकिन "फ़्रांसिसी संस्कृति" एक विशेष भौगोलिक इकाई (जैसे कि कह सकते हैं, "मेट्रोपोलिटन फ्रांस", आम तौर पर इसके विदेश स्थित क्षेत्रों को छोड़ दिया जाता है) या नस्ल, भाषा, धर्म और भूगोल द्वारा परिभाषित एक विशिष्ट ऐतिहासिक-सामाजिक समूह को अव्यक्त रूप से संदर्भित है। हालांकि "फ्रेंचनेस" की वास्तविकताएं अत्यंत जटिल हैं। उन्नीसवीं सदी के अंतिम चरण से पहले, "मेट्रोपोलिटन फ्रांस" मुख्यतः स्थानीय प्रथाओं और क्षेत्रीय अंतरों का एक पैबंद भर था, जिसका एन्सियन रिजीम (फ्रांस की राज्य क्रांति से पूर्व की शासन-पद्धति) के एकीकरण का उद्देश्य था और फ़्रांसिसी क्रांति ने इसके खिलाफ काम करना शुरू किया था; और आज का फ्रांस अनेक देशी और विदेशी भाषाओं, बहु-जातीयताओं और धर्मों तथा क्षेत्रीय विविधता वाला देश है, जिसमें कोर्सिका, ग्वाडेलोप, मार्टिनिक और विश्व में अन्य स्थानों के फ़्रांसिसी नागरिक शामिल हैं। इस बृहद विविधता के बावजूद, एक प्रकार की विशिष्ट या साझा संस्कृति या "सांस्कृतिक पहचान" का सृजन एक शक्तिशाली आंतरिक शक्तियों का परिणाम है - जैसे कि फ़्रांसिसी शिक्षा पद्धति, अनिवार्य सैन्य सेवा, सरकारी भाषाई व सांस्कृतिक नीतियां - और फ्रैंको-प्रशिया युद्ध तथा दो विश्व युद्धों जैसी गंभीर ऐतिहासिक घटनाएं ऎसी प्रभावशाली आंतरिक शक्ति रहीं जिनसे 200 सालों के दौरान एक राष्ट्रीय पहचान की भावना को पैदा हुई। हालांकि, इन एकीकृत शक्तियों के बावजूद, फ्रांस आज भी सामाजिक वर्ग और संस्कृति में महत्वपूर्ण क्षेत्रीय मतभेदों (भोजन, भाषा/उच्चारण, स्थानीय परंपराएं) द्वारा चिह्नित होता है, जो कि समकालीन सामाजिक शक्तियों (ग्रामीण क्षेत्रों से आबादी का पलायन, अप्रवासन, केंद्रीकरण, बाजार की शक्तियां और विश्व अर्थव्यवस्था) का सामना करने में अक्षम रहेगा.

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बटेर

बटेर (Coturnix coturnix) बटेर या वर्तक (quail) भूमि पर रहने वाले जंगली पक्षी हैं। ये ज्यादा लम्बी दूरी तक नहीं उड़ सकते हैं और भूमि पर घोंसले बनाते हैं। इनके स्वादिष्ट माँस के कारण इनका शिकार किया जाता है। इस कारण बटेरों की संख्या में बहुत कमी आ गई है। भारत सरकार ने इसी वजह से वन्य जीवन संरक्षण कानून, 1972 के तहत बटेर के शिकार पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। बटेर पालन कम लागत, सुगम रख-रखाव तथा पालन-पोषण के साथ और बिना किसी धार्मिक प्रतिबंध के साथ सम्भव है। हम सभी इस बात को जानते हैं कि आहार को संतुलित बनाने के लिए पशुधन से प्राप्त होने वाले प्रोटीन जैसे - दूध, माँस, अंडे की जरूरत पूरी करने के लिए पशुओं की महत्ता सभी जानते हैं। बटेर कम लागत पर हमारे लिए माँस और अंडे की जरूरत पूरी करता है। इस वजह से यह कहना सही है कि ‘‘पालें बटेर, बटोरें फायदे ढेर‘‘। .

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बड़ा बटेर

बड़ा बटेर या घघुस बटेर (Common Quail) (Coturnix coturnix) फ़ीज़ैंट कुल का एक पक्षी है। यह उत्तरी यूरोप को छोड़कर लगभग पूरे यूरोप में, पूर्वी, पश्चिमी, मध्य तथा दक्षिणी अफ़्रीका में और पश्चिमोत्तर अफ़्रीका के कुछ इलाकों में, मध्य पूर्व, मध्य एशिया तथा दक्षिणी एशिया में व्यापक रूप से पाया जाता है। औसतन यह १८ से २२ से.मी.

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बतख

नर मंडेरियाई बतख बतख ऐनाटीडे प्रजातियों के पक्षियों का एक आम नाम है जिसमे कलहंस और हंस भी शामिल है। बतख कई अन्य सह प्रजातियों व परिवारों में बाटी हुई है पर फिर भी यह मोनोफेलटिक (एक आम पैतृक प्रजातियों के सभी सन्तान के समूह) नहीं कहलाई जाती। जैसे की हंस और कलहंस इस प्रजाति में होकर भी बतख नहीं कहलाते। बतख ज्यादातर जलीय पक्षियों की तुलना में छोटे होते हैं व दोने ताजा और समुद्री पानी में पायी जाती है। बतखे कई बार इन जैसे ही दिखने वाली या सम्बंधित पक्षियों से जो की इसी प्रकार से विचरण करते हैं जसी की लूंस, ग्रेबेस, कूटस आदि से ब्रह्मित की जाती है। .

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बया

पसन्द करती है क्योंकि इसकी वजह से इसके बच्चों को परभक्षियों से सुरक्षा प्रदान होती है। यह अपने घोंसले बस्ती के रूप में बनाती हैं और प्रजनन काल में एक ही वृक्ष में या आस-पास के वृक्षों में कई घोंसले एक साथ देखने को मिलते हैं। इस व्यवहार का संबन्ध संख इस व्यवहार का संबन्ध संख है। .

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बाज़

बाज़ एक शिकारी पक्षी है जो कि गरुड़ से छोटा होता है। इस प्रजाति में दुनिया भर में कई जातियाँ मौजूद हैं और अलग-अलग नामों से जानी जाती हैं। वयस्क बाज़ के पंख पतले तथा मुड़े हुए होते हैं जो उसे तेज़ गति से उड़ने और उसी गति से अपनी दिशा बदलने में सहायता करते हैं। श्रेणी:शिकारी पक्षी श्रेणी:लोक-नामों के अनुसार पक्षी श्रेणी:ऐकीपिट्रीडाए.

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बाइलेटेरिया

बाइलेटेरिया (Bilateria) या द्विसमभागी ऐसे प्राणी होते हैं जिनके शरीर लगभग दो समान भागों के बने हों, यानि जिनमें द्विभागीय सममिति हो। ऐसे जीवों के शरीर के मुख्य भाग में आमतौर पर एक ध्रुव पर सिर और दूसरे ध्रुव पर गुदा होती है। इनके शरीर में पीछे की ओर रीढ़ और आगे की ओर पेट वाला रुख होता है, और यह दाएँ और बाएँ भाग रखते हैं। मानव, गिरगिट, अधिकतर मछलियाँ, पक्षी, इत्यादि सभी बाइलेटेरिया की परिभाषा में आते हैं। इसके विपरीत निडारिया (मसलन जेलीफ़िश), टेनोफोरा और स्पंज जैसे व्यासीय सममिति रखने वाले प्राणी में आगे-पीछे और दाएँ-बाएँ का अंतर नहीं होता, लेकिन ऊपर-नीचे का अंतर होता है। .

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बगुला

बगुला (Herons) नदियों, झीलों और समुद्रों के किनारे मिलने वाले लम्बी टांगों व गर्दनों वाले पक्षियों का एक कुल है। .

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बंगाल का गिद्ध

बंगाल का गिद्ध एक पुरानी दुनिया का गिद्ध है, जो कि यूरोपीय ग्रिफ़न गिद्ध का संबन्धी है। एक समय यह अफ़्रीका के सफ़ेद पीठ वाले गिद्ध का ज़्यादा करीबी समझा जाता था और इसे पूर्वी सफ़ेद पीठ वाला गिद्ध भी कहा जाता है। १९९० के दशक तक यह पूरे दक्षिणी तथा दक्षिण पूर्वी एशिया में व्यापक रूप से पाया जाता था और इसको विश्व का सबसे ज़्यादा आबादी वाला बड़ा परभक्षी पक्षी माना जाता था लेकिन १९९२ से २००७ तक इनकी संख्या ९९.९% तक घट गई और अब यह घोर संकटग्रस्त जाति की श्रेणी में पहुँच गया है और अब बहुत कम नज़र आता है। .

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बुलबुल

बुलबुल, शाखाशायी गण के पिकनोनॉटिडी कुल (Pycnonotidae) का पक्षी है और प्रसिद्ध गायक पक्षी "बुलबुल हजारदास्ताँ" से एकदम भिन्न है। ये कीड़े-मकोड़े और फल फूल खानेवाले पक्षी होते हैं। ये पक्षी अपनी मीठी बोली के लिए नहीं, बल्कि लड़ने की आदत के कारण शौकीनों द्वारा पाले जाते रहे हैं। यह उल्लेखनीय है कि केवल नर बुलबुल ही गाता है, मादा बुलबुल नहीं गा पाती है। बुलबुल कलछौंह भूरे मटमैले या गंदे पीले और हरे रंग के होते हैं और अपने पतले शरीर, लंबी दुम और उठी हुई चोटी के कारण बड़ी सरलता से पहचान लिए जाते हैं। विश्व भर में बुलबुल की कुल ९७०० प्रजातियां पायी जाती हैं। इनकी कई जातियाँ भारत में पायी जाती हैं, जिनमें "गुलदुम बुलबुल" सबसे प्रसिद्ध है। इसे लोग लड़ाने के लिए पालते हैं और पिंजड़े में नहीं, बल्कि लोहे के एक (अंग्रेज़ी अक्षर -टी) (T) आकार के चक्कस पर बिठाए रहते हैं। इनके पेट में एक पेटी बाँध दी जाती है, जो एक लंबी डोरी के सहारे चक्कस में बँधी रहती है। .

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ब्युसेरोटीफ़ोर्मीस

ब्युसेरोटीफ़ोर्मीस (Bucerotiformes) पक्षियों का एक जीववैज्ञानिक गण है जिसमें धनेश, हूपू और काठ हूपू (wood hoopoe) सम्मिलित हैं। इन्हें कभी-कभी कोरैसीफ़ोर्मीस गण का भाग समझा जाता है लेकिन समय के साथ-साथ ब्युसेरोटीफ़ोर्मीस के एक अलग गण होने के प्रमाण बढ़ते गए हैं। .

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ब्राह्मिनी चील

ब्राह्मिनी चील (वैज्ञानिक नाम: हैलीऐस्टर इंडस; अन्य नाम: खेमकरी या क्षेमकरी) चील जाति का एक प्रसिद्ध पक्षी है जो मुख्य रूप से भारतीय पक्षी है किंतु थाइलैंड, मलय, चीन से लेकर आस्ट्रेलिया तक पाया जाता है और पानी के आस-पास रहता है। यह बंदरगाहों के आसपास काफी संख्या में पाया जाता है और जहाज के मस्तूलों पर बैठा देखा जा सकता है। यह सड़ी-गली चीजें खाता और पानी के सतह पर पड़े कूड़े कर्कट को अपने पंजों में उठा लेता है। यह धान के खेतों के आसपास भी उड़ता देखा जाता है और मेढकों और टिड्डियों को पकड़ कर अपना पेट भरता है। यह 19 इंच लंबा पक्षी है जिसका रंग कत्थई, डैने के सिरे काले और सिर तथा सीने का रंग सफेद होता है। चोंच लंबी, दबी दबी और नीचे की ओर झुकी हुई होती है। इसकी बोली अत्यंत कर्कश होती है। यह अपना घोंसला पानी के निकट ही पेड़ की दोफ की डाल के बीच काफी ऊँचाई पर लगाता है। एक बार में मादा दो या तीन अंडे देती है। इसे लाल पीठ वाला समुद्री बाज भी कहा जाता है, एक माध्यम आकार की शिकारी पक्षी है, यह एक्सीपाईट्राइड परिवार की सदस्य है जिसमें कई अन्य दैनिक शिकारी पक्षी जैसे बाज, गिद्ध तथा हैरियर आदि भी आते हैं। ये भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण पूर्व एशिया तथा ऑस्ट्रेलिया में पायी जाती हैं। ये मुख्य रूप से समुद्र तट पर और अंतर्देशीय झीलों में पायी जाती हैं, जहां वे मृत मछली और अन्य शिकार को खाती हैं। वयस्क पक्षी में लाल भूरे पंख तथा विरोधाभासी रंग में एक सफ़ेद रंग का सर तथा छाती होते हैं जिनको देख कर इन्हें अन्य शिकारी पक्षियों से अलग आसानी से पहचाना जा सकता है। .

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ब्लाइद ट्रॅगोपॅन

ब्लाइद ट्रॅगोपॅन (Blyth’s tragopan) या (grey-bellied tragopan) (Tragopan blythii) फ़ीज़ॅन्ट कुल का पक्षी है जो ट्रॅगोपैन प्रजाति का सबसे बड़ा पक्षी है। .

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बैंकसिया

बैंकसिया (Banksia) लगभग १७० जातियों वाला बनफूलों और उद्यानों में लगाने के लिये लोकप्रिय फूलदार पौधों का एक वंश है जिसकी जातियाँ ऑस्ट्रेलिया में पाई जाती हैं। यह वंश प्रोटियेसीए नामक कुल का सदस्य है। यह अपने विशेष तिनकेदार फूलों और शंकुओं से आसानी से पहचाना जा सकता है। इसकी जातियाँ छोटी झाड़ों से लेकर ३० मीटर लम्बें वृक्षों तक के रूप में मिलती हैं। वे ऑस्ट्रेलिया के वर्षावनों से लेकर अर्ध-शुष्क इलाक़ों तक में पाई जाती हैं लेकिन ऑस्ट्रेलिया के रेगिस्तानों में पनप नहीं पाती।, Don Burke, pp.

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भारतीय चित्तीदार महाश्येन

भारतीय चित्तीदार ईगल: (Clanga hastata) शिकार की एक बड़ी दक्षिण एशियाई पक्षी है ' यह ईगल्स के जैसी ही है और यह:en:Accipitridae परिवार के अंतर्गत आता है ' भारतीय चित्तीदार ईगल्स अक्सर बुतोज़, समुद्री ईगल और अन्य हैविसेट एकिपिट्राईडा के साथ एकजुट रहता है ' लेकिन ये और अधिक पतले accipitrine से कम ही अलग प्रतीत कर रहे हैं ' .

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भारतीय पक्षियों की सूची

यहाँ भारत में पायी जाने वाली पक्षियों की सूची दी गयी है। भारत में पक्षियों की कोई 1301 प्रजातियाँ (species) हैं जिनमें से 42 केवल भारत में पायी जाती हैं; 1 मानव द्वारा विकसित है तथा 26 दुर्लभ प्रजातियाँ हैं। मोर (Pavo cristatus) भारत का राष्ट्रीय पक्षी है। सूची में पक्षियों के पाये जाने का विवरण इस प्रकार है:-.

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भारतीय गिद्ध

भारतीय गिद्ध (Gyps indicus) पुरानी दुनिया का गिद्ध है जो नई दुनिया के गिद्धों से अपनी सूंघने की शक्ति में भिन्न हैं। यह मध्य और पश्चिमी से लेकर दक्षिणी भारत तक पाया जाता है। प्रायः यह जाति खड़ी चट्टानों के श्रंग में अपना घोंसला बनाती है, परन्तु राजस्थान में यह अपना घोंसला पेड़ों पर बनाते हुये भी पाये गये हैं। अन्य गिद्धों की भांति यह भी अपमार्जक या मुर्दाख़ोर होता है और यह ऊँची उड़ान भरकर इंसानी आबादी के नज़दीक या जंगलों में मुर्दा पशु को ढूंढ लेते हैं और उनका आहार करते हैं। इनके चक्षु बहुत तीक्ष्ण होते हैं और काफ़ी ऊँचाई से यह अपना आहार ढूंढ लेते हैं। यह प्रायः समूह में रहते हैं। भारतीय गिद्ध का सर गंजा होता है, उसके पंख बहुत चौड़े होते हैं तथा पूँछ के पर छोटे होते हैं। इसका वज़न ५.५ से ६.३ कि.

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भूरी छाती वाला तीतर

भूरी छाती वाला तीतर (Chestnut-breasted Partridge) (Arborophila mandellii) तीतर परिवार का एक पक्षी है जो ब्रह्मपुत्र के उत्तर में स्थित पूर्वी हिमालय का मूल निवासी है और भारत के अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल (केवल दार्जीलिंग के क्षेत्र में) में, भूटान में, तथा दक्षिण-पूर्वी तिब्बत में जाना जाता है। .

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मणिपुरी बटेर

मणिपुरी बटेर (Manipur Bush Quail) (Perdicula manipurensis) भारत में पाई जाने वाली बटेर पक्षी की एक क़िस्म है, जो कि पश्चिम बंगाल, असम, नागालैण्ड, मणिपुर और मेघालय के दलदली इलाकों में, जहाँ ऊँची घास होती है, पाया जाता है। पहले इसकी आबादी पर्याप्त थी और यह अक्सर पूर्वोत्तर भारत में तथा उत्तर भारत, जो अब बांग्लादेश है, में देखा जा सकता था। लेकिन इसके आवास क्षेत्रों के या तो संकुचित होने से और या खण्डित होने से इसकी आबादी निरंतर कम होती जा रही है और इसी कारण से इसे अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने असुरक्षित श्रेणी में रखा है। इस पक्षी को आख़िरी बार सन् १९३२ में देखा गया था और वैज्ञानिकों का यह मानना था कि यह विलुप्त हो गया है। लेकिन सन् २००६ में फिर से मानस राष्ट्रीय उद्यान में देखा गया हालांकि इसका चित्र नहीं उतारा जा सका और अब पक्षी प्रेमियों में यह रोमांच का विषय हो गया है। इसको मणिपुरी भाषा में लैंक्स सॉइबॉल कहते हैं। .

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मथुरा की मूर्तिकला

यक्षिणी- मथुरा चित्रकलामथुरा में लगभग तीसरी शती ई०पू० से बारहवीं शती ई० तक अर्थात डेढ़ हजार वर्षों तक शिल्पियों ने मथुरा कला की साधना की जिसके कारण भारतीय मूर्ति शिल्प के इतिहास में मथुरा का स्थान महत्त्वपूर्ण है। कुषाण काल से मथुरा विद्यालय कला क्षेत्र के उच्चतम शिखर पर था। सबसे विशिष्ट कार्य जो इस काल के दौरान किया गया वह बुद्ध का सुनिचित मानक प्रतीक था। मथुरा के कलाकार गंधार कला में निर्मित बुद्ध के चित्रों से प्रभावित थे। जैन तीर्थंकरों और हिन्दू चित्रों का अभिलेख भी मथुरा में पाया जाता है। उनके प्रभावाशाली नमूने आज भी मथुरा, लखनऊ, वाराणसी, इलाहाबाद में उपस्थित हैं। इतिहास पर दृष्टि डालें तो स्पष्ट हो जाता है कि मधु नामक दैत्य ने जब मथुरा का निर्माण किया तो निश्चय ही यह नगरी बहुत सुन्दर और भव्य रही होगी। शत्रुघ्न के आक्रमण के समय इसका विध्वंस भी बहुत हुआ और वाल्मीकि रामायण तथा रघुवंश, दोनों के प्रसंगों से इसकी पुष्टि होती है कि उसने नगर का नवीनीकरण किया। लगभग पहली सहस्राब्दी से पाँचवीं शती ई० पूर्व के बीच के मृत्पात्रों पर काली रेखाएँ बनी मिलती हैं जो ब्रज संस्कृति की प्रागैतिहासिक कलाप्रियता का आभास देती है। उसके बाद मृण्मूर्तियाँ हैं जिनका आकार तो साधारण लोक शैली का है परन्तु स्वतंत्र रूप से चिपका कर लगाये आभूषण सुरुचि के परिचायक हैं। मौर्यकालीन मृण्मूर्तियों का केशपाश अलंकृत और सुव्यवस्थित है। सलेटी रंग की मातृदेवियों की मिट्टी की प्राचीन मूर्तियों के लिए मथुरा की पुरातात्विक प्रसिद्ध है। लगभग तीसरी शती के अन्त तक यक्ष और यक्षियों की प्रस्तर मूर्तियाँ उपलब्ध होने लगती हैं। मथुरा में लाल रंग के पत्थरों से बुद्ध और बोद्धिसत्व की सुन्दर मूर्तियाँ बनायी गयीं। महावीर की मूर्तियाँ भी बनीं। मथुरा कला में अनेक बेदिकास्तम्भ भी बनाये गये। यक्ष यक्षिणियों और धन के देवता कुबेर की मूर्तियाँ भी मथुरा से मिली हैं। इसका उदाहरण मथुरा से कनिष्क की बिना सिर की एक खड़ी प्रतिमा है। मथुरा शैली की सबसे सुन्दर मूर्तियाँ पक्षियों की हैं जो एक स्तूप की वेष्टणी पर खुदी खुई थी। इन मूर्तियों की कामुकतापूर्ण भावभंगिमा सिन्धु में उपलब्ध नर्तकी की प्रतिमा से बहुत कुछ मिलती जुलती है। .

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मनौस

ऊपरी बाएँ: तेअत्रो अमज़ोनस; ऊपर दाएँ: चिददे नोवा से मनौस; 2nd बाएँ मनौस-इरन्दुब पुल और रियो नीग्रो; 2nd दाएँ: नदियों के संगम पर नाव दर्शनीय स्थलों की यात्रा; 3 बाएँ रियो नीग्रो; 3 दाएँ: सैन सेबेस्टियन कैथेड्रल; नीचे: नोस्स सेन्होर दास ग्रचस क्षेत्र। मनौस (या), उत्तरी ब्राजील में अमज़ोनस के राज्य की राजधानी है। नगर फोर्त सओ जोसे दो रिओ नेग्रो के रूप में 1693-94 में स्थापित किया गया था। यह नीग्रो और सोलिमोएस नदियों के संगम पर स्थित है। 20,00,000 की आबादी के साथ, यह Amazonas के सबसे अधिक आबादी वाला नगर है। मनौस अमेज़न वर्षावन के बीच में स्थित है और नगर मुख्य रूप से नाव या हवाई जहाज के माध्यम से पहुँचजा सकता है। नगर ब्राजील अमेज़न के पशु और वनस्पति यात्रा करने के लिए मुख्य प्रवेश द्वार है। दुनिया में कुछ स्थानों पर पौधे, पक्षी, कीट और मछलियों की एक ऐसी किस्म है। यह "अमेज़न के दिल" और "वन का नगर" के रूप में जाना जाता है। .

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महापद पक्षी

महापद (megapode) मोटे और मध्यमाकार के मुर्गी-जैसे, छोटे सिर और बड़े पंजों वाले पक्षियों का एक जीववैज्ञानिक कुल है। इनका नाम "महा" (यूनानी सजातीय शब्द: मेगा, μέγα) और "पद" (यूनानी सजातीय शब्द: पॉड, अर्थ: पैर) के मिश्रण से बना है। यह अधिकतर भूरे और काले रंग के होते हैं। इनकी विशेषता है कि इनके शिषु अण्डे से निकलते ही विकसित-रूप से चलने-फिरने व छोटे ग्रास को पकड़ने में सक्षम होते हैं। .

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महाश्येन

महाश्येन (ईगल) शिकार करने वाले बड़े आकार के पक्षी हैं। इस पक्षी को ऊँचाई से ही प्रेम है, धरातल से नहीं। यह धरातल की ओर तभी दृष्टिपात करता है, जब इसे कोई शिकार करना होता है। इसकी दृष्टि बड़ी तीव्र होती है और यह धरातल पर विचरण करते हुए अपने शिकार को ऊँचाई से ही देख लेता है। यूरेशिया और अफ्रीका में इसकी साठ से अधिक प्रजातियाँ स्पेसीज (species)पायी जाती हैं। महाश्येन, फैल्कोनिफॉर्मीज़ (Falconiformes) गण, ऐक्सिपिटर (Accipitres) उपगण, फैल्कानिडी (Falconidae) कुल तथा ऐक्विलिनी (Aquilinae) उपकुल के अंतर्गत है। यह उपकुल दो वर्गों में विभाजित है। ये दो वर्ग ऐक्विला स्थल महाश्येन (Aquila Land Eagle) और हैलिई-एटस, जल महाश्येन (Haliaeetus Sea Eagle) हैं। इस श्येन परिवार में लगभग तीन सौ जातियाँ पाई जाती हैं। ये अनेक जातियाँ स्वभाव तथा आकार प्रकार में एक दूसरे से भिन्न होती हैं तथा विश्व भर में पाई जाती हैं। प्राचीन काल से ही यह साहस एवं शक्ति का प्रतीक माना गया है। संभवत इन्हीं कारणों से सभी राष्ट्रों के कवियों ने इसका वर्णन किया है और इसे रूस, जर्मनी, संयुक्त राज्य आदि देशों में राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में माना गया है। भारत में इसे गरुड़ की संज्ञा दी गई है तथा पौराणिक वर्णनों में इसे विष्णु का वाहन कहा गया है। संभवत: तेज गति और वीरता के कारण ही यह विष्णु का वाहन हो सका है। अन्य देशों के भी पौराणिक वर्णनों में इसका वर्णन आता है, जैसे स्कैंडेनेविया में इसे तूफान का देवता माना गया है और यह बताया गया है कि यह देव स्वर्ग लोक के एक छोर पर बैठकर हवा का झोंका पृथ्वी पर फेंकता है। ग्रीसवासियों की, प्राचीन विश्वास के अनुसार, ऐसी धारणा है कि उनके सबसे बड़े देवता, ज़्यूस (Zeus), को इस महाश्येन ने ही सहायतार्थ वज्र प्रदान किया था। भगवान् विष्णु का वाहन होकर भी इस पक्षी की मनोवृत्ति अहिंसक नहीं है। यह मांसभक्षी, अति लोलुप और प्रत्यक्षत: हानि पहुँचानेवाला होता है, तथापि यह उन बहुत से पक्षियों को समाप्त करने में सहायक है, जो कृषि एवं मनुष्यों को हानि पहुँचाते हैं। साथ ही साथ यह हानि पहुँचानेवाले सरीसृप तथा छोटे छोटे स्तनी जीवों को भी समाप्त करता है और इस प्रकार जंतुसंसार का संतुलन बनाए रखता है। .

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महेन्द्रनाथ मंदिर , सिवान , बिहार

बिहार राज्य के सीवान जिला से लगभग 35 किमी दूर सिसवन प्रखण्ड के अतिप्रसिद्ध मेंहदार गांव में स्थित भगवान शिव के प्राचीन महेंद्रनाथ मन्दिर का निर्माण नेपाल नरेश महेंद्रवीर विक्रम सहदेव सत्रहवीं शताब्दी में करवाया था और इसका नाम महेंद्रनाथ रखा था। ऐसी मान्यता है कि मेंहदार के शिवलिंग पर जलाभिषेक करने पर नि:संतानों को संतान व चर्म रोगियों को चर्म रोग रोग से निजात मिल जाती है । .

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महोख

महोख या महोक (अंग्रेजी: Greater Coucal या Crow Pheasant; वैज्ञानिक नाम: Centropus sinensis) एक बड़ा पक्षी है। यह एशिया में भारत, चीन, इण्डोनेशिया आदि में पायी जाती है। इसका आकार काले कौए (वनकाक) के बराबर होता है और रंग चमकीला काला होता है। यह पक्षी सारे भारत में पाया जाता है। हिमालय में भी यह 6,000 फुट की ऊँचाई पर पाया जाता है। यह खुले भाग के मैदान तथा पहाड़ी भागों का पक्षी है और ‘ऊक’ शब्द थोड़े-थोड़े समय पर उच्चारित करता है। यह एक दूसरा शब्द कूप-कूप-कूप आदि जल्दी जल्दी उच्चारित करता है, जो प्रति सेकंड दो या तीन कूप के हिसाब से 6 से 20 बार तक सुनाई पड़ता है। इसका आहार टिड्डे, भुजंगे, लार्वा, जंगली चूहे, बिच्छू, गिरगिट, साँप आदि हैं। .

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मांस

मांस के विभिन्न प्रकार मांस का कीमा मांस, माँस या गोश्त उन जीव ऊतकों और मुख्यतः मांसपेशियों को कहते हैं, जिनका सेवन भोजन के रूप में किया जाता है। मांस शब्द, को आम बोलचाल और व्यावसायिक वर्गीकरण के आधार पर भूमि पर रहने वाले पशुओं के गोश्त के संदर्भ मे प्रयोग किया जाता है (मुख्यत: कशेरुकी: स्तनधारी, पक्षी और सरीसृप), जलीय मतस्य जीवों का मांस मछली की श्रेणी में जबकि अन्य समुद्री जीव जैसे कि क्रसटेशियन, मोलस्क आदि समुद्री भोजन की श्रेणी में आते हैं। वैसे यह वर्गीकरण पूर्णत: लागू नहीं होता और कई समुद्री स्तनधारी जीवों को कभी मांस तो कभी मछली माना जाता है। पोषाहार की दृष्टि से मानव के भोजन में मांस, प्रोटीन, वसा और खनिजों का एक आम और अच्छा स्रोत है। सभी पशुओं और पौधों से प्राप्त भोजनों में, मांस को सबसे उत्तम के साथ सबसे अधिक विवादास्पद खाद्य पदार्थ भी माना जाता है। जहां पोषण की दृष्टि से मांस एक पोषाहार हैं वहीं विभिन्न धर्म इसके सेवन से अपने अनुयायियों को दूर रहने की सलाह देते हैं। जो पशु पूर्ण रूप से अपने भोजन के लिए मांस पर निर्भर होते हैं उन्हें मांसाहारी कहा जाता है, इसके विपरीत, वनस्पति खाने वाले पशुओं को शाकाहारी कहते हैं। जो पौधे छोटे जीवों और कीड़े का सेवन करते हैं मांसभक्षी पादप कहलाते है। .

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मुण्डा

मुंडा एक भारतीय आदिवासी समुदाय है, जो मुख्य रूप से झारखण्ड के छोटा नागपुर क्षेत्र में निवास करता है| झारखण्ड के अलावा ये बिहार, पश्चिम बंगाल, ओड़िसा आदि भारतीय राज्यों में भी रहते हैं| इनकी भाषा मुंडारी आस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार की एक प्रमुख भाषा है| उनका भोजन मुख्य रूप से धान, मड़ूआ, मक्का, जंगल के फल-फूल और कंध-मूल हैं | वे सूत्ती वस्त्र पहनते हैं | महिलाओं के लिए विशेष प्रकार की साड़ी होती है, जिसे बारह हथिया (बारकी लिजा) कहते हैं | पुरुष साधारण-सा धोती का प्रयोग करते हैं, जिसे तोलोंग कहते हैं | मुण्डा, भारत की एक प्रमुख जनजाति हैं | २० वीं सदी के अनुसार उनकी संख्या लगभग ९,०००,००० थी |Munda http://global.britannica.com/EBchecked/topic/397427/Munda .

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मुनिया

बिन्दुकित मुनिया मुनिया एक पक्षी है जो भारत, श्रीलंका, इण्डोनेशिया, फिलिपीन्स तथा अफ्रीका का देशज है। इसका आकार गौरैया से कुछ छोटा होता है। यह छोटे छोटे झुंडों में घास के बीच खाने निकलती है। खेतों में भूमि पर गिरे बीजों को खाती है। मंद-मंद कलरव करती है। यह छोटी झाड़ियों या वृक्षों में 5-10 फुट की उँचाई पर घोसला बनाती है। इसकी चार पाँच उपजातियाँ हैं: श्वेतपृष्ठ मुनिया, श्वेतकंठ मुनिया, कृष्णसिर मुनिया, बिंदुकित (spotted) मुनिया तथा लाल मुनिया। .

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मुर्लेन राष्ट्रीय उद्यान

मुर्लेन राष्ट्रीय उद्यान भारत के मिज़ोरम राज्य के चम्फाई जिले में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान है और म्यानमार के साथ भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा के साथ लगा हुआ है। इसका क्षेत्रफल २०० वर्ग कि॰मी॰ है। यह उद्यान मिज़ोरम की राजधानी आइज़ोल से २४५ कि॰मी॰ पूर्व में स्थित है। इस उद्यान में अब तक स्तनधारियों की १५ जातियाँ, पक्षियों की १५० जातियाँ, औषधीय पौधों की ३५ जातियाँ, बाँस की २ जातियाँ तथा ऑर्किड की ४ जातियाँ दर्ज की गई हैं। श्रेणी:राष्ट्रीय उद्यान, भारत श्रेणी:भारत के अभयारण्य श्रेणी:भारत के राष्ट्रीय उद्यान.

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मुर्गी

मुर्गा मुर्गी मुर्गी (पुलिंग: मुर्गा) एक पक्षी श्रेणी का मेरूदंडी प्राणी है। .

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मैना

भारतीय मैना टिप्पणी: माता पार्वती की माँ का नाम मैना है। तुलसीदास जी के रामचरित मानस मे मैना को हिमालय की पत्नी के रूप मे लिखा गया है। ---- मैना (Common Myna) एक भारतीय पक्षी है। .

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मूषक गुनगुन

मूषक गुनगुन एक भारतीय टेलीविजन श्रृंखला है। यह महाकार्टून टीवी पर 1 नवम्बर, 2016 को पहली बार प्रकाशित हुआ था। .

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मेसोअमेरिकी

350 पीएक्स (px) 350 पीएक्स (px) 350 पीएक्स (px) 350 पीएक्स (px) पैलेंकी के क्लासिक माया शहर का दृश्य, जो 6 और 7 सदियों में सुशोभित हुआ, मेसोअमेरिकी सभ्यता की उपलब्धियों के कई उदाहरणों में से एक है ट्युटिहुकन के मेसोअमेरिकी शहर का एक दृश्य, जो 200 ई. से 600 ई. तक सुशोभित हुआ और जो अमेरिका में दूसरी सबसे बड़ी पिरामिड की साइट है माया चित्रलिपि पत्रिका में अभिलेख, कई मेसोअमरिकी लेखन प्रणालियों में से एक शिलालेख.दुनिया में मेसोअमेरिका पांच स्थानों में से एक है जहां स्वतंत्र रूप से लेखन विकसित हुआ है मेसोअमेरिका या मेसो-अमेरिका (Mesoamérica) अमेरिका का एक क्षेत्र एवं सांस्कृतिक प्रान्त है, जो केन्द्रीय मैक्सिको से लगभग बेलाइज, ग्वाटेमाला, एल सल्वाडोर, हौंड्यूरॉस, निकारागुआ और कॉस्टा रिका तक फैला हुआ है, जिसके अन्दर 16वीं और 17वीं शताब्दी में, अमेरिका के स्पैनिश उपनिवेशवाद से पूर्व कई पूर्व कोलंबियाई समाज फलफूल रहे थे। इस क्षेत्र के प्रागैतिहासिक समूह, कृषि ग्रामों तथा बड़ी औपचारिक व राजनैतिक-धार्मिक राजधानियों द्वारा वर्णित हैं। यह सांस्कृतिक क्षेत्र अमेरिका की कुछ सर्वाधिक जटिल और उन्नत संस्कृतियों जैसे, ऑल्मेक, ज़ैपोटेक, टियोतिहुआकैन, माया, मिक्सटेक, टोटोनाक और एज़्टेक को शामिल करता है। .

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मेंढक

मेंढक उभयचर वर्ग का जंतु है जो पानी तथा जमीन पर दोनों जगह रह सकता है। यह एक शीतरक्ती प्राणी है अर्थात् इसके शरीर का तापमान वातावरण के ताप के अनुसार घटता या बढ़ता रहता है। शीतकाल में यह ठंडक से बचने के लिए पोखर आदि की निचली सतह की मिट्टी लगभग दो फुट की गहराई तक खोदकर उसी में पड़ा रहता है। यहाँ तक कि कुछ खाता भी नहीं है। इस क्रिया को शीतनिद्रा या शीतसुषुप्तावस्था कहते हैं। इसी तरह की क्रिया गर्मी के दिनों में होती है। ग्रीष्मकाल की इस निष्क्रिय अवस्था को ग्रीष्मसुषुप्तावस्था कहते हैं। मेंढक के चार पैर होते हैं। पिछले दो पैर अगले पैरों से बड़े होतें हैं। जिसके कारण यह लम्बी उछाल लेता है। अगले पैरों में चार-चार तथा पिछले पैरों में पाँच-पाँच झिल्लीदार उँगलिया होतीं हैं, जो इसे तैरने में सहायता करती हैं। मेंढकों का आकार ९.८ मिलीमीटर (०.४ ईन्च) से लेकर ३० सेण्टीमीटर (१२ ईन्च) तक होता है। नर साधारणतः मादा से आकार में छोटे होते हैं। मेंढकों की त्वचा में विषग्रन्थियाँ होतीं हैं, परन्तु ये शिकारी स्तनपायी, पक्षी तथा साँपों से इनकी सुरक्षा नहीं कर पाती हैं। भेक या दादुर (टोड) तथा मेंढक में कुछ अंतर है जैसे दादुर अधिकतर जमीन पर रहता है, इसकी त्वचा शुष्क एवं झुर्रीदार होती है जबकि मेंढक की त्वचा कोमल एवं चिकनी होती है। मेंढक का सिर तिकोना जबकि टोड का अर्द्ध-वृत्ताकार होता है। भेक के पिछले पैर की अंगुलियों के बीच झिल्ली भी नहीं मिलती है। परन्तु वैज्ञानिक वर्गीकरण की दृष्टि से दोनों बहुत हद तक समान जंतु हैं तथा उभयचर वर्ग के एनुरा गण के अन्तर्गत आते हैं। मेंढक प्रायः सभी जगहों पर पाए जाते हैं। इसकी ५००० से अधिक प्रजातियों की खोज हो चुकी है। वर्षा वनों में इनकी संख्या सर्वाधिक है। कुछ प्रजातियों की संख्या तेजी से कम हो रही है। .

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मोनाल

मोनाल फ़ीसण्ट (Pheasant) परिवार का लोफ़ोफ़ोरस (Lophophorus) जीनस का एक पक्षी है। इसकी तीन प्रजातियाँ और बहुत सी उपप्रजातियाँ लोफ़ोफ़ोरस जीनस के अन्तर्गत पाई जाती हैं। तीन प्रजातियाँ है.

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मोर

मोर अथवा मयूर एक पक्षी है जिसका मूलस्थान दक्षिणी और दक्षिणपूर्वी एशिया में है। ये ज़्यादातर खुले वनों में वन्यपक्षी की तरह रहते हैं। नीला मोर भारत और श्रीलंका का राष्ट्रीय पक्षी है। नर की एक ख़ूबसूरत और रंग-बिरंगी फरों से बनी पूँछ होती है, जिसे वो खोलकर प्रणय निवेदन के लिए नाचता है, विशेष रूप से बसन्त और बारिश के मौसम में। मोर की मादा मोरनी कहलाती है। जावाई मोर हरे रंग का होता है। .

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युग वर्णन

युग का अर्थ होता है एक निर्धारित संख्या के वर्षों की काल-अवधि। उदाहरणः कलियुग, द्वापर, सत्ययुग, त्रेतायुग आदि। युग वर्णन का अर्थ होता है कि उस युग में किस प्रकार से व्यक्ति का जीवन, आयु, ऊँचाई होती है एवं उनमें होने वाले अवतारों के बारे में विस्तार से परिचय दे। प्रत्येक युग के वर्ष प्रमाण और उनकी विस्तृत जानकारी कुछ इस तरह है: .

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रामचिरैया

रामचिरैया (Kingfisher) एक छोटे से मध्य आकार की रंग-बिरंगी पक्षी जातियों का समूह है। यह नाम कभी तो एक ही कुल ऐल्सेनिनिडाए (Alcedinidae) के लिए और कभी तीन कुलों को सम्मिलित करने वाले ऐल्सेडिनीस (Alcedines) नामक उपगण के लिए प्रयोगित है। रामचिरैया की लगभग ९० जातियाँ ज्ञात हैं। सभी जातियों के बड़े सिर, लम्बी व नोकीली चोंच, छोटी टांग और छोटी दुम हैं। नर और मादा में रंग लगभग एक समान ही होता है। .

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लायर बर्ड

एक सुन्दर लायर बर्ड लायर बर्ड (वीणापक्षी- क्योंकि इसके नर पक्षी की पूंछ वीणा के आकार की होती है।) संसार के सबसे सुन्दर पक्षियों में से है जो केवल आस्ट्रेलिया में पाया जाता है। यह नकल करने में बड़ा ही कुशल है। यह दूसरे पक्षियों के गाने, कुत्तों के भौंकने तथा कारों के हॉर्न की आवाज, चेनसऑ, की भी नकल कर लेता है। यह सीटी की आवाज भी निकालता है। मादा पक्षी से नर पक्षी लंबा एवं बड़ा होता है। नर पक्षी की पूंछ बहुत खूबसूरत है। जाड़े के मौसम में नर पक्षी गीत गाकर मादा को अपनी ओर आकर्षित करता है। मादा एक ही अंडा देती है। मादा अंडे को ५० दिन तक सेती है जिसके बाद उसमें से बच्चा निकलता है। मादा ही उसकी देखभाल करती है। यह पक्षी कीट-पतंगो, केंचुआ, मकड़ियों को खाता है। यह एक शर्मीला पक्षी है तथा आसानी से प्रकृति में दिखाई नहीं देता है। इसकी आवाज से ही इसकी उपस्थिति को जाना जा सकता है। मादा पक्षी भी आवाज की नकल करने में कुशल है परन्तु यह बहुत कम बोलती है। .

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लाल सिर वाला गिद्ध

लाल सिर वाला गिद्ध (Sarcogyps calvus) जिसे एशियाई राजा गिद्ध, भारतीय काला गिद्ध और पौण्डिचैरी गिद्ध भी कहते हैं, भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाने वाला गिद्ध है। .

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लाल जंगली मुर्गा

लाल जंगली मुर्गा (Red junglefowl) (Gallus gallus) फ़ीज़ेन्ट कुल का पक्षी है जो उष्णकटिबंध के इलाकों में पाया जाता है। .

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लाल गले वाला तीतर

लाल गले वाला तीतर (Rufous-throated Partridge) (Arborophila rufogularis) तीतर कुल का एक पक्षी है जो दक्षिण तथा दक्षिण पूर्व एशिया में व्यापक रूप से पाया जाता है। .

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लंबी चोंच का गिद्ध

लंबी चोंच का गिद्ध (Gyps tenuirostris) हाल ही में पहचानी गई जाति है। पहले इसे भारतीय गिद्ध की एक उपजाति समझा जाता था, लेकिन हाल के शोधों से पता चला है कि यह एक अलग जाति है। जहाँ भारतीय गिद्ध गंगा नदी के दक्षिण में पाया जाता है तथा खड़ी चट्टानों के उभार में अपना घोंसला बनाता है वहीं लंबी चोंच का गिद्ध तराई इलाके से लेकर दक्षिण-पूर्वी एशिया तक पाया जाता है और अपना घोंसला पेड़ों पर बनाता है। यह गिद्ध पुरानी दुनिया का गिद्ध है जो नई दुनिया के गिद्धों से अपनी सूंघने की शक्ति में भिन्न हैं। .

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लौवा

लौवा (Rock Bush Quail) (Perdicula argoondah) बटेर के कुल का एक पक्षी है जो पश्चिमी और दक्षिणी भारत में व्यापक रूप से पाया जाता है। यह विशुद्ध भारतीय जाति है जो और कहीं भी नहीं पाई जाती है। जैसा कि इसका अंग्रेज़ी नाम प्रदर्शित करता है, यह पक्षी पथरीले इलाकों में अधिक पाया जाता है और यह इलाका मध्य भारत के विशाल क्षेत्र में है। मादा अगस्त या सितम्बर के महीने में ६ से ८ अण्डे देती है। यह अण्डे झाड़ियों के जड़ में खोदे गये ५-६ इन्च के कोटर में दिये जाते हैं। इसकी लंबाई लगभग १७ से १८.५ से.मी.

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लौआ

लौआ (Jungle Bush Quail) (Perdicula asiatica) बटेर परिवार का एक पक्षी है जो भारत और श्रीलंका में पाया जाता है और अब नेपाल से विलुप्त हो गया है। इसके आहार में अधिकतर घास के बीज होते हैं लेकिन इसे कीड़े-मकोड़ों से भी कोई परहेज़ नहीं है। नर और मादा में फ़र्क यह है कि जहाँ नर का अगला भाग सफ़ेद और काली धारियों से भरा होता है वहीं मादा का अग्र भाग लाली लिए हुए होता है। यह समुद्र सतह से चार से पाँच हज़ार फ़ुट की ऊँचाई तक घने जंगलों में, पर्वतीय इलाकों में, ऊबड़-खाबड़ मैदानों में, ऊसर ज़मीन में और ऐसे खेतों में जहाँ ज़्यादा पानी न हो, में पाया जाता है। इसकी लंबाई लगभग १६ से १८ से.मी.

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लूंगी

मुनाल (Tragopan satyra) मुनाल (वैज्ञानिक नाम: Tragopan satyra) एक पक्षी है जो नेपाल, तिब्बत, भूटान और भारत के उत्तराखण्ड राज्य के हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। यह कबूतर की प्रजाति की पक्षी है। यह बहुत ही बहुत सुंदर पहाड़ी पक्षी है जिसकी हरी गरदन पर सुंदर कंठा सा होता है और जिसके सिर पर कलँगी होती है। यह नेपाल का राष्त्रीय पक्षी तथा उत्तराखण्ड राज्य का राजकीय पक्षी घोषित है। .

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शाह बुलबुल

शाह बुलबुल (Terpsiphone paradisi) शाह बुलबुल (पैराडाइज फ्लाईकैचर) एक पक्षी है जो एशिया, अफ्रीका तथा अनेक द्वीपों में पाया जाता है। इसकी कुछ प्रजातियाँ प्रवास भी करतीं हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनके नर की पूँछ बहुत बड़ी होती है। नर शाह बुलबुल का रंग सफेद होता है और उसके सर पर काले रंग की कलंगी और २ लम्बे रिबन जैसी पूंछ होती है। मादा हल्के लाल भूरे रंग की होती है और उस में पूंछ नहीं होती है। .

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शिकरा

शिकरा एक छोटा शिकारी पक्षी है जो बाज़ की एक प्रजाति है। यह एशिया तथा अफ़्रीका में काफ़ी संख्या में पाया जाता है। क्रमिक विकास के दौरान, शिकारियों से बचने के लिए इसके रूप की नक़्ल पपीहे ने की है। .

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शिकार (खाना)

शिकार हर उस जानवर या पक्षी को कहा जाता है जिसका शिकार खाने या खेल के लिए किया जाता है। उत्तरपश्चिम भारत में शिकार शब्द का प्रयोग अमूमन सुअर के लिए किया जाता है जबकि शेष भारत में इसे किसी भी जीव के लिए उपयोग में लाया जाता है। .

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शुतुरमुर्ग

शुतुरमुर्ग (Struthio camelus) पहले मध्य पूर्व और अब अफ्रीका का निवासी एक बड़ा उड़ान रहित पक्षी है। यह स्ट्रुथिओनिडि (en:Struthionidae) कुल की एकमात्र जीवित प्रजाति है, इसका वंश स्ट्रुथिओ (en:Struthio) है। शुतुरमुर्ग के गण, स्ट्रुथिओफॉर्म के अन्य सदस्य एमु, कीवी आदि हैं। इसकी गर्दन और पैर लंबे होते हैं और आवश्यकता पड़ने पर यह ७० किमी/घंटा की अधिकतम गति से भाग सकता है जो इस पृथ्वी पर पाये जाने वाले किसी भी अन्य पक्षी से अधिक है।शुतुरमुर्ग पक्षिओं की सबसे बड़ी जीवित प्रजातियों मे से है और यह किसी भी अन्य जीवित पक्षी प्रजाति की तुलना में सबसे बड़े अंडे देता है। प्रायः शुतुरमुर्ग शाकाहारी होता है लेकिन उसके आहार में अकशेरुकी भी शामिल होते हैं। यह खानाबदोश गुटों में रहता है जिसकी संख्या पाँच से पचास तक हो सकती है। संकट की अवस्था में या तो यह ज़मीन से सट कर अपने को छुपाने की कोशिश करता है या फिर भाग खड़ा होता है। फँस जाने पर यह अपने पैरों से घातक लात मार सकता है। संसर्ग के तरीक़े भौगोलिक इलाकों के मुताबिक भिन्न होते हैं, लेकिन क्षेत्रीय नर के हरम में दो से सात मादाएँ होती हैं जिनके लिए वह झगड़ा भी करते हैं। आमतौर पर यह लड़ाइयाँ कुछ मिनट की ही होती हैं लेकिन सर की मार की वजह से इनमें विपक्षी की मौत भी हो सकती है।आज दुनिया भर में शुतुरमुर्ग व्यावसायिक रूप से पाले जा रहे हैं मुख्यतः उनके पंखों के लिए, जिनका इस्तेमाल सजावट तथा झाड़ू बनाने के लिए किया जाता है। इसकी चमड़ी चर्म उत्पाद तथा इसका मांस व्यावसायिक तौर से इस्तेमाल में लाया जाता है। .

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श्येन

श्येन या शिकारा (Falcon) पक्षियों के फ़ैल्को वंश की सदस्य जातियों को कहते हैं। यह शिकारी पक्षी होते हैं जो अंटार्कटिका को छोड़कर विश्व के हर अन्य महाद्वीप में मिलते हैं। कुल मिलाकर इस वंश में लगभग ४० ज्ञात जातियाँ हैं। .

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श्रीलंका के वन्य जीव

श्रीलंका के वन्यजीव, वनस्पतियां एवं जीव जंतु अपने प्राकृतिक निवास में रहते हैं। श्रीलंका मैं जैविक स्थानिकता की विश्व में उच्चतम दर है (16% जीव और पौधों की 23% हैं) .

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श्वेतकण्ठ कौड़िल्ला

कोई विवरण नहीं।

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सफ़ेद तीतर

सफ़ेद तीतर, गोरा तीतर या राम तीतर (Grey Francolin) (Francolinus pondicerianus) फ़्रैंकोलिन जाति का एक सदस्य है जो कि दक्षिण एशिया के मैदानों और सूखे इलाकों में पाया जाता है। जिन देशों का यह मूल निवासी है और जहाँ इसको प्रचलित किया गया है वह इस प्रकार हैं:-.

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सफ़ेद गाल वाला तीतर

सफ़ेद गाल वाला तीतर (White-cheeked Partridge) (Arborophila atrogularis) तीतर कुल का एक पक्षी है जो पूर्वोत्तर भारत, चीन, म्यानमार तथा बांग्लादेश में पाया जाता है। .

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सफ़ेद गिद्ध

स्पेन के मैड्रिड स्थित एक चिड़ियाघर में सफ़ेद गिद्ध सफ़ेद गिद्ध (Egyptian Vulture) (Neophron percnopterus) पुरानी दुनिया (जिसमें दोनों अमरीकी महाद्वीप शामिल नहीं होते) का गिद्ध है जो पहले पश्चिमी अफ़्रीका से लेकर उत्तर भारत, पाकिस्तान और नेपाल में काफ़ी तादाद में पाया जाता था किन्तु अब इसकी आबादी में बहुत गिरावट आयी है और इसे अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने संकटग्रस्त घोषित कर दिया है। भारत में जो उपप्रजाति पाई जाती है उसका वैज्ञानिक नाम (Neophron percnopterus ginginianus) है। उत्तर भारत के अलावा भारत में अन्य जगह यह प्रवासी पक्षी है। .

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सफेद पुट्ठे वाली मुनिया

सफ़ेद पुट्ठे वाली मुनिया या सफ़ेद पुट्ठे वाली मैन्निकिन (लोन्चुरा स्ट्रिआटा), जिसे एविकल्चर (पक्षियों को रखने और पालने का कार्य) में कभी-कभी स्ट्रिएटेड फिंच भी कहते हैं, एक छोटी पासेराइन पक्षी है जो वैक्सबिल "फिन्चेस" (एस्ट्रिलडीडे) परिवार से है। यह वास्तविक फिन्चेस (फ्रिन्जिल्लिडे) और वास्तविक गौरेया (पासेरिडे) के नजदीकी रिश्तेदार हैं। यह उष्णकटिबंधीय एशिया और इसके कुछ आसपास के द्वीपों की मूलवासी है और जापान के स्पोम भागों में इसे अनुकूलित किया गया है। इसके घरेलू संकर वंशज, सोसाइटी फिंच या बेंगालीज़ फिंच, विश्व भर में एक घरेलू पक्षी और जैविक आदर्श जीवधारी के रूप में पाए जाते हैं। .

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सलेटी मयूर-तीतर

सलेटी मयूर-तीतर (Grey peacock-pheasant) (Polyplectron bicalcaratum) गॉलिफ़ॉर्मिस गण का एक बड़ा एशियाई पक्षी है। यह म्यानमार का राष्ट्रीय पक्षी है। .

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सलेटी जंगली मुर्गा

सलेटी जंगली मुर्गा (Grey junglefowl) (Gallus sonneratii) फ़ीज़ेन्ट कुल का पक्षी है जिसका मूल आवास भारत में ही है। .

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साँप

साँप साँप या सर्प, पृष्ठवंशी सरीसृप वर्ग का प्राणी है। यह जल तथा थल दोनों जगह पाया जाता है। इसका शरीर लम्बी रस्सी के समान होता है जो पूरा का पूरा स्केल्स से ढँका रहता है। साँप के पैर नहीं होते हैं। यह निचले भाग में उपस्थित घड़ारियों की सहायता से चलता फिरता है। इसकी आँखों में पलकें नहीं होती, ये हमेशा खुली रहती हैं। साँप विषैले तथा विषहीन दोनों प्रकार के होते हैं। इसके ऊपरी और निचले जबड़े की हड्डियाँ इस प्रकार की सन्धि बनाती है जिसके कारण इसका मुँह बड़े आकार में खुलता है। इसके मुँह में विष की थैली होती है जिससे जुडे़ दाँत तेज तथा खोखले होते हैं अतः इसके काटते ही विष शरीर में प्रवेश कर जाता है। दुनिया में साँपों की कोई २५००-३००० प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इसकी कुछ प्रजातियों का आकार १० सेण्टीमीटर होता है जबकि अजगर नामक साँप २५ फिट तक लम्बा होता है। साँप मेढक, छिपकली, पक्षी, चूहे तथा दूसरे साँपों को खाता है। यह कभी-कभी बड़े जन्तुओं को भी निगल जाता है। सरीसृप वर्ग के अन्य सभी सदस्यों की तरह ही सर्प शीतरक्त का प्राणी है अर्थात् यह अपने शरीर का तापमान स्वंय नियंत्रित नहीं कर सकता है। इसके शरीर का तापमान वातावरण के ताप के अनुसार घटता या बढ़ता रहता है। यह अपने शरीर के तापमान को बढ़ाने के लिए भोजन पर निर्भर नहीं है इसलिए अत्यन्त कम भोजन मिलने पर भी यह जीवीत रहता है। कुछ साँपों को महीनों बाद-बाद भोजन मिलता है तथा कुछ सर्प वर्ष में मात्र एक बार या दो बार ढेड़ सारा खाना खाकर जीवीत रहते हैं। खाते समय साँप भोजन को चबाकर नहीं खाता है बल्कि पूरा का पूरा निकल जाता है। अधिकांश सर्पों के जबड़े इनके सिर से भी बड़े शिकार को निगल सकने के लिए अनुकुलित होते हैं। अफ्रीका का अजगर तो छोटी गाय आदि को भी नगल जाता है। विश्व का सबसे छोटा साँप थ्रेड स्नेक होता है। जो कैरेबियन सागर के सेट लुसिया माटिनिक तथा वारवडोस आदि द्वीपों में पाया जाता है वह केवल १०-१२ सेंटीमीटर लंबा होता है। विश्व का सबसे लंबा साँप रैटिकुलेटेड पेथोन (जालीदार अजगर) है, जो प्राय: १० मीटर से भी अधिक लंबा तथा १२० किलोग्राम वजन तक का पाया जाता है। यह दक्षिण -पूर्वी एशिया तथा फिलीपींस में मिलता है। .

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सारस (पक्षी)

सारस विश्व का सबसे विशाल उड़ने वाला पक्षी है। इस पक्षी को क्रौंच के नाम से भी जानते हैं। पूरे विश्व में भारतवर्ष में इस पक्षी की सबसे अधिक संख्या पाई जाती है। सबसे बड़ा पक्षी होने के अतिरिक्त इस पक्षी की कुछ अन्य विशेषताएं इसे विशेष महत्व देती हैं। उत्तर प्रदेश के इस राजकीय पक्षी को मुख्यतः गंगा के मैदानी भागों और भारत के उत्तरी और उत्तर पूर्वी और इसी प्रकार के समान जलवायु वाले अन्य भागों में देखा जा सकता है। भारत में पाये जाने वाला सारस पक्षी यहां के स्थाई प्रवासी होते हैं और एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहना पसंद करते हैं। सारस पक्षी का अपना विशिष्ट सांस्कृतिक महत्व भी है। विश्व के प्रथम ग्रंथ रामायण की प्रथम कविता का श्रेय सारस पक्षी को जाता है। रामायण का आरंभ एक प्रणयरत सारस-युगल के वर्णन से होता है। प्रातःकाल की बेला में महर्षि वाल्मीकि इसके द्रष्टा हैं तभी एक आखेटक द्वारा इस जोड़े में से एक की हत्या कर दी जाती है। जोड़े का दूसरा पक्षी इसके वियोग में प्राण दे देता है। ऋषि उस आखेटक को श्राप देते हैं। अर्थात्, हे निषाद! तुझे निरंतर कभी शांति न मिले। तूने इस क्रौंच के जोड़े में से एक की जो काम से मोहित हो रहा था, बिना किसी अपराध के हत्या कर डाली। .

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सिन्गातोका

सिन्गातोका (Sigatoka) प्रशांत महासागर के फ़िजी देश का एक नगर है। यह विति लेवु द्वीप के दक्षिणापश्चिमी भाग में, सिन्गातोका नदी के किनारे, नान्दी से 61 किमी दूर स्थित है। प्रशासनिक रूप से यह फ़िजी के पश्चिमी विभाग के नान्द्रोगा-नावोसा प्रान्त का भाग है। .

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सिंगापुर में पर्यटन

सिंगापुर बॉटेनिकल गार्डन में ऑर्किड ऐतिहासिक रेफल्स होटल एक राष्ट्रीय स्मारक है सिंगापुर में पर्यटन एक प्रमुख उद्योग है और हर साल ये लाखों की संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है। इसके सांस्कृतिक आकर्षण का श्रेय इसकी सांस्कृतिक विविधता को दिया जाता है जो इसके औपनिवेशिक इतिहास और चीनी, मलय, भारतीय और अरब जातीयता को दर्शाता है। इस देश में पर्यावरण का पूरा ख्याल रखा जाता है और प्रकृति तथा विरासत संरक्षण संबंधी कई कार्यक्रम चलाए जाते हैं। यहां जिन चार भाषाओं को आधिकारिक दर्जा प्राप्त है उनमें अंग्रेजी सबसे ज्यादा प्रचलित है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अंग्रेजी पूरी दुनिया में बोली और समझी जाने वाली भाषा है और जब कोई पर्यटक सिंगापुर पहुंचता है और वहां के स्थानीय लोगों से बातचीत करता है, खासकर जब कुछ खरीदारी करता है तब उसे काफी सुविधा होती है। सिंगापुर की यातायात व्यवस्था बहुत अच्छी है और ये करीब-करीब वहां के सभी पर्यटन स्थलों को कवर करती है जिससे पर्यटकों को घूमने में आसानी रहती है। इसमें यहां का बेहद लोकप्रिय मास रैपिड ट्रांजिट (MRT) सिस्टम भी शामिल है। सिंगापुर के प्रमुख पर्यटन स्थलों की बात करें तो ये दर्जा ऑर्चर्ड रोड डिस्ट्रिक्ट को जाता है; यहां बहुमंजिला शॉपिंग सेंटर्स की और होटलों की भरमार है। सिंगापुर के दूसरे आकर्षक पर्यटन स्थलों में सिंगापुर चिड़ियाघर और नाइट सफारी को शामिल किया जा सकता है, जहां पर्यटकों को एशियाई, अफ्रीकी और अमेरिकी जीवों को रात के अंधेरे में देखने का मौका मिलता है। खास बात ये है कि यहां पर्यटक इन जंगली जानवरों को पिंजरे के अंदर नहीं बल्कि आमने-सामने देख सकते हैं। सिंगापुर चिड़ियाघर एक खास तरह का ओपन जू है, जहां जानवरों को पिंजरे के बजाए एक ऐसे घेरे में रखा जाता है जिनके चारों ओर गहरी खाई बनी है। ये खाइयां सूखी अथवा पानी से भरी हो सकती हैं। जूरोंग बर्ड पार्क एक अन्य जूलॉजिकल गार्डन है जो पक्षियों पर केंद्रित है। यहां पर्यटकों को एक हजार फ्लैमिंगों पक्षियों के झुंड के अलावा दुनिया भर में पाए जाने वाले पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों और किस्मों को देखने का मौका मिलता है। सेंटोसा द्वीप भी पर्यटकों के आकर्षण का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, जहां हर साल पचास लाख से ज्यादा पर्यटक पहुंचते हैं। ये द्वीप सिंगापुर के दक्षिण में स्थित है और यहां फोर्ट सिलोसो जैसे 20-30 प्रसिद्ध स्थान हैं; फोर्ट सिलोसो को दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापानी हमले से बचाव करने के लिए एक किले के रूप में बनाया गया था। फोर्ट सिलोसो में पर्यटकों को दूसरे विश्व युद्ध में इस्तेमाल की गयी छोटी बंदूकों से लेकर 16 पाउंड यानी करीब सात किलो वजनी बंदूकें भी देखने को मिल सकती हैं। इसके अलावा इस द्वीप पर टाइगर स्काई टावर बनाया गया है जहां से पूरे सेंटोसा द्वीप के साथ-साथ सेंटोसा ल्यूज का नजारा भी देखा जा सकता है; सेंटोसा ल्यूज में एक या दो लोग पैरों को सीधा आगे करके लेटते हैं और फिसलने का मजा लेते हैं। अपने वजन को इधर-उधर करके या लगाम को खींचकर इसे चलाया जाता है। सिंगापुर में मरिना बे सैंड्स और रिसॉर्ट्स वर्ल्ड सेंटोसा नामक दो एकीकृत रिसॉर्ट्स भी हैं जहां कैसिनो यानी जुआ खेलने के अड्डे मौजूद हैं। .

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सवाई माधोपुर

सवाई माधोपुर भारत के राजस्थान का एक प्रमुख शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है। यह जिला रणथम्‍भौर राष्‍ट्रीय उद्यान के लिए जाना जाता है, जो बाघों के लिए प्रसिद्ध है। सवाई माधोपुर जिले में निम्‍न तहसीलें हैं- गंगापुर सिटी, सवाई माधोपुर, चौथ का बरवाड़ा, बौंली, मलारना डूंगर, वजीरपुर, बामनवास और खण्डार.

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सुअर इन्फ्लूएंजा

स्थानिक्वारी सूअरों में सुअर इन्फ्लूएंजा इस reassorted इन्फ्लूएंजा H1N1 वायरस के संक्रमण सीडीसी प्रयोगशाला में फोटो खिंचवाने के इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप छवि. इस वायरस व्यास में 80-120 नानोमेत्रेस है। 4 सुअर इन्फ्लूएंजा (जिसे स्वाएन फ्लू, स्अर फ्लू या शूकर फ्लू भी कहते हैं), एक संक्रामक है जो "सूअर इन्फ़्लुएन्ज़ा वाइरस" नाम के सूक्ष्म जीव की अनेको विशिष्ट प्रकार की प्रजातियों में से किसी एक प्रकार के धारक से होती है। 2009 में संचार माध्यम ने इसको स्वाइन फ्लूकहा जो एक नई नस्ल A/H1N1 पैन्डेमिक वायरस से होता है, वैसे ही जैसे इससे पहले 'बर्ड फ्लू' हुआ था जिस फ्लू ने हाल ही में एशियाई-वंशावली HPAI (उच्च रोगजनक एवियन इन्फ़्लुएन्ज़ा) H5N1 नाम के वायरस से होता है जो कई देशों में स्थानीय जंगली पक्षियों के कई प्रजातियों में पाया जाता है, से होता था। एक सूअर इन्फ्लूएंजा वायरस (SIV) जो सामान्यतः होस्ट वायरस है जो (किसी भी स्थानीय) सुआरों में पाया जाता है। वर्ष 2009 के अनुसार SIV भेद में इन्फ्लूएंजा C वायरस और उपभेद इन्फ्लूएंजा A वायरस जो H1N1, H1N2, H3N1, H3N2, H2N3, के रूप में माना जाता है, से होता है। सुअर फ्लू दुनिया भर में सुअर आबादी में आम है। सूअर इन्फ्लुएंजा आम तौर पर सुअरों से मनुष्यों में नहीं फैलता है और अक्सर मानव इन्फ्लुएंजा का कारण नहीं होता है, तथा अक्सर इसके फलस्वरूप रक्त में केवल एंटीबॉडी ही पैदा होते हैं। पशु के मांस को यदि अच्छी तरह पकाया गया हो तो उससे संक्रमण का कोई ख़तरा नहीं होता है। यदि संक्रमण के कारण मानव इन्फ्लुएंजा होता है तो उसे जूनोटिक सूअर फ्लू कहते हैं। जो लोग सूअर के साथ काम करते हैं और उनके साथ अधिक रहते हैं उनको सुवर फ्लू होने का खतरा ज्यादा होता है। 20वीं शताब्दी के मध्य में, इन्फ्लूएंजा उपभेदों की पहचान संभव हो सका, जो मनुष्य के लिए संचरण के सही निदान की जानकारी देता है। तब से, पचास संचरण की पुष्टि दर्ज की गई है। इस तरह की नसल एक मनुष्य से दुसरे मनुष्य में बहुत कम ही प्रवेश करता है। मनुष्य में सूअर फ्लू के लक्षण मूलतः इन्फ़्लुएन्ज़ा के लक्षण होते हैं या इन्फ़्लुएन्ज़ा जैसे लक्षण होते हैं, जैसे - जैसे ठंड लगना, बुखार का आना, गले में ख़राश, मांसपेशियों में दर्द, गंभीर सिर दर्द, खांसी, कमजोरी और सामान्य असुविधा.

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स्ट्रेट द्वीप

स्ट्रेट द्वीप भारत के अण्डमान व निकोबार द्वीपसमूह के अण्डमान द्वीपसमूह भाग का एक द्वीप है। यह ६.०१ वग किमी क्षेत्रफल का एक छोटा द्वीप है जहाँ बृहत अण्डमानी समुदाय (ग्रेट अण्डमानी) के लिये एक आरक्षित क्षेत्र बनाया गया है। .

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स्वर्गपक्षी

स्वर्गपक्षी या बर्ड ऑफ़ पैराडाइज़ पासरीफ़ोर्मीज़ (Passeriformes) गण के पैराडाएसियेडाए (Paradisaeidae) कुल के सदस्य हैं। इस जाति की अधिकांश जातियाँ न्यू गिनी के द्वीप और इसके समीपी क्षेत्रों में पाई जाती हैं, तथा कुछ प्रजातियाँ मोलुक्कास और पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में पाई जाती हैं। इस जाति की 13 श्रेणियों में 40 प्रजातियां हैं। अधिकांश प्रजातियों में नरों के पंखों के कारण इस जाति के सदस्य प्रसिद्ध हैं, ये पंख विशेष रूप से अत्यधिक लंबे होते हैं तथा चोंच, डैनों एवं सिर पर फैले हुए परों के रूप में होते हैं। इनकी अधिकांश संख्या घने वर्षावनों तक ही सीमित हैं। सभी प्रजातियों का प्रमुख आहार फल तथा कुछ हद तक कीड़े मकोड़े हैं। बर्ड ऑफ़ पैराडाइज़ पक्षियों में प्रजनन की विभिन्न प्रणालियां हैं जो एक मादा से लेकर सामूहिक रूप से कई मादाओं पर आधारित होती है। न्यू गिनी के निवासियों के लिए इस जाति का सांस्कृतिक महत्व है। बर्ड ऑफ़ पैराडाइज़ की खालों तथा पंखों का व्यापार दो हज़ार साल पुराना है, तथा पश्चिमी संग्रहकर्ताओं, पक्षी वैज्ञानिकों एवं लेखकों की इन पक्षियों में काफी रूचि है। शिकार तथा निवास स्थलों की हानि के कारण कई प्रजातियां खतरे में हैं। .

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स्वसंगठन

स्वसंगठन (self-organization), जो स्वप्रसूत व्यवस्था (spontaneous order) भी कहलाता है, ऐसी प्रक्रिया होती है जिसमें किसी अव्यवस्थित तंत्र (सिस्टम) के भाग अपनी-अपनी गतिविधियों द्वारा एक-दूसरे को प्रभावित कर के उस तंत्र में (बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के) स्वयं ही व्यवस्थित कर लेते हैं। यह उभरने वाला संगठन उस तंत्र के सभी भागों को अपने-आप में सम्मिलित कर लेता है। स्वसंगठन जटिल तंत्रों में उदगमता (ऍमेर्जेन्स) से उत्पन्न होता है। अक्सर यह उदगम व्यवस्था मज़बूत होती है और, यदी तंत्र को छेड़कर इस संगठन को भंग करा जाये तो तंत्र कुछ हद तक इसकी स्वयं ही मरम्म्त कर के उसे पुनःस्थापित करने में सक्षम होता है। .

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स्क्लैटर मोनाल

स्क्लैटर मोनाल (Sclater's monal) या (crestless monal) (Lophophorus sclateri) मोनाल प्रजाति का एक पक्षी है जो पूर्वी हिमालय में पाया जाता है तथा इसकी एक उपजाति अरुणाचल प्रदेश के मिश्मी पहाड़ों में पाई जाती है। .

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सूरजमुखी

पूरा बीज (दाएं) और कर्नेल बिना छिलके के (बाएं) सूरजमुखी या 'सूर्यमुखी' (वानस्पतिक नाम: हेलियनथस एनस) अमेरिका के देशज वार्षिक पौधे हैं। यह अनेक देशों के बागों में उगाया जाता है। यह कंपोजिटी (Compositae) कुल के हेलिएंथस (Helianthus) गण का एक सदस्य है। इस गण में लगभग साठ जातियाँ पाई गई हैं जिनमें हेलिएंथस ऐमूस (Helianthus annuus), हेलिएंथस डिकैपेटलेस (Helianthus decapetalus), हेलिएंथिस मल्टिफ्लोरस (Helianthus multiflorus), हे.

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सॅटिर ट्रॅगोपॅन

श्रेणी:भारत के पक्षी श्रेणी:तीतर.

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सी-सी तीतर

सी-सी तीतर (See-see Partridge) (Ammoperdix griseogularis) फ़ीज़ैन्ट कुल का एक पक्षी है जो कि सीरिया, अज़रबैजान, अफ़्गानिस्तान, ईरान, ईराक़, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कज़ाख़िस्तान, उज़बेकिस्तान, पाकिस्तान तथा भारत में पाया जाता है। .

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हँस

कोई विवरण नहीं।

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हरियाल

हरियाल जिसे अंग्रेजी में Theyellow-footed green pigeon कहते हैं। यह पहली बार भारतीय उपमहाद्वीप में देखने को मिली थी हरियालभारत के महाराष्ट्र राज्य की राजकीय पक्षी है। यह ट्रेरन फॉनीकॉप्टेरा (Treron phoenicoptera) की प्रजाति की है। .

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हार्ट-स्पॉटेड कठफोड़वा

हार्ट-स्पॉटेड कठफोड़वा (हेमीसिर्कस कैनेंटे) कठफोड़वा परिवार में पक्षियों की एक प्रजाति है। उनमें विपरीत रंगों, सफ़ेद तथा काले का संयोजन पाया जाता है, एक नाटे परन्तु सुदृढ़ शरीर के साथ एक ढलुआं आकार का सिर इसे आसानी से पहचाने जाने योग्य बनाते हैं, तथा इनकी नियमित पुकार इन्हें आसनी से खोजे जाने योग्य बनाती है, ये अपृष्ठवंशियों (मुख्यतः कीट) रूपी चारा खोजने के लिए वृक्षों की टहनियों के नीचे तनों पर जाते हैं। वे जोड़े अथवा छोटे समूह में देखे जाते हैं तथा अक्सर चारा खोजता हुआ मिश्रित-प्रजाति का समूह के भाग के रूप में भी दिखाई देते हैं। इनका व्यापक वितरण सम्पूर्ण एशिया में विशेष रूप से दक्षिण-पश्चिमी और मध्य भारत के जंगलों में, जो अपने विस्तार में हिमालय तथा दक्षिण-पूर्व एशिया से अलग होते हैं, पाया जाता है। .

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हिम तीतर

हिम तीतर (Snow Partridge) (lerwa lerwa) फ़ीज़ैन्ट कुल का प्राणी है जो हिमालय के ऊँचे इलाकों में भरपूर पाया जाता है। यह पाकिस्तान, भारत, नेपाल और चीन में पाया जाता। अपनी प्रजाति का यह इकलौता पक्षी जीवित है। यह वृक्ष रेखा से ऊपर अल्पाइन चारागाह और खुले पहाड़ों की ढलानों में पाये जाते हैं लेकिन हिमालय के बर्फ़मुर्ग के विपरीत यह पथरीले इलाकों में नहीं पाये जाते हैं और उसकी भांति इतने सावधान भी नहीं होते हैं। .

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हिमालय का रामचकोर

हिमालय का रामचकोर (Himalayan Snowcock) (Tetraogallus himalayensis) फ़ैज़ैन्ट कुल का एक पक्षी है। यह हिमालय पर्वतमाला में व्यापक रूप से और पामीर पर्वतमाला में कुछ जगहों में पाया जाता है। यह वृक्ष रेखा से ऊपर अल्पाइन चारागाह तथा खड़ी ढाल वाली चट्टानों में पाया जाता है जहाँ से ख़तरा होने पर यह नीचे की ओर लुढ़क जाता है। तिब्बती रामचकोर इससे कुछ छोटा होता है और हिमालय के कुछ इलाकों में यह दोनों परस्पर व्याप्त हैं। विभिन्न इलाकों में इनकी रंगत कुछ भिन्न होती है और इस आधार पर इनको चार उपजातियों में विभाजित किया गया है। संयुक्त राज्य अमेरिका के नेवाडा राज्य में इनको प्रचलित किया गया था जहाँ इन्होंने अपने पैर जमा लिए हैं। .

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हिमालयी मोनाल

हिमालयी मोनाल (Himalayan monal) (Lophophorus impejanus) जिसे नेपाल और उत्तराखंड में डाँफे के नाम से जानते हैं। यह पक्षी हिमालय पर पाये जाते हैं। यह नेपाल का राष्ट्रीय पक्षी और उत्तराखण्ड का "राज्य पक्षी" है। .

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हिमालयी वन चिड़िया

हिमालयी वन चिड़िया (जूथेरा सालिमअली) चिड़िया की एक प्रजाति है, जिसे 2016 में खोजा गया था। इसका नाम भारत के पक्षी विज्ञानी सालिम अली के नाम पर "जूथेरा सालिमअली" रखा गया। वंशावली अध्ययन के आधार पर यह पता चलता है कि इस प्रजाति कि आबादी कम से कम 3 लाख वर्ष पूर्व अपने पूर्वज से अलग हो गई थी। इनका निवास स्थान हिमालय के वनों में है। .

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हिंदू धर्म में कर्म

कर्म हिंदू धर्म की वह अवधारणा है, जो एक प्रणाली के माध्यम से कार्य-कारण के सिद्धांत की व्याख्या करती है, जहां पिछले हितकर कार्यों का हितकर प्रभाव और हानिकर कार्यों का हानिकर प्रभाव प्राप्त होता है, जो पुनर्जन्म का एक चक्र बनाते हुए आत्मा के जीवन में पुन: अवतरण या पुनर्जन्म की क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं की एक प्रणाली की रचना करती है। कहा जाता है कि कार्य-कारण सिद्धांत न केवल भौतिक दुनिया में लागू होता है, बल्कि हमारे विचारों, शब्दों, कार्यों और उन कार्यों पर भी लागू होता है जो हमारे निर्देशों पर दूसरे किया करते हैं। परमहंस स्वामी महेश्वराआनंद, मानव में छिपी शक्ति, इबेरा वरलैग, पृष्ठ 23, ISBN 3-85052-197-4 जब पुनर्जन्म का चक्र समाप्त हो जाता है, तब कहा जाता है कि उस व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है, या संसार से मुक्ति मिलती है। सभी पुनर्जन्म मानव योनि में ही नहीं होते हैं। कहते हैं कि पृथ्वी पर जन्म और मृत्यु का चक्र 84 लाख योनियों में चलता रहता है, लेकिन केवल मानव योनि में ही इस चक्र से बाहर निकलना संभव है।परमहंस स्वामी महेश्वराआनंद, मानव में छिपी शक्ति, इबेरा वरलैग, पृष्ठ 24, ISBN 3-85052-197-4 .

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हंस (पक्षी)

हंस हंस एक पक्षी है। भारतीय साहित्य में इसे बहुत विवेकी पक्षी माना जाता है। और ऐसा विश्वास है कि यह नीर-क्षीर विवेक (पानी और दूध को अलग करने वाला विवेक) से युक्त है। यह विद्या की देवी सरस्वती का वाहन है। ऐसी मान्यता है कि यह मानसरोवर में रहते हैं। यह पानी मे रहता है। श्रेणी:पक्षी.

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हुत्काह

हुत्काह (Painted spurfowl) (Galloperdix lunulata) तीतर कुल का एक पक्षी है जो कि मध्य भारत से लेकर दक्षिण भारत के झाड़ियों या पथरीले इलाकों में आवास करता है। .

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हृदय

कोरोनरी धमनियों के साथ मानव हृदय. हृदय या हिया या दिल एक पेशीय (muscular) अंग है, जो सभी कशेरुकी (vertebrate) जीवों में आवृत ताल बद्ध संकुचन के द्वारा रक्त का प्रवाह शरीर के सभी भागो तक पहुचाता है। कशेरुकियों का ह्रदय हृद पेशी (cardiac muscle) से बना होता है, जो एक अनैच्छिक पेशी (involuntary muscle) ऊतक है, जो केवल ह्रदय अंग में ही पाया जाता है। औसतन मानव ह्रदय एक मिनट में ७२ बार धड़कता है, जो (लगभग ६६वर्ष) एक जीवन काल में २.५ बिलियन बार धड़कता है। इसका भार औसतन महिलाओं में २५० से ३०० ग्राम और पुरुषों में ३०० से ३५० ग्राम होता है। .

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हूपू

हूपू (Hoopoe) एक पक्षी है जो अफ़्रीका, एशिया और युरोप में बहुत स्थानों पर पाया जाता है। यह अपने रंगों, चोंच और सिर पर पंखों के मुकुट से आसानी से पहचाना जाता है। यह उपुपिडाए (Upupidae) जीववैज्ञानिक कुल की एकमात्र अस्तित्ववान जाति है। सेंट हेलेना हूपू एक भिन्न जाति हुआ करती थी लेकिन वह अब विलुप्त हो गई है। माडागास्कर में एक माडागास्कर हूपू नामक उपजाति मिलती है जिसे कुछ जीववैज्ञानिक कभी-कभी अलग जाति बताते हैं। .

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जयपुर का इंडियन ऑयल डिपो अग्निकांड

जयपुर इंडियन ऑयल डिपो अग्निकांड गुरूवार २९ अक्टूबर २००९ को हुआ था। इस अग्निकाण्ड में राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर शहर के निकट स्थित सांगानेर में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के तेल भण्डार डिपो में भीषण आग लग गई जिसमें कंपनी को जहाँ करोड़ों की हानि हुई, वहीं इस दुर्घटना में ११ लोगों की मृत्यु भी हो गयी। .

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जाति (जीवविज्ञान)

जाति (स्पीशीज़) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण की सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी है जाति (अंग्रेज़ी: species, स्पीशीज़) जीवों के जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी होती है। जीववैज्ञानिक नज़रिए से ऐसे जीवों के समूह को एक जाति बुलाया जाता है जो एक दुसरे के साथ संतान उत्पन्न करने की क्षमता रखते हो और जिनकी संतान स्वयं आगे संतान जनने की क्षमता रखती हो। उदाहरण के लिए एक भेड़िया और शेर आपस में बच्चा पैदा नहीं कर सकते इसलिए वे अलग जातियों के माने जाते हैं। एक घोड़ा और गधा आपस में बच्चा पैदा कर सकते हैं (जिसे खच्चर बुलाया जाता है), लेकिन क्योंकि खच्चर आगे बच्चा जनने में असमर्थ होते हैं, इसलिए घोड़े और गधे भी अलग जातियों के माने जाते हैं। इसके विपरीत कुत्ते बहुत अलग आकारों में मिलते हैं लेकिन किसी भी नर कुत्ते और मादा कुत्ते के आपस में बच्चे हो सकते हैं जो स्वयं आगे संतान पैदा करने में सक्षम हैं। इसलिए सभी कुत्ते, चाहे वे किसी नसल के ही क्यों न हों, जीववैज्ञानिक दृष्टि से एक ही जाति के सदस्य समझे जाते हैं।, Sahotra Sarkar, Anya Plutynski, John Wiley & Sons, 2010, ISBN 978-1-4443-3785-3,...

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जापानी बटेर

जापानी बटेर (Japanese quail या coturnix quail) (Coturnix japonica) बटेर कुल का एक पक्षी है। यह पूर्वी एशिया में प्रजनन करता है जिसमें उत्तरी मंगोलिया, रूस के साख़ालिन, बायकाल और वितिम इलाके, पूर्वोत्तर चीन, जापान, उत्तरी कोरिया तथा दक्षिणी कोरिया शामिल हैं। कुछ संख्या जापान से प्रवास नहीं करती है लेकिन अधिकतर पक्षी सर्दियों में दक्षिण में दक्षिणी चीन, लाओस, वियतनाम, कंबोडिया, म्यानमार, भूटान और पूर्वोत्तर भारत की ओर प्रवास कर जाते हैं। जिन जगहों पर इस पक्षी का मूल निवास है, या प्रचलित किया गया है अथवा यदा-कदा मिलता है वह इस प्रकार हैं:-.

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जंगली तीतर

जंगली तीतर या बन तीतर (वन, बन यानि जंगल) (Swamp Francolin) (Francolinus gularis) फ़ीज़ैन्ट कुल का एक पक्षी है। इसका मूल निवास गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों की घाटियों में है– पश्चिमी नेपाल की तराई से लेकर उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और अरुणाचल प्रदेश तक। पहले यह बांग्लादेश के चटगाँव इलाके तथा सुन्दरबन में प्रचुर मात्रा में पाया जाता था, लेकिन हाल में यह नहीं देखा गया है और अब यह अनुमान लगाया गया है कि इन इलाकों से इनका उन्मूलन हो गया है। भारत में यह सभी तराई के सुरक्षित क्षेत्रों में पाया गया है जो यह बतलाता है कि यह पूर्व अनुमानित आंकड़ों से अधिक संख्या में विद्यमान है। नेपाल में, जहाँ इसका आवास क्षेत्र २,४०० वर्ग कि॰मी॰ का है और निवास ३३० वर्ग कि.

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जुनबगला

जुनबगला (Bittern) या बकुला एक प्रकार का लम्बी टाँगों वाला बगुले पक्षी कुल के अंतर्गत एक उपकुल है। यह तटीय, नदीय और दलदली क्षेत्रों में मिलते हैं। .

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जैव संरक्षण

जैव संरक्षण, प्रजातियां, उनके प्राकृतिक वास और पारिस्थितिक तंत्र को विलोपन से बचाने के उद्देश्य से प्रकृति और पृथ्वी की जैव विविधता के स्तरों का वैज्ञानिक अध्ययन है। यह विज्ञान, अर्थशास्त्र और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के व्यवहार से आहरित अंतरनियंत्रित विषय है। शब्द कन्सर्वेशन बॉयोलोजी को जीव-विज्ञानी ब्रूस विलकॉक्स और माइकल सूले द्वारा 1978 में ला जोला, कैलिफ़ोर्निया स्थित कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय में आयोजित सम्मेलन में शीर्षक के तौर पर प्रवर्तित किया गया। बैठक वैज्ञानिकों के बीच उष्णकटिबंधीय वनों की कटाई, लुप्त होने वाली प्रजातियों और प्रजातियों के भीतर क्षतिग्रस्त आनुवंशिक विविधता पर चिंता से उभरी.

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जैव विविधता

--> वर्षावन जैव विविधता जीवन और विविधता के संयोग से निर्मित शब्द है जो आम तौर पर पृथ्वी पर मौजूद जीवन की विविधता और परिवर्तनशीलता को संदर्भित करता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (युएनईपी), के अनुसार जैवविविधता biodiversity विशिष्टतया अनुवांशिक, प्रजाति, तथा पारिस्थितिकि तंत्र के विविधता का स्तर मापता है। जैव विविधता किसी जैविक तंत्र के स्वास्थ्य का द्योतक है। पृथ्वी पर जीवन आज लाखों विशिष्ट जैविक प्रजातियों के रूप में उपस्थित हैं। सन् 2010 को जैव विविधता का अंतरराष्ट्रीय वर्ष, घोषित किया गया है। .

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जेवर (पक्षी)

जेवर (western tragopan) या (western horned tragopan) (Tragopan melanocephalus) एक मध्य आकार का फ़ीज़ॅन्ट कुल का पक्षी है जो हिमालय में पश्चिम में उत्तरीय पाकिस्तान के हज़ारा से पूर्व में भारत के उत्तराखण्ड तक पाया जाता है। .

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जीवाश्मविज्ञान

जीवाश्मिकी या जीवाश्म विज्ञान या पैलेन्टोलॉजी (Paleontology), भौमिकी की वह शाखा है जिसका संबंध भौमिकीय युगों के उन प्राणियों और पादपों के अवशेषों से है जो अब भूपर्पटी के शैलों में ही पाए जाते हैं। जीवाश्मिकी की परिभाषा देते हुए ट्वेब होफ़ेल और आक ने लिखा है: जीवाश्मिकी वह विज्ञान है, जो आदिम पौधें तथा जंतुओं के अश्मीभूत अवशेषों द्वारा प्रकट भूतकालीन भूगर्भिक युगों के जीवनकी व्याख्या करता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जीवाश्म विज्ञान आदिकालीन जीवजंतुओं का, उने अश्मीभूत अवशेषों के आधार पर अध्ययन करता है। जीवाश्म शब्द से ही यह इंगित होता है कि जीव + अश्म (अश्मीभूत जीव) का अध्ययन है। अँग्रेजी का Palaentology शब्द भी Palaios .

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जीववैज्ञानिक वर्गीकरण

जीवजगत के समुचित अध्ययन के लिये आवश्यक है कि विभिन्न गुणधर्म एवं विशेषताओं वाले जीव अलग-अलग श्रेणियों में रखे जाऐं। इस तरह से जन्तुओं एवं पादपों के वर्गीकरण को वर्गिकी या वर्गीकरण विज्ञान अंग्रेजी में वर्गिकी के लिये दो शब्द प्रयोग में लाये जाते हैं - टैक्सोनॉमी (Taxonomy) तथा सिस्टेमैटिक्स (Systematics)। कार्ल लीनियस ने 1735 ई. में सिस्तेमा नातूरै (Systema Naturae) नामक पुस्तक सिस्टेमैटिक्स शब्द के आधार पर लिखी थी।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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घरेलू गौरैया

घरेलू गौरैया (पासर डोमेस्टिकस) एक पक्षी है जो यूरोप और एशिया में सामान्य रूप से हर जगह पाया जाता है। इसके अतिरिक्त पूरे विश्व में जहाँ-जहाँ मनुष्य गया इसने उनका अनुकरण किया और अमरीका के अधिकतर स्थानों, अफ्रीका के कुछ स्थानों, न्यूज़ीलैंड और आस्ट्रेलिया तथा अन्य नगरीय बस्तियों में अपना घर बनाया। शहरी इलाकों में गौरैया की छह तरह ही प्रजातियां पाई जाती हैं। ये हैं हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो। इनमें हाउस स्पैरो को गौरैया कहा जाता है। यह शहरों में ज्यादा पाई जाती हैं। आज यह विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाले पक्षियों में से है। लोग जहाँ भी घर बनाते हैं देर सबेर गौरैया के जोड़े वहाँ रहने पहुँच ही जाते हैं। .

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वर्षावन

ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में डैनट्री वर्षावन. क्वींसलैंड, ऑस्ट्रेलिया में केर्न्स के पास डैनट्री वर्षावन. न्यू साउथ वेल्स, ऑस्ट्रेलिया में इल्लावारा ब्रश के भाग। वर्षावन वे जंगल हैं, जिनमें प्रचुर मात्रा में वर्षा होती है अर्थात जहां न्यूनतम सामान्य वार्षिक वर्षा 1750-2000 मि॰मी॰ (68-78 इंच) के बीच है। मानसूनी कम दबाव का क्षेत्र जिसे वैकल्पिक रूप से अंतर-उष्णकटिबंधीय संसृति क्षेत्र के नाम से जाना जाता है, की पृथ्वी पर वर्षावनों के निर्माण में उल्लेखनीय भूमिका है। विश्व के पशु-पौधों की सभी प्रजातियों का कुल 40 से 75% इन्हीं वर्षावनों का मूल प्रवासी है। यह अनुमान लगाया गया है कि पौधों, कीटों और सूक्ष्मजीवों की कई लाख प्रजातियां अभी तक खोजी नहीं गई हैं। उष्णकटिबंधीय वर्षावनों को पृथ्वी के आभूषण और संसार की सबसे बड़ी औषधशाला कहा गया है, क्योंकि एक चौथाई प्राकृतिक औषधियों की खोज यहीं हुई है। विश्व के कुल ऑक्सीजन प्राप्ति का 28% वर्षावनों से ही मिलता है, इसे अक्सर कार्बन डाई ऑक्साइड से प्रकाश संष्लेषण के द्वारा प्रसंस्करण कर जैविक अधिग्रहण के माध्यम से कार्बन के रूप में भंडारण करने वाले ऑक्सीजन उत्पादन के रूप में गलत समझ लिया जाता है। भूमि स्तर पर सूर्य का प्रकाश न पहुंच पाने के कारण वर्षावनों के कई क्षेत्रों में बड़े वृक्षों के नीचे छोटे पौधे और झाड़ियां बहुत कम उग पाती हैं। इस से जंगल में चल पाना संभव हो जाता है। यदि पत्तों के वितानावरण को काट दिया जाए या हलका कर दिया जाए, तो नीचे की जमीन जल्दी ही घनी उलझी हुई बेलों, झाड़ियों और छोटे-छोटे पेड़ों से भर जाएगी, जिसे जंगल कहा जाता है। दो प्रकार के वर्षावन होते हैं, उष्णकटिबंधीय वर्षावन तथा समशीतोष्ण वर्षावन। .

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विश्व गौरैया दिवस

एक नर गौरैया विश्व गौरैया दिवस २० मार्च को मनाया जाता है। .

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व्याध

व्याध मूलत: संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका हिन्दी भाषा में अर्थ होता है शिकारी। वैसे कालिका प्रसाद के वृहत् हिन्दी कोश में इसका अर्थ शिकार द्वारा जीविका चलाने वाली एक संकर जाति बताया गया है जिसे आमतौर पर बहेलिया कहा जाता है। इस शब्द का एक और लाक्षणिक अर्थ नीच या कमीना आदमी भी है। .

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व्यवहार प्रक्रिया

सांसारिक उद्दीपनों की टक्कर खाकर सजीव प्राणी (Organisms) अपना अस्तित्व बनाए रखने के निमित्त कई प्रकार की प्रतिक्रियाएँ करता है। उसके व्यवहार को देखकर हम प्राय: अनुमान लगाते हैं कि वह किस उद्दीपक (स्टिमुलस) या परिस्थिति विशेष के लगाव से ऐसी प्रतिक्रिया करता है। जब एक चिड़िया पेड़ की शाखा या भूमि पर चोंच मारती है, तो हम झट समझ जाते हैं कि वह कोई अन्न या कीट आदि खा रही है। जब हम उसे चोंच में तिनका लेकर उड़ते देखते हैं, तो तुरंत अनुमान लगाते हैं कि वह नीड़ (घोंसला) बना रही है। इसी प्रकार मानवी शारीरिक व्यवहार से उसके मनोरथ तथा स्वभाव आदि का भी पता लगता है। .

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खरमोर

खरमोर खरमोर (वैज्ञानिक नाम: Sypheotides indicus; अंग्रेजी: Lesser Florican) एक बड़े आकार का लम्बी टाँगों वाला भारतीय पक्षी है। इसे 'चीनीमोर' या 'केरमोर' भी कहते हैं। यह मुख्यतः उत्तर-पश्चिमी महाराष्ट्र, नासिक, अहमदनगर से लेकर पश्चिमी घाट तक के भारतीय क्षेत्र में पाया जाता है किन्तु वर्षा ऋतु में यह मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात तक फैल जाता है। कभी कभार यह दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कुछ पश्चिमी भागों तक भी पहुँच जाता है। पर भारत के बाहर यह पक्षी अनजाना है। भारत में रतलाम, सरदारपुर सहित कई स्थानों पर खरमोर के अभयारण्य हैं। नर और मादा बहुत कुछ एक से ही होते हैं। इसके सिर, गर्दन और नीचे का भाग काला और ऊपरी हिस्सा हलका सफेद और तीर सदृश काले चित्तियों से भरा रहता है। कान के पीछे कुछ पंख बढ़े हुए रहते हैं। प्रणय ऋतु में नर बहुत चमकीला काले रंग का हो जाता है और सिर पर एक सुंदर कलँगी निकल आती है। मादा नर से कुछ बड़ी होती है। नर का जाड़ों में और मादा का पूरे वर्ष ऊपरी और बगल का भाग काले चिह्नों युक्त हलका बादामी रहता है। इस पक्षी को ऊबड़ खाबड़ और झाड़ियों से भरे मैदान बहुत पसंद हैं; जाड़ों में इसे खेतों में भी देखा जा सकता है। इसका मुख्य भोजन घासपात, जंगली फल, पौधों की जड़ें, नए कल्ले एवं कीड़े मकोड़े हैं। अन्य क्षेत्रीय नाम: .

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खारे पानी के मगरमच्छ

कायर्न्स, क्वींसलैंड के बाहर खारे पानी के मगरमच्छ खारे पानी का मगरमच्छ या एस्टूएराइन क्रोकोडाइल (estuarine crocodile) (क्रोकोडिलस पोरोसस) सबसे बड़े आकार का जीवित सरीसृप है। यह उत्तरी ऑस्ट्रेलिया, भारत के पूर्वी तट और दक्षिण-पूर्वी एशिया के उपयुक्त आवास स्थानों में पाया जाता है। .

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खंजन

खंजन खंजन भारतीय साहित्य का एक चिरपरिचित और उपमेय पक्षी। इसे खिंडरिच, खंजरीट, खंडलिच आदि नामों से भी पुकारते हैं। यह मोटासिलिडी (Motacillidae) कुल के मोटासिला (motacilla) वर्ग (genus) का पक्षी है जिसे अंग्रेजी में वैगटेल कहते हैं। यह भारत का बहुत प्रसिद्ध पक्षी है जो जाड़ों में उत्तर की ओर से आकर सारे देश में फैल जाता है और गरमी आरंभ होते ही शीत प्रदेशों को लौट जाता है। यह छोटा सा चंचल पक्षी है। इसकी लंबाई ७ से ९ इंच तक होती है। देह लंबी तथा पतली होती है। यह पानी के किनारे बैठा अपनी पूँछ बराबर हिलाता रहता है। इसके नेत्र हर समय चंचल रहते हैं जिसके कारण भारतीय कवि नेत्रों की उपमा खंजन से दिया करते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी मानस में लिखा है: .

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खीहा

खीहा एक भारतीय पक्षी है। इसे संस्कृत में प्रियंवद कहते हैं। इस पक्षी के दो स्पष्ट प्रादेशिक भेद है। एक तो ललमुँही खीहा (रक्तकपोल प्रियंवद) जो हिमालय में गढ़वाल से सिक्किम तक प्राय: २ से ७ हजार फुट की ऊँचाई पर पाए जाते हैं। कभी कदा ये १० हजार फुट तक की ऊँचाई पर भी देखे जाते हैं। इस वर्ग का खीहा ११ इंच का होता है। इसकी चोंच टेढ़ी होती है, ऊपरी पूँछ और डैने का घिरा हुआ भाग काही भूरा होता है और निचला भाग अखरोटी तथा सफेद होता है। ठुड्ढी और गले पर धूमिल भूरे रंग की धारियाँ होती है। यह झाड़ियों में निवास करता है और पहाड़ियों पर ही अधिकांश जीवन व्यतीत करता है। इसकी बोली मधुर होती है। नर पक्षी की बोली दुहरी होती है। दूसरी बोली पहली बोली के तत्काल बाद ध्वनित होती है। यदि मादा उसके निकट होती है तो दूसरी ध्वनि के बाद अपनी मधुर ध्वनि से तत्काल उत्तर देती है। यह पक्षी दूसरे पक्षी की बोलियों का भी प्रत्युत्तर देते हैं। यह पक्षी नाचता भी है। गुबरीला, केंचुआ, कीड़े आदि इसके मुख्य भोजन हैं। श्वेत-भौंह खीहा दूसरी जाति का खीहा मुख्यत: दक्षिण भारत के पर्वतों में पाया जाता है। किंतु आबू की पहाड़ियों, मध्य प्रदेश और खानदेश के आसपास भी ये देखे जाते है। यह ललमुँही खीहा से कुछ छोटा होता है। इसका ऊपरी भाग भूरा और माथा काला होता है। आँख के ऊपर एक सफेद पट्टी सी होती है, जिसके ऊपर काली काली किनारी होती है। छाती और पेट पर एक पतली काली भूरी लकीर होती हे। चोंच पीली होती है। इसकी बोली सामान्यत: कर्कश होती है पर कभी कभी यह मधुर सीटी भी बजाता है। लोग सीटी बजाकर अपने निकट रखने का प्रयास करते हैं। यह अपनी लंबी तलवारनुमा चोंच से फूलों का रस चूसता है। वैसे, कीड़े मकोड़े भी इसके भोजन हैं। श्रेणी:भारत के पक्षी.

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गायन

हैरी बेलाफोन्ट 1954 गायन एक ऐसी क्रिया है जिससे स्वर की सहायता से संगीतमय ध्वनि उत्पन्न की जाती है और जो सामान्य बोलचाल की गुणवत्ता को राग और ताल दोनों के प्रयोग से बढाती है। जो व्यक्ति गाता है उसे गायक या गवैया कहा जाता है। गायक गीत गाते हैं जो एकल हो सकते हैं यानी बिना किसी और साज या संगीत के साथ या फिर संगीतज्ञों व एक साज से लेकर पूरे आर्केस्ट्रा या बड़े बैंड के साथ गाए जा सकते हैं। गायन अकसर अन्य संगीतकारों के समूह में किया जाता है, जैसे भिन्न प्रकार के स्वरों वाले कई गायकों के साथ या विभिन्न प्रकार के साज बजाने वाले कलाकारों के साथ, जैसे किसी रॉक समूह या बैरोक संगठन के साथ। हर वह व्यक्ति जो बोल सकता है वह गा भी सकता है, क्योंकि गायन बोली का ही एक परिष्कृत रूप है। गायन अनौपचारिक हो सकता है और संतोष या खुशी के लिये किया जा सकता है, जैसे नहाते समय या कैराओके में; या यह बहुत औपचारिक भी हो सकता है जैसे किसी धार्मिक अनुष्ठान के समय या मंच पर या रिकार्डिंग के स्टुडियो में पेशेवर गायन के समय। ऊंचे दर्जे के पेशेवर या नौसीखिये गायन के लिये सामान्यतः निर्देशन और नियमित अभ्यास आवश्यकता होती है। पेशेवर गायक सामान्यतः किसी एक प्रकार के संगीत में अपने पेशे का निर्माण करते हैं जैसे शास्त्रीय या रॉक और आदर्श रूप से वे अपने सारे करियर के दौरान किसी स्वर-अध्यापक या स्वर-प्रशिक्षक की सहायता से स्वर-प्रशिक्षण लेते हैं। .

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गिलहरी

गिलहरी की कई प्रजातियों में कालेपन की प्रावस्था पाई जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा के बड़े हिस्से में शहरी क्षेत्रों में सर्वाधिक आसानी से देखी जा सकने वाली गिलहरियाँ पूर्वी ग्रे गिलहरियों का कालापन लिया हुआ एक रूप है। गिलहरियाँ छोटे व मध्यम आकार के कृन्तक प्राणियों की विशाल परिवार की सदस्य है जिन्हें स्कियुरिडे कहा जाता है। इस परिवार में वृक्षारोही गिलहरियाँ, भू गिलहरियाँ, चिम्पुंक, मार्मोट (जिसमे वुड्चक भी शामिल हैं), उड़न गिलहरी और प्रेइरी श्वान भी शामिल हैं। यह अमेरिका, यूरेशिया और अफ्रीका की मूल निवासी है और आस्ट्रेलिया में इन्हें दूसरी जगहों से लाया गया है। लगभग चालीस मिलियन साल पहले गिलहरियों को पहली बार, इयोसीन में साक्ष्यांकित किया गया था और यह जीवित प्रजातियों में से पर्वतीय ऊदबिलाव और डोरमाइस से निकट रूप से सम्बद्ध हैं। .

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गंडभेरुंड

गंडभेरुंड गंडभेरुंड एक काल्पनिक पक्षी जिसका अंकन भारतीय कला में पाया जाता है। इसके एक धड़ गरुड़ के सदृश होता है। यह अपने दोनों चोंच तथा पंजे में हाथी दबोचे अंकित किया जाता है। इसका प्राचीनतम अंकन विजयनगर के आरंभकालिक कतिपय सिक्कों पर पाया जाता है दक्षिण के शैव मंदिरों में उत्सव मूर्तियों के रूप में गंडभेरुंड देखने में आता है। मैसूर रियासत के राजचिन्ह के रूप में इस प्रतीक का प्रयोग हुआ है। इस पक्षी के संबंध में जनश्रुति है कि हिरण्यकश्यप के मारने के पश्चात् भी जब नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ तब गंडभेरुंड उन्हें अपने पंजे में दबोच कर आकाश में ले उड़ा था। .

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गंगा चिल्ली

काले सिर वाला घोमर पक्षी गंगा चिल्ली या घोमर (Gull) चील जाति का एक पक्षी है जो नदियों के ऊपर उड़ता हुआ दिखता है। इसका आकार मध्यम से लेकर बड़ा होता होता है। रंग धूसर या सफेद, बीच-बीच में पाथे और पंख पर काला बिन्दु होते हैं। इसकी आवाज बहुत कर्कश होती है। श्रेणी:पक्षी श्रेणी:समुद्री पक्षी.

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गंगई

गंगई, मैना जाति का एक भारतीय पक्षी जिसे गलगलिया भी कहते हैं। यह ग्यारह इंच लंबा भूरे रंग का पक्षी है और देश भर में सर्वत्र पाया जाता है। खेतों और मैदानों में घूमता हुआ आसानी से देखा जा सकता है। इसकी आवाज बहुत तेज होती है। मादा झाड़ों मे घोसला बनाती है। अंडा देने का समय निश्चित नहीं है; किंतु जब देती है तो चार अंडे देती है। श्रेणी:भारत के पक्षी.

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गुर्दा

वृक्क या गुर्दे का जोड़ा एक मानव अंग हैं, जिनका प्रधान कार्य मूत्र उत्पादन (रक्त शोधन कर) करना है। गुर्दे बहुत से वर्टिब्रेट पशुओं में मिलते हैं। ये मूत्र-प्रणाली के अंग हैं। इनके द्वारा इलेक्त्रोलाइट, क्षार-अम्ल संतुलन और रक्तचाप का नियामन होता है। इनका मल स्वरुप मूत्र कहलाता है। इसमें मुख्यतः यूरिया और अमोनिया होते हैं। गुर्दे युग्मित अंग होते हैं, जो कई कार्य करते हैं। ये अनेक प्रकार के पशुओं में पाये जाते हैं, जिनमें कशेरुकी व कुछ अकशेरुकी जीव शामिल हैं। ये हमारी मूत्र-प्रणाली का एक आवश्यक भाग हैं और ये इलेक्ट्रोलाइट नियंत्रण, अम्ल-क्षार संतुलन, व रक्तचाप नियंत्रण आदि जैसे समस्थिति (homeostatic) कार्य भी करते है। ये शरीर में रक्त के प्राकृतिक शोधक के रूप में कार्य करते हैं और अपशिष्ट को हटाते हैं, जिसे मूत्राशय की ओर भेज दिया जाता है। मूत्र का उत्पादन करते समय, गुर्दे यूरिया और अमोनियम जैसे अपशिष्ट पदार्थ उत्सर्जित करते हैं; गुर्दे जल, ग्लूकोज़ और अमिनो अम्लों के पुनरवशोषण के लिये भी ज़िम्मेदार होते हैं। गुर्दे हार्मोन भी उत्पन्न करते हैं, जिनमें कैल्सिट्रिओल (calcitriol), रेनिन (renin) और एरिथ्रोपिटिन (erythropoietin) शामिल हैं। औदरिक गुहा के पिछले भाग में रेट्रोपेरिटोनियम (retroperitoneum) में स्थित गुर्दे वृक्कीय धमनियों के युग्म से रक्त प्राप्त करते हैं और इसे वृक्कीय शिराओं के एक जोड़े में प्रवाहित कर देते हैं। प्रत्येक गुर्दा मूत्र को एक मूत्रवाहिनी में उत्सर्जित करता है, जो कि स्वयं भी मूत्राशय में रिक्त होने वाली एक युग्मित संरचना होती है। गुर्दे की कार्यप्रणाली के अध्ययन को वृक्कीय शरीर विज्ञान कहा जाता है, जबकि गुर्दे की बीमारियों से संबंधित चिकित्सीय विधा मेघविज्ञान (nephrology) कहलाती है। गुर्दे की बीमारियां विविध प्रकार की हैं, लेकिन गुर्दे से जुड़ी बीमारियों के रोगियों में अक्सर विशिष्ट चिकित्सीय लक्षण दिखाई देते हैं। गुर्दे से जुड़ी आम चिकित्सीय स्थितियों में नेफ्राइटिक और नेफ्रोटिक सिण्ड्रोम, वृक्कीय पुटी, गुर्दे में तीक्ष्ण घाव, गुर्दे की दीर्घकालिक बीमारियां, मूत्रवाहिनी में संक्रमण, वृक्कअश्मरी और मूत्रवाहिनी में अवरोध उत्पन्न होना शामिल हैं। गुर्दे के कैंसर के अनेक प्रकार भी मौजूद हैं; सबसे आम वयस्क वृक्क कैंसर वृक्क कोशिका कर्कट (renal cell carcinoma) है। कैंसर, पुटी और गुर्दे की कुछ अन्य अवस्थाओं का प्रबंधन गुर्दे को निकाल देने, या वृक्कुच्छेदन (nephrectomy) के द्वारा किया जा सकता है। जब गुर्दे का कार्य, जिसे केशिकागुच्छीय शुद्धिकरण दर (glomerular filtration rate) के द्वारा नापा जाता है, लगातार बुरी हो, तो डायालिसिस और गुर्दे का प्रत्यारोपण इसके उपचार के विकल्प हो सकते हैं। हालांकि, पथरी बहुत अधिक हानिकारक नहीं होती, लेकिन यह भी दर्द और समस्या का कारण बन सकती है। पथरी को हटाने की प्रक्रिया में ध्वनि तरंगों द्वारा उपचार शामिल है, जिससे पत्थर को छोटे टुकड़ों में तोड़कर मूत्राशय के रास्ते बाहर निकाल दिया जाता है। कमर के पिछले भाग के मध्यवर्ती/पार्श्विक खण्डों में तीक्ष्ण दर्द पथरी का एक आम लक्षण है। .

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गुलाबी मैना

गुलाबी मैना या गुलाबी सारिका स्टर्निडी परिवार का एक पक्षी है जिसमें मैना भी शामिल है। इसके अन्य नाम हैं तिल्यर या तेलियर और कन्नड़ भाषा में इसके मधुर गीत के कारण इसे मधुसारिका भी कहते हैं। २४ मई २००४ को भारत डाक-तार विभाग ने इस पक्षी पर एक डाक टिकट भी जारी किया। .

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ग्रहणी

ग्रहणी (duodenum) अधिकांश उच्चतर कशेरुकी प्राणियों (जैसे स्तनधारी, सरिसृप, पक्षी आदि) के क्षुदांत्र का प्रथम भाग होता है। .

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ग्रेटर रैकेट-पूंछ ड्रोंगो

ग्रेटर रैकेट-पूंछ ड्रोंगो, डायक्रुरस पैराडाइसियस, एक मध्यम आकार का एशियाई पक्षी है जो पूंछ के लम्बे परों, जिनके किनारों पर जाली होती है, के कारण विशिष्ट रूप से जाना जाता है। ये ड्रोंगो परिवार के अन्य सदस्यों की तरह ही डिक्रूराईडे (Dicruridae) परिवार के सदस्य हैं। वे जंगल के अपने प्राकृतिक आवास में विशिष्ट रूप से अक्सर खुले में बैठे होते हैं तथा ध्यान आकर्षित करने के लिए उच्च स्वर में कई ध्वनियां निकालते हैं जिसमें कई पक्षियों की नक़ल करना सम्मिलित होता है। यह कहा जाता है कि इस प्रकार से नक़ल करने से कई प्रजाति के पक्षी समूह एक साथ चारा खोजने के लिए मिल जाते हैं, यह विशिष्टता वन के कई पक्षी समाजों में मिलती है जहां कीड़े खाने वाले कई प्रजातियों के पक्षी साथ में चारा ढूंढते हैं। ये ड्रोंगो कभी-कभी झुण्ड में किसी अन्य पक्षी द्वारा पकडे गए अथवा निकाले गए कीट को चुरा लेते हैं। वे दिन के पक्षी हैं परन्तु सूर्योदय के पूर्व से लेकर देर शाम तक सक्रिय रहते हैं। अपने विस्तृत वितरण तथा क्षेत्रीय भिन्नताओं के कारण वे क्षेत्र के प्रभाव एवं अनुवांशिक अलगाव के कारण नयी प्रजातियों की उत्पत्ति के प्रमुख उदाहरण बन गए हैं। .

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गैलापागोस एल्बाट्रॉस

गैलापागोस एल्बाटॉस या लहरदार एल्बाटॉस कटिबंधों में डाओमेडेडी (Diomedeidae) कुल का एकमात्र सदस्य है। इन पक्षिओं का मुख्य ठिकाना पेरु और ईक्वाडोर के समुद्री तट हैं। .

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गैलीफ़ॉर्मेस

गैलीफ़ॉर्मेस पक्षियों का वह वर्ग है जिसमें टर्की, ग्राउज़, मुर्गियाँ और फ़ीसण्ट आते हैं। इनकी विश्वभर में २५० से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं। *.

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गोडावण

राजस्थान का राज्य-पक्षी: गोडावण गोडावण (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड; वैज्ञानिक नाम: Ardeotis nigriceps) एक बड़े आकार का पक्षी है जो भारत के राजस्थान तथा सीमावर्ती पाकिस्तान में पाया जाता है। उड़ने वाली पक्षियों में यह सबसे अधिक वजनी पक्षियों में है। बड़े आकार के कारण यह शुतुरमुर्ग जैसा प्रतीत होता है। यह राजस्थान का राज्य पक्षी है। सोहन चिड़िया, हुकना, गुरायिन आदि इसके अन्य नाम हैं। यह पक्षी भारत और पाकिस्तान के शुष्क एवं अर्ध-शुष्क घास के मैदानों में पाया जाता है। पहले यह पक्षी भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा एवं तमिलनाडु राज्यों के घास के मैदानों में व्यापक रूप से पाया जाता था। किंतु अब यह पक्षी कम जनसंख्या के साथ राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और संभवतः मध्य प्रदेश राज्यों में पाया जाता है। IUCN की संकटग्रस्त प्रजातियों पर प्रकाशित होने वाली लाल डाटा पुस्तिका में इसे 'गंभीर रूप से संकटग्रस्त' श्रेणी में तथा भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची 1 में रखा गया है। इस विशाल पक्षी को बचाने के लिए राजस्थान सरकार ने एक प्रोजेक्ट शुरू किया था। इस प्रोजेक्ट का विज्ञापन "मेरी उड़ान न रोकें" जैसे मार्मिक वाक्यांश से किया गया है। भारत सरकार के वन्यजीव निवास के समन्वित विकास के तहत किये जा रहे 'प्रजाति रिकवरी कार्यक्रम (Species Recovery Programme)' के अंतर्गत चयनित 17 प्रजातियों में गोडावण भी सम्मिलित है। यह जैसलमेर के मरू उद्यान, सोरसन (बारां) व अजमेर के शोकलिया क्षेत्र में पाया जाता है। यह पक्षी अत्यंत ही शर्मिला है और सघन घास में रहना इसका स्वभाव है। यह पक्षी 'सोन चिरैया', 'सोहन चिडिया' तथा 'शर्मिला पक्षी' के उपनामों से भी प्रसिद्ध है। गोडावण का अस्तित्व वर्तमान में खतरे में है तथा इनकी बहुत कम संख्या ही बची हुई है अर्थात यह प्रजाति विलुप्ति की कगार पर है। यह सर्वाहारी पक्षी है। इसकी खाद्य आदतों में गेहूँ, ज्वार, बाजरा आदि अनाजों का भक्षण करना शामिल है किंतु इसका प्रमुख खाद्य टिड्डे आदि कीट है। यह साँप, छिपकली, बिच्छू आदि भी खाता है। यह पक्षी बेर के फल भी पसंद करता है। राजस्थान में अवस्थित राष्ट्रीय मरु उद्यान में गोडावण की घटती संख्या को बढ़ाने के लिये आगामी प्रजनन काल में सुरक्षा के समुचित प्रबंध किए गए हैं।; राष्ट्रीय मरु उद्यान (डेज़र्ट नेशनल पार्क) 3162 वर्ग किमी.

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गोबल बुटई

गोबल बुटई (King Quail) (Coturnix chinensis) बटेर परिवार का एक पक्षी है और असली बटेर प्रजाति में यह सबसे छोटा सदस्य है। इसे अंग्रेज़ी में और भी कई नाम से जाना जाता है जैसे button Quail, Chinese Painted Quail, Chun-chi, Asian Blue Quail या Blue-breasted Quail। यह पक्षी अफ़्रीका से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया तक और फिर आस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है। इसकी ठीक से गणना नहीं की गई है किन्तु इसका आवास क्षेत्र इतना विस्तृत है कि इस जाति को ख़तरे से बाहर बताया है। .

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गोरामानसिंह

गोरमानसिंह एक छोटा गांव है जो बिहार प्रान्त के दरभंगा जिलान्तर्गत आता है। यह गांव जिला मुख्यालय से लगभग ६० कि॰मी॰ दूर कमला-बलान नदी के किनारे बसा है। प्रत्येक वर्ष कमला बलान के उमड्ने से प्रायः जुलाई में यंहा बाढ आ जाती है। बाढग्रसित क्षेत्र से पानी निर्गत होने में काफी समय लगता है जिससे जानमाल, फसल एवं द्रव्य की काफी क्षति होती है। नियमित बाढ आगमन से इस क्षेत्र में अभी तक पक्की सड्क एवं बिजली का अभाव है। इस क्षेत्र के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है। यहां का मुख्य व्यवसायिक केन्द्र सुपौल बाजार है जहां दूर-दूर से लोग पैदल या नौका यात्रा करके अपने सामानों की खरीद-विक्री के लिये आते हैं। दिसंबर से मार्च महीने तक लगातार जल-जमाव रहने से इस गांव के चौर क्षेत्र में विभिन्न देशों से कुछ प्रवासी पक्षी भी आतें हैं। प्रवासी पक्षीयों में लालसर, दिघौंच, सिल्ली, अधनी, चाहा, नक्ता, मैल, हरियाल, कारण, रतवा, इत्यादि प्रमुख है। ये पक्षीयां मुलतः नेपाल, तिब्बत, भुटान, चीन, पाकिस्तान, मंगोलिया, साइबेरिया इत्यादि देशों से आतें है। बाढ के पानी में डुबी हुई धान की फसलें बाढ के दिनों मे नौका यात्रा करते लोग प्रवासी पक्षीयां .

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ऑसेलॉट

ऑसेलॉट​ (Ocelot), जिसे बौना तेन्दुआ (dwarf leopard) भी कहा जाता है एक प्रकार की जंगली बिल्ली है जो दक्षिण अमेरिका, मध्य अमेरिका और मेक्सिको में पाई जाती है। कुछ सूत्रों के हवाले से यह संयुक्त राज्य अमेरिका के टेक्सास राज्य में और कैरिबियाई सागर के त्रिनिदाद द्वीप पर देखी जा चुकी है। यह देखने में पालतू बिल्ली जैसी है हालांकि इसकी ख़ाल जैगुआर और बादली तेन्दुए जैसी होती है। किसी ज़माने में इनकी ख़ाल के लिए यह लाखो की संख्या में मारे गए लेकिन फिर इन्हें बचने के लिए इन्हें 1972 से 1996 काल में विलुप्तप्राय जाति घोषित कर दिया गया। इनकी आबादी बढ़ी और 2008 आईयूसीएन लाल सूची में इन्हें संकटमुक्त कहा गया है।, Neil Edward Schlecht, pp.

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ओपनबिल्ड स्टॉर्क

घोंघिल (ओपनबिल्ड स्टॉर्क- Openbilled Stork) एक वृहदाकार पक्षी है जो पहाड़ी क्षेत्रों को छोड़कर पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में पायी जाती है। इसके अतिरिक्त, यह पक्षी, थाइलैंड, चीन, वियतनाम, रूस आदि देशों में भी मौजूद हैं। लम्बी गर्दन व टाँगे तथा चोंच के मध्य खाली स्थान इसकी मुख्य पहचान हैं। इसके पंख काले-सफ़ेद रंग के होते हैं जो प्रजनन के समय अत्यधिक चमकीले हो जाते है और टाँगे गुलाबी रंग की हो जाती है। प्रजनन के उपरान्त इनका रंग हल्का पड़ जाता है और गन्दा सिलेटी रंग हो जाता है। किन्तु प्रजनन काल के उपरान्त कुछ समय बीतते ही, पंखों में चमक दोबारा वापस आ जाती है। इनके पंख सफेद व काले रंग के और पैर लाल रंग के होते हैं। इनका आकार बगुले से बड़ा और सारस से छोटा होता है। इनकी चोंच के मध्य खाली स्थान होने के कारण इन्हें ओपनबिल कहा गया। चोंच का यह आकार घोंघे को उसके कठोर आवरण से बाहर निकालने में मदद करता है। यह पक्षी पूर्णतया मांसाहारी है। .

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आमाशय (पेट)

कशेरुकी, एकाइनोडर्मेटा वंशीय जंतु, कीट (आद्यमध्यांत्र) और मोलस्क सहित, कुछ जंतुओं में, आमाशय एक पेशीय, खोखला, पोषण नली का फैला हुआ भाग है जो पाचन नली के प्रमुख अंग के रूप में कार्य करता है। यह चर्वण (चबाना) के बाद, पाचन के दूसरे चरण में शामिल होता है। आमाशय, ग्रास नली और छोटी आंत के बीच में स्थित होता है। यह छोटी आंतों में आंशिक रूप से पचे भोजन (अम्लान्न) को भेजने से पहले, अबाध पेशी ऐंठन के माध्यम से भोजन के पाचन में सहायता के लिए प्रोटीन-पाचक प्रकिण्व(एन्ज़ाइम) और तेज़ अम्लों को स्रावित करता है (जो ग्रासनलीय पुरःसरण के ज़रिए भेजा जाता है).

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आर्कियोप्टेरिक्स

लंदन विश्वविद्यालय में आर्कियोप्टेरिक्स का मोडेल आद्यपक्षी या आर्कियोप्टेरिक्स (Archaeopteryx) पहला ज्ञात पक्षी है। इसकी उत्पत्ति जुरेसिक काल में १४० करोड़ वर्ष पहले हुई थी। यह सरीसृप एवं पक्षी वर्ग के बीच के कड़ी है। १.५ फीट लम्बे इस जीवाश्म पक्षी में पक्षियों एवं डायनासोर दोनों के लक्षण थें जो यह प्रमाणित करता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों से हुआ है और मध्य में आर्कियोप्टेरिक्स जैसे जन्तु हुए। आर्कियोप्टेरिक्स आज पृथ्वी पर जीवित नहीं है इसलिए इसे लुप्तकड़ी भी कहते हैं। .

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आर्कोसोरिया

आर्कोसोरिया (Archosauria) एक प्राणियों का एक क्लेड है जिसमें सभी पक्षी व मगरमच्छ शामिल हैं। सारे डायनासोर (जो अब सभी विलुप्त हो चुके हैं) भी इसी समूह के सदस्य थे। .

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कठफोड़वा

कठफोड़वा पक्षी कठफोड़वा (वुडपैकर / woodpeckers) पक्षियों की एक प्रजाति है। इसे हुदहुद भी कहा जाता है। इस परिवार के सदस्य दुनिया भर में पाए जाते हैं, ऑस्ट्रेलिया, न्यू गिनी, न्यूजीलैंड, मेडागास्कर, और चरम ध्रुवीय क्षेत्रों के लिए छोड़कर। .

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कपोतक

बारबरी कपोतक कपोतक (डव, Dove) एक पक्षी है, जो कबूतरों (कोलंबिडी गण, Order columbidae) का निकट संबंधी है। यह पँड़की, फाखता, पंडुक और सिरोटी के नाम से भी प्रसिद्ध है। कपोतक 12 इंच तक लंबे, भोले भाले पक्षी होते हैं। इनकी प्रकृति, स्वभाव तथा अन्य बातें कपोतों से मिलती जुलती होती हैं। कपोत (कबूतर) की तरह ये भी अनाज और बीज आदि से अपना पेट भरते हैं और इन्हीं की भाँति इनका अंडा देने का समय भी साल में दो बार आता है। तब मादा अपने मचान-नुमा, तितरे बितरे घोंसले में दो सफ़ेद अंडे देती है। .

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कबूतर

कबूतर पूरे विश्व में पाये जाने वाला पक्षी है। यह एक नियततापी, उड़ने वाला पक्षी है जिसका शरीर परों से ढँका रहता है। मुँह के स्थान पर इसकी छोटी नुकीली चोंच होती है। मुख दो चंचुओं से घिरा एवं जबड़ा दंतहीन होता है। अगले पैर डैनों में परिवर्तित हो गए हैं। पिछले पैर शल्कों से ढँके एवं उँगलियाँ नखरयुक्त होती हैं। इसमें तीन उँगलियाँ सामने की ओर तथा चौथी उँगली पीछे की ओर रहती है। यह जन्तु मनुष्य के सम्पर्क में रहना अधिक पसन्द करता है। अनाज, मेवे और दालें इसका मुख्य भोजन हैं। भारत में यह सफेद और सलेटी रंग के होते हैं पुराने जमाने में इसका प्रयोग पत्र और चिट्ठियाँ भेजने के लिये किया जाता था। .

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करामोअन प्रायद्वीप

करामोअन प्रायद्वीप (Caramoan Peninsula) फ़िलिपीन्ज़ के लूज़ोन द्वीप पर बिकोल प्रशासनिक क्षेत्र के कामारिनेस सूर प्रान्त में स्थित एक प्रायद्वीप है। यह एक संरक्षित क्षेत्र है जिसमें उबाड़-खाबड़ भूमि और तंग घाटियाँ हैं और जो अपने विविध पक्षी जीवन के लिए जाना जाता है। इसके कुछ भाग में सन् १९३८ में करामोअन राष्ट्रीय उद्यान (Caramoan National Park) स्थापित करा गया था। .

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कर्कट रोग

कर्कट (चिकित्सकीय पद: दुर्दम नववृद्धि) रोगों का एक वर्ग है जिसमें कोशिकाओं का एक समूह अनियंत्रित वृद्धि (सामान्य सीमा से अधिक विभाजन), रोग आक्रमण (आस-पास के उतकों का विनाश और उन पर आक्रमण) और कभी कभी अपररूपांतरण अथवा मेटास्टैसिस (लसिका या रक्त के माध्यम से शरीर के अन्य भागों में फ़ैल जाता है) प्रदर्शित करता है। कर्कट के ये तीन दुर्दम लक्षण इसे सौम्य गाँठ (ट्यूमर या अबुर्द) से विभेदित करते हैं, जो स्वयं सीमित हैं, आक्रामक नहीं हैं या अपररूपांतरण प्रर्दशित नहीं करते हैं। अधिकांश कर्कट एक गाँठ या अबुर्द (ट्यूमर) बनाते हैं, लेकिन कुछ, जैसे रक्त कर्कट (श्वेतरक्तता) गाँठ नहीं बनाता है। चिकित्सा की वह शाखा जो कर्कट के अध्ययन, निदान, उपचार और रोकथाम से सम्बंधित है, ऑन्कोलॉजी या अर्बुदविज्ञान कहलाती है। कर्कट सभी उम्र के लोगों को, यहाँ तक कि भ्रूण को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन अधिकांश किस्मों का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है। कर्कट में से १३% का कारण है। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, २००७ के दौरान पूरे विश्व में ७६ लाख लोगों की मृत्यु कर्कट के कारण हुई। कर्कट सभी जानवरों को प्रभावित कर सकता है। लगभग सभी कर्कट रूपांतरित कोशिकाओं के आनुवंशिक पदार्थ में असामान्यताओं के कारण होते हैं। ये असामान्यताएं कार्सिनोजन या का कर्कटजन (कर्कट पैदा करने वाले कारक) के कारण हो सकती हैं जैसे तम्बाकू धूम्रपान, विकिरण, रसायन, या संक्रामक कारक.

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कलविंकक

कलविंकक (common nightingale या, केवल nightingale, वैज्ञानिक नाम: Luscinia megarhynchos) एक छोटा पक्षी है जो अपनी मधुर गान के लिये प्रसिद्ध है। यह ईरान के साहित्योद्यान का प्रसिद्ध गायक पक्षी है। इसको ईरान में ठीक ही 'बुलबुल हजार दास्ताँ' का नाम मिला है, क्योंकि वह बिना दम तोड़े, लगातार, घंटे-घंटे भर तक गाता है। वह कई प्रकार से, भारत के लाल दुमवाले बुलबुल से भिन्न पक्षी है। वह कीटभक्षी है जो भारत की ओर नहीं आता, परंतु भारत के शौकीन लोग इसे बाहर से मँगवाते हैं और पिंजरों में पालते हैं। .

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काराकारा

काराकारा (Caracara) पक्षियों के फ़ैल्कोनीडाए कुल के पोलीबोरिनाए (Polyborinae) उपकुल के सदस्य होते हैं, हालांकि कुछ जीववैज्ञानिकों के अनुसार इनका काराकारीनाए (Caracarinae) नामक अलग उपकुल होना चाहिए। इनके साथ वन श्येन भी पोलीबोरिनाए उपकुल में सम्मिलित हैं और दोनों ही शिकारी पक्षी होते हैं। काराकारा दक्षिण व मध्य अमेरिका के निवासी है और इनका उत्तरी विस्तार दक्षिणी संयुक्त राज्य अमेरिका तक है। यह फ़ैल्कोनीडाए कुल की दूसरी, फ़ैल्को, नामक शाखा (जिसमें श्येन आते हैं) के पक्षियों जितनी तेज़ी से नहीं उड़ पाते और न ही यह हवा में उड़ती अन्य चिड़ियाँ का शिकार करने में सक्षम हैं, इसलिए यह यह अक्सर मुर्दाखोर, यानि मृत जानवरों का माँस खाते हुए, भी नज़र आते हैं। .

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काला तीतर

काला तीतर या काला फ़्रैंकोलिन (Black Francolin) (Francolinus francolinus) फ़ीज़ैन्ट कुल का एक पक्षी है। यह अफ़्गानिस्तान, आर्मीनिया, अज़रबैजान, भूटान, साइप्रस, जॉर्जिया, भारत, ईरान, ईराक, इज़्रायल, जॉर्डन, नेपाल, पाकिस्तान, फ़िलिस्तीनी राज्यक्षेत्र, सीरिया, तुर्की और तुर्कमेनिस्तान में पाया जाता है। .

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कालिज

कालिज (Kalij pheasant) (वैज्ञानिक नाम: Lophura leucomelanos) फ़ीज़ॅन्ट कुल का एक पक्षी है जो हिमालय के निचले स्थानों में पाया जाता है। .

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काली चील

आकाश में मंडराती हुई काली चील काली चील (वैज्ञानिक नाम: Milvus migrans) मधयम आकार का एक शिकारी पक्षी है। यह एक्कीपित्रिडी (Accipitridae) कुल का पक्षी है और इस कुल का विश्व का सबसे अधिक पाया जाने वाला पक्षी है। वर्तमान में इनकी पूरे विश्व में संख्या ६० लाख होने का अनुमान है। श्रेणी:पक्षी.

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कावर झील

कावर झील एशिया का सबसे बड़ी शुद्ध जल की झील है और यह पक्षी अभयारण्य (बर्ड संचुरी) भी है। इस बर्ड संचुरी मे ५९ तरह के विदेशी पक्षी और १०७ तरह के देसी पक्षी ठंडे के मौसम मे देखे जा सकते है। यह बिहार राज्य के बेगूसराय में है। पुरातत्वीय महत्व का बौद्धकालीन हरसाइन स्तूप इसी क्षेत्र में स्थित है। .

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काइली मिनोग

काइली ऍन मिनोग, OBE (जन्म - 28 मई 1968) एक ऑस्ट्रेलियाई पॉप गायिका, गीतकार तथा अभिनेत्री हैं। ऑस्ट्रेलियाई टेलीविज़न पर एक बाल कलाकार के रूप में अपना कॅरियर शुरू करने के बाद तथा 1987 में एक रिकॉर्डिंग कलाकार के रूप में अपना कॅरियर शुरू करने से पहले, उन्हें टेलीविज़न धारावाहिक नेबर्स ' में अपनी भूमिका से ख्याति मिली.

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किलुम-इजिम वन

किलुम-इजिम वन (Kilum-Ijim Forest) मध्य अफ़्रीका के पश्चिमोत्तरी क्षेत्र में स्थित एक पर्वतीय वर्षावन है। यह ओकू पर्वत और कैमरून पहाड़ियों पर फैला हुआ है और इसके मध्य में ओकू झील (Lake Oku) स्थित है। यह अफ़्रीका के अंतिम बचे पहाड़ी-वनों में से एक है और अपने अनूठे प्राणी व पक्षी जीवन के लिये संरक्षण प्रयासों का केन्द्र बना हुआ है। .

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किंगफिशर

किंगफिशर कोरासीफोर्म्स वर्ग के छोटे से मध्यम आकार के चमकीले रंग के पंक्षियों का एक समूह है। इनका एक सर्वव्यापी वितरण है जिनमें से ज्यादातर प्रजातियाँ ओल्ड वर्ल्ड और ऑस्ट्रेलिया में पायी जाती हैं। इस समूह को या तो एक एकल परिवार एल्सिडिनिडी के रूप में या फिर उपवर्ग एल्सिडाइन्स में माना जाता है जिनमें तीन परिवार शामिल हैं, एल्सिडिनिडी (नदीय किंगफिशर), हैल्सियोनिडी (वृक्षीय किंगफिशर) और सेरीलिडी जलीय किंगफिशर). किंगफिशर की लगभग 90 प्रजातियां हैं। सभी के बड़े सिर, लंबे, तेज, नुकीले चोंच, छोटे पैर और ठूंठदार पूंछ हैं। अधिकांश प्रजातियों के पास चमकीले पंख हैं जिनमें अलग-अलग लिंगों के बीच थोड़ा अंतर है। अधिकांश प्रजातियां वितरण के लिहाज से उष्णकटिबंधीय हैं और एक मामूली बड़ी संख्या में केवल जंगलों में पायी जाती हैं। ये एक व्यापक रेंज के शिकार और मछली खाते हैं, जिन्हें आम तौर पर एक ऊंचे स्थान से झपट्टा मारकर पकड़ा जाता है। अपने वर्ग के अन्य सदस्यों की तरह ये खाली जगहों में घोंसला बनाते हैं, जो आम तौर पर जमीन पर प्राकृतिक या कृत्रिम तरीके से बने किनारों में खोदे गए सुरंगों में होते हैं। कुछ प्रजातियों, मुख्यतः द्वीपीय स्वरूपों के विलुप्त होने का खतरा बताया जाता है। .

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कुक्कुट

बत्तख आर्थिक महत्व के पक्षी जिनका पालन उनके अंडे या मांस के लिए होता है उन्हें पोल्ट्री पक्षी एवं इस उद्योग को पोल्ट्री उद्योग कहते हैं। मुर्गी एवं बत्तख प्रमुख पोल्ट्री पक्षी हैं जिनसे अंडा एवं मांस दोनों प्राप्त होते हैं। आधुनिक पोल्ट्री में छोटे आकार एवं कम अंडा देने वाली मुर्गीयों के स्थान पर रोड आलैंड, लाल सफेद लेग हार्न, फायोपोलिथ रौक, बाइन डाट, डोर्किग मिनोरका आदि अधिक अंडे देने वाली मुर्गियों के पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है। .

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कौड़िल्ला

श्रेणी:पक्षी.

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कौआ

कौवा एक पक्षी है। राजस्थानी में इसे कागला तथा मारवाडी भाषा में हाडा कहा जाता हैँ |राजस्थान में एक बहुप्रचलित कहावत है-" मलके माय हाडा काळा " अर्थात दुष्ट व्यक्ति हर जगह मिलते हैँ। अपेक्षाकृत छोटा कबूतर आकार के जैकडो (यूरेशियन और डौरीयन) से होलारक्टिक क्षेत्र के आम रैवेन और इथियोपिया के हाइलैंड्स के मोटी-बिल वाले रेवेन, दक्षिण अमेरिका को छोड़कर सभी समशीतोष्ण महाद्वीपों पर इस जीनसोकक के 45 या इतने सदस्य हैं।, और कई द्वीपों कौवा जीन परिवार कोरिडीडे में प्रजातियों में से एक तिहाई पैदा करता है। सदस्यों को एशिया में कॉरिड स्टॉक से विकसित किया गया है, जो ऑस्ट्रेलिया में विकसित हुआ था। कौवा के एक समूह के लिए सामूहिक नाम एक 'झुंड' या 'हत्या' है। जीनस नाम "रेवेन" के लिए लैटिन है। वैज्ञानिक वर्गीकरण किंगडम:एनिमिलिया संघ:कॉर्डेटा .

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कैक्टस

कैक्टस (cactus) सपुष्पक वनस्पतियों का एक जीववैज्ञानिक कुल है जो अपने मोटे, फूले हुए तनों में पानी बटोरकर शुष्क व रेगिस्तानी परिस्थितियों में जीवित रहने और अपने कांटों से भरे हुए रूप के लिए जाना जाता है। इसकी लगभग १२७ वंशों में संगठित १७५० जातियाँ ज्ञात हैं और वह सभी-की-सभी नवजगत (उत्तर व दक्षिण अमेरिका) की मूल निवासी हैं। इनमें से केवल एक जाति ही पूर्वजगत में अफ़्रीका और श्रीलंका में बिना मानवीय हस्तक्षेप के पहुँची थी और माना जाता है इसे पक्षियों द्वारा फैलाया गया था। कैक्टस लगभग सभी गूदेदार पौधे होते हैं जिनके तनों-टहनियों में विशेषीकरण से पानी बचाया जाता है। इनके पत्तों ने भी विशेषीकरण से कांटो का रूप धारण करा होता है। .

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कोयल (एशियाई)

एशिया में पाया जाने वाला कोयल (Eudynamys scolopaceus) कुकुलीफोर्म्स नामक कोयल गण का पक्षी है। यह दक्षिण एशिया, चीन एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया में पाया जाता है। .

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कोयल (पक्षी)

पौढ़ मादा एशियाई कोयल कोयल या कोकिल 'कुक्कू कुल' का पक्षी है, जिसका वैज्ञानिक नाम 'यूडाइनेमिस स्कोलोपेकस' है। नर कोयल नीलापन लिए काला होता है, तो मादा तीतर की तरह धब्बेदार चितकबरी होती है। नर कोयल ही गाता है। उसकी आंखें लाल व पंख पीछे की ओर लंबे होते हैं। नीड़ परजीविता इस कुल के पक्षियों की विशेष नेमत है यानि ये अपना घोसला नहीं बनाती। ये दूसरे पक्षियों विशेषकर कौओं के घोंसले के अंडों को गिरा कर अपना अंडा उसमें रख देती है। .

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कोरैसीडाए

कोरैसीडाए (Coraciidae) या रोलर पक्षी (Roller) पूर्वजगत में मिलने वाले कोरैसीफ़ोर्मीस जीववैज्ञानिक गण के पक्षियों का एक कुल है, जिसका एक प्रसिद्ध सदस्य नीलकंठ पक्षी है। यह आकृति और आकार में कौवे जैसे होते है लेकिन इनके शरीर पतेना और रामचिरैया की तरह रंग-बिरंगे होते हैं। प्रणवकाल में यह हवा में कलाबाज़ियाँ खाते हुए नज़र आते हैं। इनका आहार मुख्य रूप से कीट पर आधारित है। .

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कोरैसीफ़ोर्मीस

कोरैसीफ़ोर्मीस (Coraciiformes) पक्षियों का एक जीववैज्ञानिक गण है जिसमें रामचिरैया (किंगफ़िशर), पतेना (बी-ईटर) और कोरैसीडाए (उदाहरण नीलकंठ पक्षी) शामिल हैं। .

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कोकनी लौवा

कोकनी लौवा (Painted Bush Quail) (Perdicula erythrorhyncha) बटेर परिवार का एक पक्षी है जो केवल भारत में ही पाया जाता है। .

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कोकलास

कोकलास (Koklass pheasant) (Pucrasia macrolopha) फ़ीज़ॅंट कुल का पक्षी है जो अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल तथा चीन में पाया जाता है। .

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अण्डा (खाद्य)

मुर्गी के दो अण्डे: एक भूरा, दूसरा सफेद मुर्गी का कचा अण्डा तोड़ने पर अनेक जन्तु अण्डे देते हैं जिनमें प्रमुख हैं- पक्षी, सरीसृप, उभयचर, स्तनपायी (मम्मल) तथा मछलियाँ। हजारों वर्षों से मानव तथा अन्य जन्तु इन अण्डों को खाता आ रहा है। पक्षियों तथा सरीसृपों के अण्डों के ऊपर एक रक्षा-कवच होता है, उसके अन्दर श्वेतक (एल्ब्युमेन) तथा अण्ड पीतक (अंडे की जरदी) होते हैं। मुर्गी के अण्डे खाने के लिये सबसे अधिक पसन्द किये जाते हैं। इसके अलावा बतख, तीतर, आदि के अंडे भी खाये जाते हैं। .

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अण्डजता

अण्डज वो जीव होते हैं जो अंडे देते हैं और जिनके भ्रूण का विकास माता के गर्भ में नहीं होता, सिर्फ कुछ अपवादों में ही इनके भ्रूण का विकास माता के शरीर् में आंशिक रूप से होता या है। प्रजनन का यह तरीका अधिकतर मछलियों, उभयचरों, सरीसृपों, सभी पक्षियों, मोनोट्रीम, अधिकतर कीटों और लूताभों में सबसे सामान्य है। अंडे देने वाले स्थलचर, जैसे सरीसृप और कीट जिनके अंडे एक कवच द्वारा सुरक्षित रहते हैं, आंतरिक निषेचन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही अंडे देते हैं, जबकि जलचरों, जैसे कि मछलियों और उभयचरों में अंडे निषेचन प्रक्रिया से पहले दिए जाते हैं और ताजे दिए अंडों के ऊपर नर अपने शुक्राणु छिड़क देता है और यह प्रक्रिया बाह्य निषेचन कहलाती है। लगभग सभी गैर अण्डज मछलियां, उभयचर और सरीसृप अण्डजरायुज होते हैं, अर्थात् अंडे माँ के शरीर के अंदर ही फूटते हैं (समुद्री घोड़े के मामले में पिता के अंदर)। अण्डजता का वास्तविक विलोम आंवल जरायुजता है जो लगभग सभी स्तनधारियों में पाई जाती है (धानी-प्राणी (मार्स्युपिअल) और मोनोट्रीम जैसे अपवादों को छोड़कर)। स्तनधारियों की सिर्फ पांच ज्ञात अण्डज प्रजातियां हैं: एकिड्ना की चार प्रजातियां और प्लैटीपस। .

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अफ़्रीका

अफ़्रीका वा कालद्वीप, एशिया के बाद विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है। यह 37°14' उत्तरी अक्षांश से 34°50' दक्षिणी अक्षांश एवं 17°33' पश्चिमी देशान्तर से 51°23' पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। अफ्रीका के उत्तर में भूमध्यसागर एवं यूरोप महाद्वीप, पश्चिम में अंध महासागर, दक्षिण में दक्षिण महासागर तथा पूर्व में अरब सागर एवं हिन्द महासागर हैं। पूर्व में स्वेज भूडमरूमध्य इसे एशिया से जोड़ता है तथा स्वेज नहर इसे एशिया से अलग करती है। जिब्राल्टर जलडमरूमध्य इसे उत्तर में यूरोप महाद्वीप से अलग करता है। इस महाद्वीप में विशाल मरुस्थल, अत्यन्त घने वन, विस्तृत घास के मैदान, बड़ी-बड़ी नदियाँ व झीलें तथा विचित्र जंगली जानवर हैं। मुख्य मध्याह्न रेखा (0°) अफ्रीका महाद्वीप के घाना देश की राजधानी अक्रा शहर से होकर गुजरती है। यहाँ सेरेनगेती और क्रुजर राष्‍ट्रीय उद्यान है तो जलप्रपात और वर्षावन भी हैं। एक ओर सहारा मरुस्‍थल है तो दूसरी ओर किलिमंजारो पर्वत भी है और सुषुप्‍त ज्वालामुखी भी है। युगांडा, तंजानिया और केन्या की सीमा पर स्थित विक्टोरिया झील अफ्रीका की सबसे बड़ी तथा सम्पूर्ण पृथ्वी पर मीठे पानी की दूसरी सबसे बड़ी झीलहै। यह झील दुनिया की सबसे लम्बी नदी नील के पानी का स्रोत भी है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसी महाद्वीप में सबसे पहले मानव का जन्म व विकास हुआ और यहीं से जाकर वे दूसरे महाद्वीपों में बसे, इसलिए इसे मानव सभ्‍यता की जन्‍मभूमि माना जाता है। यहाँ विश्व की दो प्राचीन सभ्यताओं (मिस्र एवं कार्थेज) का भी विकास हुआ था। अफ्रीका के बहुत से देश द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्र हुए हैं एवं सभी अपने आर्थिक विकास में लगे हुए हैं। अफ़्रीका अपनी बहुरंगी संस्कृति और जमीन से जुड़े साहित्य के कारण भी विश्व में जाना जाता है। .

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अफ़्रीका की प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीव

प्राकृतिक परिवेश में जिर्राफ सवाना, घास का मैदान बोतल वृक्ष अफ़्रीका का शेर प्राकृतिक वनस्पति जलवायु का अनुसरण करती है। अफ़्रीका में जलवायु की विभिन्नता के आधार पर विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक वनस्पति पायी जाती है। भूममध्य-रेखीय क्षेत्र में अधिक गर्मी एवं वर्षा के कारण घने वन पाये जाते हैं। बड़े-बड़े वृक्षों के बीच छोटे वृक्ष, लताएँ तथा झाड़ियाँ पायी जाती हैं। वृक्ष पास-पास उगते हैं। वृक्षों की ऊपरी टहनियां इस प्रकार फैल जाती हैं कि सूर्य का प्रकाश भूमि पर नहीं पहुँच पाता और अंधकार छाया रहता है। वर्ष भर वर्षा होने के कारण वृक्ष किसी खाश समय में अपनी पत्तियाँ नहीं गिराते, अतः इन वृक्षों को सदाबहार वृक्ष कहा जाता है। इन वृक्षों की पत्तियाँ चौड़ी होती हैं, अतः इन वनों को चौड़ी पत्ती वाले सदाबहार वन कहा जाता है। इन वनों के प्रमुख वृक्षों में महोगनी, रबड़, ताड़, आबनूस, गटापार्चा, बांस, सिनकोना और रोजउड हैं। इन वनों में विभिन्न प्रकार के बन्दर, हाथी, दरियाई घोड़ा (हिप्पो), चिम्पैंजी, गोरिल्ला, चीता, भैंसा, साँप, अजगर आदि जंगली जानवर पाए जाते हैं। यहाँ टिसीटिसी नामक मक्खी पाई जाती है। मैंड्रिल नामक विशालकाय बन्दर होते हैं। यहाँ पर ओकापी नामक भूरे रंग का जीव पाया जाता है जिसके पैर पर सफेद धारी पायी जाती है। यह घोड़े की तरह दिखलाई पड़ता है, पर यह जिराफ जाति का होता है। नदियों में मगर पाये जाते हैं। यहाँ पर चमीकले रंग की विभिन्न प्रकर की चिड़ियां पायी जाती हैं। भूमध्यरेखीय वनों के दोनों ओर, जहाँ वर्षा काफी कम होती है, पेड़ नहीं उग सकते। वहाँ मुख्यतः लम्बी-लम्बी (२ से ४ मीटर ऊँची) घासें उगती हैं। इन उष्ण कटिबन्धीय घास के मैदानों को सवाना कहते हैं। बीच-बीच में कहीं-कहीं पत्तों से रहित कुछ पेड़ भी पाए जाते हैं। यह प्रदेश विभिन्न प्रकार के घास खाने वाले पशुओं का घर है। इन पशुओं में हिरण, बारहसिंगा, जेब्रा, जिर्राफ तथा हाथी मुख्य हैं। जिर्राफ विश्व का सबसे ऊँचा जानवर माना जाता है। कुछ जन्तुशास्त्रियों का मानना है कि जिर्राफ कभी सोते नहीं हैं। यहाँ कुछ हिंसक पशु भी रहते हैं जो इन घास खाने वाले पशुओं का शिकार करते हैं। इनमें शेर, चीता एवं गीदड़ मुख्य हैं। दक्षिणी अफ़्रीका के शेर बहुत लम्बे होते हैं। चीता विश्व में सबसे तेज दोड़ने वाला जानवर है। सवाना घास के मैदान के दोनों ओर जहाँ की जलवायु अत्यन्त गर्म व शुष्क है, वहाँ उष्ण मरुस्थलीय वनस्पति पाई जाती है। यहाँ केवल कँटीली झाड़ियाँ हीं उगती हैं। मरुद्यानों में खजूर के पेड़ पाए जाते हैं। यहाँ का मुख्य पशु ऊँट है जिसे मरुस्थल का जहाज कहते हैं। यहाँ बड़े आकार तथा घोड़े के समान तेज दौड़ने वाले शुतुर्मुर्ग नामक पक्षी पाए जाते हैं। अफ़्रीका के उत्तरी एवं दक्षिणी-पश्चिमी तटीय क्षेत्रों पर केवल जाड़े में ही वर्षा होती है फिर भी यहाँ चौड़ी पत्ती वाले सदाबहार वृक्ष पाए जाते हैं। क्योंकि यहाँ के वृक्ष अपने आपको वातावरण के अनुसार बदल लेते हैं। इन वृक्षों की जड़े लम्बी, पत्तियाँ छोटी तथा छालें मोटी होती हैं। इन विशेषताओं के कारण ये वृक्ष गर्मियों में भी हरे-भरे रहते हैं। यहाँ जैतुन, कार्क, लारेल एवं ओक के वृक्ष पाए जाते हैं। यहाँ की जलवायु फलों की खेती के लिए काफी उपयुक्त है। यहाँ नींबू, सन्तरा, अंगूर, सेव, अंजीर आदि रस वाले फलों की खेती की जाती है। यहाँ जंगली पशुओं का अभाव है। प्रायः पालतू पशु ही पाए जाते हैं। अफ़्रीका के दक्षिणी-पूर्वी भागों में भी वर्षा की कमी के कारण शुष्क घास के मैदान पाए जाते हैं। यहाँ पर उगने वाली घासें छोटी-छोटी मुलायम तथा गुच्छेदार होती हैं। इन घास के मैदानों को वेल्ड कहते हैं। घास के इन मैदानों में वृक्षों का एकदम अभाव होता है। इस भाग में पशुचारण का कार्य किया जाता है। अफ़्रीका के दक्षिणी एवं पूर्वी भागों में, जहाँ अधिक ऊँचाई के कारण हिमपात होता है, नुकीली पत्ती वाले सदाबहार वन पाए जाते हैं। मेडागास्कर द्वीप पर बोबाब नामक एक विचित्र वृक्ष पाया जाता हैजो जमीन के नीचे से नमी खींचकर अपने अन्दर जल का संचय करता है। जीव, अफ़्रीका की प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य.

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असुर (आदिवासी)

असुर भारत में रहने वाली एक प्राचीन आदिवासी समुदाय है। असुर जनसंख्या का घनत्व मुख्यतः झारखण्ड और आंशिक रूप से पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में है। झारखंड में असुर मुख्य रूप से गुमला, लोहरदगा, पलामू और लातेहार जिलों में निवास करते हैं। समाजविज्ञानी के.

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उड़ान

उड़ान एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक वस्तु, किसी सतह के सीधे संपर्क के बिना वायुमंडल में (पृथ्वी के सम्बन्ध में) या इससे बाहर (अंतरिक्ष उड़ान के सम्बन्ध में) चलती है। इसे ऐरोडायनामिक लिफ्ट, एयर प्रप्लशन, बोएन्सी या बैलेस्टिक मूवमेंट पैदा करके प्राप्त किया जा सकता है। बहुत सी चीजें उड़ती हैं जैसे पक्षी,कीट और मानव निर्मित जैसे मिसाइल, विमान हवाई जहाज, हेलीकॉप्टर, गुब्बारे,रॉकेट व अंतरिक्ष यान। .

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छोटी जंगली मुर्गी

छोटी जंगली मुर्गी (Red Spurfowl) (Galloperdix spadicea) फ़ीज़ेन्ट कुल का पक्षी है जो भारत का ही मूल निवासी है। इसकी पूँछ तीतर (जो स्वयं फ़िज़ेन्ट कुल का पक्षी है) की तुलना में लंबी होती है और जब यह ज़मीन पर बैठा होता है, तो इसकी पूँछ साफ़ दिखाई देती है। हालांकि इसका मुर्गी से दूर का भी संबन्ध नहीं है, लेकिन भारत में इसे जंगली मुर्गा ही माना जाता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

पंछी, पक्षियों, चिड़िया, चिड़ियां

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